RBSE Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष are part of RBSE Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 10 Social Science Solutions Chapter 3 अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष.
Board | RBSE |
Textbook | SIERT, Rajasthan |
Class | Class 10 |
Subject | Social Science |
Chapter | Chapter 3 |
Chapter Name | अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष |
Number of Questions Solved | 63 |
Category | RBSE Solutions |
Rajasthan Board RBSE Class 10 Social Science Solutions Chapter 3 अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [Textbook questions solved]
अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष अति लघूत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर:
23 सितम्बर, 1600 ई० को।
प्रश्न 2.
सुर्जीगाँव की संधि कब और किसके मध्य हुई?
उत्तर:
1803 ई० में अंग्रेजों और सिंधिया के बीच सुर्जीगाँव की संधि हुई थी।
प्रश्न 3.
टीपू सुल्तान कहाँ का शासक था?
उत्तर:
मैसूर का शासक था।
प्रश्न 4.
अमृतसर की संधि कब हुई?
उत्तर:
25 अप्रैल, 1809 ई० को रणजीत सिंह और अंग्रेजों के बीच अमृतसर की संधि हुई।
प्रश्न 5.
संन्यासी अंग्रेजों से क्यों नाराज थे?
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा तीर्थ स्थानों पर आने पर प्रतिबंध लगाने से संन्यासी लोग नाराज थे।
प्रश्न 6.
वासुदेव फड़के किस प्रांत से थे?
उत्तर:
महाराष्ट्र प्रांत से थे।
प्रश्न 7.
बिहार में 1857 ई० की क्रांति का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
जगदीशपुर के कुँअर सिंह ने।।
प्रश्न 8.
व्यक्तिगत सत्याग्रह के प्रथम सत्याग्रही कौन थे?
उत्तर:
विनोबा भावे पहले सत्याग्रही थे।
प्रश्न 9.
बेगू का किसान आंदोलन कब प्रारंभ हुआ?
उत्तर:
बेगू का किसान आंदोलन 1921 ई० में प्रारंभ हुआ।
अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
प्रथम अंग्रेज मराठा संघर्ष का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1775 ई० से 1782 ई० के मध्य अंग्रेजों और मराठों के मध्य संघर्ष चला। इस संघर्ष में ब्रिटिश सेना, संगठित मराठा सेना से परास्त हुई और 29 जनवरी, 1799 ई० में बडगाँव की अपमानजनक संधि करनी पड़ी, जिसमें अंग्रेजों द्वारा विजित प्रदेश मराठों को वापस लौटाने तथा रघुनाथ राव को पूना दरबार के हवाले करने तथा अंग्रेजों द्वारा 41,000 युद्ध हर्जाने के रूप में देना तय हुआ।
प्रश्न 2.
चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध के क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
1798 ई० में ईस्ट इंडिया कंपनी का गवर्नर बन लार्ड वेलेजली भारत आए। वेलेजली एक साम्राज्यवादी गर्वनर जनरल था। उसने निश्चय किया कि टीपू को पूर्णतया समाप्त कर दिया जाए अथवा उसे पूर्णतया अपने अधीन कर लिया जाए। इस उद्धेश्य की पूर्ति करने के लिए वेलेजली ने सहायक संधि करने का सहारा लिया। टीपू सुल्तान ने सहायक संधि को अस्वीकार कर दिया। अप्रैल 1799 ई० में टीपू के विरुद्ध अभियान प्रारंभ कर दिया। अप्रैल 1799 ई० में टीपू के विरुद्ध अभियान प्रारंभ कर दिया। 4 मई, 1799 को श्रीरंगपट्टनम का दुर्ग जीत लिया तथा मैसूर की स्वतंत्रता समाप्त
हो गई। टीपू संघर्ष करता हुआ मारा गया।
प्रश्न 3.
विनायक दामोदर सावरकर का स्वतंत्रता संघर्ष में क्या योगदान है?
उत्तर:
बंगाल विभाजन के समय विनायक दामोदर सावरकर ने अपने साथियों के साथ मित्र मेला’ नामक संगठन बनाकर विदेशी कपड़ों की होली जलाई। जिस कारण उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया। सावरकर एकमात्र ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने एक जन्म की नहीं, दो जन्मों की आजीवन कारावास की सजा दी थी। उनकी पुस्तक (द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस) प्रकाशन से पूर्व ही ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर ली थी। यह पुस्तक गुप्त रूप से विभिन्न शीर्षकों के नाम से भारत पहुँची थी। उन्होंने 1906 ई० में ‘अभिनव भारत’ की स्थापना की। सावरकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 के संघर्ष को गदर न कहकर भारत का प्रथम स्वतंत्रता का युद्ध बताया। सावरकर का लंबा समय अंडमान की सेलूलर जेल में बीता।।
प्रश्न 4.
चंपारण किसान आंदोलन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
उत्तर बिहार के चंपारण जिले में यूरोपीयन नील के उत्पादक किसानों पर अत्याचार करते थे। इसका विरोध करने के लिए गाँधीजी ने बाबू राजेन्द्र प्रसाद की सहायता से किसानों की वास्तविक स्थिति की जाँच की। किसानों को अहिंसात्मक आंदोलन करने के लिए कहा लेकिन बाद में जून 1917 में एक जाँच समिति बनाई। जिसकी रिपोर्ट पर चंपारण कृषि अधिनियम पारित किया गया जिसके द्वारा नील किसानों से जबरदस्ती नील की खेती कराना बंद कर दिया गया।
प्रश्न 5.
इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना कब और कैसे हुई?
उत्तर:
1885 ई० में एक अंग्रेज भारतीय सिविल सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी एलेन आक्टेवियन सूम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। इसकी स्थापना के पीछे ब्रिटिश सरकार की सोच थी कि एक ऐसा संगठन बनाया जाए, जिससे भारतीयों के मन में क्या है इसकी जानकारी ब्रिटिश सरकार को मिलती रहे तथा इसके सम्मेलनों में राजनैतिक नेताओं के मन की भड़ास निकल जाएगी तथा उन्हें अंग्रेजी शासन को हटाने के सशक्त प्रयास करने से भी रोका जा सकेगा। 28 दिसम्बर, 1885 ई० को व्योमेश चन्द्र बनर्जी की अध्यक्षता में बंबई के गोकुल दास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में प्रथम अधिवेशन प्रारंभ हुआ इसमें 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
प्रश्न 6.
गोविन्द गुरु ने कौन-सा आंदोलन चलाया?
उत्तर:
गोविन्द गुरु ने भगत आंदोलन चलाया था। भीलों के सामाजिक व नैतिक उत्थान के लिए गोविन्द गुरु ने सम्प सभा स्थापित की व उन्हें हिन्दू धर्म के दायरे में बनाए रखने के लिए भगत पंथ की स्थापना की। सम्प सभा द्वारा मेवाड़, डुंगरपुर, गुजरात, ईडर, विजयनगर और मालवा के भीलों में सामाजिक जागृति से शासन सशंकित हो उठा, और भीलों को बेगार कृषि कार्य के लिए बाध्य किया और जंगलों में उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित किया गया तो उन्होंने आंदोलन प्रारंभ कर दिया। गोविन्द गुरु को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन बाद में छोड़ दिया गया। ब्रिटिश सरकार ने भगत आंदोलन को निर्ममतापूर्वक कुचल दिया तथा गोविन्द गुरु को 10 वर्ष की कारावास की सजा दी गई।
प्रश्न 7.
बिजौलिया किसान आंदोलन को समझाइए।
उत्तर:
बिचौलिया किसान आंदोलन राजस्थान के अन्य किसान आंदोलनों का अगुआ रहा। 1897 ई० में गिरधरपुरा नामक गाँव में गंगा राम धाकड़ के पिता के मृत्युभोज के अवसर पर हजारों किसानों ने अपने कष्टों की खुलकर चर्चा की और मेवाड़ महाराणा को उनसे अवगत करवाया। महाराणा ने सुनवाई के बाद किसानों की लगान और बेगार संबंधी शिकायतों की जाँच के लिए सहायक राजस्व अधिकारी हामिद हुसैन को नियुक्त किया। लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला। इन क्षेत्रों में भंयकर आकाल पड़ा।
इसके बावजूद 1903 ई० में राव कृष्ण सिंह ने किसानों पर ‘चेवरी कर’ नामक एक नया कर लगा दिया। किसानों ने इसका मौन विरोध किया। उदयपुर राज्य सरकार ने 1919 ई० में बिजौलिया के किसानों की शिकायतों को सुनने के लिए एक आयोग का गठन किया। आयोग ने किसानों के पक्ष में अनेक सिफारिशें की, किन्तु मेवाड़ सरकार द्वारा इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिए जाने के कारण आंदोलन पूर्ववत जारी रहा। यह आंदोलन 1941 ई० तक चलता रहा।
प्रश्न 8.
साइमन कमीशन को भारतीयों ने क्यों विरोध किया?
उत्तर:
1919 के भारत सरकार अधिनियम के कार्यों की समीक्षा करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1927 ई० में सर जॉन
साइमन की अध्यक्षता में एक कमीशन बनाया। इसमें सात सदस्य थे लेकिन इसमें कोई भी भारतीय नहीं था। इसलिए
भारतीयों ने साइमन कमीशन का विरोध किया।
प्रश्न 9.
प्रजामण्डलों की राजस्थान में स्थापना क्यों की गई?
उत्तर:
1938 ई० में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में देशी राज्यों के आंदोलन को समर्थन देने का प्रस्ताव पास होने के बाद विभिन्न देशी रियासतों में प्रजामंडलों की व्यवस्थित स्थापना हुई। देशी रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना, सामंती अत्याचारों व शोषण का विरोध, देशी रियासतों में राजनैतिक जागृति पैदा करना और देश में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन को गति प्रदान करने के लिए जो राजनैतिक संगठन स्थापित हुए उन्हें प्रजामंडल कहा गया। राजस्थान की सभी रियासतों में अपने-अपने प्रजामंडल कार्यरत रहे थे। जिन्होंने आजादी तक उपर्युक्त मुद्दों पर समय-समय पर अनेक आंदोलनों का संचालन किया।
अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष निबंधात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
मराठों व मैसूर द्वारा अंग्रेजों से किए गए संघर्ष का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
18वीं सदी में भारत में मराठा शक्ति एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित हो चुकी थी लेकिन 1761 के पानीपत के तृतीय युद्ध के बाद मराठों की शक्ति कमजोर हो गई थी। मराठों और अंग्रेजों के मध्य तीन युद्ध हुए
- प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध-1775 ई० से 1782 ई० के मध्य अंग्रेजों और मराठों के मध्य संर्घर्ष चला। इस संघर्ष में ब्रिटिश सेना, संगठित मराठा सेना से परास्त हुई।
- द्वितीय अंग्रेज मराठा संघर्ष-यह संघर्ष 1802 से 1805 तक चला। इस संघर्ष का कारण लार्ड वेलेजली की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा तथा मराठा सरदारों का आपसी द्वेष रहा। इस संघर्ष में मराठा सरदारों ने अलग-अलग अंग्रेजों से युद्ध किया और पराजित हुए।
- तृतीय अंग्रेज मराठा संघर्ष- भारत में अंग्रेजों की सर्वश्रेष्ठता बनाए रखने के लिए 1817 को पेशवा के साथ और सिंधिया को अंग्रेजों के साथ अपमानजनक संधि करनी पड़ी। इन अपमानजनक बंधनों को तोड़ने के लिए मराठों ने संघर्ष आरंभ कर दिया लेकिन पेशवा की किर्की, भोंसले की सीतवर्डी तथा होल्कर की महींदपुर स्थान पर पराजय हुई। आंग्ल मैसूर संघर्षः
- प्रथम आंग्ल मैसूर संघर्ष-1767 ई० में हैदरअली ने ब्रिटिश प्रभाव वाले क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। अंत में अंग्रेज पराजित हुए। लाचार अंग्रेजों को हैदरअली के साथ 1769 ई० में मद्रास की संधि करनी पड़ी।
- द्वितीय आंग्ल मैसूर संघर्ष-द्वितीय आंग्ल मैसूर संघर्ष 1780 में प्रारंभ हो गया। हैदरअली को सफलता मिल रही थी, लेकिन 1782 को हैदर की मृत्यु हो गई। टीपू ने एक वर्ष तक युद्ध जारी रखा लेकिन दोनों पक्षों ने युद्ध से परेशान होकर 1784 ई० में मंगलौर की संधि कर ली।।
- तृतीय आंग्ल मैसूर संघर्ष-1790 ई० में तृतीय आंग्ल मैसूर संघर्ष शुरू हुआ। टीपू ने वीरतापूर्वक मुकाबला किया लेकिन अंत में 23 फरवरी, 1792 ई० को श्रीरंगपट्टनम की संधि करनी पड़ी। इस संधि से मैसूर का आधार भाग चला गया और क्षति के रूप में तीन करोड़ की राशि अंग्रेजों को देनी पड़ी।
- चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध-वेलजली ने टीपू पर सहायक संधि के लिए दबाव डाला जिसे टीपू सुल्तान ने अस्वीकार कर दिया। अंग्रेजों ने 1799 ई० में टीपू के साथ युद्ध छेड़ दिया। टीपू संघर्ष करता हुआ मारा गया।
प्रश्न 2.
1857 ई० के प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1857 ई० के विद्रोह की शुरुआत 10 मई को हुई थी। सैनिकों द्वारा चर्बी वाले कारतूसों के प्रयोग से मना करने पर अनुशासनहीनता के अपराध में उनको दंड दिया गया। मई 1857 ई० में छावनी में 85 सैनिकों के चर्बी युक्त कारतूसों का प्रयोग करने से मना करने पर सैनिक न्यायालय ने दीर्घकालीन कारावास का दंड दिया। इसके बाद सैनिकों में असंतोष फैला और विद्रोह की शुरुआत हो गई। यह विद्रोह शीघ्र ही लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली, झांसी, बनारस, जगदीशपुर और अन्य क्षेत्रों में फैल गया।
- दिल्ली-बहादुरशाह जफर को सैनिकों ने इस विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए कहा। मुगल सम्राट के नेतृत्व में यह विद्रोह दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में फैल गया। लेकिन जल्द ही इस विद्रोह को दबा दिया गया।
- लखनऊ-लखनऊ में हजरत महल के नेतृत्व में विद्रोह की शुरुआत हुई थी। सर कॉलिन कैम्पवेल ने गोरखा रेजीमेंट की सहायता से नगर में प्रवेश किया। मार्च 1858 ई० को नगर पर अंग्रेजों का पुन: अधिकार हो गया।
- कानपुर-5 जून, 1857 ई० को क्रांतिकारियों ने कानपुर पर अधिकार कर नाना साहिब को पेशवा घोषित किया। पेशवा नाना साहिब का साथ तात्या टोपे ने दिया। 6 दिसम्बर, 1857 को सर कैम्पबेल ने कानपुर पर पुनः अधिकार कर लिया।
- झांसी-रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में झाँसी में विद्रोह की शुरुआत हुई थी। सर ह्यूरोज ने झांसी पर आक्रमण करके अप्रैल 1858 को पुन: उस पर अधिकार कर लिया। रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हो गई।
- बिहार-बिहार में इस क्रांति का नेतृत्व जगदीशपुर के जमींदार 80 वर्षीय कुंवर सिंह ने किया। कुंवर सिंह ने अंग्रेज सेनापति गिलमेल, कर्नल डेक्स, मार्क और मेजर डालस को धूल चटाई।
- अन्य क्षेत्र-बरेली में बहादुर खान ने क्रांति में भाग लिया। बनारस में भी क्रांति हुई लेकिन कर्नल नील ने उसे दबा दिया। उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में सैनिक क्रांतिकारियों की संख्या कम थी फिर भी इस महान संघर्ष में दक्षिण भारत के भी अनेक क्रांतिकारी शहीद हुए, सजाएँ भुगती एवं बन्दी बनाए गए। 1857 ई० के स्वतंत्रता संग्राम के दक्षिणी भारत के प्रमुख नेतृत्व करनेवालों में रंग बापू जी गुप्ते (सतारा), सैयद अलाउद्दीन (हैदराबाद) आदि प्रमुख थे।
प्रश्न 3.
1919 ई० में 1949 ई० तक चलाए गए जनआंदोलनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1919 ई० में रोलेट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सभा आयोजित की गई जिसमें 20 हजार आदमी इकट्ठे हुए। जनरल डायर ने इन पर गोलियाँ चलवा दी जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। इसके बाद संपूर्ण भारत में रोलेट एक्ट के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया।
- असहयोग एवं खिलाफत आंदोलन-खिलाफत आंदोलन भारतीय मुसलमानों द्वारा तुर्की के खलीफा के सम्मान में चलाया था। तुर्की का खलीफा मुस्लिम जगत का धार्मिक गुरु था। 19 अक्टूबर, 1919 को पूरे देश में खिलाफत | दिवस मनाया गया। गांधी जी भी इस आंदोलन में शामिल हुए और ‘कैसर-ए-हिंद’ की उपाधि को लौटा दिया।
- असहयोग आंदोलन-रोलेट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकांड, हन्टर कमेटी की रिपोर्ट, तुर्की विभाजन, खलीफा का पद समाप्त करना आदि से गाँधीजी अधिक पीड़ित हुए। 1920 में गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। इसके अंतर्गत सरकारी उपाधियों को छोड़ने, विधान सभाओं, न्यायालयों, सरकारी उपाधियों को छोड़ने, विधान सभाओं, न्यायालयों, सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं, विदेशी माल इत्यादि का त्याग करना तथा कर न देना आदि शामिल था। 5 जनवरी, 1922 ई० को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चौरी-चौरा नामक स्थान पर शांतिपूर्ण जुलूस पर पुलिस द्वारा अत्याचार करने पर भीड़ ने पुलिस चौकी को आग लगा दी जिसमें 21 सिपाही एक थानेदार की मौत हो गई। गाँधीजी ने आंदोलन को हिंसात्मक होते देख 12 फरवरी, 1922 को यह आंदोलन वापस ले लिया।
- साइमन कमीशन का विरोध-1919 के भारत सरकार अधिनियम के कार्यों की समीक्षा करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1927 ई० में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक कमीशन बनाया। इसमें सात सदस्य थे लेकिन इसमें कोई भी भारतीय नहीं था। 3 फरवरी, 1928 ई० को जब यह कमीशन बंबई पहुँचा तो इसका जबरदस्त विरोध हुआ।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन-30 दिसम्बर, 1929 ई० के काँग्रेस अधिवेशन में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में काँग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास किया। गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत 1930 ई० में दांडी पहुँचकर अवैध नमक बनाकर कानून को तोड़ा। इस आंदोलन में गैर कानूनी नमक बनाने, महिलाओं द्वारा शराब की दुकानों, अफीम के ठेकों, विदेशी कपड़ों की दुकान पर धरना देना, विदेशी वस्त्रों को जलाना, चरखा कातना, छुआछुत से दूर रहना, विद्यार्थियों द्वारा सरकारी स्कूल-कॉलेज छोड़ना तथा सरकारी कर्मचारियों को नौकरियों से त्यागपत्र देने का आह्वान गाँधीजी ने किया। यह आंदोलन तेजी से पूरे भारत में फैल गया। 5 मार्च, 1931 को सरकार और काँग्रेस के मध्य गाँधी-इरविन समझौता हुआ। गाँधीजी ने भारतीय संवैधानिक सुधारों के लिए बुलाए गए दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। वे वहाँ से निराश लौटे और पुनः 1932 ई० में सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया। 1933 में गाँधीजी ने अपने आंदोलन की असफलता को स्वीकार कर लिया और काँग्रेस की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया।
- व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन-17 अक्टूबर, 1940 को गाँधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की। विनोबा भावे पहले, जवाहरलाल नेहरू दूसरे और ब्रह्मदत तीसरे सत्याग्रही थे। इस व्यक्तिगत सत्याग्रह में 30,000 लोग पकड़े गए।
- भारत छोड़ो आंदोलन- 8 अगस्त, 1942 ई० को बंबई काँग्रेस अधिवेशन में भारत छोड़ो आंदोलन को चलाये जाने का निर्णय लिया गया। 9 अगस्त को गाँधीजी सहित दूसरे काँग्रेसी नेता गिरफ्तार कर लिए गए तथा काँग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। फिर भी संपूर्ण देश में यह आंदोलन जारी रहा।
प्रश्न 4.
भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में क्रांतिकारियों का क्या योगदान रहा? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में क्रांतिकारी आंदोलन की शुभारंभ 19वीं सदी के अंत में हुआ। इस क्रांतिकारी आंदोलन का केंद्र महाराष्ट्र, बंगाल, संयुक्त प्रांत और पंजाब प्रांत था।।
महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आंदोलन-महाराष्ट्र में क्रांतिकारी गतिविधि का प्रारंभ 1876 ई० में वासुदेव बलवंत फड़के नामक सरकारी कर्मचारी ने किया। फड़के ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ जगह-जगह पर भाषण दिया और लोगों में उत्तेजना फैलायी। ब्रिटिश सरकार ने 1879 ई० में फड़के को गिरफ्तार कर अदन की जेल में भेज दिया जहाँ 1889 में उनका स्वर्गवास हो गया। पूणे के दामोदर हरि चापेकर, बालकृष्ण हरि चापेकर”तथा वासुदेव हरि चापेकर बंधुओं ने दो अंग्रेज अधिकारी की हत्या कर दी। चापेकर बंधुओ को गिरफ्तार कर लिया गया और फाँसी की सजा दी गई। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने लंदन शहर में 1905 ई० में भारत स्वशासन समिति का गठन किया। शीघ्र ही बी०डी० सावरकर, लाला हरदयाल और मदन लाल धींगरा जैसे क्रान्तिकारी इसके सदस्य बन गए।
विनायक दामोदर सावरकर-वीर सावरकर ने 1906 ई० में अभिनव भारत की स्थापना की। सावरकर का लंबा समय अंडमान की सेलूलर जेल में बीता। 1924 ई० में स्वास्थ्य खराब होने के बाद रत्नागिरी में नजरबन्द रखा गया, बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया।
बंगाल में क्रान्तिकारी आंदोलन-बंगाल में क्रान्तिकारी आंदोलन का सूत्रपात पी० मिश्रा ने एक क्रांतिकारी संगठन ‘अनुशीलन समिति का गठन कर दिया। बंगाल में राजनैतिक जागृति बंगाल विभाजन के बाद आई। अब आंदोलन का उद्देश्य विभाजन को रद्द करवाना ही नहीं, बल्कि स्वराज्य की प्राप्ति बन गया। 1905 ई० में वारिन्द्र कुमार घोष ने ‘भवानी मंदिर’ नामक पुस्तक लिखकर क्रान्तिकारी कार्यों को संगठित करने की विस्तृत जानकारी दी थी। युगांतर और ‘संध्या’ नाम की पत्रिकाओं में भी अंग्रेज विरोधी विचार प्रकाशित किए जाने लगे। एक अन्य पुस्तक ‘मुक्ति कौन पाथे’ में सैनिकों से भारतीय क्रांतिकारियों को हथियार देने का आग्रह किया।
प्रश्न 5.
राजस्थान में किसान आंदोलनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में राजनीतिक चेतना का प्रारंभ यहाँ के किसानों व जनजातीय समाज ने किया। राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में किसानों का आंदोलन हुआ, जिसमें बिजौलिया किसान आंदोलन, सीकर किसान आंदोलन, बेंगू किसान आंदोलन, बरड़ किसान आंदोलन, नीमूचणा किसान आंदोलन प्रमुख थे।
बिजौलिया किसान आंदोलन-किसान आंदोलन राजस्थान के अन्य किसान आंदोलनों का अगुआ रहा। विभिन्न प्रकार के लगानों के कारण बिजौलिया की किसानों की स्थिति पहले से काफी दयनीय थी, इसके बावजूद भी स्थानीय शासक ने इनपर नया कर लगा दिया। इसके बाद किसानों में असंतोष फैला और शासन के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया। उदयपुर राज्य सरकार ने अप्रैल 1919 ई० में बिजौलिया के किसानों की शिकायतों की सुनवाई करने के लिए मांडलगढ़ हाकिम बिन्दुलाल भट्टाचार्य की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। आयोग ने किसानों के पक्ष में अनेक सिफारिशें की किन्तु मेवाड़े सरकार द्वारा इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिए जाने के कारण आंदोलन पूर्ववत जारी रहा, जो 1941 ई० तक चलता रहा।
सीकर किसान आंदोलन-किसान आंदोलने का प्रारंभ सीकर ठिकाने के नए रावराजा कल्याण सिंह द्वारा 25 से 50 प्रतिशत तक भूराजस्व वृद्धि करने से हुआ। 1931 ई० में राजस्थान जाट क्षेत्रीय सभा की स्थापना के बाद किसान आंदोलन को नई ऊर्जा मिली। 1935 ई० के अंत तक किसानों की अधिकांश माँगें स्वीकार कर ली गई।
बेगू किसान आंदोलन-बिजौलिया किसान आंदोलन से प्रेरित होकर बेगू ठिकाने के कृषकों ने भी 1921 में आंदोलन प्रारंभ कर दिया। क्योंकि यहाँ के लोग भी लगान वे लोग-बाग के अत्याचारों से पीड़ित थे। इस आंदोलन का नेतृत्व विजय सिंह पथिक जैसे कुछ किसान कर रहे थे। राज्य के अत्याचारों से किसानों का मनोबल गिरता देख पथिक ने गुप्त रूप से बेगू पहुँचकर स्वयं किसान आंदोलन का नेतृत्व सँभाल लिया। मेवाड़ सरकार द्वारा इन्हें 10 सितम्बर, 1923 को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, जिसके बाद आंदोलन धीरे-धीरे समाप्त हो गया।
बरड़ किसान आंदोलन-अनेक प्रकार के लगान, बेगार आदि से त्रस्त बूंदी राज्य के बरड़ क्षेत्र के किसानों ने बूंदी प्रशासन के विरुद्ध अप्रैल 1922 ई० में आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का नेतृत्व राजस्थान सेवा संघ के कार्यकर्ता नयनूराम शर्मा के हाथों में था। 1927 ई० के बाद राजस्थान सेवा संघ अंतर्विरोधों के कारण बंद हो गया। अत: राजस्थान सेवा संघ के साथ ही बूंदी का बरड़ किसान आंदोलन समाप्त हो गया।
नीमूचणा किसान आंदोलन (अलवर)-अलवर में सूअरों को मारने पर प्रतिबंध था और ये सूअर किसानों की फसल को बर्बाद कर देते थे। इन सूअरों के उत्पात से दुखी होकर 1921 ई० में अलवर के किसानों ने आंदोलन प्रारंभ कर दिया। बाद में महाराजा ने सूअरों को मारने की इजाजत दे दी। महाराजा ने नई भूमि दर लागू की। इस भूमि दर में राजपूतों, ब्राह्मणों से कम कर ली जाती थी लेकिन बाद में इनका विशेषाधिकार समाप्त कर दिया गया जिससे राजपूतों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर कर भाग लिया। राजा ने गोलियों और आगजनी के माध्यम से 156 लोगों को मार दिया और 600 लोगों को घायल कर दिया जिसकी आलोचना अनेक नेताओं ने की थी।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर (More Questions Solved)
अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
ईस्ट इंडिया कंपनी की भारत में पहली व्यापारिक कोठी कहाँ स्थापित हुई थी?
उत्तर:
ईस्ट इंडिया कंपनी की भारत में पहली व्यापारिक कोठी सूरत में स्थापित हुई थी।
प्रश्न 2.
सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के बीच कौन-सा युद्ध हुआ? ।
उत्तर:
प्लासी का युद्ध।
प्रश्न 3.
मीर कासिम और अंग्रेजों के बीच होने वाले युद्ध का नाम बताएँ।
उत्तर:बक्सर का युद्ध।
प्रश्न 4.
बक्सर के युद्ध का क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
बक्सर युद्ध के बाद अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार प्राप्त हो गए। इससे भारत के उद्योगों और व्यापार को भी हानि पहुँची। |
प्रश्न 5.
सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के बीच युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर:
अंग्रेजों ने अवसर का लाभ उठाकर नवाब के विरोधियों को संरक्षण देना प्रारंभ कर दिया। आर्थिक मामलों को लेकर नवाब और अंग्रेजों के मध्य काफी मतभेद हो गए।
प्रश्न 6.
मीर कासिम और अंग्रेजों के मध्य युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर:
नवाब बनने के बाद मीर कासिम ने बंगाल में प्रशासनिक सुधार का प्रयास किया लेकिन भ्रष्टाचार व ब्रिटिश हस्तक्षेप के कारण उसे सफलता नहीं मिली। आर्थिक मामलों एवं विभिन्न सुविधाओं को लेकर मीर कासिम वे अंग्रेजों के मध्य मतभेद बढ़ते गए।
प्रश्न 7.
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर:
अंग्रेज प्रथम आंग्ल मैसूर संघर्ष की हार का बदला लेना चाहते थे। हैदरअली अंग्रेजों के गुंटूर पर अधिकार से नाराज था। अत: हैदरअली ने निजाम व मराठों के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध किया।
प्रश्न 8.
तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर:
अंग्रेज मैसूर का प्रभाव समाप्त करना चाहते थे दूसरी ओर टीपू मालाबार की सुरक्षा हेतु कोचीन में स्थित डच दुर्ग कागनूर व आइकोट को खरीदना चाहता था। लेकिन अंग्रेज समर्पित ट्रावनकोर के राजा ने इन्हें खरीद कर टीपू को नाराज कर दिया। अप्रैल 1790 ई० में टीपू ने ट्रावनकोर पर आक्रमण कर दिया। कार्नवालिस ने विशाल सेना के साथ मैसूर पर आक्रमण कर दिया।
प्रश्न 9.
प्रथम अंग्रेज सिख संघर्ष के क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
13 फरवरी, 1846 को अंग्रेजों ने लाहौर पर अधिकार कर लिया। 1 मार्च, 1846 को लाहौर की संधि हुई जिसमें जालंधर दोआब अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया तथा एक करोड़ पचास लाख की राशि युद्ध क्षति के रूप में सिखों को अंग्रेजों को देनी थी। सिख सेना की संख्या सीमित कर दी गई।
प्रश्न 10.
द्वितीय अंग्रेज-सिख संघर्ष के क्या कारण थे?
उत्तर:
1847-48 में अंग्रेजों द्वारा पंजाब में सारे ऐसे सुधार करना जो सिख विरोधी थे, फौज से मुक्त किए गए सैनिकों का असंतोष तथा रानी जिन्दा के अधिकारों का छिन जाना व उनकी बदला लेने की चाहत आदि प्रमुख कारण थे। रेजीडेंट का अत्यधिक आंतरिक हस्तक्षेप व डलहौजी की पंजाब में अंग्रेजी शासन की चाहत ने द्वितीय आंग्ल सिख संघर्ष अनिवार्य कर दिया।
प्रश्न 11.
रमोसी विद्रोह क्यों और किन क्षेत्रों में हुआ था?
उ०
पश्चिमी घाट में रहनेवाली एक जनजाति रमोसी थी। वे अंग्रेजी प्रशासन पद्धति तथा अंग्रेजी प्रशासन से बहुत अप्रसन्न थे। 1822 ई० में उनके सरदार चित्तर सिंह ने विद्रोह कर दिया तथा सतारा के आस-पास के प्रदेश लूट लिए। 1825 26 ई० में पुन: विद्रोह हुए। अधिक सैन्य बल से ही अंग्रेज इन विद्रोह को दबाने में सफल हुए।
प्रश्न 12.
भारत के एक ऐसे क्रांतिकारी का नाम बताएँ जिन्हें एक जन्म का नहीं, बल्कि दो जन्मों की सजा दी गई थी?
उत्तर:
विनायक दामोदर सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने दो जन्मों की सजा दी थी।
प्रश्न 13.
प्रजामंडल की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या थी?
उत्तर:
प्रजामंडल आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि इसने महिलाओं को घर की चारदीवारी से बाहर निकालकर पुरुषों के बराबर लाकर खड़ा कर दिया।
प्रश्न 14.
जयपुर प्रजामंडल के आंदोलन में भाग लेनेवाली महिलाओं के नाम बताइए।
उत्तर:
जयपुर प्रजामंडल के आंदोलनों में अनेक महिलाओं ने भाग लिया जिनमें रमादेवी देशपांडे, सुशीला देवी, इंदिरा देवी, अंजना देवी चौधरी प्रमुख थी।
प्रश्न 15.
प्रजामंडलों के कार्यकर्ताओं ने किस तरह के सामाजिक सुधार किए?
उत्तर:
प्रजामंडलों के कार्यकर्ताओं ने सामाजिक सुधार के तहत शिक्षा का प्रसार, बेगार उन्मूलन तथा दलित-आदिवासियों के उत्थान पर भी ध्यान दिया।
प्रश्न 16.
अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
इस संस्था की स्थापना का मुख्य उद्देश्य-भारत की देशी रियासतों में वैध और शांतिपूर्ण उपायों से वहाँ के राजाओं की छत्रछाया में उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना था।
प्रश्न 17.
गाँधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन शुरू करने के क्या कारण थे?
उत्तर:
रोलेट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकांड, हंटर कमेटी की रिपोर्ट, तुर्की विभाजन, खलीफा का पद समाप्त करना आदि में गाँधीजी अत्यधिक पीड़ित हुए। उन्होंने 1920 ई० में असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।
अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में किसान आंदोलन के क्या कारण थे?
उत्तर:
भारत में किसान आंदोलन के कारण
- अंग्रेज सरकार की प्रशासनिक भूमि कर संबंधी नीतियाँ।
- बार-बार लम्बे काल तक अकाल पड़ना।
- किसानों से जमींदारों, सामंतों द्वारा अत्यधिक कर वसूलना।
- व्यापारियों, साहूकारों द्वारा चंगुल में फँसाकर झूठे दस्तावेज तैयार करना।
प्रश्न 2.
प्रजामंडल आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया। इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
प्रजामंडल आंदोलनों में अनेक महिलाओं ने आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया और गिरफ्तारियाँ दी। जयपुर प्रजामंडलों के आंदोलनों में अनेक महिलाओं ने भाग लिया जिनमें रमादेवी देशपांडे, सुशीला देवी, इंदिरा देवी, अंजना देवी चौधरी आदि प्रमुख थी।
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जोधपुर में गोरजा देवी, सावित्री देवी भाटी, सिरेकंवल व्यास, राजकौर व्यास आदि ने गिरफ्तारियाँ दी तो उदयपुर में माणिक्य लाल वर्मा की पत्नी नारायणदेवी अपने 6 माह
के पुत्र को गोद में लिए जेल गई।
प्रश्न 3.
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में प्रजामंडल का क्या योगदान था? ।
उत्तर:
राजस्थान की सभी रियासतों में अपने-अपने प्रजामंडल कार्यरत रहे थे जिन्होंने आजादी तक उपर्युक्त मुद्दों पर समय-समय पर अनेक आंदोलनों का संचालन किया। प्रजामंडल का उद्देश्य देशी रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना, सामंती अत्याचारों व शोषण का विरोध, देशी रियासतों में राजनैतिक जागृति पैदा करना और देश में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन को गति प्रदान करना था। प्रजामंडल आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि ये थी कि उसने महिलाओं को घर की चारदीवारी से बाहर निकालकर पुरुषों के बराबर खड़ा कर दिया।
अनेक महिलाओं ने आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया और गिरफ्तारियाँ दी। प्रजामंडलों के कार्यकर्ताओं ने सामाजिक सुधार, शिक्षा प्रसार, बेगार उन्मूलन तथा दलित आदिवासियों के उत्थान पर भी ध्यान दिया। इन संगठनों ने उत्तरदायी संघर्ष के लिए आंदोलन चलाए जिससे राजशाही और सामंती शोषण से दबी राजस्थान की जनता में राजनैतिक जनजागृति पैदा हुई।
प्रश्न 4.
असहयोग आंदोलन के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार को किस तरह का विरोध किया गया तथा गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को क्यों वापस लिया?
उत्तर:
असहयोग आंदोलन के अंतर्गत सरकारी उपाधियों को छोड़ना, विधान सभाओं, न्यायालयों, सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं, विदेशी माल आदि को त्याग करना तथा कर न देना शामिल था। इसके विपरीत अपने-आपको अनुशासन में रखना, राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करना, आपसी झगड़े पंच निर्णय द्वारा तय करना, हाथ से कते और बुने कपड़े का प्रयोग करना आदि कार्य करने थे।
5 फरवरी, 1922 ई० को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चौरी-चौरा नामक स्थान पर शांतिपूर्ण जुलूस पर पुलिस द्वारा अत्याचार करने पर भीड़ ने पुलिस चौकी में आग लगा दी, जिसमें 21 सिपाही एक थानेदार की मौत हो गई। इस हिंसात्मक घटना के बाद गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।
प्रश्न 5.
भारत छोड़ो आंदोलन में लोगों की किस तरह की प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त, 1942 ई० को शुरू हुआ। 9 अगस्त को गाँधीजी सहित सभी महत्वपूर्ण नेता गिरफ्तार कर लिए गए। फिर भी यह आंदोलन चलता रहा। इस आंदोलन की कोई निश्चित योजना नहीं थी। इस आंदोलन में शांतिपूर्ण हड़ताल करना, सार्वजनिक सभाएँ करना, लगान देने से मना करना तथा सरकार का असहयोग करने की बात कही गई। इस आंदोलन को गाँधीजी ने अंतिम संघर्ष बताया था।
अतः जनता ने जिस ढंग से ठीक समझा अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। पूरे देश में एक स्वतःस्फूर्त आंदोलन उठ खड़ा हुआ। कारखाने, स्कूलों और कॉलेजों में हड्ताले
और काम-बंदी हुई। पुलिस थानों, डाकखानों, रेलवे स्टेशनों पर हमले किए गए। इस आंदोलन के दौरान अनेक शहरों, कस्बों और गाँवों में आंदोलनकारियों ने समानांतर सरकार बना ली थी।
प्रश्न 6.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के प्रथम अधिवेशन में क्या उद्देश्य बताए गए थे?
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के प्रथम अधिवेशन में चार उद्देश्य बताए गए थे
- राष्ट्र की उन्नति के लिए प्रयत्न में लगे लोगों को आपस में परिचित होने का अवसर देना।
- आने वाले वर्षों के कार्यक्रम पर विचार करना।
- ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति पूरी निष्ठा और भक्ति रखते हुए इंग्लैंड की पसंद द्वारा तय किए गए सिद्धांतों के विरुद्ध किये जाने वाले भारत सरकार के कार्यों का विरोध।
- अप्रत्यक्ष रूप से यह संगठन भारतीय संसद का रूप ग्रहण करेगा तथा इस बात का उचित जवाब देगा कि अंग्रेजों की यह सोच कि भारत के चुने हुए प्रतिनिधि शासन व्यवस्था करने की योग्यता नहीं रखते हैं।
प्रश्न 7.
अलवर के नीमूचणा किसान आंदोलन के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
अलवर में सूअरों को मारने पर प्रतिबंध था और ये सूअर किसानों की फसल को बर्बाद कर देते थे। इन सूअरों के उत्पात से दुखी होकर 1921 ई० में अलवर के किसानों ने आंदोलन प्रारंभ कर दिया। महाराजा को सूअरों को मारने की इजाजत देनी पड़ी। 1923-24 में भूराजस्व की नई दरें लागू कर दी गई। इस नये बंदोबस्त से पूर्व राजपूत एवं ब्राह्मणों से अन्य जातियों की तुलना में कम भूराजस्व लिया जाता था। मगर नये बन्दोबस्त द्वारा इन जातियों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिया गया।
इससे राजपूत नाराज हो गए और इन करों का विरोध किया। 14 मई, 1925 ई० को भूराजस्व के नाम पर होने वाले इस लूट पर चर्चा करने के लिए किसान अलवर की बानसूर तहसील के नीमूचणा गाँव में एकत्रित हुए। एकाएक राज्य की सेना ने इन पर गोलियाँ बरसा दी और घर जला दिए। इस घटना में 156 लोग मारे गए और लगभग 600 घायल हुए जिसकी संपूर्ण देश में आलोचना हुई।
अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष निबंधात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
राजस्थान के विभिन्न भागों में किसान आंदोलन के क्या कारण थे?
उत्तर:
राजस्थान के विभिन्न भागों में किसान आंदोलन के निम्न कारण थे
- अंग्रेजों के प्रभाव में आकर शासकों ने अपनी प्रजा की ओर पर्याप्त ध्यान देना छोड़ दिया। शासकों एवं जागीरदारों ने स्वयं का अस्तित्व ही ब्रिटिश सत्ता पर आधारित समझ लिया। इसलिए शासकों की निर्भरता जागीरदारों पर व जागीरदारों की निर्भरता कृषकों पर समाप्त होती चली गई।
- राजस्व अधिक वसूलने के साथ-साथ ही कृषकों से ली जाने वाली बेगारों व लागों में भी अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई। कुछ राज्यों में तो इन लोगों की संख्या 300 से अधिक थी।
- इस काल में अन्य व्यवसायों से विस्थापित लोगों के कृषि पर निर्भर हो जाने के कारण कृषक मजदूरों की संख्या में वृद्धि हुई। कृषक मजदूरों की संख्या में वृद्धि होने के कारण जागीरदारों के रूख में अधिक कठोरता आ गई।
- कृषि उत्पादित मूल्यों में गिरावट व इजाफा दोनों स्थितियाँ कृषकों के लिए लाभकारी नहीं थे। जहाँ एक ओर कीमत में गिरावट के कारण कृषकों की बचत का मूल्य कम हो जाता था, वहीं कीमतें बढ़ने के कारण भी उसे लाभ का भाग नहीं मिल पाता था क्योंकि जागीरदार लगान जिन्स के रूप में लेता था।
- अंग्रेजी प्रशासनिक व्यवस्थाओं को अपनाने के फलस्वरूप सामंतों का कृषकों के प्रति उदार व पैतृक नजरिया बदल गया।
प्रश्न 2.
1857 के विद्रोह के क्या कारण थे?
उत्तर:
भारत में 1857 ई० के विद्रोह के कई कारण थे
- लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति या व्यपगत सिद्धान्त-लॉर्ड डलहौजी ने उतराधिकार के नियम को बदल दिया। जिससे कई राज्य प्रभावित हुए। पहले किसी भी राजा का अपना पुत्र नहीं होता था, तो वह दूसरे बच्चे को गोद लेकर उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर देता था। लेकिन लॉर्ड डलहौजी के उत्तराधिकार के नियम में बदलाव से अब कोई भी राजा दूसरे बच्चे को गोद लेकर अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं कर सकता था। इससे झाँसी, सतारा, कोल्हापुर, जैतपुर जैसे अनेक राजाओं के अपने पुत्र नहीं थे। इसलिए इन राजाओं में असंतोष उत्पन्न हुआ और उन्होंने 1857 ई० के विद्रोह में भाग लिया।
- अंग्रेजों की साम्राज्य विस्तार की नीति-अंग्रेजों ने भारत के विभिन्न राज्यों को विभिन्न तरीके से अंग्रेजी राज्य में मिलाया, जिससे वहाँ के राजा, जमींदारों, नागरिकों और सैनिकों में असंतोष उत्पन्न हुआ।
- अंग्रेजों की आर्थिक नीति-ईस्ट इंडिया कंपनी की ऊँची भूमि लगान दर से किसान असंतुष्ट थे। ईस्ट इंडिया कंपनी ने आयात शुल्क काफी कम कर दिया था और निर्यात शुल्क में वृद्धि कर दिया था जिससे दस्तकार और कारीगर तबाह हो गए थे। विदेशी वस्तुओं का अधिक आयात होने लगा था और देशी वस्तुओं का निर्यात काफी कम हो गया था।
- सामाजिक कारण-ईस्ट इंडिया कंपनी ने कई सामाजिक सुधार; जैसे-सती प्रथा का उन्मूलन, बाल विवाह पर रोक, विधवा पुर्नविवाह आदि को शुरू किया था, जिससे भारतीय लोगों को लगने लगा था कि अंग्रेज हमारी हिन्दू रीति रिवाजों को खत्म करके हमें ईसाई बनाना चाहते हैं। इसलिए समाज में असंतोष फैल गया था।
- कारतूस वाली घटना-सैनिकों में यह अफवाह फैली थी कि जिस राइफल में कारतूस भरी जाती है, उसमें गाय और सूअर की चर्बी मिली हुई है इससे हिन्दू और मुसलमान दोनों सैनिक भड़क गए और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में शामिल हो गए।
प्रश्न 3.
भारत के जनजातीय आंदोलन के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के नीतियों के कारण कई जनजाति लोगों में असंतोष फैला और उन्होंने सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इन जनजातियों में कोल, संथाल, मुंडा, भील, रोमसी आदि प्रमुख थे।
- संन्यासी विद्रोह-बंगाल पर अंग्रेजी राज्य स्थापित होने के बाद जब 1769-70 ई० में भीषण आकाल पड़ा, तब
कंपनी के पदाधिकारियों ने कर भी कठोरता के साथ वसूले। संन्यासी कृषि के साथ-साथ धार्मिक यात्राएँ भी नियमित रूप से करते थे। तीर्थ स्थानों पर आने-जाने पर प्रतिबंध लगाने से संन्यासी लोग नाराज हो गए और विद्रोह कर दिया। - कोल विद्रोह-अंग्रेजी सरकार की नीति तथा स्थानीय शासक वर्गों के उपेक्षापूर्ण व्यवहार ने जिस शोषण को जन्म दिया था उसके खिलाफ कोल जनजाति ने विद्रोह किया। यह विद्रोह राँची, सिंहभूम, हजारीबाग, पलामू तथा मानभूम जिलों में फैल गया।
- संथाल विद्रोह-1855-56 ई० के बीच शुरू होनेवाला संथाल विद्रोह अंग्रेजी शासन के खिलाफ महत्वपूर्ण जनविद्रोह था। इस विद्रोह का कारण संथाले लोगों पर भूमिकर अधिकारियों द्वारा दुर्व्यवहार किया जाना, पुलिस का दमन तथा जमींदारों तथा साहूकारों द्वारा जबरदस्ती वसूली किया जाना था।
- भील विद्रोह-भील जनजाति पश्चिमी तट के खानदेश जिले में रहती थी। 1812-19 तक इन लोगों ने अपने नये स्वामी अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह का कारण कृषि संबंधी कष्ट तथा नई सरकार से भय था।
- रोमसी विद्रोह-पश्चिमी घाट में रहनेवाली एक जनजाति रोमसी थी। ये अंग्रेजी प्रशासन पद्धति तथा अंग्रेजी प्रशासन से बहुत असंतुष्ट थी। 1822 ई० में उनके सरदार चित्तर सिंह ने विद्रोह कर दिया तथा सतारा के आस-पास के प्रदेश लूट लिए। 1825-26 ई० में पुन: विद्रोह हुए। सेना के माध्यम से इस विद्रोह को दबा दिया गया।
प्रश्न 4.
ब्रिटिश शासन काल में चलाए गए प्रमुख किसान आंदोलन के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार की नीतियों से किसान असंतुष्ट थे और उन्होंने भारत के विभिन्न भागों में कई आंदोलन किए। इन आंदोलनों में कुछ प्रमुख हैं
- बंगाल में नील उगाने वाले किसानों का विद्रोह-यह विद्रोह अंग्रेज भूपतियों के विरुद्ध किया गया था। इस विद्रोह में किसानों के साथ जमींदारों, साहूकारों, धनी किसानों व सभी ग्रामीण वर्ण ने दिया। 19 वीं शताब्दी में कुछ कंपनी के अवकाश प्राप्त यूरोपीय अधिकारियों ने बंगाल तथा बिहार के जीमींदारों से भूमि प्राप्त कर नील की खेती करना आरंभ कर दिया। इन्होंने किसानों को ऐसी शर्तों पर खेती करने के लिए बाध्य किया जो किसानों के लिए लाभकारी नहीं थे।
- 1875 ई० में दक्षिण का विद्रोह-दक्षिण के विद्रोह का कारण अत्यधिक भूमि कर, कपास के भाव कम हो जाना, मराठा किसानों से अत्यधिक कर लिया जाना था। मारवाड़ी और गुजराती साहूकारों द्वारा लालच के कारण लेखों में हेरा-फेरी करने तथा अनपढ़ किसानों से बिना जानकारी के हस्ताक्षर कराना आदि शामिल थे। 1875 ई० में किसानों ने पूना जिले के साहूकारों के मकानों तथा दुकानों पर आक्रमण कर दिए और बहीखाते जला दिए।
- पंजाब में किसान आंदोलन-इस आंदोलन का कारण पंजाब के किसानों की ऋणग्रस्तता तथा किसानों की भूमि का गैर किसान वर्ग के पास पहुँच जाना था। इस भूमि हस्तांतरण को रोकने के लिए सरकार पंजाब भूमि अतिक्रमण अधिनियम लेकर आई।
- चंपारण किसान आंदोलन-उत्तर बिहार के चंपारण जिले में यूरोपीयन नील के उत्पादक बिहारी किसानों पर अत्याचार करते थे। इसके खिलाफ किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया। बाद में सरकार द्वारा कृषि अधिनियम के तहत नील किसानों से जबरदस्ती नील की खेती बन्द करा दिया गया।
- खेड़ा किसान आंदोलन-यह आंदोलन बंबई सरकार के विरुद्ध था। 1818 ई० की बसन्त ऋतु में फसलें नष्ट हो गई लेकिन फिर भी बंबई सरकार भूमि कर माँग रही थी, जबकि भूमि कर नियमों में यह स्पष्ट था कि फसल साधारण से 25 प्रतिशत से कम हो तो भूमिकर से पूर्णतया छूट मिलेगी। किसानों ने इसके खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया।
प्रश्न 5.
काँग्रेस के काल को कितने चरणों में बाँटा जा सकता है। प्रत्येक चरण की विस्तारपूर्वक व्याख्या करें।
उत्तर:
काँग्रेस के काल को दो चरणों में बाँटा जा सकता है। प्रथम चरण 1885-90 ई० तक जिसे उदारवादी राजनीति भिक्षावृत्ति का युग कहा गया है। दूसरा चरण 1905 से 1919 ई० तक का काल जिसे चरमपंथी या गरमपंथी युग कहा गया था। कांग्रेस के प्रथम चरण के उदारवादी नेता दादाभाई नौरोजी, फिरोज शाह मेहता, दीनशा वाचा, व्योमेश चंद्र बनर्जी और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी काँग्रेस की राजनीति पर छाये हुए थे। उदारवादी अंग्रेजी साम्राज्य में बने रहने के पक्ष में थे। उन्हें डर था कि अंग्रेजों के जाने पर अव्यवस्था फैल जाएगी। उदारवादियों का विश्वास था कि अंग्रेज न्यायिक लोग हैं। वे भारत के साथ न्याय ही करेंगे। इस काल में कांग्रेस ने देश की स्वतंत्रता की माँग नहीं की, केवल भारतीयों के लिए कुछ रियायतों की माँग की।
गरमपंथी चरण-उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम तथा बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में गरमपंथी राष्ट्रवादी विचार के लोगों को कांग्रेस में प्रभाव बढ़ने लगा। कांग्रेस में फूट की प्रक्रिया उस समय आरम्भ हो गई, जब लोकमान्य तिलक का समाज सुधार के प्रश्न पर नरमपंथी दल अथवा सुधारकों से झगड़ा हो गया। तिलक का कहना था कि स्वराज्य के बिना कोई सामाजिक सुधार नहीं हो सकते. न कोई प्रगति उपयोगी शिक्षा लोगों को प्रदान की जा सकती है। चार प्रमुख कांग्रेस नेता-लोकमान्य तिलक, विपिन चन्द्र पाल, अरविन्द घोष और लाला लाजपत राय ने इस आंदोलन का मार्गदर्शन किया। इस गरमपंथी आंदोलन के कार्यक्रमों में विदेशी माल का बहिष्कार और स्वदेशी माल को अंगीकार करना था।
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