RBSE Solutions for Class 11 Hindi आलोक Chapter 1 स्वातंत्र्य-उपासक महाराणा प्रताप

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 1 स्वातंत्र्य-उपासक महाराणा प्रताप

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 1 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1.
महाराणा प्रताप का जन्म हुआ –
(क) 9 मई 1540
(ख) 9 मई 1541
(ग) 10 मई 1540
(घ) 15 मई 1552
उत्तर:
(क) 9 मई 1540

प्रश्न. 2.
प्रताप किस विशेष युद्ध कला में निपुण थे –
(क) तलवारबाजी
(ख) छापामार युद्ध
(ग) तीरंदाजी
(घ) मल्लयुद्ध।
उत्तर:
(ख) छापामार युद्ध

प्रश्न. 3.
हल्दीघाटी युद्ध कब हुआ ?
(क) 18 जून 1575
(ख) 18 जून 1576
(ग) 18 जून 1577
(घ) 18 मई 1575
उत्तर:
(ख) 18 जून 1576

प्रश्न. 4.
महाराणा सांगा के सबसे छोटे पुत्र का नाम क्या था ?
(क) उदयसिंह
(ख) विक्रमादित्य
(ग) अमरसिंह
(घ) जगमालसिंह
उत्तर:
(क) उदयसिंह

प्रश्न. 5.
प्रताप की भीषण प्रतिज्ञा क्या थी ? इसका क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
प्रताप ने जन – जागृति हेतु भीषण प्रतिज्ञा की, “जब तक मैं शत्रुओं से अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र नहीं कर लेता, तब तक मैं न तो महलों में रहूँगा, न ही सोने-चाँदी के बर्तनों में भोजन करूंगा। घास ही मेरा बिछौना तथा पत्तल-दोने ही मेरे भोजन पात्र होंगे।” इस भीषण प्रतिज्ञा का व्यापक प्रभाव हुआ। सारे जन जाति क्षेत्र के भील प्रताप की सेना में शामिल होने लगे। मेरपुर-पानरवा के भील राणा पूँजा अपने दल-बल के साथ प्रताप की सेना में शमिल हो गए। इन्हीं वीर सैनिकों ने व

प्रश्न. 6.
महाराण प्रताप ने मरणासन्न “सुल्तान खाँ को जल पिलाकर उसकी अन्तिम इच्छा ही पूर्ण नहीं की बल्कि महानता का परिचय दिया।” इस संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
सुल्तान खाँ यद्यपि शत्रु सैनिक था, लेकिन वीरता का सम्मान मेवाड़ की परम्परा थी। जब वह अमरसिंह के भाले के वार से तड़फड़ाने लगा और पानी माँगा तो महाराणा प्रताप ने सैनिक सम्मान से स्वर्ण-कलश में जल मँगवाकर सुल्तान खाँ को पिलाया। यह उसकी अंतिम इच्छा थी, जिसे प्रताप ने पूर्ण किया। प्रताप वीर योद्धा के साथ महान् उदात्त गुणों से संपन्न थे। वह युद्ध की मर्यादा जानते थे, परन्तु विकट क्षणों में भी मानव-धर्म उनके लिए सर्वोपरि था। उन्होंने उसकी इच्छा पूर्ण कर सैनिक सम्मान दिया और स्वयं की महानता का परिचय भी प्रस्तुत किया।

प्रश्न. 7.
कवि दुरसा आढ़ा ने प्रताप की वीरता का वर्णन किस रूप में किया ?
उत्तर:
महाराण प्रताप के स्वर्गवास की सूचना पाकर अकबर के चेहरे की उदासी एवं नि:श्वास को देखकर कवि दुरसा आढ़ा ने सम्राट अकबर के भावों को अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया –

अस लेगो अणदाग, पाग लेगो अंणनामी।
गो आडा गवड़ाय, जिको बहतो धुर वामी।
नवरोजे नहं गयो, न को आतसा नवल्ली।
न गो झरोखै हेठ, जेठ दुनियाण दहल्ली।
गहलोत राण जीती गयो, दसण मुंद रसना डसी।
नीसास मूक भरिया नयण, तो म्रत साह प्रतापसी।

अर्थात् – “हे प्रतापसिंह तूने अपने घोड़े पर अकबर की अधीनता का चिह्न नहीं लगवाया और अपने चेतक को बेदाग ले गया; अपनी मेवाड़ी पगड़ी अकबर के सामने कभी तुमने झुकने नहीं दी वरन अनमी पाग लेकर चला गया। हमेशा मुगल सत्ता के विपरीत चलकर तूने अपनी वीरता की कीर्ति के गीत गवाए। जिस मुगलिया झरोखे के नीचे आज सारी दुनिया है तू कभी न तो उस झरोखे के नीचे आया, न ही, अकबर के नवरोज कार्यक्रम में उपस्थित हुआ। हे महान वीर! तू जीत गया। तेरी मृत्यु पर बादशाह ने आँखें मूंद कर, दाँतों के बीच जीभ दबाई, नि:श्वासे छोड़ीं और उनकी आँखों में आँसू भर आए। गहलोत राणा (प्रताप) तेरी ही विजय हुई।”

प्रश्न. 8.
‘धर रहसी, रहसी धरम’ प्रसिद्ध कवि रहीमजी ने उक्त पंक्तियाँ प्रताप के किस रूप से प्रेरित होकर कहीं ?
उत्तर:
प्रताप का अपनी मातृभूमि से प्रेम को देखकर यह पंक्तियाँ रहीम ने कहीं कि यदि धरा अर्थात् मातृभूमि रहेगी, तो धर्म बचेगा। प्रताप ने अपनी मातृभूमि की रक्षा का जीवन भर प्रयत्न किया और वे सफल भी रहे, युद्ध के क्षणों में भी अपने धर्म को नहीं छोड़ा। स्वयं रहीम खानखाना की बेगम व अन्य औरतों को पुन: ससम्मान पहुँचाने का धर्म निभाया। इससे प्रभावित होकर रहीम ने कहा था कि “धर रहसी, रहसी धरम।”

प्रश्न. 9.
महाराणा प्रताप ने अकबर के कूटनीतिज्ञ प्रयासों का जवाब कूटनीति से ही दिया। समझाइए।
उत्तर:
महाराणा प्रताप को यह मालूम था कि युद्ध होकर रहेगा, किंतु तैयारी हेतु समय चाहिए, इसलिए उन्होंने कूटनीति का जवाब कूटनीति से दिया। प्रथम संधिवार्ता हेतु आए जलाल खाँ को मीठी बातें कर भेज दिया। दूसरे संधिकर्ता के रूप में आमेर के राजकुँवर मानसिंह का स्वागत प्रताप ने उदय सागर की पाल पर किया और वह भी असफल होकर लौट गया। इसी तरह राजा भगवंत दास और टोडरमल को खाली हाथ लौटा दिया। इस तरह चारों संधिवार्ताओं का कूटनीतिक उत्तर देकर प्रताप ने युद्ध की तैयारी का समय प्राप्त कर लिया। इस बीच भावी समर की भी तैयारी पूर्ण कर ली।

प्रश्न. 10.
‘रक्त तलाई’ नाम की सार्थकता पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
‘रक्त तलाई’ का शाब्दिक अर्थ है-रक्त का तालाब। हल्दीघाटी का युद्ध विश्व इतिहास में प्रसिद्ध है। राणा प्रताप और अकबर की सेना के मध्य भीषण संग्राम हुआ था। इस युद्ध की भीषणता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि योद्धाओं के शरीर से निकले रक्त से यह तालाब बन गया, इसीलिए यह क्षेत्र रक्त-तलाई कहलाया।

प्रश्न. 11.
“प्रताप ने बाल्यकाल में ही शस्त्र व शास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।” प्रताप के बाल्यकाल का वर्णन करते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रताप बाल्यकाल से ही माँ की शिक्षा से निरन्तर शस्त्र व शास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर रहे थे। चित्तौड़ आने पर कृष्णदास रावत की देखरेख में शस्त्र-शिक्षा प्रारंभ हुई। वे शीघ्र ही तलवार, भाला तथा घुड़सवारी कला में पारंगत हो गए। इसी समय मेढ़ता से चित्तौड़ आए जयमल राठौड़ से प्रताप ने युद्ध संबंधी विशेष ज्ञान प्राप्त किया। व्यूह बनाकर शत्रुदल को परास्त करने को अनेक विधियाँ सीख तथा खास तौर पर छापामार युद्ध कला में प्रताप ने निपुणता प्राप्त कर ली। इस प्रकार प्रताप ने शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान बाल्यकाल में ही प्राप्त कर लिया था।

प्रश्न. 12.
“हल्दीघाटी युद्ध में वीरों के साथ-साथ चेतक का बलिदान भी अविस्मरणीय है।” स्पष्ट करें।
उत्तर:
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक स्वामिभक्त था। प्रताप ने जब मानसिंह पर हमला बोला तो चेतक ने अगली दोनों टाँगें हाथी के मस्तक पर दे मारी। प्रताप के सवामण के भाले की मार से महावत मर गया, हौदा टूट गया। प्रताप ने कटार फेंकी, लेकिन मानसिंह छुप कर अपनी जान बचाने में सफल रहा। इस बीच हाथी की सैंड पर लगी तलवार से चेतक की टाँग कट गई। युद्ध से लौटते समय घायल चेतक ने प्रताप को लेकर 20 फीट चौड़ा बरसाती नाला एक छलांग में पार कर लिया, लेकिन नाला पार करते ही वह बुरी तरह घायल हो गया। समीप ही इमली के पेड़ के पास जाकर गिर पड़ा और यहीं पर उसका प्राणांत हो गया। इस स्वामिभक्त तुरंग के बलिदान से प्रताप बहुत दुःखी हुए। उसे मंदिर के पास समाधि दी गई। चेतक का बलिदान वास्तव में अविस्मरणीय है।

प्रश्न. 13.
अकबर ने मेवाड़ को अपने अधीन करने के लिए कितने आक्रमण किए ? तीसरा आक्रमण कब व किसके नेतृत्व में किया ? उसका क्या परिणाम रहा ?
उत्तर:
अकबर ने मेवाड़ को अपने अधीन करने के लिए सात बार आक्रमण किए। अक्टूबर 1577 से नवम्बर 1579 ई. के मध्ये सेनापति शाहबाज खाँ को प्रताप को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने भेजा। वह तीन बार आक्रमण करने आया, किन्तु प्रताप की छापामार युद्ध पद्धति के आगे शाहबाज खाँ असफल होकर लौट गया।

प्रश्न. 14.
हल्दीघाटी का युद्ध इतिहास के अविस्मरणीय युद्धों में से एक है ? युद्ध का वर्णन विस्तारपूर्वक करते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर:
18 जून, 1576 ई. का ऐतिहासिक दिन हल्दीघाटी महासंग्राम के रूप में जाना जाता है। इस दिन प्रताप ने हल्दीघाटी के एक संकरे दें से निकल कर मुगल सेना पर आक्रमण किया। राणा की सेना में झोलामान, हकीम खाँ, ग्वालियर के राजा रामवीर सिंह तंवर आदि वीर थे। इस भीषण आक्रमण को मुगल सेना झेल नहीं पाई। सीकरी के शहजादे शेख मंजूर, गाजी खाँ बख्शी हरावल दस्ते. में थे। प्रताप की सेना द्वारा प्रचंड आक्रमण करने पर मुगल सेना 8-10 कोस तक भागती चली गई भागती मुगल सेना को एकत्रित करे : खमनोर ग्राम के मैदान पर लाया गया। वहाँ प्रताप की सेना और मुगल सेना में भयंकर युद्ध हुआ। प्रताप ने मानसिंह पर हमला बोल दिया। प्रताप के घोड़े चैर्तक ने अपनी अगली दोनों टाँगें मानसिंह के हाथी के मस्तक पर दे मारीं।

प्रताप के सवामण के भले की मार से महावत मारा गया और हाथी का हौदा भी टूट गया। प्रताप ने मानसिंह पर कटार फेंकी किन्तु वह छुपकर बच गया। मानसिंह का हाथी बिना महावत के मैदान से भाग गया। मुगल सेना में भगदड़ मच गई, प्रताप ने अपनी सेना के दोनों भागों को एकत्रित कर पहाड़ों पर मोर्चाबंदी कर ली। युद्ध में इतनी मार-काट हुई की वहाँ रक्त का तालाब बन गया था। इसलिए यह क्षेत्र ‘रक्त-तलाई’ कहलाया। इस युद्ध में प्रताप के लगभग 150वीर शहीद हुए और मुगल सेना के लगभग 500 सैनिक मारे गए। मेवाड़ी सेना के पहाड़ों में घात लगाए बैठे होने के कारण मुगल सेना भय से आगे न बढ़ सकी। युद्ध से लौटते समय घायले चेतक ने प्रताप को लेकर 20 फीट चौड़ा बरसाती नाला एक छलांग में पार कर लिया। वहाँ समीप ही इमली के पेड़ के पास आकर वह गिर पड़ा और वहीं मर गया।

इस स्वामिभक्त घोड़े के बलिदान से प्रताप बहुत दुःखी हुए। उन्होंने महादेव जी के मंदिर के पास ही उसे समाधि दे दी। युद्ध में इच्छित सफलता नहीं मिलने के कारण मुगल सेना सितम्बर 1576 ई० में अजमेर लौट गई। जून में आरंभ हुआ यह युद्ध सितम्बर में समाप्त हुआ। आज तक किसी भी युद्ध में अकबरे पराजित नहीं हुआ था, किन्तु हल्दीघाटी के युद्ध से वह अत्यन्त निराश हुआ। अत: स्पष्ट है कि हल्दीघाटी का युद्ध इतिहास के अविस्मरणीय युद्धों में से एक है।

प्रश्न. 15.
महाराणा प्रताप की वीरता, शौर्य, कूटनीतिज्ञता, प्रणप्रतिज्ञा आज भी हमारे लिए प्रेरणा-पुंज के समान है। इस कथन के आलोक में महाराणा प्रताप की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महाराणा प्रताप का वीरत्व, शौर्य, कूटनीतिज्ञता, प्रण-प्रतिज्ञा विश्व-इतिहास में अद्वितीय है। इन विशिष्टताओं से प्रताप को चरित्र विशिष्ट है। महाराणा प्रताप की चारित्रिक विशेषताएँ संक्षेप में निम्न प्रकार हैं।

  1. वीर योद्धा – महाराणा प्रताप ने जब ताज संभाला, उस समय पूरा भारत मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार कर चुका था, लेकिन प्रताप ने उसे स्वीकार नहीं किया। अकबर ने सात बार आक्रमण किए, परन्तु प्रताप को अधीन नहीं कर सके। हल्दीघाटी का महासंग्राम विश्व-इतिहास का अद्वितीय उदाहरण है। जहाँ विशाल मुगल सेना के पाँव उखड़ गए थे, वहाँ प्रताप के वीरता भरे चरित्र का उद्घाटन होता है।
  2. शौर्य – प्रताप शूरवीर थे। युद्धभूमि में रण-कौशल प्रेरणादायी होता था। मानसिंह के हाथी पर चेतक को चढ़ा देना व भीषण, वार, तलवार के एक ही वार से जिरह, बख्तर एवं घोड़े सहित बहलोल खाँ के दो फाड़ करना आदि उनकी शूरवीरता को प्रमाण है।
  3. कूटनीतिज्ञ – प्रताप को यह ज्ञात था कि अकबर से युद्ध अवश्यंभावी है, परन्तु युद्ध की तैयारी हेतु पर्याप्त समय की आवश्यकता थी। जब 1572 ई० में अकबर ने जलाल खाँ कोरची को संधि वार्ता हेतु भेजा तो उसे मीठी बातें कर भेज दिया। 1573 ई. में मानसिंह वार्ता करने मेवाड़ आयी तो प्रताप ने उदयसागर की पाल पर उसका स्वागत किया और उसे लौटा दिया। इसी प्रकार राजा भगवंतदास और टोडरमल को भी खाली हाथ लौटा दिया। चारों संधिवार्ताओं का कूटनीतिक उत्तर देकर प्रताप ने युद्ध की तैयारी का समय प्राप्त कर लिया। यह उनके कूटनीतिज्ञ व्यक्तित्व को प्रकट करता है।
  4. प्रण-प्रतिज्ञा – मेवाड़ की आन, बान, शान के लिए उनकी प्रण-प्रतिज्ञा विश्व-इतिहास में अनुपम है। राज्याभिषेक होते ही ज़न शक्ति को जाग्रत करने हेतु प्रताप ने भीषण प्रतिज्ञा की, “जब तक मैं शत्रुओं से अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र नहीं करा लेता, तब तक मैं न तो महलों में रहूँगा, न ही सोने-चाँदी के बर्तनों में भोजन करूंगा। घास ही मेरा बिछौना तथा पत्तल-दोने ही मेरे भोजन पात्र होंगे।” यह प्रण-प्रतिज्ञा जीवन काल तक रही, जो उनके संकल्पवान् चरित्र का उदाहरण है। इस प्रकार प्रताप का व्यक्तित्व अनुपम, प्रेरणादायी व भारतीय इतिहास की धरोहर है।

प्रश्न. 16.
“चित्तौड़ युद्ध में जयमल राठौड़, पत्ता चूड़ावत तथा कल्ला राठौड़ का शौर्य एवं पराक्रम इतिहास प्रसिद्ध है।” चित्तौड़ युद्ध का वर्णन करते हुए इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
चित्तौड़ की कमान जयमल राठौड़ एवं पत्ता पूँड़ावत को सौंपकर उदयसिंह उदयपुर प्रस्थान कर गए। अक्टूबर, 1567 ई. में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। चार मास घेरा डाले रखा, परन्तु उसे सफलता नहीं मिली। बादशाह ने टोडरमल को भेजकर जयमल को खरीदने का प्रयास किया, किन्तु जयमल ने उसे ठुकरा दिया और युद्ध में मुकाबला करने को कहा। इधर किले में रसद खत्म हो गई। तब 25 फरवरी 1568 ई. के पावन दिन सतीत्व रक्षार्थ पत्ता चूड़ावत की पत्नी महारानी फूल कँवर के नेतृत्व में 7000 क्षत्राणियों ने जौहर किया। उधर वीरों ने केसरिया बाना धारण कर हर-हर महादेव के गगनचुम्बी उद्घोष के साथ रणभूमि हेतु प्रस्थान किया।

जयमल राठौड़ के घुटने पर चोट लगने के कारण वे अपने भतीजे कल्ला राठौड़ के कंधे पर बैठकर युद्ध करने आए। इनके चतुर्भुज स्वरूप ने मुगल सेना पर कहर बरपा दिया। यह देख अकबर भी हतप्रभ रह गया। इन्हें रोकने का प्रयास किया गया। इनका सामना करने की हिम्मत किसी में नहीं थी, अंततः पीछे से वार कर जयमल एवं कल्ला राठौड़ के मस्तके काट दिए। पाडन-पोल के पास जयमल का बलिदान हुआ, साहसी वीर कल्ला का सिर कटने के बाद भी धड़ लड़ता रहा। अनेक मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतारकर वे भी रणखेत रहे। ‘इस प्रकार जयमल राठौड़, पत्ता चूड़ावत तथा कल्ला राठौड़ के वीरत्व ने चित्तौड़ का मस्तक सदा के लिए ऊँचा कर दिया।

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 1 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 1 लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1.
‘धारा-स्नान’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘धारा-स्नान’ राजस्थानी साहित्य में प्रयुक्त होने वाला शब्द है जिसका अर्थ है-युद्धभूमि में लड़ते हुए, कटते हुए रक्त की धारा में स्नान करना। राजस्थान वीरों की भूमि रही है। यहाँ के वीर धरती और धर्म की रक्षा के लिए शस्त्रों की तीक्ष्ण धार से कटते-काटते हुए रक्त से स्नान करते थे, उसे धारा-स्नान कहा जाता है। ऐसे अनेक धारा-स्नानों की साक्षी यह राजस्थान की धोरां-धरती धारा-तीर्थ की प्राचीन धाम मानी जाती है।

प्रश्न 2.
राजस्थान का मेवाड़ क्षेत्र किन कारणों से विशिष्ट माना जाता है ?
उत्तर:
राजस्थान का कण-कण वीरता की कहानी कहता है, किंतु मेवाड़ क्षेत्र की विशिष्टता अनोखी है। इसकी वीरता, धीरता, मातृभूमि-प्रेम, शरणागत-वत्सलता एवं अडिगता में कोई सानी नहीं है। बप्पा रावल, पमिनी, मीराँबाई, महाराणा हम्मीर, महाराणा, कुंभा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप, महाराणा राजसिंह, हाड़ीरानी, पन्नाधाय आदि अनेक महनीय नाम इस पावन धरा से जुड़े हुए हैं, जिनके तेजस्वी जीवन ने समाज को प्रेरणा दी। इस कारण मेवाड़ क्षेत्र इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।

प्रश्न 3.
प्रताप ने अपनी माता से किस प्रकार शस्त्र व शास्त्र ज्ञान प्राप्त किया ?
उत्तर:
कुंभलगढ़ में प्रताप का जन्म हुआ। संयोग से इसी समय उदयसिंह ने बनवीर को हराकर चित्तौड़ प्राप्त किया। प्रताप अपनी माँ जयवन्ती देवी के पास कुंभलगढ़ में रहकर शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने लगे। माँ ने उन्हें बचपन में ही स्वतंत्रता की घुट्टी पिला दी थी। निहत्थे शत्रु पर वार न करने की सलाह देकर, दो तलवारें रखने का आग्रह किया। इस प्रकार बाल्यकाल में माँ की शिक्षा से प्रताप निरंतर शस्त्र व शास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर रहे थे।

प्रश्न. 4.
महाराणा प्रताप का राजतिलक किस प्रकार हुआ ? घटना का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
महाराणा उदयसिंह के दाह-संस्कार के समय यह ज्ञात हुआ कि भटियाणी रानी के पुत्र जगमाल को उदयसिंह ने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। मेवाड़ की परम्परानुसार ज्येष्ठ पुत्र ही गद्दी का हकदार होता है, इस विपरीत परिस्थिति में कृष्णदास एवं रावत सांगा ने सामन्तों से विचार-विमर्श कर महाराणा प्रताप को गद्दी पर बैठाने का निर्णय लिया। उन्होंने उदयसिंह का दाहसंस्कार कर श्मशान से लौटते समय महादेव जी की बावड़ी पर प्रताप का राजतिलक कर दिया। बाद में महलों में जाकर जगमाल को गद्दी से उतारकर बत्तीस वर्षीय प्रताप का विधिवत् राज्याभिषेक किया गया।

प्रश्न. 5.
महाराणा प्रताप ने अकबर से संधि क्यों नहीं की ?
उत्तर:
महाराणा प्रताप स्वाभिमानी, स्वातंत्र्यवीर, मातृभूमि-प्रेमी शूरवीर थे। प्रताप और अकबर के बीच हजारों नर-नारियों के बलिदान व जौहर की लपटों की लकीर थी। हजारों ललनाओं की माँग के सिन्दूर को मिटाकर अकबर से समझौता करना प्रताप जैसे स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रता के उपासक के लिए संभव नहीं था। यही कारण था कि चार-चार संधि वार्ताओं के प्रस्ताव को प्रताप ने कूटनीति से टालकर युद्ध की रणनीति तैयार कर ली थी। अपने जीवित रहते अकबर से उन्होंने जमकर लोहा लिया और उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की।

प्रश्न. 6.
“पराई स्त्री हमारे लिए माँ के समान है”- यह कथन किसने, किससे और कब कहा ?
उत्तर:
उक्त कथन महाराणा प्रताप ने अपने पुत्र अमरसिंह को कहा। अमरसिंह ने अब्दुल रहीम खानखाना के शेरपुर डेरे पर आक्रमण कर सारी सामग्री सहित उनकी बेगम आनीखान व पूरे परिवार को उठाकर अपने कब्जे में कर लिया, यह समाचार जब प्रताप को मिला तो उन्होंने अपने पुत्र को समझाते हुए कहा कि पराई स्त्री हमारे लिए माँ के समान है। तुमने गलती की है, अब तुम्हीं इन्हें ससम्मान लौटाकर आओ। अमरसिंह ने क्षमा माँग कर बेगम सहित अन्य औरतों को उनके डेरे पर पहुँचा,दिया।

प्रश्न. 7.
भामाशाह ने राणा प्रताप का किस प्रकार सहायोग किया ?
उत्तर:
हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप के अभिन्न मित्र भामाशाह व उनके भाई ताराचंद मालवा क्षेत्र को लूटकर तथा पूर्वजों का संचिस धन लेकर आवरगढ़ में महाराणा प्रताप के समक्ष उपस्थित हुए। यह धन 25 लाख रुपये व 20000 स्वर्ग-मुद्राएँ थीं। माना जाता है कि इस धन से 25000 की सेना का 12 वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। प्रताप अपार धन प्राप्तकर बहुत प्रसन्न हुए। अब तक छापामार युद्ध करते आए महाराणा ने इस धन से सेना को गठन किया व दिवेर पर आक्रमण किया।

प्रश्न. 8.
सुल्तान खाँ कौन था ? अमरसिंह ने उसे किस प्रकार पराजित किया ?
उत्तर:
अकबर का चाचा सुल्तान खाँ दिवेर थाने का थानेदार था। भामाशाह व कुंवर अमरसिंह के नेतृत्व में यह आक्रमण किया गया। सुल्तान खाँ के हाथी के पैर काट दिए तो वह घोड़े पर सवार होकर युद्ध करने आया। अमरसिंह ने उससे मुकाबला किया। अमरसिंह के भाले के वार ने सुल्तान खाँ को घोड़े सहित जमीन में गाढ़ दिया। भाले की तीव्रता के कारण सुल्तान खाँ तड़फड़ाने लगा। भाला निकलवाने का यत्न किया गया, परन्तु कोई भी वीर भाला नहीं निकाल सका तब अमरसिंह ने एक ही झटके से भाला उसके सीने से निकाल लिया। सुल्तान खाँ ने वीर अमरसिंह को प्रशंसा की दृष्टि से देखा। प्रताप ने स्वर्ण-कलश में जल पिलाया, जल पीकर उसने प्राण त्याग दिए।

प्रश्न. 9.
मेवाड़ को वैभवकाल प्रताप के किस कालखंड को माना जाता है ? और क्यों ?
उत्तर:
1585 ई. से 1597 ई. तक 12 वर्षों का कालखंड मेवाड़ में वैभवे-काल के रूप में जाना जाता है। प्रताप ने चावंड को अपनी नई राजधानी बनाई और पुनर्निर्माण का नया अध्याय प्रारंभ किया। कृषि, सिंचाई, सड़क, सुरक्षा व सेना का पुनर्गठन किया। इस समय अनेक मन्दिरों, राजभवनों, किलों आदि का निर्माण करवाया गया। इस तरह इस शांतिकालीन बेला में मेवाड़ का विकास तीव्र गति से हुआ।

प्रश्न 10.
छापामार युद्ध पद्धति क्या है ? प्रताप ने इसका आश्रय क्यों लिया ?
उत्तर:
छापामार युद्ध पद्धति में दुश्मनों पर घात लगाकर हमला किया जाता है। इसमें शत्रु को रणनीति का पता नहीं लग पाता। और भय व्याप्त रहता है। प्रताप के पास मुगल सेना की तुलना में बहुत कम सैनिक थे, जिसे मैदानी भाग में लड़कर परास्त करना संभव नहीं था। अत: वे इस पद्धति का आश्रय लेकर अकबर को छकाते रहे और हल्दीघाटी के महासंग्राम में इस पद्धति से किया गया आक्रमण मुगल सेना के पाँव उखाड़ने में सफल रहा।

प्रश्न. 11.
चेतक की महानता के दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:

  1. चेतक महाराणा प्रताप को तुरंग था, वह स्वामिभक्त व युद्ध क्षेत्र में अपने स्वामी की रक्षा करना अच्छी तरह जानता था
  2. घायल अवस्था में तीन टाँगों के बल पर 20 फीट नाला कूदकर अपने स्वामी को सुरक्षित कर स्वयं प्राण दे देना, अद्वितीय है। चेतक का व्यवहार किसी अनन्य उपासक की भाँति था, जो प्रताप के जीवन में अविस्मरणीय रहा।

प्रश्न. 12.
अकबर के विरूद्ध प्रताप को किस-किसका साथ मिला ?
उत्तर:
जब प्रताप ने मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए महल छोड़ने का प्रण किया तो इस भीषण प्रतिज्ञा का व्यापक प्रभाव पड़ा। सारे जनजाति क्षेत्र के भील प्रताप की सेना में शमिल होने लगे। मेरपुर-पानरवा के भील राणा पूँजा अपने दल-बल के साथ प्रताप की सेना में शामिल हो गए। बप्पा रावल ने गजनी व गोर प्रदेश की राजकुमारियों से विवाह किया था, इनसे इन्हें 140 संतानें प्राप्त हुईं। वे नौशेरा पठान कहलाए। इन्होंने मेवाड़ के पक्ष में काम किया। अब अफगान के हकीम खाँ सूरी भी अपनी सैन्य शक्ति के साथ प्रताप के साथ मिल गए।

प्रश्न. 13.
अस लेगो अणदाग, पाग लेगो अणनामी।
गो आगा गवड़ाय जिको बहतो धुर वामी।।
उक्त पंक्तियों में निहित भाव को समझाइए।
उत्तर:
अकबर को जब प्रताप के देहावसान का समाचार मिला तो वह दुःखी हुआ। उस समय उपस्थित कवि दुरसा आढ़ा ने बादशाह के मन के भावों को अभिव्यक्त करते हुए प्रताप का चरित्र प्रकट किया कि हे प्रताप सिंह, तूने अपने घोड़े पर अकबर की अधीनता का चिह्न नहीं लगवाया और अपने चेतक को बेदाग ले गया। अपनी मेवाड़ी पगड़ी अकबर के सामने नहीं झुकने दी, वरन् अनामी पाग लेकर चला गया। हमेशा मुगल सत्ता के विपरीत चलकर तूने अपनी वीरता की कीर्ति के गीत गवाए।

प्रश्न. 14.
प्रताप को भील समुदाय का साथ किस प्रकार मिला ?
उत्तर:
प्रताप बचपन में कुंभलगढ़ में रहे थे। वहाँ वे भील जाति के बालकों के साथ खेलते थे। वे उनमें ‘कीका’ के नाम से लोकप्रिय थे। जनजाति वर्ग के बाल-गोपालों के साथ प्रताप का यही संबंध आगे चलकर भीलों के स्वतंत्रता युद्ध में शामिल होने का आधार बना। प्रताप ने जब महल छोड़ने की प्रतिज्ञा की तो सारे जनजाति क्षेत्र के भील प्रताप की सेना में शामिल होने लगे। मेरपुर-पारवा के भील राणा पूँजा अपने दल-बल के साथ प्रताप की सेना में शामिल हो गए।

प्रश्न. 15.
प्रताप के देहावसान की खबर पर मेवाड़ की मन:स्थिति को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
अपने जीवन के 57 बसन्त पूर्ण कर माघ शुक्ला एकादशी अर्थात् 19 जनवरी, 1597 ई. को प्रताप ने चावंड में अपनी इहलौकिक लीला पूर्ण की। प्रताप के देहावसान की खबर सुनकर सर्वत्र शोक की लहर फैल गई। संपूर्ण मेवाड़ की ज़ने-मैदिनी चावंड में एकत्र हुई । दाह-संस्कार के समय जन मैदिनी की आँखों से अश्रुधार प्रवाहित हो रही थी। समवेत स्वर में ‘एकलिंग नाथ की जय हो’ के उद्घोष के साथ आकाश गुंजायमान हो उठा था।

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 1 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न.1.
राजस्थान की वीर भूमि में जान से बढ़कर आन तथा प्राण से बढ़कर प्रण की शाश्वत परम्परा रही है।’ कैसे ?
अथवा
राजस्थान की वीर धरा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
अनूठी आन, बान, शान वाला राजस्थान को शक्ति, भक्ति एवं अनुरक्ति की त्रिवेणी माना जाता है। इस तपोभूमि की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं –

  1. यहाँ की वीरों ने धरती, धर्म एवं असहायों की रक्षार्थ मरने को मंगल माना।
  2. यहाँ की वीरांगनाओं ने अपनी कंचन जैसी काया का मोह त्यागते हुए अपने हाथों अपना सीस काटकर वीर पतियों को प्रणपालन का अद्वितीय पाठ पढ़ाया।
  3. यहाँ के संतों ने जन-जन की जड़ता को दूर कर मानव-धर्म की अलख जगाई।
  4. यहाँ के साहित्य सेवकों ने राजा से रंक तक सभी को कर्तव्य पथ पर अडिग डग भरने की सीख दी।
  5. जीवन से अत्यधिक मोह होते हुए भी काम पड़ने पर मरने से मुँह नहीं मोड़ा और सिंधुराग पर रीझते उन वीरों की मरदानगी की मरोड़ देखते ही बनती है।
  6. वचन प्रतिपालन हेतु विवाह के ‘कांकण डोरड़े’ खोले बिना ही दूल्हे ने चंवरी में ‘राजकंवरी’ को छोड़कर भंवरी’ की पीठ पर सवार होकर युद्धभूमि की ओर प्रस्थान करने वाले उदाहरण इस धरा के हैं।
  7. धरती तथा धर्म की रक्षार्थ शूरवीर, शस्त्रों की तीक्ष्ण धार से कटते-काटते हुए रक्त से स्नान करने का गौरव यहाँ के वीरों , का है। इस प्रकार वीर प्रसूता ‘धोरां धरती’ का गौरव है।

प्रश्न. 2.
मेवाड़ की वीरगाथा और स्वामिभक्ति का परिचय देते हुए महान् विभूतियों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान की वीर धरा पर मेवाड़ अपनी वीरता, धीरता, मातृभूमि-प्रेम, शरणागत-वत्सलता एवं अडिगता में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। बप्पा रावल, पमिनी, हाड़ी रानी तथा पन्नाधाय जैसे अनेक महनीय नाम इस पावन धरा से जुड़े हुए हैं। इनका तेजस्वी व्यक्तित्व समाज को सदा प्रेरणा देने वाला रहा है। महाराणा साँगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज का विवाह भक्त शिरोमणि मीराबाई के साथ हुआ था। यही मीरां अपनी कृष्ण-भक्ति से विश्व-विख्यात हुई। सांगा की महारानी कर्मवती के दो पुत्र कुँवर विक्रमादित्य और उदय सिंह हुए। दासी पुत्र बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी और उदयसिंह को मारने को षड़यंत्र किया।

परन्तु धाय माँ पन्ना ने उदयसिंह को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया तथा उसके पलंग पर अपने पंद्रह वर्षीय पुत्र चंदन को सुला दिया। बनवीर ने उसे उदयसिंह समझकर हत्या कर दी। मातृभूमि के लिए एक माँ ने अपने पुत्र का बलिदान किया, ऐसा दूसरा कोई उदाहरण दुनिया में नहीं है। इसी प्रकार हाड़ी रानी ने अपना मस्तक काटकर पति को कर्तव्यपथ पर उन्मुख किया। जयमले पत्ता, कल्ला आदि वीरों का शौर्य यहाँ की कहानी बयां करता है।

प्रश्न. 3.
महाराणा प्रताप से संधि करने हेतु अकबर के प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अकबर का साम्राज्य पूरे भारतवर्ष में फैल गया था। सारे राज्य उसके समक्ष झुक गए किन्तु मेवाड़ नहीं झुका। अकबर ने कूटनीतिक प्रयास प्रारंभ किए। उसने नवम्बर 1572 ई. में जलाल खाँ कोरची को संधि वार्ता हेतु भेजा।प्रताप को मालूम था कि युद्ध होकर रहेगा किन्तु तैयारी हेतु समय चाहिए, इसलिए कूटनीति का जवाब कूटनीति से दिया। जलाल खां से मीठी बातें कर भेज दिया। अब दूसरे संधिकर्ता के रूप में आमेर का राजकुमार कुँवर मानसिंह जून 1573 ई. में वार्ता करने मेवाड़ आया। प्रताप के उदयसागर की पाल पर उसका स्वागत किया, किन्तु मानसिंह अपने प्रयासों में सफल नहीं हो पाया। वह असफल होकर लौट गया।

प्रताप व अकबर के बीच हजारों नर-नारियों के बलिदान व जौहर की लपटों की लकीर थी। हजारों ललनाओं के माँग के सिन्दूर को मिटाकर अकबर से समझौता करना प्रताप जैसे स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रता के उपासक के लिए संभव नहीं था। अकबर ने फिर भी प्रयास जारी रखे। उसकी ओर से तीसरे राजदूत आमेर के राजा भगवंतदास सितम्बर 1573 ई. में महाराणा के पास आए। उन्हें भी प्रताप ने ससम्मान रवाना कर दिया। इसके बाद अकबर ने अपने नौ रत्नों में से एक टोडरमल को वार्ता के लिए भेजा। दिसम्बर, 1573 ई. में, प्रताप ने टोडरमल को भी खाली हाथ लौटा दिया।

स्वातंत्र्य उपासक महाराणा प्रताप

पाठ-सारांश

वीर भूमि मेवाड़-राजस्थान की धरती शक्ति, भक्ति और अनुरक्ति की त्रिवेणी मानी जाती है। यहाँ का इतिहास शौर्य और औदार्य के लिए विश्वविख्यात रहा है। राजस्थान का मेवाड़ क्षेत्र अनूठी आन, बान और शान के साथ अद्भुत वीरता, धीरता, शरणागत-वत्सलता का पर्याय रहा। बप्पा रावल, रानी पद्मिमनी, मीरा, कुंभा, सांगा, प्रताप, पन्ना जैसे अनेक महनीय नाम इस धरा से जुड़े हैं। यहाँ के कण-कण में राष्ट्रप्रेम का स्वर मुखरित होता है।

महाराणा प्रताप-परिचय-महाराणा सांगा के सबसे छोटे पुत्र उदय सिंह की पत्नी जयवन्ती देवी की पावन कोख से 9 मई, 1540 ई. (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया. वि. सं. 1597) को कुंभलगढ़ में राणा प्रताप का जन्म हुआ। बचपन में अपनी माँ से ही शस्त्र व शास्त्र ज्ञान सीखा। भील जाति के बालकों के साथ खेलते हुए बचपन बीता। वे उनमें ‘कीका’ के नाम से लोकप्रिय हो गए। सन् 1552 ई. में प्रताप अपनी माँ के साथ चित्तौड़ आए और कृष्णदास रावत की देख-रेख में शस्त्र शिक्षा प्राप्त की। इसी समय मेढ़ता से चित्तौड़ आए। जयमल राठौड़ से उन्होंने युद्ध संबंधी विशेष ज्ञान प्राप्त किया।

अकबर का चित्तौड़ पर आक्रमण-जयमल राठौड़ और पत्ता पूँड़ावत को चित्तौड़ सौंपकर उदयसिंह उदयपुर चले गए। अक्टूबर, 1567 ई. में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। चार मास घेरा डालकर रखा, पर चित्तौड़ नहीं जीत पाया। जब किले की रसद सामग्री समाप्त हो गई, तब 25 फरवरी, 1568 ई. के दिन सतीत्व की रक्षा के लिए पत्ता चूड़ावत की पत्नी महारानी फूल कुँवर के नेतृत्व में 7000 क्षत्राणियों ने जौहर किया। वीरों ने केसरिया बाना धारण कर रणभूमि में प्रस्थान किया। यह युद्ध जयमल, पत्ता, कल्ला आदि वीरों की वीरता के लिए जाना जाता है। अंत में अकबर की सेना ने किले में प्रवेश कर वहाँ रह रहे तीस हजार निर्दोष स्त्री, पुरुष और बच्चों को कत्ल कर अपनी जीत का जश्न मनाया। महाराणा उदयसिंह इस हार को सहन नहीं कर सके और 28 फरवरी, 1572 ई. को उनका देहावसान हो गया।

प्रताप का राज्याभिषेक-मेवाड़ की परम्परा अनुसार ज्येष्ठ पुत्र गद्दी का हकदार होता है लेकिन उदयसिंह ने महारानी भटियाणी की बातों में आकर जगमाल को युवराज घोषित कर दिया परन्तु सामंतों ने श्मशान से लौटते समय महादेवजी की बावड़ी पर प्रताप का राजतिलक कर दिया। बाद में महलों में जाकर जगमाल को गद्दी से उतारकर 32 वर्षीय प्रताप का विधिवत् राज्याभिषेक किया गया। जनशक्ति को जाग्रत करने हेतु प्रताप ने भीषण प्रतिज्ञा की, “ज़ब तक मैं शत्रुओं से अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र नहीं करा लेता, तब तक मैं न तो

महलों में रहूँगा ने ही सोने-चाँदी के बर्तनों में भोजन करूंगा। घास ही मेरा बिछौना तथा पत्तल दोने ही मेरे भोजन पात्र होंगे।”

अकबर के कूटनीतिक प्रयास-अकबर का साम्राज्य पूरे भारत में फैल गया था किन्तु मेवाड़ झुका नहीं। नवम्बर, 1572 ई. को उसने जलाल खाँ कोरची को संधि वार्ता हेतु भेजा। जून 1573 ई. को मानसिंह वार्ता करने मेवाड़ आया, परन्तु प्रताप के मन में हजारों नर-नारियों के बलिदान व जौहर की लपटों की लकीर थी, अत: समझौता करना प्रताप के स्वाभिमान के विरुद्ध था। अकबर ने राजा भगवंत दास, टोडरमल आदि को भेजा, परन्तु प्रताप ने उन्हें ससम्मान विदा कर दिया। चारों संधिवांर्ताओं का कूटनीतिक उत्तर देकर प्रताप ने युद्ध की तैयारी का समय प्राप्त कर लिया और युद्ध की स्थिति में छापामार पद्धति से युद्ध करने का निर्णय ले लिया।

हल्दीघाटी का युद्ध-अकबर ने अजमेर आकर मानसिंह व आसफ खाँ के नेतृत्व में 5000 सैनिकों को मेवाड़ पर आक्रमण करने हेतु रवाना कर दिया। प्रताप ने पूरे मेवाड़ के मैदानी इलाके खाली करवा कर जनता को सुरक्षित पहाड़ों पर भेज दिया। प्रताप की तीन हजारी सेना शत्रुओं पर टूट पड़ने को तैयार थी। 18 जून, 1576 ई. का ऐतिहासिक दिन हल्दीघाटी महासंग्राम के रूप में अमर हो गया। प्रताप ने हल्दीघाटी के एक संकरे रें से निकल कर मुगल सेना पर आक्रमण किया। इस भीषण आक्रमण को मुगल सेना झेल नहीं पाई और 8-10 कोस तक भागती मोलेला तक पहुँच गई। फिर मुगलों की बिखरी सेना को खमनोर के मैदान में एकत्र किया गया, यहाँ दोनों में घनघोर युद्ध हुआ।

चेतक का घायल होना-प्रताप ने मानसिंह पर हमला बोला। चेतक ने अगली दोनों टाँगे हाथी के मस्तक पर दे मारी। प्रताप के सवामण के भाले की मार से महावत मर गया। प्रताप ने कटार फेंकी मानसिंह ने छुपकर जान बचा ली। इस बीच चेतक की टाँग हाथी की सैंड पर लगी तलवार से कट गई युद्ध से लौटते समय घायल चेतक ने प्रताप को लेकर 20 फीट चौड़ा बरसाती नाला एक छलांग में पार कर लिया। नाला पार करते ही वह गिर पड़ा व वहीं उसका प्राणांत हो गया। प्रताप ने उसे समाधि दी।

अकबर की निराशा-मुगल सेना सितम्बर, 1576 ई. में अजमेर लौट गई। अकबर इस अभियान से निराश हुआ, वहीं महाराणा प्रताप की ख्याति बढ़ गई। अब वह स्वयं 11 अक्टूबर, 1576 ई. में प्रताप को परास्त करने अजमेर से निकल पड़ा, किंतु छापामार युद्ध : पद्धति के आगे वह उन्हें पराजित नहीं कर सका। उसने अब्दुल रहीम खानखाना को छठे आक्रमण के रूप में भेजा। महाराणा के पुत्र अमरसिंह ने उसके डेरे पर आक्रमण कर सारी सामग्री सहित बेगम व परिवार को उठाकर कब्जे में ले लिया, जब प्रताप को यह बात पता लगी तो अमरसिंह को समझाया कि पराई स्त्री हमारे लिए माँ समान है तो अमर सिंह ने क्षमा माँगते हुए बेगम सहित अन्य औरतों को ससम्मान उनके डेरे में पहुँचा दिया। जब खानखाना को प्रताप के विराट चरित्र का पता लगा तो वह बिना युद्ध किए ही मेवाड़ से लौट गया। सातवाँ आक्रमण जगन्नाथ कछवाहा के नेतृत्व में हुआ, परन्तु वह भी असफल रहा। अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करते हुए प्रताप ने मेवाड़ के सभी ठिकानों को स्वतंत्र करा लिया।

मेवाड़ का वैभव काल-समय पाकर प्रताप ने चावंड को अपनी राजधानी बनाई। कृषि, सिंचाई, सड़क, सुरक्षा व सैन्य पुनर्गठन किया। 1585 ई. से 1597 ई. तक 12 वर्षों का कालखंड मेवाड़ का वैभवकाल माना जाता है। इस समय अनेक मंदिरों, राजभवनों, किलों का निर्माण करवाया गया। प्रताप युद्ध काल व शांतिकाल दोनों में ही महानायक के रूप में प्रमाणित हुए।

प्रताप का स्वर्गवास-अपने जीवन के 57 वसंत पूर्ण कर माघ शुक्ला एकादशी तद्नुसार 19 जनवरी, 1597 ई. को चावंड में अपनी इहलौकिक लीला पूर्ण की। संपूर्ण जन-मेदिनी की आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी। जब अकबर ने यह समाचार सुना तो वह भी उदास हो गया। वहाँ उपस्थित कवि दुरसा आढ़ा ने अकबर के मन की व्यथा को काव्य-पंक्तियों में उजागर किया। बादशाह ने उसे सम्मानित किया। हे स्वातंत्र्य वीर! तेरी यह गाथा हमें युगों-युगों तक प्रेरणा देती रहेगी।

कठिन शब्दार्थ-

अनुरक्ति = प्रेम। त्रिवेणी = तीन नदियों का संगम। औदार्य = उदारता। आने = इज्जत। वीरांगना = वीर नारी। कंचन = सोना। रंक = गरीब। सिंधुराग = युद्ध के समय गाया जाने वाला राग। तासीर = स्वभाव। शाश्वत = अपरिवर्तनीय। (पृष्ठ-6)

निहत्थे = बिना हथियार के। व्यूह = रणनीति। छापामार = घात लगाकर हमला करना। रसद = खाद्य सामग्री। हतप्रभ = चकित। रणखेत = वीरगति। (पृष्ठ-7-8)

जौहर क्षेत्राणियों द्वारा सतीत्व रक्षार्थ किया जाने वाली अग्नि-स्नान। कत्लेआम = मारकाट। प्रचंड = भीषण। तुरंग = घोड़ा। जिरह, बख्तर = युद्ध के समय शरीर पर पहने जाने वाला लौह-केवच। रक्त तलाई = खून का तालाब। (पृष्ठ-9-10)

संचित = एकत्र किया हुआ। इहलौकिक = सांसारिक। जन-मैदिनी = जन-समूह। अणदाग = बेदाग। पाग = पगड़ी। धुर वामी = सत्ता के विपरीत। गवड़ाय = गवाए। रसना = जीभ। नीसास = निःश्वास। (पृष्ठ-10-12)

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