RBSE Class 11 Sanskrit अपठितांशावबोधनम्

Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit अपठितांशावबोधनम्

पाठ्यपुस्तकस्य अपठितांशाः 
(1) अहं मातरं वन्दे। मात्रा वयं पालिताः पोषिता: चे। अस्माकं जीवने मात्रे आहुति-भूतम्। मातुः सर्वं लभामहे वयम्। वयं मातुः कार्यं कुर्मः। मातरि अस्माकं प्रीतिः, भक्तिः अनुरागः च सन्ति। हे. मातः! वयं वन्दामहे त्वाम्। शिक्षय। अस्मान् सुसंस्कारान्।।

(मैं माता की वन्दना करता हूँ। माता हम सबको पालती है और पोषती है। हमारे जीवन में माता के लिए आह्वान उचित है। हम माता से सब-कुछ प्राप्त करते हैं। हम माता का कार्य करते हैं। माता में हमारी प्रीति, भक्ति और प्रेम है। हे माता! हम तुम्हारी वन्दना करते हैं। हमें अच्छे संस्कारों को सिखाओ।)

अस्माकं विभक्ति प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए)
  2. वयं केन पालिताः पोषिताः। (हम किसके द्वारा पाले पोषे जाते हैं?)
  3. मातुः पदस्य विभक्तिं वचनं च लिखतः। (मातुः पद के विभक्ति और वचन लिखिए।)
  4. अस्माकं पदस्य विभक्तिं वचनं च लिखत। (अस्माकं पद की विभक्ति और वचन लिखिए।)
  5. कुर्मः पदस्य लकारं पुरुषं वचनं च लिखत। (कुर्मः पद के लकार, पुरुष और वचन लिखिए।)
  6. माता पदस्य पर्याय लिखत। (माता पद का पर्यायवाची लिखिए।)
  7. गद्यांशे विस्मयादिबोधकं वाक्यं किम् अस्ति? (गद्यांश में विस्मायदिबोधक वाक्य कौन-सा है?)

उत्तर:

  1. माता,
  2. मात्रा (माता के द्वारा),
  3. मातुः पदे षष्ठी विभक्तिः एकवचनम्। (‘मातु:’ पद में षष्ठी विभक्ति एकवचन।)
  4. ‘अस्माक’ पदे षष्ठी विभक्तिः बहुवचनम्। (‘अस्माक’ पद में षष्ठी विभक्ति, बहुवचन),
  5. ‘कुर्म:’ पदे लट्लकारः उत्तमपुरुष: बहुवचनम्। (‘कुर्म:’ पद में लट्लकार, उत्तम पुरुष बहुवचन।),
  6. जननि (माता),
  7. हे मातः वयं वन्दामहे त्वाम्। (हे माता! हम तुम्हारी वन्दना करते हैं।)

(2) सज्जनानां संगतिः सत्संगतिः कथ्यते। मानवः यादृशं संगं प्राप्नोति तादृशी तस्य बुद्धिर्भवति। यदि मनुष्यः सज्जनानां संगं प्राप्नोति तर्हि सः सज्जनो भवति। यदि सः दुर्जनानां संगं प्राप्नोति तदा सः दुर्जन: भवति। सज्जनता इच्छद्भिः जनैः सदा सत्संगतिः कर्तव्या। बाल्यावस्थायां सत्संगतिः अतीव महत्वपूर्णा अस्ति। ‘‘सद्भिः कुर्वीत संगतिम्’ इति उक्तम् अस्ति।

(सज्जनों की संगति सत्संगति कही जाती है। मानव जैसी संगति प्राप्त करना है वैसी ही उसकी बुद्धि होती है। यदि मनुष्य सज्जनों की संगति प्राप्त करता है, तो वह सज्जन होता है। यदि वह दुर्जनों की संगति प्राप्त करता है तब वह दुर्जन होता है। सज्जनता चाहने वाले लोगों को हमेशा सत्संगति करनी चाहिए। बाल्यावस्था में सत्संगति बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। ‘सज्जनों की संगति करनी चाहिए” ऐसी कहावत है।)

भवंतु पदे पुरुष अस्ति प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश को उचित शीर्षक लिखो।)
  2. केषां संगतिः सत्संगतिः कथ्यते? (किनकी संगति सत्संगति कही जाती है?)।
  3. ‘सज्जनः’ पदस्य विलोमः कः? (‘सज्जन’ पद का विलोम क्या है?)
  4. ‘तस्य’ पदस्य विभक्तिं वचनं च लिखत। (तस्य’ पद के विभक्ति और वचन लिखो।)
  5. ‘अस्ति’ पदस्य लकारं पुरुषं वचनं च लिखत। (‘अस्ति’ पद के लकार, पुरुष और वचन लिखो।)
  6. गद्यांशे प्रयुक्तानि चत्वारि अव्ययपदानि लिखत। (‘गद्यांश’ में प्रयुक्त चार अव्यय पद लिखो।)
  7. ‘बुद्धिर्भवति’ पदस्य सन्धिविच्छेदं कुरुत। (‘बुद्धिर्भवति’ पद को सन्धिविच्छेद कीजिए।)।

उत्तर:

  1. सत्संगतिः (सत्संगति)।,
  2. सज्जनानां (सज्जनों की),
  3. दुर्जनः (दुर्जन),
  4. षष्ठी विभक्तिः एकवचनम्। (षष्ठी विभक्ति एकवचन),
  5. लट्लकारः प्रथमः पुरुषः एकवचनम्। (लट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन),
  6. यदि, तदी, तर्हिः, सदा।,
  7. बुद्धिः + भवति = बुद्धिर्भवति।

(3) प्रभातकालः अति मनोरमः भवति। भानूदयात् प्राक् उत्थाय प्रकोष्ठात् बहिः आगत्य प्रकृति-प्रांगणे विचरणम् उत्तमा औषधिः। ये जनाः सूर्योदयात् प्राक् उत्थाय भ्रमणार्थं गच्छन्ति, ते अरुणोदयं प्रेक्ष्य परमानन्दम् अनुभवन्ति। रात्रौ वृक्षशाखासु निलीनाः खगाः प्रात:काले कलरवं कुर्वन्ति। सूर्योदयसमये आकाशपटले लालिमायाः साम्राज्यं भवति। प्रभातकालः सर्वजीवान् स्व-स्व कार्येषु योजयंति। प्रभाते शरीरः स्फूर्तिमान् भवति।

(प्रभातकाल बहुत सुन्दर होता है। सूर्योदय से पहले उठकर कमरे से बाहर आकर प्रकृति के आँगन में घूमना उत्तम औषधि है। जो लोग सूर्योदय से पहले उठकर घूमने के लिए जाते हैं, वे अरुणोदय को देखकर परमानन्द का अनुभव करते हैं। रात्रि में वृक्षों की शाखाओं में छुपे पक्षी प्रात:काल में कलरव करते हैं। सूर्योदय के समय आकाश के पटल पर लालिमा का साम्राज्य होता है। प्रभातकाल सभी जीवों को अपने अपने कार्यों में लगाता है। प्रात:काल में शरीर स्फूर्तिमान् होता है।)

भवन्तु पदे पुरुषः अस्ति प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षकं लिखत? (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखो।)
  2. कदा, कुत्र विचरणम् उत्तमा औषधिः? (कब और कहाँ घूमना उत्तम औषधि है?)
  3. ‘गच्छन्ति’ पदस्य धातुं, लकारं, पुरुष, वचनं, च, लिखते। (‘गच्छन्ति’ पद, की, धातु, लकार, पुरुष और वचन लिखिए।)
  4. ‘वृक्षशाखासु’ पदस्य सामासिकं विग्रहं कुरुत। (‘वृक्षशाखासु’ पद का समास-विग्रह कीजिए।)
  5. आगत्य, प्रेक्ष्य, उत्थाय पदानां प्रकृति-प्रत्ययौ लिखत।। (आगत्य, प्रेक्ष्य, उत्थाय पदों के प्रकृति-प्रत्यय लिखिए।)
  6. अनु उपसर्गस्ये प्रयोगः कस्मिन् पदे अस्ति? (‘अनु’ उपसर्ग का प्रयोग किस पद में है?)

उत्तर:

  1. प्रभातकालः। (प्रात:काल)।।
  2. भानूदयात् प्राक् उत्थाय प्रकोष्ठात् बहिः आगत्य-प्रकृति प्रांगणे विचरणम् उत्तमा औषधिः। (सूर्योदय से पूर्व उठकर कमरे से बाहर आकर प्रकृति के आँगन में घूमना उत्तम औषधि है।)
  3. “गच्छन्ति’ पदे ‘गम्’ धातुः, लट्लकारः, प्रथमपुरुषः, बहुवचनम्। (‘गच्छन्ति’ पद में ‘गम्’ धातु, लट्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन है।)
  4. वृक्षाणाम् शाखासु = वृक्षशाखासु।
  5. आगत्य = आ + गम् + ल्यप्। प्रेक्ष्य = प्र + ईक्ष् + ल्यप्। उत्थाय = उत् + स्था + ल्यप्।
  6. ‘अनु’ उपसर्गस्य प्रयोगः ‘अनुभवन्ति’ पदे अस्ति। (अनु’ उपसर्ग का प्रयोग ‘अनुभवन्ति’ पद में है।)

(4) गावः क्षेत्रे चरन्ति। गोपालः गा: चारयति। सः सदा गोभिः सह तिष्ठति। स्वस्ति गोभ्यः ब्राह्मणेभ्यश्च। तृणं शस्यं च गोभ्यः देहि। वयं गोभ्यः दुग्धं प्राप्नुमः। गवाम् अवेक्षा सेवा च सम्यक् कर्तव्या। भारतीयाः गोषु मातृवत् भक्तिं कुर्वन्ति। गवाम् दुग्धं स्वास्थ्यकरं भवति।।

(गायें खेत में चरती हैं। ग्वाला गाय चराता है। वह हमेशा गायों के साथ रहता है। गायों और ब्राह्मणों का कल्याण हो। घास और धान्य गायों के लिए दो। हम गायों से दूध प्राप्त करते हैं। गायों की देखभाल और सेवा अच्छी तरह करनी चाहिए। भारतीय गायों में (पर) माता के समान भक्ति करते हैं। गायों को दूध स्वास्थ्यकर होता है।)

अस्माकं का एकवचन प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखो।)
  2. के गोषु मातृवत् भक्तिं कुर्वन्ति? (कौन गायों में माता के समान भक्ति करते हैं?)
  3. ‘गवाम्’ पदस्य विभक्तिं वचनं लिखत। (गवाम् पद के विभक्ति-वचन लिखिए।)
  4. ‘स्वस्ति गोभ्यः’ रेखांकितपदे विभक्तिं सूत्रं च लिखतः।। (‘स्वस्ति गोभ्य’ रेखांकित पद में विभक्ति और सूत्र को लिखिए।)
  5. सः सदा गोभिः सह तिष्ठति। रेखांकितपदे विभक्तिं सूत्र च लिखत। (सः सदा गोभिः सह तिष्ठति। रेखांकित पद में विभक्ति और सूत्र लिखिए।)
  6. ‘चरन्ति’ पदस्य धातु, लकारं, पुरुषं वचनं च लिखत।, (‘चरन्ति’ पद की धातु, लकार, पुरुष और वचन लिखिए।)
  7. ‘कर्तव्यम्’ इति पदे प्रकृति-प्रत्ययौ लेख्यौ। (‘कर्तव्यम्’ पद में प्रकृति-प्रत्यय लिखिए।)

उत्तर:

  1. गौः। (गाय)।
  2. भारतीयाः। (भारतीय लोग)।
  3. षष्ठी विभक्तिः, बहुवचनम्। (षष्ठी विभक्ति बहुवचन)।
  4. चतुर्थी विभक्तिः। (नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम् वषट् शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।)
  5. तृतीया विभक्तिः, सहयुक्तेऽप्रधाने। (सह, साकम्, साधर्म, समम् के साथ वाले शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।)
  6. ‘चर्’ धातुः, लट्लकारः, प्रथमपुरुषः, बहुवचनम्। (चर्’ धातु, लट्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन।)
  7. कृ + तव्यत् = कर्तव्यम्।

(5) मानवजीवने अनुशासनस्य खलु महती आवश्यकता अस्ति। यदि मानवाः अनुशासनशीलाः न भवेयुः तदा तु विचित्रा जगतः गति: स्यात्। यदि सर्वे जनाः स्वेच्छया कार्यं कुर्वन्ति तदा सर्वत्र एव कार्यहानिः भवेत्। अनुशासनेन एव अस्माकं सर्वाणि कार्याणि भवन्ति। यस्मिन् देशे अनुशासनव्यवस्था उत्तमा वर्तते, तस्मिन् देशे एव सुख-प्राप्तिः भवति। अनुशासनेन एव सर्वेषां कल्याणं भवति। अनुशासनयुक्तः देशः उन्नतिं प्राप्नोति।।

(मानव-जीवन में अनुशासन की बहुत आवश्यकता है। यदि मानव अनुशासनशील न हों तब तो संसार की गति विचित्र हो जायेगी। यदि सभी लोग स्वेच्छा से कार्य करते हैं तब सभी जगह कार्य की हानि होनी चाहिए। अनुशासन से ही हमारे सभी कार्य होते हैं। जिस देश में अनुशासन व्यवस्था उत्तम है, उस देश में ही सुख प्राप्त होता है। अनुशासन से ही सभी का कल्याण होता है। अनुशासनयुक्त देश उन्नति को प्राप्त करता है।)

अस्माकं का बहुवचन प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य चितं शीर्षक लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. कंदा कार्यानिः भवेत्? (कब कार्य की हानि होवे?)
  3. ‘उन्नतिं पदस्य विलोमः कः भवति? (उन्नति पद का विलोम क्या होता है?)
  4. भवेयुः’ पदस्य धातुं, लकीरं, पुरुषं वचनं च लिखत। (भवेयुः’ पद की धातु, लकार, पुरुष और वचन लिखिए।)
  5. विचित्रा गतिः द्वयोः पदयोः मध्ये कः सम्बन्धः अस्ति? (विचित्रा गति इन दोनों पदों के मध्य क्या सम्बन्ध है?)
  6. यस्मिन् पदस्य विभक्तिं वचनं च लिखत। (‘यस्मिन्’ पद की विभक्ति और वचन लिखिए।)
  7. सर्वत्र अव्यवस्य प्रयोगं कृत्वा एकस्य वाक्यस्य निर्माणं कुरुत। (‘सर्वत्र’ अव्यय का प्रयोग करके एक वाक्य का निर्माण कीजिए।)

उत्तर:

  1. अनुशासनस्य महत्त्वम्। (अनुशासन का महत्व)।
  2. यदि सर्वे जनाः स्वेच्छ्या कार्यं कुर्वन्ति, तदा सर्वत्र एवं कार्यहानिः भवेत्।। (यदि सभी लोग स्वेच्छ से कार्य करते हैं, तब सभी जगह कार्य हानि होती है।)
  3. अवनतिं। (अवनति)।
  4. ‘भू’ धातुः, विधिलिङ्लकारः, प्रथमपुरुषः, बहुवचनम्। (‘भू’ धातु, विधिलिङ्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन।)
  5. विशेषण-विशेष्य सम्बन्धः। (विशेषण विशेष्य सम्बन्ध।)
  6. सप्तमी विभक्तिः, एकवचनम्। (सप्तमी विभक्ति एकवचन।)
  7. अधुना अनुशासनहीनता सर्वत्र दृश्यते। (आंजकल अनशासनहीनता सभी जगह दिखाई देती है।)

(6) वृक्षाः भूमौ उद्भवन्ति। वृक्षाः अपि मनुष्य इव भुक्त्वा पीत्वा च जीवन्ति। मूलानि वृक्षाणां मुखानि भवन्ति। ते। पादैः जलं पिबन्ति, अतएव पादपाः कथ्यन्ते। तेषां मूलानि भूमितः रसं गृहीत्वा सर्वेषु अवयवेषु नयन्ति। तेन ते प्रवर्धन्ते, पुष्पन्ति फलन्ति च। वृक्षाः प्राणिनः बहूपकुर्वन्ति। ते शरणं, भोजनं, आश्रयं, छायां, पुष्पं, फल, प्राणवायुं च ददति।

(वृक्ष भूमि पर उगते हैं। वृक्ष भी मनुष्य की तरह खाकर और पीकर जीते हैं। मूल (जड़) वृक्षों के मुँह होते हैं। वे पादों (जड़ों) से जल पीते हैं, इसलिए पादप कहे जाते हैं। उनकी जड़ें भूमि से रस ग्रहण करके सभी अवयवों में ले जाती हैं। उससे वे बढ़ते हैं, फूलते हैं और फेलते हैं। वृक्ष प्राणियों का बहुत उपकार करते हैं। वे (प्राणियों को) शरण, भोजन, आश्रय, छाया, पुष्प, फल और प्राणवायु देते हैं।)

प्रातःकाले पदस्य विभक्तिं लिखत प्रश्नाः

  1. गंद्यांशस्य उचितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. वृक्षाः अस्मभ्यं किं किं ददति? (वृक्ष हमें क्या क्या देते हैं?)
  3. भुक्त्वा, पीत्वा, गृहीत्वा पदेषु प्रकृति-प्रत्ययौ लिखत। (भुक्त्वा, पीत्वा, गृहीत्वा पदों में प्रकृति-प्रत्यय लिखिए।)
  4. उद्भवन्ति, प्रवर्धन्ते, उपकुर्वन्ति पदेषु उपसर्गान् धातूंश्च लिखते। (उद्भवन्ति, प्रवर्धन्ते, उपकुर्वन्ति, पदों में उपसर्ग और धातु लिखिए।
  5. ‘बहूपकुर्वन्ति’ पदस्य संधि -विच्छेदं कृत्वा संधिनामोल्लेखं कुरुत। (बहूपकुर्वन्ति पद का सन्धि-विच्छेद करके सन्धि का नामोल्लेख कीजिए।)
  6. ‘वृक्षः’ पदस्य त्रीन् पर्यायान् लिखत। (‘वृक्ष पद के तीन पर्यायवाची लिखिए।)
  7. ‘वृक्ष’ इति शब्दस्य चतुर्थी-विभक्तेः बहुवचनं किं भवति? (‘वृक्ष’ इस शब्द का चतुर्थी विभक्ति का बहुक्चन क्या होता है?)

उत्तर:

  1. वृक्षाणाम् महत्त्वम्। (वृक्षों का महत्व)।
  2. वृक्षाः अस्मभ्यं शरणं, भोजने, आश्रयं, छायां, पुष्पं, फलं प्राणवायुं च ददति। (वृक्ष हमें शरण, भोजन, आश्रय, छाया, पुष्प, फल और प्राणवायु देते हैं।)
  3. भुक्त्वा = भुञ्ज + क्त्वा। पीत्वा = पा + क्त्वा। गृहीत्वा = ग्रह् + क्त्वा।
  4. ‘उद्भवन्ति’ पदे ‘उत्’ उपसर्ग ‘भू’ धातु। प्रवर्धन्ते पदे ‘प्र’ उपसर्ग ‘वधु’ धातु। उपकुर्वन्ति पदे ‘उप’ उपसर्ग कृ धातु।
  5. बहूपकुर्वन्ति = बहु+ उपकुर्वन्ति (दीर्घ सन्धिः)
  6. तरु, पादपः, विटपः।
  7. वृक्षेभ्यः।

(7) अस्माकं देशस्य नाम भारतम् अस्ति। अस्मिन् देशे प्राचीनकाले’ ‘भरत’ नामक प्रतापी राजा बभूव। तस्य अभिधानेन अस्य देशस्य नाम ‘भारतम् अभवत्। अस्य उत्तरस्यां दिशि हिमालय पर्वतः शोभते। दक्षिणदिशायां समुद्राः इमं रक्षन्ति। अयं बहुषु प्रान्तेषु विभक्तोऽस्ति। अत्र नगराणि ग्रामाश्च सन्ति। अयं स्वतन्त्रदेशः धर्मनिरपेक्षश्च अस्ति। अत्र अनेके धर्मावलम्बिनो जनाः सानन्दनम् स्नेहेन वसन्ति।

(हमारे देश का नाम भारत है। इस देश में प्राचीनकाल में ‘भरत’ नामक प्रतापी राजा हुआ। उसके नाम से इस देश का नाम ‘भारत’ हुआ। इसकी उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत सुशोभित है। दक्षिण दिशा में समुद्र इसकी रक्षा करते हैं। यह बहुत से प्रान्तों में विभक्त है। यहाँ नगर और ग्राम हैं। यह देश स्वतन्त्र और धर्मनिरपेक्ष है। यहाँ अनेक धमो को मानने वाले लोग आनन्दपूर्वक प्रेम से निवास करते हैं।)

अधोलिखितपदस्य विभक्तिम् वचनं च चिनुत – नापितैः प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. भारंतम् उत्तरस्यां दक्षिणदिशायां च के रक्षन्ति? (भारत की उत्तर तथा दक्षिण-दिशा में कौन रक्षा करते हैं?)
  3. अभवत् पदस्य धातुं लकारं पुरुषं वचनं च लिखत। (‘अभवत्’ पद धातु, लकार, पुरुष और वचन लिखिए।)
  4. देशे इति पदस्य विभक्तिं-वचनं लिखत। (देशे इस पद के विभक्ति-वचन लिखिए।)
  5. धर्मावलम्बिनो पदस्य संधि-विच्छेदं कुरुत। (धर्मावलम्बिनो पद का सन्धि-विच्छेद कीजिए।)
  6. धर्मनिरपेक्षः पदस्य कः अर्थः? (‘धर्मनिरपेक्ष’ पद का क्या अर्थ है?)
  7. भारतदेशस्य त्रीन् पर्यायवाचिनः शब्दान् लिखत। (भारत देश के तीन पर्यायवाची शब्द लिखो।)

उत्तर:

  1. भारतदेशः। (भारत देश।)
  2. उत्तरस्यां दिशि हिमालय पर्वतः दक्षिणदिशायां च समुद्राः भारतं रक्षन्ति। (उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत और दक्षिण दिशा में समुद्र भारत की रक्षा करते हैं।)
  3. ‘भू’ धातुः, लङ् लकारः, प्रथम पुरुषः, एकवचनम्। (‘भू’ धातु, लङ् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।)
  4. सप्तमी विभक्तिः, एकवचनम्। (सप्तमी विभक्ति, एकवचन।)
  5. धर्मावलम्बिनो = धर्म + अवलम्बिनो।।
  6. सर्वधर्मसमभावः (सभी धर्मों में समान भाव।)
  7. भारतवर्षः, भारतखण्डम्, हिन्दुस्थानः।।

(8) अस्माकं विद्यालयः नगरात् बहिः रमणीयस्थाने विद्यते। विद्यालयं परितः रम्यमुप॑वनमस्ति। विद्यालये एकविंशति अध्यापकाः पंचशतं छात्राश्च सन्ति। विद्यालय छात्राः प्रतिभाशालिनः, अनुशासनप्रियाश्च सन्ति। छात्राः न केवलं अध्ययने एवं कुशलाः भवन्ति प्रत्युत ते क्रीडा-प्रतियोगितासु, भाषणे, लेखने च स्वयोग्यतां प्रदर्य पुरस्काराणि लभन्ते। अस्माकं विद्यालय आदर्श विद्यालयः अस्ति।

(हमारा विद्यालय नगर से बाहर रमणीय स्थान पर है। विद्यालय के चारों ओर सुन्दर उपवन है। विद्यालय में इक्कीस अध्यापक और पाँच सौ छात्र हैं। विद्यालय के छात्र प्रतिभाशाली और अनुशासनप्रिय हैं। छात्र केवल पढ़ने में ही कुशल नहीं है अपितु वे क्रीडाप्रतियोगिताओं में, भाषण में और लेखन में अपनी योग्यता को प्रदर्शित करे पुरस्कार प्राप्त करते हैं। हमारा विद्यालय आदर्श विद्यालय है।)

अस्माकं शब्द रूप प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश को उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. छात्राः केषु कुशलाः सन्ति? (छात्र किनमें कुशल हैं?)
  3. विद्यालय परितः रम्यम् उपवनम् अस्ति। रेखांकितपदे विभक्तिं कारणं च लिखत। (विद्यालयं परितः रम्यम् उपवनम् अस्ति। रेखांकित पद में विभक्ति और कारण लिखिए।)
  4. गद्यांशे 21, 500 संख्यायाः कृते कौ शब्दौ स्तः?। (गद्यांश में 21, 500 संख्या के लिए कौन से शब्द हैं?)।
  5. नगर शब्दस्य पंचमी विभक्तेः एकवचनं किं भवति? (नगर शब्द का पंचमी-विभक्ति का एकवचन (रूप) क्या होता है?)
  6. भू धातोः लट् लकारे प्रथमपुरुषस्य एकवचनं किं भवति?। (भू धातु को लट्लकार में प्रथम पुरुष का एकवचन (रूप) क्या होता है?)
  7. गद्यांशे उप-उपसर्गस्य उदाहरणं चित्वा लिखत। .. (गद्यांश में उप-उपसर्ग का उदाहरण चुनकर लिखिए।)
  8. अस्माकं स्थाने षष्ठी-एकवचनं किं भवति? (अस्माकं के स्थान पर षष्ठी-एकवचन (रूप) क्या होता है?)

उत्तर:

  1. अस्माक विद्यालयः। (हमारा विद्यालय)।।
  2. छात्राः अध्ययने, क्रीडा-प्रतियोगितासु, भाषणे लेखने च कुशलाः सन्ति।। (छात्र अध्ययन में, खेल प्रतियोगिताओं में, भाषण में और लेखन में कुशल हैं।)
  3. रेखांकित पदे द्वितीया अस्ति। परितः योगे द्वितीया विभक्तिं भवति। (रेखांकित पद में द्वितीया विभक्ति है। परितः के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।)
  4. 21 = एकविंशति, 500 = पंचशतं।।
  5. नगरात्। (नगर से)।
  6. भवति’।
  7. उपवनम्। (बगीचा)।
  8. मम, मे। (मेरा)।

(9) सर्वासु भाषासु संस्कृत भाषा अतिप्राचीना अस्ति। इयं सर्वभाषाणां जननी अस्तीति विद्वांसः कथयन्ति। पुरा संस्कृतभाषा सर्व-साधारणज़नानां भाषा आसीत्। परं वैदेशिकशासकानां साम्राज्ये इयं भाषा ह्रासोन्मुखी बभूव। संस्कृतभाषायामेव ज्ञानविज्ञानयोर्नि-धिर्विद्यते। न केवलं भारतीयाः प्रत्युत पाश्चात्याः विद्वांसोऽपि संस्कृतभाषां प्रति श्रद्धावन्तः सन्ति। संस्कृतभाषा सकलमूल्यानां रत्नाकरः अस्ति। अतः संस्कृतस्य प्रचार प्रसारो वा आवश्यकः अस्ति। संस्कृतोन्नतिं विना भारतस्य प्रगतिः न भवितुमर्हति।

(सभी भाषाओं में संस्कृत भाषा अति प्राचीन है। यह सभी भाषाओं की जननी है, ऐसा विद्वान लोग कहते हैं। प्राचीनकाल में संस्कृत भाषा सर्वसाधारण लोगों की भाषा थी। लेकिन विदेशी शासकों के साम्राज्य में यह भाषा ह्मसोन्मुखी हो गई अर्थात् इस भाषा का ह्मस हो गया। संस्कृत भाषा में ही ज्ञान-विज्ञान की निधि है। न केवल भारतीय अपितु पाश्चात्य विद्वान भी संस्कृत भाषा के प्रति श्रद्धावान हैं। संस्कृत भाषा सभी मूल्यों का समुद्र है। इसलिए संस्कृत का प्रचार और प्रसार आवश्यक है। संस्कृत की उन्नति के बिना भारत की प्रगति नहीं हो सकती।)

Asmakam Ka Ek Vachan प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. के संस्कृतभाषां प्रति श्रद्धावन्तः सन्ति? (कौन संस्कृत भाषा के प्रति श्रद्धावान हैं?)
  3. केन विना भारतस्य प्रगतिः नैव भवितुम् अर्हति? (किसके बिना भारत की प्रगति नहीं हो सकती ?)
  4. विना इत्यस्य योगे का विभक्तिः भवति? (विना के योग में कौन सी विभक्ति होती है?)
  5. प्रति इत्यस्य योमे का विभक्ति भवतिः (प्रति इसके योग में कौन सी विभक्ति होती है?)
  6. ‘अस्तीति’ पदस्य संधिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नाम लिखत। (‘अस्तीति’ पद को सन्धि-विच्छेद करके सन्धि का नाम लिखिए।)
  7. अस् धातोः लङ्लकारे प्रथमपुरुषस्य एकवचनं किं भवति? (अस् धातु का ललकार में प्रथम पुरुष का एकवचन (रूप) क्या होता है?)
  8. संस्कृत + उन्नतिं पदस्य संधिं कृत्वा सन्धेः नाम लिखत। (संस्कृत + उन्नति पद की सन्धि करके सन्धि का नाम लिखिए।)
  9. गद्यांशात् त्रीणि अव्ययपदानि चित्वा लिखत। (गद्यांश से तीन अव्यय पद चुनकर लिखिए।)

उत्तर:

  1. संस्कृतभाषायाः महत्त्वम्। (संस्कृत भाषा का महत्त्व)।
  2. भारतीयाः पाश्चात्याश्च विद्वांसः संस्कृतभाषां प्रति श्रद्धावन्तः सन्ति। (भारतीय और पाश्चात्य विद्वान संस्कृतभाषा के प्रति श्रद्धावान हैं।)
  3. संस्कृतोन्नतिं विना भारतस्य प्रगतिः न भवितुमर्हति। (संस्कृत की उन्नति के बिना भारत की प्रगति नहीं हो सकती।)
  4. द्वितीया।
  5. द्वितीया।
  6. अस्ति + इति = अस्तीति, दीर्घ सन्धिः।।
  7. अभवत्।
  8. संस्कृत + उन्नतिं = संस्कृतोन्नतिं, गुण सन्धिः।।
  9. प्रति, विना, अपि।

(10) वर्षाकाले गगने मेघाः भवन्ति। ते गर्जन्ति, सौदामिन्यः स्फुरन्ति। सर्वत्र जलं भवति। ग्रामे मार्गाः पङ्कमयाः भवन्ति। वर्षाकाले मयूराः नृत्यन्ति, मण्डूकाः रटन्ति। वृक्षाः पल्लविताः भवन्ति। क्षेत्रेषु बीजानि वपन्ति। वर्षाकाले जलाशयाः पूर्णाः भवन्ति। नद्यः जलेन परिपूर्णा: वहन्ति। वृष्टि: देशस्य जीवनमस्ति। वर्षाजलसंरक्षणम् अस्माकं महत्कर्तव्यम्।

(वर्षा ऋतु (वर्षाकाल) में आकाश में बादल होते हैं। वे (मेघ) गरजते हैं, बिजलियाँ चमकती हैं। सभी जगह पानी होता है। गाँव के रास्तों में कीचड़ हो जाती है। वर्षाकाल में मोर नाचते हैं, मेंढक टर्राते हैं। वृक्ष पल्लवित होते हैं। खेतों में बीज बोये जाते हैं। वर्षाकाल में जलाशय पूर्ण (पानी से भरे हुए) होते हैं। नदियाँ जल से परिपूर्ण बहती हैं। वर्षा देश का जीवन है। वर्षा के जल का संरक्षण करना हमारा महान् कर्तव्य है।)

भवन्तु पदे पुरुष अस्ति प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य चितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिएं।)
  2. वर्षाकाले प्रकृतिः कीदृशी भवति? (वर्षाकाल में प्रकृति कैसी होती है?)
  3. क्षेत्राणि कीदृशानि भवन्ति? (खेत कैसे होते हैं?)
  4. सौदामिन्यः पर्यायः कः अस्ति? (‘सौदामिन्या:’ का पर्याय क्या है?)
  5. भवन्ति, नृत्यन्ति, रटन्ति, वपन्ति, कुर्वन्ति, वहन्ति पदेषु धातून् लिखत। (भवन्ति, नृत्यन्ति, रटन्ति, वपन्ति, कुर्वन्ति, वहन्ति पदों में धातुओं को लिखिए।)
  6. ‘वर्षाजलं’-पदस्य सामासिकं विग्रहं कुरुत। (वर्षाजलं पद का समास विग्रह कीजिए।)
  7. मयूराः नृत्यन्ति स्थाने एकवचनं किं भवति? (‘मयूराः नृत्यन्ति’ के स्थान पर एकवचन क्या होता है?)
  8. ‘वृष्टिः’ पदे प्रकृतिप्रत्ययौ लेख्यौ। (‘वृष्टि:’ पद में प्रकृति-प्रत्यय लिखिए।)
  9. ‘ते गर्जति’ इत्यस्य वाक्यशुद्धिं कुरुत। (‘ते गर्जति’ इस वाक्य को शुद्ध कीजिए।)
  10. सर्वत्र-अव्ययस्य प्रयोगं कृत्वा वाक्यनिर्माणं कुरुत। (‘सर्वत्र’ अव्यय का प्रयोग करके वाक्य निर्माण कीजिए।)

उत्तर:

  1. वर्षाकालः। (वर्षा का समय, वर्षाकाल।)
  2. वर्षाकाले प्रकृतिः रम्या भवति। (वर्षाकाल में प्रकृति रम्य होती है।)
  3. क्षेत्राणि हरिततरुलताभिः आच्छादितानिः भवन्तिः। (खेत हरे-भरे होते हैं।)
  4. तडित् (विद्युत)।
  5. भवन्ति = भू, नृत्यन्ति, = नृत्, रटन्ति = रट्, वपन्ति = वर्, कुर्वन्ति = कृ, वहन्ति = वह।
  6. वर्षाजलं = वर्षायाः जलम्। (वर्षा का जल)।।
  7. मयूरः नृत्यति। (मोर नाचता है।)
  8. वृष्टिः = वृष् + क्त।
  9. ते गर्जन्ति। (वे गरजते हैं।)
  10. सर्वत्र जलं भवति। (सभी जगह जल होता है।)

अन्य महत्वपूर्ण अपठितांशाः

(11) श्रीकृष्णः धेनु: अचारयत्। अतः सः गोपालः इति नाम्ना प्रसिद्ध अभवत्। भारतीयाः धेनवः अनेकवर्णीयाः भवन्तिः। तासु कपिलायाः धेनोः महत्त्वम् अधिकं भवति। धेनूनां दुग्धं शिशुभ्यः पौष्टिकं मधुरं सुपाच्यं बलवर्धकं च भवति। अतएव धेनुभिः सह मातुः तुलना कृता। दुग्धात् दधिः नवनीतं, घृतं, तक्र, मिष्टान्नं च जायन्ते। भारतीय चिकित्साग्रन्थेषु धेनोः मूत्रं, पुरीष, दुग्धं, दधि, घृतं च पंचगव्यरूपेण वर्णितम्। पंचगव्यस्य उपयोग विभिन्नरोगाणां निवारणार्थं भवति। गोमयस्य उपयोगः जैविक-उर्वरक-रूपेऽपि क्रियते। जैविक उर्वरकेण शस्यानां वृद्धिर्जायते। धेनूनाम् उपकाराणि स्मृत्वा वयं धेनुभ्यः प्रणमामः।

(श्रीकृष्ण गायों को चराते थे। अतः वे गोपाल नाम से प्रसिद्ध हुए। भारतीय गायें अनेक वर्षों की होती हैं। उनमें कपिला गाय का महत्व अधिक होता है। गायों को दूध बच्चों के लिए पौष्टिक, मधुर, सुपाच्य और बलवर्धक होता है। इसलिए गायों के साथ माता की तुलना की गई है। दूध से दधि, मक्खन, घृत, मठ (अछ) और मिष्टान्न बनते हैं। भारतीय चिकित्सा-ग्रन्थों में गाय के मूत्र, गोबर, दूध, दधि और घृत को पंचगव्य के रूप में वर्णित किया गया है। पंचगव्य का उपयोग विभिन्न रोगों के निवारण के लिए होता है। गोबर का उपयोग जैविक खाद के रूप में किया जाता है। जैविक खाद से फसलों की वृद्धि होती है। गायों के उपकारों को स्मरण कर हम गायों के लिए प्रणाम करते हैं।)।

वयं केन पश्यामः प्रश्नाः

  1. अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षकं लिखत- (इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. धेनुभिः सह कस्याः तुलना कृता? (पूर्णवाक्येन उत्तरत।) (गायों के साथ किसकी तुलना की गई है?)
  3. ‘सः गोपालः इति नाम्ना प्रसिद्ध अभवत् रेखांकित सर्वनामस्थाने संज्ञापदं लिखत।। (रेखांकित सर्वनाम के स्थान पर संज्ञा पद लिखिए।)
  4. ‘धेनूनां दुग्धम् पौष्टिकं भवति।’ अत्र विशेषण-विशेष्य पदं चीयताम्। (‘गायों को दूध पौष्टिक होता है। यहाँ विशेषण-विशेष्य पद चुनिये।)

उत्तर:

  1. ‘धेनोः महिमा’। (गाय की महिमा।)
  2. धेनुभिः सह मातुः तुलना कृता। (गायों के साथ माता की तुलना की गई है।)
  3. श्रीकृष्णः (श्रीकृष्ण)।
  4. ‘पौष्टिकम्’ इति विशेषणपदम्, ‘दुग्धम्’ इति विशेष्य पदम्। (‘पौष्टिकम् विशेषण पद है, ‘दूध’ विशेष्य पद है।)

(12) प्रत्येक धर्मे कतिपयाः सम्प्रदायाः भवन्ति। हिन्दूनां शैवशाक्तवैष्णवादयः सम्प्रदायाः प्रसिद्धाः। मुस्लिमा: शिया-सुन्नी-बहावी-सम्प्रदायेषु विभक्ताः। खीष्टानुयायिनः कैथोलिकप्रोटेस्टैण्ट इति सम्प्रदायद्वये वगीकृताः। सर्वेषां सम्प्रदायानां ‘सत्याराधनम्’ इति एकमेव लक्ष्यम् अस्ति। किन्तु केचित् दुष्टाः काल्पनिक मतभेदं विभाव्यं परस्परं द्वेषम् उद्भायन्ति। एकः सम्प्रदायः अपरं स्वशत्रु मन्यते। जनाः वृथैव परस्परं युध्यन्ते। युद्धम् एव तेषां लक्ष्यं सञ्जायते। ईशाराधनं तत्र गौणोभवति। भीषणं रक्तपातं धनजनहानिश्च भवतः। अस्माकं राष्ट्रे तु विविध-सम्प्रदायानां समवायः विद्यते। अत्र साम्प्रदायिक सौमनस्य तु अत्यावश्यकम्। वयं भ्रातरः भगन्यिश्च परस्परं युद्धेरता: चेत् तर्हि राष्ट्रिया एकता कुत: स्यात् ? एकतां विना सुख-समृद्धेः कल्पना निराधारा एव। अतः अस्माभिः साम्प्रदायिक सौमनस्यं स्थिरीकर्तव्यम्।।

(प्रत्येक धर्म में कुछ सम्प्रदाय होते हैं। हिन्दुओं के शैव, शाक्त, वैष्णव आदि सम्प्रदाय प्रसिद्ध हैं। मुस्लिम शिया, सुन्नी, बहावी सम्प्रदायों में विभक्त हैं। ईशा के अनुयायी कैथोलिक और प्रोटेस्टैण्ट इन दो सम्प्रदायों में वर्गीकृत हैं। सभी सम्प्रदायों का ‘सत्य की आराधना’ यही एक लक्ष्य है। किन्तु कुछ दुष्ट लोग काल्पनिक मतभेद को सोचकर परस्पर द्वेष पैदा करते हैं। एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदाय को अपना शत्रु मानता है। लोग बेकार ही परस्पर युद्ध करते हैं। युद्ध ही उनका लक्ष्य बन जाता है। भगवान की आराधना वहाँ गौण हो जाती है। भीषण रक्तपात, धन और जन की हानि होती है। हमारे राष्ट्र में तो विविध सम्प्रदायों का एकत्रीकरण है। यहाँ साम्प्रदायिक सौहार्द अत्यावश्यक है। हम भाई. औरै बहिन परस्पर युद्ध में संलग्न हों तो राष्ट्रीय एकता कहाँ होगी ? एकता के बिना सुख-समृद्धि की कल्पना ही निराधार है। इसलिए हमें साम्प्रदायिक सौहार्द स्थिर करना चाहिए।)

भवंतु पदे पुरुष प्रश्नाः

  1. अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षकं लिखत। (इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. हिन्दूनां के-के सम्प्रदायाः प्रसिद्धाः? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) (हिन्दुओं के कौन-कौन से सम्प्रदाय प्रसिद्ध हैं?)
  3. ‘युद्धम् एवं तेषां लक्ष्यं सञ्जायते।’ इत्यंत्र रेखांकितपदस्थाने संज्ञापदं लिखत। (‘युद्ध ही उनका लक्ष्य बन जाता है। इसमें रेखांकित पद के स्थान पर संज्ञा पद लिखिए।)
  4. ‘अत्र साम्प्रदायिक सौमनस्यं तु अत्यावश्यकम्।’ इत्यत्र ‘सौमनस्यं’ कस्य पर्यायम्?। (‘यहाँ साम्प्रदायिक सौमनस्य तो अत्यावश्यक है।’ इसमें ‘सौमनस्य’ किसका पर्याय है?)

उत्तर:

  1. साम्प्रदायिक सौमनस्यम्। (साम्प्रदायिक सौहार्द्र)।
  2. हिन्दूनां शैवशाक्तवैष्णवादयः सम्प्रदायाः प्रसिद्धाः। (हिन्दुओं के शैव, शाक्त, वैष्णव आदि सम्प्रदाय प्रसिद्ध हैं।)
  3. जनानाम् (मनुष्यों को।)
  4. सौहार्द्रस्य (सौहार्द्र का।)

(13) भारतस्य उत्तरस्यां दिशि हिमालय पर्वतः अस्ति। सः भारतस्य मुकुटमणिः इव शोभते। सः शत्रुभ्यः अस्मान्। रक्षति। अस्य दक्षिणपूर्व-दिशयोः समुद्रौ स्तः। सागरः भारतमातुः चरणौ प्रक्षालयति इव। अस्माकं देशे अनेके पर्वताः सन्ति। अत्र अनेकाः नद्यः प्रवहन्ति। नद्यः पानाय जलं यच्छन्ति। ‘ता: नद्यः देशे सस्यम् अपि सिञ्चन्ति। एवं ताः अस्माकम्। उदरपूरणाय अन्नं जलं च यच्छन्ति।

(भारत की उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत है। वह भारत की मुकुटमणि के समान शोभा देता है। वह शत्रुओं से हमारी रक्षा करता है। इसकी दक्षिण-पूर्व दिशाओं में समुद्र है। सागर मानो भारत माता के चरणों को धोता है। हमारे देश में अनेक पर्वत हैं। यहाँ अनेक नदियाँ बहती हैं। नदियाँ पीने के लिए जल देती हैं। वे नदियाँ देश में फसल भी सींचती हैं। इस प्रकार वे हमारी उदर पूर्ति के लिए अन्न-जल प्रदान करती हैं।).

केषां छेदनं रोद्धव्यम्प्र श्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. भारतस्य मुकुटमणिः इव कः शोभते? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) (भारत का मुकुटमणि के समान क्या सुशोभित होता है?)
  3. अस्य दक्षिण-पूर्व दिशयोः समुद्रौ स्तः। अत्र रेखांकित सर्वनामपदे संज्ञापदं लिखत। (इसमें रेखांकित सर्वनाम पद के स्थान पर संज्ञा पद लिखिए।)
  4. ‘अस्माकम्’ इतिपदस्य विलोमपदं लिखत। (‘अस्माकम्’ का विलोम लिखिए।)

उत्तर:

  1. भारतस्य पर्वता: नद्यश्च (भारत के पर्वत और नदियाँ।)
  2. भारतस्य मुकुटमणिरिव, हिमालयः शोभते।
  3. भारतस्य। (भारत की)
  4. युष्माकम्। (तुम्हारा)।

(14) अस्मिन् जगति विद्यायाः अतिमहत्त्वम् अस्ति। विधत्ते सदसद्ज्ञानम्, सा हि विद्या कथ्यते। विद्या विनयं ददाति। अतः विद्यायुक्ताः मानवाः विनीताः भवन्ति। मानवाः विनयात् पात्रता प्राप्नुवन्ति। पात्रत्वाद् धनं प्राप्यते। ततः च सुखम् इति अस्मिन् संसारे विद्यमानेषु धनेषु विद्यैव सर्वप्रधानं धनं विद्यते। विद्या-धनं व्ययेकृते नित्यं वर्धते, संचये कृते नश्यति इति अपूर्वः नियमः। चौरा: विद्यां चोरयितुं न शक्नुवन्ति। विद्या भ्रातृषु अपि न विभज्यते। नृपोऽपि विद्यां न हरति।

(इस संसार में विद्या का अत्यन्त महत्त्व है। सद्-असद् ज्ञान जिससे होता है, वही विद्या कही जाती है। विद्या विनम्रता देती है। इसलिए विद्या से युक्त मानव विनम्र होते हैं। मानव विनम्रता से पात्रता को प्राप्त होते हैं। पात्रता से धन प्राप्त होता है। और उससे सुख। इस संसार में विद्यमान सभी धनों में विद्या ही सबसे प्रधान धन है। विद्या-धन खर्च करने पर नित्य बढ़ता है, इकट्ठा करने पर नष्ट हो जाता है, ऐसा अपूर्व नियम है। चोर विद्या को चुरा नहीं सकते हैं। विद्या भाइयों में भी नहीं बाँटी जा सकती है। राजा भी विद्या का हरण नहीं कर सकता है।)

भवंतु पर्दे पुरुष अस्ति प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षक लिखत-(गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. विद्या किं कथ्यते? (विद्या क्या कही जाती है?) (पूर्णवाक्येन उत्तरंत).
  3. ‘अस्मिन्’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम् ? (‘अस्मिन्’ यह सर्वनाम पद किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?)
  4. ‘मानवाः विनीताः भवन्ति।’ इत्यत्र विशेषण-विशेष्यपदं चीयताम्।। (‘मनुष्य विनीत होते हैं। इसमें विशेषण-विशेष्य पद चुनिये।)

उत्तर:

  1. विद्यायाः महत्त्वम्। (विद्या का महत्त्व।)
  2. सद्सद्ज्ञानं विद्या कथ्यते। (सद्-असद के ज्ञान को। विद्या कहते हैं।)
  3. जगति।
  4. ‘विनीताः’ इति विशेषणपदम् ‘मानवाः’ इति विशेष्य पदम्। (‘विनीत’ विशेषण पद है, ‘मानव’ विशेष्य पद है।)

(15) अस्माकं भारतवर्षे राष्ट्रियाः, धार्मिका: सामाजिकाः च उत्सवाः भवन्ति। होलिकोत्सवः हिन्दूनां महत्वपूर्णः सामाजिक उत्सवः अस्ति। अयम् उत्सवः फाल्गुनमासस्य पौर्णमास्यां भवति। अयम् उत्सव: वसन्ततॊ भवति। तदा समशीतोष्णं वातावरणम् अतिसुखदं भवति। उत्सवोऽयं मनुष्येषु सुखोल्लासम् आनन्दञ्च सञ्चारयति। अस्मिन् उत्सवे जनाः परस्परं. मिलन्ति मिष्टान्नवितरणं च कुर्वन्ति।।

(हमारे भारतवर्ष में राष्ट्रीय, धार्मिक और सामाजिक उत्सव होते हैं। होली का त्यौहार हिन्दुओं का महत्वपूर्ण सामाजिक त्यौहार है। यह त्यौहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होता है। यह त्यौहार वसन्त ऋतु में होता है। उस समय समशीतोष्ण वातावरण अत्यन्त सुखकारी होता है। यह त्यौहार लोगों में सुख, उल्लास व आनन्द का संचार कर देता है। इस। उत्सव में लोग एक दूसरे से मिलते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं।)

मेघा कुत्र शांति प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षकं लिखतु। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखो।)
  2. होलिकोत्सवः कस्मिन् मासे भवति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत।) (होली का त्यौहार किस महीने में होता है?)
  3. ‘अयम् उत्सवः वसन्ततॊ भवति’ इत्यत्र सर्वनामपद स्थाने संज्ञापदं प्रयुज्जत। (‘यह उत्सव वसन्त ऋतु में होता है, यहाँ सर्वनाम पद की जगह संज्ञापद का प्रयोग कीजिये।)
  4. ‘दुःखदम्’ इत्यस्य पदस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किमस्ति?(‘दु:खदं’ पद के स्थान पर प्रयुक्त विलोमपद क्या है?)

उत्तर:

  1. होलिकोत्सवः (होली का त्यौहार।)
  2. होलिकोत्सवः फाल्गुन मासे भवति। (होली का त्यौहार फागुन महीने में होता है।)
  3. होलिकोत्सवः। (होली)
  4. ‘सुखदम्’ इति। (सुखद)।

(16) मानवः जीवननिर्वाहाय यां कामपि आजीविका ग्रहीतुं शक्नोति। तस्यां पठनपाठनस्य, कृषेः, वाणिज्यस्य, देशसेवायाश्च कार्याणि सन्ति। परन्तु स सदा जीवनसाफल्याय सत्कर्म अवश्यं कुर्यात्। अतः कदाचिदपि, उद्देश्यत्यागो न विधेयः। निरुद्देश्यं जीवनं विनश्यति। जीवनस्य साफल्याये उद्देश्यमपि सद् एव स्यात्। मनुष्यस्य सत्कर्मणा सदुद्देश्यमपि अवश्यं पूर्ण भवति।

(मनुष्य जीवन निर्वाह के लिए कोई भी आजीविका ग्रहण कर सकता है। उसमें पठन-पाठन, कृषि, व्यापार और देश सेवा के कार्य हैं। लेकिन उसे हमेशा जीवन में सफलता के लिए अच्छा कार्य अवश्य करना चाहिए। इसलिए कभी भी उद्देश्य का त्याग नहीं करना चाहिए। उद्देश्य के बिना जीवन नष्ट हो जाता है। जीवन की सफलता के लिए उद्देश्य भी अच्छा ही होना चाहिए। मंनुष्य के अच्छे कार्य से अच्छा उद्देश्य भी अवश्य पूर्ण हो जाता है।)

अस्माकं पुस्तकानि एकवचन में क्या होगा प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य चितं शीर्षक लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
  2. आजीविकायै कानि कार्याणि कर्तुं शक्यन्ते? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) (आजीविका के लिए कौन-कौन से कार्य किये जा सकते हैं?)
  3. ‘स सदा सत्कर्म अवश्यं कुर्यात्’ इत्यत्र सर्वनामपदचयनं स्थाने संज्ञापदं लिखत। (‘उसे हमेशा अच्छा कार्य अवश्य करना चाहिए’ यहाँ सर्वनाम पद के स्थान पर संज्ञा पद लिखिए।)
  4. ‘निरुद्देश्यं जीवनम्’ इत्यत्र विशेषण-विशेष्यपदचयनं कुरुते।। (‘बिना उद्देश्य जीवन’ यहाँ विशेषण-विशेष्य पद का चयन कीजिए।)

उत्तर:

  1. सदुद्देश्यम् (अच्छा उद्देश्य।)
  2. आजीविकायै पठनपाठनस्य, कृषेः, वाणिज्यस्य, देशसेवायाश्च कार्याणि कर्तुं शक्यन्ते। (आजीविका के लिए पठन-पाठन, कृषि, व्यापार और देश-सेवा के कार्य किये जा सकते हैं।)
  3. ‘मानवः’ इति। (मनुष्य)
  4. ‘निरुद्देश्यम्’ इति विशेषणपदं, ‘जीवनम्’ इति विशेष्यपदम्। (‘निरुद्देश्यम्’ विशेषण पद तथा ‘जीवनम्’ विशेष्य पद है।)

(17) अनुशासनस्य तात्पर्यम् अस्ति-व्यवस्था नियमो वा। अनुशासनं मानवजीवने महत्त्वपूर्णमस्ति। अस्य महत्त्वं ज्ञात्वा छात्रा: सफलता प्राप्नुवन्ति। अनुशासनेन प्रकृति: अप व्यवस्थिता भवति। विशेषत: छत्रजीवने तु अनुशासनम् अनिवार्यमस्ति। समयपालनम् अनुशासनस्य प्रधानमंगमस्ति। अतः एव प्रतिविषयानुसारम् अध्यापनव्यवस्था समयविभागः च क्रियते। समयेन कार्यं कृत्वा विद्यालयस्य नियमानि पाल्यन्ते, परीक्षा अपि समयानुसारं दीयते।

(अनुशासन का तात्पर्य है व्यवस्था अथवा नियम। अनुशासन मानव-जीवन में महत्वपूर्ण है। इसके महत्व को जानकर छात्र सफलता प्राप्त करते हैं। अनुशासन से प्रकृति भी व्यवस्थित होती है। विशेष रूप से छात्र-जीवन में अनुशासन अनिवार्य है। समय पालन अनुशासन का मुख्य अंग है। इसलिए प्रत्येक विषय के अनुसार अध्यापन व्यवस्था और समय विभाजन किया जाता है। समय से कार्य करके विद्यालय के नियमों का पालन किया जाता है। परीक्षा भी समय अनुसार दी जाती है।)

अस्माकं का शब्द रूप प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्ये उचितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश को उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. अनुशासनस्य किं तात्पर्यम् अस्ति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) (अनुशासन का क्या तात्पर्य है?)
  3. ‘अस्य’ महत्त्वं ज्ञात्वा छात्राः सफलता प्राप्नुवन्ति’ इत्यत्र ‘अस्य’ इत्यस्य स्थाने संज्ञायाः प्रयोगः करणीयः। (‘इसका महत्त्व जानकर छात्र सफलता प्राप्त
  4. करते हैं यहाँ ‘अस्य’ के स्थान पर संज्ञा का प्रयोग कीजिए।) अत्र अनुशासनस्य पर्यायः कः? (यहाँ अनुशासन का पर्याय क्या है?)

उत्तर:

  1. अनुशासनम् (अनुशासन)।
  2. अनुशासनस्य तात्पर्य व्यवस्था नियमो वा अस्ति। (अनुशासन का तात्पर्य है-व्यवस्था अथवा नियम।)
  3. अनुशासनस्य’ (अनुशासन का)
  4. व्यवस्था इति। (व्यवस्था)।

(18) अस्मान् परितः यत् वृत्तम् आवृणोति तत् पर्यावरणम् इति कथ्यते। सम्प्रति संसारे औद्योगिकविकासेन, जनसंख्याविस्फोटेन, ध्वनि-प्रदूषणेन वनानां च विनाशेन सर्वत्र हाहाकारः जायते। अस्याः समस्यायाः निवारणाय प्रत्येको जनः कटिबद्धः भवेत्। स्थाने-स्थाने वृक्षाः रोपणीयाः। वनानां छेदनं रोद्धव्यम्। पर्यावरणरक्षणे जनसहयोगः अत्यावश्यकः अस्ति। अयम् अस्माकं पुनीतं कर्तव्यं वर्तते।

(हमको चारों ओर से जो वातावरण घेरे रहता है, वह पर्यावरण कहलाता है। इस समय संसार में औद्योगिक विकास से, जनसंख्या-विस्फोट से, ध्वनि-प्रदूषण से और वनों के विनाश से सब जगह हाहाकार हो रहा है। इस समस्या के निवारण के लिए प्रत्येक व्यक्ति को कटिबद्ध होना चाहिए। जगह-जगह वृक्षों का रोपण करना चाहिए। वनों का कटान रुकना चाहिए। पर्यावरण की रक्षा में जन-सहयोग अत्यंत आवश्यक है। यह हमारा पवित्र कर्तव्य है।)

पृथ्वी’अस्य पदस्य पर्याय पदम् अस्ति प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. पर्यावरणसंरक्षणे मुख्य भूमिका कस्ये अस्ति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत।) (पर्यावरण की सुरक्षा में मुख्य भूमिका किसकी है?)
  3. पर्यावरणरक्षणम् अस्माकं पुनीतं कर्तव्यं। इत्यत्र ‘अस्माकं’ स्थाने संज्ञापद प्रयुज्जत्। (पर्यावरण की रक्षा हमारा’ पुनीत कर्तव्य है। इसमें हमारा’ के स्थान पर संज्ञा शब्द का प्रयोग करें।)
  4. ‘पुनीतं कर्त्तव्यम्’ इत्यत्र विशेषण-विशेष्यपदं चीयताम्।। (‘पुनीतं कर्त्तव्यम्’ यहाँ विशेषण-विशेष्य पद चुनिये।)

उत्तर:

  1. पर्यावरणम् (पर्यावरण)।
  2. पर्यावरणसंरक्षणे मुख्य भूमिका जनसहयोगस्य अस्ति। (पर्यावरण की सुरक्षा में मुख्य भूमिका जनसहयोग की है।)
  3. मानवानाम् इति। (मनुष्यों का)।
  4. पुनीतम् इति विशेषण पदम्, कर्त्तव्यम् इति विशेष्य पदम्। (‘पुनीत’ विशेषण पद और ‘कर्त्तव्य’ विशेष्य पद है।)

(19) महाकविः कालिदासः संस्कृतवाङ्मयस्य श्रेष्ठः कविः आसीत्। सः त्रीणि नाटकानि लिखितवान्। तेषु अभिज्ञानशाकुन्तलम् अतिप्रसिद्ध नाटकम् अस्ति। अस्मिन् नाटके सप्त अङ्कीः सन्तिः। तेषु अपि चतुर्थः अङ्कः विशिष्टमनोहरो वर्तते। अस्मिन् विषये केनचित् कविना कथितम्-काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला। अस्य नाटकस्य नायकः दुष्यन्तः नायिका च शकुन्तला।

(महाकवि कालिदास संस्कृत वाङ्मय के श्रेष्ठ कवि थे। उन्होंने तीन नाटक लिखे। उनमें से अभिज्ञान शाकुंतलम् अत्यंत प्रसिद्ध नाटक है। इस नाटक में सात अंक हैं। उनमें भी चौथा अंक विशेष रूप से मनोहर है। इस विषय में किसी कवि ने कहा है–काव्य में नाटक रमणीय होता है, उनमें शकुंतला रमणीय है। इस नाटक का नायक दुष्यंत और नायिका। शकुंतला है।)

भवंतु पादे पुरुष अस्ति प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य चितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. अभिज्ञानशाकुन्तलस्य नायक-नायिका के? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) (अभिज्ञान शाकुन्तल के नायक-नायिका कौन हैं?)
  3. सः त्रीणि नाटकानि लिखितवान्। रेखांकितपदे संज्ञापदं प्रयुज्जत। (उसने तीन नाटक लिखे हैं। रेखांकित पद में संज्ञापद का प्रयोग कीजिए।),
  4. गद्यांशे ‘साहित्यस्य’ पर्यायः चीयताम्। (गद्यांश में साहित्य का पर्याय चुनिए।)

उत्तर:

  1. महाकविः कालिदासः (महाकवि कालिदास)।
  2. अभिज्ञानशाकुन्तलस्य नायकः दुष्यन्तः नायिका च शकुन्तला। (अभिशानशाकुन्तल का नायक दुष्यन्त और नायिका शकुन्तला है।)
  3. कालिदासः। (कालिदास ने।)
  4. वाङ्मयस्य’ इति। (वाङ्मय का।)

(20) अस्मिन् संसारे सर्वे प्राणिनः सुखमिच्छन्ति। तदर्थं ते खलु सर्वदा प्रयतन्ते। तेषु बहवः सुखमाप्नुवन्ति बहवश्च दु:खमेवानुभवन्ति। ये जनाः सततं परिश्रमं कुर्वन्ति, ते स्वकार्येषु सफला: भूत्वा शान्तिं सुखं च लभन्ते। ये जना: अलसाः स्वकार्यं नानुतिष्ठन्ति, ते तत्फलं न प्राप्य अशान्तिं दुःखं च लभन्ते।।

(इस संसार में सभी प्राणी सुख चाहते हैं। इसके लिए वह हमेशा प्रयत्न करते हैं। उनमें से बहुत से सुख प्राप्त करते हैं और बहुत-से दु:ख का ही अनुभव करते हैं। जो लोग निरंतर परिश्रम करते हैं, वह अपने कार्यों में सफल होकर शांति और सुख प्राप्त करते हैं। जो आलसी लोग अपने कार्य को नहीं करते, वे उस फल को प्राप्त न करके अशांति और दु:ख प्राप्त करते हैं।)

तस्य विभक्ति प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य चितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. शान्तेः सुखस्य चोपलब्धिः कथं भवति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)(शान्ति और सुख की प्राप्ति कैसे होती है?)
  3. ‘तदर्थं ते सर्वदा प्रयतन्ते।’ इत्यत्र सर्वनामस्थाने संज्ञा प्रयुज्जत।। (‘उसके लिए वे सदा प्रयत्न करते हैं।’ यहाँ सर्वनाम की जगह संज्ञा का प्रयोग कीजिए।)
  4. ‘दुःखम्’ इत्यस्य पदस्य किं विलोमपदम् अत्र प्रयुक्तम्? (‘दु:खम्’ इस पद का क्या विलोम पद यहाँ प्रयुक्त हुआ है?)

उत्तर:

  1. निरन्तरं परिश्रमं करणीयम्। (निरंतर परिश्रम करना चाहिए।)
  2. सततं परिश्रमं कृत्वा शान्तेः सुखस्य चोपलब्धिः भवति। (निरन्तर परिश्रम करके शान्ति और सुख की प्राप्ति होती है।)
  3. प्राणिनः। (प्राणी)
  4. ‘सुखम्’ इति। (सुख)।

(21) आधुनिक युगे वयं सूचनाप्रौद्योगिक्यां क्रान्तिकारिपरिवर्तनं प्रतिदिनं पश्यामः, यथा-दूरभाष: दूरदर्शनं, चलदूरभाषः, संगकणकयन्त्रम् इत्यादयः सूचनासंसाधनानां विस्तारो अभवत्। अन्ययन्त्राणामपेक्षया संगणकयन्त्रस्य कार्यक्षमता आधिक्येन विद्यते। आंग्लभाषायाम् अस्य कृते कम्प्यूटर इति शब्दः अस्ति। अत्र ‘कम्प्यूट’ इति मूलशब्दः। संगणकेन टंकणयन्त्रस्य, गणक-यन्त्रस्य दूरदर्शनयन्त्रस्य च सर्वाः विशेषताः आत्मसात्कृताः। संगणके टंकणाय अक्षरकुञ्जिकापट्टः, गणकसामर्थ्य दूरदर्शनयवनिका च सम्प्रविष्टाः भवन्ति। आदेशग्राहकः (इनपुट), आदेशानुपालकः (आउटपुट), मस्तिष्कं (प्रोसेसर), निर्देशसमूहः (प्रोग्राम), स्मृतिपटलश्च (मैमोरी) प्रायः पञ्चावयवात्मकं यन्त्रमिदम्।।

(आधुनिक युग में हम प्रतिदिन सूचना प्रौद्योगिकी में क्रांतिकारी परिवर्तन देखते हैं, जैसे-टेलीफोन, टेलीविजन, मोबाइल फोन, कंप्यूटर आदि सूचना संसाधनों का विस्तार हुआ है। दूसरे यंत्रों की अपेक्षा कंप्यूटर की कार्य-क्षमता अधिक है। अंग्रेजी भाषा में इसके लिए कंप्यूटर शब्द है। इसमें कंप्यूट मूल शब्द है। कंप्यूटर ने टंकण यंत्र की, गणक यंत्र

(केलकुलेटर) की और टेलीविजन की सभी विशेषताएं आत्मसात् कर ली हैं। कंप्यूटर में टंकण के लिए अक्षर कुंजी-पट्ट (की-बोर्ड) गिनती की क्षमता और दूरदर्शन पर्दा (मॉनीटर) अच्छी तरह प्रविष्ट होते हैं। इस यंत्र में आदेश ग्राहक (इनपुट)

आदेश का पालन करने वाला (आउटपुट), मस्तिष्क (प्रोसेसर), निर्देश समूह (प्रोग्राम) और स्मृतिपटल (मेमोरी) प्रायः पाँच आवश्यक अंग हैं)।

Asmakam Vibhakti In Sanskrit प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षक लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. संगणकेन काः विशेषताः आत्मसात्कृताः ? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) (कम्प्यूटर द्वारा क्या विशेषताएँ आत्मसात् कर ली गयी हैं?)
  3. ‘अस्य’ कृते कम्प्यूटर इति शब्दः रेखांकित पदस्थाने संज्ञां प्रयुज्जत। (रेखांकित पद की जगह संज्ञा का प्रयोग कीजिए।)
  4. ‘क्रान्तिकारिपरिवर्तनम्’ इत्यनयोः विशेषण-विशेष्य-पदं चीयताम्। (क्रान्तिकारी परिवर्तन’ इन दोनों में विशेषण-विशेष्य पद चुनिये।)

उत्तर:

  1. सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना प्रौद्योगिकी)।
  2. संगणकेन टंकणयन्त्रस्य, गणकयन्त्रस्य दूरदर्शनयन्त्रस्य च सर्वा: विशेषताः आत्मसात्कृताः। (कम्प्यूटर द्वारा टाइपराइटर, केलकुलेटर और टेलीविजन की सभी विशेषताएँ आत्मसात् कर ली गई हैं।)
  3. संगणकस्य। (कम्प्यूटर का।)
  4. ‘क्रान्तिकारी’ इति विशेषणपदम् ‘परिवर्तनम्’ यह विशेषण है, ‘परिवर्तन’ यह विशेष्य है।)

(22) भारतीय संस्कृते: आदर्शवाक्यानि सन्ति-‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘आत्मवत्-सर्वभूतेषु’, ‘अहिंसा परमो धर्मः’ ‘मातृवत् परदारेषु-परद्रव्येषु लोष्ठवत्’ इत्यादीनि। भारतीयसंस्कृतिः धर्मप्रधाना वर्णाश्रम-व्यवस्थायुक्ती च अस्ति। कर्मफलं, पुनर्जन्म, मोक्षवादः च अस्याः प्रमुखाः सिद्धान्ताः सन्ति। सत्यस्य, त्यागस्य अहिंसायाः च अत्र अतीवं महत्वं वर्तते। विश्वहितस्य मूलभूताः भावना: भारतीयसंस्कृतौ उपलभ्यन्ते।।

(भारतीय संस्कृति के आदर्श वाक्य हैं-सभी सुखी हों संसार ही परिवार है, सभी प्राणियों में अपने समान भाव, अहिंसा परम धर्म है, दूसरे की स्त्रियों में माता के समान व दूसरे के धन में ढेले के समान भाव इत्यादि। भारतीय संस्कृति धर्मप्रधान और वर्ण-आश्रम व्यवस्थायुक्त है। कर्म फल, पुनर्जन्म और मोक्षवाद इसके प्रमुख सिद्धांत हैं। सत्य-त्याग और अहिंसा को यहाँ अत्यन्त महत्व है। विश्व-कल्याण की मूलभूत भावनाएँ भारतीय संस्कृति में प्राप्त होती हैं।)

दानाय पदस्य विभक्ति लिखतु प्रश्नाः

  1. गद्यांशस्य उचितं शीर्षकं लिखत। (गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. भारतीयसंस्कृतेः कानि आदर्शवाक्यानि? (भारतीय संस्कृति के कौन-कौन से आदर्श वाक्य हैं?)
  3. ‘…………………………… अस्याः प्रमुखाः सिद्धान्ताः सन्ति।’ रेखांकित सर्वनाम पदस्थाने संज्ञा प्रयुज्जत। ‘ (‘……………………….इसके प्रमुख सिद्धान्त हैं।’ रेखांकित सर्वनाम शब्द की जगह संज्ञा का प्रयोग कीजिए।)
  4. गद्यांशे परिवारम्’ इत्यस्य पर्यायपदं चीयताम्। (गद्यांश में परिवार का पर्याय शब्द चुनिए।)

उत्तर:

  1. भारतीय संस्कृतेः विशेषताः (भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ।)
  2. सर्वे भवन्तु सुखिनः, वसुधैव कुटुम्बकम्, आत्मवत् सर्वभूतेषु, मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत् इति भारतीयसंस्कृतेः आदर्शवाक्यानि। (सभी सुखी होवें, संसार ही परिवार है, सभी प्राणियों में अपने समान, दूसरे की स्त्रियों में माता के समान, दूसरे के धनों में ढेले के समान भाव-ये भारतीय संस्कृति के आदर्श वाक्य हैं।)
  3. भारतीयसंस्कृतेः। (भारतीय संस्कृति के।)
  4. कुटुम्बकम् इति। (कुटुम्ब)।

(23) अफ्रीकोतः भारतम् आगत्य गान्धिना हिंसाशून्येन मार्गेण स्वातंत्र्य-लाभाय उद्योगः कृतः। तस्य देशभक्तिं, सच्चरितं साहसपरतां च विलोक्य जनाः तस्य अनुसरणं कृतवन्तः। तस्य वचनैः स्वदेशसेवायां प्राणानपि त्यक्तुम् उद्यता: अभवन्। भूयो भूयः उद्योगे क्रियमाणे भारतवर्षः विनैव युद्धम् आत्मस्वातन्त्र्यम् अलभत। पूर्व मेव महात्मापदमण्डितः गान्धिमहोदयः ‘भारतराष्ट्रपिता’ इति अभवत्। परमेश्वरस्य परमभक्तः, दीनबन्धुः, सदाचारमूर्तिः, नम्रतायाः अवतारः, सेवाव्रती, सत्यस्य अहिंसायाः च उपासकः एतादृशः महापुरुषः यत्र प्रकटितः भवति स देशः धन्य एव अस्ति।

(अफ्रीका से भारत आकर गांधीजी ने हिंसा रहित तरीके से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए परिश्रम किया। उनकी देशभक्ति, सच्चरित्र और साहस को देखकर लोगों ने उनका अनुकरण किया। उनके वचनों से अपने देश की सेवा में प्राणों को भी त्यागने के लिए तत्पर हो गए। बार-बार परिश्रम किए जाने पर भारतवर्ष ने बिना युद्ध के ही अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की। पहले ही महात्मा पद से सुशोभित गांधी महोदय भारत के राष्ट्रपिता हो गए। परमेश्वर का परमभ.., दीनबंधु, सदाचार की मूर्ति, विनम्रता का अवतार, सेवा-व्रत धारण करने वाला, सत्य और अहिंसा का उपासक ऐसा महापुरुष जहां प्रकट होता है, वह देश धन्य ही है।)

फलानि अस्य एकवचनं पदम् अस्ति प्रश्नाः

  1. अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षकं लिखित। (इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. गान्धिमहोदयः कीदृशः आसीत्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) (गाँधी महोदय कैसे थे?)
  3. जनाः तस्य अनुसरणं कृतवन्तः’ अत्र सर्वनाम स्थाने संज्ञा प्रयुज्जत। (‘लोगों ने उसका अनुसरण किया’ यहाँ सर्वनाम की जगह संज्ञा का प्रयोग कीजिए।)
  4. गद्यांशे प्रयुक्तं ‘दुराचार’ इति पदस्य विलोमं चीयताम्। (गद्यांश में प्रयुक्त ‘दुराचार’ पद का विलोम चुनिए।)

उत्तर:

  1. महात्मागांधिः (महात्मा गाँधी)
  2. गान्धिमहोदयः परमेश्वरस्य परमभक्तः, दीनबन्धुः, सदाचारमूर्तिः, नम्रतावतारः, सेवाव्रती, सत्यस्य अहिंसायाः च उपासकः आसीत्। (गाँधी महोदय
  3. परमेश्वर के परम भक्ते, दीनबन्धु, सदाचार की मूर्ति, विनम्रता के अवतार, सेवाव्रत को धारण करने वाले, सत्य और अहिंसा के उपासक थे।)
    ‘गान्धिनः’ इति। (गांधीजी की।)
  4. सदाचार’ इति। (सदाचार।)

(24) शासनं मुख्यतः द्विविधं भवति–राजतन्त्रं प्रजातन्त्रं च। प्रजातन्त्रम् एव लोकतन्त्रं जनतन्त्रं वा कथ्यते। राजतन्त्रे एकः पुरुषः बुद्धि-बलेन, शरीरबलेन परम्परया वा राजा भवति। सः पूर्णतः स्वेच्छाचारी भवति। तस्मै यद् यद् रोचते सः तत् तत् करोति प्रजाभिः कारयति च। लोकतन्त्रे प्रजानां प्रतिनिधयः लोकहितं दृष्ट्वा, संविधान निर्माणं कृत्वा तदनुसारं शासनं परिचालयन्ति। प्रतिनिधीनां निर्वाचनं निश्चितकालानन्तरं पुन: भवति। प्रजातन्त्रं बहुजनहिताय बहुजनसुखाय च भवति। अस्यां शासन-प्रणाल्यां शासने कस्यापि एकस्य एव पुरुषस्य अधिकारः न भवति। प्रजातन्त्रप्रणाल्यां प्रजाभिः निर्वाचिताः जनाः एवं अधिकारिणः भवन्ति। प्रजा-जनैः निर्वाचितं मन्त्रिमण्डलं सर्वदा जनता-हितम् एव चिन्तयति।

(शासन मुख्यतः दो प्रकार का होता है-राजतंत्र और प्रजातंत्र। प्रजातंत्र को ही लोकतंत्र अथवा जनतंत्र कहा जाता है। राजतंत्र में एक पुरुष बुद्धि बल से, शारीरिक बल से अथवा परंपरा से राजा होता है। वह पूर्णतया स्वेच्छाचारी होता है। उसे जो जो अच्छा लगता है, वह वही वही करता है और प्रजा से कराता है। लोकतंत्र में प्रजा के प्रतिनिधि लोकहित को देखकर, संविधान निर्माण करके उसके अनुसार शासन चलाते हैं। प्रतिनिधियों का निर्वाचन निश्चित अवधि के बाद पुनः होता है। प्रजातंत्र बहुजन के हित के लिए और बहुजन के सुख के लिए होता है। इस शासन प्रणाली में शासन पर किसी भी एक पुरुष . का ही अधिकार नहीं होता है। प्रजातंत्र प्रणाली में प्रजा के द्वारा चुने हुए लोग ही अधिकारी होते हैं। प्रजा के लोगों द्वारा चुना हुआ मंत्रिमंडल हमेशा जनता का हित ही सोचता है।)

भोजने किम किम् अस्ति प्रश्नाः

  1. अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षकं लिखत। (इस गद्यांश का समुचित शीर्षक लिखिए।)
  2. शासनं कति विधं भवति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) (शासने कितने प्रकार का होता है?)
  3. ‘सः स्वेच्छाचारी भवति।’ रेखांकित पदे संज्ञा प्रयुज्जत।। (‘वह स्वेच्छाचारी होता है।’ रेखांकित पद में संज्ञा का प्रयोग कीजिए।)
  4. ‘निर्वाचितं मंत्रिमण्डलम्’ इत्यनयोः विशेषण-विशेष्य पदं चीयताम्। (‘निर्वाचित मंत्रिमण्डल’ इन दोनों में विशेषण-विशेष्य पद चुनिए।)

उत्तर:

  1. प्रजातन्त्रम् (प्रजातन्त्र)।
  2. शासनं मुख्यतः द्विविधं भवति। (शासन मुख्यतः दो प्रकार का होता है।)
  3. राजा। (राजा)
  4. ‘निर्वाचितम्’ इति विशेषणपदम्, ‘मंत्रिमण्डलम्’ इति विशेष्यपदम्। (‘निर्वाचित’ यह विशेषण है, ‘मंत्रिमण्डल’ यह विशेष्य है।)

(25) भारते षड् ऋतवः भवन्ति। तेषु वसन्त ऋतुराजः मन्यते। अस्मिन् ऋतौ न अधिकं शैत्यं भवति न च अधिका उष्णता। यदा वसन्तः आगच्छति तदा आबालवृद्धः सर्वे स्त्री-पुरुषाः आनन्दम् अनुभवन्ति। वसन्ते प्राकृतिक सौन्दर्यम्। अनुपमं भवति क्षेत्रेषु सर्षप-पादुपेषु पीतानि पुष्पाणि नेत्रेभ्यः कामपि अनिर्वचनीयां तृप्तिम् अर्पयन्ति। रसाल-तरुषु मंजर्यः विकसन्ति। कोकिलाः कर्ण-सुभगं कूजन्ति। वृक्षा: लताः च, ज़ीर्णानि पत्राणि परित्यज्य नूतनानि किसलयानि धारयन्ति। अरुण-पल्लवानां मध्ये विविध-वर्णानि पुष्पाणि विकसन्ति। वसन्तस्य सर्वविध-वैशिष्ट्यं विलोक्य एव भवगता श्रीकृष्णेन। गीतायां स्वीकृतं यद् अहम् ‘ऋतूनां कुसुमाकरः’ अस्मि।

(भारत में छः ऋतुएँ होती हैं। उनमें बसन्त ऋतुराज माना जाता है। इस ऋतु में न अधिक सर्दी होती है और न अधिक गर्मी। जब बसंत आता है तब बालक, वृद्ध सभी स्त्री-पुरुष आनंद का अनुभव करते हैं। बसन्त में प्राकृतिक सौन्दर्य अनोखा होता है। खेतों में सरसों के पौधों में पीले पुष्प नेत्रों के लिए किसी अवर्णनीय तृप्ति को अर्पित करते हैं। आम के पेड़ों में मञ्जरी विकसित होती हैं। कानों को प्रिय लगने वाली कोयल कुजती है। वृक्ष और लताएं जीर्ण पत्तों को त्यागकर नवीन कोपलों को धारण करते हैं। लाल पल्लवों के बीच में विविध रंगों के पुष्प विकसित होते हैं। वसंत की सभी प्रकार की विशिष्टता को देखकर ही भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में यह स्वीकार किया है कि मैं ही ऋतुओं में बसन्त हूँ।)

प्रश्नाः

  1. अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षकं लिखित। (इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।) उत्तरम्-ऋतुराज वसन्तः। (ऋतुराज वसन्त।)
  2. कस्मिन् ऋतौ न अधिकं शैत्यं भवति न च अधिका उष्णता? (पूर्णवाक्येन उत्तरत।) (किस ऋतु में न अधिक सर्दी होती है और न अधिक गर्मी ?) उत्तरम्-वसन्ते न अधिकं शैत्यं भवति न च अधिक उष्णता। (वसन्त में न अधिक सर्दी होती है और न अधिक गर्मी।)
  3. ‘तेषु वसन्तः ऋतुराजः’ इत्यत्र सर्वनामस्थाने संज्ञा प्रयुज्जत। (तेषु वसन्तः ऋतुराजः’ इसमें सर्वनाम की जगह संज्ञा का प्रयोग कीजिए।) उत्तरेम्-ऋतुषु। (ऋतुओं में)।
  4. ‘वसन्तः’ इत्यस्य पर्यायपदं गद्यांशे चीयताम्। (‘वसन्त’ इसका पर्यायशब्द गद्यांश में चुनिए।) . उत्तरम्-कुसुमाकरः इति। (कुसुमाकर।)

उत्तर:

  1. ऋतुराज: वसन्तः। (ऋतुराज वसन्त।)
  2. वसन्ते ने अधिकं शैत्यं भवति न च अधिक उष्णता। (वसन्त में न अधिक सर्दी होती है और न अधिक गर्मी।)
  3. ऋतुषु। (ऋतुओं में)
  4. कुसुमाकरः इति। (कुसुमाकर।)

(26) लालबहादुरशास्त्रिमहाभागस्य नाम को न जानाति। पण्डित जवाहरलाल नेहरू महोदयस्य निधनान्तेऽयमेव भारतस्य प्रधानमन्त्री अभवत्। लालबहादुरशास्त्रिणो जन्म 1904 खिस्ताब्दे अक्टूबरमासस्य द्वितीय दिनांके वाराणसी-मण्डलान्तर्गते मुगलसराय-नामके नगरे, निर्धनतमे परिवारे अभवत्। शास्त्रिणः शैशवकालः निर्धनतायामेव व्यतीतोऽभूत्। निर्धनतायामेव अध्ययनं कृत्वा सः शैशवे एव स्वावलम्बनस्य पाठम् अपठत्। सः स्वीयानि वस्त्राणि स्वयमेव क्षालयति स्म, सर्वाणिकार्याणि स्वयमेव करोति स्म पदसञ्चललेन अध्येतुं विद्यालयं गच्छति स्म च। अन्ये छात्राः नौकामारुह्य गंगा पारयन्ति स्म किञ्च निर्धनोऽयं स्वयमेव तीत्व विद्यालयं गच्छति स्म। देशस्य स्वतन्त्रतायाः समर्थकोऽयम् सत्वरमेव अध्ययनं परित्यज्य महात्मागान्धिमहाभागैः प्रायोजिते असहयोगाख्यान्दोलने सम्मिलितोऽभवत्। अनन्तरं स्वकीयमध्ययनं पूर्ण कर्तुं काशीविद्यापीठमगच्छत्। काशीविद्यापीठादेव शास्त्रीत्युपाधिं लब्धवान्। अध्ययनं समाप्य पुनः राजनीत्या समागच्छत्। सत्याग्रहान्दोलने अनेकधा कारागारं गतवान्। कारागारेऽपि अनेन कठोराः यातनाः सोढाः।।

(लालबहादुर शास्त्री के नाम को कौन नहीं जानता। पं. जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद यही भारत के प्रधानमन्त्री बने। लालबहादुर शास्त्री का जन्म सन् 1904 ई. में अक्टूबर मास की 2 तारीख को, वाराणसी मण्डल के अन्तर्गत मुगलसराय नामक नगर में अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ था। शास्त्रीजी का बाल्यकाल निर्धनता में ही व्यतीत हुआ। निर्धनता में ही अध्ययन करके उन्होंने बाल्यकाल में ही स्वावलम्बन का पाठ पढ़ा। वे अपने वस्त्र स्वयं ही धोते थे, सभी कार्य स्वयं ही करते थे और पैदल चलकर पढ़ने के लिये विद्यालय जाते थे। अन्य अत्र नाव पर चढ़कर गंगा पार करते थे, किन्तु यह निर्धन स्वयं ही तैरकर विद्यालय जाते थे। देश की स्वतन्त्रता का समर्थन करने वाले ये (शास्त्रीजी) शीघ्र ही अध्ययन छेड़कर महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित हो गये। बाद में अपना अध्ययन पूर्ण करने के लिये काशी विद्यापीठ गये। काशी विद्यापीठ से ही शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। अध्ययन समाप्त करके फिर राजनीति में आ गये। सत्याग्रह आन्दोलन में अनेक बार जेल गये। जेल में भी इन्होंने कठोर यातनाएँ सहीं।)

प्रश्नाः

  1. अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षकं लिखत। (इंस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. लालबहादुरशास्त्रिणो जन्म कुत्र अभवत्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) (लालबहादुर शास्त्री का जन्म कहाँ हुआ?)
  3. अनेन कारागारे कठोराः यातनाः सोयः।’ इत्यत्र सर्वनामस्थाने संज्ञां प्रयुज्जत। (‘इन्होंने कारागार में कठोर यातनाएँ सहीं।’ यहाँ सर्वनाम की जगह संज्ञा का प्रयोग कीजिए।)
  4. गद्यांशे परतंत्रतायाः’ इति पदस्य विलोमपदं चीयताम्। (गद्यांश में ‘परतंत्रता’ का विलोम शब्द चुनिए।)

उत्तर:

  1. लालबहादुरशास्त्रिः। (लालबहादुर शास्त्री।)
  2. लालबहादुर शास्त्रिणो जन्म वाराणसीमण्डलान्तर्गते। मुगलसरायनामके नगरे अभवत्। (लालबहादुर शास्त्री का जन्म वाराणसी मण्डल के अन्तर्गत मुगलसराय नामक नगर में हुआ।)
  3. लालबहादुरशास्त्रिणा। (लालबहादुर शास्त्री ने।)
  4. ‘स्वतंत्रतायाः’ इति। (स्वतंत्रता का।)

(27) समाजस्य प्रगति नारीप्रगत्यधीना वर्तते, यतो नरो नारी चेति जीवनरथस्य द्वे चक्रे। यथा चैकं चक्रं रथस्य गतेः। कारणं न तथैव नारी विना पुरुषस्य गतिर्नास्ति। जीवनस्य सर्वेषु क्षेत्रेषु सुशिक्षिताः नार्यः पुंवत् सर्वकार्यसक्षमाः वर्तन्ते।। समानाधिकारस्य युगेऽस्मिन् ता:-राजनीती, राजकीयसेवासु, अन्य क्षेत्रेषु वा यथेच्छं साफल्येन कार्यं कर्तुं समर्था: वर्तन्ते। स्वतन्त्रताप्राप्त्यनन्तरं तु राष्ट्रियशासनं नारीशिक्षायाः महत्त्वं सम्यगनुभवति। मध्यकालस्य अवगुण्ठनवत्यः अशिक्षिताः नार्यः सम्प्रति यथेच्छे शिक्षा प्राप्य सक्रियराजनीतौ, प्रशासकीयपदेषु अन्येषु च विविधेषु क्षेत्रेषु प्रतिष्ठिताः सन्ति। इत्थं नारीपूजा महिलाजनसमादरः वा समाजस्य श्रेयसे, तस्य अवहेलना तु राष्ट्रस्य विघाताय। यदा यदा नारीणाम् अवहेलना कृता राष्ट्रस्य पतनं संजातम्। यत्र नार्याः सम्मानः तत्रैव सनातनं सुखं अखण्डा च शान्तिः सम्भाव्यते।

(समाज की प्रगति नारी प्रगति के अधीन है, क्योंकि नर और नारी जीवनरूपी रथ के दो पहिए हैं। जिस प्रकार एक पहिया रथ की गति (चाल) का कारण नहीं होता, उसी तरह नारी के बिना पुरुष की गति नहीं है। जीवन के सभी क्षेत्रों में सुशिक्षित नारियाँ पुरुष के समान सभी कार्य करने में सक्षम हैं। वे समान अधिकार के इस युग में राजनीति में, राजकीय सेवाओं में अथवा अन्य क्षेत्रों में इच्छानुसार सफलतापूर्वक कार्य करने के लिए समर्थ हैं। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद तो राष्ट्रीय शासन नारी शिक्षा का महत्त्व भली प्रकार से अनुभव करता है। मध्यकालीन पर्दा करने वाली अशिक्षित नारियाँ अब इच्छानुसार शिक्षा प्राप्त कर सक्रिय राजनीति में, प्रशासकीय पदों और दूसरे विविध क्षेत्रों में प्रतिष्ठित हैं। इस प्रकार नारी पूजा अथवा नारी का उचित सम्मान समाज की श्रेष्ठता है, उसकी उपेक्षा तो राष्ट्र की हानि है। जब-जब नारी की उपेक्षा की गई राष्ट्र का पतन हुआ है। जहाँ नारी का सम्मान होता है वहाँ सनातन सुख और अखण्ड शान्ति की संभावना होती है।)

प्रश्नाः

  1. अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षकं लिखत। (इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. समाजस्य प्रगतिः कस्याः अधीना वर्तते? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) (समाज की प्रगति किसके अधीन है?)
  3. ‘ताः समर्थाः वर्तन्ते’ अस्मिन् वाक्ये सर्वनाम स्थाने संज्ञा प्रयुज्जत।। (‘वे समर्थ हैं, इस वाक्य में सर्वनाम की जगह संज्ञा का प्रयोग कीजिए।)
  4. सुशिक्षिताः नार्यः’ इत्यनयोः विशेषण-विशेष्य पदं चीयताम्। (‘सुशिक्षित नारियाँ’ इन दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य चुनिए।)

उत्तर:

  1. नारी महिमा (नारी महिमा)।
  2. समाजस्य प्रगतिः नारीप्रगत्याधीना। (समाज की उन्नति महिलाओं की उन्नति के अधीन है।)
  3. नार्यः (नारियाँ।)
  4. ‘सुशिक्षिताः’ इति विशेषणं ‘नार्यः’ इति विशेष्यम्। (‘सुशिक्षित “विशेषण तथा ‘नारियाँ’ विशेष्य है।)

(28) संसारे अनेकाः संस्कृतयः उदिताः अस्तंगताश्च। परं भारतीय संस्कृतिः इदानीमपि अक्षुण्णा वर्तते। अस्याः जीवनरसमूले आध्यात्मिकी भावना विद्यते। भारतीया संस्कृतिः कर्मसिद्धान्ते विश्वसिति, पुनर्जन्म खलु ध्रुवं मन्यते। मनुष्येण सदा उच्चस्तरीयचिन्तनेन सह सरलजीवन यापनीयम्। एषा धर्मप्रधानत्वेन ‘आचारः परमो धर्मः’ इति स्वीकृत्य धर्मभावनाम्, औदार्यं, सहिष्णुतां, भ्रातृत्वं च इमान् गुणान् सदाचारं च परिपालयितुमुपदिशति। धर्मस्य पालनेन भौतिकी उन्नतिर्भवति, अलौकिकं सुखं च प्राप्यते। भारतीय संस्कृति: आध्यात्मिकभावनया सर्वभूतेषु आत्मनः सत्तामवलोकयति। भारतीयजीवनमूल्यम् ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ एषा जीवने आचरति। भारतीय संस्कृतिः उत्कृष्टानां विचाराणामाचाराणां च समवायो विद्यते। लोकमंगलभावना अस्याः मूलसिद्धान्तः।

(संसार में अनेक संस्कृतियाँ उदित हुईं और अस्त हो गईं। लेकिन भारतीय संस्कृति अब भी अक्षुण्ण है। इसके जीवन रूपी रस (सार) के मूल में आध्यात्मिकता की भावना है। भारतीय संस्कृति कर्म के सिद्धान्त में विश्वास करती है, पुनर्जन्म को निश्चय ही अटल मानती है। मनुष्य को सदा उच्चस्तरीय विचारों के साथ सादा जीवन जीना चाहिए। धर्म प्रधान होने के कारण यह ‘सदाचार ही श्रेष्ठ धर्म है’ इस प्रकार स्वीकार कर धर्म की भावना, उदारता, सहिष्णुता और भाईचारा इन गुणों को और सदाचार को पालन करने का उपदेश देती है। धर्म के पालन से भौतिक उन्नति होती है और अलौकिक सुख प्राप्त होता है। भारतीय संस्कृति आध्यात्मिक भावना से सभी प्राणियों में आत्मा के अस्तित्व को देखती है। भारतीय जीवन के नैतिक सिद्धान्त ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (सम्पूर्ण पृथ्वी ही परिवार है) को यह जीवन में आचरण करती है। भारतीय संस्कृति उत्कृष्ट विचारों और आचरणों का संकलन है। संसार के कल्याण की भावना इसका मूल सिद्धान्त है।)

प्रश्नाः

  1. अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षकं लिखत। (इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. भारतीयसंस्कृतिमूले का भावना विद्यते? (पूर्णवाक्येन उत्तरत). (भारतीय संस्कृति के मूल में कौन-सी भावना विद्यमान है?)
  3. ‘लोकमंगलभावना अस्याः मूल सिद्धान्तः’ वाक्येऽस्मिन् सर्वनाम स्थाने संज्ञा प्रयुज्जत।। (लोकमंगल की भावना इसका मूल सिद्धान्त है’ इस वाक्य में सर्वनाम की जगह संज्ञा का प्रयोग कीजिए।)
  4. गद्यांशे प्रयुक्तं सर्वप्राणिषु’ इति पदस्य पर्यायं चीयताम्।। (गद्यांश में प्रयुक्त ‘सर्वप्राणिषु’ इस शब्द का पर्याय चुनिए।)

उत्तर:

  1. भारतीया संस्कृतिः। (भारतीय संस्कृति।)
  2. भारतीयसंस्कृतेः मूले आध्यात्मिकी भावना विद्यते।। (भारतीय संस्कृति के मूल में अध्यात्म की भावना विद्यमान है।)
  3. भारतीयसंस्कृतेः। (भारतीय संस्कृति का।)
  4. ‘सर्वभूतेषु’। (सभी प्राणियों में।)

(29) मानवजीवने आधुनिकविज्ञानस्य महती आवश्यकता वर्तते। विज्ञानं विना मानवजीवनमेव व्यर्थम्। यदि विज्ञानस्य उपयोगः न स्यात् तर्हि मानव-जीवनं भौतिकपदार्थानाम् उपभोगात् सर्वथा वञ्चितं स्यात्। अद्य वयं वायुयानेन देश-देशान्तरेषु परिभ्रमामः। पोतेन अनायासं नदी-समुद्रांश्च तरामः। राकेट इति यन्त्रेण तु चन्द्रमसि अपि भ्रमणाय प्रयत्नं कुर्मः। दूरदर्शनयन्त्रेण दूरस्थमपि दृश्यं पश्यामः।।

(मानव-जीवन में आधुनिक विज्ञान की महती आवश्यकता है। विज्ञान के बिना मानव-जीवन ही व्यर्थ है। यदि विज्ञान का उपयोग न हो तो मानव-जीवन भौतिक पदार्थों के उपभोग से सर्वथा वञ्चित हो जाये। आज हम वायुयान से देश-विदेशों में घूमते हैं। पोत द्वारा आसानी से नदियों और समुद्रों को पार कर लेते हैं। राकेट से तो चन्द्रमा पर भी घूमने के लिए प्रयास करते हैं। दूरदर्शन यन्त्र से दूर स्थित दृश्य को देखते हैं।)

प्रश्नाः

  1. अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षक लिखत। (इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)।
  2. मानवजीवनं कं विना व्यर्थमेव अस्ति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) (मानव जीवन किसके विना व्यर्थ ही है?)
  3. ‘अद्यवयं वायुयानेन …………………..’ इत्यत्र सर्वनाम स्थाने संज्ञां प्रयुज्जत। (‘आज हम वायुयान से ……………………. यहाँ सर्वनाम के स्थान पर संज्ञा का प्रयोग कीजिए।)
  4. गद्यांशे प्रयुक्तं ‘समीपस्थम्’ इति पदस्य विलोमपदं चीयताम्। (गद्यांश में प्रयुक्त ‘समीपस्थ’ शब्द का विलोम चुनिए।)

उत्तर:

  1. विज्ञानम् (विज्ञान।)
  2. मानवजीवनं विज्ञानं विना व्यर्थमेव अस्ति। (मानव जीवन विज्ञान के बिना व्यर्थ ही है।)
  3. मानवाः (मनुष्य)।
  4. दूरंस्थम्। (दूरस्थ)

(30) पुस्तकानाम् आलयः पुस्तकालयः भवति। अत्र सर्वेषां विषयाणाम् अनेकानि पुस्तकानि भवन्ति। अत्र छात्राः साधारणजनाः च आगत्य विविधविषयाणां ज्ञानं प्राप्नुवन्ति। पुस्तकालयंः प्रतिभायाः अपि विकासं करोति। अत्र दैनिक पत्राणि, पाक्षिक पत्राणि, मासिक पत्राणि चापि भवन्ति। ये जनाः एतानि क्रेतुं न शक्नुवन्ति, ते अत्र आगत्य तानि पठन्ति ज्ञानवर्धनं च कुर्वन्ति। पुस्तकानि अस्माकं मित्राणि भवन्ति। अतः जनाः अत्र आगत्य स्वमनः सन्तोषयन्ति समयस्य च सदुपयोगं कुर्वन्ति।

(पुस्तकों का घर पुस्तकालय होता है। यहाँ सभी विषयों की अनेक पुस्तकें होती हैं। यहाँ छात्र और साधारण लोग आकर विविध विषयों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। पुस्तकालय प्रतिभा का भी विकास करता है। यहाँ दैनिक पत्र, पाक्षिक पत्र और मासिक पत्र भी होते हैं। जो लोग इन्हें खरीद नहीं सकते हैं, वे यहाँ आकर उनको पढ़ते हैं और अपना ज्ञानवर्धन करते हैं। पुस्तकें हमारी मित्र होती हैं। इसलिए लोग यहाँ आकर अपने मन को सन्तुष्ट करते हैं, और समय का सदुपयोग करते हैं।)

प्रश्नाः

  1. अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षकं लिखत। (इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।)
  2. पुस्तकालयम् आगत्य जनाः किं कुर्वन्ति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) (पुस्तकालय में आकर लोग क्या करते हैं?)
  3. ‘ते अत्र आगत्य तानि पठन्ति’। वाक्येऽस्मिन् सर्वनाम स्थाने संज्ञां प्रयुज्जत।। (वे यहाँ आकर उन्हें पढ़ते हैं। इस वाक्य में सर्वनाम की जगह संज्ञा का प्रयोग कीजिए।)
  4. ‘पाक्षिक-पत्राणि’ इत्यनयोः पदयोः विशेषण-विशेष्यं च चीयताम्। (‘पाक्षिक-पत्राणि’ इन दोनों पदों में विशेषण और विशेष्य चुनिए।)।

उत्तर:

  1. पुस्तकालयः (पुस्तकालय।)
  2. पुस्तकालयम् आगत्य जनाः स्वमनः सन्तोषयन्ति, समयस्य सदुपयोग कुर्वन्ति ज्ञानं च संवर्धयन्तिः। (पुस्तकालय में आकर लोग अपने मन को सन्तुष्ट
  3. करते हैं, समय का सदुपयोग करते हैं और ज्ञान को बढ़ाते हैं।)
    जनाः।
  4. ‘पाक्षिक’ इति विशेषणं, ‘पत्राणि’ इति विशेष्यम्। (‘पक्षिक’ यह विशेषण है, ‘पत्राणि यह विशेष्य है।)

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