RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 2 तुलसीदास

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 2 तुलसीदास

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

मंदोदरी की रावण को सीख प्रश्न 1.
श्रीरामचरितमानस के रचयिता कौन हैं ?
(क) कबीरदास
(ख) तुलसीदास
(ग) रैदास
(घ) सूरदास
उत्तर:
(ख) तुलसीदास

तुलसीदास कक्षा 12 प्रश्न 2.
मंदोदरी किसकी पत्नी थी ?
(क) रावण
(ख) कुंभकर्ण
(ग) मेघनाद
(घ) राम
उत्तर:
(क) रावण

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 2 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

मंदोदरी की रावण को सीख व्याख्या प्रश्न 1.
रावण को लंकेश क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
लंका का स्वामी होने के कारण रावण को लंकेश कहा जाता है।

मंदोदरी राम को क्या समझती थी प्रश्न 2.
मंदोदरी ने रावण को किसके बैर न करने की सलाह दी ?
उत्तर:
मंदोदरी ने रावण को राम से बैर न करने की सलाह दी।

Mandodari Ki Ravan Ko Seekh प्रश्न 3.
रावण किसका अपहरण करके लाया था ?
उत्तर:
रावण भगवान राम की पत्नी सीता का अपहरण करके लाया था।

तुलसीदास पाठ के प्रश्न उत्तर प्रश्न 4.
कवि ने श्रीराम और रावण में किस प्रकार का अंतर बताया है?
उत्तर:
कवि ने राम को सूर्य के समान तेजस्वी बताया है और रावण को जुगनू के समान बताया है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 2 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

Mandodari Ki Ravan Ko Sikh प्रश्न 1.
रावण ने सीताहरण क्यों किया ?
उत्तर:
जब वनवास की अवधि बिताते हुए राम, पंचवटी नामक स्थान पर पहुँचे तो उस स्थान की रमणीकता देखकर वहीं कुटी बनाकर रहने लगे। उस वन में रावण के भाई खर और दूषण नाम के राक्षस तथा उसकी बहिन सूर्पनखा भी रहा करती थी। उसने वन में घूमते समय राम और लक्ष्मण को देखा तो उन पर मोहित हो गई। परिस्थितिवश लक्ष्मण ने शूर्पनखा की नाक काट ली। इस पर खर-दूषण ने राम पर आक्रमण कर दिया परन्तु वह राक्षसों सहित मारा गया। शूर्पनखा रावण के पास पहुँची और उसे सीता का अपहरण करने को उकसाया। इसी कारण रावण ने मारीच की सहायता से सीता का अपहरण कर लिया।

RBSE Solutions For Class 12 Hindi Literature प्रश्न 2.
मंदोदरी राम को क्या समझती थी ?
उत्तर:
मंदोदरी एक बुद्धिमती नारी थी। वह रावण के नीति विरुद्ध कार्यों और विचारों से सहमत नहीं थी। जब रावण सीता का अपहरण करके लंका ले आया तो मंदोदरी ने उसे समझाया। वह नहीं माना। इसके पश्चात् हनुमान के लंका आने, अशोक वाटिका उजाड़ने, अक्षय कुमार को मारने तथा लंका का दहन करने से उसे विश्वास हो गया कि राम कोई साधारण मनुष्य नहीं है। जब राम समुद्र पर सेतु बनाकर सेना सहित लंका में पहुँच गए तब तो मंदोदरी का विश्वास और भी दृढ़ हो गया। वह उन्हें साक्षात ब्रह्म का अवतार मानने लगी। उसने रावण को भी यही समझाने का पूरा प्रयास किया परन्तु असफल रही।

RBSE Solutions For Class 12 Hindi Sahitya प्रश्न 3.
मंदोदरी ने रावण से क्या कहा ?
उत्तर:
मंदोदरी ने हर अनुचित कार्य पर रावण को विनम्रता और प्यार से समझाने की चेष्टा की। जब रावण सीता का हरण कर लाया तो मंदोदरी ने उसे चेताया कि वह सीता तुम्हारे वंश-विनाश का कारण बन जाएगी। इसे शीघ्र लौटा दो। हनुमान के आगमन और उनके द्वारा किए गए विध्वंश को देख, मंदोदरी ने उसे समझाया कि राम कोई साधारण मनुष्य नहीं है। उसने भरसक चेष्टा की कि रावण सीता को सादर लौटाकर राम से मित्रता कर ले। उसने रावण के सामने राम के विश्वरूप का वर्णन करके उसे, राम का पराक्रम और प्रताप बताकर तथा व्यंग्य आदि करके भी समझाना चाहा परन्तु वह अफसल रही और रावण सहित राक्षस कुल का विनाश हो गया।

कक्षा 12 हिंदी साहित्य सरयू प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्ति का भावार्थ लिखिए
“निकट काल जेहि आबत साईं।
तेहि भ्रम होत तुम्हारिहि नाईं”।।
उत्तर:
जब बार-बार समझाने पर भी रावण राम को साधारण मनुष्य मानने पर अड़ा रहा तो हार कर मंदोदरी ने उससे कहा हे। स्वामी जिसकी मृत्यु निकट आ जाती है, वह तुम्हारी ही तरह भ्रम में पड़ा रहता है। भाव यह है कि रावण का हठ न छोड़ना मंदोदरी को शंकित कर रहा है कि अब पति का विनाश दूर नहीं है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 2 निबंधात्मक प्रश्न

Hindi Sahitya Class 12 प्रश्न 1.
मंदोदरी द्वारा रावण को दी गई शिक्षा का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जब रावण सीता का अपहरण करके लंका में ले आया और उन्हें अशोक वाटिका में रखा तो मंदोदरी ने उसे समझाया कि वह सीता तुम्हारे राक्षस वंश के विनाश का कारण बनेगी। अतः इसे अपने सचिव के द्वारा आदरपूर्वक राम के पास भिजवा दो। जब मंदोदरी को ज्ञात हुआ कि राम समुद्र पर पुल बनाकर लंका में आ पहुँचे हैं तो उसने फिर रावण को समझाया कि राम कोई साधारण मनुष्य नहीं है। वह विष्णु के अवतार हैं जिन्होंने मधु-कैटभ और महान वीर दैत्यों का संहार किया है। आप और राम में उतना ही अंतर है जितना एक जुगनू और सूर्य में होता है। मंदोदरी ने राम के विश्वरूप का वर्णन करते हुए रावण को समझाया कि राम सचराचर विश्व के स्वामी हैं। अत: उनसे शत्रुता त्याग कर उनकी शरण जाओ तभी तुम्हारे प्राण बचेंगे और मेरा सौभाग्य भी बचा रहेगा।

जब अंगद से अपमानित होकर और पुत्र के वध से व्याकुल होकर रावण राजभवन में लौटा तो मंदोदरी ने उसे समझाया कि वह राम की तुलना में कहीं नहीं ठहरता। उसको उन प्रसंगों का स्मरण कराया जब वह राम का सामना नहीं कर पाया था। सीता स्वयंवर, सीता हरण, शूर्पनखा का अपमान तथा रामदूतों द्वारा किया गया अपमान भी उसे याद दिलायो। मंदोदरी ने पूरा प्रयास किया कि रावण सच्चाई को समझ ले और आत्मविनाश के मार्ग पर न चले, परन्तु रावण ने पत्नी की बातों को कोई महत्व नहीं दिया।

Class 12 Hindi Sahitya Notes RBSE प्रश्न 2.
रावण और मंदोदरी के चरित्र का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
उत्तर:
रावण तथा उसकी पत्नी मंदोदरी के चरित्र एक दूसरे के विपरीत हैं। रावण एक अहंकारी, हठी, युद्ध पिपासु, नीतिविरुद्ध आचरण करने वाला, विलासी और पराक्रमी योद्धा है। उसे अपने बल और वीरता पर बड़ा घमंड है। अपने मुख से अपनी प्रशंसा करने में हितकारी परिजनों की सीख न सुनकर उन्हें अपमानित करने में तनिक भी संकोच नहीं होता। आज्ञाकारिणी, हितभाषिणी पत्नी की सीख भी उसे प्रभावित नहीं कर पाती है।

इसके विपरीत मंदोदरी एक विनम्र, पति का हित चाहने वाली, उचित सीख और परामर्श देने वाली तथा अपने सौभाग्य की अखण्डता के लिए चिंतित रहने वाली पत्नी है। वह अपने पति को अनुचित और अनैतिक कार्यों में रते रहने से रोक तो नहीं पाती किन्तु एक पति का हित चाहने वाली पत्नी के नाते उसे समझाने में कभी पीछे नहीं रहती। मंदोदरी एक बुद्धिमती, विवेकशील, भविष्य को पढ़ने वाली और सजग सहधर्मिणी है। वह एक विदुषी नारी है। उसे राम की परम शक्ति का पूरा ज्ञान है। उसके तर्क, मार्गदर्शन की शैली और ज्ञान, उसे एक विश्वसनीय पत्नी सिद्ध करते हैं। पति के हित को ध्यान में रखते हुए वह रावण को कटु सत्यों से भी परिचित कराती है, व्यंग्य भी करती है। परन्तु दुर्भाग्यवश वह पति रावण को सन्मार्ग पर लाने में सफल नहीं हो पाती।। रावण की मृत्यु के पश्चात् उसका करुण विलाप और कथन, उसके प्रति अत्यन्त सहानुभूति जगाने वाले हैं।

तुलसीदास की व्याख्या प्रश्न 3.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) कंत समुझि मन ………. कहाँ रहा बल गर्व तुम्हारा।
(ख) तुम्हहिं रघुपति अंतर कैसा ……. काल करम जिव जाके हाथा।
(संकेत – छात्र प्रसंग सहित व्याख्याओं में से उपर्युक्त पद्यांशों की व्याख्याएँ देखें और स्वयं लिखें।)

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 2 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

Tulsidas Class 12 प्रश्न 1.
मंदोदरी ने रावण से सीता के विषय में कहा
(क) उसे सम्मान दो।
(ख) उसे सुरक्षा प्रदान करो
(ग) सचिव के साथ राम के पास भिजवा दो
(घ) उससे कटु व्यवहार के लिए क्षमा माँगो
उत्तर:
(ग) सचिव के साथ राम के पास भिजवा दो

Hindi Sahitya 12th Class प्रश्न 2.
मंदोदरी ने राम और रावण में अंतर बताया|
(क) समुद्र और सरोवर के समान
(ख) हाथी और कुत्ते के समान
(ग) आकाश और पाताल के समान
(घ) सूर्य और जुगनू के समान
उत्तर:
(घ) सूर्य और जुगनू के समान

Class 12 Ki Hindi Sahitya Ki Book प्रश्न 3.
रावण का तीनों लोकों में यश होता यदि
(क) वह राम पर विजय प्राप्त कर लेता
(ख) मंदोदरी की सीख मान लेता
(ग) हनुमान को बंदी बना लेता।
(घ) सीता को अपनी पटरानी बना लेता
उत्तर:
(ख) मंदोदरी की सीख मान लेता

RBSE Solutions For Class 12 Hindi प्रश्न 4.
मंदोदरी ने विश्वरूप राम के मुख और जीभ को बताया
(क) सागर और सरस्वती के समान
(ख) अग्नि तथा वरुण के समान
(ग) ब्रह्मा तथा काल के समान
(घ) सूर्य और अश्विनी कुमारों के समान
उत्तर:
(ख) अग्नि तथा वरुण के समान

Class 12 Hindi Literature Book प्रश्न 5.
मंदोदरी के अनुसार राम के बाण का प्रभाव जानता था|
(क) जयंत
(ख) परशुराम
(ग) मारीच
(घ) खर-दूषण
उत्तर:
(ग) मारीच

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 2 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

Hindi Literature 12th Class प्रश्न 1.
मंदोदरी ने सीता को किसके समान बताया ?
उत्तर:
मंदोदरी ने सीता को रावण के वंशरूपी कमल समूह का नष्ट कर देने वाली शीत ऋतु की रात के समान बताया।

रावण किसका अपहरण करके लाया था प्रश्न 2.
मंदोदरी ने राम के बाणों और राक्षसों को किनके समान कहा ?
उत्तर:
मंदोदरी ने कहा कि राम के बाण सर्यों के समूह के समान और राक्षसों को मेढकों के समान बताया।

तुलसीदास की भाषा शैली प्रश्न 3.
मंदोदरी के अनुसार रावण को किससे बैर करना चाहिए था ?
उत्तर:
मंदोदरी के अनुसार रावण को उससे बैर करना चाहिए था जिसे वह अपनी बुद्धि तथा बल से जीत सके।

12 वीं हिंदी साहित्य पुस्तक प्रश्न 4.
मंदोदरी ने रावण से राम का विरोध त्याग कर क्या करने को कहा ?
उत्तर:
मंदोदरी ने रावण से कहा कि वह सीता को राम को सौंपकर, पुत्र को राजसिंहासन पर बिठाकर वन में जाए और राम भजन करे।

Hindi Literature Class 12 प्रश्न 5.
मंदोदरी ने राम के स्वभाव के बारे में रावण से क्या कहा ?
उत्तर:
मंदोदरी ने कहा कि राम दीन दयालु हैं। वह तुम्हें अवश्य क्षमा कर देंगे। हिंसक बाघ भी शरण में आने वाले को नहीं खाती।

Class 12th Hindi Sahitya Book प्रश्न 6.
मुनिगण किसकी प्राप्त के लिए यत्न करते हैं?
उत्तर:
मुनिगण साक्षात् परब्रह्मस्वरूप राम को पाने के लिए ही तप आदि यत्न किया करते हैं।

12th Class Hindi Sahitya प्रश्न 7.
मंदोदरी का सौभाग्य कब सुरक्षित होता ?
उत्तर:
जब रावण मंदोदरी की सीख मानकर राम से बैर को त्याग कर, उनका भजन करता है तभी मंदोदरी का सौभाग्य सुरक्षित रहता है।

सरयू हिन्दी साहित्य प्रश्न 8.
रावण के व्याकुल और दु:खी होकर राजभवन लौटने का क्या कारण था ?
उत्तर:
अंगद ने उसके पुत्र का वध करने के साथ ही भरी सभा में उसे नीचा दिखाया था। इसी कारण रावण लज्जित और दुःखी होकर लौटा।

कक्षा 12 हिंदी साहित्य नोट्स प्रश्न 9.
क्या न लाँघ पाने के कारण, रावण के पुरुषार्थ पर मंदोदरी ने व्यंग्य किया ?
उत्तर:
लक्ष्मण द्वारा कुटी के सामने खींची रेखा को भय के कारण रावण ने नहीं लाँघा था। इसी को लेकर मंदोदरी ने रावण के पुरुषार्थ पर व्यंग्य किया।

कक्षा 12 हिंदी साहित्य प्रथम सरयू प्रश्न 10.
जनक की स्वयंवर सभा में रावण के किस आचरण पर मंदोदरी ने व्यंग्य किया है ?
उत्तर:
जनक की सभा में राम ने धनुष भंग करके सीता के साथ विवाह किया था। उस समय रावण ने राम को क्यों नहीं जीता ? इसी पर मंदोदरी ने व्यंग्य किया है।

संजीव पास बुक क्लास 12 हिंदी साहित्य प्रश्न 11.
“सूपनखा’ (शूर्पनखा) कौन थी ? उसके साथ क्या हुआ था ?
उत्तर:
शूर्पनखा रावण की बहिन थी। लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट दिए थे।

12th Hindi Sahitya Book प्रश्न 12.
राम ने रावण के पास अपना दूत क्यों भेजा ?
उत्तर:
मंदोदरी के अनुसार कृपालु राम ने रावण के हित के लिए ही अपना दूत अंगद रावण के लिए पास भेजा था।

Class 12 Hindi Sahitya प्रश्न 13.
रावण के मन में ज्ञान क्यों नहीं उत्पन्न हो रहा था ?
उत्तर:
मंदोदरी के अनुसार काल के वश में होने के कारण रावण सचाई को नहीं समझ पा रहा था।

मंदोदरी की कथा प्रश्न 14.
काल मनुष्य को कैसे मारता है ?
उत्तर:
मंदोदरी का कहना था कि काल स्वयं शस्त्र लेकर किसी को मारने नहीं आता। वह तो उस मनुष्य की धर्म, बुद्धि और बल को हर लेता है।

हिन्दी साहित्य कक्षा 12 प्रश्न 15.
रावण का कौन-सा शरीर रणभूमि में धूल-धूसरित पड़ा था ?
उत्तर:
रावण के जिस शरीर के चलने पर धरती हिलती थी, अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा तेजहीन लगते थे तथा शेषनाग, कच्छप जिसके भार को नहीं सह पाते थे, वही भूमि पर धूल में सना हुआ पड़ा था।

संजीव पास बुक क्लास 12 हिंदी प्रश्न 16.
मृत्यु के समय रावण का क्या हो गया था ?
उत्तर:
मृत्यु के समय उसके कुल में कोई व्यक्ति नहीं बचा था, जो उसकी मृत्यु पर उसके लिए रोता।

RBSE Hindi Solution Class 12 प्रश्न 17.
मंदोदरी ने किस परिणाम को अनुचित नहीं माना ?
उत्तर:
महान बली, वीर और प्रतापी रावण के सिरों को युद्धभूमि में गीदड़ खाने वाले थे। इस राम-विरोध के परिणाम को मंदोदरी ने अनुचित नहीं माना।

RBSE Class 12 Hindi Solutions प्रश्न 18.
मंदोदरी के अनुसार रावण की महान भूल क्या थी ?
उत्तर:
मंदोदरी के अनुसार रावण की महान भूल थी कि उसने सारे देवों के पूज्य भगवान राम को साधारण मनुष्य माना।

Hindi Compulsory 12th Class RBSE प्रश्न 19.
आजीवन वैरभाव रखने वाले रावण पर भी श्रीराम ने कृपा करके उसे क्या प्रदान किया?
उत्तर:
आजीवन वैरभाव रखने वाले रावण पर भी श्रीराम ने कृपा करके उसे अपना धाम प्रदान किया।

Hindi Syllabus Class 12 RBSE प्रश्न 20.
योगियों के लिए भी कौन-सी गति दुर्लभ है, जो राम ने रावण को प्रदान की ?
उत्तर:
राम ने रावण को राक्षस योनि से मुक्त करके उसे मोक्ष प्रदान किया, जिसके लिए योगी कठिन साधना किया करते हैं।

12 Class Hindi Sahitya प्रश्न 21.
‘मंदोदरी की रावण को सीख’ प्रसंग कहाँ से संकलित किया गया है ?
उत्तर:
यह प्रसंग तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस महाकाव्य के सुन्दरकाण्ड तथा लंकाकाण्ड से संकलित है।

हिंदी साहित्य कक्षा 12 सरयू प्रश्न 22.
मंदोदरी राम को किस रूप में देखती थी ?
उत्तर:
मंदोदरी राम को विष्णु के अवतार के रूप में देखती थी।

प्रश्न 23.
रावण द्वारा मंदोदरी का सीख न मानने का क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर:
मंदोदरी की सीख न मानने के कारण रावण युद्ध में राम के द्वारा मारा गया और उसके लिए कुल में कोई रोने वाला भी नहीं बचा।

प्रश्न 24.
रावण ने पत्नी मंदोदरी की सीख क्यों नहीं मानी ?
उत्तर:
अपने बल के अहंकार में डूबे होने से तथा राम को साधारण मनुष्य मानने के कारण रावण ने मंदोदरी की सीख नहीं स्वीकार की।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 2 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सीता का अपहरण करके ले जाने वाले रावण को मंदोदरी ने क्या सीख दी ?
उत्तर:
बहिन शूर्पनखा के अपमान से और खर-दूषण के वध से क्रोधित और शंकित रावण ने छलपूर्वक सीता का अपहरण किया। मंदोदरी ने उसके इस अनैतिक आचरण पर उसे सीख दी कि वह राम से बैर त्याग दे। उसने उसे हनुमान द्वारा किए गए विध्वंश की याद दिलाई। मंदोदरी ने कहा कि वह अपने सचिव के द्वारा सीता को राम के पास भिजवा दे। मंदोदरी ने कहा कि यह सीता सारे राक्षसों के विनाश का कारण बनेगी। इससे पहले कि राम राक्षसों को अपने वाणों का निशाना बनाए, उसे अपनी भूल सुधार लेनी चाहिए।

प्रश्न 2.
जब मंदोदरी को पता चला कि राम समुद्र पर सेतु बनाकर सेना सहित लंका आ पहुँचे हैं तो उसने क्या किया ?
उत्तर:
राम के इस अप्रत्याशित कार्य को जानने पर मंदोदरी घबरा गई। वह रावण का हाथ पकड़कर अपने भवन में ले गई और उसे समझाने लगी कि वह क्रोध त्याग कर उसकी बात ध्यान से सुने। उसने रावण से कहा कि मनुष्य को उसी व्यक्ति से बैर करनी चाहिए, जिसे वह अपने बल और बुद्धि से जीत सके। उसने रावण से कहा कि उसमें और राम में कोई समानता नहीं है। वह भगवान राम पुर विजय नहीं पा सकता है।

प्रश्न 3.
मंदोदरी ने रावण और राम के बीच क्या अंतर बताया और उसे रावण को क्या समझाया ?
उत्तर:
रावण द्वारा राम से बैर ठानने पर व्यक्त करते हुए मंदोदरी ने कहा कि उसमें और राम में वैसा ही अंतर है जैसा एक जुगनू और सूर्य में होता है। वह पराक्रम में राम के सामने कहीं नहीं ठहरता है। मंदोदरी ने कहा राम उन्हीं नारायण के अवतार हैं जिन्होंने महाबली मधु और कैटभ को मारा था। इन्हीं ने कश्यप की पत्नी दिति के पुत्रों हिरण्याक्ष और हिरणकशिपु का संहार किया था। दैत्यराज बलि को वामन रूप में बाँध लेने वाले और परशुराम के रूप में राजा सहस्रबाहु का संहार करने वाले भी वही राम हैं। नारायण ही धरती को दुष्टों के भार से मुक्त करने के लिए राम के रूप में अवतरित हुए हैं। अत: उनसे बैर त्याग दो।

प्रश्न 4.
मंदोदरी ने रावण से राम-विरोध त्याग कर क्या करने को कहा ?
उत्तर:
मंदोदरी ने रावण को समझाया कि जिनके हाथ में प्राणियों का काल, कर्म और जीवन है, उन राम से बैर मत करो। सीता राम को लौटा दो और पुत्र मेघनाद को राज्य सौंपकर वन को चलो और वहाँ राम का स्मरण करो। राम बड़े दयालु हैं। शरण में जाने। पर अवश्य क्षमा कर देंगे। अरे ! बाघ भी शरण में आए को नहीं खाता। अत: राम की शरण में जाओ।

प्रश्न 5.
‘चाहिए करन सो सबै करि बीते’मंदोदरी के इस कथन का आशय क्या है ? इस कथन द्वारा उसने रावण को क्या सीख दी ?
उत्तर:
रावण ने अपने पराक्रम से देवता, राक्षस और संसार के सारे चर-अचर प्राणियों पर विजय प्राप्त कर ली थी। मंदोदरी इसी तथ्य का उल्लेख करते हुए कह रही है कि आपने जो चाहा था वह सब आप कर चुके हैं, अब आप की वृद्धावस्था आ रही है। संत लोग कहते हैं कि चौथेपन में मनुष्य को वन को प्रस्थान करना चाहिए। आप भी अब यही कीजिए और उस सबके उत्पत्ति कर्ता, पालन कर्ता तथा संहार करने वाले श्रीराम का भजन कीजिए।

प्रश्न 6.
मंदोदरी ने रावण से सारा मोह त्याग कर राम का ही भजन करने को क्यों कहा ?
उत्तर:
मंदोदरी राम को सर्व समर्थ परमेश्वर का ही अवतार मानती थी। इसलिए उसने रावण को समझाया कि राम शरणागत वत्सल हैं। वह शरण में आए हुए व्यक्ति के सारे अपराध क्षमा करके उसका संसार के चक्र से उद्धार कर देते हैं। मंदोदरी ने रावण को समझाया कि जिन प्रभु को पाने के लिए बड़े-बड़े मुनि प्रयत्न किया करते हैं। राजा लोग राज त्याग कर वैराग्य लेकर, वन में जिसकी आराधना करते हैं, वही प्रभु राम के रूप में उसे पर दया करने पधारे हैं। इस अवसर का उसे लाभ उठाना चाहिए।

प्रश्न 7.
रावण को राम के विश्वरूप से परिचित कराने में मंदोदरी का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर:
रावण राम को साधारण मनुष्य मानता था। वह राम से बैर ठाने हुए था। मंदोदरी राम के स्वरूप और प्रभाव से परिचित थी। वह जानती थी कि राम का विरोध रावण और राक्षसवंश के विनाश का कारण बनेगा। वह असमय विधवा नहीं होना चाहती थी। अतः रावण को प्रभावित करने और राम की शरण जाने को प्रेरित करने के लिए उसने राम के विश्वरूप से रावण को परिचित कराया। उसने उससे कहा कि वह उसकी बात पर विश्वास करे। राम कोई साधारण राजकुमार नहीं है। वह विराट पुरुष परमेश्वर के ही अवतार हैं। उनके अंग-अंग में सारे लोक, सृष्टि के सारे पदार्थ तथा स्वयं वेद विद्यमान हैं।

प्रश्न 8.
रावण सायंकाल बिलखते हुए राजभवन में क्यों पहुँचा ? लिखिए।
उत्तर:
लक्ष्मण द्वारा दिए गए संदेश को लेकर अंगद एक दूत के रूप में रावण की राजसभा में पहुँचे। उन्होंने उसे समझाया कि पूरी चेष्टा की और लक्ष्मण का पत्र भी सौंपा किन्तु रावण ने राम और लक्ष्मण का उपहास करते हुए अंगद को राम के विरुद्ध उकसाने की चेष्टा की। क्रोधित अंगद ने अपना पैर राजसभा की भूमि पर दृढ़ता से रखी और उसे हटाने की चुनौती दी। सारे सभासद असफल रहे और रावण भी अपमानित हुआ। इसके अतिरिक्त उसे ज्ञात हुआ कि अंगद का विरोध करते हुए उसका एक पुत्र मारा गया था। इसी कारण वह बहुत दु:खी था।

प्रश्न 9.
दुःखी और खिसियाये हुए राजसभा से लौटे रावण को मंदोदरी ने क्या समझाया ? लिखिए।
उत्तर:
मंदोदरी ने रावण से कहा कि राम से बैर और उन पर विजय पाने के कुविचार को मन से त्याग दो। जब तुम लक्ष्मण द्वारा खींची गई रेखा को नहीं लाँघ सके तो उन भाइयों पर विजय कैसे पाओगे ? उनके दूत हनुमान ने सहज ही समुद्र लाँघकर तुम्हारी लंका में प्रवेश किया। उसने अशोक वाटिका उजाड़ी, रखवालों को मार डाला। तुम्हारे रहते तुम्हारे पुत्र अक्षय कुमार को मार दिया, तुम्हारे प्यारे नगर लंका को जला डाला। तब तुम्हारा बल गर्व कुछ क्यों नहीं कर पाया ? अब अपने बल की डग मारना छोड़कर मेरी बात पर मन में विचार करो।

प्रश्न 10.
राम के बाणों की शक्ति तथा रावण का राम का सामना करने से बचना; ये बातें मंदोदरी ने रावण को किस प्रकार स्मरण कराईं? लिखिए।
उत्तर:
मंदोदरी ने रावण से कहा कि राम के बाणों के प्रताप को भूल गया है। राम के बाणों में कितनी शक्ति है? इसे मारीच अच्छी प्रकार से जानता था पर उसकी सीख को उसने नहीं माना। छल से राम को दूर भेजकर उसने सीता का अपहरण किया। इसी प्रकार जनक की सभा में सभी राजाओं और स्वयं उसके सामने राम ने धनुष तोड़कर सीता से विवाह किया। तब उसने राम को युद्ध में क्यों नहीं जीता है। शूर्पनखा की गति देखकर भी रावण ने राम को युद्ध के लिए क्यों नहीं ललकारा ? इन सब बातों से मंदोदरी ने रावण को सचेत करने का प्रयास किया।

प्रश्न 11.
‘राम’ साधारण मनुष्य नहीं हैं। इस बात के पक्ष में मंदोदरी ने क्या-क्या उदाहरण सामने रखे ? लिखिए।
उत्तर:
मंदोदरी ने कहा कि जो राम खिलवाड़ की भाँति सागर पर सेतु बनाकर सहज ही लंका के तट पर आ पहुँचे, वह साधारण मनुष्यं कैसे हो सकते हैं ? राम ने अपना दूत अंगद रावण की भलाई के लिए ही भेजा। उसका बल सभी बलशाली बनने वाले सभासदों को पता चल गया। वह सारी सभा को मथकर चला गया और बलवान रावण कुछ न कर पाया ! जिसके हनुमान और अंगद जैसे सेवक हों उसे बार-बार नर कहना मूर्खता है। मंदोदरी ने रावण को समझाया कि वह काल के वशीभूत हो चुका था तभी वह अपने सिर पर मँडरा रहे विनाश को नहीं समझ पा रहा था। उसके धर्म, बल, बुद्धि और विचार शक्ति नष्ट हो गई थी।

प्रश्न 12.
मृत रावण के पराक्रम और आतंक का वर्णन मंदोदरी ने किस प्रकार किया? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
युद्ध में राम द्वारा मारा गया रावण लंका की रणभूमि में पड़ा था। मंदोदरी उसके शव के समीप विलाप करते हुए उसके बल, पुरुषार्थ और आतंक का वर्णन कर रही थी। वह कह रही थी कि जिस रावण के चलने से कभी धरती काँपती थी। सूर्य, चन्द्र और अग्नि जिसके प्रताप के सामने तेजहीन रहा करते थे। शेषनाग और कच्छप जिसके भार को नहीं सह पाते थे, वही रावण उस समय धूल-धूसरित होकर रणभूमि में पड़ा हुआ था। जिसने अपने बाहुबल से वरुण, कुबेर, इन्द्र, वायु आदि देवों तथा स्वयं काल को भी जीत लिया था, वही रावण अनाथ की भाँति धरती पर पड़ा। राम विरोधी की तो एक दिन यह दशा होनी ही थी।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या आप मंदोदरी को एक आदर्श पत्नी मानते हैं ? अपना मत संकलित काव्यांश के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘मंदोदरी की रावण को सीख’ नामक काव्यांश मंदोदरी के चरित्र की अनेक विशेषताओं को सामने लाता है। मंदोदरी रावण की पत्नी थी। वह एक परम सुंदरी, सुलझी हुई गृहणी, विदुषी नारी और सदैव पति के हित का चिन्तन करने वाली पत्नी थी। यद्यपि मंदोदरी तथा रावण के स्वभाव एक दूसरे के विपरीत थे तथापि मंदोदरी ने यथाशक्ति रावण के साथ निर्वाह किया। पत्नी एक मित्र के समान पति को सही परामर्श और सीख देना अपना कर्तव्य समझती है। जब रावण सीता का अपहरण करके लंका ले आया तो मंदोदरी ने उसे समझाया कि यह आचरण उचित नहीं है।

उसे आशंका थी कि रावण का यह अनुचित कार्य गम्भीर और विनाशकारी परिणाम ला सकता था। उसने रावण से कहा कि वह राम से बैर न करे और सीता को ससम्मान राम के पास भेज दे। मंदोदरी को आभास हो गया था कि राम कोई साधारण मनुष्य नहीं थे। उसने बार-बार रावण को इस सच्चाई को स्वीकार करने का आग्रह किया। उसने प्रेम, तर्क, भय आदि सभी उपायों से पति को सही सोच और सही आचरण के लिए प्रेरित किया। एक आदर्श पत्नी सदा अपने पति के हित-चिन्तन में लगी रहती है। मंदोदरी इस कसौटी पर खरी उतरने वाली आदर्श पत्नी है।

प्रश्न 2.
मंदोदरी द्वारा राम के विश्वरूप के वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
रावण को राम के पराक्रम और प्रभाव से परिचित करा कर सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करते हुए मंदोदरी ने राम के विराट् स्वरूप से परिचित कराया। मंदोदरी ने कहा कि राम कोई सामान्य राजा या योद्धा नहीं है, वह तो सर्वव्यापी और सर्वस्वरूप विराट पुरुष हैं। उनके चरण पाताल हैं, सिर ब्रह्मलोक है। अन्य लोक उनके ही अंगों में निवास करते हैं। उनका क्रोध भयंकर काल है, नेत्र सूर्य और केश बादल हैं। नासिका अश्विनी कुमार उनके पलकों की गति असंख्य रात-दिन हैं। कान दश दिशाएँ हैं, साँस पवन है, वाणी वेद हैं, होठ लोभ का स्वरूप और दाँत भयंकर यमराज हैं। उनकी हँसी ही माया है, भुजाएँ दिशाओं के रक्षक देवता हैं।

मुख अग्नि, जीभ वरुण तथा उनके संकल्प से ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार हो रहा है। उनके रोंए अठारह पुराण या विद्याएँ हैं, उनकी अस्थियाँ ही पर्वत और नाड़ियाँ असंख्य नदियाँ हैं। मंदोदरी ने कहा कि विश्वरूप राम का अहंकार ही शिव है, बुद्धि ब्रह्म है, मन चन्द्रमा और चित्त महत् तत्व या सृष्टि का मूल्य तत्व है। यह समस्त ब्रह्माण्ड और चेतन तथा जड़ जीव उन्हीं के स्वरूप हैं। अतः तुम उनसे द्वेष त्याग कर उनकी भक्ति करो। इसी में तुम्हारा और सभी लंकावासियों का कल्याण निहित है।

प्रश्न 3.
‘मंदोदरी की रावण को सीख’ नामक संकलित काव्यांश के कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
गोस्वामी तुलसीदास एक काव्ये कुशल साहित्यकार हैं।’रामचरितमानस’उनकी काव्य कला की श्रेष्ठता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। रामचरितमानस से संकलित उपर्युक्त काव्यांश को कला पक्ष सभी दृष्टियों से उत्तम है। मनोहारी इस काव्यांश की भाषा साहित्यिक अवधी है। भाषा पर कवि का पूर्ण अधिकार सटीक शब्दावली के प्रयोग से प्रमाणित हो रहा है। पत्नी का ‘परमे नम्र उदार वाणी’ में पति को समझाना, उसी पत्नी का पति पर व्यंग्य करना ‘अब पति मृषा गाल जनि मारहु’ कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं।

मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से कथन को प्रभावशाली बनाया गया है। परिस्थिति और पात्र के अनुरूप भाषा तथा शैलियों का प्रयोग हुआ है। चौपाई तथा दोहा छंद का सफल प्रयोग हुआ है। कवि ने सहज भाव और प्रयासपूर्वक दोनों ही रीतियों से कथन को अलंकारों से सजाया है, अनुप्रास तो पग-पग पर उपस्थित है। रूपक तथा उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, अतिशयोक्ति, उदाहरण आदि अलंकार भी उपस्थित हैं। राम के विश्वरूप वर्णन में कवि के सप्रयास अलंकरण का सुन्दर नमूना है। इस प्रकार उपर्युक्त काव्यांश महाकवि तुलसीदास के कला पक्ष की सुगढ़ता को पूर्ण प्रतिनिधित्व कर रहा है।

प्रश्न 4.
‘मंदोदरी की रावण को सीख’ काव्यांश के भावपक्ष पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
प्रश्नगत काव्यांश कलापक्ष के कलेवर में भावपक्ष के प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण का सुन्दर उदाहरण है। इस पूरे काव्यांश में केवल एक ही पात्र मंदोदरी की भावनाओं का उल्लेख हुआ है। एक पति हितैषिणी पत्नी की भूमिका में मंदोदरी की विविध भावनाएँ पाठक को गहराई से प्रभावित करती हैं। पराई स्त्री के अपहरण जैसे अनुचित और निन्दनीय आचरण में पति को लिप्त देखकर मंदोदरी आहत हो उठती है। वह पति को समझाती है कि वह तुरन्त सीता को सम्मान से उसके पति के पास भिजवा दे। एक स्त्री ही अपहरित स्त्री की पीड़ा को पूर्णता से समझ सकती हैं।

काव्यांश के आरम्भ से अंत तक हम मंदोदरी की भावनाओं से परिचित होते चलते हैं। कभी वह पतिव्रता पत्नी के रूप में है। कभी मित्र के रूप में, कभी आँसू भरी आँखों से और कभी व्यंग्य तथा मधुर उलाहना देकर पति को सही मार्ग पर लाने का प्रयत्न करती है। काव्यांश के अंत में विलाप करती मंदोदरी के उद्गार एक उद्देश्य में असफलता, असहाय पत्नी की भावनाओं को उजागर करते हैं। इस प्रकारे कवि नारी हृदय की विविध भावनाओं को सामने लाकर इस काव्यांश के भावपक्ष को बड़ा प्रभावशाली बना दिया है।

कवि – परिचय :

विश्व-साहित्य में रामचरितमानस जैसी अमूल्य कृति से प्रसिद्धि पा चुके, गोस्वामी तुलसीदास का जन्म संवत् 1589 (सन् 1532 ई.) के लगभग हुआ था। इनकी जन्मस्थली उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद के गाँव, राजापुर को माना जाता है। आत्माराम दुबे इनके पिता और हुलसी उनकी माता थी। अशुभ नक्षत्र में जन्म लेने के कारण माता-पिता ने इन्हें त्याग दिया था। तुलसी को बचपन एक अनाथ बलाक के समान बीता। तभी संत नरहरिदास से इनका हाथ पकड़ा और रामभक्ति में दीक्षित किया। तुलसी की पत्नी रत्नावली के उपालम्भ ने उन्हें वैरागी बना दिया। तुलसी ने तीर्थ-भ्रमण करते हुए, पहले अयोध्या और फिर काशी में निवास किया। संवत् 1680 श्रावण शुक्लपक्ष की सप्तमी को गंगा तट पर शरीर छोड़ा।

रचनाएँ – गोस्वामी जी की प्रामाणिक रचनाएँ दोहावली, गीतावली, कवितावली, रामचरितमानस, कृष्ण गीतावली, विनय पत्रिका, रामाज्ञा, प्रश्नावली, राम लला नहछू, पार्वती मंगल, जानकी मंगले, बरवै रामायण तथा वैराग्य संदीपनि मानी जाती हैं। तुलसी के साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ अड़िग रामभक्ति, सामाजिक समन्वय का प्रयास तथा समृद्ध कला पक्ष और भाव पक्ष मानी जाती हैं।

पाठ – परिचय :

प्रस्तुत काव्यांश गोस्वामी जी की जगत् प्रसिद्ध रचना ‘रामचरितमानस’ से संकलित है। इस अंश में रावण की पत्नी मंदोदरी द्वारा समय-समय पर रावण को दिए गए शुभ परामर्श प्रस्तुत किए गए हैं। रावण के हठी और अहंकारी स्वभाव के विपरीत मंदोदरी एक विनम्र, दूरदर्शिणी तथा पति का मंगल चाहने वाली पतिव्रता पत्नी है। वह रावण से बार-बार सत्पथ पर चलने का अनुरोध, आग्रह और विनती करती रही। सीता अपहरण से सशंकित मंदोदरी ने रावण को समझाया कि राम परब्रह्म के अवतार हैं। उनकी पत्नी को सादर प्रत्यर्पित करने में ही राक्षस कुल की भलाई है। पति को कुपथ से रोकते हुए मंदोदरी ने कठोर सत्य से युक्त वचन भी बोले हैं –

तुमहिं रघुपतिहिं अंतर कैसा ! खलु खद्योत दिनकरहिं जैसा।

विदुषी मंदोदरी अनेक उदाहरण देकर रावण को राम से विरोध न ठानने और शरणागत को क्षमा कर देने वाले प्रभु की शरण में जाने को प्रेरित करती रही। मंदोदरी के कल्याणकारी परामर्शों पर ध्यान न देने का कुपरिणाम रावण को भोगना पड़ा। यही इस काव्यांश का मुख्य विषय है।

पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ

1. कंत करश हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरह।।
समुझत जासु दूत कइ करनी। स्रवहिं गर्भ रजनीचर घरनी।।
तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई।।
तब कुल-कमल बिपिन दुखदाई। सीता सीत निसा सम आई।।
सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें। हित ने तुम्हार सम्भु अज कीन्हें।।
राम बान अहि गर्न सरिस, निकर निसाचर भेक।
जब लगि ग्रसंत न तब लगि, जतन करहु तजि टेक।।

कठिन शब्दार्थ – कंत = पति। करश = शत्रुता। सन = से। परिहरहू = त्याग दो। हित = हितकारी, शुभ। हियँ = मन में। करहू = धारण करो, समझो। जासु = जिनके। दूत = संदेश सुनाने या देने वाला (हनुमान)। स्रवहिं = नष्ट हो जाते हैं, गिर जाते हैं। रजनीचर = राक्षस। घरनी = पत्नी। तासु = उनकी। सचिव = मंत्री। पठवहु = भेज दो। कुल कमल विपिन = वंशरूपी कमलों का वन। सीत निसा = शीत ऋतु की रात। हित = भलाई।। संभु = शिव। अज = ब्रह्मा। अहिगन = सर्यों का समूह। सरिस = समान। निकर = समूह। निसाचर = राक्षस। भेक = मेंढक। ग्रसत = पकड़ते, मुँह में दबाते। जतनु = प्रयत्न, उपाय। तजि = त्याग कर। टेक = अभिमान।

संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में ‘मंदोदरी की रावण को सीख’ नामक रामचरितमानस से संकलित प्रसंग से लिया गया है। इसके रचयिता महाकवि तुलसी दास हैं। इस अंश में मंदोदरी हनुमान द्वारा लंका दहन किए जाने के पश्चात् रावण से अनुरोध कर रही है कि वह सीता को आदर सहित राम के पास भिजवा दें।

व्याख्या – हनुमान द्वारा लंका को जलाए जाने से सशंकित और भीत मंदोदरी रावण से कह रही है-हे पतिदेव ! आप राम से शत्रुता त्याग दीजिए। मेरे कहने को अत्यन्त हितकारी समझ कर हृदय में धारण कर लीजिए। जिन राम के दूत हनुमान के लंका दहन को याद करके, राक्षसों को पत्नियों के भय के मारे गर्भ गिर जाते हैं। उनकी पत्नी सीता को, अपने सचिव को बुलाकर उनके समीप पहुँचवा दो। इसी में आपकी भलाई है। जिस सीता को तुम हरण करके ले आए हो वह आपके कुलरूपी कमलों के वन के लिए अत्यन्त दुःख देने वाली शीतकाल की अत्यन्त ठण्डी रात के समान है, जो तुम्हारे वंश को नष्ट करने के लिए आई है। हे स्वामी ! सीता को लौटाए बिना, भगवान शिव और ब्रह्मा भी आप की रक्षा नहीं कर सकते। हे नाथ! राम के बाण सर्यों के समान हैं और राक्षसों का समूह मेढ़कों के समान है। जब तक वे बाण राक्षसों के प्राण नहीं लेते, तब तक हठ त्याग कर अपनी और राक्षसों की रक्षा का उपाय कर लीजिए।

विशेष –

  1. मंदोदरी जान गई है कि राम कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। उनसे बैर करने पर, रावण और राक्षसों का विनाश निश्चित है।
  2. स्वयं नारी होने के कारण वह सीता से सहानुभूति भी रखती है। इसी कारण वह रावण से सीता लौटा देने की सीख दे रही है।
  3. भाषा साहित्यिक अवधी है।
  4. शैली उपदेशात्मक और भावात्मक है।
  5. ‘कंत करश’, ‘नारि निज’ ‘कुल कमल’, सीता सीत निसा सम’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘कुल कमल विपिन’ में रूपक तथा ‘सीता निसा सम’ में उपमा अलंकार भी है।

2. मंदोदरी सुन्यो प्रभु आयो। कौतुकहीं पाथोधि बँधायो।।
कर गहि पतिहि भवन निजआनी। बोली परम मनोहर बानी।
चरन नाइ सिरु अंचलु रोपा। सुनहु बंचन पिय परिहरि कोपा।
नाथ बयक कीजै ताही सों। बुधि बल सकिअ जीति जाही सों।
तुहं रघुपतिहिं अंतर कैसा। खलु खद्योत दिनकरहि जैसा।
अतिबल मधु कैटभ जेहिं मारे। महावीर दितिसुत संहारे।
जेहि बलि बाँधि सहसभुज मारा। सोइ अवतरेउ हरन महिभारा।।
तासु विरोध न कीजिअ नाथा। काल करम जिव जाके हाथा।।
रामहिं सौपि जानकी, नाई कमल पद माथ।
सुत कहुँ राज समर्पि बन जाइ भजिअ रघुनाथ।।

कठिन शब्दार्थ – प्रभु = राम। कौतुक ही = खेल-खेल में ही। पाथोधि = समुद्र। कर = हाथ। गहि = पकड़कर। निज = अपने। आनी = लाई। मनोहर = मन लुभाने वाली। नाइ = झुकाकर। अंचलु रोपा = आँचल फैला दिया। परिहरि = त्याग कर। कोण = क्रोध। बयरु = बैर। सकिअ = सको। अंतर = भेद, भिन्नती। खलु = निश्चय। खद्योत = जुगनू (चमकने वाला पतंगा)। दिनकरहिं = सूर्य में। अतिबल = अत्यंत बलवान। मधु-कैटभ = दो दैत्य जिनको भगवान नारायण ने मारा था। तासु = उनका। काल = समय। करम = कर्म या भाग्छ। जिब = जीवन। नाइ = झुकाकर। पद = चरण। माथ = मस्तक। सुत = पुत्र। राज = राज्य। समर्पि = सौंपकर। भजिउ = भजन करो।

संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘मंदोदरी की रावण को सीख’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस अंश में मंदोदरी राम को विष्णु का अवतार मानकर उनके बल का परिचय कराते हुए रावण को समझा रही है कि वह राम से बैर न करके, सीता को लौटा दे।

व्याख्या – मंदोदरी को पता चला कि राम खेल ही खेल में समुद्र पर पुल बनाकर लंका आ पहुँचे हैं तब वह पति की सुरक्षा के बारे में बड़ी चिंतित हुई। तब पति रावण का हाथ पकड़कर अपने भवन में ले आई और बड़ी मनमोहक वाणी में कहने लगी। पहले उसने पति के चरणों में सिर झुकाकर प्रणाम किया और फिर आँचल फैलाकर कहने लगी-हे प्रिय ! क्रोध त्याग कर मेरी बात सुनिए। हे स्वामी बैर उसी से करना चाहिए जिसे बुद्धि और बल से जीती जा सके। आप में और राम में वैसा ही अंतर है जैसा एक जुगनू और सूर्य में होता है। क्षणभर को चमकने वाला जुगनू भला सारे विश्व को प्रकाशित करने में सूर्य से समानता कैसे कर सकता है।

राम वही नारायण हैं जिन्होंने मधु और कैटभ नाम के अत्यन्त बलवान दैत्यों को मारा था। इन्हीं ऋषि कश्यप की पत्नी दिति के अत्यन्त पराक्रमी पुत्रों दैत्यों का संहार किया था। जिन्होंने दैत्यराज बलि को वामन अवतार लेकर बाँधा था और परशुराम के रूप में सहस्रबाहु नामक अत्यन्त बलवान राजा को मारा। वही विष्णु अथवी नारायण, राम के रूप में पृथ्वी का भार हरने को अवतरित हुए हैं। हे नाथ ! उनका विरोध मत करो जिनके हाथों में सभी का काल, कर्म और जीवन है। मेरी बात मानकर राम के चरणकमलों में सिर रखकर क्षमा माँगते हुए, जानकी को उन्हें सौंप दीजिए। अब राज्य का मोह त्याग कर पुत्र को राज्यसिंहासन सौंप दीजिए और वन में जाकर भगवान राम का नाम जपते हुए अपना परलोक बनाइए।।

विशेष –

  1. बुद्धि और बल दोनों में राम का पक्ष प्रबल है। खर और दूषण जैसे पराक्रमी राक्षसों के बध से राम का बल और समुद्र पर सेतु बना लेने से मंदोदरी को राम की बुद्धि का पता चल गया है।
  2. मंदोदरी पतिव्रता पत्नी है। पति के मंगल के लिए यत्न करना उसका धर्म है। कवि ने मंदोदरी को एक आदर्श पत्नी के रूप में प्रस्तुत किया है।
  3. मंदोदरी एक विदुषी नारी भी है। उसे राजधर्म का भी ज्ञान है। वह रावण से वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश का अनुरोध भी कर रही है।
  4. साहित्यिक अवधी भाषा और तार्किक शैली के द्वारा कवि ने प्रसंग को बड़ा प्रभावशाली बना दिया है।
  5. “पिय परिहरि कोपा’, ‘खलु खद्योत’ तथा ‘काल करम’ में अनुप्रास अलंकार है।

3. नाथ दीनदयाल रघुराई। बाघउ सनमुख गएं न खाई।।
चाहिअ करन सो सब करि बीते। तुम्ह सुर असुर चराचर जीते।।
संत कहहिं अस नीति दसानन। चौथेपन जाइहि नृप कानन।।
तासु भजन कीजिअ तहँ भर्ता। जो कर्त्ता पालक संहर्ता।।
सोइ रघुबीर प्रनत अनुरागी।। भजहु नाथ ममता सब त्यागी।।
मुनिवर जतन करहिं जेहि लागी। भूप राज तजि होहिं बिरागी।।
सोइ कौसलाधीस रघुराया। आयउ करन तोहि पर दाया।।
औं पिय मानहु मोर सिखावन। सुजस होइ तिहुँपुर अति पावन।।
अस कहि नयन नीर भरि, गहि पद कंपित गात।
नाथ भजहु रघुनाथहिं, अचल होइ अहिबात।।

कठिन शब्दार्थ – बाघउ= बाघ भी। सनमुख = सामने या शरण में। न खाई = नहीं खाता। धरि बीते = कर चुके। सुर = देवता। असुर = राक्षस। चराचर = चेतन और जड़। चौथेपन = वृद्धावस्था में। नृप = राजा। कानन = वन को। तहँ = वहाँ (वन में)। भर्ता = पति। कर्ता = निर्माता, जन्मदाता। भर्ता = पालन करने वाला। संहर्ता = संहार करने वाला। प्रनत = विनम्र, शरणागते। अनुरागी = प्रेम करने वाले। ममता = सांसारिक वस्तुओं में मोह। जतनु = प्रयत्न। जेहि लागी = जिसके लिए। भूप = राजा। तजि = त्यागकर। विरागी = वैरागी, तपस्वी। कौसलाधीस = कौशल राज्य के स्वामी। रघुराया = राम। आयउ = आए हैं। तोहि पर = तुम पर। दाया = दया। जौ = यदि। सिखावन = सीख, परामर्श। तिहुँ = तीनों लोक। पावन = पवित्र। गहि = पकड़कर। कंपित = काँपता हुआ। गात = शरीर। अचल = स्थायी, अखण्ड। अहिबात = सौभाग्य।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में ‘मंदोदरी की रावण को सीख’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित प्रसंग लिया गया है। मंदोदरी रावण को अनेक प्रकार से समझा रही है कि राम की शरण जाने में सभी का कल्याण है। ऐसा करने से रावण की तीनों लोकों में यश फैलेगी और वह अखण्ड सौभाग्यवती हो जाएगी।

व्याख्या – मंदोदरी रावण को समझाते हुए कहने लगी कि राम दीनों पर दया करने वाले हैं। वह अवश्य उसे क्षमा कर देंगे। शरण में आए हुए व्यक्ति को तो हिंसक बाघ भी नहीं खाता। मंदोदरी ने कहा “आप जो कुछ करना चाहते थे, सब कर चुके हैं। आपने देवातओं, सारे राक्षसों और सारे चेतन और जड़ जगत पर विजय प्राप्त कर ली है। हे दशानन ! संतों ने कहा है कि राजा को वृद्ध होने पर अपना राज्य युवराज को सौंपकर चला जाना चाहिए। अतः अब आप क्रोध और अहंकार त्याग कर उसका भजन कीजिए जो सब का जन्मदाता, रक्षक और संहारक है। वह और कोई नहीं, अपितु शरणागत पर प्रेम करने वाले राम ही हैं।

अत: सारे मोहों से मुक्त होकर आप उन्हीं राम का भजन कीजिए। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि जिनको पाने के लिए जीवनभर प्रयत्न करते हैं, राजो लोग राज्य त्याग कर जिन प्रभु को पाने के लिए वैरागी बनते आ रहे हैं, वही परब्रह्म के अवतार कौसलाधीश, रघुकुल के स्वामी, श्रीराम आप पर दया करके स्वयं यहाँ पधारे हैं। हे प्रिय ! आप मेरी यह सीख मान लीजिए। इससे तीनों लोकों में आपका पवित्र यश छा जाएगा। ऐसा कहते हुए मंदोदरी ने आँखों में आँसू भरकर काँपते शरीर से रावण के चरण पकड़ लिए। बोली हे नाथ राम की शरण जाइए। इससे मेरा सौभाग्य भी अखण्ड हो जाएगा। आप रहेंगे तो मेरा सौभाग्य भी अक्षय बना रहेगा।

विशेष –

  1. विदुषी मंदोदरी एक पतिव्रता पत्नी के अनुरूप आचरण करते हुए अपने अहंकारी पति, रावण को सत् परमार्श दे रही है।
  2. मंदोदरी की कथन शैली, उसका ज्ञान और पति के हित के लिए व्याकुल हृदय देखकर भाग्य के विधान पर आश्चर्य होता है। कहाँ रावण और कहाँ पत्नी मंदोदरी अद्भुत संयोग है।
  3. ‘मुनिवर जतनु …… तोहि पर दाया’ कथन में मंदोदरी के चरित्र के एक उत्तम लक्षण का कवि ने प्रकाशन किया है। वह लक्षण है, वाक् कुशलता।
  4. भाषा साहित्यिक अवधी है। लोकोक्ति के प्रयोग से कथन को प्रभावशाली बनाया गया है।
  5. शैली विवरणात्मक और भावात्मक है।
  6. ‘सुर असुर चराचर’, ‘सोई कौसलाधीस’ में अनुप्रास अलंकार है।

4. सजल नयन कह जुग कर जोरी। सुनहु प्रानपति बिनती मोरी।।
कंतन राम विरोध परिहरहू। जानि मनुज जो हठ मन धरहू।।
विस्वरूप रघुबंस मनि, करहु बच र बिस्वासु।
लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु।।
पद पाताल सीस अजधामा। अपर लोक अँग अँग विश्रामा।।
भृकुटि बिलास भयंकर काला। नयन दिवाकर कच घनमाला।
जासु घ्रान अस्विनीकुमारा। निसि अरु दिवस निमेश अपारा।।
श्रवन दिसा दस बेद बखानी। मारुत स्वास निगम निज बानी।।
अधर लोभ जम दसन कराला। माया हास बाहु दिगपाला।।
आनन अनल अंबुपति जीहा। उतपति पालन प्रलय समीहा।।
रोम राजि अष्टादस भारा। अस्थि सैले सरिता नस जारा।।
उदर उदधि अधगो जातना। जगमय प्रभु का बहु कल्पना।।
अहंकार सिव, बुद्धि अज मन ससि चित्ती महान।
मनुज बास सचराचर रूप राम भगवान।।
अस बिचारि सुनु प्रानपति, प्रभु सन बयरु विहाई।।
प्रीति करहु रघुबीर पद, मम अहिवात न जाई।।

कठिन शब्दार्थ – विस्वरूप = सम्पूर्ण विश्व के स्वरूप, विराट रूप। लोक कल्पना = सारे लोक। प्रति = प्रत्येक। अज धामी = ब्रह्मलोक। अपर = अन्य। भृकुटि बिलास = भौंहों का टेढ़ी होना, क्रोध। काला = मृत्यु। दिवाकर = सूर्य। कच = केश, बाल। घन माला = बादल। घ्रान = नाक। अस्विनी कुमारा = देवताओं के वैद्य। निमेश = पलकों का झपना। श्रवन = कान। बखाना = वर्णन किया है। मारुत = वायु। स्वास = साँस। निगम = शास्त्र। अधर = होंठे। दसन = दाँत। जम = यमराज। कराला = भयंकर। हास = हँसी। बाहु= भुजाएँ। दिगपाला = दिशाओं के रक्षक देवता। आनन = मुख। अनल = अग्नि। अंबुपति = वरुण देव। जीहा = जीभ। उत्पति = उत्पत्ति जन्म। समीहा = कामना, संकल्प। रोम राजि = शरीर के रोंए। अष्टादस = अठारहे। भारा = पुराण अथवा विद्याएँ। अस्थि = हड्डियाँ। सैल = पर्वत। सरिता = नदियाँ। नस जारा = शिराओं या नसों का जाल। उदर = पेट। उदधि = समुद्र। अधगो = शरीर का नीचे का भाग, पैर। जातमा = यम यातना, कष्ट। महान = महतत्व महाभूत। मनुज = मनुष्य। बिहाय = त्याग कर।।

संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘मंदोदरी की रावण को सीख’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस अंश में मंदोदरी रावण को समझा रही है कि वह राम को साधारण मनुष्य ने समझें। राम तो विश्वरूप विराट पुरुष हैं। मंदोदरी ने राम के अंग-अंग में विश्व के विविध पदार्थों, वेद-पुराणों, देवों आदि को स्थित बताया है।

व्याख्या – मंदोदरी नेत्रों में आँसू भरकर हाथ जोड़कर रावण से बोली-हे प्राणपति ! आप मेरी विनती सुनिए। आप राम से विरोध क्यों नहीं त्याग रहे हैं? उन्हें साधारण मनुष्य समझकर अपनी हठ पर क्यों अड़े हैं ? | आप मेरी बात पर विश्वास कीजिए, राम तो साक्षात् विश्वरूप परमेश्वर है। सारा संसार सभी लोक तथा वेद इनके अंगों में निवास करते हैं।। राम के चरणों में पाताल, सिर में ब्रह्मलोक, अन्य लोक भी इनके अंगों में स्थित हैं। राम को भौंहें टेढ़ी करने में भयंकर मृत्यु, नेत्रों में सूर्य और केशों में बादलों का निवास है। जिनकी नासिका अश्विनी कुमार (देवताओं के वैद्य) हैं तथा जिनके पलकों की गति अपार दिन-रात है।

राम के कानों को वेद दस दिशाएँ बताता है। उनकी श्वास ही पवन है और उनकी वाणी ही वेद है। उनके होठ लोभ रूप और दाँत भयंकर काल हैं। उनकी हँसी ही माया है और हाथ दिशाओं के रक्षक दिकपाल हैं। उनका मुख अग्नि है तथा जीभ वरुण देव है। उनके संकल्प अथवा इच्छा मात्र से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और विनाश होता है। उनके रोम अठारह पुराण या विद्याएँ हैं। उनकी अस्थियाँ ही पर्वत हैं और उनके शरीर में फैला शिराओं और धमनियों का जाल ही सारी नदियाँ हैं। राम का पेट ही समुद्र है और शरीर का अधोभाग यमयातना अथवा सारे कष्ट हैं। और क्या कहूँ भगवान राम जगमय है। विश्वरूप हैं। राम का अहंकार ही शिव है, उनकी बुद्धि ब्रह्मा है और उनका चित्त सर्वव्यापक विष्णु अथवा पंच महाभूत है। सारे मनुष्य और चराचर जगत राम का ही रूप है। हे प्राणपति ! ऐसा समझकर आप प्रभु राम से बैर त्याग दीजिए। सबके स्वामी राम के चरणों में प्रीति कीजिए ताकि मेरा सौभाग्य नष्ट न हो।

विशेष –

  1. मंदोदरी का ज्ञान, सुलझा हुआ सोच तथा राम के प्रति भक्ति भाव इस काव्यांश में उसे एक आदर्श पत्नी सिद्ध कर रहा है।
  2. हठी और क्रोधी पति को सही मार्गदर्शन करने के कठिन काम को वह बड़ी चतुराई से निभा रही है।
  3. पत्नी होने के नाते, मंदोदरी की भूमिका तो विभीषण से कठिन है। वह रावण का परित्याग करके राम की शरण में नहीं जा सकती।
  4. कवि ने महाभारत में श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप की झाँकी अपने इष्टदेव में दिखाई है।
  5. काव्यांश में कवि विश्वरूपता के वृहत रूपक की योजना द्वारा अपने काव्य के कलापक्ष की पुष्टता पर प्रमाण दिया है।
  6. काव्यांश में अनुपास, रूपक, उपमा आदि अलंकारों का सहज प्रयोग हुआ है।

5. साँझ जानि दसकंधर, भवन गयउ बिलखाई।
मंदोदरी रावनहिं, बहुरि कहा समुझाई।।
कंत समुझि मन तजहु कुमति ही। सोहन समर तुम्हहिं रघुपति ही।।
रामानुज लघु रेख खचाई। सोउ नहिं नाधेहु असि मनुसाई।।
प्रिय तुम्ह ताहि जितब संग्रामा। जाके दूत केर यह काम।।
कौतुक सिंधु नाघि तव लंका। आयउ कपि केहरी असंका।।
रखबारे हति बिपिन उजारा। देखत तोहि अच्छ तेहिं मारा।
जारि सकल पुर कीन्हेसि छारा। कहाँ रहा बल गर्ब तुम्हारा।।
अब पति मृशा गाल जनि मारहु। मोरं कहा कछु हृदय बिचारहु।।
पति रघुपतिहि नृपति जनित मानहु। अग जगनाथ अतुत बल जानहु।।
बान प्रताप जान मारीचा। तासु कहा नहिं मानेहि नीचा।
जनक सभाँ अगनित भूपाला। रहे तुम्हउ बल अतुल बिसाला।।
भंजि धनुश जानकी बिआही। तब संग्राम जितेउ किन ताही।।
सुरपति सुत जानइ बल थोरा। राखा जिअत आँखि गहि फेरा।।
सूपनखा कै गति तुम्ह देखी। तदपि हृदयँ नहिं लाज बिसेखी।।
बधि बिराध खर दूसनहिं, लीलाँ हत्यो कबंध।
बालि एक सर मारयो, तेहि जानहु दसकंध।।

कठिन शब्दार्थ – साँझ = शाम, संध्या। दसकंधर = रावण। बिलखाई = बिलखकर, शंकर। बहुरि = फिर से। कुमति = कुबुद्धि कुविचार। सोहन = शोभा नहीं देता। समर = युद्ध। रामानुज = लक्ष्मण। लघु = छोटी-सी। रेख = रेखा। खचाई = खींची थी। नाघेह= लाँधी, पार की। असि = ऐसा। मनुसाई = पुरुषार्थ बल। जितब = जीतोगे। केर = करा। सिंधु = समुद्र। तब = तुम्हारी। कौतुक = खेल में, सहज ही। कपि केहरी = वानरों में सिंह। असंका = बिना किसी भय के। हति = मार कर। विपिन = वन, पुष्पवाटिका। अच्छ = अक्षय कुमार, रावण का पुत्र। पुर = नगर (लंका)। छारा = राख। मृशा = झूठ ही, व्यर्थ। गाल जनि माहु = गाल मत बजाओ, डग मत हाँको। नृपति = राजा। अज जग = जड़ चेतन। अतुल = तुलना रहित। भूपाला = राजा लोग। भंजि = तोड़कर। सुरपति सुत = कौआ वेशधारी इंद्र का पुत्र जयंत, जिसने सीता के चरण पर चोंच मारी थी। जिअत = जीवित। गहि = पकड़कर। सूपनखा = रावण की बहन, जिसकी नाक लक्ष्मण ने काट दी थी। बधि = मार कर। बिराध = एक राक्षस। खर दूसनहिं = खर और दूषण नामक पराक्रमी राक्षस जिन्हें राम ने मारा था। लीलाँ = सहज ही। हत्यौ = मारा। कबंध = एक राक्षस। सर = बाण।

संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मंदोदरी की रावण को सीख’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस काव्यांश में मंदोदरी अपने पति रावण को समझा रही है कि वह वास्तविकता को स्वीकार करके राम से युद्ध करने की बात भूल जाए। वह राम पर कभी विजय नहीं पा सकता।

व्याख्या – सायंकाल होने पर रावण मन में अत्यन्त दु:खी होता हुआ अपने राजभवन में पहुँचा। तब मंदोदरी ने उसे फिर समझाना आरम्भ किया। मंदोदरी बोली – हे पतिदेव ! मन में सचाई को समझकर कुविचारों को त्याग दो। तुम को राम के साथ युद्ध करना शोभा नहीं देता। याद करो, लक्ष्मण ने सीता की कुटी के बाहर एक छोटी सी रेखा खींच दी थी। आप उसे भी नहीं लाँघ सके। क्या यही आपका पुरुषार्थ और पराक्रम है ? हे प्रिय ! आप उसे युद्ध में जीत पाओगे जिसके दूत (हनुमान) ने लंका में आकर ऐसा उपद्रव मचाया है ? वह वानरों में सिंह के समान हनुमान सहज ही सागर को लाँघकर तुम्हारी लंका में आ पहुँचा।

उसने निडर होकर तुम्हारे राजकीय उपवन के रक्षकों को मार डाला और उस अशोक वाटिका उपवन को भी उजाड़ डाला। तुम्हारे देखते हुए तुम्हारे पुत्र अक्षय कुमार को मार डाला। तुम्हारी आँखों के सामने तुम्हारे लंका नगर को जलाकर राख कर दिया। उस समय तुम्हारे बल, अहंकार का क्या हुआ ? उसे क्यों नहीं दण्डित किया ? हे पति ! अब तुम अपनी वीरता की डग मत हाँको ! कोरे गाल बजाने से कुछ नहीं होने वाला। मेरी बात पर शांति से मन में विचार करो। आप राम को साधारण राजा मत समझो। वह सारे चराचर जगत के स्वामी हैं और अत्यन्त बलशाली हैं। उनके बाणों की शक्ति को मारीच जानता था, पर आपने उसका कहीं नहीं माना और छल से सीता का हरण कर लाए। जनक की राजसभा में जहाँ सीता का स्वयंवर हो रहा था, अन्य राजाओं के साथ अत्यन्त बलवान आप भी उपस्थित थे।

क्यों नहीं सीता का वरण कर पाए ? तुम्हारे देखते हुए, इन्हीं राम ने धनुष को तोड़ कर सीता से विवाह किया था। उस समय राम से युद्ध करके उन्हें आपने क्यों नहीं जीत लिया ? इन्द्र के अहंकारी पुत्र जयंत ने कौए का रूप बनाकर सीता के चरण पर चौंच से प्रहार किया था। उसके परिणामस्वरूप राम ने अपने बाण-बल से जयंत को पकड़कर उसकी आँख फोड़ दी थी। किन्तु उसे जीवित छोड़ दिया था। औरों को छोड़ो, अपनी बहिन शूर्पनखा की दशा क्या आपने नहीं देखी ? फिर भी आपको मन में लज्जा नहीं आई।

हे दशकंधर ! उन राम को भली-भाँति पहचान लो, जिन्होंने विराध और खर-दूषण को मारकर कबंध जैसे बली राक्षस को मार गिराया। एक ही बाण से बालि को समाप्त कर दिया। उनसे युद्ध करने की बात भूलकर उनसे मित्रता कर लो।

विशेष –

  1. मंदोदरी ने रावण को सही मार्ग पर लाने के लिए व्यंग्यमयी शैली अपनाई है।
  2. रावण स्वयं को बड़ा पराक्रमी समझता था। मंदोदरी ने उसे वे घटनाएँ स्मरण कराई हैं जब उसे राम का सामना करने का साहस नहीं हुआ।
  3. भाषा भावानुकूल है। शैली व्यंग्यमयी है।
  4. ‘कपि केहरी’, “अग जग’ तथा सुरपति सुत’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘कपि केहरि’ में रूपक अलंकार भी है।

6. जेहिं जलनाथ बँधायउ हेला। उतरे प्रभुदल सहित सुबेला।।
कारुनीक दिनकर कुल केतु। दूत पठायउ तव हित हेतू।।
सभा माँझ जेहिं तव बल मथा। करि बरूथ महुँ मृगपति जथा।।
अंगद हनुमत अनुचर जाके। रन बाँकुरे वीर अति बाँके।।
तेहि कहँ पिय पुनि पुनि नर कहहू। मुधा मान ममता मद बहहू।।
अहह कंत कृत राम विरोधा। काल बिबस मन उपज न बोधा।।
काल दंड गहि काहु न मारा। हरइ धर्म, बल, बुद्धि बिचारा।
निकट काल जेहि आवत साईं। तेहि भ्रम होइ तुम्हारिहि नाईं।
दुइ सुत मरे दहेउ पुर, अजहूँ पूर पिय देहु।।
कृपा सिंधु रघुनाथ भजि, नाथ बिमल जसु लेहु।।

कठिन शब्दार्थ – जेहिं = जिन्होंने। जलनाथ = समुद्र। बँधायउ = बाँध दिया, पुल बना दिया। हेला = खिलवाड़ में सहज ही। दल = सेना। सुबेला = समुद्र तट। कारुनीक = करुणावान। दिनकर कुल = सूर्य वंश। केतू = ध्वज, श्रेष्ठ। तब = तुम्हारे। हित हेतू = भलाई के लिए। माँहि = में। तवे = तुम्हारा। बल मथा = बल की परीक्षा ले डाली। करि = हाथी। बरूथ = समूह। मृगपति = सिंह। अनुचर = सेवक। बाँकुरे = कुशल। बाँके = टेढ़े वीर। मुधा = व्यर्थ में। मान = अभिमान। ममता = मोह। मद = अहंकार। अहह = अहा। कृत = किया गया। बिबस = विवश। काल = मृत्यु, विनाश। उपज = उत्पन्न होता है। बोधा = ज्ञान। दण्ड गहि = डंडा लेकर। हरई = हर लेता। साईं = स्वामी। नाई = समान। दहेउ = जल गया। पूर = त्यागना (पिंड छुड़ाना)।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में रामचरितमानस से संकलित मंदोदरी की रावण को सीख नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कवि तुलसीदास हैं। मंदोदरी रावण को समझाते हुए कह रही है कि उसका विनाश निकट आ गया है। जिससे उसकी बुद्धि भ्रमित हो गई है। वह उसे चेतावनी दे रही है कि वह अब भी अपने हठ और अहंकार को त्याग दे अन्यथा उसका और राक्षसों का विनाश होना अवश्यम्भावी है।

व्याख्या – मंदोदरी राम की शक्ति और प्रताप को स्मरण कराते हुए रावण से कह रही है कि जिन राम ने समुद्र को खिलवाड़ की भाँति बाँध दिया। सेतु बना दिया और अपनी सेना सहित लंका के समुद्र तट पर आ पहुँचे, उनके प्रभाव को पहचान लो। सूर्यवंश की ध्वजा के समान राम बड़े करुणावान हैं। इसीलिए उन्होंने तुम्हारी भलाई के लिए अपना दूत तुम्हें समझाने के लिए भेजा। उस दूत (अंगद) ने भरी सभा में तुम्हारे और तुम्हारे बलवान सभासदों के बल की परीक्षा ले ली। सब को लज्जित कर डाला। वह अकेला दूत अंगद तुम्हारी बलवानों की राजसभा में ऐसा लग रहा था जैसे हाथियों के समूह में निर्भीक सिंह लगता है। हे पति ! तनिक सोचो कि जिन राम के अंगद और हनुमान जैसे युद्ध-कुशल वीर और पराक्रमी सेवक हों, उन राम को तुम बार-बार साधारण मनुष्य बताते हो।

तुम व्यर्थ के सम्मान, मोह और अहंकार में डूबे हुए हो। दुःख है पतिदेव ! तुम राम के विरोध में इतना पड़े हुए हो। मुझे तो लगता है तुम काल के वश में पड़े हो, इसी कारण बार-बार समझाने पर भी तुम्हारे मन में ज्ञान नहीं उत्पन्न हो रहा है। आज तक काल ने हाथ में दण्ड (शस्त्र) लेकर किसी को नहीं मारा। काल तो विनाश की ओर जाते व्यक्ति का धर्म, बल और बुद्धि हर लेता है। हे स्वामी ! जिसकी मृत्यु निकट आती है, उसे तुम्हारे ही समान मतिभ्रम हो जाता है। आपके दो पुत्र मारे गए, लंकापुरी जला दी गई। हे प्रिय ! अब इस झूठे अहंकार का त्याग कर दो। मोह और झूठी प्रतिष्ठा से पिण्ड छुड़ा लो और सच्चे मन से कृपालु श्रीराम का ध्यान करो, भक्ति करो। इसी से आपका संसार में सच्चा सुयश फैलेगा।।

विशेष –

  1. बुद्धिमती मंदोदरी, राम और उनके दूतों हनुमान और अंगद का उदाहरण देकर रावण को समझाने का प्रयत्न कर रही है कि वह दो पुत्रों की मृत्यु और लंका दहन को देखकर इस भ्रम को त्याग दे कि राम साधारण मनुष्य हैं।
  2. भाषा साहित्यिक अवधी है। कथन शैली प्रबोधात्मक तथा व्यंगात्मक है।
  3. मुहावरों तथा लोकोक्ति के प्रयोग से भाव व्यंजना प्रभावी हुई है।
  4. ‘हित हेतु’ ‘मुधा, मान, ममता मद’ में अनुप्रास अलंकार है। करि वरुथ ….. जथा’ में उपमा तथा ‘पुनि-पुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

7. तव बल नाथ डोल नित धरनी। तेज हीन पावक ससि तरनी।।
सेश कमठ सहि सकहिं न भारा। सो तनु भूमि परेउ भरि छारा।।
बरून कुबेर, सुरेस, समीरा। रन सन्मुख धरि काहुँ न धीरा।।
भुज बल जितेहु काल जम साईं। आज परेहु अनाथ की नाईं।
जगत बिदिति तुम्हारि प्रभुताई। सुत परिजन बल बरनि न जाई।।
राम बिमुख उस हाल तुम्हारा। रहा न कुल कोउ रोवनिहारा।।
तव बस विधि प्रपंच सब नाथा। सभय दिसिप नित नावहिं माथा।।
अब तव सिर भुज जंबुक खाहीं। राम विमुख यह अनुचित नाहीं।।
काल बिबस पति कहा न माना। अब जग नाथु मनुज करि जाना।।
जान्यौ मनुज करि दनुज, कानन दहन पावक हरि स्वयं।
जेहि नमत सिव ब्रह्मादि, सुर पिय भजेहु नहिं करुनामयं।
आजन्म ते पर द्रोहरत, पापौघमय तव तनु अर्य।
तुम्हहूदियो निज धाम, राम नमामि ब्रह्म निरामयं।।
अहह नाथ रघुनाथ सम कृपा सिंधु नहिं आन।।
जोगिवुद दुर्लभ गति, तोहि दीन्हि भगवान।।

कठिन शब्दार्थ – डोल = काँपती। धरनी = पृथ्वी। पावक = अग्नि। तरनी = सूर्य। सेश = शेषनाग। कमठ = कछुआ। छारा = धूल। समीरा = पवन देव। विदित = ज्ञात है, पता है। परिजन = परिवारीजन। बरनि = वर्णन करना। रोवनिहारा = रोने वाला, शोक प्रकट करने वाला। बिधि = ब्रह्मा। प्रपंच = सृष्टि, पाँचों महातत्व (भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश)। सभय = भयभीत। दिसि = दिशाओं के रक्षक। नावहिं = झुकाते। जंबुक = सियार, गीदड़। अग = यम। दनुज = राक्षस। कानन = वन। परदोह = दूसरों से विरोध या बैर रखना। पापौघमय = पापरूपी जल की बाढ़ से पूर्ण, घोर पापी। तनु = शरीर। अयं = यह। निरामयं = दोषरहित, निर्गुण। जोगि वृंद = योगीजन। दुर्लभ = अत्यन्त कठिनाई, प्राप्त होने वाली। गति = परिणाम, अवस्था।

संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ से संकलित’मंदोदरी की रावण को सीख’ नामक पाठ से लिया गया है। राम द्वारा संग्राम में रावण का वध होने पर, रावण के शव के निकट बैठी मंदोदरी, उसके बल, प्रताप और धाक का वर्णन करते हुए शोकमग्न होकर विलाप कर रही है।

व्याख्या – मंदोदरी मृत पति रावण को संबोधित करते हुए कहती है। हे स्वामी ! आपके बल के कारण यह धरती नित्य ही काँपती रहती थी। सारी पृथ्वी के लोग तुम्हारे भय से सशंकित रहा करते थे। तुम्हारे प्रताप से अग्नि, चन्द्रमा और सूर्य भी तेजहीन लगा करते थे। पृथ्वी को धारण करने वाले माने गए, शेषनाग और कच्छप भी तुम्हारे भार को सहन नहीं कर पाते थे। आज तुम्हारा वही शरीर धूल में सना हुआ, भूमि पर पड़ा हुआ है। वरुण देव, कुबेर, इन्द्र तथा पवन देव कोई भी युद्ध में तुम्हारे सामने टिक नहीं पाता था। हे स्वामी ! आपने अपनी भुजाओं के बल से काल और यमराज को भी जीत लिया था। पर आज आप एक अनाथ की भाँति धरती पर पड़े हुए हो।

सारे संसार में आप की प्रभुता प्रसिद्ध थी। आपके परिवारीजनों के बल का भी वर्णन होना सम्भव न था। वे भी महान पराक्रमी माने जाते थे। परन्तु राम विरोध होने के कारण आज आपका यह हाल हो गया कि आपके कुल में आपकी मृत्यु पर रोने वाला भी कोई नहीं बचा।। हे नाथ ! स्वयं ब्रह्मा और यह पंचभूतों निर्मित सृष्टि, सभी दिग्पाल भय से आपको नित्य प्रणाम किया करते थे। आज आपके सिर को सियार खाएँगे। राम विरोधी के साथ ऐसा होने में कुछ भी अनुचित नहीं है। हे पतिदेव ! मृत्यु और विनाश के वश में पड़े आपने, मेरी सीख नहीं मानी। आप भ्रमवश चराचर सृष्टि के स्वामी श्रीराम को, साधारण मनुष्य ही मानते रहे।

आपके राक्षसों रूपी वन को भस्म करने वाली अग्नि के समान राम को मनुष्य समझा। जिनके सामने शिव, ब्रह्मा आदि देवता सिर झुकाते हैं। उन करुणामय भगवान राम का भजन नहीं किया। आपका यह शरीर, जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त, दूसरों से बैर रखने वाला और पापरूपी जल की बाढ़ के समान है। आपने जीवन भर असंख्य पाप किए। इतने पर भी साक्षात् निर्गुण ब्रह्मस्वरूप राम ने तुम्हें भी कृपा . करके अपना धाम (बैकुंठ) प्रदान कर दिया। तुम्हारा उद्धार कर दिया हे नाथ ! भगवान राम जैसा कोई और करुणावान नहीं है। जो गति अथवा परम पद योगियों के लिए भी दुर्लभ है, वही गति भगवान ने तुम्हें प्रदान की है।

विशेष –

  1. कवि तुलसी दास ने मंदोदरी के माध्यम से राम विरोधियों को गम्भीर संदेश दिया है। रावण जैसे पराक्रमी का रामविरोधी होना उसके लिए सर्वनाश ही लेकर आया।
  2. कवि ने अपने इष्ट भगवान राम के अद्वितीय करुणावान होने का सप्रमाण वर्णन प्रस्तुत किया है। उनके मतानुसार राम से बड़ा और उन जैसा दयावान अन्य कोई नहीं है। अत: मनुष्य को राम को ही भजना चाहिए।
  3. मंदोदरी के, रावण को सन्मार्ग पर लाने के सारे प्रयास निष्फल रहे और अपने जिस ‘अहिवात’ की रक्षा के लिए, उसने दंभी पति को मनाया, वह नहीं बच सका, उसे कर्मवश विधवा होना पड़ा। इस घटनाक्रम के माध्यम से कवि ने संदेश दिया है कि अहंकारी, हठी और परद्रोही व्यक्ति अपने साथ ही अपने प्रियजनों और परिजनों का भी विनाश करा देता है।
  4. शैली भावात्मक है। कवि की बहुज्ञता प्रत्यक्ष हो रही है।
  5. सुरेस समीरा’ ‘धाम राम नमामि’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘दनुज कानन ……. हरि’ में रूपक तथा उपमा कारोचक सम्मिलन है। काव्यांश में अतिशयोक्ति अलंकार भी सर्वत्र विद्यमान है।

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