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RBSE Solutions for Class 12 Pratical Geography Chapter 1 मानचित्र- वर्गीकरण और मानचित्रांकन

Rajasthan Board RBSE Class 12 Pratical Geography Chapter 1 मानचित्र- वर्गीकरण और मानचित्रांकन

RBSE Class 12 Pratical Geography पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मानचित्र की कोई दो परिभाषा लिखिये।
उत्तर:
मानचित्र की परिभाषा अनेक भूगोलवेत्ताओं ने दी है। प्रमुख दो परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं –

1. एफ० जे० मौकहाउस के अनुसार:
“निश्चित मापनी के अनुसार धरातल के किसी भाग के लक्षणों के समतल सतह पर निरूपण को मानचित्र की संज्ञा दी जा सकती है।”

2. आर० वी० मिश्र एवं ए० रमेश के अनुसार:
‘समस्त पृथ्वी या उसके किसी भाग, किसी अन्य आकाशीय पिण्ड के दृश्य एवं विचारे गए अवस्थितिक व विवरणात्मक प्रतिरूपों का मापनी के अनुसार प्रतीकात्मक आरेखन मानचित्र कहलाता है।”

प्रश्न 2.
मानचित्र बनाने की कौन-कौन सी विधियाँ होती हैं?
उत्तर:
मानचित्र बनाने की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं –
1. गुणात्मक विधियाँ:

  • रंगारेख विधि
  • सामान्य छाया विधि
  • चित्रीय विधि
  • वर्णप्रतीकी विधि
  • नामकरण विधि

2. मात्रात्मक विधियाँ:

  • सममान रेखा विधि
  • वर्णमाली रेखा विधि
  • बिन्दु विधि
  • आलेखी विधि

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प्रश्न 3.
गुणात्मक मानचित्र बनाने की विधियाँ कौन सी हैं?
उत्तर:
गुणात्मक मानचित्रों में वस्तुओं का क्षेत्रीय वितरण ही दिखाया जाता है। गुणात्मक मानचित्र बनाने की प्रमुख
विधियाँ अग्रलिखित हैं –

  1. रंगारेख विधि
  2. सामान्य छायाविधि
  3. चित्रीय विधि
  4. वर्णप्रतीकी विधि
  5. नामकरण विधि

प्रश्न 4.
वर्ण प्रतीकी विधि के प्रतीकों को बताइये।
उत्तर:
इस विधि में प्रतीकों या चिह्नों के माध्यम से वस्तुओं का वितरण प्रदर्शित किया जाता है। गुणात्मक वर्ण प्रतीकी मानचित्रों में प्रयोग किये जाने वाले प्रतीकों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा गया है –

1. ज्यामितीय प्रतीक:
बिन्दु, क्रास, वृत्त, अर्द्ध वृत्त, त्रिभुज, आयत, वर्ग, घन, षट्कोण, सरलरेखा, समानान्तर रेखा आदि।

2. चित्रमय प्रतीक:
इसमें सम्बन्धित वस्तु से मिलत-जुलता चित्र बना देते हैं। जैसे-मक्का के लिए भुट्टे का, गेहूँ। के लिए बाली का तथा चाय के लिए पत्ती का व वनस्पति के लिए झाड़ियों का चित्र आदि।

3. मूलाक्षर प्रतीक:
इसमें सम्बन्धित वस्तु के प्रथम अक्षर को प्रतीक के रूप में लिख देते हैं। जैसे-गेहूँ के लिए W, मक्का के लिए M, चावल के लिए R, कपास के लिए C तथा कोयल के लिए C शब्द को यथास्थान लिखकर इंगित करते हैं।

प्रश्न 5.
सममान रेखा विधि को समझाइये।
उत्तर:
समान माप अथवा समान मान वाले स्थनों को मिलाती हुई जो रेखाएँ खींची जाती हैं उन्हें सममान रेखा कहते हैं। सममान रेखा मानचित्र मात्रात्मक मानचित्रों की श्रेणी में सम्मिलित है। सममान रेखाओं का सर्वप्रथम प्रयोग हम्बोल्ट नामक भूगोलवेत्ता ने 1917 में किया था। इसके पश्चात् व्यापक रूप से इसका उपयोग एफ० जे० मॉक हाउस ने 1952 में किया। समदाब रेखाएँ समलवण रेखाएँ, समोच्च रेखाएँ, समताप रेखाएँ आदि सममान रेखाएँ हैं।

सममान रेखा मानचित्र बनाने के लिए सर्वप्रथम मानचित्र में किसी वस्तु की मात्रा या मूल्यों को यथास्थान लिख देते हैं। इसके पश्चात् इन मूल्यों को किसी उचित अन्तराल पर अन्तर्वेशित करके मानचित्र में सममान रेखाएँ खींच देते हैं। जलवायु के तत्त्वों, तापमान वर्षा, वायुमण्डलीय दाब, पवन वेग आदि के प्रदर्शन हेतु इस विधि का प्रयोग होता है।

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प्रश्न 6.
विषयक मानचित्र क्या है?
उत्तर:
धरातल पर पाये जाने वाले प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक वातावरण की आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक दशाओं के एक तत्त्व का एक क्षेत्र विशेष में वितरण प्रदर्शित करने वाले मानचित्रों को विषयक (थिमेटिक) मानचित्र कहते हैं। विषयक मानचित्र गुणात्मक एवं मात्रात्मक दोनों विधियों से बनाये जाते हैं।

विषयक मानचित्र एक विशेष उद्देश्य या तथ्य को ध्यान में रखकर किसी क्षेत्र विशेष के लिए बनाये जाते हैं। धरातल पर अनेक प्रकार की भौतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक विविधताएँ मिलती हैं। विषयक मानचित्रों में एक निश्चित क्षेत्र के एक निश्चित विषय को लेकर उनका निरूपण किया जाता है। जैसे-इतिहास विषयक मानचित्रों में हर्षवर्धन का साम्राज्य व सम्राट अशोक का साम्राज्य आदि।

प्रश्न 7.
विषयक (थिमेटिक) मानचित्र की रचना हेतु ध्यान देने योग्य तथ्य कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
एक निश्चित क्षेत्र एवं निश्चित उद्देश्य को ध्यान में रखकर बनाये जाने वाले मानचित्रों को विषयक मानचित्र कहते हैं। विषयक मानचित्र बनाते समय निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक हैं –

  1. विषयक मानचित्र एक मापनी के आधार पर बनाये जाते हैं।
  2. विषयक मानचित्रों में वितरण को प्रदर्शित करने के लिए आंकड़ों व सूचनाओं के वर्गीकरण की आवश्यकता होती है।
  3. विषयक मानचित्रों में क्षेत्र का नाम, विषय का शीर्षक, आंकड़ों का वर्ष, संकेत चिह्न, मापक आदि तथ्यों को लिखना व दिखाना महत्त्वपूर्ण होता है।
  4. विषयक मानचित्र बनाने हेतु उपयुक्त विधि का चयन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
  5. विषयक मानचित्र के शीर्षक को देखने मात्र से उसका अर्थ स्पष्ट हो जाना चाहिए।

प्रश्न 8.
मानचित्रों की रचना के लिए कौन-कौन सी मात्रात्मक विधियाँ अपनाई जाती हैं?
उत्तर:
मानचित्रों की रचना में निम्नलिखित मात्रात्मक विधियाँ अपनाई जाती हैं –

1. सममान रेखा विधि:
इस विधि द्वारा मानचित्र में समान मान व मूल्य वाले स्थानों को इंगित करके एक निश्चित अन्तराल पर उन्हें मिला दिया जाता है। ऐसे मानचित्रों में तापमान, वर्षा, उच्चावच आदि घटकों को क्रमशः समताप, समवर्षा तथा समोच्च रेखाओं द्वारा दिखाया जाता है।

2. वर्णमाली विधि:
इस विधि में सामाजिक आर्थिक तत्त्वों/घनत्व के वितरण को प्रशासनिक इकाईयों के आधार पर विभिन्न छायाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। मात्रा बढ़ने के साथ-साथ छाया गहरी होती जाती है।

3. बिन्दु विधि:
बिन्दु मानचित्र में एक ही प्रतीक केवल बिन्दु की पुनरावृत्ति होती है। चुनी हुई मापनी के अनुसार एक ही आकार के बिन्दु वितरण प्रतिरूपों को दर्शाने के लिए दी हुई प्रशासनिक इकाईयों में अंकित किये जाते हैं।

4. आरेखी विधि:
इस विधि में आधार मानचित्र पर किसी वस्तु के वितरण को आरेख या आलेख बनाकर प्रदर्शित किया जाता है।

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RBSE Class 12 Pratical Geography अभ्यासार्थ प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर भारत में जनसंख्या वितरण दर्शाने के लिए एक बिन्दु विधि द्वारा मानचित्र बनाइये।
RBSE Solutions for Class 12 Pratical Geography Chapter 1 मानचित्र- वर्गीकरण और मानचित्रांकन img-1
उत्तर:
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प्रश्न 2.
राजस्थान के मानचित्र में जिला इकाइयों को प्रदर्शित करने के लिए छात्र-छात्राएँ विभिन्न रंगों का प्रयोग करें।
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से राजस्थान के जनसंख्या घनत्व को दर्शाने के लिए एक वर्णमाली मानचित्र बनाइये।
राजस्थान जनसंख्या घनत्व-2011 –
RBSE Solutions for Class 12 Pratical Geography Chapter 1 मानचित्र- वर्गीकरण और मानचित्रांकन img-4
उत्तर:
वर्ग अन्तराल 100 लेने पर जिलों के निम्नलिखित 6 वर्ग बनते हैं –
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RBSE Class 12 Pratical Geography अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इरविन रेज ने मानचित्र की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
इरविन रेज के अनुसार, “अपनी प्राथमिक संकल्पना में कोई भी मानचित्र धरातल के प्रतिरूप का ऊपर की ओर से देखा गया रूढ़ चित्र होता है जिसमें पहचान के लिए अक्षर लिखे दिये जाते हैं।”

प्रश्न 2.
मानचित्र और रेखाचित्र में क्या अन्तर है?
उत्तर:
मानचित्र मापक व मानचित्र के अन्य आधारभूत तत्वों को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं। मापक के अभाव में अनुमान के आधार पर बनाये गये मानचित्र को रेखाचित्र कह सकते हैं।

प्रश्न 3.
मापक किसे कहते हैं?
उत्तर:
धरातल पर किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच की वास्तविक दूरी और मानचित्र पर उन्हीं दो बिन्दुओं के बीच की दूरी के अनुपात को मापक कहते हैं।

प्रश्न 4.
प्रक्षेप किसे कहते हैं?
उत्तर:
गोलाकार पृथ्वी अथवा किसी बड़े भू-भाग के समतल सतह पर मानचित्र बनाने के लिए प्रकाश अथवा ज्यामितीय विधियों द्वारा निर्मित अक्षांश व देशान्तर रेखाओं के जाल को प्रक्षेप कहते हैं।

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प्रश्न 5.
वर्णमात्री मानचित्र बनाते समय क्या सावधानियाँ अपेक्षित हैं?
उत्तर:
वर्णमात्री बनाते समय निम्नलिखित सावधानियाँ अपेक्षित हैं –

  1. वर्णमात्री मानचित्र बनाने के लिए सर्वप्रथम विभिन्न राज्यों/जिलों के अनुसार दिये गए आंकड़ों को आरोही या अवरोही क्रम में रखते हैं।
  2. उचित अन्तराल पर आंकड़ों को कुछ वर्गों में विभाजित कर लिया जाता है।
  3. वर्गों की संख्या निश्चित होने के बाद प्रत्येक वर्ग में सम्मिलित राज्यों/जिलों में एक जैसी छाया भरी जाती है।
  4. मूल्यों के बढ़ने के अनुसार छायाओं में भी भारीपन आना चाहिए जिससे मानचित्र को देखने मात्र से तुलनात्मक महत्त्व का पता लग सके। सबसे कम मूल्य के लिए हल्की छाया और उससे अधिक घनत्त्व के लिए अपेक्षाकृत भारी छाया का उपयोग होता है।

प्रश्न 6.
बिन्द मानचित्र बनाने के लिए किन-किन चीजों की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
बिन्दु मानचित्र बनाते समय निम्नलिखित आवश्यकताएँ होती हैं –

  1. दिये हुए क्षेत्र का प्रशासनिक मानचित्र जिसमें राज्य/जिला/खण्ड की सीमाएँ दिखाई गई हो।
  2. चुनी हुई प्रशासनिक इकाई के लिए चुने हुए विषय जैसे कुल जनसंख्या, क्षेत्रफल आदि के सांख्यिकीय आंकड़े।
  3. एक बिन्दु के मान को निश्चित करने के लिए मापनी का चुनाव।
  4. प्रदेश का भू-आकृतिक मानचित्र विशेष करके उच्चावच व जल प्रवाह मानचित्र।

प्रश्न 7.
बिन्दु विधि की दो आवश्यक बातों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बिन्दु विधि से मानचित्र बनाते समय निम्नलिखित दो बातों को ध्यान रखना आवश्यक हैं –

  1. विभिन्न प्रशासनिक इकाईयों की सीमाओं को सीमांकित करने वाली रेखाएँ अत्यधिक घनी व मोटी न हों।
  2. प्रत्येक बिन्दु का आकारे समान होना चाहिए।

प्रश्न 8.
मानचित्रांकन के प्रमुख चरणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
किसी भी मानचित्र का निर्माण निम्नलिखित छः चरणों में पूरा होता हैं –

1. मापनी का चयन:
मानचित्र का निर्माण पूर्व निश्चित मापनी के आधार पर किया जाता है।

2. प्रक्षेप का चयन:
मानचित्र के क्षेत्र के आधार पर प्रक्षेपों का चयन किया जाता है। जैसे-भूमध्य रेखीय क्षेत्रों के लिए बेलनाकार प्रक्षेप व ध्रुवीय क्षेत्रों के लिए खमध्य प्रक्षेप आदि।

3. मानचित्र संकलन:
इसमें किसी क्षेत्र का रूपरेखा मानचित्र बनाकर आधार आंकड़ों का चयन व आंकड़ों का प्रदर्शन सम्मिलित होता है।

4. मानचित्र संघटन:
इसमें मानचित्र का शीर्षक, क्षेत्र का नाम, विषय-वस्तु, संकेत चिह्न, दिशा आदि का अंकन किया जाता है।

5. अक्षर लेखन:
अक्षरों का प्रकार, आकार, लेखन-विधि, अक्षरों का स्थान आदि कार्य करते हैं।

6. मानचित्र आरेखन:
इसमें पहले पेन्सिल से मानचित्र की बाहरी सीमाएँ, तट रेखाएँ, नदियाँ, झीलें, रेलमार्ग, नगरों की वास्तविक स्थिति आदि को स्याही से पक्का किया जाता है।

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प्रश्न 9.
मानचित्र के महत्त्व के सम्बन्ध में हिटलर ने क्या कहा था?
उत्तर:
मानचित्र के महत्त्व के सम्बन्ध में हिटलर का कथन था – “मुझे किसी देश का विस्तृत मानचित्र दे दो और मैं उस पर विजय प्राप्त कर लूंगा।

प्रश्न 10
भूगोल में मानचित्र के महत्त्व के विषय में डॉ० एच० आर० निल के कथन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भूगोल में मानचित्र के महत्त्व के सम्बन्ध में डॉ० एच० आर० निल का कथन है-“भूगोल में हमें यह एक सिद्धान्त मान लेना चाहिए कि जिसका मानचित्र नहीं बनाया जा सकता, उसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता।”

प्रश्न 11.
मानचित्रों के कोई दो उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
भौगोलिक दृष्टि से मानचित्र के प्रमुख दो उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. मानचित्र पृथ्वी के विशाल और आकृति को छोटा करके उसे समझने और बोधगम्य बनाने का कार्य करता है। भौगोलिक तथ्यों का स्पष्टीकरण मानचित्रों द्वारा भली-भांति हो जाता है।
  2. धरातल की विभिन्न विशेषताओं-भौतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि में से छाँटी गई विशेषताओं का प्रदर्शन केवल मानचित्रों के माध्यम से ही हो सकता है।

प्रश्न 12.
गुणात्मक मानचित्र एवं मात्रात्मक मानचित्र में प्रमुख अन्तर क्या है?
उत्तर:
गुणात्मक मानचित्र में वस्तुओं का केवल क्षेत्रीय वितरण ही दिखाया जाता है। इनसे केवल इसी बात का बोध होता है कि कौन सी वस्तु कहाँ पाई जाती है। मात्रात्मक मानचित्र में तत्वों के वितरण के साथ-साथ उनकी मात्रा भी दिखाई। जाती है। इसके अलावा इस विधि से घनत्व मूल्य तथा समय के साथ परिवर्तन, उतार-चढ़ाव भी दिखाया जा सकता है।

प्रश्न 13.
कोरो क्रोमेटिक मानचित्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
सामाजिक-आर्थिक तथ्यों को प्रदर्शित करने वाला गुणात्मक विषयक मानचित्र, जिस पर विभिन्न क्षेत्रों या प्रदेशों को दर्शाने या विभिन्न तत्त्वों को गुणात्मक रूप में प्रदर्शित करने के लिए अलग-अलग रंगों की छायाओं का प्रयोग किया जाता है। इसे कोरोक्रोमेटिक मानचित्र कहा जाता है।

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प्रश्न 14.
सममान रेखाएँ क्या हैं?
उत्तर:
धरातल से अथवा सागर तल से समान माप अथवा माने वाले स्थानों को मिलाती हुई जो रेखाएँ खींची जाती हैं, उन्हें सम्मान रेखाएँ कहते हैं।

प्रश्न 15.
सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विभिन्न सर्वेक्षण उपकरणों की सहायता से धरातल पर मापी गई क्षैतिज दूरियों, कोणों व ऊँचाईयों को किसी निश्चित विधि के अनुसार लघु मापक पर मानचित्र के रूप में प्रस्तुत करना सर्वेक्षण कहलाता है।

प्रश्न 16.
सर्वेक्षण में प्रमुख तीन कार्य क्या हैं?
उत्तर:
सर्वेक्षण में निम्नलिखित तीन प्रमुख कार्य होते हैं –

  1. क्षेत्र का अध्ययन
  2. अभिकलन तथा
  3. मानचित्रण।

प्रश्न 17.
मानचित्रांकन में प्रक्षेपों के चयन से क्या आशय है?
उत्तर:
पृथ्वी की आकृति गोलाकार है। इसके किसी भाग के मानचित्र को बनाने के लिए अलग-अलग प्रक्षेपों की आवश्यकता होती है। प्रक्षेपों का चयन क्षेत्रों के आकार एवं आकृति तथा प्रक्षेपों की विशेषताओं के आधार पर किया जाता है। ध्रुवीय क्षेत्रों के मानचित्रों के लिए खमध्य प्रक्षेप सर्वाधिक उपयुक्त होता है। इसी प्रकार मध्य अक्षांशों के लिए शंक्वाकार तथा भूमध्य रेखीय प्रदेशों के लिए बेलनाकार प्रक्षेप उपयुक्त माना जाता है।

प्रश्न 18.
गुणात्मक मानचित्र की सामान्य छाया विधि की कोई दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
गुणात्मक मानचित्र बनाने की सामान्य छाया विधि की प्रमुख दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. इस विधि में काली स्याही से बनायी गईं छायाओं का प्रयोग होता है।
  2. पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं में इस विधि का ज्यादा उपयोग होता है क्योंकि इस विधि से बने मानचित्र अपेक्षाकृत कम खर्चीले होते हैं।

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