RBSE Class 6 Hindi रचना निबंध

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Rajasthan Board RBSE Class 6 Hindi रचना निबंध

कुछ महत्वपूर्ण निबंध।

पुस्तकालय

  1. प्रस्तावना,
  2. पुस्तकालय का अर्थ,
  3. पुस्तकालय का महत्त्व,
  4. उपसंहार।

प्रस्तावना-जिस प्रकार शरीर की भूख मिटाने के लिए भोजन की आवश्यकता होती हैं, उसी प्रकार मन की भूख मिटाने के लिए पुस्तकों की आवश्यकता होती है। प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति अपने घर में कुछ-न-कुछ किताबें अवश्य रखता है, परंतु घर में बहुत अधिक पुस्तकें रखना किसी के लिए संभव नहीं है। इसी उद्देश्य से पुस्तकालयों की स्थापना की गई है।

पुस्तकालय का अर्थ- ‘पुस्तकालय’ शब्द दो शब्दों से बना हैं-पुस्तक+आलय अथात् पुस्तकों का घर। पुस्तकालय अनेक प्रकार के होते हैं। जैसे-स्कूल का पुस्तकालय, कॉलेज का पुस्तकालय, विश्वविद्यालय का पुस्तकालय, किसी संस्था का पुस्तकालय, राजकीय पुस्तकालय तथा सार्वजनिक पुस्तकालय।

पुस्तकालय का महत्त्व- वर्तमान समय में पुस्तकें अत्यंत महँगी हैं। अत: हर पुस्तक को खरीदकर पढ़ना संभव नहीं है। पुस्तकालय का सदस्य बनकर अच्छी-से-अच्छी पुस्तकें पढ़ने को मिल जाती हैं। पुस्तकालय ज्ञान के असीम भंडार हैं। पुस्तकालयों में प्रायः प्रत्येक पुस्तक पढ़ने के लिए उपलब्ध रहती है। हम किसी महापुरुष को जितना पुस्तकों के द्वारा जान सकते हैं, उतना उनके साथ रहने वाले भी उन्हें नहीं जान पाते हैं। पुस्तकालय में पढ़ने वालों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। पुस्तकों को सँभालकर पढ़ना चाहिए। पढ़ते समय पुस्तक के पन्ने खराब न करें, उन पर कुछ लिखें नहीं तथा पन्नों को मोड़ें या फाड़े नहीं। पुस्तकालय में शांतिपूर्वक बैठकर पढ़ना चाहिए। पुस्तकालय में बात करना, हँसना या जोर-जोर से पढ़ना अशिष्टता है।

उपसंहार- पुस्तकालय राष्ट्र की संपत्ति हैं। इनकी देखभाल करना हमारा दायित्व है। अच्छे पुस्तकालय अच्छे नागरिकों का निर्माण करते हैं। हमें पुस्तकालयों की अधिकाधिक स्थापना करने में अपना योगदान देना चाहिए। पुस्तकालय ज्ञान के भंडार हैं तथा सभ्यता एवं संस्कृति की संकलित निधि हैं।

प्रदूषण या पर्यावरण प्रदूषण

रूपरेखा

  1. प्रस्तावना,
  2. प्रदूषण क्या है,
  3. पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार,
  4. प्रदूषण रोकने के उपाय,
  5. उपसंहार।।

प्रस्तावना-भूमि, जल, वायु, आकाश, वृक्ष, नदी, पर्वत; | यही सब मिलकर बनाते हैं-पर्यावरण। इन्हीं के बीच मनुष्य आदिकाल से रहता चला आ रहा है। पर्यावरण मनुष्य को प्रकृति का अमूल्य वरदान है, लेकिन बढ़ते प्रदूषण ने पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाई है।

प्रदूषण क्या है- ‘दूषण’ का अर्थ दोषयुक्त होना है। से दूषण की अधिकता व्यक्त होती है। आजकल ‘प्रदूषण’ शब्द का प्रयोग एक विशेष अर्थ में किया जा रहा है। पर्यावरण के किसी अंग को, किसी भी प्रकार से मलिन या दूषित बनाना ही प्रदूषण है।।

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार-

  1. जल प्रदूषण-जल मानवजीवन के लिए परम आवश्यक पदार्थ है। जल के परंपरागत स्रोत हैं-कुआँ, तालाब, नदी तथा वर्षा का जल। औद्योगिक प्रगति के कारण उत्पन्न हानिकारक कचरा और रसायन बड़ी बेदर्दी से इन जल-स्रोतों को दूषित कर रहे हैं।
  2. वायु प्रदूषण-आज शुद्ध वायु मिलनी कठिन हो गया है। वाहनों, कारखानों और सड़ते हुए औद्योगिक कचरे ने वायु में भी जहर भर दिया है। घातक गैसों के रिसाव भी यदा-कदा प्रलय मचाते रहते हैं।
  3. ध्वनि प्रदूषण-आज मनुष्य को ध्वनि के प्रदूषण को भी भोगना पड़ रहा है। आकाश में वायुयानों की कानफोड़ ध्वनियाँ, धरती पर वाहनों, यंत्रों और ध्वनिविस्तारकों का शोर, सब मिलकर मनुष्य को बहरा बना देने पर तुले हुए हैं।

प्रदूषण रोकने के उपाय-प्रदूषण रोकने के लिए प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों को बस्तियों से सुरिक्षत दूरी पर ही स्थापित और स्थानांतरित किया जाना चाहिए। उद्योगों से निकलने वाले कचरे और दूषित जल को निष्क्रिय करने के उपरांत ही विसर्जित करने के कठोर आदेश होने चाहिए। वायु को प्रदूषित करने वाले वाहनों पर भी नियंत्रण आवश्यक है। इसके लिए वाहनों का अन्धाधुंध प्रयोग रोका जाय। रेडियो, टेपरिकार्डर तथा लाउडस्पीकरों को मंद ध्वनि से बजाय जाय।

उपसंहार-यदि प्रदूषण पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो आदमी शुद्ध जल, वायु, भोजन और शांत वातावरण के लिए तरस जायेगा। प्रशासन और जनता, दोनों के गंभीर प्रयासों से ही प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती

कंप्यूटर के चमत्कार

प्रस्तावना- वर्तमान युग विज्ञान का युग है। मानव के लिए आज के युग में विज्ञान की सर्वोत्तम देन ‘कंप्यूटर है। ‘कंप्यूटर’ अर्थात् संगणक यंत्र ने मनुष्य की कार्यक्षमता में सैकड़ों गुना वृद्धि कर दी है। यह हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है।

कंप्यूटर का विकास- फ्रांस के वैज्ञानिक ब्लेस पास्कल ने सत्रहवीं शताब्दी में सर्वप्रथम गणना-यंत्र के रूप में कंप्यूटर का निर्माण किया था। जर्मनी गणितज्ञ विलियम लाइबनिट्ज़ ने पास्कल के कंप्यूटर का परिष्कृत रूप निर्मित किया। इसके उपरान्त अमेरिकन वैज्ञानिक डॉ. हरमन हारलीक ने पंचकाई पर आधारित विशेष तकनीक से कंप्यूटर का निर्माण किया। नवीन स्वरूप के कंप्यूटरों में प्रथम पीढ़ी के कंप्यूटर का निर्माण सन् 1946 में अमेरिकी वैज्ञानिक जे. पी. एकर्ट एवं जे. डब्ल्यू. माशली ने किया। 1964 में तृतीय पीढ़ी के कंप्यूटर विकसित हुए। इसके बाद चौथी पीढ़ी के सर्वाधिक विकसित कंप्यूटर का उपयोग आज पूरे विश्व के सभी क्षेत्रों में हो रहा

कंप्यूटर की कार्यविधि- कंप्यूटर के चार प्रमुख बाह्य अंग- मॉनीटर, सी. पी. यू., की-बोर्ड एवं माउस होते हैं। कंप्यूटर से मुद्रित सामग्री प्राप्त करने के लिए उसके साथ प्रिंटर भी जोड़ा जाता है। कंप्यूटर के कार्य में विद्युत अवरोध न हो इसके लिए यू. पी. एस. लगाया जाता है।

विविध क्षेत्रों में कंप्यूटर का उपयोग- रेल, बस एवं वायुयान में आरक्षण के लिए कंप्यूटर की भूमिका सराहनीय है। बैंकों में सभी खाताधारियों के खातों का लेखा-जोखा कंप्यूटर के माध्यम से ही किया जाता है। ए.टी.एम. कार्ड का उपयोग कर किसी भी समय कहीं भी पैसा निकाला जा सकता है। संचार के क्षेत्र में कंप्यूटर ने ऐसा चमत्कार दिखाया हैं कि किसी भी प्रकार की सूचना मात्र एक बटन दबाकर प्राप्त की जा सकती हैं। विश्व के किसी भी स्थान पर मौजूद अपने मित्र अथवा संबंधी से साक्षात बात करना कंप्यूटर ने संभव कर दिया है। पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ एवं समाचार-पत्रों का प्रकाशन आज कंप्यूटर की सहायता से शीघ्र हो रहा है। विज्ञान के बहुत-से प्रयोगों एवं गणित की जटिल समस्याओं को कंप्यूटर पर आसानी से समझाया जा सकता है। चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत-से ऑपरेशन कंप्यूटर के माध्यम से किए जा रहे हैं। मशीनी उपकरणों में खराबी कंप्यूटर के माध्यम से ठीक की जा रही हैं। शक्तिशाली अस्त्र, शस्त्र, प्रक्षेपास्त्र एवं परमाणु अस्त्र भी कंप्यूटरीकृत हो रहे

उपसंहार- इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कंप्यूटर वास्तव में आधुनिक युग का क्राँतिदूत है। इसने वह चमत्कार कर दिखाया है जिसके कारण मानव जीवन सुख व आनंद से परिपूर्ण हो गया है। सुख एवं आनंद की लालसा में मनुष्य को इसके दुरुपयोग से भी बचने की आवश्यकता है।

होली

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. मनाने का कारण,
  3. मनाने का ढंग,
  4. अच्छाइयाँ,
  5. बुराइयाँ,
  6. उपसंहार।

प्रस्तावना- एक ही तरह का जीवन जीते-जीते व्यक्ति ऊब जाता है। इसके लिए समाज ने अनेक पर्यो, त्योहारों व मेलों की व्यवस्था की है। हमारे देश में सभी धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। सभी के अपने-अपने त्योहार हैं। हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में ‘होली’ का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

मनाने का कारण होली का त्योहार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। वसंत ऋतु के आगमन से चारों ओर वातावरण सुरम्य हो जाता है। खेतों में फसलें पकने के लिए तैयार हो जाती हैं। किसान फसलों को देखकर खुश हो उठता है, उसकी यही खुशी होली के त्योहार के रूप में फूट पड़ती है। यह भी कहा जाता है कि प्राचीनकाल में दैत्यराज हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद को ईश्वर का नाम लेने के कारण मारने के लिए उसकी बुआ होलिका को बुलाया। होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। वह प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई, भगवान की कृपा से प्रह्लाद तो बच गये, परंतु वह जल गई। इसी खुशी में प्रतिवर्ष होली मनायी जाती है।

मनाने का ढंग-होली का त्योहार क्षेत्रीय परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। गाँव, मुहल्लों में उपले, लकड़ियाँ एकत्र करके होली रखी जाती है। होली में शुभ-मुहूर्त में आग लगायी जाती है। सभी एक-दूसरे पर रंग, अबीर, गुलाल डालते हैं तथा आपस में गले मिलते हैं। होली में जौ एवं गेहूं की बालियाँ भूनकर खाते हैं तथा एक-दूसरे को प्रेम सहित भेंट करते हैं। पुराने गिले-शिकवे भूलकर सब एक-दूसरे से गले मिलते हैं।

अच्छाइयाँ-होली का त्योहार परस्पर प्रेम और सौहाई की भावना को बढ़ाता है। होली पर अमीर-गरीब का भेद मिट जाता है। सभी में नया उत्साह, नई उमंग, नया जोश दिखाई देता है। सब आपस में गले मिलते हैं।

बुराइयाँ-होली के त्योहार के साथ कुछ बुराइयाँ भी जुड़ी हुई हैं। इस दिन कई लोग शराब, भाँग आदि का सेवन करते हैं और नशे में एक-दूसरे से झगड़ा भी कर लेते हैं। रंग लगाने के बहाने कीचड़, कोलतार आदि भी डाल देते हैं जिससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।

उपसंहार-होली के त्योहार के साथ जुड़ी ये थोड़ी-सी बुराइयाँ यदि दूर हो जाएँ तो इससे अच्छा और कोई त्योहार नहीं है। होली पाप पर पुण्य की विजय का त्योहार है। यह मेल-मिलाप एवं आपसी भाई-चारे की भावना को विकसित करता है। आपस के भेद-भाव भुलाकर हम सबको होली का त्योहार मनाना चाहिए।

दीपावली

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. मनाने का कारण,
  3. मनाने का ढंग,
  4. महत्त्व,
  5. कुरीतियाँ,
  6. उपसंहार

प्रस्तावना-भारत त्योहारों का देश है। दीपावली हिंदुओं का सबसे महत्त्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। मनाने का कारण दीपावली के समय पर हमारे यहाँ खरीफ की फसल अधिकतर तैयार हो जाती है, अतः पूर्वजों ने देवताओं को नया अन्न भेंट करने के लिए उत्सव मनाने का प्रचलन किया था। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास के बाद इसी दिन अयोध्या लौटे थे। अतः अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में दीप जलाकर यह उत्सव मनाया था।

मनाने के ढंग-दीपावली का उत्सव कई दिन चलता है, अथति कृष्ण पक्ष की तेरस से शुक्ल पक्ष की दौज तक। धनतेरस के दिन दीपक जलाकर सब लोग अपने द्वार पर रखते हैं। बर्तन खरीदना इस दिन शुभ समझा जाता है। दूसरे दिन को छोटी दीपावली कहते हैं। तीसरे दिन लक्ष्मीजी का पूजन होता है। लोग घरों, दुकानों और कार्यालयों को दीपकों और रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों की मालाओं से सजाते हैं। लोगों का ऐसा विश्वास है कि दीपावली के दिन लक्ष्मीजी प्रत्येक घर में आती हैं और जिस घर की स्वच्छता व सुंदरता से प्रसन्न हो जाती हैं, उस घर को अपने निवास के लिए चुन लेती हैं। इस दिन सब लोग नवीन वस्त्र धारण करते हैं तथा अपने इष्ट-मित्रों को मिठाइयाँ देते हैं। चौथे दिन ‘गोवर्धन-पूजा होती है। पाँच दिन ‘मैयादूज’या ‘यम द्वितीया’ कहलाता है।

महत्व-दीपावली पर घरों में सफाई, लिपाई ६ पुताई हो जाती है। दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और बीमारी फैलाने वाले मच्छर व कीड़े-मकोड़े मर जाते हैं।

कुरीतियाँ-कुछ कुरीतियों ने दीपावली के स्वरूप को बिगाड़ दिया है। कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते हैं और हजारों रुपये हार जाते हैं। लाखों रुपयों के पाखे जला दिये जाते हैं। इससे कभी-कभी भयंकर दुर्घटनाएँ भी हो जाती हैं।

उपसंहार-दीपावली हिंदुओं का पवित्र एवं महत्त्वपूर्ण त्योहार है। यह हमें प्रसन्नता का संदेश देता है।

गणतंत्र-दिवस

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. मनाने का कारण,
  3. मनाने का ढंग,
  4. उपसंहार।

प्रस्तावना-हमारे राष्ट्रीय पर्यों में स्वतंत्रता दिवस’ एवं गणतंत्र दिवस प्रमुख हैं। ‘गणतंत्र’ का अभिप्राय है- गण = समूह, तंत्र = व्यवस्था, अर्थात् समूह द्वारा शासन को संचालित करने की व्यवस्था। सन् 1947 ई. में अंग्रेजी शासन से स्वतंत्र होने के बाद 26 जनवरी, 1950 से देश में गणतंत्रात्मक पद्धति से शासन का संचालन आरम्भ किया गया।

मनाने का कारण- देश के शासन को चलाने के लिए एक संविधान बनाया गया, यह संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। हमारा देश उसी दिन से गणतंत्र राष्ट्र बन गया। इसी खुशी की अभिव्यक्ति के लिए पूरा राष्ट्र 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में धूमधाम के साथ मनाता है।

मनाने का ढंग-गणतंत्र दिवस का समारोह पूरे देश में अत्यंत उल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत की राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस विशेष रूप से मनाया जाता है। महीनों पहले से गणतंत्र दिवस की तैयारियाँ चलती रहती हैं। गणतंत्र दिवस पर दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। विदेशों से अनेक सम्मानित अतिथि गणतंत्र दिवस समारोह देखने के लिए दिल्ली आते हैं। इस दिन प्रात: 8 बजे के बाद इंडिया गेट के पास सेना के तीनों अंगों द्वारा महामहिम राष्ट्रपति को सलामी दी जाती है। राष्ट्रपति ध्वजारोहण करते हैं। उसी समय तो चलाई जाती हैं। अनेक रंगारंग कार्यक्रम आयोजित होते हैं। देश की प्रगति दिखाने के लिए देश के प्रत्येक राज्य की भव्य झाँकियाँ निकाली जाती हैं। देश की राजधानी दिल्ली के साथ-साथ प्रदेशों की राजधानियों में भी भव्य समारोह होते हैं। स्कूल-कालेजों में अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।

उपसंहार-गणतंत्र दिवस के साथ हमारी भावनाएँ जुड़ी हैं। हम इस दिन आजादी की रक्षा का संकल्प लेते हैं। तथा स्वतंत्रता प्राप्त करने में जिन वीरों ने अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था उन्हें याद करके स्वयं को गौरवान्वित करते हैं।

स्वतंत्रता दिवस समारोह

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. मनाने का कारण,
  3. विभिन्न कार्यक्रम,
  4. उपसंहार

प्रस्तावना-अपने देश की स्वतंत्रता पर गर्व करना किसी भी देश के लिए गौरव की बात है। स्वतंत्रता प्राप्त करने में लाखों वीर बलिदान हो जाते हैं। यदि कोई देश स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद अपने बलिदानों को भुला देता है तो वह देश बहुत समय तक स्वतंत्र नहीं रह पाता, वह पुन: गुलाम हो जाता है। शहीदों की स्मृति को बनाए रखने एवं स्वतंत्रता पर गर्व करने के लिए स्वतंत्रता-दिवस समारोह हमारे देश में प्रतिवर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता

मनाने का कारण-हमारा देश सदियों की परतंत्रता के उपरांत पंद्रह अगस्त सन् उन्नीस सौ पैंतालीस को स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता की रक्षा करना अब हमारा प्रथम और पुनीत कर्तव्य है। इसकी याद दिलाने के लिए प्रतिवर्ष पंद्रह अगस्त को स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन किया जाता है। इस दिन बलिदानी स्वतंत्रता-सेनानियों को श्रद्धा के साथ याद किया जाता है। स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए हम सब भारतवासी राष्ट्रध्वज के नीचे संकल्प लेते हैं और देशप्रेम प्रतिज्ञा करते हैं।

विभिन्न कार्यक्रम स्वतंत्रता-दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व हैं। इस पावन पर्व को सरकार एवं जनता, दोनों धूमधाम से मनाते हैं। दिल्ली के लाल किले पर प्रधानमंत्री राष्ट्रध्वज फहराते हैं तथा सैनिक सलामी देते हैं। सरकारी भवनों, कार्यालयों, विद्यालयों, संस्थाओं में राष्ट्रध्वज फहराए जाते हैं तथा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। संसद भवन, विधानसभाओं एवं सरकारी भवनों पर रंग-बिरंगी रोशनी की जाती हैं। देश के सभी नगरों में तथा गाँव-गाँव में स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाया जाता हैं।

उपसंहार स्वतंत्रता दिवस पर हम स्वतंत्रता की रक्षा करने एवं देशप्रेम की प्रतिज्ञा तो करते हैं, परंतु अपनी प्रतिज्ञा पर हम दृढ़ नहीं रह पाते। स्वार्थ के मोह में हम अपना कर्तव्य और देशप्रेम भूलते जा रहे हैं। हमें यह प्रतिज्ञा हृदय से और सच्चे मन से लेनी होगी, तभी स्वतंत्रता दिवस समारोह के आयोजन का उद्देश्य पूरा हो सकेगा।

विद्यालय का वार्षिकोत्सव

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. उत्सव की घोषणा,
  3. उत्सव की तैयारियाँ,
  4. उत्सव का आयोजन,
  5. उपसंहारे।

प्रस्तावना- विद्यालयों में कला, संगीत, खेल-कूद, संभाषण आदि विषयक विभिन्न प्रतियोगिताएँ पूरे वर्ष चलती रहती हैं। इन प्रतियोगिताओं में चुने गए छात्र छात्राओं को पुरस्कृत करने एवं छात्र-छात्राओं में सामाजिकता के गुणों का विकास करने के उद्देश्य से विद्यालयों में वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। हमारे विद्यालय में प्रतिवर्ष जनवरी माह में वार्षिकोत्सव मनाया जाता हैं, जिसमें विद्यालय के समस्त छात्र-छात्राएँ तथा शिक्षक किसी-न-किसी रूप में भाग लेते हैं।

उत्सव की घोषणा-दस दिसंबर को प्रार्थनासभा में प्रधानाध्यापक जी ने घोषणा की कि वार्षिक उत्सव 23 जनवरी को मनाया जाएगा। घोषणा सुनकर सभी के चेहरों पर प्रसन्नता झलक उठी। छात्र-छात्राओं ने तालियाँ बजाकर घोषणा का स्वागत किया। इसी दिन प्रधानाध्यापक
जी के कक्ष में एक बैठक बुलाई गई, जिसमें सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं के अतिरिक्त कुछ छात्र-छात्राओं को भी बुलाया गया। सभी को वार्षिक उत्सव संबंधी कुछ-न-कुछ कार्य सोंपे गये

उत्सव की तैयारियाँ वार्षिक उत्सव की तैयारियाँ प्रारंभ हो गईं। विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के निर्देशक शिक्षकशिक्षिकाओं ने छात्रों का चयन करके उनकी तैयारी प्रारंभ कर दी। समूह-नृत्य, समूह-गान, सरस्वती वंदना, कव्वाली, नाटक, संस्कृत-नाटिका, विचित्र वेशभूषा आदि कार्यक्रमों के लिए छात्रों ने तैयारी की।

उत्सव का आयोजन-विद्यालय प्रांगण में ही भव्य पंडाल लगाया गया एवं मंच बनाया गया। उत्सव का समय सायं 4 बजे रखा गया। मुख्य अतिथि जिलाधीश महोदय थे। मुख्य द्वार पर प्रधानाध्यापक एवं स्वागत समिति के कुछ शिक्षक एवं छात्र-छात्राएँ स्वागत के लिए उपस्थित थे। ठीक चार बजे मुख्य अतिथि का आगमन हुआ। मुख्य अतिथि के मंच पर आते ही कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित करके किया गया। छात्र-छात्राओं ने एक-से-एक अच्छे सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। प्रधानाध्यापक जी ने विद्यालय की वार्षिक रिपोर्ट पढी। मुख्य अतिथि जी ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में चुने गए छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत किया तथा अपना संक्षिप्त भाषण भी दिया। कार्यक्रम का संचालन कक्षा आठ के छात्र राजेश ने किया। कार्यक्रम का समापन राजस्थान के प्रसिद्ध लोकनृत्य ‘घूमर’ से हुआ।

उपसंहार सभी शिक्षक एवं छात्र-छात्राएँ कार्यक्रम की सफलता से प्रसन्न थे। सभी ने एक-दूसरे को बधाई दी। विद्यालय के वार्षिकोत्सव में सभी का पूरा सहयोग रहा। विद्यालय के वार्षिक उत्सव की स्मृति मेरे मन में ऐसी बसी है, जिसे मैं भुलाने पर भी नहीं भूल सर्केगा।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी।

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. जन्म एवं शिक्षा,
  3. सत्याग्रह का आरंभ,
  4. स्वतंत्रता-संग्राम का नेतृत्व,
  5. जीवन का अंत,
  6. उपसंहार।

प्रस्तावना हमारे देश में समय-समय पर अनेक महापुरुषों का जन्म होता रहा हैं। अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाने वाले महापुरुषों में महात्मा गांधी का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है।

जन्म एवं शिक्षा-गांधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 ई. को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। तेरह वर्ष की अल्पायु में ही उनके पिता करमचंद गांधी ने उनका विवाह कस्तूरबा के साथ कर दिया। उन्नीस वर्ष की अवस्था में वे बैरिस्टरी शिक्षा के लिए विलायत गये तथा सन् 1891 में बैरिस्टरी की परीक्षा पास करके भारत लौट आए।

सत्याग्रह का आरंभ-विदेश से वापस आकर गांधीजी पोरबंदर की एक फर्म के एक मुकदमे की पैरवी करने 1893 ई. में दक्षिण अफ्रीका गए। वहाँ गोरे शासकों द्वारा काले लोगों पर किए जा रहे अत्याचारों को देखकर उनका मन दु:खी हो गया। उन्होंने काले-गोरे का भेदभाव मिटाने के लिए सत्याग्रह किया। अंत में गांधीजी के सत्याग्रह के सामने गोरी सरकार को झुकना पड़ा और गांधीजी की जीत हुई।

स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व-भारत आते ही स्वतंत्रता आंदोलन की बागडोर गांधीजी के हाथों में आ गई। उन्होंने भारतीयों को अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित किया। उन्होंने अहिंसा और असहयोग का सहारा लिया। वे अनेक बार जेल गए। उन्होंने 1920 में असहयोग आंदोलन, 1930 में नमक सत्याग्रह, 1942 में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ के माध्यम से संघर्ष जारी रखा। परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतंत्र हो गया। जीवन का अंत-देश के स्वतंत्र हो जाने पर गांधीजी ने कोई पद स्वीकार नहीं किया। गांधीजी पक्के वैष्णव थे। वे नियमित प्रार्थना सभा में जाते थे। 30 जनवरी, 1948 ई. की संध्या को प्रार्थना सभा में एक हत्यारे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। पूरा देश दुःख और ग्लानि से भर उठा।

उपसंहार-महात्मा गांधी को भारतवर्ष ही नहीं, पूरा विश्व आदर के साथ याद करता है। वे मानवता, सत्य एवं अहिंसा के पुजारी थे। सत्य और अहिंसा का पालन करते हुए राष्ट्र-सेवा में लग जाना ही गांधीजी के प्रति हम सबकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

हमारा विद्यालय

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. विद्यालय भवन,
  3. योग्य शिक्षक,
  4. उपसंहार।

प्रस्तावना-विद्यालय वह पवित्र स्थल है, जहाँ देश के भविष्य का निर्माण होता है। जिस स्थान पर विद्यार्थी विद्याध्ययन के लिए आते हैं, वह स्थान ही विद्यालय कहलाता है। विद्यालय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-विद्या + आलय अर्थात् विद्या का घर। विद्यालय में गुरु एवं शिष्य के संबंध अत्यंत मधुर होते हैं। मुझे अपने विद्यालय पर गर्व है। मैं जिस विद्यालय में पढ़ता हैं, उसका नाम ‘मर्यादा विद्या मन्दिर’ है।

विद्यालय भवन-हमारे विद्यालय का भवन अत्यंत सुंदर एवं विशाल है। इसमें बीस कमरे हैं। प्रत्येक कमरा हवादार एवं प्रकाश युक्त है। पुस्तकालय कक्ष, विज्ञान प्रयोगशाला, खेल-कूद का कक्ष, स्काउट कक्ष एवं एक बड़ा सभा-कक्ष भी हमारे विद्यालय में है। शिक्षकों के बैठने के लिए शिक्षक-कक्ष है 1 प्रधानाचार्य का कक्ष मुख्यद्वार के पास ही है। प्रत्येक छात्र के बैठने के लिए अलग-अलग कस-मेज की व्यवस्था है।

योग्य शिक्षक-हमारे विद्यालय में चालीस शिक्षक। सभी शिक्षक अपने-अपने विषय के विद्वान हैं। छात्रों के साथ शिक्षक बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं। कक्षा में शिक्षक इतनी अच्छी तरह से समझाकर पढ़ाते हैं कि छात्रों को सब कुछ समझ में आ जाता है। शिक्षक अपने साथ शिक्षण से संबधित सहायक सामग्री भी लाते हैं जिससे हम सब छात्र अत्यंत रुचि के साथ पढ़ते हैं। हमारे विद्यालय के प्रधानाचार्य जी अत्यन्त कुशल व अनुशासन प्रिय प्रशासक हैं। उनका व्यवहार शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के साथ बहुत अच्छा रहता है।

उपसंहार-विद्यालय, व्यावहारिक नियमों की शिक्षा देते हैं। यहाँ हमें मिलकर रहना सिखाया जाता है। माता-पिता, गुरुजनों का आदर करना हमें यहीं सीखने को मिलता है। देश के प्रति प्रेम रखना तथा राष्ट्रीय एकता की बातें विद्यालय में सिखाई जाती हैं। अपना विद्यालय मुझे कितना पसंद है ! इसे शब्दों में व्यक्त कर पाना कठिन है। विद्यालय मेरा पूजाघर है, मैं इसकी वन्दना करता हूँ और नित्यप्रति इसे शीश झुकाकर नमन करता हूँ।

मेरे प्रिय शिक्षक

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. मेरे प्रिय शिक्षक की विशेषताएँ,
  3. उपसंहार

प्रस्तावना-हमारे देश में शिक्षकों का सदैव से सम्मान होता रहा है। प्राचीनकाल में शिक्षा आश्रमों में दी जाती थी। आश्रमों में गुरुओं का बहुत आदर व मान होता था। राजा भी गुरु का सम्मान करता था। गुरु को गोविंद से भी ऊंचा माना गया है। संत कबीर ने कहा है|

गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लार्गे पाँय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोविंद दियो मिलाये॥

मेरे प्रिय शिक्षक की विशेषताएँ-मेरे प्रिय शिक्षक आनंद मोहन जी हैं। वे हिदी विषय के विद्वान हैं। उन्होंने एम.ए., एम.एड. किया है। लगभग 35 वर्ष की अवस्था वाले तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी मेरे शिक्षक महोदय की अनेक विशेषताएँ हैं। वे छात्रों से स्नेहपूर्ण व्यवहार करते हैं।

मेरे प्रिय शिक्षक की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि वे प्रत्येक छात्र को समान समझते हैं। कक्षा में उनके दुवारा ‘ पढ़ाया हुआ पाठ सहज ही समझ में आ जाता है। वे किसी को पीटते नहीं हैं। शरारत करने पर वे समझाते हैं। वे हमारे साथ खेलते भी हैं। सभी छात्रों को वे पूरा ध्यान रखते हैं। कक्षा का प्रत्येक छात्र उनका सम्मान करता है। विद्यालय के प्रधानाचार्य जी भी उनका आदर करते हैं। यही सब कारण हैं कि मेरे प्रिय शिक्षक का सभी मन से सम्मान करते हैं।

उपसंहार-मेरे प्रिय शिक्षक योग्य, कर्मठ, परिश्रमी एवं- व्यवहारकुशल हैं। वे अनुशासनप्रिय हैं। वे पूरे विद्यालय में ही नहीं, बल्कि हमारे नगर में भी लोकप्रिय हैं। मेरी आकांक्षा है कि वे हमें अगली कक्षाओं में भी पढ़ाते रहें।

मेले का वर्णन
अथवा
राजस्थान का प्रसिद्ध मेला

गणगौर

  1. प्रस्तावना,
  2. मेले का कारण,
  3. मेले का स्थान और समय,
  4. मेले का दृश्य,
  5. उपसंहार

प्रस्तावना-राजस्थान लोक-परंपराओं एवं लोक-संस्कृति को जीवंत बनाए रखने में अग्रणी रहा है। यहाँ पूरे वर्ष अनेक उत्सव व त्योहार मनाये जाते हैं। इसीलिए कहा जाता है

म्हारो रंग रंगीलो राजस्थान”।
राजस्थान में अनेक मेले लगते हैं। इन मेलों में गणगौर के मेले का महत्वपूर्ण स्थान है। इस मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं।

मेले का कारण प्रत्येक मेले के पीछे कोई-न-कोई लोककथा रहती है। पार्वती (गौरी) ने शिव को पति रूप में पाने के लिए व्रत रखा था। इस मेले का सूत्र इसी पौराणिक लोककथा से जुड़ा है। गौरी की मिट्टी की प्रतिमाएँ बनाकर घर में रखी जाती हैं तथा सोलह दिन तक उन प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है। इन प्रतिमाओं का विसर्जन करना ही गणगौर मेले का उद्देश्य है।

मेले का स्थान और समय-गणगौर का प्रसिद्ध मेला जयपुर में लगता है। यह मेला राजस्थान का प्रसिद्ध मेला है। यह मेला प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तीज और चौथ को जयपुर के मुख्य मार्ग त्रिपोलिया बाजार, गणगौरी बाजार और चौगान में धूमधाम के साथ लगता है।

मेले का दृश्य-जयपुर के गणगौर मेले को देखने के लिए देश-विदेश से दर्शक आते हैं। राजस्थान के विभिन्न गाँवों से आने वाले लोग रंग-बिरंगी पोशाकें पहने हुए मेले में सम्मिलित होते हैं। स्त्रियों की येलियाँ लोकगीत गाते हुए चलती हैं। संध्या को निश्चित समय पर जयपुर के त्रिपोलिया दरवाजे से गणगौर की सवारी धूमधाम से निकलती है। सवारी में आगे-आगे हाथी, ऊँट, रथ होते हैं। उनके पीछे पुलिस एवं बैंड चलते हैं। गणगौर की सवारी सुंदर पालकी में चलती है। मेले का यह जुलूस त्रिपोलिया बाजार से छोटी चौपड़ होता हुआ गणगौरी दरवाजे तक जाता है। यहाँ अनेक प्रकार के मनोरंजन के साधन तथा खाने-पीने के सामान के स्टॉल होते हैं। मेले में भीड़ का समुद्र-सा उमड़ पड़ता है।

उपसंहार-मेलों के आयोजन से हमारी सांस्कृतिक परंपराएँ जीवित रहती हैं। इनसे हमें अपनी संस्कृति एवं लोक-परंपराओं की जानकारी होती है। मेलों में विभिन्न समाजों के लोग आपस में मिलते हैं। यद्यपि आधुनिकता के प्रभाव से मेलों में कुछ बुराइयाँ भी देखने को मिलती हैं, फिर भी मेलों का आयोजन सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, व्यापारिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण

विज्ञान के प्रभाव

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. विज्ञान और उसके चमत्कार,
  3. उपसंहार।

प्रस्तावना-आज हमारा जीवन कितना सुखी है। हमारे कमरे जाड़े में गरम और गर्मी में ठंडे रहते हैं। पलक झपकते ही हमें हजारों मील दूर के समाचार घर बैठे मिल जाते हैं। हमारी रातें अब दिन जैसी जगमगाती हैं हमारे घर के भीतर ही रेडियो और टेलीविजन हमारा मन बहलाते हैं। यह सब किसकी देन है ? एकमात्र उत्तर है-विज्ञान की

विज्ञान और उसके चमत्कार-आज मनुष्य विज्ञान के बल | पर संपूर्ण प्रकृति का स्वामी बन गया है। उसने और उसके विज्ञान ने जीवन के हर क्षेत्र में चमत्कार कर दिखाया है।

  1. ज्ञान एवं शिक्षा के क्षेत्र में हमारी पुस्तके, कापियाँ और लेखन-सामग्री मशीनों से तैयार होती हैं। अब तो आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा भी शिक्षा दी जा रही है।
  2. कृषि और उद्योग के क्षेत्र में आजकल विज्ञान ने हमारी कृषि की उपज कई गुनी बढ़ा दी है। अच्छे बीजों, रासायनिक खादों और कृषि यंत्रों की सहायता से अब खेती सरल भी हो गयी है और लाभदायक भी। आजकल हमारे सभी उद्योग मशीनों पर आधारित हैं। कहीं-कहीं तो सारा काम मशीनें ही करने लगी हैं, मनुष्य केवल उनके संचालन का काम देखते हैं।
  3. यातायात व संचार के क्षेत्र में विज्ञान ने यात्रा जैसे कठिन काम को भी आसान कर दिया है। रेलगाड़ी अथवा वायुयान द्वारा लंबी-लंबी दूरियाँ भी थोड़ी-सी देर में तय की जा सकती हैं। टेलीफोन तथा ई-मेल द्वारा समाचार भेजना अब अति सरल हो गया है। रेडियो अथवा दूरदर्शन के माध्यम से हम देश-विदेश के समाचार क्षण-मात्र में जान लेते हैं।
  4. मनोरंजन के क्षेत्र में विज्ञान हमारा मन बहलाने में भी पीछे नहीं है। रेडियो, टेप रिकार्डर, टेलीविजन आदि अनेक साधनों से वह हमारा मनोरंजन करता है।
  5. चिकित्सा के क्षेत्र में आज रोगी के शरीर का भीतरी हाल जानने के लिए एक्स-रे से भी अच्छी मशीनें हमें प्राप्त हैं। हर बीमारी की अच्छी से अच्छी दवा की खोज की जा रही है। ऑपरेशन द्वारा शरीर के अंगों को भी बदला जा सकता है। लेजर किरणों से बिना चीर-फाड़ के भी ऑपरेशन होने लगे हैं।
  6. युद्ध के क्षेत्र में आज हम राडार की सहायता से शत्रु के हवाई आक्रमण की जानकारी पहले से कर सकते हैं। निकट भविष्य में सैनिकों के स्थान पर रोबोट द्वारा युद्ध लड़े जाने की संभावना को साकार करने में वैज्ञानिक लगे हुए हैं। उपसंहार-विज्ञान एक सेवक के समान हमारे काम करता है और हमें आराम देता है। वह हमें किसी भी ऋतु में कष्ट नहीं होने देता किंतु कभी-कभी युद्ध के रूप में वह विनाश भी लाता है। इसलिए हमें विज्ञान का प्रयोग सोच-समझकर ही करना चाहिए।

समाचार-पत्र

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. समाचार-पत्रों की आवश्यकता,
  3. समाचार पत्रों का दायित्व,
  4. समाचार पत्रों का रूप,
  5. उपसंहार।

प्रस्तावना-प्रात:काल उठते ही मनुष्य चाहता है कि सबसे पहले वह अखबार पढे। समाचार पत्र आज हमारी दिनचर्या का अंग बन चुका है। कुछ लोगों के लिए तो अखबार एक नशे की तरह है। जब तक अखबार नहीं पढ़ लिया जाता है तब तक चैन ही नहीं पड़ता।

समाचार-पत्रों की आवश्यकता-आज समाज और जीवन का हर क्षेत्र समाचार-पत्र में सम्मिलित है। समाचार-पत्रों के माध्यम से हम घर बैठे देश-विदेश के समाचार प्राप्त करते हैं।

समाचार-पत्र जन-चेतना का भी कार्य करते समाचार-पत्रों का दायित्व-आज समाज में समाचार-पत्रों का दायित्व बहुत बढ़ गया है। केवल समाचार देना ही समाचार-पत्रों का काम नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा का भार भी इन पर आ गया है। अत: राष्ट्रीय चेतना बनाये रखना तथा देश की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक स्थिति को सही रूप में जनता के सामने रखना भी इनका दायित्व है।

समाचार-पत्रों का रूप-आज दैनिक समाचार-पत्रों के अतिरिक्त साप्ताहिक व पाक्षिक पत्र भी प्रकाशित हो रहे हैं। हिंदी के राजस्थान पत्रिका दैनिक भास्कर, जनसत्ता, नई दुनिया आदि प्रमुख समाचार-पत्र हैं।

उपसंहार-समाचार-पत्रों को निष्पक्ष और जनहित का ध्यान रखने वाला होना चाहिए। समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता की रक्षा करना इस दृष्टि से आवश्यक है। उन पर राजनैतिक अथवा अन्य किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए’। शोषित, पीड़ित व अन्यायग्रस्त मानवता की आवाज बनना समाचार-पत्रों का दायित्व है। अतः समाचार-पत्रों को सदैव अपने दायित्व का निर्वाह करना। चाहिए।

यदि मैं प्रधानाचार्य होता,

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. प्रधानाचार्य का पद,
  3. प्रधानाचार्य के रूप में कार्य,
  4. उपसंहार

प्रस्तावना विद्यालय शिक्षा का केंद्र है। यदि विद्यालय में पठन-पाठन का वातावरण ठीक नहीं है, तो निश्चय ही वहाँ के शिक्षक शिक्षण-कार्य को प्रभावशाली ढंग से नहीं कर पाएँगे। विद्यालयों में शिक्षण का स्तर गिर रहा है।

प्रधानाचार्य का पद-प्रधानाचार्य का पद विद्यालय में सबसे महत्त्वपूर्ण एवं उत्तरदायित्वपूर्ण होता है। प्रधानाचार्य ही शिक्षण एवं पाठ्य-सहगामी क्रियाओं की योजना बनाता है। विद्यालय को सफलता के साथ संचालित करना प्रधानाचार्य का दायित्व है।

प्रधानाचार्य के रूप में कार्य-यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो अपने कर्तव्यों का निष्ठा के साथ पालन करता और अपने विद्यालय में निम्नलिखित सुधार करने का प्रयास करता

  1. अनुशासन-सबसे पहले मैं अनुशासन पर ध्यान देता। छात्रों के साथ शिक्षकों एवं कर्मचारियों को ठीक समय पर विद्यालय आने के लिए कहता। मैं स्वयं अनुशासित रहता तथा सभी के लिए आदर्श प्रस्तुत करता
  2. समय-पालन- मैं समय-पालन पर अधिक जोर देता। ठीक समय पर विद्यार्थियों एवं शिक्षकों का आना-जाना सुनिश्चित करता, शिक्षा के स्तर में सुधार करता।
  3. पढ़ाई पर जोर में विद्यार्थियों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान देता। शिक्षकों के पढ़ने के लिए ज्ञानवर्धक पुस्तके एवं पत्रिकाएँ मँगाता तथा उन्हें पढ़ने के लिए देता। शिक्षकों से कहता कि वे पूरी तैयारी करके ही कक्षा में पढाने जाएँ। मैं स्वयं भी पढ़ाता। समय-समय पर छात्रों के अभिभावकों से भी मिलता।
  4. खेलकुद व अन्य क्रिया-कलापों पर जोर- मैं विद्यालय में खेलकूद, स्काउटिंग, एन. सी. सी., रेडक्रास एवं उत्सवों आदि को संचालित करता। समय-समय पर महापुरुषों के जीवन पर गोष्ठियाँ करवाता। बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए मैं यथासंभव सभी प्रयास करता।

उपसंहार-विद्यालय का प्रधानाचार्य यदि कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ व्यवहारकुशल भी हो, तो विद्यालय में शिक्षा का स्तर ऊँचा रहेगा। अच्छा प्रधानाचार्य विद्यालय को आदर्श विद्यालय बना देता है। यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो शैक्षणिक स्तर में सुधार करता तथा विद्यालय में शैक्षिक वातावरण का निर्माण करता।

रक्षा-बंधन

प्रस्तावना- हिन्दू-त्योहारों में दो त्योहार ऐसे हैं जो भाई-बहिन के पवित्र प्रेम पर आधारित हैं। ये त्योहार हैं- भैया-दौज तथा रक्षा-बंधन। रक्षा बंधन का त्योहार वर्षा ऋतु में श्रावण-मास की पूर्णिमा को होता है। इसलिए इसे श्रावणी पर्व भी कहते हैं। उस समय आकाश में काली घटाएँ छायी रहती हैं। धरती हरियाली की चादर ओढ़ लेती है। सभी छोटे-बड़े नदी-तालाब पानी से भर जाते हैं।

मनाने का कारण- रक्षाबंधन को मनाने के पीछे अनेक कारण हैं। पौराणिक आधार पर कहा जाता है कि देवताओं तथा राक्षसों के युद्ध में देवताओं की जीत के लिए इंद्राणी ने एक ब्राह्मण के हाथ से आवण की पूर्णिमा को रक्षा-सुत्र बँधवाया था जिसके परिणामस्वरूप देवताओं की जीत हुई। तभी से इस परंपरा ने सामाजिक त्योहार का रूप ले लिया। इसमें बहिनें भाइयों को राखी बाँधती हैं, मिठाई खिलाती हैं और अपनी रक्षा की कामना करती हैं। भाई इसके बदले में उन्हें उपहार देते हैं।

महत्त्व- रक्षा बंधन एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है। यह भाई-बहिन के पवित्र प्रेम पर आधारित है। राखी के चार कोमल धागे प्रेम का अटूट बंधन बन जाते हैं। राखी में प्रेम का वह अमृत भरा हुआ है, जो सारे आपसी बैर-विरोधों को भुला देता है। राखी के बहाने दूर-दूर रहने वाले भाई बहिन वर्ष में एक बार मिल लेते हैं।

हमारे इतिहास में अनेक ऐसे उदाहरण हैं जबकि राखी की पवित्रता की रक्षा भाइयों ने अपने जीवन का मूल्य देकर की है। विधर्मी और विदेशी लोगों ने भी राखी के महत्व को स्वीकार किया है। एक बार रानी कर्मवती ने मुगल सम्राट् हुमायूँ को राखी भेजकर युद्ध में सहायता माँगी। कर्मवती के पति से उसके पिता की शत्रुता रही थी। किंतु राखी पाते ही वह सब कुछ भूलकर सहायता देने को तैयार हो गया।

वर्तमान स्थिति- अब धीरे-धीरे रक्षा-बंधन का वास्तविक आनंद कम होता जा रहा है। राखियों में चमक-दमक तो पहले से अधिक बढ़ गयी है किंतु उनके पीछे छिपी हुई भावना समाप्त होती जा रही है। कुछ बहिनें अब केवल डाक से राखी भेजकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेती हैं।

उपसंहार- यह त्योहार हमें अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा करने की शिक्षा देता है। यह बहिन और भाई को सदा के लिए प्रेम के धागे में बाँधे रखता है।

मेरा प्रिय खेल या फुटबॉल मैच

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. मैच का आरंभ,
  3. मध्यावकाश से पूर्व,
  4. मध्यावकाश,
  5. मध्यावकाश के बाद,
  6. मैच का परिणाम,
  7. उपसंहाः

प्रस्तावना- हमारे देश में अनेक तरह के खेल खेले जाते हैं, जिनमें बॉलीबाल, क्रिकेट, टेनिस, फुटबॉल आदि अधिक लोकप्रिय हैं। मुझे फुटबॉल सबसे अधिक प्रिय लगता है। मैं अपने विद्यालय की फुटबॉल टीम का कप्तान भी हैं। विगत रविवार को हमारे विद्यालय तथा राजकीय विद्यालय की फुटबॉल टीमों के मध्य एक मैत्री-मैच हुआ।

मैच का आरम्भ- निश्चित समय पर राजकीय विद्यालय और हमारे विद्यालय की टीमें मैदान पर पहुँचीं। रेफरी ने सीटी बजायी। उसको सुनते ही दोनों टीमों के खिलाड़ियों ने मैदान में प्रवेश किया। टॉस किया गया और खिलाड़ियों ने अपना-अपना स्थान लिया। सेंटर फारवर्ड होने के कारण मैंने ही मैच आरंभ किया।

मध्यावकाश से पूर्व- दोनों टीमें बराबर की टक्कर की थीं। गेंद इधर-उधर ठोकरें खाने लगी। दर्शकगण दोनों टीमों को प्रोत्साहित कर रहे थे। मैं दो बार फुटबॉल को लेकर लाइन तक पहुँचा किंतु एक बार ही गोल करने में सफल हो सका। इतने में पंद्रह मिनट का मध्यावकाश हो गया।

मप्यावकाश-मध्यावकाश में सभी खिलाड़ियों को अल्पाहार दिया गया। अनेक लोगों ने खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया। दोनों टीमों ने आगे की रणनीति बनायीं।

मध्यावकाश के बाद- मध्यावकाश के बाद खेल आरंभ हुआ। विरोधी खिलाड़ियों ने मुझे इस तरह से घेर लिया था कि फुटबॉल को लेकर आगे बढ़ना मेरे लिए असंभव-सा हो गया। समय बीतता गया और अंत में मैं दूसरा गोल करने में सफल रहा। दूसरी टीम एक भी गोल न कर पायी।

मैच का परिणाम- इस प्रकार विजय हमारी हुई। पूरे वातावरण में हर्ष की लहर दौड़ गयी। मेरे साथियों ने मुझे बधाई दी। इस जीत से मेरे अंदर एक नया उत्साह जाग्रत हुआ।

उपसंहार- फुटबॉल एक भाग-दौड़ का खेल है। इससे शरीर का प्रत्येक अंग सक्रिय हो जाता है। स्वास्थ्य के लिए यह ले बहुत ही उपयोगी है। खेल सदैव खेल की भावना से ही खेलना चाहिए तथा हार जीत की कुछ भी चिंता नहीं करनी चाहिए।

गाय

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. शरीर की बनावट,
  3. भोजन,
  4. उपयोगिता एवं महत्व,
  5. उपसंहार

प्रस्तावना-गाय संसार के सभी देशों में पायी जाती हैं। हमारे देश के लिए यह केवल एक उपयोगी जानवर ही नहीं, अपितु पूज्य प्राणी भी है। हिंदू उसे गो-माता कहकर पुकारते हैं।

शरीर की बनावट-अन्य पशुओं की भाँति इसके भी चार पैर, एक पूँछ, दो सींग, दो छोटी आँखें और दो लंबे कान होते हैं। पैरों के खुर बीच में चिरे हुए होते हैं। दाँत केवल नीचे के जबड़े में होते हैं। इसके चार थन होते हैं। गाय विभिन्न रंगों की पायी जाती हैं- सफेद, काली, लाल, नीली आदि।

भोजन-गाय का भोजन हरी घास, भसा और चारा है। चना और गुड़ भी गाय को अधिक प्रिय हैं। अधिक दूध प्राप्त करने के लिए गाय को खली-बिनौला आदि भी दिया जाता है। सस्ती चीजें खाकर यह हमें पौष्टिक दूध प्रदान करती है। गाय के दूध में इतने पोषक तत्व हैं कि उनसे हमारे शरीर को पूर्ण पोषण हो जाता है। माँ के दूध के बाद गाय का दूध ही बच्चों को दिया जाता है।

उपयोगिता एवं महत्त्व-रोगियों के लिए इसका दूध रामबाण के समान है। इसके दूध से घी, मक्खन, मट्ठा, दही आदि पदार्थ तैयार होते हैं। अन्न की प्राप्ति भी हमें इसके पुत्रों (बैलों) की सहायता से ही होती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बैलों के द्वारा गाड़ी भी खींची जाती हैं। खाद के अतिरिक्त, गाय के गोबर के उपले भी बनते हैं जो जलाने के काम आते हैं।

उपसंहार-गाय का इतना महत्व होते हुए भी आज इसकी स्थिति अत्यंत दयनीय है। जब तक गाय दूध देती हैं, उसकी सेवा होती है; पर जब गाय दूध देना बंद कर देती है, तो वह हमारी उपेक्षा का पात्र बन जाती है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। हमें उसके संरक्षण के लिए गौशालाएँ खोलकर उसका पालन-पोषण करना चाहिए।

विजयादशमी (दशहरा)

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. मनाने का कारण,
  3. महत्व,
  4. कुरीतियाँ,
  5. उपसंहार

प्रस्तावना-हिंदुओं के चार मुख्य त्योहार हैं- दीवाली, होली, दशहरा तथा रक्षाबंधन। चारों त्योहार समस्त हिंदू जाति मिल-जुलकर मनाती हैं। दशहरा आश्विन (क्वार) के शुक्लपक्ष की दशमी को मनाया जाता है। इस समय तक वर्षा ऋतु समाप्त हो चुकी होती हैं। आकाश स्वच्छ हो जाता है। शरद ऋतु के आगमन से वातावरण की सारी तपन शांत हो जाती है।

मनाने का कारण-कहते हैं कि इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी ने लंका-नरेश राक्षसराज रावण पर विजय प्राप्त की थी। इसीलिए इस पर्व का नाम विजयादशमी पड़ा, उसी की स्मृति में यह त्योहार प्रतिवर्ष मनाया जाता

महत्व-दशहरा अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। कई दिन पहले से देश के अनेक भागों में रामलीलाएँ होती हैं। इनके अंतर्गत मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी के जीवन से संबंधित अनेक घटनाओं को रामलीला के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। विजयादशमी के दिन रावण एवं उसके भाई कुंभकर्ण के पुतले जलाये जाते हैं। इस प्रकार यह त्योहार पूरे देश में अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। जिन स्थानों पर रावण के पुतले आदि जलाये जाते हैं, वहाँ बड़ा भारी मैला सा लग जाता है। क्षत्रिय लोग इस दिन अपने अस्त्र-शस्त्रों का पूजन करते हैं।

कुरीतियाँ-अन्य पवों की भाँति इस पर्व में भी कुछ बुराइयाँ आ गयी हैं। रामलीला के नाम पर प्रायः निम्नस्तरीय नाच-गानों के कार्यक्रम होते हैं। बाहुबली अपने अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन करके समाज को आतंकित करते हैं। रामलीला के नाम पर चंदे के रूप में कुछ असामाजिक तत्व अवैध रूप से धन की जबरन वसूली करते हैं। यह प्रथा अत्यंत ही निंदनीय है।

उपसंहार-दशहरा प्रतिवर्ष हमारे समक्ष पावन संदेश लेकर आता है। यह हमें सिखाता हैं कि अनाचार, अन्याय व अधर्म पर सदाचार, न्याय व धर्म की विजय होती है। इसीलिए हमें इन सभी दोषों से बचना चाहिए और शुभ कमां का अनुसरण कर अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

दूरदर्शन (टेलीविजन)

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. लाभ,
  3. हानि,
  4. उपसंहार

प्रस्तावना- विज्ञान नित्य नये आविष्कारों से मनुष्य के मन को लुभाता ओर चौकाता रहा है। आज हमें दूरदर्शन के माध्यम से घर बैठे ही सिनेमा की तरह चलते-फिरते-बोलते चित्र देखना सुलभ हो गया है। इस पर दूर से प्रसारित चित्रों का दर्शन होता है, इसलिए इसका नाम दूरदर्शन रखा गया है। दूरदर्शन को ही अंग्रेजी भाषा में टेलीविजन कहते

लाभ-दूरदर्शन का मनोरंजन के आधुनिक साधनों में श्रेष्ठ स्थान है। स्त्री, पुरुष, बालक, वृद्ध, युवक- सभी इससे अपना मन बहलाते हैं। दूरदर्शन मनोरंजन के साथ-साथ हमारा ज्ञान भी बढ़ाता है। यह किसानों को खेती की, विद्यार्थियों को उनके विषयों की और सामान्य लोगों को अनेक आवश्यक बातों की जानकारी देता है। इससे हम स्वास्थ्य, सफाई तथा व्यवहार से संबंधित बहुत सी बातें सीखते हैं। दूरदर्शन पर समाचारों से संबंधित स्थानों एवं घटनाओं के चित्र भी दिखाये जाते हैं। दूरदर्शन विज्ञापन का एक सशक्त माध्यम है। इससे व्यापारियों को अपना माल बेचने और उपभोक्ताओं को अच्छी वस्तु खरीदने में सुविधा होती है। दूरदर्शन पर खेलों, फिल्मों, नाटकों आदि के कार्यक्रम भी प्रदर्शित किये जाते हैं।

हानि-इतने लाभ होने के साथ-साथ दूरदर्शन से अनेक हानियाँ भी हैं। दूरदर्शन के कारण लोग शाम से ही घरों में कैद हो जाते हैं। लोगों को बाहर निकलना और आपस में मिलना-जुलना प्रायः बंद हो गया है। इसका सबसे बुरा प्रभाव विद्यार्थियों पर पड़ता है। वे परीक्षा के दिनों मैं भी दूरदर्शन देखते हैं। वीडियो गेम्स के आविष्कार ने तो इसे और भी घातक बना दिया है। इस पर एक साथ तीन या चार फिल्में दिखायी जाती हैं। कई घण्टों तक लगातार फिल्में देखने के बाद आँखों की और शरीर की क्या दशा होती होगी, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। दूरदर्शन पर साधारण वस्तुओं के विज्ञापन भी आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किये जाते हैं। इनसे प्रभावित होकर लोग अनावश्यक चीजें खरीदने में धन का अपव्यय करते हैं।

उपसंहार- कोई वस्तु स्वयं में न अच्छी होती है और न बुरी; उस वस्तु का उपयोग ही उसे अच्छी या बुरी बनाता है। दूरदर्शन वास्तव में हमें स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करता

मरुभूमि का जीवन-धन : जल

प्रस्तावना- जल मनुष्य के जीवन का प्रमुख साधन है, इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती। सभी प्राकृतिक वस्तुओं में जल अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। राजस्थान का अधिक भाग मरुस्थल है, जहाँ जल नाम मात्र को भी नहीं है, इस कारण यहाँ कभी-कभी भीषण अकाल पड़ता है।

जल-संकट के कारण- राजस्थान के पूर्वी भाग में चंबल, दक्षिणी भाग में माही के अतिरिक्त कोई विशेष जल स्रोत नहीं है, जो जल आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। पश्चिमी भाग तो पूरा रेतीले ठेलों से भरा हुआ निर्जल प्रदेश है। जहाँ केवल इंदिरा गाँधी नहर ही एकमात्र, आश्रय है। राजस्थान में जल संकट के कुछ प्रमुख कारण हुस प्रकार

  1. भूगर्भ के जल का तीव्र गति से दोहन हो रहा है। इससे जल-स्तर कम होता जा रहा है।
  2. पेयजल के स्रोतों का सिंचाई में उपयोग होने से जल संकट बढ़ता जा रहा है।
  3. उद्योगों में जलापूर्ति भी आम लोगों को संकट में डाल रही है।
  4. पंजाब, हरियाणा आदि पड़ोसी राज्यों का असहयोगात्मक रवैया भी जल संकट का प्रमुख कारण है।
  5. राजस्थान की प्राकृतिक संरचना ही ऐसी है कि वर्षा की कमी रहती है और यदि वर्षा हो भी जाए तो उसकी रेतीली जमीन में पानी का संग्रह नहीं हो पाता।।

निवारण हेतु उपाय- राजस्थान में जल संकट के निवारण हेतु युद्ध स्तर पर प्रयास होने चाहिए अन्यथा यहाँ घोर संकट उपस्थित कर सकता है। कुछ प्रमुख सुझाव इस प्रकार है-

  1. भूगर्म के जल का असीमित दोहन रोका जाना चाहिए।
  2. पेयजल के जो स्रोत हैं, उनका सिंचाई हेतु उपयोग न किया जाए। मानव की मूलभूत आवश्यकता का पहले ध्यान रखा जाए।
  3. वर्षा के जल को रोकने हेतु ओटे बाँधों का निर्माण किया जाए, ताकि वर्षा का जल जमीन में प्रवेश करे और जल-स्तर में वृद्धि हो।
  4. पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश की सरकारों से मित्रतापूर्वक व्यवहार रखकर आवश्यक मात्रा में जल प्राप्त किया जाएँ।

उपसंहार- भारत में भूगर्भ जल का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। देश के सर्वाधिक उपजाऊ प्रदेश इस संकट के शिकार हो रहे हैं, फिर राजस्थान जैसे मरुभूमि प्रधान प्रदेशों के भावी जल-संकट की कल्पना ही सिहरा देने वाली है। अतः जल प्रबंधन हेतु शीघ्र सचेत और सक्रिय हो जाने में ही राजस्थान का कल्याण निहित है।

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