RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 18 मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्त्व एवं मूल कर्तव्य

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 18 मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्त्व एवं मूल कर्तव्य

RBSE Class 12 Political Science Chapter 18 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Political Science Chapter 18 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के संविधान के किस भाग में मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है?
(अ ) भाग एक
(ब) भाग दो
(स) भाग तीन
(द) भाग चार

प्रश्न 2.
जब किसी व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है तो कितने समय के अन्दर निकटतम न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करना होगा?
(अ) 12 घण्टे
(ब) 24 घण्टे
(स) 36 घण्टे
(द) 48 घण्टे

प्रश्न 3.
नीति निर्देशक तत्व किस देश के संविधान से लिये गये हैं?
(अ) यू. एस. ए.
(ब) इंग्लैण्ड
(स) आयरलैण्ड
(द) ऑस्ट्रेलिया

प्रश्न 4.
नीति निर्देशक तत्व का उल्लेख संविधान के किस भाग में किया गया है?
(अ) पहले
(ब) दूसरे
(स) तीसरे
(द) चौथे

प्रश्न 5.
“पुरुष व स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका उपार्जन का अधिकार है।” यह निम्न में से किस प्रकार की नीति निर्देशक तत्व है
(अ) सामाजिक हित व शिक्षा सम्बन्धी
(ब) आर्थिक सुरक्षा सम्बन्धी
(स) न्याय सम्बन्धी
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 6.
किस संविधान संशोधन द्वारा मूल कर्तव्यों को संविधान के साथ जोड़ा गया है?
(अ) 44 वें संशोधन
(ब) 42वें संशोधन
(स) 41वें संशोधन
(द) 45वें संशोधन

प्रश्न 7.
वर्तमान में भारतीय संविधान में कितने मूल अधिकार हैं?
(अ) 05
(ब) 06
(स) 07
(द) 08

प्रश्न 8.
जब न्यायालय किसी पदाधिकारी को उसके कर्तव्य निर्वहन के लिए आदेश जारी करता है तो इसे कहते हैं
(अ) परमादेश
(ब) प्रतिषेध लेख
(स) उत्प्रेषण आदेश
(द) अधिकार पृच्छा

उत्तर:
1. (स), 2. (ब), 3. (स), 4. (द), 5. (ब), 6. (ब), 7. (ब), 8. (अ)

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RBSE Class 12 Political Science Chapter 18 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान के किन अनुच्छेदों में मूल अधिकारों का उल्लेख है?
उत्तर:
संविधान के 12 से 30 व 32 से 35 तक के अनुच्छेदों में मूल अधिकारों का उल्लेख है।

प्रश्न 2.
स्वतंत्रता का अधिकार किस अनुच्छेद से सम्बन्धित है?
उत्तर:
स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 19 से सम्बन्धित है।

प्रश्न 3.
नीति निर्देशक तत्वों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नीति निर्देशक तत्वों का महत्व:

  1. शासन के मूल्यांकन का महत्वपूर्ण आधार।
  2. संविधान के क्रियान्वयन में सहायक।

प्रश्न 4.
नीति निर्देशक तत्वों की पालना में सरकार द्वारा शिक्षा संबंधी संचालित विभिन्न योजनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सरकार ने शिक्षा के महत्व को समझते हुए 86 वें संविधान संशोधन के आधार पर प्रारंभिक शिक्षा के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बालक / बालिका के लिए अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान किया है तथा सर्वशिक्षा अभियान व मिड डे मील आदि कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं।

प्रश्न 5.
संविधान के किस भाग में मूल कर्त्तव्य जोड़े गए हैं?
उत्तर:
संविधान के भाग चार – क में 10 मूल कर्तव्यों को जोड़ा गया है।

प्रश्न 6.
संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 किस मौलिक अधिकार से संबंधित हैं?
उत्तर:
संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 समानता के मौलिक अधिकार से संबंधित हैं।

प्रश्न 7.
शोषण के विरुद्ध अधिकार किस अनुच्छेद से संबंधित है?
उत्तर:
शोषण के विरुद्ध अधिकार अनुच्छेद 23 – 24 से संबंधित है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 18 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मूल अधिकारों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौलिक अधिकार का अर्थ: वे अधिकार जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक तथा अनिवार्य होने के कारण संविधान के द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं और जिन अधिकारों में राज्य द्वारा भी न्यायोचित हस्तक्षेप ही किया जा सकता है, मौलिक अधिकार कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि मूल अधिकार वे अधिकार होते हैं, जिन्हें देश के सर्वोच्च कानून में निहित किया गया है

और जिनकी पवित्रता तथा स्वायत्तता को विधायिका तथा कार्यपालिका स्वीकार करती हो अर्थात् मूल अधिकारों का अतिक्रमण कार्यपालिका तथा विधायिका भी नहीं कर सकती और यदि अतिक्रमण करती भी हैं तो उनके कार्यों को न्यायपालिका अवैध घोषित कर सकती है।

प्रश्न 2.
मूल अधिकारों में धार्मिक स्वतंत्रता के संबंध में क्या प्रावधान किए गए हैं?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 25 – 28 में प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।

  1. अनुच्छेद 25 – प्रत्येक व्यक्ति को अपने अंत:करण के अनुसार किसी भी धर्म को अपनाने, उपासना करने, धार्मिक संस्थाओं की स्थापना करने तथा धर्म का प्रचार करने का अधिकार प्राप्त है।
  2. अनुच्छेद 26 – इसमें प्रत्येक धर्मालम्बी को यह अधिकार है कि वह धार्मिक संस्थाओं, दान से स्थापित सेवा-संस्थाओं की स्थापना कर सकता है तथा उनकी देखभाल कर सकता है।
  3. अनुच्छेद 27 – धार्मिक कार्यों के लिए जो संपत्ति एकत्रित की जाती है उस पर कर नहीं लगाया जाता है।
  4. अनुच्छेद 28 – राज्य की निधि से चलने वाली शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी। इसके साथ ही, राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त या आर्थिक सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में किसी व्यक्ति को किसी धर्म विशेष की शिक्षा ग्रहण करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकेगा।

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प्रश्न 3.
निवारक नजरबंदी पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
निवारक नजरबंदी से तात्पर्य बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया से की गई गिरफ्तारी से है। यह अपराधी को दंडित करने की नहीं बल्कि अपराध करने से रोकने की प्रक्रिया है। जब राज्य को यह अनुमान हो कि किसी व्यक्ति से जो अपराध करने वाला है राज्य की सुरक्षा को खतरा है या खतरे की धमकी मिल रही है तो राज्य सीमित अवधि के लिए बिना जाँच किए सम्बद्ध व्यक्ति को बंदी बना सकता है।

किसी व्यक्ति को 3 महीने से अधिक इस कानून के तहत बंदी नहीं रख सकते जब तक कि परामर्शदात्री समिति जिसमें एक व्यक्ति उच्च न्यायालय का जज हो, उसकी अनुमति प्राप्त न हो चुकी हो । भारत सरकार ने निवारक नजरबंदी से सम्बन्धित दो कानूनों का निर्माण किया है। ये हैं-

  1. राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम
  2. गैर कानूनी गतिविधियाँ निवारक अध्यादेश।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की उपादेयता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दिसम्बर 1980 को सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा अध्यादेश लागू किया जो बाद में अधिनियम बन गया। इसका उद्देश्य साम्प्रदायिक व जातीय दंगों तथा देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक गतिविधियों के लिए उत्तरदायी व्यक्तियों को निरुद्ध करना है। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून निवारक निरोधे कानून की व्यवस्था ही है। जून 1984 को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में दूसरा संशोधन अध्यादेश जारी किया गया।

इस अध्यादेश में कहा गया कि यह जम्मू-कश्मीर राज्य के अतिरिक्त संपूर्ण भारत में लागू होगा। इसके आधार पर इसमें कुछ परिवर्तन करते हुए इसे और कठोर बना दिया गया है। पहला संशोधन किया गया है। कि किसी व्यक्ति की नजरबंदी के आदेश की अवधि खत्म होने, आदेश रद् हो जाने अथवा वापस ले लिए जाने के बाद नया आदेश जारी करके उसे नजरबंद किया जा सकेगा। दूसरा प्रावधान यह किया गया है कि नजरबंदी के प्रत्येक कारण पर अदालतों को अलग – अलग विचार करके फैसला करना होगा।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान में दिए गए कोई 5 मूल कर्त्तव्य लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान में दिए गए 5 मूल कर्त्तव्य निम्नलिखित हैं

  1. भारत की प्रभुता, एकता व अखंडता को अक्षुण्ण रखना।
  2. देश की रक्षा करना और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करना।
  3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना।
  4. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखना और हिंसा से दूर रहना।।
  5. हमारी समन्वित संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझना और उसका परिरक्षण करना।

प्रश्न 6.
समानता के अधिकार हेतु संविधान में दिए गए प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समानता के अधिकार हेतु संविधान में दिए गए प्रावधान निम्नलिखित हैं

  1. अनुच्छेद 14 में राज्य भारत के राज्य-क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानून के समक्ष संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
  2. अनुच्छेद 15 में यह स्पष्ट किया गया है कि राज्य, धर्म, वंश, जाति, लिंग तथा जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के साथ कोई भेदभाव नहीं करेगा।
  3. अनुच्छेद 16 में सभी नागरिकों को सरकारी पदों पर नियुक्ति के समान अवसर प्राप्त होंगे तथा इस संन्ध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर सरकारी नौकरी या पद प्रदान करने में भेदभाव नहीं किया जायेगा।
  4. अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी अयोग्यता को लागू करना एक दडनीय अपराध होगा।
  5. अनुच्छेद 18 में राज्य सेना व शिक्षा संबंधी उपाधियों के अतिरिक्त कोई अन्य उपाधि प्रदान नहीं कर सकता है।

प्रश्न 7.
“मूल अधिकार व मूल कर्त्तव्य एक-दूसरे के पूरक हैं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मूल अधिकार तथा मूल कर्त्तव्य संविधान में एक प्रमुख स्तम्भ हैं। जो नागरिकों को अपने स्वयं के विकास के लिए प्रदान किए हैं। इनका पालन व उपयोग करके व्यक्ति समाज में उन्नति व विकास करते हुए अपना जीवनयापन कर सकता है। कर्तव्यों का पालन किए बिना अधिकारों का उपयोग सम्भव नहीं है। ये हमारे नागरिकों के लिए आदर्श के रूप में जोड़े गए हैं।

ये राष्ट्रहित व राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करने वाले हैं। संविधान में इनको सम्मिलित करने के पीछे कोई राजनीतिक या दलगत भावना नहीं थी। अधिकार व कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मौलिक अधिकारों के साथ-साथ नागरिकों द्वारा कर्तव्यों का पालन करना सर्वोच्च धर्म माना जाता है।

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RBSE Class 12 Political Science Chapter 18 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान में नागरिकों को दिए गए मूल अधिकारों का उल्लेख करते हुए किन्हीं दो मूल अधिकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को दिए गए मूल अधिकार- भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को 6 मूल अधिकार दिए गए है-

  1. समानता का अधिकार
  2. स्वतंत्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  5. संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

(1) शोषण के विरुद्ध अधिकार:

  1. मानव के क्रय – विक्रय व बेगार पर रोक(अनुच्छेद 23) – इस अनुच्छेद द्वारा बेगार तथा इसी प्रकार का जबरदस्ती करवाए हुए श्रम का निषेध किया गया है। राज्यहित में सरकार द्वारा व्यक्ति को अनिवार्य श्रम की योजना लागू की जा सकती है लेकिन ऐसा करते समय नागरिकों के बीच धर्म, मूलवंश, जाति वर्ग या सामाजिक स्तर के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
  2. बालश्रम का निषेध (अनुच्छेद 24) – इसके अनुसार 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को कारखानों अथवा जोखिम वाले काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता।

(2) सांस्कृतिक व शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 व 30):

1. अल्पसंख्यक वर्गों के हितों की सुरक्षा – इस अनुच्छेद के अनुसार देश के सभी नागरिकों को संस्कृति व शिक्षा संबंधी स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। नागरिकों के प्रत्येक वर्ग को अपनी भाषा, लिपि व संस्कृति को सुरक्षित रखने का पूरा अधिकार है।

इस अनुच्छेद द्वारा यह भी व्यवस्था की गई है कि किसी भी नागरिक को धर्म, प्रजाति, जाति, भाषा या इनमें से किसी के भी आधार पर राज्य द्वारा पोषित या राज्य – निधि से सहायता प्राप्त किसी भी शिक्षण संस्थान में प्रवेश से वंचित नही किया जा सकता।

2. अल्पसंख्यक वर्ग को शिक्षण संस्थाओं की स्थापना व संचालन का अधिकार (अनुच्छेद 30) – इस अनुच्छेद के अनुसार अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी इच्छा अनुसार शिक्षण संस्थान की स्थापना व उनके संचालन संबंधी अधिकार प्राप्त हैं। राज्य द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान करते समय किसी भी ऐसी संस्था के साथ धर्म व जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।

प्रश्न 2.
मूल अधिकार से क्या अभिप्राय है? इसका महत्त्व स्पष्ट करते हुए समानता के मूल अधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मूल अधिकार से अभिप्राय – वे अधिकार जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक तथा अनिवार्य होने के कारण संविधान के द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं और जिन अधिकारों में राज्य द्वारा भी न्यायोचित हस्तक्षेप ही किया जा सकता है, ‘मौलिक अधिकार’ कहलाते हैं अर्थात् मूल अधिकार वे अधिकार होते हैं, जिन्हें देश के सर्वोच्च कानून में निहित किया गया हो और जिनकी पवित्रता तथा स्वायत्तता को विधायिका तथा कार्यपालिका स्वीकार करती हों।

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मूल अधिकारों का महत्त्व:

  1. मूल अधिकारों का हनन होने की स्थिति में न्यायालय की सहायता ले सकते हैं।
  2. ये अधिकार समाज में प्रत्येक नागरिक को समान रूप से प्राप्त होते हैं।
  3. ये अधिकार व्यक्ति को सभी आधारों पर सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  4. ये अधिकार व्यक्ति के विकास में सहायक होते हैं।

समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18):
भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता, राज्य में रोजगार के अवसरों की समानता तथा सामाजिक समानता प्रदान की गई है। इस हेतु संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं

(1) कानून के समक्ष समानता: अनुच्छेद 14 में यह प्रावधान किया गया है कि भारत के राज्य क्षेत्र में राज्य किसी भी व्यक्ति को विधि (कानून) के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नही करेगा। विधि/कानून के समक्ष सभी समान हैं और बिना किसी विभेद के विधि के समान संरक्षण के हकदार हैं।

(2) धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध: अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य नागरिकों के साथ धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नही करेगा।

सभी नागरिकों को दुकानों, सार्वजनिक स्थानों, भोजनालयों, होटलों, सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों, कुओं, तालाबों, स्नानघरों, सड़कों आदि का प्रयोग करने का समान अधिकार होगा, लेकिन राज्य महिलाओं, बच्चों, पिछड़े वर्ग के नागरिकों एवं अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए विधि द्वारा विशेष प्रबन्ध कर सकता है। इससे अन्य लोगों के समानता के अधिकार का हनन नही होना चाहिए।

(3) लोक नियोजन के विषय में अवसरों की समानता: संविधान के अनुच्छेद 16 में कहा गया है कि राज्य के अधीन नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में समस्त नागरिकों के लिए उनकी योग्यता और प्रतिभा के आधार पर समानती प्राप्त होगी।

इस बारे में व्यक्ति को धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद नहीं किया जाएगा किन्तु राज्य को यह अधिकार है कि वह राजकीय सेवाओं के लिए आवश्यक योग्यताएँ निर्धारित कर राज्य के मूल निवासी हेतु आरक्षण, पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान कर दे।

  1.  अस्पृश्यता का अंत: संविधान के अनुच्छेद 17 के द्वारा अस्पृश्यता (छुआछूत) का अंत कर दिया गया है और इसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध कर दिया गया है। अस्पृश्यता को अपनाना या लागू करना अपराध होगा।
  2. उपाधियों का अंत: संविधान के अनुच्छेद 18 के अनुसार राज्य सेना एवं विद्या सम्बन्धी उपाधियों के अतिरिक्त अन्य कोई उपाधियाँ प्रदान नही करेगा। इसके अतिरिक्त भारत का नागरिक राष्ट्रपति की अनुमति के बिना किसी विदेशी राज्य की कोई उपाधि स्वीकार नही करेगा।

प्रश्न 3.
राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों की व्याख्या कीजिए तथा निर्देशक तत्त्व व मौलिक अधिकारों में अंतर स्थापित कीजिए।
उत्तर:
राज्य के नीति निर्देशक तत्व:
राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों का तात्पर्य है कि हमारे संविधान द्वारा कुछ ऐसे आधारभूत तत्त्व निश्चित किए गए हैं, जिनके अनुसार राज्य को अपनी नीतियाँ निर्धारित करनी होती हैं। दूसरे शब्दों में, राज्यों के नीति निदेशक तत्त्वों का आशय उन आदेशों से है जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि राज्य की नीतियाँ क्या होनी चाहिए? यह तत्त्व नागरिकों को ऐसी सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं जिनकी प्राप्ति नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हैं।

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नीति – निर्देशक तत्त्वों व मौलिक अधिकारों में अन्तर:

  1. क्षेत्र के आधार पर: मौलिक अधिकारों का संबंध केवल राज्यों में रहने वाले व्यक्तियों से है जबकि निर्देशक तत्वों का सम्बन्ध अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र से भी है। इस प्रकार मौलिक अधिकारों की अपेक्षाकृत निर्देशक तत्वों का क्षेत्र अधिक व्यापक है।
  2.  उद्देश्य के आधार पर: मौलिक अधिकारों के अंतर्गत जो अधिकार नागरिकों को प्रदान किए गए हैं, वे देश में राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना करते हैं परन्तु राज्य नीति निर्देशक तत्वों में जो सिद्धान्त दिए गए हैं, उनका लक्ष्य आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है ताकि राजनीतिक लोकतंत्र को सफल बनाया जा सके।
  3. स्वरूप के आधार पर: मौलिक अधिकारों का स्वरूप निषेधात्मक है जबकि निर्देशक तत्व सकारात्मक हैं।
  4. अन्य आधार पर:
    • मौलिक अधिकार व्यक्ति से संबंधित हैं जबकि निर्देशक तत्व समाज से संबंधित हैं।
    • मौलिक अधिकार नागरिकों को प्राप्त हो चुके हैं जबकि निर्देशक तत्वों को अभी तक पूर्णत: व्यावहारिक रूप प्रदान नहीं किया जा सका है।
    • मौलिक अधिकार वाद योग्य हैं जबकि निर्देशक तत्व वाद योग्य नहीं हैं।
    • मौलिक अधिकार नागरिकों के कानूनी अधिकार हैं जबकि निर्देशक तत्व समाज के नैतिक बंधन हैं।
    • मौलिक अधिकार व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकार हैं जबकि निर्देशक तत्व राज्य की नीतियों के निर्धारण में पथ प्रदर्शक हैं।
    •  मौलिक अधिकार राजनीतिक लोकतंत्र के प्रतीक हैं जबकि नीति निर्देशक तत्व सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र के प्रतीक हैं।

प्रश्न 4.
नीति निर्देशक तत्त्वों की सफल क्रियान्विति हेतु भारत सरकार द्वारा संचालित विभिन्न कार्यक्रमों को विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नीति – निर्देशक तत्त्वों के सफल क्रियान्वयन हेतु संचालित विभिन्न कार्यक्रमों का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है

(1) सामाजिक सुरक्षा: नागरिकों को सामाजिक रूप से सशक्त बनाने के लिए अनेक कार्यक्रम संचालित किए गए हैं। जिनमें वृद्धावस्था पेंशन योजना, स्वास्थ्य बीमा योजना तथा महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं।

(2) न्याय व्यवस्था में सुधार: नागरिकों को न्याय दिलाने के उद्देश्य से लोक अदालतों व त्वरित न्यायालयों की व्यवस्था को अपनाया गया है।

(3) बड़े उद्योगों का राष्ट्रीयकरण: समाज में आर्थिक समानता के लक्ष्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए। परिवहन, जीवन-बीमा तथा साथ ही पर्यटन व कुछ बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जा चुका है।

(4)संपत्ति के अधिकार से संबंधित व्यवस्था में परिवर्तन: आर्थिक व सामाजिक न्याय के मार्ग में बाधित मानते हुए संपत्ति के अधिकार को 44वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा मूल अधिकारों की सूची से हटाकर कानूनी अधिकार बना दिया गया है।

(5) भूमि सुधार: आज़ादी से पहले किसानों की स्थिति बहुत दयनीय थी। उन्हें दास की तरह रखा जाता था, उन पर अनेक प्रकार से अत्याचार किया जाता था। आजादी के बाद इनकी स्थिति को सुधारने के लिए संविधान की 9र्वी सूची में 1951 में भूमि सुधारों के अंतर्गत भूमि पर जोतने वाले के अधिकार को लागू किया गया।

(6) समान कार्य हेतु समान वेतन: समाज में किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, लिंग व वर्ग के आधार कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा तथा स्त्री व पुरुष को समान कार्य के लिए समान रूप से वेतन वितरित किया जाएगा।

(7) कमजोर वर्गों का कल्याण: पिछड़े वर्गों एवं अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए संविधान के शासन में विशेष प्रावधान किए गए हैं। प्रतिनिधि संस्थाओं में इनके लिए आरक्षण की अवधि 95 वें संविधान संशोधन के द्वारा 25 जनवरी 2020 तक के लिए बढ़ा दी गई है।

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प्रश्न 5.
भारतीय संविधान द्वारा प्रदान किए गए स्वतंत्रता के अधिकार का वर्णन कीजिए और बताइए कि क्या स्वतंत्रता पर लगाए गए प्रतिबंधों और निवारक नजरबंदी कानून की व्यवस्था से स्वतंत्रता का अधिकार समाप्त हो गया है?
उत्तर:
स्वतंत्रता का अधिकार-भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को छ: प्रकार की स्वतंत्रताएँ प्रदान की गई हैं, जो निम्नलिखित हैं
(क) विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1) (क):

  1. इसमें भारत के सभी नागरिकों को विचार व भाषण देने की अभिव्यक्ति के प्रचार करने की स्वतंत्रता है।
  2. इसमें प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है।
  3. इस अधिकार के दुरुपयोग को रोकने के लिए अनेक प्रतिबंध भी लगाए गए हैं जो इस प्रकार हैं – राज्य की सुरक्षा, नैतिकता के प्रतिकूल आचरण, न्यायालय का अपमान तथा हिंसात्मक कार्यवाहियों के लिए उकसाने से संबंधित विचारों पर प्रतिबंध लगाया गया है।

(ख) अस्त्र – शस्त्ररहित तथा शांतिपूर्ण सम्मेलन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1) ख):
इसके अनुसार प्रत्येक नागरिक को शांतिपूर्ण ढंग से बिना अस्त्र – शस्त्र के साथ सम्मेलन करने की स्वतंत्रता प्राप्त है। इस स्वतंत्रता पर सार्वजनकि व्यवस्था तथा नैतिकता के हित में प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

(ग) संघ व समुदाय बनाने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1) ग):
इसके अंतर्गत सभी नागरिक मिलकर अपना समुदाय व संघ बना सकते हैं किन्तु राज्यहित में इस पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

(घ) भारत के राज्य क्षेत्र में अबाध भ्रमण की स्वतंत्रता: (अनुच्छेद 19 (I) (घ) :
इसके अन्तर्गत भारत के समस्त नागरिकों को अपनी इच्छानुसार भारत में किसी भी स्थान पर अबाध भ्रमण की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।

(ङ) भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भी भाग में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता:
अनुच्छेद 19 (I)(ड़): इसके अन्तर्गत नागरिकों को भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भाग में निवास करने या बस जाने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।

(च) वृत्ति, उपजीविका या कारोबार की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1) छ):
संविधान द्वारा सभी नागरिकों को वृत्ति, उपजीविका, व्यापार अथवा व्यवसाय की स्वतंत्रता प्राप्त है किन्तु राज्य जनता के हित में इन स्वतंत्रताओं पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है।

उपर्युक्त के अलावा अनुच्छेद 20, 21, 22 द्वारा व्यक्तिगत मौलिक स्वतंत्रताओं की व्यवस्था की गई है-
1. अपराध की दोष – सिद्धि के विषय में संरक्षण: अनुच्छेद 20 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को उस समय तक अपराधी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि उसने अपराध के समय में लागू किसी कानून का उल्लंघन न किया हो इसके साथ ही अपराध के लिए व्यक्ति को एक बार ही दण्डित किया जा सकता है। किसी व्यक्ति को गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

2. व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा जीवन की सुरक्षा: अनुच्छेद 21 में जीवन के अधिकार को मान्यता प्रदान की गई है। 44वें संवैधानिक संशोधन (1979) द्वारा जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को और महत्त्व प्रदान किया गया है। अब आपातकाल में भी जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को समाप्त या सीमित नहीं किया जा सकता है।

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3. बंदीकरण में संरक्षण: अनुच्छेद 22 में बंदी व्यक्ति को बंदी बनाने के कारण को जानने का अधिकार है। उसे कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार है। उसे 24 घंटे के भीतर न्यायाधीश के सम्मुख पेश करना जरूरी है। ये अधिकार शत्रु देश के निवासियों एवं निवारक नजरबंदी अधिनियम के तहत गिरफ्तार किये गए अपराधियों पर लागू नहीं होंगे। उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट होता है कि स्वतंत्रता का अधिकार समाप्त नहीं हुआ है, उन पर किन्हीं विषम परिस्थितियों में ही प्रतिबंध लगाया जाता है।

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान में दिए गए मूल कर्तव्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मूल कर्त्तव्य: भारतीय संविधान के भाग 4’क’ में अनुच्छेद 51 ‘क’ के अन्तर्गत नागरिकों हेतु मौलिक कर्तव्यों का वर्णन किया गया है। मूल संविधान में मौलिक कर्तव्यों से सम्बन्धित उपबन्ध सम्मिलित नही थे। 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा आपातकाल के दौरान 10 मूल कर्तव्यों को जोड़ा गया। 86 वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा एक नया मूल कर्त्तव्य जोड़ा गया अर्थात् वर्तमान में भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 11 है। ये मौलिक कर्तव्य निम्नलिखित हैं

भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह:

  1. संविधान का पालन करे तथा उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रगान का आदर करे।
  2.  स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखे व उनका पालन करे।
  3.  देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर सेवा करे।
  4.  भारत की प्रभुता, एकता व अखण्डता को अक्षुण्ण रखे।
  5.  भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा, प्रदेश या वर्ग पर आधारित भेदभाव से परे हो, उन सभी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हो।
  6. हमारी समन्वित संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे।
    प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी व वन्य जीव हैं, की रक्षा करे और उनका संवर्धन करे तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखे।
  7. सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
  9. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्र में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिसमें राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रगति व उत्कर्ष की नई ऊँचाइयों को छू ले।
  10.  माता – पिता या संरक्षक का कर्तव्य होगा कि वे 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा के लिए अवसर प्रदान करें।
    संविधान में मौलिक कर्तव्यों का सम्मिलित किया जाना एक प्रगतिशील कदम है। संविधान में मौलिक कर्तव्यों की व्याख्या न होना संविधान की महत्त्वपूर्ण कमी थी, जिसे 42वें संशोधन ने मौलिक कर्तव्यों के अध्याय को सम्मिलित करके दूर किया गया।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 18 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Political Science Chapter 18 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत किस अधिकार को स्वीकार किया गया है?
(अ) समता का अधिकार
(ब) स्वतंत्रता का अधिकार
(स) संपत्ति का अधिकार
(द) शिक्षा का अधिकार

प्रश्न 2.
अनुच्छेद 19 के अंतर्गत कौन-सी स्वतंत्रता उल्लिखित छः स्वतंत्रताओं में सम्मिलित नहीं है?
(अ) भाषण व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
(ब) आजीविका या कारोबार की स्वतंत्रता
(स) अपनी सुरक्षा के लिए हथियार रखने की स्वतंत्रता
(द) संघ या संस्था बनाने की स्वतंत्रता

प्रश्न 3.
बेगार को निषिद्ध तथा स्त्रियों के क्रय-विक्रय पर रोक कौन – सा मौलिक अधिकार लगाता है?
(अ) जीवन का अधिकार।
(ब) समानता का अधिकार
(स) शिक्षा संबंधी अधिकार
(द) शोषण के विरुद्ध अधिकार

प्रश्न 4.
संवैधानिक उपचारों के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय निम्नलिखित में से कौन – सा प्रलेख जारी नहीं करते हैं?
(अ) निषेधाज्ञा
(ब) प्रतिषेध
(स) परमादेश
(द) बंदी प्रत्यक्षीकरण

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 18 मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्त्व एवं मूल कर्तव्य

प्रश्न 5.
‘अर्थशास्त्र’ किसकी रचना है?
(अ) कौटिल्य
(ब) चाणक्य
(स) अरस्तू
(द) मनु

प्रश्न 6.
मूल अधिकारों के संबंध में संविधान में कुल कितने अनुच्छेद हैं?
(अ) 22
(ब) 23
(स) 24
(द) 26

प्रश्न 7.
कौन से संवैधानिक संशोधन में संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों में विलोपित कर एक कानूनी अधिकार के रूप में सम्मिलित किया गया है?
(अ) 42वें
(ब) 43वें
(स) 44वें
(द) 46वें ‘

प्रश्न 8.
पंचायती राज की व्यवस्था पूरे देश में कब लागू की गई?
(अ) 1959
(ब) 1960
(स) 1961
(द) 1962

प्रश्न 9.
राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों का क्या उद्देश्य है
(अ) सामाजिक लोकतंत्र स्थापित करना
(ब) राजनीतिक स्वतंत्रता देना
(स) आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करना।
(द) धार्मिक लोकतंत्र स्थापित करना

प्रश्न 10.
किस वर्ष के संवैधानिक संशोधन में मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है?
(अ) 1975
(ब) 1976
(स) 1977
(द) 1978

प्रश्न 11. राज्य
के नीति निर्देशक तत्त्व संविधान के किन अनुच्छेदों में वर्णित हैं
(अ) अनुच्छेद 12 से 28 तक
(ब) अनुच्छेद 19 से 35 तक
(स) अनुच्छेद 36 से 52 तक
(द) अनुच्छेद 36 से 51 तक

प्रश्न 12.
11वाँ मौलिक कर्तव्य किस अनुच्छेद में जोड़ा गया है?
(ब) 51
(क) (स) 51
(ख) (द) 55
(ग) 13.

प्रश्न 13.
मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कितने प्रकार के लेख जारी किए जा सकते हैं?
(अ) दो प्रकार के
(ब) तीन प्रकार के
(स) चार प्रकार के
(द) पाँच प्रकार के

उत्तर:
1. (ब), 2. (स), 3. (द), 4. (अ), 5. (ब), 6. (स), 7. (अ),
8. (अ), 9. (स), 10. (ब), 11. (द), 12. (ब), 13. (द)।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 18 मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्त्व एवं मूल कर्तव्य

RBSE Class 12 Political Science Chapter 18 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या राज्य द्वारा मूल अधिकारों में हस्तक्षेप किया जा सकता है?
उत्तर:
मूल अधिकारों में राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
मूल अधिकारों की आवश्यकता व महत्व के कोई दो बिन्दु लिखिए।
उत्तर:

  1. प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करना
  2. शासन की स्वेच्छाचारिता पर रोक लगाना।

प्रश्न 3.
मूल अधिकार किस पर अकुंश लगाने में सहायता प्रदान करते हैं?
उत्तर:
शासन एवं विधानमंडल के ऊपर अकुंश लगाने में मूल अधिकार सहायता प्रदान करते हैं।

प्रश्न 4.
मूल अधिकारों का हनन होने पर नागरिक किसकी सहायता ले सकते हैं?
उत्तर:
मूल अधिकारों का हनन होने की स्थिति में नागरिक न्यायालय की शरण ले सकते हैं।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान के किस भाग में मूल अधिकार हैं?
उत्तर:
भाग – 3 में।

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान के किन अनुच्छेदों में मूल अधिकारों का उल्लेख है?
उत्तर:
अनुच्छेद 12 में 30 व 32 से 35 तक मूल अधिकारों का उल्लेख है।

प्रश्न 7.
वर्तमान में भारतीय नागरिकों को कितने मूल अधिकार प्राप्त हैं?
उत्तर:
6 मूल अधिकार।

प्रश्न 8.
भारतीय नागरिकों को पहले कितने मूल अधिकार प्रदान किए गए थे?
उत्तर:
भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को पहले 7 मूल अधिकार प्रदान किए गए थे।

प्रश्न 9.
किन्हीं दो मूल अधिकारों का नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. समानता का अधिकार
  2. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

प्रश्न 10.
संविधान के अनुच्छेद 23 व 24 किस मूल अधिकार से सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
शोषण के विरुद्ध अधिकार से।

प्रश्न 11.
शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा किस अधिनियम के तहत दिया गया?
उत्तर:
संविधान के 86 वें संशोधन अधिनियम द्वारा 21-A को धारा 21 के बाद जोड़ कर शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है।

प्रश्न 12.
उस मूल अधिकार का नाम बताइए जिसके अभाव में संविधान शून्य प्रधान हो जाएगा।
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

प्रश्न 13.
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने किस मूल अधिकार को ‘संविधान की आत्मा व हृदय’ कहा ?
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों के अधिकार को।।

प्रश्न 14.
अनुच्छेद 32 किस अधिकार से सम्बन्धित है?
उत्तर:
अनुच्छेद 32 संवैधानिक उपचारों के अधिकार से सम्बन्धित है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 18 मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्त्व एवं मूल कर्तव्य

प्रश्न 15.
सर्वोच्च व उच्च न्यायालय द्वारा मूल अधिकारों की रक्षा के लिए कितने प्रकार के लेख जारी किए जाते है ?
उत्तर:
पाँच प्रकार के लेख, यथा-

  1. बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख
  2. परमादेश
  3. प्रतिषेध लेख
  4. उत्प्रेषण लेख
  5. अधिकार पृच्छा।

प्रश्न 16.
उत्प्रेषण लेख का प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:
इस आज्ञा – पत्र का उपयोग किसी भी विवाद को अधीनस्थ न्यायालय से उच्च न्यायालय में भेजने के लिए जारी किया जाता है।

प्रश्न 17.
मूल अधिकारों की रक्षा के लिए कौन-से अधिकार का प्रावधान किया गया है?
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों के अधिकार का।

प्रश्न 18.
मूल अधिकारों की सूची के किस मूल अधिकार को हटाकर कानूनी अधिकार बना दिया गया है?
उत्तर:
सम्पत्ति के अधिकार को।

प्रश्न 19.
मूल अधिकार व नीति निर्देशक तत्वों में कोई एक अंतर बताइए।
उत्तर:
मूल अधिकार वाद योग्य हैं जबकि नीति निर्देशक तत्व वाद योग्य नहीं हैं।

प्रश्न 20.
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के अनुसार नीति – निर्देशक सिद्धान्तों के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के शब्दों ‘‘राज्य के नीति निर्देशक सिद्धातों का उद्देश्य जनता के कल्याण को प्रोत्साहित करने वाली सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना है।”

प्रश्न 21.
नीति निर्देशक तत्वों का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना।

प्रश्न 22.
संविधान के किस भाग में नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख है?
उत्तर:
भाग – 4 में।

प्रश्न 23.
संविधान के किन अनुच्छेदों में नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर:
अनुच्छेद 36 – 51 तक के अनुच्छेदों में।

प्रश्न 24.
आर्थिक सुरक्षा सम्बन्धी कोई दो निर्देशक तत्व लिखिए।
उत्तर:

  1. पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो।
  2. सम्पत्ति व उत्पादन के साधनों का केन्द्रीयकरण हो।

प्रश्न 25.
42 वें संविधान संशोधन द्वारा आर्थिक सुरक्षा सम्बन्धी कौन-कौन से निर्देशक तत्व जोड़े गए हैं?
उत्तर:

  1. कमजोर वर्गों के लिए नि:शुल्क कानूनी सहायता।
  2. औद्योगिक संस्थाओं के प्रबंधन में कर्मचारियों की भागीदारी बनाने की व्यवस्था।

प्रश्न 26.
सामाजिक सुरक्षा और शिक्षा सम्बन्धी कोई एक निर्देशक तत्व बताइए।
उत्तर:
राज्य देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान आचार संहिता बनाने का प्रयत्न करेगा।

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प्रश्न 27.
अंतराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा सम्बन्धी कोई एक निर्देशक तत्व बताइए।
उत्तर:
राज्य अन्तराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की वृद्धि के लिए प्रयत्न करेगा।

प्रश्न 28.
नीति निर्देशक तत्वों के क्रियान्वयन के कोई दो महत्वपूर्ण उदाहरण बताइए।
उत्तर:

  1. भूमि सुधार
  2. कमजोर वर्गों का कल्याण

प्रश्न 29.
विश्व शांति व सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधान कहाँ है?
उत्तर:
नीति निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद 51 में।

प्रश्न 30.
73 वाँ संविधान संशोधन किससे सम्बन्धित है?
उत्तर:
पंचायती राज से सम्बन्धित है।

प्रश्न 31.
कानून के समक्ष समानता से क्या आशय है?
उत्तर:
कानून के समक्ष समानता से आशय है कि भारत के राज्य क्षेत्र में राज्य किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से तथा विधियों के समान संरक्षण से वंचित नही करेगा।

प्रश्न 32.
अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए सरकार द्वारा पारित किए गए किन्हीं दो अधिनियमों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955
  2. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति निरोधक अधिनियम,1989।

प्रश्न 33.
भारतीय संविधान में वर्णित कोई एक मूल कर्तव्य लिखिए।
उत्तर:
संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज व राष्ट्रगान का आदर करना।

प्रश्न 34.
मूल कर्तव्यों के कोई दो महत्व लिखिए।
उत्तर:

  1. ये राष्ट्रहित व राष्ट्र – प्रेम की भावना जागृत करने वाले हैं।
  2.  ये भारत के नागरिकों के लिए आदर्श के रूप में जोड़े गए हैं।

प्रश्न 35.
भारतीय संविधान में बालश्रम का निषेध किस अनुच्छेद के अन्तर्गत किया गया है।
उत्तर:
अनुच्छेद 24 के अन्तर्गत।

प्रश्न 36.
संविधान में किस वर्ष 11वाँ मूल कर्त्तव्य जोड़ा गया है?
उत्तर:
86 वें संवैधानिक संशोधन (2002) के आधार पर अनुच्छेद 51 (क) को संशोधन करते हुए 11वाँ मूल कर्त्तव्य जोड़ा गया है।

प्रश्न 37.
मूल कर्त्तव्यों की कोई एक आलोचना लिखिए।
उत्तर:
मूल कर्त्तव्य अत्यधिक आदर्शवादी विचारों से प्रेरित हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 18 मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्त्व एवं मूल कर्तव्य

RBSE Class 12 Political Science Chapter 18 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समानता के अधिकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समानता का अधिकार: समानता लोकतंत्र का एक महत्त्वपूर्ण सिंद्धात है। भारत में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को अपनाया गया है। अतः समानता भारत के राजनीतिक जीवन की आधारशिला है। भारत के समस्त नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किए गए हैं।

जाति, धर्म, भाषा, जन्म, नस्ल, लिंग, गरीबी तथा अमीरी के आधार पर सभी भेदभाव समाप्त कर दिए गए हैं। यह अधिकार केवल नागरिकों को ही प्राप्त नहीं है, बल्कि भारतीय क्षेत्र में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया है। समानता के अधिकारों की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक में की गई है।

प्रश्न 2.
भाषण और विचार अभिव्यक्ति की स्वतत्रंता क्या है?
उत्तर:
भाषण तथा विचार अभिव्यक्ति की स्वतत्रंता: संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार, “प्रत्येक नागरिक को भाषण देने तथा विचार व्यक्त करने की स्वतत्रंता प्रदान की गयी है। इस स्वतत्रंता में समाचार-पत्रों तथा पुस्तकों के प्रकाशन द्वारा विचार – अभिव्यक्ति भी सम्मिलित है।” इस स्वतत्रंता का लोकतंत्र में अत्यधिक महत्व है, क्योंकि इससे जनमत निर्मित होता है, जो लोकतंत्र का आधार है।

इसके अभाव में नागरिक अपने विचारों को अन्य व्यक्तियों के सम्मुख प्रकट नहीं कर सकता था। इसलिए नागरिकों को यह स्वतत्रंता प्रदान की गयी है। लेकिन यह स्वतत्रंता नागरिकों को असीमित रूप में प्राप्त नहीं है। राष्ट्रीय एवं समाज हित में इस पर अनेक प्रतिबंध लगाए गए हैं।

प्रश्न 3.
अधिकारों को मूल अधिकार क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
अधिकारों को मूल अधिकार कहे जाने के कारण निम्नलिखित हैं

  1.  इन अधिकारों को मौलिक अधिकार इसलिए कहा जाता है क्योंकि देश की मौलिक विधि अर्थात् संविधान में इन्हें स्थान प्रदान किया गया है तथा साधारणतः संवैधानिक संशोधन प्रक्रिया के अतिरिक्त इनमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं। किया जा सकता है।
  2. मौलिक अधिकार साधारणतया अनुलंघनीय है। विधानमंडल या कार्यपालिका अथवा बहुमत दल द्वारा इनका अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है।
  3. मूल अधिकार वाद योग्य होते हैं। ये सभी नागरिकों को समान रूप में प्राप्त होते हैं। सभी सार्वजनिक पदाधिकारी इनका अनुकरण करने के लिए बाध्य हैं।
  4. व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए अधिकारों की आवश्यकता होती है। अतएव प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।

प्रश्न 4.
मूल अधिकारों के लक्षणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मूल अधिकारों के लक्षण: मूल अधिकारों के निम्नलिखित लक्षण हैं

  1. मूल अधिकार देश के सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त हैं।
  2. इन अधिकारों को संघीय सरकार, राज्य सरकार तथा स्थानीय सरकारें मान्यता देने तथा कार्यान्वित करने के लिए बाध्य हैं।
  3. मूल अधिकारों का संरक्षक न्यायपालिका को बनाया गया है।
  4. इन अधिकारों के द्वारा सरकार की निरंकुशता पर अकुंश लगाया गया है।
  5. मूल अधिकारों को देश की सर्वोच्च मूल विधि में स्थान प्रदान किया गया है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 18 मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्त्व एवं मूल कर्तव्य

प्रश्न 5.
किस मूल अधिकार को डॉ. भीमराव अम्बेडकरर ने संविधान के हृदय व आत्मा की संज्ञा दी है? उसका संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
संवैधानिक उपचारों के अधिकार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों का अधिकार: संवैधानिक उपचारों का अधिकार वह साधन है, जिसके द्वारा मौलिक अधिकारों को व्यवहार में लाया जा सकता है तथा उल्लंघन होने पर अधिकारों की रक्षा की जा सकती है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने इस अधिकार को संविधान का हृदय और आत्मा की संज्ञा दी। इसके अन्तर्गत प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में सीधे उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय जा सकता है।

उच्च न्यायालयों अथवा उच्चतम न्यायालयों द्वारा मौलिक अधिकारों को लागू करवाने हेतु सरकार को आदेश तथा निर्देश दिया जा सकता है। संविधान में मौलिक अधिकारों का संरक्षक उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय को बनाया गया है। इनकी अवहेलना होने पर सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्देद 32 के तहत) तथा उच्च न्यायालय (अनुच्देद 226 के तहत) लेख जारी कर सकते हैं। ये लेख हैं

  1. बंदी प्रत्यक्षीकरण
  2. परमादेश
  3. प्रतिषेध लेख
  4. उत्प्रेक्षण लेख
  5. अधिकार पृच्छा।

प्रश्न 6.
शोषण के विरुद्ध अधिकार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
शोषण के विरुद्ध अधिकार: संविधान के अनुच्छेद 23 व 24 के द्वारा समस्त नागरिकों को शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदान कर शोषण की समस्त स्थितियाँ समाप्त करने का प्रयत्न किया गया है। शोषण के विरुद्ध अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित क्षेत्र सम्मिलित हैं
(i) मानव के क्रय – विक्रय व बेगार पर रोक (अनुच्छेद 23) – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 द्वारा मानव के क्रय – विक्रय के साथ-साथ बेगार और जबरदस्ती करवाए जाने वाले श्रम का निषेध किया गया है।

इसे दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है। यद्यपि राज्य के हित में व्यक्ति को आवश्यक सेवा देने के लिए बाध्य किया जा सकता है। ऐसा करते समय राज्य धर्म या जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।

(ii) बालश्रम का निषेध (अनुच्छेद 24) – अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखानों अथवा जोखिम वाले काम पर नही लगाया जा सकता है।

प्रश्न 7.
मूल अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मूल अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में अंतर: यद्यपि मूल अधिकार व नीति निर्देशक तत्व दोनों ही नागरिकों के कल्याण और विकास से सम्बन्धित हैं फिर भी दोनों में निम्नलिखित अंतर हैं

  1. वाद योग्य एवं अवाद योग्य का अंतर – मूल अधिकार वाद योग्य हैं जबकि नीति निर्देशक तत्व वाद योग्य नहीं हैं।
  2. विधि एवं नैतिकता का अंतर – मूल अधिकार नागरिकों के कानूनी अधिकार हैं जबकि नीति निर्देशक तत्व समाज के नैतिक बंधन हैं।
  3. राजनीतिक लोकतंत्र एवं सामाजिक आर्थिक लोकतंत्र के आधार पर अंतर – मूल अधिकार राजनीतिक लोकतंत्र के प्रतीक हैं जबकि नीति निर्देशक तत्व सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र के प्रतीक हैं।
  4. व्यक्तिगत अधिकार एवं नीतियों के आधार पर अंतर-मूल अधिकार व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकार हैं जबकि नीति निर्देशक तत्व राज्य की नीतियों के निर्धारण में पथ-प्रदर्शक हैं।

प्रश्न 8.
मूल अधिकारों की आलोचना किन आधारों पर की जाती है? उत्तर-मूल अधिकारों की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की जाती है

  1. मौलिक अधिकारों को न्यायिक सुरक्षा देने के बावजूद वर्तमान न्यायिक प्रक्रिया लंबी, जटिल व खर्चीली होने से आम लोगों के हितों की रक्षा में सफल नहीं हो पा रही है।
  2.  शोषण के विरुद्ध अधिकार स्त्रियों, गरीब कामगारों व बच्चों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया है, किन्तु अशिक्षा, बेरोजगारी व गरीबी के कारण इन वर्गों का शोषण व्यावहारिक रूप से नहीं रोका जा सका है।
  3.  मूल अधिकारों में कमजोर व पिछड़े वर्गों के लिए विशेष संरक्षण की व्यवस्था की गई है किंतु इसका प्रयोग वोटों की राजनीति के लिए हुआ है।
  4. मूल अधिकारों में इतने प्रतिबंध लगा दिए गए हैं कि इनके बारे में कहा जाता है कि संविधान द्वारा एक हाथ से मूल अधिकार प्रदान किए गए व दूसरे हाथ से ले लिए गए हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 18 मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्त्व एवं मूल कर्तव्य

प्रश्न 9.
नागरिकों के सामाजिक तथा शैक्षिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए संविधान में किन तत्त्वों को शामिल किया गया है?
उत्तर:
नागरिकों के सामाजिक व शैक्षिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए संविधान में अनेक तत्वों को शामिल किया गया है

  1. अनुच्छेद 44 के अनुसार राज्य देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान आचारसंहिता बनाने का प्रयत्न करेगा।
  2. अनुच्छेद 45 के अनुसार राज्य संविधान लागू होने के 10 वर्ष के अन्दर 14 वर्ष की आयु तक के बालक/बालिकाओं के लिए नि:शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेगा।
  3. अनुच्छेद 46 के अनुसार राज्य समाज के कमजोर व पिछड़े वर्गों के हितों की सुरक्षा व शोषण से उनकी रक्षा करेगा।
  4. अनुच्छेद 47 के अनुसार राज्य लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने तथा स्वास्थ्य के विकास के लिए प्रयत्न करेगा।
  5. अनुच्छेद 48-क में यह कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा व उसमें सुधार करने तथा देश के वन्य जीव व वनों की सुरक्षा के लिए प्रयत्न करेगा।

प्रश्न 10.
नीति निर्देशक तत्त्वों की किन आधारों पर आलोचना की जाती है?
उत्तर:
नीति निर्देशक तत्त्वों की निम्न आधारों पर आलोचना की जाती है

  1. ये तत्त्व न्याय योग्य नहीं हैं। इनके पीछे कानूनी शक्ति नहीं है। इनको न्यायालय द्वारा लागू नहीं करवाया जा सकता।
  2. इन तत्त्वों के अनेक तथ्य अनिश्चित व अस्पष्ट हैं।
  3. कुछ आलोचकों के अनुसार ये तत्व भारत के लिए विशेषकर भविष्य के भारत के लिए असंगत तथा असामयिक हैं। ये तत्व आदर्शवाद पर जोर देते हैं जिस कारण कहा जाता है कि ये तत्व केवल एक प्रकार के राजनीतिक दर्शन ही हैं। प

प्रश्न 11.
अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को प्रोत्साहन देने वाले प्रमुख नीति निर्देशक तत्व/सिद्धांत कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को प्रोत्साहन देने वाले प्रमुख नीति निर्देशक तत्व/सिद्धान्त: अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को प्रोत्साहन देने वाले प्रमुख नीति निर्देशक तत्व/सिद्धांत निम्नलिखित हैं

  1. राज्य अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की वृद्धि के लिए प्रयत्न करेगा।
  2. राज्य विश्व के विभिन्न देशों के मध्य न्यायपूर्ण व सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाए रखने का प्रयत्न करेगा।
  3. राज्य देशों के आपसी व्यवहार में अन्तर्राष्ट्रीय कानून तथा संविधान के प्रति आदर की भावना बढ़ाने का प्रयत्न करेगी। | (iv) राज्य अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा सुलझाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करेगा।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 18 मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्त्व एवं मूल कर्तव्य

RBSE Class 12 Political Science Chapter 18 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मूल अधिकार क्या है? भारतीय संविधान में उल्लिखित मूल अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मूल अधिकार: वे अधिकार जो व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए अनिवार्य होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं। मूल अधिकार कहलाते हैं। इन अधिकारों में राज्य द्वारा हस्तक्षेप नही किया जा सकता। भारतीय संविधान में उल्लिखित मूल अधिकार-वर्तमान में भारतीय संविधान में 6 मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है जिनका विवरण निम्नलिखित है-

  1. समानता का अधिकार
  2. स्वतंत्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  5. सांस्कृतिक शिक्षा का अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

(1) समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18)-संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक इस अधिकार का वर्णन है। इस अधिकार द्वारा समाज में समानता स्थापित की गई है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित अधिकारों का उल्लेख किया गया है–

  1. कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14)
  2. मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध (अनुच्छेद 15)
  3. लोक नियोजन के विषय में अवसरों की समानता (अनुच्छेद 16)
  4. अस्पृश्यता का अंत (अनुच्छेद 17)
  5. उपाधियों का अंत (अनुच्छेद 18)

(2) स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22):
संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 तक नागरिकों की स्वतंत्रता के अधिकार का वर्णन किया गया है। इसके अन्तर्गत नागरिकों को निम्नलिखित स्वतंत्रताएँ दी गई हैं

  1. विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1) (क)
  2. अस्त्र-शस्त्ररहित शांतिपूर्ण सम्मेलन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1) ख)
  3. संघ व समुदाय निर्माण की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1) (ग)
  4.  सर्वत्र आने-जाने व निवास की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1) (घ)
  5. निवास की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1) ङ)
  6. वृत्ति व व्यापार की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1) छ) इनके अतिरिक्त अनुच्छेद 20, 21, 22 द्वारा व्यक्तिगत मौलिक स्वतंत्रताओं की व्यवस्था की गई है
    • अपराधों के लिए दोष सिद्धि के विषय में संरक्षण (अनुच्छेद 20)
    • जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण (अनुच्छेद 21)
    • बन्दीकरण में संरक्षण (अनुच्छेद 22)

(3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 व 24):
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 व 24 में इस अधिकार का वर्णन किया गया है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित संरक्षण प्रदान किए गए हैं

  1. मानव के क्रय-विक्रय व बेगार पर रोक (अनुच्छेद 23)
  2. बालश्रम का निषेध (अनुच्छेद 24)

(4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 – 28):
भारत एक बहुधर्मी देश है। इस देश में सभी धर्मों के लोग रहते हैं। संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित अधिकार सम्मिलित हैं

  1. अन्त:करण की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25)
  2. धार्मिक मामलों का प्रबन्ध करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26)
  3. राजकीय संस्थाओं में धार्मिक शिक्षण पर रोक (अनुच्छेद 28)

(5) सांस्कृतिक शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (अनुच्छेद 29 व 30):
भारतीय संविधान की धारा 29 व 30 में नागरिकों के इस अधिकार की व्याख्या की गई है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बातें सम्मिलित हैं

  1. अल्पसंख्यक वर्गों के हितों की सुरक्षा (अनुच्छेद 29)
  2. अल्पसंख्यक वर्ग को शिक्षण संस्थाओं की स्थापना व संचालन का अधिकार (अनुच्छेद 30) संविधान में 86 वें संशोधन अधिनियम द्वारा 21-ए को धारा 21 के पश्चात् जोड़कर शिक्षा को मौलिक अधिकार को दर्जा दिग्ना गया है। इसके अनुसार राज्य के 6 से 14 वर्ष की आयु के समस्त बच्चों को निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा कानूनी रूप से प्रदान करनी होगी। इन बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना माता-पिता या अभिभावक की जिम्मेदारी है।

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(6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) – भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 सभी नागरिकों को संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रदान करता है। इसके अन्तर्गत मूल अधिकारों को लागू करने के लिए देश के उच्चतम न्यायालय का द्वार खटखटाने का अधिकार प्रदान किया गया है। यदि नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है।

तो वह न्यायालय से समुचित उपचार पाने के लिए प्रार्थना पत्र दे सकता है। विधायिका द्वारा निर्मित कानून एवं कार्यपालिका द्वारा क्रियान्वित गतिविधियाँ जो मूल अधिकारों के विरुद्ध हों, उन्हें न्यायालय द्वारा अवैध घोषित किया जा सकता है। सर्वोच्च व उच्च न्यायालय द्वारा मूल अधिकारों की रक्षा के लिए निम्न पाँच प्रकार के लेख जारी किए जा सकते हैं-

  1. बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख
  2. परमादेश
  3. प्रतिषेध लेख
  4. उत्प्रेषण लेख
  5. अधिकार पृच्छा।
    डॉ. अम्बेडकर ने इस अधिकार को संविधान का हृदय व आत्मा बताया है।

प्रश्न 2.
मूल अधिकारों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मूल अधिकारों का महत्व:
मूल अधिकार के महत्व को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट कर सकते हैं
(क) लोकतंत्र की सफलता के आधार:

  1. स्वतत्रंता व समानता लोकतंत्र के दो आधारभूत सिंद्धात हैं। इन दोनों ही को मूल अधिकारों में स्थान दिया गया है।
  2. लोकतंत्र में जनता निर्वाचित शासकों को शासन करने का अधिकार प्रदान करती है, मतदान के द्वारा वह उन्हें हटा भी सकती है।

(ख) शासन की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश:

  1. कार्यपालिका व विधायिका को अपना कार्य मूल अधिकारों के अनुरूप ही करना होता है।
  2. मूल अधिकारों के सिंद्धात में प्रशासन का सीमित होना सन्निहित है।
  3. कार्यपालिका तथा विधायिका की स्वेच्छाचारिता तथा निरंकुशता पर अंकुश लगाना ही इसका उद्देश्य है तथा इस उद्देश्य को प्राप्त कर वह व्यक्ति को अपने आत्म-विकास का अवसर प्रदान करता है।

(ग) अल्पसंख्यकों तथा सामान्यजनों का कल्याण:
जनता का सर्वांगीण विकास करना मौलिक अधिकारों का लक्ष्य घोषित किया गया है। राज्य को यह उत्तरदायित्व सौंपा गया है कि वह सामान्यजनों के कल्याण तथा उनके विकास के लिए प्रयास करे।

(घ) अन्य महत्व:

  1. मौलिक अधिकारों की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि लोकहित में इन पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। इस उपबंध से मूल अधिकारों के महत्व में वृद्धि हो जाती है।
  2. मूल अधिकारों के हनन होने की स्थिति में नागरिक न्यायालय की शरण ले सकता है।
  3. नागरिकों के मूल अधिकार मानवीय स्वतंत्रता के मापदंड और संरक्षण दोनों ही हैं।

प्रश्न 3.
मूल अधिकारों की रक्षा हेतु न्यायालय किस प्रकार के लेख जारी करता है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मूल अधिकारों की रक्षा हेतु न्यायालय द्वारा जारी किए गए लेख: मूल अधिकारों की रक्षा हेतु न्यायालय पाँच प्रकार के लेख जारी कर सकता है
(i) बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख – यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है जो यह समझता है कि उसे गलत ढंग से गिरफ्तार किया गया है। इसके द्वारा न्यायालय सम्बन्धित अधिकारी को यह आदेश देता है

कि बंदी (गिरफ्तार) बनाए गए व्यक्ति को 24 घण्टे के अंदर न्यायालय के समक्ष उपस्थित करे तथा उसे बंदी बनाए जाने का कारण बताए। यदि बंदी बनाए जाने का कारण अवैध होता है तो न्यायालय तत्काल इसे मुक्त करने की आज्ञा देता है।

(ii) परमादेश – परमादेश लेख वह आदेश होता है जिसके द्वारा न्यायालय उस पदाधिकारी को अपने कर्तव्य निर्वहन के लिए आदेश जारी कर सकता है जो पदाधिकारी अपने कर्तव्य का समुचित रूप से पालन नहीं कर रहा है/रहे हैं।

(iii) प्रतिषेध लेख – यह लेख उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय द्वारा अपने से नीचे स्तर के न्यायालयों के लिए ऐसी स्थिति में जारी किया जाता है जब नीचे के न्यायालय को उस न्याय कार्य को करने से रोकना होता है जो उसके न्याय क्षेत्र से बाहर का हो।

(iv) उत्प्रेषण लेख – इस आज्ञा पत्र का उपयोग किसी भी विवाद को अधीनस्थ न्यायालय से उच्च न्यायालय में ले जाने के लिए किया जाता है। जिससे कि वह अपनी शक्ति से अधिक अधिकारों का प्रयोग न करे और न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत का पालन किया जा सके।

यह लेख उच्चतम न्यायालय द्वारा अपने से नीचे के न्यायालय या अधिकारी को तब जारी किया जाता है जब उनके किसी आदेश से सम्बन्धित पक्ष को गंभीर क्षति हुई हो। इस आदेश के पश्चात् उस न्यायालय या अधिकारी के समक्ष सम्बन्धित प्रकरण की कार्यवाही बंद हो जाती है और उसके कागजात ऊपर के न्यायालय को आवश्यक कार्यवाही हेतु भेज दिए जाते हैं।

(v) अधिकार पृच्छा – यह आदेश उस स्थिति में जारी किया जाता है जब कोई व्यक्ति गैर कानूनी रूप से किसी सरकारी या अर्द्धसरकारी या निर्वाचित पद को सम्भालने का प्रयत्न करता है। इस आदेश के द्वारा सम्बन्धित व्यक्ति से यह पूछा जाता है कि वह किस आधार पर इस पद का कार्य कर रहा है। जब तक वह संतोषजनक उत्तर नही देता तब तक वह कार्य नही कर सकता। न्यायालय सम्बद्ध पद को रिक्त घोषित कर सकता है।

(1) सरकार के लिए आचार संहिता – नीति निर्देशक तत्वों की उपेक्षा होने की स्थिति में न्यायालय में चुनौती नही दी। जा सकती है। यह सत्य है कि इसे न्यायालय द्वारा क्रियान्वित नही किया सकता है, फिर भी यह शासन के लिए आधारभूत सिद्धांत है। इनके पीछे जनमत की शक्ति होती है जो लोकतंत्र का सबसे बड़ा न्यायालय है। अतः जनता के प्रति उत्तरदायी कोई भी सरकार इनकी अवहेलना का साहस नहीं कर सकती।

(2) शासन के मूल्यांकन का आधार – नीति निर्देशक तत्व जनता द्वारा शासन की सफलता अथवा असफलता को मापने का एक महत्वपूर्ण मानदण्ड हैं। इनके द्वारा सरकार के विभिन्न कार्यों का सफलतापूर्वक मूल्यांकन किया जा सकता है।

(3) लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना – नीति निर्देशक तत्वों द्वारा भारत में लोक कल्याणकारी राज्य की नींव रखी गई है।

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(4) संविधान के क्रियान्वयन में सहायक – नीति निर्देशक तत्व देश के शासन के मूलभूत सिद्धांत हैं। देश के प्रशासन के लिए उत्तरदायी समस्त विभाग इसके द्वारा निर्देशित होते हैं। न्यायपालिका भी शासन का एक महत्वपूर्ण अंग है। अतः इससे आशा की जाती है कि यह नीति निर्देशक तत्वों को उचित महत्व प्रदान करेगी।

(5) सामाजिक व आर्थिक परिवर्तन में सहयोगी – नीति निर्देशक तत्व सामाजिक व आर्थिक परिवर्तन में सहयोगी हैं। नीति निर्देशक तत्व अधिक सुरक्षा व आर्थिक न्याय प्रदान करने हेतु राज्य के प्रत्येक स्त्री – पुरूष को जीविका के साधन उपलब्ध कराने, सम्पत्ति का केन्द्रीकरण रोकने, स्त्री व बाल श्रमिकों को शोषण से सुरक्षा प्रदान करने आदि में सहायक सिद्ध हुए हैं। इसके अतिरिक्त लोगों के जीवन स्तर में सुधार हेतु चिकित्सा, शिक्षा व रोजगार उपलब्ध कराने में भी इन तत्वों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

(6) विश्वशांति से संबंधित – नीति निर्देशक तत्व उन उद्देश्यों को भी स्पष्ट करते हैं जिनके पालन से विश्वशांति की स्थापना हो सकेगी।

प्रश्न 4.
मूल अधिकारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
मूल अधिकारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन: मूल अधिकारों की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की गई है
(i) मूल अधिकारों पर अत्यधिक प्रतिबन्ध – मूल अधिकारों के सम्बन्ध में आलोचकों का मत है कि मूल अधिकारों पर इतने प्रतिबंध लगा दिए गए हैं कि इनके बारे में कहा जाता है कि संविधान द्वारा एक हाथ से मूल अधिकार प्रदान किए गए व दूसरे हाथ से ले लिये गये।

(ii) शांतिकाल में भी प्रतिबन्ध – मूल अधिकार आपातकाल में स्थगित किए जा सकते हैं। यह तो न्यायोचित लगता है, पर शांति काल में भी उनके स्थगन का प्रावधान मूल अधिकारों के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा देता है। सामान्य परिस्थितियों में भी निवारक नजरबंदी की जो व्यवस्था की गई है वह कटु आलोचना का विषय रही है। संविधान के सदस्य हरिविष्णु कामथ के अनुसार इस व्यवस्था द्वारा हम तानाशाही राज्य की और पुलिस राज्य की स्थापना कर रहे हैं।

(iii) भारतीय नागरिकों को व्यवस्थापिका की निरंकुशता से सुरक्षा प्रदान करने में समर्थ नहीं – मूल अधिकार भारतीय नागरिकों को व्यवस्थापिका की निरंकुशता से मुक्ति दिलाने में समर्थ नहीं हैं। संसद या विधानसभाएँ कई बार मौलिक अधिकारों के प्रतिकूल कानून का निर्माण कर देती हैं।

(iv) प्रतिबन्धों की व्यवस्था राजनीतिक विरोधियों के स्वर को दबाने के लिए – मूल अधिकारों पर प्रतिबन्धों की व्यवस्था संविधान में राष्ट्र व समाज विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए की गई। व्यावहारिक दृष्टि से इनका प्रयोग राजनीतिक विरोधियों के स्वर को दबाने के लिए भी किया गया है।

(v) विशेष वर्गों के संरक्षण की व्यवस्था का प्रयोग वोट की राजनीति के लिए भारतीय संविधान में मूल अधिकारों के अन्तर्गत अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष संरक्षण की व्यवसथा की गई है। किंतु इसका प्रयोग वोटों की राजनीति के लिए हुआ है।

(vi) शोषण के विरुद्ध अधिकारों को लागू करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं – शोषण के विरुद्ध अधिकार यद्यपि महिलाओं, बच्चों व निर्धन श्रमिकों के हितों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया है किंतु बेराजगारी, अशिक्षा, निर्धनता व अज्ञानता के कारण बालश्रम को जोखिम भरे काम से रोक पाना व्यावहारिक रूप में संभव नही है।

(vii) जटिल व खर्चीली न्यायिक प्रक्रिया – मूल अधिकारों में न्यायिक संरक्षण व सुरक्षा का उल्लेख किया गया है। लेकिन वर्तमान में न्यायिक प्रक्रिया लम्बी, जटिल व खर्चीली होने के कारण आम नागरिकों के हितों की रक्षा में सफल नही हो पा रही है।

उपरोक्त आलोचना के बावजूद भी मूल अधिकारों का महत्व कम नही हुआ है क्योंकि राष्ट्र की सुरक्षा व्यक्ति की सुरक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण है। मूल अधिकारों के अतिक्रमण की परिस्थिति अल्पकालिक ही होती है। आवश्यकता इस बात की है।

कि हमारे देश के नागरिक मूल अधिकारों के प्रति जागरूक हों एवं इन्हें क्रियान्वित करने में पूर्ण सहयोग दें। संसद व कार्यपालिका द्वारा इस पर किए गए अतिक्रमण की स्थिति में न्यायालय में शरण लें तथा उनके द्वारा निर्मित असंवैधानिक कानून को अवैध घोषित कराएँ।

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प्रश्न 5.
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (सिद्धांतों) का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
राज्य के नीति निर्देशक तत्व ( सिद्धांत): राज्य के नीति निर्देशक तत्व / सिद्धांत भारतीय संविधान की एक अनोखी विशेषता है। संविधान के भाग – 4 के अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की व्यवस्था की गई है। ये नीति निर्देशक तत्व नागरिकों की शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक समता एवं राज्य के लिए अनुकरणीय नीति के विश्लेषण से सम्बन्धित हैं। अध्ययन की सुविधा के लिए इन तत्वों / सिद्धांतों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

(अ) आर्थिक सुरक्षा सम्बन्धी निर्देशक तत्व: अनुच्छेद 39, 41, 42 एवं 43 में वर्णित आर्थिक नीति से सम्बन्धित प्रमुख निर्देशक तत्व निम्नलिखित हैं
1. संविधान के अनुच्छेद 39 के अनुसार राज्य अपनी नीति इस प्रकार निर्धारित करेगा जिससे कि-

  1. पुरुष और समस्त नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो।
  2. समुदाय के भौतिक साधनों का स्वामित्व और वितरण इस प्रकार से व्यवस्थित हो जिससे वे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप में साधन बन सके।
  3. सम्पत्ति और उत्पादन के साधनों का इस प्रकार केन्द्रीकरण न हो कि सार्वजनिक हित को किसी प्रकार की बाधा पहुँचे।
  4. पुरुष और स्त्री दोनों को संमान कार्य के लिए समान वेतन प्राप्त हो।
  5. श्रमिक पुरुष व स्त्रियों के स्वास्थ्य व शक्ति के साथ-साथ बच्चों का आर्थिक शोषण न हो।
  6.  राज्य द्वारा बच्चों के विकास के लिए अवसर व सुविधाएँ प्रदान की जाएँ।

2. अनुच्छेद 41 में यह कहा गया है कि राज्य इस बात का प्रयास करेगा कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार रोजगार प्राप्त कर सके तथा बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी एवं अंगहीन होने की दशा में सार्वजनिक सहायता प्राप्त कर सके।

3. अनुच्छेद 42 में कहा गया है कि राज्य कार्य के लिए यथोचित एवं मानवोचित दशाओं का प्रबन्ध करेगा तथा ऐसी व्यवस्था करेगा जिसमें स्त्रियों को प्रसूतावस्था में कार्य न करना पड़े।

4. अनुच्छेद 43 में कहा गया है कि राज्य ऐसी व्यवस्था करेगा जिससे कृषि, उद्योगों में लगे श्रमिकों को जीवन निर्वाह हेतु यथोचित वेतन प्राप्त को सके। उनका जीवन स्तर ऊँचा हो सके तथा उन्हें सामाजिक व सांस्कृतिक उन्नति के अवसर प्राप्त हों। इसी अनुच्छेद में यह कहा गया है कि राज्य द्वारा गाँवों में कुटीर उद्योगों को व्यक्तिगत एवं सहकारी आधार पर प्रोत्साहन दिया जाए।

5. 42 वें संविधान संशोधन द्वारा आर्थिक सुरक्षा सम्बन्धी दो निर्देशक तत्व और जोड़े गए हैं। ये हैं-

  1. कमजोर वर्गों के लिए निःशुल्क कानूनी सहायता।
  2. औद्योगिक संस्थाओं के प्रबन्ध में कर्मचारियों की भागीदारी।

6. अनुच्छेद 43 (क) के अनुसार राज्य उचित व्यवस्था द्वारा या अन्य किसी प्रकार से औद्योगिक संस्थानों के प्रबन्ध में श्रमिकों को भागीदार बनाने के लिए कदम उठाएगा।

7. 44 वें संविधान संशोधन के द्वारा यह तत्व भी जोड़ा गया है कि राज्य विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले तथा निजी व्यवसायों में लगे व्यक्तियों और समुदायों के मध्य आय, सामाजिक स्तर एवं अवसरों सम्बन्धी भेदभाव को कम करने का प्रयास करेगा।

(ब) सामाजिक सुरक्षा तथा शिक्षा सम्बन्धी निर्देशक तत्व: नागरिकों के समाजिक एवं शैक्षिक स्तर को ऊँचा उठाने की दृष्टि से भी संविधान में कुछ निर्देशक तत्वों का वर्णन किया गया है

  1. अनुच्छेद 44 के अनुसार राज्य देश के समस्त नागरिकों के लिए एक समान आचार संहिता बनाने का प्रयत्न करेगा।
  2. अनुच्छेद 45 के अनुसार राज्य संविधान लागू होने के 10 वर्ष के अंदर 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेगा।
  3. अनुच्छेद 46 के अनुसार राज्य अनुसूचित जातियों व जनजातियों की शिक्षा एवं आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए विशेष प्रयत्न करेगा तथा सामाजिक अन्याय व समस्त प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करेगा।
  4. अनुच्छेद 47 के अनुसार राज्य लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने एवं लोक स्वास्थ्य में सुधार करने का प्रयत्न करें। राज्य मादक पेयों एवं हानिकारक औषधियों पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करे।
  5. अनुच्छेद 48 (क) के अनुसार राज्य पर्यावरण की रक्षा एवं उसमे सुधार करने तथा देश के वन्यजीव और वनों की सुरक्षा के लिए प्रयत्न करेगा।

(स) पंचायती राज, प्राचीन स्मारक व न्याय सम्बन्धी निर्देशक तत्व: प्रशासन से सम्बन्धित प्रमुख निर्देशक तत्व निम्नलिखित हैं
(i) अनुच्छेद 40 के अनुसार राज्य ग्राम पंचायतों के गठन के लिए प्रयत्न करेगा तथा उनको ऐसी शक्तियाँ व अधिकार प्रदान करेगा जिससे कि वे स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य कर सकें।

  1. अनुच्छेद 49 के अनुसार राज्य का यह दायित्व होगा कि वह कलात्मक एवं ऐतिहासिक महत्व के प्रत्येक स्मारक यां वस्तु, जिसे संसद राष्ट्रीय महत्व का घोषित करे, को कुरूप होने या नष्ट होने से बचाएगा अथवा रक्षा करेगा।
  2. अनुच्छेद 50 के अनुसार राज्य न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने का प्रयास करेगा।

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(द) अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा सम्बन्धी निर्देशक तत्व – अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा से सम्बन्धित निर्देशों को अनुच्छेद 51 में सम्मिलित किया गया है। ये हैं

  1. राज्य अन्तर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा में वृद्धि के लिए प्रयास करेगा।
  2. राज्य विश्व के विभिन्न देशों के मध्य न्यायपूर्ण एवं सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाए रखने का प्रयास करेगा।
  3. राज्य अन्तर्राष्ट्रीय संधियों, समझौतों एवं कानूनों के प्रति सम्मान की भावना रखेगा।
  4. राज्य अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा सुलझाने का प्रयास करेगा।

प्रश्न 7.
मूल कर्तव्यों की उपयोगिता / महत्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मूल कर्तव्यों की उपयोगिता / महत्व: मूल कर्तव्यों की उपयोगिता/महत्व को निम्न आधारों पर विवेचित किया जा सकता है
(1) देश की सुरक्षा की व्यवस्था – नागरिकों के मूल कर्तव्यो में यह निर्देशित किया गया है कि वे संकटकाल में तन, मन, धन से राष्ट्र की सुरक्षा में योगदान दें। यदि नागरिक इस कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करें तो राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ हो सकती है।

(2) अयोग्यता तथा अक्षमता को दूर करना – भारत में प्रत्येक क्षेत्र में अयोग्यता तथा अक्षमता देखने को मिलती है। इससे राष्ट्र को भारी हानि होती है। अत: प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य निश्चित किया गया है कि वह प्रत्येक क्षेत्र में योग्यता तथा श्रेष्ठता प्राप्त करने का प्रयत्न करे इससे समाज तथा राष्ट्र को अत्यधिक लाभ होगा।

(3) प्रदूषण को दूर करने व स्वास्थ्य की रक्षा के लिए महत्व – वातावरण को दूषित होने से बचाने के लिए जो मूल कर्तव्य निश्चित किये गए हैं, वह बड़े लाभकारी तथा व्यावहारिक हैं। प्रदूषण को दूर करने तथा नागरिकों की स्वास्थ्य रक्षा के लिए इस कर्तव्य का विशेष महत्व है।

(4) लोकतंत्र को सफल बनाने में सहायक – भारत में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाया गया है। मूल कर्तव्यों को संविधान में स्थान देने से लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में सहायता मिलेगी।

(5) स्पष्टता तथा व्यावहारिकता – संविधान में कुछ कर्त्तव्य स्पष्ट और व्यावहारिक हैं; जैसे-संविधान का आदर करना, महिलाओं का सम्मान करना तथा प्राकृतिक वातावरण को दूषित होने से बचाना इत्यादि।

(6) अंधविश्वासों व रूढ़ियों को दूर करने में सहायक – मूल कर्तव्यों में नागरिक के कर्तव्य का अत्यधिक महत्व है। जिन सिंद्धातों को संविधान में स्थान दिया गया है, जिन्हें मूलभूत बताया गया है। उनके अनुसार कार्य करना राज्य का नैतिक कर्तव्य है। इन कर्तव्यों को न्यायालय के क्षेत्रधिकार से अलग रखने का उद्देश्य यही था कि राज्य समय, साधन तथा परिस्थितियों के अनुसार कार्य कर सके।

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