RBSE Class 11 Hindi संवाद सेतु Chapter 4 प्रयोजनमूलक लेखन

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi संवाद सेतु Chapter 4 प्रयोजनमूलक लेखन

प्रयोजनमूलक लेखन पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
पत्र-लेखन क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
मनुष्य की भावनाओं एवं विचारों की स्वाभाविक अभिव्यक्ति पत्राचार से होती है। अपने परिचितों, मित्रों तथा दूरस्थ सम्बन्धियों को अपने विचारों, भावों एवं समाचारों की सूचना देने के लिए पत्र-लेखन की पुरानी परम्परा है। पत्राचार से आत्मीय सम्बन्ध स्थापित एवं पुष्ट होते हैं। इस कारण पत्र-लेखन आवश्यक होता है।

सरकारी कार्यालयों, प्रतिष्ठानों एवं संगठनों को अपनी किसी समस्या के समाधान, आवश्यकता की पूर्ति अथवा सामाजिक सरोकार के लिए अनेक तरह के पत्र लिखे जाते हैं। ऐसे पत्र-लेखन से वांछित कार्यों की सम्पूर्ति होती है और विशिष्ट प्रयोजन की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए भी पत्र-लेखन आवश्यक है।

प्रश्न 2.
एक अच्छे पत्र की क्या विशेषताएँ होती हैं?
उत्तर:
एक अच्छे पत्र की निम्नांकित पांच विशेषताएँ होती हैं

  1. सरल भाषा-शैली-पत्र-लेखन सरल और बोलचाल की भाषा में लिखा जाना चाहिए। सटीक, सरल, स्पष्ट और उपयुक्त भाषा शैली में लिखा गया पत्र प्रभावपूर्ण बन जाता है।
  2. विचारों की स्पष्टता-पत्र-लेखन में लेखक के विचार स्पष्ट और सीधेसादे ढंग से व्यक्त होने चाहिए।
  3. संक्षिप्तता और सम्पूर्णता-पत्र लम्बा ‘न होकर संक्षिप्त होना चाहिए, उसमें विचाराभिव्यक्ति में सम्पूर्णता होनी चाहिए।
  4. प्रभावान्विति-पत्र का पूरा प्रभाव पढ़ने वाले पर पड़ना चाहिए। पत्र का आरम्भ एवं समापन नम्रता एवं सौहार्द को व्यक्त करने वाला होना चाहिए।
  5. बाहरी सजावट-पत्र का कागज अच्छा हो, लिखावट स्पष्ट एवं सुन्दर हो, इसमें शीर्षक, तिथि, अभिवादन एवं विषयवस्तु का सही ढंग से उपस्थापन होना चाहिए।

प्रश्न 3.
पत्र-लेखन के विशिष्ट तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विद्वानों ने पत्र-लेखन विधा पर गम्भीर मीमांसा करके इसके कुछ विशिष्ट तत्त्वों का निर्धारण किया है, जो कि इस प्रकार हैं

  1. पत्र-व्यवहार में जीवन की किसी घटना या घटनांश का वर्णन होता है।
  2. पत्र-साहित्य में पत्र-लेखक के लिखने की एक निश्चित सीमा होती है।
  3. पत्र-लेखन में चरितनायक का चित्रित स्वरूप वास्तविक मनुष्य का स्पेन शॉट’ प्रस्तुत करता है।
  4. पत्र-लेखक अपने पत्रों में सम-सामयिक राजनीतिक या साहित्यिक परिवेश का भी चित्रण कर देता है।
  5. पत्र-लेखक वैयक्तिक निरपेक्षता को महत्त्व देता है।
  6. पत्र-लेखक पत्र-प्रापक की ग्रहण-क्षमता, मानसिक स्तर व सामाजिक परिवेश का भी ध्यान रखता है।
  7. पत्र-लेखक जागरूक होने के साथ ही सहृदय एवं कल्पनाशील भी होता है।
  8. पत्र-लेखक शब्दों की मितव्ययता के साथ कथ्य को स्पष्ट करने की चेष्टा भी करता है।
  9. पत्र-लेखक की उपदेशात्मक बोझ की स्थिति से बचना चाहिए।

प्रश्न 4. सामान्यतः पत्र कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
सामान्यतः पत्र तीन प्रकार के होते हैं

  • सामाजिक एवं व्यक्तिगत पत्र।।
  • व्यापारिक एवं व्यावसायिक पत्र।
  • सरकारी कार्यालयों से सम्बन्धित पत्र।

इसमें सामाजिक पत्रों के अन्तर्गत सम्बन्धियों के पत्र, बधाई पत्र, शोक-संवेदना पत्र, परिचय पत्र, निमन्त्रण पत्र तथा अन्य इसी तरह के व्यक्तिगत विविध पत्र समाविष्ट किये जाते हैं।

प्रश्न 5.
सामाजिक पत्राचार में किस तरह के पत्र आते हैं?
उत्तर:
सामाजिक पत्राचार में व्यक्तिगत सम्बन्धों पर आधारित पत्र आते हैं। पत्र-लेखक अपने मित्रों, सम्बन्धियों, परिचितों एवं सहयोगियों को समय-समय पर जो पत्र लिखते हैं, वे सभी पत्र इसी तरह के होते हैं। जैसे- माता-पिता, भाई-बहिन, भिन्न-सहपाठी को लिखे गये पत्र, सामान्य परिचय पत्र, बधाई पत्र, निमन्त्रण पत्र, शोक संवेदना को व्यक्त करने वाले पत्र, शुभकामना वाले पत्र तथा अन्य इसी तरह के पत्र इस विधा के अन्तर्गत आते हैं।

प्रश्न 6.
पिताजी को पत्र लिखते समय क्या सम्बोधन करेंगे?
उत्तर:
पिताजी को पत्र लिखने में ये सम्बोधन किये जाने चाहिए

  • पूज्य पिताजी
  • पूजनीय पिताश्री

प्रश्न 7.
अनौपचारिक पत्र किन्हें लिखा जाता है?
उत्तर:
सभी सामाजिक पत्र या व्यक्तिगत पत्र अनौपचारिक होते हैं। ये पत्र उन्हें लिखे जाते हैं

  1. पिता व माता को,
  2. भाई व बहिन को,
  3. पत्नी के पुत्र को,
  4. गुरु या शिष्य को,
  5. मित्र व सहपाठी को,
  6. पति व देवर को,
  7. सामान्य परिचित व्यक्ति को,
  8. निकट सम्बन्धियों व रिश्तेदारों को।

प्रश्न 8.
साहित्यिक श्रेणी के पत्रों के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी साहित्य के भारतेन्दु युग तथा उससे पूर्व जो साहित्यिक पत्र लिखे गये, उनका संकलन-प्रकाशन नहीं हो सका। द्विवेदी युग में सन् 1904 में स्वामी दयानन्द सरस्वती सम्बन्धी पत्रों का प्रकाशन महात्मा मुंशीराम ने किया। इसी क्रम में दूसरा संकलन श्रीभगवद्दत्त शर्मा ने किया। स्वामी विवेकानन्द के महत्त्वपूर्ण पत्रों का प्रकाशन रामकृष्ण आश्रम, नागपुर द्वारा किया गया। प्रसिद्ध साहित्यकार पं. बनारसीदास चतुर्वेदी ने सन् 1966 में पद्मसिंह शर्मा के पत्रों का संकलन कर प्रकाशित किया। श्री किशोरीदास वाजपेयी ने ‘साहित्यिकों के पत्र’ शीर्षक से अनेक साहित्यकारों पत्रों का प्रकाशन करवाया। सन् 1960 में सस्ता साहित्यमण्डल ने पं. नेहरू के पत्रों का संकलन ‘कुछ पुरानी चिट्ठियां’ शीर्षक से प्रकाशित कराया।

आधुनिक काल में साहित्यिक श्रेणी के पत्रों के संकलन-प्रकाशन का क्रम चलने लगा। जैसे भदत्त आनन्द कोसल्यायन ने ‘भिक्षु के पत्र’ सत्यभक्त स्वामी ने ‘अनमोल पत्र’, डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने ‘यूरोप के पत्र’, अमृतराय ने ‘चिट्टी-पत्री’, वृन्दावन दास ने बनारसीदास चतुर्वेदी के पत्र’, जानकीवल्लभ ने ‘निराला के पत्र’ इत्यादि पत्र-संकलनों का प्रकाशन किया। इसी प्रकार अन्य साहित्यकारों ने भी प्रयास किये। फिर भी साहित्यिक श्रेणी के पत्रों की परम्परा उतनी समृद्ध नहीं है। इस विधा में। सृजन की अपेक्षा है।

प्रयोजनमूलक लेखन अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1.
पत्र-लेखन को प्रयोजनमूलक लेखन क्यों कहा गया है?
उत्तर:
मनुष्य अपनी भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति पत्राचार से करता है। इस तरह दूसरों पर या परिचितों पर अपने भावों-विचारों के प्रकटीकरण का प्रयोजन लेकर पत्राचार किया जाता है। निजी प्रयोजन या लक्ष्य की सिद्धि के लिए अथवा दूसरों से आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करने की दृष्टि से पत्राचार करने की परम्परा सामाजिक जीवन में प्रचलित हैं। प्रयोजन सामान्य भी हो सकता है तथा विशिष्ट भी। सामान्य प्रयोजन आत्मीय भावों के प्रकाशन पर निर्भर करता है तथा इसमें अनौपचारिक रूप से भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसी कारण सामाजिक एवं सभी व्यक्तिगत पत्रों को अनौपचारिक श्रेणी के पत्र माना जाता है। ऐसे पत्रों के लेखन को सामान्य प्रयोजनमूलक लेखन कहा जाता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक या व्यक्तिगत पत्र कितने प्रकार के होते हैं? सोदाहरण लिखिए।
उत्तर:
सामाजिक या व्यक्तिगत पत्र अनौपचारिक होते हैं। ये आत्मीय सम्बन्धों पर आधारित, बधाई, संवेदना, निमन्त्रण, शुभकामना, परिचय आदि अनेक प्रकार के होते हैं। यहाँ इनके उदाहरण प्रस्तुत हैं–

सामाजिक एवं व्यक्तिगत पत्र
(पिता को पत्र)

प्रश्न 3.
स्वयं को जयपुर निवासी मानवेन्द्र मानकर अहमदाबाद निवासी अपने पिताजी को एक पत्र लिखिए, जिसमें अपनी परीक्षा की तैयारी एवं अध्ययन आदि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
जयपुर
दिनांक : 15 फरवरी, 20_ _

पूजनीय पिताजी,

सादर चरण स्पर्श!

मैं यहाँ पर सकुशल हूँ और आपकी सपरिवार कुशलता के लिए ईश्वर से सदैव प्रार्थना करता हूँ।

आपका भेजा हुआ पत्र तथा मनीआर्डर दोनों एक ही दिन मिले हैं। इस समय मेरा अध्ययन अच्छी तरह से चल रहा है। अब बोर्ड की परीक्षा के लिए लगभग एक माह रह गया है। मैं आजकल सभी विषयों का नियमित अध्ययन कर रहा हूँ। अंग्रेजी और हिन्दी की तीन बार आवृत्ति कर चुका हूँ। भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान का कोर्स भी दो बार पूरा कर लिया है। अब गणित की विशेष तैयारी में लगा हुआ हूँ। आजकल मैं रात में साढ़े दस बजे तक पढ़ता हूँ और फिर सो जाता हूँ। प्रात:काल चार बजे उठकर अध्ययन करने लग जाती हैं। इस तरह मेरा अध्ययन-म नियमित चल रहा है और आपके आशीर्वाद से मुझे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के पूर्ण आशा है।।

आप मेरी चिन्ता न करें, मैं परीक्षा के बाद ही आपके पास आ जाऊँगा। माताजी को चरण स्पर्श तथा सुनीता व सुनील को प्यार।
कुशल पत्र की प्रतीक्षा में,

आपका आज्ञाकारी पुत्र,
मानवेन्द्र

(छोटे भाई को पत्र)

प्रश्न 4.
आप आगरा निवासी मनोहर हैं। अजमेर में अध्ययन कर रहे अपने छोटे भाई प्रभाकर को पत्र लिखिए, जिसमें अध्ययन के साथ-साथ खेलों में भी भाग लेने की सलाह दीजिए।
उत्तर:
सुन्दर विलास, हरिपर्वत
आगरा
दिनांक : 12 अगस्त, 20_ _

प्रिय अनुज प्रभाकर,

सस्नेह शुभाशीष!

अभी कुछ दिन पूर्व तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ। उसमें तुमने लिखा कि तुम्हारा मन अजमेर में कम लगता है। यह तो निश्चित है कि राजस्थान की जलवायु गर्म है। अपने यहाँ आगरा की जलवायु ज्यादा अच्छी है। इस कारण तुम्हें वहाँ कुछ परेशानी हो रही है। परन्तु यह सूत्र याद रखना कि संघर्ष व कठिन परिश्रम से सफलता अवश्य मिलती है। वहाँ पर अपने ननिहाल में रहकर तुम्हें अधिक से अधिक अध्ययन करना चाहिए। प्रारम्भ से ही अध्ययन करोगे तो प्रथम-द्वितीय टेस्टों में अच्छे नम्बर आएँगे तथा वार्षिक परीक्षा में भी अच्छे नम्बर प्राप्त करके प्रथम श्रेणी बना लोगे। निश्चित कार्यक्रम बनाकर सुबह से सायंकाल तक अपने समय का सदुपयोग करो। पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद, व्यायाम व मनोरंजन भी शारीरिक एवं बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक हैं। यह अच्छी बात है कि तुम्हारे। विद्यालय में खेलकूद अनिवार्य कर रखे हैं।

अन्त में मेरा यही कहना है कि कक्षा में ध्यान लगाकर सुनना तथा पढ़ाये हुए। पाठ को अच्छी तरह से पढ़कर याद करना। गुरु के प्रति श्रद्धा तथा नियमित अध्ययन से विद्यार्थी उत्तम ज्ञान प्राप्त करता है। अपने नाना व नानी तथा मामाजी को प्रणाम कहना। पत्र देना।

तुम्हारा शुभेच्छु,
मनोहर

(माता को पत्र)

प्रश्न 5.
स्वयं को प्रियंका, निवासी सवाई माधोपुर मानकर अपनी माताजी को एक पत्र लिखिए, जिसमें दशहरा अवकाश पर शैक्षणिक भ्रमण पर आगरा, मथुरा-वृन्दावन जाने के कार्यक्रम की सूचना दी गई हो।
उत्तर:
सवाई माधोपुर
दिनांक : 21 सितम्बर, 20_

पूजनीय माताजी,

सादर चरण स्पर्श!

मैं यहाँ सकुशल हूँ और आप सबकी कुशलता के लिए सदैव ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ।

आपको मैंने एक पत्र पहले भेजा था, मिला होगा। उसमें मैंने दशहरा अवकाश पर आपके पास आने के लिए लिखा था, परन्तु अब मैं नहीं आ रही हैं। क्योंकि मेरे विद्यालय की सभी छात्राएँ दशहरा अवकाश पर शैक्षिक भ्रमण के लिए आगरा, मथुरावृन्दावन जा रही हैं। हमारे साथ दो शिक्षक एवं तीन शिक्षिकाएँ, दो चतुर्थ श्रेणी महिला कर्मचारी और व्यायाम प्रशिक्षक भी जा रहे हैं। हमारे इस शैक्षणिक भ्रमण के लिए कुछ बसें किराये पर ले रखी हैं। भ्रमण का कार्यक्रम दो दिन तक आगरा के दर्शनीय स्थलों एवं ऐतिहासिक स्मारकों को देखने का है और एक दिन मथुरा तथा एक दिन वृन्दावन व आसपास के क्षेत्रों का भ्रमण करने का है। इस शैक्षणिक भ्रमण से।

हमारे ज्ञान की वृद्धि होगी और हमें नये स्थानों को देखने, वहाँ की बोली-भाषा, रहन-सहन और संस्कृति आदि का ज्ञान होगा। आप मेरी ओर से जरा भी चिन्तित नहीं हों, क्योंकि मेरे साथ मेरी सभी सहेलियाँ और कक्षा की छात्राएँ जा रही हैं। इस शैक्षणिक भ्रमण से लौटने के बाद जब भी अवकाश मिलेगा, मैं आपके पास आ जाऊँगी। सुदर्शन और रंजना को मेरी ओर से प्यार। पत्रोत्तर अवश्य भेजना।

आपकी आज्ञाकारिणी पुत्री,
प्रियंका

(बड़े भाई को पत्र)

प्रश्न 6.
स्वयं को जयपुर निवासी भरतेश जैन मानकर चण्डीगढ़ निवासी अपने बड़े भाई विश्वेश जैन को एक पत्र लिखिए, जिसमें अपनी माताजी के अस्वस्थ हो जाने की सूचना दी गई हो।
उत्तर:
जयपुर
दिनांक : 22 अगस्त, 20_ _

आदरणीय भाई साहब,
सादर प्रणाम!

‘मैं यहाँ सकुशल हूँ और आपकी कुशलता की ईश्वर से सदैव प्रार्थना करता हूँ। मैंने पिछले सप्ताह आपको पत्र भेजा था, तब तक यहाँ माताजी की तबीयत ठीक थी, परन्तु अचानक ही पिछले चार दिन से माताजी की तबीयत ठीक नहीं है। इन्हें तेज बुखार है और सिर तथा पेट में दर्द बता रही हैं। मैं लगातार तीन दिन से इन्हें डॉक्टर के पास ले जा रहा हूँ और दवा भी दे रहा हूँ, परन्तु इनके स्वास्थ्य की स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखाई दे रहा है। डॉक्टर साहब की राय है कि इन्हें किसी बड़े अस्पताल में भर्ती कराना पड़ेगा और इनकी आँतों पर आयी हुई सूजन का इलाज करवाना होगा। इस कारण आप पत्र मिलते ही अवकाश लेकर आ जाएँ, तभी इनका सही इलाज सम्भव हो सकेगा।

माताजी अस्वस्थता की हालत में बार-बार आपको याद कर रही हैं। भाभीजी को मेरा प्रणाम तथा बच्चों को प्यार। आपके आगमन की प्रतीक्षा में रहूँगा।

आपको आज्ञाकारी अनुज,
भरतेश जैन

(सहेली को पत्र)

प्रश्न 7.
स्वयं को आगरा निवासी विमला मानकर बीकानेर में रहने वाली अपनी सहेली को अपने यहाँ ग्रीष्मावकाश व्यतीत करने हेतु एक पत्र लिखिए।
उत्तर:
156, सारस्वत भवन,
ईदगाह कॉलोनी, आगरा
दिनांक : 14 अप्रैल, 20_ _

प्रिय सखी सरला,
सप्रेम नमस्ते!

यहाँ पर हम सभी प्रसन्न हैं और आशा करती हूँ कि तुम भी वहाँ पर प्रसन्न होंगी। बहुत दिनों से तुम्हारी कोई पत्र नहीं आया। मैं भी परीक्षा की तैयारी में अत्यधिक व्यस्त रहने से पहले पत्र नहीं भेज सकी। फिर परीक्षा की व्यस्तती रही, अब परीक्षा समाप्त हो गई है, इसलिए पत्र भेजने का अवसर मिल पाया है। आशा है कि अब तुम्हारी परीक्षा भी हो गई होगी तथा प्रश्न-पत्र भी ठीक हो गए होंगे।

मेरा आग्रह है कि इस बार ग्रीष्मावकाश व्यतीत करने के लिए तुम यहाँ आगरा चली आओ। यहाँ ताजमहल, किला, सीकरी के महल आदि दर्शनीय स्थलों को देखने की तुम पहले भी कई बार इच्छा व्यक्त कर चुकी हो। अब यहाँ आ जाने से तुम्हारी इस इच्छा की पूर्ति भी हो जाएगी और बहुत दिनों के बाद हम दोनों सहेलियों को साथ-साथ रहने का सुअवसर भी मिल जाएगा। तुम्हारे साथ रहने से ग्रीष्मावकोश व्यतीत करने में खूब आनन्द मिलेगा। इस सम्बन्ध में मैंने मम्मी-पापा से भी बात की है, वे भी बड़े आग्रह के साथ तुम्हें आगरा आने के लिए कह रहे हैं।

अपने पूज्य माता-पिता को मेरी ओर से प्रणाम तथा छोटे भाई-बहन को प्यारे। शीघ्र पत्र लिखकर अपने कार्यक्रम की सूचना और आगमन की तिथि लिख भेजना। पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में,

तुम्हारी सहेली,
विमला।

(छोटे भाई को पत्र)

प्रश्न 8.
आप जोधपुर निवासी नरेन्द्र हैं, उदयपुर निवासी अपने छोटे भाई सुरेन्द्र को एक पत्र लिखिए, जिसमें बिजली एवं मनी का अपव्यय न करने की सलाह दी गई हो।
उत्तर:
जोधपुर :
दिनांक : 12 सितम्बर, 20_ _

प्रिय सुरेन्द्र,
सस्नेह शुभाशीर्वाद!

यहाँ सब कुशलपूर्वक हैं और तुम्हारी कुशलता-कामना के लिए सदैव ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।

तुम्हारा पत्र कल ही मिला, पढ़कर समाचार ज्ञात किये। इस बार तुमने अपने मासिक खर्च का जो हिसाब भेजा है, उससे लगता है कि तुम बिजली और पानी का अपव्यय कर रहे हो। पानी का उपयोग लापरवाही से करने पर उसका बिल अधिक आना स्वाभाविक ही है। इसी प्रकार तुम रात में सोते समय बल्ब जलता ही छोड़ देते होगे, पंखे व इस्तरी का उपयोग भी असावधानी से करते होगे। इसी कारण बिजली का इतना अधिक बिल आया, अन्यथा एक बल्ब व एक पंखे पर इतना खर्चा सम्भव नहीं है। ऐसी असावधानी रखने से पिताजी की गाढ़ी कमाई का पैसा व्यर्थ जा रहा है।

और आवश्यक वस्तुओं के दुरुपयोग से राष्ट्र की भी क्षति हो रही है। इस प्रकार की अपव्यय की आदत ठीक नहीं है। तुम वैसे काफी समझदार हो, इसलिए समझदारी से इस तरह के अपव्यय से बचने की कोशिश करो। इस सम्बन्ध में तुम मेरी सलाह को बुरा मत मानना।

शेष अन्य समाचार सामान्य हैं। पिताजी तुम्हारे लिए कल तक मनीआर्डर भेजने को कह रहे हैं। माता-पिताजी की ओर से तुम्हें आशीष तथा अनिता का प्रणाम।। अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना और खूब परिश्रम करके परीक्षा में अच्छे अंक लाने की चेष्टा करना। पत्रोत्तर अवश्य भेजना।

तुम्हारा शुभचिन्तक,
नरेन्द्र

(बहिन को पत्र)

प्रश्न 9.
आप कोटा निवासी अरविन्द शर्मा हैं। अपनी विवाहिता बहिन को रक्षाबन्धन के अवसर पर राखी बंधवाने के सम्बन्ध में एक पत्र लिखिए।
उत्तर:
24 क, तलवण्डी ,
कोटा
दिनांक : 2 अगस्त, 20 _ _

चिरंजीवी बहिन रश्मि,
सस्नेह आशीष!

हम यहाँ सकुशल हैं और तुम्हें अपने परिवार के सभी लोगों के साथ सदैव कुशल चाहते हैं। कुछ विलम्ब से पत्र भेज रहा हूँ। रक्षा-बन्धन का पवित्र त्योहार समीप आ रहा है। माताजी की इच्छा थी कि इस बार तुम स्वयं ही यहाँ आ जाओगी, परन्तु कल तुम्हारा पत्र मिला। पढ़कर वहाँ के समाचार ज्ञात हुए। तुम अपने पारिवारिक कामों से व्यस्त रहने से नहीं आ पा रही हो, इसलिए हमने निर्णय लिया है कि मैं स्वयं ही तुम्हारे पास इस अवसर पर आ जाऊँगा और भाई-बहिन के प्रेम की प्रतीक राखी बँधवाकर तुम्हें आशिष एवं अन्य सामान दे दूंगा। इसलिए तुम्हें पहले सूचित कर रहा हूँ।

माताजी का निर्देश है कि यदि किसी चीज की तुम्हें जरूरत हो, तो तुरन्त सूचित करना, ताकि मैं अपने साथ वांछितं सामान ला सकें। अपने परिवार के सभी लोगों को हमारी ओर से यथायोग्य सेवा आदि कहना। माताजी आशीर्वाद कह रही हैं। और मिन्नी प्रणाम कर रही है।

रक्षाबन्धन पर मिलने की उत्सुकता के साथ,

तुम्हारा शुभेच्छु भाई,
अरविन्द शर्मा

निमन्त्रण-पत्र
(खेल-दिवस की अध्यक्षता हेतु)

प्रश्न 10.
अपने आपको राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, गोकुलपुरा के छात्र-कल्याण-परिषद् का अध्यक्ष आदिकुमार मानते हुए अपने विद्यालय के सेवानिवृत्त भूतपूर्व प्राचार्य को विद्यालय में आयोजित खेल-दिवस के कार्यक्रम की। जानकारी देते हुए उन्हें अध्यक्ष-पद हेतु निमन्त्रण-पत्र लिखिए।
उत्तर:
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
गोकुलपुरा।
दिनांक : 25 नवम्बर, 20_ _
आदरणीय महोदय,

आपको सहर्ष सूचित किया जाता है कि प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी छात्रकल्याण-परिषद् द्वारा खेल-दिवस का आयोजन किया जा रहा है। इस उपलक्ष में अनेक कार्यक्रम रखे गये हैं। इसमें अन्त:कक्षा कबड्डी प्रतियोगिता, वॉलीबाल, हॉकी मैच के अलावा लम्बी दौड़, ऊंची कूद, भाला फेंक, तस्तरी एवं गोला फेंक आदि विभिन्न प्रतियोगिताएँ सम्पन्न की जायेगी। इन सभी प्रतियोगिताओं में सभी आदरणीय गुरुजनों का मार्गदर्शन हमें प्राप्त है।

अत: छात्र-कल्याण-परिषद् के हम सभी सदस्य खेल-दिवस के इस कार्यक्रम में आपको अध्यक्ष रूप में आमन्त्रित करना चाहते हैं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला शिक्षा अधिकारी महोदय होंगे, जिनकी स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है।

अतएव विनम्र निवेदन है कि आप हमारे आमन्त्रण को अवश्य स्वीकार कर अध्यक्षता हेतु पधारें और पहले की तरह हमारा उत्साहवर्धन करें।

स्थान : विद्यालय प्रांगण
दिनांक 28 नवम्बर, 20_
समय : प्रातः नौ बजे

निवेदक,
आदिकुमार
अध्यक्ष
छात्र-कल्याण-परिषद्।
राज. उच्च माध्य. विद्यालय, गोकुलपुरी

(सहेली के लिए)

प्रश्न 11.
आप दिल्ली की रहने वाली ममता हैं, अपनी सहेली कुमारी ‘सरिता को एक निमन्त्रण-पत्र लिखिए कि वह आगामी गणतन्त्र-दिवस के अवसर पर आपके पास आये।
उत्तर:
दिल्ली
दिनांक : 12 जनवरी, 20_ _

प्रिय सरिता,
सप्रेम अभिनन्दन!

तुम्हारा कुशल-पत्र मिला, समाचार ज्ञात हुए कि तुम्हारा अध्ययन बहुत अच्छा चल रहा है। हमारे विद्यालय में इन दिनों गणतन्त्र दिवस समारोह की तैयारी चल रही है। वैसे भी देश की राजधानी दिल्ली में यह दिवस विशाल स्तर पर मनाया जाता है। और इसमें लाखों लोग भाग लेते हैं। हमारे विद्यालय में भी इस अवसर पर विज्ञान एवं चित्रकला प्रदर्शनी लगाई जा रही है, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ ‘अमर शहीद नाटक का अभिनय किया जाएगा। समारोह की तैयारी अभी से बड़े उत्साह और लगन से की जा रही है। मेरा आग्रह है कि इस अवसर पर तुम यहाँ आ जाओ तथा इस वर्ष यह समारोह हमारे साथ मनाओ। मैं तुम्हारे लिए पिताजी से कहकर जनपथ पर होने वाले गणतन्त्र दिवस समारोह के ‘पास’ भी मँगवा लूंगी। सुबह के समय हम इस समारोह को देखेंगी, तत्पश्चात् हमारे विद्यालय के समारोह में सम्मिलित हो जाएँगी।

पूरे विश्वास के साथ पत्र भेज रही हूँ कि तुम अवश्य आओगी। इस अवसर पर तुम्हारे आगमन से मुझे अतीव प्रसन्नता होगी। वैसे भी ऐसे सुअवसर बार-बार नहीं मिल पाते हैं। अतः शीघ्र पत्रोत्तर भेजना और 24-25 तारीख तक यहाँ अवश्य पहुँच जाना। मैं तुम्हारे आगमन की प्रतीक्षा में रहूँगी। इसी आशा के साथ,

तुम्हारी सहेली,
ममता

(वार्षिकोत्सव हेतु)

प्रश्न 12.
आप पोद्दार उच्च माध्यमिक विद्यालय, जयपुर के छात्र हैं। अपने विद्यालय के वार्षिकोत्सव में सम्मिलित होने के लिए एक निमन्त्रण-पत्र लिखिए।
उत्तर:
जयपुर
दिनांक : 14 फरवरी, 20 _ _
श्रीमान् विनोदकुमारजी,

आपको यह जानकर अपार हर्ष होगा कि प्रत्येक वर्ष की भाँति इस वर्ष भी पोद्दार उच्च माध्यमिक विद्यालय का वार्षिकोत्सव बड़ी धूमधाम से आयोजित किया जा रहा है। इस अवसर पर विविध रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम रखे गये हैं और सर्वश्रेष्ठ छात्रों को वर्षभर की गतिविधियों हेतु पुरस्कार प्रदान किये जाएँगे। – वार्षिकोत्सव की अध्यक्षता श्री सज्जनसिंहजी शेखावत, क्षेत्रीय विकास अधिकारी, जयपुर करेंगे और मुख्य अतिथि जिला शिक्षा अधिकारी होंगे।

आपसे प्रार्थना है कि आप अपने इष्ट मित्रों सहित पधारकर इंस समारोह की शोभा बढ़ावें और विद्यालय के छात्र-छात्राओं का उत्साह-वर्धन करें।

स्थान-विद्यालय भवन
समय-सायं 6 बजे

भवदीय,
सत्येन्द्र सोलंकी
अध्यक्ष-छात्रसंघ
एवं समस्त विद्यालय परिवार

(विवाहोपलक्ष में)
प्रश्न 13.
आप सीकर निवासी मनीष हैं। अपनी बहिन के शुभविवाह में आमन्त्रित करते हुए अपने मित्र अभिषेक को एक निमन्त्रण-पत्र लिखिए।
उत्तर:
15, कल्याण कालोनी,
सीकर :
दिनांक : 10 नवम्बर, 20_ _

प्रिय अभिषेकजी,

आपको यह जानकर हर्ष होगा कि दिनांक 18 नवम्बर, 20_ _ को मेरी बहिन अनिता का शुभ-विवाह डॉ. सुधांशु भारद्वाज (सुपुत्र श्री हिमांशु भारद्वाज, क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी, सीकर) के साथ होने जा रहा है। आपसे प्रार्थना है कि इस शुभअवसर पर सपरिवार पधार कर नव-परिणीत वर-वधू को आशीर्वाद प्रदान करें।

आप इस निमन्त्रण को औपचारिक न समझें। आपको उक्त तिथि से एक दिन पूर्व अवश्य ही यहाँ पहुँचना चाहिए। आपके आ जाने से हमें उचित परामर्श एवं सहायता मिल सकेगी। आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि आप भाभीजी के साथ अवश्य ही पधारकर अनुगृहीत करेंगे। आपकी प्रतीक्षा में,

स्नेही मित्र,
मनीष

(प्रीतिभोज हेतु)

प्रश्न 14.
आप अवधेश कौशिक, निवासी भरतपुर हैं। अपने नये मकान में गृह-प्रवेश के उपलक्ष्य में आयोजित प्रीतिभोज में सम्मिलित होने के लिए अपने मित्र रमाकान्त पाण्डेय को एक निमन्त्रण-पत्र लिखिए।
उत्तर:
36, कृष्णा नगर,
भरतपुर
दिनांक : 11 जनवरी, 20_ _

प्रिय मित्र रमाकान्त,
सप्रेम नमस्ते!

तुम्हें यह जानकर प्रसन्नता होगी कि कृष्णानगर में हमारा नया मकान बनकर तैयार हो गया है तथा 21 जनवरी, 20 को नव-निर्मित मकान में गृह-प्रवेश का कार्यक्रम रखा गया है। इस अवसर पर दिन में गृह-पूजन एवं हवन आदि रखा गया है तथा सन्ध्या काल को प्रीतिभोज का आयोजन है। इस आयोजन में सम्मिलित होने के लिए मैं तुम्हें विशेष रूप से आमन्त्रित कर रहा हूँ! इस प्रसन्नता के अवसर पर अवश्य ही आकर सहयोग प्रदान करना। तुम्हारे आने से मुझे अतीव प्रसन्नता होगी।

आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि तुम अवश्य आओगे। मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में रहूँगा।

तुम्हारा मित्र,
अवधेश कौशिक

बधाई-पत्र
(परीक्षा में सफलता हेतु)

प्रश्न 15.
अलवर में रहने वाली सुशीला की ओर से अपनी छोटी बहिन आभा को सी.पी.एम.टी. की परीक्षा में सफल हो जाने पर बधाई-पत्र लिखिए।
उत्तर:
होप सर्कस, अलवर
दिनांक : 25 जून, 20_ _

प्रिय अनुजा आभा,

सस्नेह आशीष! आज ही अखबार में सी.पी.एम.टी. का रिजल्ट देखने को मिला, उसमें तुम्हारा रोल नम्बर देखकर बहुत खुशी हुई कि तुम इसमें केवल उत्तीर्ण ही नहीं हुई हो, अपितु मैरिट में भी तुमने अच्छा स्थान पाया है। इस खुशी के अवसर पर मेरी ओर से बहुत-बहुत प्यार भरी बधाई एवं शुभकामनाएँ। इस समय मेरा मन अतीव प्रसन्न हो रहा है और तुमसे मिलने की तीव्र इच्छा हो रही है। पिताजी की हार्दिक इच्छा रही कि तुम डॉक्टर बनो। उनकी इच्छा अब पूरी हो जाएगी। हमारे लिए यह बड़े गौरव की बात है और ऐसी अनुभूति हो रही है कि तुम पिताजी का नाम रोशन करोगी तथा परिवार का भविष्य उज्वल बनाओगी। मैं अगले सप्ताह तुमसे मिलने आ रही हैं, साथ में तुम्हारे लिए उपहार लेकर आऊँगी। मेरी भगवान् से यही प्रार्थना है कि तुम्हें सदैव इसी प्रकार सफलता मिलती। रहे। माताजी तथा पिताजी को मेरा प्रणाम कहना। शेष कुशल हैं।

तुम्हारी शुभेच्छु अग्रजा,
सुशीला

(जन्म-दिवस के उपलक्ष में)

प्रश्न 16.
जयपुर निवासी सुधीर कुमार की ओर से अपने मित्र प्रवीण कुमार को उसके जन्म-दिवस के उपलक्ष में बधाई-पत्र लिखिए।
उत्तर:
बी-4, कानन कुंज,
आदर्शनगर, जयपुर
दिनांक : 25 जुलाई, 20_ _

प्रिय मित्र प्रवीण,
सप्रेम नमस्ते!

कल तुम्हारा पत्र मिला तथा समाचार ज्ञात किये। तुमने अपने जन्म-दिवस के अवसर पर आयोजित पार्टी में मुझे सम्मिलित होने के लिए लिखा है। मैं ऐसे अवसर पर सहर्ष आना चाहता था, परन्तु यहाँ माताजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, इस कारण आने में असमर्थ हूँ। मैं तुम्हारे जन्म-दिवस की मधुर बेला पर तुम्हें बधाई देता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि तुम्हें जीवन में सैकड़ों वर्षों तक यह दिन देखने का अवसर मिले। इस अवसर पर मैं अपनी ओर से तुच्छ भेंट भेज रहा हूँ, इसे अवश्य स्वीकार करना और मेरी अनुपस्थिति पर नाराज मत होना। पुनः बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ। स्नेह-कुशलपत्र की आकांक्षा के साथ,

तुम्हारा मित्र,
सुधीर कुमार।

प्रश्न 17,
अजमेर निवासी आलोक की ओर से अपने छोटे भाई विवेक को राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाने पर बधाई-पत्र लिखिए।
उत्तर:
अजमेर
दिनांक : 16 मई, 20_ _

प्रिय अनुज विवेक,
सस्नेह आशीष!

यह समाचार जानकरे अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है कि तुम्हारा राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा में चयन हुआ है। तुम्हारी इस सफलता पर मेरी ओर से हार्दिक बधाई। तुमने अध्ययन में जो रुचि रखी और निरन्तर जो परिश्रम किया, यह उसी का शुभ परिणाम है। भविष्य में भी तुम इसी प्रकार परिश्रम करते रहोगे, तो तुम्हारा भविष्य अवश्य ही उज्ज्वल बन जाएगा। तुम्हारी इस सफलता पर हमारे परिवार का गौरव बढ़ा है। वस्तुतः तुम्हारे जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति से ही परिजनों का सम्मान बढ़ता है। आगे भी हम तुमसे यही अभिलाषा रखते हैं।

मेरे सभी साथी भी तुम्हें इस सफलता पर बधाई दे रहे हैं। अपना कुशल-पत्र शीघ्र भेजना, शेष कुशल।

तुम्हारा अग्रज,
आलोक

(विवाहोत्सव पर शुभकामना)

प्रश्न 18.
आप उदयपुर निवासी जितेन्द्रकुमार हैं, भरतपुर निवासी अपने मित्र सुरेन्द्रसिंह को एक शुभकामना-पत्र लिखिए, जिसमें उसके छोटे भाई के विवाहोत्सव हेतु बधाई दी गई हो।
उत्तर:
उदयपुर
दिनांक : 28 नवम्बर, 20 _ _

प्रिय मित्र सुरेन्द्र,
सप्रेम अभिनन्दन!

आपके छोटे भाई चि. चन्दनसिंह के शुभ-विवाह का निमन्त्रण-पत्र प्राप्त हुआ। इस समाचार से हृदय को अत्यधिक प्रसन्नता हुई। मेरा स्वास्थ्य ठीक न रहने से इस मांगलिक वेला पर मैं उपस्थित नहीं हो सकेंगा। अतः मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करें। वर-वधू दोनों चिरंजीवी हों और उनका दाम्पत्य-जीवन सदा सुखी एवं समृद्ध रहे, यह मेरी मंगल-कामना है।

भगवान् से यही प्रार्थना है कि आपका परिवार इसी प्रकार आनन्दित होता रहे। पुनः अनेक शुभ-कामनाओं के साथ।

आपका,
जितेन्द्र कुमार

शोक-संवेदना-पत्र
मित्र के पिताजी के निधन पर पत्र

प्रश्न 19.
मान लीजिए कि आपके मित्र के पिताजी का असामयिक निधन हो गया, इस सम्बन्ध में एक शोक-संवेदना-पत्र लिखिए।
उत्तर:
चौहान सदन, शास्त्रीनगर,
अजमेर
दिनांक 22 अक्टूबर, 20_ _

प्रिय मित्र नरेश,

आज ही आपका पत्र मिला, समाचार पढ़कर अत्यधिक दुःख हुआ। मैं सोच भी नहीं सकता कि आपके पूज्य पिताजी का इस प्रकार असामयिक देहावसान हो। जायेगा। एक माह पूर्व जब में आपके यहाँ आया था, तो उस समय उनका स्वास्थ्य एकदम अच्छा दिखाई दे रहा था। परन्तु दिल का दौरा पड़ना पहले से मालूम नहीं हो पाता। सत्य ही संसार नश्वर है और इसमें किसी के भी सांसों का कोई भरोसा नहीं, कब समाप्त हो जावे।

मित्रवर, इस शोकपूर्ण अवसर पर में हार्दिक संवेदना प्रकट करता हूँ। आप इस मार्मिक आघात एवं अपूरणीय क्षति को सह सकने का साहस एवं इसके अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है। अतएव धैर्य धारण करें। दिवंगत आत्मा को भगवान् सद्गति तथा चिर शान्ति प्रदान करें-इसी प्रार्थना के साथ!

आपका मित्र
वीरेन्द्र

प्रश्न 20.
महाविद्यालय के खेल-कूद के निदेशक के असामयिक निधन पर छात्र क्रीड़ा परिषद् की ओर से शोक-प्रस्ताव रूप में शोक-सन्देश लिखिए।
उत्तर:
शोक-प्रस्ताव।

छात्र क्रीड़ा परिषद् राजकीय महाविद्यालय सभी सदस्य महाविद्यालय के खेलकूद निदेशक, छात्रों के परम हितैषी, श्रेष्ठ मार्गदर्शक, कर्मठ प्रशिक्षक एवं खेल-प्रतिभा के पुरस्कर्ता श्री ओमप्रकाशजी चौधरी के असामयिक निधन पर हार्दिक शोक-संवेदना प्रकट करते हैं तथा परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि दिवंगत आत्मा को शान्ति

प्रदान करे और उनके शोक सन्तप्त परिवार को इस दु:खमय भयंकर आघात को सहने करने की क्षमता प्रदान करे।

दिनांक 4 सितम्बर, 20_ _

हार्दिक शोकमयी अनुभूति के साथ,
अध्यक्ष
छात्र क्रीड़ा परिषद्
राजकीय महाविद्यालय
अ.ब.स., अजमेर।

(सम्पादक के नाम पत्र)

प्रश्न 21.
स्वयं को कक्षा बारह का छात्र मानकर राजस्थान पत्रिका के सम्पादक को एक पत्र लिखिए जिसमें परीक्षा के दिनों हो रहे शोरगुल की रोकथाम का आग्रह किया गया हो।
उत्तर:
22 सरदारपुरा,
जोधपुर।
दिनांक 25 मार्च, 20_ _

श्री सम्पादक महोदय, राजस्थान पत्रिका,
जयपुर।।

महोदय,
आपके सम्मानित पत्र के द्वारा मैं प्रशासनिक अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि आजकल परीक्षा के दिनों में इस नगर में दिन-रात लाउडस्पीकर बजते रहते हैं। रात में दो-तीन बजे तक शोरगुल होने के कारण यहाँ के परीक्षार्थियों के लिए पढ़ना-लिखना और परीक्षा की तैयारी करना कठिन हो गया है।

आशा है कि स्थानीय अधिकारीगण इस तथ्य की ओर ध्यान देकर कम-सेकम परीक्षा के दिनों तक लाउड-स्पीकर बजाने की निषेधाज्ञा प्रसारित कर देंगे, जिससे कि परीक्षार्थियों को परीक्षा की तैयारी करने का अवसर मिल सके।

निवेदक,
शशांक व्यास
(कक्षा 12 का एक छात्र)

व्यावसायिक-पत्र

प्रश्न 22.
प्रधानाचार्य राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, रतनगढ़ की ओर से संजीव प्रकाशन, जयपुर को एक आदेश-पत्रे कुछ पाठ्य-पुस्तकें मैंगवाने के लिए लिखिए।
उत्तर:
कार्यालय, प्रधानाचार्य
राजकीय उ. माध्यमिक विद्यालय,
रतनगढ़।
दि. 25 जुलाई, 20 _ _

पत्रांक पु. 22/105-20_ _

श्रीमान् व्यवस्थापकजी,
संजीव प्रकाशन,
जयपुर।

महोदय,
कृपया निम्नलिखित पुस्तकें उचित कमीशन काटकर यथाशीघ्र वी.पी.पी. द्वारा भेज दें-
रश्मिरथी (दिनकर) – 10 प्रतियाँ
जयद्रथ वध (मैथिलीशरण गुप्त) – 4 प्रतियाँ
भार्गव हिन्दी कोश – 2 प्रतियाँ
संस्कृत-व्याकरण – 2 प्रतियाँ

पुस्तकें उचित पैकिंग द्वारा भेजें तथा बिल की दो प्रतियाँ अवश्य संलग्न करें।
भवदीय,
प्रधानाचार्य

प्रश्न 23.
नाग पब्लिकेशन, जवाहर नगर, दिल्ली को दिसम्बर, 20_के पश्चात् प्रकाशित पुस्तकों को सूची-पत्र मँगवाने के लिए एक पत्र लिखिए।
उत्तर
शार्दूल उच्च माध्यमिक विद्यालय,
बीकानेर।।
दिनांक : 26 अगस्त, 20_ _

श्रीमान् व्यवस्थापकजी,
नाग पब्लिकेशन,
जवाहर नगर, दिल्ली-7

महोदय,
आपकी फर्म द्वारा प्रकाशित हिन्दी एवं संस्कृत से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकें देखने का अवसर मिला। हमारी संस्था को अपने पुस्तकालय हेतु कुछ पुस्तकें खरीदनी हैं। अतः दिसम्बर, 20_ _ के पश्चात् प्रकाशित पुस्तकों की सूची-पत्र अवलोकनार्थ यथाशीघ्र भेजें।

सधन्यवाद

भवदीय,
……………………
पुस्तकालय अध्यक्ष

प्रश्न 24.
संजीव प्रकाशन, जयपुर की ओर से प्राचार्य, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, जालौर को आदेशित माल भेजने की सूचना का पत्र लिखिए।
उत्तर
संजीव प्रकाशन,
चौड़ा रास्ता, जयपुर।
पत्रांक 1015/56

दिनांक 15 फरवरी, 20_ _

श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जालौर।

प्रिय महोदय,
आपके आदेश-पत्र सं. पु. 23/20__ दिनांक 10 फरवरी, 20_ के क्रम में सूचित किया जाता है कि आपके द्वारा चाही गई पुस्तकें आज ही सवारी गाड़ी द्वारा भेजी जा रही हैं। आशा है कि पुस्तकों के बण्डल आपको ठीक दशा में उपलब्ध हो, जायेंगे। बिल्टी स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर द्वारा भेजी जा रही है। कृपया बिल स्वीकार कर, बैंक से बिल्टी छुड़ाने में शीघ्रता करें।

भवदीय,
कृते-संजीव प्रकाशन
व्यवस्थापक

प्रश्न 25.
विक्रेता द्वारा विलम्ब से माल भेजने के सम्बन्ध में एक पत्र लिखिये।
उत्तर
पाटन पोल, कोटा
18 सितम्बर, 20_
मैसर्स गुप्ता ट्रेडर्स,
सूरजपोल,
उदयपुर।

प्रिय महोदय,
आपके 12 सितम्बर, 20 को भेजे गये आदेश के लिए धन्यवाद। हमें यह सूचित करते हुए खेद है कि आदेशों की अधिकता और उत्पादन की न्यूनता से हम 30 अक्टूबर, 20_ से पूर्व आपके आदेश का माल नहीं भेज सकेंगे।

हमें पूर्ण आशा है कि शीघ्र ही हमारे पास नये माल की आपूर्ति हो जायेगी। कृपया यह लिखने का कष्ट करें कि क्या आप इस अवधि तक माल की प्रतीक्षा कर सकेंगे।

भवदीय,
गुलाबचन्द
मैनेजर,
वास्ते-श्रीराम एण्ड कम्पनी अध्याय

प्रयोजनमूलक लेखन अध्याय-सार

दैनन्दिन जीवन में लेखन प्रक्रिया-‘प्रयोजन’ शब्द का अभिप्राय होता है। उद्देश्य या लक्ष्य। संसार में कोई भी काम बिना प्रयोजन के नहीं किया जाता है। इसी प्रकार किसी भी प्रकार का लेखन सप्रयोजन होता है। हम रोजाना अपने हृदय के भावों एवं विचारों को दूसरों पर प्रकट करने के लिए पत्र लिखते हैं या विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। इसे भी प्रयोजनमूलक लेखन कहा जाता है। ऐसा लेखन दो प्रकार का होता है

  • सामान्य प्रयोजनमूलक तथा
  • विशेष प्रयोजनमूलक।

सामान्य प्रयोजन के लिए जो लेखन होता है, उसमें अनौपचारिक रूप में भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसमें किसी व्यक्ति से की जाने वाली बातचीत में शब्दों का व्यावहारिक प्रयोग होता है।

विशेष प्रयोजन के लेखन में जिस व्यक्ति विशेष के साथ पत्राचार किया जाता है, तो सामान्य भाषा की अपेक्षा एक निश्चित एवं औपचारिक शब्दावली का प्रयोग किया जाता है। अर्थात् इसमें प्रयोजन तक ही सीमित एवं निश्चित बात व्यक्त की जाती है। इसमें पद की गरिमा, प्रतिष्ठा एवं शिष्टाचार का पूरा ध्यान रखा जाता है।

पत्र-लेखन कला की विशेषताएँ-पत्र-लेखन को एक कला माना जाता है। और वर्तमान में पत्रों में कलात्मक अभिव्यक्तियाँ हो रही हैं। साहित्य में भी इनका उपयोग होने लगा है। वस्तुतः पत्र में जितनी सादगी एवं स्वाभाविकता होती है, वह उतना ही अधिक प्रभावकारी होता है। एक अच्छे पत्र के लिए कलात्मक सौन्दर्यबोध और अन्तरंग भावनाओं की अभिव्यंजना आवश्यक है। समीक्षकों ने एक अच्छे पत्र की निम्न पाँच विशेषताएँ बतायी हैं

  1. सरल भाषा-शैली-पत्र की भाषा सरल एवं सुबोध होनी चाहिए। बातों को सरल-सीधे ढंग से लिखना चाहिए, घुमा-फिराकर या अस्पष्ट शैली में नहीं लिखना चाहिए।
  2. विचारों की सुस्पष्टता-पत्र में समाविष्ट विचार सुस्पष्ट और सुलझे होने चाहिए। इसमें पाण्डित्य-प्रदर्शन की चेष्टा नहीं करनी चाहिए।
  3. संक्षिप्तता और सम्पूर्णता-पत्र अधिक लम्बा नहीं होना चाहिए, अपितु संक्षिप्त और सम्पूर्ण होना चाहिए। इसीलिए मुख्य बातें बिन्दुवार संक्षेप में लिखना चाहिए।
  4. प्रभावान्विति-पत्र का पूरा प्रभाव पढ़ने वाले पर पड़ना चाहिए। पत्र के आरम्भ और अन्त में विनम्रण एवं सौहार्द का भाव प्रकट करना चाहिए।
  5. बाहरी सजावट-पत्र का कागज अच्छा होना चाहिए, लिखावट सुन्दर, साफ और स्पष्ट होनी चाहिए। शीर्षक, तिथि, सम्बोधन, अभिवादन एवं विषयवस्तु आदि का सुसंगत समावेश होना चाहिए।

पत्र-लेखन के विशिष्ट तत्त्व-पत्र-लेखन की विधा काफी समृद्ध हो चुकी है। देश-विदेश के साहित्यकारों एवं मनीषियों ने अपने परिचितों का समय-समय पर जो पत्र लिखे हैं, वे महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों से युक्त हैं। पत्र-लेखन के कुछ विशिष्ट तत्त्व निर्धारित हैं जो इस प्रकार हैं

  1. पत्र-व्यवहार में जीवन की किसी घटना या घटनांश का वर्णन होता है।
  2. पत्र-लेखन की एक निश्चित सीमा होती है।
  3. पत्र-साहित्य में चरितनायक का विशिष्ट स्वरूप अभिव्यक्त होता है।
  4. पत्र-लेखक अपने पत्रों में सम-सामयिक परिवेश का चित्रण भी कर देता है।
  5. पत्र-लेखक वैयक्तिक निरपेक्षता को महत्त्व देता है।
  6. पत्र-लेखक पत्र-प्रापक की मानसिक समता, सामाजिक परिवेश आदि का ध्यान रखता है।
  7. पत्र-लेखक जागरूक होता है तथा पत्र-पाठक का सहृदय एवं कल्पनाशील होना भी आवश्यक है।
  8. पत्र-लेखक शब्दों की मितव्ययता के साथ कथ्य को व्यक्त करने की चेष्टा करता है।
  9. पत्र-लेखन में उपदेशात्मकता अभाव होना जरूरी है।

पत्रों के प्रकार-पत्र सामान्यतः तीन प्रकार के होते हैं

  • सामाजिक पत्र,
  • व्यापारिक पत्र,
  • सरकारी या कार्यालयी पत्र

सामाजिक पत्र के होते हैं जो दैनिक जीवन के व्यवहार-निर्वाह में लिखे जाते। हैं। इस प्रकार के पत्र

  • सम्बन्धियों को लिखे गये पत्र,
  • बधाई पत्र,
  • शोक पत्र,
  • परिचय पत्र,
  • निमन्त्रण पत्र,
  • विविध पत्र आदि से सम्बन्धित होते हैं।

व्यावसायिक पत्रों में भाषागत स्वच्छता, स्पष्टता, शुद्धता के अलावा भावों का स्पष्ट औपचारिक ढंग से प्रस्तुतीकरण होना अपेक्षित रहता है।
सामाजिक या व्यक्तिगत-पत्र लेखन में ध्यातव्य बिन्दु-इस तरह के पत्रलेखन में निम्न औपचारिक नियमों का निर्वाह करना चाहिए

  1. पत्र के ऊपर दाहिनी ओर पत्र-प्रेषक का पता और दिनांक लिखा जाना चाहिए।
  2. पत्रं जिस व्यक्ति को लिखा गया हो, उसके लिए शिष्टाचारपूर्वक उचित अभिवादन या सम्बोधन लिखना चाहिए।
  3. अपने से बड़े या पूज्य जनों के लिए ‘आदरणीय’, ‘श्रद्धेय’ या ‘परम पूजनीय’ आदि का व्यवहार करना चाहिए।
  4. व्यक्तिगत पत्र में विषयवस्तु से पूर्व जहाँ सम्बोधन एवं अभिवादन का पूरा ध्यान रखना पड़ता है, वहीं अन्त में अभिनिवेदन का समावेश व्यक्तिगत सम्बन्ध या सामाजिक सम्बन्ध के आधार पर करना चाहिए।
  5. विषयवस्तु या वक्तव्य का लेखन क्रमबद्ध, सुस्पष्ट एवं स्वाभाविक भावाभिव्यक्ति के अनुरूप होना चाहिए।

व्यावसायिक पत्रों के लेखन में ध्यातव्य बातें-वाणिज्य या व्यापार के क्षेत्र में पत्र-लेखन के कौशल का विशेष महत्त्व माना जाता है। पत्र-लेखन के क्षेत्र में सर्वाधिक मौलिक प्रयोग इसी क्षेत्र में होते हैं। व्यावसायिक-पत्र पूर्णतया औपचारिक होते हैं। इनमें भाषागत स्वच्छता, स्पष्टता, शुद्धता एवं सरलता का पूरा ध्यान रखा जाता है। वैसे भी व्यावसायिक पत्रों का कलेवर आकर्षक होता है। व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के अपने सुन्दर लेटर पैड होते हैं। ऐसे पत्रों में प्रभावान्विति को इनका विशेष गुण माना जाता है और इसी से व्यापार की सफलता भी निर्भर करती है। इसमें स्वार्थपरता की अपेक्षा परस्पर सहयोग एवं सद्भावना की झलक रहती है। व्यापारिक पत्र-लेखन में निम्नलिखित उपभाग होते हैं

  1. शीर्षक-प्रेषक का नाम, पता या प्रतिष्ठान का लैटर हैड, तिथि, दूरभाष आदि प्रायः मुद्रित होते हैं।
  2. प्रेषिति या प्रापक संस्था या व्यापारी का नाम व पता।।
  3. सम्बोधन-अभिवादन।
  4. विषयवस्तु का बिन्दुवार उल्लेख।
  5. अधोलेख–समाहार-सूचक सम्बोधन।
  6. प्रेषक के हस्ताक्षर एवं कोष्ठक में पूर्ण नाम।
  7. पृष्ठांकन आदि जो अपेक्षित हो।

साहित्यिक श्रेणी के पत्र-इस तरह के पत्रों का लम्बा इतिहास है। भारतेन्दु युग तथा उससे पूर्व भी पत्र लिखने की परम्परा रही, किन्तु इस विद्या के साहित्य का प्रकाशन नहीं हो सका। द्विवेदी युग में स्वामी दयानन्द के पत्रों का प्रकाशन हुआ था, इन पत्रों का सम्पादन महात्मा मुंशीराम ने किया था। इसी परम्परा में श्रीभगवद्दत्त शर्मा ने स्वामी दयानन्द सरस्वती के पत्रों का दूसरा संकलन प्रकाशित किया। रामकृष्ण आश्रम नागपुर द्वारा स्वामी विवेकानन्द के पत्रों का प्रकाशन किया गया। पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी ने ‘पद्मसिंह शर्मा के पत्र’ शीर्षक से साहित्यकार पदमसिंह शर्मा के पत्रों का प्रकाशन किया। ये पत्र भाषा-परिष्कार एवं सामयिक साहित्यिक चेतना से संवलित दिखाई देते हैं। किशोरीदास वाजपेयी ने अनेक साहित्यकारों के पत्रों को संकलित कर ‘साहित्यकारों के पत्र’ शीर्षक से प्रकाशित कराया।

आधुनिक युग में पत्र-साहित्य प्रचुर मात्रा में प्रकाशित हुआ है। इस साहित्य का वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है

  • व्यक्तिगत पत्रों के स्वतन्त्र संकलन।
  • विविध विषयक ग्रन्थों के परिशिष्ट आदि के अन्तर्गत संकलित पुत्र।।
  • विविध पत्र-पत्रिकाओं व स्मारिकाओं में प्रकाशित पत्र।

इस युग में भर्दन्त आनन्द कोसल्यायन द्वारा ‘भिक्षु के पत्र’, सत्यभक्त स्वामी द्वारा ‘अनमोल पत्र’, डॉ. धीरेन्द्र वर्मा द्वारा ‘यूरोप के पत्र’, बृजमोहन लाल वर्मा द्वारा ‘लन्दन के पत्र’, अमृतराय ने प्रेमचन्द के पत्रों का संकलन ‘चिट्ठी-पत्री’ शीर्षक से हुआ है। अज्ञेय, बच्चन, यशपाल, कृष्णचन्दर, धर्मवीर भारती आदि अनेक साहित्यकारों ने पत्र-विद्या साहित्य का संवर्द्धन किया है। वैसे पत्र-विधा साहित्य अभी पूर्ण विकसित नहीं हो पाया है।

सारांश रूप में पत्रों का आदान-प्रदान व्यक्ति की सामाजिक चेतना का परिष्कार करता है। पत्र-लेखन कलात्मक अभिव्यक्ति मानी जाती है तथा इससे मानवीय गुणों का विकास होता है।

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