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RBSE Solutions for Class 11 Hindi आलोक Chapter 2 रानी लक्ष्मीबाई

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 2 रानी लक्ष्मीबाई

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1.
रानी लक्ष्मीबाई को स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने का सुझाव देने वाले थे
(क) नाना साहब पेशवा
(ख) तात्या टोपे
(ग) मोरोपंत ताम्बे
(घ) बाजीराव।
उत्तर
(ख) तात्या टोपे

प्रश्न. 2.
रानी लक्ष्मीबाई का प्राणांत कहाँ हुआ ?
(क) झाँसी में
(ख) कालपी में
(ग) बाबा गंगादास की कुटिया में
(घ) अंग्रेज छावनी में
उत्तर:
(ग) बाबा गंगादास की कुटिया में

प्रश्न 3.
महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म कहाँ और कब हुआ ?
उत्तर:
महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर, 1835 ई. को वाराणसी में हुआ था।

प्रश्न. 4.
लक्ष्मीबाई का बचपन कहाँ और किसके साथ बीता ?
उत्तर:
लक्ष्मीबाई का बचपन ब्रह्मवर्त (बिठूर, कानपुर) में बाजीराव के आश्रय में बीता।

प्रश्न. 5.
मणिकर्णिका झाँसी की महारानी कब और कैसे बनी ?
उत्तर:
सन् 1842 ई. में मणिकर्णिका उर्फ छबीली का अल्पायु में विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधर राव के साथ संपन्न हुआ। उसी समय से वह झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई कहलाने लगी।

प्रश्न. 6.
अंग्रेज शासकों से महारानी का संघर्ष कैसे प्रारंभ हुआ ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लक्ष्मीबाई के पुत्र की शैशवावस्था में मृत्यु और महाराजा गंगाधर राव के निधन के बाद महारानी ने दामोदर नाम के बालक को गोद लिया, परन्तु अंग्रेजी शासकों ने षड्यंत्रपूर्वक न तो रानी को झाँसी का अधिपति स्वीकार किया और न ही बालक दामोदर को उनकी संतान के रूप में माना। 16 मार्च, 1854 ई. को अंग्रेजों ने रानी का राज्य हड़प लिया। इस प्रकार रानी लक्ष्मीबाई के मन में अंग्रेजों के प्रति घोर असंतोष एवं घृणा पनप गई और संघर्ष प्रारंभ हो गया।

प्रश्न. 7.
तात्या टोपे ने लक्ष्मीबाई को क्या सुझाव दिया और लक्ष्मीबाई ने उसका सम्मान क्यों किया ?
उत्तर:
तात्या टोपे ने लक्ष्मीबाई से स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने का आग्रह किया। लक्ष्मीबाई स्वयं अंग्रेजों के पड्यंत्र को जान चुकी थी, अत: उसने तात्या टोपे के सुझाव का स्वागत किया। स्वयं क्रांति का दायित्व सँभाला और अंग्रेजों को भगाकर झाँसी पर पुनः सत्ता स्थापित कर ली।

प्रश्न. 8.
सन् 1857 ई. में लक्ष्मीबाई एवं अंग्रेजों के मध्य हुए युद्ध का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
तात्या टोपे के सुझाव से रानी लक्ष्मीबाई ने क्रांति का दायित्व संभाल लिया। उसने अंग्रेजों को मार भगाकर झाँसी पर पुनः कब्जा कर लिया। क्रांतिकारियों ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों को इस तरह पराजित किया कि सागर, नौगाँव, बाँन्द्रा, बन्दपुर, शाहगढ़ तथा कर्वी में अंग्रेजी सत्ता का कोई प्रभाव नहीं बचा था। विंध्याचल से यमुना तक के क्षेत्र अंग्रेजों से मुक्त हो चुके थे। जनवरी, 1858 ई. को जब अंग्रेजों ने रायगढ़, दानपुर और चन्देरी दुर्ग पर अधिकार कर लिया और 20 मार्च को झाँसी से चौदह मील दूर पड़ाव डाल दिया तब रानी ने सीमित संसाधन होते हुए भी अंग्रेजों से युद्ध का निश्चय कर लिया।

5-6 दिन भयंकर युद्ध के बाद सातवें दिन अंग्रेजों ने तोप से दुर्ग की दीवार गिरा दी। क्रांतिकारियों ने रातों-रात पुन: दीवार खड़ी कर दी। 31 मार्च तक अंग्रेज दुर्ग में।। प्रविष्ट न हो सके। इस बीच रानी को तात्या टोपे का साथ मिला और अंग्रेजों से भीषण युद्ध किया। 3 अप्रैल को अंग्रेजों को झाँसी पर अंतिम आक्रमण हुआ। रानी के वीरों के समक्ष अंग्रेज परेशान थे। मुख्य द्वार से उन पर भीषण प्रहार हो रहा था, पर दक्षिणी द्वार पर कब्जा कर वे दुर्ग में प्रविष्ट हो गए। स्वामिभक्त सरदारों की सलाह पर पुरुष वेश में रानी ने झाँसी छोड़ने का निश्चय किया और कालपी पहुँची तब तक उसका विश्वस्त घोड़ा मर गया।

अंग्रेजों को भनक लगने पर उन्होंने कालपी पर आक्रमण किया। क्रांतिकारियों में तालमेल व अनुशासन का अभाव होने से वे अंग्रेजों का सामना न कर सके, तब रानी ने ग्वालियर की ओर प्रस्थान किया। उसका घोड़ा नया था, रास्ते में आए नाले को वह पार नहीं कर सका। पीछे अंग्रेजों से घिरी रानी भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी। उस पर पीछे से वार हुआ, घायल अवस्था में भी वह दुश्मनों पर भारी, थी। परन्तु एक के बाद एक ताबड़तोड़ हमले से वह बेहोश हो गई। विश्वस्त सरदारों ने निकट ही उन्हें बाबा गंगादास की झोंपड़ी में पहुँचाया, यहीं उनका देहावसान हो गया। उपस्थित क्रांतिकारियों ने उनकी चिता की राख से तिलक लगाया। इस प्रकार वीर नारी ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व कर भविष्य का प्रेरणा – पथ तैयार किया।

प्रश्न. 9.
तात्या टोपे की सेना को अंग्रेजों ने क्या हानि पहुँचाई ?
उत्तर:
लक्ष्मीबाई का संदेश पाकर तांत्या टोपे उनकी सहायता करने झाँसी आ गए तथा उन्होंने अपने सैनिकों को साथ लेकर अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेजों व तात्या टोपे के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। अंग्रेजों की विशाल सेना के सामने तात्या टोपे के सैनिक भाग खड़े हुए। उनकी तोपें अंग्रेजों के हाथ में आ गईं। उनके 2200 में से 1400 सैनिक मारे गए। इस प्रकार तात्या टोपे को अंग्रेजों ने भारी नुकसान पहुँचाया।

प्रश्न. 10.
महारानी लक्ष्मीबाई को किन परिस्थितियों में झाँसी छोड़ना पड़ा ?
उत्तर:
3 अप्रैल को अंग्रेजों का झाँसी पर अंतिम आक्रमण हुआ। उन्होंने मुख्य द्वार से प्रवेश किया। हर कोने से गोलियाँ चलने लर्गी। सीढ़ियाँ लगाकर अंग्रेजों ने दुर्ग पर चढ़ने का प्रयास शुरू कर दिया, परन्तु सफलता पाना इतना सरल न था। आगे बढ़ने वाले अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया जाता था। रानी लक्ष्मीबाई तथा उसके वीर सैनिकों के सामने अंग्रेजों का वार नहीं चला और अंततः उन्हें पीछे हटना पड़ा। अंग्रेज सैनिक जान बचाकर भागे। मुख्य द्वार पर तो यह स्थिति थी परन्तु दक्षिणी द्वार पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया, वे दुर्ग के भीतर घुस गए।

राजप्रासाद में घुसकर उन्होंने रक्षकों की हत्या की, रुपये लूटे और भवनों को ध्वस्त कर डाला। इससे झाँसी का पतन होने लगा। यह स्थिति देखकर. लक्ष्मीबाई ने डेढ़ हजार सैनिकों को लेकर दुर्ग की ओर कूच किया तथा अंग्रेजों पर टूट पड़ीं। अनेक अंग्रेज मारे गए, शेष नगर की ओर भागने लगे। परन्तु वहाँ से छिप-छिप कर गोलियाँ चलाने लगे। अंग्रेजों से लोहा लेते हुए झाँसी के अनेक वीरों ने प्राण न्यौछावर किए। अंग्रेजों ने सैनिकों के साथ आम नागरिकों पर भी वार करना शुरू कर दिया, जिससे नगर में हाहाकार मच गया।

यह देखकर लक्ष्मीबाई परेशान हो गई। अपनी व्यथा प्रकट करते हुए वह स्वयं अपना बलिदान करने को तैयार हो गई परन्तु झाँसी के स्वामिभक्त सरदार ने उनसे कहा, “हे महारानी! अब आपका यहाँ रहना ख़तरे से खाली नहीं है। अत: रात्रि को शत्रु का घेरा तोड़कर आप बाहर निकल जाएँ, यह अत्यावश्यक है।” इन परिस्थितियों में उन्होंने झाँसी छोड़ने का संकल्प ले लिया एवं चुनिंदा विश्वस्त अश्वरोही सैनिकों के साथ रानी ने पुरुष वेश धारण कर दुर्ग से प्रस्थान किया।

प्रश्न. 11.
अंग्रेजों ने कालपी पर आक्रमण क्यों किया ?
उत्तर:
अंग्रेजों को यह आभास हो गया था कि रानी लक्ष्मीबाई ने दुर्ग छोड़ दिया है और कालपी पहुँच गई है। अत: अंग्रेजी सेना ने व्हाटलॉक के नेतृत्व में कालपी पर आक्रमण कर दिया।

प्रश्न. 12.
क्रांतिकारियों की सेना को पराजय का मुख क्यों देखना पड़ा ?
उत्तर:
व्हाटलॉक के नेतृत्व में जब अंग्रेजी सेना ने कालपी पर आक्रमण किया तो रानी ने राव साहब, तात्या टोपे तथा बांद्रा, शाहगढ़ और दानपुर के सैनिकों को साथ लेकर अंग्रेजों का सामना किया, लेकिन विविध राज्यों के सैनिकों में पारस्परिक समन्वय एवं अनुशासन का अभाव था, अतः उन्हें पराजय का मुख देखना पड़ा।

प्रश्न. 13.
महारानी लक्ष्मीबाई के अंतिम संघर्ष की महागाथा अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।
उत्तर:
कालपी में विजयी अंग्रेज सेना घेरा डालकर रानी को पकड़ना चाहती थी, पर वह आगे बढ़ चली थी। वह जिस घोड़े को उपयोग कर रही थी, वह इतनो कुशल व सक्षम नहीं था। आगे बढ़ने पर नाला आ गया। महारानी तब ही बच सकती थी, जब वह घोड़ा छलांग लगाकर नाले को पार कर ले, लेकिन घोड़ा ऐसा नहीं कर सका। इसका फायदा उठाकर कुछ अंग्रेज सैनिकों ने रानी को घेर लिया। सोनरेखा नामक इस नाले पर चारों ओर से शत्रुओं द्वारा घिरी हुई अकेली रानी भूखी शेरनी की तरह अंग्रेजों पर टूट पड़ी।

रानी ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अंग्रेजों का सामना किया, परन्तु एक अंग्रेज-सैनिक ने मौका पाकर पीछे से रानी के मस्तक पर प्रहार कर डाला। महारानी घायल हो गई परन्तु प्रहार करने वाले अंग्रेज को उसने अपनी तलवार से ढेर कर दिया। उसी समय दूसरे अंग्रेज सैनिकों ने उन पर ताबड़तोड़ प्रहार करना शुरू कर दिया। रानी बेहोश होकर गिर पड़ीं। अचेत महारानी को अंग्रेजों के हाथों बंदी बनने से बचाने के लिए उनके विश्वासपात्र सेवक रामचन्द्र राव देशमुख एवं रघुनाथ सिंह ने उनको उठाकर पास में बनी बाबा गंगादास की झोंपड़ी में पहुँचा दिया। वहाँ रानी का आवश्यक प्राथमिक उपचार किया गया, जल पिलाया गया, किंतु रानी बच नहीं पाईं और संसार का त्याग कर दिया।

प्रश्न. 14.
महारानी लक्ष्मीबाई का दाहसंस्कार किसने और कहाँ किया ?
उत्तर:
महारानी लक्ष्मीबाई को घायल अवस्था में निकटस्थ बाबा गंगादास की झोंपड़ी में पहुँचाया गया। वहीं पर रानी ने अंतिम साँस ली। अंग्रेजों की नजर से बचते हुए बाबा गंगादास ने घास-फूस की चिता बनवाकर अपनी झोंपड़ी के पास ही रानी का दाहसंस्कार कर दिया।

प्रश्न. 15.
सही विकल्प को चिनित कीजिए –
(क) गंगाधर राव लक्ष्मीबाई के पिता/पति/भाई थे।
(ख) लक्ष्मीबाई के पुत्र का नाम तात्या टोपे/गंगाधर राव/दामोदर राव था।
(ग) लक्ष्मीबाई का बचपन तात्या टोपे/गंगाधर राव/नानासाहेब पेशवा के साथ बीता था।
(घ) लक्ष्मीबाई का जन्म प्रयाग/वाराणसी/ग्वालियर में हुआ था।
उत्तर:
(क) पति
(ख) दामोदर राव
(ग) नानासाहब पेशवा
(घ) वाराणसी

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 2 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 2 लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1.
1857 ई. के स्वाधीनता संग्राम की नायिका कौन थी ? उसके व्यक्तित्व की प्रेरणा शक्ति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1857 ई. के स्वाधीनता संग्राम की नायिका रानी लक्ष्मीबाई थीं। उनका जीवन, आचरण व कौशल प्रेरणा का स्रोत है। उनके व्यक्तित्व में प्रतिभा, पुरुषार्थ व प्रखर राष्ट्रभक्ति का अद्भुत संयोग था। नाम तो लक्ष्मी था, लेकिन साहस का अपूर्व भण्डार उन्हें विशिष्ट बनाता है। उनके हाथों में चूड़ियाँ भले ही रही हों, पर घोड़े पर सवार होकर करतब करते समय तलवार हाथ में लेकर जो पराक्रम करती थीं तो जन-जन में उत्साह की तरंगें दौड़ उठती थीं।

प्रश्न. 2.
लक्ष्मीबाई ने शस्त्र चलाने का अभ्यास किसके साथ और कहाँ किया ?
उत्तर:
लक्ष्मीबाई का परिवार काशी छोड़कर ब्रह्मवर्त (बिठूर, कानपुर) में बाजीराव के आश्रय में रहने लगा। इन्हें वहाँ पर छबीली के नाम से पुकारा जाने लगा। नाना साहब के साथ ही छबीली ने शस्त्र चलाने का अभ्यास प्रारंभ कर दिया। वे दोनों घोड़ों पर सवार होकर अभ्यास करते थे एवं शस्त्र चलाना सीखते थे। धीरे-धीरे छबीली ने नानासाहब से भी अच्छा अभ्यास प्राप्त कर लिया था।

प्रश्न, 3.
‘रानी लक्ष्मीबाई का वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा।’ क्यों ?
उत्तर:
अल्पायु में छबीली का विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधर के साथ संपन्न हो गया। कुछ दिनों बाद लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, परन्तु शैशवावस्था में ही उसकी मृत्यु हो गई। इसके परिणामस्वरूप महाराजा गंगाधर राव के मन में असीम वेदना पैदा हो गई और वे भी दिवंगत हो गए। इस प्रकार रानी लक्ष्मीबाई का वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा।

प्रश्न. 4.
अंग्रेजों का यह व्यवहार रानी को बुरा लगा।’-अंग्रेजों का कौन-सा व्यवहार रानी को बुरा लगा ?
उत्तर:
महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने राज-काज संभाल लिया। उन्होंने दामोदर राव नाम के बालक को गोद भी ले लिया। परम्परानुसार झाँसी का भावी राजा दामोदर राव ही था। परन्तु अंग्रेज शासकों ने षड्यंत्रपूर्वक रानी लक्ष्मीबाई को न तो झाँसी का अधिपति स्वीकार किया और न उसके दत्तक पुत्र दामोदर राव को उसकी संतान के रूप में स्वीकृति दी। अंग्रेजों की रानी के प्रति यह दुर्व्यवहार था, जो उसे बुरा लगा।

प्रश्न. 5.
रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से झाँसी पर पुनः अधिकार किस प्रकार किया ?
उत्तर:
ज़ब अंग्रेजों ने 16 मार्च 1854 ई. को रानी का राज्य हड़प लिया तो लक्ष्मीबाई के मन में अंग्रेजों के प्रति घोर असंतोष एवं घृणा पनप गई तात्या टोपे ने आकर स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने का सुझाव दिया। रानी ने क्रांति का दायित्व संभाल लिया और उनके सहयोग से झाँसी पर पुनः अधिकार कर अंग्रेजों को मार भगाया। यहाँ तक कि विंध्याचल से यमुना तक का क्षेत्र अंग्रेजों से मुक्त करा लिया था।

प्रश्न. 6.
सर ह्यूरोज को क्या दायित्व दिया गया था ? उसने अपनी योजना पर किस तरह काम किया ?
उत्तर:
अंग्रेजों की ओर से यमुना व विंध्याचल तक के क्षेत्र को क्रांतिकारियों से मुक्त कराने का दायित्व सर हयूरोज को सौंपा गया। अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित बहुत-सी तोपों को लेकर वह निकल पड़ा। महू से चलकर झाँसी होते हुए कालपी पहुँचने का निश्चय कर चुका था। उसने 6 जनवरी, 1858 ई. को रायगढ़ दुर्ग पर कब्जा कर लिया। 10 मार्च को दानपुर और चन्देरी के दुर्ग पर आधिपत्य कर लिया और 20 मार्च को झाँसी से चौदह मील दूर पड़ाव डाल दिया।

प्रश्न. 7.
अंग्रेजी सेना का सामना करने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने क्या प्रयास किया ?
उत्तर:
झाँसी के पास शत्रु सेना के आगमन का समाचार पाते ही रानी लक्ष्मीबाई आक्रोशित हो उठी, रानी ने प्रबल संघर्ष का निर्णय ले लिया। रानी के साथ ही बानपुर के राजा मर्दानसिंह, शाहगढ़ के नेता बहादुर ठाकुर तथा बुंदेलखंड के सरदार भी-क्रुद्ध थे। कठिनाई यह थी कि सैनिक वीर तो थे, परन्तु उनमें कौशल व अनुशासन का अभाव था। रानी ने तोपों की व्यवस्था की, उनके लिए कुशल संचालक जुटाए। महिलाओं ने हथियार लिए तो पुरुषों ने तोपें उठाईं। इस तरह 25 मार्च को युद्ध प्रारंभ हो गया।

प्रश्न. 8.
तात्या टोपे की पराजय के बाद रानी ने अपनी सेना को किस प्रकार प्रोत्साहित किया ?
उत्तर:
झाँसी की सहायता के लिए तांत्या टोपे ने अपने 2200 सैनिकों के साथ अंग्रेजों से भयंकर युद्ध किया, परन्तु अंग्रेजों की विशाल सेना के सामने वे टिक नहीं सके और उनके 1400 सैनिक मारे गए। तात्या टोपे की पराजय पर रानी ने झाँसी के नागरिकों को निराश न होकर हौसला रखने का आह्वान करते हुए कहा कि “हम लोग दूसरों पर निर्भर न रहें अपने पराक्रम व वीरता का परिचय देने। के काम में जुट जाएँ।”

प्रश्न. 9.
रानी ने संतरी को चकमा देकर किस तरह दुर्ग से प्रस्थान किया ?
उत्तर:
रानी ने रात्रि में झाँसी छोड़ने का संकल्प ले लिया। चुनिंदा विश्वस्त अश्वारोही सैनिकों के साथ रानी ने पुरुष वेश धारण कर दुर्ग से प्रस्थान किया। अपने दत्तक पुत्र दामोदर को पीठ पर रेशम के कपड़े से बाँधकर हाथों में शस्त्र उठाया। रानी का बदन लौह कवच से ढंका हुआ था। द्वार पर खड़े अंग्रेज संतरी ने उनसे परिचय पूछा, रानी ने तपाक से उत्तर दिया, “तेहरी की सेना सर ह्यूरोज की सहायता के लिए जा रही है।” संतरी उन्हें पहचान न सका। उसे चकमा देकर रानी दुर्ग से बाहर निकल गई।

प्रश्न. 10.
रानी को कालपी से ग्वालियर क्यों जाना पड़ा ?
उत्तर:
अंग्रेजों को रानी के दुर्ग छोड़कर जाने का आभास हो गया था अतः अंग्रेजी सेना ने व्हाटलॉक के नेतृत्व में कालपी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने राव साहब, तात्या टोपे तथा बोन्द्रा, शाहगढ़ व दानपुर के राजाओं के सैनिकों को साथ लेकर अंग्रेज़ों का सामना करते हुए मुँहतोड़ जबाव दिया। लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि इन विविध राज्यों के सैनिकों में पारस्परिक समन्वय एवं अनुशासन का अभाव था, जिसके कारण वे अंग्रेजों के सामने ज्यादा देर टिक नहीं पाए। इस कारण रानी को कालपी से ग्वालियरें की ओर जाना पड़ा।

प्रश्न 11.
ग्वालियर की जनता ने रानी का साथ किस तरह दिया ?
उत्तर:
क्रांतिकारियों ने ग्वालियर की जनता को भी रानी की सहायता के लिए प्रेरित किया था। जनता अंग्रेजों को सामने देखकर अपनी सेना के साथ उन पर टूट पड़ी। इस प्रबल आक्रमण से अंग्रेजी सेना बौखला गई। अनेक अंग्रेज सैनिक मौत के घाट उतार दिए गए। परिस्थिति क्रांतिकारियों के पक्ष में बनती देख अंग्रेज कमांडर स्मिथ को पीछे हटना पड़ा। दूसरे दिन कमांडरमे फिर आक्रमण किया, सैनिक संख्या कम होने से रानी को पराजय का सामना करना पड़ा।

प्रश्न. 12.
रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान स्मरणीय क्यों है ?
उत्तर:
मातृभूमि की रक्षार्थ साहस, दृढ़ता एवं सूझबूझ के साथ अंग्रेजों का सामना करने वाले महान् देशभक्तमारी महारानी लक्ष्मीबाई अपने समर्पण के कारण संपूर्ण राष्ट्र की श्रद्धा का केन्द्र बन गई। दूसरों के सुख के लिए स्वयं के सुख की अंलिदान करने वाली महारानी वंदनीय है। उनका बलिदान सदा-सर्वदा स्मरणीय है।

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 2 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1.
महारनी लक्ष्मीबाई का बचपन किस तरह बीता और वह महारानी कब बनीं ?
उत्तर:
महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1835 को हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीमान्त ताम्बे व माँ का नाम भागीरथी था। बचपन में इस बालिका का नाम मणिकर्णिका रखा गया था परन्तु स्नेह से लोग इन्हें मनुबाई कहकर पुकारते थे। चार वर्ष की अवस्था में इनकी माता का देहावसान हो गया। पिता पर ही उनके पालन-पोषण का भार आ गया। उसी कालखण्ड में मोरोपन्त ताम्बे अपने परिवार को लेकर काशी छोड़कर ब्रह्मवर्त (बिठूर, कानपुर) पहुँच गए तथा बाजीराव के आश्रय में रहने लगे। वहाँ उन्हें छबीली कहकर पुकारा जाने लगा। बचपन से ही छबीली का नाना साहब पेशवा के साथ अत्यन्त आत्मीयतापूर्ण व पवित्रतायुक्त सम्बन्ध था।

वहीं पर तांत्या टोपे से भी उनका सम्पर्क बन गया था। नाना साहब के साथ-साथ ही छबीली के पराक्रम का प्रशिक्षण प्रारम्भ हो गया था। वे दोनों घोड़ों पर सवार होकर अभ्यास करते थे एवं शस्त्र चलाना सीखते थे। छबीली का अभ्यास इतना उत्तम था कि उनका कौशल नाना साहब पेशवा से अच्छा होने लगा। जैस-जैसे उनकी आयु बढ़ने लगी, पिता के मन में उनका विवाह करने का भाव आया। उन दिनों विवाह अल्प आयु में ही होता था। सन् 1842 में छबीली का विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधर राव के साथ संपन्न हो गया। उसी समय से वह झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई कहलाने लगी।

प्रश्न. 2.
महारानी लक्ष्मीबाई ने पुत्र व पति के निधन के बाद किस तरह राज्य सँभाला ? रानी के प्रति अंग्रेजों का षड्यंत्र दोहरे मापदंड का होने से क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर:
लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया परन्तु शैशवकाल में ही उसकी मृत्यु हो गई। इसके परिणामस्वरूप महाराजा गंगा र राव के मन में असीम वेदना पैदा हो गई। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि वे भी 21 नवम्बर, 1853 को दिवंगत हो गए। उनके आकस्मिक निधन के बाद महारानी ने एक बच्चे दामोदर को गोद लिया। पति के दिवंगत होने पर उन्होंने स्वंय ज्य का दायित्व सँभाल लिया और पुरुष वेश में दरबार में जाना प्रारम्भ कर दिया। कभी-कभी नगर के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर प्रजा के कष्टों वे समाज की समस्याओं की पूरी जानकारी प्राप्त करके उनका निदान करती थीं।

इस घटना के उपरांत अंग्रेजी शासकों ने षड्यन्त्रपूर्वक रानी लक्ष्मीबाई को न तो झाँसी का अधिपति स्वीकार किया और न उसके दत्तक पुत्र दामोदर को उनकी संतान के रूप में स्वीकार किया। अंग्रेज शासकों ने इसी श्रेणी के उन अनेक लोगों की मान्यता स्वीकार की , थी जो अंग्रेजी सत्ता के सहयोगी व समर्थक थे परन्तु महारानी झाँसी व नाना साहब पेशवा के साथ यह व्यवहार नहीं किया गया। अंग्रेजों
का यह व्यवहार रानी को बहुत बुरा लगा। अंग्रेजी शासकों की सूचना व निर्देश पाकर लक्ष्मीबाई क्रोधित होकर बोल उठीं, “क्या मैं झाँसी छोड़ देंगी ? जिनमें साहस हो, वे आगे आएँ।” उन्होंने अंग्रेजों को ललकारा। 16 मार्च, 1854 ई. को अंग्रेजों ने झाँसी का राज्य हड़प लिया, यहीं से रानी और अंग्रेजों के मध्य संघर्ष की शुरुआत हो गई।

प्रश्न. 3.
पाठ के आधार पर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की चरित्रगत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
1857 ई. के स्वाधीनता संग्राम के कालखंड में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी साहसिक भूमिका से भारतवासियों में नई जान फेंक दी थी। उनक़ा व्यक्तित्व सभी के लिए प्रेरणास्पद रहा। उनके चरित्र की विशेषताओं को निम्न बिन्दुओं के आधार पर अभिव्यक्त किया जा सकता है|

  1. संघर्षशील – बचपन से ही लक्ष्मीबाई का जीवन संघर्षों में बीता। चार वर्ष की आयु में माँ का देहावसान, फिर अल्पायु में विवाह, पुत्र की मृत्यु और पति का देहावसान आदि घटनाओं ने उसके जीवन को संघर्षों में परिणत कर दिया।
  2. स्वाधीनता प्रेमी – राजा अंग्रेजी दासता को स्वीकार कर रहे थे, किन्तु रानी लक्ष्मीबाई ने उनका सामना किया। क्रांतिकारियों का साथ दिया व अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया। प्रथम स्वाधीनता संग्राम की वह नेत्री थीं।
  3. साहसी – वह विपरीत परिस्थितियों में दुर्ग से निकलकर कालपी और फिर ग्वालियर पहुँचीं। बीच-बीच में अंग्रेजी सैनिकों को मुंहतोड़ जबाव देती रहीं। उन्हें अंग्रेजी ताकत को तनिक भी भय नहीं था। तात्या टोपे की पराजय के बाद भी उनका अंग्रेजों से लोहा लेना और मरणकाल तक संघर्ष रानी के साहसिक व्यक्तित्व को उजागर करता है।
  4. दृढ़ संकल्पवान् – जब अंग्रेजों ने झाँसी पर षड्यंत्रपूर्वक कब्जा कर लिया, तो वह चैन से नहीं बैठी। क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर अंग्रेजों को मार भगाया। पुरुष वेश में राजकाज सँभाला व विपरीत स्थितियों को अनुकूल बनाया।
  5. स्वाभिमानी – अपने स्वाभिमान से समझौता न करके दामोदर राव को दत्तक पुत्र लिया अंग्रेजों द्वारा उन्हें अधिपति अस्वीकार किए जाने पर भी वह नहीं झुर्की उनका अंग्रेजों से संघर्ष स्वाभिमान की पृष्ठभूमि पर था।
  6. महान् योद्धा – कालपी से ग्वालियर पहुँचना, नाले को पार नहीं कर पाना, चारों ओर से शत्रु से घिरकर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ना और मातृभूमि की रक्षार्थ अपने प्राण दे देना, यह महान् योद्धा का व्यक्तित्व है। इस प्रकार मातृभूमि की रक्षार्थ साहस, दृढ़ता एवं सूझबूझ के साथ अंग्रेजों का सामना करने वाली महान् देशभक्त वीरांगना लक्ष्मीबाई सदैव वंदनीय रहेंगी।

रानी लक्ष्मी बाई पाठ सारांश लक्ष्मी बाई का बचपन-

1857 ई. के स्वाधीनता संग्राम के कालखंड में झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई का योगदान अपूर्व था। उनका जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर, 1835 ई. को हुआ था। पिता का नाम मोरोपंत तांबे व माँ का नाम भागीरथी था। बचपन में इनका नाम मणिकर्णिका रखा गया। चार वर्ष की अवस्था में माता का देहावसान हो गया और उनका परिवार बाजीराव के आश्रम में बिठूर (कानपुर) आ गया। उन्हें यहाँ ‘छबीली’ कहा जाने लगा। नाना साहब के साथ शस्त्र चलाने का अभ्यास करने लगी। अल्प आयु में ही 1842 ई. में झाँसी के महाराजा गंगाधर के साथ उनका विवाह संपन्न हो गया और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई कहलाने लगी।

अंग्रेजों का षड्यंत्र-कुछ दिनों बाद लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, परन्तु शैशवकाल में ही उसकी मृत्यु हो गई। दुर्भाग्य से 21 नवम्बर, 1853 ई. को महाराजा गंगाधर राव भी दिवंगत हो गए। महारानी ने एक बच्चे दामोदर को गोद लिया और स्वयं राजकाज संभालने लगी। इसे समय अंग्रेजों ने पड्यंत्र रचते हुए लक्ष्मीबाई को झाँसी को अधिपति मानने से इनकार कर दिया और न ही दत्तक पुत्र दामोदर को स्वीकार किया। 16 मार्च, 1854 ई. को अंग्रेजों ने रानी का राज्य हड़प लिया।

रानी का संघर्ष-तात्या टोपे के आग्रह पर रानी ने अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया था। अंग्रेजों को मार भगाकर लक्ष्मीबाई ने पुनः झाँसी पर कब्जा कर लिया। सागर, नौगाँव, बाँद्रा, बन्दपुर, शाहगढ़ तथा कर्वी पर क्रांतिकारियों ने कब्जा जमालिया और अंग्रेजों को खदेड़ दिया। विंध्याचल से यमुना तक का क्षेत्र अंग्रेजों से मुक्त हो चुका था।
अंग्रेजों की योजना-1858 ई. के आरंभ में सर हयूरोज के नेत्त्व में पुन: हिमालय की समस्त भूमि पर कब्जा करने की योजना बनी। 6 जनवरी, 1858 ई. को उसने रायगढ़ के दुर्ग पर कब्जा कर लिया, फिर दानपुर चन्देरी के दुर्ग पर अधिकार करते हुए झाँसी से 14 मील दूर पड़ाव डाल दिया।

अंग्रेजों से युद्ध-शत्रु की सेना के आगमन का समाचार पाकर रानी ने प्रबले संघर्ष की ठान ली। रानी को बानपुर के राजा मर्दान सिंह व शाहगढ़ के नेता बहादुर ठाकुर का साथ मिला। महिलाओं ने हथियार लिए तो पुरुषों ने तोपें उठाईं। 5-6 दिन के युद्ध में अंग्रेजी सेना का भारी नुकसान हुआ। सातवें दिन अंग्रेजों ने तोपें दागकर दीवार गिरा दी परन्तु रात में ही उसे पुन: बनाकर क्रांतिकारियों ने अपना कौशल दिखलाया। आठवें दिन अंग्रेजी सेना शंकर दुर्ग की ओर बढ़ी। इस समय तात्या टोपे भी झाँसी पहुँच चुके थे। अंग्रेजों व तांत्या टोपे के मध्य भीषण युद्ध हुआ। अंग्रेजों की विशाल सेना के समक्ष तात्या टोपे के 2200 में से 1400 सैनिक मारे गए।

झाँसी पर अंतिम आक्रमण-3 अप्रैल, 1858 ई. को अंग्रेजों को झाँसी पर अंतिम आक्रमण हुआ। लक्ष्मीबाई के वीर सैनिकों ने जमकर लोहा लिया। दक्षिणी द्वार से अंग्रेज दुर्ग के भीतर घुस गए। यह स्थिति देखकर लक्ष्मीबाई डेढ़ हजार सैनिकों को लेकर अंग्रेजों पर टूट पड़ी। अंग्रेजों ने सैनिकों के साथ आम नागरिकों पर वार करना शुरू कर दिया, जिससे नगर में हाहाकार मच गया। यह स्थिति देखकर रानी ने अपना बलिदान करने का निश्चय कर लिया, परन्तु स्वामिभक्त सरदारों के समझाने पर झाँसी छोड़ने को तैयार हो गई।

रानी का दुर्ग से बाहर निकलना-रानी ने रात्रि में अपने विश्वस्त सैनिकों के साथ पुरुष वेश धारण कर दत्तक पुत्र दामोदर को पीठ पर रेशम के वस्त्रों में बाँधकर अंग्रेजों को चकमा देकर दुर्ग से बाहर निकल गई। 102 मील की यात्रा कर कालपी पहुँची तो घोड़ा धराशायी हो गया। अंग्रेजों को रानी का दुर्ग छोड़ने का पता चल गया था। व्हॉटलोक के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने कालपी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने राव साहब, तात्या टोपे, बाँद्रा, शाहगढ़ व दानपुर के राजाओं को साथ लेकर अंग्रेजों को मुँह तोड़ जबाव दिया। पारस्परिक सामंजस्य व अनुशासन का अभाव होने से अंग्रेजों के सामने टिक नहीं पाए। रानी को कालपी से ग्वालियार की ओर जाना पड़ा।

रानी पर हमला-अंग्रेज सेना घेरा डालकर रानी को पकड़ने का प्रयास कर रही थी। रानी का घोड़ा नया था आगे बढ़ने पर एक नाला आ गया। घोड़े ने छलाँग नहीं लगाई और रानी को अंग्रेजों ने घेर लिया। सोनरेखा नामक इस नाले पर अकेली रानी भूखी शेरनी की तरह अंग्रेजों पर टूट पड़ी। एक अंग्रेज सैनिक ने रानी के मस्तक पर पीछे से वार कर दिया। घायल महारानी के वार से वह सैनिक ढेर हो गया। उसी समय दूसरे सैनिक ने रानी पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया और वह बेहोश हो गई।

रानी का महाप्रयाण-विश्वासपात्र सेवक रामचन्द्र राव देशमुख एवं रघुनाथ सिंह ने रानी को उठाकर पास में बनी गंगादास की झोंपड़ी में पहुँचा दिया। प्राथमिक उपचार के बाद भी वे रानी को बचा नहीं पाए। अंग्रेजों की नजर से बचते हुए उन्होंने घास-फूस की चिता बनवाकर दुर्गास्वरूपा रानी का दाहसंस्कार कर दिया। सभी उपस्थित जनों ने भस्म से तिलक किया। उनका बलिदान स्थलग्वालियर हिन्दुस्तानियों का तीर्थ-स्थल बन गया।

कठिन शब्दार्थ-

अनुपम = अनोखा। अद्वितीय = जिसके समान कोई दूसरा न हो। शैशव = बचपन। वेदना = पीड़ा। अधिपति = स्वामी, राजा। दिवंगत = देहावसान। दत्तक = गोद लिया हुआ। हड़पना = छीनना। (पृष्ठ-15-16)

हताहत = घायल। दुर्ग = किला। ध्वस्त = नष्ट। अश्वारोही = घुड़सवार। चुनिंदा = चुने हुए। प्रबल = जबर्दस्त, भयंकर। गोलंदाज = गोला फेंकने वाला। कूच = प्रस्थान। आघात = चोट। निदान = उपाय। (पृष्ठ-17-18-19)

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