RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 8 सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 8 सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 8 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
राम ने किसको पराजित करने के लिए शक्ति की उपासना की ?
(क) रावण
(ख) मारीच
(ग) कंस
(घ) मेघनाद
उत्तर:
(क) रावण

प्रश्न 2.
‘अनामिका’ किसकी रचना है ?
(क) सूर्यकांत त्रिपाठी
(ख) पंत
(ग) दिनकर
(घ) महादेवी वर्मा
उत्तर:
(क) सूर्यकांत त्रिपाठी

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 8 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
रावण से युद्ध करते हुए राम निराश क्यों हो गये थे?
उत्तर:
रावण के साथ महाशक्ति को देखकर राम को युद्ध में अपनी जीत का भरोसा नहीं रहा था।

प्रश्न 2.
राम-रावण युद्ध किसका प्रतीक है?
उत्तर:
राम-रावण युद्ध सत् और असत् के बीच चलने वाले संघर्ष का प्रतीक है।

प्रश्न 3.
राम को शक्ति की उपासना करने का सुझाव किसने दिया ?
उत्तर:
राम को शक्ति की उपासना करने का सुझाव जाम्बवान ने दिया था।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘राम की शक्ति पूजा’ के आधार पर राम-रावण की सेना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘राम की शक्ति पूजा’ कविता में राम की सेना का वर्णन मिलता है। लक्षण उनकी सेना के महानायक हैं। सेना के मध्य भाग में अंगद तथा दायें भाग में रिच्छराज जामवन्त रहते हैं। वाम पक्ष में हनुमान, नल-नील, छोटे वानर व सैनिक साथ में हैं। इनके अतिरिक्त सुग्रीव, विभीषण आदि भी राम की सेना में हैं। रावण की सेना का कोई वर्णन इसमें नहीं है। रावण है तथा उसके साथ महाशक्ति दुर्गा हैं।

प्रश्न 2.
राम ने शक्ति की उपासना से कौन-कौन से फूलों का प्रयोग किया ?
उत्तर:
राम ने शक्ति की उपासना में नील कमलों का प्रयोग किया। अन्तिम जप के समय नील कमल न मिलने पर उन्होंने अपना एक नेत्र शक्ति को अर्पित करने का विचार किया।

प्रश्न 3.
रावण से युद्धरत राम स्वयं को क्यों धिक्कारते हैं?
उत्तर:
राम रावण से युद्ध कर रहे हैं। उनको पग-पग पर विरोध का सामना करना पड़ता है। सुरपक्ष की होने पर भी दुर्गा असुर पक्ष के साथ हैं। राम के पास युद्ध के साधन पर्याप्त नहीं हैं।

प्रश्न 4.
पाठ में श्रीराम के लिए किन-किन पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग हुआ है ?
उत्तर:
‘राम की शक्ति पूजा पाठ में श्रीराम के लिए अनेक पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग हुआ है। उनको रघुकुल वंश का होने के कारण राघवेन्द्र, रघुमणि, रघुनन्दन, राघव आदि नामों से पुकारा गया है। इसके अतिरिक्त उनको जानकी प्राण, भानुकुल भूषण तथा। पुरुष सिंह भी कहा गया है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘राम की शक्तिपूजा’ में निहित सांस्कृतिक प्रतिमानों को समझाइए।
उत्तर:
राम रावण के साथ युद्धरत हैं। रावण छलपूर्वक राम की पत्नी सीता का हरण कर ले गया है। सीता की मुक्ति के लिए राम सेना का संगठन कर उससे युद्ध कर रहे हैं। रावण असुर है तो राम सुरावतार। रावण असत् का प्रतीक है तो राम सत् के द्योतक हैं। राम। का रावण के साथ युद्ध साधारण युद्ध नहीं है। इसमें अनेक सांस्कृतिक प्रतिमान निहित हैं। यह युद्ध असत् के विरुद्ध सत् के संघर्ष का सूचक है। सत् की शक्तियाँ भी कभी-कभी असत् के पक्ष में खड़ी दिखाई देती हैं किन्तु ऐसा सदा के लिए नहीं होता। शक्ति रावण के साथ है। किन्तु राम की पूजा से प्रसन्न होकर वह उनको विजय का आशीर्वाद देती है।

न्याय भी संघर्ष करने पर ही मिलता है। रावण अधर्म पथ पर है तथा राम धर्म पथ पर हैं। रावण परस्वत्वापहारक व दोषी है। राम धर्म की रक्षार्थ युद्ध कर रहे हैं। पहले रावण के साथ शक्ति को देखकर राम निराश हो जाते हैं किन्तु जाम्बवान के परामर्श पर वह शक्ति की पूजा करते हैं। उनको महाशक्ति से विजय का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जाम्बवान के परामर्श से राम के निराशापूर्ण हृदय से आशा की ज्योति जल उठती है। अन्त में उनके मन की निराशा पर आशा विजयी होती है। राम और रावण दोनों ही व्यक्ति न होकर कुछ प्रतिमानों के प्रतीक हैं।

प्रश्न 2.
‘राम की शक्तिपूजा’ मानव मन का अन्तर्द्वन्द्व है। समझाइये।
उत्तर:
द्वन्द्व शक्तियों के मध्य होने वाला संघर्ष होता है। जब मनुष्य के मन में दो परस्पर विरोधी विचार और भावों का उदय होता है तो अपना अस्तित्व प्रमाणित करने के लिए उनमें संघर्ष होता है। यह संषर्ष मन के अन्दर होने के कारण इसको अन्तर्द्वन्द्व कहते हैं। मनुष्य का विवेक उसको सन्मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करता है किन्तु लोभ-लालसा, काम, क्रोध आदि मनोविकार उसको असत्य, की ओर ले जाना चाहते हैं।

यदि मनुष्य सदाचारी और विवेकशील होता है, तो वह इन विकारों से मुक्त होकर सत्य का मार्ग ही ग्रहण करता है। ‘राम की शक्तिपूजा’ में राम के मन के द्वन्द्व का चित्रण हुआ है। सीताहरण के बाद रावण के अभद्रता से कुपित राम उसको दण्डित करना चाहते हैं। वह उत्साह के साथ सैन्य संगठन करते हैं किन्तु रावण के साथ महाशक्ति दुर्गा को देखकर उनका उत्साह नष्ट हो जाता है। वह निराश हो जाते हैं। उनकी निराशा इतनी बढ़ती है कि उनके नेत्रों से आँसू टपकने लगते हैं। स्पष्ट कहते हैं – ‘विजय होगी न, समर ‘‘यह नहीं रहा नर वानर का राक्षस से रण” जाम्बवान के परामर्श से राम के हृदय की निराशा दूर होती है। उनमें पुनः आशा का संचार होता है तथा वह शक्ति की पूजा कर उससे विजय का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। वह अपने जीवन तथा साधनों को धिक्कारते। हैं किन्तु अन्त में उनके मन में अपने शक्ति पर विश्वास उत्पन्न होता है। इस प्रकार राम की शक्तिपूजा में राम के अन्तर्द्वन्द्व का सफलतापूर्वक चित्रण हुआ है।

प्रश्न 3.
वर्तमान भौतिकता की चकाचौंध में राम की शक्तिपूजा साधारण आदमी की पीड़ा को अभिव्यक्त करती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘राम की शक्तिपूजा’ आध्यात्मिकता से प्रेरित है। प्रतीकात्मक रूप में वह आज के मानव की पीड़ा को भी व्यक्त करती है। आज भी भ्रष्टाचार का सर्वत्र बोलबाला है। भौतिक सुख का आकर्षण मनुष्य को सत्य से डिगा देता है। रावण ने परनारी सीता का अपहरण किया है। आज हर दिन हम महिलाओं के अपहरण तथा उनसे दुराचार के समाचार पढ़ते-सुनते हैं। इन घटनाओं को विरोध करने वाले लोग भी हमें दिखाई देते हैं। सीता के अपहरण से सीता और राम की पीड़ा आज के अनेक स्त्री-पुरुषों की भी पीड़ा है। राम सत्य की रक्षार्थ लड़ रहे हैं किन्तु उनको पग-पग पर विरोध का सामना करना पड़ता है।

सत्य मार्ग पर चलना भी निरापद नहीं है। समाज में व्याप्त अनाचार और अन्याय आज भी सशक्त रूप से दिखाई देता है। अनेक लोग उससे पीड़ित होते हैं तथा उनको अकारण देण्ड भी सहन करना पड़ता है। राम को यह देखकर दु:ख होता है कि सत् व शक्ति अधर्म के साथ खड़ी है। आज के भौतिकवादी समाज में सत्य के मार्ग में अनेक पथिक लोग लालच में पड़कर अधर्म का साथ देते हैं। साधारण आदमी के मन की पीड़ा राम की पीड़ा बनकर उभरी है।

प्रश्न 4.
‘राम की शक्ति पूजा’ में सत् और असत् प्रवृत्तियों के संघर्ष को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
‘राम की शक्तिपूजा’ में रावण के साथ राम के युद्ध का वर्णन है। राम सत् के प्रतीक हैं तो रावण असत् का सूचक है। राम और रावण का युद्ध दो व्यक्तियों के बीच में होने वाला युद्ध ही नहीं है, बल्कि वह असत् के विरुद्ध सत् के उस संघर्ष का सूचक है, जो अनन्त काल से चल रहा है। रावण ने सीता का हरण किया है। राम उसकी मुक्ति के लिए लड़ रहे हैं, सीता का अपहरण अच्छा काम नहीं है। उसकी मुक्ति का प्रयास सत् की पुनस्र्थापना का कार्य है। राम के साथ जाम्बवान, सुग्रीव, हनुमान, अंगद आदि हैं। ये सभी सत् की शक्तियों के द्योतक हैं। असत् पक्ष का परित्याग कर राम के सत् पक्ष का साथ निभाने आया, विभीषण इस संघर्ष को बल प्रदान करने आया है।

कभी-कभी ऐसा होता है कि सत् पक्ष का सहयोग असत् पक्ष को मिल जाता है। महाशक्ति का आरम्भ में रावण के पक्ष में खड़ा होना इसका उदाहरण है। राम इससे ही सर्वाधिक आहत भी हैं। किन्तु ऐसा सदा नहीं रहता है। आज के समाज में कुछ दुष्ट व्यक्तियों को भले आदमियों का सहयोग मिल जाता है, परन्तु अन्त में इस संघर्ष में विजय सत् पक्ष की ही होती है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) स्थिर राघवेन्द्र को हिला ……. उद्यत हो हार हार।
(ख) धिक जीवन को जो ……. मायावरण प्राप्त करे जय।
उत्तर:
उपर्युक्त ‘क’ तथा ‘ख’ पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या पहले ही की जा चुकी है। इस पाठ का महत्वपूर्ण पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ’ शीर्षक देखिए।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 8 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
राम की शक्ति पूजा’ रचना है –
(क) प्रबन्धात्मक
(ख) मुक्तक
(ग) गीतिकाव्य
(घ) गद्य काव्य
उत्तर:
(क) प्रबन्धात्मक

प्रश्न 2.
‘राम की शक्ति पूजा में व्यंजित हुआ है –
(क) निराशावाद
(ख) आशावाद
(ग) छायावाद
(घ) प्रगतिवाद
उत्तर:
(ख) आशावाद

प्रश्न 3.
राम की माता उनको सदा कहती थी –
(क) रघुनन्दन
(ख) राम
(ग) कमलनयन
(घ) राजीवनयन।
उत्तर:
(घ) राजीवनयन।

प्रश्न 4.
‘साधु, साधु, साधक धीर धर्म धन धन्य राम’ पंक्ति में अलंकार है –
(क) उपमा
(ख) श्लेष
(ग) अनुप्रास
(घ) रूपक।
उत्तर:
(ग) अनुप्रास

प्रश्न 5.
“आयेंगे रक्षा हेतु जहाँ भी होगा भय’ कथन किसका है?
(क) राम
(ख) लक्ष्मण
(ग) जाम्बवान
(घ) हनुमान।
उत्तर:
(ग) जाम्बवान

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 8 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राम रावण युद्ध में राम किसके प्रतीक हैं ?
उत्तर:
राम रावण युद्ध में राम न्याय और सत्य के प्रतीक हैं।

प्रश्न 2.
राम के हृदय में उत्पन्न निराशा का कारण क्या है ?
उत्तर:
राम देखते हैं कि महाशक्ति अधर्म का पक्ष ग्रहण करने वाले रावण के साथ है, तो वह निराश होते हैं। राक्षसराज रावण के साथ महाशक्ति दुर्गा भी हैं। जो पक्ष अन्याय में प्रवृत्त है, महाशवित उसी के साथ हैं। महाशक्ति दुर्गा का आशीर्वाद पाकर रावण अजेय हो गया है।

प्रश्न 3.
आया न समझ यह दैवी विधान-राम किस दैवी विधान की बात कर रहे हैं ? उनकी समझ में क्या नहीं आया ?
उत्तर:
राम ने देखा कि रावण अन्याय के पक्ष में खड़ा है। राम अन्याय के विरुद्ध लड़ रहे हैं। अधर्मरत रावण महाशक्ति का अपना बन गया और धर्मरत पराये हो गए। भगवती दुर्गा को राम के पक्ष में होना चाहिए था किन्तु इसके विपरीत वह अन्याय और अधर्म की शक्तियों का साथ दे रही हैं। विधि का यह विधान कितना विचित्र है। राम यह समझने में असमर्थ हैं।

प्रश्न 4.
बोले विश्वस्त कण्ठ से जाम्बवान-जाम्बवान ने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ राम से क्या कहा ?
उत्तर:
राम युद्ध में विजय प्राप्त करने में संदेह कर रहे हैं। महाशक्ति दुर्गा को रावण के साथ देखकर वह अपनी हार की सम्भावना से व्यथित और विचलित हैं। तब जाम्बवान आत्मविश्वास और दृढ़ता के साथ राम को परामर्श देते हैं कि वह महाशक्ति दुर्गा की पूजा करें। रावण ने पूजा करके शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त किया है। राम को आराधना का उत्तर आराधना से ही देना चाहिए। महाशक्ति को साथ पाकर यदि अधर्मी रावण लोगों को आतंकित कर सकता है, तो राम भी उस पर विजय पा सकते हैं। उनको भी शक्ति की पूजा करनी चाहिए।

प्रश्न 5.
राम के शक्ति के पूजन के समय उनकी सेना की व्यवस्था का वर्णन अपने शब्दों में करिये।।
उत्तर:
जाम्बवान ने राम को परामर्श दिया कि वह शक्ति की पूजा करें। जब तक सिद्धि प्राप्त न हो तब तक सेना का उत्तरदायित्व उनके सहयोगी सँभालेंगे। लक्ष्मण राम की सेना के प्रधान सेनापति होंगे। मध्य भाग में अंगद तथा दाहिनी ओर अपनी भालू सेना के साथ जाम्बवान स्वयं रहेंगे, बायीं ओर हनुमान, नल-नील और छोटे वानर दल होंगे, उनके प्रधान सुग्रीव, विभीषण तथा अन्य यूथपति जिस स्थान पर संकट उत्पन्न होगी वहाँ तुरन्त सहायता के लिए पहुँचेंगे।

प्रश्न 6.
हुआ सहसा स्थिर मन चंचल-राम का मन सहसा अस्थिर क्यों हो उठा?
उत्तर:
राम शक्ति पूजा कर रहे थे। अन्तिम जप था। ध्यानमग्न राम को भगवती दुर्गा के दोनों पैर दिखाई दिए। राम ने उन पर नील कमल चढ़ाना चाहते थे, नील कमल उठाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो वहाँ नीलकमल नहीं था। जप बीच में छोड़ने पर असिद्धि होती। जप के पूर्ण होने के समय आए इस व्यवधान से राम का ध्यान भंग हो गया। उनका मन चंचल हो उठा।।

प्रश्न 7.
‘यह है उपाय’ राम किस उपाय के बारे में बता रहे हैं ?’राम की शक्ति पूजा’ कविता के अनुसार लिखिए।
उत्तर:
नील कमल के अभाव में जप पूर्ण कैसे हो, राम यही सोच रहे थे अचानक उनको स्मरण आया कि बचपन में माता उनको कमल नयन कहती थीं। राम ने सोचा कि क्यों न वह अपनी एक नेत्र निकालकर दुर्गा को अर्पित करें और जप को पूर्ण करें। यह विचार आते ही राम कह उठे- यह है उपाय अर्थात्, जय को पूर्ण करने का यही सर्वश्रेष्ठ उपाय है।

प्रश्न 8.
‘दो नील कमल हैं शेष अभी’ -राम किन नील कमलों की बात कर रहे हैं ?
उत्तर:
जप पूर्ण होने के ठीक समय से पूर्व मायावी शक्ति ने नील कमल गायब कर दिया। जप पूर्ण कैसे हो? यह सोचकर राम अस्थिर हो उठे। जप अपूर्ण रहने पर सिद्धि भी प्राप्त नहीं होगी। राम इस बाधा से मुक्ति का उपाय सोच रहे थे। उनको ध्यान आया कि माता बचपन में उनको कमलनयन कहकर बुलाती थी। राम ने तुरन्त कहा-हाँ, अब यही उपाय है। मेरे ये दो नेत्र हैं। मेरे पास अभी ये दो नील कमल भगवती की पूजा में अर्पित करने के लिए शेष हैं। राम ने अपना नेत्र अर्पित करके जप पूर्ण करने का निश्चय कर लिया।

प्रश्न 9.
देवी का त्वरित उदय किस कारण हुआ ?
उत्तर:
राम ने अपने तरकश की ओर देखा। उसमें ब्रह्मशर चमक रहा था। राम ने हाथ उठाकर उसे बाहर निकाला। बायें हाथ में ब्रह्मशर लेकर राम ने अपना दायाँ हाथ अपने दाहिने नेत्र पर रखा। राम अपना नेत्र निकालने के लिए जैसे ही उद्यत हुए देवी दुर्गा प्रकट हुईं। धर्म के धनी राम, तुम धन्य हो, कहते हुए उन्होंने राम का हाथ पकड़ लिया।

प्रश्न 10.
भगवती दुर्गा ने राम को अपना आशीर्वाद किस तरह प्रदान किया?
उत्तर:
राम की आराधना से भगवती दुर्गा प्रसन्न हुई। उन्होंने प्रकट होकर राम को दर्शन दिए। राम ने उसके चरण कमलों में श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया और उनकी वन्दना की। तब भगवती ने उनको आशीर्वाद दिया-हे पुरुषोत्तम राम, रावण के साथ युद्ध में तुम्हारी विजय अवश्य होगी। यह आशीर्वाद देकर भगवती दुर्गा राम के शरीर में विलीन हो गईं। .

प्रश्न 11.
कहते छल छल हो गये नयन, कुछ बूंद पुनः ढलके दृग जल, रुक गया कण्ठ’ के आधार पर राम के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
अपनी पीड़ा कहते-कहते नेत्र भर आना, आँखों से आँसू टपकने लगना तथा कण्ठ अवरुद्ध होना बताता है कि राम की शक्ति पूजा के नायक राम एक सामान्य पुरुष हैं। वह न ब्रह्म हैं न उसके अवतारी। एक साधारण मनुष्य पीड़ा को किसी सीमा तक ही सह पाता है फिर वह उसकी आँखों के रास्ते बह उठती है। किसी पौराणिक पात्र के चरित्र को साधारण मनुष्य के मनोविज्ञान के अनुरूप पेश करना साधारणीकरण कहलाता है। इस कविता में राम के चरित्र का साधारणीकरण किया गया है।

प्रश्न 12.
राम ने रावण पर विजय पाने के लिए शक्ति की पूजा की। क्या इसका कोई अन्य उपाय नहीं हो सकता था ?
उत्तर:
राम ने रावण पर विजय पाने के लिए शक्ति की पूजा की थी। इसका अन्य उपाय यह हो सकता था कि राम रावण के विरोधियों को उसके विरुद्ध एकजुट करते। सुग्रीव के साथ राम ने यह किया भी। राम की सेना में जो रीछ, वानर आदि थे, वे रावण के अत्याचार से ग्रस्त लोग ही थे। देव शक्ति (दुर्गा) को अपने पक्ष में करना भी आवश्यक था। अत: राम ने उनकी पूजा की।

प्रश्न 13.
महाशक्ति दुर्गा के स्वप्न का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महाशक्ति दुर्गा राम की पूजा से प्रसन्न होकर प्रकट हुई। उनका स्वरूप दीप्तिमान था। उनका बायाँ पैर असुर के कंधे पर था तथा दायाँ पैर सिंह के ऊपर रखा था। उनके दशों हाथों में विविध अस्त्र थे। उनके मुख पर मंद-मंद मुस्कान थी। उनके दाहिनी ओर लक्ष्मी और गणेश थे तो बायीं ओर सरस्वती और कार्तिकेय थे। राम ने उनके चरणों श्रद्धापूर्वक वन्दना की।

प्रश्न 14.
काँपा ब्रह्माण्ड’- राम की शक्तिपूजा के आधार पर बताइए कि ब्रह्माण्ड क्यों काँप उठा ?
उत्तर:
नील कमल नहीं था, जप पूरा करना था। राम ने सोचा वह अपना एक नेत्र देवी दुर्गा के चरणों पर अर्पित करेंगे, उनके नेत्र कमल के समान थे। उनकी माता उनको उनको राजीव नयन कहती थीं। राम ने तरकश से एक बाण निकाला और अपना दाहिना नेत्र निकालने को तत्पर हुए। राम का यह भीषण निश्चय देखकर ब्रह्माण्ड काँप उठा।

प्रश्न 15.
‘राम की शक्ति पूजा’ कविता में निराला जी ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर:
राम रावण को युद्ध में हराना चाहते थे। सीता की मुक्ति के लिए यह जरूरी भी था किन्तु रावण के साथ देवी दुर्गा को देखकर राम निराश हो गए। जाम्बवान के परामर्श से राम ने शक्ति की पूजा की और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। आशीर्वाद पाकर वह रावण को जीतने की आशा करने लगे। इस कविता के माध्यम से निरालाजी ने संदेश दिया है कि मनुष्य को कभी निराश नहीं होना चाहिए। उसे आशावादी होना चाहिए। जीवन में सफलता के लिए यह जरूरी है।

प्रश्न 16.
राम जाम्बवान के परामर्श को मानकर शक्ति की उपासना करते हैं तथा अपने लक्ष्य की सिद्धि में सफल होते हैं। क्या आप संकट के समय मित्रों से परामर्श करना उचित मानते हैं?
उत्तर:
राम ने जाम्बवान के परामर्श से शक्ति की उपासना की तथा रावण पर विजय प्राप्त की। साथियों तथा मित्रों से परामर्श करके जीवन में कठिन परिस्थितियों में भी आगे बढ़ सकते हैं तथा सफलता प्राप्त कर सकते हैं। जीवन में कोई समस्या या कठिन स्थिति आने पर अपने मित्रों से परामर्श करके ही मैं उसका हल तलाश करूंगा। संकट के समय मित्रों से परामर्श करना मैं उचित मानता हूँ।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘राम की शक्तिपूजा’ कविता के नायक राम का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
‘राम की शक्ति पूजा’ महाप्राण ‘निराला’ की एक प्रबन्धात्मक कविता है। उसके नायक राम हैं। राम के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
धीर, गम्भीर तथा विचारशील – राम धैर्यवान हैं। वह गम्भीर स्वभाव के हैं। विचारशील हैं। सीता के अपहरण को वह धैर्यपूर्वक सहते हैं। वह रावण से उसकी मुक्ति के लिए उपाय सोचते हैं तथा उसके विरुद्ध युद्ध छेड़ते हैं।
आशावादी – राम आशावादी हैं। वह रावण के ऊपर विजय पाकर सीता को मुक्त कराने की आशा अपने मन में पाले हुए हैं। उनको अपने साथियों तथा सैन्य संगठन की क्षमता पर विश्वास है।
निराश और हताश – राम मनुष्य हैं। महाशक्ति को रावण के साथ देखकर राम हताश हो जाते हैं। उनको अपनी विजय पर संदेह होने लगता है। वह ध्यानमग्न होकर सोचते हैं तो उनको लगता है कि देवी दुर्गा के कारण वह रावण पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते –

स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा है फिर-फिर संशय
रह रह उठता जगजीवन में रावण जय भय।।

प्रश्न 2.
“राम रावण युद्ध सत् और असत् की दो विरोधी प्रवृत्तियों की टकराहट है।” ‘राम की शक्ति पूजा’ के आधार पर इस कथन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
राम रावण युद्ध सत् और असत् की दो विरोधी प्रवृत्तियों की टकराहट है।”राम की शक्तिपूजा” का प्रतिपाद्य प्रबन्धात्मक है। इस प्रबन्धात्मक कविता के प्रमुख पात्र राम और रावण ही हैं। इसका जो संकलित अंश हमारे समक्ष है, उसमें राम का ही अधिक वर्णन मिलता है। रावण का चरित्र तो सूक्ष्म ही है तथा उसकी हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं। राम सत् के प्रतीक हैं। वह धर्म पथ के अनुयायी हैं। वह न्याय के रक्षार्थ युद्ध कर रहे हैं। इस तरह राम का पथ मानवता का मार्ग है। रावण ‘असत्’ का सूचक है। वह धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करने वाला है। परनारी सीता का छलपूर्वक अपहरण उसका दुष्कृत्य है। वह अन्याय के पथ का पथिक है। वह दूसरों को आतंकित करने के लिए युद्ध कर रहा है। रावण का चेहरा दानवता का परिचायक है।

राम को अपनी जीत पर संशय तब उत्पन्न होता है जब महाशक्ति दुर्गा उनको रावण के साथ दिखाई देती हैं। यह देखकर वह कुछ निराश भी होते हैं किन्तु अपने मित्रों के परामर्श पर वह शक्ति की पूजा करते हैं तथा विजय का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस सम्पूर्ण कविता में राम के द्वारा न्याय के लिए किए गए संघर्ष का ही चित्रण है। यद्यपि उनमें क्षणिक निराशा भी झलकती है किन्तु उनका दृढ़ निश्चय उनको असत् की शक्तियों को पराजित करने का बल प्रदान करता है।

प्रश्न 3.
“राम का यह संघर्ष विषमता और हताशा से त्रस्त मानवता को दानवता की शक्ति सम्पन्नता के विरुद्ध निरन्तर संघर्ष करने की प्रेरणा देता है”-टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
‘राम की शक्ति पूजा में पुरुष सिंह राम की विजय का संदेश है। सत् न्याय तथा धर्म का पक्ष ग्रहण करने वाले राम एक ओर हैं तथा असत्, अन्याय, अनाचार और अधर्म का साथ देने वाला रावण दूसरे पक्ष में है। इसमें प्रथम पक्ष मानवता का है तथा दूसरा पक्ष दानवता का है। राम महामानव हैं तथा रावण अन्याय-अनर्थ का दैत्य है। राम में मानवीय कमजोरियाँ हैं। उनके मन में आशा-निराशा, विश्वास- अविश्वास इत्यादि के बीच द्वन्द्व है। किन्तु अन्त में उनका आत्मविश्वास ही विजयी होता है। वह महाशक्ति भगवती दुर्गा की उपासना करते हैं और अधर्मरत रावण पर विजय प्राप्त करते हैं।

‘राम की शक्ति पूजा’ के आरम्भ में हम देखते हैं कि राम का मन संशय से डगमगा रहा है। शक्ति के रावण के पक्ष में होने के कारण वह हताश हैं। धर्म और न्याय के पक्ष में रहने पर भी देवी का आशीर्वाद उनको न मिलकर रावण को प्राप्त है। मानवता के प्रतीक राम उसके अभाव में दुर्बलता अनुभव कर रहे हैं। रावण दानवता की शक्ति से सम्पन्न है। महाशक्ति का साथ पाकर वह और अधिक प्रबल हो गया है। राम डर रहे हैं कि मानवता की विजय कैसे होगी। मित्रों के परामर्श पर वह शक्ति की पूजा करते हैं और देवी का आशीर्वाद उनको प्राप्त होता है। शक्तिसम्पन्न मानव राम दानव रावण पर विजय प्राप्त करने में सफल होते हैं। हमें अपनी कमजोरियों से न घबराकर आत्मविश्वास के साथ शक्तिशाली विरोधियों से टकराना चाहिए। यही ‘राम की शक्ति पूजा द्वारा प्राप्त प्रेरणा है।

प्रश्न 4.
‘हे पुरुष सिंह तुम भी यह शक्ति करो धारण’-पंक्ति में जाम्बवान ने राम को क्या परामर्श दिया है?
उत्तर:
अमावस्या की रात्रि है। घना अँधेरा छाया है। समुद्र गर्जना कर रहा है। सेना के साथ वहाँ उपस्थित राम ध्यानमग्न हैं। उन्होंने महाशक्ति दुर्गा को रावण के साथ देखा है। उनका मन संशय के कारण डगमग हो रहा है। कुछ देर विचार-मग्न रहने के उपरांत वह अपने साथियों को बताते हैं-मित्रवर विजय होगी न समर। उन्होंने बताया कि यह युद्ध मनुष्य, वानर तथा राक्षस के बीच का युद्ध नहीं रहा है। इसमें महाशक्ति का साथ रावण को प्राप्त है। जिधर अन्याय है उधर ही शक्ति है। यह कहकर राम के नेत्र छलछला उठते हैं।

तब आत्मविश्वासपूर्ण वाणी में जाम्बवान राम से कहते हैं-हे पुरुष सिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण। वह राम को परामर्श देते हैं कि वह भी शक्ति की पूजा करें। रावण ने शक्ति की आराधना करके उनको अपने पक्ष में किया तो उनको भी आराधना का उत्तर आराधना से ही देना चाहिए। यदि अधर्म का पक्षपाती रावण देवी की कृपा पाकर आतंक पैदा कर सकता है तो उसका आशीर्वाद प्राप्त करके राम रावण पर अवश्य ही विजय पा सकते हैं। जाम्बवान ने कहा कि राम शक्ति की मौलिक कल्पना करें और उनका पूजन करें। जब तक उनको सिद्धि प्राप्त न हो वह युद्ध से दूर रहें। सेना के संचालन का काम लक्ष्मण देखेंगे तथा सुग्रीव, हनुमान, विभीषण, अंगद आदि यूथपति तथा वह स्वयं इस कार्य में उनके सहायक होंगे। सिद्धि प्राप्त होने पर राम रावण को जीतने में अवश्य सक्षम होंगे।

प्रश्न 5.
“स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर-फिर संशय”-पंक्ति के आधार पर राम की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सीता का हरण हो चुका था। राम को पता था कि रावण ने उनको लंका में बंदी बनाकर रखा है। राम ने रीछ और वानरों क़ो संगठित करके सेना तैयार की और लंका पर आक्रमण के विचार से समुद्र तट पर पहुँच गए। महाशक्ति को साथ पाकर रावण बलशाली हो गया। यह देखकर राम का मन भयभीत हो उठा और उनको अपनी हार की आशंका सताने लगी। कुछ क्षण चुप रहने के बाद राम कोमल वाणी में बोले यह युद्ध नर वानर तथा रावण के बीच नहीं है। इसमें देवी दुर्गा रावण के साथ है। इसमें विजय प्राप्त नहीं हो सकती। राम यह कहकर विचलित हो उठते हैं। उनकी व्यथा उनके नेत्रों में आँसुओं के रूप में छलछलाकर भूमि पर टपक पड़ती है। वह कहते हैं कि विधि का विचित्र विधान उनकी समझ से बाहर है। अधर्म अन्याय का पक्ष ग्रहण करने वाले रावण को महाशक्ति का समर्थन प्राप्त है। धर्म के लिए युद्ध कर रहे अपने ही राम देवी के लिए पराये हो गए हैं। यह सब देखकर राम निराश और हताश हो जाते हैं। उनका आत्मविश्वास टूट जाता है तथा सीता को मुक्त न कर पाने की व्यथा उनको सताने लगती है।

कवि – परिचय :

जीवन परिचय – ‘निराला” नाम से विख्यात हिन्दी के महान् कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी का जन्म 21 फरवरी, सन् 1896 को वसंत पंचमी के दिन पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में हुआ था। आपके पिता पं. रामसहाय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़कोला गाँव के मूल निवासी थे। वह महिषादल राज्य (बंगाल) में सेवारत थे। युवावस्था आने से पूर्व ही उनको अपने माता-पिता की स्नेहछाया से वंचित होना पड़ा। आपका विवाह मनोरमा देवी के साथ हुआ था। उनकी प्रेरणा से निराला जी में साहित्यिक रुचि जागी किन्तु एक पुत्र तथा एक पुत्री के लालन-पालन का भार निराला जी को सौंपकर वह परलोकवासिनी हो गईं। निराला ने अपना ध्यान रामकृष्ण मिशन तथा स्वामी विवेकानन्द की ओर लगाया। फिर वह कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) छोड़कर लखनऊ आ गए। वहाँ ‘गंगा पुस्तकालय’ माला तथा ‘सुधा’ का सम्पादन किया फिर इलाहाबाद जाकर रहने लगे। यहाँ उनकी विवाहिता पुत्री सरोज का देहावसान हो गया। इससे व्यथित होकर निराला जी ने ‘सरोज स्मृति’ नामक कविता लिखी। यह हिन्दी का श्रेष्ठ शोकगीत है। नियति के इन क्रूर हाथों ने निराला को अस्त-व्यस्त कर दिया। 15 अक्टूबर, सन् 1971 को उनको देहावसान हो गया।

साहित्यक परिचय – निराला हिन्दी काव्य की छायावादी धारा के प्रमुख स्तम्भ थे। छायावाद-रहस्यवाद के साथ ही प्रगतिवाद को भी आपके काव्य में स्थान मिला है। प्रगतिवाद सूक्ष्म के विरुद्ध स्थूल का विद्रोह था। निराला जी उसके सूत्रधार थे। बंगाल की सांस्कृतिक और विद्रोही पृष्ठभूमि उनके साहित्य में व्यंजित हुई है। दलितों और शोषितों के प्रति निराला में गहरी संवेदना है। वह पूँजीवाद, शोषण और सामाजिक अन्याय के प्रबल विरोधी थे। उनकी ‘कुकुरमुत्ता’ शीर्षक कविता में उनका विरोध स्पष्ट देखा जा सकता है। निराला जी की भाषा तत्सम शब्द प्रधान एवं साहित्यिक खड़ी बोली है। उसका दूसरा रूप भी है जिस पर उर्दू तथा बोल-चाल की भाषा का प्रभाव स्पष्ट है। आप मुक्त छंद के प्रवर्तक हैं। कला पक्ष के साथ ही आपके काव्य का भावपक्ष भी अत्युत्तम तथा प्रभावशाली है।।

कृतियाँ – निराला जी ने हिन्दी में गद्य तथा पद्य दोनों ही लिखा है। आपकी कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
अनामिका – निराला जी की छायावादी कविताओं का संग्रह है। उनकी श्रेष्ठ रचना ‘राम की शक्ति पूजा’ तथा ‘सरोज-स्मृति शीर्षक शोकगीत इसी में संकलित है।

तुलसीदास – छायावादी शैली में लिखा गया खण्डकाव्य है। परिमल, गीतिका तथा अपरा-छायावादी कविताओं के संग्रह हैं। कुकुरमुत्ता तथा नये पत्ते निराला की प्रगतिवादी तथा व्यंग्य प्रधान कविताओं के संग्रह हैं। बेला, अर्चना, आराधना की गीत-कुंज आदि। आपकी अन्य महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं।

पाठ – परिचय :

‘राम की शक्ति पूजा’ निराला जी की एक लम्बी तथा प्रसिद्ध रचना है। प्रस्तुत काव्यांश में ऐसी कविताएँ संकलित हैं जिनमें अन्याय पर न्याय, असत् पर सत् तथा अधर्म पर धर्म की विजय का वर्णन किया गया है। अमावस्या की अंधेरी रात थी। राम सागर तट पर विचारमग्न थे। उनका मन बार-बार संशय से हिल उठता था। उनको रावण की जीत होने का भय सता रहा था। राम शत्रु दमन से कभी पीछे नहीं हटे, अविचलित रहे। आज उनका मन असमर्थ होकर हार के लिए उद्यत लगता था। कुछ क्षण मौन रहकर राम ने कोमल स्वर में अपने सहयोगियों से कहा-मित्रवर, यह युद्ध नर, वानर तथा राक्षसों के बीच का नहीं है। महाशक्ति रावण के साथ है। इसमें विजय होना सम्भव नहीं है। जिधर अन्याय है, उधर शक्ति है। यह कहते हुए राम के नेत्र छलछला उठे और दो बूंद आँसू धरा पर टपक पड़े।

समस्त वातावरण में मौन व्याप्त था। लक्ष्मण, हनुमान, सुग्रीव, विभीषण, जाम्बवान सभी चुप थे। राम ने संयत होकर कहा-यह दैवी विधान मेरी समझ से परे है। रावण अधर्म में रत है, तब भी शक्ति उसके पक्ष में है। तब जाम्बवान ने कहा हे राम, विचलित मत हो। तुम भी शक्ति को धारण करो। रावण ने शक्ति की पूजा करके उसको प्राप्त किया है। आराधना का उत्तर अराधना से दो। तुम भी शक्ति की पूजा करो। जब तक सिद्धि प्राप्त न हो, सेना के नायक लक्ष्मण होंगे। जहाँ भय होगा, वहाँ अन्य सभी वीर रक्षा हेतु आगे आयेंगे।

राम शक्ति की पूजा में लीन हो गए, अन्तिम जप था। राम ध्यानमग्न थे। उनको देवी के दोनों चरण दिखाई दिए। उन पर चढ़ाने के लिए नीलकमल उठाने को हाथ बढ़ाया तो वहाँ नील कमल था ही नहीं। स्थान खाली था। राम का ध्यान भंग हो गया। जप के पूरा होने के समय तक आसन छोड़ ही नहीं सकते थे। मन व्याकुल हो उठा। अब सीता का उद्धार कैसे होगा? सहसा उनको स्मरण आया कि माता उनको कमलनयन कहती थी। उनके पास अभी दो नील कमल अर्थात् उनके नेत्र शेष हैं। उन्होंने निश्चय किया कि वह अपना एक नेत्र अर्पित करके जप साधना को पूरा करेंगे। उन्होंने तरकश में से बाण निकाला और अपना दाहिना नेत्र भेदने को तत्पर हुए। ब्रह्माण्ड काँप उठी और तुरन्त देवी प्रकट हुई। साधु, साधु, हे साधक राम, धन्य हो, कहते हुए देवी ने रमि का हाथ पकड़कर रोक दिया। राम ने देखा दुर्गा उनके सामने साक्षात् खड़ी है। उनके दाहिनी ओर लक्ष्मी और गणेश हैं तथा बायीं ओर सरस्वती तथा कार्तिक हैं। राम ने श्रद्धापूर्वक उनके चरण कमलों की वन्दना की। ‘हे पुरुषोत्तम राम’ तुम्हारी जय होगी। यह कहकर वह महाशक्ति राम के शरीर में लीन हो गईं।

पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ

1. है अमानिशा, उगलता गगन घन अन्धकार,
खो रहा दिशा का ज्ञान, स्तब्ध है, पवन-चार,
अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल,
भूधर ज्यों ध्यानमग्न, केवल जलती मशाल।
स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर फिर संशय,
रह रह उठता जग जीवन में रावणजय भय,
जो नहीं हुआ आज तक हृदय रिपुदम्य श्रान्त,
एक भी, अयुत-लक्ष में रहा जो दुराक्रान्त,
कल लड़ने को हो रहा विकल वह बार बार
असमर्थ मानता मन उद्यत हो हार हार।।

शब्दार्थ – अमानिशा = अमावस्या की रात। घन = सघन, घना। पवन चार = गर्मी की हवा। अप्रतिहत = अपराजित, जिसे रोका न जा सके। अम्बुधि = सागर, समुद्र। भूधर = पर्वत। राघवेन्द्र = राम। जय भय = विजयी होने का डर। रिपुदम्य = शत्रु द्वारा पराजित, दमित। श्रान्त = थका हुआ। अयुत = दस हजार की संख्या। लक्ष = लाख। दुराक्रान्त = आक्रमण का लक्ष्य कठिनाई से बनना, जिस पर हमला करना कठिन हो।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘राम की शक्तिपूजा’ शीर्षक कविता से उधृत है। इसके रचयिता महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” हैं। रावण सीता का अपहरण कर मत्त होकर अट्टहास करता है। उसने शक्ति की आराधना कर उनको अपने पक्ष में कर लिया है। राम सागर तट पर अपनी सेना के साथ डटे हैं। रावण के साथ शक्ति को देखकर राम विचलित हो उठते हैं। उनको युद्ध में रावण के विजयी होने का भय सताने लगता है।

व्याख्या – कवि कहता है कि अमावस्या की रात थी। आकाश में पूर्ण अन्धकार छाया हुआ था। दिशाओं को पहचानने में भी कठिनाई हो रही थी। गर्मी की ऋतु में चलने वाली वायु भी नहीं चल रही थी। राम सागर तट पर बैठे हैं। उनके पीछे विशाल सागर बिना रोक-टोक के गर्जना कर रहा है। राम पर्वत के समान ध्यान में लीन हैं। वहाँ एकमात्र मशाल जल रही है। राम शांत हैं किन्तु एक संदेह उनके मन में बार-बार उठकर उनको विचलित कर रहा है। उनको बार-बार रावण का युद्ध में विजयी होने का डर सता रहा है। उनका हृदय आज तक किसी शत्रु से दमित नहीं हुआ, न उसकी शक्ति से थकित हुआ। लाखों-करोड़ों अवसरों पर किसी के समक्ष पराजित नहीं हुआ। किसी को उस पर आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ किन्तु अब रावण के साथ युद्ध करने की बात सोचकर वह बार-बार व्याकुल हो रहा है। राम का मन रावण से हार की सम्भावना जानकर युद्ध के लिए स्वयं को असमर्थ मान रहा है।

विशेष –

  1. कवि ने राम के अन्तर्द्वन्द्व का चित्रण इन पंक्तियों में किया है।
  2. शत्रु का सामना करने में राम कभी पीछे नहीं रहे किन्तु रावण की शक्ति को देखकर उनको अपनी जीत पर संदेह हो रहा है।
  3. तत्सम शब्दावली युक्त साहित्यिक प्रभावपूर्ण खड़ी बोली का कवि ने प्रयोग किया है।
  4. राम की शक्तिपूजा छायावादी काव्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।

2. कुछ क्षण तक रहकर मौन सहज निज कोमल स्वर,
बोले रघुमणि”मित्रवर, विजय होगी न, समर
यह नहीं रहा नर वानर का राक्षस से रण,
उतरी पा महाशक्ति रावण से आमन्त्रण।
अन्याय, जिधर, हैं उधर शक्ति”। कहते छल
छल हो गए नयन कुछ बूंद पुनः ढलके दृगजल,
रुक गया कण्ठ

शब्दार्थ – सहज = स्वाभाविक। रघुमणि = रघुवंश में श्रेष्ठ राम। समर = युद्ध। आमंत्रण = बुलावा। दृग जल = आँसू। कण्ठ = गली।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘राम की शक्ति पूजा’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता छायावादी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला हैं। राम समुद्र तट पर उपस्थित थे। उनकी सेना भी साथ थी। रावण को शक्ति का समर्थन देखकर उनका हृदय सशंकित था। मन में प्रश्न था कि क्या वह राक्षसराज रावण पर विजय प्राप्त कर सकेंगे।

व्याख्या – कवि कहती है कि राम कुछ समय तक चुप रहे। उसके पश्चात् रघुवंश शिरोमणि राम ने अपने स्वाभाविक कोमल स्वर में अपने सहयोगियों से कहा-हे मित्रो! इस युद्ध में हम विजयी नहीं होंगे। यह युद्ध मनुष्यों और वानरों तथा राक्षसों के बीच होने वाला युद्ध नहीं रहा है। इस युद्ध में रावण के आह्वान पर महाशक्ति देवी दुर्गा उसके साथ सम्मिलित हो गई हैं, जो पक्ष अन्याय कर रहा है, महाशक्ति का आशीर्वाद और साथ उसको ही प्राप्त हो रहा है। यह कहते हुए राम के नेत्र छलछला उठे। उनकी आँखों से आँसुओं की कुछ बूंदें धरती पर टपक पड़ीं। उनका गला सँध गया। वह आगे कुछ बोल न सके।

विशेष –

  1. राम अन्याय के विरुद्ध लड़ रहे हैं किन्तु महाशक्ति अन्यायी रावण के साथ हैं। यह देखकर राम व्यथित हो उठते हैं।
  2. कवि ने राम के मन की गहन वेदना का सजीव चित्रण किया है।
  3. पुनरुक्ति प्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार है।
  4. वर्णनात्मक शैली। सजीव, सरल, सशक्त, साहित्यिक खड़ी बोली में कवि ने रचना प्रस्तुत की है।

3. चमका, लक्ष्मण तेजः प्रचण्ड
इँस गया धरा में कपि गह युगपद, मसक दण्ड
स्थिर जाम्बवान, समझते हुए ज्यों सकल भाव,
व्याकुल सुग्रीव, हुआ डर में ज्यों विषम घाव,
निश्चित सा करते हुए विभीषण कार्यक्रम
मौन में रहा यों स्पन्दित वातावरण विषम

शब्दार्थ – प्रचण्ड = तीव्र, प्रबल। युगपद = दोनों पैर। कवि = हनुमान। स्थिर = अविचलित। सकल = सम्पूर्ण। विषम = भयानक। स्पन्दित = प्रकट, व्यक्त।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित “राम की शक्तिपूजा’ शीर्षक कविता से उधृत है। इसके रचयिता सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” हैं। राक्षसराज रावण के साथ महाशक्ति दुर्गा को देखकर राम को अपनी विजय पर शक हो रहा था। उन्होंने अपने मन की यह शंका अपने साथियों के समक्ष प्रकट की। राम की व्यथा इतनी बढ़ी की उनके नेत्रों से आँसू टपकने लगे तथा उनका कंठ अवरुद्ध हो गया।

व्याख्या – कवि कहता है कि राम को व्यथित, व्याकुल देखकर उनके सहयोगी और साथी भी कुछ न बोल सके। प्रबल, तेजस्वी लक्ष्मण को तेज धराशायी हो गया। हनुमान ने राम के दोनों चरण पकड़ लिए। जाम्बवान ने अपने भुजदण्डों को दबाया और अविचलित रहे। समस्त भावों और स्थितियों को समझते हुए सुग्रीव व्याकुल हो उठे। राम की यह अवस्था देखकर कार्यक्रम निश्चित-सा करते हुए जैसे विभीषण के हृदय को गहरी चोट लगी। कोई कुछ भी बोल नहीं रहा था। इस प्रकार वहाँ के असामान्य वातावरण पर मौन छा रहा था। वातावरण की असामान्य अवस्था को वहाँ का मौन व्यक्त कर रहा था। आशय यह है कि सभी को चुप देखकर लग रहा था कि वातावरण सामान्य नहीं है।

विशेष –

  1. धीरज धनी राम को विचलित और व्यथित देखकर उनके साथी भी कुछ कह नहीं पा रहे थे।
  2. कवि ने वातावरण की विषमता से राम के सभी साथियों को प्रभावित दिखाया है।
  3. भाषा तत्सम शब्दावली युक्त साहित्य खड़ी बोली है।
  4. शैली चित्रात्मक है। कविता प्रबन्ध शैली में रचित है।

4. निज सहज रूप में संयत हो जानकीप्राण
बोले “आया न समझ में यह दैवी विधान। रावण,
अधर्मरत भी, अपना, मैं हुआ अपर, यह रहा,
शक्ति का खेल समर, शंकर शंकर।
करता मैं योजित बार-बार शरनिकर निश्चित,
हो सकती जिनसे यह संसृति सम्पूर्ण विजित,
जो तेज, पुंज, सृष्टि की रक्षा का विचार,
है, जिनमें निहित पतन घातक संस्कृति अपार

शब्दार्थ – संयत = शान्त, नियंत्रित। जानकी प्राण = राम। दैवी = ईश्वरीय। विधान = नियम। अथर्मरत = अकर्तव्य करने वाला, अनाचारी। अपर = पराया। योजित = प्रयोग। शरनिकर = बाणों का समूह। निशित = तीव्र, पैने। संसृति = सृष्टि, संसार। विजित = पराजित। भीषण = भयानक।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘राम की शक्ति पूजा’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” हैं। महाशक्ति को रावण के साथ देखकर राम को उसके साथ युद्ध में अपनी विजय पर संदेह होने लगा था। वह अत्यन्तै व्याकुल थे। अपने मन की व्याकुलता को उन्होंने अपने साथियों के समक्ष व्यक्त किया।

व्याख्या – कवि कहता है कि राम व्यथित थे किन्तु उन्होंने स्वयं को नियंत्रित किया। वह संयमित न होकर अपने स्वाभाविक रूप में आ गए। वह कहने लगे कि यह विधि का कैसा विचित्र नियम है कि जो रावण अन्याय का पक्ष ग्रहण किए हुए है, महाशक्ति उसके साथ है। वह अधर्म में लगा है तब भी अपना है। मैं पराया हो गया हूँ। यह युद्ध शक्ति का भयंकर खेल बन गया है। मैं बार-बार शान धरे हुए पैने बाणों को धनुष पर चढ़ाता हूँ। इनकी प्रबल शक्ति से इस सम्पूर्ण धरती को जीता जा सकता है। इनके तेज में सृष्टि की रक्षा का विचार है। इनमें पतन का विनाश करने वाली अपार संस्कृति विद्यमान है। आशय यह है कि राम के पैने बाण पतन की संरक्षक शक्तियों का विनाश करने में समर्थ हैं। किन्तु महाशक्ति के रावण के साथ होने के कारण वह ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।

विशेष –

  1. राम को अपनी शक्ति पर विश्वास है। वह रावण को पराजित कर सकते हैं किन्तु महाशक्ति का सहयोग रावण को प्राप्त होने से ऐसा होना सम्भव नहीं है।
  2. राक्षस और अधर्मी रावण अपना बन गया है और राम अपने होकर भी पराये हो गये हैं।
  3. भाषा भावाभिव्यक्ति में सफल, साहित्यिक खड़ी बोली है।।
  4. अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। शैली प्रबन्धात्मक है।

5. कह हुए भानुकुलभूषण वहाँ मौन क्षण भर,
बोले विश्वस्त कण्ठ से जाम्बवान, रघुवर,
विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण,
हे पुरुषसिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण,
आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर,
तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर।
रावण अशुद्ध होकर भी यदि कर सकता त्रस्त
तो निश्चय तुम हो सिद्ध करोगे उसे ध्वस्त,
शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन।
छोड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो, रघुनन्दन।

शब्दार्थ – भानुकुलभूषण = सूर्यवंश में श्रेष्ठ राम। विश्वस्त = विश्वास से भरा हुआ, संशयविहीन । आराधना = पूजा । वरो = प्राप्त करो। संयत प्राणों से = मन से, संशय दूर करके, मन में संयम और विश्वास भरकर । त्रस्त = सताना या आतंकित करना । हो सिद्ध = सिद्धि प्राप्त करके । ध्वस्त = परास्त ।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ द्वारा रचित प्रबन्ध काव्य ‘राम की शक्तिपूजा’ से उद्धृत है। राम महाशक्ति दुर्गा का रावण को सहयोग और समर्थन देखकर अत्यन्त व्याकुल थे। उनको रावण के साथ होने वाले युद्ध में अपनी विजय पर संदेह हो रहा था । यह बात राम ने अपने साथियों को बताई। सभी मौन थे। तब जाम्बवान ने गम्भीर होकर राम को शक्ति की पूजा करने का परामर्श दिया।

व्याख्या – निराला कहते हैं कि अपने सहयोगियों से बातें करते-करते राम क्षणभर चुप रहे। उसी समय जाम्बवान ने पूर्ण आत्मविश्वास से भरे हुए कंठ से उनसे कहा-हे राम ! आप विचलित न हों । आपके द्वारा इस प्रकार आत्मविश्वास. खोकर व्याकुल होने का कोई कारण मुझको दिखाई नहीं दे रहा है। हे सिंह के समान पराक्रमी राम! आप भी शक्ति धारण करें। आप महाशक्ति की आराधना करें। रावण ने महाशक्ति की पूजा करके इसको प्रसन्न किया है और रावण को उसका आशीर्वाद प्राप्त हो गया है। आप भी महाशक्ति देवी दुर्गा की पूजा करके पूजा की उत्तर पूजा से दो। देवी का आशीर्वाद आपको अवश्य प्राप्त होगा। आप अविचलित रहकर रावण पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। यदि रावण अन्याय का पक्षपाती होकर आतंक पैदा कर सकता है तो इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आप देवी की सिद्धि प्राप्त करके उसे परास्त करेंगे। अपने मन में शक्ति की प्रतीक दुर्गा को शत्रु की दमन करने वाले मूल स्वरूप की कल्पना कीजिए और उसकी पूजा कीजिए जब तक देवी की सिद्धि आपको प्राप्त न हो, तब तक युद्ध का दायित्व छोड़ दीजिए।

विशेष –

  1. इन पंक्तियों में जाम्बवान के आत्मविश्वास से परिपूर्ण परामर्श का वर्णन है।
  2. जाम्बवान धीर-गम्भीर हैं तथा राम के मन से निराशा को दूर करना चाहते हैं।
  3. आशावाद का प्रबल संदेश है।
  4. भाषा संस्कृतनिष्ठ, शुद्ध-साहित्यिक खड़ी बोली है।
  5. ओज गुण है, वीर रस है। अनुप्रास, रूपक अलंकार हैं।

6. तब तक लक्ष्मण हैं, महावाहिनी के नायक,
मध्य मार्ग में अंगद, दक्षिण श्वेत सहायक। मैं,
भल्ल सैन्य, हैं वाम पाश्र्व में हनुमान, नल,
नील और छोटे कपिगण, उनके प्रधान। सुग्रीव,
विभीषण, अन्य यूथपति यथासमय
आयेंगे रक्षा हेतु जहाँ भी होगा भय।

शब्दार्थ – महावाहिनी = महासेना । नायक = सेनापति । भल्ल सैन्य = भालू सेना। वाम = बायाँ। पाश्र्व = तरफ, दिशा। यूथपति = दल का स्वामी, नायक।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘राम की शक्ति पूजा’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ हैं। भालू सेना में प्रमुख जाम्बवान ने राम को महाशक्ति की आराधना करके उनको प्रसन्न करने का परामर्श दिया। महाशक्ति का आशीर्वाद लेकर राम अपनी अपूर्व शक्ति से रावण का संहार करने में समर्थ होंगे। उन्होंने कहा कि जब तक उनको सिद्धि प्राप्त न हो, वह युद्ध से विरत रहें।

व्याख्या – भल्ल सेना के अधिपति जाम्बवान ने राम को परामर्श दिया कि वह महाशक्ति की साधना में जुट जायें तथा युद्ध से अलग रहें। जब तक उनको सिद्धि प्राप्त न हो, तब तक राम की सेना के प्रधान सेनापति लक्ष्मण होंगे। उसके मध्य भाग में अंगद उसका मार्गदर्शन करेंगे। सेना के दक्षिणी भाग में अपनी भालू सेना के साथ स्वयं जाम्बवान सहायता करेंगे। बायीं ओर हनुमान, नल, नील, छोटे-छोटे वानर सैनिक रहेंगे। वानर-सेना के प्रधान सुग्रीव, विभीषण तथा अन्य दलपति, जब भी तथा जहाँ कोई संकट उपस्थित होगा, तो आगे आयेंगे तथा सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे।

विशेष –

  1. जाम्बवान ने राम को निराशा त्यागकर महाशक्ति की आराधना करने को कहा। राम की अनुपस्थिति में सैन्य संचालन कैसे होगा, इसका भी पूरा विवरण उनको बताया।
  2. उपर्युक्त पंक्तियों से जाम्बवान की गम्भीरता, विचारशीलता, सैन्य संचालन को ज्ञान तथा दृढ़ता प्रकट होती है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ, साहित्यिक खड़ी बोली है। वह वर्णित विषय के अनुकूल है।
  4. वीर रस, ओज गुण तथा अनुप्रास अलंकार है।

7. यह अन्तिम जप, ध्यान में देखते चरण युगल
राम ने बढ़ाया कर लेने को नीलकमल।
कुछ लगा न हाथ, हुआ सहसा स्थिर मन चंचल,
ध्यान की भूमि से उतरे, खोले पलक विमल।
देखा, वहाँ रिक्त स्थान, यह जप का पूर्ण समय,
आसन छोड़ना असिद्धि भर गए नयनद्वय,
‘‘धिक् जीवन को जो पाता ही आया है विरोध,
धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध
जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका,
वह एक और मन रहा राम का जो न थका।
जो नहीं जानता दैन्य नहीं जानता विनय,
कर गया भेद वह मायावरण प्राप्त कर जय।

शब्दार्थ – चरण युगल = देवी दुर्गा के दोनों पैर। चंचल = विचलित, अस्थिर। रिक्त = खाली। आसन = पूजा का स्थान। असिद्धि = असफलता। धिक् = धिक्कार । शोध = छानबीन, प्रयास । दैन्य = दीनता। मायावरण = माया का पर्दा ।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘राम की शक्ति पूजा’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ हैं। राम ने महाशक्ति की पूजा का निश्चय किया। वह पूजा के आसन पर विराजमान हो गए। राम देवी के चरणों पर नीलकमल अर्पित करना चाहते थे। जो उनके सामने ही पूजन सामग्री के साथ रखे थे किन्तु माया के प्रभाव से एक नील कमल गायब हो गया था।

व्याख्या – कवि कहते हैं कि राम देवी की पूजा में लीन थे। वह ध्यानमग्न थे तथा मंत्र जाप कर रहे थे। अन्तिम जप का समय आया । ध्यानावस्था में राम को देवी दुर्गा के दोनों चरण दिखाई दिए। राम उन पर नीलकमल चढ़ाना चाहते थे। उन्होंने हाथ आगे बढ़ाकर नीलकमल लेना चाही परन्तु उनके हाथ में कुछ नहीं आया। अचानक उनका ध्यान भंग हो गया और मन अस्थिर हो उठा । उनकी निर्मल पलकें खुल गईं। राम ने देखा कि वहाँ नील कमल नहीं था। जहाँ वह रखा था वह स्थान खाली था। यह जप के पूर्ण होने का समय था। उस समय वह आसन छोड़कर उठा नहीं सकते थे। ऐसा करने से जप भंग हो जाता तथा सिद्धि प्राप्त नहीं होती। इस बाधा को देखकर राम के दोनों नेत्र डबडबा आए। वह सोचने लगे- इस जीवन में उनको सदा विरोध ही झेलना पड़ा है। सफलता के सपनों की खोज में उनको कठिन प्रयास करने पड़े हैं। ऐसा जीवन तथा ऐसे साधन धिक्कार के योग्य हैं। तब उनका ध्यान सीता की ओर गया। वह यह सोचकर दु:खी हो उठे कि अब उनकी प्रिया सीता की रावण से मुक्ति नहीं हो सकेगी किन्तु राम का मन थकना नहीं जानता। उसमें दीनता का भाव नहीं रहता। वह बाधाओं के सामने झुकना नहीं जानता। उसने माया के पर्दे को चीरकर विजय का मार्ग तलाश लिया।

विशेष –

  1. राम ध्यानमग्न थे, महाशक्ति की पूजा कर रहे थे।
  2. देवी को समर्पित करने के लिए सामने रखे नीलकमलों से एक माया ने गायब कर दिया था। यह राम की परीक्षा का समय था।
  3. राम के मन की दृढ़ता, अदैन्य तथा अथक शक्ति का कवि ने वर्णन किया है।
  4. भाषा संस्कृतनिष्ठ, साहित्यिक खड़ी बोली है।
  5. शैली वर्णनात्मक तथा प्रबन्धात्मक है।

8. बुद्धि के दुर्ग पहुँचा विद्युतगति हतचेतन
राम में जगी स्मृति हुए सजग पा भाव प्रमन।
“यह है उपाय”, कह उठे राम ज्यों मन्द्रित घन।
“कहती थीं माता, मुझको सदा राजीवनयन।
दो नील कमल हैं शेष अभी, यह पुरश्चरण
पूरा करता हूँ देकर मात एक नयन।

शब्दार्थ – विद्युत गति = बिजली के समान तेज चाल। हत चेतन = चेतनाहीन, जिसकी चेतना नष्ट हो गई है। सजग = सावधान। राजीव = कमल । राजीव नयन = कमल के समान नेत्रों वाला। पुरश्चरण = कार्य सिद्धि के लिए मंत्रों का जाप । मात = माता । मन्द्रित = गम्भीर।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘राम की शक्ति पूजा’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ हैं। एक नीलकमल को माया ने उठा लिया था। जप के पूर्ण होने के समय यह व्यवधान राम की सिद्धि प्राप्ति में बाधा था किन्तु राम के मन में दीनता नहीं थी। उन्होंने निश्चय किया कि वह अपना एक नेत्र अर्पित कर माता को प्रसन्न करेंगे।

व्याख्या – कवि कहते हैं कि नीलकमल अपने स्थान पर नहीं था। इस बाधा से मुक्ति कैसे हो ? सहसा उनका चेतन विहीन मन तीव्र गति से बुद्धि के किले में प्रविष्ट हो गया। आशय यह है कि राम ने इस व्यवधान से मुक्त होने का उपाय तेजी के साथ सोचना आरम्भ किया। यकायक राम को याद आया कि बचपन में माता कौशल्या उनको कमल नयन कहा करती थीं। यकायक गम्भीर घन गर्जना के समान राम के मुख से निकला यही उपाय है जिससे नीलकमल के अभाव में पूर्ति की जा सकती है। राम ने सोचा कि अभी उनके पास दो नीलकमल अर्थात् उनके नेत्र शेष हैं। वह अपना एक नेत्र महाशक्ति के चरणों में अर्पित कर। अन्तिम जप को पूरा करेंगे।

विशेष –

  1. राम के नेत्र कमल के समान हैं। वह अपना एक नेत्र देकर नीलकमल के अभाव की पूर्ति करना चाहते हैं।
  2. सिद्धि प्राप्त करने के लिए राम का दृढ़ निश्चय व्यक्त हुआ है।
  3. अनुप्रास, रूपक अलंकार, वीररस, ओजगुण है।
  4. संस्कृतनिष्ठ, साहित्यिक खड़ी बोली है।

9. कहकर देखा तूणीर ब्रह्मशर रहा झलक,
ले लिया हस्त लक लक करता वह महाफलक।
ले अस्त्र वाम कर दक्षिण कर दक्षिण लोचन
ले अर्पित करने को उद्यत हो गए सुमन ।
जिस क्षण बँध गया बेधने को दुग दृढ़ निश्चय
काँपा ब्रह्माण्ड, हुआ देवी का त्वरित उदय।
“साधु साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम”।
कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।।

शब्दार्थ – तूरीण = तरकश। ब्रह्मशर = ब्रह्मास्त्र। लक लक करता = तेजी के साथ झिलमिलाता। हस्त = हाथ। महाफलक = तीर का आगे का भाग। बाम = बायाँ । दक्षिण = दायाँ । लोचन = नेत्र। उद्यत = तत्पर । सुमन = सुन्दर मन वाले राम। दृग = नेत्र। त्वरित = शीघ्र। उदय = प्रकट होना।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘राम की शक्ति पूजा’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। नीलकमल के अभाव की पूर्ति के लिए राम ने अपना एक नेत्र अर्पित करने का निश्चय किया। आसन से उठे बिना ही राम यह कार्य सफलतापूर्वक कर सकते थे।

व्याख्या-कवि कहते हैं कि राम ने अपने तरकश की ओर देखा तो उसमें रखा हुआ ब्रह्मास्त्र प्रकाश की किरण पड़ने के कारण जगमगा रहा था। उस चमचमाते हुए ब्रह्मास्त्र को राम ने अपने हाथ में ले लिया। उनके दायें हाथ में ब्रह्मास्त्र था तथा बायें हाथ से वह अपना दाहिना नेत्र पकड़े हुए थे। सुन्दर मन वाले राम अपना दाहिना नेत्र अथवा सुन्दर पुष्प देवी के चरणों में अर्पित करने के लिये तत्पर थे। जिस क्षण उन्होंने अपने नेत्र को बाण से बेधने का पक्का विचार किया तो समस्त ब्रह्माण्ड काँपने लगा। शीघ्र ही महाशक्ति माता दुर्गा राम के सामने साक्षात प्रकट हो गईं। माता दुर्गा ने कहा-हे धर्म के धनी राम, तुम धन्य हो। तुम गम्भीर उपासक हो। तुम साधुवाद के पात्र हो। यह कहते हुए देवी ने राम का हाथ पकड़ लिया।

विशेष –

  1. राम ने अपना एक नेत्र अर्पित कर जप पूर्ण करने का निश्चय किया। राम की दृढ़ता देखकर देवी दुर्गा तुरन्त प्रकट हुईं। एक्सीलैण्ट हिन्दी साहित्यिक कक्षा-1279
  2. राम का भगवती के प्रति समर्पण तथा देवी का उनके प्रति वात्सल्य का चित्रण हुआ है।
  3. भाषा विषयानुकूल, सरस और साहित्यिक है।
  4. अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, श्लेष अलंकार है, ओज गुण है।

10. देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर
वामपद असुर स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।
ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,
मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित ।
है दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,
दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,
मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर
श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन कर।।
“होंगी जय होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन।”
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

शब्दार्थ – भास्वर =दीप्तिमय, आभासित। असुर राक्षस। स्कन्ध = कंधा। हरि = सिंह। सज्जित = सुशोभित । स्मित = मुस्कान। श्री = शोभा । प्रणत = प्रणाम के लिए झुकना। वन्दन = स्तुति।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ कृत ‘राम की शक्तिपूजा’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। यह कविता हमारी पाठ्यपुस्तक से संकलित है । राम ने निश्चय किया कि वह नीलकमल के स्थान पर अपना एक नेत्र अर्पित करे जप पूर्ण करेंगे। वह अपने तूरीण से शर लेकर अपना नेत्र निकालने के लिए तत्पर हुए कि देवी दुर्गा प्रकट हुई और उनका हाथ थाम लिया।

व्याख्या – कवि कहते हैं कि राम ने देखा कि सामने श्रीदुर्गा की देदीप्यमती मूर्ति है। भगवती दुर्गा साकार सामने उपस्थित हैं। उनका बायाँ पैर असुर के कंधे पर है तथा दायाँ पैर सिंह के ऊपर रखा है उनका स्वरूप प्रकाशमय है। उनके दशों हाथों में तरह-तरह के अस्त्र । शोभा पा रहे हैं। उनके मुख पर मंद-मंद मुस्कान है। उनकी यह अनुपम शोभा संसार की समस्त सुषमा को लज्जित करने वाली है। भगवती दुर्गा के बाईं ओर सरस्वती हैं तथा दायीं ओर लक्ष्मी हैं। उनके दाहिने पाश्र्व में गणेश हैं तथा वाम पार्श्व में कुमार कार्तिक हैं। भयंकर युद्ध राग गुंजित हो रहा है। राम भगवती के इस स्वरूप को देखकर श्रद्धा से भर उठे। उन्होंने उनके चरण कमल की वन्दना की तथा विनम्रतापूर्वक प्रणाम किया। प्रसन्न हो महाशक्ति भगवती दुर्गा ने उनको विजय का आशीर्वाद दिया- ‘हे पुरुष श्रेष्ठ, तुम्हारी जय होगी, वे यह कहते हुए महाशक्ति राम के शरीर में प्रवेश कर गईं।

विशेष –

  1. महाशक्ति दुर्गा के प्रकट होने तथा राम को विजय का आशीर्वाद देने का वर्णन किया गया है।
  2. भगवती दुर्गा के स्वरूप का भव्य चित्रण किया गया है।
  3. ओजगुण है, अनुप्रास, यमक अलंकार हैं।
  4. सजीव, ओजपूर्ण, साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

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