RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 2 विश्व के प्रमुख दर्शन are part of RBSE Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 2 विश्व के प्रमुख दर्शन.
Board | RBSE |
Textbook | SIERT, Rajasthan |
Class | Class 9 |
Subject | Social Science |
Chapter | Chapter 2 |
Chapter Name | विश्व के प्रमुख दर्शन |
Number of Questions Solved | 71 |
Category | RBSE Solutions |
Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 2 विश्व के प्रमुख दर्शन
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
महावीर स्वामी का जन्म कब हुआ ?
(अ) 699 ई. पू.
(ब) 570 ई.पू.
(स) 675 ई. पू.
(द) 599 ई. पू.
उत्तर:
(द) 599 ई. पू.
प्रश्न 2.
महात्मा बुद्ध ने प्रथम उपदेश कहाँ दिया था ?
(अ) कपिलवस्तु
(ब) सारनाथ
(स) गया
(द) बौद्धगया
उत्तर:
(द) बौद्धगया
प्रश्न 3.
हिजरी संवत् का प्रारम्भ कब हुआ ?
(अ) 622 ई. पू.
(ब) 632 ई. पू.
(स) 570 ई. पू.
(द) 566 ई. पू.
उत्तर:
(अ) 622 ई. पू.
प्रश्न 4.
ईसाई धर्म का पवित्र ग्रन्थ कौन-सा है ?
(अ) गीता
(ब) कुरान
(स) अवेस्ता-ए-जेंद
(द) बाईबिल
उत्तर:
(द) बाईबिल
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पुरुषार्थ कितने हैं ? नाम बताइए।
उत्तर:
पुरुषार्थ चार हैं-
- धर्म
- अर्थ
- काम
- मोक्ष
प्रश्न 2.
वसुधैव कुटुम्बकम् की बात किसमें कही गई है ?
उत्तर:
वैदिक दर्शन में वसुधैव कुटुम्बकम् की बात कही गयी है।
प्रश्न 3.
वैदिक दर्शन के अनुसार सृष्टि का सृष्टा पालक व संहारक कौन है ?
उत्तर:
वैदिक दर्शन के अनुसार सृष्टि का सृष्टा पालक व संहारक एक ईश्वर है।
प्रश्न 4.
जैन धर्म के प्रथम व 24वें तीर्थंकर का नाम बताइए।
उत्तर:
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव या आदिनाथ तथा 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी थे।
प्रश्न 5.
पाँच महाव्रत कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
पाँच महाव्रत हैं-
- अहिंसा
- सत्य
- अस्तेय
- अपरिग्रह
- ब्रह्मचर्य
प्रश्न 6.
जैन धर्म में अहिंसा की व्याख्या क्या की गई है ?
उत्तर:
जैन धर्म के अनुसार, मन, वचन तथा कर्म से किसी के प्रति अहिते की भावना न रखना, अहिंसी है।
प्रश्न 7.
महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम क्या था ?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
प्रश्न 8.
महात्मा बुद्ध ने दुःख का कारण क्या बताया?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध ने दुःख का कारण तृष्णा (लालसा) या वासना को बताया।
प्रश्न 9.
बौद्ध धर्म कितने सम्प्रदाय में विभक्त हुआ?
उत्तर:
बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों में विभक्त हुआ-
- हीनयान,
- महायान
प्रश्न 10.
मोहम्मद साहब का मक्का से मदीना जाने की घटना को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
मोहम्मद साहब का मक्का से मदीना जाने की घटना को हिजरत कहते हैं।
प्रश्न 11.
हजरत मोहम्मद का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर:
हजरत मोहम्मद का जन्म 570 ई. में मक्का में हुआ।
प्रश्न 12.
ईसा मसीह के प्रमुख शिष्य कौन थे ?
उत्तर:
ईसा मसीह के प्रमुख शिष्य थे-संत पॉल एवं पीटर।
प्रश्न 13.
बाईबिल के प्राचीन सिद्धान्तों पर चलने वाले लोग क्या कहलाते हैं ?
उत्तर:
रोमन कैथोलिक।
प्रश्न 14.
पारसी धर्म के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर:
जरथुष्ट्र।
प्रश्न 15.
पारसी धर्म में दैवी शक्ति का प्रतीक किसे माना जाता है ?
उत्तर:
अहूरमजदा को।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वैदिक दर्शन में सहिष्णुता के संदेश को समझाइए।
उत्तर:
वैदिक दर्शन भारत के सबसे प्राचीन दर्शनों में सबसे प्रमुख दर्शन है। प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद के अनुसार सत्य अर्थात् ईश्वर एक है और विद्वान उसे अनेक नामों से पुकारते हैं। उपनिषदों के अनुसार विश्व में व्याप्त ब्रह्म और व्यक्ति में व्याप्त आत्मा एक ही है। व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य इसी एकत्व की अनुभूति करना है। इसी एकत्व की अनुभूति से व्यक्ति स्थायी आनंद (सच्चिदानन्द) को प्राप्त करता है। वैदिक दर्शन की इसी मान्यता ने सम्पूर्ण मानव जाति को सहिष्णुता का संदेश दिया है।
प्रश्न 2.
जैन दर्शन के त्रिरत्न की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महावीर स्वामी ने मोक्ष प्राप्त करने के लिए तीन उपाय बताये थे जिन्हें त्रिरत्न कहा गया, जो निम्नलिखित
- सम्यक् ज्ञान–इसका आशय पूर्ण व सच्चा ज्ञान होता है। महावीर स्वामी के अनुसार मनुष्यों को सच्चा और पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए तीर्थंकरों के उपदेशों का अध्ययन व अनुसरण करना चाहिए।
- सम्यक् दर्शन–इसका आशय है तीर्थंकरों में पूर्ण श्रद्धा रखना। सच्चे ज्ञान को जीवन में धारण करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को तीर्थंकरों में पूर्ण श्रद्धा व विश्वास रखना चाहिए।
- सम्यक् चरित्र–इसका आशय है मनुष्य अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखकर ही सत्य ज्ञान को प्राप्त कर सकता है। अतः उसे अपनी इन्द्रियों पर संयम रखना चाहिए।
प्रश्न 3.
जैन धर्म के प्रमुख तीर्थंकर कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
जैन परम्परा के अनुसार जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि महावीर स्वामी के पहले 23 जैन तीर्थंकर और हुए थे। पहले तीर्थंकर ऋषभदेव या आदिनाथ थे एवं तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। जैन धर्म के प्रमुख तीर्थंकर ऋषभदेव या आदिनाथ, अजित नाथ, सम्भवनाथ, पदमप्रभ, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ एवं महावीर स्वामी आदि हैं।
प्रश्न 4.
बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का मूल आधार चार आर्य सत्य हैं, जो निम्न हैं.
- विश्व दुःखमय है-समस्त विश्व में जन्म-मरण, संयोग-वियोग, लाभ-हानि आदि समस्त दु:ख ही दु:ख हैं।
- दुःख का कारण-इस विश्व में समस्त प्रकार के दु:खों का मूल कारण तृष्णा (लालसा) अथवा वासना है।
- दुःख दमन-तृष्णा या लालसा के दमन से दु:ख का निराकरण हो सकता है।
- दुःख निवारक मार्ग-दु:खों पर जीत प्राप्त करने को मार्ग है और वह अष्टांगिक मार्ग या मध्यम मार्ग है। जिसके आठ उपायै–सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाक्, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् आजीव, सम्यक् प्रयत्न, सम्यक् स्मृति एवं सम्यक् समाधि हैं।
प्रश्न 5.
बौद्ध दर्शन के आत्मवाद को समझाइए।
उत्तर:
बौद्ध दर्शन में आत्मा की अमरता में विश्वास नहीं किया जाता है। स्वयं महात्मा बुद्ध के अनुसार आत्मा शंकास्पद विषय है। आत्मा के बारे में महात्मा बुद्ध ने न तो यह कहा कि आत्मा है और न ही यह कहा लि, आत्मा नहीं है। बुद्ध कर्मवाद के सिद्धान्त में विश्वास करते थे। उनका मत था कि मानव जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल भोगना पड़ता है। बुद्ध पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। वे कहते थे कि मनुष्य के कर्म के अनुसार ही उसका पुनर्जन्म होता है किन्तु बुद्ध का विश्वास था कि यह पुनर्जन्म आत्मा को नहीं, अहंकार का होता है। जब मनुष्य की लालसा की समाप्ति हो जाती है तो अहंकार भी नष्ट हो जाता है और मनुष्य पुनर्जन्म के चक़ से मुक्ति प्राप्त कर निर्वाण प्राप्त कर लेता है।
प्रश्न 6.
मोहम्मद साहब की शिक्षाओं का अरब वासियों पर क्या प्रभाव पड़ा।
उत्तर:
हजरत मोहम्मद साहब की शिक्षाओं का अरब वासियों पर बहुत प्रभाव पड़ा। प्रारम्भ में मोहम्मद साहब द्वारा मूर्ति-पूजा का विरोध करने के कारण मक्कावासी नाराज हो गये और मोहम्मद साहब को मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा। मदीना में उनका जोर-शोर से स्वागत किया गया और यहीं से इस्लाम का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ। धीरे-धीरे मक्कावासी भी इस्लाम को मानने लगे। 632 ई० में मोहम्मद साहब की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारियों (खलीफाओं) ने विशाल साम्राज्य की नींव डाली। इस्लाम धर्म की शिक्षाएँ पवित्र ग्रन्थ करान’ में संग्रहीत हैं।
प्रश्न 7.
पारसी दर्शन के अनुसार दैवी और दानवीय शक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पारसी दर्शन के संस्थापक जरथुष्ट्र थे। पारसी दर्शन के अनुसार समस्त संसार में दैवी और दानवीय दो प्रकार की शक्तियाँ निवास करती हैं। दैवी शक्तियों का प्रतीक ‘अहूरमजदा’ है! यह एक महान देवता है जिसने पृथ्वी, मनुष्य एवं स्वर्ग का निर्माण किया है। अहूरमजदा शक्ति मनुष्य को बुरी बात सोच, बुरे मार्ग पर चलने व बुरे कामों को करने से रोकती है। दानवीय शक्तियों का प्रतीक ‘अहरिमन’ है। यह शक्ति मनुष्यों को शैतान बनाकर नरक की ओर ले जाती है। पारसी दर्शन के अनुसार दैवी शक्ति अहूरमजदा एवं दानवीय शक्ति अहरिमन के मध्य संघर्ष चलता रहता है। इस संघर्ष में अंतिम विजय अहूरमजदा की होती है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वैदिक दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वैदिक दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ (लक्षण) वैदिक दर्शन भारत के सबसे प्राचीन दर्शनों में सबसे प्रमुख दर्शन है। यह दर्शन वैदिक साहित्य में उपलब्ध होता है। वैदिक दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ (लक्षण) निम्नलिखित
हैं
- वैदिक दर्शन में व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य एकत्व की जानकारी करना है अर्थात् ब्रह्म और व्यक्ति में व्याप्त आत्मा एक ही है जो अमर है।
- वैदिक दर्शन में चार पुरुषार्थों की व्यवस्था की गई है। ये पुरुषार्थ हैं. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इनमें जीवन का परम लक्ष्य है-मोक्ष प्राप्ति।
- जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति के लिए गीता में कर्म, ज्ञान व भक्ति का उपदेश दिया गया है। कर्म की प्रधानता को स्वीकार करते हुए कहा है कि कर्म करो, फल की इच्छा मत करो।
- वैदिक दर्शन के अनुसार कर्म के आधार पर पुनर्जन्म होता है। इससे व्यक्ति अच्छे कर्म सम्पादित कर जीवन को श्रेष्ठ बनाने का प्रयत्न करता है।
- वैदिक दर्शन में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की बात कही। गयी है। इससे व्यक्ति संकीर्णता के बंधन से मुक्त होकर विश्व को अपना परिवार मानने लगता है।
- वैदिक दर्शन में स्तुति एवं यज्ञ के माध्यम से अग्नि, जल, पृथ्वी, वायु और आकाश जैसे प्राकृतिक तत्वों को स्वच्छ व सुरक्षित रखने की प्रेरणा दी गई है।
- उपनिषदों में त्यागपूर्वक उपयोग करने का उल्लेख मिलता है। इससे व्यक्ति लोभ व मोह से दूर रहकर अपना कर्त्तव्यपालन करता है।
- वैदिक दर्शन में दूसरों की सेवा करने को धर्म एवं दूसरों को सताना सबसे बड़ा पाप बताया गया है। इस प्रकार वैदिक दर्शन सम्पूर्ण विश्व में सौमनस्य, सदाचार, सहयोग एवं समन्वय की प्रेरणा प्रदान करता है।
प्रश्न 2.
जैन दर्शन की प्रमुख शिक्षाएँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:
जैन दर्शन की प्रमुख शिक्षाएँ (सिद्धान्त) जैन साहित्य के मतानुसार जैन दर्शन का प्रारम्भ बहुत प्राचीन काल में हुआ था। जैन दर्शन के विकास में तीर्थंकरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। ऐसा माना जाता है कि महावीर से पहले 23 जैन तीर्थंकर और हुए थे। इनमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव या आदिनाथ, तेईसवें तीर्थंकर पाश्र्वनाथ एवं चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी थे। जैन दर्शन का मूल उद्देश्य संसार की मोह माया व इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करना है। जैन दर्शन की प्रमुख शिक्षाएँ (सिद्धान्त) निम्नलिखित हैं
1. जैन दर्शन में वर्तमान जीवन में कर्मफलों का संचय रोकने और पुनर्जन्म के कर्मफलों के नाश के लिए त्रिरत्न का मार्ग दिखाया। ये त्रिरत्न हैं-
- सम्यक् दर्शन
- सम्यक् ज्ञान और
- संम्यक् चरित्र।।
2. जैन दर्शन में पंच महाव्रतों की शिक्षा दी गई है। ये महाव्रत हैं- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य अहिंसा आज भारत की आंतरिक व विदेश नीति का प्रमुख अंग है। इसी ने भारतीय समाज को संयमशीलता की प्रेरणा प्रदान की है।
3. जैन दर्शन निवृत्तिमूलक है। इसके अनुसार सांसारिक जीवन में सुख नहीं है। अतः इसे त्यागकर कठोर तपस्या द्वारा मोक्ष प्राप्त करना चाहिए।
4. जैन दर्शन कर्म व पुनर्जन्म में विश्वास करता है। मानवीय सुख व दु:खों का कारण उसके कर्म ही हैं। कर्म ही पुनर्जन्म का कारण है। मानव को कर्मों के फल को भोगे बिना जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा नहीं मिलता है।
5. जैन दर्शनानुसार सृष्टि चेतन जीव और अचेतन अजीव से निर्मित है। ये कर्म से बंधे रहते हैं। कर्म लन्धन को तोड़ना ही मोक्ष है।
6. जैन दर्शन अनेकान्तवाद, सहिष्णुता और समन्वय का भूलमन्त्र है। इस सम्बन्ध में महावीर स्वामी ने कहा है कि किसी बात को एक तरफ से मत देखो, उस पर एक ही तरफ से विचार मत करो। तुम जो कहते हो वह सत्य होगा किन्तु दूसरे जो कहते हैं वह भी सत्य हो सकता है। आज संसार में जो तनाव और द्वन्द्व हैं वह दूसरों के दृष्टिकोण को न समझने के कारण हैं। इस सिद्धान्त के विचार से समन्वय सम्भव है।
7. महावीर स्वामी का विश्वास है कि आत्मा अजर-अमर है। जीव ही आत्मा है। कण-कण में जीवात्मा का निवास है। इसी आत्मा को ईश्वर कह सकते हैं।
प्रश्न 3.
बौद्ध दर्शन की शिक्षाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बौद्ध दर्शन की शिक्षाएँ सिद्धान्त)
बौद्ध दर्शन की प्रमुख शिक्षाएँ (सिद्धान्त) निम्नलिखित
1. बौद्ध दर्शन की शिक्षाओं का मूल आधार चार आर्य सत्य हैं –
- संसार दु:खमय है,
- दु:ख का कारण,
- दु:ख दमन, एवं
- दु:ख निवारक मार्ग
2. सांसारिक वस्तुओं को भोगने की तृष्णा ही आत्मा को जन्म-मरण के बन्धन में जकड़े रखती है। अतः मोक्ष प्राप्ति के लिए तृष्णा अर्थात लालसा को समाप्त करना आवश्यक है। इसके लिए मानव को अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
3. अष्टांगिक मार्ग जीवन-यापन के मध्य का रास्ता है। इसमें निर्वाण प्राप्ति के लिए न तो कठोर तपस्या को उचित बताया है और न ही सांसारिक भोग-विलास में डूबे रहना उचित बताया है।
4. अष्टांगिक मार्ग के आठ उपाय हैं जिनमें-सम्यक् दृष्टि, सम्पॐ संकल्प, सम्यक् वाक्, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् आजीव, सम्यक् प्रयत्न, सम्यक् स्मृति एवं सम्यक् समाधि शामिल है।
5. महात्मा बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं में शील और नैतिकता पर बहुत अधिक बल दिया। उन्होंने अपने शिष्यों को मन, वचन और कर्म से पवित्र रहने को कहा।
6. महात्मा बुद्ध ने जीवन में दस शील या नैतिक आचरण का पालन करने को कहा। इन्हें हम सदाचार के दस नियम भी कह सकते हैं, जिनमें-
- अहिंसा का पालन करना
- झूठ को त्याग करना
- चोरी नहीं करना
- वस्तुओं का संग्रह नहीं करनी
- भोग-विलास से दूर रहना
- नृत्य और गाने का त्याग करना
- सुगंधित पदार्थों को त्याग करना
- कोमल शैय्या का त्याग करना।
- असमय भोजन न करना
- कामिनी कंचन (स्त्री व धन) का त्याग करना शामिल है।
7. महात्मा बुद्ध आत्मा की अमरता में विश्वास नहीं करते थे। उनके लिए आत्मा शंकास्पद विषय था।
8. उनके अनुसार मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल भोगना पड़ता है।
9. बुद्ध पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। वे कहते थे कि मनुष्य के कर्म के अनुसार ही उसका पुनर्जन्म होता है। यह पुनर्जन्म आत्मा का न होकर अहंकार को होता है।
10. अहिंसा बौद्ध धर्म का मूलमन्त्र है। प्राणी मात्र को पीड़ा पहुँचाना महापाप है।
11. बौद्ध धर्म का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है। मन में उत्पन्न होने वाली तृष्णा की अग्नि को बुझा देने पर ही मोक्ष या निर्वाण प्राप्त हो सकती है।
प्रश्न 4.
मोहम्मद साहब के जीवन पर प्रकाश डालते हुए इस्लाम की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मोहम्मद साहब का जीवन-परिचय
हजरत मोहम्मद साहब का जन्म 570 ई० में मक्का में हुआ था। इनके पिता का नाम अब्दुल्ला तथा माता का नाम आमिना था। जन्म से पूर्व पिता एवं बचपन में ही माँ की मृत्यु हो जाने के कारण इनका लालन-पालन दाई हलीमा ने किया। इनका विवाह एक विधवा स्त्री खदीजा से हुआ। विवाह के समय इनकी आयु 25 वर्ष थी जबकि खदीजा की आयु 40 वर्ष थी। अरब में अन्धविश्वासों से घिरी जनता को इन्होंने संदेश दिया कि अल्लाह (ईश्वर) के अतिरिक्त कोई पूजनीय नहीं है और मैं उनका पैगम्बर (दूत) हूँ। उनकी बहुत-सी बातों से मक्कावासी नाराज हो गये और उनका विरोध करने लगे जिसके कारण हजरत साहब मक्का छोड़कर मदीना चले गये। यह घटना इस्लाम में हिजरत कहलाती है। 632 ई० में इनकी मृत्यु हो गयी।
इस्लाम धर्म की शिक्षाएँ
मोहम्मद साहब द्वारा दी गयी शिक्षाएँ पवित्र ग्रन्थ कुरान’ में संगृहीत हैं, जो निम्न हैं
- अल्लाह (ईश्वर) के अतिरिक्त कोई पूजनीय नहीं हैं। और मोहम्मद उसके पैगम्बर अर्थात् दूत हैं।
- प्रत्येक मुसलमान को दिन में पाँच बार नमाज अदा करनी चाहिए।
- प्रत्येक मुसलमान को रमजान के महीने में रोजा रखना चाहिए।
- प्रत्येक मुसलमान को अपनी आमदनी का 1/40 वाँ भाग जकात (दान) के रूप में देना चाहिए।
- प्रत्येक मुसलमान को जीवन में कम से कम एक बार हज (मक्का-मदीना की यात्रा) अवश्य करनी चाहिए।
- इस्लाम धर्म, कर्म की प्रधानता को स्वीकार करता है। इसका मानना है कि अच्छे कर्म करने पर जन्नत (स्वर्ग) और बुरे कर्म करने पर दोजख (नरक) मिलता है।
- इस्लाम पुनर्जन्म के सिद्धान्त में विश्वास नहीं करता है।
- इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए मूर्ति पूजा वर्जित है।
- इस्लाम धर्म के अनुसार ब्याज लेना मना है।
- इस्लाम धर्म में मादक वस्तुओं का प्रयोग निषेध है।
- आपसी प्रेम व भाईचारे में इस्लाम धर्म विश्वास करता
प्रश्न 5.
ईसा मसीह का परिचय देते हुए ईसाई धर्म के दर्शन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ईसा मसीह का जीवन-परिचय
रोम में ईसा मसीह के जन्म से पूर्व यहूदी समाज में अन्धविश्वास तथा आडम्बरों का बोलबाला था। यहूदी लोग अपने आप को विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानते थे। रोम में सम्राटों की ईश्वर की भाँति पूजा की जाती थी। ऐसे वातावरण में ईसा मसीह का जन्म फिलिस्तीन के पहाड़ी भाग बैथलेहम नामक गाँव में हुआ, जो कि जूडिया प्रान्त में था। इनके पिता का नाम युसुफ व माता का नाम मरियम था। इनके माता-पिता बढ़ईगिरी का कार्य करते थे। ईसा मसीह ने भी प्रारम्भ में अपने माता-पिता का व्यवसाय अपनाया। बाद में उन्हें आध्यात्मिक प्रवृति के कारण ईश्वरीय प्रेरणा मिली और उन्होंने अपने विचारों को लोगों में फैलाना प्रारम्भ कर दिया।
ईसाई धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-ईसा मसीह ने 30 वर्ष की आयु में अपने उपदेशों को ईसाई धर्म के रूप में जनता में फैलाना प्रारम्भ किया। उन्होंने यहूदी धर्म में फैली कुरीतियों, अन्धविश्वासों तथा आडम्बरों का विरोध किया। सदाचारपूर्ण व प्रेममय जीवन जीने पर जोर देना प्रारम्भ किया। इन्होंने शोषितों, दीन-दुखियों और पीड़ितों की सेवा करने पर बल दिया ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया जाना-ईसा मसीह की रोम में बढ़ती हुई लोकप्रियता से यहूदी धर्माधिकारी चिन्तित हए और ईसा मसीह के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगे। इन्हीं षड्यन्त्रों के तहत उन्होंने ईसा मसीह पर आरोप लगाया कि वे स्वतन्त्र राज्य की स्थापना करना चाहते हैं और यहूदियों को शासक वर्ग के विरुद्ध भड़को रहे हैं। इन्हीं के शिष्य जुडास ने धोखे से इन्हें गिरफ्तार करवा दिया। ईसा मसीह को राजद्रोही और धर्मद्रोही घोषित कर शुक्रवार के दिन सूली पर चढ़ा दिया गया।
ईसाई धर्म-दर्शन
ईसा मसीह के उपदेश ईसाइयों के पवित्र धार्मिक ग्रन्थ ‘बाईबिल’ में संगृहीत हैं। ईसाई धर्म-दर्शन के सिद्धान्त या उपदेश निम्नलिखित हैं
- ईश्वर एक है, वह सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है।
- 0ईश्वरीय दृष्टि में सभी जीव समान हैं।
- सभी मनुष्य ईश्वर की सन्तान हैं। अतः हम सभी आपस में भाई-भाई हैं।
- ईसाई धर्म का प्रमुख सिद्धान्त प्रेम है। ईसा मसीह ने कहा था कि मनुष्य को सबके साथ प्रेम से रहना चाहिए।
- ईसा मसीह ने क्षमाशीलता पर जोर देते हुए कहा था कि हम सभी को क्षमाशीलता का गुण ग्रहण करना चाहिए तथा क्रोध और बदले की भावना से कोई कार्य नहीं करना चाहिए।
- ईसा मसीह का कहना था कि “पाप से घृणा करो पापी से नहीं।”
- ईसाई धर्म के अनुसार मनुष्य को सदाचारपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिए।
- ईसाई धर्म के अनुसार मानव को अधिक धन-सम्पत्ति को संग्रह नहीं करना चाहिए।
- ईसा मसीह ने अहिंसा पर जोर देते हुए कहा था कि दूसरों को कष्ट नहीं पहुचाना चाहिए।
- ईसा मसीह ने दया, करुणा, सत्य, अहिंसा, परोपकार, सदव्यवहार, सहिष्णुता आदि गुणों को ग्रहण करने पर जोर देते हुए कहा था कि सदाचारी व्यक्ति ही ईश्वरीय सत्ता में प्रवेश पा सकता है।
उपर्युक्त सिद्धान्तों के आधार पर कहा जा सकता है कि ईसा मसीह ने प्रेम, दया, करुणा, त्याग, सेवा, परोपकार, अहिंसा, सहनशीलता और विश्व-बन्धुत्व जैसे सिद्धान्तों को ईसाई धर्म के रूप में विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया था।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
विश्व का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है
(अ) वेद
(ब) कुरान शरीफ
(स) बाईबिल।
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) वेद
प्रश्न 2.
वैदिक दर्शन का प्राचीनतम ग्रन्थ है
(अ) ऋग्वेद
(ब) यजुर्वेद
(स) सामवेद
(द) अथर्ववेद
उत्तर:
(अ) ऋग्वेद
प्रश्न 3.
महावीर स्वामी जैन धर्म के कौन से तीर्थंकर थे?
(अ) प्रथम
(ब) तृतीय
(स) चौबीसवें
(द) पाँचवे
उत्तर:
(स) चौबीसवें
प्रश्न 4.
महावीर के बचपन का नाम था
(अ) वर्धमान
(ब) सिद्धार्थ
(स) जिन
(द) पुरोधा
उत्तर:
(अ) वर्धमान
प्रश्न 5.
महात्मा बुद्ध का जन्म स्थल है
(अ) कपिलवस्तु
(ब) सारनाथ
(स) लिच्छवी
(द) बौद्धगया
उत्तर:
(अ) कपिलवस्तु
प्रश्न 6.
बौद्ध धर्म का अन्तिम लक्ष्य है
(अ) मोक्ष प्राप्त करना
(ब) पढ़ना
(स) कर्म करना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) मोक्ष प्राप्त करना
प्रश्न 7.
इस्लाम धर्म के संस्थापक थे
(अ) महात्मा बुद्ध
(ब) जरथुष्ट्र
(स) ईसा मसीह
(द) हजरत मोहम्मद
उत्तर:
(द) हजरत मोहम्मद
प्रश्न 8.
ईसाई धर्म व दर्शन के प्रणेता थे
(अ) ईसा मसीह
(ब) संत पॉल
(स) पीटर
(द) जुडास
उत्तर:
(अ) ईसा मसीह
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विश्व के किन्हीं दो प्रमुख दर्शनों का नाम बताइए।
उत्तर:
- वैदिक दर्शन
- ईसाई दर्शन।
प्रश्न 2.
वेद कितने हैं? नाम बताइए।
उत्तर:
वेद चार हैं-
- ऋग्वेद
- यजुर्वेद
- सामवेद
- अथर्ववेद
प्रश्न 3.
वैदिक युग में लोग किन-किन देव शक्तियों की उपासना करते थे?
उत्तर:
- इन्द्र
- अग्नि
- वरुण
- यम आदि
प्रश्न 4.
वैदिक दर्शन में धर्म और पाप किसे कहा गया है।
उत्तर:
वैदिक दर्शन में दूसरों की सेवा करने को धर्म तथा दूसरों को दुःख देने को पाप कहा गया है।
प्रश्न 5.
जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक किसे माना जाता है ?
उत्तर:
महावीर स्वामी को
प्रश्न 6.
महावीर स्वामी का जन्म कब व कहाँ हुआ?
उत्तर:
महावीर स्वामी का जन्म वैशाली के समीप कुण्डग्राम में 599 ई० पू० में हुआ था।
प्रश्न 7.
महावीर स्वामी के माता-पिता का क्या नाम था?
उत्तर:
महावीर स्वामी की माता का नाम त्रिशला एवं पिता का नाम सिद्धार्थ था।
प्रश्न 8.
कैवल्य प्राप्त हो जाने पर वर्धमान को किन-किन नामों से जाना गया?
उत्तर:
कैवल्य प्राप्त हो जाने पर वर्धमान को जिन (जीतने वाला) निग्रन्थ (सन्देह मुक्त) एवं महावीर आदि नामों से जाना गया।
प्रश्न 9.
जैन धर्म का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
जैन धर्म का उद्देश्य संसार की मोह-माया व इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करना है।
प्रश्न 10.
त्रिरत्न क्या हैं? बताइए।
उत्तर:
महावीर स्वामी ने मोक्ष प्राप्त करने के लिए तीन उपाय-सम्यक् ज्ञान, सम्यक दर्शन व सम्यक् चरित्र बताए। यही आगे चलकर त्रिरत्न कहलाए।
प्रश्न 11.
जैन दर्शन ने गृहस्थ लोगों के लिए कौन-कौन से नियम बताए?
उत्तर:
- अहिंसा
- सत्य
- अस्तेय
- अपरिग्रह
- ब्रह्मचर्य।
प्रश्न 12.
महात्मा बुद्ध का जन्म कब व कहाँ हुआ?
उत्तर:
563 ई० पू० में कपिलवस्तु गणराज्य के शाक्यवंशीय क्षत्रिय कुल में।
प्रश्न 13.
बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध।
प्रश्न 14.
महात्मा बुद्ध को गौतम क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध के कुल का गौतम गोत्र होने के कारण इन्हें गौतम कहा जाता है।
प्रश्न 15.
महात्मा बुद्ध ने सर्वप्रथम उपदेश कहाँ दिया?
उत्तर:
बौद्ध गया में
प्रश्न 16.
महापरिनिर्वाण किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध के शरीर त्यागने की घटना को महापरिनिर्वाण कहा जाता है।
प्रश्न 17.
अष्टांगिक मार्ग किस दर्शन से सम्बन्धित है ?
उत्तर:
बौद्ध दर्शन से
प्रश्न 18.
हजरत मोहम्मद की शिक्षाएँ किस ग्रन्थ में संग्रहित हैं ?
उत्तर:
कुरान शरीफ में
प्रश्न 19.
खलीफा किसे कहते हैं ?
उत्तर:
इस्लाम धर्म में हजरत मोहम्मद के शिष्यों को खलीफा कहते हैं।
प्रश्न 20.
ईसाई धर्म के दो सम्प्रदायों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- रोमन कैथोलिक
- प्रोटेस्टेन्ट
प्रश्न 21.
ईसा मसीह का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
फिलिस्तीन के बैथेलहम में।
प्रश्न 22.
पारसी धर्म का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
फारस (ईरान) में
प्रश्न 23.
जरथुष्ट्र का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर:
पश्चिमी ईरान के अजरबेजान प्रान्त में।
प्रश्न 24.
पारसी धर्म में दानवीय शक्ति का प्रतीक किसे माना जाता है ?
उत्तर:
अहरिमन को।
प्रश्न 25.
पारसी धर्म का पवित्र ग्रंथ कौन-सा है ?
उत्तर:
अवेस्तो -ए-जेंद
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वेदों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
वेद विश्व के सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं। वेद चार हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद।
- ऋग्वेद-यह विश्व का प्राचीन एवं प्रथम ग्रन्थ माना जाता है। इसमें धर्मपरक सूक्त हैं।
- यजुर्वेद-इसके अन्तर्गत कर्मकाण्डपरक धर्म के उद्देश्यों को बतलाया गया है।
- सामवेद-इसके अन्तर्गत यज्ञों में गेय मंत्रों का संकलन है।
- अथर्ववेद-इसके अन्तर्गत अभिचारपरक मंत्रों का संग्रह है।
प्रश्न 2.
जैन धर्म के पंच महाव्रत कौन-कौन से हैं ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
जैन धर्म के पंच महाव्रत निम्नलिखित हैं
- अहिंसा--मन, वचन व कर्म से किसी जीव को कष्ट न पहुँचाना।
- सत्य-मन, वचन व कर्म से सदैव सत्य बोलना।
- अस्तेय-किसी भी प्रकार की चोरी नहीं करनी चाहिए।
- अपरिग्रह-आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह नहीं करना।
- ब्रह्मचर्य-सभी वासनाओं का त्यागकर संयमित जीवन व्यतीत करना।
प्रश्न 3.
बौद्ध धर्म का मध्यम मार्ग क्या है ? समझाइए।
उत्तर:
महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति को कठोर तपस्या और अत्यधिक सुख दोनों के बीच का मार्ग अपनाया था। बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग ही मध्यम मार्ग है। यह अष्टांगिक मार्ग है-
- सम्यक् दृष्टि
- सम्यक् संकल्प
- सम्यक् वाणी
- सम्यक् कर्म
- सम्यक् आजीव
- सम्यक् प्रयत्न
- सम्यक् स्मृति
- सम्यक् समाधि
उक्त मध्यम मार्ग के सम्बन्ध में स्वयं महात्मा बुद्ध ने कहा था कि “यदि वीणा के तारों को अत्यधिक कस दोगे तो वह टूट जायेंगे और ढीला छोड़ दोगे तो उनमें से स्वर ही नहीं निकलेंगे।” इसलिए मानव जीवन में महात्मा बुद्ध ने मध्यम मार्ग अपनाये जाने पर बल दिया।
प्रश्न 4.
अष्टांगिक मार्ग के प्रमुख उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अष्टांगिक मार्ग के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं-
- सम्यक् दृष्टि-सत्य-असत्य, पाप-पुण्य में अन्तर करने से ही चार आर्य सत्यों पर विश्वास उत्पन्न होता है।
- सम्यक् संकल्प-दु:ख का कारण तृष्णा अर्थात् लालसा है। इससे दूर रहने के विचार का दृढ़तापूर्वक पालन करो।
- सम्यक् वाक्-हमेशा सत्य एवं मीठी वाणी बोलनी चाहिए।
- सम्यक् कर्मान्त-हमेशा सच्चे एवं अच्छे काम करो।
- सम्यक् आजीव-अपना जीवन निर्वाह करने के लिए आजीविका के पवित्र तरीकों को अपनाना चाहिए।
- सम्यक् प्रयत्न-शरीर को अच्छे कार्यों में लगाने के लिए उचित परिश्रम किया जाना चाहिए।
- सम्यक् स्मृति-अपनी गलतियों को याद रखकर विवेक और सावधानी से कर्म करने का प्रयास करना चाहिए।
- सम्यक् समाधि-अपने मन को एकान्त करने के लिए ध्यान लगाना चाहिए।
प्रश्न 5.
बौद्ध दर्शन के मतानुसार सदाचार के नियम कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
बौद्ध दर्शन के मतानुसार सदाचार के दस नियम निम्नलिखित हैं
- अहिंसा रूपी व्रत का पालन करना। (अहिंसा)
- झूठ का परित्याग करना। (सत्य)
- चोरी नहीं करना। (अस्तेय)
- वस्तुओं का संग्रह न करना। (अपरिग्रह)
- भोग-विलास से दूर रहना। (ब्रह्मचर्य)
- नृत्य और गान का त्याग करना।
- सुगंधित पदार्थों का त्याग करना।
- असमय भोजन नहीं करना।
- कोमल शैय्या का त्याग करना।
- कामिनी कंचन (धन व स्त्री) का त्याग करना।
प्रश्न 6.
इस्लाम धर्म का विस्तार कैसे हुआ ?
अथवा
इस्लाम धर्म का दक्षिण एवं दक्षिण पूर्वी एशिया में अधिक प्रसार क्यों हुआ है ?
उत्तर:
इस्लाम धर्म के विस्तार में खलीफाओं एवं उनके अनुयायी शासकों की मुख्य भूमिका रही जिन्होंने सैनिक बल पर दक्षिण एशिया एवं विश्व के अन्य भागों में साम्राज्यों की स्थापना की तथा इस्लाम का प्रसार किया इसी कारण वर्तमान में इस्लाम के अनुयायियों की संख्या उसके उद्गम स्थल से कहीं अधिक दक्षिण एवं दक्षिण पूर्वी एशिया में है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जरथुष्ट्र का जीवन-परिचय देते हुए पारसी दर्शन के प्रमुख सिद्धान्त बताइए।
उत्तर:
जरथुष्ट्र का जीवन परिचय
जरथुष्ट्र का जन्म पश्चिमी ईरान के अजरबेजान प्रान्त में हुआ था। उनके पिता का नाम पोमशष्पा और माता का नाम दुरोधा था। वे आरम्भ से ही विचारशील थे। तीस वर्ष की आयु में सबलान पर्वत पर उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। इन्हें पारसी धर्म एवं दर्शन का संस्थापक माना जाता है। पारसी धर्म का पवित्र ग्रन्थ अवेस्ता-ए-जेंद है।
पारसी दर्शन के मुख्य सिद्धान्त (शिक्षाएँ)
पारसी दर्शन के मुख्य सिद्धान्त (शिक्षाएँ) निम्नलिखित हैं-
1. जरथुष्ट्र द्वारा स्थापित दार्शनिक चिन्तन के अनुसार शरीर नाशवान है तथा आत्मा अजर-अमर है।
2. मानव को अपने कर्म के अनुसार सत्य व असत्य को पालन करने से स्वर्ग व नरक प्राप्त होता है। इस विचार से पारसी दर्शन भी वैदिक दर्शन के समान ही दिखाई देता है।
3. पारसी दर्शन के अनुसार इस संसार में दो प्रकार की शक्तियाँ हैं-
- दैवी
- दानवीय
दैवी शक्तियों का प्रतीक अहूरमजदा है तथा दानवीय शक्तियों का प्रतीक अहरिमन है।
4. अहूरमजदा एक महान देवता है जिसने पृथ्वी, स्वर्ग एवं मनुष्य की रचना की है। वह मनुष्यों को बुरी बात सोचने, सद्मार्ग छोड़ने एवं पाप करने से रोकता है।
5. दानवीय शक्ति अहरिमन व्यक्ति को शैतान बनाकर नरक की ओर ले जाती हैं। इन दोनों शक्तियों में संघर्ष चलता रहता है। किन्तु अंतिम विजय अहूरमजदा अर्थात् दैवी शक्तियों की होती है।
6. संसार में रहते हुए सद्कर्म करने से ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
7. इस दर्शन के अनुसार शरीर के तं। भाग हैं-
- शारीरिक एवं
- आध्यात्मिक। मृत्यु के पश्चात् शरीर तो नष्ट हो जाता है लेकिन आध्यात्मिक भाग जीवित रहता है।
8. यह संसार जल, अग्नि, वायु एवं पृथ्वी से बना है।
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