RBSE Class 11 Home Science Practical Work Unit 2 मानव विकास एवं पारिवारिक सम्बन्ध

Rajasthan Board RBSE Class 11 Home Science Practical Work Unit 2 मानव विकास एवं पारिवारिक सम्बन्ध

RBSE Class 11 Home Science Practical Work chapter 1

राष्ट्रीय प्रतिरक्षण सूची (National Immunization Schedule) :
शरीर की वह क्षमता जिसकी सहायता से व्यक्ति रोगाणुओं से लड़कर व उन्हें नष्ट करके शरीर से निष्कासित करती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) कहलाती है। WHO के अनुसार “व्यक्ति के शरीर की वह क्षमता जिसकी सहायता से प्रतिजन (Antigen); जैसे-जीवाणु, विषाणु या अन्य रोगाणु आदि को पहचान करके निष्कासित कर सके “प्रतिरक्षा शक्ति’ या रोग प्रतिरोधक क्षमता कहलाती है।

टीकाकरण (Vaccination):
मानव शरीर को संक्रामक रोगों से बचाने का एक प्रभावशाली तरीका है। सन 1985 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम प्रारम्भ किया जिसके अन्तर्गत गर्भवती महिलाओं को टेटनस के दो टीके तथा बच्चों को जन्म से लेकर 2 वर्ष की उम्र के दौरान बी.सी.जी., डी. पी. टी. व खसरा के टीके लगाए जाते हैं तथा पोलियो की खुराक पिलायी जाती है। गर्भवती माँ एवं शिशु को सभी टीके समय पर लगवाना अनिवार्य है।

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नोट:

  1. दो खुराकों के बीच कम-से-कम एक माह का अन्तर होना चाहिए।
  2. हल्का बुखार, खाँसी या जुकाम में भी टीकाकरण कराना चाहिए।

दिनांक ………… प्रयोग संख्या ….. उद्देश्य – 0 – 3 वर्ष तक के बच्चों के लिए टीकाकरण चार्ट तैयार करना। शिशु का नाम …………………… पिता का नाम माता का नाम …………….. चिकित्सक का नाम …………………. चिकित्सक का फोन नं. …………………………………..
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माता-पिता बच्चों के पालन:
पोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे अपने बच्चों की समस्त आवश्यकताओं को समझते हैं और अपनी सामर्थ्य के अनुसार पूर्ण भी करते हैं। माता-पिता दोनों के कामकाजी होने की स्थिति में बच्चों का पालन-पोषण अत्यधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है। माता-पिता की अनुपस्थिति में बच्चे की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति द्वारा देखभाल करना ही वैकल्पिक शिशु-पालन या बच्चों की वैकल्पिक देखभाल व्यवस्था है। क्रेश, बालवाड़ी, आंगनवाड़ी व नर्सरी स्कूल बच्चों की वैकल्पिक देखभाल के प्रमुख साधन हैं।

रिपोर्ट तैयार करना:
यह विधि सूचनाएँ प्राप्त करने की सबसे सरल व सबसे अधिक प्रयोग में आने वाली विधि है इसमें साक्षात्कारकर्ता और सूचनादाता आमने-सामने बैठते हैं। साक्षात्कारकर्ता जो प्रश्न पूछता है, सूचनादाता मौखिक या लिखित जवाब देता है। साक्षात्कारकर्ता यह सूचना नोट करता जाता है। इस विधि का प्रयोग कभी भी और कहीं भी किया जा सकता है।

रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु
1. नाम: …………
2. आयु: …………….
3. जाति: ……………
4. शैक्षणिक योग्यता: ……………..
5. वैवाहिक स्थिति: हाँ / नहीं यदि हाँ तो बच्चों की संख्या ………
6. परिवार का प्रकार –

  • एकल परिवार
  • संयुक्त परिवार

7. रहने का क्षेत्र –

  •  ग्रामीण क्षेत्र
  • शहरी क्षेत्र

8. व्यवसाय – सरकारी

  • प्राइवेट
  • स्वरोजगार
  • अन्य

9. कार्य करने का क्षेत्र –

  • ग्रामीण
  • शहरी

10. घर से कार्य क्षेत्र की दूरी: …………………
11. घर से कार्य क्षेत्र तक जाने का साधन …………..
12. कार्य करने की समयावधि: ………………
13. कार्यक्षेत्र में कार्यरत होने का अनुभव कितने वर्ष का है?

  • दो वर्ष से कम
  • दो वर्ष
  • दो वर्ष से अधिक

14. मासिक वेतन: …………।
15. अपनी मासिक आय को कहाँ खर्च करती हैं?

  • बचत
  • बच्चों की शिक्षा
  • अन्य

16. क्या आप अपनी नौकरी से संतुष्ट हैं? हाँ/नहीं
17. नौकरी या कार्य करने के बाद बाकी समय का कहाँ उपयोग करती हैं?

  • घर के कार्य में
  • अन्य कार्य

18. क्या आप किसी प्रशिक्षण या अन्य किसी कार्यक्रमों में भाग लेती हैं?                   हाँ / नहीं
19. क्या आपको अपने कार्य क्षेत्र में कभी पुरस्कार मिला है?                                  हाँ / नहीं
20. क्या आपने अपने स्तर पर कभी कोई प्रशिक्षण कार्य करवाया है?                      हाँ / नहीं
21. क्या पारिवारिक मामलों में आपकी राय ली जाती है?                                       हाँ / नहीं
यदि हाँ तो कौन-से निर्णयों में आपकी ज्यादा भागीदारी होती है? …………………………………….।

उद्देश्य:

1. बालकों को प्रस्तावित सेवाओं का निर्देशन करवाकर छात्रों में उन सेवाओं की सीमा का विस्तार करना।
2. छात्रों की सहायता करना ताकि वे बालकों की शिक्षा व सेवा का सैद्धान्तिक पक्ष जान सकें व उन्हें समझ सकें।
3. छात्रों में कौशल उत्पन्न करना ताकि छात्र, बालकों को दी जाने वाली सेवाओं का मूल्यांकन कर सकें।

प्रक्रिया:
छात्र, बालकों को कल्याणकारी सेवाएँ प्रदान करने वाले संस्थानों का निर्देशन कर सूचना हेतु प्रश्नावली भरें।
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18. कर्मचारी के पद पर चयन हेतु तरीके –
(a) व्यक्तिगत साक्षात्कार
(b) अनुभव
(c) योग्यता
(d) प्रशिक्षण
(e) अन्य
19. क्या कर्मचारी वेतन से संतुष्ट है?                                 हाँ / नहीं
20. क्या कर्मचारियों का आपस में संयोजन है?                   हाँ / नहीं
21. नौकरी से कर्मचारी संतुष्ट है?                                     हाँ / नहीं
22. फर्नीचर
(a) पर्याप्त
(b) अपर्याप्त
23. खुला स्थान है, यदि है तो कितना
24. अलग-अलग कमरे
(i) सलाह के लिए                                                         हाँ / नहीं
(ii) कर्मचारी                                                                हाँ / नहीं
(iii) ग्राहक                                                                  हाँ / नहीं
(iv) विश्राम कक्ष                                                           हाँ / नहीं
अन्य उद्देश्य                                                                हाँ / नहीं
25. शौचालय व्यवस्था                                                   हाँ / नहीं
26. शुद्ध पेय जल व्यवस्था                                             हाँ / नहीं
27. क्या कमरे, रोशनदान व प्रकाश युक्त है                      हाँ / नहीं
28. क्या यहाँ पुस्तकालय सुविधा है?                                हाँ / नहीं
29. केन्द्र का स्थान:
(i) आसान पहुँच
(ii) ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र
(iii) अन्य
30. क्या यहाँ ग्राहक के लिए निजी प्रावधान है?                 हाँ / नहीं
31. आपके केन्द्र में सलाह प्रक्रिया के चरण क्या हैं?
32. समस्या समाधान की विधि
33. आप किस प्रकार के दस्तावेज और रजिस्टर बनाते हैं?
34. बजट का प्रयोग किस प्रकार से करते हैं?
35. विभिन्न विकासात्मक कार्य क्षेत्र को बढ़ाने के लिए क्रियात्मक कार्य प्रणाली –
(i) शारीरिक कार्य क्षेत्र
(ii) गत्यात्मक कार्य क्षेत्र
(iii) सामाजिक कार्य क्षेत्र
(iv) संवेगात्मक कार्य होगा
(v) संज्ञानात्मक कार्य क्षेत्र
(vi) भावात्मक कार्य क्षेत्र
(vii) सौंन्दर्यात्मक कार्य क्षेत्र।
इस प्रश्नावली की सहायता से आप जिस कल्याणकारी संस्था का भ्रमण कर चुके हैं, उसके बारे में विवरण लिखिए और उसके सुधार के सुझाव दीजिए।

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भोजन, पोषण एवं स्वास्थ्य के बीच परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। आजकल की भागदौड़ वाली जिन्दगी में स्वास्थ्य का विषय लगातार पिछड़ता जा रहा है। इसके परिणाम स्वरूप हम युवावस्था में ही रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, मोटापा, गठिया, थायरॉइड जैसे रोगों से पीड़ित होने लगे हैं जो कि पहले प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था की समस्याएँ थीं। इसका प्रमुख कारण खान-पान एवं रहन-सहन की गलत आदतें हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति का केवल बीमारी से मुक्त होना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उसका शारीरिक, मानसिक व सामाजिक स्वास्थ्य भी अच्छा होना आवश्यक है।

स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों जैसे कि संतुलित भोजन लेना, व्यायाम करना, पर्याप्त नींद लेना, नशे व तनाव से दूर रहना, आदि का पालन करके हम स्वस्थ रह सकते हैं तथा परिवार के अन्य लोगों को भी स्वस्थ रहने के लिए जागरूक कर सकते हैं। इस प्रायोगिक अभ्यास में हम स्वास्थ्य के विभिन्न मानव मापों का निरीक्षण करेंगे। सर्वप्रथम अध्यापक के मार्गदर्शन में लम्बाई व वजन नापना सीखेंगे।

1. लम्बाई नापना:
सामान्यतया लम्बाई को दो प्रकार से नापा जा सकता है जैसे पूरे शरीर की लम्बाई नापना एवं कुछ परिधियों की लम्बाई नापना जैसे – सिर व छाती की लम्बाई। किसी भी व्यक्ति के शरीर की लम्बाई चार भागों से मिलकर बनती है – पैर, नितम्ब, धड़ एवं खोपड़ी। पोषणीय मानवमिति को जानने के लिए व्यक्ति की कुल लम्बाई नापना आवश्यक है।

A. लम्बाई नापना
बालक व वयस्क की लम्बाई नापना:
1. बालक या वयस्क जो आसानी से सीधा खड़ा हो सकता है, उसकी लम्बाई, उसे दीवार के सहारे खड़ा करके फाइबर ग्लास से बने फीते द्वारा या स्थिर खड़े पैमाने द्वारा नापी जा सकती है।
2. बालक या वयस्क जिसकी लम्बाई लेनी है उसके जूते व चप्पल उतरवाकर नंगे पैर समतल जमीन पर तथा समतल दीवार के सहारे या स्थिर पैमाने के सहारे सीधा खड़ा कर लेना चाहिए।
3. बालों की चोटी, जूड़ा, क्लिप या टोपी आदि लम्बाई नापने से पहले सिर से हटा दें।
4. लम्बाई लेते समय ध्यान रखें कि बालक या वयस्क कमर या सिर झुकाकर या एक पैर पर जोर देकर खड़ा न हो।
5. व्यक्ति की एड़ियाँ, पीठ, कंधे, कूल्हे व सिर दीवार या पैमाने को
6. एक हाथ की सहायता से सिर व चेहरे को सीधा रखें तथा दूसरे हाथ से स्थिर पैमाने का ऊपरी हिस्सा धीरे-धीरे नीचे लाकर सिर से छुआएँ व पौमने पर अंकित लम्बाई सेमी. में पढ़कर लिखें।
7. यदि दीवार के सहारे लम्बाई नाप रहे हों तो स्केल को सिर पर छुआते हुए स्केल की सीध में दीवार पर निशान बनाएँ। तत्पश्चात लम्बाई को आँकने के लिए जमीन व दीवार पर निशान के बीच की दूरी को सेमी में नाप लें।

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शिशु की लम्बाई नापना:
1. शिशु की लम्बाई ज्ञात करने के लिए उसे समतल जमीन पर इस प्रकार लिटाएँ कि उसका सिर दीवार को छुए तथा पैर दूसरी तरफ हों।
2. धीरे से एक हाथ से सिर व मुँह को इस प्रकार स्थिर करें कि शिशु की आँख ऊपर की ओर छत को देखें।
3. एड़ी व तलुआ एक सीध में रखने के लिए एक हाथ से घुटनों को हल्का-सा दबाकर टाँगें सीधी कर पैरों को सीधा करें।
4. एक सख्त गत्ता लेकर उसे पैरों की एड़ी व तलुए से छुआएँ तथा इस स्थान पर अच्छे से निशान बनाएँ।
5. शिशु को हटाकर दीवार से निशान तक की दूरी फाइबर ग्लास के बने संकरे (चौड़ाई 1 सेमी से कम हो, व लचीला न हो) फीते से सेमी में नापकर कॉपी में नोट करें।
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2. वजन नापना:
वजन सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली नाप है। इसके द्वारा आसानी से पोषण स्तर का पता लगाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त वजन का घटना या बढ़ना न केवल डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी समझ सकते हैं बल्कि अन्य लोगों द्वारा भी इसे आसानी से समझा जा सकता है। वजन नापने के लिए उपयोग किए जाने वाला उपकरण सटीक, आसानी से ले जाने वाला एवं मजबूत होना चाहिए। ये अधिक महँगा भी नहीं होना चाहिए।

बालक एवं वयस्क का वजन लेना:
1. डिजिटल इलैक्ट्रॉनिक तुला द्वारा बालक एवं वयस्क का वजन लिया जा सकता है। वजन लेने से पूर्व मशीन के संकेतक को शून्य पर कर लेते हैं। मशीन सही वजन दश रही है या नहीं; इसका सत्यापन मानक बाँटों द्वारा कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को हम मशीन का मानकीकरण कहते हैं।
2. वजन लेने से पूर्व यह देखना आवश्यक है कि शरीर पर कम से कम वस्त्र हों। वजन लेते समय किसी प्रकार के आभूषण भी धारण नहीं किए होने चाहिए।
3. वजन नापने के लिए व्यक्ति को जूते या चप्पल उतरवाकर, दोनों टाँगों पर बराबर भार देते हुए मशीन के बीचोंबीच खड़ा करना चाहिए। व्यक्ति को सामने की ओर देखते हुए दोनों हाथ स्थिर रूप से शरीर के दोनों ओर रखने चाहिए।
4. जैसे ही मशीन वजन दर्शाए, उसे किलोग्राम में पढ़कर कॉपी में नोट कर लेते हैं। स्प्रिंग तुला में कम से कम लें। ग्रामव डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक तुला में कम से कम 250 ग्राम तक वजन नापा जा सकता है।

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शिशु का वजन नापना:
1. बीम स्केल द्वारा शिशु का वजन नापा जा सकता है। इसके अतिरिक्त सालटर स्केल द्वारा भी शिशु का वजन नापा जा सकता है।
2. शिशु का वजन लेते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके शरीर पर कम वस्त्र हों।
3. यदि आवश्यकता हो तो शिशु का वजन माता की गोद में रखकर भी लिया जा सकता है।
4. ऐसे में प्लेटफार्म बीम स्केल का उपयोग कर सकते हैं।
5. ऐसी स्थिति में सर्वप्रथम माता व शिशु दोनों का वजन एक साथ लें एवं उसे नोट कर लें। (भार-1)
6. इसके पश्चात् शिशु को गोद से उतारकर केवल माता का वजन लेकर नोट कर लें। (भार – 2)
7. शिशु का वजन ज्ञात करने के लिए भार 1 से भार

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राष्ट्रीय स्वास्थ्य सांख्यिकी केन्द्र (National Center for Health Statistics (NCHS)):
द्वारा शिशु, बालक एवं वयस्क की लम्बाई व वजन को सारणी में अंकित विभिन्न लिंग व आयु के लिए दिए गए मापों से तुलना कर अच्छे स्वास्थ्य का निरीक्षण करें।

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सिर की परिधि (Head Circumference):
1. कुछ बीमारियों के कारण बच्चों के सिर की परिधि बढ़ जाती है। ऐसे रोगों का हम सिर की परिधि नापकर पता कर सकते हैं। इन्हें हम जलशीर्षता एवं लघुशीर्षता के नाम से जानते हैं। ये प्रायः जन्म से ही उपस्थित होते हैं और इनका कारण संक्रमण या आनुवंशिकी हो सकता है।
2. इसके अतिरिक्त सिर की परिधि पोषण स्तर एवं आयु नापने में भी सहायक है।
3. सिर की परिधि का नाप 1 से 8 साल के बच्चों के लिए ही लिया जाता है।
4. सिर की परिधि का नाप, मस्तिष्क के माप एवं खोपड़ी की मोटाई पर निर्भर करता है।
5. द्वितीय वर्ष में खोपड़ी का आकार (मस्तिष्क का आकार) बढ़ने लगता है। परन्तु इन सभी का बढ़ना पोषण स्तर पर भी निर्भर करता है। अत: सिर की परिधि पोषण स्तर को बताती है और कुपोषण का पता लगाने में सहायता करती है।

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आयु के अनुसार सन्दर्भ शिशु व बालक के सिर व छाती की परिधि का नाप
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सिर की परिधि नापना:
नाप लेने के लिए एक संकरें (1 सेमी से कम व खिंचने वाला न हो) फीते का प्रयोग किया जाता है। यह स्टील या फाइबर ग्लास से निर्मित होता है। नाप लेते समय शिशु या बालक का सिर स्थिर होना चाहिए, फीता बांह के ऊपर रखना चाहिए और दोनों ओर समान्तर स्तर पर होना चाहिए।
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छाती की परिधि (Chest Circumference):
1. छह महीने के बाद खोपड़ी का विकास धीमा हो जाता है और छाती का विकास बढ़ने लगता है।
2. अत: पोषण स्तर को जाँचने के लिए सिर / छाती को नापकर उसका अनुपात निकाला जाता है।

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छाती की परिधि नापना:
नाप लेने के लिए संकरे (1 सेमी से कम व खिंचने वाला न हो) स्टील या फाइबर ग्लास से बने टेप का प्रयोग किया जाता है। नाप छाती पर स्तन को छूते हुए लिया जाता है। सिर व छाती की परिधि का अनुपात 6 माह से ऊपर के बच्चों का पोषण स्तर देखने के लिए किया जाता है।

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सिर व छाती की परिधि का अनुपात 6 माह से ऊपर के बच्चों का पोषण स्तर देखने के लिए किया जाता है। यदि यह अनुपात एक से कम (1>) तो बच्चा सामान्य पोषित है। एक या एक से अधिक (1<) अनुपात निकलने पर बच्चा कुपोषित की श्रेणी में आता है।

बॉडी मास इंडेक्स (Body Mass Index): BMI
वयस्क व्यक्ति का उचित वजन कितना होना चाहिए, ये दो बातों पर निर्भर करता है –
1. लम्बाई तथा
2. वजन।
आपका वजन किस श्रेणी में आता है यह बताने के लिए वैज्ञानिकों ने एक बहुत ही आसान तरीका बताया है, वह है। बॉडी मॉस इंडेक्स (Body Mass Index-BMI)।

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बॉडी मॉस इंडेक्स वयस्क व्यक्ति के वजन और लम्बाई के हिसाब से उसके शरीर में कितनी वसा है बताता है। इसकी गणना करने का सर्वाधिक सरल सूत्र है –
BMI = भार (किग्रा) / लम्बाई (मी)2

1 किग्रा = 2.5 पॉण्ड
1 फीट = 30 सेमी
1 मीटर = 100 सेमी
1 इंच = 2.5 सेमी
आप अपना BMI पता करलें और देखें कि यह किस श्रेणी में आता है।RBSE Class 11 Home Science Practical Work Unit 2 मानव विकास एवं पारिवारिक सम्बन्ध-15
18.5 से कम – कम वजन
18.5 से 25 – सामान्य वजन
25 से 29.9 – अधिक वजन
30 से अधिक – अत्यधिक वजन (मोटापा)
BMI की सही सीमा होने के अनेक लाभ हैं –

  • मधुमेह का कम खतरा
  • रक्तचाप सही रखना
  • हृदय सम्बन्धी बीमारियों की कम आशंका
  • जोड़ों में दर्द से बचाव
  • लम्बा और स्वस्थ जीवन
  • सही ऊर्जा का स्तर

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प्रायोगिक गतिविधि
1. 0-1 साल तक के शिशुओं के सिर एवं छाती की परिधि का अनुपात लेकर पोषण स्तर का आकलन करिए–
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2. 2 से 10 वर्ष तक के बच्चों की लम्बाई व वजन लेकर दिए गए सन्दर्भ वजन व लम्बाई से तुलना करके पोषण स्तर का आँकलन कीजिए –
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3. बी. एम. आई. के आधार पर पोषण स्तर का आकलन करिए।
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