RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 7 द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद का विश्व

Rajasthan Board RBSE Class 11 History Chapter 7 द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद का विश्व

RBSE Class 11 History Chapter 7 पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 History Chapter 7 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रथम विश्व युद्ध के फलस्वरूप विश्व शांति के लिए कौन सी अंतर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना हुई?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध के फलस्वरूप विश्व शांति के लिए 1920 ई. में राष्ट्र संघ की स्थापना हुई।

प्रश्न 2.
शीत युद्ध कौन-कौन सी दो महाशक्तियों के मध्य हुआ?
उत्तर:
शीत युद्ध विश्व की दो महाशक्तियों अमेरिका व सोवियत रूस के मध्य हुआ।

प्रश्न 3.
अमेरिका के लेखक-पत्रकार वाल्टर लिपमैन ने कौन सी पुस्तक लिखी?
उत्तर:
अमेरिका के लेखक-पत्रकार वाल्टर लिपमैन ने ‘कोल्ड वार’ पुस्तक की रचना की।

प्रश्न 4.
फुल्टन में किसने कहा कि दुनिया में स्वतंत्रता की लौ जलाए रखने और ईसाई सभ्यता की रक्षा करने के लिए ब्रिटिश-अमेरिकी सहयोग की तीव्र आवश्यकता है?
उत्तर:
फुल्टन में ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा कि दुनिया में स्वतंत्रता की लौ जलाए रखने और ईसाई सभ्यता की रक्षा करने के लिए ब्रिटिश-अमेरिकी सहयोग की तीव्र आवश्यकता है।

प्रश्न 5.
रियो दी जेनेरियो में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित पृथ्वी सम्मेलन किस ईस्वी वर्ष में हुआ?
उत्तर:
रियो दी जेनेरियो में पर्यावरण संरक्षण से सम्बधित पृथ्वी सम्मेलन 1992 ई. में हुआ।

प्रश्न 6.
किसने कहा कि किसी आतंकवादी को उसके तात्कालिक लक्ष्य के संदर्भ में ठीक तरह से परिभाषित किया जा सकता है?
उत्तर:
बर्गर महोदय ने कहा कि किसी आतंकवादी को उसके तात्कालिक लक्ष्य के संदर्भ में ठीक तरह से परिभाषित किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
गुट निरपेक्ष आंदोलन के सत्रहवें शिखर सम्मेलन का आयोजन स्थल कौन सा देश है?
उत्तर:
गुट निरपेक्ष आंदोलन के सत्रहवें शिखर सम्मेलन का आयोजन स्थल वेनेजुएला है।

प्रश्न 8.
‘ब्रिक्स’ राष्ट्र समूह के पाँच सदस्य राष्ट्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
ब्रिक्स राष्ट्र समूह के पाँच सदस्य राष्ट्र ब्राजील, रूस, चीन, भारत तथा दक्षिण अफ्रीका हैं।

प्रश्न 9.
बारहवें आसियान भारत शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ को अब कौन सी पॉलिसी बनाने का आग्रह किया है?
उत्तर:
बारहवें आसियान भारत शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ को ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ बनाने का आग्रह किया है।

प्रश्न 10.
सार्क का आठवाँ सदस्य कौन सा राष्ट्र बना?
उत्तर:
सार्क का आठवाँ सदस्य राष्ट्र अफगानिस्तान बना।

RBSE Class 11 History Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शीत युद्ध से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब दो देश परस्पर अविश्वासे, संदेह, दुष्प्रचार व षडयंत्र की राजनीति के शिकार होकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बार-बार यह चेतावनी दें कि यदि उनके हितों की रक्षा नहीं हुई तो युद्ध हो जाएगा। यह स्थिति शीत युद्ध कहलाती है। शीत युद्ध को परिभाषित करते हुए लुई हाले ने लिखा है-”शीत युद्ध परमाणु युग में इस प्रकार की तनावयुक्त स्थिति है जो शस्त्रास्त्र युद्ध से पूर्णतया भिन्न लेकिन उससे अधिक भयानक है।” इस प्रकार शीत युद्ध दो विचारधाराओं का वैचारिक टकराव है। अमेरिका व रूस इन दो महाशक्तियों के मध्य लम्बे समय तक शीत युद्ध चला, जिसका प्रमुख कारण विश्व की एकमात्र महाशक्ति बनना था।

प्रश्न 2.
ऋग्वेद के दसवें मण्डल का वह मंत्र लिखिए, जिसमें कहा गया है कि अकेला खाने वाला पापी होता है।
उत्तर:
ऋग्वेद के दसवें मण्डल में कहा गया है –

मोघमन्नं विन्दते अप्रचेताः
सत्यं ब्रवीमि वध इस तस्य।
नार्यमणं पुष्यति नो सखायं
केवलाधो भवति केवलादी।।

अर्थात् अकेला खाने वाला व अन्यों को भोजनादि से वंचित रखने वाला वास्तव में पाप ही खाता है। ऐसा स्वार्थी व्यक्ति न तो स्वयं को पोषित करता है और न ही अपने मित्रों को।

प्रश्न 3.
किन्हीं दस राष्ट्रों के नाम लिखिए जिनका निर्माण सोवियत संघ के विखण्डन के फलस्वरूप हुआ।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के फलस्वरूप जिन राष्ट्रों का निर्माण हुआ वे निम्नलिखित हैं –

  1. आर्मीनिया
  2. अजरबैजान
  3. बेलारूस
  4. एस्टोनिया
  5. जार्जिया
  6. कजाखिस्तान
  7. किर्गिजस्तान
  8. लातविया
  9. लिथुवानिया
  10. मोल्डोवा
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प्रश्न 4.
गुट निरपेक्ष आन्दोलन का दसवाँ, ग्यारहवाँ, तेरहवाँ, चौदहवाँ और सोलहवाँ शिखर सम्मेलन कब वे कहाँ हुआ ?
उत्तर:
गुट निरपेक्ष आन्दोलन का दसवाँ शिखर सम्मेलन 1992 ई. में इण्डोनेशिया में, ग्यारहवाँ शिखर सम्मेलन 1995 ई. में कोलम्बिया में, तेरहवाँ शिखर सम्मेलन 2003 ई. में मलेशिया में, चौदहवाँ शिखर सम्मेलन 2006 ई. में क्यूबा में और सोलहवाँ शिखर सम्मेलन 2012 ई. में ईरान में हुआ।

प्रश्न 5.
भारत एक गुटनिरपेक्ष राष्ट्र है फिर भी सोवियत रूस के विखण्डन तक इसका झुकाव सोवियत संघ की तरफ रहा, बताइए क्यों ?
उत्तर:
भारत के सोवियत संघ के प्रति झुकाव के निम्नलिखित कारण थे –

  1. 1971 ई. में जब पाकिस्तान, भारत को युद्ध की धमकी दे रहा था तथा चीन उसके पक्ष में लड़ने को तैयार था और अमेरिका ने भारत-पाक संघर्ष में निष्क्रिय रहने का निर्णय लिया तब भारत यह झुकाव सम्भव हुआ। जिसके कारण भी सोवियत संघ के साथ मैत्री व सहयोग अवश्यम्भावी हो गया।
  2. भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू का झुकाव शुरू से साम्यवाद की ओर रहा था।
  3. अमेरिका द्वारा कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का समर्थन करना तथा बड़े पैमाने पर सैनिक सहायता करना भी भारत के सोवियत संघ की तरफ झुकाव का कारण बना।

प्रश्न 6.
पूँजीवाद वे साम्यवाद में मूलभूत अन्तर क्या है ? तर्क सहित बताइए।
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था अधिक से अधिक लाभ अर्जित करने के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन तथा उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व पर आधारित होती है। इसमें निजी लाभ के उद्देश्य से प्रतिस्पर्धा के आधार पर साधनों का प्रयोग किया जाता है। दूसरी ओर साम्यवाद वह आर्थिक प्रणाली है जिसमें उत्पादन व वितरण के साधनों पर समाज (सरकार के माध्यम से) का आधिपत्य होता है और सबके लिए समान अवसर उपलब्ध करवाए जाते हैं।

प्रश्न 7.
सीटीबीटी से आप क्या समझते हैं ? सीटीबीटी का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
सी.टी.बी.टी. व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि है। सीटीबीटी का पूरा नाम कांप्रिहेन्सिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी (Comprehensive Nuclear test ban treaty) है। यह सन्धि 24 सितम्बर, 1996 ई. को अस्तित्व में आयी। उस समय इस पर 71 देशों ने हस्ताक्षर किये थे। बाद में हस्ताक्षर करने वाले देशों की संख्या 178 हो गई। भारत और पाकिस्तान ने अब तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। इसके तहत परमाणु परीक्षणों को प्रतिबन्धित करने के लिए यह भी प्रावधान है कि सदस्य देश अपने नियन्त्रण में आने वाले क्षेत्रों में भी परमाणु परीक्षण को नियन्त्रित करेंगे।

प्रश्न 8.
एजेण्डा 21 के बारे में आप क्या जानते हैं ? सन्दर्भ सहित बताइए।
उत्तर:
पर्यावरण संरक्षण से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर गम्भीरता से विचार विमर्श करने के लिए जून 1992 में ब्राजील की राजधानी रियो दी जेनेरियो में ‘पर्यावरण व विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’ हुआ जिसे पृथ्वी सम्मेलन भी कहा जाता है। इसमें 150 से अधिक राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
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इस सम्मेलन में आठ सौ पृष्ठ का एक ऐतिहासिक दस्तावेज ‘एजेण्डा 21′ तैयार किया गया। ‘एजेण्डा 21’ में पर्यावरण को हानि पहुँचाने वाले उन अनेक बिन्दुओं को गहराई से रेखांकित किया गया जिन पर विश्व के देशों का ध्यान. जाना चाहिए। इस दस्तावेज में विकासशील देशों से जैव विविधता की रक्षा की अपेक्षा भी की गई।

प्रश्न 9.
देशों के वैदेशिक सम्बन्धों के सन्दर्भ में मोदी प्रयोग का मूल तत्व क्या है?
उत्तर:
देशों के वैदेशिक सम्बन्धों के सन्दर्भ में मोदी प्रयोग का मूल तत्व ‘विकास’ है। मई 2014 में भारत के प्रधानमन्त्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट किया है कि विश्व के देशों में हालाँकि किसी भी मुद्दे को लेकर मतभेद सामने आ सकते हैं, परन्तु विकास के मुद्दे पर उनमें सहमति निश्चित रूप से दिखाई देगी। अत: विश्व के सभी देशों को विकास के मुद्दे पर एक हो जाना चाहिए।
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प्रश्न 10.
आतंकवाद के आधुनिक व संस्थागत रूप से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आतंकवाद का आधुनिक रूप-आधुनिक विश्व में आतंकवादी कुछ विशिष्ट लोगों के स्थान पर मासूम बच्चों, महिलाओं आदि को अपना निशाना बनाते हैं। यह आतंकवाद का आधुनिक तथा सबसे घृणास्पद स्वरूप है इसके प्रमुख उदाहरण-1999 ई. में काठमांडू से भारतीय विमान अपहरण, 2001 ई. में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हमला, 28 नवम्बर, 2008 ई. में हुए मुम्बई बम विस्फोट आदि हैं।
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आतंकवाद का संस्थागत स्वरूप:
मजहबी कट्टरता की भावना में बहकर दिग्भ्रमित हो चुके युवा आजकल स्वयं को ‘मानव बम’ बनाने में लगे हैं। विश्व में अशान्ति और अराजकता उत्पन्न करने के उद्देश्य से काम कर रहे आई. एस अलकायदा आदि आतंकी संगठन मानव बमों की फसलें आसानी से उगा रहे हैं। यह आतंकवाद का संस्थागत स्वरूप है।

RBSE Class 11 History Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विभिन्न चरणों का वर्णन करते हुए शीत युद्ध की प्रमुख घटनाएँ बताइए।
उत्तर:
शीत युद्ध की स्थिति विश्व मंच पर उभर रही दो प्रतिरोधी विचारधाराओं का परिणाम थी। एक विचारधारा पूँजीवादी विचारधारा थी जिसका नेतृत्व अमेरिका कर रहा था एवं दूसरी साम्यवादी विचारधारा थी, जिसका नेतृत्व रूस कर रहा था। दोनों महाशक्तियों के मध्य इस शीत युद्ध का दौर 1917 ई. से प्रारम्भ होकर सोवियत संघ के विखण्डन (1990 ई.) तक चला। इसके प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं –

1. प्रथम चरण (1917 से 1945 ई.):

  • 1917 ई. में हुई बोल्शेविक क्रान्ति से रूस के साम्यवादी शासन का स्वरूप परिलक्षित हुआ।
  • तत्पश्चात सोवियत सेनाओं द्वारा पूर्वी यूरोपीय देशों पर अपना नियन्त्रण स्थापित करने, जर्मनी द्वारा इटली में आत्मसमर्पण के समझौते की शर्तों पर रूस द्वारा अलग राय रखने, जापान बमबारी पर रूस द्वारा विरोध प्रकट करने पर शीत युद्ध की भूमिका बनी।

2. द्वितीय चरण (1946 से 1953 ई.):

  • 1948 ई. में सोवियत रूस द्वारा पश्चिमी जर्मनी को पूर्वी जर्मनी से अलग कर दिया गया।
  • 1949 ई. में अमेरिका के नेतृत्व में बने संगठन नाटो के माध्यम से सोवियत संघ को नाटो के किसी भी सदस्य राष्ट्र पर आक्रमण न करने के लिए सावधान किया गया।
  • 1949 ई. में साम्यवादी चीन की संयुक्त राष्ट्र संघ में सदस्यता को लेकर अमेरिका व रूस में विवाद बढ़ा।
  • यह कटुता अमेरिका द्वारा दक्षिण कोरिया का साथ देने पर अधिक बढ़ गई।

3. तृतीय चरण (1953 से 1958 ई.):

  • 1953 में रूस ने आण्विक परीक्षण किया।
  • अमेरिका के आइजनहावर ने रूस के प्रसार को रोकने के लिए सीटो (दक्षिण पूर्वी एशिया संधि संगठन) बनाया।
  • प्रत्युत्तर में सोवियत संघ तथा उसके मध्य व पूर्वी यूरोप के आठ साथी राष्ट्रों ने 1955 ई. में वारसा पैक्ट पर हस्ताक्षर किये।
  • अमेरिकी सीनेट ने साम्यवादी रूस के आक्रमण के विरोध में राष्ट्रपति को विशेषाधिकार का प्रस्ताव पारित किया।
  • रूस ने 1956 में मिस्र पर हुए आक्रमण की आलोचना की जिससे दोनों महाशक्तियों के मध्य तनाव बढ़ा।

4. चतुर्थ चरण (1959 से 1962 ई.):

  • 1 मई 1960 में अमेरिका को जासूसी विमान सोवियत रूप की सीमा में जासूसी करते हुए पकड़ा गया।
  • अमेरिका ने इस गुप्तचरी को सही बताया। इस घटना से पेरिस शिखर सम्मेलन की विफलता निश्चित हो गई।
  • 1961 ई. का बर्लिन दीवार संकट तथा क्यूबा की नाकेबन्दी शीतयुद्ध की प्रमुख घटनाएँ रहीं।

5. पंचम चरण (1963 से 1979 ई.):

  • 1963 ई. में दोनों महाशक्तियों ने हॉटलाइन समझौता किया जिसमें यह तय हुआ कि युद्ध व संकट की स्थिति में दोनों दूरभाष व रेडियो से सम्पर्क में रहेंगे।
  • 1968 ई. में परमाणु अप्रसार संधि पर अमेरिका व रूस ने हस्ताक्षर किये।
  • 1971 ई. में अमेरिका, रूस, ब्रिटेन व फ्रांस के मध्य जर्मनी की समस्या को लेकर समझौता हुआ।
  • 1971 ई. के भारत-पाक युद्ध में अमेरिका ने पाकिस्तान तथा सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया।
  • 1973, 1974, व 1977 ई. में तीन यूरोपीय सुरक्षा सम्मेलन हुए जिनमें पारस्परिक सहयोग व शान्ति की दिशा में प्रयास करने का विश्वास दिलाया गया।

6. षष्ठम व अंतिम चरण (1980 से 1990 ई.):

  • 1983 ई. में सोवियत संघ ने दक्षिण कोरिया का विमान गिराया तो अमेरिका ने तीव्र प्रतिक्रिया की।
  • 1986 ई. में सोवियत संघ ने प्रतिबन्ध को तोड़ते हुए परमाणु परीक्षण किया। अमेरिका ने रूस को चेतावनी दी।
  • 1989 ई. में जर्मनी का पुन: एकीकरण हो गया।

इस प्रकार निरन्तर चलते शीत युद्ध से सोवियत संघ आर्थिक रूप से कमजोर हो गया तथा अमेरिका से संघर्ष करने की क्षमता खो बैठा। अत: राष्ट्रपति मिखाइल गोर्वाच्योव के काल में सन् 1990 में सोवियत संघ के विखण्डन के साथ ही शीत युद्ध समाप्त हो गया।
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प्रश्न 2.
वे कौन सी परिस्थितियाँ थीं, जिनके कारण गुट निरपेक्ष आन्दोलन प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात अमेरिका व रूस महाशक्तियों के रूप में उभरे। तत्कालीन स्वतन्त्र राष्ट्र अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए किसी महाशक्ति के शरणागत नहीं होना चाहते थे। अत: जिन देशों को किसी भी गुट में सम्मिलित नहीं होना था, वे गुट निरपेक्ष राष्ट्र कहलाए। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन 1961 ई. में अस्तित्व में आया जो अब तक काम कर रहा है। गुट निरपेक्ष आन्दोलन को जन्म देने वाली परिस्थितियाँ निम्नलिखित थीं –

1. शीत युद्ध का प्रारम्भ:
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् अमेरिका व रूस के मध्य चली प्रतिस्पर्धा ने तीसरे विश्व युद्ध की आशंका को जन्म दिया। इस कारण इस आन्दोलन से सम्बद्ध देशों को उस समय अधिक सक्रिय होना पड़ा।

2. महाशक्तियों का भय:
दोनों महाशक्तियों ने एक-दूसरे के विरुद्ध वास्तविक शस्त्रास्त्र काम में नहीं लिए लेकिन इनके द्वारा प्रयुक्त किए गए कूटनीतिक मुँहगोलों और कागज के बमों ने नव स्वतन्त्र राष्ट्रों को सोचने पर विवश कर दिया कि यदि वे किसी एक महाशक्ति के प्रभाव में आ गए तो दूसरी महाशक्ति उनका विनाश कर देगी।

3. सम्प्रभुता की रक्षा:
किसी भी राष्ट्र की सम्प्रभुता प्रमाणित तभी होती है, जब वह इतना स्वतन्त्र हो कि अपने निर्णय स्वयं ले सके। यदि कोई राष्ट्र किसी गुट विशेष में सम्मिलित होता है तो निश्चित रूप से उसकी सम्प्रभुता को न्यूनाधिक आघात पहुँचता ही है। अत: सम्प्रभुता की रक्षा के लिए निरपेक्ष रहना नव स्वतन्त्र राष्ट्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प था।

4. राजनैतिक व सांस्कृतिक परम्पराओं की रक्षा:
प्रत्येक राष्ट्र की अपनी श्रेष्ठ सांस्कृतिक, राजनैतिक परम्पराएँ। होती हैं। वह उन परम्पराओं को अक्षुण्ण बनाए रखने का प्रयास करता है ताकि उसकी विशिष्ट पहचान बनी रहे। ऐसा तभी सम्भव है जब वह राष्ट्र निरपेक्ष हो अर्थात् किसी महाशक्ति के प्रभाव में न हो।

5. संसाधनों की रक्षा:
यदि किसी विशेष परिस्थिति में किसी महाशक्ति से किसी राष्ट्र को कोई सैनिक या अन्य प्रकार की सहायता मिलती है तो वह महाशक्ति उसकी इतनी कीमत वसूल करती है कि वह राष्ट्र अपनी सम्पन्नता खो बैठता है। अत: अपने अमूल्य संसाधनों को बचाए रखने के लिए नये राष्ट्रों ने गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।

6. आर्थिक निर्भरता:
राष्ट्रों के लिए इस सम्भावना को सदैव जीवित रखना आवश्यक था कि वे जहाँ से भी आर्थिक सहयोग माँगें, मिल जाए। कोई भी गुट निरपेक्ष राष्ट्र इस आधार पर उसे सहायता देने में सक्षम किसी राष्ट्र का तिरस्कार झेलना नहीं चाहता था कि वह उसके विरोधी गुट का सदस्य है।

7. सुविधापूर्ण स्थिति:
गुट से निरपेक्ष रहने वाले राष्ट्रों के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् की विश्व राजनीति में गुटनिरपेक्षता अत्यन्त सुविधाजनक स्थिति बन गई थी कि वे अलग संगठन बनाकर अपना उन्नयन करें। इस प्रकार उपर्युक्त कारणों से गुट निरपेक्ष आन्दोलन का जन्म हुआ।
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प्रश्न 3.
इतिहास के अन्त का सिद्धान्त किसने दिया ? तर्क सहित बताइए कि यह सिद्धान्त अप्रासंगिक सिद्ध क्यों हुआ?
उत्तर:
द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् शीत युद्ध की स्थिति से गुजरने का परिणाम सोवियत संघ के विघटन के रूप में सामने आया। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात विश्व एक ध्रुवीय हो गया जिसका नेतृत्व अमेरिका के हाथों में सिमट कर रह गया। सोवियत संघ के पतन के पश्चात समाजशास्त्रियों ने भी यह निष्कर्ष निकाल लिया कि विश्व ने अन्तिम रूप से अब पश्चिम के उदारवादी लोकतन्त्र को स्वीकार कर लिया है। अमेरिका के राजनेता अर्थशास्त्री फ्रांसिस फुकुयामा ने तो अत्यधिक आत्म विश्वास में यह घोषणा तक कर दी कि अब ‘इतिहास का अंत हो गया है, परन्तु यह सिद्धान्त अप्रासंगिक सिद्ध हुआ क्योंकि –

  1. इतिहास का न तो कभी अन्त होता है और न ही उसमें से वह श्रेष्ठ तत्व नष्ट हो सकता है जिससे मानवता का कल्याण होता है।
  2. विश्व ने इतिहास के अन्त की घोषणा को कोई मान्यता नहीं दी।
  3. चिन्तकों के बड़े वर्ग का कहना है कि दुनिया में जो श्रेष्ठ है उसका आना तो अभी शेष है।
  4. दार्शनिकों ने फुकुयामा के कहने पर इतिहास के अन्त की तो कोई घोषणा नहीं की अपितु उसकी घोषणा का ही अन्त कर दिया।
  5. फुकुयामा ने इस तथ्य को अनदेखा किया कि पतन सोवियत संघ का हुआ है, साम्यवाद का नहीं।
  6. साम्यवादी दर्शन आज भी लोगों को आकर्षित करता है।
  7. जिस लोकतंत्र की बात पश्चिमी देश कर रहे हैं उसे निरन्तर परमाणु आयुधों के भण्डारण से पोषित किया जा रहा है। ऐसे आत्मघाती उदारवाद की आड़ में मानवता की रक्षा नहीं हो सकती है।
  8. भूमण्डलीकरण के कारण विश्व का एक ध्रुवीय चरित्र अधिक दिनों तक स्वीकार नहीं किया जाएगा।
  9. अब राष्ट्रों के स्थान पर सभ्यताओं के एकीकरण की भूमिका लिखी जाएगी।
  10. स्वार्थ पूर्ति के आधार पर बने गठबन्धन बिखरने में अधिक समय नहीं लेते। इसलिए आशा की जानी चाहिए कि एक ध्रुवीय विश्व की स्थिति अधिक समय तक नहीं बनी रहेगी।

प्रश्न 4.
रियो दी जेनेरियो सम्मेलन 1992 में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित किन विषयों पर विचार-विमर्श हुआ?
उत्तर:
जून 1992 में ब्राजील की राजधानी ‘रियो दी जेनेरियो’ में ‘पर्यावरण व विकास’ पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ, जिसे पृथ्वी सम्मेलन भी कहा जाता है। इसमें 150 से अधिक राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में पर्यावरण संरक्षण से जुड़े निम्नलिखित महत्वपूर्ण विषयों पर गम्भीरता से विचार विमर्श हुआ –

1. जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी मुद्दा:
इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर सन्धि पर हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्रों ने स्वीकार किया कि वे 2000 ई. तक खतरनाक गैसों के उत्सर्जन को पुनः उस स्तर पर लाने का प्रयास करेंगे जो 1990 ई. में था एवं इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विश्व बैंक की ग्लोबल एनवायरमेण्ट फेसिलिटी के अन्तर्गत वित्तीय सहायता ली जायेगी।

2. जैव विविधता की रक्षा:
इस सम्मेलन में सम्मिलित होने वाले राष्ट्रों से यह भी आशा की गयी कि वे विश्व बैंक की ग्लोबल एनवायरमेण्ट फेसिलिटी के अन्तर्गत वित्तीय सहायता प्राप्त करके जैव विविधता की रक्षा भी करें।

3. एजेण्डा 21:
इस सम्मेलन में आठ सौ पृष्ठों का एक ऐतिहासिक दस्तावेज ‘एजेण्डा 21′ तैयार किया गया। इस दस्तावेज में पर्यावरण को हानि पहुँचाने वाले उन अनेक बिन्दुओं को गहराई से रेखांकित किया गया जिन पर विश्व के देशों का ध्यान जाना चाहिए।

4. एजेण्डा 21 लागू करने के लिए विकासशील देशों को आर्थिक अनुदान:
पर्यावरण संरक्षण के प्रश्न पर हुए विमर्श में विकासशील देशों ने प्रमाणों द्वारा सिद्ध कर दिया कि पर्यावरण को हानि पहुँचाने के लिए विकसित देश अधिक उत्तरदायी हैं। अतः विकसित देशों को एजेण्डा 21 लागू करने के लिए विकासशील देशों को आर्थिक अनुदान देना निश्चित हुआ।

5. पर्यावरण प्रदूषण रोकने की पहल न करने पर विकसित देशों की आलोचना:
सम्मेलन में विकसित देशों के प्रतिनिधियों ने एक ओर बढ़ते पर्यावरणीय प्रदूषण के प्रति गहरी चिन्ता प्रकट की परन्तु पर्यावरण प्रदूषण रोकने से सम्बन्धित सन्धियों पर हस्ताक्षर करते समय कोई रुचि नहीं दिखाई। इस स्थिति में विकासशील देशों के समूह 77 के देशों ने विकसित देशों की आलोचना करते हुए कहा कि विकसित देश पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए अपना उत्तरदायित्व स्वीकार करने से बच रहे हैं।

प्रश्न 5.
आतंकवाद को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से मुख्य रूप से कौन-कौन से कन्वेन्शन्स प्रस्तुत किए गए? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
आतंकवाद हिंसा पर आधारित वह परिघटना है जिसके अन्तर्गत कुछ लोग किसी भी राष्ट्र की वैध सत्ता के विरुद्ध उसे अस्थिर करने या उस पर अधिकार करने की कोशिश करते हैं।

विश्व की सर्वोच्च संस्था जहाँ आतंकवाद से पीड़ित राष्ट्र उससे मुक्ति पाने हेतु सहयोग के लिए आवेदन कर सकते हैं। वह संयुक्त राष्ट्र संघ है। विश्व को आतंकवाद की समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने समय-समय पर अपनी विभिन्न एजेन्सियों के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय कानून के दस्तावेजों और समझौतों की शर्तों को तैयार करवाया है। इस प्रकार के कुछ दस्तावेज और समझौते निम्नलिखित हैं –

  1. विमानों से सम्बन्धित अपराधों पर रोकथाम के लिए 1963 ई. में टोक्यो में एक कन्वेन्शन प्रस्तुत किया गया।
  2. 1970 ई. में हेग में प्रस्तुत कन्वेंशन में विमानों पर गैर-विधिक कब्जे को रोकने हेतु प्रावधान थे।
  3. 1973 ई. के न्यूयार्क कन्वेंशन में अपराधियों को दण्डित करने का प्रावधान था।
  4. संयुक्त राष्ट्र की महासभा में 1979 ई. में लोगों को बन्धक बनाने के विरुद्ध एक कन्वेंशन प्रस्तुत किया गया, जिसमें प्रावधान था कि पक्षकार राज्य सम्बन्धित राज्य को अपराधियों का प्रत्यर्पण करेगा।
  5. 1988 ई. में रोम में समुद्री. नौकायन की सुरक्षा से सम्बन्धित एक कन्वेंशन प्रस्तुत किया गया।
  6. 1993 ई. में महासभा के 48वें अधिवेशन में इस आशय का प्रस्ताव भी पारित हुआ कि आतंकवाद मानवाधिकारों की सिद्धि के मार्ग में एक बाधा है।
  7. 1994 ई. में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पनप रहे आतंकवाद की समाप्ति के उपायों पर महासभा द्वारा एक घोषणा की गयी।
  8. संयुक्त राष्ट्र संघ के कर्मचारियों पर हमलों के विरुद्ध एक कन्वेंशन संघ की महासभा में 1994 ई. में रखा गया।
  9. आतंकवाद के पक्ष में वित्त पोषण करने वाले अपराधियों को पक्षकार राज्य सम्बन्धित राज्यों को प्रत्यर्पित करेगा इस आशय का एक कन्वेंशन 1999 ई. में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में रखा गया।
  10. सितम्बर 2001 में अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले के विरोध में संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने एक निन्दा प्रस्ताव पारित किया।

इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद को जड़ से मिटाने का प्रयास किया है। परन्तु इसकी पूर्ण समाप्ति के लिए विश्व समुदाय को एकजुट होना होगा।
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प्रश्न 6.
सार्क के उद्देश्यों और सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सार्क की स्थापना 1985 ई. में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हुई। इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव, इन सात देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने पारस्परिक सहयोग व उन्नयन के लिए साउथ एशियन एसोसियेशन फार रीजनल कोऑपरेशन’ नामक संघ बनाया। सार्क का सचिवालय नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में स्थित है। अफगानिस्तान इस संगठन का आठवाँ सदस्य देश है। सार्क के नवम्बर 2014 तक अट्ठारह शिखर सम्मेलन हो चुके हैं। उन्नीसवें सम्मेलन का आयोजन 2016 ई. में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में होगा।
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सार्क संगठन के उद्देश्य:

  1. दक्षिणी एशिया क्षेत्र के लोगों का कल्याण करना व उनके जीवन स्तर का उन्नयन करना।
  2. दक्षिण एशियाई देशों में सामूहिक आत्मनिर्भरता की भावना का विकास करना।
  3. दक्षिण एशिया क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक विकास में तेजी लाना।
  4. पारस्परिक विश्वास और समझ के साथ दक्षिण एशिया के देशों की समस्याओं का मूल्यांकन करना।
  5. अर्थ, समाज, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में संगठन के देशों द्वारा एक-दूसरे का सहयोग करना।
  6. दक्षिणी एशियाई देशों के अतिरिक्त जो अन्य विकासशील देश हैं, उनके साथ सहयोग बढ़ाना।
  7. समान हितों के प्रश्न पर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर एक-दूसरे का दृढ़ता से साथ देना।

सार्क संगठन के सिद्धान्त:

  1. सहयोग, समानता, क्षेत्रीय अखण्डता व राजनैतिक स्वतन्त्रता के आधार पर पारस्परिक हितों का आदर करना और एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
  2. सहयोग का यह रूप न केवल द्विपक्षीय व बहुपक्षीय सहयोग का स्थान लेगा अपितु उसका पूरक भी होगा।
  3. सहयोग का यह रूप किसी भी स्थिति में द्विपक्षीय व बहुपक्षीय उत्तरदायित्वों का प्रतिकार करने वाला नहीं होगा।

प्रश्न 7.
क्या आप मानते हैं कि भारत विश्वशान्ति का अग्रदूत है ? कारण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति वाले देश भारत की अत्यन्त गौरवशाली सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक परम्परा रही है। प्राचीनकाल से ही अन्य देशों के साथ भारत के सम्बन्ध शान्ति व मैत्री के सिद्धान्तों पर आधारित रहे हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों वेदों और उपनिषदों में भी विश्व कल्याण व शान्ति की कामना की गई है, जिसकी सुन्दर अभिव्यक्ति अथर्ववेद के इस श्लोक में होती है –

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा काश्चिद दुःख भाग भवेत्।।

विश्व शान्ति समस्त पृथ्वी पर अहिंसा स्थापित करने का एक विचार है। इसके अन्तर्गत देश स्वेच्छा से या शासन की एक प्रणाली के द्वारा सहयोग करते हैं ताकि राष्ट्रों के मध्य मतभेद की स्थिति उत्पन्न न हो तथा भावी युद्धों को रोका जा सके। भारत ने विश्व शान्ति की दिशा में निम्नलिखित रूप से अपना योगदान दिया है –

1. भारत ने प्रारम्भ से ही अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा स्थापित करने वाले संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ को अपना पूर्ण समर्थन प्रदान किया तथा संयुक्त राष्ट्र की घोषणा पर हस्ताक्षर कर इसका संस्थापक सदस्य बना।

2. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् जब अमेरिका व रूस महाशक्ति बनकर उभरे तो स्वतन्त्र भारत ने दोनों गुटों में से किसी का भी साथ न देकर गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।

3. प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने विश्व में शान्ति स्थापना करने के लिए पाँच सूत्रीय मंत्र दिए थे जिन्हें ‘पंचशील का सिद्धान्त’ भी कहा जाता है, ये इस प्रकार थे –

  • एक दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
  • एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही न करना।
  • एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
  • समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना।
  • शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।

भारत ने सर्वदा इन सिद्धान्तों का पालन किया है। अतः कहा जा सकता है कि भारत विश्व शान्ति का अग्रदूत’ है।

RBSE Class 11 History Chapter 7 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 History Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
शीत युद्ध शब्द का प्रयोग सबसे पहले किस लेखक ने किया?
(क) वाटर लिपमैन ने
(ख) लुई हॉले ने
(ग) फिशर ने
(घ) जार्ज ऑरवैल ने
उत्तर:
(घ) जार्ज ऑरवैल ने

प्रश्न 2.
रूस में बोल्शेविक क्रांति किस वर्ष हुई?
(क) 1912 ई.
(ख) 1917 ई.
(ग) 1920 ई.
(घ) 1914 ई.
उत्तर:
(ख) 1917 ई.

प्रश्न 3.
1949 ई. में अमेरिका के नेतृत्व में कौन सा सैन्य बल निर्मित हुआ?
(क) ब्रिक्स
(ख) नाटो
(ग) सीटो
(घ) सार्क
उत्तर:
(ख) नाटो

प्रश्न 4.
1968 ई. में परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देश थे –
(क) अमेरिका-रूस
(ख) ब्रिटेन-फ्रांस
(ग) भारत-पाक
(घ) इटली-जर्मनी
उत्तर:
(क) अमेरिका-रूस

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र संघ के कितने सदस्यों ने गुट निरपेक्षता को अंगीकृत किया है?
(क) एक तिहाई
(ख) एक चौथाई
(ग) दो तिहाई
(घ) आधे।
उत्तर:
(ग) दो तिहाई

प्रश्न 6.
‘द स्कोप ऑफ न्यूट्रैलिज्म’ के लेखक हैं –
(क) श्वार्जानबर्गर
(ख) लिपमैन
(ग) लुई हाले
(घ) फिशर
उत्तर:
(क) श्वार्जानबर्गर

प्रश्न 7.
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का कौन सा शिखर सम्मेलन भारत में हुआ है?
(क) तेरहवाँ
(ख) सातवाँ
(ग) दूसरा
(घ) ग्यारहवाँ
उत्तर:
(ख) सातवाँ

प्रश्न 8.
1997 ई. में विश्व पर्यावरण व ग्रीन हाउस सम्मेलन किस स्थान पर आयोजित हुआ?
(क) रूस में
(ख) आस्ट्रेलिया में
(ग) क्यूबा में
(घ) जापान में
उत्तर:
(घ) जापान में

प्रश्न 9.
भारत को आसियान के क्षेत्रीय फोरम का सदस्य कब बनाया गया?
(क) 1996 ई. में
(ख) 1997 ई. में
(ग) 1998 ई. में
(घ) 1999 ई. में
उत्तर:
(क) 1996 ई. में

प्रश्न 10.
ब्रिक्स समूह के आठवें सम्मेलन का आयोजन स्थल कहाँ है?
(क) जापान
(ख) भारत
(ग) इटली
(घ) श्रीलंका
उत्तर:
(ख) भारत

सुमेलन संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
मिलान कीजिए –
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उत्तरमाला:
1. (घ) 2. (ग) 3. (ख) 4. (क) 5. (च) 6. (ड़)।

प्रश्न 2.
मिलान कीजिए –
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उत्तरमाला:
1. (ग) 2. (क) 3. (ख) 4. (ड़) 5. (घ) 6. (ज) 7. (च) 8. (छ)।

RBSE Class 11 History Chapter 7 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शीत युद्ध शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने और क्यों किया?
उत्तर:
आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में देशों के मध्य कटुतापूर्ण संबधों के परिप्रेक्ष्य में ‘शीत युद्ध’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले ब्रिटिश लेखक जार्ज ऑरवैल ने किया।

प्रश्न 2.
शीत युद्ध की कोई एक परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
लुई हॉले के शब्दों में शीत युद्ध परमाणु युग में इस प्रकार की तनावयुक्त स्थिति है जो शस्त्रास्त्र युद्ध से पूर्णतया भिन्न लेकिन उससे अधिक भयानक है।”

प्रश्न 3.
1917 ई. में रूस में कौन सी ऐतिहासिक घटना घटित हुई?
उत्तर:
1917 ई. में रूस में बोल्शेविक क्रांति हुई जिसे परोक्ष रूप से शीत युद्ध का कारण माना जाता है।

प्रश्न 4.
1949 ई. में अमेरिका के नेतृत्व में किस सैन्य बल की स्थापना हुई?
उत्तर:
1949 ई. में अमेरिका के नेतृत्व में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन ‘नाटो’ की स्थापना हुई।

प्रश्न 5.
स्टालिन के पश्चात् रूस का नेतृत्व किस नेता के हाथ में आया?
उत्तर:
1953 ई. में स्टालिन की मृत्यु के पश्चात् रूस का नेतृत्व खुश्चेव के हाथ में आया।

प्रश्न 6.
दक्षिणी-पूर्वी एशिया संधि संगठन (सीटो) की स्थापना किसने और किस उद्देश्य से की?
उत्तर:
एशिया में रूसी प्रसार को रोकने के उद्देश्य से अमेरिका के नेता आइजनहावर ने 1954 ई. में दक्षिणी-पूर्वी , एशिया संधि संगठन (सीटो) की स्थापना की।

प्रश्न 7.
हॉटलाइन समझौता क्या था?
उत्तर:
1963 ई. में अमेरिका व रूस के मध्य हॉटलाइन समझौता हुआ जिसमें यह तय हुआ कि अन्तर्राष्ट्रीय संकट के समय दोनों देश रेडियो व दूरभाष के माध्यम से संपर्क में रहेंगे।

प्रश्न 8.
1968 की परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने वाले अग्रणी देश कौन थे?
उत्तर:
1968 की परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने वाले अग्रणी देश सोवियत संघ रूस व अमेरिकी थे।

प्रश्न 9.
सोवियत संघ का विघटन किस राष्ट्रपति के शासन काल में हुआ?
उत्तर:
सोवियत संघ का विघटन राष्ट्रपति मिखाइल गोर्वाच्योव के शासन काल में हुआ।

प्रश्न 10.
शीत युद्ध का सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिणाम क्या हुआ?
उत्तर:
शीत युद्ध का सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिणाम सोवियत संघ का विघटन रहा।

प्रश्न 11.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने किस विचारधारा को चुना?
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने गुटनिरपेक्षता की विचारधारा को चुना।

प्रश्न 12.
रूस में जार के निरंकुश शासन का अंत किस क्रांति के फलस्वरूप हुआ?
उत्तर:
रूस में जार के निरंकुश शासन का अंत बोल्शेविक क्रांति के फलस्वरूप हुआ।

प्रश्न 13.
गुटनिरपेक्षता के छः प्रत्यय कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता के छः प्रत्यय निम्नलिखित हैं –

  1. अलगाववाद
  2. अप्रतिबद्धता
  3. तटस्थता
  4. तटस्थीकरण
  5. एक पक्षवाद
  6. असंलग्नता।

प्रश्न 14.
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के सूत्रधार नेता कौन थे?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के सूत्रधार नेता – भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के राष्ट्रपति गामैन । अब्देल नासिर और यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसेफ ब्रोज टीटो थे।

प्रश्न 15.
भारत और सोवियत संघ के मध्य मैत्री व सहयोग संधि कब हुई?
उत्तर:
भारत और सोवियत संघ के मध्य मैत्री व सहयोग संधि 1971 ई. में हुई।

प्रश्न 16.
आई. एस (इस्लामिक स्टेट) आतंकी संगठन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
आई. एस. आतंकी संगठन का मुख्य उद्देश्य विश्व के सभी मुस्लिम जनसंख्या वाले देशों को अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण में लेना है।

प्रश्न 17.
आई. एस. आतंकी संगठन ने किसे मुसलमानों का खलीफा घोषित कर रखा है?
उत्तर:
आई. एस. आतंकी संगठन ने अपने मुखिया अबूबक्र अल बगदादी को मुसलमानों का खलीफा घोषित कर रखा है।

प्रश्न 18.
विश्व की सर्वोच्च संस्था का क्या नाम है?
उत्तर:
विश्व की सर्वोच्च संस्था का नाम संयुक्त राष्ट्र संघ है।

प्रश्न 19.
आधुनिक विश्व की दो सबसे बड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?
उत्तर:
आधुनिक विश्व की दो सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं-पर्यावरण एवं आतंकवाद।

प्रश्न 20.
प्रारंभ में ब्रिक्स समूह में कितने सदस्य राष्ट्र थे?
उत्तर:
प्रारम्भ में ब्रिक्स समूह में चार सदस्य राष्ट्र थे- ब्राजील, रूस, भारत और चीन।

प्रश्न 21.
ब्रिक्स का विचार सर्वप्रथम किसने कब दिया?
उत्तर:
ब्रिक्स का विचार सर्वप्रथम 2001 ई. में अमेरिकी अर्थवेत्ता जिम ओ. नील ने दिया।

प्रश्न 22.
सार्क (दक्षेस) के चार्टर में कितनी धाराएँ हैं?
उत्तर:
सार्क (दक्षेस) के चार्टर में दस धाराएँ हैं।

प्रश्न 23.
सार्क के उन्नीसवें सम्मेलन के आयोजन स्थल का नाम लिखिए।
उत्तर:
सार्क के उन्नीसवें सम्मेलन का आयोजन स्थल पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद है।

प्रश्न 24.
सार्क के कौन-कौन से सम्मेलन भारत में आयोजित किए गए?
उत्तर:
सार्क को दूसरा सम्मेलन 1986 ई. में, आठवाँ सम्मेलन 1995 ई. में तथा चौदहवाँ सम्मेलन 2007 ई. में भारत में आयोजित किए गये।

प्रश्न 25.
2014 ई. में किसने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली?
उत्तर:
2014 ई. में श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।

RBSE Class 11 History Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शीत युद्ध की भूमिका किस प्रकार बनी?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात पूँजीवादी देश संयुक्त राज्य अमेरिका व साम्यवादी देश सोवियत रूस के मध्य गंभीर प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हुई। दोनों महाशक्तियों के मध्य विचारों की भिन्नता, जीवन पद्धति में भेद एवं राष्ट्रीय हितों के टकराव के कारण युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हुई जिसे शीत युद्ध की संज्ञा दी जाती है। इस मतभेद के कारण निम्नलिखित थे –

  1. सोवियत सेनाओं द्वारा पूर्वी यूरोपीय देशों पर अपना नियंत्रण स्थापित करना।
  2. जर्मनी द्वारा इटली में आत्मसमर्पण के समझौते की शर्तों पर रूस द्वारा अलग राय रखना।
  3. जापान पर बम गिराने के अमेरिकी कृत्य का रूस द्वारा विरोध किया जाना। ऐसे ही अनेक विषयों के आधार पर शीत युद्ध की भूमिका रची गई।

प्रश्न 2.
वारसा पैक्ट क्या था?
उत्तर:
अमेरिका द्वारा नाटो तथा सीटो जैसे संगठनों की स्थापना के प्रत्युत्तर में सोवियत संघ तथा उसके मध्य व पूर्वी यूरोप के आठ साथी राष्ट्रों ने मिलकर 1955 ई. में वारसा पैक्ट घोषित किया। पोलैण्ड के वारसा नामक स्थान पर किया गया यह समझौता औपचारिक रूप से मित्रता, सहयोग और पारस्परिक सहायता हेतु किया गया।

प्रश्न 3.
भारत ने स्वतंत्रता के पश्चात् गुटनिरपेक्षता की नीति को क्यों चुना?
उत्तर:
सन् 1947 ई. में भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की। स्वतंत्रता के पश्चात भारत ने किसी भी महाशक्ति के गुट में सम्मिलित न होने का निर्णय लिया क्योंकि तत्कालीन भारतीय राजनैतिक नेतृत्व यह अच्छी तरह जानता था कि हाल में स्वतंत्र हुए भारत के संस्कारवान लोग पूँजीवाद व साम्यवाद इन दोनों ही अतिवादी विचारधाराओं में से किसी भी विचारधारा को पसंद नहीं करेंगे। अत: भारत ने इन दोनों विचारधाराओं के समानांतर चल रही एक तीसरी विचारधारा गुट निरपेक्षता को चुन्।

प्रश्न 4.
शीत युद्ध गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के जन्म के लिए किस प्रकार उत्तरदायी सिद्ध हुआ?
उत्तर:
शीत युद्ध के दौर में विश्व की दो महाशक्तियों अमेरिका व रूस के मध्य चली प्रतिस्पर्द्ध ने अत्यन्त संकटपूर्ण स्थिति को ज दिया। यद्यपि इन महाशक्तियों ने एक-दूसरे के विरुद्ध वास्तविक अस्त्र प्रयोग नहीं किए परन्तु इनके द्वारा प्रयुक्त किए . कूटनीतिक हमलों ने नव स्वतंत्र राष्ट्रों को इतना भयग्रस्त कर दिया कि उन्हें सोचने पर विवश होना पड़ा कि यदि वे किसी एक महाशक्ति के प्रभाव में आ गए तो दूसरी महाशक्ति उनका विनाश कर देगी। उस परिस्थिति में निरपेक्ष रहना ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प था। ऐसी दशा में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का जन्म हुआ व नवे स्वतंत्र राष्ट्रों ने गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।

प्रश्न 5.
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की दो प्रमुख संस्थाएँ कौन-कौन सी हैं। इनके क्या कार्य हैं?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की निम्नलिखित दो प्रमुख संस्थाएँ हैं –

1. समन्वयन ब्यूरो:
गुट निरपेक्ष आन्दोलन के सदस्य देशों के आपस में विचार विनिमय करने वाले विषयों का निर्धारण करना तथा ये सदस्य देश विश्व के मंच पर किस रीति से अपना सामूहिक स्वर प्रकट करें- यह निर्धारित करने का कार्य समन्वयन ब्यूरो करता है। समन्वयन ब्यूरो के इस समय 66 निर्वाचित सदस्य हैं।

2. कांफ्रेन्स या सम्मेलन:
इसके अन्तर्गत दो निकाय आते हैं –

  • मंत्री स्तरीय सम्मेलन, जिसमें सदस्य देशों के विदेश मंत्री भाग लेते हैं।
  • शिखर सम्मेलन, इन सम्मेलनों में विभिन्न राष्ट्रों के प्रतिनिधि अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अपने राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

प्रश्न 6.
गुटनिरपेक्षता के परिप्रेक्ष्य में शिखर सम्मेलन क्या है?
उत्तर:
शिखर सम्मेलन सदस्य राष्ट्रों का सबसे बड़ा आयोजन होता है, जिसमें उनके शासनाध्यक्ष प्रमुख रूप से भाग लेते हैं। शिखर सम्मेलन तीन वर्ष में एक बार होता है। शिखर सम्मेलन में भाग लेने हेतु चार प्रकार के प्रतिनिधि अनुमन्य होते हैं-पूर्ण सदस्य, पर्यवेक्षक सदस्य, गैर राज्य सदस्य एवं अतिथिगण गुटनिरपेक्ष आंदोलन के शिखर सम्मेलन को विश्व राजनीति की प्रमुख घटना के रूप में देखा जाता है। इसमें विश्व जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के प्रतिनिधि अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर अपने राष्ट्र की प्रतिनिधित्व करते हैं। 2015 ई. तक गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के सत्रह अधिवेशन सम्पन्न हो चुके हैं।

प्रश्न 7.
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के दो दशकों तक पर्यावरण विषय उसकी प्राथमिकता में नहीं था। सबसे पहले 1960 के दशक में सागरीय प्रदूषण के तहत तेल बिखराव के मुद्दे पर कुछ सहमति बनी।
  2. 1970 के दशक में संयुक्त राष्ट्र संघ ने पश्चिमी अफ्रीका में रेगिस्तान के विस्तार को रोकने का कार्यक्रम प्रस्तुत किया।
  3. पर्यावरण संरक्षण को बिन्दु विशेष रूप से 1972 ई. में स्टाकहोम में हुए पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन में सामने आया।
  4. तत्श्चात् देशों द्वारा व्यापक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम) स्वीकार किया गया।
  5. 1980 के दशक में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने इस विषय पर विचार किया कि दीर्घकालिक विकास हमारा प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए अन्यथा आने वाली नस्लों को आर्थिक विकास रुक जायेगा।
  6. 1980 के दशक में ही संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य राष्ट्रों के मध्य ओजोन परत के क्षरण और विषैले पदार्थों के उत्सर्जन से जुड़े अनेक समझौते हुए।

प्रश्न 8.
जापान में हुए विश्व पर्यावरण व ग्रीन हाउस सम्मेलन का प्रमुख मुद्दा क्या था? इसके लिए क्या समाधान निश्चित हुआ?
उत्तर:
दिसम्बर 1997 ई. में जापान के क्योटो शहर में विश्व पर्यावरण व ग्रीन हाउस सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन का मुख्य मुद्दा यह था कि वातावरण को गर्म करने वाली गैसों के उत्सर्जन को किस प्रकार नियंत्रित किया जाय। इस समस्या के समाधान हेतु वहाँ उपस्थित अनेक राष्ट्रों ने अपने लिए वातावरण को गर्म करने वाली गैसों के उत्सर्जन की एक सीमा निर्धारित की। यह भी तय हुआ कि 2008 से 2012 ई. के मध्य यूरोपीय यूनियन के राष्ट्र वातावरण को गर्म करने वाली गैसों के उत्सर्जन को आठ प्रतिशत, अमेरिका सात प्रतिशत और जापान छः प्रतिशत तक न्यून कर लेंगे।

प्रश्न 9.
आई. एस.(इस्लामिक स्टेट) आतंकी संगठन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
आई. एस. (इस्लामिक स्टेट) एक कुख्यात आतंकवादी संगठन है। इसे आई.एस.आई.एस. (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एण्ड सीरिया) तथा आई एस आई एल (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एण्ड लेवांत) के नाम से भी जाना जाता है। इस संगठन का निर्माण 2013 ई. में हुआ था। विश्व के सबसे धनी इस आतंकवादी संगठन का उद्देश्य विश्व के समस्त मुस्लिम जनसंख्या वाले देशों को अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण में लेना है। आई. एस. ने अपने मुखिया अबूबक्र अल बगदादी को सभी मुसलमानों का खलीफा घोषित किया है। इस संगठन के आतंकवादियों का कार्य देशों में दहशत फैलाना व उनकी सीमाओं में घुसपैठ कर अनधिकृत कब्जा करना है।

प्रश्न 10.
आतंकवाद को रोकने में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किये गये प्रयास कहाँ तक सफल सिद्ध हुए हैं?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ वह सर्वोच्च संस्था है जहाँ आतंकवाद से पीड़ित राष्ट्र मुक्ति पाने हेतु आवेदन कर सकते हैं। आतंकवाद के विरुद्ध इस संस्था ने अन्तर्राष्ट्रीय कानूनं को इस प्रकार से तैयार किया है कि कोई भी देश किसी भी रूप में आतंकवाद को बढ़ावा नहीं दे सकता। परन्तु इस कानून को किसी भी देश पर बाध्यकारी रूप से लागू नहीं किया जा सकता। विश्व को आतंकवाद की समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने समय-समय पर विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के दस्तावेजों को तैयार करवाया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल के चलते आतंकवाद पर विशेष नियंत्रण तो स्थापित नहीं हुआ परन्तु आतंकवाद राष्ट्रों के विचार-विमर्श का केन्द्र अवश्य बन गया है।

प्रश्न 11.
गुजराल सिद्धान्त क्या था?
उत्तर:
आई. के. गुजराल, एच डी. देवगौड़ा के पश्चात् प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त हुए। प्रधानमंत्री बनने से पूर्व विदेश मंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने विदेश नीति के संबंध में एक पाँच सूत्रीय सिद्धान्त दिया जो गुजराल सिद्धान्त के नाम से प्रसिद्ध है। इस सिद्धान्त के अनुसार बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल, श्रीलंका, और भूटान जैसे छोटे देशों से भारत बराबरी की अपेक्षा नहीं करेगा। गुजराल सिद्धान्त के अनुसार, दक्षिण एशिया के देश अपनी भूमि से किसी दूसरे देश के खिलाफ नकारात्मक गतिविधियाँ नहीं चलाऐंगे, एक दूसरे की संप्रभुता और अखण्डता का सम्मान करेंगे, किसी के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे और अपने विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाएँगे।

प्रश्न 12.
स्टिंग ऑफ पर्ल की नीति का अनुसरण किसने और क्यों किया?
उत्तर:
चीन अपनी ‘वन चाइना पॉलिसी’ के अन्तर्गत एशिया की एकमात्र महाशक्ति बनने की दिशा में एक मात्र प्रतिद्वंदी भारत को चतुर्दिशा में समुद्र के जरिये घेरने के लिए स्टिंग ऑफ पर्ल्स अर्थात ‘मोतियों की माला’ नीति पर चलता है। मोतियों से आशय दक्षिणी चीन सागर से लेकर मलक्का-स्ट्रैट, बंगाल की खाड़ी और अरब की खाड़ी तक सामरिक ठिकाने, जैसे-बंदरगाह, हवाई पट्टियाँ, निगरानी अड्डे आदि स्थापित करने आदि से है। भारत ने चीन की इस नीति का निरंतर प्रतिकार किया है।

प्रश्न 13.
मेकांग गंगा परियोजना क्या है?
उत्तर:
मेकांग गंगा परियोजना के अन्तर्गत मेकांग गंगा सहयोग नाम से एक समूह गठित हुआ जिसमें छः राष्ट्र सम्मिलित थे। भारत व लाओस के अतिरिक्त मेकांग गंगा समूह के अन्य तटवर्ती राष्ट्र म्यांमार, थाइलैण्ड, कम्बोडिया व वियतनाम इसमें सम्मिलित थे। समूह के पटल पर इसके सदस्य राष्ट्रों के मध्य व्यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी, पर्यटन, शिक्षा, संस्कृति आदि विषयों पर सहयोग की एक नई परंपरा प्रारंभ हुई।

प्रश्न 14.
ब्रिक्स सम्मेलन के दिल्ली घोषणा पत्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
ब्रिक्स राष्ट्र समूह के चतुर्थ शिखर सम्मेलन के अंत में इसके सदस्यों द्वारा एक घोषणा पत्र जारी किया गया जिसे दिल्ली घोषणा पत्र कहा जाता है। इस घोषणा पत्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार थीं –

  1. इसके अन्तर्गत विश्व बाजार में विश्वास का वातावरण निर्मित करने व वित्तीय संकट से घिरे देशों को इससे बाहर निकालने के उपायों का उल्लेख किया गया।
  2. इस घोषणा के अन्तर्गत सदस्य राष्ट्रों ने ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके अनुसार ब्रिक्स राष्ट्र समूह के देश आपसी व्यापार अपनी स्थानीय मुद्रा में डालर के बिना भी कर सकते हैं।
  3. इस घोषणा पत्र में आतंकवाद की घोर निन्दा की गई।
  4. घोषणा पत्र में पश्चिम एशिया में बढ़ रही राजनैतिक अनिश्चितता पर गहरी चिन्ता प्रकट की गई। साथ ही सीरिया में जारी हिंसा और मानवाधिकारों के उल्लंघन की चर्चा भी की गई।

प्रश्न 15.
सार्क की स्थापना में किन सात राष्ट्राध्यक्षों का योगदान रहा ?
उत्तर:
सार्क की स्थापना 1985 ई. में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हुई। दक्षिण एशिया में राष्ट्रों के पारस्परिक सहयोग व उन्नयन के लिए सात देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने ‘साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (सार्क) अर्थात् दक्षेस नामक संगठन बनाया ये सात राष्ट्राध्यक्ष थे –

  1. भारत के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी।
  2. पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक।
  3. बांग्ला देश के राष्ट्रपति हुसैन इरशाद।
  4. नेपाल के नरेश वीरेन्द्र शाह।
  5. भूटान के नरेश जिग्मे सिग्मे वाँगचुक।
  6. श्रीलंका के राष्ट्रपति जूलियस रिचर्ड जयवर्द्धने।
  7. मालदीव के राष्ट्रपति मौमून गयूम।

RBSE Class 11 History Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शीत युद्ध की परिभाषा देते हुए इसके परिणामों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जब दो देश परस्पर अविश्वास, संदेह, दुष्प्रचार व षडयन्त्र की राजनीति के शिकार होकर क्षेत्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर बार-बार चेतावनी दें कि यदि उनके हितों की रक्षा नहीं हुई तो युद्ध होगा, तो यह स्थिति शीत युद्ध कहलाती है। शीत युद्ध की परिभाषा –

1. शीत युद्ध को परिभाषित करते हुए लुई हाले ने लिखा है-“शीत युद्ध परमाणु युग में इस प्रकार की तनावयुक्त स्थिति है जो शस्त्रास्त्र युद्ध से पूर्णतया भिन्न लेकिन उससे भी अधिक भयानक है।”

2. शीत युद्ध की प्रकृति को स्पष्ट करते हुए एम. एस. राजन ने लिखा है –

“शीत युद्ध देशों के मध्य शक्ति के संघर्ष, विचारों की भिन्नता, जीवन पद्धति में भेद और राष्ट्रीय हितों के टकराव का मिलाजुला परिणाम था, जिसकी तीव्रता देश, काल व परिस्थिति के अनुसार न्यूनाधिक होती रही।” शीत युद्ध का बीजारोपण तो 1917 ई. में हुई रूसी क्रान्ति के साथ ही हो गया था परन्तु यह अपने पूरे प्रभाव में बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक में ही आया। 1917 से 1990 ई. तक के लम्बे काल तक चले इस शीत युद्ध के अत्यन्त दूरगामी परिणाम हुए जो निम्नलिखित हैं –

1. शक्ति सन्तुलन की परिवर्तित अवधारणा:
शीत युद्ध से पूर्व शक्ति सन्तुलन की धारणा प्रत्यक्ष रूप से सैन्य बल पर आधारित थी परन्तु शीत युद्ध के फलस्वरूप वास्तविक शक्ति सन्तुलन आतंक के सन्तुलन का रूप ले चुका था। दोनों में से कौन सी महाशक्ति अपने उग्र क्रियाकलापों द्वारा विश्व के देशों को कितना अधिक आतंकित रखती है यह बात चिन्ता का विषय हो गई थी।

2. शीतयुद्ध की शान्तिपूर्ण समाप्ति:
शीत युद्ध केब भयानक रूप धारण कर लेगा कोई नहीं जानता था। इसका सबसे बेहतर परिणाम यह हुआ कि यह तृतीय महायुद्ध का रूप न लेकर शीत युद्ध के रूप में ही समाप्त हो गया।

3. जन-धन की हानि:
शीत युद्ध के दौरान हुए प्रत्यक्ष युद्धों में जो जन धन की क्षति हुई वह किसी विश्वयुद्ध के मुकाबले कम नहीं थी।

4. सोवियत संघ का विघटन:
निरन्तर शीत युद्ध की स्थिति के कारण सोवियत संघ का आर्थिक सन्तुलन गड़बड़ा गया और भीतर ही भीतर वह एक दुर्बल राष्ट्र बनता चला गया। इसका लाभ छोटे-छोटे राज्यों ने लिया और उन्होंने अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी। फलस्वरूप सोवियत संघ का विघटन हो गया।

5. संयुक्त राष्ट्र संघ को आघात:
संयुक्त राष्ट्र संघ को शीत युद्ध से गहरा आघात पहुँचा। जिस संस्था को विश्व कल्याण के रचनात्मक मार्ग की ओर अग्रसर होना था वह दो महाशक्तियों की अपूरित महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति का केन्द्र बनकर रह गई।

6. मानवता को क्षति:
शीत युद्ध के दौर में मुख्यतः यूरोप और अमेरिका में जन्मी पीढ़ियों का विकास जिसे भय, सन्देह और अनिश्चितता के वातावरण में हुआ, उससे मानवता सकारात्मक व रचनात्मक दिशा में आगे बढ़ने से वंचित रह गई।

प्रश्न 2.
सोवियत संघ के विघटन के क्या कारण थे?
अथवा
रूस के साम्यवादी शासन का अन्त किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात सोवियत संघ रूस एक महाशक्ति बनकर उभरा। सात दशक तक सोवियत संघ अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की दो प्रमुख शक्तियों में से एक बना रहा। इस दौरान उसने अमेरिका के साथ शीत युद्ध का खेल जमकर खेला। शीत युद्ध के समाप्त होते-होते सोवियत संघ का भी पतन हो गया।

1989 ई. का वर्ष सोवियत संघ के इतिहास का न भूल पाने वाला वर्ष सिद्ध हुआ जब ‘काँग्रेस ऑफ पीपुल्स डेपुटीज’ की बैठक रूस के इतिहास में ऐतिहासिक परिवर्तन लेकर आई। इस परिवर्तन के फलस्वरूप सोवियत संघ के साम्यवादी शासन तंत्र की भव्य इमारत ढह गई। सोवियत संघ के विघटन के निम्नलिखित कारण थे –

1. दोषपूर्ण आर्थिक नीति:
सोवियत संघ ने आर्थिक दृष्टि से जो मॉडल बनाया उसमें साठ के दशक के बाद अन्तर्विरोध उभरने लगे। इस मॉडल में केवल भारी उद्योगों की स्थापना पर बल दिया गया जिससे कुछ वर्षों बाद उपभोक्ता सामग्री की न्यूनता उत्पन्न हुई। उपभोक्ता सामग्री की कमी पड़ जाने से प्रत्येक सोवियत नागरिक को आवश्यकता की वस्तुएँ उचित मूल्य पर मिलनी बन्द हो गईं और समाज में बाजारवाद के दोष छाने लगे।

2. विदेशी मुद्रा अर्जित करने की लालसा:
सत्तर के दशक में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की माँग बढ़ने से सोवियत संघ का ध्यान तकनीकी विकास से हटकर पेट्रोलियम पदार्थों के निर्यात पर तथा विदेशी मुद्रा अर्जित करने पर केन्द्रित हो गया। वहीं दूसरी ओर अमेरिका जैसे देश तकनीकी विकास की होड़ में बहुत आगे निकल गये।

3. आर्थिक असन्तुलन:
शीत युद्ध के दौर में अमेरिका व सोवियत संघ दोनों को ही अपने-अपने समर्थक देशों के पक्ष में अनुदान व निवेश हेतु अत्यधिक राशि जारी करनी पड़ती थी। इससे सोवियत संघ का आर्थिक सन्तुलन गड़बड़ा गया और भीतर ही भीतर वह एक दुर्बल राष्ट्र बनता चला गया।

4. सत्ता परिवर्तन:
लेनिन के नेतृत्व में स्थापित ‘एक दल की तानाशाही’ का स्टालिन के नेतृत्व में एक व्यक्ति की तानाशाही’ में बदल जाने से सोवियत संघ की जनता में अत्यधिक आक्रोश भर गया था। इस कारण जब सोवियत संघ का विघटन होने का अवसर आया तो लोगों ने अपनी माँगों को उठाना प्रारम्भ कर दिया।

5. मिखाइल गोर्वाच्योव की नीतियाँ:
1988 ई. में सोवियत संघ का नेतृत्व मिखाईल गोर्वाच्योव के हाथों में आया। गोर्वाच्योव को अपनी नीतियों पेरेस्त्रोइका (पुनर्रचना) व ग्लासनोस्त (खुलापन) की आड़ में पूँजीवाद के आगे झुकना पड़ा। गोर्वाच्योव की नीतियों का राजनीतिक परिणाम युद्ध व राष्ट्रों के स्वतन्त्रता के लिए किये जाने वाले विद्रोह के रूप में सामने आया।

6. नये स्वतन्त्र राष्ट्रों का उदय:
मिखाइल गोर्वाच्योव की नीतियों के कारण 1988 ई. में आर्मीनिया व अजरबैजान के मध्य युद्ध छिड़ा। उसके बाद 1990 ई. में लिथुवानिया, एस्टोनिया और लातविया, 1991 ई. में जार्जिया तथा यूक्रेन ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। 1993 में स्वतन्त्र चेक व स्लोवाक राज्यों का भी उदय हुआ। इस प्रकार यूरोप के देश एक-एक करके साम्यवादी बन्धन से मुक्त होते चले गये तथा तानाशाही पर आधारित साम्यवादी व्यवस्था का पतन हो गया।

प्रश्न 3.
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् स्वतन्त्र हुए राष्ट्रों द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति को चुनने के पीछे क्या कारण थे?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् स्वतन्त्र होने वाले राष्ट्रों के लिए तत्कालीन परिस्थितियों में अमेरिका व रूस दोनों महाशक्तियों में से किसी एक के गुट का सदस्य बनना उचित न था। स्वयं को शीत युद्ध की स्थिति से बचाने के लिए नव स्वतन्त्र राष्ट्रों ने एक नयी विचारधारा गुटनिरपेक्षता का अनुसरण किया। 1961 ई. में गुट निरपेक्ष आन्दोलन अस्तित्व में आया। नव स्वतन्त्र राष्ट्रों द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाने के पीछे निम्नलिखित कारण थे –

1. अस्तित्व की रक्षा:
तत्कालीन नव स्वतन्त्र राष्ट्र अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए किसी महाशक्ति के शरणागत नहीं होना चाहते थे। अत: विश्व के पटल पर गुट निरपेक्ष आन्दोलन का उदय हुआ।

2. तीसरे विश्व युद्ध का भय:
अमेरिका तथा रूस के मध्य चले शीत युद्ध की संकटपूर्ण स्थिति ने तीसरे विश्व युद्ध की आशंका को जन्म दिया। अतः नये स्वतन्त्र राष्ट्रों को निरपेक्ष रहना ही बेहतर विकल्प दिखाई दिया।

3. राष्ट्रों की ‘रुको और देखो’ की नीति:
नये स्वतन्त्र राष्ट्र निरपेक्ष रहते हुए अनेक कूटनीतिक दबावों से मुक्त होकर ‘रुको और देखो’ की नीति पर सरलता से चल सकते थे। इस प्रकार उन पर किसी महाशक्ति को नियन्त्रण नहीं हो सकता थी।

4. सम्प्रभुता की रक्षा:
किसी राष्ट्र की सम्प्रभुता तभी प्रमाणित होती है जब वह अपने आन्तरिक व बाह्य मामलों में निर्णय लेने के लिए स्वतन्त्र हो। यदि कोई राष्ट्र किसी गुट विशेष में सम्मिलित होता है तो निश्चित रूप से उसकी सम्प्रभुता को न्यूनाधिक आघात पहुँचता ही है। अतः राष्ट्रों को अपनी सम्प्रभुता की रक्षा के लिए गुट निरपेक्ष रहना उचित था।

5. राजनैतिक व सांस्कृतिक परम्पराओं की रक्षा:
प्रत्येक राष्ट्र की अपनी श्रेष्ठ सामाजिक व राजनैतिक परम्पराएँ होती हैं। उने परम्पराओं को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए नव स्वतन्त्र राष्ट्रों को गुटों से निरपेक्ष रहना अधिक उपयुक्त लगा।

6. आर्थिक संसाधनों की रक्षा:
यदि कोई राष्ट्र संकट की स्थिति में महाशक्ति से किसी प्रकार की सहायता लेता, तो बदले में उसे दुगुनी कीमत चुकानी पड़ती, जिससे वह राष्ट्र अपनी सम्पन्नता खो देता। अत: इस पर विचार करते हुए नये राष्ट्रों ने गुट निरपेक्षता को चुना।

7. पारस्परिक आर्थिक सहयोग की आवश्यकता:
नये स्वतन्त्र राष्ट्रों के लिए इस सम्भावना को जीवित रखना आवश्यक था कि वे जहाँ से भी आर्थिक सहयोग माँगें, मिल जाए। कोई भी गुट निरपेक्ष राष्ट्र इस आधार पर उसे सहायता देने में सक्षम किसी राष्ट्र का तिरस्कार झेलना नहीं चाहता था कि वह उसके विरोधी गुट का सदस्य है।

इस प्रकार नये स्वतन्त्र राष्ट्रों ने उपर्युक्त बिन्दुओं पर विचार करते हुए दोनों महाशक्तियों के प्रति निरपेक्ष रहना ही उचित समझा एवं गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।

प्रश्न 4.
ब्रिक्स क्या है? इसके शिखर सम्मेलनों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ब्रिक्स वर्तमान में ऐसे राष्ट्रों का समूह है जिनकी अर्थव्यवस्था उभार पर है। इस समूह की स्थापना 2008 ई. में हुई थी। ब्रिक्स राष्ट्र समूह विश्व के तीन महाद्वीपों एशिया, अफ्रीका व दक्षिणी अमेरिका तक अपना विस्तार रखता है। विश्व के पाँच देश-ब्राजील, रूस, भारत, चीन व दक्षिण अफ्रीका इसके प्रमुख सदस्य हैं। ये सभी देश इस प्रतिस्पर्धी युग की चुनौतियों का सामना करते हुए एक मंच पर कार्य करने को तैयार हैं।
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ब्रिक्स शिखर सम्मेलन:

1. ब्रिक्स का प्रथम शिखर सम्मेलन जून 2009 में रूस के येकैटरिनबर्ग नगर में हुआ। इस सम्मेलन में यह निश्चित हुआ कि विश्व के आर्थिक, राजनैतिक व सामाजिक विषयों के सम्बन्ध में ब्रिक्स के देश लोकतान्त्रिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर निर्णय लेंगे।

2. ब्रिक्स का दूसरा शिखर सम्मेलन 2010 ई. में ब्राजीलिया में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में 33 सूत्रीय घोषणा पत्र स्वीकार किया गया तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के सांगठनिक ढाँचे में अपेक्षित सुधार करने का विचार प्रकट किया गया।

3. ब्रिक्स समूह का तीसरा सम्मेलन अप्रैल 2011 में चीन के नगर सान्या में आयोजित हुआ, जिसमें मानव के कल्याण के लिए न्याय व समता पर आधारित अर्थव्यवस्था का विचार केन्द्रीभूत हुआ।

4. ब्रिक्स समूह का चतुर्थ शिखर सम्मेलन मार्च 2012 में भारत की राजधानी नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में विचार विमर्श का मुख्य विषय यह था कि वैश्विक स्थिरता, सुरक्षा और सम्पन्नता के लिए ‘ब्रिक्स’ देशों की अधिकतम हिस्सेदारी तय करने की दिशा में संयुक्त प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

5. ब्रिक्स का पाँचवा सम्मेलन 2013 ई. में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन के घोषणा पत्र में अन्तर्राष्ट्रीय कानून को बढ़ावा देने, बहुराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने व संयुक्त राष्ट्र संघ की केन्द्रीय भूमिका को मजबूत बनाने का आह्वान किया गया।

6. ब्रिक्स समूह का छठा शिखर सम्मेलन 2014 ई. में ब्राजील में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन का मुख्य विषय था – समावेशी वृद्धि एवं सतत विकास।

7. 2015 ई. में रूस में ब्रिक्स समूह का सातवाँ शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में आर्थिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर प्रमुखता से चर्चा की गई।

8. 2016 ई. में ब्रिक्स समूह के आठवें शिखर सम्मेलन का आयोजन स्थल भारत है।

प्रश्न 5.
शीत युद्ध के दौर में भारत की स्थिति का वर्णन करो।
उत्तर:
जब विश्व में शीत युद्ध का दौर चल रहा था। उस समय भारत, इंग्लैण्ड का एक विशाल एवं महत्वपूर्ण उपनिवेश था। ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत भारतीय अपने देश को स्वतंत्र करने का प्रयास कर रहे थे। शीत युद्ध के दौर में भारत के राजनीतिक तंत्र में निम्नलिखित परिवर्तन आये –

1. भारत की स्वतंत्रता:
1947 ई. में भारत ब्रिटिश शासन के चंगुल से स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के समक्ष किसी भी गुट में सम्मिलित होना एक दुविधापूर्ण स्थिति थी।

2. पूँजीवादी व साम्यवादी शासन व्यवस्था में अविश्वास:
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत पूँजीवादी देश अमेरिका तथा साम्यवादी रूस इन दोनों महाशक्तियों के गुट में शामिल नहीं होना चाहता था। इसका प्रमुख कारण भारतीय धर्म एवं संस्कार थे। जिसमें किसी पवित्र साध्य को हासिल करने के लिए अपवित्र साधनों का प्रयोग निषेध है।

3. राजनैतिक नेतृत्व की धारणा (गुटनिरपेक्षता):
तत्कालीन भारतीय राजनैतिक नेतृत्व की धारणा थी कि भारत के संस्कारवान लोग पूँजीवाद व साम्यवाद इन दोनों विचाधाराओं को पसंद नहीं करेंगे। अतः उन्होंने एक तीसरी समानान्तर चल रही विचारधारा गुटनिरपेक्षता को चुना।

इस प्रकार भारत ने शीत युद्ध की स्थिति से बचने के लिए उपयुक्त मार्ग गुटनिरपेक्षता को अपनाया। कालान्तर में स्वतंत्र हुए राष्ट्रों ने भी भारत की भाँति इस नीति का अनुसरण किया ताकि इन राष्ट्रों की परम्पराएँ अक्षुण्ण रहे एवं इनकी विशिष्ट पहचान बनी रहे।

प्रश्न 6.
गुट निरेपक्ष आन्दोलन की सफलताएँ एवं विफलताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की सफलताएँ:

    1. गुट निरपेक्ष आन्दोलन की लोकप्रियता इस बात से सिद्ध होती है कि प्रथम शिखर सम्मेलन 1961 ई. में इसमें 25 देशों ने भाग लिया वहीं सोलहवें शिखर सम्मेलन 2012 ई. में इसकी सदस्य संख्या बढ़कर 120 हो गयी।
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  1. गुटनिरपेक्षता ने राष्ट्रों की भावी युद्धों से रक्षा की।
  2. गुटनिरपेक्षता के कारण शीत युद्ध में शिथिलता आयी।
  3. जर्मनी, कोरिया चीन, इण्डो-चीन,कांगो आदि क्षेत्रों में उत्पन्न हुई अशांति को गुट निरपेक्ष आन्दोलन ने दूर किया।
  4. इस आंदोलन के संस्थापक भारत ने 1954 ई. में परमाणु शस्त्रों पर प्रतिबन्ध लगाने का विषय अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर रखा जिसे 1963 ई. में आंशिक परीक्षण निषेध संधि के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
  5. विकासशील देशों ने गुटनिरपेक्षता का अनुसरण करते हुए पारस्परिक आर्थिक सहयोग की माँग की।
  6. गुट निरपेक्ष देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ में महासभा में महाशक्तियों की मनमानी को रोकने की कोशिश की।

गुट निरपेक्ष आन्दोलन की विफलताएँ:

  1. गुट निरपेक्ष आन्दोलन की विफलता यह है कि गुट निरपेक्ष राष्ट्र ने इस नीति का पालन पूर्ण सत्यता से नहीं किया।
  2. सहयोग प्राप्त करने के लिए गुट निरपेक्ष देशों ने दोनों महाशक्तियों से अनैतिक समझौते किये।
  3. इस आन्दोलन ने अपने सदस्य राष्ट्रों के लिए आर्थिक सुरक्षा की नीति नहीं बनाई।
  4. इन आन्दोलन के सदस्य देशों में सामूहिक सुरक्षा की भावना का अभाव रहा।
  5. इस आन्दोलन के संस्थापक राष्ट्र शीत युद्ध के दौर में महाशक्तियों की आक्रामक नीति में कोई मूलभूत सुधार नहीं करा सके।
  6. चीन का तिब्बत पर कब्जा तथा अरब-इजरायल संघर्ष में गुट निरपेक्ष देश कोई भूमिका नहीं निभा सके।
  7. अल्जीरिया, अंगोला, मोजाम्बिक आदि राष्ट्रों में रक्तपात को रोकने में यह आन्दोलन असफल रहा।
  8. नेपाल में प्रतिक्रियावादी गतिविधियाँ रोकने में गुट निरपेक्ष आन्दोलन असफल रहा।

प्रश्न 7.
गुट निरपेक्षता का अर्थ एवं उद्देश्य बताते हुए वर्तमान समय में इसकी प्रसांगिकता बताइये।
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता का अर्थद्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् की परिस्थितियों में किसी देश का विश्व की दो महाशक्तियों संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत रूस द्वारा अपने पक्ष में बनाए गए गुटों में से किसी भी गुट का सदस्य न होना गुट निरपेक्षता कहलाया। यह आन्दोलन 1961 ई. में अस्तित्व में आया।

उद्देश्य:
गुट निरपेक्षता के मूल उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. सभी प्रकार के सामाज्यवाद और उपनिवेशवाद का उन्मूलन।
  2. नस्ल आधारित भेदभाव की निन्दा।
  3. राष्ट्रों के मध्य शांतिपूर्ण सह अस्तित्व।
  4. सैनिक गुटबन्दी का विरोध।
  5. स्थायी शांति को प्रोत्साहन।
  6. नि:शस्त्रीकरण।
  7. राष्ट्रों के मध्य समानता के आधार पर शोषण मुक्त आर्थिक संबंधों की स्थापना।

वर्तमान परिप्रक्ष्य में गुट निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिता:
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिता एवं उसके महत्त्व का विवेचन निम्नलिखित है –

  1. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्वतन्त्र विदेश नीति का सिद्धान्त प्रतिपादित कर विश्व के पूर्ण ६ ध्रुवीकरण को रोककर विचारधाराओं पर आधारित गुटों के विस्तार और प्रभाव को कम करके शीत-युद्ध के तनाव को शिथिल करके विश्व शान्ति की स्थापना में पर्याप्त योगदान दिया है।
  2. इस आन्दोलन ने आपसी विचार-विमर्श द्वारा समझा-बुझाकर और जोरदार प्रचार करके उपनिवेशवाद उन्मूलन की प्रक्रिया को भी गति प्रदान की।
  3. इसने प्रजातीय समानता को साकार किया और अल्पविकसित राष्ट्रों के आर्थिक विकास में पर्याप्त योग दिया।

प्रश्न 8.
पर्यावरण संरक्षण में संबंधित समस्याओं के समाधान हेतु किये गये प्रयासों का विस्तार से वर्णन करो।
उत्तर:
पर्यावरण आधुनिक विश्व की एक गंभीर समस्या है। पर्यावरण को निरन्तर क्षति पहुँचाते हुए भी विश्व के देशों ने इसे अन्तर्राष्ट्रीय विचार विमर्श के मुख्य विषय में सम्मिलित किया या। पर्यावरण संरक्षण के संबंध में विश्व के राष्ट्रों द्वारा निम्नलिखित
प्रयास किये गये –

1. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम:

  • 1972 ई. में पर्यावरण संरक्षण के लिए स्टाकहोम में संयुक्त राष्ट्र संघ का सम्मेलन हुआ।
  • 1970 ई. के दशक में संयुक्त राष्ट्र द्वारा पश्चिमी अफ्रीका में रेगिस्तान के विस्तार को रोकने के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया।
  • 1980 के दशक में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने पर्यावरण एवं विकास से संबंधित मुद्दों पर विचार किया।
  • 1980 के दशक में संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य राष्ट्रों के बीच ओजोन चादर के क्षरण और विषैले पदार्थों के उत्सर्जन से जुड़े अनेक समझौते हुए।

2. 1992 ई. का पृथ्वी सम्मेलन:
ब्राजील की राजधानी रियो दी जेनेरियो में हुए इस पृथ्वी सम्मेलन में 150 से अधिक राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिसमें पर्यावरण संरक्षण से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर गम्भीरता से विचार किया गया।

3. 1997 ई. का न्यूयार्क पृथ्वी सम्मेलन:
न्यूयार्क में हुए इस पृथ्वी सम्मेलन में प्रथम पृथ्वी सम्मेलन के पश्चात् हुई प्रगति का मूल्यांकन किया गया।

4. विश्व पर्यावरण व ग्रीन हाउस सम्मेलन:
यह सम्मेलन जापान ने क्योटो शहर में 1997 ई. में आयोजित हुआ। इसमें मुख्यत: वातावरण को गर्म करने वाली गैसों के उत्सर्जन के नियंत्रण करने पर विचार विमर्श किया गया।

5. जोहांसबर्ग पृथ्वी सम्मेलन:
2002 ई. में दक्षिण अफ्रीका में हुए इस सम्मेलन पर पुराने मुद्दों पर विचार किया गया।

6. संयुक्त राष्ट्र जलवायु समझौता सम्मेलन:
कनाडा के माण्ट्रियल शहर में 2005 ई. में आयोजित इस सम्मेलन में जलवायु संबंधी मुद्दों पर बातचीत की गई।

7. जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2015:
पेरिस में हुए इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के खतरनाक प्रभावों को कम करने के लिए लम्बे विचार विमर्श के पश्चात् वैश्विक तापमान रोकने के लिए एक सर्वमान्य समझौता हुआ।

प्रश्न 9.
भारत आसियान संबंधों की विवेचना कीजिए।
अथवा
लुक ईस्ट पॉलिसी पर एक लेख लिखो।
उत्तर:
आसियान राष्ट्र वे राष्ट्र हैं जो दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्र संघ से सम्बद्ध हैं। इस संघ के इस समय 10 सदस्य राष्ट्र हैं। भारत ने दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के प्रति व्यापारिक वे सामरिक सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने की दिशा में अतिरिक्त श्रम किया है।

  1. भारत ने वियतनाम के साथ परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग तथा व्यापार -वाणिज्य और संस्कृति व कला संबंधी मुद्दों पर अनेक द्विपक्षीय समझौते किये।
  2. रक्षा क्षेत्र में इण्डोनेशिया के साथ नौ सैनिक सुविधाओं से संबंधित समझौता हुआ।
  3. मेकांग गंगा समूह का गठन हुआ। इसके सदस्य राष्ट्रों के मध्य व्यापार निवेश, प्रौद्योगिकी, पर्यटन, शिक्षा, संस्कृति आदि विषयों पर सहयोग की नई शुरुआत हुई।
  4. भारत आसियान संबंधों में आतंकवाद का प्रतिकार सामूहिक रूप से किये जाने का आह्वान किया गया। यह समझौता 2004 ई. में किया गया।
  5. 2004 ई. के समझौते के अन्तर्गत यह भी तय हुआ कि मुक्त व्यापार के लिए अनुकूल स्थितियाँ उत्पन्न की जाएँगी।
  6. नवम्बर 2014 तक भारत आसियान सम्मेलनों की बारह बैठकें हो चुकी हैं।
  7. भारत आसियान संबंध विकास के पथ पर प्रगतिशील हैं।
  8. म्यांमार में 12वें भारत आसियान सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने लुक ईस्ट पॉलिसी के स्थान पर एक्ट ईस्ट पॉलिसी अपनाने की प्रेरणा देकर इन बढ़ते संबंधों को नई गति प्रदान की है।
  9. 13वें भारत आसियान शिखर सम्मेलन का आयोजन स्थल कम्बोडिया है।

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