RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 9 समाजवाद

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 9 समाजवाद

  • समाजवाद का अर्थ शोषणरहित समतामूलक समाज व राज्य की स्थापना है। यह आधुनिक युग की दोनों ही विचारधाराओं मार्क्सवाद व कल्याणकारी उदारवाद का सम्मिश्रण रहा है। आज भारत सहित सभी लोकतान्त्रिक देशों ने समाजवादी लक्ष्यों को सांविधानिक मान्यता प्रदान की है।

समाजवादी अवधारणा का विकास:

  • सर्वप्रथम यूनान के स्टॉइक दर्शन ने आर्थिक समानता व सामाजिक न्याय का सिद्धान्त दिया। मध्यकाल में थॉमस मूर की प्रसिद्ध कृति ‘यूटोपिया’ (1516) में एक आदर्श समाजवादी राज्य की परिकल्पना प्रस्तुत की गई।
  • 17वीं शताब्दी में बेकन ने अपनी पुस्तक ‘न्यू अटलांटिस’ में समाजवादी विचारों का उल्लेख किया। समाजवाद की प्रगति की दिशा में फ्राँसीसी क्रान्ति (1789) मील का पत्थर साबित हुई। जब क्रान्ति के ” ध्येय वाक्य” में ‘समानता, स्वतन्त्रता व बन्धुत्व” को शामिल किया गया ।
  • समाजवादी सिद्धान्तों के विकास में बेबियफ, ब्लैंकी, सन्त साईमन, चार्ल्स फूरियर, रॉबर्ट ओवन, पूधों, बकुनिन आदि विचारकों का उल्लेखनीय योगदान रहा।
  • कालान्तर में जॉर्ज बर्नाड शॉ, जी. डी. कोल, जॉर्ज सोरेल जैसे विचारकों ने समाजवाद की अनेक धाराओं; यथाफेवियनवाद, श्रेणी समाजवाद, श्रमिक संघवाद आदि का विकास किया। समाजवाद का विधिवत सैद्धान्तिक सूत्रपात 1848 में कार्ल मार्क्स ने किया।
  • औद्योगिक क्रान्ति, जिसने समाजवादी क्रान्ति को संभव बनाया, सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में हुई। इसलिए इंग्लैण्ड को ‘समाजवादी क्रान्ति का घर’ कहा जाता है।
  • जिन विचारकों ने समाजवाद की सामान्य व्याख्या की है, उनमें रैम्जे मैकडानल्ड, आर. एन. टॉनी, सिडनी एवं बेट्रिस बैव, हेरल्ड लॉस्की, क्लेमेण्ट एटली, ऐवन एम. एफ. डार्विन, अमेरिका के नार्मन थामस और भारत में पं. जवाहरलाल नेहरू, राम मनोहर लोहिया एवं पण्डित दीनदयाल उपाध्याय का नाम प्रमुख रूप से लिया जा सकता है।

समाजवाद का आशय:

  • प्रजातान्त्रिक मार्ग को अपनाकर ऐसे समाजवाद की स्थापना जो स्थापना के बाद भी लोकतान्त्रिक मार्ग को अपनाकर ही अपने समस्त कार्य करे उसे ही समाजवाद कहते हैं।
  • राजनीतिक क्षेत्र में इसकी आस्था मानवीय स्वतन्त्रता पर आधारित उदारवादी दर्शन में है।

समाजवाद की कुछ परिभाषाएँ:

  • समाजवाद की विचारधारा लोकतन्त्र की समर्थक है। पं. नेहरू ने इसी आधार पर कहा है-”राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों का विकेन्द्रीकरण तथा जन सहमति के तरीकों से, न कि बल द्वारा स्थापित की जाने वाली न्यायपूर्ण व्यवस्था ही लोकतान्त्रिक समाजवाद है।”
  • समाजवाद का अर्थ है-लोकतान्त्रिक मार्ग को अपनाकर आर्थिक, सामाजिक न्याय की स्थापना । इस विचारधारा के आधार हैं- व्यक्ति की गरिमा और सामाजिक न्याय की स्थापना करना।

भारत में समाजवाद का विकास:

  • भारत में समाजवाद का आरम्भ उस समय हुआ जबकि सर्वप्रथम 1929 के लाहौर अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की कार्यकारिणी ने घोषित किया कि भारतीय जनता की दरिद्रता का कारण विदेशियों द्वारा किया जाने वाला शोषण ही नहीं वरन् समाज की आर्थिक व्यवस्था है। सन् 1931 के कराँची अधिवेशन में भी इसी बात को दोहराया गया।
  • गाँधीजी ने भारतीय आदर्शों व परिस्थितियों के अनुकूल समाजवाद को प्रतिपादन किया। बाद में पं. नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, मानवेन्द्र राय, आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया और पं. दीन दयाल उपाध्याय , आदि नेताओं ने भी समाजवादी विचारधारा को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

समाजवाद के प्रमुख तत्व:

  • समाजवाद के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-साम्यवाद और पूँजीवाद का विरोध, जनतान्त्रिक व्यवस्था में विश्वास, मानवता में विश्वास, आध्यात्मिक नैतिक मूल्यों का समर्थक, वर्ग संघर्ष के विरुद्ध, आर्थिक व राजनीतिक स्वतन्त्रता का पक्षधर, उत्पादन और वितरण पर जनतान्त्रिक नियन्त्रण, समाजीकरण पर बल, सम्पत्ति के असीमित संग्रह के विरुद्ध, मानव कल्याण का लक्ष्य।

समाजवाद के प्रमुख अवयव:

  • समाजवाद समाज के सभी वर्गों के सहयोग से विकास को बढ़ाना चाहता है।
  • समाजवाद हमेशा ही वैधानिक साधनों से सत्ता प्राप्त करने में विश्वास करता है।

समाजवाद के प्रमुख तत्व:

  • समाजवाद के प्रमुख तत्वों में कुछ का उल्लेख निम्न प्रकार है
  • धनवानों की बढ़ती हुई आय पर आयकर लगाया जाना चाहिए तथा प्राप्त राशि का उपयोग निर्धनों के हित में किया जाना चाहिए।
  • उद्योगों एवं बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए जिससे अर्थ-व्यवस्था पर राज्य का प्रभावी नियन्त्रण हो।
  • सभी व्यक्तियों के लिए उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार, उचित पारिश्रमिक व अवकाश की व्यवस्था होनी चाहिए।
  • राज्य द्वारा अधिकाधिक कल्याणकारी सेवाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे नागरिक सुखी जीवन व्यतीत कर सकें।

समाजवाद के गुण:

  • समाजवाद में पूँजीवाद और साम्यवाद इन दोनों ही व्यवस्थाओं के गुणों को ग्रहण करने का प्रयत्न किया गया है। ऐसी दशा में इसके गुणों में कुछ गुण इस प्रकार हैं
  • यह व्यक्ति और समाज दोनों के हितों का समान रूप से ध्यान रखता है।
  • समाजवाद निजी सम्पत्ति की समाप्ति नहीं चाहता बल्कि सामाजिक हित में उसे केवल सीमित करने के पक्ष में है।।
  • यह आर्थिक एवं राजनीतिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण का मार्ग अपनाता है।
  • यह समानता पर आधारित सामाजिक व्यवस्था की स्थापना में सहायक है।

समाजवाद के दोष:
आलोचकों के अनुसार समाजवाद के प्रमुख दोष इस प्रकार हैं

  • कोई स्पष्ट विचारधारा नहीं
  • एक दूसरे के विरोधी तत्वों को स्थान
  • प्राकृतिक संभावनाओं के विरुद्ध
  • भ्रष्ट व्यवस्था को संरक्षण
  • उपभोक्ताओं के हितों को हानि।

निष्कर्ष:

  • सिद्धान्ततः समाजवाद की आलोचना की जा सकती है किन्तु यदि व्यावहारिक दृष्टि से विचार किया जाये तो समाजवाद का कोई विकल्प नहीं है।

महत्वप नियमित:
1516 — थॉमस मूर ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘यूटोपिया’ की रचना की।
1789 — प्रसिद्ध फ्रांसीसी क्रान्ति सम्पन्न हुई।
1848 — कार्ल मार्क्स द्वारा लिखित पुस्तक ‘साम्यवादी घोषणा पत्र के साथ ही मार्क्सवादी समाजवाद का सूत्रपात्र हुआ।
1929 — भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का लाहौर अधिवेशन संपन्न हुआ।
1931 — भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का कराँची में अधिवेशन हुआ।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 9 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • समाजवाद — यह एक सामाजिक आर्थिक दर्शन है। इस व्यवस्था में धन सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियन्त्रण में रहते हैं। यह निजी सम्पत्ति का विरोध करता है।
  • पूँजीवाद — इस आर्थिक प्रणाली में उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है। इस आर्थिक व्यवस्था को लाभ के लिए संचालित किया जाता है।
  • साम्यवाद — यह कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित समाजवाद की चरम परिणति है। यह विचारधारा समतामूलक वर्गविहीन समाज की स्थापना की पक्षधर है। इसके अनुसार उत्पादन के साधनों पर सम्पूर्ण समाज का स्वामित्व होगा।
  • माक्र्सवाद — यह समाजवाद का वह रूप है जिसे माक्र्स ने प्रस्तुत किया। उन्होंने वैज्ञानिक समाजवाद की नींव डाली तथा सर्वहारा वर्ग का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। उन्होंने पूँजीपतियों के शोषण से मुक्त होने के लिए श्रमिकों के समक्ष एक व्यावहारिक योजना प्रस्तुत की।
  • अराजकतावादी — यह राजनीति विज्ञान की वह विचारधारा है जो राज्य के अस्तित्व को अनावश्यक मानती है। बकुनिन को इस विचारधारा का प्रवर्तक माना जाता है।
  • स्टॉइक दर्शन — यह एक प्राचीन यूनानी दर्शन है जो कि आत्म नियंत्रण पर बल देता है। यह व्यक्ति को स्पष्ट निर्णय, आन्तरिक शांति व कष्टों से निवृत्ति में सक्षम बनाता है।
  • यूटोपिया—इस शब्द का प्रयोग यूनानी लेखक थॉमस मूर ने अपनी पुस्तक के लिये किया जो कि 1516 में लिखी गई। उसने ‘यूटोपिया’ नाम से आदर्श समाज का वर्णन किया है।
  • न्यू अटलान्टिस — यह फ्राँसिस बेकन द्वारा लिखित अपूर्ण उपन्यास है जो कि 1627 ई. में प्रकाशित हुआ। फ्राँसिस बेकन को ‘अंग्रेजी निबन्ध’ तथा ‘आधुनिक अँग्रेजी गद्य’ का पिता कहा जाता है।
  • औद्योगिक क्रान्ति — 18वीं व 19वीं शताब्दियों में उत्पादन प्रक्रियाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया। हस्तनिर्मित सामान का स्थान मशीन निर्मित सामान ने ले लिया। उन्नत तकनीक के प्रयोग से उद्योग के क्षेत्र में तीव्र विकास हुआ। इसी प्रक्रिया को औद्योगिक क्रान्ति के नाम से जाना जाता है।
  • वर्ग-संघर्ष—यह मार्क्सवादी विचारधारा का प्रमुख तत्व है। मार्क्स के अनुसार समाज में सदैव से दो विरोधी आर्थिक वर्गों का अस्तित्व रहा है। एक वर्ग का उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व तथा दूसरा शारीरिक श्रम करने वाला वर्ग रहा है। प्रथम वर्ग द्वारा सदैव द्वितीय वर्ग का शोषण किया जाता रहा जिसके कारण इनके मध्य संघर्ष की स्थिति बनी रहती है।
  • थॉमस मूर (1478-1535 ई.) — इनका जन्म लन्दन में हुआ। इन्होंने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘यूटोपिया’ (1516) की रचना करके आदर्श समाज की परिकल्पना प्रस्तुत की।
  • फ्राँसिस बेकन (1561-1626 ई.) — एक अँग्रेज दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक एवं लेखक, जिसके जीवन के तीन उद्देश्य थे—सत्य का खुलासा, देश की सेवा एवं चर्च की सेवा। ‘न्यू अटलान्टिस’ ग्रन्थ का लेखक था।
  • कार्ल मार्क्स (1818-1883 ई.) — वह एक जर्मन दार्शनिक और क्रान्तिकारी थे। इन्होंने कम्युनिस्ट आन्दोलन की पृष्ठभूमि को अपने विचारों से तैयार किया था।
  • सन्त साइमन (1760-1825 ई.) — ये विश्व के प्रथम समाजवादी थे। ये पूँजीपतियों को विश्व की निर्धनता का प्रमुख कारण मानते थे। इनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को कार्य करना चाहिए।
  • रॉबर्ट ओवन (1771-1858 ई.) — समाजवाद के संस्थापकों में से एक थे। इन्होंने पूँजीवाद के दोषों को दूर करके सामाजिक व आर्थिक कल्याण की बात की।
  • जॉर्ज बर्नाड शॉ (1856-1950 ई.) — एक महान नाटककार, कुशल राजनीतिक व मानवतावादी थे। उन्हें साहित्य के लिये नोबल पुरस्कार भी मिला।
  • जी.डी. कोल (1889-1959) — एक प्रमुख ब्रिटिश अर्थशास्त्री थे जिन्होंने ‘ श्रेणी समाजवाद’ की स्थापना की।
  • पं. नेहरू (1889-1964 ई.) — पं. जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। स्वतन्त्रता से पूर्व व पश्चात् की राजनीति के केन्द्रीय व्यक्तित्व थे।
  • राम मनोहर लोहिया (1910-1967) — भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, एक महान चिन्तक व समाजवादी राजनेता थे।

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