RBSE Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 9 जीवन मूल्य शिक्षा

Rajasthan Board RBSE Class 10 Physical Education Chapter 9 जीवन मूल्य शिक्षा

RBSE Class 10 Physical Education Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 10 Physical Education Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवन मूल्य शिक्षा का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
मनुष्य ही नहीं वरन् जीव मात्र के लिए सद्भाव की भावना और परमार्थ की कामना से युक्त शिक्षा को मूल्य शिक्षा कहते हैं।

प्रश्न 2.
रामायण के लेखक का नाम बताइये।
उत्तर:
रामायण के लेखक का नाम वाल्मीकी है।

प्रश्न 3.
स्वामी विवेकानन्द ने धर्म संसद में भाषण कब दिया था ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द ने धर्म संसद में भाषण 1893 को दिया।

प्रश्न 4.
वृक्षों की रक्षा हेतु प्राणों की बलि किस महिला ने दी।
उत्तर:
वृक्षों की रक्षा हेतु प्राणों की बलि अमृता देवी ने दी।

प्रश्न 5.
आई. ए. एस. अधिकारी ने किसे शिक्षित बताया ?
उत्तर:
आई. ए. एस. अधिकारी ने अनपढ़ बालक को शिक्षित बताया।

प्रश्न 6.
जीवन को सफल बनाने के लिए किस शिक्षा का सर्वाधिक महत्त्व है ?
उत्तर:
जीवन को सफल बनाने के लिए जीवन मूल्य शिक्षा का सर्वाधिक महत्त्व है।

RBSE Class 10 Physical Education Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवन मूल्य शिक्षा का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
जीवन मूल्य शिक्षा का महत्त्व-प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में मूल्य शिक्षा नितांत आवश्यक है। मूल्य शिक्षा प्राप्त व्यक्ति मानव से महामानव व नर से नारायण बनने की सामर्थ्य रखता है। अतः आज के युग में भी जीवन मूल्य शिक्षा की अत्यधिक आवश्यकता है। रोजमर्रा की जिंदगी में चिंता क्रोध और तनाव जैसी ढेर सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है अतः जीवन मूल्य शिक्षा ही उसके समाधान का मार्ग है। वर्तमान में देव भूमि, पवित्र भूमि, पुण्य भूमि भारत में भी मूल्य शिक्षा की नितांत आवश्यकता है। जिस धरा पर देवी-देवताओं ने अवतार लिया, महापुरुषों के त्याग एवं शहीदों के बलिदान की अपार गाथाओं से इतिहास भरा पड़ा है उस देश के कई व्यक्तियों का ध्येय अर्थ अर्जन करना तथा विश्व बन्धुत्व की भावना के स्थान पर स्वहित सर्वोपरि हो गया है।

अतः मूल्य शिक्षा की नितांत आवश्यकता है। मूल्य शिक्षा के अभाव में पूर्ण शान्ति का अभाव होता जा रहा है। अतः भ्रष्टाचार, चोरी, डकैती, हत्याएँ, आतंकवाद, भाई भतीजावाद, काला बाजारी, व्यभिचार की घटनाएँ देखने को मिलती हैं। अतः श्रेष्ठ संस्कारों से युक्त व्यक्ति निर्माण के लिये मूल्य शिक्षा अत्यावश्यक है।जीवन मूल्य शिक्षा क्रोध, ईष्र्या, स्वार्थ, अहम, द्वेष, असत्य, कपट, विश्वासघात आदि विकारों का जन्म नहीं होने देती है। इससे मनुष्य मनुष्यत्व से देवत्व की ओर अग्रसर होता है। जीवन मूल्य शिक्षा को जीवन में अंगीकार करने से व्यक्ति परमात्मा से भी जोड़ने का सामर्थ्य प्राप्त कर सकता है।

जीवन मूल्य शिक्षा व्यक्ति के विकार दूर कर उसे षि से महर्षि बना देती है तथा वाल्मीकी जी का उदाहरण हम सबके सामने है। उन्होंने आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का सामर्थ्य प्राप्त कर लिया और विष्णु अवतार श्री रामचन्द्र जी के जीवन पर रामायण की रचना दिव्य दृष्टि के बल पर की। मूल्य शिक्षा का प्रादुर्भाव चिंतन से बढ़ता है और व्यक्ति चाहे तो सारे सद्गुण जीवन में धारण कर अपना जीवन सफल बना सकता है।

प्रश्न 2.
जीवन मूल्य शिक्षा से क्या लाभ है ?
उत्तर:
जीवन मूल्य शिक्षा से लाभ-जीवन सफल करने के सहायक मनुष्य जीवन अमूल्य है और मूल्य शिक्षा जीवन सफल करने में सहायक है। भारत का इतिहास इससे भरा पड़ा है महावीर स्वामीजी और महात्मा बुद्ध ने राज पाट वैभव से युक्त राजा होकर भी जीवन का अंतिम लक्ष्य परमात्मा प्राप्ति को माना। अतः संन्यास मार्ग अपना लिया। मीरा बाई, महारानी होते हुए भी ईश्वर भक्ति अत्यावश्यक है इस भाव से प्रभु भक्ति करते हुए कृष्ण भगवान की मूर्ति में साक्षात् समा गई। पन्नाधाये की स्वामी भक्ति का परिणाम स्वयं पुत्र का बलिदान देकर भी राजवंश के राजकुमार उदयसिंहजी की रक्षा की। मूल्य शिक्षा जीवन में अंगीकार करने वाला व्यक्ति अपने जीवन को धन्य कर देता है, अपने जीवन को सफल कर देता है। परिवार में प्राप्त जीवन मूल्य शिक्षा का परिणाम है।

अपने देश में प्राचीन जमाने में हर घर में जीवन मूल्यों की शिक्षा दादादादी, माता-पिता और बड़ों से मिलती थी। व्यक्ति सत्य, सदाचार, ईमानदारी, सेवाभाव, दयालुता, परोपकार से युक्त जीवन जीता था जिसमें मूल्य शिक्षा का अमूल्य योगदान है। रोटी, कपड़ा मकान जीने के लिये आवश्यक हैं तो जीवन मूल्य शिक्षा अत्यावश्यक है। आज के युग में जीवन और प्राप्त शिक्षा आर्थिक क्षेत्र के लिए समर्पित कर दी है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि जीवन सफल बने इस हेतु परमार्थ भाव भी समाहित करना है। विकार विति से दूर रहना है। प्रत्येक व्यक्ति को चंदन वृक्ष की भाँति रहने की जरूरत है, विषधर साँप भी अपना प्रभाव नहीं दिखा सकता लेकिन चन्दन की महक का प्रभाव साँप पर घंटों रहता है।

भारत में जीवन मूल्य शिक्षा अलौकिक है क्योंकि यहाँ समर्पण, त्याग, सेवा, परमार्थ है व्यक्ति के पास सम्पत्ति अथाह है। पर समर्पण कितना है। हृदय में त्याग करुणा भाव कितना है यह महत्त्वपूर्ण है भारत में जो सम्पत्ति को छोड़ देता है। वह ज्यादा प्रतिष्ठा पाता है। महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध, भामाशाह और अनेक दानवीर इसके उदाहरण हैं जबकि विदेशों में जो धन शक्ति और वैभव से युक्त है वही महान है जबकि भारतवर्ष में जीवन मूल्य युक्त व्यक्ति महान माना जाता रहा है।

जो हँसते – हँसते राज्य छोड़ देते हैं, जीता हुआ राज्य छोड़ देते हैं। यही है। जीवन मूल्य शिक्षा का परिणाम। अत: जीवन मूल्य शिक्षा अमूल्य है देश हित में परित्याग, तन-मन का समर्पण, महापुरुषों द्वारा प्रदत्त नि:शुल्क ज्ञान अमूल्य है, यह भारतीय मूल्य है, दर्शन है, दृष्टि है। हजारों साल की परम्परा से नई पीढ़ी को जो देते हैं। वही जीवन मूल्य ज्ञान है वही दर्शन है। माता-पिता, गुरु और जीव मात्र के प्रति कैसी श्रेष्ठ भावना होनी चाहिए इसके हजारों उदाहरण हैं।

प्रश्न 3.
स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रदत्त शिक्षा के लाभ बताइये।
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द ने अपने विश्व स्तुत्य सम्बोधन से मूल्य शिक्षा से प्राप्त उद्देश्य को पुन: प्रतिष्ठित किया। मूल्य शिक्षा के लाभ-निबन्धात्मक प्रश्न 2 का उत्तर देखें।

जीवन मूल्य शिक्षा से लाभ-जीवन सफल करने के सहायक मनुष्य जीवन अमूल्य है और मूल्य शिक्षा जीवन सफल करने में सहायक है। भारत का इतिहास इससे भरा पड़ा है महावीर स्वामीजी और महात्मा बुद्ध ने राज पाट वैभव से युक्त राजा होकर भी जीवन का अंतिम लक्ष्य परमात्मा प्राप्ति को माना। अतः संन्यास मार्ग अपना लिया। मीरा बाई, महारानी होते हुए भी ईश्वर भक्ति अत्यावश्यक है इस भाव से प्रभु भक्ति करते हुए कृष्ण भगवान की मूर्ति में साक्षात् समा गई। पन्नाधाये की स्वामी भक्ति का परिणाम स्वयं पुत्र का बलिदान देकर भी राजवंश के राजकुमार उदयसिंहजी की रक्षा की। मूल्य शिक्षा जीवन में अंगीकार करने वाला व्यक्ति अपने जीवन को धन्य कर देता है, अपने जीवन को सफल कर देता है। परिवार में प्राप्त जीवन मूल्य शिक्षा का परिणाम है।

अपने देश में प्राचीन जमाने में हर घर में जीवन मूल्यों की शिक्षा दादादादी, माता-पिता और बड़ों से मिलती थी। व्यक्ति सत्य, सदाचार, ईमानदारी, सेवाभाव, दयालुता, परोपकार से युक्त जीवन जीता था जिसमें मूल्य शिक्षा का अमूल्य योगदान है। रोटी, कपड़ा मकान जीने के लिये आवश्यक हैं तो जीवन मूल्य शिक्षा अत्यावश्यक है। आज के युग में जीवन और प्राप्त शिक्षा आर्थिक क्षेत्र के लिए समर्पित कर दी है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि जीवन सफल बने इस हेतु परमार्थ भाव भी समाहित करना है। विकार विति से दूर रहना है। प्रत्येक व्यक्ति को चंदन वृक्ष की भाँति रहने की जरूरत है, विषधर साँप भी अपना प्रभाव नहीं दिखा सकता लेकिन चन्दन की महक का प्रभाव साँप पर घंटों रहता है।

भारत में जीवन मूल्य शिक्षा अलौकिक है क्योंकि यहाँ समर्पण, त्याग, सेवा, परमार्थ है व्यक्ति के पास सम्पत्ति अथाह है। पर समर्पण कितना है। हृदय में त्याग करुणा भाव कितना है यह महत्त्वपूर्ण है भारत में जो सम्पत्ति को छोड़ देता है। वह ज्यादा प्रतिष्ठा पाता है। महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध, भामाशाह और अनेक दानवीर इसके उदाहरण हैं जबकि विदेशों में जो धन शक्ति और वैभव से युक्त है वही महान है जबकि भारतवर्ष में जीवन मूल्य युक्त व्यक्ति महान माना जाता रहा है।

जो हँसते – हँसते राज्य छोड़ देते हैं, जीता हुआ राज्य छोड़ देते हैं। यही है। जीवन मूल्य शिक्षा का परिणाम। अत: जीवन मूल्य शिक्षा अमूल्य है देश हित में परित्याग, तन-मन का समर्पण, महापुरुषों द्वारा प्रदत्त नि:शुल्क ज्ञान अमूल्य है, यह भारतीय मूल्य है, दर्शन है, दृष्टि है। हजारों साल की परम्परा से नई पीढ़ी को जो देते हैं। वही जीवन मूल्य ज्ञान है वही दर्शन है। माता-पिता, गुरु और जीव मात्र के प्रति कैसी श्रेष्ठ भावना होनी चाहिए इसके हजारों उदाहरण हैं।

प्रश्न 4.
जीवन मूल्य शिक्षा से मनुष्य का विकास होता है। बताइये।
उत्तर:
जीवन मूल्य शिक्षा से मनुष्य का विकास होता है। जीवन मूल्य शिक्षा के अभाव में इंसान स्वार्थी बन जाता है और कई अपने असहाय माता-पिता को भी कुंभ के मेले में धोखे से छोड़ आते हैं। वहीं दूसरी ओर मूल्य शिक्षा से युक्त व्यक्ति पूर्ण संस्कारित एवं माता-पिता को पूर्ण सम्मान देने वाले होते हैं। बंकिम चन्द चटर्जी ने बी.ए. प्रथम श्रेणी में अच्छे अंकों से प्राप्त किया तब अंग्रेज अधिकारी ने बुलाया और कहा आपको उपखण्ड अधिकारी बनाने के आदेश करता हूँ तो उन्होंने कहा अभी नहीं मैं माता-पिता को पूछकर बताऊँगा, उन्होंने जन्म देकर बड़ा किया है। उन्हें पूछे बगैर निर्णय कैसे करूँ। पिता पुत्र के प्रति ऐसे स्नेह का परिणाम मूल्य शिक्षा है।

वर्तमान जीवन में दो पक्ष हैं पैसा और इंसानियत परन्तु व्यक्तित्व का विकास मात्र पैसों से नहीं होता, बल्कि जीवन में तपस्या, समर्पण, धर्माचरण, सहिष्णुता, उदारता, शालीनता, विनम्रता, शिष्टता, परोपकार के गुण समाहित होने से व्यक्तित्व का विकास होता है। दुर्बल मन को काबू में रखने से होता है। क्योंकि मन के गुलाम रहने से सदाचार और सद्गुण के जीवन में प्रवेश की सम्भावना कम रहती है। मन पर काबू पाने के लिये प्राणायाम, सत्य, धर्म, सद्कर्म और अध्यात्म मार्ग पर चलने से मन और संयमित मन से युक्त व्यक्ति जीवन यात्रा में सहजता से आगे बढ़ता है।

जीवन मूल्य शिक्षा से युक्त व्यक्ति देश में होंगे तो देश भी परम वैभव पर पहुँचता है और व्यक्ति भी श्रेष्ठ नागरिक बन जाता है। मनुष्य जन्म को सफल करने हेतु मूल्य शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान है, जितना शरीर में आत्मा का। जीवन मूल्य शिक्षा में आहार एवं विहार, करणीय एवं अकरणीय कार्यों का, जीवन दृष्टि तथा चरित्र निर्माण के लिये आवश्यक गुणों का ज्ञान प्राप्त होता है जिससे जीवन उत्कृष्ट बनता है। उत्कृष्ट जीवन बनाने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन उठते ही यह चिंतन करना चाहिए कि हमारा दिन ऐसा गुजरे कि रात को चैन की नींद आये तथा रात ऐसी गुजरे कि सुबह दुनिया को मुँह दिखाने में शर्म न आये।

यह अवस्था मूल्य शिक्षा प्राप्ति से ही संभव है। अतः व्यक्ति को विकास हेतु शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहने हेतु व्यक्ति के कल्याण के लिये जीवन में मूल्य शिक्षा की नितांत आवश्यकता है। मूल्य शिक्षा उत्तम स्वास्थ्य एवं उत्तम चिंतन एवं उज्ज्वल भविष्य का आधार है। जिसे जीवन में अंगीकार कर जीवन को सफल बना सकते हैं।

RBSE Class 10 Physical Education Chapter 9 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 10 Physical Education Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय दर्शन में पहला स्थान किसको मिला है?
उत्तर:
भारतीय दर्शन में पहला स्थान माता-पिता तथा गुरु को मिला है।

प्रश्न 2.
मूल्य शिक्षा के अभाव में व्यक्ति कैसा बन जाता है ?
उत्तर:
स्वार्थी बन जाता है।

प्रश्न 3.
मूल्य शिक्षा के अर्थ को समझाइये।
उत्तर:
मनुष्य ही नहीं वरन् जीव मात्र के लिये सद्भाव की भावना और परमार्थ की कामना से युक्त शिक्षा को मूल्य शिक्षा कहते हैं। प्राचीन काल से जीव मात्र के प्रति सद्भाव एवं सबके कल्याण की कामना की शिक्षा दी जाती रही है। अत: साँप को भी नाग देवता कहकर दूध पिलाने की परम्परा मूल्य शिक्षा की देन है। इस देश में सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत ऐसी महान सोच मूल्य शिक्षा की देन है। जिसके तहत कल्याण प्रार्थना सभी सुखी हों, निरोग हों, सर्वत्र शुभ ही देखें, सभी दुर्गणों का शमन और सद्गुणों का दर्शन हो।” मन, वचन और कर्म से की गई प्रार्थना या प्राप्त शिक्षा व्यक्ति का चरित्र निर्माण करती है।

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