RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 1 राजनीति विज्ञान: परिभाषा, प्रकृति एवं क्षेत्र

Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 1 राजनीति विज्ञान: परिभाषा, प्रकृति एवं क्षेत्र

RBSE Class 11 Political Science Chapter 1 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 1 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

राजनीति विज्ञान की प्रकृति प्रश्न 1.
किस भाषा के किस शब्द से पॉलिटिक्स शब्द की उत्पत्ति हुई है? उस शब्द का अर्थ बताइए।
उत्तर:
यूनानी भाषा (ग्रीक भाषा) के पोलिस (polis) शब्द से पॉलिटिक्स शब्द की उत्पत्ति हुई है जिसका अर्थ है – नगर राज्य ।।

राजनीति विज्ञान परिभाषा, प्रकृति एवं क्षेत्र प्रश्न 2.
अरस्तू ने ‘राजनीति’ शब्द को किस अर्थ में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर:
अरस्तू ने ‘राजनीति’ शब्द को नगर राज्य एवं उससे सम्बन्धित जीवन, घटनाओं, क्रियाओं, व्यवहारों तथा । समस्याओं का अध्ययन के अर्थ में अभिव्यक्त किया है।

Rajniti Vigyan Ki Prakriti प्रश्न 3.
आधुनिक समय में राजनीति शब्द को किन अर्थों में अभिव्यक्त किया जाता है?
उत्तर:
आधुनिक समय में राजनीति शब्द को राज्य, सरकार, प्रशासन व्यवस्था के अन्तर्गत समाज के विभिन्न सन्दर्भो वे सम्बन्धों के व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ज्ञान के अध्ययन के अर्थों में अभिव्यक्त किया जाता है।

राजनीति विज्ञान की प्रकृति की व्याख्या कीजिए प्रश्न 4.
लॉस्की ने राजनीति विज्ञान की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
लॉस्की के अनुसार, “राजनीति विज्ञान के अध्ययन का सम्बन्ध संगठित राज्यों से सम्बन्धित मनुष्यों के जीवन से है।”

राजनीति विज्ञान परिभाषा प्रकृति एवं क्षेत्र प्रश्न 5.
राजनीति विज्ञान को विज्ञान मानने वाले कोई चार राजनीति शास्त्रियों का नाम उल्लेखित कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान को विज्ञान मानने वाले राजनीति शास्त्री हैं-अरस्तू, बोदाँ, हाब्स व लॉस्की।

राजनीति विज्ञान की प्रकृति को समझाइए प्रश्न 6.
किन भारतीय प्राचीन विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को शासन की एक कला के रूप में मान्यता दी है?
उत्तर:
बृहस्पति, मनु, शुक्र व कौटिल्य आदि प्राचीन भारतीय विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को शासन की एक कला के रूप में मान्यता दी है।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न(शब्द सीमा 100 शब्द)

राजनीति विज्ञान की प्रकृति की विवेचना प्रश्न 1.
राजनीति विज्ञान के परम्परावादी परिप्रेक्ष्य के प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान के परम्परावादी परिप्रेक्ष्य के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. राजनीति विज्ञान का परम्परावादी दृष्टिकोण आदर्शवादी, दार्शनिक एवं कल्पनावादी है। इसके अन्तर्गत मूल्यों, आदर्शों एवं नैतिकता को
  2. महत्त्व दिया गया है।
  3. परम्परागत दृष्टिकोण ऐतिहासिक एवं वर्णनात्मक पद्धतियों पर बल देता है तथा अध्ययन का विषय राज्य, सरकार एवं संस्थाओं को मानता है।
  4. परम्परागत दृष्टिकोण के आधार पर राजनीति विज्ञान की परिभाषाओं को चार वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
    • राज्य के अध्ययन के रूप में
    • सरकार के अध्ययन के रूप में
    • राज्य और सरकार के अध्ययन के रूप में
    • राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रूप में।
    • यह राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से संकीर्ण पृथक्करण करता है।
    • संस्थावादी होने के कारण यह राजनीति के प्रति स्थैतिकता का दृष्टिकोण रखता है।

राजनीति विज्ञान की प्रकृति एवं महत्व की विवेचना कीजिए प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान के आधुनिक परिप्रेक्ष्य के लक्षण बताइए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान के आधुनिक परिप्रेक्ष्य के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. राजनीति विज्ञान के अध्ययन में मानव व्यवहार, शक्ति, सत्ता, प्रभाव, निर्णय प्रक्रिया, तर्क, अनुभवपरक, यथार्थवादी तथ्यात्मक अध्ययन एवं मनोवैज्ञानिक पद्धतियों को समाहित किया गया है।
  2. प्रक्रियात्मक पहलू पर बल देने के कारण यह राजनीति के प्रति गत्यात्मक दृष्टिकोण रखता है।
  3. मनोवैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय पद्धति के अनुकरण से यह परिप्रेक्ष्य राजनीति के अनौपचारिक पहलुओं का अध्ययन करता है।
  4. वैज्ञानिक पद्धति सहित प्राकृतिक विज्ञान की प्रविधियों का प्रयोग करता है।
  5. सिद्धांत की अनुभवमूलक, मूल्य निरपेक्ष, वस्तुनिष्ठ एवं व्यवहारपरक अवधारणा विकसित करना चाहता है।
    यह सार्वभौमिक राजनीति का अध्ययन करता है।
  6. यह अन्तर अनुशासनात्मकता के माध्यम से समाज विज्ञानों की एकता निर्मित करना चाहता है।

राजनीति विज्ञान की प्रकृति की विवेचना कीजिए प्रश्न 3.
आधुनिक दृष्टिकोण किस प्रकार राजनीति विज्ञान को विज्ञान बना देता है?
उत्तर:
राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण ने राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र को व्यापकता प्रदान की है। अब राजनीति विज्ञान में राज्य और सरकार के साथ – साथ राजनीतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन भी किया जाता है। मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार की और मानव के राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करने वाले राजनीतिक तत्वों के साथ-साथ गैरराजनीतिक तत्वों का भी अध्ययन किया जाता है। अध्ययन पद्धति में सांख्यिकीय, गणितीय व सर्वेक्षणात्मक पद्धतियों आदि का सहारा लिया जाने लगा है।

ये पद्धतियाँ यथार्थवादी हैं जो कि अध्ययन के लिए यथार्थवादी मूल्य निरपेक्ष एवं वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण का प्रयोग करती हैं। वैज्ञानिक पद्धतियों के उपयोग ने राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र को और भी व्यापक बना दिया है तथा विभिन्न समाज विज्ञानों के मध्य सार्थक संवाद एवं सम्प्रेषण की स्थितियाँ प्रकट हो गयी हैं। इस प्रकार आधुनिक दृष्टिकोण ने जहाँ राजनीति विज्ञान के क्षेत्र को व्यापकता प्रदान की है वहीं मूल्यमुक्तता भी प्रदान की है। वैज्ञानिक अध्ययन समस्याओं के समाधान में सहायक होता जा रहा है। अतः आधुनिक दृष्टिकोण ने आज राजनीति विज्ञान को विज्ञान बना दिया है।

Rajniti Vigyan Ki Prakriti Ki Vivechna Kijiye प्रश्न 4.
राजनीति विज्ञान को विज्ञान की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता इसकी पुष्टि में कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान को विज्ञान की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इसकी पुष्टि में दो तर्क निम्नलिखित हैं
(i) विज्ञान की भाँति प्रयोग और परीक्षण सम्भव नहीं – राजनीति विज्ञान में प्रयोग और परीक्षण सम्भव नहीं हैं। प्राकृतिक विज्ञानों की विषय-वस्तु निर्जीव पदार्थ, जैसे- गर्मी, सर्दी, ध्वनि, प्रकाश आदि होते हैं।

अतः प्रयोग और परीक्षण प्रयोगशालाओं में कहीं भी किया जा सकता है और सही निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं, जबकि राजनीति विज्ञान एक समाज विज्ञान है। इसकी विषय – वस्तु सजीव, संवेदनशील मनुष्य व उसका व्यवहार है जो हर परिस्थिति के अनुसार बदलता रहता है।

(ii) कार्य – कारण के पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करना कठिन-विज्ञान का यह एक मूलभूत लक्षण है। इसमें कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। राजनीति विज्ञान कल्पना, अनुमान एवं सम्भावनाओं पर ही कार्य करता है। अतः राजनीति विज्ञान में प्रत्यक्षतः कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित नहीं किये जा सकते हैं। इसलिए राजनीति विज्ञान को विज्ञान नहीं कहा जा सकता है।

राजनीति विज्ञान की प्रकृति की विवेचना कीजिये प्रश्न 5.
हर्बर्ट साइमन राजनीति विज्ञान को किस रूप में स्पष्ट करते हैं?
उत्तर:
हर्बर्ट साइमन प्रथम विचारक थे जिन्होंने दार्शनिक और आर्थिक विचारों को सम्बन्धित किया था। ये राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थक थे। इन्हें 1978 में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। इनके द्वारा लिखित ग्रन्थ ‘प्रशासनिक व्यवहार’ निर्णय प्रक्रिया के अध्ययन की दृष्टि से उल्लेखनीय ग्रन्थ माना जाता है। हर्बर्ट साइमन ने राजनीति विज्ञान को निर्णय निर्माण का विज्ञान माना है।

इनका मत है कि निर्णय का अर्थ विभिन्न विकल्पों में से चुनाव करना है। जब कोई समस्या सामने होती है तो । उसके विभिन्न विकल्प होते हैं। निर्णयकर्ता को अधिकतम लाभ या वांछित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उनमें से चयन करना पड़ता है। मानव की बुद्धिमता इसमें है कि वह ऐसे विकल्प का चुनाव करे जिससे अधिकतम सकारात्मक तथा न्यूनतम नकारात्मक परिणाम निकले।

साइमन के अनुसार, निर्णय निर्माण तार्किक (विवेकशील) चयन पर आधारित होना चाहिए। इन्होंने माना कि राजनीति विज्ञान सरकार को अध्ययन है और सरकार का मुख्य कार्य निर्णय निर्माण करना है। अतः राजनीति विज्ञान को निर्णय प्रक्रिया का विज्ञान कहा जा सकता है।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

Rajnitik Vigyan Ki Prakriti Ki Vivechna Kijiye प्रश्न 1.
परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण के सन्दर्भ में राजनीति विज्ञान की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान की प्रकृति के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वान इसे विज्ञान मानते हैं तो कुछ इसकी वैज्ञानिकता पर सन्देह करते हुए इसे कला मानते हैं परम्परागत दृष्टिकोण के सन्दर्भ में राजनीति विज्ञान की प्रकृति

परम्परागत दृष्टिकोण के समर्थक राजनीतिक विचारक राजनीति विज्ञान को विज्ञान की श्रेणी में नहीं रखते हैं। बक्ल को विचार था कि, “ज्ञान की वर्तमान अवस्था में राजनीति को विज्ञान मानना तो दूर वह कलाओं में भी सबसे पिछड़ी कला है।”

राजनीति विज्ञान का परम्परागत दृष्टिकोण इसकी प्रकृति को कला के रूप में देखता है और ‘चाहिए’ पर जोर देता है अर्थात् राजनीति विज्ञान, विज्ञान नहीं है। बक्ल, कॉम्टे, मेटलेण्ड, एमास, बोयर्ड, ब्रोजन, बर्क आदि विचारक राजनीति विज्ञान को विज्ञान के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। राजनीति विज्ञान, विज्ञान नहीं है। इसके पक्ष में अग्रलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

(i) विज्ञान जैसे प्रयोग और पर्यवेक्षण सम्भव नहीं – प्राकृतिक विज्ञानों में किसी भी विषय के बारे में अध्ययन करने के लिए पूर्वानुमान व परिकल्पना के साथ-साथ प्रयोग और पर्यवेक्षण की विधि अपनायी जाती है, जबकि राजनीति विज्ञान में किसी विषय के बारे में पूर्वानुमान तो किया जा सकता है, लेकिन इसकी जाँच के लिए प्रयोग एवं पर्यवेक्षण की विधि नहीं अपनायी जा सकती।

(ii) कार्य – कारण के पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करना कठिन – विज्ञान का मूलभूत लक्षण यह है कि इसमें कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। राजनीति विज्ञान कल्पना, अनुमान एवं सम्भावना पर कार्य करता है। अत: राजनीति विज्ञान में प्रत्यक्ष: कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित नहीं किये जा सकते हैं। इसलिए राजनीति विज्ञान को विज्ञान नहीं कहा जा सकता।

(iii) शुद्ध माप-तौल का अभाव-विज्ञान में पूर्ण शुद्ध माप-तौल के लिए आधुनिक उपकरण होते हैं, जबकि राजनीति विज्ञान में हम मानव के राजनीतिक विचारों व व्यवहारों का अध्ययन करते हैं, जिन्हें विभिन्न प्रकार की भावनाएँ, आवेग व संवेग प्रभावित करते हैं जिनका शुद्ध रूप में मापन सम्भव नहीं है।

(iv) सर्वमान्य सिद्धान्तों का अभाव-प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति राजनीति विज्ञान में सर्वमान्य सिद्धान्तों का अभाव है। फलस्वरूप इसे विज्ञान नहीं माना जा सकता।

(v) भविष्यवाणी की क्षमता का अभाव-विज्ञान के नियम निश्चित होते हैं और उनके आधार पर भविष्यवाणी की जा सकती है, वहीं राजनीति विज्ञान में इस तरह की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। केवल अनुमान लगाया जा सकता है।

(vi) अध्ययन सामग्री की प्रकृति में अन्तर-प्राकृतिक विज्ञान की अध्ययन सामग्री जड़ पदार्थ हैं जिनमें चेतना नहीं होती वहीं राजनीति विज्ञान की अध्ययन सामग्री मानव है जो चेतनशील है। उसके व्यवहार में पदार्थ जैसी जड़ता व एकरूपता नहीं पायी जाती है।

आधुनिक दृष्टिकोण के सन्दर्भ में राजनीति विज्ञान की प्रकृति :
राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थक विद्वान इसे विज्ञान की श्रेणी में रखते हैं। वे इसे पूर्ण विज्ञान बनाने के पक्ष में हैं। बोदाँ, हाब्स, मान्टेस्क्यू, ब्राइस, ब्लंटशली, जेलिनेक, फाईनर व लॉस्की जैसे राजनीति शास्त्री राजनीति विज्ञान को विज्ञान के रूप में स्वीकार करते हैं।

राजनीति विज्ञान की प्राकृतिक विज्ञानों से तुलना करना गलत है। यह मूलतः एक सामाजिक विज्ञान है और इस दृष्टि से विज्ञान होने के सभी प्रमुख लक्षण इसमें पाये जाते हैं। राजनीति विज्ञान के विज्ञान होने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

  1. क्रमबद्ध व व्यवस्थित ज्ञान – जिस प्रकार विज्ञान क्रमबद्ध, व्यवस्थित व वर्गीकृत होता है उसी प्रकार राजनीति विज्ञान राज्य, सरकार, राजनीतिक संस्थाओं, धारणाओं और विचारधाराओं का ज्ञान इसी रूप में प्रकट करता है।
  2. प्रयोग एवं पर्यवेक्षण सम्भव – राजनीति विज्ञान चूंकि एक समाज विज्ञान है इसलिए इसमें प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति प्रयोगशालाओं में कठोर वैज्ञानिक प्रयोग तो नहीं किये जा सकते हैं, फिर भी इसमें कुछ प्रयोग किया जाना सम्भव है। अतीत में भी ऐसे अनेक प्रयोग हुए हैं।
  3. कार्य – कारण में पारस्परिक सम्बन्ध सम्भव – राजनीति विज्ञान में विशेष घटनाओं के सम्बन्ध में कुछ सामान्य निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।
  4. भविष्यवाणी किया जाना सम्भव – राजनीति विज्ञान में प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति सटीक एवं शत-प्रतिशत भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, किन्तु मौसम विज्ञान की भाँति भविष्यवाणी राजनीति विज्ञान में भी सम्भव है।
  5. सर्वमान्य सिद्धान्त – राजनीति विज्ञान में विज्ञान की भाँति अनेक सर्वमान्य सिद्धान्तों को भी अस्तित्व है। उदाहरण के रूप में; लार्ड एक्टन के इस कथन को सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाता है कि “शक्ति भ्रष्ट करती है और सम्पूर्ण शक्ति सम्पूर्ण भ्रष्ट करती है।”

Rajniti Vigyan Ki Prakriti Ki Vyakhya Kijiye प्रश्न 2.
परम्परागत एवं आधुनिक राजनीति विज्ञान में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परम्परागत राजनीति विज्ञान एवं आधुनिक राजनीति विज्ञान में अन्तर
(क) परिभाषा सम्बन्धी अन्तर – परम्परावादी राजनीतिक विचारक राजनीति विज्ञान को ‘राज्य’ एवं ‘सरकार’ के अध्ययन का विज्ञान मानते हैं। जैसा कि गार्नर ने लिखा है, “राजनीति विज्ञान का प्रारम्भ और अन्त राज्य से होता है। इसके विपरीत आधुनिक राजनीतिक विचारकों का मत है कि राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनैतिक व्यवहार का अध्ययन है। जैसा कि लासवेल और केपलन ने बताया है कि “राजनीति विज्ञान एक व्यवहारवादी विषय के रूप में शक्ति को सँवारने एवं मिल-जुलकर प्रयोग करने का अध्ययन है।”

(ख) प्रकृति में भिन्नता – राजनीति विज्ञान के परम्परावादी विचारक राजनीति विज्ञान की प्रकृति को ‘कला’ के रूप में देखते हैं और ‘चाहिए’ पर बल देते हैं। जैसा कि बक्ल का विचार था कि “ज्ञान की वर्तमान अवस्था में राजनीति को विज्ञान मानना तो दूर, वह कलाओं में भी सबसे पिछड़ी कला है।”

प्राचीनकाल से ही बृहस्पति, मनु, शुक्र व कौटिल्य जैसे भारतीय राजनीतिशास्त्रियों ने इसे शासन की एक कला के रूप में परिभाषित किया। वहीं प्लेटो जैसे प्राचीन यूनानी विद्वान भी इसे शासन की एक श्रेष्ठ कला मानते हैं, जबकि आधुनिक राजनीतिक विचारक राजनीति विज्ञान की प्रकृति को ‘विज्ञान’ मानते हैं तथा यथार्थ, तथ्यात्मक, मूल्य-मुक्त एवं गणितीय अध्ययन पर बल देते हैं।

(ग) अध्ययन पद्धतियों में अन्तर – परम्परावादी राजनीति विज्ञान के अध्ययन में दार्शनिक, ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक आदि पद्धतियों का उपयोग करते हैं। ये पद्धतियाँ प्राचीन एवं अपरिष्कृत हैं। दूसरी ओर आधुनिक राजनीति विज्ञान के अध्ययन में सांख्यिकीय पद्धति का, आनुभविक पद्धति, व्यवस्था विश्लेषण पद्धति तथा अन्तः अनुशासनात्मक अध्ययन पद्धति का उपयोग किया जाता है। आधुनिक राजनीति शास्त्री मनुष्य के राजनीतिक व्यवहारों एवं उनसे सम्बन्धित आनुभविक सत्यों का विश्लेषण और निरूपण करते हैं।

(घ) मूल्यों के सम्बन्ध में अन्तर – परम्परागत राजनीति विज्ञान का दृष्टिकोण मूल्यों से मुक्त है। वह व्यक्तिनिष्ठ दृष्टिकोण से प्रभावित है। परम्परावादी आदर्श और नैतिकता में विश्वास करते हैं। वहीं दूसरी ओर आधुनिक राजनीति विज्ञान का दृष्टिकोण मूल्य निरपेक्षता पर बल देता है। आधुनिक राजनीति शास्त्रियों के अनुसार राजनीति वैज्ञानिक स्वयं को नैतिक भावनाओं, मूल्यों, आदर्शों एवं पक्षपातों से दूर रखकर वैज्ञानिक अध्ययन करने के साथ अनुसंधान करते हैं।

(ङ) लक्ष्य सम्बन्धी अन्तर – परम्परावादी राजनीति विज्ञान का लक्ष्य ‘अच्छे जीवन की प्राप्ति’ है। दूसरी ओर, आधुनिक राजनीति विज्ञान का लक्ष्य ‘अच्छे जीवन की प्राप्ति न होकर राजनीतिक घटनाओं को उनके यथार्थ रूप में समझकर उनका ज्यों का त्यों वर्णन करना है। आधुनिक राजनीति शास्त्री मानते हैं कि राजनीति वैज्ञानिक को केवल मूकदर्शक नहीं बनना है, बल्कि समस्याओं के समाधान के लिए भी प्रयास करना है।

(च) क्षेत्र सम्बन्धी अन्तर-परम्परावादी राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत राज्य के भूत, वर्तमान एवं भविष्य के साथ-साथ शासन के अंग, शासन के रूप एवं शासन के कार्यों का भी अध्ययन किया जाता है। परम्परावादी राजनीति वैज्ञानिक इन सभी का संस्थागत अध्ययन करते हैं।

वहीं आधुनिक राजनीति विज्ञानी संस्थाओं का नहीं वरन् प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं। वे विधायिका या संसद के ढाँचे का अध्ययन करने की अपेक्षा इस बात का अध्ययन करना अधिक पसन्द करते हैं कि कानून का निर्माण कौन करता है? कानून निर्माण का निर्णय कौन लेता है एवं कानून निर्माण की वास्तविक प्रक्रिया क्या है?

(छ) संकल्पनात्मक संरचनाओं में अन्तर-परम्परागत राजनीति विज्ञान में इस बात का विश्वास हीं नहीं किया जाता है कि राजनीति विज्ञान में सामान्य राजनीतिक सिद्धान्त का विकास किया जा सकता है, वहीं आधुनिक राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत इस बात पर न केवल विश्वास किया जाता है, बल्कि इस दिशा में अनेक संकल्पनाओं का विकास कर उनको आगे भी बढ़ाया जाता है।

(ज) सम्भावना और निश्चितता का अन्तर-परम्परागत राजनीति विज्ञान सम्भावना पर आधारित है, जबकि आधुनिक राजनीति विज्ञान तथ्यों तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से निकले निश्चित एवं प्रामाणिक निष्कर्षों पर आधारित है।

राजनीति विज्ञान की प्रकृति का वर्णन कीजिए प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान के अर्थ, स्वरूप और क्षेत्र के संबंध में परम्परागत और आधुनिक दृष्टिकोणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान के अर्थ, स्वरूप और क्षेत्र के सम्बन्ध में परम्परागत दृष्टिकोण अर्थ-राजनीति के अंग्रेजी पर्याय ‘Politics’ शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द ‘पोलिस’ (Polis) से हुई है, जिसका अर्थ है-नगर राज्य। अर्थात् नगर राज्य एवं उससे सम्बन्धित जीवन, घटनाओं, क्रियाओं, व्यवहारों तथा संरचनाओं का अध्ययन अथवा ज्ञान ही राजनीति है। परम्परागत दृष्टिकोण के अन्तर्गत राजनीति विज्ञान को चार अर्थों में परिभाषित किया जाता है-

  1. राज्य के अध्ययन के रूप में
  2. सरकार के अध्ययन के रूप में
  3. राज्य और सरकार के अध्ययन के रूप में
  4. राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रूप में। गार्नर के शब्दों में,”राजनीति विज्ञान का आरम्भ और अन्त राज्य के साथ ही होता है।”

परम्परावादी विद्वान राजनीति विज्ञान को राज्य, सरकार और व्यक्ति का अध्ययन करने वाला विषय मानते हैं। राज्य के अभाव में सरकार की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि सरकार राज्य द्वारा प्रदत्त शक्ति का ही उपयोग करती है। सरकार के बिना राज्य एक अमूर्त कल्पना मात्र है और व्यक्ति राज्य की प्राथमिक इकाई है।

अतः परम्परागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत राज्य, सरकार और व्यक्ति के अन्त:सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। स्वरूप – परम्परागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान में राज्य, सरकार एवं राजनीतिक संस्थाओं के संगठन व कार्यों का तथा व्यक्ति व राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन भी वैज्ञानिक पद्धति से किया जाना चाहिए।

यह दृष्टिकोण आदर्शवादी, दार्शनिक एवं कल्पनावादी है। इसमें मूल्यों, आदर्शों एवं नैतिकता को महत्त्व दिया गया है। क्षेत्र-राजनीति विज्ञान के क्षेत्र से तात्पर्य उसकी विषय-वस्तु से लिया जाता है। विभिन्न परम्परागत राजनीति विज्ञानियों एवं युनेस्को के दृष्टिकोण के आधार पर परम्परागत राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में निम्नलिखित विषय – वस्तु को सम्मिलित किया जा सकता है-

  1. मानव के राजनीतिक जीवन का अध्ययन
  2. राज्य का अध्ययन
  3. सरकार का अध्ययन
  4. स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन
  5. राजनीतिक दलों एवं दबाव समूहों का अध्ययन
  6. राजनीतिक दर्शन एवं विचारधाराओं का अध्ययन
  7. अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन
  8. कूटनीति का अध्ययन
  9. लोक प्रशासन का अध्ययन
  10. अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का अध्ययन
  11. अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का अध्ययन।

राजनीति विज्ञान के अर्थ, स्वरूप और क्षेत्र के सम्बन्ध में आधुनिक दृष्टिकोण
अर्थ – आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज्य, सरकार तथा प्रशासन – व्यवस्था के अन्तर्गत समाज के विविध संदर्भो व सम्बन्धों के व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ज्ञान तथा अध्ययन से है। आधुनिक दृष्टिकोण में राजनीति विज्ञान को निम्नलिखित चार अर्थों में परिभाषित किया जाता है –

  1. राजनीति विज्ञान मानवीय क्रियाओं का अध्ययन है
  2. शक्ति का अध्ययन है
  3. राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन है,
  4. निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन है।

आधुनिक राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार के औपचारिक अध्ययन के स्थान पर मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार, राजनीतिक प्रक्रियाओं एवं उन समस्त अनौपचारिक तत्वों के अध्ययन पर बल देता है जो राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार आधुनिक दृष्टिकोण परम्परागत दृष्टिकोण की अपेक्षा वैज्ञानिक और यथार्थवादी है।

स्वरूप – आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन किया जाना चाहिए तथा समस्त राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन भी व्यवहारवादी दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए।

क्षेत्र-द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में आधुनिक दृष्टिकोण का उदय हुआ जो अधिक व्यापक एवं यथार्थवादी है। इस दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में निम्नलिखित विषय-वस्तु सम्मिलित है

  1. मानव के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन
  2. राजनीतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन
  3. शक्ति का अध्ययन
  4. अन्त: अनुशासनात्मक अध्ययन
  5. वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग
  6. विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन।

Rajnitik Vigyan Ki Prakriti प्रश्न 4.
राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान का परम्परागत दृष्टिकोण वर्णनात्मक, विवरणात्मक, औपचारिक एवं आदर्शोन्मुखी होने के कारण राजनीति का सामान्य सिद्धान्त प्रस्तुत नहीं कर पाया। फलस्वरूप नवीन दृष्टिकोण की आवश्यकता महसूस हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में अधिक व्यापक व यथार्थवादी दृष्टिकोण का उदय हुआ जो आधुनिक दृष्टिकोण के नाम से जाना गया।

आधुनिक राजनीति वैज्ञानिकों ने राजनीति विज्ञान के अध्ययन में मानव व्यवहार, शक्ति, सत्ता, प्रभाव, निर्णय प्रक्रिया, तर्क, अनुभवपरक, यथार्थवादी एवं तथ्यात्मक अध्ययन के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक पद्धतियों को सम्मिलित किया है।

आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थक प्रमुख विद्वानों में कैटलिन, लॉसवेल, मेरियम, मैक्स वेबर, बर्टेन्ड रसेल तथा मार्गेन्थाऊ आदि सम्मिलित हैं।
राजनीति विज्ञान की परिभाषा : आधुनिक दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान की नवीन परिभाषाओं के सन्दर्भ में इसका अध्ययन निम्न रूपों में किया जाता है

(i) राजनीति विज्ञान मानवीय क्रियाओं का अध्ययन है – आधुनिक व्यवहारवादी विद्वान राजनीति विज्ञान को मूलतः मानव जीवन के राजनीतिक क्रियाकलापों एवं मानव जीवन के सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य पक्षों का अध्ययन करने वाला विज्ञान मानते हैं।
कैटलिन के अनुसार, “राजनीति विज्ञान संगठित मानव समाज से सम्बन्धित है किन्तु मुख्य रूप से वह सामुदायिक जीवन के राजनैतिक पहलुओं का अध्ययन करता है।”

(ii) राजनीति विज्ञान शक्ति का अध्ययन है-आधुनिक राजनीतिक विद्वान शक्ति को राजनीति विज्ञान की मूल संकल्पना मानते हैं। कैटलिन के शब्दों में, “राजनीति विज्ञान शक्ति का विज्ञान है।”

(iii) राजनीति विज्ञान राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन है-राजनीतिक व्यवस्था एक व्यापक अवधारणा है। इसमें शासन की औपचारिक संरचनाओं के साथ – साथ शासन को प्रभावित करने वाले अनौपचारिक तत्वों को भी सम्मिलित किया जाता है। डेविड ईस्टन व आमण्ड जैसे विचारकों के मतानुसार राजनीति विज्ञान सम्पूर्ण राजनीति व्यवस्था को अध्ययन करता है।

(iv) राजनीति विज्ञान नीति-निर्माण एवं निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन है-कुछ व्यवहारवादी विद्वान राजनीति विज्ञान को नीति, निर्णय एवं निर्माण प्रक्रिया के अध्ययन का विषय मानते हैं। लॉसवेल के अनुसार, “राजनीति विज्ञान नीति विज्ञान है।”

राजनीति विज्ञान की प्रकृति : आधुनिक दृष्टिकोण आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थक विद्वान राजनीति विज्ञान को विज्ञान के रूप में स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार राजनीति विज्ञान मूलत: एक सामाजिक विज्ञान है और इसे दृष्टि से विज्ञान होने के सभी प्रमुख लक्षण राजनीति विज्ञान में पाये जाते हैं।

मेरियम ने अपनी रचनाओं में इस बात पर जोर दिया कि राजनीति विज्ञान में वैज्ञानिक तकनीक एवं प्रविधियों का विकास समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। कैटलिन व हेरल्ड लावेल के अनुसार, “राजनीति विज्ञान मूलत: एक विज्ञान है और इसका सम्बन्ध राजनीतिक संस्थाओं के वैज्ञानिक विश्लेषण से है।”

राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र : आधुनिक दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण ने राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र को व्यापकता प्रदान की है। अब राजनीति विज्ञान में राज्य और सरकार जैसी औपचारिक संरचनाओं के साथ-साथ राजनीतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन भी किया जाता है। इसके अन्तर्गत मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करने वाले राजनीतिक तत्वों के साथ-साथ गैरराजनीतिक तत्वों का भी अध्ययन किया जाता है।

अध्ययन पद्धतियों में सांख्यिकी व गणित का भी उपयोग किया जाने लगा है। राजनीति विज्ञान को ऐसा व्यापक स्वरूप प्रदान किया गया है कि राजनीति विज्ञान के अध्ययन में राज्य को ही नहीं अपितु समाज को भी सम्मिलित किया जाता है। अब राजनीति विज्ञान का अन्तः अनुशासनात्मक अध्ययन किया जाने लगा है। राजनीति विज्ञान का नीति विज्ञान के रूप में भी अध्ययन किया जाने लगा है। यह शक्ति का अध्ययन बन गया है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत होता जा रहा है।

राजनीती विज्ञान की प्रकृति प्रश्न 5.
इस विचार का परीक्षण करें कि राजनीति विज्ञान कला और विज्ञान दोनों है।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान की प्रकृति के सम्बन्ध में विद्वान मतैक्य नहीं हैं। कुछ विद्वान इसे विज्ञान मानते हैं तो कुछ इसकी वैज्ञानिकता में सन्देह करते हुए इसे कला मानते हैं। राजनीति विज्ञान, विज्ञान के रूप में राजनीति विज्ञान को विज्ञान की संज्ञा दी जा सकती है। यद्यपि यह प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति विज्ञान नहीं कहा जा सकता अपितु यह मूलतः एक समाज विज्ञान है।

प्रसिद्ध विद्वान अरस्तू ने इसे ‘सर्वोच्च विज्ञान’ कहा है। किसी भी विषय के क्रमबद्ध और विवेकसम्मत ज्ञान को ही विज्ञान कहा जाता है। राजनीति विज्ञान को विज्ञान नहीं मानना अतिवादी दृष्टिकोण है। राजनीति विज्ञान को निम्नलिखित आधारों पर विज्ञान सिद्ध किया जा सकता है

(i) क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित ज्ञान – विज्ञान क्रमबद्ध, व्यवस्थित व वर्गीकृत होता है। राजनीति विज्ञान में राज्य, सरकार, राजनीतिक संस्थाओं, धारणाओं व विचारधाराओं का ज्ञान इसी रूप में प्रकट होता है। यह विज्ञान की भाँति ही राज्य की उत्पत्ति व विकास का क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत करता है। इस हेतु तथ्यों व आँकड़ों का भी प्रयोग किया जाता है।

(ii) पर्यवेक्षण व प्रयोग सम्भव – राजनी ति विज्ञान चूँकि एक समाज विज्ञान है इसलिए इसमें प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति प्रयोगशालाओं में कठोर वैज्ञानिक प्रयोग तो नहीं किये जा सकते फिर भी इसमें कुछ प्रयोग किया जाना सम्भव है।

उदाहरण के रूप में प्रयोग के आधार पर ही यह निष्कर्ष निकाला गया है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की स्थापना के लिए लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली को अपनाना आवश्यक है। इसी प्रकार विभिन्न राज्यों के कार्यक्षेत्र के आधार पर यह परिणाम निकाला जा सकता है कि राज्य के कार्यक्षेत्र को सीमित रखने के स्थान पर लोक-कल्याणकारी राज्य की नीति ही उपयुक्त है।

(iii) सर्वमान्य सिद्धान्त और निष्क र्ष का प्रतिपादन सम्भ व है – राजनीति विज्ञान में भी सर्वमान्य सिद्धान्त और निष्कर्ष प्रतिपादित किये जा सकते हैं। प्राचीन भारतीय चिंतक कौटिल्य और यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने कुछ सामान्य सिद्धान्त व निष्कर्ष प्रतिपादित किए जो आज भी प्रासंगिक हैं।

लार्ड एक्टन के इस कथन को सर्वमान्य स्वीकृति प्राप्त है कि “शक्ति भ्रष्ट करती है और सम्पूर्ण शक्ति सम्पूर्ण भ्रष्ट करती है। इसी प्रकार इस तथ्य को भी स्वीकार किया जाता है कि व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास के लिए राजनीतिक स्वतन्त्रता के साथ ही आर्थिक स्वतन्त्रता भी आवश्यक है।

(iv) कार्य – कारण सम्बन्ध स्थापित किया जाना सम्भव है-कतिपय विद्वानों का मत है कि राजनीति विज्ञान में कार्य-कारण में पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सकता है। अत: यह विज्ञान नहीं है, जबकि वास्तविकता यह है कि प्रत्येक घटनाक्रम एवं परिवर्तन की पृष्ठभूमि में कोई न कोई कारण अवश्य होता है।

उदाहरण के रूप में; विश्व में हुई विभिन्न क्रान्तियों के अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि शासकों के दम्भपूर्ण व्यवहार, प्रशासनिक अकुशलता, सामाजिक भेदभाव, राजनीतिक व आर्थिक भ्रष्टाचार आदि से उत्पन्न जन-असन्तोष के कारण क्रान्तियों का जन्म होता है।

(v) भविष्यवाणी किया जाना सम्भव है – राजनीति विज्ञान में प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति सटीक व शत-प्रतिशत सत्य भविष्यवाणी नहीं की जा सकती किन्तु मौसम विज्ञान की भाँति भविष्यवाणी राजनीति विज्ञान में भी सम्भव है। चुनाव विश्लेषण भी चुनाव पूर्व भविष्यवाणी करने में सफल होते हैं।

राजनीति विज्ञान, कला के रूप में। राजनीति विज्ञान अपनी प्रकृति से कला के रूप में भी है। किसी भी विद्या को कला होने के लिए उसमें दो लक्षणों का पाया जाना आवश्यक है, प्रथम – उस विषय के सैद्धान्तिक ज्ञान को व्यवहार में लागू करना सम्भव हो, द्वितीय-यह विषय मूल्यात्मक हो ताकि वह जीवन को अधिक आनन्दमय बना सके।

राजनीति विज्ञान में यह दोनों ही लक्षण पाये जाते हैं। अतः यह विज्ञान होने के साथ – साथ कला भी है। प्राचीन भारतीय राजनीति शास्त्रियों-बृहस्पति, मनु, शुक्र, कौटिल्य आदि ने राजनीति विज्ञान को शासन की कला के रूप में मान्यता दी, जबकि प्लेटो ने राजनीति को शासन की एक श्रेष्ठ कला के रूप में चित्रित किया है।

राजनीति विज्ञान अपने सैद्धान्तिक ज्ञान का प्रयोग शासन कला के रूप में करता है तथा प्रशासनिक संगठन के द्वारा अपनी सैद्धान्तिक नीतियों को लागू करता है। इन समस्त प्रयत्नों के पीछे एकमात्र उद्देश्य मानव जीवन को सुन्दर, सद्गुणी एवं पूर्ण बनाना है।

यह केवल इतना ही अध्ययन नहीं करता कि अतीत में राजनीतिक जीवन कैसा था, बल्कि यह भी अध्ययन करता है कि यह वर्तमान में कैसा है और कैसा होना चाहिए। इन मूल्यों और आदर्शों की स्थापना के लिए राजनीति विज्ञान अनेक व्यावहारिक प्रयत्न भी करता है। अतः इस दृष्टि से यह कला भी है।।

राजनीति विज्ञान कला और विज्ञान दोनों है:
अपनी प्रकृति से राजनीति विज्ञानी विज्ञान व कला दोनों ही है। यद्यपि यह एक प्राकृतिक विज्ञान नहीं है किन्तु सामाजिक विज्ञान अवश्य है। अपने उद्देश्यों एवं कार्यों की दृष्टि से यह श्रेष्ठ कला भी है। राजनीति विज्ञान अन्य सामाजिक विज्ञानों की भाँति तथ्यात्मक और मूल्यात्मक दोनों ही है। इसमें कला और विज्ञान दोनों के ही लक्षण पाये जाते हैं।

जब राजनीति विज्ञान अपने विषय का केवल सैद्धान्तिक अध्ययन करता है तब यह विज्ञान होता है और जब राजनीति विज्ञान इन सिद्धान्तों को मानव – जीवन के सुख में वृद्धि करने के लिए लागू करता है तब यह कला होता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान, कला और विज्ञान दोनों ही है।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

राजनीति विज्ञान की प्रकृति एवं महत्व प्रश्न 1.
“राजनीति विज्ञान राज्य से आरम्भ होता है एवं राज्य पर समाप्त” यह परिभाषा दी गई है
(अ) गार्नर द्वारा
(ब) ब्लंटशली द्वारा
(स) सीले द्वारा
(द) लीकॉक द्वारा।
उत्तर:
(अ) गार्नर द्वारा

कक्षा 11 के राजनीति विज्ञान के लिए RBSE समाधान प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान को किस विचारक ने ‘पूर्ण’ या सर्वोच्च विज्ञान माना है?
(अ) अरस्तू
(ब) प्लेटो
(स) गाँधी
(द) मेकियावेली।
उत्तर:
(अ) अरस्तू

राजनीति विज्ञान कला है या विज्ञान प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान को विज्ञान किस कारण कहा जाता है?
(अ) सिद्धान्तों की मतैक्यता
(ब) निर्णयों की सुनिश्चितता
(स) परिणामों की भविष्यवाणी
(द) क्रमबद्ध अध्ययन।
उत्तर:
(द) क्रमबद्ध अध्ययन।

राजनीति विज्ञान के अध्ययन की नवीन प्रवृत्तियों का वर्णन करें प्रश्न 4.
राजनीति विज्ञान को परम्परागत दृष्टिकोण मुख्यतः केन्द्रित था
(अ) सरकार और राज्य के अध्ययन पर
(ब) शक्ति व वैधता के अध्ययन पर
(स) राजनीतिक व्यवस्था के अध्ययन पर
(द) राजनीतिक प्रक्रियाओं के अध्ययन पर।
उत्तर:
(अ) सरकार और राज्य के अध्ययन पर

राजनीति विज्ञान की प्रकृति की व्याख्या प्रश्न 5.
“राजनीति विज्ञान सरकार से सम्बन्धित विधा है।” यह परिभाषा दी है
(अ) गिलक्राइस्ट ने
(ब) सीले ने
(स) लीकॉक ने
(द) उपर्युक्त में से किसी ने नहीं।
उत्तर:
(स) लीकॉक ने

राजनीति विज्ञान के अध्ययन में ऐतिहासिक विधि पर चर्चा प्रश्न 6.
परम्परागत राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में सम्मिलित नहीं है
(अ) राज्य का अध्ययन
(ब) सरकार का अध्ययन
(स) राजनीतिक दल व दबाव समूहों का अध्ययन ।
(द) सार्वजनिक समस्याओं के सन्दर्भ में संघर्ष व सहमति का अध्ययन।
उत्तर:
(द) सार्वजनिक समस्याओं के सन्दर्भ में संघर्ष व सहमति का अध्ययन।

राजनीति शास्त्र की प्रकृति  प्रश्न 7.
राजनीति विज्ञान को निम्न में से कौन-सा तर्क विज्ञान न होने की पुष्टि करता है?
(अ) राजनीति विज्ञान अपने अध्ययन की विषय-वस्तु को क्रमबद्ध व व्यवथित ज्ञान प्रस्तुत करता है।
(ब) राजनीति विज्ञान कार्य-कारण में पारस्परिक सम्बन्ध को व्यक्त करता है।
(स) राजनीति विज्ञान में सर्वमान्य सिद्धान्तों का अभाव है।
(द) राजनीति विज्ञान में पर्यवेक्षण व प्रयोग सम्भव है।
उत्तर:
(स) राजनीति विज्ञान में सर्वमान्य सिद्धान्तों का अभाव है।

RBSE Class 11 political science Chapter 1 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

राजनीति विज्ञान की परिभाषा, प्रकृति एवं क्षेत्र प्रश्न 1.
“मनुष्य स्वभाव से ही एक राजनैतिक प्राणी है और वह जो समाज अथवा राज्य के बिना रहता है, या तो देवता है अथवा पशु” यह कथन किस विद्वान का है?
(अ) प्लेटो का
(ब) अरस्तू का
(स) गार्नर का
(द) गाँधी जी की।
उत्तर:
(ब) अरस्तू का

राजनीति विज्ञान की प्रकृति बताइए प्रश्न 2.
परम्परागत दृष्टिकोण में राजनीति शास्त्र को किन अर्थों में परिभाषित किया जाता है?
(अ) राज्य के अध्ययन के रूप में।
(ब) सरकार के अध्ययन के रूप में
(स) राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रूप में
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

राजनीति विज्ञान की परिभाषा प्रकृति एवं क्षेत्र प्रश्न 3.
निम्न में से किस विद्वान ने राजनीति विज्ञान को राज्य के अध्ययन के रूप में माना है?
(अ) गार्नर ने
(ब) गैरिस ने
(स) गैटेल ने।
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

Rajniti Ki Prakriti प्रश्न 4.
“राजनीति विज्ञान का राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं से सम्बन्ध होता है।” यह कथन है
(अ) गिलक्राइस्ट का
(ब) पॉल जैनेट का
(स) डिमॉक का
(द) लॉस्की का।
उत्तर:
(अ) गिलक्राइस्ट का

Rajniti Shastra Ki Prakriti प्रश्न 5.
“राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज्य और उसके यन्त्र सरकार से है।” यह कथन है
(अ) लीकॉक का
(ब) जैनेट का
(स) डिमॉक का
(द) हर्मन हेलर का।
उत्तर:
(स) डिमॉक का

Rajniti Vigyan Ki Prakriti Ki Vyakhya प्रश्न 6.
निम्न में से किस विद्वान ने राजनीति को शक्ति का विज्ञान माना है?
(अ) डेविड ईस्टन ने
(ब) आमण्ड ने
(स) लॉसवेल ने
(द) कैटलिन ने।
उत्तर:
(द) कैटलिन ने।

राजनीति विज्ञान की परिभाषा प्रश्न 7.
“राजनीति विज्ञान निर्णय निर्माण का विज्ञान है।” यह कथन है
(अ) हर्बर्ट साइमन का
(ब) लॉसवेल का
(स) डेविड ईस्टन का
(द) कैटलिन का।
उत्तर:
(अ) हर्बर्ट साइमन का

प्रश्न 8.
राजनीति विज्ञान को निम्न में से कौन-सा तर्क विज्ञान होने की पुष्टि करता है?
(अ) क्रमबद्ध व व्यवस्थित ज्ञान
(ब) सर्वमान्य सिद्धान्त
(स) भविष्यवाणी की क्षमता
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ब) सर्वमान्य सिद्धान्त

प्रश्न 9.
‘स्टेट्समैन’ नामक ग्रन्थ के लेखक थे।
(अ) अरस्तू
(ब) प्लेटो
(स) कौटिल्य
(द) ब्रोगन।
उत्तर:
(ब) प्लेटो

प्रश्न 10.
निम्न में से किस विद्वान ने राजनीति को शासन की एक श्रेष्ठ कला के रूप में चित्रित किया है?
(अ) प्लेटो ने
(ब) अरस्तू ने
(स) कैलिन ने
(द) सीले ने।
उत्तर:
(अ) प्लेटो ने

प्रश्न 11.
“राजनीति विज्ञान कला, दर्शन और विज्ञान तीनों है।” यह कथन है
(अ) कैटलिन का
(ब) मेटलैण्ड को
(स) गांर्नर का
(द) बक्ल का।
उत्तर:
(अ) कैटलिन का

प्रश्न 12.
राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थक हैं
(अ) कैटलिने
(ब) लॉसवेल
(स) राबर्ट डहल
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 13.
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में सम्मिलित है
(अ) राज्य का अध्ययन
(ब) सरकार का अध्ययन
(स) अन्तर्राष्ट्रीय पक्ष का अध्ययन
(द) मानव के राजनैतिक व्यवहार का अध्ययन
उत्तर:
(द) मानव के राजनैतिक व्यवहार का अध्ययन

प्रश्न 14.
आधुनिक राजनीति विज्ञान की विशेषता है
(अ) मुक्त अध्ययन
(ब) वैज्ञानिकता
(स) व्यवहारवादी दृष्टिकोण
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 15.
“ज्ञान की वर्तमान अवस्था में राजनीति को विज्ञान मानना तो दूर, वह कलाओं में भी सबसे पिछड़ी कला है।” यह कथन है
(अ) गार्नर का
(ब) बक्ल का
(स) कैटलिन का
(द) अरस्तू का।
उत्तर:
(ब) बक्ल का

RBSE Class 11 Political Science Chapter 1 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न (शब्द सीमा 20 शब्द)

प्रश्न 1.
प्राचीन भारतीय चिंतकों ने विद्याओं को कितने भागों में बाँटा है?
उत्तर:

  1. त्रयी
  2. वार्ता
  3. आन्वीक्षिकी
  4.  दण्डनीति।

प्रश्न 2.
त्रयी विद्या क्या थी?
उत्तर:
वेद वेदांगों के ज्ञान, नैतिक एवं आध्यात्मिक विषयों को सम्मिलित करने वाला ज्ञान त्रयी विद्या कहलाता था?

प्रश्न 3.
वार्ता से क्या आशय था?
उत्तर:
वह विद्या जो कृषि, पशुपालन, शिल्प और वाणिज्य की शिक्षा देती थी, वार्ता कहलाती थी।

प्रश्न 4.
भौतिक उपलब्धियों एवं सम्पत्तियों के अर्जन से सम्बन्धित विद्या का नाम बताइए।
उत्तर:
वार्ता।

प्रश्न 5.
आन्वीक्षिकी से क्या आशय था?
उत्तर:
त्रयी और वार्ता के प्रति किये जाने वाले प्रयत्नों में सन्तुलन स्थापित करने वाली विद्या को आन्वीक्षिकी कहा जाता था।

प्रश्न 6.
दण्डनीति किसे कहा गया है?
उत्तर:
मानव जीवन के लौकिक और पारलौकिक उद्देश्यों को आन्वीक्षिकी के निर्धारित मापदण्डों के अनुसार प्रवर्तन की संस्थागत व्यवस्था को दण्डनीति कहा गया है।

प्रश्न 7.
“दण्डनीति ही वस्तुतः विद्या है।” यह कथन किस प्राचीन भारतीय चिंतक का है?
उत्तर:
यह कथन आचार्य शुक्र का है।

प्रश्न 8.
वर्तमान राजनीति शास्त्र विषय के लिए प्राचीन भारतीय चिंतन में किस शब्द का प्रयोग किया गया हैं?
उत्तर:
दण्डनीति का।

प्रश्न 9.
“राजनीति विज्ञान राज्य का अध्ययन है।” इस दृष्टिकोण के प्रमुख समर्थक विद्वानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ब्लंटशली, गार्नर, गैरिस, गैटेल आदि।

प्रश्न 10.
गार्नर ने राजनीति विज्ञान की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
गार्नर के अनुसार, “राजनीति विज्ञान का आरम्भ और अन्त राज्य के साथ होता है।”

प्रश्न 11.
परम्परावादी विद्वान राजनीति विज्ञान को किसका अध्ययन करने वाला विषय मानते हैं?
उत्तर:
परम्परावादी विद्वान राजनीति विज्ञान को राज्य, सरकार और व्यक्ति का अध्ययन करने वाला विषय मानते हैं।

प्रश्न 12.
राजनीति शास्त्र को मानवीय क्रियाओं का अध्ययन मानने वाले किन्हीं दो विचारकों का नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. कैटलिन
  2.  जूविनेल।

प्रश्न 13.
राजनीति विज्ञान को शक्ति का अध्ययन मानने वाले दो राजनीति शास्त्रियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. लॉसवेल
  2. कैटलिन।

प्रश्न 14.
लॉसवेल ने राजनीति विज्ञान की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
लॉसवेल के अनुसार, “राजनीति विज्ञान एक नीति विज्ञान है।”

प्रश्न 15.
किन्हीं दो आधुनिक राजनीति शास्त्रियों के नाम लिखिए जो राजनीति विज्ञान को राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन मानते हैं?
उत्तर:

  1. डेविड ईस्टन
  2. आमण्ड।

प्रश्न 16.
डेविड ईस्टन ने राजनीतिक व्यवस्था को किस प्रकार परिभाषित किया है?
उत्तर:
डेविड ईस्टन के अनुसार, “किसी समाज में पारस्परिक क्रियाओं की ऐसी व्यवस्था को जिससे उक्त समाज में बाध्यकारी या अधिकारपूर्ण नीति-निर्धारण होते हैं, राजनीतिक व्यवस्था कहा जाता है।”

प्रश्न 17.
परम्परावादी परिभाषाएँ राजनीति विज्ञान में किन – किन पद्धतियों के अध्ययन पर बल देती हैं?
उत्तर:
परम्परावादी परिभाषाएँ राजनीति विज्ञान के अध्ययन में दार्शनिक, ऐतिहासिक एवं कानूनी पद्धतियों के अध्ययन पर बल देती हैं।

प्रश्न 18.
राजनीति विज्ञान की आधुनिक परिभाषाएँ किन-किन अध्ययन पद्धतियों पर बल देती हैं?
उत्तर:
अन्तः अनुशासनात्मक उपागम एवं अनुभववादी पद्धतियों पर।

प्रश्न 19.
राजनीति विज्ञान को विज्ञान के रूप में स्वीकार न करने वाले किन्हीं चार विद्वानों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. बक्ल
  2. काम्टे
  3. वीयर्ड
  4. बर्क।

प्रश्न 20.
“जब मैं ‘राजनीति विज्ञान’ शीर्षक के अन्तर्गत परीक्षा प्रश्नों को देखता हूँ, तो मुझे प्रश्नों के लिए नहीं अपितु शीर्षक के लिए खेद होता है।” यह कथन किस राजनीतिक शास्त्री का है?
उत्तर:
यह कथन मेटलेण्ड का है।

प्रश्न 21.
राजनीति विज्ञान के विज्ञान होने के विरुद्ध कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:

  1. विज्ञान जैसे प्रयोग व परीक्षण सम्भव नहीं
  2. सर्वमान्य सिद्धान्तों का अभाव होना।

प्रश्न 22.
राजनीति विज्ञान के विज्ञान होने के पक्ष में कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:

  1. क्रमबद्ध व व्यवस्थित ज्ञान
  2. कार्य – कारण में पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित होना।

प्रश्न 23.
गार्नर ने विज्ञान को किस प्रकार परिभाषित किया है?
उत्तर:
गार्नर के अनुसार, “विज्ञान किसी विषय से सम्बन्धित उस ज्ञानराशि को कहते हैं जो विधिवत पर्यवेक्षण, अनुभव एवं अध्ययन के आधार पर प्राप्त की गई है तथा जिसके तथ्य परस्पर सम्बद्ध, क्रमबद्ध एवं वर्गीकृत किये गये हैं।”

प्रश्न 24.
राजनीति विज्ञान के कौन से दो लक्षण इसे कला के रूप में चित्रित करते हैं?
उत्तर:

  1. राजनीति विज्ञान के सैद्धान्तिक ज्ञान को व्यवहार में लागू करना सम्भव होना।
  2. राजनीति विज्ञान का मूल्यात्मक होना।

प्रश्न 25.
मानव जीवन को अधिक सुखमय बनाने के लिए राजनीति विज्ञान में किस सिद्धान्त को स्वीकार किया गया है?
उत्तर:
मानव जीवन को अधिक सुखमय बनाने के लिए राजनीति विज्ञान में लोक – कल्याणकारी राज्य के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया है।

प्रश्न 26.
परम्परागत राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में सम्मिलित किन्हीं दो बातों को बताइए।
उत्तर:

  1. मानव के राजनैतिक जीवन का अध्ययन
  2. राजनैतिक विचारधाराओं का अध्ययन।

प्रश्न 27.
राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थक किन्हीं दो राजनीति शास्त्रियों का नाम बताइए।
उत्तर:

  1. केटलिन
  2. लॉसवेल।

प्रश्न 28.
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में सम्मिलित किन्हीं दो बातों को बताइए।
उत्तर:

  1. मानव के राजनैतिक व्यवहार का अध्ययन
  2. विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन।।

प्रश्न 29.
“किसी समस्या को संघर्षपूर्ण बनाने वाली अथवा उसका समाधान खोजने वाली सभी गतिविधियाँ राजनीति हैं।” यह कथन किस राजनीति शास्त्री का है? | उत्तर:
यह कथन मेरान व बेनफील्ड का है।।

प्रश्न 30.
राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र सम्बन्धी परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण में कोई एक अन्तर लिखिए।
उत्तर:
परम्परागत दृष्टिकोण एक अनुशासनात्मक दृष्टिकोण है, जबकि आधुनिक दृष्टिकोण अन्तर अनुशासनात्मक दृष्टिकोण है।

प्रश्न 31.
आधुनिक राजनीति विज्ञान की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. यथार्थवादी अध्ययन
  2. व्यवहारवादी दृष्टिकोण।

प्रश्न 32.
व्यवहारवाद की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
उत्तर:
व्यवहारवाद की सबसे बड़ी विशेषता है-सिद्धान्त का प्रयोग।

प्रश्न 33.
आधुनिक युग में अध्ययन के लिए सम्पूर्ण राजनीति विज्ञान को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
दो भागों में

  1. परम्परागत राजनीति विज्ञान
  2. आधुनिक राजनीति विज्ञान।।

प्रश्न 34.
लॉसवेल और केपलन ने राजनीति विज्ञान की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
लॉसवेल और केपलन के अनुसार, “राजनीति विज्ञान एक व्यवहारवादी विषय के रूप में शक्ति को सँवारने एवं मिल बाँटकर प्रयोग करने का अध्ययन है।”

प्रश्न 35.
परम्परावादी राजनीति शास्त्रियों द्वारा प्रयुक्त अध्ययन पद्धतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. दार्शनिक पद्धति
  2. ऐतिहासिक पद्धति
  3. तुलनात्मक पद्धति

प्रश्न 36.
आधुनिक राजनीति शास्त्रियों द्वारा प्रयुक्त अध्ययन पद्धतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सांख्यिकीय पद्धति
  2. आनुभविक पद्धति
  3. व्यवस्था विश्लेषण पद्धति
  4. अन्तः अनुशासनात्मक पद्धति।

प्रश्न 37.
परम्परागत और आधुनिक राजनीति विज्ञान में कोई एक अन्तर बताइए।
उत्तर:
परम्परागत राजनीति विज्ञान मूल्यों में आस्था रखता है, जबकि आधुनिक राजनीति विज्ञान मूल्य निरपेक्ष है।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य के अध्ययन के रूप में राजनीति विज्ञान को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
गार्नर, गैटेल, ब्लंटशली व गैरिस आदि विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को राज्य के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया है। यथा

  1. गार्नर के अनुसार, “राजनीति विज्ञान का आरम्भ और अन्त राज्य के साथ ही होता है।”
  2. गैटेल के अनुसार, “राजनीति विज्ञान राज्य के वर्तमान एवं भविष्य का, राजनीतिक संगठन एवं राजनीतिक कार्यों का, राजनीतिक संस्थाओं का तथा राजनीतिक सिद्धान्तों का अध्ययन करता है।”
  3. ब्लंटशली के अनुसार, “राजनीति विज्ञान वह विज्ञान है जिसका सम्बन्ध राज्य से है, जो राज्य की आधारभूत स्थितियों, उसकी प्रकृति एवं विविध स्वरूपों तथा विकास को समझने का प्रयत्न करता है।”
  4. गैरिस के अनुसार, “राजनीति विज्ञान राज्य को एक शक्ति संस्था के रूप में मानता है जो राज्य के समस्त सम्बन्धों, उसकी उत्पत्ति, उसके स्थान, उसके उद्देश्य, उसके नैतिक महत्व, उसकी आर्थिक समस्याओं एवं उसके वित्तीय पहलू आदि का विवेचन करता है।”

प्रश्न 2.
सरकार के अध्ययन के रूप में राजनीति विज्ञान को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
सर जॉन सीले, लीकॉक एवं पॉल जैनेट आदि प्रमुख राजनीतिक विचारकों ने राजनीति विज्ञान को सरकार के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया है, यथा

  1. सर जॉन सीले के अनुसार, “राजनीति विज्ञान शासन सम्बन्धी बातों की खोज ठीक उसी प्रकार करता है जिस प्रकार अर्थशास्त्र सम्पत्ति को, जीवं शास्त्र जीव का, बीजगणित अंकों का एवं रेखागणित स्थान और दूरी के सम्बन्ध में । विचार करता है।”
  2. लीकॉक के अनुसार, “राजनीति विज्ञान सरकार से सम्बन्धित अध्ययन है।”
  3. पॉल जैनेट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान सामाजिक शास्त्र का वह भाग है जिसमें राज्य के आधार एवं शासन के सिद्धान्तों पर विचार किया जाता है।”

प्रश्न 3.
“राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन है।” समझाइए।
उत्तर:
कुछ राजनीतिक विचारकों का मत है कि राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार दोनों का ही अध्ययन करता है, जैसा कि निम्नलिखित परिभाषाओं से स्पष्ट है

  1. आर. एन. गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान का राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं से सम्बन्ध होता है।”
  2. डिमॉक के अनुसार, “राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज्य और उसके यन्त्र सरकार से है।”
  3. पॉल जैनेट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह भाग है, जिसमें राज्य के आधार और सरकार के सिद्धान्तों पर विचार किया जाता है।” उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि राज्य के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार का होना अति आवश्यक है। वहीं बिना राज्य के सरकार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए राजनीति विज्ञान में राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 4.
राज्य, सरकार एवं व्यक्ति के अध्ययन के रूप में राजनीति विज्ञान की स्थिति की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान की अधिकांश परिभाषाओं में राज्य और सरकार जैसी संस्थाओं को तो महत्त्व दिया गया है लेकिन राज्य और सरकार के महत्त्वपूर्ण अंग व्यक्ति की उपेक्षा की गई है। व्यक्ति के अध्ययन के बिना राजनीति विज्ञान का अध्ययन अधूरा है। समाज विज्ञान की विभिन्न शाखाएँ मानव जीवन के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करती हैं, उनमें राजनीति विज्ञान मानव जीवन के राजनीतिक पक्ष का अध्ययन करता है। राज्य और सरकार मानव जीवन के राजनीतिक पक्ष को निर्धारित, नियन्त्रित एवं संचालित करते हैं, वहीं मानव भी राज्य और सरकार को प्रभावित करता है।

लॉस्की के अनुसार, “राजनीति विज्ञान के अध्ययन का सम्बन्ध संगठित राज्यों से सम्बन्धित मनुष्य के जीवन से है।” गैटेल के अनुसार, “राजनीति विज्ञान में मानव जीवन का राजनीतिक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है।”
हर्मन हेलर के अनुसार, “राजनीति विज्ञान के सर्वांगीण स्वरूप का निर्धारण व्यक्ति सम्बन्धी मूलभूत पूर्व मान्यताओं द्वारा होता है।”

प्रश्न 5.
मानवीय क्रियाओं एवं व्यवहार के अध्ययन के रूप में राजनीति विज्ञान को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान को मूलतः मानव जीवन के राजनीतिक क्रियाकलापों एवं इसके सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य पक्षों का अध्ययन करने वाला विज्ञान मानते हैं। इन विद्वानों के अनुसार राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करता है।

कैटलिन के अनुसार, “राजनीति विज्ञान संगठित मानव समाज से सम्बन्धित है किन्तु मुख्य रूप से वह सामुदायिक जीवन के राजनैतिक पहलुओं का अध्ययन करता है।” जूविनेल के अनुसार, “राजनीति विज्ञान उन राजनीतिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है जो मिल-जुलकर रहने वाले व्यक्तियों के बीच उत्पन्न हो जाते हैं।”

प्रश्न 6.
आधुनिक राजनीति विज्ञान शक्ति का अध्ययन है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीति में शक्ति का सिद्धान्त उतना ही प्राचीन है जितना राजनीतिक चिंतन परन्तु आधुनिक राजनीतिक विद्वान शक्ति को राजनीति विज्ञान की मूल संकल्पना मानते हैं। कैटलिन, लॉसवेल, मैक्स वेबर, मेरियम, रसेल आदि विद्वान शक्ति को एक ऐसी बुनियादी संकल्पना मानते हैं जो राजनीति विज्ञान के समस्त विभागों को एक सूत्र में पिरो देती है।

कैटलिन ने राजनीति विज्ञान को शक्ति का विज्ञान माना है। लॉसवेल के अनुसार, “शक्ति का सिद्धान्त सम्पूर्ण राजनीति विज्ञान में एक बुनियादी सिद्धान्त है, सम्पूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया शक्ति के वितरण,प्रयोग एवं प्रभाव का अध्ययन है।” इस प्रकार राजनीति विज्ञान में शक्ति का अध्ययन एक मूल अवधारणा के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 7.
राजनीतिक व्यवस्था से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ईस्टन के अनुसार, “किसी समाज में पारस्परिक क्रियाओं की ऐसी व्यवस्था को जिससे समाज में बाध्यकारी या अधिकारपूर्ण नीति निर्धारण होते हैं, राजनीतिक व्यवस्था कहा जाता है।”राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा राज्य, सरकार और संविधान की अवधारणा से अधिक व्यापक है। राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत राज्य एवं सरकार की औपचारिक संरचनाओं के साथ-साथ उनको प्रभावित करने वाले अनौपचारिक तत्वों के अध्ययन को भी सम्मिलित कर लिया जाता है।

डेविड ईस्टन एवं आमण्ड जैसे आधुनिक राजनीतिक विचारक राजनीति विज्ञान को राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन मानते हैं। जहाँ राज्य और शासन जैसे शब्दों में राजनीतिक जीवन के औपचारिक एवं कानूनी अध्ययन पर बल दिया जाता है, वहीं राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा के अन्तर्गत इस औपचारिक कानूनी अध्ययन के मूल में जाकर राजनीतिक सत्यता का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है।

प्रश्न 8.
राजनीति विज्ञान की परम्परागत एवं आधुनिक परिभाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान की परम्परागत एवं आधुनिक परिभाषाओं की तुलना ।

  1. परम्परावादी परिभाषाएँ राजनीति विज्ञान का अर्थ संकुचित परिप्रेक्ष्य में प्रतिपादित करती हैं, जबकि आधुनिक परिभाषाएँ राजनीति विज्ञान का अर्थ विस्तृत परिप्रेक्ष्य में प्रतिपादित करती हैं।
  2. परम्परावादी परिभाषाएँ राजनीतिक संरचना पर बल देती हैं, जबकि आधुनिक परिभाषाएँ राजनीतिक प्रक्रिया के अध्ययन पर बल देती हैं।
  3. परम्परावादी परिभाषाएँ आदर्शों व मूल्यों पर बल देती हैं, जबकि आधुनिक परिभाषाएँ तथ्यों के अध्ययन पर बल देती हैं।
  4. परम्परावादी परिभाषाएँ राजनीति विज्ञान में दार्शनिक, ऐतिहासिक एवं कानूनी पद्धतियों के अध्ययन पर बल देती हैं, जबकि आधुनिक परिभाषाएँ अन्तः अनुशासनात्मक उपागम एवं अनुभववादी पद्धतियों पर बल देती हैं।
  5. परम्परावादी परिभाषाएँ राजनीति विज्ञान को राज्य व सरकार जैसी औपचारिक संस्थाओं का अध्ययन करने वाला विषय बताती हैं, जबकि आधुनिक परिभाषाएँ इसे औपचारिक संस्थाओं के साथ – साथ अनौपचारिक; तत्वों जैसे-शक्ति, प्रभाव, राजनीतिक व्यवस्था एवं निर्णय प्रक्रिया के अध्ययन को भी सम्मिलित करती हैं।

प्रश्न 9.
राजनीति विज्ञान, विज्ञान नहीं है। क्यों?
उत्तर:
राजनीति विज्ञान, विज्ञान नहीं है। बक्ल, काम्टे, मेटलेण्ड, एमास, बीयर्ड, बर्क व ब्रोजन जैसे राजनीति के विद्वान इसे विज्ञान के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। राजनीति विज्ञान के विज्ञान न होने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

  1. सर्वमान्य सिद्धान्तों का अभाव होना।
  2. राजनीति विज्ञान के अर्थ, परिभाषा एवं अध्ययन पद्धतियों के सम्बन्ध में मतभेद होना
  3. प्रयोग व परीक्षण सम्भव नहीं होना।
  4. राजनीतिक घटनाओं का मापन सम्भव नहीं होना।
  5. राजनीति विज्ञान में मूल्य निरपेक्षता का अभाव होना।
  6. अध्ययन सामग्री की प्रकृति में अन्तर होना।
  7. कार्य – कारण सम्बन्धों को निश्चित करना कठिन होना।
  8. निश्चित व सत्य भविष्यवाणी का अभाव होना।।

प्रश्न 10.
राजनीति विज्ञान, विज्ञान है। इस कथन के पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
बोदाँ, हाब्स, मान्टेस्क्यू, ब्राइस, लास्की, फाइनर, ब्लंटशली आदि विद्वान राजनीति विज्ञान को विज्ञान के रूप में स्वीकार करते हैं। अरस्तू जैसे प्रसिद्ध विचारक ने राजनीति विज्ञान को सर्वोच्च विज्ञान कहा है।

राजनीति विज्ञान को विज्ञान मानने वाले विद्वानों का मुख्य तर्क यह है कि राजनीति विज्ञान मूलतः एक सामाजिक विज्ञान है और इस दृष्टि से विज्ञान होने के समस्त लक्षण राजनीति विज्ञान में पाए जाते हैं। इसकी प्राकृतिक विज्ञानों से तुलना करना गलत है। राजनीति विज्ञान के विज्ञान होने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

  1. राजनीति विज्ञान में पर्यवेक्षण व परीक्षण सम्भव है।
  2. वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग होता है।
  3. सर्वमान्य सिद्धान्त हैं।
  4. क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित ज्ञान।
  5. कार्य – कारण सम्बन्ध स्थापित किया जाना सम्भव होना।
  6. भविष्यवाणी किया जाना सम्भव होना।

प्रश्न 11.
राजनीति विज्ञान कला है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान अपनी प्रकृति से विज्ञान ही नहीं, कला भी है। प्राचीन चिंतकों, जैसे-बृहस्पति, मनु, शुक्र, कौटिल्य एवं प्लेटो आदि ने राजनीति विज्ञान को शासन की एक कला के रूप में मान्यता दी। किसी भी विषय को कला होने के लिए उसमें दो लक्षणों का होना आवश्यक है-

  1. उस विषय के सैद्धान्तिक ज्ञान को व्यवहार में लागू करना सम्भव हो
  2. जीवन को अधिक सुखमय बनाने के लिए वह विषय मूल्यात्मक हो।

राजनीति विज्ञान में यह दोनों लक्षण पाये जाते हैं। अत: यह विज्ञान होने के साथ-साथ कला भी है। राजनीति विज्ञान अपने सैद्धान्तिक ज्ञान का प्रयोग शासन की एक कला के रूप में करता है तथा प्रशासनिक संगठन के द्वारा अपनी सैद्धान्तिक नीतियों को लागू करता है। इन प्रयत्नों के पीछे मानव जीवन को अधिक सुखमय बनाने का एक मूल्यात्मक उद्देश्य रहता है।

इसके अतिरिक्त यह अतीत, वर्तमान व भविष्य के राजनीतिक जीवन का भी अध्ययन करता है। इन आदर्शों एवं मूल्यों को क्रियान्वित करने के लिए राजनीति विज्ञान अनेक व्यावहारिक प्रयत्न भी करता है। अत: राजनीति विज्ञान का यह व्यावहारिक पक्ष कला की श्रेणी में रखा जा सकता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान एक कला भी है।

प्रश्न 12.
यूनेस्को’ के अनुसार राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में किन – किन विषयों को सम्मिलित किया जाना चाहिए?
अथवा
यूनेस्को के दृष्टिकोण से राजनीति विज्ञान के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
1948 ई. में हुए यूनेस्को के पेरिस सम्मेलन में राजनीति विज्ञान के किन-किन विषयों को सम्मिलित किया गया?
अथवा
यूनेस्को के अनुसार परम्परागत राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में कौन-सी विषय-सामग्री को स्थान दिया जाना चाहिए?
उत्तर:
1948 ई. में हुए यूनेस्को के पेरिस सम्मेलन के अनुसार राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में निम्नलिखित विषयों को सम्मिलित किया जाना चाहिए

  1. राजनीतिक सिद्धान्त – इसके अन्तर्गत राजनीतिक विचारों के इतिहास एवं राजनीतिक सिद्धान्तों का अध्ययन।
  2. राजनीतिक संस्थाएँ – संविधान, राष्ट्रीय सरकार, प्रान्तीय सरकारें, स्थानीय सरकारें, लोक प्रशासन, सरकार के सामाजिक-आर्थिक कार्य एवं राजनीति संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन।
  3. राजनीति दल, दबाव समूह एवं लोकमत – इसके अन्तर्गत राजनीतिक दल, दबाव समूह आदि का राजनैतिक व्यवहार एवं लोकमत तथा शासन में नागरिकों के भाग लेने की प्रक्रिया का अध्ययन ।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध – अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, अन्तर्राष्ट्रीय विधि, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन एवं प्रशासन का अध्ययन। आगे चलकर विश्व के वैज्ञानिकों ने यूनस्को के पेरिस सम्मेलन द्वारा निर्धारित उपर्युक्त विषयों को राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 13.
परम्परागत राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में कौन-कौनसी विषय वस्तुओं को सम्मिलित किया जा सकता है?
अथवा
परम्परागत राजनीति विज्ञान के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
राजनीति विज्ञान के क्षेत्र सम्बन्धी परम्परागत दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परम्परागत राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में निम्नलिखित विषय वस्तुओं को सम्मिलित किया जा सकता है

  1. मानव के राजनैतिक जीवन का अध्ययन
  2. राज्य का अध्ययन
  3. सरकार का अध्ययन
  4. स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन
  5. राजनीतिक दर्शन एवं विचारधाराओं का अध्ययन
  6. राजनैतिक दलों एवं दबाव समूहों का अध्ययन
  7. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन
  8. लोक प्रशासन का अध्ययन
  9. राजनय (कूटनीति) का अध्ययन
  10. अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का अध्ययन
  11. अन्तर्राष्ट्रीय कानून का अध्ययन।

प्रश्न 14.
राजनीति विज्ञान के क्षेत्र सम्बन्धी आधुनिक दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में सम्मिलित विषय-वस्तु को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान का क्षेत्र / विषय – वस्तु-द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में अधिक व्यापक एवं यथार्थवादी दृष्टिकोण का उदय हुआ, जिसे आधुनिक दृष्टिकोण के नाम से जाना गया। आधुनिक दृष्टिकोण के प्रमुख समर्थक कैटलिन, लॉसवेल, राबर्ट डहल एवं फ्रोमेन आदि हैं। आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन में निम्नलिखित विषय वस्तुओं को सम्मिलित किया जाना चाहिए

  1. मानव के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन
  2. विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन
  3. सार्वजनिक समस्याओं के सन्दर्भ में संघर्ष व सहमति का अध्ययन,
  4. अन्तः अनुशासनात्मक अध्ययन
  5. राजनीतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन
  6. शक्ति का अध्ययन
  7. वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग।

प्रश्न 15.
राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र सम्बन्धी परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोणों में कोई दो अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र सम्बन्धी परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोणों में दो प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं
(i) काल का अन्तर-राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र से सम्बन्धित परम्परागत दृष्टिकोण मुख्य रूप से द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व लगभग सर्वमान्य था। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् आधुनिक दृष्टिकोण का विकास हुआ जो वर्तमान में सर्वमान्य है।

(ii) अध्ययन पद्धति में अन्तर – परम्परागत दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिए मुख्य रूप से ऐतिहासिक, दार्शनिक एवं तुलनात्मक पद्धतियों का प्रयोग करता है। इसके अतिरिक्त आधुनिक राजनीतिक दृष्टिकोण के अनुयायियों ने वैज्ञानिक, तुलनात्मक, व्यवहारवादी, सांख्यिकीय, गणितीय, सर्वेक्षणात्मक एवं अन्तः अनुशासनात्मक अध्ययन पद्धतियों के प्रयोग पर बल दिया है।

प्रश्न 16.
राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
आधुनिक राजनीति विज्ञान के कोई दो लक्षण लिखिए।
अथवा
आधुनिक राजनीति विज्ञान की कोई दो अध्ययन पद्धतियाँ बताइए।
अथवा
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् विकसित राजनीति विज्ञान की किन्हीं दो प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(i) वैज्ञानिक पद्धतियों पर बल-आधुनिक दृष्टिकोण की मुख्य विशेषता इसके द्वारा वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग करना है। आधुनिक दृष्टिकोण में प्राकृतिक विज्ञान एवं अन्य समाज विज्ञानों में विकसित अध्ययन पद्धतियों की नई तकनीकों को ग्रहण कर राजनीति विज्ञान में उनका प्रयोग किया जाने लगा है। इन पद्धतियों में तुलनात्मक, पर्यवेक्षणात्मक, प्रयोगात्मक, मनोवैज्ञानिक, व्यवहारवादी एवं आनुभविक आदि प्रमुख हैं।

(ii) अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण-राजनीति विज्ञान का आधुनिक दृष्टिकोण अन्तःअनुशासनात्मक दृष्टिकोण पर बल देता है। समाज विज्ञान के विभिन्न अनुशासन एक – दूसरे से अन्तर्सबन्धित होते हैं एवं एक – दूसरे को प्रभावित करते हैं। किसी भी राजनैतिक व्यवहार को आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक अथवा सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य से अलग करने से समझा नहीं जा सकता। मानव के विशिष्ट व्यवहार के यथार्थवादी अध्ययन के लिए अन्य समाज शास्त्रों में विकसित तकनीकों, पद्धतियों एवं अवधारणाओं आदि के परस्पर आदान-प्रदान को अन्त: अनुशासनात्मक दृष्टिकोण की संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 17.
परम्परागत राजनीति विज्ञान और आधुनिक राजनीति विज्ञान में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:
परम्परागत राजनीति विज्ञान और आधुनिक राजनीति विज्ञान में दो प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं
(i) परिभाषा सम्बन्धी अन्तर-परम्परावादी राजनीतिक विचारक राजनीति विज्ञान को राज्य एवं सरकार का अध्ययन करने वाला विषय मानते हैं, जबकि राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण की विषय – वस्तु केवल राज्य और सरकार तक ही सीमित नहीं है वरन् उसमें मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार को भी सम्मिलित किया जाता है। आधुनिक राजनीतिक दृष्टिकोण में शक्ति, सत्ता, प्रभाव एवं निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन भी सम्मिलित है।

(ii) मूल्यों के सम्बन्ध में अन्तर-परम्परावादी राजनीति विज्ञानी मूल्यों में आस्था रखते हैं। वे आदर्श और नैतिकता में विश्वास करते हैं अर्थात् दार्शनिक मूल्यों के पक्षधर हैं। इसके विपरीत आधुनिक राजनीति विज्ञानी मूल्य निरपेक्ष अध्ययन के पक्षधर हैं। उनके अनुसार राजनीति वैज्ञानिक स्वयं को नैतिक भावनाओं, मूल्यों, आदर्शों एवं पक्षपातों के दूर रहकर वैज्ञानिक अध्ययन तथा अनुसन्धान को बढ़ावा दें।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परम्परागत दृष्टिकोण के आधार पर राजनीति विज्ञान को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
परम्परागत दृष्टिकोण के आधार पर राजनीति विज्ञान की परिभाषाएँ। राजनीति विज्ञान में परम्परागत दृष्टिकोण के प्रमुख समर्थक विद्वान प्लेटो, रूसो, ब्लंटशली, गार्नर, गैटेल, लीकाक, सीले, लॉस्की आदि हैं। रम्परागत दृष्टिकोण के आधार पर राजनीति विज्ञान की परिभाषाओं को निम्नलिखित चार वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है
1. राजनीति विज्ञान में राज्य का अध्ययन – इस दृष्टिकोण के विचारकों का मत है कि राज्य ही राजनीति विज्ञान के अध्ययन का केन्द्रबिन्दु है

  1. गार्नर के अनुसार, “राजनीति विज्ञान का आरम्भ और अन्त राज्य के साथ ही होता है।”
  2. गैटेल के अनुसार, “राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत राज्य के भूत, वर्तमान एवं भविष्य का तथा राजनीतिक संगठन, राजनीतिक कार्य, राजनीतिक संस्थाओं एवं राजनीतिक सिद्धान्तों का अध्ययन किया जाता है।”
  3. ब्लंटशली के अनुसार, “राजनीति विज्ञान ऐसा विज्ञान है जिसका सम्बन्ध राज्य से है, जो राज्य की आधारभूत स्थितियों, उसकी प्रकृति, विविध स्वरूपों एवं विकास को समझने का प्रयत्न करता है।”
  4. गैरिस के अनुसार, “राजनीति विज्ञान राज्य को एक शक्ति संस्था के रूप में मानता है जो राज्य के समस्त सम्बन्धों, उसकी उत्पत्ति, उसके स्थान, उसके उद्देश्य, उसके नैतिक महत्त्व, उसकी आर्थिक समस्याओं तथा उसके वित्तीय पहलू आदि का विवेचन करता है।”
    उपर्युक्त परिभाषाएँ राजनीति विज्ञान के सीमित अर्थ का प्रतिपादन करती हैं क्योंकि राजनीति विज्ञान केवल राज्य के अध्ययन तक ही सीमित नहीं है।

2. राजनीति विज्ञान में सरकार का अध्ययन-राजनीति विज्ञान केवल राज्य का ही अध्ययन नहीं है। राज्य एक अमूर्त इकाई है, राज्य की आज्ञाओं एवं अपेक्षाओं को मूर्त रूप सरकार द्वारा ही दिया जा सकता है। अतः विद्वानों का एक वर्ग यह मानता है कि राजनीति विज्ञान सरकार का ही अध्ययन है
इन्होंने राजनीति विज्ञान को निम्नांकित प्रकार से परिभाषित किया है

  1. पॉल जैनेट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान सामाजिक शास्त्र का वह भाग है जिसमें राज्य के आधार एवं शासन के सिद्धान्तों पर विचार किया जाता है।”
  2. सर जॉन सीले के अनुसार, “राजनीति विज्ञान शासन सम्बन्धी तत्वों की खोज उसी प्रकार करता है जिस प्रकार अर्थशास्त्र सम्पत्ति का, जीव शास्त्र जीव का, बीजगणित अंकों का एवं रेखागणित स्थान और दूरी के सम्बन्ध में विचार करता है।”
  3. लीकॉक के अनुसार, “राजनीति विज्ञान सरकार से सम्बन्धित अध्ययन है।”
    राजनीति विज्ञान को केवल सरकार के अध्ययन तक ही सीमित मनाने वाली परिभाषाएँ एकांगी व अपूर्ण हैं क्योंकि राजनीति विज्ञान केवल सरकार का ही अध्ययन नहीं करता है।

3. राजनीति विज्ञान में राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन-कुछ विद्वानों का मत है कि राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार दोनों का ही अध्ययन करता है। दोनों एक-दूसरे के पूरक व घनिष्ठ रूप से अन्तर्सम्बन्धित हैं। इन दोनों का पृथक्-पृथक् अध्ययन करना न तो सम्भव है और न ही वांछनीय। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित विद्वानों की परिभाषाएँ उल्लेखनीय हैं
इन्होंने राजनीतिक विज्ञान को निम्न प्रकार परिभाषित किया है

  1. आर, एन, गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान का राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं से सम्बन्ध होता है।”
  2. पॉल जैनेट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान, समाज विज्ञान का वह भाग है, जिसमें राज्य के आधार और सरकार के सिद्धान्तों पर विचार किया जाता है।”
  3. डिमॉक के अनुसार, “राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज्य और उसके यन्त्र सरकार से है।”
    उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट है कि राजनीति विज्ञान में राज्य और सरकार दोनों का ही अध्ययन किया जाता है।

4. राजनीति विज्ञान में राज्य सरकार और व्यक्ति का अध्ययन-राजनीति विज्ञान की अधिकांश परिभाषाओं में राज्य और सरकार जैसी संस्थाओं को तो महत्त्व दिया गया है लेकिन इनके महत्त्वपूर्ण अंग व्यक्ति अर्थात् मनुष्य की उपेक्षा की गई है। व्यक्ति के अध्ययन के बिना राजनीति विज्ञान का अध्ययन अधूरा है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित समाजशास्त्रियों के विचार उल्लेखनीय हैं

  1. हर्मन हेलर के अनुसार, “राजनीति विज्ञान के सर्वांगीण स्वरूप का निर्धारण व्यक्ति सम्बन्धी मूलभूत पूर्व मान्यताओं द्वारा होता है।”
  2. लॉस्की के अनुसार, “राजनीति विज्ञान के अध्ययन का सम्बन्ध संगठित राज्यों से सम्बन्धित मनुष्य के जीवन से है।” उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि परम्परागत राजनीति विज्ञान में राज्य, सरकार एवं व्यक्ति के राजनीतिक पक्ष के अध्ययन को महत्त्व दिया गया है।

प्रश्न 2.
आधुनिक दृष्टिकोण के आधार पर राजनीति विज्ञान को परिभाषित कीजिए। उत्तर- आधुनिक दृष्टिकोण के आधार पर राजनीति विज्ञान की परिभाषाएँ आधुनिक दृष्टिकोण के आधार पर राजनीति विज्ञान को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है
1. राजनीति विज्ञान मानवीय क्रियाओं एवं व्यवहार का अध्ययन – आधुनिक व्यवहारवादी विद्वान, राजनीति विज्ञान को मूलतः मानव जीवन के राजनीतिक क्रियाकलापों एवं इसके सन्दर्भ में मानव जीवन के सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य पक्षों का अध्ययन करने वाला विज्ञान मानते हैं। इन विचारकों का मत है कि राजनीति विज्ञान मानव के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन है। इन विद्वानों में कैटलिन व बर्टेण्ड डी. जूविनेल आदि प्रमुख हैं।

कैटलिन के अनुसार“राजनीति विज्ञान संगठित मानव समाज से सम्बन्धित है किन्तु मुख्य रूप से वह सामुदायिक जीवन के राजनैतिक पहलुओं का अध्ययन करता है।”बटॅण्ड डी. जूविनेलके अनुसार, “राजनीति विज्ञान उन राजनीतिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है, जो मिल-जुलकर रहने वाले व्यक्तियों के मध्य उत्पन्न हो जाते हैं।” इस प्रकार राजनीति विज्ञान में मानवीय क्रियाओं के साथ-साथ व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार का भी अध्ययन किया जाता है।

2. राजनीति विज्ञान शक्ति का अध्ययन–राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत शक्ति का सिद्धान्त उतना ही पुराना है, जितना राजनीतिक चिन्तन परन्तु आधुनिक राजनीतिक विचारक शक्ति को राजनीति विज्ञान की केन्द्रीय संकल्पना मानते हैं

  1. कैटलिन के अनुसार, “राजनीति विज्ञान शक्ति का विज्ञान है।”
  2. लॉसवेल के अनुसार, “शक्ति का सिद्धान्त सम्पूर्ण राजनीति विज्ञान में एक बुनियादी सिद्धान्त है। सम्पूर्ण राजनीति प्रक्रिया शक्ति के वितरण, प्रयोग एवं प्रभाव का अध्ययन है।”
  3. मेरियम गिल्ड व पामर के अनुसार, “राजनीति, शक्ति और सत्ता के सम्बन्धों के रूप में सबसे अच्छी प्रकार समझी जा सकती है।”
    उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि राजनीति विज्ञान में शक्ति का अध्ययन एक मूल अवधारणा के रूप में किया जाता है।

3. राजनीति विज्ञान, राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन-डेविड ईस्टन एवं आमण्ड जैसे विचारक राजनीति विज्ञान को राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन मानते हैं। डेविड ईस्टन ने: राजनीतिक व्यवस्था को परिभाषित करते हुए कहा है कि “किसी समाज में पारस्परिक क्रियाओं की ऐसी व्यवस्था को जिससे समाज में बाध्यकारी यो अधिकारपूर्ण नीति निर्धारण होते हैं, राजनीतिक व्यवस्था कहा जाता है।” इस प्रकार सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन होने के कारण राजनीति विज्ञान अधिक व्यवहारिक और उपयोगी है।

4. राजनीति विज्ञान निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन-व्यवहारवाद के प्रभाव के कारण कुछ आधुनिक राजनीति विज्ञानी राजनीति विज्ञान को निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन करने वाला विषय मानते हैं।

  1. हर्बर्ट साइमन के अनुसार, “राजनीति विज्ञान निर्णय निर्माण का विज्ञान है।”
  2. लॉसवेल के अनुसार, “राजनीति विज्ञान, नीति विज्ञान है।”
  3. डेविड ईस्टन के अनुसार, “राजनीति विज्ञान सामाजिक मूल्यों के आधिकारिक निर्धारण का अध्ययन है।”

इस प्रकार आधुनिक राजनीति विज्ञान में राज्य और सरकार के औपचारिक अध्ययन के स्थान पर मानव के राजनीतिक व्यवहार, राजनीतिक प्रक्रियाओं एवं उन समस्त अनौपचारिक तत्वों के अध्ययन पर बल दिया जाता है जो कि राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान के विज्ञान होने के विरुद्ध तर्क दीजिए।
अथवा
राजनीति विज्ञान, विज्ञान नहीं है। इस कथन के पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
राजनीति विज्ञान को विज्ञान की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। इस कथन की पुष्टि में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
काम्टे, मेटलेण्ड, एमास, बीयर्ड, बर्क, बकल, ब्रोजन आदि विद्वान राजनीति विज्ञान को विज्ञान के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं।
मेटेलैण्ड के अनुसार, “जब मैं राजनीति विज्ञान के शीर्षक के अन्तर्गत परीक्षा प्रश्नों को देखता हूँ, तो मुझे प्रश्नों के लिए नहीं अपितु शीर्षक के लिए खेद होता है।” बर्क के अनुसार, “जिस प्रकार हम सौन्दर्य शास्त्र को विज्ञान की संज्ञा नहीं दे सकते उसी प्रकार राजनीति विज्ञान को भी विज्ञान नहीं कहा जा सकता है।” राजनीति विज्ञान के विज्ञान होने के विरुद्ध निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं.

1.सर्वमान्य सिद्धान्तों का अभाव – राजनीति विज्ञान को विज्ञान मानने में सबसे बड़ी बाधा इसमें सर्वमान्य सिद्धान्तों का अभाव होना है। प्राकृतिक विज्ञानों में निश्चित और सर्वमान्य सिद्धान्त होते हैं, वहीं राजनीति विज्ञान में इसका अभाव देखने को मिलता है। अतः राजनीति विज्ञान में अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर सर्वमान्य सिद्धान्तों के अभाव में इसे विज्ञान नहीं माना जा सकता है।

2.प्रयोग एवं परीक्षण करना सम्भव नहीं – प्राकृतिक विज्ञानों में किसी विषय के बारे में प्रयोग एवं परीक्षण संसार की किसी भी प्रयोगशाला में किया जाना सम्भव है। वहीं राजनीति विज्ञान में किसी विषय के बारे में पूर्वानुमान तो किया जा सकता है लेकिन इसकी जाँच के लिए प्रयोग एवं परीक्षण की विधि नहीं अपनायी जा सकती।

3. राजनीतिक घटनाओं का मापन सम्भव नहीं – प्राकृतिक विज्ञानों में मापन सम्भव होता है। उपकरणों के माध्यम से मापतौल की जा सकती है, जबकि राजनीति विज्ञान में घटनाओं का मापन सम्भव नहीं है क्योंकि राजनीति विज्ञान मानव के व्यवहार एवं गतिविधियों का अध्ययन करता है। मानव की मानसिकता, उसकी भावनाएँ, उत्तेजना, घृणा, प्रेम, आलस्य आदि उसके राजनीतिक व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं। इन तत्वों को मापन सम्भव नहीं है।

4. कार्य – कारण के पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करना कठिन-विज्ञान का यह एक मूलभूत लक्षण है कि इसमें कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। उदाहरण के रूप में, यदि हम पानी को एक निश्चित तापमान तक गर्म करेंगे तो वह निश्चित रूप से वाष्प में परिवर्तित हो जाएगा। वहीं दूसरी ओर राजनीति विज्ञान कल्पना, अनुमान एवं सम्भावना पर ही कार्य करता है। अतः राजनीति विज्ञान में प्रत्यक्षत: कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित नहीं किये जा सकते हैं। इसलिए राजनीति विज्ञान को विज्ञान नहीं कहा जा सकता है।

5. अध्ययन पद्धतियों के सम्बन्ध में मतैक्य का अभाव-प्राकृतिक विज्ञानों में विषय की अध्ययन पद्धतियों के बारे में विद्वानों में मतैक्य पाया जाता है तथा वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग किया जाता है। वहीं राजनीति विज्ञान में अध्ययन की विभिन्न पद्धतियाँ हैं और उनके उपयोग के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। इस कारण इसे विज्ञान की श्रेणी में रखना सम्भव नहीं है।

6. भविष्यवाणी की क्षमता का अभाव-प्राकृतिक विज्ञान के नियम सुनिश्चित होते हैं, इसलिए इन विज्ञानों में भविष्यवाणी करने की क्षमता होती है। तथ्यों एवं स्थितियों के आधार पर आगामी घटनाक्रम के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है, जैसे–सूर्य ग्रहण व चन्द्र ग्रहण के समय के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है लेकिन राजनीति विज्ञान में इस प्रकार की निश्चित भविष्यवाणी नहीं की जा सकती केवल अनुमान लगाया जा सकता है, जैसे – कौन-सा दल चुनावों में विजयी होगा। किस – किस दल को कितने-कितने स्थान मिलेंगे। इस प्रकार राजनीति विज्ञान में भविष्यवाणी करने की क्षमता नहीं होती है। अतः इसे विज्ञान नहीं माना जा सकता।

7. राजनीति विज्ञान के अर्थ, परिभाषा एवं अध्ययन पद्धतियों के सम्बन्ध में मतभेद-प्राकृतिक विज्ञानों में परिभाषा, अर्थ, शब्दावली एवं अध्ययन पद्धतियों के सम्बन्ध में निश्चितता एवं मतैक्य होता है। वहीं राजनीति विज्ञान की विभिन्न अवधारणाओं में सर्वमान्य अर्थ व निश्चित परिभाषा नहीं है तथा इस विषय पर विद्वानों में मतभेद भी हैं। जो इसके विज्ञान बनने में सबसे बड़ी बाधा हैं।

प्रश्न 4.
किन – किन आधारों पर राजनीति विज्ञान को विज्ञान सिद्ध किया जा सकता है। विस्तारपूर्वक बताइए।
अथवा
राजनीति विज्ञान के विज्ञान होने के पक्ष में तर्क दीजिए।
अथवा।
राजनीति विज्ञान को विज्ञान की संज्ञा दी जा सकती है।” इस कथन की पुष्टि में प्रमाण दीजिए। “राजनीति विज्ञान, विज्ञान है।” कथन की पुष्टि में तर्क दीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान को विज्ञान की संज्ञा दी जा सकती है पर यह प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति विज्ञान नहीं कहा जा सकता अपितु यह मूलतः एक समाज विज्ञान है। प्रसिद्ध विद्वान अरस्तू ने इसे ‘सर्वोच्च विज्ञान’ की संज्ञा दी है। राजनीति विज्ञान को निम्न आधारों पर विज्ञान सिद्ध किया जा सकता है

1. राजनीति विज्ञान में पर्यवेक्षण एवं प्रयोग सम्भव हैं – राजनीति विज्ञान चूँकि एक समाज विज्ञान है इसलिए इसमें प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति प्रयोगशालाओं में कठोर वैज्ञानिक प्रयोग तो नहीं किये जा सकते, फिर भी इसमें कुछ प्रयोग किया जाना सम्भव है। उदाहरण के रूप में प्रयोग के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की स्थापना के लिए लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली को अपनाना आवश्यक है।

2. क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित ज्ञान – विज्ञान क्रमबद्ध, व्यवस्थित एवं वर्गीकृत होता है। राजनीति विज्ञान भी इसी रूप में राज्य, सरकार, राजनीतिक संस्थाओं, घटनाओं एवं विचारधाराओं का अध्ययन करता है। यह राज्य की उत्पत्ति एवं विकास का क्रमबद्ध वर्णन प्रस्तुत करने के साथ-साथ राजनीतिक विचारधाराओं का उनकी प्रकृतियों के आधार पर वर्गीकृत अध्ययन भी प्रस्तुत करता है।

3. सर्वमान्य सिद्धान्त – विज्ञान की भाँति राजनीति विज्ञान में भी कई सर्वमान्य सिद्धान्तों का अस्तित्व है। उदाहरण के रूप में; लार्ड एक्टन के इस कथन को सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाता है कि “शक्ति भ्रष्ट करती है और सम्पूर्ण शक्ति सम्पूर्ण भ्रष्ट करती है। इसी प्रकार राजनीति विज्ञान में यह तथ्य भी स्वीकार किया जाता है कि व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास के लिए राजनीतिक स्वतन्त्रता के साथ-साथ आर्थिक स्वतन्त्रता भी अति आवश्यक है।

4. कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किया जाना सम्भव है – कतिपय विद्वानों का मत है कि राजनीति विज्ञान में कार्य और कारण में पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सकता। अत: यह विज्ञान नहीं है, जबकि वास्तविकता यह है कि प्रत्येक घटनाक्रम एवं परिवर्तन की पृष्ठभूमि में कोई न कोई कारण अवश्य होता है।

यद्यपि प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति राजनीति विज्ञान में कार्य – कारण के मध्य सुनिश्चित सम्बन्ध की स्थापना नहीं की जा सकती परन्तु विशेष घटनाओं के अध्ययन से कुछ सामान्य निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। उदाहरण के रूप में; फ्रांस की क्रान्ति के अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राजा के दम्भपूर्ण व्यवहार, प्रशासनिक अकुशलता, सामाजिक भेदभाव एवं भ्रष्टाचार आदि से उत्पन्न जनअसन्तोष के कारण क्रान्ति हुई।।

5. भविष्यवाणी किया जाना सम्भव है – यद्यपि अनेक प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति राजनीति विज्ञान में एक सुनिश्चित भविष्यवाणी किया जाना सम्भव नहीं है किन्तु इसमें अनुमान के रूप में ऐसी भविष्यवाणी की जा सकती है जो सत्यता के निकट हो। उदाहरण के रूप में चुनाव विश्लेषण भी चुनाव पूर्व भविष्यवाणियाँ करने में सफल होते हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि एक सामाजिक विज्ञान के रूप में राजनीति विज्ञान यथार्थपरक विज्ञान होने के साथ ही आदर्शपरक विज्ञान भी है। राजनीति विज्ञान के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग सम्भव है।

प्रश्न 5.
परम्परागत दृष्टिकोण के आधार पर राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
परम्परागत राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र की विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न परम्परागत राजनीति शास्त्रियों एवं यूनेस्को के दृष्टिकोण के आधार पर परम्परागत राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में निम्नलिखित विषय – वस्तुओं को सम्मिलित किया जा सकता है

1. मानव के राजनीतिक जीवन का अध्ययन – परम्परागत दृष्टिकोण के अनुसार मानव जीवन के राजनैतिक पक्ष का अध्ययन राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। मानव एक विवेकशील प्राणी है और मानव जीवन के अनेक पक्ष होते हैं, राजनीति विज्ञान मानव जीवन के राजनीतिक आयाम का ही अध्ययन करता है।

महानतम् विद्वान अरस्तू ने ठीक ही कहा था कि मनुष्य स्वभाव से ही राजनैतिक प्राणी होता है। इस कारण मनुष्य की अनेक राजनीतिक गतिविधियाँ एवं विचार होते हैं। मनुष्य ने राज्य का निर्माण अपनी आवश्यकता पूर्ति हेतु किया है। राजनीति विज्ञान राज्य के सन्दर्भ में मानव के जीवन का अध्ययन करता है।

2. राज्य का अध्ययन – परम्परागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान का वास्तविक क्षेत्र राज्य को माना गया है। राजनीति विज्ञान राज्य के भूत, वर्तमान एवं भविष्य का अध्ययन करता है। राज्य के वर्तमान स्वरूप को समझने के लिए राज्य की उत्पत्ति की प्रक्रिया, उसे वर्तमान अवस्था तक विकसित होने के क्रम में आए परिवर्तनों का अध्ययन आवश्यक है।

3. सरकार का अध्ययन – परम्परागत दृष्टिकोण में राज्य के कार्य क्षेत्र के सम्बन्ध में सरकार का भी अध्ययन किया जाता है। राज्य एक अमूर्त इकाई है, वह सरकार के माध्यम से ही कार्य करता है। सरकार के द्वारा ही राज्य अपने कार्यों, इच्छाओं, आदेशों और सम्प्रभुता से भी अभिव्यक्त करता है। अतः राजनीति विज्ञान के अध्ययन का एक प्रमुख विषय सरकार भी है।

4. राजनीतिक विचारधाराओं का अध्ययन – राजनीति विज्ञान में राजनीतिक विचारधाराओं का भी अध्ययन किया जाता है। प्राचीनकाल से आधुनिक काल तक अनेक राजनीतिक विचारधाराओं का जन्म एवं विकास हुआ।

इन विचारधाराओं ने राजनीति के यथार्थवादी एवं आदर्शवादी मूल्यों पर बल दिया। आदर्शवाद, फासीवाद, समाजवाद, अराजकतावाद, साम्यवाद, बहुलवाद, गाँधीवाद, मार्क्सवाद, उदारवाद आदि विचारधाराओं का राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत एक तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है तथा यह देखा जाता है कि भूतकाल में इन विचारधाराओं ने मानव जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया।

5. राजनीतिक दलों एवं दबाव समूहों का अध्ययन – वर्तमान में लोकतन्त्र विश्व में सर्वाधिक प्रचलित शासन व्यवस्था है। लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों एवं दबाव समूहों का विशेष महत्त्व है। राजनीतिक दल चुनाव में भाग लेकर सरकार का निर्माण एवं संचालन करते हैं। वहीं दबाव समूह गुप्त व अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी नीतियों पर प्रभाव डालते हैं। इनके बढ़ते प्रभाव के कारण ही राजनीति विज्ञान में इनका अध्ययन किया जाता है।

6. स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन-राजनीति विज्ञान स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन करता है तथा इन समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव प्रस्तुत करता है।

अब सम्पूर्ण विश्व के विश्वग्राम में बदल जाने से किसी भी क्षेत्र की समस्याएँ स्थानीय नहीं रह गयी हैं, उनका प्रभाव सम्पूर्ण विश्व पर पड़ता है। राजनीति विज्ञान इन समस्याओं का अध्ययन एवं निराकरण का प्रयास करता रहता है।

7. राजनय (कूटनीति) का अध्ययन – अति प्राचीन काल से ही राज्य आपने संव्यवहार में राजनय अर्थात् कूटनीति का सहारा लेते रहे हैं। अन्य राष्ट्रों से सम्बन्धों के व्यावहारिक संचालन हेतु दूत व्यवस्था एवं गुप्तचर व्यवस्था को विशेष महत्त्व दिया गया है। अत: राजनीति विज्ञान में राजदूतों की नियुक्ति, उन्मुक्तियों, विशेषाधिकारों, गुप्तचरे के प्रकार एवं कार्यप्रणाली के साथ-साथ राजनयिक प्रक्रियाओं और समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

8. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन – कोई भी राज्य अकेला नहीं रह सकता। उसे अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों का निर्वाह करना पड़ता है। विश्व के समस्त राज्य एक – दूसरे के साथ सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक वैज्ञानिक, तकनीकी एवं कूटनीतिक सम्बन्ध रखते हैं। राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों को ही अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध कहा जाता है।

इस सन्दर्भ में राजनीति विज्ञान में अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों, युद्ध, शान्ति, विदेश नीति, कूटनीति, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आदि पक्षों का अध्ययन करने के साथ – साथ विश्व शान्ति को बनाए रखने, देशों के पारस्परिक सम्बन्धों को मजबूत बनाए रखने आदि विषयों का भी अध्ययन किया जाता है।

9. अन्तर्राष्ट्रीय कानून का अध्ययन–प्रत्येक राज्य सार्वभौम होता है और उसकी सीमाएँ निर्धारित होती हैं फिर भी शान्ति, युद्ध, प्रत्यर्पण, राज्यों की मान्यता, खुला समुद्र, राज्य उत्तराधिकार, तटस्थता के अतिरिक्त राज्यों के मध्य विवादों के समाधान आदि का निर्धारण करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कानून की भी आवश्यकता होती है। मतभेद ऐसे होते हैं जिनका निष्पक्ष समाधान स्वयं राज्य नहीं कर सकता।

अतः राज्यों के मध्य सम्बन्धों का संचालन एवं विवादों के समाधान में जिस कानून का सहारा लिया जाता है उसे अन्तर्राष्ट्रीय कानून कहा जाता है। राजनीति विज्ञान में अन्तर्राष्ट्रीय कानून का भी अध्ययन किया जाता है। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि राजनीति विज्ञान का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है।

प्रश्न 6.
आधुनिक दृष्टिकोण के आधार पर राजनीति विज्ञान के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में निम्नलिखित विषय-वस्तुओं को सम्मिलित किया गया है
1. मानव के राजनैतिक व्यवहार का अध्ययन – आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में मानव के राजनैतिक व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। मानव का राजनीतिक व्यवहार केवल राजनैतिक कारणों एवं तत्वों से ही प्रभावित नहीं होता बल्कि अनेक गैर-राजनैतिक तत्व भी इसको प्रभावित करते हैं। इसी कारण मानव व्यवहार का यथार्थवादी अध्ययन किया जाता है।

2. विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन – राजनीति विज्ञान का आधुनिक दृष्टिकोण मुख्य रूप से शक्ति, सत्ता प्रभाव, नियन्त्रण एवं निर्णय प्रक्रिया आदि अवधारणाओं का अध्ययन करता है। इनमें से शक्ति राजनीति विज्ञान की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अवधारणा है।

3. अन्तः अनुशासनात्मक अध्ययन–राजनीति विज्ञान में मानव के राजनीतिक पक्ष का ही अध्ययन नहीं किया जाता है बल्कि मानव जीवन के सामाजिक सन्दर्भो का भी अध्ययन किया जाता है। व्यवहार में मानव के ऐतिहासिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं नैतिक पक्ष एक-दूसरे में से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। इन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है।

4. संघर्ष एवं सहमति का अध्ययन-राजनीति विज्ञान में सार्वजनिक समस्याओं के सन्दर्भ में संघर्ष व सहमति का अध्ययन किया जाता है। सार्वजनिक समस्याओं का अर्थ उन समस्याओं से है जो सम्पूर्ण समाज अथवा उसके एक बड़े भाग को प्रभावित करती हैं। इन समस्याओं को राजनीति का अंग मानकर इनका अध्ययन राजनीति विज्ञान में किया जाता है।

5. वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग – राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। आधुनिक दृष्टिकोण में प्राकृतिक विज्ञान एवं अन्य समाज विज्ञानों में विकसित अध्ययन की नई तकनीकों को ग्रहण कर राजनीति विज्ञान में उनका प्रयोग किया जाने लगा है। इन पद्धतियों में तुलनात्मक, पर्यवेक्षणात्मक, प्रयोगात्मक, मनोवैज्ञानिक, व्यवहारवादी एवं आनुभविक आदि प्रमुख हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आधुनिक दृष्टिकोण ने राजनीति विज्ञान के क्षेत्र को व्यापकता प्रदान की है। आज राजनीति विज्ञान का नीति विज्ञान के रूप में भी अध्ययन किया जाने लगा है। यह शक्ति व प्रभाव का अध्ययन है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत होता जा रहा है।

प्रश्न 7.
आधुनिक राजनीति विज्ञान की अध्ययन पद्धतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
आधुनिक राजनीति विज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ (लक्षण) बताइए।
अथवा।
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् विकसित राजनीति विज्ञान की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा।
राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
आधुनिक राजनीति विज्ञान की अध्ययन पद्धतियाँ / विशेषताएँ / लक्षण / प्रमुख प्रवृत्तियाँ
1. व्यापक अध्ययन – परम्परागत दृष्टिकोण संकीर्ण था, जबकि आधुनिक दृष्टिकोण व्यापक है। समस्त राजनीतिक एवं औपचारिक घटनाएँ राजनीति विज्ञान के अध्ययन का विषय बन गई हैं चाहे वे अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र या धर्म के विषय में हों अथवा व्यक्ति, परिवार, राष्ट्र एवं विश्व से सम्बन्धित हों।

2. वैज्ञानिक पद्धतियों पर बल – आधुनिक दृष्टिकोण की प्रमुख विशेषता इसका वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग करना है। आधुनिक राजनीति शास्त्रियों द्वारा प्राकृतिक विज्ञान एवं अन्य सामाजिक विज्ञानों में विकसित अध्ययन की नई – नई तकनीकों को ग्रहण कर राजनीति विज्ञान में उनका प्रयोग किया जाने लगा है।

3. मूल्य – मुक्त अध्ययन – आधुनिक दृष्टिकोण मूल्य निरपेक्ष है। इसमें पूर्वाग्रहों, आदर्शों, नैतिकता, स्वतन्त्रता एवं भ्रातृत्व आदि को कोई महत्व नहीं दिया जाता क्योंकि मूल्यों का वैज्ञानिक परीक्षण सम्भव नहीं होता है। इसमें मानवीय मूल्यों से निरपेक्ष रहते हुए तथ्यों पर आधारित अध्ययन ही किया जाता है।

4. अन्तः अनुशासनात्मक अध्ययन – राजनीति विज्ञान का आधुनिक दृष्टिकोण अन्तः अनुशासनात्मक अध्ययन पर बल देता है। समाज विज्ञान के विभिन्न अनुशासन एक-दूसरे से अन्तर्सम्बन्धित होते हैं एवं एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। किसी भी राजनीतिक व्यवहार को आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक अथवा सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य से अलग करके नहीं समझा जा सकता।

5. शोध और सिद्धान्त में घनिष्ठ सम्बन्ध – शोध और सिद्धान्त एक-दूसरे के बिना निरर्थक हैं। आधुनिक राजनीति वैज्ञानिकों का मुख्य ध्येय राजनीति के सैद्धान्तिक प्रतिमानों को विकसित करना है। सिद्धान्त निर्माण वैज्ञानिक शोध पर आधारित हों जिसमें कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किया जा सके। इसी आधार पर राजनीति विज्ञानी राजनीतिक घटनाओं एवं साधनों के सम्बन्ध में खोज करते हैं एवं उनका विश्लेषण करते हैं।

6. व्यवहारवादी अध्ययन पर बल – आधुनिक राजनीतिक दृष्टिकोण व्यवहारवादी अध्ययन पर बल देता है। इस दृष्टिकोण में मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन पर बल दिया जाता है। राजनीतिक व्यवहार के तथ्यों का वैज्ञानिक विश्लेषण कर सिद्धान्त निर्मित किये जाते हैं जिनके आधार पर राजनीतिक घटनाओं को समझा जाता है।

7. यथार्थवादी अध्ययन पर बल – आधुनिक राजनीति विज्ञानी यथार्थवादी (वास्तविक) एवं तथ्यपरक अध्ययनों
पर बल देते हैं। कल्पना और आदर्श के स्थान पर संस्थाओं को उनके वास्तविक रूप में चित्रित करने का प्रयास किया। जाता है। अध्ययन आनुभविक व तथ्यपरक होते हैं।

8. एक मौलिक समाज विज्ञान के रूप में जन्म – आधुनिक राजनीति विज्ञान स्वयं को समाज विज्ञानों की एक कड़ी के रूप में विकसित करना चाहता है। अतः राजनीति विज्ञानी इसके लिए विशिष्ट क्षेत्रों की विशेषता विकसित करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने सामान्य व्यवस्था सिद्धान्त एवं व्यवस्था उपागम को ग्रहण किया है।

9. प्रक्रियाओं के अध्ययन पर बल – राजनीति विज्ञान में अब परम्परावादी विधिगत, संस्थागत संरचना के स्थान पर राजनीतिक प्रक्रियाओं को समझने की प्रवृत्ति पर बल दिया जाने लगा है। अब राजनीति दल, दबाव समूह, संचार के साधन, मतदाता व्यवहार, व्यवस्थापिका द्वारा विधि निर्माण की प्रक्रिया, विधि निर्माण में प्रेरक तत्वों एवं सदस्यों के व्यवहार आदि से सम्बन्धित व्यापक अध्ययन किये जाने लगे हैं।

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