Rajasthan Board RBSE Class 12 Sanskrit अनुवादकार्यम्
पाठ्यपुस्तक का अनुवाद कार्य।
अनुवादकार्यार्थं किंचित् सङ्केताः ध्यातव्याः
(क) लट् + प्रथमा + प्रथमपुरुषः –
छात्र पढ़ता है। – छात्रः पठति।
वे दोनों हँसते है। – तौ हसतः।
आप यहाँ आते हैं। – भवान् अत्र आगच्छति।
आप लिखती हैं। – भवती लिखति।
वहाँ क्या हो रहा है? – तत्र किं भवति?
(ख) लट् + प्रथमा + मध्यमपुरुषः
तुम लिखते हो। – त्वं लिखसि।
तुम दोनों कहते हो। – युवा वदथः।
तुम सब पढ़ते हो। – यूयं पठथ।
(ग) लट् + प्रथमा + उत्तमपुरुषः
मैं देखता हूँ। – अहं पश्यामि।
हम दोनों खेलते हैं। – आवां क्रीड़ावः।
हम सब जीतते हैं। – वयं जयामः।
(घ) लोट् + द्वितीया–
वह खाना खाये। – सः भोजनं खादतु।
तू गाँव को जा। – त्वं ग्रामं गच्छ।
मैं यहाँ से चलें। – अहं इतःचलानि।
(ङ) लृट् + द्वितीया द्विकर्मक
भारत शत्रु से युद्ध जीतेगा। – भारतः शत्रु युद्ध जेष्यति।
शिक्षक शिष्य से प्रश्न पूछेगी। – शिक्षकः शिष्यं प्रश्न प्रक्ष्यति।
ग्वाला गाँव से गाय को ले जायेगा। – गोप: ग्रामं गां नेष्यति।
(च) ल तृतीया
राजा के साथ सेनापति चला। – भूपतिना सह सेनापति: अचरत्।
संन्यासी के साथ कवि ने गाया। – यतिना सार्ध कवि अगायत्।
मुनि ने सत्य से संसार को जीता। – मुनिः सत्येन लोकम् अजयत्।
(छ) विधिलिङ्ग + चतुर्थी
उसे उस ब्राह्मण को धन देना चाहिए। – सः तस्मै विप्राय धनं दद्यात्।
तुमे किस शिष्य को ज्ञान देना चाहिए? – त्वं कस्मै शिष्याय ज्ञानं वितरेः?
शिष्य का हित हो। – शिष्याय हितं भवेत्।
(ज) सर्वनाम पुल्लिङ्ग + पंचमी
उस वृक्ष से यह पता गिरा। – तस्माद् वृक्षात् एतत् पत्रम् अपतत्।
इस घोड़े से वह मनुष्य गिरता है। – अस्माद् अश्वात् स नरः पतति।
यह शिष्य उस गुरु से पढ़ता है। – एषः शिष्यः तस्माद् गुरोः अधीते।
(झ) सर्वनाम स्त्रीलिङ्ग + षष्ठी
यह उस बालिका की पुस्तक है। – इदं तस्याः बालिकाया: पुस्तकम् अस्ति।
वह कन्या इस बकरी का दूध चाहती है। – सा कन्या अस्याः अजायाः दुग्धम् अभिलषति।
वह बालिका किस कन्या की बहिन है।? – सा बालिका कस्याः कन्यायाः भगिनी अस्ति?
(ञ्) युष्मद् + सप्तमी
तुझमें सत्य है। – त्वयि सत्यं वर्तते।
तुम दोनों में ज्ञान है। – युवयोः ज्ञानम् अस्ति।
तुम सब में ईश्वर है। – युष्मासु ईश्वरः अस्ति।
(ट) अस्मद्
कार्य पूरा करने पर मैं विद्यालय गया। – कार्ये कृते सति अहं विद्यालयम्। अगच्छम्।
मेरी सत्य में श्रद्धा और निष्ठा है। – मम सत्ये श्रद्धा निष्ठा वा वर्तते।
हमारी ईश्वर में अभिलाषा हो। – अस्माकम् ईश्वरेऽभिलाषा वर्तताम्।
(ठ) परिचयः –
मेरा नाम नरेन्द्र है। – मम नाम नरेन्द्रः।
आपका नाम क्या है? (पुरुष से) – भवतः नाम किम्?
आपका नाम क्या है? (महिला से) – भवत्याः नाम किम्?
में अध्यापक हूँ। – अहम् अध्यापकः।
आप कौन है? (पुरुष से) – भवान् कः?
आप कौन है? (महिला से) – भवती का?
मेरे पिताजी का नाम गोपाल है। – मम पितुः नाम गोपालः।
आपके पिताजी का नाम क्या है? – (पुरुष से) भवतः पितुः नाम किम्?
आपके पिता/माता का नाम क्या है? (महिला से) – भवत्या:पितु:/मातुः नाम किम्?
मैं बाँसवाड़ा नगर में रहता हैं। – अहं बाँसवाड़ा नगरे निवसामि।
आप कहाँ रहते/रहती हो? – भवान्/भवती कुत्र निवसति?
(ङ) विविधानि वाक्यानि
संगठन से ही भारत विश्वगुरु बनेगा। – संगठनैव भारत विश्वगुरुः भविष्यति।
योग से शरीर स्वस्थ होता है। – योगेन शरीर स्वस्थं तिष्ठति।
वेद सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ हैं। – वेदाः सर्वाधिका: प्रामाणिका: ग्रन्थाः सन्ति।
जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से महान् हैं। – जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक मत – उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
सज्जनों की बात माननी चाहिए। – कर्त्तव्यं हिसतां वचः।
अनेक गुणों में एक दोष छिप जाता है। – एको हि दोषो गुणसन्निपाते निमजति।
दूसरे को उपदेश देना बहुत सरल है। – सुखमुपदिश्यते परस्य।
बड़ों का अनुकरण करो। – महतां पदम् अनुविधेयम्।
तृष्णा कभी कम नहीं होती। – तृष्णैका तरुणायते।
संसार में कोई भी सर्वज्ञ नहीं। – न हि सर्वविदः सर्वे।
बन्धु के समान कोई बल नहीं। – नास्ति बन्धुसमं बलम्।
योगी को संसार तिनके के समान हैं। – नि:स्पृहस्य तृणं जगत्।
जो जैसा बीज बोता है वैसा ही फल प्राप्त करता है। – यो यद्वपति बीजं लभते सोऽपि तत्फलम्।
अभ्यास–कार्यम् प्रश्न:
(क) रिक्तस्थानेषु उचितपदानि पूरयत
- इदं तस्याः ……………………………………. पुस्तकम् अस्ति। (बालिका)
- ……………………………………. सत्यं वर्तते। (युष्मद्)
- ……………………………………. कृते सति अहं विद्यालयम् अगच्छम्। (कार्य)
- ……………………………………. भोजनं खादतु। (तत् पूँ.)
- ……………………………………. सह सेनापतिः अचरत्। (भूपतिः)
- सः तस्मै ……………………………………. धनं दद्यात्। (विप्रः)
- ……………………………………. हितं भवेत्। (शिष्यः)
- तस्माद् ……………………………………. एतत् पत्रम् अपतत्। (वृक्षः)
- एषः शिष्यः तस्माद् ……………………………………. अधीते। (गुरुः)
- ……………………………………. पदम् अनुविधेयम्। (महत्)
उत्तर:
- इदं तस्याः बालिकायाः पुस्तकम् अस्ति।
- त्वयि सत्यं वर्तते।
- कार्यस्य कृते सति अहं विद्यालयम् अगच्छम्।
- सः भोजनं खादतु।
- भूपतिना सह सेनापतिः अचरत्।
- सः तस्मै विप्राय धनं दद्यात्।
- शिष्याय हितं भवेत्।
- तस्माद् वृक्षाद् एतत् पत्रम् अपतत्।
- एषः शिष्यः तस्माद् गुरोः अधीते।
- महत् पदम् अनुविधेयम्।
प्रश्न :
(ख) संस्कृतानुवादं कुरुत
- वह गाँव को जाता है।
- आप वहाँ जाते हैं।
- वे सब यहाँ आते हैं।
- तू राज्य की रक्षा करता है।
- तुम दोनों कब भोजन बनाते हो।
- तुम लोग ईश्वर को प्रणाम करते हो।
- मैं फूल सँघता हूँ।
- हम दोनों पाठशाला जाते हैं।
- हम वहाँ से नहीं आ रहे हैं।
- वे सातों बालक ईश्वर का चिन्तन करते हैं।
उत्तर:
अनुवादकार्यम्
- सः ग्रामं गच्छति।
- भवान् तत्र गच्छति।
- ते अत्र आगच्छन्ति।
- त्वं राज्यं रक्षसि।
- यूवां कदा भोजनं पचथः?
- यूयं जनाः ईश्वरं प्रणमथ।
- अहं पुष्पं जिघ्रामि।
- आवां पाठशालां गच्छावः।
- वयं ततः न आगच्छामः।
- ते सप्तबालकाः ईश्वरस्य चिन्तनं कुर्वन्ति।
अन्य महत्त्वपूर्ण अनुवाद–कार्य
हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद
[नोट–नवीन पाठ्यक्रम के अनुसार प्रश्न–पत्र में कुछ वाक्य हिन्दी के देकर उनका संस्कृत में अनुवाद करने हेतु प्रश्न पूछा जाना निर्धारित है। हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करने के लिए संस्कृत व्याकरण के नियमों, शब्द व धातु रूपों का ज्ञान अत्यावश्यक है। हमने यहाँ हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद बनाने के लिए प्रमुख नियमों को सरलता से सोदाहरण समझाया है। विद्यार्थी इन नियमों को हृदयंगम कर तथा अभ्यास–कार्य के द्वारा संस्कृत में अनुवाद करने में सक्षम हो सकेंगे।]।
ध्यातव्य–नियम
हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करने के लिए निम्नलिखित कुछ नियमों का ध्यान रखते हुए अनुवाद का अभ्यास करना चाहिए
1. सर्वप्रथम हिन्दी वाक्यों के शब्दों को शुद्ध हिन्दी में परिवर्तित कर लेना चाहिए, क्योंकि हिन्दी भाषा में अन्य भाषाओं के शब्द भी प्रचलित हैं तथा कतिपय देशी प्रान्तीय बोलियों के शब्द भी हैं। संस्कृत में ऐसे शब्दों का अनुवाद करते समय पहले उन्हें शुद्ध हिन्दी शब्दों में परिवर्तित कर लेना चाहिए, ऐसा करने से अनुवाद करने में आसानी रहेगी, क्योंकि हिन्दी के परिशुद्ध शब्दों के आगे संस्कृत की विभक्ति प्रत्यय जोड़ देने से वह संस्कृत का वाक्य बन जायेगा। उदाहरणार्थ, वह मैले कपड़े पहन कर इधर–उधर घूमता है” इस वाक्य को पहले इस प्रकार परिवर्तित कर लेना चाहिए वह मलिन वस्त्र पहनकर व्यर्थ ही इधर–उधर घूमता रहता है। अब इसका अनुवाद सरल हो जायेगा, यथा–”सः मलिनानि वस्त्राणि परिधाय व्यर्थमेव इतस्ततः भ्रमति।”
2. अनुवाद करने से पूर्व यह देखना चाहिए कि वाक्य किस काल का है तथा वाक्य में कर्ता किस पुरुष तथा किस वचन में है। क्योंकि संस्कृत में कर्ता के अनुसार ही क्रिया का निर्धारण होता है।
3. यह स्मरणीय है कि संस्कृत में तीन वचन–एकवचन, द्विवचन और बहुवचन हैं तथा छः कारक कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण होते हैं। सम्बन्ध और सम्बोधन यद्यपि कारक नहीं होते हैं फिर भी सुविधा की दृष्टि से इन्हें भी कारकों में परिगणित कर लिया जाता है।
4. कर्ता का जब निर्धारण कर लिया जाए, उसके पश्चात् यह निश्चित करना चाहिए कि वह किस लिंग का है—पुल्लिंग का, स्त्रीलिंग का, या नपुंसकलिंग का, क्योंकि जिस लिंग का कर्ता होगा उसी के अनुसार उसके विशेषणों में भी विभक्तियों वे शब्द रूपों का प्रयोग होगा। विशेष्य पद का अनुवाद करने के उपरान्त ही विशेषण पद का अनुवाद करना चाहिए। यथा––”यह एक पवित्र एवं सुन्दर भवन है”_”इदं एकं पवित्रं शोभनं च भवनम् अस्ति।”
5. धातुओं के आगे प्रत्यय जोड़कर क्रिया पद बनते हैं। इनका प्रयोग तीन पुरुषों—प्रथम, मध्यम और उत्तम तथा दस लकारों में होता है। भिन्न–भिन्न कालों, पुरुषों एवं वचनों के अनुसार एक ही धातु से अनेक क्रिया पद बनते हैं और कर्तृ–वाच्य वाक्यों में इन क्रिया पदों का प्रयोग अपने–अपने कर्ता के अनुसार होता है, कर्ता जिस पुरुष और वचन का होगा क्रिया पद भी उसी पुरुष और वचन का होगा। यथाबालकः पठति, बालकौ पठतः, बालकाः लिखन्ति, त्वं गृहं गच्छसि, युवा पुस्तकं पठथः, यूयं चित्रं पश्यथ, अहं लेखं लिखामि, आवां भोजनं खादावः, वयं गृहं गच्छामः।
6. संस्कृत में सभी शब्द तीन वर्गों में विभक्त हैं–नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), आख्यात (सभी प्रकार के क्रिया पद), अव्यय—(उपसर्गादि)। यथा**ये सुन्दर बालक दौड़ने में कुशल हैं और वार्तालाप में सुख का अनुभव करते हैं।”_’इमे शोभनाः छात्राः धावने निपुणाः सन्ति वार्तालापे च सुखं अनुभवन्ति।’ इस वाक्य में इमे शोभनाः छात्राः–नाम, ‘सन्ति’ आख्यात तथा ‘च अनु’ अव्यय के अन्तर्गत है। यहाँ यह स्मरणीय है कि उपसर्ग, निपात, अव्यय के वचन, विभक्ति, काल एवं पुरुष आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता, प्रत्येक दशा में ये शब्द अपने ही स्वरूप में सुरक्षित रहते हैं।
7. संस्कृत में अनुवाद करते समय शब्द रूप व धातु रूप अच्छी प्रकार से ध्यान में होने चाहिए। सभी सर्वनाम शब्दों के रूप भी तीनों लिंगों में याद होने चाहिए।
8. संस्कृत में कुछ पदों के योग में विशेष विभक्ति प्रयुक्त होती है, इन्हें उपपद विभक्ति कहते हैं, इसके लिए कारक प्रकरण का ज्ञान आवश्यक है। अतः किन विशिष्ट अर्थों में कौनसी विभक्तियाँ आती हैं, इसका पूर्ण ज्ञान विद्यार्थी को रखना चाहिए।
9. प्रत्ययों का ज्ञान भी अनुवाद करते समय आवश्यक है। विशिष्ट प्रत्ययों का विशिष्ट अर्थों में प्रयोग होता है, जैसे के लिए’ अर्थ में, ‘तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग, ‘निरन्तरता बतलाने के लिए शतृ व शानच् का प्रयोग, ‘करके अर्थ में क्त्वा एवं ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग।’ क्तवतु एवं क्त’ प्रत्यय का भूतकाल में प्रयोग करना चाहिए।
10. संस्कृत में मुख्यतया तीन प्रकार के वाच्य प्रचलित हैं–कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य। कर्तृवाच्य वाक्यों में क्रिया, कर्ता के अनुसार प्रयुक्त होती है। अर्थात् कर्ता में जो पुरुष और वचन होगा क्रिया में भी वही पुरुष और वचन होगा। कर्तृवाच्य का कर्ता प्रथमा विभक्ति में प्रयुक्त होता है, यथा–रमेशः पुस्तकं अपठत्। अहं पत्रं लिखामि। कर्म में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होगा।
कर्मवाच्य के वाक्यों में सकर्मक धातुओं से कर्म में प्रथमा और कर्ता में तृतीया विभक्ति होगी, यथा––– “रामेण पत्रं लिखितम्।” भाववाच्य केवल अकर्मक धातुओं से ही होता है, इस वाच्य में भी कर्ता में तृतीया होती है, यथा–अस्माभिः गम्यते, युस्माभिः तत्रैव गन्तव्यम्। अनेन विदूषा भूयते।
‘भाववाच्य की क्रिया कर्ता की अपेक्षा नहीं रखती अतः कर्ता में कोई भी लिंग और वचन हो, क्रिया में एकवचन ही होगा। इसमें कर्म नहीं होता है।
11. संस्कृत में देशों के नाम का प्रयोग सदा बहुवचन में होता है, क्योंकि वे वहाँ के निवासियों के नाम पर ही घोषित किये गये होते हैं। जैसे—”अहं गतः कदाचित् कलिंगान्””मैं एक बार कलिंग देश गया।” परन्तु जब देशों के नाम के साथ ‘देश’, ‘विषय’ आदि शब्द लगे हों, तब एकवचन का ही वचन प्रयोग होना चाहिए। जैसे–”मगध देशे पाटलीपुत्रं नाम नगरं वर्तते।” अयं भारतदेशः वर्तते।
12. जब एक वाक्य में एक से अधिक विभिन्न पुरुषों के कर्ता ‘च’ (और) के द्वारा जुड़े हुए हों तो क्रिया का निर्धारण ‘उत्तरोत्तर पुरुष’ के आधार पर किया जाना चाहिए। ‘उत्तरोत्तर पुरुष’ का भाव यह है कि प्रथम से मध्यम और मध्यम से उत्तम अधिक बलवान होता है। अतः एक वाक्य में यदि प्रथम, मध्यम, उत्तम पुरुष के कर्ता का प्रयोग किया गया हो तो क्रिया उत्तम पुरुष के अनुसार प्रयुक्त होगी। यथा–”सः, त्वं अहं च तत्र गच्छामः।” यदि वाक्य में उत्तम पुरुष नहीं होगा तो क्रिया मध्यम पुरुष के अनुसार होगी। यथा–”सः त्वं च तत्र गच्छथः।” रामः अहं च जयपुरं गमिष्यावः।
13. ‘अथवा’ द्वारा संयुक्त एकवचन कर्ता पद के लिए एकवचन की क्रिया प्रयुक्त होती है। जैसे—“रामः गोविन्दः कृष्णो वा गच्छतु।”
14. जब अनेक कर्ता पद विभिन्न वचन के होते हैं तब क्रिया निकटस्थ कर्ता पद के अनुसार होगी, जैसे—”ते वा अयं वा पारितोषिकं गृह्णातु।”
15. यदि ‘अथवा’ पद द्वारा संयुक्त पद दो या दो से अधिक विभिन्न पुरुष के कर्ता पद हों तो वचन और रूप में क्रिया निकटतम पद के अनुरूप होती है। जैसे वे अथवा हम लोग इस कठिन कार्य को कर सकते हैं। ”ते वा वयं वा इदं कठिनं कार्यं कर्तुं शक्नुमः।”
16. जब एक ही विशेषण दो या दो से अधिक विशेष्यों की विशेषता व्यक्त करता है तब विशेषण का वचन विशेष्यों के संयुक्त वचन के अनुसार होता है। जहाँ तक लिंग का सम्बन्ध है, जब विशेष्य पुल्लिग और स्त्रीलिंग है तब विशेषण पुल्लिग होगा, परन्तु यदि विशेष्यों में पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग तीनों हैं तो विशेषण नपुंसकलिंग होगा।
जैसे—
- पक्षपातिनौ अनयोः अहं देवी च।
- तस्मिन् नृपे सत्यं, धृतिज्ञानं तपः शौच दमः शमः ध्रुवाणि सन्ति।।
विशेष–[कारकों का विस्तृत विवेचन पूर्व में कारक–प्रकरण’ में किया जा चुका है अतः वहाँ देखिए।]
परीक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हिन्दी वाक्यों का संस्कृत–अनुवाद
1. गंगा हिमालय से निकलकर आती है।
गंगा हिमालयात् निर्गत्य आगच्छति।
2. विद्यालय के चारों ओर वृक्ष हैं।
विद्यालयं परितः वृक्षाः सन्ति।
3. वहाँ बालकों के साथ बालिकाएँ खेल रही हैं।।
तत्र बालकैः सह बालिकाः क्रीडन्ति।
4. तुम सब कथा ही करते हो परन्तु वे सोचते भी हैं।
यूयं कथां कथयथ किन्तु ते चिन्तनमपि कुर्वन्ति।
5. विद्यालय के दोनों ओर फल और फूल हैं।
विद्यालयं उभयतः फलानि पुष्पाणि च सन्ति।
6. विद्वान् धर्म की ओर ले जाता है।
विद्वान् धर्मं प्रति नयति।
7. वह दस वर्ष तक अध्ययन करता है।
सः दश वर्षाणि यावत् अध्ययनं करोति।
8. ग्वाला गाय को गाँव में ले जाता है।
गोपाः गां गाय ग्रामं नयति।
9. याचक राजा से धन माँगता है।
याचकः नृपं धनं याचते।
10. राजा दुर्जन पर सौ रुपये दण्ड लगाता है।
नृपः दुर्जनं शतं दण्डयति।
11. राजा ने युद्ध में अपना जीवन त्याग दिया।
नृपः युद्धे स्वप्राणान् अत्यजत्।
12. यह नदी हिमालय से निकलती है।
इयं नदी हिमालयात् निर्गच्छति।
13. गुरु स्वभाव से सज्जन है तथा ज्ञान से निपुण है।
गुरुः प्रकृत्या सज्जनः तथा ज्ञानेन निपुणः वर्तते।
14. जिसके मन में दया होती है, वह दयालु होता है।
यस्य मनसि दया वर्तते, सः दयालुः भवति।
15. जिस बालक को फल देते हो, उसी को फूल भी दो।
यस्मै बालकाय फलं यच्छसि, तस्मै पुष्पमपि यच्छ।
16. जो बालक विद्यालय नहीं जाता, उसको पिता दण्ड देता है।
यः बालकः विद्यालयं न गच्छति, तस्मै पिता दण्डयति।
17. इस प्रश्न को उस शिष्य से पूछो।
एतं प्रश्नं तं शिष्यं पृच्छ।
18. गुरु इन शिष्यों को उपदेश देता है।
गुरुः एभ्यः शिष्येभ्यः उपदिशति।
19. मुनि मोक्ष के लिए ईश्वर भजता है।
मुनिः मोक्षाय ईश्वरं भजति।
20. वह मूर्ख उस विद्वान् से ईष्र्या करता है।
सः मूर्खः तस्मै विदुषे ईर्थ्यति।
21. पुत्र पिता के साथ बाजार गया।
पुत्रः पित्रा सह आपणम् अगच्छत्।
22. कोयल के बिना बसन्त सुहावना नहीं लगता।
पिकं विना वसन्तं न शोभते।
23. उस नगर के चारों ओर एक सुन्दर बाग है।
तं नगरं परितः शोभनं उद्यानमस्ति।
24. इस व्यक्ति के साथ घूमने से क्या लाभ?
अनेन जनेन सह भ्रमणेन किम्?
25. अरे अन्धे! तुझे इस दीपक से क्या लाभ?
भो अन्ध! तव अनेन दीपकेन किम्?
26. गोपाल पढ़ने से प्रमाद करता है।
गोपालः पठनात् प्रमाद्यति।
27. यह गुरु इस शिष्य को पाप से हटता है।
अयं गुरुः इमं शिष्यं पापात् निवारयति।
28. राजा निर्धनों को धन देता है।
राजा निर्धनेभ्यः धनं ददाति।
29. धन से ज्ञान अधिक बड़ा है।
धनात् ज्ञानं गुरुतरम्।
30. उस यति से यह कवि अधिक चतुर है।
तस्मात् यतेः अयं कविः पटुतरः अस्ति।
31. मैं गुरु के पास से यहाँ आया हूँ।
अहं गुरोः समीपात् अत्र आगतोस्मि।
32. उस वृक्ष के ये फूल हैं।
तस्य वृक्षस्य इमानि पुष्पाणि सन्ति।
33. राम पिता का स्मरण करता है।
रामः जनकस्य स्मरति।
34. इस नगर के उत्तर और दक्षिण की ओर वृक्ष हैं।
अस्य नगरस्य उत्तरतः दक्षिणतश्च वृक्षाः सन्ति।
35. सभी पुस्तकों में गीता श्रेष्ठ है।
सर्वेषु पुस्तकेषु पुस्तकानां वा गीता श्रेष्ठा।
36. इस बालिका का पढ़ना उसे अच्छा लगता है।
अस्याः बालिकायाः पठनं तस्मै रोचते।
37. यह कन्या धन का दान करना चाहती है।
इयम् कन्या धनदानं कर्तुं इच्छति।
38. राम के तुल्य कोई नहीं है।
रामस्य रामेण वा तुल्यः कोऽपि नास्ति।
39. धनवान् गरीबों को वस्त्र देता है।
धनिकः निर्धनेभ्यः वस्त्राणि ददाति।
40. विद्या सत्य से शोभित होती है।
विद्या सत्येन शोभते।
41. भिखारी राजा से अन्न माँगता है।
भिक्षुकः नृपं अन्नं याचते।
42. बालक मार्ग में संन्यासी को देखता है।
बालकः मार्गे संन्यासिनं पश्यति।
43. पिता पुत्र से स्नेह करता है।
पिता पुत्रे स्निह्यति।
44. राजा सिंहासन पर बैठा है।
नृपः सिंहासनम् अधितिष्ठति।
45. मेरी ईश्वर में श्रद्धा और निष्ठा है।
मम ईश्वरे श्रद्धा निष्ठा च स्तः।
46. मैं इस समय अध्ययन में लगा हूँ।
अहं अस्मिन् समये अध्ययने लग्नोऽस्मि।
47. बालक के सोने पर पिता घर से बाहर आया।
बालके शेते सति जनकः गृहात् बहि आगच्छत्।
48. राजा ने मृगों पर बाण चलाए।
नृपः मृगेषु शराः अक्षिपन्।
49. एक बालक और एक बालिका को ये पुस्तकें दो।
एकस्मै बालकाय एकस्यै बालिकायै व इमानि पुस्तकानि यच्छ।
50. तुम सारी विद्याओं के एकमात्र पात्र हो।
त्वं सर्वासां विद्यानां एकमात्रं पात्रमसि।
51. कर्म करना ही तुम्हारा अधिकार है।
कर्मण्यस्त्येव तेऽधिकारः। (कर्मण्येवाधिकारस्ते।)
52. जिस मनुष्य में विद्या है, उसमें बल है।
यस्मिन् मनुष्ये विद्या अस्ति तस्मिन् बलं अस्ति।
53. दो बालक विद्यालय की ओर जा रहे थे।
द्वौ बालकौ विद्यालयं प्रति अगच्छताम्।
54. माता–पिता ने बालक से कहा कि “जल लाओ।”
पितरौ पुत्रं अभाषेताम्–”जलं आनय।”
55. वह मेरे साथ बाजार जायेगा।
सः मया सह आपणं गमिष्यति।
56. चार बालकों को और चार बालिकाओं को ये चार फल दो।
चतुर्व्यः बालकेभ्यः चतसृभ्यः बालिकाभ्यः च इमानि चत्वारि फलानि यच्छ।
57. शत्रु नगर पर अधिकार करता है।
शत्रु नगरमधिकरोति।
58. संस्कृत भाषा ज्ञान को संस्कृत करती है।
संस्कृत भाषा ज्ञानं संस्करोति।
59. शिष्य इस पुस्तक को स्वीकार करता है।
शिष्यः इदं पुस्तकं स्वीकरोति।
60. सज्जन सदा हित करते हैं।
सज्जनाः सदा हितं कुर्वन्ति।
61. तुम उसके साथ खेलो।
त्वं तेन सह क्रीड।
62. इस पुस्तक के लेखक का क्या नाम है?
अस्य पुस्तकस्य लेखकस्य किम् नाम?
63. मेरे द्वारा पाठ पढ़ा जाता है।
मया पाठः पठ्यते।
64. धनवान् नौकर से काम कराता है।
धनिकः भृत्येन कार्यं कारयति।
65. गुरु शिष्यों को चारों वेद पढ़ाता है।
गुरु शिष्यान् चतुरः वेदान् पाठयति।
66. पिता पुत्र के साथ कल आयेगा।
पिता पुत्रेण सह श्वः आगमिष्यति।
67. बुद्धिमान् अध्ययन में समय व्यतीत करता है।
धीमान् अध्ययने कालं यापयति।
68. राजा शत्रु को मारना चाहता है।
नृपः शत्रून् हन्तुम् इच्छति।
69. काम करते हुए मैंने एक सुन्दर फल पाया।
कार्यं कुर्वता मया एकं शोभनं फलं प्राप्तम्।
70. यह मेरे पिता का घर है।
इदं मम पितुः गृहमस्ति।
71. कृष्ण स्नान करके प्रतिदिन पाठशाला जाता है।
कृष्णः स्नात्वा प्रतिदिनं पाठशालां गच्छति।
72. सज्जन स्वभाव से सरल होता है।
सज्जनः प्रकृत्या सरलः भवति।
73. मुझे पाठ स्मरण करना चाहिए।
मया पाठः स्मरणीयः।
74, हृदय की शुद्धि से बुद्धि शुद्ध होती है।
हृदयशुद्धतया बुद्धिर्निर्मला भवति।
75. मुझे स्वच्छ जल पीना चाहिए।
मया स्वच्छजलं पेयम्।
76. गाँव से आकर सेवक यहाँ काम करता है।
ग्रामाद् आगत्य सेवकः अत्रे कार्यं करोति।
77. बल से बुद्धि श्रेष्ठ है।
बलाद् बुद्धिर्गरीयसी।
78. वर्षा में छाता वर्षा से बचाता है।
वर्षासु आतपत्रं वर्षाभ्यः त्रायते।
79. जगत् में बहुत से मनुष्य मूर्ख और पापी हैं।
जगति अनेके मनुष्याः मूर्खाः पापिनश्च सन्ति।
80. वह व्यक्ति अपने आपको धनवान् समझता हैं।
सः जनः आत्मानं धनिकः मन्यते।
81. गंगा हिमालय से निकलकर समुद्र में मिल जाती है।
गङ्गा हिमालयात् निर्गत्य समुद्रे मिलति।
82. हमारे विद्यालय में जितने छात्र हैं, उतनी ही छात्राएँ हैं।
अस्माकं विद्यालये यावन्तः छात्राः सन्ति, तावत्यः छात्राश्च सन्ति।
83. मन सत्य से पवित्र होता है।
मनः सत्येन पवित्रं भवति।
84. रात्रि में अन्धकार सर्वत्र फैल जाता है।
रात्रौ तमः सर्वत्र प्रसरति।।
85. चित्रकार एक नारी को सुन्दर चित्र बनाता है।
चित्रकारः एकस्याः नार्याः शोभनं चित्रं रचयति।
86. शिकारी बाण से व्याघ्र को मारता है।
व्याधः बाणेन व्याघ्र हन्ति।
87. गुणी, धनी और ज्ञानी संसार में सुखी रहते हैं।
गुणिनः, धनिनः ज्ञानिनश्च जगति सुखिनः भवन्ति।
88. हम अपने राष्ट्र की रक्षा करें।
वयं स्वराष्ट्रं रक्षामहे।
89. रमेश कल घर जाकर पढ़ेगा।
रमेशः श्वः गृहं गत्वा पठिष्यति।
90. मेरे पिताजी कल जयपुर गये थे।
मम पिता ह्यः जयपुरम् अगच्छत्।
91. तुम दोनों और हम दोनों विद्यालय जाते हैं।
युवाम्, आवाम् च विद्यालयं गच्छामः।
92. वह, तू और मैं हँसते हैं।
सः, त्वं, अहं च हसामः।
93. पिता पुत्र को असत्य भाषण से रोके।
जनकः पुत्रं असत्यभाषणात् रुन्ध्यात्।
94. सौभाग्यवती नारियाँ सभी अलंकारों को धारण करती हैं, विधवा स्त्रियाँ नहीं।
सौभाग्यवत्यः स्त्रियः सर्वऽलंकारान् धारयन्ति, विधवा स्त्रियः न।
95. वैदिक धर्म सारे धर्मों में प्राचीन है।
वैदिक धर्मः सर्वधर्मेषु प्राचीनतमः अस्ति।
96. वसन्त में सभी वृक्ष और लताएँ फल–फूल से युक्त होती हैं।
वसन्ते सर्वे वृक्षाः लताश्च फलपुष्पैः युक्ताः भवन्ति।
97. राजाओं में दुर्योधन सबसे अधिक कृपण था।
नृपेषु दुर्योधनः कृपणतमः आसीत्।
98. इस राज्य की प्रजा अपने राजा में अनुरक्त है।
अस्य राज्यस्य प्रजा स्वस्य नृपे अनुरक्ता वर्तते।
99. मैं धन की इच्छा नहीं करता किन्तु अक्षयकीर्ति चाहता हूँ।
अहं धनाय न स्पृह्यामि किन्तु अक्षय कीर्तिं वाञ्छामि।
100. सत्संगति के समान इस संसार में कुछ भी नहीं है।
सत्संगतिस्तुल्यं अस्मिन् संसारे किमपि नास्ति।
अभ्यासार्थ–प्रश्न
हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद
प्रश्न 1.
अधोलिखितवाक्यानां संस्कृतानुवादं कुरुत
उत्तर–
1. हम सब भारतदेश की रक्षा करें।
वयं भारतदेशं रक्षेम।
2. वह बगीचे से फूल चुनता है।
सः उद्यानात् पुष्पाणि चिनोति।
3. बादलों ने सूर्य को ढक लिया।
मेधैः भास्करः आच्छादितः।
4. मित्र वह होता है जो सहायता करता है।
तन्मित्रं भवति यः सहाय्यं करोति।
5. राजा अपराधी को दण्ड देता है।
नृपः अपराधिनं दण्डयति।
6. जहाँ नारियाँ पूजी जाती हैं, वहाँ देवता निवास करते हैं।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
7, माता–पिता बच्चे को विद्वान् देखना चाहते हैं।
माता पितरौ बालकं विद्वद्रूपेण दृष्टुं इच्छतः।
8. हमारे घर विद्यालय से दूर थे।
अस्माकं गृहाणि विद्यालयात् दूरे आसन्।
9. सूर्य पूर्व दिशा में उदय होता है तथा पश्चिम में अस्त होता है।
सूर्य: पूर्व दिशि उदेति पश्चिमायां चास्तमेति।
10. बालिकाओं द्वारा पुस्तकें पढ़ी जाती हैं।
बालिकाभिः पुस्तकानि पढ्यन्ते।
प्रश्न 2.
अधोलिखितवाक्यानां संस्कृतानुवादं कुरुत
उत्तर:
1. ग्वालिन दही से नवनीत निकालती है।
गोपी दध्नः नवनीतं निस्सारयति।
2. रावण परशुराम के बाहुबल से डरता था।
रावणः परशुरामस्य बाहुबलात्::बिभेति स्म।
3. मनुष्य लोक में वात्सल्य एक अनुपम रसायन है।
मनुष्यलोके वात्सल्यं एकं अनुपमरसायनमस्ति।
4. अर्जुन से दुर्योधन डरता था।
अर्जुनात् दुर्योधनः बिभेति स्म।
5. भवभूति के समान संसार के कवियों में कोई नहीं है।
भवभूतिस्तुल्यः जगतः कविषु कोऽपि नास्ति।
6. राम–रावण युद्ध अति विलक्षण था।
रामरावणयुद्धं अतिविलक्षणमासीत्।’
7. वह शत्रुओं पर आक्रमण करता है।
सः शत्रूणाम् उपरि आक्रमति।
8. परशुराम ही महावीर चरित् के नायक हैं राम नहीं।
परशुराम एव महावीर चरितस्य नायकः अस्ति न तु रामः।
9. राम सभी के लिए आदर्श हैं।
रामः सर्वेभ्यः आदर्शः वर्तते।।
10. राम मनुष्य मात्र की व्यथा के नायक हैं।
रामः मानव–मात्रस्य व्यथायाः नायकः अस्ति।
प्रश्न 3.
निम्नलिखितवाक्यानां संस्कृतानुवादं कुरुत
उत्तर:
(i) वह मेरे पास प्रश्न पूछने के लिए आया।
सः मम समीपे प्रश्नं प्रष्टुम् आगच्छत्।
(ii) सच तो कहो आप इतने दिन कहाँ थे?
सत्यं कथय, भवान् इयन्ति दिनानि कुत्रासीत्?
(iii) बस करो अब, यह बच्चा पढ़ लिख जाये, इतनी ही चिन्ता है।
अलमिदानीम्, अयं बालकः पठनं कुर्यात् एतावती एव चिन्ता अस्ति।
(iv) महोदय! आप यहाँ ठहरकर मेरी प्रतीक्षा करें।
महोदया:! भवान् अत्र स्थित्वा मम प्रतीक्षा करोतु।
(v) इस जंगल में मोर नाचते हैं।
अस्मिन् वने मयूराः नृत्यन्ति।
(vi) सभी बालक असत्य नहीं बोलेंगे।
सर्वे बालकाः असत्यं न वदिष्यन्ति।
(vii) कोई भी बच्चा सूर्यग्रहण न देखे। .
कोऽपि बालकः सूर्यग्रहणं न पश्येत्।
(viii) मैं उसके घर नहीं गया।
अहं तस्य गृहं न गतवान्।
(ix) वह बिना कारण राजा के क्रोध का पात्र बन गया।
सः कारणं विना नृपस्य क्रोधपात्रमभवत्।
(x) रमा ने गीत गाया और सारी सभा शान्त हो गई।
रमा गीतं अगायत् सर्वा च सभा शान्ता जाता।
प्रश्न 4.
निम्नलिखितवाक्यानां संस्कृतानुवादं कुरुत
उत्तर:
(i) मैं विद्यालय के वार्षिक समारोह में सम्मिलित होता हूँ।
अहं विद्यालयस्य वार्षिकसमारोहे सम्मिलितं भवामि।
(ii) प्राचार्य महाविद्यालय की ओर जा रहे हैं।
प्राचार्य महाविद्यालयं प्रति गच्छति।
(iii) सादगीपूर्ण जीवन अच्छा होता है।
सरलजीवनं शोभनं भवति।
(iv) क्या तुम अपने पुत्र को अध्ययन के लिए वाराणसी भेजोगे?
किं त्वं स्वपुत्रं अध्ययनाय वाराणसीं प्रेषयिष्यसि?
(v) वह जहाँ जायेगा वहाँ काम करेगा।
सः यत्र गमिष्यति तत्र कार्यं करिष्यति।
(vi) हम तुम्हारे घर नहीं गये।
वयं तव गृहं न गतवन्तः।
(vii) इस जंगल में पहले एक सिंह रहता था।
अस्मिन् वने पुरा एकः सिंहः वसति स्म।
(viii) छात्रों को माता–पिता की आज्ञा माननी चाहिए।
छात्राः स्व पित्रोः आज्ञा स्वीकार्या।
(ix) हिमालय पर्वतों में सबसे ऊँचा है।
हिमालयः पर्वतेषु उच्चतमः।
(x) राम के साथ सीता भी वन गयी थी।
रामेश सह सीताऽपि वनम् अगच्छत्।
प्रश्न 5.
निम्नलिखितवाक्यानां संस्कृतानुवादं कुरुत
उत्तर:
(i) पुष्पपुरे शहर के चारों ओर एक सुन्दर उद्यान है।
पुष्पपुर नगरं परितः एकं शोभनं उद्यानं अस्ति।
(ii) जो लोग स्वार्थपरायण हैं, उन्हें धिक्कार है।
ये जनाः स्वार्थपरायणाः सन्ति तान् धिक्।
(iii) मैंने उससे दस प्रश्न पूछे।
अहं तं दश प्रश्नान् पृष्ठवान्।
(iv) वह वृद्ध पैर से लंगड़ा है।
सः वृद्धः पादेन खञ्जः अस्ति।
(v) बहुत विस्तार मत करो।
अलमति विस्तरेण।
(vi) अनुरागयुक्त परन्तु मूर्ख सेवक से क्या लाभ है?
अनुरागयुक्त मूर्ख सेवकेन किम्?
(vii) वह दुर्जन उस सज्जन से द्रोह करता है।
सः दुर्जनः तस्मै सज्जनाय द्रुह्यति।
(viii) पहले अपने गुरु को प्रणाम करो फिर अपना पाठ याद करो।
प्रथमं स्वगुरुवे नमस्कुरु तत्पश्चात् स्वपाठस्याध्ययनमारभस्व।
(ix) गंगा हिमालय से निकलकर मैदान में आती है।
गंगा हिमालयात् निर्गत्य क्षेत्रे आगच्छति।
(x) उस बालक के बिना मैं नहीं जी सकता।
तम् बालकं विना अहं जीवितुं न शक्नोमि।