RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी

Rajasthan Board RBSE Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी

RBSE Class 12 Physics Chapter 15 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर

RBSE Class 12 Physics Chapter 15 बहुचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नाभिक \(\frac{64}{30} \mathrm{zn}\) की त्रिज्या लगभग है (फर्मी में)
(अ) 1.2
(ब) 2.4
(स) 4.8
(द) 3.7
उत्तर:
(स) 4.8
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प्रश्न 2.
यदि \(\frac{7}{3} \mathrm{Li}\) समस्थानिक का द्रव्यमान 7.016005 u तथा H परमाणु व न्यूट्रॉन के द्रव्यमान क्रमशः 1.007825 u व 1.008665 u है। Li नाभिक की बंधन ऊर्जा है।
(अ) 5.6 MeV
(ब) 8.8 MeV
(स) 0.42 MeV
(द) 39.2 MeV
उत्तर:
(द) 39.2 MeV
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प्रश्न 3.
यदि किसी समय किसी रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श में 1.024 × 1024 सक्रिय परमाणु हैं तो आठ अर्द्ध-आयुकाल के बाद शेष सक्रिय परमाणुओं की संख्या है-
(अ) 1.024 × 1020
(ब) 4.0 × 1021
(स) 6.4 × 1018
(द) 1.28 × 1019.
उत्तर:
(ब) 4.0 × 1021
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प्रश्न 4.
लकड़ी के किसी पुरातन प्रतिदर्श में 14C की सक्रियता 10 विघटन प्रति सेकड प्रतिग्राम प्रतिदर्श पाई जाती है; जबकि लकड़ी के ताजे प्रतिदर्श में सक्रियता 14.14 विघटन प्रति सेकंड प्रतिग्राम पाई जाती है। यदि 14C की अर्द्ध-आयु 5700 वर्ष है तब प्रतिदर्श की आयु लगभग है।
(अ) 2850 वर्ष
(ब) 4030 वर्ष
(स) 5700 वर्ष
(द) 8060 वर्ष। .
उत्तर:
(अ) 2850 वर्ष
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प्रश्न 5.
\(\frac{238}{92} \mathrm{U}\) के अंतत: स्थायी नाभिक \(\frac{206}{82} \mathrm{Pb}\) में क्षयित होने के प्रक्रम में उत्सर्जित α तथा β कणों की संख्या क्रमश: है
(अ) 8, 8
(ब) 6, 6
(स) 6, 8
(द) 8, 6
उत्तर:
(द) 8, 6
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प्रश्न 6.
ड्यूटीरियम नाभिक के लिए प्रतिन्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा 1.115 MeV है। तब इस नाभिक के लिए द्रव्यमान क्षति है लगभग ।
(अ) 2.23 u
(ब) 0.0024 u
(स) 0.027u
(द) और अधिक सूचना चाहिए
उत्तर:
(ब) 0.0024 u
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प्रश्न 7.
दो प्रोटॉन परस्पर 10 A की दूरी पर रखे हैं। इनके मध्य नाभिकीय बल Fn तथा स्थिर वैद्युत बल Fe है; अतः
(अ) Fn >> Fe
(ब) Fe >> Fn
(स) Fn = Fe
(द) Fn, Fe से थोड़ा ही अधिक है।
उत्तर:
(ब) Fe >> Fn
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प्रश्न 8.
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(अ) 4 (X1 + X2)
(ब) 4 (X1 – X2)
(स) 2 (X1 + X2)
(द) 2 (X1 – X2)
उत्तर:
(ब) 4 (X1 – X2)
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प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से सर्वाधिक बंधन ऊर्जा प्रति न्यूकिलऑन को नाभिक है-
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उत्तर:
(द)

प्रश्न 10.
40% दक्षता वाली एक नाभिकीय भट्टी में 1014 विघटन/सेकण्ड हो रहे हैं। यदि प्रति विखण्डन प्राप्त ऊर्जा 250 MeV है तो भट्टी का शक्ति निर्गम है।
(अ) 2kW
(ब) 4kW
(स) 1.6 kW
(द) 3.2kW
उत्तर:
(स) 1.6 kW
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प्रश्न 11.
β – क्षय में उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन की उत्पत्ति है-
(अ) परमाणु की आन्तरिक कक्षाओं से
(ब) नाभिक में विद्यमान मुक्त इलेक्ट्रॉनों से
(स) नाभिक में न्यूट्रान के विघटन से
(द) नाभिक से उत्सर्जित फोटान से
उत्तर:
(स) नाभिक में न्यूट्रान के विघटन से

प्रश्न 12.
एक माध्य-आयु में
(अ) आधे सक्रिय नाभिक क्षयित होते हैं।
(ब) आधे से अधिक सक्रिय नाभिक क्षयित होते हैं।
(स) आधे से कम सक्रिय क्षयित होते हैं।
(द) सभी नाभिक क्षयित होते हैं।
उत्तर:
(ब) आधे से अधिक सक्रिय नाभिक क्षयित होते हैं।

प्रश्न 13.
द्रव्यमान संख्या में वृद्धि होने पर नाभिक से संबंधित कौन-सी राशि परिवर्तित नहीं होती है।
(अ) द्रव्यमान
(ब) आयतन
(स) बंधन ऊर्जा
(द) घनत्व
उत्तर:
(द) घनत्व

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से कौन सी विद्युत चुंबकीय तरंग है।
(अ) α किरणें
(ब) β किरणें ।
(स) γ किरणें
(द) कैथोड किरणे
उत्तर:
(स) γ किरणें

प्रश्न 15.
22Ne नाभिक ऊर्जा अवशोषित करने के बाद दो α कणों एवं एक अज्ञात नाभिक में क्षय हो जाता है। अज्ञात नाभिक है।
(अ) ऑक्सीजन
(ब) बोरान
(स) सिलिकॉन
(द) कार्बन उत्तरमाला
उत्तर:
(द) कार्बन उत्तरमाला

RBSE Class 12 Physics Chapter 15 अति लघूत्तरात्गक प्रश्न

प्रश्न 1.
15X22 नाभिक में प्रोटॉनों एवं न्यूट्रॉनों की संख्या है?
उत्तर:
ZXA से तुलना करने पर Z = 15 (प्रोटॉनों की संख्या)
A = 22
A – Z = 22 – 15
= 7 न्यूट्रॉनों की संख्या

प्रश्न 2.
14 द्रव्यमान के तुल्य ऊर्जा (MeV) में लिखो।
उत्तर:
931.5 MeV[अनुच्छेद 15.3 देखें]

0 15.3. परमाणु द्रव्यमान मात्रक(Atomic mass unit)
परमाणुओं, नाभिकों तथा मूल कणों (इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन आदि) के द्रव्यमान इतने अल्प होते हैं कि उन्हें kg में व्यक्त करना असुविधाजनक है, अतः इनके द्रव्यमानों को व्यक्त करने के लिए छोटा मात्रक चुना गया जिसे ‘परमाणु द्रव्यमान मात्रक’ (संक्षेप में amu) कहते हैं। “एक परमाणु द्रव्यमान मात्रक 6C12 के एक परमाणु के द्रव्यमान के बारहवें भाग के बराबर होता है।”
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प्रश्न 3.
कोई नाभिक β क्षय के उपरान्त अपने समस्थानिक या समभारिक किसमें बदलता है?
उत्तर:
समभारिक नाभिक में; क्योंकि β क्षय में एक न्यूक्लिऑन दूसरे न्यूक्लिऑन में रूपान्तरित होता है।

प्रश्न 4.
α तथा β किरणों में से किसका स्पेक्ट्रम विविक्त होता है?
उत्तर:
α-कण का।

प्रश्न 5.
विखण्डन की कौन-सी श्रृंखला पर परमाणु भट्टी आधारित है?
उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन नियंत्रित श्रृंखला की अभिक्रिया पर आधारित है।

प्रश्न 6.
परमाणु भट्टी में मंदक के रूप में काम आने वाले किसी एक पदार्थ का नाम लिखो?
उत्तर:
ग्रेफाइट, भारी जल, जल।

प्रश्न 7.
किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्ध-आयुT तथा क्षयांक (λ) में सम्बन्ध लिखो?
उत्तर:
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प्रश्न 8.
सक्रियता की S.I इकाई क्या है?
उत्तर:
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प्रश्न 9.
चार अर्द्ध-आयुओं के पश्चात् किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की कितनी प्रतिशत मात्रा अवशेष रहेगी?
उत्तर:
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प्रश्न 10.
सूर्य में ऊर्जा उत्पादन करने के लिये कौन-सी नाभिकीय अभिक्रिया उत्तरदायी है?
उत्तर:
तापीय नाभिकीय संलयन अभिक्रिया।

प्रश्न 11.
एक रेडियोएक्टिव तत्त्व जिसकी द्रव्यमान संख्या 218 व परमाणु संख्या 84 है। β-कण उत्सर्जित करता है। विघटन के बाद तत्त्व की द्रव्यमान संख्या एवं परमाणु संख्या क्या होगी?
उत्तर:
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प्रश्न 12.
क्या γ क्षय के बाद नाभिक की द्रव्यमान संख्या में हानि होती है?
उत्तर:
γ क्षय के पश्चात् नाभिक के परमाणु क्रमांक एवं द्रव्यमान संख्या अपरिवर्तित रहती है; परन्तु ऊर्जा की अवस्था में परिवर्तन होता है।

प्रश्न 13.
लोहे अथवा सीसे के नाभिक में से किस से एक न्यूक्लिऑन बाहर निकालना अधिक आसान है?
उत्तर:
सीसे से बाहर निकालना आसान है। क्योंकि सीसे की प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा लोहे से कम है।

प्रश्न 14.
किसी नाभिकीय विखण्डन में नाभिक मध्यवर्ती द्रव्यमानों के असमान द्रव्यमान के दो नाभिकों में टूटता है। दोनों में से किसमें (हल्के या भारी में) अधिक गतिज ऊर्जा होगी?
उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन में संवेग संरक्षित होगा।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी ve Q 14
हल्के नाभिक की गतिज ऊर्जा अधिक होगी।

प्रश्न 15.
यदि एक नाभिक के न्यूक्लिऑनों को एक-दूसरे से पृथक् कर दिया जाय तो कुल द्रव्यमान बढ़ता है। यह द्रव्यमान कह्न से आता
उत्तर:
यह द्रव्यमान नाभिक की बन्धन ऊर्जा से प्राप्त होता है।

RBSE Class 12 Physics Chapter 15 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हाइड्रोजन के अणु में दो प्रोटॉन तथा दो इलेक्ट्रॉन हैं। ह्मइड्रोजन अणु के व्यवहार की विवेचना में इन प्रोटॉनों के मध्य की नाभिकीय बल की सदैव उपेक्षा की जाती है, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि अणुओं के बीच की दूरी A कोटि की होती है, जबकि नाभिकीय बल जिस दूरी पर कार्य करता है वह दूरी फर्मी कोटि की होती है।

प्रश्न 2.
एक विद्यार्थी यह दावा करता है कि हाइड्रोजन का एक भारी रूप (समस्थानिक) एल्फा क्षय कर विघटित होता है। आप क्या प्रतिक्रिया देंगे?
उत्तर:
α क्षय होने पर मातृ नाभिक से जो उत्पाद नाभिक प्राप्त होता है उसके परमाणु क्रमांक में 2 की कमी हो जाती है, जबकि हाइड्रोजन समस्थानिक के लिये सम्भव नहीं है।

प्रश्न 3.
एकीकृत परमाणु द्रव्यमान मात्रक (u) को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
परमाणु द्रव्यमान मात्रक(Atomic mass unit)

परमाणुओं, नाभिकों तथा मूल कणों (इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन आदि) के द्रव्यमान इतने अल्प होते हैं कि उन्हें kg में व्यक्त करना असुविधाजनक है, अतः इनके द्रव्यमानों को व्यक्त करने के लिए छोटा मात्रक चुना गया जिसे ‘परमाणु द्रव्यमान मात्रक’ (संक्षेप में amu) कहते हैं। “एक परमाणु द्रव्यमान मात्रक 6C12 के एक परमाणु के द्रव्यमान के बारहवें भाग के बराबर होता है।”
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प्रश्न 4.
नाभिकीय द्रव्यमान क्षति से तात्पर्य समझाइये।
उत्तर:
यमन ति एवं नाविन्य बंधन ऊर्जा (Mass defect and Nuclear Binding energy)

हम पढ़ चुके हैं कि परमाणु का समस्त द्रव्यमान तथा धन आवेश नाभिक में केन्द्रित होता है और नाभिक प्रोटॉनों एवं न्यूट्रॉनों से मिलकर बना है। हम यह भी जानते हैं कि अमुक नाभिक में कितने प्रोटॉन एवं कितने न्यूट्रॉन होते हैं, अतः गणना द्वारा किसी नाभिक का सम्भावित द्रव्यमान (expected mass) ज्ञात किया जा सकता है। द्रव्यमान स्पेक्ट्रोग्राफ (mass spectrograph) द्वारा किसी नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान (actual mass) भी ज्ञात किया जा सकता है। यह पाया जाता है। कि किसी नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान उसके न्यूक्लिऑनों से गणना द्वारा प्राप्त सम्भावित द्रव्यमान से सदैव कम होता है, द्रव्यमान के इसी अन्तर को द्रव्यमान-क्षति (mass-defect) कहते हैं। इस प्रकार, द्रव्यमान क्षति = गणना द्वारा प्राप्त नाभिक का द्रव्यमान ।
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जहाँ z, परमाणु क्रमांक, A द्रव्यमान क्रमांक, mp, प्रोटॉन का द्रव्यमान, mn, न्यूट्रॉन का द्रव्यमान एवं m, नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान है।
आइन्स्टीन के अनुसार यह द्रव्यमान (∆m) ऊर्जा में बदल जाता है, इसी ऊर्जा को नाभिक को बन्धन ऊर्जा कहते हैं। यही ऊर्जा नाभिक के समस्त न्यूक्लिऑनों को नाभिक के रूप में बाँधे रहती है। ∆m का अर्थ है। कि जब प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन मिलकर नाभिक का निर्माण करते हैं तो ∆m द्रव्यमान लुप्त हो जाता है तथा उसके तुल्य ऊर्जा (∆m)c2 मुक्त हो जाती है। इस ऊर्जा के कारण ही प्रोटॉन व न्यूट्रॉन नाभिक से बँधे रहते हैं। स्पष्ट है कि नाभिक के प्रोटॉनो तथा न्यूट्रॉनों को तोड़ने के लिए इतनी ही बाह्य ऊर्जा की आवश्यकता होगी। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि जब । प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन मिलकर नाभिक बनाते हैं तो इस क्रिया में कुछ ऊर्जा निकलती है, जिसे ‘नाभिक की बन्धन ऊर्जा’ कहते हैं। इस तथ्य से यह भी स्पष्ट है कि यदि इतनी ही ऊर्जा (बन्धन ऊर्जा के बराबर) नाभिक को दे दी जाये तो उसके समस्त न्यूक्लिऑन बन्धनमुक्त हो जायेंगे। अतः बन्धन ऊर्जा की परिभाषा इस प्रकार भी कर सकते हैं, “किसी नाभिक की बन्धन ऊर्जा, ऊर्जा की वह मात्रा है जो नाभिक को दे देने पर उसके समस्त न्यूक्लिऑनों को बन्धन मुक्त कर दे।” अतः नाभिक की बन्धन ऊर्जा
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यदि नाभिक की बन्धन ऊर्जा में न्यूक्लिऑनों की संख्या का भाग दे दें तो हमें नाभिक की ‘बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन’ (binding energy per nucleon) प्राप्त होती है। बन्धन ऊर्जा नाभिक के स्थायित्व को प्रदर्शित करती है।
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RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी ve Q 16
स्पष्ट है कि α-कण के बनने में 28.14 MeV ऊर्जा मुक्त होती है, अतः α-कण के न्यूक्लिऑनों को बन्धन मुक्त करने के लिए 28.14 Mev ऊर्जा की आवश्यकता होती है। α-कण के नाभिक में चार न्यूक्लिऑन होते हैं अतः α-कण की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा
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= 7.03 MeV
इसी प्रकार हम ड्यूट्रॉन की बन्धन ऊर्जा ज्ञात कर सकते हैं। परिणाम इस प्रकार होंगे-
ड्यूट्रॉन की बन्धन ऊर्जा = 2.17 MeV
और प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा = 1.08 MeV
इस प्रकार स्पष्ट है कि α-कण को विखण्डित करने में ड्यूट्रॉन की तुलना में बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अतः α-कण, ड्यूट्रॉन की तुलना में अधिक स्थायी है।

प्रश्न 5.
रेडियोएक्टिव को परिभाषित करो।
उत्तर:
रेडियो सक्रियता (Radioactivity)

सन् 1896 ई. में फ्रांसीसी वैज्ञानिक हेनरी बेकुरल ने यह पाया कि यूरेनियम तथा इसके लवणों से कुछ अदृश्य किरणे स्वतः निकलती हैं। जो कि मोटे, काले कागज की कई पर्यों को पार कर सकती हैं साथ ही ये फोटोग्राफिक प्लेटों को भी प्रभावित करती हैं इन किरणों को रेडियोएक्टिव किरणें कहते है।

“किसी पदार्थ से स्वत: ही अदृश्य किरणें उत्सर्जित होते रहने की घटना रेडियोसक्रियता कहलाती है।” सन् 1898 में पौलेन्ड के दम्पत्ति मैडम क्यूरी व पियरे क्यूरी ने ऐसे रेडियोएक्टिव तत्त्व की खोज की जो यूरेनियम की अपेक्षा लगभग दस लाख गुना रेडियो सक्रिय था उसका नाम ‘रेडियम’ है।

क्यूरी दम्पत्ति को सन् 1903 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। रेडियो एक्टिवता से सम्बन्धित तथ्य-

(i) रेडियो सक्रियता एक नाभिकीय प्रक्रम है। किसी भी भौतिक या रासायनिक प्रक्रम; जैसे-दाब, ताप या अन्य पदार्थों के संयोग का रेडियो सक्रियता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। कारण यह है कि रासायनिक परिवर्तनों के लिये ऊर्जाएँ इलेक्ट्रॉन वोल्ट के क्रम की होती हैं। जबकि नाभिकीय ऊर्जा MeV के क्रम की होती है।
(ii) नाभिक के रेडियोएक्टिव क्षय में आवेश, रेखीय व कोणीय संवेग एवं द्रव्यमान ऊर्जा संरक्षित होते हैं साथ ही साथ न्यूट्रॉनों व प्रोटॉनों की संख्या भी संरक्षित होगी।
(iii) यदि नाभिक से α या β क्षय के पश्चात् प्राप्त उत्पाद नाभिकों के द्रव्यमानों का योग मूल नाभिक के द्रव्यमान से कम होगा तो मूल नाभिक अस्थायी होगा।

प्रश्न 6.
रदरफोर्ड सोडी नियम का उल्लेख करो।
उत्तर:
दरफोर्ड सोडी का रेडियोएक्टिव ;य का नियम (Rutherford-Soddy Law of Radioactive decay)

सन् 1902 में रदरफोर्ड एवं सोडी ने अनेक रेडियोएक्टिव पदार्थों के स्वतः विघटन का प्रायोगिक अध्ययन किया और रेडियोएक्टिव क्षय के सम्बन्ध में निम्नांकित निष्कर्ष निकाले जो रदरफोर्ड एवं सोडी के नियमों के रूप में जाने गये। इनके अनुसार-

(i) रेडियोएक्टिवता एक नाभिकीय घटना है तथा रेडियोएक्टिव किरणों के उत्सर्जन की दर को भौतिक यो रासायनिक कारण द्वारा नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है अर्थात् न तो इसे बढ़ाया जा सकती है और न ही घटाया जा सकता है।

(ii) रेडियोएक्टिव पदार्थों के विघटन की प्रकृति सांख्यिकीय (statistical) है अर्थात् यह कहना कठिन है कि कौन-सा नाभिक कब विघटित होगी और विघटित होकर कौन-सा कण उत्सर्जित करेगा? किसी नमूने से निश्चित समय में उत्सर्जित कणों की संख्या निश्चित होती है। विघटन की प्रक्रिया में α, β, γ किरणों के उत्सर्जन के साथ एक तत्त्व दुसरे नये तत्त्व में बदलता रहता है जिसके रासायनिक एवं रेडियोएक्टिव गुण बिल्कुल नये होते हैं।

(iii) किसी भी क्षण रेडियोएक्टिव परमाणुओं के क्षय होने की दर उस क्षण उपस्थित परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है।
माना किसी समय t पर उपस्थित परमाणुओं की संख्या N है तथा समय t + ∆t पर यह संख्या घट कर अपने मान की N – ∆N रह जाती है। तो परमाणुओं के क्षय होने की दर \(-\frac{\Delta \mathrm{N}}{\Delta t}\) होगी। अतः रदरफोर्ड व सोडी के नियमानुसार;
यदि ∆t समय में ∆N नाभिक विघटित हो जाते हैं तो विघटन की दर
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RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 6.1

जहाँ λ एक नियतांक है, जिसे क्षय नियतांक (decay constant or disintegration constant) कहते हैं। समी. (1) में ऋणात्मक चि\(\square\) यह प्रदर्शित करता है कि समय बढ़ने पर विघटन की दर घटती है। λ का मात्रक सेकण्ड-1 है। λ का मान एक दिये गये पदार्थ के लिए तो नियत रहता है परन्तु भिन्न-भिन्न पदार्थों के लिए भिन्न-भिन्न होता है।
समी. (1) को निम्न प्रकार भी लिख सकते हैं-
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समी. (4) से स्पष्ट है कि N का मान पहले तेजी से और बाद में धीरे-धीरे घटता है अर्थात् रेडियोएक्टिव पदार्थ का क्षय पहले तेजी से और फिर धीरे-धीरे होता है। इस नियम को चरघातांकी नियम (exponential law) कहते हैं। समी. (4) से यह भी स्पष्ट है कि रेडियोएक्टिव पदार्थ को पूर्णतः क्षयित (completely decay) होने में अनन्त समय लगेगा।

क्षय नियतांक (Decay Constant)

RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 6.4

“अतः क्षय नियतांक उस समय का व्युत्क्रम है जिसमें अविघटित नाभिकों की संख्या अपने प्रारम्भिक मान की \(\left(\frac{1}{e}\right)\) गुनी रह जाती है।”

इस प्रकार समीकरण (4) के अनुसार N का मान पहले तेजी से और बाद | में धीरे-धीरे घटता है अर्थात् रेडियोएक्टिव पदार्थ का क्षय पहले तेजी से और | फिर धीरे-धीरे होता है। इस नियम को क्षय चरघातांकी नियम कहते हैं।

अविघटित नाभिकों की संख्या N तथा समय । के मध्य ग्राफ चित्र
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प्रश्न 7.
रेडियोएक्टिव तत्त्व की अर्द्ध-आयु व माध्य-आयु की परिभाषा दीजिए तथा इनमें सम्बन्ध लिखो।
उत्तर:
अर्द्ध-आयु (Half life)

हम जानते हैं कि रेडियोएक्टिव तत्त्वों का सदैव विघटन होता रहता है और जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, अविघटित नाभिकों की संख्या घटती जाती है। “वह समय जिसमें किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के अविघटित नाभिकों की संख्या घटकर आधी रह जाती है, उस तत्त्व की अर्द्ध-आयु कहलाती है।” इसे T से व्यक्त करते हैं। एक तत्त्व के लिए इसका मान नियत एवं विभिन्न तत्त्वों के लिए भिन्न-भिन्न होता है। अर्द्ध-आयु का मान लिये गये पदार्थ की मात्रा पर निर्भर नहीं करता है। इसे भौतिक एवं रासायनिक प्रभावों द्वारा बदला नहीं जा सकता है। कुछ तत्त्वों की अर्द्ध-आयु नीचे दी जा रही है-
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 7
यदि किसी रेडियोएक्टिव तत्त्व की अर्द्ध-आयु T है तो T समय पश्चात् वह अपनी प्रारम्भिक मात्रा का 50%, 2T समय बाद 25%, 3T समय बाद 12.5, 4T समय बाद 6.25% शेष रह जायेगा। यदि पदार्थ के नाभिकों की संख्या को समय के साथ ग्राफ कर प्लॉट करें तो चित्र 15.4 की तरह चरघातांकी वक्र प्राप्त होगा।

माना प्रारम्भ में किसी पदार्थ के नाभिकों की संख्या N0 है अर्थात् t = 0 पर N = No तो एक अर्द्ध-आयु (अर्थात् t = T) के बाद शेष नाभिकों की संख्या
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∵ t = nT
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RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 7.3

रेडियोएक्टिव पदार्थ की माध्य-आयु (Average Life of a Radioactive Substance)

जैसा कि हम पढ़ चुके हैं, रेडियोएक्टिव विघटन की प्रकृति सांख्यिकीय (statistical) होती है अर्थात् यह नहीं कहा जा सकता है कि कौन-सा नाभिक कब विघटित होगा और विघटित होकर किस प्रकार का कण उत्सर्जित करेगा। किसी भी नाभिक के विघटन का समय शून्य से अनन्त के मध्य कुछ भी हो सकता है। सभी नाभिकों की आयु के औसत को ही माध्य-आयु (Average life) कहते हैं। इसे τ से प्रकट करते हैं। गणितीय रूप से यह सिद्ध किया जा सकता है कि किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की माध्य आयु क्षय नियतांक (λ) के व्युत्क्रम के बराबर होती है अर्थात्
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माध्य-आयु का व्यंजक (Expression for Mean or Average Life)
रदरफोर्ड एवं सोडी के नियम से;
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प्रश्न 8.
α क्षय किसे कहते हैं? α कणों का ऊर्जा स्पेक्ट्रम किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
α कण हीलियम का नाभिक होता है जो द्वि आयनित कण है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 8
स्पष्ट है, α-कण के उत्सर्जन से मूल नाभिक का परमाणु क्रमांक दो से तथा द्रव्यमान संख्या 4 से कम हो जाती है अर्थात् उत्पाद नाभिक को परमाणु क्रमांक 2 व द्रव्यमान संख्या 4 से घट जाती है इसे ही α क्षय कहते है।

α कणों की नाभिक से उत्सर्जन की व्याख्या चिरसम्मत सिद्धान्तों की अपेक्षा क्वाण्टम यांत्रिकी के आधार पर की जा सकती है। इसके अनुसार नाभिक α कण नाभिक में ही होता है तथा सुरंगन प्रभाव द्वारा यह नाभिक से बाहर आता है। α कणों की ऊर्जा का स्पेक्ट्रम विविक्त व रेखित होता है। विविक्त ऊर्जा स्पेक्ट्रम यह प्रदर्शित करता है कि नाभिक में भी परमाणु की भाँति विविक्त ऊर्जा स्तर उपस्थित है।

प्रश्न 9.
β किरण स्पेक्ट्रम एक सतत ऊर्जा स्पेक्ट्रम हैसे क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
β-क्षय (β-decay)
क्षय निम्न तीन प्रकार के होते हैं –
(i) ऋणात्मक बीटा क्षय (β)
(ii) धनात्मक बीटा क्षय (β+)
(iii) इलेक्ट्रॉन प्रग्रहण (electron capture or K capture)
(i) ऋणात्मक बीटा क्षय (β) जब किसी अस्थायी नाभिक में न्यूट्रॉन, प्रोटॉन में रूपान्तरित होता है तो साथ ही (β) व एण्टीन्यूट्रिनो (\(\overline{v}\)) प्राप्त होता है नाभिक से β व \(\overline{v}\) उत्सर्जित होते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9
जब मातृ नाभिक से (β) उत्सर्जित होता है तो उत्पाद नाभिक के परमाणु क्रमांक में एक अंक की वृद्धि हो जाती है; जबकि द्रव्यमान संख्या अपरिवर्तित रहती है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.1
मातृ नाभिकउत्पाद नाभिक ऋणात्मक बीटा कण एण्टिन्यूट्रिनो
उदाहरण-
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.2
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.3
घनात्मक बीटा क्षय (β+ क्षय)-जब किसी अस्थायी नाभिक में प्रोटॉन, न्यूट्रॉन में रूपान्तरित होता है तो साथ (β+) पॉजिट्रॉन तथा (v) न्यूट्रिनों प्राप्त होते हैं यही β+ व γ नाभिक से उत्सर्जित होते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.4
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.5
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.6
β-कण की आपेक्षिक संख्या एवं उनकी ऊर्जा के मध्य (Bi210) के लिए ग्राफ चित्र 15.9 में प्रदर्शित है। यह ग्राफ दर्शाता है कि
(a) अधिकतर β-कणों की ऊर्जा कम होती है,
(b) केवल कुछ इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा अधिकतम होती है जो अन्त बिन्दु ऊर्जा (end point energy) कहलाती है और
(C) ऊर्जा स्पेक्ट्रम सतत है जो यह दर्शाता है कि उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा 0 (शून्य) से (Qβ)max तक सम्भव है।

प्रश्न 10.
न्यूट्रिनों परिकल्पना β क्षय की प्रक्रिया में कौन-से संरक्षण नियम की व्याख्या में सहायक है?
उत्तर:
न्यूट्रिनो परिकल्पना (Neutrino Hypothesis)

प्रारम्भ में β क्षय में यह माना जाता था कि मूल नाभिक, उत्पाद नाभिक व β या β+ में रूपान्तरित होता है। परन्तु इस अवधारणा में ऊर्जा, रैखिक संवेग तथा कोणीय संवेग संरक्षण लागू नहीं होता है।

(i) ऊर्जा संरक्षण – β क्षय में, उत्सर्जित β कणों की ऊर्जा मातृ व उत्पाद नाभिकों की ऊर्जाओं के अन्तर के बराबर नहीं पाई गई; स्पष्ट है β क्षय में ऊर्जा संरक्षण का नियम विचलित होता है।

(ii) रैखिक संवेग संरक्षण-
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 10
चित्र 15.10 चित्र 15.10 से ज्ञात होता है कि β क्षय के दौरान उत्पाद नाभिक एवं β कण परस्पर विपरीत गति नहीं करते जबकि इनकी विपरीत गति रैखिक संवेग संरक्षण के लिये आवश्यक है। स्पष्ट है रैखिक संवेग संरक्षण का नियम भी विचलित हो गया।

(iii) कोणीय संवेग संरक्षण
β-क्षय में कोणीय संवेग या चक्रण के संरक्षण नियम का भी विचलन होता है। β-कण अर्थात् इलेक्ट्रॉन का चक्रण 1/2 होता है। जब यह नाभिक द्वारा उत्सर्जित होता है तो नाभिक का चक्रण भी 1/2 परिवर्तित होना आवश्यक है, परन्तु β-कण उत्सर्जित करते नाभिक का चक्रण कभी भी से परिवर्तित होना नहीं पाया गया। नाभिक का चक्रण अपरिवर्तित या पूर्णतः परिवर्तित होता है। इसलिए कोणीय संवेग संरक्षण का नियम β-क्षय द्वारा विचलित होता है।

ऊर्जा, रैखिक व कोणीय संवेग संरक्षण के नियमों के विचलन के प्रश्न का समाधान पॉली (Pauli) ने सन् 1930 में किया। उनके अनुसार जब मातृ नाभिक से β कण उत्सर्जित होता है तो उसके साथ एक अन्य कण न्यूट्रिनों (v) या एण्टिन्यूट्रिनों (\(\overline{\mathrm{v}}\)) भी उत्सर्जित होता है। न्यूट्रिनो या एन्टीन्यूट्रिनो द्रव्य से नगण्य अन्योन्य क्रियाएँ करते हैं अत: इनका संसूचन बहुत मुश्किल था। 1956 में रेन्स तथा कोवान (Reiens and Cowan) ने इन कणों का संसूचन करने में सफलता प्राप्त की। न्यूट्रिनों में निम्न गुण होते हैं-

  1. यह उदासीन कण होता है।
  2. इसका विराम द्रव्यमान शून्य होता है।
  3. इसका कोणीय संवेग अन्य न्यूक्लिऑन के समान ± \(\frac{1}{2}\left(\frac{h}{2 \pi}\right)\) होता है।
  4. यह फोटॉन के समान ऊर्जा वाला कण होता है।
  5. फोटॉन के समान ही इनमें रैखिक संवेग होता है।

उपरोक्त समीकरणों में ऊर्जा, रैखिक एवं कोणीय संवेग संरक्षण लागू है।

(i) इस प्रकार β क्षय में जब β+ या β व v या \(\overline{\mathrm{v}}\) निकलते हैं तो दोनों ही ऊर्जाओं का योग अन्त बिन्दु ऊर्जा के बराबर होता है। इस प्रकार β कण व न्यूट्रिनों की कुल ऊर्जा नियत है जो ऊर्जा संरक्षण के नियम का पालन हो जाता है। या मातृ नाभिक व उत्पाद नाभिकों की ऊर्जाओं का अन्तर β कण व न्यूट्रिनों (एण्टिन्यूट्रिनों) की ऊर्जाओं के योग के समान होता है।

(ii) β क्षय में न्यूट्रिनो या एण्टिन्यूट्रिनो के उत्सर्जन की दिशा β क्षय में रैखिक संवेग संरक्षण को स्थापित करता है।

(iii) जैसा कि यह ज्ञात होता है कि न्यूट्रिनो का कोणीय संवेग \(\pm \frac{h}{2 \pi}\) है तो β क्षय में कोणीय संवेग संरक्षण भी लागू हो जाता है।

प्रश्न 11.
नाभिकीय बल के कोई दो गुण लिखो?
उत्तर:
नाभिकीय बल (Nuclear force)

हम पढ़ चुके हैं कि नाभिक का आकार 10-15 m की कोटि का होता है और इसी नाभिक में धनावेशित प्रोटॉन एवं उदासीन न्यूट्रॉन उपस्थित रहते हैं। इतनी अल्प दूरी पर प्रोटॉनों के मध्य इतना अधिक वैद्युत प्रतिकर्षण-बल होना चाहिए कि नाभिक का स्थायी होना सम्भव न हो, लेकिन फिर भी नाभिक स्थायी है। इसका अर्थ यह हुआ कि गुरुत्वाकर्षण व वैद्युत् बलों से भिन्न एक अन्य बल भी होता है जो न्यूक्लिऑनों को इतनी छेटी जगह में बाँधे रहता है, इसी बल को ‘नाभिकीय बल’ कहते हैं।
यह अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है कि दूरी बदलने पर नाभिकीय बल किस नियम के अनुसार बदलता है, परन्तु इतना निश्चित है कि दूरी बदलने पर नाभिकीय बल के परिवर्तन की दर गुरुत्वीय बल एवं वैद्युत बल की तुलना में बहुत अधिक होती है अन्यथा नाभिक स्थायी नहीं रहता। गुरुत्वीय बल, कूलॉम बल एवं नाभिकीय बलों की आपेक्षिक शक्ति (strength) में निम्न अनुपात होता है-
Fg : Fe : Fn = 1 : 1036 : 1038

नाभिकीय बल के सम्बन्ध में निम्नांकित तथ्य ज्ञात किये गये हैं-
(i) नाभिकीय बल की प्रकृति आकर्षणात्मक होती है।
(ii) नाभिकीय बल लघु परास बल (short range force) होता है।
न्यूक्लिऑनों के मध्य (1 × 10m-14) से अधिक दूरी होने पर यह बल नगण्य हो जाता है। इससे कम दूरी पर ही यह बल प्रभावी रहता है, इसीलिए इसे लघु परास बल कहते हैं।
(iii) नाभिकीय बल अत्यन्त तीव्र (very strong) होता है। 2 × 10-15 m की दूरी पर नाभिकीय बल वैद्युत बल की तुलना में लगभग 100 गुना होता है।
(iv) नाभिकीय बल की प्रकृति 0.5 × 10-15 m की दूरी पर प्रतिकर्षणात्मक हो जाती है।
(v) नाभिकीय बल आवेश पर निर्भर नहीं होता है, अतः यह बल प्रोटॉन-न्यूट्रॉन अथवा प्रोटॉन-प्रोटॉन अथवा न्यूट्रॉन-न्यूट्रॉन युग्मों के मध्य समान रूप से लगता है। नाभिकीय बल की इसी प्रकृति के कारण नाभिक के स्थायी होने के प्रश्न का समाधान हो जाता है।
(vi) नाभिकीय द्रव्य का घनत्व लगभग नियत होना तथा मध्यवर्ती द्रव्यमान परास में नाभिकों की बंधन ऊर्जा का लगभग नियत होना यह दर्शता है कि नाभिक में प्रत्येक न्यूक्लिऑन उपस्थित अन्य सभी न्यूक्लिऑनों से अन्त:क्रिया नहीं करता अपितु केवल अपने कुछ निकटतम न्यूक्लिऑनों से ही अन्त:क्रिया करता है। नाभिकीय बल का यह गुण “नाभिकीय बल की संतृप्तता” कहलाता है। यह विद्युत बल से भिन्न है नाभिक में प्रत्येक प्रोटोन शेष सभी प्रोटॉनों से अन्तः क्रिया करता है तथा अन्तः क्रियाओं की संख्या \(\frac{\mathrm{Z}(\mathrm{Z}-1)}{2} \sim \mathrm{Z}^{2}\) के समानुपाती होती है।

हल्के नाभिकों में नाभिकीय बल (आकर्षणात्मक), प्रोटॉनों के मध्य लगने वाले वैद्युत प्रतिकर्षण बल से अत्यन्त प्रबल होता है, फलस्वरूप हल्के नाभिक स्थायी बने रहते हैं। जैसे-जैसे नाभिक भारी होता जाता है, नाभिक में प्रोटॉनों एवं न्यूट्रॉनों दोनों की संख्या बढ़ने लगती है। चूंकि वैद्युत प्रतिकर्षण बल प्रोटॉनों के प्रत्येक युग्म (pair) के मध्य कार्य करता है तथा यह न्यूक्लिऑनों के बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है जबकि नाभिकीय बल दूरी बढ़ने पर और तेजी से घटता है, फलस्वरूप भारी नाभिकों में न्यूक्लिऑनों के दूर-दूर होने के कारण वैद्युत प्रतिकर्षण, कुल नाभिकीय बल की अपेक्षा तेजी से बढ़ता है। इससे नाभिक का स्थायित्व घटने लगता है। यही कारण है कि परमाणु क्रमांक Z > 83 वाले सभी नाभिक अस्थायी होते हैं और रेडियोएक्टिवता का गुण प्रदर्शित करते हैं। यह नाभिकीय बल की संतृप्तता को व्यक्त करता है।

प्रश्न 12.
बन्धन ऊर्जा प्रतिन्यूक्लिऑन से क्या आशय है? यह नाभिक के स्थायित्व से किस प्रकार सम्बन्धित है?
उत्तर:
प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा (Binding energy per Nucleon) – नाभिक की बन्धन ऊर्जा ∆Eb में इसकी द्रव्यमान संख्या A से भाग देने पर जो राशि प्राप्त होती है उसे प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा कहा जाता है। इसे \(\overline{\Delta E}_{b}\) से व्यक्त करते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 12
किसी नाभिक की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा जितनी अधिक होती है। नाभिक उतना ही अधिक स्थायी होता है। यदि विभिन्न तत्वों के नाभिकों की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा तथा उनकी द्रव्यमान संख्या के मध्य ग्राफ खींचा | जाय तो प्राप्त वक्र प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा वक्र कहलाता है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 12.1
वक्र के अध्ययन से निम्न निष्कर्ष प्राप्त होते हैं-

(i) वक्र से स्पष्ट है कि प्रारम्भ में प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा बढ़ती है फिर अधिकतम मान पर पहुँचकर द्रव्यमान संख्या के बढ़ने के साथ-साथ धीरे-धीरे घटती है।

(ii) प्रत्येक नाभिक की बन्धन ऊर्जा धनात्मक होती है; अतः नाभिक को विखण्डित करने के लिये ऊर्जा देनी होगी।

(ii) द्रव्यमान संख्या बढ़ने पर प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा बढ़ती है। और द्रव्यमान संख्या 62 {28Ni62} निकिल के लिये अधिकतम, लगभग 8.8 MeV प्रति न्यूक्लिऑन होकर फिर धीरे-धीरे घटने लगती है। इसका अर्थ यह है कि द्रव्यमान संख्या 62 के संगत एवं उसके पड़ोसी तत्त्वों के नाभिक सबसे अधिक स्थायी हैं। 26Fe56 के लिये भी यह लगभग 8.8 Mev प्रति न्यूक्लिऑन होती है लेकिन 28Ni62 से थोड़ी कम होती है। इस प्रकार निकिल सबसे अधिक स्थायी तत्त्व है। इसी कारण भू-क्रोड में सबसे अधिक पिघला हुआ निकिल तथा लोहा पाया जाता है।

(iv) द्रव्यमान संख्या 62 से अधिक द्रव्यमान संख्या वाले तत्वों की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा तत्त्वों की द्रव्यमान संख्या के बढ़ने पर क्रमशः कम होती जाती है। इसीलिये सीसे (Pb) से भारी सभी तत्त्व अस्थायी होते हैं। इसी कारण स्थायित्व को प्राप्त करने के लिये α एवं β कणों के उत्सर्जन के रूप में अपने द्रव्यमान को कम करते रहते हैं। प्राकृतिक रेडियोऐक्टिव का यही कारण है।

(v) द्रव्यमान संख्या 4, 12, 16 वाले नाभिकों की प्रतिन्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा (\(\overline{\Delta E}_{b}\)) का मान इनके निकटवर्ती नाभिकों की तुलना में अधिक होता है। अतः ये निकटवर्ती नाभिकों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होते हैं। इसी कारण ग्राफ में इन नाभिकों को शिखर बिन्दुओं द्वारा व्यक्त किया गया है।
कारण-परमाणुओं की भाँति नाभिक में न्यूक्लिऑनों के लिये कोश संरचना है। 4 के गुणक वाले नाभिकों में नाभिकीय कोश पूर्णतः भरे होते हैं; अतः ये निकटवर्ती नाभिकों की तुलना में अधिक स्थायी होते हैं।

(vi) मध्यवर्ती द्रव्यमान संख्या (30 < A < 170) वाले नाभिक की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा (\(\overline{\Delta E}_{b}\)) का मान लगभग 8 MeV के निकट होता है जो इन नाभिकों के स्थायित्व को व्यक्त करता है।

(vii) वक्र से स्पष्ट है कि यदि हम किसी बहुत भारी नाभिक (जैसे-यूरेनियम) को किसी विधि द्वारा मध्यवर्ती द्रव्यमान संख्या वाले नाभिकों में तोड़ लें तो प्राप्त नाभिकों की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा बढ़ जायेगी। अत: इस प्रक्रिया में बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होगी। यह नाभिकीय विखण्डन कहलाता है।

(viii) वक्र से यह भी स्पष्ट है कि दो या अधिक बहुत हल्के नाभिकों (जैसे भारी हाइड्रोजन 1H2 के नाभिक) को अपेक्षाकृत भारी नाभिकों जैसे 2He4) में संयुक्त कर लें तो प्राप्त नाभिक की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा (\(\overline{\Delta E}_{b}\)) बढ़ जायेगी, इस प्रक्रिया में भी अत्यधिक ऊर्जा मुक्त होगी इसे नाभिकीय संलयन कहते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 12.2

प्रश्न 13.
नाभिकीय विखण्डन को परिभाषित करो?
उत्तर:
नाभिकीय विखण्ङन (Nuclear Fission)

“किसी भारी नाभिक के दो या दो से अधिक हल्के नाभिकों में टूटने की प्रक्रिया को ‘नाभिकीय विखण्डन’ कहते हैं।” इस घटना की खोज सन् 1939 में जर्मन के दो वैज्ञानिकों ओटोहान (Otto Hann) एवं स्ट्रास्मान (Stassmann) ने की थी। उन्होंने यूरेनियम – 238 के नाभिक पर जब तीव्रगामी (लगभग 106 eV ऊर्जा वाले) न्यूट्रॉनों की बमबारी की तो पाया कि 92U238 का नाभिक दो लगभग बराबर हल्के नाभिकों बेरियम (56Ba148) एवं क्रिप्टन (36Kr88) में टूट जाता है और एक विखण्डन में 3 न्यूट्रॉनों के साथ अपार ऊर्जा मुक्त होती है। प्रक्रिया निम्न समीकरण से व्यक्त होती है-
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 13

नाभिकीय विखण्डन की इस घटना में अत्यधिक परिमाण में ऊर्जा भी उत्पन्न होती है। इसका कारण यह है कि इस प्रक्रिया में प्राप्त नाभिकों के द्रव्यमानों का योग प्रयुक्त नाभिक के द्रव्यमान से कुछ कम होता है अर्थात् इस प्रक्रिया में कुछ द्रव्यमान लुप्त हो जाते हैं जो आइन्स्टीन के द्रव्यमान- ऊर्जा सम्बन्ध (∆E = ∆mc2) के अनुसार ऊर्जा में बदल जाता है। इसी ऊर्जा को ‘नाभिकीय ऊर्जा’ (nuclear energy) कहते हैं।

प्राकृतिक यूरेनियम में दो आइसोटोप 92U23592U238 पाये जाते हैं। इनका अनुपात 1 : 145 होता है। इस प्राकृतिक यूरेनियम में 99.3% यूरेनियम-238 तथा केवल 0.7% यूरेनियम-235 होता है। यूरेनियम के ये दोनों आइसोटोप विखण्डनीय हैं। प्रयोगों द्वारा यह पता चलता है कि यूरेनियम-238 का विखण्डन केवल तीव्रगामी न्यूट्रॉनों (106 eV ऊर्जा वाले) द्वारा ही सम्भव है; जबकि यूरेनियम-235 का विखण्डन मन्दगामी न्यूट्रॉनों (1 eV से भी कम ऊर्जा वाले) से जैसे ऊष्मीय न्यूट्रानों (0.03 ev ऊर्जा) से भी सम्भव है। इस प्रकार स्पष्ट है कि यूरेनियम-235 विखण्डन के लिए अधिक उपयोगी है। परमाणु बम में यूरेनियम-235 प्रयोग में लाया जाता है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 13.1

यूरेनियम-235 का विखण्डन-जब मन्दगामी न्यूट्रॉन यूरेनियम-235 के नाभिक से टकराता है तो वह उसमें अवशोषित हो जाता है तथा यूरेनियम का अन्य आइसोटोप यूरेनियम-236 अस्थायी रूप से बनता है। चूँकि 92U236 अस्थायी है अत: यह तुरन्त ही दो नाभिकों में टूट जाता है। तथा तीन नये न्यूट्रॉन व अपार ऊर्जा उत्सर्जित करता है। प्रक्रिया निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त की जाती है-
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 13.2

यह आवश्यक नहीं है कि यूरेनियम-235 के विखण्डन में सदैव बेरियम एवं क्रिप्टन के ही नाभिक प्राप्त हों, बल्कि इसमें 20 से भी अधिक भिन्न-भिन्न तत्त्वों के 100 से भी अधिक आइसोटोप प्राप्त होते हैं। जिनकी द्रव्यमान संख्या 75 से 160 तक होती है। उदाहरण के लिए-अन्य अभिक्रिया निम्न प्रकार है-
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 13.3

यूरेनियम के प्रत्येक विखण्डन में लगभग 200 MeV ऊर्जा प्राप्त होती है। इस ऊर्जा का अधिकांश भाग विखण्डन से प्राप्त खण्डों की गतिज ऊर्जा के रूप में प्राप्त होता है। शेष भाग उत्सर्जित न्यूट्रॉनों की गतिज ऊर्जा, γ-किरणों तथा ऊष्मा व प्रकाश विकिरणों के रूप में प्राप्त होता है।

1 ग्राम यूरेनियम के विखण्डन से मुक्त ऊर्जा- यूरेनियम-235 के एक ग्राम परमाणु (235 g) में परमाणुओं की संख्या एवोगैड्रो संख्या (6 × 1023) के बराबर होती है। अत:

1 ग्राम यूरेनियम में परमाणुओं की संख्या \(=\frac{6 \times 10^{23}}{235}\)
एक यूरेनियम परमाणु विखण्डन में लगभग 200 MeV ऊर्जा मुक्त होती है। अत: 1 g यूरेनियम के विखण्डन से
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 13.4
इस प्रकार हम देखते हैं कि 1 ग्राम यूरेनियम के विखण्डन होने पर 5 × 1023 MeV ऊर्जा उत्पन्न होती है जो 20 टन T.N.T. (Trinitrotoluene) में विस्फोट करने से उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा से 2 × 104 किलोवॉट घण्टा (kWh) विद्युत ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 13.5
जब मन्द गति का न्यूट्रॉन U235 में प्रवेश करता है तो न्यूट्रॉन की अतिरिक्त ऊर्जा के कारण नाभिक में उपस्थित न्यूक्लिओन की स्थितिज ऊर्जा, आन्तरिक उत्तेजन ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है। इस प्रक्रिया में उत्तेजन ऊर्जा 6.5 MeV हाती है। परिणामस्वरूप नाभिक कम्पन करने लगता है तथा नाभिक विकृत होकर डम्बल आकृति धारण कर लेता है। अनुकूल परिस्थितिर्यो में डम्बल के इन दो भागों के मध्य तीव्र प्रतिकर्षण प्रभाव के कारण नाभिक दो भार्गों में विखण्डित हो जाता है।

प्रश्न 14.
नाभिकीय श्रृंखला अभिक्रिया में क्रान्तिक द्रव्यमान से क्या आशय है?
उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन में उत्पन्न सभी न्यूट्रॉन विखण्डन में भाग नहीं लेते हैं। यहाँ न्यूट्रॉनों के उत्पत्ति की दर पिण्ड के आयतन \(\left(\frac{4}{3} \pi r^{3}\right)\) पर निर्भर होती है; जबकि पृष्ठ से क्षरण की दर पृष्ठीय क्षेत्रफल (4πr2) पर निर्भर करती है। इस प्रकार
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 14
स्पष्ट है पिण्ड का आकार छोटा होने पर क्षरण दर उत्पत्ति दर के सापेक्ष अधिक होगी, जबकि पिण्ड का आकार अधिक होगा तो क्षरण दर की अपेक्षा उत्पत्ति दर अधिक होगी व श्रृंखला अभिक्रिया की सम्भावना अधिक होगी।

उपरोक्त व्याख्या से स्पष्ट है भारी नाभिक (यूरेनियम) का वह न्यूनतम द्रव्यमान (आकार) जिसमें नाभिकीय विखण्डन श्रृंखला अभिक्रिया सम्भव होती है उसे क्रान्ति द्रव्यमान कहते हैं।

प्रश्न 15.
भारी जल नाभिकीय भट्टी में उपयुक्त मंदक है क्यों?
उत्तर:
जब समान द्रव्यमान के दो कणों के बीच प्रत्यास्थ टक्क्र होती है तो उनके वेग आपस में बदल जाते हैं अतः जब तीव्र वेग वाला न्यूट्रॉन समान द्रव्यमान वाले हाइड्रोजनी पदार्थ जैसे-भारी जल से टकराता है तो टक्कर के पश्चात् न्यूट्रॉन के वेग में अधिकतम रूस होता है।

RBSE Class 12 Physics Chapter 15 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नाभिक की संरचना का वर्णन करते हुए नाभिकीय बलों की विवेचना करो।
उत्तर:
नाशिकीय संरचना (Nuclear structure)

जेम्स चैडविक द्वारा सन् 1932 में न्यूट्रॉन की खोज किये जाने के। बाद वैज्ञानिक हाइजेन बर्ग ने बताया कि नाभिक प्रोटॉनों एवं न्यूट्रॉनों से मिलकर बना होता है।
(i) नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या परमाणु क्रमांक (Z) कहलाती है।
(ii) नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों तथा न्यूट्रॉनों की संख्या का योग द्रव्यमान संख्या (A) कहलाता है।
(iii) प्रोटॉन पर इलेक्ट्रॉनिक आवेश के बराबर धनात्मक आवेश होता है; जबकि न्यूट्रॉन निरावेशित कण होता है।
(iv) नाभिक में उपस्थित न्यूट्रॉनों एवं प्रोटॉन के द्रव्यमान लगभग समान हैं। (न्यूट्रॉन का द्रव्यमान प्रोटॉन से 0.5% अधिक) होता है।
(v) इलेक्ट्रॉन तो प्रकृति का मूल कण है परन्तु न्यूट्रॉन एवं प्रोटॉन शुद्ध रूप में मूल कण नहीं है क्योंकि ये अन्य कणों से बने हैं जिन्हें क्वॉर्क (Quarks) कहते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 1

नाभिकीय बल (Nuclear force)

हम पढ़ चुके हैं कि नाभिक का आकार 10-15 m की कोटि का होता है और इसी नाभिक में धनावेशित प्रोटॉन एवं उदासीन न्यूट्रॉन उपस्थित रहते हैं। इतनी अल्प दूरी पर प्रोटॉनों के मध्य इतना अधिक वैद्युत प्रतिकर्षण-बल होना चाहिए कि नाभिक का स्थायी होना सम्भव न हो, लेकिन फिर भी नाभिक स्थायी है। इसका अर्थ यह हुआ कि गुरुत्वाकर्षण व वैद्युत् बलों से भिन्न एक अन्य बल भी होता है जो न्यूक्लिऑनों को इतनी छेटी जगह में बाँधे रहता है, इसी बल को ‘नाभिकीय बल’ कहते हैं।
यह अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है कि दूरी बदलने पर नाभिकीय बल किस नियम के अनुसार बदलता है, परन्तु इतना निश्चित है कि दूरी बदलने पर नाभिकीय बल के परिवर्तन की दर गुरुत्वीय बल एवं वैद्युत बल की तुलना में बहुत अधिक होती है अन्यथा नाभिक स्थायी नहीं रहता। गुरुत्वीय बल, कूलॉम बल एवं नाभिकीय बलों की आपेक्षिक शक्ति (strength) में निम्न अनुपात होता है-
Fg : Fe : Fn = 1 : 1036 : 1038

नाभिकीय बल के सम्बन्ध में निम्नांकित तथ्य ज्ञात किये गये हैं-

(i) नाभिकीय बल की प्रकृति आकर्षणात्मक होती है।
(ii) नाभिकीय बल लघु परास बल (short range force) होता है।
न्यूक्लिऑनों के मध्य (1 × 10m-14) से अधिक दूरी होने पर यह बल नगण्य हो जाता है। इससे कम दूरी पर ही यह बल प्रभावी रहता है, इसीलिए इसे लघु परास बल कहते हैं।
(iii) नाभिकीय बल अत्यन्त तीव्र (very strong) होता है। 2 × 10-15 m की दूरी पर नाभिकीय बल वैद्युत बल की तुलना में लगभग 100 गुना होता है।
(iv) नाभिकीय बल की प्रकृति 0.5 × 10-15 m की दूरी पर प्रतिकर्षणात्मक हो जाती है।
(v) नाभिकीय बल आवेश पर निर्भर नहीं होता है, अतः यह बल प्रोटॉन-न्यूट्रॉन अथवा प्रोटॉन-प्रोटॉन अथवा न्यूट्रॉन-न्यूट्रॉन युग्मों के मध्य समान रूप से लगता है। नाभिकीय बल की इसी प्रकृति के कारण नाभिक के स्थायी होने के प्रश्न का समाधान हो जाता है।
(vi) नाभिकीय द्रव्य का घनत्व लगभग नियत होना तथा मध्यवर्ती द्रव्यमान परास में नाभिकों की बंधन ऊर्जा का लगभग नियत होना यह दर्शता है कि नाभिक में प्रत्येक न्यूक्लिऑन उपस्थित अन्य सभी न्यूक्लिऑनों से अन्त:क्रिया नहीं करता अपितु केवल अपने कुछ निकटतम न्यूक्लिऑनों से ही अन्त:क्रिया करता है। नाभिकीय बल का यह गुण “नाभिकीय बल की संतृप्तता” कहलाता है। यह विद्युत बल से भिन्न है नाभिक में प्रत्येक प्रोटोन शेष सभी प्रोटॉनों से अन्तः क्रिया करता है तथा अन्तः क्रियाओं की संख्या \(\frac{\mathrm{Z}(\mathrm{Z}-1)}{2} \sim \mathrm{Z}^{2}\) के समानुपाती होती है।

हल्के नाभिकों में नाभिकीय बल (आकर्षणात्मक), प्रोटॉनों के मध्य लगने वाले वैद्युत प्रतिकर्षण बल से अत्यन्त प्रबल होता है, फलस्वरूप हल्के नाभिक स्थायी बने रहते हैं। जैसे-जैसे नाभिक भारी होता जाता है, नाभिक में प्रोटॉनों एवं न्यूट्रॉनों दोनों की संख्या बढ़ने लगती है। चूंकि वैद्युत प्रतिकर्षण बल प्रोटॉनों के प्रत्येक युग्म (pair) के मध्य कार्य करता है तथा यह न्यूक्लिऑनों के बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है जबकि नाभिकीय बल दूरी बढ़ने पर और तेजी से घटता है, फलस्वरूप भारी नाभिकों में न्यूक्लिऑनों के दूर-दूर होने के कारण वैद्युत प्रतिकर्षण, कुल नाभिकीय बल की अपेक्षा तेजी से बढ़ता है। इससे नाभिक का स्थायित्व घटने लगता है। यही कारण है कि परमाणु क्रमांक Z > 83 वाले सभी नाभिक अस्थायी होते हैं और रेडियोएक्टिवता का गुण प्रदर्शित करते हैं। यह नाभिकीय बल की संतृप्तता को व्यक्त करता है।

प्रश्न 2.
द्रव्यमान क्षति तथा बन्धन ऊर्जा को समझाइये प्रतिन्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा व द्रव्यमान संख्या के आलेख से प्राप्त मुख्य निष्कर्षों को समझाइये।
उत्तर:
द्रव्यमान ;ति एवं जाणिय बंधन ऊर्जा (Mass defect and Nuclear Binding energy)

हम पढ़ चुके हैं कि परमाणु का समस्त द्रव्यमान तथा धन आवेश नाभिक में केन्द्रित होता है और नाभिक प्रोटॉनों एवं न्यूट्रॉनों से मिलकर बना है। हमें यह भी जानते हैं कि अमुक नाभिक में कितने प्रोटॉन एवं कितने न्यूट्रॉन होते हैं, अतः गणना द्वारा किसी नाभिक का सम्भावित द्रव्यमान (expected mass) ज्ञात किया जा सकता है। द्रव्यमान स्पेक्ट्रोग्राफ (mass spectrograph) द्वारा किसी नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान (actual mass) भी ज्ञात किया जा सकता है। यह पाया जाता है कि किसी नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान उसके न्यूक्लिऑनों से गणना द्वारा प्राप्त सम्भावित द्रव्यमान से सदैव कम होता है, द्रव्यमान के इसी अन्तर को द्रव्यमान-क्षति (mass-defect) कहते हैं। इस प्रकार, द्रव्यमान क्षति = गणना द्वारा प्राप्त नाभिक का द्रव्यमान – नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान या
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जहाँ z, परमाणु क्रमांक, A द्रव्यमान क्रमांक, mp, प्रोटॉन का द्रव्यमान, mn, न्यूट्रॉन का द्रव्यमान एवं m, नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान है।
आइन्स्टीन के अनुसार यह द्रव्यमान (∆m) ऊर्जा में बदल जाता है, इसी ऊर्जा को नाभिक की बन्धन ऊर्जा कहते हैं। यही ऊर्जा नाभिक के समस्त न्यूक्लिऑनों को नाभिक के रूप में बाँधे रहती है। ∆m का अर्थ है कि जब प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन मिलकर नाभिक का निर्माण करते हैं तो ∆m द्रव्यमान लुप्त हो जाता है तथा उसके तुल्य ऊर्जा (∆m)c2 मुक्त हो जाती है। इस ऊर्जा के कारण ही प्रोटॉन व न्यूट्रॉन नाभिक से बँधे रहते हैं। स्पष्ट है कि नाभिक के प्रोटॉनो तथा न्यूट्रॉनों को तोड़ने के लिए इतनी ही बाह्य ऊर्जा की आवश्यकता होगी। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि जब प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन मिलकर नाभिक बनाते हैं तो इस क्रिया में कुछ ऊर्जा  निकलती है, जिसे ‘नाभिक की बन्धन ऊर्जा’ कहते हैं। इस तथ्य से यह भी स्पष्ट है कि यदि इतनी ही ऊर्जा (बन्धन ऊर्जा के बराबर) नाभिक को दे दी जाये तो उसके समस्त न्यूक्लिऑन बन्धनमुक्त हो जायेंगे। अतः बन्धन ऊर्जा की परिभाषा इस प्रकार भी कर सकते हैं, “किसी नाभिक की बन्धन ऊर्जा, ऊर्जा की वह मात्रा है जो नाभिक को दे देने पर उसके समस्त न्यूक्लिऑनों को बन्धन मुक्त कर दे।” अत: नाभिक की बन्धन ऊर्जा
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यदि नाभिक की बन्धन ऊर्जा में न्यूक्लिऑनों की संख्या का भाग दे दें तो हमें नाभिक की ‘बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन’ (binding energy per nucleon) प्राप्त होती है। बन्धन ऊर्जा नाभिक के स्थायित्व को प्रदर्शित करती है।
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प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा (Binding energy per Nucleon) – नाभिक की बन्धन ऊर्जा ∆Eb में इसकी द्रव्यमान संख्या A से भाग देने पर जो राशि प्राप्त होती है उसे प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा कहा जाता है। इसे \(\overline{\Delta E}_{b}\) से व्यक्त करते हैं।
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किसी नाभिक की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा जितनी अधिक होती है। नाभिक उतना ही अधिक स्थायी होता है। यदि विभिन्न तत्वों के नाभिकों की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा तथा उनकी द्रव्यमान संख्या के मध्य ग्राफ खींचा | जाय तो प्राप्त वक्र प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा वक्र कहलाता है।
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वक्र के अध्ययन से निम्न निष्कर्ष प्राप्त होते हैं-

(i) वक्र से स्पष्ट है कि प्रारम्भ में प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा बढ़ती है फिर अधिकतम मान पर पहुँचकर द्रव्यमान संख्या के बढ़ने के साथ-साथ धीरे-धीरे घटती है।
(ii) प्रत्येक नाभिक की बन्धन ऊर्जा धनात्मक होती है; अतः नाभिक को विखण्डित करने के लिये ऊर्जा देनी होगी।
(ii) द्रव्यमान संख्या बढ़ने पर प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा बढ़ती है। और द्रव्यमान संख्या 62 {28Ni62} निकिल के लिये अधिकतम, लगभग 8.8 MeV प्रति न्यूक्लिऑन होकर फिर धीरे-धीरे घटने लगती है। इसका अर्थ यह है कि द्रव्यमान संख्या 62 के संगत एवं उसके पड़ोसी तत्त्वों के नाभिक सबसे अधिक स्थायी हैं। 26Fe56 के लिये भी यह लगभग 8.8 Mev प्रति न्यूक्लिऑन होती है लेकिन 28Ni62 से थोड़ी कम होती है। इस प्रकार निकिल सबसे अधिक स्थायी तत्त्व है। इसी कारण भू-क्रोड में सबसे अधिक पिघला हुआ निकिल तथा लोहा पाया जाता है।
(iv) द्रव्यमान संख्या 62 से अधिक द्रव्यमान संख्या वाले तत्वों की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा तत्त्वों की द्रव्यमान संख्या के बढ़ने पर क्रमशः कम होती जाती है। इसीलिये सीसे (Pb) से भारी सभी तत्त्व अस्थायी होते हैं। इसी कारण स्थायित्व को प्राप्त करने के लिये α एवं β कणों के उत्सर्जन के रूप में अपने द्रव्यमान को कम करते रहते हैं। प्राकृतिक रेडियोऐक्टिव का यही कारण है।
(v) द्रव्यमान संख्या 4, 12, 16 वाले नाभिकों की प्रतिन्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा (\(\overline{\Delta E}_{b}\)) का मान इनके निकटवर्ती नाभिकों की तुलना में अधिक होता है। अतः ये निकटवर्ती नाभिकों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होते हैं। इसी कारण ग्राफ में इन नाभिकों को शिखर बिन्दुओं द्वारा व्यक्त किया गया है।
कारण-परमाणुओं की भाँति नाभिक में न्यूक्लिऑनों के लिये कोश संरचना है। 4 के गुणक वाले नाभिकों में नाभिकीय कोश पूर्णतः भरे होते हैं; अतः ये निकटवर्ती नाभिकों की तुलना में अधिक स्थायी होते हैं।
(vi) मध्यवर्ती द्रव्यमान संख्या (30 < A < 170) वाले नाभिक की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा (\(\overline{\Delta E}_{b}\)) का मान लगभग 8 MeV के निकट होता है जो इन नाभिकों के स्थायित्व को व्यक्त करता है।
(vii) वक्र से स्पष्ट है कि यदि हम किसी बहुत भारी नाभिक (जैसे-यूरेनियम) को किसी विधि द्वारा मध्यवर्ती द्रव्यमान संख्या वाले नाभिकों में तोड़ लें तो प्राप्त नाभिकों की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा बढ़ जायेगी। अत: इस प्रक्रिया में बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होगी। यह नाभिकीय विखण्डन कहलाता है।
(viii) वक्र से यह भी स्पष्ट है कि दो या अधिक बहुत हल्के नाभिकों (जैसे भारी हाइड्रोजन 1H2 के नाभिक) को अपेक्षाकृत भारी नाभिकों जैसे 2He4) में संयुक्त कर लें तो प्राप्त नाभिक की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा (\(\overline{\Delta E}_{b}\)) बढ़ जायेगी, इस प्रक्रिया में भी अत्यधिक ऊर्जा मुक्त होगी इसे नाभिकीय संलयन कहते हैं।
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प्रश्न 3.
रेडियोएक्टिव क्षय के नियम लिखो। चरघातांकी क्षय के नियम का उपयोग करते हुए तत्त्व की अर्द्ध-आयु व माध्य-आयु के सूत्र ज्ञात करो।
उत्तर:
रेडियो सक्रियता (Radioactivity)

सन् 1896 ई. में फ्रांसीसी वैज्ञानिक हेनरी बेकुरल ने यह पाया कि यूरेनियम तथा इसके लवणों से कुछ अदृश्य किरणे स्वतः निकलती हैं। जो कि मोटे, काले कागज की कई पर्यों को पार कर सकती हैं साथ ही ये फोटोग्राफिक प्लेटों को भी प्रभावित करती हैं इन किरणों को रेडियोएक्टिव किरणें कहते है।

“किसी पदार्थ से स्वतः ही अदृश्य किरणें उत्सर्जित होते रहने की घटना रेडियोसक्रियता कहलाती है।” सन् 1898 में पौलेन्ड के दम्पत्ति मैडम क्यूरी व पियरे क्यूरी ने ऐसे रेडियोएक्टिव तत्त्व की खोज की जो यूरेनियम की अपेक्षा लगभग दस लाख गुना रेडियो सक्रिय था उसका नाम ‘रेडियम’ है।
क्यूरी दम्पत्ति को सन् 1903 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। रेडियो एक्टिवता से सम्बन्धित तथ्य-
(i) रेडियो सक्रियता एक नाभिकीय प्रक्रम है। किसी भी भौतिक या रासायनिक प्रक्रम; जैसे-दाब, ताप या अन्य पदार्थों के संयोग का रेडियो सक्रियता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। कारण यह है कि रासायनिक परिवर्तनों के लिये ऊर्जाएँ इलेक्ट्रॉन वोल्ट के क्रम की होती हैं। जबकि नाभिकीय ऊर्जा MeV के क्रम की होती है।
(ii) नाभिक के रेडियोएक्टिव क्षय में आवेश, रेखीय व कोणीय संवेग एवं द्रव्यमान ऊर्जा संरक्षित होते हैं साथ ही साथ न्यूट्रॉनों व प्रोटॉनों की संख्या भी संरक्षित होगी।
(iii) यदि नाभिक से α या β क्षय के पश्चात् प्राप्त उत्पाद नाभिकों के द्रव्यमानों का योग मूल नाभिक के द्रव्यमान से कम होगा तो मूल नाभिक अस्थायी होगा।

दरफोर्ड सोडी का रेडियोएक्टिव क्षय का नियम (Rutherford-Soddy Law of Radioactive decay)

सन् 1902 में रदरफोर्ड एवं सोडी ने अनेक रेडियोएक्टिव पदार्थों के स्वतः विघटन का प्रायोगिक अध्ययन किया और रेडियोएक्टिव क्षय के सम्बन्ध में निम्नांकित निष्कर्ष निकाले जो रदरफोर्ड एवं सोडी के नियमों के रूप में जाने गये। इनके अनुसार-
(i) रेडियोएक्टिवता एक नाभिकीय घटना है तथा रेडियोएक्टिव किरणों के उत्सर्जन की दर को भौतिक यो रासायनिक कारण द्वारा नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है अर्थात् न तो इसे बढ़ाया जा सकती है और न ही घटाया जा सकता है।
(ii) रेडियोएक्टिव पदार्थों के विघटन की प्रकृति सांख्यिकीय (statistical) है अर्थात् यह कहना कठिन है कि कौन-सा नाभिक कब विघटित होगा और विघटित होकर कौन-सा कण उत्सर्जित करेगा? किसी नमूने से निश्चित समय में उत्सर्जित कणों की संख्या निश्चित होती है। विघटन की प्रक्रिया में α, β, γ, किरणों के उत्सर्जन के साथ एक तत्त्व दूसरे नये तत्त्व में बदलता रहता है जिसके रासायनिक एवं रेडियोएक्टिव गुण बिल्कुल नये होते हैं।
(iii) किसी भी क्षण रेडियोएक्टिव परमाणुओं के क्षय होने की दर उस क्षण उपस्थित परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है।
माना किसी समय t पर उपस्थित परमाणुओं की संख्या N है तथा समय 1 + ∆t पर यह संख्या घट कर अपने मान की N – ∆N रह जाती है। तो परमाणुओं के क्षय होने की दर \(-\frac{\Delta \mathrm{N}}{\Delta t}\) होगी। अत: रदरफोर्ड व सोडी के नियमानुसारः
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RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 3.2
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 3.3

अर्द्ध-आयु (Half life)

हम जानते हैं कि रेडियोएक्टिव तत्त्वों का सदैव विघटन होता रहता | है और जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, अविघटित नाभिकों की संख्या घटती जाती है। “वह समय जिसमें किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के अविघटित नाभिकों की संख्या घटकर आधी रह जाती है, उस तत्त्व की अर्द्ध-आयु कहलाती है।” इसे T से व्यक्त करते हैं। एक तत्त्व के लिए इसका मान नियत एवं विभिन्न तत्वों के लिए भिन्न-भिन्न होता है। अर्द्ध-आयु का मान लिये गये पदार्थ की मात्रा पर निर्भर नहीं करता है। इसे भौतिक एवं रासायनिक प्रभावों द्वारा बदला नहीं जा सकता है। कुछ तत्त्वों की अर्द्ध-आयु नीचे दी जा रही है-
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यदि किसी रेडियोएक्टिव तत्त्व की अर्द्ध-आयु T है तो T समय पश्चात् वह अपनी प्रारम्भिक मात्रा का 50%, 2T समय बाद 25%, 3T समय बाद 12.5, 4T समय बाद 6.25% शेष रह जायेगा। यदि पदार्थ के नाभिकों की संख्या को समय के साथ ग्राफ कर प्लॉट करें तो चित्र 15.4 की तरह चरघातांकी वक्र प्राप्त होगा।
माना प्रारम्भ में किसी पदार्थ के नाभिकों की संख्या No है अर्थात् t = 0 पर N = No तो एक अर्द्ध-आयु (अर्थात् t = T) के बाद शेष नाभिकों की संख्या
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रेडियोएक्टिव पदार्थ की माध्य-आयु (Average Life of a Radioactive Substance)

जैसा कि हम पढ़ चुके हैं, रेडियोएक्टिव विघटन की प्रकृति सांख्यिकीय (statistical) होती है अर्थात् यह नहीं कहा जा सकता है कि कौन-सा नाभिक कब विघटित होगा और विघटित होकर किस प्रकार का कण उत्सर्जित करेगा। किसी भी नाभिक के विघटन का समय शून्य से अनन्त के मध्य कुछ भी हो सकता है। सभी नाभिकों की आयु के औसत को ही माध्य-आयु (Average life) कहते हैं। इसे 1 से प्रकट करते हैं। गणितीय रूप से यह सिद्ध किया जा सकता है कि किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की । माध्य आयु क्षय नियतांक (λ) के व्युत्क्रम के बराबर होती है अर्थात्
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प्रश्न 4.
नाभिकीय विखण्डन से क्या तात्पर्य है? विखण्डन की क्रिया स्वयं श्रृंखलाबद्ध क्यों नहीं होती है? समझाइये कि श्रृंखलाबद्ध अभिक्रिया प्राप्त करने के लिये क्या करना होता है?
उत्तर:
नाभिकीय विखण्ङन (Nuclear Fission)

“किसी भारी नाभिक के दो या दो से अधिक हल्के नाभिकों में टूटने की प्रक्रिया को ‘नाभिकीय विखण्डन’ कहते हैं।” इस घटना की खोज सन् 1939 में जर्मन के दो वैज्ञानिकों ओटोहान (Otto Hann) एवं स्ट्रास्मान (Stassmann) ने की थी। उन्होंने यूरेनियम – 238 के नाभिक पर जब तीव्रगामी (लगभग 106 eV ऊर्जा वाले) न्यूट्रॉनों की बमबारी की तो पाया कि 92U238 का नाभिक दो लगभग बराबर हल्के नाभिकों बेरियम (56Ba148) एवं क्रिप्टन (36Kr88) में टूट जाता है और एक विखण्डन में 3 न्यूट्रॉनों के साथ अपार ऊर्जा मुक्त होती है। प्रक्रिया निम्न समीकरण से व्यक्त होती है-
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नाभिकीय विखण्डन की इस घटना में अत्यधिक परिमाण में ऊर्जा भी उत्पन्न होती है। इसका कारण यह है कि इस प्रक्रिया में प्राप्त नाभिकों के द्रव्यमानों का योग प्रयुक्त नाभिक के द्रव्यमान से कुछ कम होता है अर्थात् इस प्रक्रिया में कुछ द्रव्यमान लुप्त हो जाते हैं जो आइन्स्टीन के द्रव्यमान- ऊर्जा सम्बन्ध (∆E = ∆mc2) के अनुसार ऊर्जा में बदल जाता है। इसी ऊर्जा को ‘नाभिकीय ऊर्जा’ (nuclear energy) कहते हैं।

प्राकृतिक यूरेनियम में दो आइसोटोप 92U23592U238 पाये जाते हैं। इनका अनुपात 1 : 145 होता है। इस प्राकृतिक यूरेनियम में 99.3% यूरेनियम-238 तथा केवल 0.7% यूरेनियम-235 होता है। यूरेनियम के ये दोनों आइसोटोप विखण्डनीय हैं। प्रयोगों द्वारा यह पता चलता है कि यूरेनियम-238 का विखण्डन केवल तीव्रगामी न्यूट्रॉनों (106 eV ऊर्जा वाले) द्वारा ही सम्भव है; जबकि यूरेनियम-235 का विखण्डन मन्दगामी न्यूट्रॉनों (1 eV से भी कम ऊर्जा वाले) से जैसे ऊष्मीय न्यूट्रानों (0.03 ev ऊर्जा) से भी सम्भव है। इस प्रकार स्पष्ट है कि यूरेनियम-235 विखण्डन के लिए अधिक उपयोगी है। परमाणु बम में यूरेनियम-235 प्रयोग में लाया जाता है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 13.1
यूरेनियम-235 का विखण्डन-जब मन्दगामी न्यूट्रॉन यूरेनियम-235 के नाभिक से टकराता है तो वह उसमें अवशोषित हो जाता है तथा यूरेनियम का अन्य आइसोटोप यूरेनियम-236 अस्थायी रूप से बनता है। चूँकि 92U236 अस्थायी है अत: यह तुरन्त ही दो नाभिकों में टूट जाता है। तथा तीन नये न्यूट्रॉन व अपार ऊर्जा उत्सर्जित करता है। प्रक्रिया निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त की जाती है-
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 13.2
यह आवश्यक नहीं है कि यूरेनियम-235 के विखण्डन में सदैव बेरियम एवं क्रिप्टन के ही नाभिक प्राप्त हों, बल्कि इसमें 20 से भी अधिक भिन्न-भिन्न तत्त्वों के 100 से भी अधिक आइसोटोप प्राप्त होते हैं। जिनकी द्रव्यमान संख्या 75 से 160 तक होती है। उदाहरण के लिए-अन्य अभिक्रिया निम्न प्रकार है-
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यूरेनियम के प्रत्येक विखण्डन में लगभग 200 MeV ऊर्जा प्राप्त होती है। इस ऊर्जा का अधिकांश भाग विखण्डन से प्राप्त खण्डों की गतिज ऊर्जा के रूप में प्राप्त होता है। शेष भाग उत्सर्जित न्यूट्रॉनों की गतिज ऊर्जा, γ-किरणों तथा ऊष्मा व प्रकाश विकिरणों के रूप में प्राप्त होता है।
1 ग्राम यूरेनियम के विखण्डन से मुक्त ऊर्जा- यूरेनियम-235 के एक ग्राम परमाणु (235 g) में परमाणुओं की संख्या एवोगैड्रो संख्या (6 × 1023) के बराबर होती है। अत:

1 ग्राम यूरेनियम में परमाणुओं की संख्या \(=\frac{6 \times 10^{23}}{235}\)
एक यूरेनियम परमाणु विखण्डन में लगभग 200 MeV ऊर्जा मुक्त होती है। अत: 1 g यूरेनियम के विखण्डन से
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 13.4
इस प्रकार हम देखते हैं कि 1 ग्राम यूरेनियम के विखण्डन होने पर 5 × 1023 MeV ऊर्जा उत्पन्न होती है जो 20 टन T.N.T. (Trinitrotoluene) में विस्फोट करने से उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा से 2 × 104 किलोवॉट घण्टा (kWh) विद्युत ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 13.5
जब मन्द गति का न्यूट्रॉन U235 में प्रवेश करता है तो न्यूट्रॉन की अतिरिक्त ऊर्जा के कारण नाभिक में उपस्थित न्यूक्लिओन की स्थितिज ऊर्जा, आन्तरिक उत्तेजन ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है। इस प्रक्रिया में उत्तेजन ऊर्जा 6.5 MeV हाती है। परिणामस्वरूप नाभिक कम्पन करने लगता है तथा नाभिक विकृत होकर डम्बल आकृति धारण कर लेता है। अनुकूल परिस्थितिर्यो में डम्बल के इन दो भागों के मध्य तीव्र प्रतिकर्षण प्रभाव के कारण नाभिक दो भार्गों में विखण्डित हो जाता है।

नियंत्रित एवं अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया नाभिकीय विखण्डन में श्रृंखला-अभिक्रिया (Chain Reaction in Nuclear Fission)

जब 92U235 के नाभिकों पर मन्दगामी न्यूट्रॉनों की बमबारी की | जाती है तो प्रत्येक यूरेनियम नाभिक लगभग दो बराबर खण्डों में टूट जाता है। विखण्डन की इस अभिक्रिया में तीन नये न्यूट्रॉन तथा अत्यधिक ऊर्जा उत्सर्जित होती है, अभिक्रिया निम्न प्रकार होती है-
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 4
अनुकूल परिस्थितियों में ये नये न्यूट्रॉन अन्य तीन यूरेनियम नाभिकों | को भी इसी प्रकार विखण्डित करते हैं। इसी प्रकार तीन अभिक्रियाओं में उत्पन्न 9 न्यूट्रॉनों द्वारा विखण्डन की श्रृंखला आगे बढ़ायी जाती है। इस प्रकार नाभिकों के विखण्डन की एक श्रृंखला (chain) बन जाती है जिसे चित्र 15.16 में दिखाया गया है जो एक बार प्रारम्भ होने पर स्वत: तेजी से जारी रहती है जब तक कि समस्त यूरेनियम के नाभिक विखण्डित नहीं हो जाते हैं। इस प्रकार नाभिकीय विखण्डन से उत्पन्न हुई ऊर्जा उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। चूंकि यूरेनियम के एक नाभिक के विखण्डन से लगभग 200 MeV ऊर्जा उत्पन्न होती है। अत: श्रृंखला अभिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न ऊर्जा बहुत कम समय में एक भयानक रूप धारण कर लेती है। शृंखला अभिक्रिया अग्र दो प्रकार की होती है–
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(i) अनियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया
(ii) नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया।

(i) अनियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया (Uncontrolled Chain Reaction) – इस अभिक्रिया में प्रत्येक विखण्डन से प्राप्त नये न्यूट्रॉन, जो संख्या में दो या दो से अधिक होते हैं, नये नाभिकों का विखण्डन करते हैं, फलस्वरूप विखण्डनों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है। इस प्रकार यह अभिक्रिया अत्यन्त तीव्र गति से होती है तथा अत्यन्त सूक्ष्म समय में ही समस्त पदार्थ का विखण्डन हो जाता है। इस अभिक्रिया में उत्पन्न अपार ऊर्जा भयानक विस्फोट का रूप ले लेती है। परमाणु बम इसी अभिक्रिया पर आधारित है।

(ii) नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया (Controlled Chain Reaction) – इस अभिक्रिया में कृत्रिम उपायों द्वारा (मन्दक एवं नियन्त्रक पदार्थों की सहायता से) इस प्रकार का प्रबन्ध किया जाता है कि प्रत्येक विखण्डन से प्राप्त न्यूट्रॉनों में से केवल एक ही न्यूट्रॉन आगे विखण्डन कर पाये, फलस्वरूप विखण्डनों की दर नियत रहती है। इस प्रकार यह अभिक्रिया धीरे-धीरे होती है। इस अभिक्रिया से प्राप्त ऊर्जा का उपयोग रचनात्मक कार्यों में किया जा सकता है। नाभिकीय रिएक्टर में इसी अभिक्रिया का उपयोग किया जाता है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 4.2
श्रृंखला अभिक्रिया के वास्तविक प्रचालन में मुख्यत: दो कठिनाइयाँ सामने आती हैं-
(i) प्राकृतिक यूरेनियम में अधिकांश (99.3%) U238 होता है और मात्र 0.7% U235 होता है। U238 केवल तीव्रगामी (1 MeV से अधिक ऊर्जा वाले) न्यूट्रॉनों द्वारा ही विखण्डित होता है तथा मंदगामी (1 MeV से कम ऊर्जा वाले) न्यूट्रॉनों को अवशोषित कर लेता है, अतः U235 के विखण्डन से जो नये न्यूट्रॉन उत्सर्जित होते हैं वे U238 द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं, फलस्वरूप श्रृंखला अभिक्रिया आगे नहीं चल पाती। इस कठिनाई को दूर करने के दो उपाय हैं –

(a) प्राकृतिक यूरेनियम में से U235 को विसरण विधि द्वारा अलग कर लिया जाता है। आइसोटोप U235 का विखण्डन तीव्रगामी एवं मन्दगामी दोनों प्रकार के न्यूट्रॉनों से सम्भव होता है, अतः श्रृंखला अभिक्रिया आगे चलती रहती है।

(b) मन्दकों (moderators) द्वारा न्यूट्रॉनों को इतना मन्दगामी कर लिया जाता है कि उनकी ऊर्जा केवल 0.03 eV के लगभग रह जाती है। इस दशा में न्यूट्रॉन U238 द्वारा अवशोषित नहीं हो पाते हैं, परन्तु U235 को विखण्डित कर सकते हैं। इस प्रकार मन्दकों को प्रयोग करके प्राकृतिक यूरेनियम में भी श्रृंखला आगे चलती रहती है (चित्र 15.17) प्रायः ग्रेफाइट तथा भारी जल को मन्दक के रूप में प्रयोग किया जाता है।

(ii) U235 नाभिक के विखण्डन से प्राप्त तीव्रगामी न्यूट्रॉन पदार्थ में लगभग 10 cm दूरी तय कर लेने पर ही मन्दगामी होते हैं तथा अन्य यूरेनियम नाभिकों का विखण्डन कर सकते हैं। अत: यदि विखण्डित होने वाले पदार्थ का आकार छोटा है तो अधिकांश न्यूट्रॉन विखण्डन को आगे बढ़ाने से पहले ही पदार्थ से बाहर निकल जायेंगे और श्रृंखला अभिक्रिया रुक जायेगी। अतः श्रृंखला अभिक्रिया आगे जारी रहने के लिए विखण्डनीय पदार्थ का आकार एक विशेष आकार (क्रान्तिक आकार) से बड़ा होना चाहिए।

प्रश्न 5.
नाभिकीय भट्टी को सरल रेखाचित्र बनाते हुए इसकी प्रक्रिया स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
नाभिकीय रिएक्टर अथवा परमाणु भट्टी (Nuclear Reactor or Atomic Furnace)

निर्यान्तत श्रृंखला अभिक्रिया पर आधारित यह एक ऐसा उपकरण है। जिसकी सहायता से नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग शान्तिमय एवं रचनात्मक कार्यों के लिए किया जा सकता है। इसके निम्नलिखित प्रमुख भाग होते हैं-

(i) ईंधन (Fuel)-नाभिकीय रिएक्टर में यूरेनियम- 235 (92U235) अथवा प्लूटोनियम-239 (94Pu239) को ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह रिएक्टर का प्रमुख भाग है जिसे सक्रिय भाग (active core) भी कहते हैं। विभिन्न प्रकार के रिएक्टरों में ईंधन का विखण्डन विभिन्न प्रकार से कराया जाता है; जैसे ऊष्मीय रिएक्टर में तापीय न्यूट्रॉनों द्वारा, माध्यमिक रिएक्टर में अल्पतापीय (epithermal) न्यूट्रॉनों द्वारा, तीव्रगामी रिएक्टर में तीव्रगामी न्यूट्रॉनों द्वारा।

(ii) मन्दक (Moderator) – 92U235 के विखण्डन के लिए मन्दगामी (1 eV ऊर्जा वाले) न्यूट्रॉनों की आवश्यकता होती है और इन मन्दगामी न्यूट्रॉनों का U238 द्वारा अवशोषण भी नहीं होता है, जबकि तीव्रगामी न्यूट्रॉन (1 MeV से कम ऊर्जा वाले) U238 का विखण्डन तो कर नहीं पाते बल्कि उनका अवशोषण हो जाता है। इस प्रकार श्रृंखला अभिक्रिया को जारी रखने के लिए न्यूट्रॉनों की ऊर्जा कम करना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए तीव्रगामी न्यूट्रॉनों को मन्दक पदार्थ से गुजारकर उन्हें मन्दगामी न्यूट्रॉनों में बदल लिया जाता है। इस कार्य के लिए ऐसे पदार्थ का प्रयोग किया जाता है जो न्यूट्रॉनों को अवशोषित तो न करे लेकिन उनके वेग को घटा दे। साधारण जल, भारी जल, ग्रेफाइट तथा बेरीलियम | आदि हल्के परमाणुओं वाले पदार्थ इसके लिए उपयोगी हैं। मन्दक के रूप में भारी जल सर्वोत्तम है, लेकिन इसमें न्यूट्रॉनों का अवशोषण भी अधिक होता है, अतः भारी जल के उपयोग से विखण्डन के प्राप्त न्यूट्रॉनों की संख्या घट जाती है। इसकी पूर्ति के लिए भारी जल युक्त रिएक्टरों में ईंधन के रूप में समृद्ध यूरेनियम का उपयोग किया जाता है ताकि विखण्डन तीव्र गति से होता रहे और अधिक संख्या में न्यूट्रॉन पैदा होते द्रवित हीलियम तथा बेरीलियम अधिक मात्रा में सुविधा से नहीं मिलते हैं और इनका मूल्य भी अधिक है, अत: भारी जल एवं ग्रेफाइट ही अधिकांशतः मन्दक के रूप में प्रयोग किये जाते हैं।

(iii) नियन्त्रक (Controller) – नाभिकीय विखण्डन की दर न्यूट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करती है, अत: विखण्डन की दर को नियन्त्रित करने के लिए न्यूट्रॉनों की संख्या पर नियन्त्रण किया जाता है। कैडमियम न्यूट्रॉनों को अवशोषित कर लेता है, अत: विखण्डन की दर को नियन्त्रित करने के लिए कैडमियम की छड़े प्रयोग की जाती हैं। ये छुड़े विखण्डन की क्रिया में उत्सर्जित न्यूट्रॉनों में से कुछ न्यूट्रॉनों का अवशोषण कर लेती हैं। इन छड़ों को रिएक्टर की दीवार में बने बेलनाकार खाँचों में रखा जाता है तथा आवश्यकतानुसार इन्हें अन्दर या बाहर खिसकाकर विखण्डन की दर को कम या अधिक किया जा सकता है।

(iv) शीतलक (Coolant) – विखण्डन के फलस्वरूप अत्यधिक मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है जिसे शीतलक द्वारा दूर किया जाता है। इसके लिए वायु, ठण्डा जल अथवा CO2) को रिएक्टर के अन्दर पाइपों द्वारा प्रवाहित किया जाता है। इस ऊष्मा से जलवाष्प बनाकर उससे टरबाइन द्वारा विद्युत ऊर्जा प्राप्त कर लेते हैं और विद्युत ऊर्जा का उपयोग मन वांछित तरीके से करते हैं।
शीतलक पदार्थ द्रव या गैस ही हो सकता है। इसमें निम्नलिखित गुण होने चाहिए

(a) इसकी विशिष्ट ऊष्मा अधिक होनी चाहिए ताकि यह बिना अधिक ताप वृद्धि के अधिकाधिक ऊष्मा का अवशोषण कर सके।
(b) शीतलक पदार्थ न्यूट्रॉनों का अवशोषण न करें।
(c) शीतलक पदार्थ द्वारा न्यूट्रॉनों का मंदन भी यथासम्भव नहीं होना चाहिए क्योंकि इस कार्य के लिए मन्दक का प्रयोग किया जाता है।
(d) शीतलक पदार्थ रिएक्टर तथा संलग्न सहायक उपकरणों के लिए संक्षारक नहीं होना चाहिए।

(v) परिरक्षक (Shield)-रिएक्टर में अनेक तीव्र विकिरण भी निकलते हैं जो इसके पास काम करने वालों के लिए हानिकारक होते हैं, अतः इन घातक विकिरणों से कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए रिएक्टर को कंकरीट की मोटी दीवारों के अन्दर बन्द कर दिया जाता है।

(vi) सुरक्षा छड़ें (Safety Rods)-वैसे तो नाभिकीय विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया को नियन्त्रित करने के लिए रिएक्टर में नियन्त्रक छड़े लगी होती हैं, लेकिन इनके अलावा कुछ सुरक्षा छड़े भी लगा दी जाती हैं। जो आपातकाल के समय स्वतः रिएक्टर में प्रवेश करके श्रृंखला अभिक्रिया को नियन्त्रित कर देती हैं।
रचना (Construction)-नाभिकीय रिएक्टर का सैद्धान्तिक आरेख चित्र 15.18 में प्रदर्शित है। इसमें ग्रेफाइट की ईंटों से बनाया गया एक आयताकार ब्लॉक होता है जो चारों ओर से कंकरीट की मोटी दीवारों से घिरा होता है। ग्रेफाइट की ईंटों में लम्बे बेलनाकार खाँचे बने होते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 5
इन खाँचों में रिक्त स्थानों में यूरेनियम-235 की छड़ें लगी रहती हैं। इन छड़ों को ऑक्सीकरण से बचाने के लिए इन्हें एल्यूमीनियम के खोल में बन्द कर देते हैं। समुचित स्थानों पर नियन्त्रक के रूप में कैडमियम की छड़े ब्लॉक में बने खाँचों में लगी रहती है जिन्हें इच्छानुसार अन्दर या बाहर की ओर खिसकाया जा सकता है। ग्रेफाइट के ब्लॉक में होकर पाइप लाइन बिछी रहती है जिसमें ठण्डा जल प्रवाहित करके शीतलन किया जाता है। ब्लॉक में कुछ अन्य छड़े भी सुरक्षा छड़ों के रूप में लगी रहती हैं।

कार्यविधि (Working)-जब रिएक्टर बन्द होता है तो कैडमियम की छड़े ब्लॉक में पूर्णतः अन्दर होती हैं। जब रिएक्टर चलाना होता है तो कैडमियम की छड़ों को बाहर खींच लिया जाता है जिससे रिएक्टर में पहले से ही विद्यमान न्यूट्रॉन विखण्डन क्रिया आरम्भ कर देते हैं। क्रिया को बढ़ाने अथवा घटाने के लिए कैडमियम की छड़ों को आवश्यकतानुसार बाहर या अन्दर की ओर खिसकाना पड़ता है। रिएक्टर में उपस्थित न्यूट्रॉन U235 के नाभिकों का विखण्डन करने लगते हैं।

विखण्डन के फलस्वरूप तीव्रगामी न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं, ये तीव्रगामी न्यूट्रॉन बार-बार मन्दक से टकराते हैं जिससे इनकी गति मन्द पड़ जाती है। तब ये भी U235 नाभिकों का विखण्डन करने लगते हैं। इस प्रकार विखण्डन की श्रृंखलाअभिक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। जब रियेक्टर बन्द करना होता है तो कैडमियम की छड़ों को पूर्णत: ब्लॉक में अन्दर की ओर खिसका देते हैं।

यहाँ एक बात ध्यान में रखने की है और वह यह है कि अभिक्रिया को चलाने के लिए यूरेनियम की छड़ों का आकार क्रान्तिक आकार से बड़ा होना चाहिए।
उपयोग (Uses)-

  • नाभिकीय रिएक्टर का उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है।
  • इनका उपयोग रेडियोएक्टिव आइसोटोप उत्पन्न करने के लिए किया जाता है जिनका प्रयोग चिकित्सा विज्ञान, कृषि एवं उद्योगों में किया जाता है। कोबाल्ट, आयोडीन, गन्धक, फास्फोरस आदि के रेडियो-आइसोटोप अनेक रोगों के उपचार में काम आते हैं।
  • यह नाभिकीय अनुसंधान के लिए उच्च तीव्रता के न्यूट्रॉन पूँज उत्पन्न करने के काम आते हैं।

प्रश्न 6.
β क्षय को समझाइये। β क्षय में न्यूट्रिनों परिकल्पना की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
β-क्षय (β-decay)
क्षय निम्न तीन प्रकार के होते हैं – (i) ऋणात्मक बीटा क्षय (β)
(ii) धनात्मक बीटा क्षय (β+)
(iii) इलेक्ट्रॉन प्रग्रहण (electron capture or K capture)
(i) ऋणात्मक बीटा क्षय (β) जब किसी अस्थायी नाभिक में न्यूट्रॉन, प्रोटॉन में रूपान्तरित होता है तो साथ ही (β) व एण्टीन्यूट्रिनो (\(\overline{v}\)) प्राप्त होता है नाभिक से β व \(\overline{v}\) उत्सर्जित होते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9
जब मातृ नाभिक से (β) उत्सर्जित होता है तो उत्पाद नाभिक के परमाणु क्रमांक में एक अंक की वृद्धि हो जाती है; जबकि द्रव्यमान संख्या अपरिवर्तित रहती है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.1
मातृ नाभिकउत्पाद नाभिक ऋणात्मक बीटा कण एण्टिन्यूट्रिनो
उदाहरण-
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.2
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.3
घनात्मक बीटा क्षय (β+ क्षय)-जब किसी अस्थायी नाभिक में प्रोटॉन, न्यूट्रॉन में रूपान्तरित होता है तो साथ (β+) पॉजिट्रॉन तथा (v) न्यूट्रिनों प्राप्त होते हैं यही β+ व γ नाभिक से उत्सर्जित होते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.3

RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी ve Q 20
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.4
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.5
इलेक्ट्रॉन प्रग्रहण-ऐसे नाभिक जिनमें ऊर्जा संरक्षण के आधार पर β+ क्षय तो संभव नहीं है; अत: प्रोटॉन कक्षीय इलेक्ट्रॉन सामान्यतया K कक्ष के इलेक्ट्रॉन को प्रग्रहण कर लेता है तथा इनसे संयुक्त होकर न्यूट्रॉन में रूपान्तरित हो जाता है। यहाँ न्यूट्रिनों भी प्राप्त होता है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 9.6

β-कण की आपेक्षिक संख्या एवं उनकी ऊर्जा के मध्य (Bi210) के लिए ग्राफ चित्र 15.9 में प्रदर्शित है। यह ग्राफ दर्शाता है कि
(a) अधिकतर β-कणों की ऊर्जा कम होती है,
(b) केवल कुछ इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा अधिकतम होती है जो अन्त बिन्दु ऊर्जा (end point energy) कहलाती है और
(C) ऊर्जा स्पेक्ट्रम सतत है जो यह दर्शाता है कि उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा 0 (शून्य) से (0β)max तक सम्भव है।

न्यूट्रिनो परिकल्पना (Neutrino Hypothesis)

प्रारम्भ में β क्षय में यह माना जाता था कि मूल नाभिक, उत्पाद नाभिक व β या β में रूपान्तरित होता है। परन्तु इस अवधारणा में ऊर्जा, रैखिक संवेग तथा कोणीय संवेग संरक्षण लागू नहीं होता है।

(i) ऊर्जा संरक्षण – β क्षय में, उत्सर्जित β कणों की ऊर्जा मातृ व उत्पाद नाभिकों की ऊर्जाओं के अन्तर के बराबर नहीं पाई गई; स्पष्ट है β क्षय में ऊर्जा संरक्षण का नियम विचलित होता है।
(ii) रैखिक संवेग संरक्षण-
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 10
चित्र 15.10 चित्र 15.10 से ज्ञात होता है कि β क्षय के दौरान उत्पाद नाभिक एवं β कण परस्पर विपरीत गति नहीं करते जबकि इनकी विपरीत गति रैखिक संवेग संरक्षण के लिये आवश्यक है। स्पष्ट है रैखिक संवेग संरक्षण का नियम भी विचलित हो गया।
(iii) कोणीय संवेग संरक्षण
β-क्षय में कोणीय संवेग या चक्रण के संरक्षण नियम का भी विचलन होता है। β-कण अर्थात् इलेक्ट्रॉन का चक्रण 1/2 होता है। जब यह नाभिक द्वारा उत्सर्जित होता है तो नाभिक का चक्रण भी 1/2 परिवर्तित होना आवश्यक है, परन्तु β-कण उत्सर्जित करते नाभिक का चक्रण कभी भी से परिवर्तित होना नहीं पाया गया। नाभिक का चक्रण अपरिवर्तित या पूर्णतः परिवर्तित होता है। इसलिए कोणीय संवेग संरक्षण का नियम β-क्षय द्वारा विचलित होता है।

ऊर्जा, रैखिक व कोणीय संवेग संरक्षण के नियमों के विचलन के प्रश्न का समाधान पॉली (Pauli) ने सन् 1930 में किया। उनके अनुसार जब मातृ नाभिक से β कण उत्सर्जित होता है तो उसके साथ एक अन्य कण न्यूट्रिनों (v) या एण्टिन्यूट्रिनों (\(\overline{\mathrm{v}}\)) भी उत्सर्जित होता है। न्यूट्रिनो या एन्टीन्यूट्रिनो द्रव्य से नगण्य अन्योन्य क्रियाएँ करते हैं अत: इनका संसूचन बहुत मुश्किल था। 1956 में रेन्स तथा कोवान (Reiens and Cowan) ने इन कणों का संसूचन करने में सफलता प्राप्त की। न्यूट्रिनों में निम्न गुण होते हैं-

  • यह उदासीन कण होता है।
  • इसका विराम द्रव्यमान शून्य होता है।
  • इसका कोणीय संवेग अन्य न्यूक्लिऑन के समान ± \(\frac{1}{2}\left(\frac{h}{2 \pi}\right)\) होता है।
  • यह फोटॉन के समान ऊर्जा वाला कण होता है।
  • फोटॉन के समान ही इनमें रैखिक संवेग होता है।

उपरोक्त समीकरणों में ऊर्जा, रैखिक एवं कोणीय संवेग संरक्षण लागू है।
(i) इस प्रकार β क्षय में जब β+ या β व v या \(\overline{\mathrm{v}}\) निकलते हैं तो दोनों ही ऊर्जाओं का योग अन्त बिन्दु ऊर्जा के बराबर होता है। इस प्रकार β कण व न्यूट्रिनों की कुल ऊर्जा नियत है जो ऊर्जा संरक्षण के नियम का पालन हो जाता है। या मातृ नाभिक व उत्पाद नाभिकों की ऊर्जाओं का अन्तर β कण व न्यूट्रिनों (एण्टिन्यूट्रिनों) की ऊर्जाओं के योग के समान होता है।
(ii) β क्षय में न्यूट्रिनो या एण्टिन्यूट्रिनो के उत्सर्जन की दिशा β क्षय में रैखिक संवेग संरक्षण को स्थापित करता है।
(iii) जैसा कि यह ज्ञात होता है कि न्यूट्रिनो का कोणीय संवेग \(\pm \frac{h}{2 \pi}\) है तो β क्षय में कोणीय संवेग संरक्षण भी लागू हो जाता है।

प्रश्न 7.
रेडियोएक्टिव नाभिक से c क्षय की व्याख्या कीजिये। समझाइये कि क्षय से प्राप्त कणों को ऊर्जा स्पेक्ट्रम विविक्त ऊर्जाओं का समूह होता है।
उत्तर:
α-क्षय (α-decay)

जो नाभिक α-कण का उत्सर्जन करता है उसे जनक नाभिक कहते हैं। जब कोई भारी नाभिक (जनक) α-कण
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 7
उत्सर्जित करता है तो जनक नाभिक की आन्तरिक ऊर्जा बहुत अधिक होती है तथा यह अस्थायी होता है। अतिरिक्त ऊर्जा के उत्सर्जन के लिए, जनक नाभिक एक α-कण उत्सर्जित करता है तथा निर्मित नाभिक पुत्री नाभिक (daughter nucleus) कहलाता है। इस पुत्री नाभिक के द्रव्यमान एवं वेग को क्रमशः md एवं vd से व्यक्त करते हैं। पुत्री नाभिक एवं α-कण के रेखीय संवेग संरक्षण के लिए (चित्र 15.6) परस्पर विपरीत दिशाओं में प्रक्षेपित होते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 7.1
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 7.2
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 7.3
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 7.4
इस प्रकार स्पष्ट है कि विघटन ऊर्जा लगभग पूर्णतः α-कण की गतिज ऊर्जा के रूप में प्रकट होती है।
यदि नाभिक का विभव प्राचीर (potential barrier) α-कण की गतिज ऊर्जा की कोटि का हो तो -कण का पलायन हो सकता है। यह देखा गया है कि नाभिक के विभव प्राचीर का मान लगभग 26 MeV होता है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 7.5
प्राचीन यान्त्रिकी के अनुसार α-कण, जिसकी ऊर्जा लगभग 5.4 Mev होती है, विभव प्राचीर (26 Mev) को पार नहीं कर पाता है। परन्तु रेडियोएक्टिव नाभिक द्वारा उत्सर्जित किसी भी α-कण की ऊर्जा इतनी नहीं होती है, इसलिये ये नाभिक से पलायन नहीं कर सकते हैं। α-कण के नाभिक से पलायन की समस्या को गेमोव कोल्डोन (Gamow Congdon) एवं गर्नेय (Gurmey) द्वारा 1928 में क्वाण्टम यान्त्रिकी का प्रयोग करते हुए हल किया गया।
इस सिद्धान्त के अनुसार कण नाभिक से उत्सर्जन से पूर्व नाभिक में ही मौजूद होता है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 7.6
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 7.7
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 7.8

रेडियोएक्टिव श्रेणियाँ-जब किसी रेडियोएक्टिव नाभिक से α कण उत्सर्जित होता है तो उत्पाद नाभिक की द्रव्यमान संख्या में 4 अंक की कमी हो जाती है। ऐसा सम्भव है कि α क्षय से प्राप्त पुत्री नाभिक स्वयं भी रेडियो सक्रिय हो तथा α या β का क्षय करती हो। यदि मूल नाभिक की द्रव्यमान संख्या 4n है जहाँ n पूर्णाक है तो उत्पाद या पुत्री नाभिक तथा आगामी क्षय श्रृंखला में आने वाले अन्य सभी अस्थायी नाभिकों एवं अन्तिम स्थायी नाभिक की द्रव्यमान संख्या भी किसी पूर्णांक की 4 गुना होगी। यदि मूल नाभिक की द्रव्यमान संख्या 4n + 1 है तो इसकी क्षय श्रृंखला में आने वाले सभी नाभिकों की द्रव्यमान संख्या 4n + 1 होगी। इस प्रकार α क्षय के लिये चार श्रृंखलाएँ सम्भव हैं जो निम्न सारणी में व्यक्त हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 7.9

α कण हीलियम का नाभिक होता है जो द्वि आयनित कण है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी sh Q 8
स्पष्ट है, α-कण के उत्सर्जन से मूल नाभिक का परमाणु क्रमांक दो से तथा द्रव्यमान संख्या 4 से कम हो जाती है अर्थात् उत्पाद नाभिक को परमाणु क्रमांक 2 व द्रव्यमान संख्या 4 से घट जाती है इसे ही α क्षय कहते है।

α कणों की नाभिक से उत्सर्जन की व्याख्या चिरसम्मत सिद्धान्तों की अपेक्षा क्वाण्टम यांत्रिकी के आधार पर की जा सकती है। इसके अनुसार नाभिक α कण नाभिक में ही होता है तथा सुरंगन प्रभाव द्वारा यह नाभिक से बाहर आता है। α कणों की ऊर्जा का स्पेक्ट्रम विविक्त व रेखित होता है। विविक्त ऊर्जा स्पेक्ट्रम यह प्रदर्शित करता है कि नाभिक में भी परमाणु की भाँति विविक्त ऊर्जा स्तर उपस्थित है।

प्रश्न 8.
संलयन में प्रोटॉन-प्रोटॉन चक्र किस प्रकार सम्पन्न होता है। ये ताप नाभिकीय अभिक्रियायें प्रयोगशाला में सम्पन्न नहीं हो सकती
उत्तर:
नाशिकीय संलयन (Nuclear Fusion)

“वह प्रक्रिया, जिसमें दो हल्के नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक भारी नाभिक की रचना करते हैं, नाभिकीय संलयन कहलाती है।” इस प्रक्रिया में प्राप्त भारी नाभिक का द्रव्यमान, संयोग करने वाले दोनों नाभिकों के द्रव्यमान के योग से कम होता है। द्रव्यमान की यह क्षति आइन्स्टीन के द्रव्यमान ऊर्जा सम्बन्ध (∆E = ∆mc2) के अनुसार ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है।

उदाहरण के लिए; भारी हाइड्रोजन अर्थात् ड्यूटीरियम के दो नाभिक संयोग करते हैं तो ट्राइटियम प्राप्त होता है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 8

इस प्रकार परिणामी प्रतिक्रियाएँ दोनों स्थितियों में समान हैं। इन दोनों में ड्यूटीरियम के तीन नाभिक संलयित होकर हीलियम के नाभिक की संरचना करते हैं तथा 21.6 MeV ऊर्जा उत्पन्न होती है जो न्यूट्रॉन एवं प्रोटॉन की गतिज ऊर्जा के रूप में प्राप्त होती है। यद्यपि ऐसा प्रतीत होता है कि नाभिकीय संलयन से प्राप्त ऊर्जा (21.6 Mev), U235 के एक नाभिक के विखण्डन से प्राप्त ऊर्जा (200 MeV) से बहुत कम है, परन्तु वास्तव में ऐसी बात नहीं है। समान द्रव्यमान के हल्के नाभिकों के संलयन से प्राप्त ऊर्जा, भारी नाभिक के विखण्डन से प्राप्त ऊर्जा से कहीं अधिक होती है क्योंकि हल्के पदार्थ के एकांक द्रव्यमान में परमाणुओं की संख्या भारी पदार्थ के एकांक द्रव्यमान में परमाणुओं की संख्या से बहुत अधिक होती
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी lo Q 8.1

नाभिकीय संलयन एक कठिन प्रक्रिया है तथा यह साधारण ताप व दाब पर सम्भव नहीं है। इसका कारण यह है कि संलयित होने वाले नाभिक धनावेशित होते हैं, अतः जब वे एक-दूसरे के निकट आते हैं तो उनके मध्य प्रबल वैद्युत प्रतिकर्षण बल कार्य करने लगता है। इस प्रतिकर्षण बल के विरुद्ध संलयित होने के लिए नाभिकों की गतिज ऊर्जा बहुत अधिक (105eV) होनी चाहिए। इसके लिए अति उच्च ताप (108 K) तथा अति उच्च दाब की आवश्यकता होती है। इतना अधिक ताप सूर्य पर ही सम्भव है। पृथ्वी पर इतना अधिक ताप नाभिकीय विखण्डन के द्वारा ही उत्पन्न किया जा सकता है। अतः पृथ्वी पर नाभिकीय संलयन नाभिकीय विखण्डन के बाद ही सम्भव है। इसी आधार पर ‘संलयन बम’ अथवा ‘हाइड्रोजन बम’ बनाया गया है। चूंकि संलयन अति उच्च ताप पर होता है अत: इसे ‘ताप नाभिकीय अभिक्रिया’ (thermo nuclear reaction) भी कहते हैं।

RBSE Class 12 Physics Chapter 15 आंकिक प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यूक्लिऑन संख्या 16 के एक नाभिक की त्रिज्या 3 × 10-15 m है। उस नाभिक जिसकी न्यूक्लिऑन संख्या 128 है की त्रिज्या क्या हेगी?
हल :
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 1

प्रश्न 2.
26Fe56 नाभिक के लिये बन्धन ऊर्जा ज्ञात करो (दिया है) 26Fe56 का द्रव्यमान = 55.9349 u, न्यूट्रॉन का द्रव्यमान = 1.00867u
प्रोटॉन का द्रव्यमान = 1.00783u तथा 1u = 931 MeV/c2
हल :
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 2

प्रश्न 3.
एक रेडियोएक्टिव समस्थानिक X की अर्द्ध-आयु 3x है। प्रारम्भ में इस समस्थानिक के किसी प्रतिदर्श में 8000 परमाणु हैं। गणना करो – (i) इसका क्षय नियतांक (ii) समय जिस पर इस प्रतिदर्श में 1000 परमाणु सक्रिय रहेंगे?
हल :
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 3
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 3.1

प्रश्न 4.
एक रेडियोएक्टिव नाभिक इस प्रकार क्षयित होता है।
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 4
यदि x की द्रव्यमान संख्या 180 व परमाणु संख्या 72 हैतो नाभिक X4, की द्रव्यमान संख्या तथा परमाणु संख्या ज्ञात करो।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 4.1

प्रश्न 5.
एक यूरेनियम 235 नाभिक के विखण्डन से लगभग 200 MeV ऊर्जा प्राप्त होती है यूरेनियम 235 को ईंधन के रूप में काम ले रही एक नाभिकीय भट्टी 1000 kW शक्ति उत्पन्न करती है तो इनमें प्रति सेकण्ड विखण्डित ले रहे नाभिकों की संख्या ज्ञात करो।
हल :
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 5

प्रश्न 6.
संलयन अभिक्रिया 1H2 + 1H22He3 + 0n1 में ड्यूट्रॉन हीलियम तथा न्यूट्रॉन के द्रव्यमान क्रमश 2.015 u, 3.017 u तथा 1.0094 u हैं । यदि 1 kg ड्यूटीरियम का पूर्ण संलयन होना है तो मुक्त ऊर्जा ज्ञात करो। [1u = 931 MeV/c2]
उत्तर:
ड्यूटीरियम के 1 मोल (0.002 kg) में 6.02 × 1023 परमाणु
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 6
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 6.1

प्रश्न 7.
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 7
हल :
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 7.1

प्रश्न 8.
एक मिली क्यूरी सक्रियता के लिये Th227 की मात्रा ज्ञात कीजिये इसकी अर्द्ध-आयु 19 वर्ष है।
हल :
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 8
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 8.1
= 12.06 × 10-6 g

प्रश्न 9.
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 9
हल :
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 9.1
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 9.2

प्रश्न 10.
88Ra22 के एक नाभिक से एक α कण उत्सर्जित होता है। यदि α कण की ऊर्जा 4.662 MeV है तो इस क्षय में कुल मुक्त ऊर्जा कितनी है?
हल :
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 10
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 10.1

प्रश्न 11.
नाभिक x176, β क्षय कर नाभिक Y176 में क्षयित होता है। यदि X तथा Y के परमाणवीय द्रव्यमान क्रमशः 175.942694 u तथा 175.941426 u है तो उत्सजित β कण की अधिकतम ऊर्जा ज्ञात करो।
हल:
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 15 नाभिकीय भौतिकी nu Q 11

RBSE Solutions for Class 12 Physics