RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 8 शिवाजी का सच्चा स्वरूप

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 8 शिवाजी का सच्चा स्वरूप

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 8 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

प्रश्न 1.
शिवाजी की माता का नाम था
(क) जोधा बाई
(ख) जया बाई
(ग) जयन्ता बाई
(घ) जीजा बाई
उत्तर:
(घ) जीजा बाई

प्रश्न 2.
हम्मालों के पीछे जो मेणा (पालकी) थी उसमें क्या था?
(क) सूबेदार अहमद
(ख) सूबेदार अहमद की दासी
(ग) धन-दौलत
(घ) सूबेदार अहमद की पुत्र-वधू
उत्तर:
(घ) सूबेदार अहमद की पुत्र-वधू

प्रश्न 3.
सेनापति आवाजी सोनदेव ने कौनसे प्रान्त को जीता था?
(क) दादर
(ख) नासिक
(ग) पुणे
(घ) कल्याण
उत्तर:
(घ) कल्याण

प्रश्न 4.
शिवाजी का सेनापति कौन था?
(क) महादेव
(ख) रामदेव.
(ग) आवाजी सोनदेव
(घ) आवाजी ज्ञानदेव।
उत्तर:
(ग) आवाजी सोनदेव

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शिवाजी के पेशवा का क्या नाम था?
उत्तर:
शिवाजी के पेशवा का नाम मोरोपन्त पिंगले था।

प्रश्न 2.
शिवाजी के राज्य की राजधानी कौन-सी थी?
उत्तर:
शिवाजी के राज्य की राजधानी राजगढ़ थी।

प्रश्न 3.
शिवाजी ……. “बैठो पेशवा, बड़ा शुभ संवाद लाये।” कौनसा शुभ संवाद था और कौन लेकर आये?
उत्तर:
‘सेनापति आवाजी सोनदेव कल्याण प्रान्त को जीतकर, वहाँ का सारा खजाना लूटकर आ गये हैं।” यह शुभ संवाद मोरोपंत पिंगले लेकर आये थे।

प्रश्न 4.
कल्याण के खजाने से क्या-क्या माल लूटकर सेनापति लाये?
उत्तर:
सेनापति आवाजी सोनदेव कल्याण के खजाने से चाँदी, सोना, जवाहरात आदि के साथ सूबेदार अहमद की पुत्रवधू को भी..लूटकर ले आये थे।,

प्रश्न 5.
शिवाजी के पर-स्त्री के प्रति क्या विचार थे?
उत्तर:
शिवाजी के विचार थे कि पर-स्त्री हरेक के लिए माता के समान होती

प्रश्न 6.
कल्याण-विजय अभियान में वीरता दिखाने वाले कौन-कौन थे?
उत्तर:
कल्याण-विजय अभियान में पैदल सेना के अधिपति तथा घुड़सवारों के अधिपति वीरता दिखाने वाले थे।

प्रश्न 7.
कल्याण-विजय के संवाद के बाद एकाएक शिवाजी की प्रसन्नता क्यों लुप्त हो गई?
उत्तर:
कल्याण-विजय के संवाद के बाद सूबेदार अहमद की पुत्र-वधू को आपकी सेवा में लाने की बात सुनकर के एकाएक शिवाजी की प्रसन्नता लुप्त हो गयी।

प्रश्न 8.
शिवाजी ने अहमद की पुत्रवधू से प्रथम वाक्य क्या कहा था?
उत्तर:
“माँ, शिवा अपने सिपहसालार की इस नामाकूल हरकत पर आपसे मुआफी चाहता है।”

प्रश्न 9.
शिवाजी महाराष्ट्र में कैसे राज्य की स्थापना करना चाहते थे?
उत्तर:
शिवाजी महाराष्ट्र में सच्चे स्वराज्य की स्थापना करना चाहते थे।

प्रश्न 10.
सेनापति आवाजी सोनदेव के कृत्य पर सेनापति से शिवाजी ने क्या कहा?
उत्तर:
शिवाजी ने सेनापति आवाजी सोनदेव से कहा कि क्या तुम मेरी परीक्षा लेना चाहते थे? मुझे इस पाप का न जाने कैसा प्रायश्चित करना पड़ेगा?

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आवाजी सोनदेव शिवाजी को सबसे बड़ा तोहफा क्या देना चाहते थे और क्यों?
उत्तर:
सेनापति आवाजी सोनदेव शिवाजी को सबसे बड़ा तोहफा कल्याण के सूबेदार की पुत्र-वधू को देना चाहते थे। क्योंकि वह अप्रतिम सौन्दर्य वाली थी। सोनदेव का मानना था कि उसे देखकर शिवाजी अपना लेंगे, उसे अपनी रानी के रूप में अवश्य स्वीकार कर लेंगे। ऐसी सौन्दर्यमयी स्त्री को कौन नहीं चाहता है। शिवाजी इसे सबसे बड़ा तोहफा मान लेंगे।

प्रश्न 2.
कल्याण-विजय अभियान में शिवाजी की सेना के अधिपति कैसे थे?
उत्तर:
कल्याण-विजय के अभियान में शिवाजी की सेना में जो अधिपति गये थे, उनमें पैदल सेना के अधिपति – नायक, हवलदार, जुमलादार और एकहजारी सरदार थे। घुड़सवारों की सेना के अधिपति–हवलदार, जुमलादार और सूबेदार थे। इन सभी ने उस विजय-अभियान में पूरे उत्साह एवं शौर्य से प्रशंसनीय कार्य किया था। अर्थात् उस विजय-अभियान में सभी का पूरा सहयोग मिला, जिससे सेनापति को विजय मिली तथा अभियान सफल रहा।

प्रश्न 3.
शिवाजी के पश्चात्तापपूर्ण उद्गार सुनने के बाद अहमद की पुत्रवधू की क्या प्रतिक्रिया रही?
उत्तर:
अहमद की पुत्र-वधू ने जब शिवाजी के पश्चात्तापपूर्ण उद्गार सुने और उन्हें सिर नीचे किये हुए देखा, तो उसने भी सद्भावना के रूप में प्रतिक्रिया व्यक्त की। उस समय वह कनखियों से शिवाजी की ओर देखती रही। तब उसकी आँखों में आँसू छलछला आये। अर्थात् शिवाजी की उदारता एवं नारी-सम्मान की भावना से अहमद की पुत्र-वधू को हार्दिक वेदना हुई।

प्रश्न 4.
‘‘पर-स्त्री तो हरेक के लिए माता समान है।” ये शब्द, किसने, किससे और क्यों कहे? इस कथन के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
शिवाजी ने ये शब्द अपने सेनापति आवाजी सोनदेव को लक्ष्य कर कहे। क्योंकि वह कल्याण-विजय अभियान में सोना, चाँदी, जवाहरात आदि के साथ वहाँ के सूबेदार अहमद की पुत्र-वधू को भी उठाकर ले आया था। उसने अहमद की पुत्रवधू को तोहफे के रूप में शिवाजी के सामने पेश किया था। प्राचीन भारतीय संस्कृति का यह आदर्श वाक्य रहा है कि ‘पर-स्त्री माता के समान देखनी चाहिए।’ अर्थात् पर-स्त्री को माता के समान सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए, उसको बुरी नजर से नहीं देखना चाहिए तथा इन्द्रिय-लोलुपता का आचरण कदापि नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 5.
शिवाजी एकांकी के अन्त में प्रायश्चित-स्वरूप क्या घोषणा करते हैं? लिखिए।
उत्तर:
शिवाजी ने एकांकी के अन्त में प्रायश्चित-स्वरूप घोषणा की कि यदि भविष्य में कोई ऐसा कार्य करेगा, तो उसका सिर उसी समय धड़ से जुदा कर दिया जायेगा । अर्थात् ऐसी गलती करने वाले व्यक्ति को मृत्युदण्ड दिया जायेगा और उसे किसी भी हालत में क्षमा नहीं किया जायेगा।

प्रश्न 6.
शिवाजी ने स्वयं के चरित्र को लेकर चरित्र-सम्बन्धी कौन-से विचार व्यक्त किये?
उत्तर:
शिवाजी ने स्वयं के चरित्र को लेकर चरित्र सम्बन्धी विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पराई स्त्री तो प्रत्येक के लिए माता के समान होती है। जो अधिकारी, सरदार यो राजा हो, उन्हें तो इस सम्बन्ध में सबसे अधिक विवेकशील होना चाहिए। हममें शील होना चाहिए और हमें दूसरे के धर्म को सम्मान करना चाहिए। जाति और धर्मगत भेदभावों से दूर रहना चाहिए। हमें सभी की धार्मिक पुस्तकों तथा धर्मस्थलों का सम्मान करना चाहिए। इन विचारों से पूरित होकर ही हम चरित्रवान् बनकर दूसरों को प्रेरणा दे सकते हैं।

प्रश्न 7.
‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी का नैतिक दृष्टि से क्या मूल्य है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी का नैतिक दृष्टि से विशिष्ट मूल्य है। अपनी नैतिकता के कारण ही शिवाजी हमारे सामने आज भी आदर्श राष्ट्र-नायक के रूप में माने जाते हैं और हम सभी उनका सम्मानपूर्वक स्मरण करते हैं। यह उनकी नैतिकता ही थी कि अपूर्व सुन्दरी अहमद की पुत्रवधू को उन्होंने माँ कहकर सम्बोधित किया, क्योंकि पर-स्त्री भारतीय आदर्श में माता के समानं मानी गयी है। इससे यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी शिवाजी की तरह नैतिक आचरण करते हुए भारतीय आदर्शों की रक्षा करनी चाहिए।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी में निहित एकांकीकार के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सेठ गोविन्ददास द्वारा रचित ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी ऐतिहासिक कथानक पर आधारित है। शिवाजी का सेनापति कल्याण-विजय अभियान से बड़ी मात्रा में सोना, चाँदी, जवाहरात आदि सम्पदा के साथ वहाँ के सूबेदार अहमद की पुत्र-वधू को भी उठा लाता है। वह उसे अनुपम सुन्दरी मानते हुए शिवाजी को तोहफा रूप में देना चाहता है। उसी घटना को लेकर प्रस्तुत एकांकी में ऐसे सुदृढ़ एवं उत्कृष्ट चरित्र की झाँकी प्रस्तुत की गयी है जिसमें हमें परायी स्त्री को माता के समान पूज्य मानने की शिक्षा मिलती है।

पर-धर्म को जहाँ आदर देने का उपदेश मिलता है, वहीं धार्मिक ग्रन्थों को श्रेष्ठ मानने की भावना प्राप्त होती है। इसके साथ ही स्वाभिमान से जीने, आततायियों के विरुद्ध संघर्ष करने और इन्द्रियलोलुपता को घृणा की दृष्टि से देखने का दृष्टिकोण प्राप्त होता है। इसके साथ ही धार्मिक भेदभाव से दूर रहने, राष्ट्र को सर्वोपरि मानने का भाव भी दृष्टिगत होता है। इस एकांकी का उद्देश्य शिवाजी के चरित्र की उदात्तता पर प्रकाश डालकर नारियों के प्रति सम्मानजनक पवित्र भावना अपनाने का सन्देश देना है तथा शिवाजी के व्यक्तित्व को आदर्श राष्ट्र नायक रूप में चित्रित करना है।

प्रश्न 2.
“हिन्दू होते हुए भी शिवा के लिए इस्लाम-धर्म पूज्य है।” उक्ति के आधार पर शिवाजी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी में ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर शिवाजी के चरित्र का उत्कर्ष दिखाया गया है। तदनुसार उनके चरित्र का चित्रण इस प्रकार किया जा सकता है|

  1. सर्वधर्म सम्मान – शिवाजी यद्यपि कट्टर हिन्दू थे, परन्तु वे अपनी प्रजा को समान-भाव से देखते थे। इसी कारण वे सभी धर्मों को आदर देते थे, सभी धर्म-स्थलों को पवित्र मानते थे और सभी के धर्म-ग्रन्थों में श्रद्धा रखते थे। इस तरह शिवाजी सर्वधर्म सम्मान के आदर्श गुण से पूरित थे।
  2. उदात्त आदर्श शासक – शिवाजी भारतीय संस्कृति के उदात्त आदर्शों वाले शासक थे। वे पर-स्त्री को माता के समान मानते थे। इसी आदर्श के निर्वाह की खातिर उन्होंने अहमद की पुत्र-वधू को सम्मान सहित वापिस भेज दिया था।
  3. प्रेरणादायी चरित्र – शिवाजी जागरूक, प्रजा-प्रेमी, सद्व्यवहारी तथा । विवेकशील चरित्र के थे। वे धर्म एवं जाति के आधार पर प्रजा में भेदभाव नहीं रखते थे, अनावश्यक रक्त-पात से घृणा रखते थे। अपनी बात स्पष्टता से कहकर प्रखर ओजस्वी एवं उदात्त आचरण वाले इतिहास-पुरुष थे।

प्रश्न 3.
‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
पाठ-सार प्रारम्भ में दिया गया है, उसे देखकर लिखिए।

प्रश्न 4.
“हमारे जीवन से हमारी मृत्यु, विजय से हमारी पराजय कहीं श्रेयस्कर है।” शिवाजी के इस कथन से क्या शिक्षा मिलती है? लिखिए।
उत्तर:
‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी में शिवाजी के उदात्त चरित्र तथा आदर्श आचरण का चित्रण हुआ है। उस समय अधिकतर मुगल शासक सारे भारत में धर्म-परिवर्तन पर जोर दे रहे थे, जबर्दस्ती हिन्दुओं की बेटियों को अपने महलों में ला रहे थे और आततायियों की तरह हिन्दू-प्रजा को सता रहे थे। उनका आचरण इन्द्रिय-लोलुप लुटेरों जैसा था। शिवाजी इस तरह के आचरण के विरोधी थे। इसी कारण उन्होंने अपने सेनापति आवाजी सोनदेव द्वारा अहमद की पुत्र-वधू को उठा लाने का विरोध किया।

अतएव शिवाजी के द्वारा उसी अवसर पर कहे गये उक्त कथन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें शिवाजी की तरह नैतिक और चरित्रवान् बनकर दूसरों के समक्ष श्रेष्ठ मानवीय गुणों को प्रस्तुत करना चाहिए। इन्द्रियासक्ति रखने, पर-स्त्रियों का अपहरण करने या उनके चरित्र को कलंकित करने, जनता को लूटने या डाकुओं की तरह लूटपाट कर जीवित रहने से तो मृत्यु अच्छी है। आततायियों के समान क्रूरता एवं आतंक फैलाकर विजयी होने से तो पराजय अच्छी है। इस तरह शिवाजी के उक्त कथन से मानवीय आदर्शो की, भारतीय संस्कृति के मूल्यों एवं संस्कारों को अपनाने की शिक्षा मिलती है।

प्रश्न 5.
शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी की वर्तमान में प्रासंगिकता तर्क के आधार पर प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर:
‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी ऐतिहासिक कथानक पर आधारित है। लेकिन इस एकांकी की वर्तमान में अपनी महत्त्वपूर्ण प्रासंगिकता है। यथा|

  1. आज के वातावरण में नारी के प्रति अन्याय, अत्याचार, शोषण एवं क्रूरता का जो आचरण हो रहा है, नारियों के अपहरण एवं बलात्कार जैसे घृणित कार्य हो रहे हैं, इन्हें कठोर कानूनों से नहीं रोका जा सकता। इसके लिए मानसिक परिवर्तन अति आवश्यक है। यदि हम पर-स्त्री को माँ के समान देखना प्रारम्भ करें, तो आज के समाज में व्याप्त नारी-शोषण, असमानता तथा दुराचार की समस्या अपने आप दूर हो सकती है।
  2. मानवीय मूल्यों एवं नैतिक आदर्शों की दृष्टि से यह एकांकी वर्तमान में विशेष प्रेरणादायक है।
  3. वर्तमान में कुछ लोग धार्मिक कट्टरता एवं संकीर्ण विचारधारा से ग्रस्त हैं। इस कारण देश में कहीं-कहीं साम्प्रदायिक उन्माद दिखाई देता है। साम्प्रदायिक दंगे, धार्मिक विद्वेष, आतंकवाद एवं भेदभाव बढ़ रहे हैं। ये सब तभी दूर हो सकते हैं, जब हम शिवाजी की तरह दूसरे धर्म, उनके धर्म-स्थलों और धार्मिक ग्रन्थों को पूरा सम्मान दें। सर्वधर्म सद्भाव रखकर धार्मिक संकीर्णता से अपने आपको मुक्त। रख सकें। इस दृष्टि से भी प्रस्तुत एकांकी की वर्तमान में प्रासंगिकता सिद्ध हो जाती है।

व्याख्यात्मक प्रश्न –

1. दालान के पीछे …………… मग्न है।
2. माँ, शिवा अपने ……….. बिना देरी से फौरन।
3. जो अधिकार-प्राप्त जन ………… अन्तर ही नहीं रह जाता।
उत्तर:
इन अंशों की व्याख्या आगे दी जा रही है, वहाँ देखिए।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 8 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी है –
(क) सामाजिक
(ख) ऐतिहासिक
(ग) प्रतीकात्मक
(घ) पौराणिक।
उत्तर:
(ख) ऐतिहासिक

प्रश्न 2.
आवाजी सोनदेव किस विजय-अभियान से लौटे थे?
(क) रायगढ़ विजय-अभियान
(ख) सोनगढ़ विजय-अभियान
(ग) कल्याण विजय-अभियान
(घ) मालवा विजय-अभियान
उत्तर:
(ग) कल्याण विजय-अभियान

प्रश्न 3.
शिवाजी की किस मुद्रा को देखकर आवाजी सोनदेव घबरा गया?
(क) क्रोध-मुद्रा को
(ख) हास्य-मुद्रा को
(ग) प्रसन्न-मुद्रा को
(घ) परिवर्तित मुद्रा को
उत्तर:
(घ) परिवर्तित मुद्रा को

प्रश्न 4.
‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी प्रस्तुत करता है –
(क) शिवाजी की महानता को
(ख) शिवाजी के उदात्त चरित्र को
(ग) शिवाजी की वीरता को
(घ) शिवाजी के मातृभूमि प्रेम को
उत्तर:
(ख) शिवाजी के उदात्त चरित्र को

प्रश्न 5.
अहमद की पुत्रवधू को उठा लाने से आवाजी ने कैसा काम किया था?
(क) प्रशंसनीय
(ख) असहनीय
(ग) घृणित
(घ) सम्माननीय।
(घ) सम्माननीय।
उत्तर:
(ग) घृणित

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आवाजी सोनदेव के उपस्थित होते ही शिवाजी ने उनसे क्या पूछा?
उत्तर:
आवाजी सोनदेव के उपस्थित होते ही शिवाजी ने मुस्कराते हुए उनसे पूछा था कि ”कहो पैदल मवालियों ने अधिक वीरता दिखाई या हेटकरियों ने।”

प्रश्न 2.
हम्माल की ओर देखकर मुस्कराते हुए शिवाजी ने क्या कहा?
उत्तर:
हम्माल की ओर देखकर शिवाजी ने मुस्कराते हुए कहा कि “कल्याण का खजाना भी लूट लाये, बहुत माल मिला।”

प्रश्न 3.
लूटकर लाये गये कल्याण के खजाने के सम्बन्ध में आवाजी सोनदेव ने शिवाजी के सामने क्या विचार व्यक्त किया था?
उत्तर:
आवाजी सोनदेव ने कल्याण से लूटकर लाये गये उस खजाने के सम्बन्ध में शिवाजी से कहा था कि केवल दक्षिण की ही नहीं, उत्तर की भी विजय इस सम्पदा से हो सकेगी।

प्रश्न 4.
शिवाजी की सेवा के लिए आवाजी सोनदेव किसे बन्दी करके लाये थे?
उत्तर:
शिवाजी की सेवा के लिए आवाजी सोनदेव कल्याण के सूबेदार अहमद की पुत्रवधू को कैद करके लाये थे।

प्रश्न 5.
कल्याण अभियान में शिवाजी के कौन-से सैनिक गये थे?
उत्तर:
कल्याण अभियान में शिवाजी के मावली और हेटकरी-ये दो जातियों के पैदल सैनिक तथा बारगिर व शिलेदार-ये घुड़सवार सैनिक गये थे।

प्रश्न 6.
शिवाजी की सारी प्रसन्नता एकाएक कंब लुप्त हो गई? ।
उत्तर:
जब आवाजी सोनदेव ने कहा कि सूबेदार अहमद की पुत्रवधू को तोहफे के रूप में बन्दी बनाकर लाया हूँ, तो इस बात को सुनकर शिवाजी की सारी प्रसन्नता सहसा लुप्त हो गई।

प्रश्न 7.
शिवाजी ने आवाजी का कौन-सा कार्य अक्षम्य एवं घृणित बताया?
उत्तर:
कल्याण के सूबेदार अहमद की पुत्रवधू को बन्दी बनाकर लाने का आवाजी का कार्य शिवाजी ने अक्षम्य और घृणित बताया।

प्रश्न 8.
आवाजी के कृत्य को लेकर शिवाजी ने मोरोपन्त से क्या कहा?
उत्तर:
शिवाजी ने मोरोपन्त से कहा कि पेशवा, मेरे एक सेनापति ने यह क्या कर डाला? लज्जा से मेरा सिर आज पाताल में घुसा जाता है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पेशवा मोरोपन्त पिंगले का व्यक्तित्व कैसा था? लिखिए।
उत्तर:
मोरोपन्त पिंगले शिवाजी के पेशवा थे। वे ऊँची कद-काठी के और अधेड़ अवस्था के थे। वे गेहुँए रंग के थे। उनकी वेश-भूषा शिवाजी से मिलतीजुलती थी, केवल उनकी पगड़ी में अन्तर था। उनकी पगड़ी शिवाजी की पगड़ी के समान मुगल ढंग की न होकर मराठी तर्ज की थी। मोरोपन्त ने मस्तक पर त्रिपुण्ड लगा रखा था, इससे उनका ललाट काफी भव्य लग रहा था। उनके चेहरे पर उदारता, प्रसन्नता के साथ गम्भीरता भी झलक रही थी। इस प्रकार मोरोपन्त पिंगले का व्यक्तित्व मराठा पेशवा की गरिमा के अनुरूप था।

प्रश्न 2.
शिवाजी ने अहमद की पुत्रवधू के सौन्दर्य के प्रति जो विचार व्यक्त किये, उन्हें बताइए।
उत्तर:
सेनापति के मुख से सूबेदार अहमद की पुत्र-वधू को बन्दी बनाकर लाने की बात सुनते ही शिवाजी कुछ आवेश में आ गये। तब वे तुरन्त पालकी के पास गये और उससे अहमद की पुत्रवधू के सौन्दर्य को देखकर कहा कि “माँ, शिवा अपने सिपहसालार की इस नामाकूल हरकत पर आपसे मुआफी चाहता है। आह! कैसी अजीबो-गरीब खूबसूरती है आपकी । आपको देखकर मेरे दिल में एक: सिर्फ एक बात उठ रही है-कहीं मेरी माँ में आपकी खूबसूरती होती, तो मैं भी बदसूरत न होकर एक खूबसूरत होता। आपकी खूबसूरती को मैं एक काम में ला सकता हूँ इसका हिन्दू-विधि से पूजन करूं, इस्लामी तरीके से इबादत करूं।”

प्रश्न 3.
अहमद की पुत्रवधू को आवाजी द्वारा बन्दी रूप मैं लामा क्या उचित कर्म था? यदि नहीं, तो अपने मत की पुष्टि में सतर्क उत्तर दीजिए।
उत्तर:
अहमद की पुत्रवधू को आवाजी सोनदेव द्वारा बन्दी बनाकर लाना किसी भी दृष्टि से प्रशंसनीय कर्म नहीं था, क्योंकि नारी जहाँ पूजनीय होती है वहीं भारतीय आदर्श में परायी नारी को माता के समान माना गया है। इस दृष्टि से उसका अपहरण करना नारी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना ही नहीं, बल्कि उसका अपमान करना है। कोई भी समाज या व्यक्ति नारी का अपमान करके सुखी नहीं रह सकता है। अतः आवाजी सोनदेव ने अहमद की पुत्रवधू को अपने साथ लाकर उचित कार्य नहीं किया था। उसके इस कृत्य से वीर शिवाजी को लज्जित होना पड़ा था।

प्रश्न 4.
“अरे, तब तो हमारे जीवन से हमारी मृत्यु, हमारी विजय से हमारी पराजय, कहीं श्रेयस्कर है।” इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सेनापति आवाजी सोनदेव जब कल्याण-विजय से लूटा गया खजाना और सूबेदार अहमद की पुत्रवधू को लाया, तो तब पर-स्त्री हरण को लेकर शिवाजी को काफी दुःख हुआ। उन्होंने आवाजी के इस कार्य को इन्द्रिय-लोलुप लुटेरों एवं डाकुओं के समान घृणित बताया। शिवाजी के कथन का आशय है कि चारित्रिक पतन से एवं मानवीय आदर्शों से रहित होकर यदि विजय मिले, तो वह विजय श्रेयस्कर नहीं है। पर-स्त्री को माता के समान समझकर उसका आदर एवं रक्षा करनी चाहिए। परन्तु उनके साथ दुराचरण करने से तो मृत्यु और पराजय श्रेष्ठ ।

प्रश्न 5.
शिवाजी को अपने सेनापति पर क्रोध क्यों आया? बताइये।
उत्तर:
शिवाजी से जब उनके सेनापति ने कहा कि वह सूबेदार अहमद की पुत्रवधू को आपकी सेवा के लिए लाया हूँ, तो इससे शिवाजी को क्रोध आ गया। शिवाजी नारियों को सम्मान करते थे और परायी स्त्री को माता के समान मानते थे। इस कारण वे पर-स्त्री का अपमान करना एकदम अनुचित कार्य मानते थे, उनके सेनापति ने ऐसा अनुचित कार्य किया था, इसी से शिवाजी को उस पर क्रोध हो आया।

प्रश्न 6.
सूबेदार अहमद की पुत्रवधू को देखकर शिवाजी ने उसे सान्त्वना देते हुए क्या कहा?
उत्तर:
सूबेदार अहमद की पुत्रवधू को देखकर शिवाजी ने उसे ‘माँ’ कहकर सम्मान दिया, उसके प्रति उच्च शिष्टाचार दर्शाया। उसे डरी-सहमी देखकर शिवाजी ने सान्त्वना देते हुए कहा कि “आप जरा भी परेशान न हों। माँ, आपको आराम, इज्जत, हिफाजत और खबरदारी के साथ आपके शौहर के पास पहुँचा दिया जाएगा, बिना देरी के फौरन।” इस तरह शिवाजी ने उसे काफी सम्मान दिया और विश्वास करने लायक शब्दों में उसे सान्त्वना देने का उचित प्रयास किया।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शिवाजी ने आवाजी सोनदेव के घृणित कार्य को देखकर क्या विचार व्यक्त किये? बताइए।
उत्तर:
शिवाजी ने सोनदेव द्वारा कल्याण के सूबेदार अहमद की पुत्रवधू को बन्दी बनाकर लाया जाना अत्यन्त घृणित एवं लज्जाजनक कार्य बताया। इस सम्बन्ध में विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि आज तक मैंने किसी मस्जिद की दीवार में बाल बराबर दरार भी नहीं आने दी और साम्प्रदायिक उन्माद का जरा भी बुरा आचरण नहीं किया। यदि कहीं पर मुझे पवित्र कुरान की पुस्तक मिली तो उसे सिर पर चढ़ा, उसके एक पन्ने को भी किसी प्रकार की क्षति पहुँचाये बिना मौलवी साहब की सेवा में भेज दिया। हिन्दू होते हुए भी मेरे लिए इस्लाम-धर्म पूज्य है।

इसी आस्था से मेरे लिए इस्लाम के पवित्र स्थान, उनके पवित्र ग्रन्थ अतीव सम्मान की वस्तुएँ हैं। मैं अपनी हिन्दू और मुसलमान प्रजा में कोई भेद नहीं समझता हूँ। एक राजा होने के नाते भी मेरे लिए दोनों समान हैं। मेरी सेना में मुस्लिम सैनिक भी हैं। शिवाजी ने इसी क्रम में कहा कि वे देश में सच्चे स्वराज्य की स्थापना चाहते हैं। वे आततायियों से सत्ता को छीनकर उदारचेता लोगों के हाथों में देना चाहते हैं । धर्म के आधार पर प्रजा में भेद-भाव एवं अन्याय-अत्याचार करना अविवेक है। जो लोग विवेक-सम्पन्न हैं, मानवीय भावना रखते हैं, उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी के नामकरण का औचित्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक एकांकी का नामकरण या शीर्षक उसमें वर्णित कथानक, संवेदना एवं मूल भाव का सूचक होता है। रचना का नामकरण जितना संक्षिप्त, रोचक, आकर्षक, कौतूहलपूर्ण, प्रतीकात्मक एवं भाव-व्यंजक होता है, वह उतना ही सार्थक और औचित्यपूर्ण माना जाता है। शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी का नामकरण संक्षिप्त एवं भाव-व्यंजक है। प्रायः कुछ साम्प्रदायिक भावना रखने वाले इतिहासकार शिवाजी के आचरण को कट्टर हिन्दूवादी बताते हैं तथा इस्लाम के प्रति उन्हें विद्वेष रखने वाला घोषित करते हैं। परन्तु वास्तविकता यह है कि शिवाजी उन्हीं मुगलों के विरोधी थे, जो स्वयं को आक्रान्ता मानते थे और इस्लाम धर्म के नाम पर कट्टरता एवं नृशंस आचरण करते थे।

शिवाजी ऐसे लोगों को आततायी तथा शोषक मानते थे और उन्हें दण्डित करना अपना कर्तव्य समझते थे। वे भारतीय संस्कृति के पोषक, नारी-सम्मान के रक्षक तथा सच्चे प्रजापालक थे। प्रस्तुत एकांकी में यही कथानक रखा गया है कि शिवाजी कल्याण के सूबेदार अहमद की पुत्रवधू को पूरी गरिमा एवं इज्जत के साथ वापिस भेजते हैं। इस तरह इसमें शिवाजी का सर्वधर्म सद्भाव रखने वाला तथा प्रजापालक सच्चा स्वरूप उभारा गया है । इस आदर्श भाव की व्यंजना होने से यह नामकरण पूर्णतः सार्थक और उचित है।

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –

प्रश्न 1.
सेठ गोविन्ददास का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल में नाटक एवं एकांकी-रचना के क्षेत्र में सेठ गोविन्ददास का अवदान विशिष्ट माना जाता है। प्रसाद के बाद ऐतिहासिक नाटक लिखने वालों में ये अग्रणी रहे हैं। इन्होंने लगभग सौ नाटक लिखे हैं, संख्या की दृष्टि से इनके नाटक सबसे अधिक हैं। एकांकी रचना के क्षेत्र में आरम्भ में इन्होंने सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर कलम चलायी, परन्तु बाद में इन्होंने ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक, सांस्कृतिक आदि सभी विषयों को अपनाया। सेठ गोविन्ददास गाँधीवाद एवं मानवतावाद से पूर्णतया प्रभावित रहे। इनमें बुद्धिवाद का प्राध्यान्य तथा आदर्शवादी दृष्टिकोण दिखाई देता है। इनका महत्त्व सांस्कृतिक सद्भावना की दृष्टि से है।

इन्होंने प्रायः एक ही दृश्य के एकांकी लिखे हैं, परन्तु उनमें निर्देशन अंश को अधिक विस्तार से दिया है। फिर भी उपक्रम और उपसंहार के नवीन प्रयोग इनकी विशेषता मानी जाती है। सेठ गोविन्ददास द्वारा रचित नाटकों के कई संग्रह प्रकाशित हैं। इनके एकांकी| संग्रह हैं- ‘सप्तरश्मि’, ‘एकादशी’, ‘नवरस’, ‘स्पर्धा’, ‘चतुष्पथ’, ‘पंचभूत’ आदि। ‘स्नेह या स्वर्ग’ नामक एक अतुकान्त पद्यात्मक लघु-नाटक भी है। इन्होंने आत्मकथा भी तीन भागों में लिखी है।

शिवाजी का सच्चा स्वरूप लेखक परिचय-

आधुनिक युग में नाटककारों एवं एकांकीकारों में सेठ गोविन्ददास का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म जबलपुर के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में सन् 1896 ई. में हुआ था। ये स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय रूप से जुड़े रहे और गाँधीवाद से पूर्ण प्रभावित रहे। इन्होंने पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि सभी विषयों पर नाटक एवं एकांकी रचे। इन्होंने अपनी रचनाओं में समाज की तत्कालीन समस्याओं का अंकन किया। इन्होंने एकांकी शिल्प को नया रूप दिया है तथा सौ से अधिकं नाटकों की रचना की है। रचनाएँ-सेठ गोविन्द दास ने ‘ऊषा’, ‘हर्ष’, ‘कुलीनता’, ‘शेरशाह’ आदि विविध विषयों पर नाटक लिखे। इनके ‘सप्त रश्मि’, ‘एकादशी’, ‘नवरस’, ‘स्पर्धा’ आदि एकांकी-संग्रह प्रकाशित हैं। इन्होंने ‘आत्म-निरीक्षण’ (तीन भाग) अपनी आत्मकथा भी लिखी है।

पाठ-सार
‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी का कथानक ऐतिहासिक घटना पर आधारित है। इस एकांकी का सार इस प्रकार है शिवाजी से आवाजी सोनदेव का संवाद-सन्ध्या के समय राजगढ़ दुर्ग में शिवाजी के समीप आवाजी सोनदेव आये। उन्होंने कल्याण-विजय का समाचार देते हुए बताया कि वहाँ पर जो सोना, चाँदी, जवाहरात आदि मिला, वह सेवा में प्रस्तुत है। ऐसा कहकर उन्होंने सारा खजाना सौंप दिया।

आवाजी सोनदेव द्वारा बड़ा तोहफा देना-शिवाजी के समक्ष कल्याण के सूबेदार अहमद की पुत्र-वधू के सौन्दर्य की चर्चा कर उसे बन्दी रूप में लाने की बात कहते हुए आवाजी सोनदेव ने सबसे बड़ा तोहफा बताया। शिवाजी द्वारा क्षमा-याचना-सोनदेव के द्वारा लायी गई पालकी के पास जाकर शिवाजी ने अहमद की पुत्र-वधू के परम सौन्दर्य को देखा। फिर उससे क्षमा-याचना करते हुए कहा कि मैं अपने सिपहसालार की इस नामाकूल हरकत को देखकर शर्मिन्दा हूँ। आपको देखकर मेरे दिल में एक बात उभर रही है। कि कहीं मेरी माँ भी इतनी खूबसूरत होतीं। आप माँ जैसी हो, आपको इज्जत और हिफाजत के साथ आपके शौहर के पास पहुँचा दिया जायेगा, आप जरा भी परेशान न हों। आवाजी को फटकारना-शिवाजी ने आवाजी की ओर घूमकर फटकारते हुए कहा कि तुमने ऐसा काम किया है जो कदाचित् क्षमा नहीं किया जा सकता। मैंने आज तक हिन्दू और मुसलमान प्रजा में कोई भेद नहीं किया। फिर परस्त्री तो मेरे लिए माता-समान है। मैं आज्ञा देता हूँ कि भविष्य में अगर कोई ऐसा काम करेगा, तो उसे मृत्युदण्ड दिया जायेगा।

सभी का अवाक् रहना-शिवाजी की बात सुनकर आवाजी और मोरोपन्त अवाक् रह गये। अहमदं की पुत्र-वधू की आँखों से आँसू निकल पड़े।

कठिन शब्दार्थ-
फसील = दीवार, परकोटा। बुर्जियाँ = मीनारें। सह्याद्रि = इस नाम का पर्वत। आलोकित = प्रकाशित। स्तम्भ = खम्भा। जाजम = मोटी सुन्दर चादर। निरर्थक = व्यर्थ। मावली = पहाड़ी जाति के सैनिक। त्रिपुण्ड = चन्दन की तीन लकीरों को आड़ा टीका-छापा। निस्तब्धता = शान्ति, चुप्पी। नामाकूल = नासमझ। हम्माल = सामान ढोने वाले सेवक या मजदूर। अधिपति = स्वामी, प्रमुख सरदार। मेणा = छोटी पालकी। भृकुटि = भौंहें। आततायियों = अत्याचारियों। कृतियाँ = कार्य। घृणित = निन्दायुक्त। कनखियों से = तिरछी नजर से। इबादत = प्रार्थना, वन्दना। उदारचेता = उदार हृदय। लोलुप = लालची।

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