RBSE Solutions for Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 8 जैसलमेर की राजकुमारी

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 8 जैसलमेर की राजकुमारी

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 8 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘जैसलमेर की राजकुमारी कहानी है –
(क) सामाजिक
(ख) पारिवारिक
(ग) राजनैतिक
(घ) ऐतिहासिक
उत्तर तालिका:
(घ) ऐतिहासिक

प्रश्न 2.
शत्रु सेना का सेनापति कौन था –
(क) गुलाम मोहम्मद
(ख) मलिक काफूर
(ग) गोस मोहम्मद
(घ) मलिक मोहम्मद
उत्तर तालिका:
(ख) मलिक काफूर

प्रश्न 3.
जैसलमेर की राजकुमारी रत्नवती किसकी कन्या थी –
(क) जयसिंह की
(ख) मानसिंह की
(ग) जोरावर सिंह की
(घ) महाराव रत्नसिंह की
उत्तर तालिका:
(घ) महाराव रत्नसिंह की

प्रश्न 4.
जैसलमेर की राजकुमारी के कहानीकार हैं –
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ख) प्रेमचन्द
(ग) आचार्य चतुरसेन
(घ) आचार्य हजारी प्रसाद
उत्तर तालिका:
(ग) आचार्य चतुरसेन

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किले का प्रत्येक व्यक्ति राजकुमारी को किसकी तरह पूजता था?
उत्तर:
किले को प्रत्येक व्यक्ति राजकुमारी को देवी की तरह पूजता था।

प्रश्न 2.
रत्नसिंह ने राजकुमारी को सावधान करते हुए शत्रु के सम्बन्ध में क्या कहा? .
उत्तर:
रत्नसिंह ने राजकुमारी से कहा कि सावधान रहना। शत्रु वीर ही नहीं, धूर्त और छलिया भी है।

प्रश्न 3.
दूर पर्वत की उपत्यका में डूबते सूर्य को देखकर राजकुमारी चिन्तित क्यों हो उठी?
उत्तर:
राजकुमारी को चार दिन से पिता का सन्देश नहीं मिला था और आज का भी सूर्य अस्त हो रहा था, इसलिए राजकुमारी चिन्तित हो उठी थी।

प्रश्न 4.
मलिक काफूर ने आँसू भीगी आँखों से राजकुमारी को क्या कहा?
उत्तर:
मलिक काफूर ने आँखों में आँसू भरकर कहा कि राजकुमारी मुझे यकीन है कि आप बीस किलों की हिफाजत कर सकती हैं।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजकुमारी ने हँसते हुए राव रत्नसिंह को क्या आश्वासन दिया?
उत्तर:
जैसलमेर के राठौड़ दुर्गाधिपति महाराव रत्नसिंह की कन्या राजकुमारी रत्नवती ने आक्रमण के लिए जाते हुए अपने पिता से हँसते हुए आश्वासन दिया कि पिताजी आप दुर्ग की चिन्ता न कीजिए। जब तक उसका एक भी पत्थर-पत्थर से मिला है, उसकी रक्षा मैं करूंगी। अलाउद्दीन कितनी ही वीरता से हमारे दुर्ग पर आक्रमण क्यों न करे, आप निश्चिन्त होकर शत्रु से युद्ध करने जाइये हमारा दुर्ग पूर्णतया सुरक्षित रहेगा।

प्रश्न 2.
‘दाँत खट्टे करना’ मुहावरे का अर्थ बताते हुए वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
‘दाँत खट्टे करना’ मुहावरे का आशय है – कड़ी टक्कर देना या युद्ध में मजे चखा देना। वाक्य में प्रयोग – हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना ने अकबर की सेना के दाँत खट्टे कर दिये थे।

प्रश्न 3.
शत्रु दल के दुर्ग पर प्रबल आक्रमण का राजकुमारी ने क्या प्रत्युत्तर दिया?
उत्तर:
शत्रु दल ने जब दुर्ग पर प्रबल आक्रमण किया, तब राजकुमारी पहले तो चुपचाप बैठी रही । जब शत्रु सैनिक आधी दूरी तक दीवारों पर चढ़ आये, तब उसने भारी-भारी पत्थरों के ढोंके और गर्म तेल से ऐसा प्रहार किया कि शत्रु सेना छिन्न-भिन्न हो गई। अनेक शत्रु सैनिकों के मुँह झुलस गये। कितनों की चटनी बन गयी । हजारों शत्रु सैनिक तोबा-तोबा करके प्राण लेकर भागे । जो प्राचीर तक पहुँचे गये थे उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया।

प्रश्न 4.
रात्रि के अन्धकार में राजकुमारी ने बुर्ज से नीचे क्या देखा?
उत्तर:
रात्रि के अन्धकार में राजकुमारी ने बुर्ज से नीचे देखा कि एक काली मूर्ति धीरे-धीरे पर्वत की तंग राह से किले की ओर अग्रसर हो रही है। उसने समझा कि पिता का सन्देशवाहक होगा। परन्तु जब वह गुप्तद्वार की ओर न जाकर सिंह द्वार की ओर जाने लगा तो राजकुमारी ने समझ लिया कि यह अवश्य कोई शत्रु है। उसने एक गठरी भी पीठ पर बाँध रखी थी। उसने गठरी उतार कर नीचे रखी और किले की दीवार पर चढ़ने लगा। गठरी में भी दूसरा शत्रु सैनिक था। राजकुमारी ने तीर मार कर उसे ढेर कर दिया।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जैसलमेर की राजकुमारी’ कहानी का कथासार लिखिए।
उत्तर:
जैसलमेर की राजकुमारी’ कहानी की नायिका जैसलमेर के दुर्गाधिपति महाराव रत्नसिंह की पुत्री रत्नवती थी। अलाउद्दीन की सेना ने जैसलमेर के दुर्ग को छीनने के लिए कई दिनों से घेरा डाल रखा था। उसने कई आक्रमण किये थे, जिनको रत्नसिंह ने विफल कर दिया था। एक दिन रत्नसिंह शत्रुओं को खदेड़ने के लिए सेना लेकर किले से बाहर जा रहे थे, तब दुर्ग की रक्षा का भार राजकुमारी ने संभाला। उसने रात-दिन जागकर बड़ी कुशलता से दुर्ग की रक्षा की थी। शत्रु सेनानायक मलिक काफूर के षड्यन्त्रपूर्ण आक्रमण को विफल करते हुए उसे सैनिकों सहित अपने दुर्ग में बन्दी बना लिया। उसने अन्न की कमी में दुर्गवासियों को और बन्दी शत्रु सैनिकों को यथोचित अन्न उपलब्ध कराया। उसके कुशल प्रबन्ध को देखकर ही सेनापति काफूर ने कहा था कि मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि आप अकेली बीस किलों की हिफाजत कर सकती हैं। रत्नसिंह विजय प्राप्त कर लौटे तो पुत्री राजकुमारी से बहुत खुश हुए।

प्रश्न 2.
जैसलमेर की राजकुमारी’ कहानी लेखन के पीछे कहानीकार का उद्देश्य क्या रहा है? लिखिए।
उत्तर:
आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने अपनी रचनाओं में राजस्थान के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन को पर्याप्त स्थान दिया है। जैसलमेर की राजकुमारी कहानी का उद्देश्य राजस्थान की वीरभूमि को गौरवान्वित करने वाले वीर और वीरांगनाओं के उज्ज्वल चरित्र, उनकी वीरता और उनके उच्च सांस्कृतिक आदर्शों की अभिव्यक्ति करना है। जैसलमेर की राजकुमारी की वीरता, निडरता एवं कुशल सैन्य संचालन इस कथा में स्पष्टत: दिखाई देता है। वह शत्रु के षड्यन्त्र और आक्रमण को विफल करते हुए पिता की अनुपस्थिति में दुर्ग की रक्षा का भार संभालती है। राजकुमारी का बन्दी सैनिकों एवं सेनानायक के प्रति अपनी संस्कृति और श्रेष्ठ परम्पराओं के अनुसार व्यवहार शत्रु सेनानायक को भी प्रभावित कर देता है। अतः लेखक ने राजकुमारी रत्नवती के चरित्र से राजस्थान की वीर-नारियों की वीरता एवं अतिथि-सत्कार की परम्परा की व्यंजना की है।

प्रश्न 3.
राजकुमारी ने सेनापति मलिक काफूर को जाकर क्या कहा?
उत्तर:
शत्रु सेना से घिरे रहने के कारण जैसलमेर के किले में खाद्य सामग्री समाप्त हो रही थी। राजकुमारी को कैदियों के भोजन की बड़ी चिन्ता थी। शत्रु सेनापति मलिक काफूर को राजकुमारी ने जाकर कहा कि मुझे तुमसे कुछ परामर्श करता है। वह बोली कि दुर्ग में खाद्य-सामग्री बहुत कम रह गयी है। मैं विवश हूँ। मुझे यह चाहते हुए संकोच हो रहा है और मैं चिन्तित हूँ कि अतिथि-सेवा कैसे की जाए। फिर भी कल से हम लोग एक मुट्ठी अन्न लेंगे और आप लोगों को दो मुट्ठी अन्न उस समय तक मिलेगा जब तक दुर्ग में अन्न रहेगा। आगे ईश्वर मालिक है। इस प्रकार राजकुमारी ने अतिथि-सत्कार की महान् सांस्कृतिक परम्परा का निर्वाह किया।

प्रश्न 4.
“जैसलमेर की राजकुमारी’ कहानी भारतीय दर्शन को प्रतिबिम्बित करने वाली कथा है।” पठित कहानी के आधार पर समझाइये।
उत्तर:
आचार्य चतुरसेन शास्त्री के अनुसार हम भारतवासी अपने श्रेष्ठ आदर्शों, जीवन-मूल्यों और परम्पराओं का प्रत्येक स्थिति में पालन करते हैं। प्रस्तुत कहानी में जैसलमेर की राजकुमारी रावती भारतीय दर्शन की महत्त्वपूर्ण विशेषता ‘अतिथि देवो भव’ की परम्परा का पालन करती है और अपने किले में बन्दी शत्रुः सैनिकों और सेनानायक मलिक काफूर के लिए यथाशक्ति अन्न का प्रबन्ध करती है। वह कहती है। कि हम कल से एक मुट्ठी अन्न लेंगे और आप लोगों को दो मुठ्ठी अन्न मिलता रहेगा। इसके अतिरिक्त भारतीय नारियाँ अपने मातृभूमि और धर्म की रक्षा के लिए बड़े से बड़ा त्याग और बलिदान करने को तत्पर रहती हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर मातृभूमि की रक्षा के लिए युद्ध भी लड़ती हैं । प्रस्तुत कहानी में राजकुमारी के चरित्र एवं आचरण से ये सभी गुण प्रतिबिम्बित होते हैं।

प्रश्न 5.
‘पठित कहानी नारी के कुशल प्रबन्धन और सूझ-बूझ को अभिव्यक्त करती है। अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में राजकुमारी रत्नवती अपने पिता की अनुपस्थिति में कम से कम राजपूत सैनिकों द्वारा जैसलमेर दुर्ग की रक्षा अपने कुशल सैन्य-प्रबन्ध से ही कर देती है। वह शत्रु सेना के प्रबल आक्रमण को विफल करती है तथा सेनानायक मलिक काफूर द्वारा किले में प्रवेश करके आक्रमण करने के षड्यन्त्र को अपनी सूझ-बूझ से ही अपनी जीत में बदल देती है। वह शत्रुओं के कुचक्र को तोड़कर उसे अपने चक्रव्यूह में फँसा लेती है और सेनानायक व शत्रु सैनिकों को बन्दी बना लेती है। राजकुमारी पूर्णतः सावधान और सतर्क रहकर स्वयं किले की प्राचीर और बुर्ज पर चढ़कर सुरक्षा-व्यवस्था को देखती रहती है। रात्रि के अन्धकार का फायदा उठाकर किले की प्राचीर पर चढ़ने की कोशिश करने वाले शत्रु सैनिकों को वह स्वयं तीर चलाकर मार गिराती है। इस तरह प्रस्तुत कहानी में नारीके कुशल प्रबन्धन और सूझबूझ की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 8 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
“पिताजी दुर्ग की चिन्ता न कीजिए। जब तक उसका एक भी पत्थर-पत्थर से मिली है, उसकी रक्षा मैं करूंगी।” इस कथन से राजकुमारी का कौन सा भाव व्यक्त हुआ है –
(क) घमण्ड
(ख) उत्साह
(ग) आत्मविश्वास
(घ) वीरता
उत्तर तालिका:
(ग) आत्मविश्वास

प्रश्न 2.
राजकुमारी के सामने सबसे प्रमुख समस्या क्या थी
(क) किले में पानी की कमी
(ख) दुर्ग में खाद्य-सामग्री की कमी
(ग) सैनिकों की कमी
(घ) शस्त्रास्त्र की कमी
उत्तर तालिका:
(ख) दुर्ग में खाद्य-सामग्री की कमी

प्रश्न 3.
‘वह मूर्ति एक गठरी को पीठ से उतार कर प्राचीर पर चढ़ने का उपाय सोच रही थी।’ इस गठरी में बँधा था –
(क) बहुत सारा सोना
(ख) गोला-बारूद
(ग) खाद्य-सामग्री
(घ) एक शत्रु सैनिक
उत्तर तालिका:
(घ) एक शत्रु सैनिक

प्रश्न 4.
‘महाराज, राजकुमारी तो पूजने लायक हैं। वे मनुष्य नहीं फरिश्ता हैं।’ यह कथन है –
(क) वृद्ध राजपूत सैनिक का
(ख) द्वारपाल का
(ग) सेनापति काफूर का
(घ) अलाउद्दीन को
उत्तर तालिका:
(ग) सेनापति काफूर का

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजकुमारी अपने पिता रत्नसिंह को दुर्ग से विदा करते समय किस प्रकार की वेश-भूषा में थी?
उत्तर:
अपने पिता को दुर्ग से विदा करते समय राजकुमारी रत्नवती मर्दानी पोशाक धारण करके एक बलिष्ठ अरबी घोड़े पर सवार थीं। उसकी कमरबन्द में पेशकब्ज, पीठ पर तरकश और हाथ में धनुष था। वह अपने चंचल घोड़े को स्थिर करने के लिए उसकी लगाम को बलपूर्वक खींच रही थीं। उसका अश्व क्षण भर के लिए भी स्थिर नहीं रहना चाहता था । इस प्रकार राजकुमारी एक शक्तिशाली योद्धा की भाँति ऐसे सुशोभित हो रही थी मानो वीररस ही साक्षात् खड़ा हो।

प्रश्न 2.
युद्ध-भूमि के लिए प्रस्थान करने से पूर्व रत्नसिंह ने राजकुमारी से क्या कहा?
उत्तर:
युद्ध-क्षेत्र में प्रस्थान करने से पूर्व राजकुमारी के कन्धे पर हाथ रख कर रत्नसिंह ने कहा कि बेटी, मुझे तुमसे यही आशा है कि तुम अपने कथनानुसार दुर्ग की पूर्णरूपेण रक्षा करोगी। मैंने तुझे पुत्री नहीं, पुत्र की भाँति पाला और शिक्षा दी है। मैं दुर्ग तेरे हाथों में सौंपकर पूर्णतः आश्वस्त और निश्चिन्त हूँ। फिर भी अब तुम्हें बहुत अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है, क्योंकि शत्रु केवल वीर ही नहीं, वह धूर्त और छलिया भी है।

प्रश्न 3.
‘प्रबल शत्रु-दल से आक्रान्त दुर्ग में बैठना राजकुमारी के लिए एक विनोद था।’ इस कथन को समझाइये।
उत्तर:
जैसलमेर की राजकुमारी अबला नहीं, बल और साहस से परिपूर्ण मर्दानी , स्त्री थी। वह दुर्ग के किसी बुर्ज पर अपनी सखियों के साथ चढ़ जाती और शत्रु सेना का मजाक उड़ाती हुई वहाँ से सनसनाते हुए तीरों की वर्षा कर देती थी। वह निडर होकर अपने दुर्ग में बैठी हुई शत्रुओं के दाँत खट्टे कर देती थी। वह कहती ‘मैं स्त्री हूँ, पर अबला नहीं, मुझ में मर्दो जैसा साहस और बल है। उसकी बातें सुनकर उसकी सखियाँ ठहाका लगाकर हँसतीं और शत्रुओं की हँसी उड़ातीं। इस प्रकार शक्तिशाली शत्रुओं से घिरे हुए दुर्ग में बैठना राजकुमारी के लिए विनोद था।

प्रश्न 4.
डूबते हुए सूर्य को देखती हुई राजकुमारी क्या सोच रही थी?
उत्तर:
डूबते हुए सूर्य के साथ ही आज चौथा दिन भी समाप्त हो गया था। राजकुमारी कुछ चिन्ता का भाव लिए हुए सोच रही थी कि आज भी पिताजी का कोई संदेश नहीं आया। वह सोच रही थी कि इस समय पिताजी को किस प्रकार की सहायता दी जा सकती है। उन्हें किस चीज की भावश्यकता होगी, कुछ पता नहीं लग पाया है। इस प्रकार वह युद्ध-भूमि में गये अपने पिता की कुशलता के बारे में सोच रही थी।

प्रश्न 5.
उसने धीरे-धीरे राजकुमारी के कान में कुछ और भी कहा।’ वृद्ध योद्धा ने राजकुमारी को और क्या बताया था?
उत्तर:
राजकुमारी को हरेदार वृद्ध राजपूत योद्धा ने बताया कि शत्रु ने उसे अर्द्धरात्रि के समय दुर्ग का द्वार खोलने के लिए घूस में बहुत सारा सोना दिया है। उसके षड्यन्त्र और चालाकी का प्रत्युत्तर हमें भी उसी की शैली में देना चाहिए। यह कहते हुए वृद्ध सैनिक ने सोने की पोटली निकाल कर राजकुमारी को समर्पित कर दी।

प्रश्न 6.
‘काफूर ने मन्द स्वर में कहा यहाँ तक तो ठीक हुआ।’ सेनापति काफूर के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शत्रु सेना का सेनापति काफूर अपनी धूर्ततापूर्ण योजना के अनुसार जैसलमेर के द्वार रक्षक को घूस देकर अर्द्धरात्रि के समय अपने सौ विश्वस्त सैनिकों के साथ किले का द्वार खुलवाकर उसमें प्रवेश कर जाता है। वह सोचता है कि मेरी तरकीब कामयाब हो गई । इसलिए वह मन्द स्वर में वृद्ध सैनिक से कहता है कि यहाँ तक तो ठीक हो गया। अब आगे का मार्ग बताकर हमें महलों तक पहुँचाओ।

प्रश्न 7.
वृद्ध राजपूत सैनिक ने काफूर और उसके सैनिकों को किस प्रकार दुर्ग में बन्दी बनवा दिया था?
उत्तर:
किले के द्वार रक्षक वृद्ध राजपूत सैनिक ने शत्रु सेनानायक काफूर के द्वारा घूस दिये जाने और दुर्ग में प्रवेश करने की सम्पूर्ण योजना को राजकुमारी को बता दिया था। राजकुमारी ने अपनी सूझ-बूझ से शत्रु को उसी की चालाकी के चक्रव्यूह में फँसाकर अपने दुर्ग में कैद कर लिया। वृद्ध राजपूत सैनिक ने जैसे को तैसा’ या ‘ शठे शाठ्यं समाचरेत्’ की कहावत चरितार्थ करते हुए शत्रुओं के साथ वही व्यवहार किया गया जो युद्ध-नीति या कूटनीति के आधार पर उचित था।

प्रश्न 8.
राजकुमारी के लिए सबसे बड़ी समस्या क्या थी और उसका तात्कालिक समाधान क्या निकाला?
उत्तर:
दुर्ग में खाद्यान्न धीरे-धीरे समाप्त हो रहा था। दुर्ग को शत्रु सेना ने लम्बे समय से घेर रखा था इसलिए बाहर से किसी का आना संभव नहीं था। ऐसी स्थिति में राजकुमारी ने अपने सैनिकों और बन्दी सेनानायक काफूर से परामर्श कर यह तय किया कि दुर्ग में जब तक अन्न है तब तक राजपूत सैनिक प्रतिदिन एक मुट्ठी अन्न लेंगे और बन्दी सैनिक जो अतिथि तुल्य हैं, उन्हें दो मुट्ठी अन्न दिया जायेगा। इस प्रकार राजकुमारी ने उस समस्या का तात्कालिक समाधान निकाला, जो कि प्रशंसनीय था।

प्रश्न 9.
अलाउद्दीन ने महाराव रत्नसिंह से संधि का प्रस्ताव क्यों भेजा?
उत्तर:
अलाउद्दीन की सेना अठारह सप्ताह से दुर्ग को घेरे हुए थी। उन्होंने सोचा था कि कुछ ही दिनों में दुर्ग में खाद्य सामग्री समाप्त हो जायेगी और राजकुमारी विवश होकर किला हमें दे देगी। परन्तु राजकुमारी ने किसी तरकीब से किले में खाद्य-सामग्री जमा कर ली थी और अब नौ महीने तक निश्चिन्त थी। गुप्तचर ने अलाउद्दीन को यह सब सूचना दी और यह भी बताया कि शाही फौज के लिए किसी भी तालाब में अब पानी नहीं रहा है। उधर रत्नसिंह ने शाही सेना को मालवा तक खदेड़ दिया है। इन सब हालत को देखते हुए अलाउद्दीन ने रत्नसिंह को संधि प्रस्ताव भेजा।

प्रश्न 10.
उस दिन सुन्दर प्रभात में राजकुमारी ने दुर्ग की प्राचीर पर खड़ी होकर क्या देखा?
उत्तर:
राजकुमारी ने उस आनन्ददायी प्रभात वेला में दुर्ग की प्राचीर पर खड़ी होकर देखा कि शाही सेना जो चार-पाँच माह से किले को घेरे पड़ी थी और अनेक आक्रमण कर चुकी थी, वह अब अपने डेरे-डंडे उखाड़ कर जा रही है। दूसरी ओर बड़े हर्षोल्लास के साथ महाराव रत्नसिंह अपने सूर्यमुखी झण्डे को फहराते हुए विजयी राजपूतों के साथ दुर्ग की ओर आ रहे हैं। ये दोनों ही दृश्य राजकुमारी और जैसलमेर की प्रजा एवं समस्त सैनिकों को अपार हर्ष प्रदान करने वाले थे।

प्रश्न 11.
महाराव रत्नसिंह ने बन्दी शत्रु सेनानायक को किस प्रकार विदा किया?
उत्तर:
महाराव ने अपनी संस्कृति और उच्च आदर्शों के अनुसार अपने राज्य के विजयोत्सव में बन्दी सेनापति काफूर को ससम्मान अपनी बगल में बिठाया। अपनी अनुपस्थिति में उन्हें जो असुविधाएँ हुई होंगी उनके लिए क्षमा याचना की। तत्पश्चात् महाराव ने मलिक काफूर को एक बहुमूल्य सरपेच (पगड़ी या साफा) सम्मानित किया तथा पान का बीड़ा देकर विदा किया।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किन परिस्थितियों में राजकुमारी ने किले की रक्षा का दायित्व संभाला था? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जैसलमेर के किले को अलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफूर ने बड़ी सेना के साथ कई दिनों से घेर रखा था और बीच-बीच में कई बड़े आक्रमण भी कर रहा था। दूसरी ओर जैसलमेर के दुर्गाधिपति महाराव रत्नसिंह को शाही सेना से लोहा लेने (मुकाबला करने के लिए दुर्ग के बाहर जाना पड़ा था। ऐसी परिस्थितियों में राजकुमारी ने बड़ी वीरता और सूझ-बूझ से किले की रक्षा का भार संभाला था। इतनी ही नहीं दुर्ग के भीतर खाद्य-सामग्री का भी अभाव हो गया था और शत्रु कई तरह के कुचक्र रचकर छलपूर्वक भी दुर्ग को छीनने के लिए बेताब था। परन्तु इन सब विपरीत स्थितियों के बावजूद राजकुमारी अपने कुशल प्रबन्धन एवं वफादार सैनिकों के सहारे किले की रक्षा करती रही। उसने दुर्ग में खाद्य सामग्री की समस्या को अपनी सूझबूझ से समाधान किया तथा राजपूती परम्पराओं का भी पूरा निर्वाह किया।

प्रश्न 2.
‘राजकुमारी में तुरन्त निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता थी।’ इस कथन, की उदाहरण देकर पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
महाराव रत्नसिंह की पुत्री रत्नवती बहादुर, कुशल नेतृत्व क्षमता. युक्त, प्रत्युत्पन्नमति और विवेकशील युवती थी। उसकी योग्यता और क्षमताओं को जानते हुए ही रत्नसिंह ने उसे दुर्ग रक्षा का भार सौंपा था। राजकुमारी में अचानक उत्पन्न हुई स्थिति के अनुसार उचित निर्णय लेने की पूर्ण क्षमता थी। निम्नलिखित परिस्थितियों में उसके निर्णय बहुत प्रशंसनीय थे

  1. शत्रु सेना के आक्रमण करने पर और बहुत समीप आ जाने पर उन पर पत्थरों, गर्म तेल और तीरों की बौछार कर भारी नुकसान पहुँचाना।
  2. अंधेरे में किले की दीवार पर चढ़ने का प्रयत्न करने वाले शत्रु सैनिकों को पहचान कर तीर से मार गिराना।।
  3. शत्रु सेनापति काफूर के धूर्ततापूर्ण षड्यन्त्र को तुरन्त निर्णय लेकर विफल करना तथा उसे सैनिकों सहित बन्दी बनाने में सफल होना।
  4. खाद्यान्न की कमी का कुशलतापूर्वक एवं अतिथि-सत्कार की परम्परा का पालन करते हुए समाधान निकालना।

प्रश्न 3.
अलाउद्दीन की सेना के सेनापति मलिक काफूर के युद्ध कौशल पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मलिक काफूर एक कुशल सेनानायक और साहसी व्यक्ति था। वह जैसलमेर के अजेय दुर्ग को जीतने की महत्वाकांक्षा पाले हुए कई दिनों तक घेरा डाले पड़ा रहा। उसने युद्ध नीति के तहत किले में रसद सामग्री की आपूर्ति को पूर्णतः रोक दिया था। बीच-बीच में प्रबल आक्रमण करके दुर्ग में स्थित सेना के मनोबल को गिराने । का कार्य करता रहा। जब वह इस तरह सफल नहीं हो पा रहा था तो उसने युद्ध में सब कुछ जायज है” इस नीति के तहत द्वार रक्षक को बड़ी भारी घूस देकर अपने विश्वासपात्र सौ सैनिकों के साथ किले में प्रवेश करने का दुस्साहस किया। यह कार्य जान पर खेलकर किया गया था। राजकुमारी ने बड़ी चालाकी से उसे सैनिकों सहित, बन्दी बना लिया था। तब उसने अपनी विनम्रता और वाक्पटुता का परिचय दिया। इस प्रकार हम कह सकते हैं। कि वह युद्ध कौशल में महारत हासिल किये हुए था।

प्रश्न 4.
राजकुमारी रत्नवती के सैन्य प्रबन्धन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जैसलमेर की राजकुमारी एक वीर नारी थी। उसे पुरुषों की तरह सैन्य प्रशिक्षण दिया गया था। उसने बड़ी कठिन परिस्थितियों में जैसलमेर के किले की रक्षा का दायित्व वहन किया था। जब उसके पिता दुर्ग से बाहर सेना लेकर शत्रु से युद्ध लड़ने गये हुए थे तब राजकुमारी ने कम सैन्य बल के सहारे ही बड़ी कुशलता, धैर्य और चतुराई से शत्रु के आक्रमणों का मुकाबला किया था। मलिक काफूर ने जब दुर्ग पर हमला किया तो उसने चुपचाप बैठे रहकर उन्हें दुर्ग की प्राचीर के काफी समीप तक आने दिया और तब ऊपर से पत्थरों की मार, गर्म तेल की धार तथा तीरों के प्रहार से शत्रु-सैनिकों को भारी नुकसान पहुँचाया। मलिक काफूर की दूसरी धूर्ततापूर्ण चाल का राजकुमारी ने उसी की भाषा में जवाब देकर उसे सैनिकों सहित कैद कर लिया था। वह तनाव रहित होकर बड़े विनोदपूर्ण माहौल में सैनिकों को मनोबल बढ़ाती थी । खाद्यान्न की समस्या का भी उसने ‘बहुत उदारतापूर्वक समाधान किया था।

प्रश्न 5.
क़िले के पश्चिमी द्वार का रक्षक वृद्ध राजपूत सैनिक किन-किन गुणों से युक्त था?
उत्तर:
किले के पश्चिमी द्वार का रक्षक वह सैनिक अनेक गुणों से सम्पन्न था। उसके व्यक्तित्व के प्रमुख गुणों को निम्नांकित बिन्दुओं में जाना जा सकता है

  1. वह सैनिक स्वामिभक्त एवं मातृभूमि से प्रेम करने वाला था।
  2. वह ईमानदार सैनिक था। वह मलिक काफूर द्वारा दिया गया सोना देश सेवा। के लिए राजकुमारी को दे देता है।
  3. वह अनुभवी एवं दूरदर्शी था। उसके अनुभव एवं दूरदर्शिता से ही मलिक काफूर को ससैन्य कैद किया जा सका।
  4. वह वृद्ध राजपूत सैनिक निडर और साहसी था।
  5. वह एक जिम्मेदार सैनिक था, जिसे द्वार रक्षक का महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपा गया था।
  6. वह समझदार एवं विवेकशील सैनिक था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि वह एक सच्चे देशभक्त सैनिक के गुणों से परिपूर्ण अनुभवी व्यक्ति था।

प्रश्न 6.
जैसलमेर के दुर्ग में विजयोत्सव किस प्रकार मनाया जा रहा था? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शाही सेना को मालवा तक खदेड़ कर युद्ध के विजेता महाराव रत्नसिंह अपने किले में लौट आये थे। किले को घेरे हुए कई दिनों से पड़ी हुई मलिक काफूर की सेना भी अपने तम्बू उखाड़ कर जा चुकी थी। इस प्रकार यह दिन जैसलमेर के लिए बड़े उत्सव का दिन था। दुर्ग में मंगल कलश सजे हुए थे। बाजे बज रहे थे। सारे दुर्ग में हर्ष और उल्लास का वातावरण था। प्रत्येक वीर को पुरस्कार मिल रहा था। महाराव अपने गण्यमान्य लोगों के साथ विराजमान थे। अपने बगल में ही शत्रु सेना के बन्दी सेनापति काफूर को सम्मान सहित बिठा रखा था। महाराव ने उसे सरपेच और पान का बीड़ा देकर पूरा सम्मान दिया था। अन्य युद्ध बन्दियों को भी मुक्त कर भारतीय परम्परानुसार उपहार दिये जा रहे थे। दुर्ग में धौंसा बज रहा था। इस प्रकार सब लोग आनन्द-मग्न थे।

प्रश्न 7.
दुर्ग के द्वार रक्षक वृद्ध राजपूत सैनिक द्वारा घूस में सोना लेकर भी सेनापति मलिक काफूर और उसके सैनिकों को कैद करवा देने पर मलिक काफूर के मन में क्या विचार आये होंगे? कल्पना के आधार पर लिखिए।
उत्तर;
मलिक काफूर ने पहले तो सोचा होगा कि इस बूढे सैनिक ने मेरे साथ कैसा दगा किया है। बहुत सारा सोना भी ले लिया और मेरे साथ बेईमानी भी कर गया। फिर उसके मन में विचार आया होगा कि मैं भी तो उसे भ्रष्ट और देशद्रोही बनाने जा रही। था, उसने अपने देश के साथ वफादारी और मेरे जैसे शत्रु के साथ धोखा किया है, उसने इसमें क्या बुरा किया है। मलिक काफूर के मन में यह पश्चाताप भी हुआ होगा और खुद पेर शर्मिन्दगी भी महसूस हुई होगी कि मैंने द्वार रक्षक जैसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति को। खरीदना चाह कर बहुत बड़ी मूर्खता की है। वह एक अत्यन्त विश्वासपात्र व्यक्ति होता है। भला उसे कौन-सा प्रलोभन अपने कर्तव्य पथ से डिगा सकता है। आखिर उसने यह भी सोचा होगा कि राजपूत सैनिक अपने स्वामी और राष्ट्र के लिए प्राणों की भी परवाह नहीं करते, वे भला सोने के लालच में देश से गद्दारी कैसे कर सकते हैं।

प्रश्न 8.
‘जैसलमेर की राजकुमारी’ कहानी के शीर्षक के औचित्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कहानी का शीर्षक बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। कहानी के अन्य तत्वों की भाँति यह विषयोद्घाटक होने के साथ-साथ संक्षिप्त एवं रोचक होना चाहिए। प्रस्तुत कहानी आचार्य चतुरसेन शास्त्री की चरित्र प्रधान कहानी है। इसमें जैसलमेर की
राजकुमारी रत्नवती को केन्द्रबिन्दु बनाया गया है। कहानी का पूरा कथानक उसी के चरित्र पर आधारित है और वही केन्द्रीय या प्रमुख पात्र है। वह कहानी की नायिका होने के साथ-साथ श्रेष्ठ गुणों से सम्पन्न नारी पात्र है। जैसलमेर के किले की रक्षा में वह पूरी कुशलता, वीरता और अपनी सूझ-बूझ का परिचय देती है। अतः कहानी का यह शीर्षक सुस्पष्ट, आकर्षक एवं कौतूहलवर्धक है। इसे हम उचित और सार्थक शीर्षक कह सकते हैं।

प्रश्न 9.
राजकुमारी रत्नावती की चारित्रिक विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जैसलमेर की राजकुमारी’ कहानी की नायिका रत्नावती दुर्गाधिपति महाराव रत्नसिंह की पुत्री है। उसके चरित्र की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. वीरांगना – राजकुमारी रत्नवती वीरता एवं साहस से सम्पन्न युवती चित्रित है। वह प्रबल शत्रुओं से निर्भय रहक मुकाबला करती है।
  2. कुशल प्रबन्धक – राजकुमारी दुर्ग में खाद्यान्न की समस्या का तथा सैनिकों के नियोजन का कुशलता से प्रबन्ध करती है। वह शत्रु-पक्ष की कमजोरियों का लाभ चालाकी से लेती है।
  3. मर्यादावादी – राजकुमारी राजपूती संस्कारों और मर्यादाओं का पालन करती है। इसी से वह बन्दी बनाये गये मलिक काफूर आदि की अतिथि की तरह सत्कार करती।
  4. सजग – सशक्त नारी – राजकुमारी अपने पिता की गैर मौजूदगी में दुर्ग की। रक्षा करने में सजग रहती है तथा शत्रु-सेना के आक्रमणों को सशक्त ढंग से विफल कर देती है।
  5. अन्य गुण – राजकुमारी हंसमुख एवं विनोदी स्वभाव की है। वह आदर्श नारी तथा विवेकशील है। उसमें पूरा आत्मविश्वास भी है।

इस प्रकार हमें कह सकते हैं कि राजकुमारी का चरित्र अनेक श्रेष्ठ गुणों का भण्डार है।

प्रश्न 10.
‘महाराव रत्नसिंह एक आदर्श पिता और वीर पुरुष थे।’ इस,कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
जैसलमेर के दुर्गाधिपति महाराव रत्नसिंह राजकुमारी रत्नवती के पिता थे। वे एक आदर्श पिता थे, क्योंकि वे अपनी पुत्री से अत्यन्त स्नेह रखते थे और उन्होंने पुत्री को पुत्र की भाँति पाला और शिक्षित किया था। उसे सब प्रकार से युद्ध कला में निपुण एवं योग्य सेनानायिका बनाया था। उसे अच्छे भारतीय संस्कार दिये थे तथा निडर। और साहसी बनाया था। महाराव रत्नसिंह स्वयं एक वीर पुरुष थे और वीरों का सम्मान करते थे। उन्होंने अनेक युद्ध लड़े और विजय प्राप्त की थी। यहाँ प्रस्तुत कहानी में वे शाही सेना को खदेड़कर मालवा राज्य तक विजय प्राप्त करके लौटते हैं । इस प्रकार वे वीर, प्रतापी, धीर और गम्भीर प्रकृति के पुरुष थे।

प्रश्न 11.
‘मलिक काफूर अनेक चारित्रिक कमजोरियाँ के होते हुए भी कई गुणों से सम्पन्न सेनानायक था।’ इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मलिक काफूर अलाउद्दीन की सेना का सेनापति था। वह जैसलमेर के किले को जीतने के लिए कई दिनों से घेरा डाले पड़ा था। वह अनेक बार दुर्ग पर आक्रमण कर चुका था। उसके चरित्र की यह कमजोरी थी कि वह वीरता से युद्ध नहीं जीत पाता था तो धूर्तता, छल, कपट आदि का सहारा लेता था, जैसे कि उसने जैसलमेर के किले में घुसने के लिए घूस का सहारा लिया और स्वयं एवं अपने विश्वासपात्र सैनिकों के जीवन को खतरे में डाल दिया। उसके चरित्र का दूसरा पहलू देखें तो वह एक वीर, निडर और कुशल सेनापति था। वह मानवीय गुणों का पारखी था। अच्छाई का वह सम्मान करता था। राजकुमारी के चारित्रिक गुणों की वह तहे दिल से प्रशंसा करता है। उनके द्वारा किये गये सद्व्यवहार के लिए वह उनका जीवन भर अहसान मन्द रहने की बात कहता है । वह हृदय से भावुक और कृतज्ञ व्यक्ति था।

प्रश्न 12.
‘अतिथि देवो भवः’ हमारी संस्कृति का आदर्श है। प्रस्तुत कहानी में अतिथि सत्कार की भावना सर्वत्र परिलक्षित होती है। उदाहरण देकर बताइये।
उत्तर:
कहानी की नायिका रत्नवती और उसके पिता रत्नसिंह दोनों ही भारतीय संस्कृति के पोषक हैं। अतिथि सत्कार के विषय में हम स्पष्ट रूप से देखते हैं कि राजकुमारी शत्रु सेना के बन्दी सैनिकों और उनके सेनापति मलिक काफूर के प्रति दुर्व्यवहार न करके अतिथि सत्कार की परम्परानुसार अच्छा व्यवहार करती हैं। दुर्ग में खाद्यान्न की कमी के चलते राजकुमारी अपने राजपूत सैनिकों को एक मुठी अन्न प्रतिदिन और कैदी सैनिकों को दो मुठी अन्न देने की व्यवस्था करती है। महाराव रत्नसिंह भी मलिक काफूर को बन्दी खाने से मुक्त करके सम्मान सहित अपनी बगल में बैठाते हैं और बहुमूल्य सरपेच और पान का बीड़ा देकर विदा करते हैं जो उनकी ‘अतिथि देवो भव’ की भावना की ही अभिव्यक्ति है।

प्रश्न 13.
‘महाराज राजकुमारी तो पूजने लायक हैं, वे मनुष्य नहीं फरिश्ता हैं। मैं जीवन भर उनकी मेहरबानी को नहीं भूल सकता।’शत्रु सेनानायक मलिक काफूर के मुख से ये वाक्य सुनकर रलसिंह के हृदय पर क्या प्रतिक्रिया हुई होगी? कल्पना के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
एक शत्रु सेनानायक के मुख से अपने प्राणों से प्यारी बेटी की इस प्रकार की प्रशंसा सुनकर रत्नसिंह का हृदय गद्गद हो उठा होगा। भावातिरेक से उनका गला सँध गया होगा और नयनों से प्रेमाश्रु बह निकले होंगे। उन्होंने अपने भाग्य की बहुत सराहना की होगी और सोचा होगा कि मेरा जीवन धन्य हो गया। मेरी तपस्या सफल हो गई । जो संस्कार और शिक्षा मैंने अपनी प्रिय पुत्री को दी थी उसका सुफल आज मिलने लगा है। इस प्रकार महाराव रत्नसिंह की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा होगा।

प्रश्न 14.
कहानी के तत्वों के आधार पर’ जैसलमेर की राजकुमारी’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
आचार्य चतुरसेन शास्त्री की प्रसिद्ध कहानी ‘जैसलमेर की राजकुमारी’ एक सफल कथा है। कथा-तत्वों के आधार पर इसकी विशेषताओं को निम्नांकित बिन्दुओं में देखा जा सकता है –

  1. कथानक – कहानी की कथावस्तु रोचक, सुगठित और कौतूहलपूर्ण है। कथानक का विकास सुव्यवस्थित रूप से हुआ है।
  2. चरित्र-चित्रण – पात्र और चरित्र चित्रण की दृष्टि से यह नायिका प्रधान कहानी है। राजकुमारी रत्नवती के चरित्र की विशेषताओं का चित्रण सुन्दर ढंग से किया गया है।
  3. संवाद – इसमें संवाद संक्षिप्त, गतिशील तथा चरित्रोद्घाटक है, अतः संवाद या कथोपकथन की दृष्टि से यह सफल और श्रेष्ठ कहानी है।
  4. वातावरण – देश, काल और वातावरण की दृष्टि से ऐतिहासिक घटनाक्रम और वातावरण का प्रभावपूर्ण अंकन हुआ है।
  5. भाषा – शैली – भाषा – शैली पात्रानुकूल और भावानुकूल भाषा-शैली प्रयुक्त की गई है।
  6. उद्देश्य – कहानी देशभक्ति, मातृभूमि प्रेम, वीरता, साहस आदि गुणों की अभिव्यक्ति के साथ भारतीय संस्कृति के प्रेम की प्रेरणा देने वाली है।

जैसलमेर की राजकुमारी लेखक परिचय

आचार्य चतुरसेन शास्त्री का नाम सन् 1891 ई. को चाँदोख, जिला बुलन्दशहर में हुआ। हिन्दी साहित्य में इनका नाम उच्च कोटि के प्रतिष्ठित साहित्यकारों में गिना जाता है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री साहित्यकार के साथ-साथ प्रतिष्ठित वैद्य भी थे। संस्कृत साहित्य को उन्होंने बहुत गहन और सघन अध्ययन किया था।

आचार्य चतुरसेन शास्त्री के साहित्य की विषय-वस्तु मुख्य रूप से भारत के मुगलकालीन इतिहास से जुड़ी हुई है। उन्होंने उस युग के अनेक रोचक प्रसंगों, मार्मिक घटनाओं और महत्त्वपूर्ण चरित्रों को अपने साहित्य में स्थान दिया है। उनकी रचनाओं में अद्भुत प्रवाह, मनोहारी वर्णन और भाषा का अनुपम सौन्दर्य दिखाई देता है।

प्रमुख रचनाएँ-
आचार्य चतुरसेन शास्त्री की विभिन्न विषयों पर लगभग डेढ़ सौ रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। उनके प्रमुख उपन्यास हैं-‘वैशाली की नगर वधू’, ‘सोमनाथ’, ‘वयं रक्षामः’ तथा ‘गोली।’ कहानी संग्रहों में ‘नवाब ननकू’, ‘लम्बग्रीव’ ‘रजकण’ व ‘अक्षत’ प्रमुख हैं। इन्होंने बाल-साहित्य भी पर्याप्त मात्रा में रचा है।

पाठ-सार
आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने राजस्थान के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जीवन से अनेक आख्यान चुनकर अपने साहित्य में स्थान दिया है। जैसलमेर की राजकुमारी’ इसी प्रकार की कृति है। इसका सार इस प्रकार है महाराव रत्नसिंह द्वारा किले की रक्षा का दायित्व राजकुमारी को सौंपनाजैसलमेर र्गाधिपति रत्नसिंह शाही सेना से युद्ध करने के लिए प्रस्थान करते समय किले की रक्षा का भार अपनी पुत्री रत्नवती को सौंपते हैं। राजकुमारी प्रसन्नतापूर्वक यह उत्तरदायित्व स्वीकार करती है और अपने पिता को पूर्णतः आश्वस्त करते हुए निश्चिन्त होकर युद्ध के लिए प्रस्थान करने के लिए कहती है।

शत्रु-सेनापति काफूर द्वारा आक्रमण और राजकुमारी का जवाब- अलाउद्दीन के सेनापति ने जैसलमेर के किले को छीनने के लिए कई दिनों से घेरा डाल रखा था। आज मौका पाकर उसने फिर से किले पर आक्रमण किया। राजकुमारी ने बड़ी सूझबूझ और विवेक से काम लेते हुए, शत्रु सेना जब आधी प्राचीर पर चढ़ गयी तब ऊपर से पत्थरों, गर्म तेल और तीरों की वर्षा कर शत्रुओं को भारी क्षति पहुँचाई। सेनापति काफूर यह देखकर हैरान रह गया।

काफूर का षड्यन्त्रपूर्वक किले में प्रवेश करना–सेनापति काफूर जब सीधे मुकाबले में नहीं जीत पाया तो उसने छल और कपट का सहारा लिया। पश्चिमी द्वार के रक्षक वृद्ध राजपूत सैनिक को बहुत सारा सोना घूस में देकर उसने अर्द्धरात्रि को क़िले में प्रवेश किया। परन्तु देशभक्त और वफादार राजपूत सैनिक ने षड्यन्त्र की सारी जानकारी राजकुमारी को देकर काफूर और उसके सौ वफादार सैनिकों को आसानी से किले में कैद करवा दिया।

दुर्ग में खाद्यान्न की कमी होना-दुर्ग चारों ओर से घिरा हुआ था। खाद्य सामग्री कम होती जा रही थी। ऐसी स्थिति में राजकुमारी ने सेनापति काफूर से कहा कि राजपूत एक मुट्ठी अन्न प्रतिदिन लेंगे और आप हमारे अतिथि हैं, आप लोगों को दो मुट्ठी अन्न प्रतिदिन मिलता रहेगा। आगे भगवान मालिक है। मलिक काफूर राजकुमारी के व्यवहार से बहुत प्रभावित हुआ।

महाराव रत्नसिंह को लौटना और शत्रु सेना के तम्बू उखड़ना-प्रभात वेला में महाराव रत्नसिंह विजय प्राप्त करके अपना सूर्यमुखी झण्डा फहराते हुए दूसरी ओर शत्रु सेना अपने डंडे-डेरे उखाड़ कर प्रस्थान कर रही थी।

दुर्ग में विजयोत्सव मनाना- महाराव ने शाही सेना को खदेड़कर मालवा तक जीत लिया था। जीत की खुशी में विजयोत्सव मनाया जा रहा था। महाराष ने शत्रु सेनापति मलिक काफूर को इज्जत सहित अपने बगल में बिठाया था और उससे कहा कि

मेरी अनुपस्थिति में आपको कोई तकलीफ हुई हो तो मैं क्षमा चाहता हूँ। युद्ध के नियम कड़े होते हैं। लड़की अकेली थी, जो बन सका किया। यह सुनकर काफूर ने कहा-‘महाराज, राजकुमारी तो पूजने लायक हैं। वे मनुष्य नहीं फरिश्ता हैं। इस प्रकार महाराव ने अतिथि सत्कार की परम्परा का निर्वाह करते हुए उसे सरपेच और पान का बीड़ा देकर क्दिा किया।

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