RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 5 उपनिवेशवादी आक्रमण

Rajasthan Board RBSE Class 12 History Chapter 5 उपनिवेशवादी आक्रमण

RBSE Class 12 History Chapter 5 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 History Chapter 5 बहुचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रथम यूरोपीय जिसने यूरोप से भारत के लिए सीधे समुद्री मार्ग की खोज की वह था।
(अ) जमोरिन
(ब) कोलम्बस
(स) टामस रो
(द) वास्को डी गामा।

प्रश्न 2.
प्लासी का युद्ध लड़ा गया था।
(अ) 1764
(ब) 1857
(स) 1864
(द) 1757.

प्रश्न 3.
बंगाल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को 1717 में किस मुगल शासक द्वारा विशेष सुविधाएँ दी गईं।
(अ) जहाँगीर
(ब) शाहआलम
(स) फरुखसियर
(द) बहादुर शाह।

प्रश्न 4.
पंजाब में सिख मिसल सुकरचकिया का सम्बन्ध था।
(अ) गुलाब सिंह से
(ब) रणजीत सिंह से
(स) दिलीप सिंह से
(द) रानी जिन्दा से।

प्रश्न 5.
1857 की क्रान्ति को पूर्व योजना के अनुसार किस समय में एक साथ विद्रोह शुरू करना तय किया गया था।
(अ) 31 मई, 1857
(ब) 10 मई, 1857
(स) 31 जनवरी, 1857
(द) 10 जून, 1857.

प्रश्न 6.
10 मई, 1857 को स्वाधीनता संग्राम की शुरूआत कहाँ से हुई।
(अ) मेरठ
(ब) दिल्ली
(स) बैरकपुर
(द) कानपुर।

प्रश्न 7.
गोद निषेध नीति लागू करने वाला गवर्नर जनरल था।
(अ) लार्ड डलहौजी
(ब) वारेन हैस्टिग्ज
(स) लार्ड वेलेजली
(द) कार्नवालिस।

प्रश्न 8.
दक्षिण भारत में 1857 के संग्राम को गति देने वाला नायक था।
(अ) कुंवर सिंह
(ब) रंगा बापू जी गुप्ते
(स) तात्या टोपे
(द) कुशाल सिंह।

उत्तरमाला:
1. (द)
2. (द)
3. (स)
4. (ब)
5. (अ)
6. (अ)
7. (अ)
8. (ब)।

RBSE Class 12 History Chapter 5 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1764 में बक्सर का युद्ध किन किन के मध्य लड़ा गया?
उत्तर:
1764 ई. में बक्सर का युद्ध अंग्रेजों एवं तीन शासकों की सम्मिलित सेनाओं (बंगाल को नवाब मीर कासिम, अवध का नवाब शुजाउद्दौला व मुगल सम्राट शाह आलम) के मध्य हुआ। इस युद्ध में अंग्रेज विजयी हुए।

प्रश्न 2.
नीले पानी की नीति किसे कहा जाता है?
उत्तर:
भारत में पुर्तगाली अधिकृत प्रदेशों के वायसराय डी. अल्मेडा ने अपनी समुद्री सैन्य शक्ति को बढ़ाया जिसे नीले पानी की नीति कहा जाता है।

प्रश्न 3.
जाट जाति का प्लेटो किसे कहा जाता है?
उत्तर:
राजा सूरजमल को जाट जाति का प्लेटो कहा जाता है।

प्रश्न 4.
पानीपत का तृतीय युद्ध कब व किन के मध्य लड़ा गया?
उत्तर:
पानीपत का तृतीय युद्ध अहमदशाह अब्दाली व मराठों के मध्य 14 जनवरी, 1761 ई. को लड़ा गया।

प्रश्न 5.
प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध की समाप्ति किस सन्धि के द्वारा हुई?
उत्तर:
प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध की समाप्ति सालबाई की सन्धि (1782) के द्वारा हुई।

प्रश्न 6.
प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध में हैदर अली के विरुद्ध बने त्रिगुट में कौन – कौन शामिल थे?
उत्तर:
प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध में हैदर अली के विरुद्ध बने त्रिगुट में अंग्रेज, मराठे एवं निजाम शामिल थे।

प्रश्न 7.
व्यपगत नीति किस गवर्नर जनरल के द्वारा लागू की गई?
उत्तर:
व्यपगत नीति गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी के द्वारा लागू की गई।

प्रश्न 8.
ब्रिटिश राज्य में अवध राज्य का विलय किस आधार पर किया गया था?
उत्तर:
ब्रिटिश राज्य में अवध राज्य का विलय कुशासन व भ्रष्टाचार के आरोप के आधार पर किया गया था।

प्रश्न 9.
1857 से पूर्व अंग्रेजों के विरुद्ध होने वाले दो प्रमुख विद्रोहों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. 1855 – 56 में सन्थालों का विद्रोह।
  2. 1842 ई. में फिरोजपुर में 34र्वी रेजीमेन्ट का विद्रोह।

प्रश्न 10.
1857 ई. का संघर्ष किसके नेतृत्व में किया गया?
उत्तर:
1857 ई. का संघर्ष मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में किया गया।

प्रश्न 11.
1857 ई. की क्रान्ति को किन इतिहासकारों ने मुस्लिम षड्यन्त्र का परिणाम बताया है?
उत्तर:
सर जेम्स आउट्रम व डब्ल्यू टेलर ने 1857 ई. की क्रान्ति को मुस्लिम षड्यन्त्र का परिणाम बताया है। मॉलिसन व कूपलैण्ड भी इसी मत का समर्थन करते हैं।

प्रश्न 12.
दक्षिण भारत के चार प्रमुख केन्द्रों के नाम बताइए जहाँ 1857 की क्रान्ति की घटनाएँ हुईं?
उत्तर:
तंजौर, मलिाबार, मदुरई, कोचीन।

प्रश्न 13.
1857 की क्रान्ति का तात्कालिक कारण बताइए?
उत्तर:
1857 ई. में मेरठ छावनी में सैनिकों को बन्दूकों में प्रयोग करने के लिए चर्बी वाले कारतूस दिए गए। अपना धर्म भ्रष्ट होने के भय से हिन्दू एवं मुसलमान सैनिकों ने इनका प्रयोग करने से इन्कार कर दिया एवं विद्रोह पर उतारू हो गए।

प्रश्न 14.
1857 की क्रान्ति में नेतृत्व करने वाली दो महिलाओं के नाम बताइए।
उत्तर:
रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल।

RBSE Class 12 History Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यूरोपवासी क़िस उद्देश्य को लेकर भारत आए?
उत्तर:
17 वीं शताब्दी में भारत संसार के सबसे धनी देशों में से एक था। प्राचीनकाल से ही भारत के रोम एवं पश्चिम एशिया के देशों के साथ सांस्कृतिक एवं व्यापारिक सम्बन्ध रहे हैं। भारत की सांस्कृतिक धरोहर, आर्थिक समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति ने यूरोपियों को भारत के प्रति आकर्षित किया। युरोपवासियों को भारत आने का प्राथमिक उद्देश्य धन की प्राप्ति, व्यापार में वृद्धि और ईसाई मत का प्रसार करना था जो आगे चलकर राजनैतिक प्रसार व साम्राज्यवाद में बदल गया।

प्रश्न 2.
कलकत्ता की काल कोठरी घटना क्या थी?
उत्तर:
तत्कालीन कलकत्ता का एक छोटा कक्ष जो 18 फुट लम्बा और 14 फुट 10 इंच चौड़ा था। कक्ष में सिराजुद्दौला द्वारा 146 अंग्रेज बन्दियों को 20 जून की रात्रि को बन्द कर दिया गया। उनमें से अगले दिन प्रातः मात्र 23 व्यक्ति ही बचे। 123 व्यक्ति दम घुटने से मारे गए। जे. जैड. हॉलवेल जो बचे बन्दियों जीवित में से एक था उसे इस कथा का रचयिता माना जाता है जो काल्पनिक प्रतीत होती है क्योंकि इतने छोटे कक्ष में 146 व्यक्तियों को एक साथ बन्द करना सम्भव नहीं था। कहा जाता है कि यह कहानी केवल इसलिए गढ़ी गई ताकि भारत स्थित अंग्रेजों के क्रोध को भड़काया जा सके। इस घटना को ब्लैक हॉल दुर्घटना के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 3.
दस्तक प्रथा से क्या तात्पर्य है? इसका दुरुपयोग कैसे किया जाता था।
उत्तर:
1717 ई. में बंगाल के सम्राट फर्रुखसीयर ने बंगाल में कम्पनी के माल को सीमा शुल्क से मुक्त कर दिया तथा चुंगी शुल्क से मुक्ति के लिए दस्तक नामक विशेष अनुमति पत्र जारी किया। बंगाल में शान्ति व सुव्यवस्था के कारण इस क्षेत्र में कम्पनी का व्यापार व प्रभाव बढ़ता चला गया। धीरे – धीरे अंग्रेज इसका दुरुपयोग करने लगे। वे अपने दस्तक को भारतीय व्यापारियों को बेच देते थे। इससे नवाब को आर्थिक नुकसान होने लगा।

प्रश्न 4.
सहायक सन्धि प्रथा का अर्थ बताते हुए इसका वास्तविक उद्देश्य बताइए?
उत्तर:
1798 ई. में लार्ड वेलेजली द्वारा देशी राज्यों को हड़पने के लिए एक सन्धि का प्रारूप निर्मित किया गया। इसे ही सहायक सन्धि कहा जाता है। सहायक सन्धि के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे

  1. सन्धि करने वाले राज्य को एक ब्रिटिश सैनिक रेजीमेण्ट अपने यहाँ रखना पड़ेगा।
  2. सैनिक रेजीमेण्ट का व्यय सहायक सन्धि करने वाले राज्य को ही वहन करना पड़ेगा।
  3. सन्धि करने वाला राज्य न तो किसी और शासक के साथ सन्धि कर सकेगा और न ही अंग्रेजों की अनुमति के बिना किसी युद्ध में हिस्सा ले सकेगा।
  4. सन्धि करने वाले राज्य की बाहरी तथा आंतरिक चुनौतियों से अंग्रेज रक्षा करेंगे।

प्रश्न 5.
डलहौजी की व्यपगत नीति पर टिप्पणी लिखिए?
उत्तर:
डलहौजी द्वारा भारत में ब्रिटिश सार्वभौमिकता की स्थापना के लिए युद्ध के अतिरिक्त बुरे शासन (कुशासन) एवं भ्रष्टाचार के दोष के नाम पर तथा गोद निषेध द्वारा राज्यों को मिलाने के उपायों को व्यपगत की नीति के नाम से जाना जाता है। इस नीति के अनुसार सतारा, सम्भलपुर, झाँसी, नागपुर, जैतपुर, उदयपुर, बघार, तंजौर तथा अवध आदि राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया।

प्रश्न 6.
पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की पराजय के कारण बताइए?
उत्तर:
अफगानिस्तान को शासक अहमद शाह अब्दाली नादिरशाह द्वारा अधिकृत भारतीय प्रदेशों पर अपना अधिकार मानता था। कुछ रूहेल और अफगान पठान भी अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित कर रहे थे। दूसरी ओर मराठा शक्ति का उत्तर भारत में विस्तार हो चुका था। 1759 के अन्तिम दिनों में अब्दाली पंजाब में मराठा प्रतिनिधि को खदेड़ कर दिल्ली के निकट पहुँच गया। 14 जनवरी, 1761 ई. को अहमदशाह अब्दाली व मराठों के मध्य पानीपत का तृतीय युद्ध लड़ा गया जिसमें मराठे पराजित हुए। इस युद्ध में मराठों की पराजय के निम्न कारण थे-

  1. मराठे का दोषपूर्ण सैन्य संगठन व अनुशासन की कमी।
  2. भारतीय राजाओं और सरदारों में एकता का अभाव।
  3. मराठों को जाट, राजपूत आदि भारतीय शक्तियों से आपसी तालमेल के अभाव में उनके सहयोग से वंचित होना पड़ा।
  4. कुछ देशद्रोही शासकों द्वारा अब्दाली का सहयोग करने के कारण मराठों को अकेले संघर्ष करना पड़ा।

प्रश्न 7.
ब्लैक हॉल दुर्घटना क्या है?
उत्तर:
विद्वानों के अनुसार कलकत्ता के एक छेटे कक्ष जो 18 फुट लम्बे और 14 फुट 10 इंच चौडे छोटे कक्ष में सिराजुद्दौला द्वारा 146 अंग्रेज बन्दियों को 20 जून को रात्रि को बन्द कर दिया गया तथा उनमें से अगले दिन प्रातः मात्र 23 व्यक्ति ही बचे। 123 व्यक्ति दम घुटने से मारे गये। जे. जैङः हॉलवेल जो शेष जीवित में से एक था उसे इसे कथा का रचयिता माना जाता है, जो काल्पनिक प्रतीत होती है, क्योंकि इतने छोटे कक्ष में 146 व्यक्तियों को एक साथ बन्द करना सम्भव नहीं था। कहा जाता है कि ब्लेक हॉल की कहानी केवल इसलिए गढ़ी गई ताकि भारत स्थित अंग्रेजों के क्रोध को भड़काया जा सके।

प्रश्न 8.
1857 की क्रान्ति के सामाजिक कारण बताइए।
उत्तर:
1857 ई. की क्रान्ति के सामाजिक कारण निम्नलिखित थे

  1. अंग्रेज जातिभेद की भावना से प्रेरित थे और भारतीयों को घृणा की दृष्टि से देखते थे।
  2. अंग्रेजों का भारतीयों के प्रति व्यवहार अपमानजनक था।
  3. रेलवे की प्रथम श्रेणी में भारतीयों के लिए यात्रा वर्जित थी, वे अंग्रेजों के साथ किसी प्रकार के सामाजिक उत्सवों में भाग नहीं ले सकते थे।
  4. यूरोपीय व्यवसायियों द्वारा संचालित होटलों और क्लबों में भारतीयों का प्रवेश वर्जित था।
  5. पाश्चात्य शिक्षा नीति ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया। उनकी शिक्षा नीति का उद्देश्य शासन के लिए लिपिक प्राप्त करना और काले अंग्रेज तैयार करना था।
  6. अंग्रेजों ने इतिहास का अपने अनुकूल लेखन करवाया तथा आर्य आक्रमण, मूल निवासी, आर्य द्रविड़ जैसे भेद खड़े किये।

उपर्युक्त बातों से भारतीयों के हृदय में अंग्रेजों के विरुद्ध तीव्र रोष उत्पन्न हुआ जिसका परिणाम 1857 की क्रान्ति के रूप में निकला।

प्रश्न 9.
भारतीय सैनिकों द्वारा चर्बी वाले कारतूसों का विरोध क्यों किया गया?
उत्तर:
सन् 1856 में भारत सरकार ने सेना में नई एनफील्ड राइफल्स का प्रयोग करने का निश्चय किया। इस नई राइफल में कारतूस के ऊपरी भाग को दाँत से काटना पड़ता था। इस समय यह अफवाह फैली कि इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया गया है। जॉन केयी व लार्ड राबर्ट्स ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है। सैनिकों ने इनको प्रयोग करने से इन्कार कर दिया। उनकी यह धारणा बन गई कि अंग्रेज हिन्दू और मुस्लिम दोनों का ही धर्म भ्रष्ट करने पर तुले हुए हैं। चर्बी लगे कारतूसों की घटना ने विद्रोह की चिनगारी सुलगा दी और उससे जो धमाका हुआ उसने अंग्रेजी शासन की जड़े हिला दीं।

प्रश्न 10.
उत्तरी भारत में क्रान्ति के प्रमुख केन्द्र के नेतृत्व करने वालों के नाम बताइए।
उत्तर:
उत्तरी भारत में क्रान्ति के प्रमुख केन्द्र व नेतृत्व करने वालों के नाम निम्नलिखित हैं
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प्रश्न 11.
1857 की क्रान्ति की असफलता के दो प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर:
1857 की क्रान्ति की असफलता के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  1. क्रान्ति को पूर्व योजनानुसार 31 मई, 1857 के दिन एक साथ शुरू करना था लेकिन मेरठ में 10 मई, 1857 को तय समय से पूर्व क्रान्ति प्रारम्भ हो गई। ऐसी दशा में अलग – अलग समय और स्थानों पर हुई क्रान्ति का दमन करने में अंग्रेज सफल हो गए।
  2. इस संग्राम को ठीक प्रकार से संचालित करने वाले कुशल एवं योग्य नेतृत्व का अभाव था। बहादुर शाह एक वृद्ध और कमजोर शासक था। नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई, वाजिद अली शाह, हजरत महल, कुंवर सिंह, बख्त खाँ, अजीमुल्ला आदि के हाथ में विद्रोहियों की बागडोर थी वे अपने उद्देश्य पर दृढ़ भी थे। किन्तु इनमें आपसी समन्वय व नेतृत्व क्षमता का अभाव था।

प्रश्न 12.
1857 की क्रान्ति को राष्ट्रीय विद्रोह की संज्ञा क्यों दी गई?
उत्तर:
1857 की क्रांति में राष्ट्रीय भावना के कारण ही सभी वर्गों के लोगों ने बिना मतभेद के आपसी वैमनस्य भुलाकर अंग्रजों को भारत से बाहर निकालने की सामूहिक प्रयास किया जो राष्ट्रीय विद्रोह की श्रेणी में आता है। इसलिए विद्वानों ने इस विद्रोह को राष्ट्रीय विद्रोह की संज्ञा दी।

प्रश्न 13.
1857 की क्रान्ति के पश्चात् सैनिक क्षेत्र में हुए सैनिक परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए?
उत्तर:
1857 की क्रान्ति का आरम्भ सैनिक विद्रोह के रूप में हुआ था। अत: क्रान्ति के पश्चात् सेना के पुनर्गठन के लिए निम्नलिखित परिवर्तन किए गए-

  1. 1861 की सेना सम्मिश्रण योजना के अनुसार कम्पनी की यूरोपीय सेना सरकार को हस्तान्तरित कर दी गई।
  2. 1861 में पील कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार सेना में अब ब्रिटिश सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गई।
  3. सेना और तोपखाने के मुख्य पद केवल यूरोपीयों के लिए आरक्षित कर दिए गए।
  4. इस बात का भी ध्यान रखा गया कि समुदाय या एक क्षेत्र के भारतीय सैनिक एक साथ सैनिक टुकड़ियों में न रहें।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“बक्सर के युद्ध ने प्लासी के अधूरे कार्य को पूरा किया।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्लासी का युद्ध एक सैनिक झड़प से अधिक कुछ नहीं था। यह अंग्रेजों तथा बंगाल के धनी सेठों तथा मीर जाफर के मध्य किया गया एक सौदा था जिसमें बंगाल को अंग्रेजों के हाथ बेच दिया गया। 1757 ई. में हुए प्लासी के युद्ध ने बंगाल में अंग्रेजों की सत्ता स्थापित कर दी। इस युद्ध के पश्चात् बंगाल अंग्रेजों के शोषण का बुरी तरह शिकार हुआ। प्लासी के युद्ध के पश्चात् मीर जाफरे जो अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली था अंग्रेजों की बढ़ती हुई माँग को पूर्ण न कर सका और अपना पद खो बैठा।

इसके पश्चात् मीर कासिम को बंगाल को नवाब बनाया गया। मीर कासिम अंग्रेजों की शक्ति को अधिक बढ़ने से रोकना चाहता था। अतः उसने प्रशासनिक पुनर्गठन का प्रयास किया जिसमें ब्रिटिश हस्तक्षेप के कारण वह सफल नहीं हुआ। आर्थिक मामलों व विभिन्न सुविधाओं को लेकर अंग्रेजों व मीर कासिम के मध्य मतभेद बढ़ने का परिणाम 22 अक्टूबर, 1764 के बक्सर के युद्ध के रूप में सामने आया।

बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों के विरुद्ध बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला व मुगल सम्राट शाह आलम की सम्मिलित सेना थी। युद्ध का परिणाम अंग्रेजों के पक्ष में रहा। इस युद्ध ने प्लासी के निर्णयों पर मुहर लगा दी। राजनैतिक व सैनिक दृष्टि से इसका महत्व अधिक था। भारत में अब अंग्रेजों को चुनौती देने वाला कोई दूसरा नहीं रह गया था। अब बंगाल का नवाब इनकी कठपुतली था तो अवध का नवाब इनका आभारी तथा मुगल सम्राट इनका पेंशनर था।

इस युद्ध से इलाहाबाद तक का प्रदेश अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया तथा दिल्ली का मार्ग भी उनके लिए खुल गया। इलाहाबाद की सन्धि द्वारा बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार भी कम्पनी के पास चले गये। इस युद्ध ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अखिल भारतीय शक्ति बना दिया। अब वे सम्पूर्ण भारत पर दावा करने लगे थे। अतः स्मिथ का यह कथन सर्वथा उचित है कि “बक्सर के युद्ध ने प्लासी के अधूरे कार्य को पूरा किया।”

प्रश्न 2.
हैदरअली व टीपू सुल्तान के अंग्रेजों से संघर्षों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1761 ई. में हैदर अली मैसूर के नंदराज से सत्ता छीनकर मैसूर का शासक बन गया। हैदर अली की फ्रांसीसियों से मित्रता तथा उसकी बढ़ती हुई शक्ति से अंग्रेज भयभीत हो गए। हैदरअली के मालाबार पर अधिकार करने से अंग्रेज उसके विरुद्ध हो गये। इस कटुता के परिणामस्वरूप अंग्रेजों व हैदरअली और उसके पुत्र टीपू सुल्तान के मध्य आंग्ल मैसूर युद्ध लड़े गये।

1. प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध:
अंग्रेजों ने मराठों व निजाम के साथ मिलकर हैदर अली के विरुद्ध एक त्रिगुट संगठन बना लिया। हैदर अली ने अपनी कूटनीति से निजाम को अपने पक्ष में कर लिया तथा 1767 ई. में इन दोनों की संयुक्त सेना ने कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया लेकिन वे अंग्रेजों से पराजित हुए। 1769 ई. में हैदर अली ने मद्रास पर आक्रमण कर उसे घेर लिया। फलस्वरूप अंग्रेजों ने हैदर अली के साथ 4 अप्रैल, 1769 को मद्रास की सन्धि की जिसके अन्तर्गत दोनों ने एक-दूसरे के जीते प्रदेश लौटा दिये।

2. द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध:
इस बार हैदर अली ने अंग्रेजों के विरुद्ध त्रिगुट बना लिया जिसमें स्वयं वह, निजाम और मराठा शामिल थे। हैदर अली ने जुलाई 1780 में कर्नाटक पर आक्रमण कर अकार्ट को घेर लिया तथा नवाब को पराजित किया परन्तु दुर्भाग्य से सन् 1782 में हैदर अली की मृत्यु हो गई। उसके बाद टीपू सुल्तान ने युद्ध जारी रखा। दोनों के मध्य 1784 को मंगलौर की सन्धि के साथ यह युद्ध समाप्त हुआ।

3. तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध:
टीपू मालाबार की सुरक्षा के लिए कोचीन में स्थित डच दुर्ग खरीदना चाहता था परन्तु अंग्रेज समर्थित ट्रावनकोर के राजा ने इसे खरीदकर टीपू को नाराज कर दिया। यही तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध का कारण बना। यह युद्ध 1790-92 ई. के मध्य लड़ा गया। 1792 ई. में टीपू व अंग्रेजों के मध्य श्रीरंगपट्टनम की सन्धि हुई जिसके अनुसार टीपू का आधा राज्य अंग्रेजों तथा उनके समर्थकों को मिल गया।

4. चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध:
लार्ड वेलेजली मैसूर को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाना चाहता था। फरवरी 1799 ई. में वैलेजली ने युद्ध की घोषणा कर दी। विशाल अंग्रेज सेना का मुकाबला टीपू ने वीरता के साथ किया और मारा गया। जुलाई 1799 में सहायक सन्धि द्वारा मैसूर को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।

प्रश्न 3.
18वीं शताब्दी में भारत की राजनैतिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगलों के पतन के पश्चात् भारत की राजनीति में अस्थिरता का वातावरण बन गया। इस राजनैतिक अस्थिरता में विभिन्न क्षेत्रीय शक्तियों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित की। आपसी फूट व एकता के अभाव में यूरोपियों को भारत में अपने पैर जमाने का अवसर मिल गया। 18वीं शताब्दी में भारत में निम्नलिखित क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ

  1. मुगल – औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मुगल साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर हुआ। सन् 1739 में नादिरशाह तथा 1761 में अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के बाद मुगल साम्राज्य लगभग समाप्त हो गया। सन् 1857 तक बहादुर शाह जफर नाममात्र का शासक था।
  2. मराठा – 18वीं शताब्दी में मराठों ने उत्तर भारत में अपनी शक्ति का विस्तार किया परन्तु 14 जनवरी, 1761 को पानीपत के तृतीय युद्ध में अहमदशाह अब्दाली द्वारा हार जाने से तथा आपसी फूट के कारण मराठा साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर हो गया।
  3. अवध – 1728 ई. में सूबेदार सादत खाँ ने अवध में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की परन्तु 1764 ई. में बक्सर के युद्ध में हारने के पश्चात् इलाहाबाद की सन्धि द्वारा अवध कम्पनी का आश्रित राज्य बन गया।
  4. बंगाल – 1740 ई. में मुर्शीद कुली खाँ द्वारा बंगाल में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की गई परन्तु 1757 ई. में नवाब सिराजुद्दौला व अंग्रेजों के मध्य लड़े गए प्लासी के युद्ध के पश्चात् बंगाल में कम्पनी शासन स्थापित हो गया।
  5. मैसूर – 1761 ई. में हैदरअली ने मैसूर में अपनी सत्ता कायम की एवं उसने व उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों से कड़ा संघर्ष किया। 1799 ई. को सहायक सन्धि द्वारा मैसूर को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।
  6. जाट – आगरा, एटा, धौलपुर, चम्बल, अलीगढ़, मथुरा, लक्ष्मणगढ़, पंजाब व हरियाणा में जाटों ने अपना शासन स्थापित किया। महाराजा सूरजमल के समय जाट राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था।
  7. पंजाब – पंजाब में 12 मिसलों को मिलाकर रणजीत सिंह ने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। 1849 ई. में इसे कम्पनी राज्य में मिला लिया गया।
  8. राजपूत – मुगलों की शक्ति क्षीण होने के पश्चात् मालवा, आमेर आदि के राजपूत शासकों ने स्वतंत्र होने के प्रयास किये।
  9. रूहेलखण्ड – रूहेलखण्ड में अली मुहम्मद खाँ ने अपनी सत्ता स्थापित की तथा बरेली को अपनी राजधानी बनाया। रूहेलों का जाटों, मराठों से लगातार संघर्ष होता रहता था।

इस प्रकार 18वीं सदी में नयी – नयी क्षेत्रीय शक्तियों के उदय ने भारत को कई टुकड़ों में विभाजित कर दिया जिनमें प्रायः संघर्ष होते रहते थे। परिणामस्वरूप एक के बाद एक राज्य कम्पनी राज्य का हिस्सा बनते चले गए।

प्रश्न 4.
आंग्ल मराठा युद्धों की प्रमुख परिस्थितियाँ बताइए।
उत्तर:
18 वीं सदी में मराठों ने उत्तर भारत में अपनी शक्ति का विस्तार किया परन्तु 14 जनवरी, 1761 को पानीपत के तृतीय युद्ध में पराजय के कारण इनकी शक्ति को गहरा आघात लगा जिससे अंग्रेजों को मराठों को चुनौती देने का अवसर मिल गया। अंग्रेजों व मराठों के मध्य तीन संघर्ष हुए जो 1775 से 1818 तक चले। इन युद्धों का परिणाम यह हुआ कि मराठा शक्ति का पूरी तरह से विनाश हो गया। इन युद्धों की प्रमुख बातें (परिस्थितियाँ) निम्नलिखित थीं-

  1. मराठों में आपसी एकता का अभाव था जिस कारण हो अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट नहीं हो सके।
  2. रघुनाथ राव के पेशवा बनने की महत्वाकांक्षा और अंग्रेजों द्वारा की गई उसके साथ सूरत की सन्धि ने संघर्ष को अवश्यंभावी बना दिया।
  3. बाजीराव द्वितीय ने बेसिन भागकर अंग्रेजों के साथ बेसिन की सन्धि की और मराठे की स्वतन्त्रता को बेच दिया।
  4. प्रथम युद्ध (1775 – 1782 ई.) रघुनाथ राव द्वारा पेशवा पद के दावे को लेकर ब्रिटिश समर्थन से प्रारम्भ हुआ।
  5. जनवरी 1779 ई. में बड़गाँव में अंग्रेज पराजित हो गए लेकिन उन्होंने मराठों के साथ सालबाई की सन्धि (मई 1782 ई.) होने तक युद्ध जारी रखा।
  6. इसमें अंग्रेजों को बम्बई के पास साल्सिट द्वीप पर कब्जे के रूप में एकमात्र लाभ मिला।
  7. 1798 ई. में लार्ड वेलेजली गवर्नर जनरल बनकर भारत आया जिसका प्रमुख उद्देश्य अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार करना था।
  8. 13 जून, 1817 में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध में बाजीराव द्वितीय ने मराठा संघ की अध्यक्षता त्याग दी।
  9. तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध (1818 ई.) में पेशवा के साथ होल्कर व भोंसले रहे, जबकि सिन्धिया व गायकवाड़ युद्ध से पृथक् रहे।
  10. फरवरी 1818 में अष्टी के युद्ध में पेशवा की अंतिम पराजय हुई। पेशवा को 8 लाख रुपये की पेंशन देकर बिठूर (कानपुर) भेज दिया गया। भोंसले सीताबलदी तथा होल्कर महीदपुर के युद्ध में अंग्रेजों से पराजित हुए और मन्दसौर की संधि के साथ अंग्रेजों को भारत पर प्रभुत्व स्थापित हो गया।

प्रश्न 5.
आंग्ल सिक्ख सम्बन्धों पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में एक राजनैतिक शक्ति के रूप में पंजाब में सिक्ख राज्य का उदय हुआ। छोटे – छोटे 12.जत्थों में बँटा सिक्ख राज्य जिन्हें मिसल कहा जाता था, को महाराजा रणजीत सिंह द्वारा संगठित कर एक स्वतंत्र राज्य की नींव रखी गई। सतलज नदी के पूर्व में स्थित राज्यों को अपने साम्राज्य में मिलाने के विवाद को लेकर अंग्रेजों व रणजीत सिंह के मध्य अप्रैल 1809 में अमृतसर की सन्धि हुई।

इस सन्धि से अंग्रेजों का वर्चस्व सतलज तक कायम हो गया। वे उत्तर में सिक्खों के भय से मुक्त हो गए। इससे सिक्ख राज्य के स्थायित्व पर विपरीत प्रभाव पड़ा। 1838 ई. में त्रिपक्षीय सन्धि (रणजीत सिंह, अंग्रेज और शाहशुजा) के अनुसार सिन्ध के मामले में रणजीत सिंह ने ब्रिटिश मध्यस्थता को स्वीकार कर लिया। 1839 ई. में रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात् सिक्ख सरदार व सामन्तों के आपसी संघर्ष से अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति को बल मिला। 1845 से 1846 के मध्य प्रथम आंग्ल सिक्ख युद्ध लड़ा गया तथा युद्ध का निर्णय अंग्रेजों के पक्ष में रहा।

अंग्रेजों के बढ़ते हुए हस्तक्षेप व कूटनीति से सिक्खों में रोष उत्पन्न होता जा रहा था जिसका परिणाम 184849 का द्वितीय आंग्ल सिक्ख युद्ध के रूप में निकला। इस युद्ध में भी सिक्खों की पराजय हुई। लार्ड डलहौजी ने 29 मार्च, 1849 को घोषणा कर पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया। महाराजा दिलीप सिंह को पेंशन दे दी गयी। कोहिनूर हीरा और पंजाब का राज्य अंग्रेजों को समर्पित कर दिया गया।

प्रश्न 6.
1857 की क्रान्ति के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में आते ही आर्थिक शोषण व राजनीतिक हस्तक्षेप करना आरम्भ कर दिया था। उसकी साम्राज्यवादी नीति व धन प्राप्ति के लिए किये गये शोषण से भारतीयों में रोष व असंतोष बढ़ता गया जिसका परिणाम 1857 ई. की क्रान्ति के रूप में सामने आया।

इस क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
(क) सामाजिक कारण

  1. अंग्रेजों की जातिभेद की भावना।
  2. अंग्रेजों का भारतीयों के प्रति अपमानजनक व्यवहार।
  3. सार्वजनिक स्थानों पर भारतीयों के साथ पक्षपाते।
  4. पाश्चात्य शिक्षा नीति का प्रसार।
  5. ब्रिटिश सरकार द्वारा किये गये सुधारात्मक कार्य।

(ख) धार्मिक कारण

  1. अंग्रेजों द्वारा पैतृक सम्पत्ति सम्बन्धी कानून बनाया गया जिसमें व्यक्ति ईसाई बनने पर पैतृक सम्पत्ति के अधिकार से वंचित नहीं होता था। इससे हिन्दू और मुसलमान दोनों ही अपने धर्म के प्रति खतरा अनुभव करने लगे।
  2. ईसाई मिशनरियों द्वारा आर्थिक प्रलोभन व अन्य उपायों से मतांतरण का नियोजित अभियान।
  3. 1813 में पारित अधिनियम द्वारा ईसाई पादरियों को मजहबी प्रचार की स्वीकृति प्राप्त होना।
  4. ईसाई साहित्य का विद्यालयों एवं छावनियों में वितरण।
  5. भारत के मन्दिरों एवं मस्जिदों पर अंग्रेजों द्वारा कर लगा दिया जाना।

(ग) राजनैतिक कारण

  1. लार्ड वेलेजली की सहायक सन्धि।
  2. लार्ड डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति।
  3. भ्रष्टाचार व कुशासन का आरोप लगाकर अवध का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय।
  4. अंग्रेजों को मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर के प्रति अपमानजनक व्यवहार।
  5. अंग्रेजों की भ्रष्ट शासन तथा न्याय व्यवस्था।
  6. 1833 के चार्टर एक्ट के प्रावधान में बिना भेदभाव के सार्वजनिक सेवाओं में नियुक्ति की नीति का अंग्रेजों द्वारा पालन न करना।

(घ) आर्थिक कारण

  1. अंग्रेजों की शोषण की नीति द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पतन।
  2. भूराजस्व की अधिकता तथा वसूली में सेना का प्रयोग।
  3. भारत में निर्मित माल के निर्यात पर अधिक कर एवं इंग्लैण्ड से आने वाले माल पर न्यूनतम आयात कर।
  4. औद्योगीकरण के फलस्वरूप मशीनों के प्रयोग के कारण कुटीर उद्योगों का विनाश।
  5. भारतीय धन – सम्पदा का अंग्रेजों द्वारा लगातार शोषण।

(ङ) सैनिक कारण

  1. पदोन्नति के सम्बन्ध में भारतीय सैनिकों के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार।
  2. 1856 ई. में लार्ड कैनिंग द्वारा सामान्य सेना भर्ती अधिनियम पारित हुआ जिसमें सैनिकों को समुद्र पार जाने का प्रावधान था।
  3. 1854 में ‘डाकघर अधिनियम’ के द्वारा सैनिकों को मिल रही नि:शुल्क डाक सुविधा को समाप्त कर दिया गया।

(च) तात्कालिक कारण:
1857 ई. में मेरठ छावनी में सैनिकों को प्रयोग करने के लिए नए कारतूस दिये गये थे जिन्हें प्रयोग करने से पहले दाँतों से चना पड़ता था। अफवाह थी कि इन पर गाय व सूअर की चर्बी लगी हुई है। अपना धर्म भ्रष्ट होने के भय से हिन्दू एवं मुसलमान सैनिकों ने इनका प्रयोग करने से इन्कार कर दिया एवं विद्रोह पर उतारू हो गये।

प्रश्न 7.
1857 की क्रान्ति का उत्तर व दक्षिण भारत में विस्तार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1857 की क्रान्ति पूर्व नियोजित एक सोची-समझी योजना का परिणाम थी जिसका नेतृत्व विभिन्न प्रदेशों में अलग – अलग नेताओं ने किया। यह क्रान्ति सम्पूर्ण भारत में एक साथ 31 मई को आरम्भ होनी थी परन्तु चर्बी वाले कारतूसों की घटना से यह अपने निर्धारित समय से पूर्व अर्थात् 10 मई, 1857 को आरम्भ हो गई। सर्वप्रथम यह क्रान्ति मेरठ की बैरकपुर छावनी में सैनिकों द्वारा आरम्भ की गई तत्पश्चात् सैनिकों ने सभी कैदी सैनिकों को मुक्त करवाकर दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।

उत्तर भारत में क्रान्ति का विस्तार

  1. दिल्ली – दिल्ली के मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय ने क्रान्तिकारियों का नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया। उसे भारत का सम्राट घोषित किया गया। भारतीय नरेशों को संग्राम में सम्मिलित होने के लिए पत्र लिखे गये।
  2. अवध – लखनऊ में विद्रोह 4 जून को आरम्भ हुआ। बेगम हजरत महल ने अपने अल्पवयस्क पुत्र को नवाब घोषित कर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर दिया। जर्मीदारों, किसानों और सैनिकों ने बेगम के नेतृत्व में विद्रोहियों का साथ दिया और अंग्रेज रेजिडेन्सी में आग लगा दी जिसमें रेजिडेन्ट हेनरी लारेन्स मारा गया।
  3. कानपुर – नाना साहब ने अपने सहायक तात्या टोपे व अजीमुल्ला के सहयोग से 5 जून, 1857 को कानपुर को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया।
  4. झाँसी – जून 1857 के आरम्भ में सैनिकों ने झाँसी में भी विद्रोह कर दिया। यहाँ से क्रान्ति का नेतृत्व करने वाली झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया।
  5. बिहार – बिहार के जगदीशपुर के जर्मीदार 80 वर्षीय कुंवरसिंह ने क्रान्ति का नेतृत्व किया। उन्होंने आरा जिले के आसपास के क्षेत्रों को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया।
  6. राजस्थान – राजस्थान में आऊवा के ठाकुर कुशाल सिंह ने नसीराबाद, नीमच और ऐरनपुरा की अंग्रेज सैनिक छावनियों में क्रान्ति का बिगुल बजाया।
  7. रूहेलखण्ड – रूहेलखण्ड में अहमदुल्ला ने क्रान्ति का नेतृत्व किया तो मेवात में सदरुद्दीन नामक किसान के नेतृत्व में क्रान्ति हुई। जालन्धर, अम्बाला, रोहतक, पानीपत क्रान्ति के अन्य प्रमुख केन्द्र थे।

दक्षिण भारत में क्रान्ति का विस्तार।

  1. क्रान्ति का प्रभाव दक्षिण भारत के गोवा, पाण्डिचेरी सहित सुदूर दक्षिण तक रहा।
  2. महाराष्ट्र में रंगा बापूजी ने अंग्रेजों के विरुद्ध जन सेना तैयार कर बेलगाँव, सतारा, कोल्हापुर आदि स्थानों पर उसका नेतृत्व किया।
  3. सतारा और पंढरपुर में क्रान्ति आरम्भ हुई उसके बाद नासिक, रत्नागिरि और बीजापुर में क्रान्ति की घटनाएँ हुईं।
  4. गोलकुण्डा में चिन्ताभूपति ने विद्रोह किया।
  5. बंगलौर में मद्रास सेना की 8वीं घुड़सवार सेना और 20 पैदल सेना ने बगावत कर दी।
  6. उत्तरी अर्कोट, तंजौर, वेल्लौर में जर्मीदारों ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया।

इनके अतिरिक्त मदुरई, मालाबार, कालीकट, कोचीन, दमन व दीव भी क्रान्ति के प्रमुख केन्द्र रहे।

प्रश्न 8.
1857 की क्रान्ति की असफलताओं के कारण बताइए।
उत्तर:
1857 ई. की क्रान्ति जनता का एक बड़ा विद्रोह था। यह अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने का एक सशस्त्र प्रयास था। भारतीय सेना संख्या में अंग्रेजों से सात गुना अधिक थी और जनता का सहयोग भी इसे प्राप्त था। इतने पर भी अंग्रेज विद्रोह का दमन करने में सफल रहे और यह विद्रोह असफल हो गया। इस विद्रोह के असफल होने के उत्तरदायी कारण निम्नलिखित थे

1. कुशल एवं योग्य नेतृत्व का अभाव:
इस विद्रोह का नेतृत्व करने वाला मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर वृद्ध एवं कमजोर शारेक था। विभिन्न क्षेत्रों के नेतृत्वकर्ताओं में आपसी समन्वय तथा एकता का अभाव था जिससे नेतृत्व का संचालन कुशलतापूर्वक न हो सका और विद्रोह का दमन करने में अंग्रेज सफल हुए।

2. क्रान्ति का समय से पूर्व होना:
पूर्व योजनानुसार 31 मई, 1857 का दिन क्रान्ति के लिए निर्धारित किया गया था परन्तु मेरठ में यह क्रान्ति उस समय से पूर्व 10 मई से ही प्रारम्भ हो गयी। ऐसे में अलग-अलग समय और स्थानों पर हुई क्रान्ति का दमन करने में अंग्रेजों को सफलता मिली।

3. भारतीय नरेशों का असहयोग:
अधिकांश रियासतों के राजाओं ने अपने स्वार्थवश इस विद्रोह का दमन करने में अंग्रेजों का साथ दिया। अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध राजपूत, मराठे, मैसूर, पंजाब, पूर्वी बंगाल आदि के शासक शान्त रहे।

4. जमींदारों, व्यापारियों व शिक्षित वर्ग की तटस्थता:
बड़े जमींदारों, साहूकारों और व्यापारियों ने अंग्रेजों का सहयोग किया। शिक्षित वर्ग का समर्थन भी क्रान्तिकारियों को न मिल सका।

5. सीमित साधन:
अंग्रेजों के पास यूरोपीय देश के प्रशिक्षित और आधुनिक हथियारों से सुसज्जित अनुशासित सेना थी। समुद्र पर अपने नियंत्रण का लाभ भी उन्हें मिला। दूसरी ओर भारतीय सैनिकों में अनुशासन, सैनिक संगठन व योग्य नेतृत्व का अभाव था साथ ही इन्हें धन, रसद और हथियारों की कमी का सामना भी करना पड़ा।

6. निश्चित लक्ष्य एवं आदर्श का अभाव:
अंग्रेजों को भारत से निकालने के पश्चात् भावी प्रशासनिक स्वरूप के सम्बन्ध में कोई आदर्श व निश्चित लक्ष्य भारतीयों के पास नहीं था। वी. डी. सावरकर ने लिखा है, “लोगों के सामने यदि कोई स्पष्ट आदर्श रखा होता जो उनके हृदय को आकृष्ट कर सकता, तो क्रान्ति का अन्त भी इतना अच्छा होता जितना कि प्रारम्भ।”

7. अंग्रेजों के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ:
1857 ई. का वर्ष अंग्रेजों के लिए लाभकारी रहा। क्रीमिया व चीन से युद्ध में विजय के पश्चात् अंग्रेज सैनिक भारत पहुँच गए। यातायात और संचार में डलहौजी द्वारा रेल, डाकतार की व्यवस्था भी इनके लिए अनुकूल रही।

8. कैनिंग और अंग्रेजों की कूटनीति:
लार्ड कैनिंग की उदार नीति ने क्रान्तिकारियों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। अंग्रेज अपनी कूटनीति से पंजाब, पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के पठानों, अफगानों, सिन्धिया व निजाम का सहयोग प्राप्त करने में सफल रहे।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि राष्ट्रीय भावनाओं की कमी, पारस्परिक समन्वय और सर्वमान्य नेतृत्व का अभाव 1857 की क्रान्ति की असफलता का प्रमुख कारण था।

प्रश्न 9.
1857 की क्रान्ति के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1857 ई. की क्रान्ति के स्वरूप के सम्बन्ध में विद्वानों के भिन्न – भिन्न मत हैं। सैनिक असंतोष से प्रारम्भ हुए इस संघर्ष को जन समर्थन से राष्ट्रीय विद्रोह व स्वतन्त्रता संग्राम का स्वरूप प्राप्त हुआ। अंग्रेजों के विरुद्ध यह प्रथम सामूहिक प्रहार था। इसे स्वतन्त्रता का प्रथम संग्राम कहा जा सकता है। क्रान्ति के सम्बन्ध में विभिन्न मत ।

1. यह एक सैनिक विद्रोह था:
राबर्ट्स जॉन लारेन्स, सीले, चार्ल्स राईक्स, दुर्गादास बंधोपाध्याय, सर सैय्यद अहमद खाँ ने 1857 ई. की क्रान्ति को एक सैनिक विद्रोह की संज्ञा दी है। निःसन्देह यह विद्रोह एक सैनिक विद्रोह के रूप में आरम्भ हुआ लेकिन समाज के प्रत्येक वर्ग ने इसमें भाग लिया। अतः इसे पूर्णतया सत्य नहीं माना जा सकता।

2. यह विद्रोह एक मुस्लिम प्रतिक्रिया थी:
सर जेम्स आउट्रम डब्ल्यू टेलर, मॉलिसन व कूपलैण्ड का मानना है कि यह विद्रोह हिन्दू शिकायतों की आड़ में मुस्लिम षड्यन्त्र था। यह मुस्लिम शासन की पुनः स्थापना का प्रयास था। लेकिन हिन्दुओं के अधिक संख्या में भाग लेने के कारण यह मत भी पूर्णतया सत्य नहीं है।

3. यह विद्रोह एक जन क्रान्ति था:
सर जे. केयी के अनुसार यह क्रान्ति श्वेत लोगों के विरुद्ध काले लोगों का संघर्ष थी लेकिन अंग्रेज सेना में अनेक भारतीय थे। अतः यह कहना भी सही नहीं है। जिस तीव्र गति से यह विद्रोह फैला उससे यह बात प्रकट होती है कि विद्रोह को जनता का प्रबल समर्थन प्राप्त हुआ। केनिंग ने लिखा है “अवध में हमारी सत्ता के विरुद्ध किया गया विद्रोह बहुत व्यापक था।” जोन ब्रूस नार्टन ने इसे जन विद्रोह बताया है। मॉलिसन ने इस विद्रोह को अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने का सामूहिक प्रयास बताया है।

4. यह क्रान्ति किसानों का विद्रोह थी:
कुछ विद्वानों ने विद्रोह में किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका रहने पर इसे किसान विद्रोह भी बताया है किसानों ने कम्पनी सरकार के साथ ही जमींदारों व बड़े ताल्लुकदारों के विरुद्ध भी विद्रोह किए। लेकिन इसे पूर्णतया सही नहीं कहा जा सकता।

5. यह एक राष्ट्रीय विद्रोह था:
बेंजामिन डिजरेली, अशोक मेहता, वीर सावरकर आदि ने इस क्रान्ति को राष्ट्रीय विद्रोह कहा है। लेकिन पश्चिमी इतिहासकार राष्ट्रीयता का अर्थ यूरोप की 20वीं सदी की राष्ट्रीयता से लेते हुए इसे राष्ट्रीय विद्रोह नहीं मानते। डॉ. सत्या राय ने अपनी पुस्तक ‘भारत में राष्ट्रवाद’ में लिखा है कि हमें भारतीय परिप्रेक्ष्य में यूरोपीय परिभाषाओं को लागू नहीं करना चाहिए। राष्ट्रीय भावना के कारण ही सभी वर्गों के लोगों ने बिना मतभेद के आपसी वैमनस्य भुलाकर अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने को सामूहिक प्रयास किया जो राष्ट्रीय विद्रोह की श्रेणी में आता है।

6. यह क्रान्ति भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम था:
कुछ विद्वानों ने इस क्रान्ति को भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम बताया है। डॉ. एस. एन. सेन, वी. डी. सावरकर, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. ताराचन्द, डॉ. विश्वेश्वर प्रसाद, एस. बी. चौधरी जैसे इतिहासकारों का मानना है कि इसका वास्तविक स्वरूप कुछ भी क्यों न हो पर यह विद्रोह भारत में अंग्रेजी सत्ता के लिए चुनौती बन गया और इसे अंग्रेजों के विरुद्ध राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के युद्ध का गौरव प्राप्त हुआ।

अत: यह भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम था। 1857 की क्रान्ति के समय पूरे भारत में अंग्रेज विरोधी भावनाएँ थीं। अत: इसे मात्र विद्रोह या मुस्लिम षड्यन्त्र कहना उचित नहीं होगा वरन् भारतीय स्वतन्त्रता का प्रथम उद्घोष कहना उचित होगा जिसमें राष्ट्रवादी तत्वों का समावेश था।

RBSE Class 12 History Chapter 5 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 History Chapter 5 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिण अफ्रीका में मुख्य रूप से किन दो देशों का औपनिवेशिक आधिपत्य रहा?
(क) इंग्लैण्ड व जर्मनी
(ख) इंग्लैण्ड व भारत
(ग) इंग्लैण्ड व फ्रांस
(घ) फ्रांस व जर्मनी।

प्रश्न 2.
विश्व का आध्यात्मिक गुरु किस देश को कहा जाता था?
(क) इंग्लैण्ड
(ख) फ्रांस
(ग) स्पेन
(घ) भारत।

प्रश्न 3.
कुस्तुन्तुनिया पर तुर्की को अधिकार कब हुआ?
(क) 1553 ई.
(ख) 1453 ई.
(ग) 1556 ई.
(घ) 1435 ई.।

प्रश्न 4.
पुर्तगाली अधिकृत प्रदेशों का प्रथम वायसराय कौन था?
(क) डूप्ले
(ख) अल्मेड़ा
(ग) डलहौजी
(घ) वेलेजली।

प्रश्न 5.
1608 में पहला ब्रिटिश व्यापारिक जहाज हेक्टर किस बन्दरगाह पर पहुँचा?
(क) सूरत
(ख) कलकत्ता
(ग) कालीकट
(घ) मछलीपट्टनम।

प्रश्न 6.
सर टॉमस रो को व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए किस मुगल सम्राट के दरबार में भेजा गया?
(क) अकबर
(ख) जहाँगीर
(ग) बाबर
(घ) शाहजहाँ।

प्रश्न 7.
कलकत्ता में फोर्ट विलियम दुर्ग का निर्माण किसने करवाया?
(क) अंग्रेजों ने
(ख) डचों ने
(ग) पुर्तगालियों ने
(घ) फ्रांसीसियों ने।

प्रश्न 8.
दस्तक (विशेष अनुमति पत्र – चुंगी शुल्क मुक्ति के लिए) जारी करने का अधिकार किस शासक द्वारा प्रदान किया गया?
(क) फर्रूखसीयर
(ख) सिराजुद्दौला
(ग) शाहआलम
(घ) इनमें से कोई नहीं।

प्रश्न 9.
फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना कब हुई?
(क) 1600 ई.
(ख) 1664 ई.
(ग) 1672 ई.
(घ) 1680 ई.।

प्रश्न 10.
1667 ई. में पहली फ्रांसीसी व्यापारिक कोठी कहाँ स्थापित की गई?
(क) कलकत्ता में
(ख) सूरत में
(ग) लाहौर में
(घ) कालीकट में।

प्रश्न 11.
प्लासी का युद्ध किस – किस के बीच लड़ा गया?
(क) अंग्रेजों व मराठों के बीच
(ख) अंग्रेजों एवं शुजाउद्दौला के बीच
(ग) अंग्रेजों व नवाब सिराजुद्दौला के बीच
(घ) अंग्रेज व जाटों के बीच।

प्रश्न 12.
वेन्सीटार्ट की सन्धि कब हुई?
(क) 27 सितम्बर, 1756
(ख) 27 जून, 1735
(ग) 21 मई, 1759
(घ) 27 सितम्बर, 1760.

प्रश्न 13.
पुरन्दर की संधि किन – किन के मध्य हुई?
(क) डलहौजी व सिराजुद्दौला
(ख) कैनिंग तथा बाजीराव द्वितीय
(ग) हेस्टिंग्स तथा पेशवा राघोबा
(घ) बाजीराव पेशवा तथा वेलेजली।

प्रश्न 14.
पेशवा की अन्तिम पराजय किस युद्ध में हुई?
(क) अष्टी
(ख) द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध
(ग) आंग्ल मैसूर युद्ध
(घ) कर्नाटक युद्ध।

प्रश्न 15.
1857 ई. के विद्रोह का तात्कालिक कारण था।
(क) चर्बी वाले कारतूस
(ख)वेलेजली की सहायक सन्धि
(ग) ईसाई धर्म प्रचार
(घ) इनमें से कोई नहीं।

प्रश्न 16.
निम्न में से किस शहर की सैनिक छावनी से 1857 ई. का विद्रोह प्रारम्भ हुआ?
(क) दिल्ली
(ख) आगरा
(ग) मेरठ
(घ) नसीराबाद।

प्रश्न 17.
कानपुर में विद्रोहियों का नेतृत्व किसने किया?
(क) नाना साहब
(ख) कुंवरसिंह
(ग) वाजिद अली
(घ) सरुद्दीन।

प्रश्न 18.
कुंवरसिंह का सम्बन्ध था।
(क) बरेली (उत्तर प्रदेश) से
(ख) अजमेर (राजस्थान) से
(ग) आरा (बिहार) से
(घ) कलकत्ता (बंगाल) से।

प्रश्न 19.
निम्न में से किस अंग्रेज गवर्नर ने सहायक सन्धि प्रारम्भ की?
(क) लार्ड डलहौजी
(ख) लार्ड कैनिंग
(ग) लार्ड क्लाइव
(घ) लार्ड वेलेजली।

प्रश्न 20.
“ये गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा” यह कथन किसका था?
(क) लार्ड डलहौजी का
(ख) लार्ड कैनिंग का
(ग) लार्ड क्लाइव का
(घ) जनरल ह्यूरोज का।

उत्तरमाला:
1. (ग), 2. (घ), 3. (ख), 4. (ख), 5. (क), 6. (ख), 7. (क), 8. (क), 9. (ख), 10. (ख), 11. (ख), 12. (घ), 13. (ग), 14. (क), 15. (ख), 16. (ग), 17. (क), 18. (ग), 19. (घ), 20. (क)।

(i) सुमेलित कीजिए
RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 5 image 2
उत्तर:
1. (ग)
2. (क)
3. (घ)
4. (ख)।

(ii)
RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 5 image 3
उत्तर:
1. (ग)
2. (घ)
3. (ख)
4. (ङ)
5. (क)।

(iii)
RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 5 image 4
उत्तर:
1. (घ)
2. (ङ)
3. (ख)
4. (ग)
5. (क)।

RBSE Class 12 History Chapter 5 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज करने वाला प्रथम यूरोपीय कौन था? उसने भारत की खोज कब की?
उत्तर:
भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज करने वाला प्रथम यूरोपीय पुर्तगाल निवासी वास्कोडिगामा था। 17 मई, 1498 में इसने भारत की खोज की।

प्रश्न 2.
डच यूनाइटेड ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना कब की गई?
उत्तर:
डच यूनाइटेड ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 1602 ई. में की गयी।

प्रश्न 3.
डचों ने भारत में किस स्थान पर व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये?
उत्तर:
डचों ने भारत में मछलीपट्टनम एवं निजामपट्टनम में व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये।

प्रश्न 4.
व्यापार के उद्देश्य से भारत आने वाली प्रमुख यूरोपीय कम्पनियाँ कौन थीं?
उत्तर:
व्यापार के उद्देश्य से भारत आने वाली प्रमुख यूरोपीय कम्पनियाँ – पुर्तगाली, डच, डेनमार्क, ब्रिटिश तथा फ्रांसीसी थी।

प्रश्न 5.
सर टॉमस रो कौन था?
उत्तर:
सर टॉमस रो एक ब्रिटिश राजदूत था जिसे ब्रिटिश सम्राट जेम्स प्रथम द्वारा जहाँगीर के दरबार में भेजा गया। यहाँ उसे ब्रिटिश कम्पनी के लिए व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त हुईं।

प्रश्न 6.
फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना कब और किसके नेतृत्व में हुई?
उत्तर:
फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 1664 ई. में लुई 14वें व उसके मंत्री कोलबर्ट के नेतृत्व में हुई।

प्रश्न 7.
फ्रांसीसी गवर्नर जनरल डूप्ले कब भारत आया?
उत्तर:
फ्रांसीसी गवर्नर जनरल डूप्ले 1742 ई. में भारत आया।

प्रश्न 8.
पानीपत का तृतीय युद्ध कब और किस – किस के मध्य लड़ा गया?
उत्तर:
पानीपत का तृतीय युद्ध 14 जनवरी, 1761 ई. को मराठे व अहमदशाह अब्दाली के मध्य लड़ा गया।

प्रश्न 9.
अवध में स्वतंत्र राज्य की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर:
अवध में मुगल साम्राज्य के नियंत्रण से मुक्त होकर स्वतंत्र राज्य की स्थापना 1728 ई. में सूबेदार सादत खाँ ने की।

प्रश्न 10.
बक्सर के युद्ध का अंत किस सन्धि के साथ हुआ?
उत्तर:
बक्सर के युद्ध का अन्त अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ हुई इलाहाबाद की सन्धि के साथ हुआ।

प्रश्न 11.
अवध ने सहायक सन्धि को कब स्वीकार किया?
उत्तर:
अवध ने 1801 ई. में सहायक सन्धि को स्वीकार किया।

प्रश्न 12.
बंगाल में स्वतंत्र राज्य की स्थापना किसने की?
उत्तर:
बंगाल में स्वतंत्र राज्य की स्थापना मुर्शीद कुली खाँ ने की।

प्रश्न 13.
प्लासी का युद्ध कब लड़ा गया? इसमें किसकी पराजय हुई?
उत्तर:
प्लासी का युद्ध नवाब सिराजुद्दौला व अंग्रेजों के मध्य जून 1757 ई. को लड़ा गया इसमें सिराजुद्दौला की पराजय हुई।

प्रश्न 14.
भरतपुर का प्रथम शासक कौन था?
उत्तर:
बदनसिंह भरतपुर का प्रथम शासक था।

प्रश्न 15.
किसके शासन काल में जाट राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था?
उत्तर:
महाराजा सूरजमल के समय में जाट राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था।

प्रश्न 16.
सिक्ख राज्य की स्थापना किस प्रकार हुई?
उत्तर:
महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब में 12 मिसलों को मिलाकर स्वतंत्र सिक्ख राज्य की स्थापना की।

प्रश्न 17.
रूहेलखण्ड में किसने अपनी सत्ता स्थापित की?
उत्तर:
अली मुहम्मद खाँ ने रूहेलखण्ड में अपनी सत्ता स्थापित की।

प्रश्न 18.
मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले प्रान्तों में सर्वाधिक सम्पन्न प्रान्त कौन – सा था?
उत्तर:
मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले प्रान्तों में सर्वाधिक सम्पन्न प्रान्त बंगाल था।

प्रश्न 19.
प्लासी के युद्ध का प्रमुख कारण क्या था?
उत्तर:
बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के राजनीतिक, आर्थिक व अन्य मामलों में अंग्रेजों से मतभेद प्लासी के युद्ध का प्रमुख कारण बने।

प्रश्न 20.
प्लासी के युद्ध के पश्चात् बंगाल का नवाब कौन बना?
उत्तर:
प्लासी के युद्ध के पश्चात् बंगाल का नवाब मीर जाफर को बनाया गया जो अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली

प्रश्न 21.
वेन्सीटार्ट सन्धि का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
वेन्सीटार्ट सन्धि एक गुप्त सन्धि थी जो मीर कासिम को भावी बंगाल को नवाब बनाने के लिए की गई थी।

प्रश्न 22.
बक्सर का युद्ध कब और किसके मध्य लड़ा गया?
उत्तर:
बक्सर का युद्ध अंग्रेजों और तीनों शासकों की सम्मिलित सेनाओं (बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला व मुगल सम्राट शाह आलम) के मध्य लड़ा गया।

प्रश्न 23.
बक्सर के युद्ध में कौन विजयी रहा?
उत्तर:
बक्सर के युद्ध में अंग्रेज विजयी रहे।

प्रश्न 24.
“बक्सर के युद्ध ने प्लासी के अधूरे कार्य को पूरा किया।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन स्मिथ का है।

प्रश्न 25.
“प्लासी के युद्ध की अपेक्षा बक्सर का युद्ध परिणामों की दृष्टि से अधिक निर्णायक था।” यह किसने कहा?
उत्तर:
यह कथन के. के. दत्ता का है।

प्रश्न 26.
सुरत की सन्धि किस किसके मध्य हुई?
उत्तर:
सूरज की सन्धि पेशवा पद प्राप्त करने के लिए अपदस्थ राघोबा तथा बम्बई की कम्पनी सरकार के मध्य हुई।

प्रश्न 27.
सालबाई की सन्धि कब व किसके मध्य हुई?
उत्तर:
सालबाई की सन्धि 1782 ई. में अंग्रेजों व सिन्धिया के पेशवा के मध्य हुई।

प्रश्न 28.
लार्ड वेलेजली गवर्नर जनरल बनकर कब भारत आया?
उत्तर:
लार्ड वेलेजली गवर्नर जनरल बनकर 1798 ई. में भारत आया।

प्रश्न 29.
लार्ड वेलेजली का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
लार्ड वेलेजली का प्रमुख उद्देश्य अंग्रेज साम्राज्य का प्रसार करना था।

प्रश्न 30.
अंग्रेजों ने अपदस्थ पेशवा के साथ बेसिन की सन्धि क्यों की?
उत्तर:
मराठों पर आक्रमण करने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने अपदस्थ पेशवा के साथ बेसिन की सन्धि की।

प्रश्न 31.
किस युद्ध में पेशवा की अंतिम पराजय हुई?
उत्तर:
फरवरी 1818 ई. में अष्टी के युद्ध में पेशवा की अन्तिम पराजय हुई।

प्रश्न 32.
मैसूर को ब्रिटिश साम्राज्य में कब मिलाया गया?
उत्तर:
1799 ई. में मैसूर के नए शासक के साथ सहायक सन्धि करके मैसूर को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।

प्रश्न 33.
सहायक सन्धि क्या थी? इसे लागू करने का श्रेय किसको जाता है?
उत्तर:
अंग्रेजों ने भारत में देशी रियासतों के साथ सन्धि करके उन्हें अपने अधीन लाने और भारत में अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने का नया तरीका अपनाया जिसे सहायक सन्धि प्रथा के नाम से जाना जाता है। इसका श्रेय लार्ड वेलेजली को दिया जाता है।

प्रश्न 34.
सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले चार राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर:
सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले चार राज्य थे-हैदराबाद (1798), मैसूर (1799), अवध (1801), मराठा (1802)।

प्रश्न 35.
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु कब हुई?
उत्तर:
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु 27 जून, 1839 को हुई।

प्रश्न 36.
पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में कब मिलाया गया?
उत्तर:
29 मार्च, 1849 में पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाया गया।

प्रश्न 37.
1857 ई. का विद्रोह कब व कहाँ से प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
1857 ई. का विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी से प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 38.
1857 ई. के विद्रोह के समय भारत में मुगल सम्राट कौन थे?
उत्तर:
1857 ई. के विद्रोह के समय भारत में मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर थे।

प्रश्न 39.
किस मुगल बादशाह ने 1857 ई. के विद्रोहियों का नेतृत्व करना स्वीकार किया?
उत्तर:
सम्राट बहादुर शाह जफर ने 1857 ई. के विद्रोहियों का नेतृत्व करना स्वीकार किया।

प्रश्न 40.
रूहेलखण्ड में किसने क्रांति का नेतृत्व किया?
उत्तर:
रूहेलखण्ड में अहमदुल्ला ने क्रांति का नेतृत्व किया।

प्रश्न 41.
जगदीशपुर (बिहार) में विद्रोह का नेतृत्वकर्ता कौन था?
उत्तर:
जगदीशपुर (बिहार) में विद्रोह का नेतृत्वकर्ता जर्मीदार कुंवर सिंह था।

प्रश्न 42.
झाँसी में विद्रोह का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
झाँसी में विद्रोह का नेतृत्व रानी लक्ष्मीबाई ने किया।

प्रश्न 43.
रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु कब व कैसे हुई?
उत्तर:
अंग्रेजों से लड़ते हुए जून 1858 ई० में रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हुई।

प्रश्न 44.
अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में कब व किसने मिलाया?
उत्तर:
अवध को 1856 ई. में लार्ड डलहौजी ने ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया।

प्रश्न 45.
1857 के विद्रोह के किन्हीं पाँच केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. लखनऊ
  2. दिल्ली
  3. झाँसी
  4. कानपुर
  5. अवध।

प्रश्न 46.
वीर सावरकर की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम बताइए।
उत्तर:
वार ऑफ इण्डियन इण्डिपेन्डेन्स (भारत का स्वातंत्र्यस्य सागर)।

प्रश्न 47.
भारत की खोज के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
भारत की खोज के लेखक पण्डित जवाहरलाल नेहरू हैं।

प्रश्न 48.
1857 ई. के विद्रोह को स्वतन्त्रता संग्राम मानने वाले दो विद्वानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
डॉ. ताराचन्द, डॉ. विश्वेश्वर प्रसाद।

प्रश्न 49.
1857 ई. की क्रांति एक सैनिक विद्रोह था अथवा स्वतन्त्रता संग्राम अपने उत्तर की पुष्टि में उत्तर दीजिए।
उत्तर:
1857 ई. की क्रांति स्पष्ट रूप से एक स्वतन्त्रता संग्राम था क्योंकि इस क्रांति में प्रत्येक धर्म, जाति एवं समूह के लोगों ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी।

RBSE Class 12 History Chapter 5 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
16वीं से 18वीं शताब्दी के मध्य पश्चिमी देशों के औपनिवेशिक आक्रमण तथा उसके प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
16 से 18वीं शताब्दी के मध्य पश्चिमी यूरोपीय देशों, पुर्तगाल, स्पेन, इंग्लैण्ड, हॉलैण्ड, फ्रांस ने अपने आर्थिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए भौगोलिक खोजों के माध्यम से औपनिवेशिक आक्रमण किये। इन देशों ने अपने उपनिवेश स्थापित कर भारत का आर्थिक शोषण कर उसके अमूल्य खनिजों की खानों व महत्वपूर्ण वस्तुओं पर नियंत्रण स्थापित किया। उपनिवेशवाद की इस होड़ में यूरोपीय शक्तियों द्वारा सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक क्षेत्र में मूल निवासियों के साथ अत्याचार व बर्बरता का व्यवहार भी किया गया। मूल निवासियों को सभ्य बनाने के नाम पर उपनिवेशवादी शक्तियों ने स्थानीय लोगों का धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनाया और अपने धर्म व सभ्यता का प्रसार किया।

प्रश्न 2.
भारत पर उपनिवेशवाद को क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
भारत प्राचीनकाल से ही एक उन्नत, समृद्धशाली व सांस्कृतिक परम्पराओं का देश रहा है। इसकी आर्थिक सम्पन्नता, संस्कृति व आध्यात्मिक उन्नति ने सदा अन्य देशों को अपनी ओर आकृष्ट किया है। इसी कारण 17वीं शताब्दी में भारत में अनेक यूरोपीय शक्तियाँ व्यापार करने हेतु आकर्षित हुईं। पूँजीवाद के प्रसार के साथ औपनिवेशिक व्यापारियों का उद्देश्य केवल खरीद-फरोख्त द्वारा मुनाफा ही नहीं वरन् पूँजी और प्रौद्योगिकी का उपयोग कर उत्पादन बढ़ाना और जहाँ तक सम्भव हो कच्चा माल प्राप्त कर माल तैयार करना था।

आरम्भ में यूरोपवासियों के भारत आने का उद्देश्य धन की प्राप्ति, व्यापार में वृद्धि और ईसाई मत का प्रचार करना था जो आगे चलकर राजनैतिक प्रसार व साम्राज्यवाद में बदल गया। उपनिवेशवाद के परिणामस्वरूप भारत की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्थाओं को अत्यधिक क्षति पहुँची। उन्होंने भारत की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्थाओं को पूर्ण रूप से नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।

प्रश्न 3.
वास्कोडिगामा किस प्रकार भारत पहुँचा तथा उसने अपने व्यापारिक केन्द्र कहाँ स्थापित किए?
उत्तर:
वास्कोडिगामा ने भारत के लिए सीधे समुद्री मार्ग की खोज की। वह अन्तरीप के रास्ते होता हुआ मोजांबिक पहुँचा जहाँ एक भारतीय पथ-प्रदर्शक के मार्गदर्शन से 17 मई, 1498 में कालीकट पहुँचा। यहाँ हिन्दू शासक जमोरिन ने अतिथि देवो भवः की परम्परा से उसका स्वागत किया तथा कुछ सुविधाएँ प्रदान की। लगभग तीन माह भारत में रहकर वह वापस चला गया। 1502 ई. में वास्कोडिगामा दूसरी बार भारत आया और उसने कन्नानोर, कालीकट, कोचीन में व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये।

प्रश्न 4.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी को व्यापार करने का अधिकार, कब और किस प्रकार प्राप्त हुआ? इसने अपनी व्यापारिक बस्तियाँ भारत में किन स्थानों पर बसायीं?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा उसके गवर्नर को पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने का अधिकार 31 दिसम्बर, 1600 ई. को महारानी ऐलिजाबेथ के द्वारा दिये गये एक अधिकार-पत्र के द्वारा प्राप्त हुआ। कप्तान हॉकिन्स के नेतृत्व में 1608 ई. में पहला ब्रिटिश व्यापारिक जहाज सूरत बन्दरगाह पहुँचा तथा सर्वप्रथम इन्होंने अपनी व्यापारिक बस्ती सूरत में स्थापित की।

1615 ई. में ब्रिटिश राजदूत सर टॉमस रो सम्राट जहाँगीर के दरबार में पहुँचा जहाँ उसे ब्रिटिश कम्पनी के लिए व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त हो गईं। अंग्रेजों ने अहमदाबाद, बुरहानपुर, अजमेर, आगरा में व्यापारिक कन्द्र स्थापित किये। 1616 में कालीकट, 1633 में मछलीपट्टनम में तथा 1640 में मद्रास में व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये गये।

प्रश्न 5.
आंग्ल फ्रांसीसी संघर्ष के क्या कारण थे? इनमें फ्रांसीसियों को हार का सामना क्यों करना पड़ा?
उत्तर:
भारत की समृद्धि और व्यापारिक लोभ ने इंग्लैण्ड व फ्रांस दोनों को भारत की ओर आकृष्ट किया तथा यहाँ अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने के उद्देश्य से फ्रांसीसियों एवं अंग्रेजों के मध्य संघर्ष आरम्भ हुए जिन्हें कर्नाटक युद्ध के नाम से जाना जाता है। इन युद्धों में अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को परास्त कर भारत में उनके प्रभाव का अंत कर दिया। आंग्ल फ्रांसीसी युद्धों में फ्रांसीसियों की असफलता के निम्नलिखित कारण थे-

  1. अंग्रेजों के पास फ्रांसीसियों की अपेक्षा मजबूत जहाजी बेड़ा होना।
  2. फ्रांसीसियों में आपसी समन्वय का अभाव।
  3. समृद्ध बंगाल प्रान्त पर अंग्रेजों का आधिपत्य।
  4. अंग्रेजों ने युद्ध के समय में भी व्यापार पर ध्यान दिया परन्तु फ्रांसीसियों ने ऐसा नहीं किया।
  5. फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले की वापसी।

प्रश्न 6.
पानीपत के तृतीय युद्ध के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पानीपत का तृतीय युद्ध 14 जनवरी, 1761 ई. को मराठे व अहमद शाह अब्दाली के बीच लड़ा गया। इस युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

  1. अफगानिस्तान का शासक अहमदशाह अब्दाली अपने पूर्व में नादिरशाह द्वारा अधिकृत भारतीय प्रदेशों पर अपना अधिकार मानता था।
  2. कुछ रूहेल और अफगान पठानों ने अहमदशाह अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया।
  3. रघुनाथ राव दिल्ली में अहमदशाह अब्दाली के प्रतिनिधि नजीबुद्दौला को अपदस्थ कर 1758 में पंजाब की ओर बढ़ा और अब्दाली के पुत्र को निकालकर साबाजी सिन्धिया को पंजाब का गर्वनर बना दिया। अहमदशाह अब्दाली अधिकृत लाहौर भी इनके अधिकार क्षेत्र में आ गया।

प्रश्न 7.
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य किस प्रकार स्थापित हुआ?
उत्तर:
18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भिन्न-भिन्न यूरोपीय शक्तियाँ पतनोन्मुख मुगल साम्राज्य का स्थान लेने एवं भारतीय व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करने हेतु संघर्षरत थीं। धीरे-धीरे पुर्तगालियों और डचों की शक्तियाँ कमजोर होती चली गईं और भारत में अंग्रेज व फ्रांसीसी ही मुख्य प्रतिद्वन्द्वी रह गये। दोनों शक्तियों ने भारत के देशी राज्यों के पारस्परिक झगड़ों तथा उनके उत्तराधिकार के मामले में हस्तक्षेप कर उन्हें सैनिक सहायता देना आरम्भ कर दिया। सहायता के बदले उन्होंने भारतीय शासकों से व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त कर लीं।

धीरे – धीरे ये व्यापारी राजनैतिक शक्ति बन गए व इनमें राजनैतिक प्रभुत्व के लिए संघर्ष आरम्भ हो गया। दक्षिण भारत में फ्रांसीसियों और अंग्रेजों के मध्य तीन संघर्ष हुए जिन्हें कर्नाटक के युद्ध के नाम से जाना जाता है। प्रथम युद्ध 1746 – 48 के मध्य, द्वितीय 1749 – 54 के मध्य और तृतीय 1758 – 63 के मध्य हुआ। इन युद्धों ने पूर्ण रूप से भारत में फ्रांसीसी साम्राज्य की स्थापना की सम्भावना नष्ट कर दी। भारत में अब अंग्रेजों को चुनौती देने वाला कोई दूसरा नहीं रह गया। इस प्रकार भारत में ब्रिटिश साम्राज्य स्थापित हो गया।

प्रश्न 8.
वेन्सीटार्ट की सन्धि कब हुई इसकी प्रमुख शर्ते क्या थीं?
उत्तर:
मीर कासिम को बंगाल का नवाब बनाने के लिए गवर्नर जनरल वेन्सीटार्ट ने 27 सितम्बर, 1960 ई. को एक गुप्त सन्धि की जिसे वेन्सीटार्ट की सन्धि कहा जाता है। इसकी प्रमुख शर्ते निम्न र्थी

  1. मीर कासिम कम्पनी को बर्धवान, मिदनापुर व चटगाँव के जिले सैनिक व्यय के रूप में देगा।
  2. तीन वर्ष तक सिल्हट के चूने के व्यापार में आधा भाग कम्पनी को होगा।
  3. मीर कासिम कम्पनी के मित्र अथवा शत्रुओं को अपना मित्र अथवा शत्रु मानेगा।
  4. कम्पनी के दक्षिण अभियान के लिए मीर कासिम 5 लाख रुपये देगा।
  5. मीर कासिम ने वेन्सीटार्ट को 50,000 पौण्ड, हॉलवेल को 27000 पौण्ड तथा कलकत्ता काउन्सिल के अन्य सदस्यों को 25,000 पौण्ड प्रति सदस्य देना स्वीकार किया।

प्रश्न 9.
बडगाँव की सन्धि अंग्रेजों के लिए अपमानजनक क्यों थी?
उत्तर:
1778 में संगठित मराठा सेना ने कर्नल इंगर्टन की अंग्रेज सेना को पराजित कर दिया। अत: 29 जनवरी, 1779 को मराठों और अंग्रेजों के मध्य बड़गाँव की सन्धि हुई। यह सन्धि अंग्रेजों के लिए अपमानजनक थी क्योंकि

  1. इसके अनुसार मराठों से विजित क्षेत्र अंग्रेजों को पुनः लौटाने पड़े।
  2. हर्जाने के रूप में अंग्रेजों को मराठों को 41000 रुपये देने पड़े।
  3. पेशवा का पद राघोबा को सौंप दिया गया।
  4. भड़ोच जिले की आय सिन्धिया को सौंप दी गई।
  5. बन्धक के रूप में दो अंग्रेज अधिकारी (फार्मर और स्टीवर्ट) मराठों के पास रहे।

प्रश्न 10.
सालबाई की सन्धि की प्रमुख शर्ते क्या थीं? इसके क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
सालबाई की सन्धि पेशवा व अंग्रेजों के मध्य सन् 1782 ई. को हुई इसके साथ ही प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध समाप्त हो गया। इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं

  1. माधवराव द्वितीय को पेशवा के रूप में मान्यता मिली तथा राघोबा को वार्षिक पेंशन दे दी गई।
  2. साल्सिट पर अंग्रेज अधिकार स्वीकार कर लिया गया तथा शेष सभी क्षेत्र मराठों को अंग्रेजों द्वारा लौटा दिये गये।
  3. फतह सिंह गायकवाड़ को बड़ौदा का शासक स्वीकार कर उसके सारे प्रदेश लौटा दिये गये।

परिणाम:
इस सन्धि से अंग्रेजों व मराठों के मध्य लगभग 20 वर्षों तक शान्ति बनी रही लेकिन सन्धि से अंग्रेजों को मराठ शक्ति का आकलन करने का अवसर मिली और अपनी शक्ति बढ़ाने का भी समय मिला। नाना फड़नवीस और सिन्धिया के मतभेद खुलकर सामने आ गये।।

प्रश्न 11.
हैदरअली का जन्म कब और कहाँ हुआ? उसने मैसूर की सत्ता किस प्रकार प्राप्त की?
उत्तर:
हैदरअली का जन्म 1722 ई. में मैसूर के एक फौजदार व बँदीकोट के जागीरदार फतहमुहम्मद के यहाँ हुआ था। वयस्क होने पर वह अपनी योग्यता से डिंडीगल का फौजदार बना। मैसूर का शासक कृष्ण राज नाम मात्र का शासक था। सम्पूर्ण शक्ति वहाँ के मंत्री देवराज व नंदराज के हाथों में थी। 1761 ई. में हैदरअली मैसूर के नंदराज से सत्ता छीनकर मैसूर का शासक बन गया।

प्रश्न 12.
तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर:
टीपू मालाबार की सुरक्षा के लिए कोचीन में स्थित डच दुर्ग खरीदना चाहता था, लेकिन अंग्रेज समर्थित ट्रावणकोर के राजा ने इन्हें खरीदकर टीपू को नाराज कर दिया। यही तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध का तात्कालिक कारण था कार्नवालिस ने विशाल सेना लेकर मैसूर पर आक्रमण कर दिया। टीपू अधिक समय तक संघर्ष नहीं कर सका और 1792 में श्रीरंगपट्टनम की सन्धि के साथ यह युद्ध समाप्त हो गया।

प्रश्न 13.
श्रीरंगपट्टनम की सन्धि टीपू के लिए अपमानजनक क्यों थी?
उत्तर:
श्रीरंगपट्टनम की सन्धि 1792 ई. में टीपू सुल्तान व अंग्रेजों के मध्य हुई। यह सन्धि टीपू के लिए अपमानजनक थी क्योंकि इसके अनुसार टीपू का आधा राज्य उससे छीन लिया गया और यह राज्य अंग्रेजों और उसके समर्थकों को मिल गया। टीपू ने अंग्रेजों को 3 करोड़ रुपये क्षतिपूर्ति की राशि और बन्धक के रूप में अपने दो पुत्रों को रखना भी स्वीकार किया।

प्रश्न 14.
सहायक सन्धि की प्रमुख शर्ते क्या थीं व इसको स्वीकार करने वाले प्रमुख राज्य कौन से थे?
उत्तर:
सहायक सन्धि लार्ड वेलेजली की साम्राज्यवादी नीति के प्रसार का माध्यम थी। इसे लार्ड वेलेजली द्वारा भारत में अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए लागू किया गया था। इस सन्धि की प्रमुख बातें इस प्रकार थीं

  1.  इस सन्धि को स्वीकार करने वाले राज्यों को अपने यहाँ सुरक्षा व शान्ति के लिए एक अंग्रेज सेना रखनी पड़ती थी, जिसका पूर्ण नियंत्रण कम्पनी के अंग्रेज अधिकारियों के हाथ में था। इसका व्यय राज्यों को ही वहन करना होता था।
  2. राज्यों को कम्पनी की अनुमति के पश्चात् ही किसी यूरोपीय को राज्य की सेवा में रखा जा सकता था।
  3. राज्य की राजधानी में एक अंग्रेज रेजिडेन्ट रखना होता था।
  4. कम्पनी की अनुमति के बिना वह अपने विदेशी सम्बन्ध नहीं रख सकता था।
  5. इसके बदले कम्पनी राज्यों की सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेती थी।
  6. कम्पनी राज्यों को आश्वासन देती थी कि वे उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी।

इस सन्धि को स्वीकार करने वाले प्रमुख राज्य थे-

  1. हैदराबाद (1798)
  2. मैसूर (1799)
  3. अवध (1801)
  4. मराठ(1802)।

प्रश्न 15.
अंग्रेज व सिक्ख शासक महाराजा रणजीत सिंह के मध्य कौन-सी सन्धि हुई एवं इसकी मुख्य बातें क्या थीं?
उत्तर:
अंग्रेज व सिक्ख शासक महाराजा रणजीत सिंह के मध्य अप्रैल, 1809 में अमृतसर की सन्धि हुई। इस सन्धि के अनुसार

  1. सतलज नदी को सीमा मानकर पूर्वी प्रदेशों पर अंग्रेजों के नियंत्रण को स्वीकार कर लिया गया तथा उत्तर – पश्चिम में रणजीत सिंह को विस्तार की छूट दे दी गई।
  2. यह तय हुआ कि सन्धि की किसी धारा का उल्लंघन पर सन्धि समाप्त मानी जायेगी।
  3. दोनों ने एक – दूसरे का मित्र बने रहने का वादा किया। इस सन्धि से अंग्रेजों का वर्चस्व सतलज तक कायम हो गया। वे उत्तर में सिक्खों के भय से मुक्त हो गए।

प्रश्न 16.
डलहौजी की राज्य हड़प नीति क्या थी?
उत्तर:
डलहौजी द्वारा भारत में ब्रिटिश सार्वभौमिकता की स्थापना के लिए युद्ध के अतिरिक्त बुरे शासन (कुशासन) एवं भ्रष्टाचार के दोष के नाम पर तथा गोद निषेध द्वारा राज्यों को अपने अधीन करने के उपायों को व्यपगत सिद्धान्त या राज्य हड़पने की नीति के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 17.
डलहौजी की राज्य हड़प नीति द्वारा कब और किन राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया?
उत्तर:
डलहौजी की राज्य हड़प नीति द्वारा निम्नलिखित राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया

  1. सतारा (1848)
  2. सम्भलपुर (1849)
  3. झाँसी (1853)
  4. नागपुरंभ 1854)
  5. जैतपुर (1849)
  6. बघार (1850)
  7. उदयपुर (1852)
  8. तंजौर (1855)
  9. अवध (1856)।

प्रश्न 18.
1857 ई. से पहले भारत में कौन-कौन से विद्रोह हुए?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में आते ही आर्थिक शोषण व राजनैतिक हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था जिससे भारतीयों का असंतोष विभिन्न भागों में विद्रोह के रूप में प्रकट हुआ। इनमें 1806 में वैल्लोर, 1824 में बैरकपुर, 1842 में फिरोजपुर में 34वीं रेजीमेन्ट का विद्रोह, 1849 में सातवीं बंगाल कैवलरी विद्रोह, 1855 – 56 में संथालों का विद्रोह, 1816 में बरेली में उपद्रव, 1831 – 33 में कोल विद्रोह, 1848 में कांगड़ा विद्रोह आदि राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक कारणों से हुए थे। धीरे-धीरे सुलगती आग 1857 में धधक उठी और उसने अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को हिला दिया।

प्रश्न 19.
1833 का चार्टर एक्ट क्या था?
उत्तर:
1833 ई. में एक चार्टर एक्ट पास हुआ जिसमें धर्म, जाति, रंग, वंश आदि के आधार पर सैनिक और असैनिक सभी सार्वजनिक सेवाओं में बिना भेदभाव के नियुक्त किए जाने का प्रावधान था। लेकिन अंग्रेजों ने इस नीति का पालन नहीं किया। उच्च पद केवल अंग्रेजों के लिए आरक्षित थे।

प्रश्न 20.
1857 ई. की क्रांति के दौरान राजनीतिक असंतोष के क्या कारण थे?
उत्तर:
1857 ई. की क्रांति के दौरान राजनीतिक असंतोष के निम्नलिखित कारण थे

  1. मुगल बादशाह का अपमान – भारतीय मुसलमान अंग्रेजों से इस कारण नाराज थे क्योंकि अंग्रेज मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर के प्रति अपमानजनक व्यवहार करते थे। बहादुरशाह की मृत्यु के पश्चात् अंग्रेजों द्वारा बादशाह के पद को समाप्त करने की घोषणा, सिक्कों से नाम हटाना, लालकिले को खाली कराना आदि बातों ने मुसलमानों में रोष उत्पन्न कर दिया।
  2. डलहौजी की राज्य हड़प नीति – डलहौजी ने अपनी साम्राज्यवादी हड़प नीति के तहत अनेक रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। फलस्वरूप उन रियासतों के शासक अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए।
  3. सार्वजनिक सेवाओं में भारतीयों के साथ भेदभाव – 1833 के चार्टर एक्ट में स्पष्ट उल्लेख था कि धर्म, जाति, वंश आदि से इतर सभी सार्वजनिक सेवाओं में पक्षपात रहित नियुक्ति की जायेगी। इसका पालन अंग्रेजों ने नहीं किया। उच्च पद केवल अंग्रेजों के लिए सुरक्षित थे।

प्रश्न 21.
1857 ई. के विद्रोह के कोई दो सामाजिक कारण बताइये।
उत्तर:

  1. भारतीयों को लगता था कि ब्रिटिश सरकार पश्चिमी शिक्षा, पश्चिमी विचारों एवं पश्चिमी संस्थानों के माध्यम से भारतीय समाज को सुधारने के लिए विशेष प्रकार की नीतियाँ लागू कर रही है।
  2. अंग्रेज भारतीयों को घृणा की दृष्टि से देखते थे तथा उनका व्यवहार भारतीयों के लिए अपमानजनक था जिससे भारतीयों में रोष उत्पन्न हुआ।

प्रश्न 22.
1857 ई. के विद्रोह के लिए आर्थिक कारण किस प्रकार उत्तरदायी रहे?
उत्तर:
भारत में अंग्रेजी शासन का मूल उद्देश्य भारत का आर्थिक शोषण था। उनकी शोषण की नीति ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पतन कर दिया। भूराजस्व की अधिकता तथा वसूली में सेना का प्रयोग कृषकों का शोषण का कारण बने। भारत में निर्मित माल के निर्यात पर अधिक कर एवं इंग्लैण्ड से आने वाले माल पर न्यूनतम आयात कर से भारत का कपड़ा उद्योग नष्ट होने लगी। औद्योगीकरण के फलस्वरूप मशीनों के प्रयोग के कारण कुटीर उद्योगों का विनाश हो गया। इस प्रकार भारतीय धन-सम्पदा के अंग्रेजों द्वारा लगातार शोषण ने भारतीयों में असंतोष की भावना पैदा कर दी। यह असंतोष 1857 ई. की क्रांति के रूप में फूट पड़ा।

प्रश्न 23.
बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने नेतृत्व सँभालने के लिए पुराने शासकों से क्यों आग्रह किया?
उत्तर:
1857 ई० में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में निश्चिय ही उच्च नेतृत्व तथा संगठन की आवश्यकता थी। इस उद्देश्य से विद्रोहियों ने ऐसे व्यक्तियों की शरण ली जो सामान्य जनता में पर्याप्त लोकप्रिय थे

  1. सबसे पहले मेरठ के विद्रोही सिपाही दिल्ली गये तथा उन्होंने वयोवृद्ध मुगल शासक बहादुरशाह द्वितीय से अपना नेतृत्व करने को कहा। उन्होंने विद्रोहियों के लिएँ नेता बनना स्वीकार कर लिया।
  2. विद्रोही सिपाहियों ने कानपुर में नाम साहेब को विद्रोह की कमान सँमालने पर मजबूर कर दिया।
  3. सामान्य जनता के दबाव तथा अंग्रेजों की दमनकारी नीति के कारण रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी से विद्रोह का नेतृत्व किया।
  4. बिहार के जगदीशपुर में कुछ ऐसी ही स्थिति में कुँवरसिंह ने विद्रोह का नेतृत्व सँभाला।
  5. लखनऊ में बेगम हजरत महल ने विद्रोह की कमान सँभाली।

प्रश्न 24.
1857 ई० के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की किस हद तक भूमिका थी?
उत्तर:
1857 ई० के विद्रोह के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे, इसमें से धार्मिक कारण भी एक था। इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं

  1. 1813 ई० में ईसाई मिशनरियों को भारत में मजहबी प्रचार की स्वीकृति मिल गई।
  2. ईसाई धर्म प्रचारक अपने धर्म का प्रचार करने के साथ हिन्दू धर्म ग्रन्थों की निन्दा भी करते थे। इससे हिन्दुओं में अत्यधिक असंतोष व्याप्त हुआ।
  3. अनेक हिन्दू सिपाहियों को समुद्री मार्ग से दूसरे देश भेजा गया। उस समय हिन्दू समुद्र की यात्रा करना अपवित्र मानते थे। इससे सैनिकों में अत्यधिक असन्तोष उत्पन्न हुआ।
  4. सिपाहियों को वे कारतूस दिये गये जिनको प्रयोग करने से पहले मुँह से छीलना पड़ता था। जो परत सिपाही छीलते थे तथाकभित रूप में वह गाय तथा सुअर की चर्बी से बनी होती थी। यह बात सिपाहियों को धर्म के विरुद्ध लगी। इसी घटना ने 1857 ई० के विद्रोह की नींव रखी।

प्रश्न 25.
सामान्य सेना भर्ती अधिनियम व डाकघर अधिनियम क्या थे?
उत्तर:
सामान्य सेना भर्ती अधिनियम लार्ड कैनिंग द्वारा 1856 ई. में पारित किया गया। इसके अनुसार अब भारतीय सैनिकों को भारत के बाहर समुद्र पार भी सरकार आवश्यकतानुसार जहाँ सेना भेजे जाना पड़ेगा; जबकि भारतीय सैनिक समुद्र को पार करना धर्म के विरुद्ध मानते थे। डाकघर अधिनियम भारतीय सैनिकों को नि:शुल्क डाक सुविधा प्रदान करने के लिए पारित किया गया था जो 1854 में निरस्त कर दिया गया। इन सब बातों ने सैनिकों में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की भावना भर दी।

प्रश्न 26.
1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर:
1857 ई. में मेरठ छावनी में सैनिकों को प्रयोग करने के लिए नए कारतूस दिए गए थे जिन्हें प्रयोग करने से पहले दाँतों से खींचना पड़ता था। अफवाह थी कि इन पर गाय व सूअर की चर्बी लगी हुई है। अपना धर्म भ्रष्ट होने के भय से हिन्दू व मुसलमान सैनिकों ने इनका प्रयोग करने से इनकार कर दिया एवं अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह शुरू कर दिया।

प्रश्न 27.
अगर चर्बी वाले कारतूसों की घटना न होती तो क्या 1857 का विद्रोह होता? आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर:
हमारे विचार में यदि चर्बी वाले कारतूसों की घटना नहीं होती तो भी यह विद्रोह होता क्योंकि यह विद्रोह आकस्मिक नहीं था। यह विद्रोह दशकों से जारी अंग्रेजों की शोषणपूर्ण, दमनपूर्ण तथा भेदभावपूर्ण नीतियों में पिस रहे भारतीय लोगों के रोष का परिणाम था। घास के ढेर में चिंगारी लगाने की आवश्यकता थी, यदि यह चिंगारी चर्बी वाले कारतूस न होते तो कोई और चिंगारी ढेर को भस्म कर डालती।

प्रश्न 28.
बहादुर शाह जफर कौन थे? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
बहादुर शाह जफर दिल्ली के अन्तिम मुगल सम्राट थे। क्रान्तिकारियों द्वारा अनुरोध करने पर वे 1857 की क्रान्ति का नेतृत्व करने के लिए राजी हो गये। यद्यपि बहादुरशाह उस समय तक अत्यन्त वृद्ध हो चुके थे तो भी उन्होंने दिल्ली से इस क्रान्ति का नेतृत्व किया। बहादुर शाह ने सैनिकों द्वारा आरम्भ किये गये इस विद्रोह को युद्ध का रूप प्रदान किया।
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बहादुर शाह ने भारत की सभी रियासतों के शासकों को पत्र लिखकर एकजुट होने तथा संगठित होने का अनुरोध किया। किन्तु बहादुर शाह की यह योजना सफल नहीं हो सकी तथा उनको बन्दी बना लिया गया और निर्वासित करे रंगून भेज दिया गया जहाँ 1862 ई. में उनकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार भारत में वैभवशाली मुगल साम्राज्य का पूर्ण रूप से पतन हो गया।

प्रश्न 29.
दिल्ली से 1857 के विद्रोह का प्रसार किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
क्रान्तिकारियों ने 12 मई, 1857 को दिल्ली पर अधिकार कर लिया। मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय ने क्रान्तिकारियों का नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया। उसे भारत का सम्राट घोषित किया गया। इस समय लेफ्टिनेंट विलोबी ने क्रान्तिकारियों का कुछ प्रतिरोध किया लेकिन पराजित हुआ। सत्ता के प्रतीक के रूप में दिल्ली पर अधिकार के साथ ही इसे 1857 की क्रान्ति का आरम्भ माना जाता है। विद्रोह शीघ्र ही उत्तरी और मध्य भारत में फैल गया। भारतीय नरेशों को संग्राम में सम्मिलित होने के लिए पत्र लिखे गए। लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली, बनारस, बिहार के कुछ क्षेत्र झाँसी और कुछ अन्य प्रदेश सभी में विद्रोह हो गया।

प्रश्न 30.
1857 के विद्रोह में राजस्थान से किस नेतृत्वकर्ता ने मुख्य भूमिका निभाई?
उत्तर:
राजस्थान में आऊवा के ठाकुर कुशाल सिंह ने नसीराबाद, नीमच और ऐरनपुरी की अंग्रेज सैनिक छावनियों में क्रान्ति का बिगुल बजाया। ठाकुर कुशाल सिंह ने अंग्रेज रेजिडेन्ट माक मासन की गर्दन अलग कर उसे आऊवा के किले पर लटका दिया लेकिन अंग्रेज सेना ने शीघ्र ही आऊवा पर अधिकार कर लिया। मेवाड़ तथा कोटा में भी विद्रोह ने उग्र रूप धारण कर लिया। आम जनता ने इस क्रान्ति में अभूतपूर्व साहस का परिचय दिया लेकिन उचित नेतृत्व के अभाव में विद्रोह सफल नहीं हो सका।

प्रश्न 31.
दक्षिण भारत में क्रान्तिकारियों का नेतृत्व करने वाले प्रमुख व्यक्तियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
दक्षिण भारत से 1857 के विद्रोह के क्रान्तिकारियों का नेतृत्व करने वाले प्रमुख व्यक्ति थे-रंगा बापूजी गुप्ते (सतारा), सोना जी पण्डित, रंगाराव पाण्डे व मौलवी सैय्यद अलाउद्दीन (हैदराबाद), भीमराव व मुंडर्गी, छोटा सिंह (कर्नाटक), अण्णाजी फड़नवीस (कोल्हापुर), गुलाम गौस व सुल्तान बख्श (मद्रास) अरणागिरि, कृष्णा (चिंगलफुट) मुलबागल स्वामी (कोयम्बटूर) मुल्ला सली, कोन जी सरकार और विजय कुदारत कुंजी मामा (केरल)।

प्रश्न 32.
कम्पनी शासन का अन्त किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
1857 की क्रान्ति के परिणामस्वरूप 1 नवम्बर, 1858 को महारानी की घोषणा के द्वारा ब्रिटिश सरकार ने भारत का शासन ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथों से लेकर भारत सरकार अधिनियम (1858) द्वारा ब्रिटिश सम्राट के हाथों में दे दिया। बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के पद को समाप्त कर भारत के शासन संचालन हेतु 15 सदस्यों की एक परिषद इण्डिया कौंसिल का गठन किया गया जिसके सभापति को भारतीय राज्य सचिव कहा गया। गवर्नर जनरल का पदनाम वायसराय कर दिया गया।

प्रश्न 33.
क्या 1857 का विद्रोह अंग्रेजों के विरुद्ध मुसलमानों का षड्यन्त्र था? आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर:
कुछ विद्वान 1857 के विद्रोह को अंग्रेजों के खिलाफ मुसलमानों का षड्यन्त्र मानते हैं। इनका कहना है कि यह विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय मुसलमानों का षड्यंत्र था ताकि मुसलमान अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ कर मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा सकें। परन्तु कुछ विद्वान इससे सहमत नहीं थे। उनके अनुसार इस विद्रोह में केवल मुसलमानों ने इसमें भाग नहीं लिया बल्कि हिन्दुओं ने भी इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया था। इसके अतिरिक्त देश के सभी मुसलमानों ने इसमें भाग लिया। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि 1857 का विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ मुसलमानों का षड्यंत्र था।

प्रश्न 34.
1857 के विद्रोह के परिणामस्वरूप अंग्रेजों की भारतीय नरेशों के प्रति नीति में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर:
1857 के विद्रोह के परिणामस्वरूप महारानी की घोषणा के अनुसार क्षेत्रों की सीमा विस्तार की नीति’ समाप्त कर दी गई और स्थानीय राजाओं के अधिकार गौरव तथा सम्मान की रक्षा का विश्वास दिलाया गया। भारतीय शासकों को दत्तक पुत्र गोद लेने की अनुमति दी गई।

प्रश्न 35.
फूट डालो शासन करो’ की नीति क्या थी?
उत्तर:
1857 की क्रान्ति में साम्प्रदायिक सौहार्द से घबराकर अंग्रेजों ने साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद आदि संकुचित प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया। इस आधार पर वे भारतीयों की एकता में फूट डालना चाहते थे। अतः उन्होंने फूट डालो शासन करो की नीति अपनायी।

प्रश्न 36.
“1857 की क्रान्ति एक जन क्रान्ति थी।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1857 का विद्रोह एक जन क्रान्ति था क्योंकि इसमें किसान, जमींदार, सैनिक और विभिन्न व्यवसायों में लगे लोगों ने भाग लिया। जिस तीव्र गति से यह विद्रोह फैला उससे यह बात प्रकट होती है कि विद्रोह को जनता का प्रबल समर्थन प्राप्त हुआ। बहुत से स्थानों पर जनता ने क्रान्तिकारियों को पूर्ण सहयोग दिया। कैनिंग ने लिखा अवध में हमारी सत्ता के विरुद्ध किया गया विद्रोह बहुत व्यापक था। जोन ब्रूस नॉर्टन ने भी इसे जन विद्रोह बताया है। अतः स्पष्ट होता है कि 1857 की क्रान्ति एक जन क्रान्ति थी।

प्रश्न 37.
किन विद्वानों ने 1857 के विद्रोह को राष्ट्रीय विद्रोह माना है?
उत्तर:
बेंजामिन डिजरेली, अशोक मेहता, वीर सावरकर, डॉ. सत्या राय आदि ने 1857 के विद्रोह को राष्ट्रीय विद्रोह माना है। राष्ट्रीय भावना के कारण ही सभी वर्गों के लोगों ने बिना मतभेद के आपसी वैमनस्य भुलाकर अंग्रेजों को भारत से बाहर निकलने का सामूहिक प्रयास किया जो राष्ट्रीय विद्रोह की श्रेणी में आता है।

प्रश्न 38.
“1857 का विद्रोह भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था।” वीर सावरकर के इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वी. डी. सावरकर ने अपनी पुस्तक ‘वार ऑफ इण्डियन इण्डिपेन्डेन्स’ में 1857 के विद्रोह को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा है। इसका वास्तविक स्वरूप कुछ भी क्यों न हो शीघ्र ही यह विद्रोह भारत में अंग्रेजी सत्ता के लिए चुनौती बन गया और इसे अंग्रेजों के विरुद्ध राष्ट्रीय स्वतंत्रता युद्ध का गौरव प्राप्त हुआ। इसे भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहना उचित है क्योंकि इसमें राष्ट्रवादी तत्वों का समावेश था तथा प्रथम बार भारतीयों ने एकजुट होकर अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए सशस्त्र प्रयास किया था।

RBSE Class 12 History Chapter 5 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
व्यापार करने के उद्देश्य से कौन – कौन सी विदेशी कम्पनियाँ भारत में आयीं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं आर्थिक धरोहर ने सर्वदा संसार को आकर्षित किया है। प्राचीन काल से ही भारत के अन्य देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध भी रहे हैं। 17वीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोपीय देशों में अधिक से अधिक उपनिवेश प्राप्त करने की होड़-सी मच गई। इस समय भारत संसार के सबसे धनी देशों में से एक था। अतः यूरोपवासी भारत की धन – सम्पदा एवं संसाधनों से आकर्षित होकर इसे अपना उपनिवेश बनाने के उद्देश्य से यहाँ आये। औपनिवेशिक व्यापारियों का, मूल उद्देश्य खरीद – फरोख्त द्वारा मुनाफा कमाना ही नहीं वरन् उनकी रुचि अपनी पूँजी और प्रौद्योगिकी का उपयोग कर उत्पादन बढ़ाना और जहाँ तक सम्भव हो कच्चा माल प्राप्त कर माल तैयार करना था। भारत में निम्नलिखित देशों के व्यापारी व्यापार करने के लिए आये।

1. पुर्तगाल:
प्रथम यूरोपीय जिसने यूरोप से भारत के लिए सीधे समुद्री मार्ग की खोज की वह वास्कोडिगामा था जो आशा अन्तरीप के रास्ते होता हुआ मोजांबिक पहुँचने पर एक भारतीय पथ प्रदर्शक द्वारा 17 मई, 1498 में कालीकट पहुँचा। 1502 ई. में वास्कोडिगामा दूसरी बार भारत आया और उसने कन्नानौर, कालीकट, कोचीन में व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये। 17वीं शताब्दी के आरम्भ से पुर्तगाली शक्ति का ह्मस होना शुरू हो गया और केवल गोआ, दमन तथा दीव तक सीमित होकर रह गये।

2. डच:
डच हॉलैण्ड निवासी थे। डच यूनाइटेड ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना कुछ व्यापारियों ने मिलकर 1602 ई. में की। डचों ने बांटम, मलक्का, जावा, सुमात्रा, भारत के मछलीपट्टम तथा निजामपट्टनम में व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये।

3. डेनमार्कवासी:
डेनमार्क निवासियों ने तन्जौर जिले में एक स्थान पर आबादी की स्थापना की परन्तु यह अपनी नींव सुदृढ़े न रख सके और इन्होंने अपनी बस्तियाँ 1845 में अंग्रेजों को बेच दी।

4. ब्रिटिश:
31 दिसम्बर, 1600 ई. को ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी को महारानी एलिजाबेथ द्वारा व्यापार करने का अधिकार पत्र प्राप्त हुआ एवं कप्तान हॉकिन्स के नेतृत्व में 1608 ई. में पहला ब्रिटिश व्यापारिक जहाज हेक्टर सूरत बन्दरगाह पहुँचा। ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया ने सबसे पहली व्यापारिक कोठी सूरत में स्थापित की। तत्पश्चात् उन्होंने अहमदाबाद, बुरहानपुर, अजमेर और आगरा में व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये।

5. फ्रांसीसी:
14वें लुई व उसके मंत्री कोलबर्ट के नेतृत्व में 1664 ई. में फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई। दिसम्बर 1667 में कम्पनी जनरल फ्रांसिस केरन द्वारा सूरत में पहली फ्रांसीसी व्यापारिक बस्ती बसायी गयी। फ्रांसीसियों द्वारा पाण्डिचेरी, चन्द्र नगर, बालासोर, कासिम बाजार आदि स्थानों पर व्यापारिक केन्द्र बनाये गये। इस प्रकार भारत में अनेक यूरोपीय कम्पनियों ने अपने व्यापार क़ा विस्तार करने का प्रयास किया परन्तु अन्त में अपनी राजनैतिक प्रभुत्व जमाने व व्यापार की विस्तार करने में अंग्रेज सफल रहे।

प्रश्न 2.
प्लासी के युद्ध के कारण तथा परिणामों का विस्तार से वर्णन करो।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले प्रान्तों में बंगाल को सर्वाधिक सम्पन्न प्रन्ति था। बंगाल में स्वतंत्र राज्य की स्थापना 1740 ई. में अलीवर्दी खान द्वारा की गई। 1756 ई. में अलवर्दी खाने की मृत्यु के पश्चात् उसका पोता सिराजुद्दौला बंगाल को नवाब बना। नवाब के राजनीतिक, आर्थिक व अन्य मामलों में अंग्रेजों से मतभेद बढ़ते चले गये जिसके परिणामस्वरूप 1757 ई. में प्लासी को युद्ध हुआ। प्लासी के युद्ध के कारण।

  1. नवाब के विरोधी घसीटी बेगम, राज बल्लभ, शौकत जंग आदि उसको हटाने का षड्यन्त्र रच रहे थे। अंग्रेजों ने भी विरोधियों का साथ दिया और नवाब की आज्ञा की अवहेलना की।
  2. जब सिराजुद्दौला का सिंहासनारोहण हुआ तो अंग्रेजों ने न तो भेट दी और न ही उपस्थित हुए। नवाब ने अंग्रेजों का कासिम बाजार फैक्टरी को देखने की इच्छा व्यक्त की तो अंग्रेजों ने दिखाने से मना कर दिया। उनकी यह कार्यवाही एक प्रकार की नवाब के प्रति अशिष्टता थी।
  3. अंग्रेज 1717 ई. में मिले अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रहे थे। वे दस्तक को भारतीय व्यापारियों को बेच देते थे। इससे नवाब को आर्थिक नुकसान हो रहा था।
  4. नवाब के किलेबंदी न करने के आदेश को फ्रांसीसियों ने मान लिया लेकिन अंग्रेजों ने किलेबंदी जारी रखी।
  5. अंग्रेजों की बस्ती नवाब के शत्रुओं के लिए आश्रय स्थल बनी हुई थी जिनमें दीवान राजबल्लभ और उसका पुत्र कृष्ण बल्लभ प्रमुख थे जब नवाब ने अंग्रेजों से इन्हें माँगा तो अंग्रेजों ने ऐसा करने से मना कर दिया।

इस प्रकार सिराजुद्दौला तथा अंग्रेजों के मध्य प्लासी के युद्ध के कारण बने जिसका परिणाम कई रूपों में सामने आया। प्लासी के युद्ध के परिणाम-

  1. बंगाल अंग्रेजों के अधीन हो गया व फिर स्वतंत्र नहीं हो सका।
  2. बंगाल का नवाब मीर जाफर को बनाया गया जो अंग्रेजों की कठपुतली था।
  3. 24 परगनों को प्रदेश अंग्रेजों को जागीर के रूप में प्राप्त हुआ तथा कम्पनी के कर्मचारियों को बिना कर चुकाए। व्यापार की सुविधा प्राप्त हुई।
  4. कलकत्ता में स्वतंत्र टकसाल की शुरुआत हुई और अगस्त 1757 में कम्पनी ने प्रथम सिक्का जारी किया।
  5. कम्पनी के बड़े-बड़े अधिकारियों व स्वयं क्लाइवे को भेंट स्वरूप नवाब द्वारा बहुमूल्य उपहार दिए गए।

इस प्रकार प्लासी के युद्ध ने अंग्रेजों को भारत में अपनी राजनीतिक सत्ती जमाने का आधार दिया। यह एक सौदा था जिसमें बंगाल के धनी सेठों तथा मीर जाफर ने नवाब को अंग्रेजों के हाथ बेच डाला।

प्रश्न 3.
बक्सर का युद्ध किन कारणों से लड़ी गया व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बंगाल में कम्पनी एक कठपुतली शासक चाहती थी जो वफादार और भीरु हो, और उनके हितों को पूरा करती रहे। मीर कासिम अंग्रेजों की शक्ति को अधिक बढ़ने से और अपनी शक्ति को कम होने से रोकना चाहता था। इसके लिए उसने प्रशासनिक पुनर्गठन का प्रयास किया, लेकिन भ्रष्टाचार और ब्रिटिश हस्तक्षेप के कारण वह सफल नहीं हुआ। अब आर्थिक मामलों व विभिन्न सुविधाओं को लेकर दोनों में मतभेद बढ़ने लगे जिसको परिणाम बक्सर के युद्ध के रूप में निकला बक्सर के युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

  1. नवाब की सम्प्रभुता अंग्रेजों को पसन्द नहीं आई। नवाब का राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर ले जाना, सेना को यूरोपियन विशेषताओं से प्रशिक्षित कराना, शस्त्र निर्माण व गोला बारूद के कारखाने खोलने जैसे कार्यों ने अंग्रेज और नवाब के मतभेद बढ़ा दिए।
  2. मुगल सम्राट शाहआलम को अंग्रेजों द्वारा नवाब को नजराने के रूप में 12 लाख रुपये देने के लिए विवश करने को नवाब ने अपनी स्वतंत्रता पर आघात माना।
  3. कम्पनी वे उसके अधिकारी बंगाल में मिली व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग कर रहे थे। इससे नवाब को आर्थिक हानि हो रही थी। नवाब द्वारा भारतीय व्यापारियों को भी यह छूट देने के कारण अंग्रेज नाराज हो गये।
  4. 1760 की सन्धि में सैनिक व्यय के लिए कम्पनी को मिले तीन जिले बर्दवान, मिदनापुर व चटगाँव वं उनसे वसूले गये राजस्व को नवाब द्वारा लौटाने की माँग की गई क्योंकि सेना का प्रयोग नवाब के विरुद्ध किया जा रहा था।
  5. जून 1763 में मेजर ऐंडमेड को मीर कासिम के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भेजा गया। नवाब की सेनाओं के साथ बहुत-सी लड़ाइयाँ लड़ी गईं। जब मीर कासिम का पक्ष दुर्बल पड़ गया तो वह पटना की ओर चला गया। अंग्रेजों ने मीर जाफर को पुनः नवाब बनायो।
  6. मीर कासिम ने पराजित होने के पश्चात् अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाह आलम के साथ गठबन्धन का निर्माण किया तथा अंग्रेजों को बंगाल से बाहर निकालने की योजना बनाई।

22 अक्टूबर, 1764 को बक्सर में अंग्रेजों और तीनों की सम्मिलित सेनाओं (बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला व मुगल सम्राट शाह आलम) के मध्य युद्ध हुआ जिसमें अंग्रेज विजयी रहे। इस युद्ध से इलाहाबाद तक का प्रदेश अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गयी तथा दिल्ली का मार्ग भी खुल गया।

प्रश्न 4.
द्वितीय आं ल मराठा युद्ध के लिए कौन से कारक उत्तरदायी रहे?
उत्तर:
1798 ई. में लार्ड वेलेजली गवर्नर जनरल बनकर भारत आया। 1800 ई. में मराठा दरबार में सिन्धिया और होल्कर में नाना फड़नवीस की मृत्यु के पश्चात् अपना वर्चस्व स्थापित करने को लेकर मतभेद प्रारम्भ हो गया। इस समय बाजीराव द्वितीय पेशवा पद पर नियंत्रण स्थापित करने में सफल रहा। अक्टूबर 1802 को होल्कर ने पेशवा और सिन्धिया की संयुक्त सेना को पराजित कर दिया और विनायक राव को पेशवा बना दिया। बाजीराव पेशवा पद की पुनः प्राप्ति के लिए अंग्रेजों की शरण में चला गया जिससे अंग्रेजों को पुनः मराठा राजनीति में हस्तक्षेप करने का अवसर मिल गया। द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध दो चरणों में लड़ा गया। पहला चरण 1802-04 व द्वितीय 1804 – 05 तक।

युद्ध के कारण

  1. पेशवा अपने ही मराठा सरदारों की समस्याओं को ठीक प्रकार से समाधान नहीं कर पाया जब होल्कर व सिन्धिया के बीच संघर्ष छिड़ गया तो बाजीराव द्वितीय अंग्रेजों की शरण में चला गया।
  2. मराठा राजनीति में अपना वर्चस्व स्थापित करने को लेकर होल्कर व सिन्धिया में प्रतिस्पर्धा थी इस फूट का लाभ अंग्रेजों को मिला।
  3. 1800 ई. में नाना फड़नवीस की मृत्यु के पश्चात् मराठों को एक करने वाला कोई नेता नहीं रहा परिणामस्वरूप मराठा सरदारों में आपसी कलह बढ़ती गयी और जिसकी परिणति युद्ध के रूप में हुई।
  4. 1798 में लार्ड वेलेजली गवर्नर जनरल बनकर भारत आया जिसका प्रमुख उद्देश्य अपने अंग्रेज साम्राज्य का प्रसार करना था। मराठों पर आक्रमण करने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने अपदस्थ पेशवा से बेसिन की सन्धि कर ली।

उपरोक्त कारणों ने मराठों व अंग्रेजों के मध्य युद्ध की स्थिति उत्पन्न कर दी जिसके कारण धीरे-धीरे मराठा राज्य दुर्बल होता गया।

प्रश्न 5.
सहायक सन्धि किसने और क्यों लागू की। इससे कम्पनी को क्या लाभ हुआ तथा देशी रियासतों को क्या हानि उठानी पड़ी?

अथवा

सहायक सन्धि लागू करने का श्रेय किसे जाता है इसके लाभ एवं हानि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1798 ई. में लार्ड वैलेजली गवर्नर जनरल बनकर भारत आया। उसका प्रमुख उद्देश्य अंग्रेज साम्राज्य का प्रसार करना था। लार्ड वेलेजली ने भारत में देशी रियासतों के साथ सन्धि करके अपने अधीन लाने और भारत में अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने का नया तरीका अपनाया जिसे सहायक सन्धि के नाम से जाना जाता है। इस सन्धि को स्वीकार करने वाले प्रमुख राज्य हैदराबाद, मैसूर, अवधं तथा मराठा थे।

सहायक सन्धि से कम्पनी को लाभ

  1. यह प्रणाली साम्राज्य निर्माण के कार्य में भेदिए शत्रु की भूमिका निभाने लगी। भारतीय राज्य नि:शस्त्र हो गए।
  2. भारतीय राज्यों के व्यय पर एक बड़ी सेना मिल गई।
  3. भारतीय राजाओं की राजधानियों में कम्पनी की सेना रखने से कम्पनी का बहुत से सामरिक महत्व के स्थानों पर नियंत्रण हो गया।
  4. कम्पनी की सेना उसकी राजनीतिक सीमाओं से बहुत आगे चले जाने में सफल हुई।
  5. कम्पनी भारत में अन्य यूरोपीय देशों विशेषकर फ्रांसीसी चालों को विफल करने में पूर्णतः सफल हो गई।
  6. कम्पनी भारतीय शासकों के आपसी विवादों में मध्यस्थ बन गई।
  7. राज्यों में स्थित अंग्रेज रेजिडेन्ट प्रभावशाली हो गए और इनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करने लगे।

देशी राज्यों को हानियाँ

  1. निशस्त्रीकरण और विदेशी सम्बन्धों को कम्पनी के अधीन स्वीकार करने से वे अपनी स्वतन्त्रता खो बैठे।
  2. रेजिडेन्टों ने राज्यों के प्रशासन में अत्यधिक हस्तक्षेप करना आरम्भ कर दिया।
  3. कमजोर और उत्पीड़क राजा की रक्षा हुई लेकिन जनता को अपनी अवस्था सुधारने से वंचित रखा।

सन्धि स्वीकार करने वाले राज्य शीघ्र ही दिवालिया हो गये। कम्पनी ने प्रायः राज्य की आय का 1/3 भाग आर्थिक सहायता के रूप में राज्यों से लिया।

प्रश्न 6.
आंग्ल सिक्ख युद्ध का वर्णन कीजिए।

अथवा

सिक्ख राज्य का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय किस प्रकार हुआ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिक्ख राज्य की स्थापना 12 मिसलों को मिलाकर एक संगठित रूप में महाराजा रणजीत सिंह ने की थी। 27 जून, 1839 को रणजीत सिंह की मृत्यु होने के पश्चात् सरदारों की महत्वाकांक्षा व स्वार्थ जाग उठे जिसने अंग्रेजों व सिक्खों के मध्य युद्धों की स्थिति को जन्म दिया क्योंकि दोनों के हित आपस में टकराते थे।

1. प्रथम आंग्ल सिक्ख युद्ध:
पंजाब में गुटबंदी और राजनैतिक अराजकता के माहौल में डोगरा सरदार गुलाब सिंह और सिक्ख सेना व सामन्तों के संघर्ष ने स्थिति और अधिक खराब कर दी। उधर खालसा सेना पर रानी जिन्दा तथा लाल सिंह का नियंत्रण कम हो रहा था। इस स्थिति का लाभ उठाकर अंग्रेजों ने 1843 ई. को सिन्ध पर अधिकार कर लिया जिससे सिक्ख नाराज हुए लेकिन सिन्ध तक पहुँचने के लिए पंजाब को जीतना आवश्यक था इसलिए 13 दिसम्बर, 1845 में हार्डिग्ज ने युद्ध की घोषणा कर दी। पाँच स्थानों पर युद्ध हुआ जिसमें सिक्ख पराजित हुए। लाहौर अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया। 1 मार्च 1846 में लाहौर की सन्धि के साथ यह युद्ध समाप्त हुआ।

2. द्वितीय आंग्ल सिक्ख युद्ध-सिक्ख नेताओं के विश्वासघात से मिली पराजय से सिक्ख बहुत क्रुद्ध थे। 1847 – 48 में किये गये सुधार सिक्ख सरदारों के हितों के विपरीत थे। अंग्रेज रेजिडेन्ट वे अंग्रेज अधिकारी लगातार सिक्ख राज्यों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे थे। रानी जिन्दा को षड्यन्त्र रचने के आरोप में कैद कर चुनार भेज दिया गया। इससे सिक्खों में रोष पैदा हो गया। इधर महाराजा दिलीप सिंह के वैवाहिक मामलों में दखल देकर और मुल्तान गवर्नर मूलराज को स्थानीय सैनिक विद्रोह व अधिक लगान की माँग ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए विवश कर दिया।

22 नवम्बर, 1848 को रामनगर का युद्ध अंग्रेजों व सिक्खों के मध्य अनिर्णायक रहा। फरवरी 1849 में गुजरात की लड़ाई में सिक्ख सरदार राजा का सहयोग न करने से हार गये तथा 13 मार्च, 1849 को युद्ध समाप्त हो गया। लार्ड डलहौजी ने 29 मार्च, 1849 को एक घोषणा कर पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया। महाराजा दिलीप सिंह को पेंशन दे दी गई। ब्रिटिश भारत की सीमाएँ अफगानिस्तान तक पहुँच गई।

प्रश्न 7.
गोद निषेध प्रथा क्या थी? इसके अन्तर्गत किन राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया?
उत्तर:
गोद निषेध प्रथा लार्ड डलहौजी द्वारा राज्य हड़पने की नीति का प्रमुख अंग थी। हिन्दू विधि के अनुसार किसी सत्ताधारी शासक को यदि पुत्र नहीं होता था तो वे अपने निकट सम्बन्धी के पुत्र को गोद लेकर दत्तक पुत्र बना लिया करते थे। शासक की मृत्यु के पश्चात् दत्तक पुत्र को वे सभी अधिकार प्राप्त होते थे जो एक वास्तविक पुत्र कों होते थे।

डलहौजी द्वारा भारतीय नि:संतान शासकों को गोद लने से रोक दिया गया क्योंकि उसका मानना था कि ऐसा करने से उनके राज्य आसानी से ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बन जायेंगे। इसे गोद निषेध प्रथा के नाम से जाना जाता है। इस नीति द्वारा अनेक राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया-

  1. =सतारा – सतारा प्रथम राज्य था जिसका विलय 1848 में ब्रिटिश साम्राज्य में किया गया। राजा अप्पा साहिब के कोई पुत्र नहीं था, मृत्यु से पूर्व उन्होंने कम्पनी की अनुमति के बिना अपना दत्तक पुत्र बना लिया था। डलहौजी ने इस गोद लेने की कार्यवाही को अवैधानिक माना और सतारा को आश्रित राज्य घोषित कर इसका विलय कर लिया।
  2. सम्भलपुर – राजा नारायण को पुत्र नहीं था और न ही वे दत्तक पुत्र बना सके अतः उसके राज्य को 1849 को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया।
  3. झाँसी – झांसी के शासक गंगाधर राव की मृत्यु के पश्चात् रानी लक्ष्मी बाई ने दामोदर राव को दत्तक पुत्र गोद लिया जिसे डलहौजी ने अस्वीकार कर झाँसी को फरवरी 1854 में अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।
  4. नागपुर – 1853 राजा रघुजी तृतीय की मृत्यु के बाद रानी ने राजा की इच्छानुसार यशवन्त राव को गोद लिया लेकिन डलहौजी ने इसे भी अस्वीकार कर 1854 में नागपुर को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।
  5. अन्य राज्य – जैतपुर (1849), बघार (1850), उदयपुर (1852), तंजौर (1855) आदि राज्य भी राज्य हड़प नीति के अनुसार ब्रिटिश राज्य में मिला लिये गये।

प्रश्न 8.
“यह गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” डलहौजी की इस टिप्पणी को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
अपनी हड़प नीति के लिए कुख्यात लॉर्ड डलहौजी ने 1851 ई. में अवध की रियासत के विषय में कहा था कि “यह गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” 1856 ई. में अर्थात् इस टिप्पणी के पाँच वर्ष बाद अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया तथा अवध के नवाब को वहाँ से निर्वासित कर कलकत्ता भेज दिया गया।

रियासतों पर अनैतिक रूप से कब्जे की शुरूआत 1798 ई. में आरम्भ हुई थी, जब निजाम को जबरदस्ती लॉर्ड वेलेजली ने सहायक सन्धि पर हस्ताक्षर करने को विवश कर दिया था। इसके कुछ समय उपरान्त अर्थात् 1801 ई. में अवध पर सहायक सन्धि थोप दी गयी थी। इस सहायक सन्धि में शर्त यह थी कि नवाब अपनी सेना समाप्त कर देगा, रियासत में अंग्रेज रेजीडेण्टों की नियुक्ति की जायेगी तथा दरबार में एक ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखा जायेगा। इसके अतिरिक्त नवाब ब्रिटिश रेजीडेण्ट की सलाह पर अपने कार्य करेगी।

विशेषकर अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों में रेजीडेण्ट की स्वीकृति लेनी अनिवार्य । होगी। अपनी,सैनिक शक्ति से वंचित हो जाने के उपरान्त नवाब अपनी रियासत में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए अंग्रजों पर निर्भर होता जा रहा था। नवाब का अब विद्रोही मुखियाओं तथा ताल्लुकदारों पर कोई विशेष नियन्त्रण नहीं रहा। धीरे-धीरे अवध पर कब्जा करने में अंग्रेजों की रुचि बढ़ती जा रही थी। उन्हें लगता था कि वहाँ की जमीन नील तथा कपास की कृषि के लिये सर्वोत्तम है तथा इस क्षेत्र को एक बड़े बाजार के रूप में विकसित किया जा सकता है।

1850 ई. के दशक के आरम्भ तक अंग्रेज भारत के अधिकांश भागों पर कब्जा कर चुके थे। मराठ्य प्रदेश, दोआबे, कर्नाटक, पंजाब, सिन्ध तथा बंगाल इत्यादि सभी अंग्रेजों के हाथों में आ चुके थे। इस समय मात्र अवध ही एक बड़ा प्रान्त था जहाँ ब्रिटिश शासन स्थापित नहीं हो सका था। अत: अंग्रेजों ने असंगत आरोप लगाकर अवध को अपने कब्जे में ले लिया।

प्रश्न 9.
1857 की क्रान्ति के प्रमुख परिणाम क्या हुए? सविस्तर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि 1857 की क्रान्ति असफल रही, लेकिन इसके परिणाम अभूतपूर्व, व्यापक और स्थायी सिद्ध हुए। क्रान्ति ने अंग्रेजों की आँखें खोल दीं और उन्हें अपनी प्रशासनिक, सैनिक, भारतीय नरेशों के प्रति नीति आदि में परिवर्तन के लिए मजबूर होना पड़ा। इसे क्रान्ति के प्रमुख परिणाम इस प्रकार रहे-

1. कम्पनी शासन को अन्त:
1 नवम्बर, 1858 को महारानी ने घोषणा के द्वारा ब्रिटिश सरकार ने भारत का शासन ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथों से लेकर भारत सरकार अधिनियम (1858) द्वारा ब्रिटिश सम्राट के हाथों में दे दिया। बोर्ड ऑफ कंट्रोल और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को समाप्त कर भारत के शासन संचालन हेतु 15 सदस्यों की एक परिषद इंडिया कौंसिल को गठन किया गया जिसके सभापति को भारतीय राज्य सचिव कहा गया। गवर्नर जनरल का पदनाम वायसराय कर दिया गया।

2. सेना का पुनर्गठन:
क्रान्ति का आरम्भ सैनिक विद्रोह के रूप में हुआ था। अतः सेना का पुनर्गठन आवश्यक था। 1861 की सेना सम्मिश्रण योजना “Army Amalgamation Scheme” के अनुसार कम्पनी की यूरोपीय सेना सरकार को हस्तांतरित कर दी है। 1861 में पील कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार सेना में अब ब्रिटिश सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गई। सेना और तोपखाने के मुख्य पद केवल यूरोपीयों के लिए आरक्षित कर दिए गए। इस बात का भी ध्यान रखा गया कि समुदाय या क्षेत्र के. भारतीय सैनिक एक साथ सैनिक टुकड़ियों में न रहें।

3. भारतीय नरेशों के प्रति नीति परिवर्तन:
महारानी की घोषणा के अनुसार, “क्षेत्रों की सीमो बस्तार की नीति समाप्त कर दी गई और स्थानीय राजाओं के अधिकार, गौरव तथा सम्मान की रक्षा का विश्वास दिलाया गया। भारतीय शासकों को दत्तक पुत्र गोद लेने की अनुमति दी गई।

4. फूट डालो और राज करो’ की नीति को बढ़ावा:
1857 की क्रान्ति में साम्प्रदायिक सौहार्द्र से घबरा कर अंग्रेजों ने साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद आदि संकुचित प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया। ‘फूट डालो और शासन को उनकी नीति का प्रमुख आधार बन गई।

5. आर्थिक शोषण का आरम्भ:
1857 की क्रान्ति के बाद अंग्रेजों ने प्रादेशिक विस्तार की नीति को छोड़ कर अपना ध्यान धन की ओर अधिक लगाया। क्रान्ति को दबाने पर होने वाले समस्त खर्च का भार भारतीयों पर डाल दिया गया। सार्वजनिक ऋण का ब्याज प्रभार और यहाँ की अर्जित पूँजी लाभ के रूप में भारतीय धन निष्कासित होकर इंग्लैण्ड जाने लगा।

6. राष्ट्रीय आन्दोलनों को प्रोत्साहन:
1857 की क्रान्ति के सामूहिक प्रयास से भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को गति मिली। क्रान्ति के नायक कुँवरसिंह, लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, बहादुर शाह जफर, नाना साहब और रंगाजी बापू गुप्ते आदि स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रदूत के रूप प्रेरक बने।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित क्रान्तिकारियों के विषय में संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-
(क) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई
(ख) पेशवा के दत्तक पुत्र नाना साहेब
उत्तर:
(i) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई:
लक्ष्मीबाई 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम की अग्रणी महिला क्रान्तिकारी थीं। वह झांसी की रानी थीं। उनके पति को अंग्रेजों ने पुत्र गोद लेने की अनुमति प्रदान नहीं की थी। लक्ष्मीबाई अपने पति की मृत्यु के उपरान्त झाँसी की शासिका बनीं। इन्होंने कई युद्धों में अंग्रेजों को परास्त किया। 1858 ई. में अंग्रेज सेनापति यूरोज ने झाँसी पर आक्रमण किया। तात्या टोपे के साथ मिलकर इन्होंने बड़ी वीरता के साथ अपने किले की रक्षा की किन्तु वह पराजित हुईं। फिर भी अंग्रेजों को वांछित सफलता प्राप्त नहीं हुई। अतः यूरोज ने पुनः अप्रैल में झाँसी पर आक्रमण किया। रानी ने वीरतापूर्वक शत्रुओं का सामना किया किन्तु रानी के कुछ अधिकारी अंग्रेजों से मिल गये। अतः रानी लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुई।
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(ii) नाना साहेब:
नाना साहेब 1857 ई. के विद्रोह के एक प्रमुख सेनापति थे। नाना साहेब एक वीर मराठा तथा पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र थे। उन्होंने स्वयं को जून, 1857 ई. में कानपुर में पेशवा । घोषित कर दिया किन्तु अंग्रेजों ने उन्हें पेशवा मानने से इनकार कर दिया। इसके अतिरिक्त अँग्रेज़ों ने नाना साहेब की 80,000 पाउण्ड की पेंशन भी बन्द कर दी। इससे नाना साहेब अंग्रेजों से अत्यधिक क्रुद्ध हो गये। नाना साहेब ने प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों का वीरता के साथ मुकाबला किया।

कानपुर में क्रान्तिकारियों का नेतृत्व भी नाना साहेब ने किया तथा कर्नल नील से जबरदस्त संघर्ष किया। कर्नल नील अवध (वर्तमान उत्तर प्रदेश) से क्रान्तिकारियों का पूर्ण रूप से दमन करना चाहता था। अत: कर्नल नील तथा नाना साहेब में भीषण युद्ध हुआ। दुर्भाग्य से युद्ध में नाना साहेब पराजित हो गये तथा वहाँ से भागकर नेपाल चले गये।
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RBSE Class 12 History Chapter 5 मानचित्र कार्य।

प्रश्न 1.
भारत के मानचित्र में 1857 ई. में हुए विद्रोह के पाँच केन्द्रों को दर्शाइये।
उत्तर:
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प्रश्न 2.
1750 ई. के प्रमुख भारतीय राज्यों को भारत के मानचित्र में दर्शाइये।
उत्तर:
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