RBSE Class 11 Sanskrit लौकिक साहित्यम्

Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit लौकिक साहित्यम्

पाठ्यपुस्तकस्य अभ्यास प्रश्नोत्तराणि

प्रश्न 1.
रिक्तस्थानानि पूरयत- (रिक्त स्थानों की पूर्ति करिए-)
(अ) रामायणस्य रचयिता ……………………………………… अस्ति।
(ब) रामायणः ……………………………………… संहिता कथ्यते।
(स) महाभारतस्य रचनायाः प्रथमे स्तरे ……………………………………… संज्ञा आसीत्।
(द) महाभारतस्य रचनाकालः ……………………………………… मन्यते।
(य) कुमारसंभवस्य अष्टसर्गेषु ……………………………………… टीका अस्ति।
(र) अर्जुनेन हिमालये तपस्या ……………………………………… प्राप्त्यर्थं कृता।
(ल) शिशुपालस्य वधः ……………………………………… करोति।
(व) दमयन्तीसमीपे नलस्य प्रशंसा ……………………………………… करोति।
(श) रघुवंशमहाकाव्ये ……………………………………… सर्गाः सन्ति।
(घ) यक्ष ……………………………………… नगर्या निवसति स्म।
(स) भीमः ……………………………………… वेण्याः संहारं करोति।
(ह) भासस्य ……………………………………… नाटकानि सन्ति।
(च) चारुदत्तस्य विवाह ………………………………………
(छ) भर्तृहरिः. ……………………………………… ज्येष्ठभ्राता आसीत्।
(ज) उत्तररामचरिते ……………………………………… रसप्रधानं वर्तते।
(झ) महिलाराप्य नामके नगरे ……………………………………… राजा आसीत्।
(ज) हितोपदेशदेस्य कर्ता ……………………………………… आसीत्।
उत्तर:
1. (अ) महर्षि वाल्मीकिः (ब) चतुर्विंशति साहस्री (स) जये (द) ई.पू. पञ्चम्याः शताब्याः पूर्वम् (य) आचार्यमल्लिनाथस्य (र) पाशुपतास्त्र (ल) श्रीकृष्णः (व) हंसः (श) ऊनविंशति (घ) अलकापुरी (स) द्रौपद्याः (ह) त्रयोदश (च) वसन्तसेनया सह (छ) विक्रमादित्यस्य (ज) करुण (झ) अमरकीर्ति (ज) नारायणपण्डितः।

लघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 2.
‘उपमा कालिदासस्य’ इति आभाणकस्य भावार्थः लेख्यः। (‘उपमा कालिदासस्य’ इस कहावत का भावार्थ लिखिए।)
उत्तर:
कालिदासः उपमालंकारस्य प्रयोगे सर्वश्रेष्ठः आसीत्। रघुवंशस्य षष्ठे सर्गे कालिदासेन इन्दुमत्याः राज्ञा: उपमा दीपशिखया दत्ता। अत: उपमा कालिदासस्य इति आभणकः प्रसिद्धः। (कालिदास उपमा अलंकार के प्रयोग में सर्वश्रेष्ठ थे। रघुवंश महाकाव्य के छठे सर्ग में कालिदास द्वारा इन्दुमति रानी की उपमा दीपशिखा से दी गयी है। अत: उपमा कालिदासस्य यह उक्ति प्रसिद्ध है।

प्रश्न 3.
यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित् अस्य सूक्तेः व्याख्या कार्या। (‘जो यहाँ है, वह अन्यत्रं भी है, जो यहाँ नहीं है वह कहीं नहीं है’ इस सूक्ति की व्याख्या कीजिए।)
उत्तर:
धर्मस्य, अर्थस्यः, कामस्य मोक्षस्य च विषये यत् कश्चित् महाभारते कथितः तत् एव अन्यत्र। यत् च महाभारते नास्ति तत् क्वचित् अपि नास्ति। (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के विषय में जो महाभारत में कहा गया है, वह ही अन्यत्र है और जो महाभारत में नहीं है वह कहीं नहीं है।)

प्रश्न 4.
मेघदूते कानि-कानि स्थानानि वर्णितानि? (मेघदूत में कौन-कौन से स्थान वर्णित हैं?)
उत्तर:
मेघदूते-मालप्रदेशः, आम्रकूटपर्वतः, नर्मदा नदी, विदिशा, नीलगिरिः, निर्विन्ध्या नदी, उज्जयिनी, उज्जयिन्यां महाकालः, शिप्रा नदी, देवगिरिः, चर्मण्वती नदी, कुरुक्षेत्रम्, सरस्वती नदी, कनखलक्षेत्रम्, गंगानदी, हिमाचल पर्वतः, क्रौञ्चरन्ध्रः, कैलास पर्वतः, अलकानगरी च स्थानानि वर्णितानि। (मेघदूत में मालप्रदेश, आम्रकूट पर्वत, नर्मदा नदी, विदिशा, नीलगिरि, निर्विन्ध्या नदी, उज्जैन नगरी, उज्जैन में महाकाल, शिप्रा नदी, देवगिरि, चम्बल नदी, कुरुक्षेत्र, सरस्वती नदी, कलखल क्षेत्र, गंगा नदी, हिमाचल पर्वत, क्रौञ्चरंध्र, कैलास पर्वत और अलका नगरी स्थान वर्णित हैं।)

प्रश्न 5.
लौकिकसंस्कृतस्य प्रथमः श्लोकः कोऽस्ति? (लौकिक संस्कृत का पहला श्लोक कौन-सा है?)
उत्तर:
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वतीः समाः।
यत् क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्।

प्रश्न 6.
‘भारवेरर्थगौरवम्’ इत्यस्य कः आशयः? (भारवेरर्थगौरवम्’ इसका क्या आशय है?)
उत्तर:
स्वल्पशब्देषु गंभीरार्थकथनम् अर्थगौरवं भवति। भारवेः महाकाव्ये अर्थगौरवस्य प्राधान्यात् ‘भारवेरर्थगौरवम्’ इति आभणक प्रसिद्धम्। (थोड़े शब्दों में गम्भीर अर्थ को कहना अर्थगौरव होता है। भारवि के महाकाव्य में अर्थगौरव की प्रधानता से ‘भारवेअर्थगौरवम्’ यह कहावत प्रसिद्ध है।)

अन्य महत्वपूर्ण प्रणोत्तराणि
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नाः (एकपदेन उत्तरत)
1. रामायणस्य कथावस्तु कति काण्डेषु विभक्ता अस्ति? (रामायण की कथावस्तु कितने काण्डों में विभक्त है?)
2. आदिकाव्यं किं मन्यते? (आदिकाव्य क्या माना जाता है?)
3. आदिकविः कः कथ्यते? (आदिकवि कौन कहलाता है?)
4. रामायणे श्लोकानां संख्या कति अस्ति? (रामायण में श्लोकों की संख्या कितनी है?)
5. रामायणे काण्डानां संख्या कति अस्ति? (रामायण में काण्डों की कितनी संख्या है?)
6. रामायणे कः रसः प्रधानः अस्ति? (रामायण में कौन सा रस प्रधान है?)
7. महाभारतस्य रचयिता कः आसीत्? (महाभारत का रचयिता कौन था?)
8. महाभारते पर्वाणां कति संख्या अस्ति? (महाभारत में पर्यों की संख्या कितनी है?)
9. शत-साहस्री संहिता का कथ्यते?(शत साहस्री संहिता क्या कहलाती है?)
10. महाभारते कः रस-प्रधानः अस्ति?(महाभारत में कौन सा रस प्रधान है?)
11. कृष्णेन उपदिष्टा गीता कस्मिन् ग्रन्थे उल्लिखिता? (श्रीकृष्ण द्वारा उपदेश दी गई गीता किस ग्रन्थ में उल्लिखित है?)
12. कुमारसम्भवम् महाकाव्यस्य रचयिता कः आसीत्? (कुमारसम्भवम् महाकाव्य के रचियिता कौन थे?)
13. कालिदासः कस्य नृपस्य राजसभायां नवरत्नेषु राजते स्म? (कालिदास किस राजा की राजसभा में नवरत्नों में सुशोभित थे?)
14. कालिदासस्य कति कृतयः सन्ति?(कालिदास की कितनी कृतियाँ हैं?)
15. कुमारसम्भवम् महाकाव्ये कति सर्गाः सन्ति?(कुमारसम्भवम् महाकाव्य में कितने सर्ग हैं?)
16. रघुवंशमहाकाव्यस्य प्रणेता कः आसीत्?(रघुवंश महाकाव्य के प्रणेता कौन थे?)
17. रघुवंशमहाकाव्ये कति नृपाणां वर्णनं विद्यते? (रघुवंश महाकाव्य में कितने राजाओं का वर्णन है?)
18. कालिदासेन इन्दुमत्याः उपमा कया दत्ता?(कालिदास ने इन्दुमति की उपमा किससे दी है?)
19. रघुः कस्मिन् वंशे जन्म अलभत?(रघु ने किस वंश में जन्म लिया?)
20. कालिदासः विद्वत्सु केन नाम्ना विख्यातः? (कालिदास विद्वानों में किस नाम से विख्यात हुआ?)
21. किरातार्जुनीयम् इति महाकाव्यस्य प्रणेता कः आसीत्?(किरातार्जुनीयम् महाकाव्य का प्रणेता कौन था?)
22. किरातार्जुनीयम् महाकाव्ये कति सर्गाः सन्ति?(किरातार्जुनीयम् महाकाव्य में कितने सर्ग हैं?)
23. वनेचर दूतस्य युधिष्ठिरेण सह मेलनं कुत्र अभवत्? (वनेचर दूत का युधिष्ठिर के साथ मिलना कहाँ हुआ?)
24. अर्थगौरवस्य प्राधान्यं कस्मिन् ग्रन्थे अस्ति? (अर्थगौरव की प्रधानता किस ग्रन्थ में है?)
25. शिशुपालस्य वधं कः अकरोत्?(शिशुपाल का वध किसने किया?)
26. शिशुपालवधम् महाकाव्यं कस्य कृतिरस्ति? (शिशुपालवधम् महाकाव्य किसकी कृति है?)
27. श्रीकृष्ण युधिष्ठिरस्य राजसूये यज्ञे कुत्र अगच्छत्? (श्रीकृष्ण युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में कहाँ गये?)
28. माघः केन उपाधिना समलंकृतः? (माघ को किस उपाधि से विभूषित किया गया?)
29. नैषधीयचरितम् महाकाव्यस्य रचयिता कः आसीत्? (नैषधीयचरितम् महकाव्य का रचयिता कौन था?)
30. नैषधीयचरितम् महाकाव्ये कति सर्गाः सन्ति? (नैषधीयचरितम् महाकाव्य में कितने सर्ग हैं?)
31. ‘विद्वदौषधम्’ इति आभाणकं केन सम्बन्धितम्? (‘विद्वदौषधम्’ यह कहावत किससे सम्बन्धित है?)
32. नैषधीयचरितम् महाकाव्यस्य नायकः कः? (नैषधीयचरितम् महाकाव्य का नायक कौन है?)
33. दमयन्ती कस्ये राज्यस्य राजकुमारी आसीत्? (दमयन्ती किस राज्य की राजकुमारी थी?)
34. नलरूपं गृहीत्वा स्वयंवरसभायां के उपविष्टाः? (नल का रूप धारण कर स्वयंवर-सभा में कौन बैठ गये?)
35. मेघदूतम् किम् अस्ति? (मेघदूत क्या है?) 36. मेघदूतस्य रचयिता कः आसीत्?(मेघदूत का रचयिता कौन था?)
37. गीतिकाव्यस्य अपर नाम किमस्ति?( गीतिकाव्य का दूसरा नाम क्या है?)
38. कस्मिन् काव्ये मुक्तकपद्यानां समावेशः क्रियते? (किस काव्य में मुक्तकपद्यों का समावेश किया जाता है?).
39. कालिदासेन कति गीतिकाव्यानि लिखितानि?(कालिदास ने कितने गीतिकाव्य लिखे?)
40. मेघदूतस्य कति भागाः सन्ति?(मेघदूत के कितने भाग हैं?)
41. मेघदूतस्य कथायाः बीजं कस्मात् ग्रन्थात् गृहीतम्?(मेघदूत की कथा बीज किस ग्रन्थ से लिया गया है?)
42. महाकविः भर्तृहरिः कति शतकानां रचना अकरोत? (महाकवि भर्तृहरि ने कितने शतकों की रचना की?)
43. नीतिशतकस्य प्रणेता कः आसीत्?(‘नीतिशतक’ का प्रणेता कौन था?)
44. महाकवेः भर्तृहरेः राज्ञाः नाम किमासीत्? (महाकवि भर्तृहरि की रानी का नाम क्या था?)
45. पञ्चतन्त्रे ग्रन्थे कति तन्त्राणि सन्ति? (पञ्चतन्त्र ग्रन्थ में कितने तन्त्र हैं?).
46. हितोपदेशस्य ग्रन्थस्य रचयिता कः आसीत्? (हितोपदेश ग्रन्थ का रचयिता कौन था?)
47. हितोपदेशे कति परिच्छेदाः सन्तिः?(हितोपदेश में कितने परिच्छेद हैं?)
48. प्रतिज्ञायौगन्धरायणम् नाट्यकृतिः कस्य अस्ति? (प्रतिज्ञायौगन्धरायण नाट्यकृति किसकी है?)
49. मृच्छकटिकस्य प्रणेता कः अस्ति?(मृच्छकटिकम् के प्रणेता कौन हैं?)
50. उपमायाः प्रयोगे अद्वितीयः कविः कः अस्ति?(उपमा के प्रयोग में अद्वितीय कवि कौन है?)
51. करुण-रस-प्रयोगे सिद्धहस्तः कविः कः अस्ति? (करुण रस के प्रयोग में सिद्धहस्त कवि कौन है?)
52. अभिज्ञानशाकुन्तलम्-नाटके कति अङ्काः सन्ति? (अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक में कितने अंक हैं?)
53. अभिज्ञान शाकुन्तलम् नाटकस्य कथा कस्मात् ग्रन्थात् गृहीता? (अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक की कथा किस ग्रन्थ से ली गयी है?)
54. कालिदासस्य सर्वस्वं किम् अस्ति? (कालिदास का सर्वस्व क्या है?)
55. कालिदासेन कति नाटककानि लिखितानि?( कालिदास ने कितने नाटक लिखे हैं?)
56, कालिदासेन स्वकाव्ये का रीतिः प्रयुक्ता? (कालिदास ने अपने काव्य में कौन सी रीति प्रयुक्त की है?)
57. शकुन्तला कस्या अप्सरसः पुत्री असीत्? (शकुन्तला किस अप्सरा की पुत्री थी?)
58. अभिज्ञान शाकुन्तलम्-नाटके कः रस:प्रधानः अस्ति? (अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक में कौन सा रस प्रधान है?)
59. स्वप्नवासवदत्तम् नाटकस्य प्रणेता कः आसीत्? (स्वप्नवासवदत्तम् नाटक का प्रणेता कौन था?)
60. महाकविभासेन कति रूपकाणि विरचितानि? (महाकवि भास ने कितने रूपकों की रचना की है?)
61. स्वप्नवासवदत्तम् नाटकस्य नायकः कः अस्ति? (स्वप्नवासवदत्तम् नाटक का नायक कौन है?)
62. भवभूतिः कति नाटकानां रचना अकरोत्?(भवभूति ने कितने नाटकों की रचना की?)
63. उत्तररामचरितम्-नाटकस्य रचयिता कः अस्ति? (उत्तररामचरितम् नाटक का रचयिता कौन है?)
64. उत्तररामचरितम्-नाटके कति अङ्काः सन्ति? (उत्तररामचरितम् नाटक में कितने अङ्क हैं?)।
65. उत्तररामचरितम् नाटके प्रधानः रसः कः अस्ति? (उत्तररामचरितम् नाटक में कौन सा रस प्रधान है?)
66. शूद्रकस्य विश्वविश्रुतं नाटकं किम् अस्ति? (शूद्रक का विश्व-प्रसिद्ध नाटक कौन सा है?)
67. शूद्रकविरचितं मृच्छकटिकम् रूपकम् किम् अस्ति?(शूद्रक विरचित मृच्छकटिकम् रूपक क्या है?)
68. मृच्छकटिके कति अङ्काः सन्ति? (मृच्छकटिक में कितने अङ्क हैं?)
69. भट्टनारायणेन विरचितं रूपकं किम् अस्ति? ( भट्टनारायण-विरचित रूपक कौन सा है?)
70. वेणीसंहारम् नाटके कः रसः प्रधानः अस्ति? (वेणीसंहारम् नाटक में कौन सा रस प्रधान है?)
71. वेणीसंहारम् नाटकस्य नायकः कः अस्ति? (वेणीसंहारम् नाटक का नायक कौन है?)
उत्तर:
(1) सप्त काण्डेषु, (2) रामायणम्, (3) वाल्मीकिः, (4) चतुर्विंशति सहस्रम्, (5) सप्त, (6) करुण रस, (7) महर्षि वेदव्यासः, (8) अष्टादश, (9) महाभारतम्, (10) वीररसः, (11) महाभारते, (12) कालिदासः, (13) विक्रमादित्यस्य, (14) सप्त, (15) सप्तदश, (16) महाकवि कालिदासः, (17) ऊनत्रिंशत्, (18) दीपशिखया, (19) इक्ष्वाकुवंशे, (20) दीपशिखा कालिदासः नाम्ना, (21) महाकवितः भारविः, (22) अष्टादश, (23) द्वैतवने, (24) किरातार्जुनीयम् महाकाव्ये, (25) श्रीकृष्णः, (26) महाकविमाघस्य, (27) इन्द्रप्रस्थम्, (28) घण्टामाघः, (29) श्रीहर्षः, (30) द्वाविंशति, (31) नैषधीय चरितम्, (32) नलः, (33) विदर्भ-राज्यस्य, (34) देवाः, (35) गीतिकःयं, (36) महाकविः कालिदासः, (37) खण्डकाव्यम्, (38) गीतिकाव्ये, (39) द्वे, (40) द्वौ भागौ स्तः, (41) वाल्मीकि रामायणात्, (42) त्रयाणां शतकानां, (43) महाकविः भर्तृहरिः, (44) पिंगला, (45) पञ्च, (46) नारायणपण्डितः, (47) चत्वार, (48) भासस्य, (49) शूद्रकः, (50) कालिदासः, (51) भवभूतिः, (52) सप्त, (53) महाभारतस्य आदिपर्वणः, (54) अभिज्ञानशाकुन्तलम्, (55) त्रीणि, (56) वैदर्भी, (57) मेनकायाः, (58) श्रृंङ्गाररसः, (59) महाकविः भासः, (60) त्रयोदश, (61) वत्सराज: उदयन:, (62) त्रीणि, (63) महाकविः भवभूतिः, (64) सप्त, (65) करुणरंसः, (66) मृच्छकटिकम्, (67) प्रकरणम्, (68) दश, (69) वेणीसंहारम्, (70) वीररसः, (71) भीमसेनः।

लघूत्तरात्मक प्रश्नाः (पूर्णवाक्येन उत्तरत)

प्रश्न 1.
कुमारसम्भवमहाकाव्यस्य सन्देशः किम् अस्ति? (कुमारसम्भव महाकाव्य का सन्देश क्या है?)
उत्तर:
अन्याये न्यायस्य विजयः। (अन्याय पर न्याय की विजय।)

प्रश्न 2.
रघुवंशमहाकाव्यस्य वैशिष्ट्यं संक्षेपेण लिखत। (रघुवंश महाकाव्य की विशेषता संक्षेप में लिखिए।)
उत्तर:
रघुवंशमहाकाव्यं महाकाव्यस्य लक्षणोपेतमस्ति। अस्य भाषा सरला सरसा च अस्ति। वैदर्भी-रीत्याः प्रयोगः काव्यं माधुर्यं लालित्यं च प्रति नयति। (रघुवंश महाकाव्य महाकाव्य के लक्षणों से युक्त है। इसकी भाषा सरल और सरस है। वैदर्भी रीति का प्रयोग काव्य को माधुर्य एवं लालित्य की ओर ले जाता है।)

प्रश्न 3.
‘किरातार्जुनीयम्’ महाकाव्ये कस्य कथा अस्ति? (किरातार्जुनीय महाकाव्य में किसकी कथा है?)
उत्तर:
अस्मिन् महाकाव्ये किरातवेषधारिणः शिवस्य अर्जुनस्य च कथा वर्तते। (इस महाकाव्य में किरातरूपधारी शिव और अर्जुन की कथा है।)

प्रश्न 4.
नैषधीयचरितम् महाकाव्यस्य परिचयं संक्षेपेण लेखनीयम्। (नैषधीयचरितम् महाकाव्य का परिचय संक्षेप में लिखिए।)
उत्तर:
अत्र निषधदेशस्य राज्ञः नलस्य तस्य प्रियायाः दमयन्त्याः चे प्रणयकथा निबद्धा अस्ति। (यहाँ निषध देश के राजा नल और उसकी प्रिया दमयन्ती की प्रणय-कथा निबद्ध है।)

प्रश्न 5.
‘चतुर्विंशति साहस्री’ का कथ्यते? (चतुर्विंशति साहस्री किसे कहते हैं?)
उत्तर:
रामायणम् चतुर्विंशति साहस्री कथ्यते। (चतुर्विंशति साहस्री रामायण को कहते हैं।)

प्रश्न 6.
पुरुषार्थचतुष्टयस्य सारं कस्मिन् ग्रन्थे वर्तते? (पुरुषार्थ चतुष्टय का सार किस ग्रन्थ में है?)
उत्तर:
पुरुषार्थ चतुष्टयस्य सारं महाभारते अस्ति। (पुरुषार्थ चतुष्टय का सार महाभारत में है।)

प्रश्न 7.
महाभारतस्य स्वरूपत्रयं लिखत। (महाभारत के तीनों स्वरूपों को लिखो।)
उत्तर:
महाभारतस्य स्वरूपत्रयमस्ति जयः, भारत, महाभारतः च। (महाभारत के तीन स्वरूप हैं-जय, भारत तथा महाभारत)

प्रश्न 8.
महाकाव्यस्य लक्षणम् एकस्मिन्नेव वाक्ये लिखत। (महाकाव्य का लक्षण एक ही वाक्य में लिखिए।)।
उत्तर:
सर्गबद्धो महाकाव्यम्। (महाकाव्य सर्गबद्ध होता है।)

प्रश्न 9.
कालिदासस्य महाकाव्यद्वयस्य नाम लिखत। (कालिदास के दो महाकाव्यों के नाम लिखिए।)
उत्तर:

  1. कुमारसम्भवम्,
  2. रघुवंशम् च। (कुमारसंभवम् और रघुवंशम्)

प्रश्न 10.
श्रीहर्षस्य व्याकरणज्ञानं दृष्ट्वा विद्वभिः किं कथितम्? (श्रीहर्ष के व्याकरण ज्ञान को देखकर विद्वानों ने क्या कहा?)
उत्तर:
श्रीहर्षस्य व्याकरणज्ञानं दृष्ट्वा विद्वद्भिः ‘नैषधं विद्वदौषधम्’ इति कथितम्। (श्रीहर्ष के व्याकरण ज्ञान को देखकर विद्वानों ने कहा-‘नैषध विद्वानों के लिए औषध है।)

प्रश्नः 11.
भासस्य कानि रूपकाणि बृहत्कथायाम् आधारितानि सन्ति? (भास के कौन-से रूपक बृहत्कथा पर आधारित हैं?)
उत्तर:
प्रतिज्ञायौगन्धरायणं, स्वप्नवासवदत्तम् अविमारकं च इति त्रीणि रूपकाणि बृहत्कथायाम् आधारितानि सन्ति। (प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्, स्वप्नवासवदत्तम् तथा अविमारकम् ये तीन रूपक बृहत्कथा पर आधारित हैं।)

प्रश्नः 12.
भासस्य केषां रूपकाणां मूलाधारः रामायणम् अस्ति? (भास के किन रूपकों का मूल आधार रामायण है?)
उत्तर:
भासस्य प्रतिमानाटकस्य अभिषेकनाटकस्य च मूलाधारः रामायणम् अस्ति। (भास के प्रतिमानाटक और अभिषेक नाटक का मूल आधार रामायण है।)

प्रश्नः 13.
लक्षणग्रन्थदृष्ट्या उदयनः कस्याः श्रेण्याः नायकः? (लक्षण ग्रन्थ की दृष्टि से उदयन किस श्रेणी का नायक है?)
उत्तर:
लक्षणग्रन्थदृष्ट्या उदयन: धीरललितश्रेण्याः नायकः अस्ति। (लक्षण ग्रन्थ की दृष्टि से उदयन धीरललित श्रेणी का नायक है।)

प्रश्नः 14.
‘स्वप्नवासवदत्तम्’ इति नाटके कस्य रसस्य सम्यक् विनियोगः कृतः? (‘स्वप्नवासवदत्तम्’ नाटक में किस रस का प्रयोग अच्छी तरह किया गया है?)
उत्तर:
‘स्वप्नवासवदत्तम्’ नाटके शृंगाररसस्य संयोग-विप्रलम्भंयोः द्वयोरेव पक्षयोः सम्यक् विनियोगः कृतः। (‘स्वप्नवासवदत्तम्’ नाटक में श्रृंगार रस के संयोग एवं वियोग दोनों ही पक्षों का अच्छी तरह प्रयोग किया गया है।)

प्रश्नः 15.
शास्त्रीयदृष्ट्या दुष्यन्तः कीदृशः नायकः? (शास्त्रीय दृष्टि से दुष्यन्त कैसा नायक है?)
उत्तर:
शास्त्रीयदृष्ट्या दुष्यन्तः धीरोदात्तनायकः यतः सः देशरूपककारेण धनञ्जयेन प्रस्तुतस्य धीरोदात्तनायकस्य गुणैरुपेतः अस्ति। (शास्त्रीय दृष्टि से दुष्यन्त धीरोदात्त श्रेणी का नायक है, क्योंकि वह दशरूपककार धनञ्जय द्वारा प्रस्तुत धीरोदात्त नायक के गुणों से युक्त है।)

प्रश्नः 16.
मृच्छकटिके नाटके कयोः प्रणयकथा निबद्धा? (मृच्छकटिक नाटक में किनकी प्रणयकथा निबद्ध है?)
उत्तर:
मृच्छकटिके नाटके वसन्तसेनाचारुदत्तयोः प्रणयकथा निबद्धा। (मृच्छकटिक नाटक में वसन्तसेना और चारुदत्त की प्रेमकथा निबद्ध है।)

प्रश्न: 17.
‘मृच्छकटिकम्’ नाटकस्य प्रथमाङ्कस्य किं नाम? (‘मृच्छकटिकम्’ नाटक के प्रथम अङ्क का क्या नाम है?)
उत्तर:
‘मृच्छकटिकम्’ नाटकस्य प्रथमाङ्कस्य नाम ‘अलङ्कारन्यासः अस्ति। (‘मृच्छकटिकम्’ नाटक के प्रथम अङ्क का नाम ‘अलङ्कारन्यास’ है।)

प्रश्नः 18.
चारुदत्तः कीदृशः नायकः अस्ति? (चारुदत्त कैसा नायक है?)
उत्तर:
चारुदत्तः धीरप्रशान्तश्रेण्याः नायकः अस्ति। (चारुदत्त धीर प्रशान्त श्रेणी का नायक है।)

प्रश्न: 19.
भट्टनारायणस्य शैली कां रीतिं समाश्रिता? (भट्टनारायण की शैली किंस रीति पर आश्रित है?)
उत्तर:
भट्टनारायणस्य शैली गौडीरीतिं. समाश्रिता। (भट्टनारायण की शैली गौडी रीति पर आश्रित है।)

प्रश्नः 20.
शास्त्रीयदृष्ट्या ‘वेणीसंहारम्’ कीदृशं नाटकम्? (शास्त्रीय दृष्टि से वेणीसंहार कैसा नाटक है?)
उत्तर:
शास्त्रीयदृष्ट्या ‘वेणीसंहारम्’ आदर्शभूतं नाटकम् अस्ति। (शास्त्रीय दृष्टि से ‘वेणीसंहारम्’ आदर्श नाटक है।)

प्रश्नः 21.
भवभूतिः कुत्र न्यवसत्? (भवभूति कहाँ निवास करते थे?)
उत्तर-
भवभूति: विदर्भदेशस्य पद्मपुरनाम्नि नगरे न्यवसत्। (भवभूति विदर्भ देश के पद्मपुर नामक नगर में निवास करते थे।)

प्रश्नः 22.
रामस्य जीवनस्य उत्तरार्द्धस्य कथा कस्मिन् नाटके निबद्धा? (राम के जीवन के उत्तरार्द्ध की कथा किस नाटक में निबद्ध है?)
उत्तर:
रामस्य जीवनस्य उत्तरार्द्धस्य कथा ‘उत्तररामचरितम्’ नाम्नि नाटके निबद्धा अस्ति। (राम के जीवन के उत्तरार्द्ध की कथा ‘उत्तररामचरितम्’ नामक नाटक में निबद्ध है।)

प्रश्न 23.
भासस्य कानि रूपकाणि महाभारते आधृतानि सन्ति? (भास के कौन से नाटक महाभारत पर आधारित हैं?)
उत्तर:
भासस्य मध्यमव्यायोगः, पञ्चरात्रम्, दूतघटोत्कचम्, कर्णभारम्, उरुभङ्गम् च इति पञ्च रूपकाणि महाभारते। आधृतानि सन्ति। (भास के मध्यमव्यायोग, पञ्चरात्रम् दूतघटोत्कचम्, कर्णभारम्, उरुभङ्गम् ये पाँच रूपक महाभारत पर आधारित हैं।)

प्रश्न 24.
भासस्य किं नाम रूपकं श्रीमद्भागवतपुराणे आश्रितः? भास का कौन-सा रूपक श्रीमद्भगवतपुराण पर आश्रित है?)
उत्तर:
भासस्य बालचरितम् इति नाटकम् श्रीमद्भागवतपुराणे आश्रितः। (भास का श्रीबालचरितम् नाटक श्रीमद्भागवतपुराण पर आश्रित है।)

प्रश्न 25.
‘मृच्छकटिकम्’ कस्याः श्रेण्याः रूपकम्? (‘मृच्छकटिकम्’ किस श्रेणी का नाटक है?)
उत्तर:
‘मृच्छकटिकम्’ नाट्यभेदस्य दृष्ट्या प्रकरणम्’ इति श्रेण्याः रूपकम् अस्ति। (मृच्छकटिक नाट्यभेद की दृष्टि से प्रकरण श्रेणी का रूपक है।)

प्रश्न 26.
भवभूतेः कति नाटकानि सन्ति? नामानि लिखत। (भवभूति के कितने नाटक हैं? नाम लिखिए।)
उत्तर:
भवभूते त्रीणि नाटकानि सन्ति।

  1. महावीरचरितम्
  2. मालतीमाधवम्
  3. उत्तररामचरितम्।

भवभूति के तीन नाटक हैं-

  1. महावीर चरितम्
  2. मालतीमाधवम्
  3. उत्तररामचरितम्।)

प्रश्न 27.
उत्तररामचरिते कस्य जीवनं वर्णितम्? (‘उत्तररामचरितम्’ में किसका जीवन वर्णित है?)
उत्तर:
‘उत्तररामचरितम्’ इति नाटके रामस्य जीवनं वर्णितम्। ‘उत्तररामचरितम्’ नाटक में राम का जीवन वर्णित है।)

प्रश्न 28.
भवभूतिः कस्मिन् विशिष्यते? ( भवभूति किसमें विशिष्ट है?)
उत्तर:
उत्तररामचरिते भवभूतिविशिष्यते। (उत्तररामचरित में भवभूति विशिष्ट है।)

प्रश्न 29.
काव्येषु किं रम्यम्? (काव्यों में रमणीय क्या है?)
उत्तर:
काव्येषु नाटकं रम्यम्। (काव्यों में नाटक रमणीय है।)

प्रश्न 30.
नाटकेषु किं नाम नाटकं रम्यम् उक्तम्? (नाटकों में किस नाम का नाटक रम्य कहा गया है?)
उत्तर:
नाटकेषु अभिज्ञानशाकुन्तलं रम्यम्। (नाटकों में अभिज्ञानशाकुन्तल रम्य है।)

प्रश्न 31.
कस्मिन् नाटके कालिदासस्य नाट्यकलायाः परिपाकः दृश्यते? (किस नाटक में कालिदास की नाट्यकला का परिपाक दिखाई देता है?)
उत्तर:
अभिज्ञानशाकुन्तले कालिदासस्य नाट्यकलायाः परिपाकः दृश्यते। (अभिज्ञान शाकुन्तल में कालिदास की नाट्यकला का परिपाक दिखाई देता है।)

प्रश्न 32.
किन्नाटकं कालिदासस्य सर्वस्वम्? (कौन-सा नाटक कालिदास का सर्वस्व है?)
उत्तर:
अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटकं कालिदासस्य सर्वस्वम् अस्ति। (अभिज्ञान शाकुन्तल नाटक कालिदास का सर्वस्व है।)

प्रश्न 33.
कालिदासस्य द्वयोः खण्डकाव्ययोः नाम्नी लिखत। (कालिदास के दो खण्डकाव्यों के नाम लिखिए।)
उत्तर:
ऋतुसंहारं मेघदूतं च द्वे कालिदासस्य खण्डकाव्ये स्तः। (ऋतुसंहार और मेघदूत कालिदास के दो खण्डकाव्य हैं।)

प्रश्न 34.
कालिदासेन कति नाटकानि लिखितानि? नामानि अपि लिखत। (कालिदास ने कितने नाटक लिखे? नाम भी लिखिए।)।
उत्तर:
कालिदासेन त्रीणि नाटकानि लिखितानि-मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम्, अभिज्ञानशाकुन्तलं च। (कालिदास ने तीन नाटक लिखे-मालविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीय तथा अभिज्ञानशाकुन्तल।)

प्रश्न 35.
‘उपमा प्रयोगे कः कविः प्रसिद्धः? (उपमा के प्रयोग में कौन कवि प्रसिद्ध है?)।
उत्तर:
उपमाप्रयोगे महाकविकालिदासः प्रसिद्धः। (उपमा के प्रयोग में महाकवि कालिदास प्रसिद्ध है।)

प्रश्न 36.
कः कविः प्रकृतिचित्रणे निपुणः मन्यते? (कौन-सा कवि प्रकृति-चित्रण में निपुण माना जाता है?)
उत्तर:
महाकविः कालिदासः प्रकृतिचित्रणे निपुणः मन्यते। (महाकवि कालिदास प्रकृति-चित्रण में निपुण माना गया है।)

प्रश्न 37.
किरातार्जुनीयम् महाकाव्यस्य रचनायाः आधारग्रन्थः कः? (किरातार्जुनीय महाकाव्य की रचना का आधार ग्रन्थ क्या है?)
उत्तर:
‘किरातार्जुनीयम्’ महाकाव्यस्य आधारग्रन्थः महाभारतम् अस्ति। (किरातार्जुनीयम् महाकाव्य का आधार ग्रन्थ महाभारत है।)

प्रश्न 38.
‘बृहत्रयी’ का कथ्यते? (बृहत्रयी किसे कहते हैं?)
उत्तर:
भारवेः किरातार्जुनीयम्’, माघस्य ‘शिशुपाल वधम्’, श्रीहर्षस्य च नैषधीयचरितम्’ इति त्रयाणां महाकाव्यानां समूहः बृहत्रयी कथ्यते। (भारवि का किरातार्जुनीयम्, माघ का शिशुपाल वधम् और श्रीहर्ष का नैषधीयचरितम्-इन तीनों महाकाव्यों का समूह बृहत्रयी कहलाता है।)

प्रश्न 39.
लघुत्रयी इति नाम्ना कानि काव्यानि प्रसिद्धानि सन्ति? (लघुत्रयी के नाम से कौन-कौन से काव्य प्रसिद्ध हैं।)
उत्तर:
महाकवि कालिदासस्य ‘कुमारसम्भवम्’, रघुवंशम्, मेघदूतम् च काव्यानि लघुत्रयी इति नाम्ना प्रसिद्धानि सन्ति। (महाकवि कालिदास के कुमारसम्भव, रघुवंश और मेघदूत काव्य लघुत्रयी के नाम से प्रसिद्ध हैं।)

प्रश्न 40.
संस्कृत साहित्यं प्रधानतः कतिधा विभक्तम्? (संस्कृत साहित्य प्रमुखतः कितने भागों में विभक्त है?)
उत्तर:
संस्कृत साहित्यं प्रधानतः द्विधा विभक्तम्-वैदिकसाहित्यं लौकिकसाहित्यं च। (संस्कृत साहित्य प्रधानतः दो भागों में विभक्त है-वैदिक साहित्य और लौकिक साहित्य।)

प्रश्न 41.
रामायणं कीदृशं महाकाव्यम्? (रामायण कैसा महाकाव्य है?)
उत्तर:
रामायणं भारतस्य राष्ट्रिय महाकाव्यम्। (रामायण भारत का राष्ट्रीय महाकाव्य है।)

प्रश्न 42.
रामायणे कस्य जीवनस्य वर्णनम् अस्ति? (रामायण में किसके जीवन का वर्णन है?)
उत्तर:
रामायणे मर्यादापुरुषोत्तमस्य श्रीरामस्य जीवनस्य वर्णनमस्ति। (रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन का वर्णन है।)

प्रश्न 43.
महाभारतस्य रचयिता कः आसीत्? (महाभारत का रचयिता कौन था?)
उत्तर:
महाभारतस्य रचयिता महर्षि वेदव्यासः आसीत्। (महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास थे।)

प्रश्न 44.
रघुवंशम्’ महाकाव्ये सूर्यवंशस्य कति नृपाणां वर्णनमस्ति? (रघुवंश महाकाव्य में सूर्यवंश के कितने राजाओं का वर्णन है?)
उत्तर:
‘रघुवंशम्’ महाकाव्ये मनुतः अग्निवर्ण पर्यन्तम् ऊनत्रिंशत नृपाणां वर्णनमस्ति। (रघुवंश महाकाव्य में मनु से अग्निवर्ण तक कुल उनतीस राजाओं का वर्णन है।)

प्रश्न 45.
नैषधीयचरितस्य नायिका का? (नैषधीयचरित की नायिका कौन है?)
उत्तर:
नैषधीयचरितस्य नायिका दमयन्ती। (नैषधीयचरित की नायिका दमयन्ती है।)

प्रश्न 46.
‘माघे सन्ति त्रयोगुणाः’ त्रयाणाम् गुणानां नामानि लिखते। (‘माघ में तीनों गुण हैं’ तीनों गुणों के नाम लिखिए।)।
उत्तर:
उपमा, अर्थगौरवं, पदलालित्यं च। (उपमा, अर्थगौरव और पदलालित्य।)

प्रश्न 47.
नीतिशतके किं प्रतिपाद्यम्? (नीतिशतक में प्रतिपाद्य विषय क्या है?)
उत्तर:
नीतिशतके लोक-व्यवहारस्य उपदेशः एव प्रतिपाद्यः विषयः। (नीतिशतक में लोकव्यवहार की शिक्षा ही प्रतिपाद्य विषय है।)

प्रश्नः 48.
अधोलिखित, रचनानां लेखकोनां नामानि लिख्यन्ताम्
(नीचे लिखी रचनाओं के लेखकों के नाम लिखिए-)
RBSE Class 11 Sanskrit लौकिक साहित्यम् 1
RBSE Class 11 Sanskrit लौकिक साहित्यम् 2

(i) काव्यानि

रामायणम्
रामायणम् आदिकाव्यं ……………………………………… काव्यरूपेण अयं श्लोकः। (पृष्ठ 120)

रामायण आदिकाव्य है। इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि माना जाता है। विद्वान् इस ग्रन्थ का रचनाकाल पाँचवीं शताब्दी ई.पू. से पहले का मानते हैं। भारतीय संस्कृति में राम समाज के आदर्श हैं और उनको मर्यादापुरुषोत्तम के रूप में पूजा जाता है। राम आदर्श पुत्र, आदर्श भ्राता, आदर्श पति, आदर्श शासक और आदर्श मनुष्य थे। इस ग्रन्थ में भारतीय संस्कृति उत्कृष्ट रूप से वर्णित है। रामायण सात काण्डों में विभक्त है। बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्ध राकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड और उत्तरकाण्ड। इस ग्रन्थ को ‘चतुर्विंशति साहस्री संहिता’ के नाम से भी कहा जाता है। क्योंकि इसमें चौबीस हजार श्लोक हैं। यह काव्य उपजीविकाव्य, आचारशास्त्र, सांस्कृतिक और सामाजिक शास्त्र है।

रामायण ग्रन्थ की भाषा सरल, सरस और माधुर्यगुणयुक्त है। यह ग्रन्थ अनुष्टुप छन्द में रचित है, किन्तु सर्गों के अन्त में इन्द्रवज्रा, उपजाति इत्यादि छन्द भी मिलते हैं। रामायण करुण रस प्रधान काव्य है। एक बार महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी के तट पर स्नान के लिए गये। वहाँ महर्षि ने क्रौंञ्च युगल में से (कौञ्च पक्षी के जोड़े में से) एक पक्षी का निषाद के द्वारा वध कर दिये जाने पर दूसरे (पक्षी) के विलाप को देखा। उसके विलाप को देखकर महर्षि के मन में स्थित स्थायी भाव शोक करुण रस के रूप में प्रवाहित हो गया। कवि का वह शोक लौकिक संस्कृत के प्रथम काव्य रूप में इस श्लोक में परिणत हुआ
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।

यत् क्रौञ्चमिथुना देकमवधी काममोहितम्। अर्थात् (कवि ने व्याध को शाप देते हुए कहा) जाओ, तुम्हें जीवन में कभी भी शान्ति न मिले, क्योंकि तुमने प्यार करते हुए क्रौंच मिथुन में से एक को मार दिया है।

महाभारतम्
महाभारतस्य रचयिता ……………………………………… वीररस प्रधानम् अस्ति। (पृष्ठ 120)

इसके रचयिता महर्षि वेदव्यासे हैं। यह ग्रन्थ अठारह पर्यों में विभक्त है। इस (ग्रन्थ) का रचनाकाल भी विद्वानों ने ई. पू. पाँचवीं शताब्दी से पहले का ही स्वीकार किया है। इसकी रचना तीन स्तरों पर हुई। पहला ‘जय’ रूप से, दूसरा ‘भारत’ रूप से और तीसरा ‘महाभारत’ रूप से प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ में चारों वर्गों के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सभी विषय निरूपित हैं। इसलिए इस ग्रन्थ में ही यह श्लोक उद्धृत है
धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।

यदिहास्ति तदन्यत्र, यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्। (महाभारत आदि पर्व 62/63) अर्थात् हे भरतश्रेष्ठ, चतुर्वर्ग अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के विषय में जो कुछ यहाँ अर्थात् महाभारत में कहा गया है वही अन्यत्र है और जो इसमें नहीं है, वह कहीं नहीं है। इस ग्रन्थ में भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा उपदेश दी गई ‘गीता’ भी उल्लिखित है। महाभारत का सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और आध्यात्मिक रूप से अधिक महत्व है। इसकी विषयवस्तु को ग्रहण करके दूसरे बहुत से कवियों ने काव्य रचे। इसलिए महाभारत को उपजीवि काव्य भी कहा जाता है। इसमें उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यास इत्यादि अलंकारों
का वर्णन है। यह काव्य वीर रस प्रधान है।

कुमारसम्भवम्।
इदं महाकाव्यं ……………………………………… संदेशोऽपि साफल्येन प्रदत्तः। (पृष्ठ 120-121)

यह महाकाव्य कविकुलगुरु कालिदास द्वारा रचा गया है। कालिदास राजा विक्रमादित्य की राजसभा के नवरत्नों में सुशोभित होते थे। महाकवि ने अपने काव्य में अपना परिचय कहीं भी नहीं दिया है, इसलिए विद्वानों में इस महाकवि के जन्मस्थान और समय के विषय में एकमत नहीं है। फिर भी विद्वान लोग राजा विक्रमादित्य के कालक्रम के अनुसार ईसा-पूर्व प्रथम शताब्दी को इनके जन्म का समय और उज्जैन को इनका निवास स्थान स्वीकार करते हैं। कालिदास की सात कृतियां हैं-अभिज्ञान शाकुंतलम्, विक्रमोर्वशीयम्, मालविकाग्निमित्रम् यह तीन नाटक हैं। रघुवंशम्, कुमारसंभवम् यह दो महाकाव्य हैं। मेघदूतम् तथा ऋतुसंहारम् यह दो खंडकाव्य हैं।

‘कुमारसंभवम्’ महाकाव्य में पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के साथ भगवान शिव का विवाह, उसके बाद कुमार कीर्तिकेय की उत्पत्ति वर्णित है। इस महाकाव्य में 17 सर्ग हैं। इसके सर्गों पर आचार्य मल्लिनाथ की टीका भी है। प्रथम सर्ग में हिमालय का वर्णन और पार्वती के जन्म का वर्णन है। दूसरे सर्ग में तारकासुर द्वारा पीड़ित देवताओं का ब्रह्मा जी के पास जाना वर्णित है और ब्रह्मा के द्वारा पार्वती के पुत्र स्कंदकुमार को तारकासुर के वध का एकमात्र उपाय कहा गया है। तृतीय सर्ग में भगवान शिव की तपस्या में कामदेव द्वारा किए गए विघ्न का और शिव के द्वारा कामदेव को भस्म करने का वर्णन है। चौथे सर्ग में कामदेव की पत्नी रति का विलाप है। पाँचवें सर्ग में पार्वती की तपस्या, शिव के पार्वती के साथ वार्तालाप का वर्णन है।

छठवें सर्ग में पार्वती के साथ शिव के विवाह के लिए सप्तर्षियों का हिमालय के पास जाना, सातवें सर्ग में शिव की वर-यात्रा और पार्वती से विवाह वर्णित है। आठवें सर्ग में पार्वती के साथ शिव का दांपत्य और विहार वर्णित है। नवें सर्ग में पार्वती और परमेश्वर (भगवान शिव) का दांपत्य के सुख का अनुभव और पर्वतों पर सब जगह भ्रमण और कैलास पर्वत पर लौटना वर्णित है। दसवें सर्ग में कुमार कार्तिकेय की गर्भस्थिति वर्णित है। ग्यारहवें सर्ग में कुमार के जन्म और कुमार की बाल्यावस्था का वर्णन है। बारहवें सर्ग में कुमार का सेनापतित्व, तेरहवें सर्ग में कुमार द्वारा सेना संचालन, चौदहवें सर्ग में देवसेना का आक्रमण के लिए प्रस्थान, पन्द्रहवें सर्ग में देव और असुर सेनाओं के संघर्ष का, सोलहवें सर्ग में युद्ध और सत्रहवें सर्ग में तारकासुर के वध का वर्णन है।

इस महाकाव्य में कालिदास की भाषा रसानुकूल और पदलालित्य से परिपूर्ण है। कालिदास का सबसे प्रिय ‘उपमा’ अलंकार सब जगह दिखाई देता है। रूपक, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यास आदि अन्य अलंकारों का भी कालिदास ने सुंदर वर्णन किया है। महाकाव्य में कालिदास के द्वारा वैदर्भी रीति और प्रसाद गुण का संयोजन कुशलता से किया गया है। इस महाकाव्य में कालिदास ने भोग के ऊपर त्याग और वैराग्य की प्रतिष्ठा का संदेश भी सफलतापूर्वक दिया है।

रघुवंश महाकाव्यम्।
इदं महाकाव्यम् ……………………………………… भूमिपालः। (पृष्ठ 121-122)

यह महाकाव्य महाकवि कालिदास द्वारा रचा गया है। इसकी गणना लघुत्रयी में होती है। इस काव्य की श्रेष्ठता के कारण यह रघुकार नाम से प्रसिद्ध है। (क इह रघुकारे न रमते)। कालिदास के जन्म के समय पर आज भी विद्वानों का एकमत नहीं है। फिर भी राजा विक्रमादित्य के आश्रय में उसकी राजसभा के नवरत्नों में कालिदास की स्थिति घोषित की गई है, इसलिए इनका जन्म-समय ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी विद्वानों ने माना है और निवासस्थान उज्जैन को माना है। रघुवंश महाकाव्य में 19 सर्ग हैं। इसमें राजा दिलीप से लेकर अग्निवर्ण तक 29 राजाओं का वर्णन है। इक्ष्वाकुवंशीय राजा रघु में प्रताप का, वीरता का, दानशीलता का और प्रजा-रंजन आदि उत्कृष्ट गुणों का संयोग है। इसलिए इस वंश का नाम ‘रघुकुल’ ही प्रसिद्ध हुआ और उससे ही इस महाकाव्य का भी नाम ‘रघुवंशम्’ कालिदास ने किया।

इस महाकाव्य में कवि ने आदर्श मूल्यों का, वर्ण-आश्रम व्यवस्था का, ब्राह्मण आदि के कर्तव्यों का, राज्य के संचालन का, प्रजारंजन का, राज्य धर्मों का और सामाजिके आदर्शों का भी प्रस्तुतीकरण किया है। इसीलिए इस महाकाव्य में भारत की संस्कृति का चित्र सुंदरता से दिखाई पड़ता है।

कालिदास वैदर्भी रीति के कवि हैं, इसलिए इस महाकाव्य में माधुर्य एवं प्रसाद गुणों का समावेश हुआ है। उपमा कालिदासस्य’ यह कहावत तो प्रसिद्ध ही है। रघुवंश के छठे सर्ग में कालिदास ने रानी इंदुमति की उपमा दीपशिखा से दी है, इसीलिए ‘कालिदास’ दीपशिखा कालिदास इस प्रकार विद्वानों में विख्यात हुए।

सञ्चारिणी दीपशिखेव रात्रौ यं यं व्यतीयाय पतिंवरा सा। नरेन्द्रमार्गाट्ट इव प्रपेदे विवर्णभावं स स भूमिपाल। (रघु. 6/67)

अर्थात् रात में चलती-फिरती दीपक की शिखा (ज्योति) राजमार्ग में स्थित जिस जिस मकान को छोड़कर आगे बढ़ जाती है, तो वह मकान जैसे अंधकार से घिर जाता है, उसी प्रकार पति को वरण करने वाली वह इंदुमति जिस जिस राजा को छोड़कर आगे बढ़ गई, वह राजा मलिनता को प्राप्त हो गया अर्थात् निराशा से उसका मुंह काला पड़ गया।

किरातार्जुनीयम्
किरातार्जुनीयम् इति ……………………………………… प्राप्यते। (पृष्ठ 122)
इस महाकाव्य के प्रणेता महाकवि भारवि हैं। इस महाकाव्य का रचना-काल 560 ई. का है। इस महाकाव्य में कौरवों को जीतने के लिए पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति हेतु हिमालय पर्वत पर अर्जुन की तपस्या का वर्णन है, और वहां किरात वेशधारी भगवान शिव के साथ अर्जुन के युद्ध का वर्णन है। अपने युद्ध कौशल से अर्जुन शिव को प्रसन्न करके, पाशुपतास्त्र प्राप्त करता है। इस महाकाव्य में अठारह सर्ग हैं। सर्गानुसार कथा इस प्रकार है-

प्रथम सर्ग में वनचर दूत का युधिष्ठिर के साथ द्वैतवन में मिलना, वहाँ दुर्योधन की राज्यसभा का वर्णन, युधिष्ठिर और द्रौपदी के साथ कौरवों के कर्तव्य विषयक संवाद का वर्णन। द्वितीय सर्ग में युधिष्ठिर और भीम का परस्पर संवाद और व्यास . का आगमन। तीसरे सर्ग में युधिष्ठिर और व्यास को संवाद और व्यास का अर्जुन के लिए हिमालय पर जाकर पाशुपत अस्त्र के लिए तपस्या का आदेश और अर्जुन का हिमालय की ओर प्रस्थान। चौथे सर्ग में शरद ऋतु का वर्णन। पाँचवें सर्ग में हिमालय का वर्णन। छठे सर्ग में हिमालय पर अर्जुन की तपस्या का वर्णन, तपस्या में विघ्न के लिए इन्द्र द्वारा अप्सराओं को भेजना। सातवें सर्ग में गन्धर्वो और अप्सराओं के विलास का वर्णन। आठवें सर्ग में गन्धर्वो और अप्सराओं की उद्यानक्रीडा, व जलक्रीड़ा वर्णित है।

नौवें सर्ग में सायंकाल का, चन्द्रोदय का, कामक्रीड़ा का और प्रभात का वर्णन है। दसवें सर्ग में वर्षा से अप्सराओं के प्रयत्न विफल होने का वर्णन है। ग्यारहवें सर्ग में इन्द्र का मुनि के रूप में आगमन, इन्द्र और अर्जुन का संवाद, इन्द्र का पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति के लिए शिव की आराधना के लिए अर्जुन को कहना। बारहवें सर्ग में अर्जुन की तपस्या का वर्णन, शूकर रूपधारी मूक दानव के वध के लिए अर्जुन का आगमन, किरात वेशधारी शिव का भी आगमन। तेरहवें सर्ग में शूकर रूपधारी मूक दानव पर शिव और अर्जुन के द्वारी बाणों का सन्धान।

चौदहवें सर्ग में शूकर की मृत्यु, किसके बाण से वह मरा-इस बात पर शिव के अनुचर (सेवक) का और अर्जुन का विवाद। सेना के साथ शिव का आगमन और अर्जुन के साथ युद्ध। पन्द्रहवें सर्ग में चित्रकाव्य का आश्रय लेकर युद्ध का वर्णन। सोलहवें सर्ग में शिव और अर्जुन को अस्त्र युद्ध। सत्रहवें सर्ग में सेना के साथ अर्जुन का युद्ध, शिव और अर्जुन का युद्ध। अठारहवें सर्ग में शिव और अर्जुन का मल्लयुद्ध, उसके बाद शिव का अपने स्वरूप में प्रकट होना और इन्द्र आदि का आगमन। पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति, इन्द्रादि देवताओं का अर्जुन के लिए विविध अस्त्रों को देना। अर्जुन का सिद्धि प्राप्त करके युधिष्ठिर के पास वापस लौटना।

यह महाकाव्य बृहत्रयी में भी गिना जाता है। इस महाकाव्य में अर्थगौरव की प्रधानता के कारण ‘भारवेरर्थगौरवम्’ यह उक्ति प्रसिद्ध है। थोड़े शब्दों में गम्भीर अर्थ का कथन ‘अर्थगौरव’ होता है। भारवि की वाणी में या सुभाषितों में वेद, दर्शन, नीति, राजनीति, पुराण, ज्योतिष, कृषि, कामशास्त्र, काव्यशास्त्र आदि बहुत से विषयों का गम्भीर पाण्डित्य प्राप्त होता है।

शिशुपालवधम्
शिशुपालवधं महाकाव्यं ……………………………………… इत्युपाधिना समलंकृतः। (पृष्ठ 122-123)
यह महाकाव्य महाकवि माघ की कृति है। माघ का जन्म-समय 675 ई. है। यह महाकाव्य बृहत्रयी में भी गिना जाता है। देवर्षि नारद के द्वारा शिशुपाल के पूर्वजन्मों के उसके द्वारा किए गए अत्याचारों का उल्लेख करके शिशुपाल-वध के लिए श्रीकृष्ण से प्रार्थना की जाती है। श्रीकृष्ण युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इंद्रप्रस्थ को गए। इंद्रप्रस्थ में शिशुपाल के द्वारा श्रीकृष्ण के प्रति अभद्र व्यवहार किया गया। इसलिए श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया। उपर्युक्त कथा का माघ ने अपनी प्रतिभा से काव्य-वैशिष्ट्य द्वारा प्रभावपूर्ण वर्णन किया है। माघ के काव्य में उपमा का सौंदर्य, अर्थ की गंभीरता और पद-लालित्य-इन तीनों ही काव्य-गुणों का संयोजन दिखाई पड़ता है। इसलिए विद्वानों में ‘माघे संति त्रयो गुणा:’ यह उक्ति प्रसिद्ध है

उपमा कालिदासस्य भारवे रर्थ गौरवम्।
दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः।

अर्थात् कालिदास की उपमा, भारवि का अर्थगौरव तथा दण्डी का पदलालित्य प्रसिद्ध है, परन्तु माघ कवि में ये तीनों गुण प्राप्त होते हैं।

काव्य में विविध शास्त्रों के वर्णन से माघ की बहुज्ञता ज्ञात होती है। इसी प्रकार नवें सर्ग के अन्त तक ही माघ ने विशाल शब्द-भण्डार प्रयुक्त किया है। जैसा कि कहा गया है-‘नवसर्गगते माघे नवशब्दो न विद्यते’ अर्थात् शिशुपालवध के नौ सग को पढ़ लेते हैं तो फिर नये शब्द साहित्य में नहीं मिलेंगे। नौ सर्गों में ही संस्कृत कोश के सभी शब्द आ जाते हैं। व्यञ्जना से इस लोकोक्ति का अभिप्राय यह है कि माघ की रचना में ऐसे शब्दों की संख्या बहुत अधिक है जो अप्रयुक्त हैं और साधारण पाठकों को अज्ञात हैं। गज रूपधारी रैवतक पर्वत के एक तरफ सूर्योदय, दूसरी तरफ चन्द्रमा के अस्त होने का वर्णन माघ ने किया है। अतः उन्हें ‘घण्टामाघ’ इस उपाधि से अलंकृत किया गया है।

नैषधीयचरितम्
नैषधीयचरितम् ……………………………………… जीवनं यापयति। (पृष्ठ 123)

इस महाकाव्य की गणना बृहत्रयी में की जाती है, इसके रचयिता महाकवि श्रीहर्ष थे। इस महाकाव्य में 22 सर्ग हैं। यह महाकाव्य पाण्डित्य से पूर्ण है। श्लिष्ट और क्लिष्ट प्रयोग के द्वारा और विषय की विविधता से यह काव्य उत्कृष्ट है। इसमें अनेक शास्त्रीय सिद्धान्तों का वर्णन किया गया है। इस कारण से ‘‘नैषधं विद्वदौषधम्” यह कहावत भी प्रसिद्ध है।

श्रीहर्ष का समय विद्वानों ने बारहवीं शताब्दी को उत्तरार्ध निश्चित किया है। वैशेषिक, सांख्य, योग, वेदान्त, मीमांसा, चार्वाक, बौद्ध तथा जैन-दर्शन के गम्भीर सिद्धान्त यहाँ वर्णित हैं। इसलिए सामान्य पाठकों के लिए इस महाकाव्य में अर्थ समझ पाना बहुत कठिन है। इस महाकाव्य में नल के दमयन्ती के साथ प्रेम और विवाह की कथा वर्णित है। एक बार नल ने दमयन्ती में अनुरक्त घूमते हुए किसी हंस को पकड़ लिया, पुनः दया से हंस को छोड़ दिया। हंस प्रत्युपकार की भावना से नल की प्रशंसा दमयन्ती के समीप जाकर करता है। उससे दमयन्ती में पूर्व प्रेम उदय होता है। विदर्भ नरेश अपनी पुत्री दमयन्ती को स्वयंवर आयोजित करता है। स्वयंवर में दमयन्ती के इच्छुक इन्द्र, यम, वायु, कुबेर देवता भी आये और नल का रूप धारण कर स्वयंवर-सभा में बैठ गये। समान रूप के पांच नलों को देखकर दमयन्ती भ्रमित हो गई। वह इनमें से कौन वास्तविक नल है’, ऐसा विचार करती है। उसके बाद दमयन्ती के पतिव्रत और दृढ़ प्रेम से प्रसन्न होकर देवता अपने वास्तविक स्वरूप को प्रकट करते हैं। इससे दमयन्ती वास्तविक नल को वरण करती है और सुख से दाम्पत्य जीवन व्यतीत करती है।

(ii) खण्डकाव्यानि

मेघदूतम्
मेघदूतम् एकं ……………………………………… अनुवादः जातः। (पृष्ठ 123-124)
यह एक गीतिकाव्य है। इसके रचयिता महाकवि कालिदास हैं। शास्त्रीय दृष्टि से ‘गीतिकाव्य’ को ‘खण्डकाव्य’ भी कहा जाता है। खण्डकाव्य महाकाव्य के किसी एक भाग या अंश का अनुसरण करता है। जो काव्य के एक भाग या अंश का अनुसरण करता है वह ‘खण्डकाव्य’ होना चाहिए। गीतिकाव्य में मुक्तकपद्यों का समावेश किया जाता है। पद्यों में भाव प्रधान होता है। ऋग्वेद में विद्यमान स्तुति सूक्त ऐसे गीतिकाव्यों के आदि स्रोत रूप माने जाते हैं। कालिदास ने दो गीतिकाव्यों की रचना की। मेघदूतम् और ऋतुसंहारम्। ‘मेघदूतम्’ कालिदास की एक उत्कृष्ट परिष्कृत रचना है। इसके दो भाग हैं-पूर्वमेघ और उत्तरमेघ। पूर्वमेघ में 63 श्लोक हैं और उत्तरमेघ में 52 श्लोक हैं। मेघदूतम् काव्य में किसी विरही यक्ष की कथा है।

पूर्वमेध में किसी यक्ष को अपने कार्य के प्रति उदासीनता के कारण कुबेर द्वारा शाप दिया गया। फलतः यक्ष अपनी प्रिया से वियुक्त (अलग) होकर एक वर्ष तक राजाज्ञा-पालन के लिए रामगिरि पर्वत पर निवास करता है। वहाँ पर आठ महीने किसी प्रकार से बिताकर आषाढ़ माह के पहले दिन पर्वत के शिखर पर मेघ को देखकर वह अपनी प्रिया के स्मरण से विह्वल (व्याकुल) हो गया और प्रिया के लिए मेघ को दूत रूप में मानकर उसको (प्रिया को) सन्देश देने के लिए तैयार हुआ। सन्देश देने के साथ ही उस यक्ष ने मेघ के समक्ष रामगिरि पर्वत से लेकर अलकापुरी नगरी तक मेघ के मार्ग का भी वर्णन किया। मेघ के मार्ग में स्थित प्रदेशों का, नगरों का, पर्वतों और नदियों का चित्रण महाकवि ने अपनी प्रतिभा से उत्कृष्ट भाषाशैली और भाव प्रवणता के साथ किया है।

उन विशिष्ट स्थलों में माल प्रदेश, आम्रकूट पर्वत, नर्मदा नदी, विदिशा, नीलगिरि, निर्विन्ध्या नदी, उज्जयिनी, उज्जैन में महाकाल, शिप्रा नदी, देवगिरि, चम्बल (चर्मण्वती) नदी, कुरुक्षेत्र, सरस्वती नदी, कनखल क्षेत्र, गंगा नदी, हिमालय पर्वत, क्रौञ्चरन्ध्र, कैलास पर्वत, और अलकानगरी है।

उत्तर मेघ में कवि, जहाँ यक्ष की प्रिय पत्नी निवास करती है, उस अलका नगरी का, कुबेर के महल का और मुरझाई हुई कमलिनी के समान विरहिणी यक्ष पत्नी का वर्णन करता है। मेघ यक्ष की पत्नी के लिए चार महीने पश्चात् यक्ष से मिलने का आश्वासन-युक्त सन्देश देता है।

मेघदूत की कथा का बीज, विद्वान लोग वाल्मीकि रामायण को स्वीकार करते हैं। वहाँ हनुमान का दूत-कर्म सुविख्यात है। यह श्रृंगार रस प्रधान गीतिकाव्य है। श्रृंगार में भी यहाँ विप्रलम्भ श्रृंगार रस वर्णित है। कालिदास वैदर्भी रीति के कवि हैं। माधुर्य गुण और प्रसाद गुण के संयोजन में ये सिद्धहस्त कवि हैं। अब विश्वसाहित्य में मेघदूत गीतिकाव्य की ऐसी विशिष्टता है जिससे विश्व की अनेकों भाषाओं में इस काव्य का अनुवाद हुआ है।

नीतिशतकम्
महाकविना भर्तृहरिणा ……………………………………… प्रभावोत्पादकाः च सन्ति। (पृष्ठ 124)
महाकवि भर्तृहरि ने तीन शतकों की रचना की-नीतिशतक, श्रृंगार शतक और वैराग्य शतक। भर्तृहरि विक्रम संवत के प्रवर्तक विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। इसलिए राजसिंहासन के अधिकारी थे। किन्तु महारानी पिंगला के द्वारा किये गये विश्वासघात से आहत भर्तृहरि ने वैराग्य ले लिया। भर्तृहरि का समय 575 ई. से 651 ई. तक है। नीतिशतक में शिक्षाप्रद नीतिश्लोक हैं। उन श्लोकों में आचार शिक्षा, नीति शिक्षा, कर्तव्य-अकर्तव्य वर्णन, परोपकार-वर्णन, सज्जन-प्रशंसा, दुर्जन-निन्दा, कर्मफल की प्रधानता-इत्यादि विषय निरूपित हैं। सभी श्लोक सुभाषित, मार्मिक, सरल और गम्भीर हैं। इसलिए प्रभावोत्पादक हैं।

(iii) नीतिकथा साहित्यम्

पञ्चतन्त्रम्
पञ्चतन्त्रे ग्रन्थे ……………………………………… मध्ये-मध्ये निबद्धानि। (पृष्ठ 124)
इसे ग्रन्थ में पांच तन्त्र हैं। मित्रभेद, मित्रलाभ, सन्धिविग्रह, लब्धप्रणाश और अपरीक्षित कारक। प्रत्येक तन्त्र की एक मुख्य कथा है। उस कथा के पोषण के लिए विभिन्न लघुकथाएँ जोड़ी गई हैं। सभी कथाओं का उद्देश्य नीति एवं सदाचार की शिक्षा है।

महिलारोप्य नामक नगर में अमरकीर्ति नामक राजा था। उस राजा के तीन पुत्र हुए। नीतिशास्त्रों में व्यावहारिक रूप से शिक्षित करने के लिए और कुशलता प्राप्त करने के लिए राजा ने विष्णु शर्मा नामक नीतिशास्त्र के जानकार पण्डित को बुलाकर (उसे) अपने मूर्ख पुत्रों को समर्पित कर दिया। पं. विष्णु शर्मा ने नीति शिक्षाप्रद पशुपक्षियों की कथा सुनाकर थोड़े समय में ही उन राजपुत्रों को नीति के व्यवहार में कुशल बना दिया।
जटिल संसार में कैसे कुशलता और आत्मसम्मान से अपनी रक्षा करके व्यवहार करना चाहिए। यह इस ग्रन्थ में प्रदर्शित किया गया है। इसकी भाषा सरल और भावगम्य है। रुचिकर छोटी कथाओं के माध्यम से तुरन्त ही अर्थ का। बोध होता है। गद्यकथाओं में उपदेशात्मक पद्य बीच-बीच में निबद्ध हैं।

हितोपदेशम्
हितोपदेशस्य ग्रन्थस्य ……………………………………… भाषासु अनुवादः जातः। (पृष्ठ 124-125)
इस ग्रन्थ के रचयिता नारायण पण्डित थे। इसका रचनाकाल दशवीं शताब्दी माना जाता है। इसका आधारग्रन्थ पञ्चतन्त्र है। इसमें चार परिच्छेद हैं। उनमें 43 कथाएँ निबद्ध हैं। हितोपदेश में मित्रलोभ, सुहृद-भेद, विग्रह तथा सन्धि-ये चार खण्ड हैं। इसकी भाषा-शैली अत्यन्त सरल और सरस है। पद्यों में उपदेश निरूपित हैं। इसका विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

(iv) नाट्य-साहित्यम्

अभिज्ञानशाकुन्तलम्
अस्य नाटकस्य प्रणेता ……………………………………… शृङ्गाररसप्रधानमिदं नाटकम्। (पृष्ठ 125)
इस नाटक के प्रणेता महाकवि कालिदास हैं। विश्व-साहित्य में यह नाटक उत्कृष्ट और ख्यातिप्राप्त है। इसमें सात अङ्क हैं। नाटक की कथा महाभारत के आदिपर्व से ली गई है, किन्तु उसकी कथा में कवि ने अपनी प्रतिभा से और कल्पना

वैशिष्ट्य से परिवर्तन किया है जिससे यह नाटक श्रेष्ठता को प्राप्त हुआ है। इसलिए ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ के विषय में यह उक्ति प्रसिद्ध है-।

काव्येषु नाटकं रम्यं, तत्र रम्या शकुन्तला।
तत्रापि चतुर्थोऽङ्कः तत्र श्लोकचतुष्ट्यम्।।

अर्थात् काव्यों में नाटक सुन्दर है। उन नाटकों में भी ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ नाटक सबसे अच्छा है। उस नाटक का भी चौथा अंक सबसे अच्छा है और उस चौथे अंक के भी चार श्लोक सबसे अच्छे हैं। इस नाटक में राजा दुष्यन्त का मेनका अप्सरा की पुत्री शकुंतला के साथ गान्धर्व विवाह वर्णित है। दुष्यन्त के द्वारा शकुन्तला के लिए अपने नाम की अंकित मुद्रिका (अंगूठी) भी स्मरण चिह्न के रूप में दी गई थी। राजकार्य से दुष्यन्त हस्तिानपुर को चला गया। तब आश्रम में दुर्वासा ऋषि का आगमन हुआ। किन्तु दुष्यन्त के चिन्तन में लगी हुई शकुन्तला अतिथि तपस्वी दुर्वासा ऋषि का सत्कार करना भूल गई। दुर्वासा ने शकुंतला को शाप दिया जिसके चिंतन में तुम संलग्न हो, वह तुम्हें भूल जाएगा।’ अर्थात् तुम जिसके बारे में सोच रही हो, वह तुम्हें भूल जाएगा। सखियों के अनुनय-विनय से ऋषि दुर्वासा अपने शाप में परिवर्तन करके कहते हैं कि किसी स्मरण-चिह्न से दुष्यंत पुनः शकुंतला का स्मरण करेगा। हस्तिनापुर में दुष्यंत दुर्वासा के शाप से शकुंतला को भूल गया।

महर्षि कण्व तपस्वियों के साथ शकुंतला को हस्तिनापुर को भेजते हैं। मार्ग में दुष्यंत के द्वारा दी गई मुद्रिका भी शक्रावतार तीर्थ के जल में शकुंतला के हाथ से गिर गई। जब हस्तिनापुर में शकुंतला दुष्यंत के समक्ष गई तब शाप के प्रभाव से राजा शकुंतला को भूल कर स्वीकार नहीं करता है। (दुष्यंत के) त्याग के पश्चात शकुंतला ने मरीचि ऋषि के आश्रम में निवास किया और वहां दुष्यंत के पुत्रं भरत को जन्म दिया। कुछ समय पश्चात धीवर से प्राप्त मुद्रिका से राजा ने पुनः शकुंतला को याद किया। इसी समय राक्षसों से देवताओं की सुरक्षा के लिए और युद्ध के लिए इंद्र देव ने सहायता के लिए दुष्यंत को बुलाया था। युद्ध के पश्चात् स्वंर्ग से लौटते समय मरीचि ऋषि के आश्रम में अपने पुत्र भरत के साथ दुष्यंत का मिलन हुआ। वहां ही राजा द्वारा अपने पुत्र भरत को पहचाना जाता है और वहीं पर वह शकुंतला को भी पहचानता है। इसलिए इस नाटक का नाम ‘अभिज्ञानशाकुंतलम्’ कवि द्वारा किया गया।

इस नाटक में भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से परिलक्षित होती है। शकुंतला की विदाई के समय पर चौथे अंक में जो संदेश कण्व द्वारा शकुंतला के लिए दिया गया है, वह सभी ग्रहस्थों के लिए आदर्श है। संपूर्ण नाटक में प्रकृति-वर्णन बहुत सुंदर है। यहां लताएँ भी मनुष्यों की तरह आंसू बहाती हैं। ‘उपमा कालिदासस्य’ यह कहावत सब जगह चरितार्थ है। कालिदास की शैली माधुर्य और प्रसाद गुण से युक्त है। वैदर्भी रीति का संयोजन हृदय को लुभाने वाला है। यह नाटक श्रृंगार रस प्रधान है।

स्वप्नवासवदत्तम्
महाकवि भासः अस्य ……………………………………… गुणयोः च कवि अस्ति। (पृष्ठ 125-126)
इस नाटक के प्रणेता महाकवि भास थे। विद्वान लोग भास का समय ईसा-पूर्व चतुर्थ शताब्दी से लेकर दूसरी शताब्दी के मध्य मानते हैं। कालिदास ने अपने नाटक ‘मालविकाग्निमित्र’ में भास की प्रशंसा की है। अतः भास उत्कृष्ट प्राचीन नाटककार थे। इनके 13 नाटक अब उपलब्ध होते हैं-प्रतिज्ञायौगंधरायण, स्वप्नवासवदत्तम, उरुभंगम, दूतवाक्यम्, पञ्चरात्रम्, बाल-चरितम्, दूतघटोत्कचम्, कर्णभारम्, मध्यमव्यायोगम्, प्रतिमानाटकम्, अभिषेकनाटकम्, अविमारकम्, चारुदत्तम्।

इस नाटक में वत्सराज उदयन नायक है। उदयन का अपहृत राज्य कैसे पुनः प्राप्त किया जाएगा, यह चिंता मंत्री यौगंधरायण के मन में है। अत: उसने ‘रानी वासवदत्ता अग्नि में जल गई’ यह अफवाह फैला दी। उसके पश्चात् यौगंधरायण की योजना से पद्मावती के साथ उदयन का विवाह हो गया। इससे उदयन का अपहृत राज्य पुनः प्राप्त हुआ। यह वैदर्भी रीति के तथा माधुर्य और प्रसाद गुण के कवि हैं।

उत्तररामचरितम्
अस्य नाटकस्य ……………………………………… भवभूतिना कृतम्। (पृष्ठ 126)
इस नाटक के रचयिता महाकवि भवभूति हैं। यह दक्षिण भारत के पद्मपुर के निवासी थे। भवभूति के तीन नाटक हैं-मालतीमाधवम्, महावीरचरितम् और उत्तररामचरितम्। इस कवि का जन्म-समय 68 ईसवी से 75 ईसवी के मध्य निश्चित किया जाता है। उत्तररामचरितम् नाटक सात अंकों में निबद्ध है। इस नाटक में लोक-अपवाद के कारण राम द्वारा सीता का परित्याग, तत्पश्चात् राम का विलाप, लव-कुश की प्राप्ति और राम द्वारा निर्दोष सीता को पुनः स्वीकार करना-यह

विषयवस्तु वर्णित है। यह नाटक सुखान्त है क्योंकि इसके अंत में कवि द्वारा सीता और राम का मिलन वर्णित है। उत्तररामचरितम् की रचना की प्रेरणी रामायण से ही ली गई है, किंतु कथावस्तु पद्मपुराण में भी है। नाटकं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि भवभूति विभिन्न शास्त्रों के उत्कृष्ट विद्वान थे। नाटक के प्रणेताओं में कालिदास के बाद भवभूति का नाम सम्मान से लिया जाता है। अतः विद्वानों में यह कहावत भी प्रसिद्ध है-‘उत्तररामचरितम् में तो भवभूति विशिष्ट नाटककार हैं।’ अर्थात् उत्तररामचरितम् में भवभूति की नाट्य कला का चरम अवसान है। भवभूति करुण रस के कवि हैं। उत्तररामचरितम् में करुण रस की प्रधानता है। भवभूति का करुण रस इतना समर्थ है कि उससे वृक्ष-वनस्पति आदि ही नहीं पत्थर भी रोते हैं। |

इस नाटक में गौड़ी रीति प्रयुक्त हुई है, किंतु करुण रस के प्रसंग में वैदर्भी रीति का प्रयोग भी किया गया है। इसी प्रकार भवभूति ने माधुर्य, ओज और प्रसाद इन तीनों गुणों का भी उत्कृष्टता से निरूपण किया है।

मृच्छकटिकम्
शास्त्रीय दृष्ट्या ……………………………………… अनुवादः जातः। (पृष्ठ 126)
शास्त्रीय दृष्टि से यह नाटक रूपकों (नाटक के दस रूपकों) में से प्रकरण है। इसके रचनाकार महाकवि शूद्रक थे। शूद्रक की एक ही कृति मृच्छकटिकम् है। इस (शूद्रक) के जन्म-समय के विषय में विद्वान लोग एकमत नहीं हैं। परंतु आंतरिक और बाहय साक्ष्यों से शूद्रक का जन्मकाल विद्वानों ने पाँचर्वी शताब्दी निश्चित किया है। इस नाटक में 10 अंक हैं। उनमें निर्धन ब्राह्मण चारुदत्त का वसंतसेना नामक गणिका के साथ प्रेम और उसके साथ विवाह की कथावस्तु वर्णित है।

इस कथा में ही राजा पालक को मारकर आर्यक का राजपद पर प्रतिष्ठित होने का वर्णन भी किया गया है। इस नाटक में जन-जीवन का वास्तविक वर्णन उपलब्ध होता है। इस ग्रंथ में वैदर्भी रीति का प्रयोग किया गया है, किंतु अन्य स्थलों पर गौड़ी रीति का भी आश्रय लिया गया है। इस ग्रंथ का आधार ग्रंथ भास का ‘चारुदत्त’ नाटक है। मृच्छकटिकम् नाटक में समाज के प्रत्येक वर्ग का स्वाभाविकता से और उत्कृष्टता से निरूपण किया गया है। इस कृति को विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

वेणीसंहारम्
वेणीसंहारम् इति नाटकस्य ……………………………………… प्राधान्यं वर्तते। (पृष्ठ 126-127)
इस नाटक के रचयिता महाकवि भट्ट नारायण थे। इस नाटक का नायक भीमसेन है। नाटक में भीम का चरित्र ओजस्वी और वीरतापूर्ण है। इस नाटक में मुख्य रस वीर रस है। भट्ट नारायण का काल 650 ईसवी से 675 ईसवी अर्थात् सातवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध निश्चित किया गया है। इस नाटक में छह अंक हैं। भीम दुःशासन के द्वारा किए गए द्रौपदी के अपमान का प्रतिशोध चाहता है। अतः प्रतिज्ञा करता है कि वह दु:शासन की छाती का लहू पियेगा और दुर्योधन की जांघ को तोड़ेगा। अपनी प्रतिज्ञा को पूरा कर भीम द्रौपदी की वेणी का संहार करता है, इसलिए इस नाटक का नाम वेणीसंहार है। इस नाटक में ओजगुण और गौड़ी रीति की प्रधानता है।

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