RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 15 भारत की प्राकृतिक वनस्पति एवं मृदाएँ। are part of RBSE Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 15 भारत की प्राकृतिक वनस्पति एवं मृदाएँ।.
Board | RBSE |
Textbook | SIERT, Rajasthan |
Class | Class 9 |
Subject | Social Science |
Chapter | Chapter 15 |
Chapter Name | भारत की प्राकृतिक वनस्पति एवं मृदाएँ। |
Number of Questions Solved | 69 |
Category | RBSE Solutions |
Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 15 भारत की प्राकृतिक वनस्पति एवं मृदाएँ।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार देश के भौगोलिक क्षेत्रफल के कितने प्रतिशत भाग पर वन आवश्यक हैं ?
(अ) 22 प्रतिशत
(ब) 33 प्रतिशत
(स) 10 प्रतिशत
(द) 20 प्रतिशत
उत्तर:
(ब) 33 प्रतिशत
प्रश्न 2.
सदाबहार वन कितनी वर्षा वाले भागों में पाये जाते
(अ) 100 सेन्टीमीटर
(ब) 50 सेन्टीमीटर
(स) 200 सेन्टीमीटर
(द) 100 से 150 सेमी.
उत्तर:
(स) 200 सेन्टीमीटर
प्रश्न 3.
भारतीय वन अनुसंधान संस्थान स्थित है
(अ) जयपुर
(ब) मसूरी
(स) नागपुर
(द) देहरादून
उत्तर:
(द) देहरादून
प्रश्न 4.
खेजड़ली आन्दोलन का नेतृत्व किसने किया था ?
(अ) अमृता देवी
(ब) रामो जी
(स) खेजड़ी देवी
(द) सभी गलत
उत्तर:
(अ) अमृता देवी
प्रश्न 5.
भारत में कपास की कृषि के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मृदा है
(अ) पर्वतीय
(ब) काली
(स) लाल
(द) लैटेराइट
उत्तर:
(ब) काली
प्रश्न 6.
भारत में काली मिट्टी है
(अ) विस्थापित
(ब) दलदली
(स) लावा जन्य
(द) विक्षालन जन्य
उत्तर:
(स) लावा जन्य
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ज्वारीय वन पाये जाने वाले दो क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ज्वारीय वन प्रायद्वीपीय नदियों के मुहानों व गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टाओं में मिलते हैं।
प्रश्न 2.
भारत के संविधान के अनुसार वनों की कितनी श्रेणियाँ बताई गई हैं ?
उत्तर:
भारत के संविधान के अनुसार वनों की तीन श्रेणियाँ बताई गई हैं
- राजकीय वन
- सामुदायिक वन
- व्यक्तिगत वन।
प्रश्न 3.
राजस्थान में सदाबहार वन कहाँ पर मिलते हैं?
उत्तर:
राजस्थान में सदाबहार वन आबू पर्वतीय क्षेत्र में पाये जाते हैं।
प्रश्न 4.
जैव विविधता किसे कहते हैं ?
उत्तर:
किसी प्राकृतिक प्रदेश में मिलने वाले पालतू व जंगली जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति की विभिन्नता की बाहुल्यता को जैव विविधता कहते हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जैव विविधता विनाश के कारणों को बताइए।
उत्तर:
जैव विविधता का विनाश मुख्यत: बड़े बाँधों के निर्माण, औद्योगीकरण, सघन खेती, बढ़ती आबादी हेतु आवास व भोजन आदि की आवश्यकता के कारण हुआ है।
प्रश्न 2.
वन्य जीवों के संरक्षण के उपाय लिखिए।
उत्तर:
वन्य जीवों के संरक्षण हेतु मुख्य उपाय निम्न हैं
- शिकार पर पूर्णतः प्रतिबन्ध।
- प्राकृतिक आवास की उपलब्धता।
- वन्य-जीव संरक्षण कानून बनाना एवं उनका कठोरतापूर्वक क्रियान्वयन
- जन चेतना का प्रसार व जने भागीदारी का निर्धारण
प्रश्न 3.
पर्यावरण चेतना के बारे में लिखी बातों को बताइए।
उत्तर:
भारत में वैदिक काल से ही पर्यावरण के प्रति जागरूकता रही है। भारतीय ऋषियों ने प्राकृतिक शक्तियों को देवता तुल्य माना है। अथर्ववेद के ‘भूमिसूक्त’ में पर्यावरण चेतना, ऋग्वेद में जल की शुद्धता व यजुर्वेद में प्रकृति तत्वों को देवताओं के समान आदर देने की बात कही गयी है। वैदिक उपासनाओं में प्राकृतिक तत्वों का समावेश मिलता। है। महाभारत व रामायण में वृक्षों के प्रति श्रद्धा दर्शायी गयी। है, विभिन्न पुराणों में वृक्षों के काटने को अपराध मानकर दण्ड का प्रावधान भी बताया गया है। पृथ्वी को माता मानकर व एक वृक्ष लगाने से सौ पुत्रों के समान पुण्य की कल्पना की गयी थी।
प्रश्न 4.
राजस्थान के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानों व अभयारण्यों के बारे में लिखिए।
उत्तर:
राजस्थान के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान व अभयारण्य स्थानीय जीव-जन्तुओं के साथ-साथ बाहरी पक्षियों के आवास स्थल हैं। विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर विश्व विरासत सूची में शामिल होने के साथ साइबेरियन सारस के लिए प्रसिद्ध हैं। रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान बाघों के लिए प्रसिद्ध है। राष्ट्रीय मरु उद्यान, जैसलमेर वन्य जीवों के साथ जीवाश्मों के संरक्षण हेतु प्रसिद्ध है। अलवर का सरिस्का अभयारण्य व मुकुन्दरा हिल्स अभयारण्य, कोटा भी वन्य जीवों के संरक्षण के कारण प्रसिद्ध हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में वनों के प्रकार व संरक्षण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में पाये जाने वाले वनों को निम्न प्रकारों में बाँटा गया है-
1. सदाबहार वन – जहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 200 सेमी. से अधिक व औसत तापमान 24° से.ग्रे. तक मिलता वहाँ सदाबहार वन मिलते हैं। इन वनों के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं
- पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल
- अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह
- उत्तरी-पूर्वी भारत के तराई क्षेत्र प्रमुख वृक्ष प्रजातियों के रूप में आम, ताड़, बाँस, महोगनी, एबोनी मुख्य हैं।
2. पतझड़ या मानसूनी वन – ये 100-200 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में विंध्याचल, सतपुड़ा, छोटा नागपुर का पठार व असम की पहाड़ियों में पाये जाते हैं। साल, सागवान, नीम, चंदन, रोजवुड, आँवला व शहतूत आदि प्रमुख वृक्ष प्रजातियाँ
3. शुष्क वन – ये 50-100 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्रों के रूप में दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान व दक्षिणी-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिलते हैं। कीकर, बबूल, नीम, महुआ, खेजड़ी, करील प्रमुख वृक्ष हैं।
4. मरुस्थलीय वन – ये 50 सेमी. से कम वर्षा वाले पश्चिमी राजस्थान, दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब, गुजरात व मध्य प्रदेश में मिलते हैं। इनमें नागफनी, रामबांस, खेजड़ी, खैर, खजूर आदि मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ हैं।
5. ज्वारीय वन – ये वन प्रायद्वीपीय नदियों के मुहानों व गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टाई भागों में मिलते हैं। ताड़, नारियल, हैरोटीरिया, राइजोफोरा व सोनेरेशिया आदि मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ
6. पर्वतीय वन – ये वन भारत के दक्षिणी पर्वतीय क्षेत्रों, यथा-महाबलेश्वर व पंचमढ़ी में पाये जाते हैं। ऊँचाई के साथ वृक्ष प्रजातियाँ बदलती जाती हैं। यूजेनिया, मिचेलिया, रोडेनड्रांस, देवदार, स्पूस, चीड़, सिल्वर फर, बर्च, जूनिपर आदि प्रमुख वृक्ष प्रजाति हैं। भारत में मिलने वाले वनस्पति के इस स्वरूप को मानचित्र की सहायता से प्रदर्शित किया गया है।
वन संरक्षण – भारत में वन संरक्षण की सबसे पहली वने नीति 1894 ई. में अपनायी गई। स्वतन्त्रता के पश्चात् 31 मई 1954 को राष्ट्रीय वन नीति घोषित की गई। 1988 ई. में नवीन वन नीति घोषित कर भूमि के 33 प्रतिशत भाग पर वन आवश्यक माने गये। सरकार द्वारा सामाजिक वानिकी, राष्ट्रीय उद्यानों व अभयारण्यों की स्थापना एवं वन अनुसंधान संस्थानों आदि की स्थापना कर वन संरक्षण की दिशा में उचित कदम उठाये गये हैं। साथ ही वानिकी पंडित एवं वृक्ष मित्र पुरस्कारों के द्वारा लोगों को वन संरक्षण हेतु प्रेरित किया जा रहा है।
प्रश्न 2.
राजस्थान के वनों के प्रकार व वन्य जीवों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान के वनों को भौगोलिक आधार पर अग्रांकित भागों में बाँटा गया है-
1. उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन – ये वन राजस्थान के पश्चिमी शुष्क व अर्द्धशुष्क मरुस्थलीय प्रदेशों में मिलते हैं। ऐसे वनों में पेड़ों का आकार छोटा व झाड़ियों की अधिकता मिलती है। खेजड़ी, रोहिड़ा, बेर, कैर, थोर प्रमुख वृक्ष हैं। खेजड़ी को मरुस्थल का कल्पवृक्ष भी कहते हैं। इस वनस्पति में सेवण, धामण घास भी पायी जाती है।
2. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन – ये वन 50-100 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। जो राजस्थान के मध्य, दक्षिणी वे दक्षिणी-पूर्वी भागों में बहुलता से मिलते हैं। इन वनों को शुष्क सागवान, सालर, बाँस, धोंकड़ा, पलाश, खैर, बबूल व मिश्रित पर्णपाती वनों में विभाजित किया गया है।
3. उपोष्ण पर्वतीय वन – इस प्रकार के वन केवल आबू पर्वतीय क्षेत्र में पाये जाते हैं। इनमें सदाबहार एवं अर्द्धसदाबहार वनस्पति सघन रूप में मिलती है। वर्ष भर हरे-भरे रहने वाले ये वन आम, बाँस, नीम, सागवान के वृक्षों को दर्शाते हैं।
राजस्थान के वन्य जीव – राजस्थान वन्य जीवों की प्रादेशिक विविधता वाला क्षेत्र है। यहाँ के मुख्य वन्य जीवों में बाघ, चीतल, सांभर, चिंकारा, काला हिरण, भेड़िया, रीछ, लोमड़ी शामिल हैं। साथ ही कुरजां व गोडावन राजस्थान के मुख्य वन्य पक्षी हैं। बाघ मुख्यत: रणथम्भौर व सरिस्का अभयारण्यों में मिलते हैं जबकि काले हिरण तालछापर (चूरू) में, कुरजां पक्षी जोधपुर के लॊचन क्षेत्र में और गोडावन पश्चिमी राजस्थान में मिलता है।
प्रश्न 3.
राजस्थान की मिट्टियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान की मृदाओं को मिट्टी के रंग, गठन व उपजाऊपन के आधार पर छ: वर्गों में बाँटा गया है जो निम्न हैं
1. मरुस्थलीय मिट्टी – राजस्थान के पश्चिमी जिलों में मिलने वाली यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है। जिसका निर्माण भौतिक दशाओं से हुआ है। जल धारण क्षमता की कमी, लवणता की अधिकता, उपजाऊ तत्वों की कम मात्रा व पवनों के द्वारा होने वाला स्थानान्तरण इस मृदा की मुख्य विशेषता है।
2. लाल-पीली मिट्टी – यह मृदा ग्रेनाइट, नीस व शिष्ट चट्टानों के विखण्डन से बनती है। इसमें चूना व नाइट्रोजन की कमी के लौह-अंश के कारण इसका रंग लाल-पीला होता है। यह मिट्टी सवाईमाधोपुर, सिरोही, राजसमन्द, उदयपुर व भीलवाड़ा में मिलती है।
3. लैटेराइट मिट्टी – यह मिट्टी प्राचीन स्फट्कीय कायान्तरित चट्टानों से बनी है। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, ह्युमस की कमी मिलती है। यह मिट्टी डूंगरपुर, उदयपुर के मध्य व दक्षिणी भागों व दक्षिणी राजसमन्द में मिलती है। यह मक्का, चावल व गन्ने हेतु उपयुक्त है।
4. मिश्रित लाल व काली मिट्टी – चूना, फॉस्फोरस व नाइट्रोजन की कमी वाली इस मिट्टी में चीका की अष्टि किता मिलती है। यह मिट्टी बांसवाड़ा, डूंगरपुर, पूर्वी उदयपुर, चित्तौड़गढ़ व भीलवाड़ा जिलों में मिलती है। कपास, गन्ना व मक्का के दृष्टिकोण से यह मिट्टी उपयोगी
5. काली मिट्टी – चीका प्रधान दोमट इस मिट्टी में कैल्शियम व पोटाश पर्याप्त मात्रा में मिलता है। यह मिट्टी राज्य के दक्षिणी-पूर्वी जिलों-कोटा, बूंदी, बारां व झालावाड़ में मिलती है। इस उपजाऊ मिट्टी में गन्ना, धनिया, चावल, सोयाबीन, प्रचुर मात्रा में उत्पादित होते हैं।
6. कछारी मिट्टी – हल्के भूरे लाल रंग की यह मिट्टी नाइट्रोजन की कमी व चूना, फॉस्फोरस, पोटाश व लौह अंश की पर्याप्तता को दर्शाती है। यह मिट्टी हनुमानगढ़, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, दौसा, जयपुर, टोंक व श्री गंगानगर में मिलती है। गेहूँ, सरसों, कपास व तम्बाकू के लिए यह एक उपयोगी मिट्टी है।
आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत के मानचित्र में सदाबहार व ज्वारीय वनों के क्षेत्र दर्शाइए।
उत्तर:
भारत में सदाबहार व ज्वारीय वनों के क्षेत्र को अंग्र मानचित्र की सहायता से दर्शाया गया है-
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सुन्दरी वृक्ष किस प्रकार के वनों में मिलता है
(अ) सदाबहार वनों में
(ब) शुष्क वनों में
(स) ज्वारीय वनों में
(द) पर्वतीय वनों में
उत्तर:
(स) ज्वारीय वनों में
प्रश्न 2.
अल्पाइन वनस्पति कहाँ मिलती है(अ) मैदानों में
(ब), मरुस्थलों में
(स) समुद्र तटों में
(द) पर्वतीय प्रदेशों में
उत्तर:
(द) पर्वतीय प्रदेशों में
प्रश्न 3.
विश्व का अकेला देश जहाँ शेर तथा बाघ दोनों मिलते
(अ) कनाडा
(ब) कांगो
(स) भारत
(द) ऑस्ट्रेलिया
उत्तर:
(स) भारत
प्रश्न 4.
मरुस्थल का कल्पवृक्ष किसे कहते हैं
(अ) धौकड़ा को
(ब) खेजड़ी को
(स) रोहिड़ा को
(द) खैर को
उत्तर:
(ब) खेजड़ी को
प्रश्न 5.
भारत में नवीन वन नीति कब घोषित की गई
(अ) 1982 में
(ब) 1984 में
(स) 1986 में
(द) 1988 में
उत्तर:
(द) 1988 में
प्रश्न 6.
जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान कहाँ पर स्थापित है|
(अ) उत्तराखंड में
(ब) असम में
(स) हिमाचल प्रदेश में
(द) कर्नाटक में
उत्तर:
(अ) उत्तराखंड में
प्रश्न 7.
राजस्थान का राज्य पक्षी कौन-सा है|
(अ) मोर
(ब) सारेस
(स) गोडावन
(द) कुरजां
उत्तर:
(स) गोडावन
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में विविध प्रकार की वनस्पतियों के लिए उत्तरदायी कारक कौन-कौन-से हैं ?
उत्तर:
भारत में मिलने वाली विविध प्रकार की वनस्पति के लिए तापमान, वर्षा, मिट्टी, स्थलाकृति, पवने व सूर्य का प्रकाश उत्तरदायी कारक है।
प्रश्न 2.
सदाबहार वनों के कोई दो क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
- पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल
- अण्डमान निकोबार द्वीप समूह
प्रश्न 3.
जलयान एवं फर्नीचर उद्योग में किस प्रकार के वनों की लकड़ी प्रयुक्त की जाती है ?
उत्तर:
जलयान एवं फर्नीचर उद्योग में मुख्यत: पतझड़ी या मानसूनी वनों की लकड़ी प्रयुक्त की जाती है।
प्रश्न 4.
मरुस्थलीय वनस्पति की मुख्य विशेषता कौन-सी
उत्तर:
मरुस्थलीय वनस्पति की मुख्य विशेषता वृक्षों में पत्तियों की कमी, छोटी पत्तियाँ व काँटों की प्रधानता होती है।
प्रश्न 5.
सुन्दर वन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
भारत की नदियों के मुहानों व डेल्टाई भागों में सुन्दरी नामक-वृक्ष प्रधानता से मिलते हैं। इन्हें सुन्दर वनों के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 6.
एक सींग वाले गैंडे मुख्यतः कहाँ मिलते हैं ?
उत्तर:
एक सींग वाले गैंडे मुख्यतः पश्चिमी बंगाल व असम के दलदली क्षेत्रों में मिलते हैं।
प्रश्न 7.
राजस्थान के वनों को कितने भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर:
राजस्थान के वनों को तीन भागों
- उष्ण कटिबन्धीय कंटीले वन
- उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन
- उपोष्ण पर्वतीय वन में बाँटा गया है
प्रश्न 8.
उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन राजस्थान के किन जिलों में पाये जाते हैं ?
उत्तर:
ये वन राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, बीकानेर, चूरू, नागौर, सीकर, झुझुनू आदि जिलों में पाये जाते हैं।
प्रश्न 9.
राजस्थान के पश्चिमी भाग में कौन-सी घास मिलती है ?
उत्तर:
राजस्थान के पश्चिमी भाग में सेवण व धामण नाम की प्रसिद्ध घास मिलती है।
प्रश्न 10.
सोलर वन राजस्थान के किन जिलों में फैले मिलते हैं ?
उत्तर:
सालर वन उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, सिरोही, पाली, अजमेर, जयपुर, अलवर व सीकर जिलों में फैले मिलते हैं।
प्रश्न 11.
नवीन वन नीति के लक्ष्य क्या हैं ?
उत्तर:
1988 में घोषित नवीन वन नीति के तीन लक्ष्य-
- पर्यावरण स्थिरता
- वनस्पति व जीव जन्तुओं का संरक्षण
- बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति हैं।
प्रश्न 12.
वन संरक्षण हेतु दिए जाने वाले किन्हीं दो पुरस्कारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वन संरक्षण हेतु वानिकी पंडित पुरस्कार एवं वृक्ष मित्र पुरस्कार दिए जाते हैं।
प्रश्न 13.
अशोक महान के शिलालेखों में किसका वर्णन मिलता है ?
उत्तर:
अशोक महान के शिलालेखों में वन्य जीवों के शिकार पर अंकुश व इनके संरक्षण का वर्णन मिलता है।
प्रश्न 14.
भारत में वन्य जीव अभयारण्यों व राष्ट्रीय उद्यानों की संख्या कितनी है ?
उत्तर:
भारत में 565 वन्य जीव अभयारण्य एवं 89 राष्ट्रीय उद्यान हैं।
प्रश्न 15.
भारत के किन राष्ट्रीय उद्यानों को प्रथम बार विश्व विरासत स्थल बनाया गया है ?
उत्तर:
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (असम) व केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर, राजस्थान) को प्रथम बार विश्व विरासत स्थल बनाया गया है।
प्रश्न 16.
राजस्थान के दो राष्ट्रीय उद्यानों के नाम बताइए।
उत्तर:
- रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान, सवाई माधोपुर
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर
प्रश्न 17.
राजस्थान में बाघ संरक्षण हेतु कौन-से अभयारण्य प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर:
राजस्थान में बाघ संरक्षण हेतु रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान व सरिस्का अभयारण्य प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न 18.
खेजड़ली में कितने व्यक्तियों ने बलिदान दिया ?
उत्तर:
खेजड़ली में कुल 363 व्यक्तियों (294 पुरुष एवं 69 स्त्रियों) ने बलिदान दिया था।
प्रश्न 19.
जैव विविधता के विनाश से उत्पन्न मुख्य समस्याएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:
जैव विविधता के विनाश से ओजोन छिद्र, हरित गृह प्रभाव एवं ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति व वन्य जीवों को बचाये रखना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति व वन्य जीवों को बचाये रखना इसलिए आवश्यक है क्योंकि प्राकृतिक वनस्पति व वन्य जीव किसी भी राष्ट्र की समृद्धि के आधार होते हैं। प्राकृतिक पर्यावरण में घटक होने के साथ-साथ मानव सभ्यता को बनाये रखने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन वन्य जीवों व वनस्पति के द्वारा एक सुव्यवस्थित पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होता है।
प्रश्न 2.
सदाबहार वनों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सदाबहार वनों की निम्न विशेषताएँ हैं
- ये 200 सेमी. से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
- ये वर्षभर हरे-भरे रहते हैं।
- ये अत्यधिक सघन होते हैं।
- इनकी ऊँचाई 30 से 45 मीटर तक मिलती है।
- इन पेड़ों के द्वारा सूर्य के प्रकाश को धरातल तक पहुँचने से रोक दिया जाता है।
प्रश्न 3.
शुष्क वनों की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
शुष्क वनों की निम्न विशेषताएँ हैं
- ये वन 50 से 100 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं।
- ऐसे वनों में जल की कमी सहन करने वाले वृक्ष मिलते हैं।
- इन वृक्षों की जड़ें लम्बी व मोटी होती हैं।
- वर्षा की कमी के कारण इन वृक्षों की ऊँचाई कम पायी जाती है।
प्रश्न 4.
भारतीय नदियाँ व समुद्र अपने मिलन स्थल पर वनस्पति का विकास करते हैं। कैसे ?
उत्तर:
समुद्रतटीय भागों में जहाँ नदियों व समुद्र का मिलन होता है वहाँ प्रायः डेल्टाओं का निर्माण होता है। समुद्र का जल ज्वार-भाटे के द्वारा अपने जल को तटीय किनारों पर पहुँचाता रहता है। इन प्रक्रियाओं से दलदली भागों का निर्माण हो जाता है। ये दलदली भाग दलदली वनों के लिए आदर्श दशाएँ प्रदान करते हैं। भारत में सुन्दरी वनों के रूप में मिलने वाले ज्वारीय वन इसी प्रक्रिया का परिणाम हैं।
प्रश्न 5.
राजस्थान में मिलने वाले उष्ण कटिबंधीय कंटीले वनों की मुख्य प्रजातियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में उष्ण कटिबन्धीय कंटीले वनों में मुख्यतः रोहिड़ी, बेर, कैर, थोर के वृक्ष मिलते हैं जिनकी जड़े लम्बी व
मोटी होती हैं। इसके अलावा फोग, आकड़ा, लाना, अरणा व झड़बेर के रूप में झाड़ी तुल्य वनस्पति मिलती हैं। कुछ भागों में सेवण व धामण नामक घास भी पायी जाती है।
प्रश्न 6.
वनों की अनियंत्रित कटाई से कौन-कौन-सी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं ?
उत्तर:
वनों की अनियंत्रित कटाई से मिट्टी अपरदन, मरुस्थल का प्रसार, बाढ़ों का आना, बंजर भूमि का बढ़ना, जलवायु की विषमता, सूखा, भूमिगत जल स्तर में गिरावट, वन्य जीवों में कमी व पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं।
प्रश्न 7.
हमारे देश में वन्य जीवों के संरक्षण हेतु स्थापित जीव मंडल निकाय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
भारत के प्रमुख जीव मंडल निकायों में नंदादेवी, सुन्दरवन, मानस, मन्नार खाड़ी, नीलगिरी, सिमलीपाल, नोकरेक, नामदफा, थार का रेगिस्तान, उत्तराखण्ड, कच्छ का छोटा रन, कान्हा, उत्तरी अंडमान, वृहद् निकोबार व काजीरंगा आदि सम्मिलित हैं।
प्रश्न 8.
राजस्थान के प्रमुख अभयारण्य कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
राजस्थान के प्रमुख अभयारण्यों में तालछापर (चूरू) रामगढ़ विषधारी (बूंदी), कुंभलगढ़ व सज्जनगढ़ (उदयपुर), माउंटआबू (सिरोही), कैलादेवी (करौली), सीतामाता (प्रतापगढ़), भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़), बंध बारेठा (भरतपुर), टाडगढ़-रावली (अजमेर), जमवारामगढ़ (जयपुर), रामसागर (धौलपुर) आदि हैं।
प्रश्न 9.
मृदा का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
मृदा भूमि की वह परत है, जो चट्टानों के विखण्डन, विघटन और जीवांशों के सड़ने-गलने से बनती है। इसमें पेड़-पौधों को उगाने की क्षमता होती है, इसका निर्माण व गुण चट्टानों, जलवायु, वनस्पति, उच्चावच और समय पर निर्भर करता है।
प्रश्न 10.
लाल मृदा की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लाल मृदा की विशेषताएँ निम्न हैं-
- यह मृदा छिद्रदार होती है
- यह उपजाऊ नहीं होती है
- इसमें
प्रश्न 11.
बलुई मृदा की विशेषता बताइए।
उत्तर:
बलुई मृदा की निम्न विशेषताएँ हैं-
- इसमें क्षारीय तत्वों की अधिकता होती है।
- इसमें नाइट्रोजन, ह्यूमस की कमी पायी जाती है।
- यह शुष्क व रंध्रमय होती है।
- सिंचाई की सुविधा होने पर यह उपजाऊ सिद्ध होती है।
- यह मृदा पवनों के साथ स्थानान्तरित होती रहती है।
प्रश्न 12.
राजस्थान की लैटेराइट मृदा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में लैटेराइट मृदो को फैलाव डूंगरपुर, उदयपुर के मध्य व दक्षिणी भागों तथा राजसमंद जिले में मिलता है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस व ह्यूमस की कमी पाई जाती है। लौह तत्व की उपस्थिति के कारण इस मिट्टी का रंग लाल होता है। इस मिट्टी में मक्का, चावल व गन्ना बाहुल्यता से उत्पादित होता है।
प्रश्न 13.
राजस्थान में मिलने वाली काली वे कछारी मिट्टियों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में मिलने वाली काली व कछारी मिट्टियों की तुलना निम्नवत् है-
प्रश्न 14.
सदाबहार वनों में अधिक लकड़ी होते हुए भी उपयोग में नहीं आ रही है। क्यों?
उत्तर:
सदाबहार वनों में अधिक लकड़ी होते हुए भी उसके उपयोग में नहीं आने के निम्न कारण हैं-
- इन वनों की लकड़ी कठोर होती है।
- इस प्रकार के वन अत्यधिक सघन होते हैं जिसके कारण इनको काटना अत्यधिक दुष्कर है।
- इस प्रकार के वनों में विभिन्न प्रकार के वृक्ष मिलने से वृक्ष विशेष की लकड़ी को तोड़ना व काटना दुष्कर होता है।
- वृक्षों के साथ लताओं व छोटे-छोटे पौधों की सघनता होने से वृक्षों को काटने में समस्याएँ आती हैं।
- इन वनों के क्षेत्र में परिवहन सुविधाओं का विकास नहीं होने से इनका दोहन कम हुआ है।
प्रश्न 15.
मानसूनी या पतझड़ी वनों की विशेषता बताइए।
उत्तर:
मानसूनी या पतझड़ी वनों की निम्न विशेषताएँ हैं-
- ये वन 100 से 200 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं।
- ये वन न अधिक ऊँचे होते हैं और न ही अधिक घने होते हैं।
- ये वन शुष्क अवधि में नमी को बनाये रखने के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।
- ये वन मुख्यत: सदाबहार वनों की उपान्त पेटी के भाग में पाये जाते हैं।
- इन वनों की लकड़ी मुलायम होती है।
- इन वनों में नीम, आँवला, शहतूत, चंदन, शीशम व बाँस जैसे औषधीय एवं व्यापारिक वृक्ष मिलते हैं।
प्रश्न 16.
पर्वतीय वन सभी प्रकार के वनों का मिश्रण होते हैं। कैसे?
अथवा
पर्वतीय वन ऊँचाई के अनुसार वृक्ष प्रजातियों के बदलते स्वरूप को दर्शाते हैं। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पर्वतीय वने अनेक वृक्ष प्रजातियों का मिश्रण होते हैं। पर्वतीय वनस्पति में ऊँचाई के अनुसार परिवर्तन आता जाता है; यथा-निम्नवर्ती पर्वतीय भाग मानसूनी वनों को दर्शाते हैं। 1500 मी. तक की ऊँचाई वाले वृक्ष 15-18 मीटर ऊँचे होते हैं। इनका तना मोटा होता है। इनके नीचे शुष्क झाड़ियाँ पायी जाती हैं। वृक्षों की पत्तियाँ घनी व सदाबहार तथा टहनियों पर लताएँ छायी रहती हैं।
अधिक ऊँचे भागों में यूजेनिया, मिचेलिया व रोडेनड्रांस के वृक्ष मिलते हैं। 1000 से 2000 मीटर की ऊँचाई पर चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट जबकि 1500 से 3000 मीटर तक शंकुधारी वन, जैसे-देवदार, स्पूस व चीड़ मिलते हैं, जबकि 3500 मीटर से अधिक ऊँचाई पर अल्पाइन वन मिलते हैं; यथा-सिल्वर फर, बर्च, जूनिपर आदि।
प्रश्न 17.
राजस्थान की वनस्पति पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ने पर परिवर्तित होती जाती है क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान की वनस्पति इसके भौतिक विभागों का अनुसरण करती है। साथ ही पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर तापमान, वर्षा व मृदा का स्वरूप भी बदलता जाता है, यथा-राजस्थान के पश्चिमी भाग में मरुस्थल मिलता है। जिसमें ताप की अधिकता, वर्षा की कमी व रेतीली बालु मिट्टी के कारण शुष्क व अर्द्धशुष्क वनस्पति मिलती है।
मध्यवर्ती भाग में मिलने वाली अरावली पर्वत श्रृंखला में पर्वतीय वनस्पति मिलती है जबकि पूर्वी मैदानी प्रदेश में नदियों की प्रधानता, अधिक वर्षा तथा उपजाऊ काँप मिट्टी के कारण पतझड़ वनस्पति मिलती है। जबकि राजस्थान के पठारी प्रदेश व माउंट आबू क्षेत्र में अधिक तर व आर्द्र स्थिति के कारण सदाबहार वन पाये जाते हैं।
प्रश्न 18.
शुष्क सागवान वनों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
शुष्क सागवान वनों की विशेषताएँ हैं-
- ये वन 250 से 450 मीटर की ऊँचाई तक मिलते हैं।
- इन वनों में सागवान के वृक्ष बाहुल्यता से मिलते हैं।
- इन वनों में सागवान 50 से 75 प्रतिशत तक पाया जाता है।
- सागवान वन अधिक सर्दी व पाला सहन नहीं कर सकते हैं।
- इन वनों की लकड़ी कृषि औजारों व इमारती कार्यों के लिए उपयोगी सिद्ध होती है।
- इन वनों के तेंदू, सिरिस, खैर, रीठा, बहेड़ा व इमली जैसे वृक्षों ने विभिन्न प्रकार की मानवीय क्रियाओं को बढ़ावा दिया है।
प्रश्न 19.
संरक्षण से क्या तात्पर्य है? भारत में मृदा, वन व वन्यजीव संरक्षण हेतु किये जा रहे प्रयासों के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
संरक्षण शब्द का शाब्दिक अभिप्राय होता है- “प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं का विवेकपूर्ण उपयोग करके आने वाली पीढ़ियों हेतु इनकी सुलभता बनाये रखना।” इसे ‘कम खर्च एवं अधिक बचत’ के रूप में भी जाना जाता है। भारत में वन संरक्षण हेतु किये जा रहे प्रयासों में-
- वन अनुसंधान संस्थानों की स्थापना एवं
- वानिकी पुरस्कार प्रमुख हैं। मृदा संरक्षण हेतु किये जा रहे प्रयासों में-
- फसल चक्रण पद्धति एवं
- हरी खाद व वर्मी कंपोस्ट का प्रयोग मुख्य है। वन्य जीवों के संरक्षण हेतु किये जा रहे प्रयासों में-
- वन्य-जीव अभयारण्यों एवं उद्यानों की स्थापना एवं
- जीव मण्डल निकायों की स्थापना प्रमुख हैं।
प्रश्न 20.
भारत के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत में वन्य जीवों के संरक्षण हेतु अब तक 89 राष्ट्रीय उद्यान स्थापित किए गए हैं जिनमें मुख्यतः जिम कार्बेट नेशनल पार्क (उत्तराखण्ड), कान्हा राष्ट्रीय उद्यान (मध्य प्रदेश) काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (असम), बांदीपुर (कर्नाटक), पलामू (बिहार) दाचीगाम (जम्मू-कश्मीर) सुन्दर वन (पश्चिम बंगाल), शांत घाटी (केरल), नंदनकानन (उड़ीसा), केवलादेव (राजस्थान), अन्नामलाई (तमिलनाडु), काइबुल लम्जाओ (मणिपुर), मानस (असम) दिहांग-दिबांग (अरुणाचल प्रदेश) प्रमुख हैं।
प्रश्न 21.
भारत में जैव विविधता को बनाये रखने के लिए किए जा रहे प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में जैव विविधता को बनाये रखने के लिए तथा उनके सतत् विकास के दृष्टिकोण से अनेक कार्य किए जा रहे हैं जिनमें मुख्यतः राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना, वन्य जीव क्षेत्रों की संख्या को बढ़ावा देना, जैव मण्डलीय सुरक्षित क्षेत्रों की स्थापना तथा बाघ संरक्षण हेतु बाघ संरक्षण परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं। वनों के संरक्षण हेतु भी अनेक शोध संस्थानों की स्थापना की गई है जिनमें भारतीय वन अनुसंधान संस्थान-देहरादून, भारतीय वनस्पति उद्यान-कोलकाता, पारिस्थितिकी अनुसंधान संस्थान-बैंगलूरु व राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान-नागपुर उल्लेखनीय हैं। साथ ही जनजागरूकता एवं पर्यावरण चेतना के माध्यम से भी जैव विविधता को बनाये रखने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रश्न 22.
पुरातन जलोढ़ (काँप) व नूतन जलोढ़ (काँप) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 23.
लैटेराइट मृदा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लैटेराइट मृदा की विशेषताएँ हैं-
- यह मृदा ईंट जैसे लाल रंग की होती है।
- इस मृदा में कंकड़ों की प्रधानता पायी जाती है।
- इस मृदा का निर्माण पुरानी चट्टानों के विखण्डन से होता है।
- इस मृदा में लोहे और एल्यूमीनियम की मात्रा अधिक मिलती है।
- यह मृदा अधिक वर्षा वे अधिक ताप वाले क्षेत्रों में पायी जाती है।
- इस मिट्टी के क्षेत्र ऊसर होते हैं। किन्तु सूखने पर यह मिट्टी पत्थर की तरह कड़ी हो जाती है।
- अधिक वर्षा के कारण इस मिट्टी में से सिलिका, रासायनिक लवण व बारीक उपजाऊ कण बह जाते हैं।
- इस प्रकार की मृदा वाले क्षेत्रों में चाय की कृषि बाहुल्यता से की जाती है।
प्रश्न 24.
राजस्थान के पश्चिमी भाग में मिलने वाली रेतीली बालू मृदा मरुस्थलीय दशाएँ होते हुए भी राजस्थान के लिए वरदान सिद्ध हो रही है। कैसे?
उत्तर:
राजस्थान के पश्चिमी भाग में मिलने वाली रेतीली बालू मृदा टेथिस भूसन्नति का अवशेष है। प्राचीन काल में महासागरीय भाग होने के कारण इस क्षेत्र में निरन्तर तलछट को जमाव हुआ था। यह तलछट ही टेथिस के समाप्त हो जाने के कारण आज की मरुस्थलीय मिट्टी के रूप में मिलता है।
अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के कारण यह मृदा आज भी उपजाऊ है जो पानी की कमी के कारण बेकार पड़ी हुई थी किन्तु इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना ने सिंचाई के द्वारा इस मृदा के क्षेत्र को हरा-भरा कर दिया है। इसी कारण प्रचुर मात्रा में खाद्यान्नों, कपास, किन्नु, सरसों आदि के उत्पादन के कारण यह मृदा राजस्थान के लिए वरदान सिद्ध हो रही है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत की मृदाओं ने कृषि फसलों के स्वरूप को प्रभावित किया है। कैसे?
अथवा
भारत में फसलें मृदाओं के अनुसार मिलती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कृषि भारतीय लोगों की मुख्य आर्थिक क्रिया है। किन्तु इस कृषि का स्वरूप सभी जगह समान न होकर प्रादेशिक स्तर पर अलग-अलग पाया जाता है जिसका प्रमुख कारण इन क्षेत्रों में मिलने वाली मृदाओं की स्थिति है। प्रत्येक मृदा अपने गुण धर्म के अनुसार किसी फसल विशेष के लिए उपयोगी सिद्ध होती है। इसी प्रारूप के कारण कृषि प्रक्रिया अलग-अलग मिलती है; यथा- भारत के उत्तरी पर्वतीय भागों में पर्वतीय मिट्टी मिलती है जो अपने मोटे करों की संरचना के कारण केवल शाक-सब्जी एवं बागानों के लिए उपयुक्त है।
भारत के मैदानी भागों में अत्यधिक उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी मिलती है इसी कारण भारत के मैदानी भागों में गेहूँ, जौ वे चावल की कृषि बाहुल्यता से की जाती है। राजस्थान के पश्चिमी मरुस्थलीय क्षेत्र में न्यून समय तक नमी रखने वाली बालू मिट्टी की स्थिति के कारण इस क्षेत्र में अधिक शुष्कता सहन कर सकने वाली बाजरी व ज्वार की फसलें उत्पादित की जाती हैं। भारत के दक्षिणी पठार में लावा निर्मित काली मृदा मिलती है जिसमें मान्टमोरिलोनाइट नामक खनिज की प्रधानता के कारण जलधारण क्षमता अधिक होने से इस भाग में कपास की कृषि प्रमुखता से की जाती है।
लैटेराइट मृदा वाले क्षेत्रों में भी मुख्यतः चाय की कृषि का विकास मृदा के गुण व स्वभाव के कारण ही हुआ है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि जिस क्षेत्र में जैसी मिट्टी मिलती है उस क्षेत्र में उसे मृदा के अनुकूल ही कृषि विकसित होती है।
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