Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 9 भोर का तारा (एकांकी)
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
दया सज्जनता को –
(अ) भूषण है
(ब) मूल्य है
(स) उपहार है
(द) रूप है।
उत्तर:
(अ) भूषण है
प्रश्न 2.
छाया के अनुसार प्रत्येक पुरुष के लिए स्त्री है –
(अ) पत्नी
(ब) कविता
(स) माता
(द) देवी
उत्तर:
(ब) कविता
प्रश्न 3.
गुप्त साम्राज्य में कौन-सा संकट उपस्थित हुआ?
(अ) अकाल का
(ब) बाढ़ का
(स) तोरमाण के आक्रमण का
(द) गृहयुद्ध का
उत्तर:
(स) तोरमाण के आक्रमण का
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
एकांकी में वर्णित गुप्त साम्राज्य का शासक कौन था?
उत्तर:
एकांकी में वर्णित गुप्त साम्राज्य के शासक सम्राट स्कन्दगुप्त थे।
प्रश्न 2.
देवदत्त कौन था?
उत्तर:
एकांकी के आरंभ में सम्राट स्कन्दगुप्त का मंत्री, बाद में तक्षशिला का क्षत्रप और छाया का भाई।
प्रश्न 3.
माधव ने शेखर को तक्षशिला से आकर क्या सूचना दी?
उत्तर:
माधव ने शेखर को बताया कि देश और गुप्त साम्राज्य संकट में है और देवदत्त शहीद हो चुके हैं।
प्रश्न 4.
तोरमाण कौन था?
उत्तर:
तोरमाण हूणों का सरदार था।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शेखर ने अपने जीवन की कौन-सी दो साधनाएँ बताईं?
उत्तर:
शेखर ने कविता और अपनी प्रेयसी छाया को अपने जीवन की दो साधनाएँ बताया।
प्रश्न 2.
शेखर को राजकवि क्यों बनाया गया?
उत्तर:
किसी उत्सव के अवसर पर छाया के मुख से मधुर गीत सुनकर सम्राट स्कन्दगुप्त मंत्रमुग्ध हो गए। उनके द्वारा गीत के रचनाकार का नाम पूछे जाने पर छाया ने उन्हें शेखर का नाम बताया और उसे राजकवि बनाने की बात कही। छाया की बात मानकर और उसके द्वारा रचित गीत से प्रसन्न होकर सम्राट द्वारा शेखर को राजकवि बनाया गया।
प्रश्न 3.
शेखर छाया को कौन-सा भेद बताता है?
उत्तर:
शेखर छाया को उसके द्वारा उन दोनों के प्रेम का प्रतीक ‘भोर का तारा’ कृति के पूर्ण होने का भेद बताता है।
प्रश्न 4.
“देश तुमसे यह बलिदान माँगता है” का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आशय- शेखर एक मधुर गान का कवि है। उसकी कविताएँ प्रेम और सौन्दर्य पर आधारित हैं। साथ ही उसकी वाणी ओजपूर्ण है, जो लोगों पर अपना पूर्ण प्रभाव छोड़ती है। इसलिए माधव उससे देश की रक्षा के लिए अपनी कविता का विषय प्रेम के स्थान पर देशप्रेम को बनाकर लोगों को स्वदेश की रक्षा लिए प्रेरित करने के लिए कहता है।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 9 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रस्तुत एकांकी के किस पात्र ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया? सकारण लिखो।
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी भोर का तारा’ में मुझे ‘शेखर’ ने सर्वाधिक प्रभावित किया। एकांकी के आरंभ में शेखर एक साधारण-सा कवि है, जो अपनी प्रेयसी के लिए काव्य रचना करता है। उसने अपने काव्य को आर्थिक लाभ का साधन नहीं माना, अपनी दीन स्थिति के कारण वह छाया से विवाह की उम्मीद नहीं रखता है और सदैव अपनी मर्यादा में रहकर छाया से प्रेम करता है। छाया के द्वारा ही उसे राजकवि का पद दिलवाया जाता है और उन दोनों का विवाह भी हो जाता है। किन्तु इससे भी बढ़कर मुझे उसके चरित्र की इस बात ने सर्वाधिक प्रभावित किया कि जिस कृति की रचना इसने अपने और छाया
के प्रेम के प्रतीक के रूप में की थी, जिसे वह सँभालकर रखने का छाया को वचन देता है। उसी अमर प्रेम स्मृति ‘भोर का तारा’ रचना को आग के हवाले कर देता है, जब माधव उससे स्वदेश की रक्षा के लिए सहायता माँगने आता है। वह नि:संकोच होकर अपने प्रेम के प्रतीक के स्थान पर मातृभूमि को चुनता है और अपनी कविता में माध्यम से जन-जन में स्वदेश प्रेम की अग्नि प्रज्ज्वलित करने चल पड़ता है।
प्रश्न 2.
वास्तव में शेखर ने कवि-कर्म का निर्वाह किया, आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हाँ, शेखर ने वास्तव में अपने कवि-कर्म का निर्वाह किया है। एक कवि का कर्तव्य होता है कि वह अपने देश, राज्य और राजा के प्रति एकनिष्ठ होकर रचना कर्म करे। उसकी कविताएँ समय और परिस्थितियों के अनुसार अपना विषय धारण करें। कवि ही वह व्यक्ति होता है जो अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों को जाग्रत कर सकता है और उन्हें उनके कर्तव्यों का भान करा सकता है।
शेखर भी ऐसा ही कवि है। वह सुख के समय राजा को प्रेमपूर्ण कविताएँ सुनाकर प्रसन्न करता है; किन्तु जैसे ही उसे अपने देश, राज्य और सम्राट पर आए संकट का पता चलता है, वह बिना किसी संकोच के अपने और अपनी पत्नी के प्रेम की स्मृति के रूप में तैयार अपनी रचना ‘भोर का तारा’ को फाड़कर जला देता है और अपनी कविता के माध्यम से लोगों में स्वदेश और सम्राट के लिए उनके कर्तव्यों का स्मरण कराता है। वह अपने ओजस्वी स्वर में उन्हें देशरक्षा के लिए प्रेरित करता है। वह युवकों को शस्त्र उठाकर शत्रुओं का सामना करने का जोश जगाता है। इस प्रकार वह स्थिति के अनुसार अपनी कविता का विषय बदलकर अपने कवि-कर्म का निर्वाह करता है।
प्रश्न 3.
‘भोर का तारा’ एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘भोर का तारा’ एक ऐतिहासिक एकांकी है। इसमें निजी प्रेम पर स्वदेश प्रेम के महत्त्व और स्वदेश के प्रति कर्तव्यों का चित्रण किया है। एकांकीकार ने स्वदेश और गुप्त साम्राज्य के रक्षण के परिप्रेक्ष्य में शेखर के व्यक्तित्व, उसके गुणों एवं स्वराष्ट्र की रक्षा के लिए उसके योगदान को चित्रित किया है। एकांकी में कवि-कर्म को उचित ढंग से प्रतिपादित किया गया है। एक कवि का कर्तव्य केवल अपने आश्रयदाता को प्रसन्न करना ही नहीं होता है अपितु आवश्यकता पड़ने पर अपने कवि-कर्म द्वारा लोगों में चेतना पैदा करना भी होता है। साथ ही कवि को अपने निजी प्रेम को त्यागने में भी संकोच नहीं करना चाहिए।
एकांकी का नायक शेखर भी अपने और अपनी प्रेयसी व पत्नी काया के प्रेम की स्मृति के रूप में भोर के तारे से प्रभावित होकर, एक रचना लिखता है, जिसे वह राजा को भेंट करना चाहता है। किन्तु जब उसे अपने देश और राजा पर आए.संकट का पता चलता है, वह अपनी इस कृति को आग के हवाले कर देता है और अपनी ओजपूर्ण कविता द्वारा जन चेतना जाग्रत करने के लिए अपने घर से निकल पड़ता है। उसके द्वारा इस प्रकार अपने प्रेम की स्मृति जला दिए जाने पर उसकी पत्नी छाया उसके मित्र माधव को उसका प्रभात नष्ट करने का दोष देती है; किन्तु माधव उसे शेखर के वास्तविक रूप से परिचित कराता हुआ कहता है कि प्रभात अभी होगा और शेखर जो अब तक भोर का तारा था अब प्रभात का सूरज होगा। इस प्रकार एकांकीकार अपनी एकांकी के उद्देश्य में सफल होता है।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शेखर के घर की स्थिति कैसी है?
उत्तर:
शेखर का घर पूरी तरह अस्त-व्यस्त है। बायीं ओर तख्त पर मैली फटी चादर बिछी है, उसी पर चौकी, लेखनी, भोज-पत्र आदि बिखरे पड़े हैं। घर में एक तिपाही है जिस पर कुछ बर्तन हैं। घर में बने आँखों में दीपदान और कुछ वस्तुएँ रखी हैं।
प्रश्न 2.
शेखर किस कार्य में तल्लीन है?
उत्तर:
शेखर अपनी रचना (कविता ) लिखने में तल्लीन है। वह कभी गुनगुनाते हुए टहल रहा है तो कभी तख्त पर बैठ जाता है। वह जो गुनगुना रहा है उसे साथ-साथ लिखती भी जा रहा है।
प्रश्न 3.
शेखर जब कविता लिखने में तल्लीन था, उस समय उससे मिलने कौन आता है? वह क्या कार्य करता है?
उत्तर:
शेखर जब कविता लिखने में तल्लीन था, उस समय उसका मित्र माधव उससे मिलने आता है। एकांकी के आरंभ में माधव राजा स्कन्दगुप्त के दरबार में दरबारी है। बाद में वह देवदत्त के साथ उनका मंत्री बनकर तक्षशिला चला जाता है।
प्रश्न 4.
शेखर माधव को भोर के तारे के विषय में क्या बताता है?
उत्तर:
शेखर माधव को बताता है कि भोर का तारा उस रजनी बाला के गहरे नीले रंग के कपड़ों में रँका सोने का तारा है जिसे पहनकर वह अपने प्रियतम प्रभात से मिलने गई। जैसे ही वह प्रभात के पास पहुँची तो वह शरमा कर भागी, तब प्रभात ने अपनी अँगुलियों से उसके नीले वस्त्र का किनारा नीचे खींच लिया। यह वही है।
प्रश्न 5.
माधव शेखर से कविता के विषय में क्या कहता है?
उत्तर:
माधव शेखर से कहता है कि कविता केवल कोमल हृदय अर्थात् कवियों और कोमल मन वालों के लिए है, न कि काम-काजी और राजनीतिज्ञों और सैनिकों के लिए। उनके संपर्क में आते ही कविता अपनी कोमलता खो देगी और नीरस हो जाएगी।
प्रश्न 6.
माधव के द्वारा यह कहने पर कि राजनीतिज्ञ रात-दिन लोगों को उनकी उलझनों से बाहर निकालने का कार्य करते हैं। इस पर शेखर ने क्या टिप्पणी की?
उत्तर:
माधव की बात सुनकर शेखर ने उससे कहा कि तुम्हारे जैसे राजनीतिज्ञ और मंत्री बड़ी सादगी के साथ ऐसा अभिनय करते हो, जैसे गरीबों की उलझनों, युद्ध और सन्धि की समस्याओं को सुलझा दोगे, परन्तु ऐसा कभी नहीं होता है। यह कार्य तो कवि करता है, तुम लोग तो उन्हें मूर्ख बनाते हो।
प्रश्न 7.
माधव शेखर की टिप्पणी की किस प्रकार अवहेलना करता है?
उत्तर:
शेखर की टिप्पणी की अवहेलना करता हुआ माधव उससे कहता है कि कवि केवल कल्पना में जीता है और लोगों को भी उसी में जीने की सलाह देता है। वह लोगों को उलझनों से बाहर आने के स्थान पर उन्हें भूलने की सलाह देता है। कवि जीवन को सौन्दर्य मानकर सपने में जीता है जबकि वे उसे कर्त्तव्य के रूप में देखते हैं।
प्रश्न 8.
शेखर राजपथ पर बैठी भिखमंगिन का कैसा मानसिक चित्र बनाता है? वह उसे कैसी लगती है?
उत्तर:
शेखर को उस भिखमंगिन में एक कविता, लय और कला दिखाई देती है। उसका गहरी झुर्रियोंदार चेहरा, काँपते हाथ, आँखों के बेबस गढ्डे, झुकी हुई कमर उसका पूरा मानसिक चित्र बना लेता है। उसे वह भिखमंगिन ऐसी लगती है जैसे किसी शिल्पी ने उसे इस ढाँचे में ढाला हो।
प्रश्न 10.
माधव ‘देवी’ और ‘पुजारी’ कहकर किनकी ओर संकेत कर रहा है? यह देवी वास्तव में कौन है? उसका शेखर से क्या संबंध है?
उत्तर:
माधव देवी और पुजारी कहकर छाया और शेखर की ओर संकेत कर रहा है। यह देवी वास्तव में छाया है जो सम्राट स्कन्दगुप्त के मन्त्री देवदत्त की बहन है। छाया शेखर की प्रेयसी और प्रेरणा है। छाया को आधार मानक़र ही शेखर ‘भोर का तारा’ नामक रचना लिखता है।
प्रश्न 11.
माधव शेखर को क्या सूचना देने आया था?
अथवा
माधव को शेखर से मिलने आना में क्या प्रयोजन था?
उत्तर:
माधव शेखर को एक विशेष सूचना देने के प्रयोजन से आया था। वह उसे बताने आया था कि एक युवती द्वारा उत्सव में उसके द्वारा रचित गीत को सुनकर सम्राट स्कन्दगुप्त ने मुग्ध होकर उस गीतकार को अपना राजकवि नियुक्त कर लिया है और वह युवती छाया थी और वह कवि कोई और नहीं स्वयं शेखर है।. .
प्रश्न 12.
“हम दोनों नदी के किनारे हैं, जो एक-दूसरे की ओर मुड़ते हैं, पर मिल नहीं सकते।”शेखर ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर:
इस कथन से शेखर का तात्पर्य छाया और स्वयं से है। छाया सम्राट स्कन्दगुप्त के मन्त्री देवदत्त की बहन है और वह एक साधारण कवि। एक मामूली व्यक्ति का मन्त्री की बहन से क्या संबंध। अतः जैसे नदी के किनारे एक-दूसरे की ओर मुड़ते तो हैं पर मिल नहीं पाते, उसी प्रकार वे दोनों दूर से एक-दूसरे से प्रेम तो कर सकते हैं, परन्तु उनका विवाह (मिलन) संभव नहीं।
प्रश्न 13.
शेखर किसकी की परवाह करता है? एकांकी के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
शेखर फूल की पंखुड़ियों पर जगमगाती हुई ओस की, संध्या में सूर्य की किरणों को अपनी गोद में समेटने वाले बादलों के टुकड़ों की, सुबह को आकाश के कोने में टिमटिमाने वाले तारे की परवाह करता है। इनके अतिरिक्त वह अपनी प्रेयसी छाया की भी परवाह करता है।
प्रश्न 14.
माधव के अनुसार शेखर छाया को कहाँ-कहाँ देखता है?
उत्तर:
माधव के अनुसार शेखर छूया को निम्न स्थानों पर देखता है –
- दिन में वृक्षों के नीचे फैली हुई देखता है।
- छाया को वह दर्पण में झलकती हुई देखता है।
- वह उसे सदैव अपने हृदय में देखता है।
प्रश्न 15.
एकांकी के दूसरे दृश्य का आरंभ कहाँ से होता है?
अथवा
शेखर और छाया के नए निवास स्थान का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
शेखर और छाया उज्जयिनी में मन्त्री देवदत्त के भवन में रहते हैं। उनका कमरा सजा हुआ और साफ है। दीवारों पर कुछ चित्र, हैं, कोने में धूपदान रखा हुआ है। सामने तख्त है जिस पर चटाई और लिखने-पढ़ने का सामान है। पास ही में एक छोटी चौकी पर कुछ ग्रन्थ रखे हैं। दूसरी ओर पीढ़ा और उसके पास एक कलात्मक अँगीठी रखी है। दीवार पर लगी अलगनी पर धोतियाँ इत्यादि टॅगी हैं।
प्रश्न 16.
छाया कैसी स्त्री है? वह क्या कर रही है?
उत्तर:
छाया सौन्दर्य की मूर्ति, चंचलता, अलमस्ती, गंभीरता और स्त्री-सुलभ भावों के सम्मिश्रण वाली स्त्री है। वह घर की वस्तुओं को उनके उचित स्थान पर सँभालकर रख रही है और साथ-ही साथ वह कुछ गुनगुना भी रही है। ठंड में तापने के लिए उसने अँगीठी भी जला रखी है।
प्रश्न 17.
छाया द्वारा गुनगुनाए जाने वाले गीत की पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
गीतः प्यार की है क्या पहचान? चाँदनी का पाकर नव-स्पर्श, चमक उठते पत्ते नादान पवन की परम सलिल की लहर, नृत्य में हो जाती लयमान सूर्य को सुन कोमल पदचाप फूल उठता चिड़ियों का गान तुम्हारी तो प्रिय केवल याद, जगाती मेरे सोये प्राण, प्यार की है क्या पहचान?
प्रश्न 18.
शेखर छाया को किसकी कहानी सुनाता है? छाया कहानी के पात्रों की पहचान किन रूपों में करती है?
उत्तर:
शेखर छाया को एक कवि, एक राजा और एक गायिका की कहानी सुनाता है, जिसका गीत सुनकर वह कविता लिखता और। राजा को सुनाता था। छाया शेखर द्वारा सुनाई गई कहानी को कवि की शेखर के रूप में, राजा की सम्राट स्कन्दगुप्त के रूप में और उसे गायिका की स्वयं के रूप में पहचान करती है।
प्रश्न 19.
‘प्रत्येक पुरुष के लिए स्त्री एक कविता है’- छाया अपने इस कथन को कैसे स्पष्ट करती है?
अथवा
छाया के अनुसार स्त्री पुरुष के जीवन में क्या महत्व रखती है?
उत्तर:
छाया के अनुसार जिस प्रकार कविता पुरुष के सूने मन को प्रसन्न कर देती है वैसे ही स्त्री भी पुरुष के बोझिल मन को बहलाने का साधन है। जब पुरुष जीवन के संघर्षों का सामना करते हुए थक जाता है तब वह स्त्री पर अपना सारा प्रेम और अरमान लुटाता है। जैसे उसके जीवन में स्त्री से अधिक महत्त्वपूर्ण और कुछ नहीं है। किन्तु जैसे कविता नीरस होने पर पुरुष उससे दूर भागता है। वैसे ही स्त्री से ऊब जाने पर वह पुनः अपने कर्मों में लग जाता है।
प्रश्न 20.
शेखर छाया को क्या दिखाता है कि वह आश्चर्यचकित हो जाती है; किंतु कुछ क्षण बाद उदास भी। ऐसा क्यों? लिखिए।
उत्तर:
शेखर छाया को अपने और उसके प्रेम की स्मृति का परिणाम अपनी कृति ‘भोर का तारा’ दिखाता है, जिसे देखकर छाया बहुत आश्चर्यचकित हो जाती है। थोड़े समय बाद वह उस कृति के नष्ट होने और चोरी हो जाने के भय से उदास हो जाती है।
प्रश्न 21.
जब शेखर और छाया अपने सुख की कल्पना से प्रसन्न थे, उसी क्षण उनके घर में कौन प्रवेश करता है? वह उन दोनों को क्या सूचना देता है?
अथवा
माधव शेखर के पास क्यों आता है? वह छाया और शेखर को क्या सूचना देता है?
अथवा
माधव शेखर से क्या सहायता माँगने आया था?
उत्तर:
जब शेखर और छाया अपने सुख की कल्पना में प्रसन्न थे, तभी पसीने से तरबतर और भयभीत माधव उनके घर में प्रवेश करता है। वह उन दोनों को सूचना देता है कि गुप्त साम्राज्य और सम्राट स्कन्दगुप्त संकट में हैं। इस समय उनके राज्य और देश को शेखर की ओजपूर्ण वाणी की आवश्यकता है। शेखर ही वह व्यक्ति है जो अपनी कविता से लोगों में चेतना जगाकर उन्हें स्वदेश की रक्षा के लिए प्रेरित कर सकता है।
प्रश्न 22.
माधव शेखर और छाया को किसकी मृत्यु का समाचार सुनाता है? उन्होंने किस प्रकार वीरगति प्राप्त की?
उत्तर:
माधव शेखर और छाया को तक्षशिला के नए क्षत्रप और छाया के भाई देवदत्त की मृत्यु का समाचार सुनाता है। देवदत्त ने अपने सैनिकों को हूणों के चंगुल से बचाने के लिए स्वयं के प्राण दाँव पर लगा दिए और हूणों के विरुद्ध युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त ‘हुए।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 9 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
एकांकीकार जगदीश चन्द्र माथुर का जीवन परिचय लिखिए।
उत्तर:
एकांकीकार जगदीश चन्द्र माथुर का जन्म 16 जुलाई 1917 ई. को खुर्जा, बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश) में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा खुर्जा एवं उच्च शिक्षा इलाहाबाद में हुई थी। यह बिहार में शिक्षा सचिव व आकाशवाणी के महा संचालक सहित अनेक राजकीय पदों पर प्रतिष्ठित हुए। माथुर जी अपने विद्यार्थी जीवन में ही रचना कर्म में लीन हो गए थे। माथुर जी मूल रूप से नाटककार थे। इन्होंने वर्तमान समाज व इतिहास दोनों पर लिखा। उनके सामाजिक नाटक आधुनिक समाज की विडम्बनापूर्ण स्थिति को उभारते हैं तो वहीं ऐतिहासिक नाटकों में अतीत के गौरव को। इनके एकांकी जीवन की यथार्थ संवेदनाओं को उभारने में सक्षम में हैं तथा पात्र अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व और चारित्रिक विशेषताएँ रखते हैं। श्री माथुर का देहावसान 14 मई 1978 ई. में हुआ। श्री माथुर छायावादी संवेदना के रचनाकार थे। इनके नाटक मंचीय लोकप्रियता को प्राप्त हुए। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- भोर का तारा, कोणार्क, ओ मेरे सपने, शारदीया, दस तस्वीरें, परम्पराशील नाट्य, पहला राजा, जिन्होंने जीना जाना।
प्रश्न 2.
‘भोर का तारा’ एकांकी का नायक कौन है? उसका चरित्र-चित्रण लिखिए।
अथवा
उन गुणों का उल्लेख कीजिए जो शेखर को इस एकांकी का नायक सिद्ध करते हैं?
उत्तर:
‘भोर का तारा’ एकांकी का नायक शेखर है। वह एक सहृदय कवि, सच्चा प्रेमी, राष्ट्र भक्त, कर्त्तव्य के प्रति सजग और त्याग ।। को तत्पर रहने वाला युवक है। उसके चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- सहृदय कवि – शेखर एक सहृदय कवि है। वह प्रकृति के हर तत्व में कविता को देखता है। उसे राजपथ पर भीख माँगने वाली स्त्री में भी कला दिखाई देती है। उसके रचित गीत पर मुग्ध होकर सम्राट उसे अपना राजकवि नियुक्त कर लेते हैं।
- भावुक व्यक्ति – शेखर एक भावुक व्यक्ति है। वह अपने भावों को अपनी कविता के माध्यम से प्रकट करता है। माधव द्वारा छाया का नाम लेकर छेड़े जाने पर वह झेंप जाता है।
- सच्चा प्रेमी – शेखर एक सच्चा प्रेमी है। वह छाया से प्रेम करता है किन्तु उसे पाने की आशा नहीं करता है। वह उसके और अपने बीच के अन्तर को जानता है। वह सदैव अपनी सीमा में रहकर छोया को चाहता है। यह उसके प्रेम की ही पराकाष्ठा है कि वह छाया के प्रेम से प्रेरणा लेकर ‘भोर का तारा’ रचना लिखता है।
- राजभक्ति – राजकवि नियुक्त होने पर अपने कवि-कर्म के द्वारा राजा को प्रसन्न करता है। उनके लिए कविता लिखता है। इतना ही नहीं वह अपने प्रेम की अमर कृति को भी उन्हें भेंट करने की बात कहता है। किन्तु यह ज्ञात होने पर कि राष्ट्र पर संकट मँडरा रहा है, वह अपनी इस रचना को आग के हवाले कर देता है।
- कर्तव्य के प्रति सजग व त्याग को तत्पर – शेखर अपने कर्तव्य के प्रति सजग है। देश के प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वाह हेतु वह त्याग करने से भी पीछे नहीं हटता है। जिस कृति को वह सँभालकर रखने का छाया को वादा करता है, उसी को वह अपने देश के लिए आग के हवाले कर देता है।
प्रश्न 3.
‘भोर का तारा’ एक निजी प्रेम प्रधान एकांकी है या देश-प्रेम प्रधान एकांकी है। कारण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
‘भोर का तारा’ एकांकी आरंभ से मध्य तक निजी प्रेम से परिपूर्ण एकांकी प्रतीत होती है। जिसका नायक शेखर अपनी प्रेयसी के प्रेम से प्रेरणा लेकर काव्य रचना करता है। वह जीवन के प्रत्येक अंग में प्रेम को देखता है। किन्तु जैसे-जैसे एकांकी मध्य से आगे बढ़ती है वह निजी प्रेम से देश-प्रेम प्रधान होती जाती है। माधव के द्वारा आकर यह सूचना दिए जाने पर कि भारत में हूणों का प्रवेश हो चुका है और वे अपने अत्याचार और अन्याय से लोगों को ताड़ित कर रहे हैं। शेखर को निजी प्रेम स्वदेश प्रेम में परिणित होने लगता है। माधव के द्वारा उससे सहायता माँगे जाने पर वह तैयार हो जाता है।
माधव उससे अपनी ओजपूर्ण वाणी में देश के युवकों में देश के प्रति प्रेम और चेतना जगाने को कहता है, जिससे वे स्वदेश के रक्षण के लिए तत्पर हो उठे। अपने-अपने हाथों में शस्त्र लेकर स्वदेश और राष्ट्र के शत्रुओं का सामना कर सकें। माधव की इन देशभक्तिपूर्ण बातों को सुनकर और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध होने पर शेखर अपने निजी प्रेम की निशानी अपनी प्रिय कृति ‘भोर का तारा’ को आग के हवाले कर देता है। उसे जला देता है। इस प्रकार निजी प्रेम राष्ट्र प्रेम के समक्ष कमजोर पड़ जाता है और एकांकी अंत तक आते-आते देश प्रेम प्रधान एकांकी का रूप ले लेता है।
प्रश्न 4.
एकांकी के आधार पर ‘माधव’ का चरित्र-चित्रण लिखिए।
उत्तर:
माधव भी एकांकी का महत्त्वपूर्ण पात्र है। वह भी पाठकों को प्रभावित करने में पूर्णत: सफल होता है। उसके चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- सच्चा व सहृदय मित्र – माधव एक सच्चा और सहृदय मित्र है। वह शेखर को सदैव आगे की ओर बढ़ता देखना चाहता है और सदैव उसकी प्रशंसा करता है। वह अपने मित्र शेखर के राजकवि बनाए जाने पर बहुत प्रसन्न होता है और शेखर को यह खुशखबरी देने स्वयं जाता है।
- ऊँच -नीच की भावना से रहित – माधव ऊँच-नीच की भावना से रहित व्यक्ति है। उसकी दृष्टि में सभी समान हैं। यही कारण है कि एक राजदरबारी होने पर भी वह शेखर जैसे मामूली कवि का मित्र है। उसे अपने पद का अहम् नहीं है।
- मनोविनोदपूर्ण व्यवहार – माधव का व्यवहार मनोविनोदपूर्ण है। वह शेखर को उसकी कविता और कल्पनाओं को लेकर उससे व्यंग्य करता रहता है। यहाँ तक कि वह उसे उसकी प्रेयसी का नाम लेकर छेड़ता रहता है। वह एक राजनीतिज्ञ होने पर भी हँसी-मजाक करने के अवसर नहीं छोड़ता है।
- देशभक्त – माधव एक देशभक्त है। अपने देश को संकट में जानकर वह अपने प्राणों तक की बाजी लगाने को तत्पर हो जाता है, किन्तु देवदत्त के आदेश के समक्ष वह शांत हो जाता है और अपने देश की रक्षा के लिए सभी ओर से सहायता जुटाने का प्रयास करता है।
- कर्तव्य के प्रति सजग – माधव अपने कर्तव्य के प्रति पूर्ण सजग है। वह तक्षशिला से उज्जयिनी आकर शेखर को उसके कर्तव्य का बोध कराता है और उसे अपनी कविता को देश-रक्षण के लिए प्रयोग करने को कहता है। वास्तव में शेखर को प्रभात का सूर्य बनाने का श्रेय माधव को ही जाता है। वह एक स्नेहिल मित्र और एक देशभक्त है।
प्रश्न 5.
शेखर छाया को क्या कहानी सुनाता है? अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
शेखर राजमहल से लौटकर एक कवि की कहानी सुनाता है। वह छाया से कहता है कि एक राजा के दरबार में एक कवि रहता था। वह युवक और भावुक था। राज-भवन के सभी लोग उसे बहुत प्रेम करते थे, महल का राजा उस कवि से प्रतिदिन सुबह एक नई और सुन्दर कविता सुना करता था। परन्तु उस कवि में एक बुराई थी। वह राजा को अपनी कविता केवल सुबह के समय ही सुनाता था। एक दिन उस राजा ने उस कवि से पूछा कि तुम अपनी कविता केवल दिन के समय ही क्यों सुनाते हो? दोपहर और शाम को क्यों नहीं? राजा के प्रश्न का उत्तर देते हुए कवि इसका कारण बताते हुए कहता है कि वह अपनी कविता की रचना केवल रात के तीसरे पहर में ही कर सकता है।
कवि की यह बात सुनकर राजा नाराज तो नहीं हुआ किन्तु उसने अपने मन में कवि के घर जाकर इस बात की पुष्टि करने का विचार किया। रात का तीसरा पहर होते ही राजा वेश बदलकर उस कवि के घर पहुँच गया और उसके घर की खिड़की के नीचे बैठ गया। राजा ने देखा कि कवि अपनी लेखनी पकड़कर लिखने को तैयार बैठा है। तभी राजा को कहीं से किसी स्त्री का बहुत सुरीला स्वर सुनाई पड़ा, जिसे सुनकर राजा झूमने लगा। उसने देखा कि गीत की आवाज आते ही कवि की लेखनी भी स्वत: चलने लगी। इस प्रकार राजा को उस कवि के तीसरे पहर में कविता लिखने और केवल सुबह के समय कविता सुनाने का कारण समझ आ गया।
प्रश्न 6.
‘भोर का तारा’ एकांकी के कथा-संगठन की समीक्षा कीजिए।
अथवा
‘भोर का तारा’ एकांकी के कथा-संगठन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
‘भोर का तारा’ एकांकी में निजी प्रेम पर स्वदेश प्रेम की महत्ता को प्रतिपादित किया गया है। सम्पूर्ण एकांकी में एक कवि के मनोभावों का वर्णन किया गया है और अंत में स्वराष्ट्र के प्रति कर्तव्यों का भान कराया गया है।
- सुगठित कथानक – इस एकांकी की कथावस्तु पूर्णतः शृंखलाबद्ध है। एक के बाद दूसरी घटना इस प्रकार पिरोयी हुई है कि उसमें कहीं भी शिथिलता नहीं आने पाई है। कोई भी अनावश्यक घटना नहीं जोड़ी गई है। अत: ‘ भोर का तारा’ एकांकी की कथा सुसम्बद्ध, सुगठित और सुव्यवस्थित है।
- विकास-क्रम – ‘भोर को तारा’ एकांकी की कथावस्तु का विकास भी बड़े स्वाभाविक रूप में हुआ है। प्रारंभ में माधव के प्रवेश के साथ शेखर की कवि प्रवृत्ति का पता चलता है। माधव की बातों से पता चलता है कि शेखर अब साधारण कवि नहीं रहा राजकवि बन गया है। उसकी प्रेयसी छाया उसकी पत्नी उसके जीवन में आती है। उनके प्रेम की परिणति शेखर द्वारा एक काव्य रचना के रूप में होती है। माधव का पुनः आगमन एकांकी को नया मोड़ देता है। इस प्रकार समस्त कथा क्रमशः विकसित होती है।
- संकलन त्रय – इस एकांकी में संकलन-त्रय का पूर्ण निर्वाह हुआ है। पूरा एकांकी दो दृश्यों में जीवन के सभी पहलुओं को दर्शाया गया है।
- रोचक और जिज्ञासापूर्ण संक्षिप्त कथानक – ‘भोर का तारा’ एकांकी का कथानक बड़ा रोचक और जिज्ञासापूर्ण है। माधव का प्रवेश दोनों बार जिज्ञासा बढ़ाता है। पूरे एकांकी में कौतूहल बना रहता है। कथा अत्यंत संक्षिप्त होते हुए भी रोचकता से परिपूर्ण है।
- निष्कर्षत – निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि ‘भोर का तारा’ एकांकी की कथावस्तु संक्षिप्त, रोचक और सुगठित है। इसमें एक कवि की भावनाओं की सजीव झाँकी है। पाठक पर इसका सहज ही प्रभाव अंकित हो जाता है।
प्रश्न 7.
छाया माधव पर उसका प्रभात नष्ट करने का आरोप क्यों लगाती है? माधव किस प्रकार उसके दोष को गलत सिद्ध करता है?
उत्तर:
एकांकी के द्वितीय अंक में जब माधव प्रवेश करता है, उस समय छाया और शेखर अपने सुखमय जीवन पर विचार करके प्रसन्न हो रहे होते हैं। साथ ही शेखर छाया को उन दोनों के प्रेम की अमर स्मृति अपनी रचना’ भोर का तारा’ दिखाता है, जिसे उसने छाया को पहली बार देखने के साथ ही लिखना आरंभ कर दिया था। दोनों बहुत प्रसन्न थे। तभी माधव उनके घर आता है। वह उन दोनों को गुप्त साम्राज्य पर आए संकट तोरमाण (हूणों के सरदार) के विषय में बताता है। साथ ही वह उन दोनों को देवदत्त के युद्ध में वीरगति पाने का समाचार भी देता है। छाया अपने भाई की मृत्यु का समाचार पाकर बहुत दुखी हो जाती है और शोक से धरती पर गिर पड़ती है। माधव शेखर को अपनी कविता का प्रयोग स्वदेश के लिए करने के लिए कहता है।
वह शेखर से कहता है कि वह अपनी ओजपूर्ण वाणी से जन-जन को चेतन करे और उनमें देशभक्ति जगाए। जिससे सभी अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए तत्पर हो उठे। माधव के इस प्रकार शेखर को देशरक्षा के लिए कवि कर्म करने के लिए प्रेरित किए जाने पर शेखर अपने और छाया के प्रेम की प्रतीक रचना’ भोर का तारा’ को फाड़कर जलतीं अँगीठी में डाल देता है। यह दृश्य देखकर छाया के शोक की सीमा नहीं रहती है। वह माधव को इसका दोषी ठहराते हुए उसे उसका प्रभात नष्ट करने वाला कहती है। छया के इस कथन को सुनकर माधव को शेखर और उसके स्वर के साथ मिले जनसमूह के स्वर को सुनाकर उससे कहता है कि उसका प्रभात नष्ट नहीं हुआ है। वास्तविक प्रभात तो अब होगी। शेखर जो अब तक भोर का तारा था, वह अब प्रभात का सूर्य बनेगा। इस प्रकार माधव छाया के दोषारोपण को गलत सिद्ध करता है।
प्रश्न 8.
पठित एकांकी के आलोक में जगदीश चन्द्र माथुर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जगदीश चन्द्र माथुर रंगमंच कला के चतुर चितेरे है। इन्होंने अपने सामाजिक एकांकियों में समाज की कुरीति, रूढ़िवाद और नारी के प्रति तुच्छ दृष्टि का चित्रण करते हुए इनकी भर्त्सना की है तथा इसका समाधान ढूंढ़ निकालने का प्रयास किया है। ऐसी ही सामाजिक एकांकी रीढ़ की हड्डी’ में इन्होंने उसकी प्रमुख नारी पात्र के माध्यम से वर पक्ष वालों द्वारा कन्या पक्ष की नाप-तौल और स्त्री को भेड़, बकरी या बिकने वाली वस्तु माने जाने पर करारा प्रहार किया है। वहीं अपनी ऐतिहासिक एकांकियों में इन्होंने त्याग, बलिदान और उत्सर्ग का चित्रण किया है। आवश्यकता पड़ने पर प्रेम-गीत गाने वाले इनके पात्र अपने प्रेम को तृण-मात्र भी न समझते हुए देश-प्रेम के लिए सर्वस्व समर्पण कर देने को आतुर हो जाते हैं और सिंहनाद करते हुए युद्ध-भूमि में कूद पड़ते हैं।
प्रस्तुत एकांकी के सन्दर्भ में श्री जगदीश चन्द्र माथुर ने एक कवि को एक ऐसे नि:शस्त्र सैनिक के रूप में प्रस्तुत किया है, जो अपनी ओजपूर्ण वाणी से जनता के हृदय में देश के प्रति प्रेम, भक्ति और सब कुछ बलिदान करने की भावना को जाग्रत करता है। वह अपने देश के लिए अपने निजी प्रेम की कोमल भावनाओं पर आधारित अपनी रचना तक को फाड़कर जला देता और देश रक्षण के लिए लोगों को चैतन्य करने की दिशा की ओर चल पड़ता है।
पाठ-सारांश :
‘भोर का तारा’ जगदीश चन्द्र माथुर द्वारा लिखित गुप्त वंश के अन्तिम प्रतापी शासक स्कन्दगुप्त के शासन काल से सम्बन्धित ऐतिहासिक एकांकी है। कहानी का नायक शेखर एक राजकवि है और अपनी प्रेयसी व पत्नी के प्रेम से प्रेरित होकर ‘भोर का तारा’ नामक रचना लिखता है। किन्तु अपने राज्य को संकट में देखकर वह अपनी कृति को आग के हवाले कर देता है।
दृश्य : एक
शेखर अपने घर में बैठा कविता लिखने में तल्लीन है। उसी समय उसका मित्र माधव शेखर के घर में प्रवेश करता है। कविता लिखने में तल्लीन शेखर उस पर ध्यान नहीं देता है, तब माधव के पुकारने पर वह उसे देखता है और उसे अपनी कविता की पंक्तियाँ सुनाता है। माधव शेखर को सम्राट स्कन्द द्वारा राजकवि बनाए जाने की सूचना देता है। वह उसे बताता है कि उसकी प्रेयसी छाया के मुख से उसका रचित गीत सुनकर सम्राट मन्त्रमुग्ध हो गए। छाया सम्राट स्कन्दगुप्त के मंत्री देवदत्त की बहन है। इसलिए शेखर को अपने और छाया के विवाह की कोई उम्मीद नहीं थी; किन्तु शेखर के राजकवि बनते ही उसकी स्थिति बदल गई। उसका विवाह छाया के साथ हो गया और वह अपनी पत्नी छाया के साथ देवदत्त के महल में रहने लगा। देवदत्त को तक्षशिला का राजा बना दिया गया है और अब वह (माधव) भी उनका मंत्री बनकर तक्षशिला चला जाएगा।
दृश्य : दो
अपने नए घर (देवदत्त के महल) में छाया शेखर द्वारा रचित गीत को गुनगुना रही है और घर के छोटे-छोटे काम निपटा रही है। शेखर अपने काम से लौटकर दरवाजे पर खड़ा चुपचाप छाया को गुनगुनाता हुआ देख रहा था। बड़े स्नेह के साथ आया को पुकारता है; किन्तु अपनी धुन में गुनगुनाने और काम करने में सुन नहीं पाती है। वह पुनः उसे बुलाता है। वह चौंककर उसे देखती है। शेखर अपना दुशाला और ग्रंथ रखकर छाया को एक कहानी सुनाता है। छाया पहचान जाती है कि शेखर उसे कंहानी के बहाने अपनी और उसी की बातें बता रहा है। शेखर उससे कहता है कि वह (छाया) ही उसकी कविता है, जब तक वह है, तब तक उसकी कविता जीवित है।
उसकी बात सुनकर छाया भावुक हो उठती है। वह शेखर से कहती है कि वह जीवित रहे न रहे पर उसकी कविता सदैव जीवित रहेगी। शेखर छाया को अपने और प्रेम पर आधारित रचना ‘भोर का तारा’ दिखाता है। उस कृति को देखकर छाया आश्चर्यचकित हो जाती है। छाया शेखर की इस कृति को उन दोनों के प्रेम की कृति बताती है। शेखर छाया से कहता है कि वह अपनी इस कृति को सम्राट स्कन्दगुप्त को भेंट करेगा और प्रतिदिन इसमें संकलित गीत सम्राट को सुनाया करेगा।
वह अपने भविष्य की कामना करता हुआ छाया से कहता है कि बहुत वर्षों बाद लोग कविकुलशिरोमणि शेखर द्वारा रचित ‘भोर का तारा’ रचना को पढ़कर विभोर हो जाएँगे और वे दोनों उस क्षण को याद करने लगते हैं, जब उन दोनों ने एक-दूसरे को देखा था। छाया शेखरे से अपनी इस कृति ( भोर का तारा) को सँभालकर रखने की प्रार्थना करती है। शेखर उसे विश्वास दिलाता है कि वह अपनी कृति को सँभालकर रखेगा। दोनों अपने सुखी जीवन पर विचार करके प्रसन्नतापूर्वक हँसते हैं।
तभी बाहर से आते शोर और घोड़ों की टापों की आवाज सुनकर शेखर द्वार खोलता है। पसीने से लथपथ और शस्त्रों से सुसज्जित माधव शेखर के घर में प्रवेश करता है। वह बहुत चिन्तित और भयभीत है। उसे ऐसी स्थिति में देखकर शेखर और छाया दोनों किसी अनिष्ट की संभावना से काँपने लगते हैं। माधव भयभीत आँखों से कभी उन दोनों को तो कभी उनके घर को देखता है। भय के कारण बोल पाने में असमर्थ होने पर वह अपनी पूरी शक्ति एकत्र करके शेखर और छाया से कहता है कि वह उन दोनों से भीख माँगने आया है। माधव की यह बात सुनकर उन दोनों के आश्चर्य की सीमा न रही।
उन्होंने माधव से पूरी बात बताने को कहा। तब माधव ने बताया कि गुप्त राज्य संकट में है। हूणों के सरदार तोरमाण ने भारत में प्रवेश करके अम्भी राज्य को नष्ट कर दिया है। अब उसकी सेना तक्षशिला को नष्ट कर रही है। माधव के मुख से तक्षशिला के नष्ट होने की बात सुनकर छाया भयभीत हो उठती है। माधव अपनी बात जारी रखता है। वह बताता है कि पूरा पंचनद उसके भय से काँप रहा है। गाँव जलाए जा रहे हैं। लोगों पर अत्याचार और अन्याय हो रहे हैं। वह उन दोनों से इस संकट काल में शेखर से मदद करने को कहता है। वह कहता है ऐसे समय में केवल शेखर ही है जो लोगों को जगा सकता
है, युवकों में देशभक्ति की भावना पैदा कर सकता है। उनमें अपने राज्य और देश की रक्षा के लिए जोश भर सकता है। शेखर मस्तक पर हाथ रखकर माधव की बातों को सुन रहा है। माधव शेखर से कहता है कि वह अपनी कविता के माध्यम से जन-जन में ऐसा उत्साह भरें कि लोग अपने हाथों में शस्त्र लेकर अपने सम्राट और देश की रक्षा के लिए तत्पर हो उठे। हे कविराज, देश तुमसे यह वरदान माँगता है। छाया के पुकारने पर माधव तक्षशिला के राजा और छाया के भाई देवदत्त के अंतिम शब्द उसे सुनाता है। अपने भाई की मृत्यु का । समाचार सुनकर छाया और शेखर दोनों शोक में डूब गए। माधव उन दोनों को बताता है कि महाराज देवदत्त ने हूणों के विरुद्ध युद्ध में अपने सैनिकों को बचाते हुए वीरगति प्राप्त की। उन्होंने ही मुझे तक्षशिला और पाटलिपुत्र को सचेत रहने की चेतावनी देने के लिए भेजा। अचानक उसकी दृष्टि शेखर पर जाती है।
शेखर अपने और छाया के प्रेम के प्रतीक अपनी रचना ‘भोर का तारा’ को फाड़-फाड़कर जलती अँगीठी में डाल रहा था। उसे ऐसा करते देखकर छाया दु:खी होकर जमीन पर गिर पड़ती है। शेखर अपनी जलती हुई कृति और छाया की ओर देखकर मुस्कराता हुआ बाहर चला जाता है। माधव भी उसके पीछे चल देता है। छाया माधव से कहती है कि उसने उसको प्रभात अर्थात् सुख और उनके प्रेम का प्रतीक नष्ट कर दिया। उसकी यह बात सुनकर माधव रुक जाता है। वह खिड़की खोलकर छाया को वहाँ से आती हुई शेखर की ओजभरी आवाज सुनाता है। वह खिड़की को बन्द करके छाया से कहता है कि उसने उसका (छाया का) प्रभात नष्ट नहीं किया है। क्योंकि वास्तविक प्रभात तो अब होगा। शेखर जो अब तक भोर का तारा था वह अब प्रभात का सूरज बनेगा। इस प्रकार एकांकी समाप्त होती है।
कठिन शब्दार्थ :
(पा.पु.पृ. 70) गृह = घर। अस्त-व्यस्त = तितर- बितर। मैली = गंदी । लेखनी = कलम, पैन । पात्र = बर्तन। तिपाही = जिसके तीन पैर हों। आले = दीवार में बनी, छोटी-छोटी अलमारियाँ । तल्लीन = विचारमग्न । आतुर = बेचैन । द्वार = दरवाजा। भोर = सुबह, प्रभात । एकटक = स्थिर नजर से। रजनी = रात। बाला = कन्या। लाज = शर्म। पट = वस्त्र। छोर = किनारी । कण = टुकड़ा। प्रियतम = प्रेमी। निहारना = स्नेह के साथ देखना।
(पा.पु.पृ.71) कोसना = मन ही मन किसी के लिए गलत बात सोचना । अठखेलियाँ = हँसी-मजाक। राजनीतिज्ञ = राजनीति को जानने वाला। उलझन = परेशानी। मार्ग = रास्ता। उद्योग = परिश्रम। अभिनय करना = नाटक करना । प्रयत्न = प्रयास । अवहेलना = अवज्ञा करना। सौन्दर्य = सुन्दरता। भिखमंगिन = भिखारिन । भूषण = गहना, आभूषण। बेबस = लाचार । एकटक = बिना पलक झपकाए। शिल्पी = कलाकार।
(पा.पु.पृ. 72) पैबन्द = फटे हुए कपड़े पर कपड़े का जोड़, थेकड़ी। प्रशंसा = बढ़ाई। सरलभाव = सामान्य । झैपना = शर्माना। मन्द = धीमा। गहरे = गंभीर। आशा = उम्मीद । व्यर्थ = बेकार । मामूली = साधारण। खबर = समाचार । युवती = युवा स्त्री। रीझना = मोहित होना। उकताकर = परेशान होकर। | (पा.पु.पृ. 73) बुद्ध = मूर्ख। बूता = हिम्मत। क्षत्रप = राजा । परवाह करना = चिन्ता करना । भावोद्रेक = भावों की अधिकता । संध्या = शाम, साँझ । दर्पण = शीशा ।
(पा.पु.पृ. 74) पीढ़ा = बैठने की चौकी। रक्खी = रखी। अलगनी = कपड़े टाँगने की ख़ुटी। प्रतिमा = मूर्ति । चांचल्य = चंचल। उन्माद = अलमस्ती । गाम्भीर्य = गंभीरता । अग्नि = आग। प्रज्ज्वलित करना = जलाना। गान= गाना गाना । संलग्न व्यस्त करेगा। नव = नया। स्पर्श = छूकर । सलिल = नदी। पदचाप = पैरों की आवाज | (पा.पु.पृ. 76) परिणत होना = बदल जाना। उलाहना = ताना। ऊबे = बोरियत । निछावर करना = लुटाना। अरमान = इच्छाएँ। नीरव = नीरस । वाटिका = उद्याने। भेद = रहस्य। तनिक = जरा। दुशाला = दुपट्टी।
(पा.पु.पृ. 77) प्रारंभ करना = शुरुआत करना। समाप्त होना = खत्म होना। स्मृति = याद । चाव से = रुचि से। लगन = इच्छा। गद्गद् = प्रसन्न। सिरमौर = सबसे बढ़कर। विभोर = प्रसन्नचित्त । सहसा = अचानक। दृष्टि= नजर। क्षत्रप = राजा। मग्नावस्था = मग्न होने, प्रसन्न होने की अवस्था। कोलाहल = शोर । छिटककर = चौंककर। चैतन्य = होश में आना। थकित = थका हुआ। अमित = श्रमिकों द्वारा तैयार । सुसज्जित = सजा हुआ। भय = डर। चिह्न = निशान।
(पा.पु.पृ. 78) सुरम्य = मधुर । भय खाना = डर लगना । प्रयत्न = प्रयास। कष्ट = दु:ख। आश्चर्य का ठिकाना न रहना = अत्यधिक आश्चर्यचकित होना । स्वर = आवाज । संकट = खतरा। संजीदगी = संजीदा होकर, विनम्र होकर, स्थिरचित्तता। पश्चिमोत्तर = उत्तर-पश्चिमी । भयाक्रांत = भय से आतंकित होकर। पैरों तले रौंदना = नष्ट करना। हाहाकार = दुःख से चिल्लाने की आवाज । मदद = सहायता। जड़वत = अचेतन के समान । क्रांत = भाव। भीषण = कठिन। उद्योग = परिश्रम, संघर्ष । अत्यंत = बहुत अधिक। सहस्रों = हजारों।
(पा.पु.पृ. 79) बिजली गिरना = बहुत बड़ा संकट आ पड़ना। पृथ्वी = धरती। ज्ञात होना = पता चलना। प्राण बचाना = जीवन बचाना। संकट में डालना = खतरे में डालना। चेतावनी देना = सावधान करना। बिछुड़न = बिछड़ना। प्रभात = सुबह। नष्ट करना = समाप्त करना । निकट = पास। स्पष्ट = साफ। कोलाहल = शोर । तीव्र = तेज। मन्द = धीरे। दृढ़ = मजबूत । भोर = प्रात:काल।