RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश

RBSE Solutions for Class 12 Hindi अपठित बोध अपठित पद्यांश is part of RBSE Solutions for Class 12 Hindi. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi अपठित बोध अपठित पद्यांश.

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश अपठित पद्यांश

अपठित काव्यांश के अंतर्गत काव्य-पंक्तियों का भावार्थ समझकर उत्तर देने होते हैं। इसमें काव्य के भाव-सौन्दर्य पर आधारित प्रश्नोत्तर होते हैं। इस हेतु विद्यार्थियों को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  • सर्वप्रथम पूरे काव्यांश को शान्ति के साथ ध्यानपूर्वक पढ़िए।
  • यदि उसका भावार्थ समझ में नहीं आ रहा है तो घबरायें नहीं। उसे पुन: पढ़े। इस बार शब्दों पर ध्यान देकर उनका अर्थ समझने का प्रयास करें।
  • आपसे यह आशा नहीं की जाती कि आप पूरी कविता के प्रत्येक शब्द का अर्थ जान लेंगे। इस कारण निराश और व्याकुल होने की कोई आवश्यकता नहीं है। अब आप काव्यांश के नीचे दिए गए प्रश्नों को पढ़े तथा उनके उत्तर पद्यांश को पढ़कर तलाश करने का प्रयत्न करें।
  • एक-दो बार के प्रयत्न से प्रश्नों के उत्तर मिल जायेंगे। काव्यांश का स्थूल भाव समझ में आने पर प्रश्नों का उत्तर देने में सरलता होगी।
  • प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट शब्दों में लिखें। यदि पद्यांश की किसी पंक्ति में प्रतीक के माध्यम से कोई बात कही गई हो तो उसको स्पष्ट करना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए उत्तर कुछ विस्तार से लिखा जा सकता है।
  • अपठित काव्यांश का उत्तर देते समय अपना आत्मविश्वास बनाए रखें।

1. निम्न अपठित काव्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

(1) मनमोहिनी प्रकृति की जो गोद में बसा है,
सुख स्वर्ग-सा जहाँ है, वह देश कौन-सा है?
जिसको चरण निरन्तर रत्नेश धो रहा है,
जिसका मुकुट हिमालय, वह देश कौन-सा है ?
नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं,
सींचा हुआ सलोना, वह देश कौन-सा है ?
जिसके बड़े रसीले, फल, कन्द, नाज, मेवे,
सब अंग में सजे हैं, वह देश कौन-सा है ?
जिसमे सुगन्ध वाले, सुन्दर प्रसूने प्यारे,
दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन-सा है ?
मैदान, गिरि, वनों में हरियालियाँ लहकती,
आनन्दमय जहाँ है, वह देश कौन-सा है ?
जिसकी अनन्त धन से, धरती भरी पड़ी है,
संसार का शिरोमणि, वह देश कौन-सा है?

अपठित पद्यांश प्रश्न 1.
(क) भारत का मुकुट किसे कहा गया है ?
(ख) कवि ने भारतवर्ष की कौन-सी विशेषताएँ बतायी हैं ?
(ग) “सींचा हुआ सलोना’ से क्या तात्पर्य है ?
(घ) भारत देश को संसार का शिरोमणि क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
(क), भारत का मुकुट हिमालय को कहा गया है।
(ख) कवि ने बताया है कि भारतवर्ष प्रकृति की गोद में बसा हुआ सुख–स्वर्ग है। इसके चरणों को सागर धोता है, मुकुट हिमालय है, नदियाँ अमृत-रस से इसे सींच रही हैं। आनंद की सृष्टि करने वाली यह धरा है, जो संसार का शिरोमणि है।
(ग) “सींचा हुआ सलोना’ से यहाँ आशय है कि नदियों की अमृत धारा से यहाँ की प्राकृतिक मोहक छटा सिंचित है। इससे भारत-भूमि हरी-भरी है।
(घ) भारत देश के पास प्राकृतिक सौंदर्य और अपूर्व खनिज-संपदा पड़ी है, अत: यह संसार का शिरोमणि है।

(2) मेरी भूमि तो है पुण्यभूमि वह भारती,
सौ नक्षत्र-लोक करें आके आप आरती।
नित्य नये अंकुर असंख्य वहाँ फूटते,
फूल झड़ते हैं, फल पकते हैं, टूटते।
सुरसरिता ने वहीं पाई हैं सहेलियाँ,
लाखों अठखेलियाँ, करोड़ों रंगरेलियाँ।
नन्दन विलासी सुरवृन्द, बहु वेशों में,
करते विहार हैं हिमाचल प्रदेशों में।
सुलभ यहाँ जो स्वाद, उसका महत्त्व क्या ?
दुःख जो न हो तो फिर सुख में है सत्त्व क्या ?
दुर्लभ जो होता है, उसी को हम लेते हैं,
जो भी मूल्य देना पड़ता है, वही देते हैं।
हम परिवर्तनमान, नित्य नये हैं तभी,
ऊब ही उठेंगे कभी एक स्थिति में सभी।
रहता प्रपूर्ण हमारा रंगमंच भी,
रुकता नहीं है लोक नाट्य कभी रंच भी।

अपठित Padyansh कक्षा 12 प्रश्न 2.
(क) कवि ने पुण्य-भूमि किसे और क्यों कहा है ?
(ख) हिमाचल प्रदेश की क्या विशेषता बताई गयी है ?
(ग) “दुःख जो न हो, तो फिर सुख में सत्त्व क्या ?”-इस कथन का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
(घ) पृथ्वीवासियों को नित्य नये’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
(क) कवि ने भारतं भूमि को पुण्य-भूमि कहा है क्योंकि वहाँ आकर सैकड़ों नक्षत्र लोग उसकी आरती उतारते हैं। वहाँ नित्य नवजीवन के अंकुर फुटते हैं।
(ख) नन्दन वन में विहार करने वाले देवता अनेक वेशों में आकर हिमालय प्रदेश में विहार करते हैं।
(ग) सुख का आनन्द दु:ख सहने के पश्चात् ही पता चलता है। यदि जीवन में सुख ही सुख हो और दु:ख हो ही नहीं तो सुख का महत्त्व ही कुछ नहीं रह जाता। विधाता ने संसार को सुख-दुखमय बनाया है।
(घ) परिवर्तन सृष्टि का नियम है। धरती पर हर समय परिवर्तन होते रहते हैं। पुराना जाता है उसको स्थान नया ले लेता है। अतः यह संसार नित्य नया बना रहता है। इस कारण पृथ्वीवासियों को नित्य नये कहा गया है।

(3) यह अवसर है, स्वर्णिम सुयुग है, खो न इसे नादानी में.
रंगरेलियों में, छेड़छाड़ में, मस्ती में, मनमानी में।।
तरुण, विश्व की बागडोर ले तू अपने कठोर कर में,
स्थापित कर रे मानवती बर्बर नृशंस के उर में।
दंभी को कर ध्वस्त धरा पर अस्त-त्रस्त पाखंडों को,
करुणा शान्ति स्नेह सुख भर दे बाहर में, अपने घर में।
यौवन की ज्वाला वाले दे अभयदान पद दलितों को,
तेरे चरण शरण में आहत जग आश्वासन-श्वास गहे॥

अपठित काव्यांश कक्षा 12 प्रश्न 3.
(क) “यह अवसर है, स्वर्णिम सुयुग है’ कवि ने किस अवसर को स्वर्णिम सुयुग कहा है ?
(ख) विश्व की बागडोर किसके हाथों में शोभा पाती है ? क्यों ?
(ग) “बाहर में, अपने घर में क्या भरने के लिए कहा गया है ?
(घ) “दे अभयदान पद दलितों को” पंक्ति को आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि ने तरुणाई (जवानी) को स्वर्णिम सुयुग कहा है। युवावस्था ही वह स्वर्णिम अवसर है, जिसमें वह नया निर्माण कर सकता है।
(ख) विश्व की बागडोर तरुण (युवक) के हाथ में शोभा पाती है, क्योंकि युवावस्था में दृढ़ता, जोश-उत्साह, शक्ति-सामर्थ्य अपने चरम (यौवन) पर होते हैं। युवा में स्थितियों को बदलने की क्षमता होती है।
(ग) ‘बाहर में, अपने घर में’ से आशय अन्दर-बाहर सभी जगह से है। कवि सभी जगह, करुणा, शांति, सुख और प्रेम करने को कह रही है।
(घ) “दे अभयदान पद दलितों को पंक्ति से आशय है, सदियों से शोषित, पद-दलित वर्ग को तुम अपनी वीरता के बल पर भयरहित करके अभयदान दे दो। अर्थात् उन्हें उन निकृष्ट परिस्थितियों से निकालकर सुखी व निर्भय कर दो।

(4) शान्ति नहीं तब तक, जब तक सुखभाग न नर का सम हो,
नहीं किसी को बहुत अधिक हो, नहीं किसी को कम हो।
ऐसी शान्ति राज करती है, तन पर नहीं हृदय पर,
नर के ऊँचे विश्वासों पर, श्रद्धा, भक्ति, प्रणय पर,
न्याय शान्ति का प्रथम न्यास है, जब तक न्यास न आता,
जैसा भी हो महल, शान्ति का, सुदृढ़ नहीं रह पाता।
कृत्रिम शान्ति सशंक आप अपने से ही डरती है।
खड्ग छोड़ विश्वास किसी का कभी नहीं करती है।

Padyansh In Hindi प्रश्न 4.
(क) “शान्ति नहीं तब तक, जब तक सुख भाग ने नर को सम हो”-इस कथन का क्या तात्पर्य है? समझाइए।
(ख) शान्ति को प्रथम न्यास किसे कहा गया है और क्यों?
(ग) “कृत्रिम शान्ति सशंक आप अपने से ही डरती है”- ऐसा क्यों कहा गया है?
(घ) ‘न्याय’ व ‘समानता’ से स्थापित शान्ति का साम्राज्य किन स्थानों व किन भावनाओं पर स्थापित हो जाता है?
उत्तर:
(क) इस अंश का आशय है कि जब तक समाज में सभी को समान सुख-सुविधाएँ नहीं मिलेंगी, भेद-भाव होगा, तब तक स्थायी शान्ति स्थापित नहीं हो सकती।।
(ख) शान्ति का प्रथम न्यास न्याय को बताया गया है। जहाँ सबके साथ न्याय किया जायेगा, पक्षपात नहीं होगा, वहीं शान्ति स्थापित हो सकती है। न्याय शान्ति के लिए पहली शर्त है।
(ग) जहाँ शान्ति स्वाभाविक रूप से, न्याय के आधार पर स्थापित नहीं होगी वह नकली शान्ति होगी। ऐसी शान्ति में मनुष्य कभी निर्भय होकर नहीं रह सकता। ऐसी शान्ति स्थापित करने वाला मन ही मन अशान्ति से भयभीत रहता है।
(घ) जब न्याय और समानता के आधार पर शान्ति स्थापित होती है तो वह मनुष्य के शरीर पर नहीं बल्कि उसके हृदय पर, उसके विश्वासों पर, श्रद्धा और भक्ति पर तथा प्रेमभाव पर राज्य करती है। वह स्थायी होती है।

अपठित पद्यांश RBSE Solution

Apathit Kavyansh In Hindi For Class 12 प्रश्न 5.
(क) ‘ब्रह्मा का अभिलेख’ का क्या आशय है? उसको कौन पढ़ता है ?
(ख) प्रकृति को कौन पराजित करता है ?
(ग) भाग्यवाद को ‘पाप का आवरण’ तथा ‘शोषण का शस्त्र’ कहने का क्या कारण है ?
(घ) “और भोगता उसे……..छल से’–का आशय प्रकट कीजिए।
उत्तर:
(क) भाग्य को ब्रह्मा का लेख माना जाता है। ब्रह्माजी ही जन्म से पूर्व मनुष्य का भाग्य लिख देते हैं। इस मान्यता पर परिश्रम से घबराने वाले लोग ही विश्वास करते हैं। वे ‘जो भाग्य में लिखा है वही मिलेगा’ कहकर परिश्रम से दूर रहते हैं।
(ख) भाग्यवादी लोग कभी प्रकृति पर विजय नहीं पा सकते। परिश्रमी लोग ही प्रकृति की विभिन्न बाधाओं पर विजय प्राप्त करके जीवन में सफलता पाते हैं।
(ग) भाग्य का नाम लेकर लोग दूसरों का शोषण करते हैं। यह पाप है किन्तु अपने इस पाप को लोग भाग्य के पर्दे के पीछे छिपा लेते हैं।
(घ) चालाक लोग दूसरों के साथ छल करते हैं और उनके हक पर स्वयं अधिकार यह कहकर जमा लेते हैं कि यह उनके भाग्य में ही है। इस प्रकार छल-कपट करके, भाग्य का नाम लेकर, चतुर लोग दूसरों के अधिकारों पर डाका डालते हैं।

(6) मैंने झुक नीचे को देखा तो झलकी आशा की रेखा –
विप्रवर स्नान कर चढ़ा सलिल शिव पर दूर्वादल, तंदुल, तिल,
लेकर झोली आए ऊपर देखकर चले तत्पर वानर
द्विज रामभक्त, भक्ति की आश भजते शिव को बारहों मास।
कर रामायण का पारायण जपते हैं श्रीमन्नारायण।
दु:ख पाते जब होते अनाथ, कहते कपियों के जोड़ हाथ।
मेरे पड़ोस के वे सज्जन, करते प्रतिदिन सरिता मज्जन।
झोली से पुए निकाल लिए बढ़ते कपियों के हाथ दिये।
देखा भी नहीं उधर फिर कर जिस ओर रही वह भिक्षु इतर।
चिल्लाया किया दूर दानव, बोला मैं-‘धन्य, श्रेष्ठ मानव’।

Apathit Kavyansh In Hindi For Class 12 With Answers प्रश्न 6.
(क) कवि ने नीचे क्या देखा? उसे उस दृश्य में क्या बात आशाजनक लगी ?
(ख) कवि ने विप्रवर की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ?
(ग) कवि की आशा निराशा में कैसे बदल गई ?
(घ) कवि के कथन ‘धन्य, श्रेष्ठ मानव’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि ने पुल से नीचे देखा तो उसे एक ब्राह्मण सज्जन नदी में स्नान करके शिवजी की पूजा-अर्चना करने के पश्चात् ऊपर आते दिखाई दिए। यह देखकर कवि के मन में आशा उत्पन्न हुई कि वह पुल पर बैठे दीन-दुर्बल भिक्षुक को खाने के लिए कुछ देंगे।
(ख) विप्रवर राम और शिव के भक्त हैं। वह प्रतिदिन नदी में स्नान करके रामायण पढ़ते हैं तथा शिवजी के ऊपर दूब-घास, चावल, तिल और जल चढ़ाते हैं। फिर वह बन्दरों को कुछ खाने के लिए देते हैं।
(ग) कवि को आशा थी कि वह विप्र पुल के ऊपर आकर वहाँ बैठे हुए भिक्षुक को अपनी झोली से निकालकर पुए खाने के लिए। देगा परन्तु उन्होंने भिक्षुक की ओर देखा ही नहीं और झोली से निकालकर पुए वहाँ बैठे बन्दरों को दे दिए।
(घ) कवि ने देखा कि विप्र ने पुए बन्दरों को दे दिए और वहाँ बैठे भूखे, दीन-दुर्बल भिक्षुक की ओर देखा भी नहीं। यह देखकर कवि ने व्यंग्यपूर्वक कहा–‘धन्य हो, हे श्रेष्ठ मनुष्य!’ कवि के इस कथन में धर्म की उस आस्था पर करारा व्यंग्य है जो मनुष्य की अपेक्षा पशुओं को महत्व देती है।

(7) होकर बड़े लड़ेगे यों, यदि कहीं जान मैं लेती,
कुल-कलंक सन्तान सौर में गला घोंट मैं देती।
लोग निपूती कहते पर यह दिन न देखना पड़ता।
मैं न बन्धनों में सड़ती छाती में शूल न गढ़ता।
बैठी यही विसूर रही माँ, नीचों ने घर घाला।
मेरा देश जल रहा, कोई नहीं बुझाने वाला।
जाति धर्म गृहहीन युगों का नंगा-भूखा-प्यासा आज सर्वहारा तू ही है।
एक हमारी आशा ये छल-छंद शोषकों के हैं।
कुत्सित, ओछे, गंदे तेरा खून चूसने को ही ये दंगों के फंदे।
तेरा एका, गुमराहों को राह दिखाने वाला।
मेरा देश जल रहा, कोई नहीं बुझाने वाला।

Apathit Padyansh In Hindi प्रश्न 7.
(क) भारतमाता ने अपनी सन्तानों को कुलकलंक क्यों कहा है ?
(ख) भारतमाता की व्यथा को अपने शब्दों में संक्षेप में लिखिए।
(ग) साम्प्रदायिक दंगे कौन कराता है तथा क्यों कराता है ?
(घ) भारत को इन दंगों से मुक्ति कैसे मिल सकती है ?
उत्तर:
(क) भारतमाता ने अपनी सन्तानों अर्थात् भारतीयों को कुलकलंक कहा है क्योंकि वे आपस में धर्म और जाति के नाम पर लड़ते-झगड़ते हैं।
(ख) भारतमाता देशवासियों के आपस में लड़ने-झगड़ने से दु:खी है। यदि उसे यह पता होता कि उसकी सन्तानें बड़ी होकर आपस में लड़ेंगी तो वह उनका जन्म लेते ही वध कर देती। लोग उसे निपूती कहते परन्तु उसको यह पीड़ा नहीं झेलनी पड़ती। उसको बन्ध इनों में नहीं बँधना पड़ता। दंगों की आग में जलने से भारतमाता बहुत दु:खी है।
(ग) सर्वहारा वर्ग का शोषण करने वाले ही साम्प्रदायिक दंगे करवाते हैं। इन दंगों के माध्यम से वे गरीबों तथा सर्वहारांजनों का खून चूसना चाहते हैं।
(घ) कवि को आशा है कि जाति, धर्म, गृहहीन सर्वहारावर्ग ही अपनी एकता के द्वारा शोषकों के इस षड्यन्त्र का अन्त कर सकता है। भारत की सामान्य गरीब जनता धर्म और जाति की कट्टरता के विरुद्ध है, वह चाहे तो दंगा कराने वालों की योजनाओं को विफल कर सकती है।

अपठित Padyansh कक्षा 12 RBSE Solution

Apathit Kavyansh Class 12 प्रश्न 8.
(क) ‘जलद-तन’ कौन है? राधा उनके दर्शन के लिए किसको प्रेरित कर रही है ?
(ख) राधा ने श्रीकृष्ण की मुख-मुद्रा के बारे में क्या बताया है ?
(ग) श्रीकृष्ण की वाणी और वस्त्रों का वर्णन अपने शब्दों में लिखिए।
(घ) श्रीकृष्ण के कंधे तथा बाँहें कैसी लगती हैं ?
उत्तर:
(क) ‘जलद-तन’ श्रीकृष्ण हैं। बादल के समान साँवला शरीर होने से उनको घनश्याम कहा जाता है। राधा श्रीकृष्ण के पास वायु के माध्यम से अपना संदेश पहुँचाना चाहती है। अत: वह वायु को श्रीकृष्ण के पास जाने की प्रेरणा दे रही है।
(ख) श्रीकृष्ण की मुख-मुद्रा का वर्णन करते हुए राधा वायु से कहती है कि उनका मुख मूर्ति के समान सौम्य है, उनके नेत्रों से प्रकाश की किरणें निकलती हैं, लटकी हुई काली लटें मुख की शोभा को बढ़ाती हैं तथा वह अमृत के समान मधुर और सरल वचन बोलते हैं।
(ग) राधा कहती है कि श्रीकृष्ण की वाणी सरल और अमृत जैसी मधुर है। वह खिले हुए नीलकमल जैसे शरीर पर पीला वस्त्र धारण किया करते हैं।
(घ) श्रीकृष्ण के दोनों कंधे किसी मजबूत बैल के समान अत्यन्त पुष्ट तथा ऊँचे उठे हुए हैं। उनकी दोनों बाँहें हाथी के बच्चे की सँड के समान हैं तथा अत्यन्त शक्तिशाली हैं।

(9)
निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा नीचे लिखे हुए प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट शब्दों में दीजिए
अपठित काव्यांश कक्षा 12 RBSE Solution

प्रश्न 9.
(क) भारतवासियों के प्रति कवि के आक्रोश को क्या कारण है?
(ख) पुण्य का क्षय तथा स्वार्थ का उदय कब होता है?
(ग) कवि ने तलवार को पुण्य की सखी और धर्मपालक क्यों कहा है?
(घ) “असि छोड़………सोता है’ का आशय क्या है?
उत्तर:
(क) भारतवासी लालच में फंसकर अपने पराक्रम तथा वीरता को भुला चुके हैं, फलत: शोषण और दुर्भाग्य उनका पीछा नहीं छोड़ रहा । कवि के मन में इसी कारण उनके प्रति आक्रोश है। वह देशवासियों को अज्ञान की इस नींद से जगाना चाहता है।
(ख) जब किसी देश के लोग अपनी वीरता तथा पराक्रम का त्याग कर देते हैं तो वहाँ पुण्य नष्ट हो जाते हैं तथा स्वार्थ प्रबल हो उठता है।
(ग) तलवार वीरता की सूचक है। जब मन में वीरता का भाव नहीं रहता, पापियों और दुष्टों को दण्ड का भय नहीं रहता, तभी समाज में पाप प्रकट होते हैं और धर्म नष्ट हो जाता है। तलवार ही पुण्यों की तथा धर्म की संरक्षिका है। कवि ने इसी कारण तलवार को पुण्य की सखी और धर्मपालक कहा है।
(घ) जागरूक वीर पुरुष ही धर्म की रक्षा करते हैं। वे तलवार हाथ में उठाकर दुष्टों-अधर्मियों का दमन करते हैं। जब वे अपना कर्तव्य भुलाकर तलवार का परित्याग कर देते हैं तथा कार बन जाते हैं, तो वहाँ पाप की भयानक आग फूट पड़ती है।

Padyansh In Hindi RBSE Solution Class 12
प्रश्न 10.
(क) कौन पुनः जन्म लेकर क्या करना चाहता है ?
(ख) वह दुनिया को क्या सुनाना चाहते हैं ?
(ग) कातरता, चुप्पी या चीखों को सितार पर बजाने का आशय क्या है ?
(घ) ‘प्रार्थना सभा में तुम मुझ पर गोलियाँ चलाओ’-में कवि का संकेत किस ओर है ?
उत्तर:
(क) महात्मा गाँधी पुनः जन्म लेकर भारत में अभावग्रस्त लोगों के बीच जाना तथा उनको सान्त्वना देना चाहते हैं।
(ख) गाँधीजी चाहते हैं कि वह भारत के गरीब लोगों के दु:ख-दर्द को जाने तथा सारी दुनिया के सामने उसको रखें। वह चाहते हैं कि पीड़ितों की यह कराह और दर्द जिसे कोई नहीं सुनता, उसे दुनिया सुने और जाने।।
(ग) गाँधीजी चाहते हैं कि संसार में जहाँ भी कातरता, चुप्पी और दु:खभरी चीखें हैं तथा पराजित लोगों के मन में भरी हुई निराशा की खीझ है, उसमें वह प्यार का मधुर राग छेड़े। वह प्यार के संगीत से लोगों की पीड़ा और निराशा को दूर करना चाहते हैं। तात्पर्य यह है कि लोगों के दु:ख-दर्द और निराशा को वह प्यार भरे व्यवहार से दूर करना चाहते हैं।
(घ) ‘प्रार्थना सभा में तुम मुझ पर गोलियाँ चलाओ’–में कवि का संकेत प्रार्थना-सभा में महात्मा गाँधी के ऊपर चलाई गई गोलियों से है। कवि बताना चाहता है कि गाँधीजी के उपदेश तथा शिक्षा अमर है। उनका प्रेम का संदेश अमिट है। वह मर नहीं सकता।

(11) निम्नांकित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा नीचे लिखे हुए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

अर्जुन देखो, किस तरह कर्ण, सारी सेना पर टूट रहा,
किस तरह पाण्डवों का पौरुष होकर अशंक वह लूट रहा।
देखो, जिस तरफ, उधर उसके ही बाण दिखायी पड़ते हैं,
बस, जिधर सुनो, केवल उसकी हुँकार सुनायी पड़ते हैं।
कैसी करालता ! क्या लाघव! कैसा पौरुष! कैसा प्रहार।
किस गौरव से यह वीर द्विरद कर रही समर-वन में विहार।
व्यूहों पर व्यूह फटे जाते, संग्राम उजड़ता जाता है,
ऐसी तो नहीं कमलवन में भी कुजर धूम मचाता है।
इस पुरुष-सिंह का समर देख मेरे तो हुए निहाल नयन,
कुछ बुरा न मानो, कहता हूँ मैं आज एक चिर गूढ़ वचन।
कर्ण के साथ तेरा बल भी मैं खूब जानता आया हूँ.
मन ही मन तुझसे बड़ा वीर पर, इसे मानता आया हूँ।
औ’ देख चरम वीरता आज तो यही सोचता हूँ मन में।
है भी जो कोई जीत सके, इस अतुल धनुर्धर को रण में ?

प्रश्न 11.
(क) श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कर्ण की किस बात के लिए प्रशंसा की है?
(ख) कर्ण को कवि ने ‘समर-वन’ तथा ‘कमल-वन’ में किसके समान बताया है?
(ग) श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कौन-सा गूढ़ वचन बताया?
(घ) कर्ण के युद्ध कौशल को देखकर कृष्ण उसके बारे में क्या सोच रहे थे?
उत्तर:
(क) श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कर्ण की युद्धभूमि में प्रदर्शित वीरता के लिए प्रशंसा की है कि वह किस तरह पाण्डवों की सेना पर टूट पड़ा था और उनके सारे पुरुषार्थ को चुनौती दे रहा था।
(ख) कर्ण को ‘युद्ध रूपी वन में’ में विहार करते ‘हाथी’ तथा ‘कमल-वन’ में धूम मचाते ‘कुंजर’ के समान बताया गया है।
(ग) श्रीकृष्ण ने अर्जुन से यह गूढ़ वचन बताया कि वह अर्जुन तथा कर्ण दोनों की वीरता को जानते हैं। वह दोनों के बल से परिचित हैं परन्तु मन ही मन वह कर्ण को अर्जुन से भी बड़ा वीर मानते रहे हैं।
(घ) कृष्ण सोच रहे थे कि संसार में क्या कोई और ऐसा वीर है जो कर्ण की बराबरी कर सके? उसे युद्ध में पराजित कर सके?

Apathit Kavyansh In Hindi For Class 12 RBSE Solution

प्रश्न 12.
(क) आज की दुनिया को विचित्र और नवीन कहने का क्या कारण है?
(ख) किसका आदेश कौन अपने सिर पर धारण करता है?
(ग) मनुष्य की निस्सीम प्रगति के बारे में कवि ने क्या कहा है?
(घ) “छूटकर पीछे गया है रह हृदय का देश’ -का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) आज की दुनिया को विचित्र और नवीन कहने का कारण यह है कि आज विज्ञान के आविष्कारों के बल पर मनुष्य ने प्रकृति के ऊपर विजय प्राप्त कर ली है।
(ख) प्रकृति के सभी तत्त्व मनुष्य का आदेश पाकर उसे अपने सिर पर धारण करते हैं। आशय यह है कि आज मनुष्य का आदेश पाकर प्रकृति उसके अनुसार काम करती है।
(ग) कवि ने कहा है कि मनुष्य ने हर क्षेत्र में असीम प्रगति की है। समस्त धरती को उसने अपने पैरों से रौंद डाला है और विशाल आकाश को अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया है। वह धरती-आकाश के समस्त रहस्यों को जान चुका है।
(घ) विज्ञान के कारण मनुष्य ने बुद्धि के क्षेत्र में असीम प्रगति की है। सर्वत्र उसकी बौद्धिक क्षमताओं का बोलबाला है। इस बौद्धिक दौड़ में हृदय या मन का संसार कहीं पीछे छूट गया है अर्थात् मनुष्य के प्रति मनुष्य की सहानुभूति, सद्भाव तथा प्रेम आज उपेक्षित हो गए हैं।

Apathit Kavyansh In Hindi For Class 12 With Answers RBSE Solution

प्रश्न 13.
(क) कवि ने बचपन में क्या किया था? उसका क्या परिणाम हुआ ?
(ख) कवि धरती के किस महत्त्व को नहीं समझ पाया था?
(ग) कवि ने स्वार्थवश क्या भूल की थी?
(घ) “हम जैसा बोयेंगे वैसा ही पायेंगे’ -का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि ने बचपन में धरती में कुछ पैसे बोये थे। वह सोचता था कि इससे जो पेड़ उत्पन्न होगा उस पर पैसों के फल लगेंगे और वह मोटा सेठ बन जायेगा। परन्तु उसका प्रयास व्यर्थ गया। कोई अंकुर नहीं निकला।
(ख) कवि ने अब समझा है कि सही बीज बोने पर धरती उसको फल देने में कोई कमी नहीं रखती।
(ग) कवि ने धनवान बनने के लिए पैसों के बीज बोए थे। वह बिना परिश्रम किए मोटा सेठ बन जाना चाहता था। यह उसकी भूल थी।
(घ) कवि कहता है कि दोष धरती का नहीं है। हम ही ठीक बीज नहीं बोते । हम जैसा बीज धरती में डालते हैं, हमें उसका फल वैसा ही प्राप्त होता है। पैसा बोने पर बीज नहीं उगता। हमें समता, क्षमता और ममता के बीज बोने चाहिए ताकि मानवता की फसलें उगें।

(14) टुक हिर्स हवा को छोड़ मियाँ मत देस बिदेस फिरे मारा।
कज्जाव अजल को लूटे है दिन रात बजाकर नक्कारा।
क्या बधिया भैंसा बैल शुतर क्या गोनी पल्ला सर मारा।
क्या गेहूं चावल माठ मटर क्या आग धुंआ औ अंगारा।
सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा।
गर तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरा भारी है।
ऐ गाफिल तुझसे भी चढ़ता येह और बड़ा व्यापारी है।
क्या शक्कर मिसरी कंद गरी क्या साँभर मीठा खारी है।
क्या दाख मुनक्का सोंठ मिरिच क्या कसर लोंग सुपारी है।
सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा।
जब चलते-चलते रस्ते में यह न तेरी ढल जाएगी।
एक बधिया तेरी मिट्टी पर फिर घास न चरने पाएगी।
यह खेप जो तूने लादी है सब हिस्सों में बँट जाएगी।
धी पूत जमाई बेटा क्या बंजारन पास न आएगी।
सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगी बंजारा॥

प्रश्न 14.
(क) ‘सब ठाठ पड़ा रह जायेगा जब लाद चलेगा बंजारा’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ख) बड़ा व्यापारी किसको बताया गया है तथा गाफिल’ किसको कहा गया है?
(ग) कवि के अनुसार जीवन के अन्तिम समय में कौन-कौन साथ नहीं देते?
(घ) ‘ठाठ’ और ‘बंजारा’ शब्द किसके प्रतीक हैं?
उत्तर:
(क) कवि ने मनुष्य के जीवन के ध्रुव-सत्ये मृत्यु की ओर इन शब्दों में इशारा किया है। जब मृत्यु आती है तो मनुष्य का जीवन भर का संचित सब कुछ यहीं छूट जाता है।
(ख) बड़ा व्यापारी ईश्वर को बताया गया है तथा अपने निश्चित अन्त मृत्यु को भुलाकर दुनियादारी में फंसे इन्सानों को गाफिल कहा गया है।
(ग) कवि के अनुसार जब मृत्यु आती है तो कोई साथ नहीं देता। बेटा-बेटी, जवाँई यहाँ तक कि पत्नी भी उस समय साथ नहीं दे पाती।
(घ) ‘ठाठ’ शब्द संसार का सूचक है। जब मनुष्य दुनिया छोड़कर जाता है तो यह संसार तथा इससे सम्बन्धित चीजें यहीं पर ही छूट जाती हैं। ‘बंजारा’ एक घुमंतू जाति है। बंजारे जगह-जगह भटकते हैं। यहाँ यह शब्द मनुष्य का प्रतीक है। मनुष्य भी इस संसार में बंजारे के समान कुछ समय ही रहता है।

Apathit Padyansh In Hindi RBSE Solution
प्रश्न 15.
(क) राष्ट्र को कंधों पर उठाकर प्रगति की ओर ले जाने में किसका योगदान है?
(ख) ‘उसमें तेरा नाम लिखा है/जीने में बलि होने में’-का क्या आशय है?
(ग) युवक की भुजाओं तथा कंधों की शक्ति के बारे में कवि ने क्या कहा है?
(घ) कवि युवकों को क्या संदेश दे रहा है?
उत्तर:
(क) राष्ट्र को अपने कंधों पर उठाकर प्रगति की ओर ले जाने में उस राष्ट्र के नवयुवकों का योगदान होता है।
(ख) संसार में जो विजय पताका फहरा रही है, वह युवकों की वीरता के फलस्वरूप ही है। युवकों ने ही अपने राष्ट्र के हितार्थ अपना जीवन लगाया है तथा देश की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान भी किया है।
(ग) युवकों की भुजाओं में इतनी शक्ति है कि वह शेर की कमर तोड़ सकती है। उसके कंधे भी अत्यन्त शक्तिशाली हैं। वे शक्ति में किसी पर्वत से भी होड़ ले सकते हैं।
(घ) कवि युवकों को संदेश दे रहा है कि यौवन वह अवस्था है जब युवकों में अपार शक्ति और पराक्रम भरा होता है। इसका उपयोग उनको राष्ट्र की प्रगति तथा उत्थान के लिए करना चाहिए। उनको अपनी शक्ति को रंगरेलियों, मस्ती, छेड़खानी तथा मनमाने अनुचित आचरण में नष्ट नहीं करना चाहिए।

Apathit Kavyansh Class 12 RBSE Solution

प्रश्न 16.
(क) अपनी सन्तान छिनने पर सिंहनी क्या करती है ?
(ख) संतान पर संकट आने पर भेड़ क्या करती है ?
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए-‘पश्चिम की उक्ति नहीं, गीता है, गीता है।’
(घ) कवि भारतीयों को क्या प्रेरणा दे रहा है ?
उत्तर:
(क) अपनी सन्तान छीने जाने पर सिंहनी चुप नहीं बैठती। वह तुरन्त उसकी रक्षा के लिए उद्यत होती है तथा छीनने वाले पर झपट पड़ती है।
(ख) भेड़ निरीह होती है। अपनी सन्तान छिनने पर वह कुछ नहीं कर पाती। वह केवल दु:खी होती है और आँखों से आँसू बहाती रहती है।
(ग) कवि कहता है कि संसार में वही जीवित रहता है जो पराक्रमी तथा सक्षम होता है। यह सिद्धान्त पश्चिम के वैज्ञानिक डार्विन का नहीं है (सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट) । यह तो भारतीय महान् ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता में पहले ही बताया जा चुका है। जीवित रहना है तो हमको शक्तिशाली बनना ही होगा।
(घ) कवि भारतीयों से कायरता, दीनता और भय त्यागकर वीर पराक्रमी बनने के लिए कह रहा है। तुम ब्रह्म हो, यह पूरा ब्रह्माण्ड तुम्हारे पैरों की धूल के बराबर भी नहीं है। तुम अज्ञान की नींद से जागो और अपना सच्चा रूप पहचानो।

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश 9

प्रश्न 17.
(क) कवि ने किसको ने तोड़ने के लिए कहा है ?
(ख) दीवार को किसमें बाधक बताया गया है ? फिर भी उसको बचाना क्यों जरूरी है ?
(ग) इंसान की दुनिया कैसे चलती है ?
(घ) प्रेम की वीणा कब नहीं बजती ?
उत्तर:
(क) कवि ने विश्वास को दीवार कहा है तथा उसे कभी भी न तोड़ने का आग्रह किया है। एक बार टूटने पर दोबारा विश्वास स्थापित करना बहुत कठिन होता है।
(ख) दीवार मनोरथों के पूरा होने में बाधक होती है। वह स्वतन्त्रता को रोकती है। फिर भी बाह्य संकट से सुरक्षा के लिए दीवार की सुरक्षा जरूरी है। बकरी यदि काँटों की बाड़े को खाने लगेगी तो उसको वन्यपशुओं से बचाना संभव नहीं होगा।
(ग) इंसान की दुनिया अर्थात् यह संसार एक-दूसरे पर विश्वास करने से ही चलता है। अविश्वास इस संसार के सुचारु संचालन में सदा बाधक होता है।
(घ) प्रेम वीणा के समान है। वीणा के तारों को ज्यादा केसने पर वे टूट जाते हैं तथा उनसे संगीत के स्वर नहीं निकलते। इसी प्रकार अधिक तर्क-वितर्क, खींचतान तथा परस्पर अविश्वास और शंका प्रेम में बाधक होते हैं। इनसे प्रेम नष्ट हो जाता है।

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश 10

प्रश्न 18.
(क) रिक्शाचालक के पैरों में बिवाइयाँ और गाँठों से भरे घट्टे क्यों पड़ गए थे ?
(ख) कवि ने रिक्शाचालक के पैरों की तुलना किसके पैरों से की है ?
(ग) “घंटों के हिसाब से ढोए जा रहे थे’ से कवि किस कटु सत्य की ओर संकेत करता है ?
(घ) कवि को क्यों लगता है कि वह रिक्शाचालक के बिवाई पड़े पैरों को भूल नहीं पाएगा ?
उत्तर:
(क) रिक्शे के पैडलों पर रबड़ नहीं थी। वे कठोर थे। उनको चलाते-चलाते रिक्शावाले के पैरों में बिवाइयाँ और गाँठों से भरे घट्टे पड़ गए थे।
(ख) कवि ने रिक्शाचालक के पैरों की तुलना तीन कदमों में पूरे संसार को नापने वाले विष्णु के वामन अवतार से की है।
(ग) रिक्शाचालक को सवारियों से जो पैसा मिल रहा था वह स्थान की दूरी के अनुसार नहीं था। सवारियाँ उसको घण्टों के हिसाब से पैसा दे रही थीं। इससे रिक्शाचालक का शोषण हो रहा था तथा उसको परिश्रम के अनुसार मजदूरी नहीं मिल रही थी।
(घ) कवि का मन रिक्शाचालक के शोषण-उत्पीड़न को देखकर करुणा से भर उठा है। उसे लगता है कि वह कभी रिक्शाचालक के बिंवाई-फटे पैरों को भूल नहीं पायेगा।

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश 11

प्रश्न 19.
(क) थके-हारे मन की उलझन क्या थी ?
(ख) अँधेरे में अंधों की भीड़ खुश क्यों थी ?
(ग) भूख-प्यास की विवशता को क्या परामर्श था ?
(घ) संघर्ष में विजय किसे मिलती है ?
उत्तर:
(क) थके-हारे मन की उलझन यह थी कि मनुष्य संघर्ष के निराशापूर्ण वातावरण को मजबूती से झेलता रहे अथवा भ्रष्टाचार के अन्धकार के सामने घुटने टेककर संसार का सुख प्राप्त करे।
(ख) अँधेरे में अन्धों की भीड़ रेवड़ी खाकर अर्थात् अपना स्वार्थ पूरा होने के कारण अत्यन्त खुश थी।
(ग) भूख-प्यास से व्याकुलता और विवशता का परामर्श था कि संघर्ष करने के स्थान पर मनुष्य को अन्धकार के सामने अपना सिर झुकाकर जीवन का सुख लूटना चाहिए।
(घ) संघर्ष में विजय पाने के लिए मन की दृढ़ता आवश्यक है। संघर्ष में वही विजयी होता है जो मन को वश में कर लेता है।

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश 12

प्रश्न 20.
(क) वसुधा को खण्डों में विभाजित कर छोटे-छोटे आँगन बनाने से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ख) कर्म के अजस्र स्रोत फूटने का आशय स्पष्ट कीजिए। (ग) मौलिक विचारधारा कहाँ खो जाती है ?
(घ) कवि स्वतन्त्र भारत को सोता हुआ क्यों कहता है ?
उत्तर:
(क) कवि का अभिप्राय यह है कि वसुधा को प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से छोटे-छोटे प्रान्तों में बाँट दिया जाता है और खंड-खंडे पर एकाधिकार की प्रवृत्ति जागती है।
(ख) कवि की कामना है कि स्वतन्त्र भारत में भारतवासी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नये-नये काम करने में संलग्न हों जिससे देश का उत्थान हो सके।
(ग) मौलिक विचारधारा तुच्छ आचरण की रेत में खो जाती है। तात्पर्य यह है कि जब मनुष्य का आचरण दोषपूर्ण होता है तथा उसके मौलिक विचार भी काम नहीं आते। सविचार भी आचरण में परिवर्तन न होने से बेकार हो जाते हैं।
(घ) स्वतन्त्र भारत के नागरिक अकर्मण्ये, सद्भावना से रहित, दोषपूर्ण विचारों और आचरण से देश की एकता को क्षति पहुँचाने वाले हैं। उन्हें देश के उत्थान और श्रेष्ठ भविष्य की चिन्ता नहीं है। इस कारण कवि ने स्वतन्त्र भारत को सोता हुआ कहा है।

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश 13

प्रश्न 21.
(क) बादल की तुलना किससे की गई है और क्यों ?
(ख) घाटी सोती हुई-सी क्यों जान पड़ती है ? (ग) मनुष्य को सिद्धि प्राप्त कराने के लिए घाटी ने क्या व्यवस्था की ?
(घ) उन पंक्तियों को उद्धृत कीजिए जिसका आशय है- वर्षा के द्वारा मनुष्य का अभिषेक किया जाता है।
उत्तर:
(क) बादल की तुलना आकाश से की गई है क्योंकि बादल पूरी घाटी के ऊपर छाया हुआ है। उसने आकाश के समान ही घाटी को एक छोर से दूसरे छोर तक ढक लिया है।
(ख) बादल छा जाने से घाटी में अन्धकार छा गया है। बादल घाटी को थपकी दे रहा है जिससे घाटी को हल्की-सी झपकी आ रही है।
(ग) घाटी ने अपने ऊपर कुहरे के झीने-से कबूतर के पंखों जैसे पुल बनाए हैं जिससे लोग इन पुलों को पार कर सिद्धि का स्वर्ग पा सकें।
(घ) पंक्ति – ऐसे ही मानव को घाटी बहलाती है,
बरसा कर पानी अभिसिंचन करवाती है।

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश 14

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश 15

प्रश्न 22.
(क) फूल, बौर तथा कोयल-कण्ठ के प्रति कवि और उसकी प्रेयसी के दृष्टिकोण में क्या भिन्नता है?
(ख) सौन्दर्य के प्रति उपयोगितावादी दृष्टिकोण रखने वालों का जीवन अंततः कैसा हो जाता है?
(ग) “जीवन भर की यातना’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(घ) कविता के अनुसार हँसी, गंध और गीत सब मुक्ति में ही हैं, कैसे?
उत्तर:
(क) फूल, बौर तथा कोयल-कण्ठ के सम्बन्ध में कवि और उसकी प्रेयसी के दृष्टिकोण में बहुत भिन्नता है। कवि फूल, बौर और कोयल को मुक्त रखकर उनसे आनन्द प्राप्त करना चाहता है लेकिन उसकी प्रेयसी का इन सभी के प्रति उपयोगितावादी दृष्टिकोण है। वह उनकी स्वतन्त्रता छीनकर उन्हें अपने उपयोग में लाकर प्रसन्न होती है।
(ख) सौन्दर्य के प्रति उपयोगितावादी दृष्टिकोण रखने वालों का जीवन निराशा और कष्टपूर्ण हो जाता है। उस पर एकाधिकार का विचार सौन्दर्य को तो मिटाता ही है, समाज में संघर्ष भी उत्पन्न करता है। जीवन का आनन्द और प्रसन्नता समाप्त हो जाती है।
(ग) जीवनभर की यातना से कवि का अभिप्राय प्राकृतिक सौन्दर्य को उपयोगितावादी दृष्टिकोण से देखकर अपना पूरा जीवन आनन्द से वंचित रहकर गुजारने से है। यह दृष्टिकोण मनुष्य के पूरे जीवन को दु:खी बना देता है। उसकी प्रसन्नता, उत्साह, हँसी सब छिन जाती हैं।
(घ) प्रकृति को बन्धन में बाँधना उचित नहीं है। उसके मुक्त सौन्दर्य का दर्शन ही जीवन का आनन्द है। फूल के खिलने, बौर के महकने तथा कोयल के गाने का सच्चा आनन्द उनको मुक्त रहने देकर ही प्राप्त किया जा सकता है।

(23) मत रोक मुझे भयभीत न करे, मैं सदा कटीली राह चला।
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।
फिर कहाँ डरा पाएगा यह पगले! जर्जर संसार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर, आता रह-रह कर प्यार मुझे।
मैं हूँ अपने मन का राजा, इस पार रहूँ उस पार चलें।
मैं मस्त खिलाड़ी हैं ऐसी जी चाहे जीतू हार चलें॥
मैं हूँ अनाथ, अविराम अथक, बंधन मुझको स्वीकार नहीं।
मैं नहीं अरे ऐसा राही, जो बेबस-सा मने मारे चलें॥
कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की।
कब लुभा सकी मुझको बरबस, मधु-मस्त फुहारें सावन की।
जो मचल उठे अनजाने ही अरमान नहीं मेरे ऐसे –
राहों को समझा लेता हूँ सब बात सदा अपने मन की।
इन उठती-गिरती लहरों को कर लेने दो श्रृंगार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रह कर प्यार मुझे ॥

प्रश्न 23.
(क) अपने मन का राजा’ होने के दो लक्षण कविता से चुनकर लिखिए।
(ख) किस पंक्ति का आशय है-कवि पतझड़ को भी वसन्त मान लेता है।
(ग) कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-‘कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की।’
उत्तर:
(क) अपने मन का राजा होने के दो लक्षण निम्नलिखित हैं –

  1. वह अपने मन का स्वामी है। वह अपनी मर्जी के अनुसार काम करने को स्वतन्त्र है।
  2. वह चाहे तो इस पार रह सकता है और यदि वह उस पार जाना चाहता है, तो जा सकता है।

(ख) इस कविता की निम्नलिखित पंक्ति का आशय है कि कवि पतझड़ को भी वसन्त मान लेता है –
‘पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।’
(ग) कवि निर्भीक है। वह संसार की कठिनाइयों का सामना करने से नहीं डरता। वह स्वयं निर्णय करता है कि उसे किन परिस्थितियों में क्या करना है। उसको कोई बंधन स्वीकार नहीं। वह किसी नारी तथा प्रकृति के सौन्दर्य के आकर्षण में नहीं हँसता। वह विवेकशील, कर्मठ और स्वतन्त्रचेता है।
(घ) कवि अपने कर्तव्य-पथ पर अडिग है। उसे किसी नारी के काले मदभरे नेत्र अपनी ओर आकर्षित कर पथभ्रष्ट नहीं कर सके हैं अथवा वर्षा ऋतु का मनमोहक दृश्य उसे पथ से विमुख नहीं कर पाया।

(24) क्या रोकेंगे प्रलय मेघ ये, क्या विद्युत्-घन के नर्तन,
मुझे न साथी रोक सकेगे, सागर के गर्जन-तर्जन।
मैं अविराम पथिक अलबेला रुके न मेरे कभी चरण,
शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने मित्र चयन।
मैं विपदाओं में मुसकाता नव आशा के दीप लिए,
फिर मुझको क्या रोक सकेंगे जीवन के उत्थान-पतन।
में अटका कब, कब विचलित में, सतत डगर मेरी संबल,
रोक सकी पगले कब मुझको यह युग की प्राचीर निबल।
आँधी हो, ओले-वर्षा हों, राह सुपरिचित है मेरी,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे ये जग के खंडन-मंडन।
मुझे डरा पाए केबे अंधड़, ज्वालामुखियों के कपन,
मुझे पथिक कब रोक सके हैं अग्निशिखाओं के नर्तन।
मैं बढ़ता अविराम निरन्तर तन-मन में उन्माद लिए,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत् नर्तन।

प्रश्न 24.
(क) उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर कवि के स्वभाव की किन्हीं दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ख) कविता में आए मेघ, विद्युत, सागर की गर्जना और ज्वालामुखी किनके प्रतीक हैं? कवि ने उनका संयोजन यहाँ क्यों किया है?
(ग) “शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने मित्र चयन’-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(घ) “युग की प्राचीर’ का क्या तात्पर्य है? उसे कमजोर क्यों बताया गया है?
उत्तर:
(क) कवि के स्वभाव की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. कवि निरन्तर चलने में विश्वास करता है। वह मानता है कि गति ही जीवन है।
  2. कवि कठिनाइयों से विचलित नहीं होता। वह निरन्तर संघर्ष करते हुए साहस और दृढ़ता का परिचय देता है और उन पर विजय पाता है।

(ख) कविता में आए मेघ, विद्युत, सागर की गर्जना और ज्वालामुखी जीवन में आने वाली कठिनाइयों तथा मार्ग की बाधाओं के प्रतीक हैं। कवि ने उनका संयोजन यहाँ यह प्रकट करने के लिए किया है कि वह पथ की बाधाओं से डरता नहीं, वह निर्भीकतापूर्वक अविचलित होकर उनसे टक्कर लेता है और आगे बढ़ता है।
(ग) कवि जीवन में कभी कठिनाइयों से नहीं डरा। उसने कभी भी संघर्ष का पथ त्यागकर सुविधाभोगी जीवन-शैली स्वीकार नहीं की।
(घ) “युग की प्राचीर’-जीवन में समय-समय पर आने वाली कठिनाइयाँ अथवा मनुष्य की प्रगति को रोकने वाली सामाजिक रीतियाँ और परम्पराएँ । युग की दीवार को कमजोर कहने का आशय यह है कि जीवन की बाधाएँ तथा कठिनाइयाँ कवि का साहस भंग नहीं कर सकर्ती।

(25) जब-जब बाँहें झुकीं मेघ की, धरती का तन-मन ललका है,
जब-जब मैं गुजरा पनघट से, पनिहारिन का घट छलका है।
सुन बाँसुरिया सदा-सदा से हर बेसुध राधा बहकी है,
मेघदूत को देख यक्ष की सुधियों में केसर महकी है।
क्या अपराध किसी का है फिर, क्या कमजोरी कहूँ किसी की,
जब-जब रंग जमा महफिल में जोश रुका कब पायल का है।
जब-जब मन में भाव उमड़ते, प्रणय श्लोक अवतीर्ण हुए हैं,
जब-जब प्यास जगी पत्थर में, निर्झर स्रोत विकीर्ण हुए हैं।
जब-जब पूँजी लोकगीत की धुन अथवा आल्हा की कड़ियाँ
खेतों पर यौवन लहराया, रूप गुजरिया का दमका हैं।

प्रश्न 25.
(क) मेघों के झुकने का धरती पर क्या प्रभाव पड़ता है तथा क्यों ?
(ख) राधा कौन थी? उसे बेसुध क्यों कहा गया है ?
(ग) मन के भावों और प्रेम गीतों का परस्पर क्या सम्बन्ध है ? इनमें कौन किस पर आश्रित है ?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-खेतों पर यौवन लहराया, रूप गुजरिया का दमका है।’
उत्तर:
(क) मेघों के झुकने पर धरती की तन-मन ललक उठता है अर्थात् आकाश में पानी बरसाते हुए बादलों के छा जाने से पृथ्वी वर्षा के जल में भीगने के लिए लालायित हो उठती है, क्योंकि उसको वर्षाकालीन बादलों के आने का इंतजार रहता है जिससे फुहारों में भीगकर अपने तप्त तन को शीतल कर सके।
(ख) राधा, श्रीकृष्ण की प्रेयसी थी। वह श्रीकृष्ण के बाँसुरी-वादन पर मुग्ध थी। वह निरन्तर श्रीकृष्ण के प्रेम में खोई रहती थी। उनके ध्यान में मग्न होने के कारण राधा को बेसुध कहा गया है।
(ग) मन के भावों से प्रेरित और उत्साहित होकर ही कवि काव्य-रचना करता है। जब मन में प्रेम के भाव उमड़ते हैं तो कवि प्रेम के गीत रचता है। इनमें प्रेमगीत मन के भावों पर आश्रित हैं।
(घ) इस पंक्ति का आशय यह है कि जब भी गाँवों में लोकगीत या आल्हा गाए जाते हैं तो खेतों में कार्य करते किसान यौवन की मस्ती से भर जाते हैं और ग्रामीण युवतियाँ सुन्दर लगने लगती हैं।

(26) पथ बंद है पीछे अचल पीठ पर धक्का प्रबल।
मत सोच बढ़ चल तू अभय, ले बाहु में उत्साह-बल।
जीवन-समर में सैनिको, सम्भव असम्भव को करो।
पथ-पथ निमन्त्रण दे रहा आगे कदम, आगे कदम।
ओ बैठने वाले तुझे देगा न कोई बैठने।।
पल-पल समर नूतन सुमन-शैया न देगा लेटने।
आराम सम्भव है नहीं जीवन सतत् संग्राम है।
बढ़ चल मुसाफिर धर कदम, आगे, आगे कदम।
ऊँचे हिमानी श्रृंग पर, अंगार के भु-भंग पर
तीखे करारे खंग पर, आरम्भ कर अद्भुत सफर
औ नौजवाँ, निर्माण के पथ मोड़ दे, पथ खोल दे
जय-हार में बढ़ता रहे आगे कदम, आगे कदम।

प्रश्न 26.
(क) इस काव्यांश में कवि किसे प्रेरणा दे रहा है और क्या ?
(ख) अद्भुत सफर की अद्भुतता क्या है ?
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए-जीवन सतत् संग्राम है।
(घ) कविता का केन्द्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए।
उत्तर:
(क) इस काव्यांश में कवि युवकों को प्रेरणा दे रहा है कि वे मार्ग की कठिनाइयों से विचलित न होकर निरन्तर आगे बढ़ते रहें।
(ख) यह सफर अद्भुत है। इसकी विशेषता यह है कि यह बर्फ से ढंके पहाड़ों पर, ज्वालामुखी के गर्म लावे पर तथा पैनी तेज तलवार पर होकर आगे जाता है।
(ग) जीवन एक निरन्तर चलने वाले युद्ध की तरह है। मनुष्य का जीवन आने वाली कठिनाइयों तथा बाधाओं से निरन्तर संघर्ष करते हुए व्यतीत होता है। इसमें विश्राम को कोई अवसर नहीं है।
(घ) जीवन एक युद्ध की तरह है। उसमें विश्राम को अवसर नहीं है। युवकों को चाहिए कि वे मन में उत्साह पैदा करें तथा मार्ग की बाधाओं को कुचलकर आगे बढ़े। उन्हें असम्भव को सम्भव करके नवनिर्माण का मार्ग खोलना है।

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश 16

प्रश्न 27.
(क) मनुष्य पुरुषार्थ से क्या-क्या कर सकता है ?
(ख) “सफलता वर-तुल्य वरो उठो’-पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(ग) अपुरुषार्थ भयंकर पाप है-कैसे ?
(घ) काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(क) पुरुष पुरुषार्थ के माध्यम से परमार्थ कर सकता है। वह स्वार्थ भी पूरा कर सकता है। पुरुषार्थ द्वारा मनुष्य संसार को सुख-शान्ति दे सकता है।
(ख) सफलता एक वरदान के समान है। उसे प्राप्त करने के लिए कर्म करना आवश्यक है। बिना श्रम के जीवन में सफलता प्राप्त नहीं होती। अत: पुरुषार्थ द्वारा सफलता प्राप्त करो।
(ग) अपुरुषार्थ अर्थात् पौरुषहीनता एक भयंकर पाप है क्योंकि पुरुषार्थ के बिना जीवन में सफलता नहीं मिलती। अपुरुषार्थ से न यश मिलता है न पराक्रम। पुरुषार्थहीन मनुष्य कीड़े-मकोड़ों के समान जीता-मरता है।
(घ) काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक-पुरुष हो, पुरुषार्थ करो’

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश 17

प्रश्न 28.
(क) असहायों से खेल कौन कर रहा है ? आशा को अफीम क्यों कहा है ?
(ख) सदियों की कुर्बानी यदि यों बेमोल बिकी’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) देश के विकास के लिए कवि किस बात को आवश्यक मानता है ?
(घ) कविता की पंक्तियों में ऐसी घड़ियाँ’ से किस ओर संकेत है ?
उत्तर:
(क) असहाय भारत की जनता गरीब है। भारत के नेता और शासक उसे विकास और उन्नति की आशा दिलाकर बहका रहे हैं। वे उसकी भावनाओं से खेल रहे हैं। अफीम के नशे में मनुष्य वास्तविकता को भूल जाता है। उत्तम भविष्य की आशा दिलाकर वास्तविक बुरी दशा से जनता का ध्यान हटाया जा रहा है।
(ख) देश को स्वाधीनता अनेक त्याग-बलिदानों के बाद मिली है। अब जनता चाहती है कि उसको उन्नति और विकास का अवसर मिले। परन्तु नेताओं के भ्रष्टाचार ने उनको इससे वंचित कर दिया है। इससे उनमें गहरी निराशा पैदा हो सकती है।
(ग) विकास के लिए आवश्यक है कि जनता का देश के नेतृत्व और शासेन में विश्वास बना रहे। शासक-प्रशासक कोरी आशाओं और सपनों से जनता को न बहलाएँ बल्कि समय रहते विकास की योजनाएँ कार्यान्वित करें।
(घ) ‘ऐसी घड़ियों’ में भारत की स्वाधीनता के पश्चात् देश के विकास का अवसर प्राप्त होने की ओर संकेत है। सैकड़ों वर्षों की पराधीनता के बाद देश को स्वतन्त्रता मिली है तथा विकास करने का अवसर प्राप्त हुआ है।

(29) आओ, मिलें सब देश बांधव हार बनकर देश के,
साधक बनें, सच प्रेम से सुख शान्तिमय उद्देश्य के।
क्या साम्प्रदायिक भेद से है ऐक्य मिट सकता अहो,
बनती नहीं क्या एक माला विविध सुमनों की कहो।
रक्खो परस्पर मेल, मन से छोड़कर अविवेकता,
मन का मिलन ही मिलन है, होती उसी से एकता।
सब बैर और विरोध का बल-बोध से वारण करो।
है भिन्नता में खिन्नता ही, एकता धारण करो।
है कार्य ऐसा कौन-सा साधे न जिसको एकता,
देती नहीं अद्भुत अलौकिक शक्ति किसको एकता।
दो एक एकादश हुए किसने नहीं देखे सुने,
हाँ, शून्य के भी योग से हैं अंक होते दश गुने।

प्रश्न 29.
(क) कवि ने भारत की साम्प्रदायिक विविधता की तुलना किससे की है ?
(ख) एकता के लिए कवि ने कौन-सी बातें आवश्यक बताई हैं?
(ग) “दो एक एकादश हुए’ से कवि का क्या आशय है ?
(घ) कवि ने एकता की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?
उत्तर:
(क) कवि ने भारत की साम्प्रदायिक विविधता की तुलना अनेक प्रकार के फूलों से बनी हुई माला से की है। जिस प्रकार अनेक प्रकार के फूलों से एक माला बन सकती है उसी प्रकार भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के अनुयायी भी एकता से रह सकते हैं।
(ख) एकला के लिए कवि ने अज्ञान त्यागकर मन से मन को मिलाना तथा सब प्रकार के बैर और विरोध को बल और विवेक द्वारा त्याग देना आवश्यक बताया है।
(ग) “दो एक एकादश हुए’ में कवि ने’ ‘ एक और एक मिलकर ग्यारह होते हैं’ मुहावरे का काव्यात्मक प्रयोग किया है। इसका आशय है- एकता से देश और समाज की शक्ति बढ़ती है।
(घ) एकता से हर काम में सफलता मिलती है। मन की खिन्नता दूर हो जाती है, एकता से एक अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है। एक और एक मिलकर ग्यारह के बराबर हो सकते हैं।

(30) तुम भरे-पुरे, तुम हृष्ट-पुष्ट, ऐ, तुम समर्थ कर्ता- हर्ता !
तुमने देखा है क्या बोलो हिलता-ढुलता कंकाल एक ?
वह था उसका ही खेत, जिसे उसने उन पिछले चार माह,
अपने शोणित को सुखा-सुखा भर-भर कर अपनी विवश आह!
तैयार किया था औ’ घर में
थी रही रुग्ण पली कराह ।
उसके थे बच्चे तीन, जिन्हें माँ-बाप का मिला प्यार न था,
जो थे जीवन के व्यंग्य, जिन्हें मरने का भी अधिकार न था.
थे क्षुधाग्रस्त बिलबिला रहे, मानो वे मोरी के कीड़े,
वे निपट घिनौने महापतित, बौने, कुरूप, टेढ़े-मेढ़े !
उसका कुटुम्ब था भरा-पुरा आहों से हाहाकारों से;
फाकों से लड़-लड़कर प्रतिदिन, घुट-घुटकर अत्याचारों से।
तैयार किया था उसने ही
अपना छोटा-सा एक खेत !

प्रश्न 30.
(क) ‘कवि ने हृष्ट-पुष्ट समर्थ कर्ता-हर्ता’ किन्हें कहा है? ‘हिलता-ढुलता कंकाल’ में किसकी ओर संकेत है ?
(ख) किसान ने अपने खेत को किस प्रकार तैयार किया था ?
(ग) कवि ने किसान की पत्नी तथा उसके बच्चों की दशा का क्या वर्णन इन पंक्तियों में किया है ?
(घ) ‘उसका कुटुम्ब था भरा-पूरा आहों से हाहाकारों से’ कहने का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर:
(क) कवि ने ‘हृष्ट-पुष्ट समर्थ कर्ता-हर्ता’ पूँजीपतियों, जमींदारों तथा साहूकारों को कहा है। हिलता दुलता कंकाल’ में कवि ने भारत के दीन-दुर्बल किसान की ओर संकेत किया है।
(ख) किसान ने अपने खेत को पिछले चार महीने मेहनत करके तैयार किया था। उसने खेत में गेहूं की फसल उगाई थी और भूख-प्यास से आह भरते हुए अपना खून सुखाकर उस फसल को तैयार किया था। उसने अपनी बीमार पत्नी तथा भूखे-प्यासे बच्चों पर भी ध्यान नहीं दिया था।
(ग) किसान की पत्नी बीमार थी। किसान के पास उसके इलाज के लिए न पैसे थे न समय। उसके तीन बच्चों को माँ-बाप का प्यार भी नहीं मिला था। वे भूख-प्यास से नाली के कीड़ों की तरह बिलबिला रहे थे। वे घिनौने, बौने, कुरूप और टेढ़े-मेढ़े थे। वह जी नहीं पा रहे थे। उनको मरने का भी हक नहीं था।
(घ) किसान का कुटुम्ब हाहाकारों तथा आहों से भरापूरा था। आशय यह है कि किसान के परिवार के सभी सदस्य भूख-प्यास तथा शोषण से व्याकुल थे। उनके मुँह से सदा आहें निकलती थीं। ‘हाहाकारों तथा आहों से भरापूरा कुटुम्ब’ में कवि ने पैना व्यंग्य किया है।

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश 18

प्रश्न 31.
(क) इस कविता के आधार पर भारतमाता के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
(ख) कश्मीर पर भारतीयों को अभिमान क्यों है ?
(ग) भारत के सांस्कृतिक विकास में किस-किस का योगदान है ?
(घ) जो थे असि घाटों पर लेटे’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) भारतमाता के माथे पर हिमालयरूपी मुकुट है। उसने हरियाली के रूप में धानी चादर ओढ़ रखी है। समुद्र उसकी चरण-वन्दना करता है। उसके हृदय में देवताओं का निवास है।
(ख) कश्मीर धरती का स्वर्ग है। उसकी सुन्दरता अनुपम है। वहाँ अनेक मेवे तथा केसर पैदा होती है। भारतीयों को इस कारण उस पर गर्व है।
(ग) भारत के सांस्कृतिक विकास में राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध, महावीर, गुरुनानक, आर्य दयानन्द तथा स्वामी विवेकानन्द जैसे महापुरुषों का योगदान है।
(घ) इस काव्यांश का आशय है कि राजा प्रताप और वीर शिवाजी ने शत्रुओं की तलवारों का निर्भीकता से सामना किया था। उनका जीवन तलवार की धार पर चलने के समान वीरता से परिपूर्ण था।

(32) नए युग में विचारों की नई गंगा बहाओ तुम,
कि सब कुछ जो बदल दे ऐसे तूफाँ में नहाओ तुम।
अगर तुम ठान लो तो आँधियों को मोड़ सकते हो,
अगर तुम ठान लो तारे गगन के तोड़ सकते हो
अगर तुम ठान लो तो विश्व के इतिहास में अपने-
सुयश का एक नव अध्याय भी तुम जोड़ सकते हो,
तुम्हारे बाहुबल पर विश्व को भारी भरोसा है –
उसी विश्वास को फिर आज जन-जन में जगाओ तुम।
पसीना तुम अगर इस में अपना मिला दोगे,
करोड़ों दीन-हीनों को नया जीवन दिला दोगे।
तुम्हारी देह के श्रम-सीकरों में शक्ति है इतनी
कहीं भी धूल में तुम फूल सोने के खिला दोगे।
नया जीवन तुम्हारे हाथ का हल्का इशारा है।
इशारा कर वही इस देश को फिर लहलहाओ तुम।

प्रश्न 32.
(क) यदि भारतीय नवयुवक दृढ़ निश्चय कर लें तो क्या-क्या कर सकते हैं ?
(ख) नवयुवकों से क्या-क्या करने का आग्रह किया जा रहा है ?
(ग) युवक यदि परिश्रम करे तो क्या लाभ होगा ?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए –
कहीं भी धूल में तुम फूल सोने के खिला दोगे।
उत्तर:
(क) भारतीय युवक यदि दृढ़ निश्चय कर लें तो आँधियों को मोड़ सकते हैं, आकाश के तारे तोड़ सकते हैं तथा संसार के इतिहास में यशस्वी लोगों में अपना नाम लिखा सकते हैं।
(ख) नवयुवकों से आग्रह किया जा रहा है कि वे विचारों की नई गंगा बहा दें तथा ऐसा तूफान उठायें जो सब कुछ बदल दे। वे अपनी शक्ति पर संसार के विश्वास को और अधिक मजबूत करें।
(ग) युवक यदि परिश्रम करें तो करोड़ों दीन-हीनों को नया जीवन दे सकते हैं। वे अपने पसीने से सींचकर धूल में भी सोने के फूल खिला सकते हैं।
(घ) ‘कहीं भी धूल में तुम फूल सोने के खिला दोगे-‘ का आशय है कि नवयुवकों में अपार शक्ति होती है। वह जिस स्थान पर रहकर श्रम करते हैं, वह स्थान सफलता और सम्पन्नता से भर उठता है। वे अपने श्रम से अनुपजाऊ भूमि में भी लाभकारी फसलें पैदा कर सकते हैं?

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश 19

प्रश्न 33.
(क) आज देश के सामने कौन सी विकट समस्या है?
(ख) ‘आज सब जलयान दागी हो गए’ से कवि का क्या आशय है?
(ग) शुभ्र शिखरों पर कालिमा चढ़ने में कवि ने क्या संकेत किया है?
(घ) “नाव टूटी’ का प्रतीकार्थ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) आज देश के सामने देश के नेताओं और मार्गदर्शकों के भ्रष्ट हो जाने की विकट समस्या है। जनता के सामने कोई ऐसा आदर्श पुरुष नहीं जिसे सामने रखकर वह सही मार्ग चुन सके।
(ख) कवि को इस पंक्ति से आशय है कि सभी राजनीतिक दलों में भ्रष्ट और अपराधी लोग जमे हुए हैं। ऐसे में देश को समस्याओं से पार लगाने का दायित्व वह किसे सौंपे ?
(ग) कवि ने संकेत किया है कि ऊँचे-ऊँचे पदों पर आसीन और महिमा मण्डित लोग भी दागी हो रहे हैं। सब पर कोई न कोई आरोप लगा है।
(घ) ‘नाव टूटी’ का प्रतीकार्थ है-निराश हृदय लोग या अपर्याप्त साधन जिनसे समस्याओं का हल सम्भव नहीं है। टूटी नौका से समुद्र पार नहीं किया जा सकता।

RBSE Class 12 Hindi अपठित पद्यांश 20

प्रश्न 34.
(क) कवि ने सड़कों, राजमार्गों और हाइवे को क्या कहा है और क्यों?
(ख) सड़कों पर रोज कौन बिलखते हैं?
(ग) “त्वरा का, रफ्तार का मूढ़ उन्माद’ से कवि का आशय क्या है?
(घ) कवि ने प्रगति और विकास पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर:
(क) कवि ने सड़कों, राजमार्गों और हाइवे को खूनी, कातिल और रक्त का प्यासा कहा है क्योंकि इन पर रोज वाहनों की दुर्घटनाएँ होती हैं जिसमें निर्दोष लोग मारे जाते हैं।
(ख) सड़कों पर विधवा हो गई पत्नियाँ, माताएँ, पिता, भाई और मित्र बिलखते नजर आते हैं क्योंकि इनके प्रियजनों की दुर्घटनाओं में मृत्यु हो जाती है।
(ग) कवि का आशय है कि सड़कों पर रोज भीषण और हृदय विदारक दुर्घटनाएँ घटित होती हैं फिर भी वाहन चालक तेज रफ्तार और असावधानी से वाहन चलाते रहते हैं।
(घ) कवि ने प्रगति और विकास के नाम पर लोगों के इतनी संख्या में रोज मारे जाने पर व्यंग्य किया है। प्रगति और विकास से तो लोगों को सुखी और सुरक्षित होना चाहिए न कि अकाल मृत्यु का ग्रास बनना चाहिए।

(35) पावस ऋतु थी पर्वत प्रदेश,
पल पल परिवर्तित प्रकृति वेश।
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार बार
नीचे जल में निज महाकार,
जिसके चरणों में पड़ा ताल
दर्पण सा फैला है विशाल
गिरि के गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों से मुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर।

प्रश्न 35.
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) पर्वत का आकार कैसा है ? वह अपने सहस्र नेत्रों से क्या देख रहा है?
(ग) पर्वत के चरणों में क्या पड़ा है ? किसके समान लग रहा है ?
(घ) रेखांकित पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक—‘पर्वत–प्रदेश की सुन्दरता ।’
(ख) पर्वत का आकार मेखलाकार है । वह अपने हजार नेत्रों से नीचे फैले जन्न की परछाईं में अपने महान् आकार को देख रहा है।
(ग) पर्वत के चरणों में विशाल तालाब जल से भरा हुआ लहरा रहा है, जो पर्वत मे बहने वाले झरनों से ही बना है।
(घ) भावार्थ-कवि पहाड़ से बहने वाले निर्झरों का वर्णन करते हुए कहता है कि झरने अपने झागों से भरे जल के साथ पहाड़ से नीचे झरते हैं तो ऐसा लगता है मानो वे मोतियों की लड़ियों से बनी सुंदर मालाएँ हों।

We hope the RBSE Solutions for Class 12 Hindi अपठित बोध अपठित पद्यांश will help you. If you have any query regarding Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi अपठित बोध अपठित पद्यांश, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.