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RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम्

RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम् is part of RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 6 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम्.

BoardRBSE
TextbookSIERT, Rajasthan
ClassClass 6
SubjectSanskrit
ChapterChapter 1
Chapter Nameमङ्गलाचरणम्
Number of Questions11
CategoryRBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 6 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम्

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत (उच्चारण कीजिए-)
सरस्वति !, नमस्तुभ्यम्, कामरूपिणि, विद्यारम्भम्, सिद्धिर्भवत. त्वमेव, बन्धुश्च, द्रविणम्, निरामयाः, भद्राणि, कश्चिद्, दु:खभाग
नोट – छात्र अध्यापक की सहायता से स्वयं उच्चारण करें।

प्रश्न 2.
मजूषातः चितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत – (मंजूषा से उचित शब्द चुनकर रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए।)
द्रविणं माता कश्चिद् सरस्वति! सुखिनः।
(क) ……… नमस्तुभ्यम्।
(ख) त्वमेव ……… च पिता त्वमेव
(ग) त्वमेव विद्या ……… त्वमेव।
(घ) सर्वे भवन्तु ………।
(ङ) मा ……… दुःखभाग् भवेत्।।
उत्तर:
(क) सरस्वति!
(ख) माता (ग) द्रविणं
(घ) सुखिनः
(ङ) कश्चिद्

प्रश्न 3.
परस्परं सुमेलयत (आपस में मिलाइए)
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम् 1

योग्यता-विस्तारः

1. प्रिय छात्रो! प्रथम पाठ में हम सब ईश्वर का स्मरण करते हैं; जैसे हम सबै पुस्तक के प्रारम्भ में ईश्वर का स्मरण करते हैं वैसे ही दिन के प्रारम्भ में भी ईश्वर के स्मरण के लिये हथेली के दर्शन के साथ इस श्लोक को बोलते हैं।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः, करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविन्दः, प्रभाते करदर्शनम् ॥

2. भूमि हमारी माता है किन्तु हम सब प्रतिदिन इसके ऊपर चलते हैं, पैरों से स्पर्श करते हैं। इसलिए क्षमा-याचना के लिए इस श्लोक को बोलते हैं।
समुद्रवसने! देवि! पर्वतस्तनमण्डले!
विष्णुपलि! नमस्तुभ्यं, पादस्पर्श क्षमस्व मे॥
वर्ण विलास – हिन्दी भाषा में वर्णमाला होती है जो पूर्व कक्षाओं में पढ़ी है। जैसे हिंदी भाषा में वर्णमाला होती है संस्कृत भाषा में वर्णमाला भी प्राय: वैसी ही होती हैं। आओ संस्कृत वर्णमाला को जानें।

संस्कृत वर्णमाला
स्वरा : अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लु ए ऐ ओ औ

RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम् 2

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुस्तकस्य प्रारम्भे कस्य पूजा कुर्म:|
(क) हनुमानस्य
(ख) सरस्वत्याः
(ग) ईश्वरस्य
(घ) पितुः
उत्तर:
(ख) सरस्वत्याः

प्रश्न 2.
भूमिः अस्माकं किम् ददाति|
(क) फलम्
(ख) वस्त्रम्
(ग) दुग्ध
(घ) अन्नम्
उत्तर:
(घ) अन्नम्

एकपदेन उत्तरत – (एक पद में उत्तर दीजिए-)

प्रश्न 1.
प्रात:काले कस्य स्मरणं कुर्यात् ?
उत्तर:
ईश्वरस्य

प्रश्न 2.
अस्माकं सर्वं कः अस्ति?
उत्तर:
ईश्वरः

प्रश्न 3.
सरस्वत्याः वन्दना कः करोति ?
उत्तर:
लेखकः

प्रश्न 4.
सर्वे मानवाः किम् इच्छन्ति ?
उत्तर:
सुखं

पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)

प्रश्न 1.
कार्य प्रारम्भे कस्य वन्दना कुर्यात् ?
उत्तर:
कार्य प्रारम्भे सरस्वत्याः वन्दना कुर्यात्

प्रश्न 2.
सर्वश्रेष्ठं धनम् कः अस्ति ?
उत्तर:
विद्या सर्वश्रेष्ठं धनं अस्ति।

प्रश्न 3.
सर्वे जनाः कान् इच्छन्ति ?
उत्तर:
सर्वेजनाः सुखं इच्छन्ति।

पाठ परिचय – इस श्लोक में छात्र सरस्वती की वंदना करता है। तथा ईश्वर को सब देवों का देव मानता है।
मूल अंश, शब्दार्थ, अन्वय, भावार्थ हिन्दी अनुवाद

1. सरस्वति ! नमस्तुभ्यं, वरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामि, सिद्धिर्भवतु मे सदा॥
अन्वय – वरदे कामरूपिणि सरस्वति! तुभ्यं नमः। (अहं) विद्या आरम्भं करिष्यामि, मे सदा सिद्धिः भवतु ॥
शब्दार्था – सरस्वति! = हे सरस्वती। नमस्तुभ्यम् = तुम्हें नमस्कार। वरदे! = हे वर देने वाली। कामरूपिणि = इच्छारूपिणी। विद्यारम्भम् = विद्या का आरम्भ। करिष्यामि = करूंगा। सिद्धिः भवतु = पूर्ण हो। ये = मेरी। सदा = हमेशा। अनुवाद-हे वर देने वाली, इच्छारूपी सरस्वती! तुम्हें नमस्कार हो। मैं विद्या प्रारम्भ करूंगा। इस विद्या से हमेशा मुझे सिद्धि प्राप्त हो।
भावार्थ – हे वरदायिनी! हे इच्छारूपिणि सरस्वति तुभ्यं नमः। अहं विद्यायाः आरम्भं करिष्यामि। अस्यां विद्याया सदा मम कृते पूर्णतयाः प्राप्तिः भवतु।

2. त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वं मम देव-देव ॥
अन्वय – त्वम् एव माता त्वम् एव च पिता। त्वम् एव बन्धुः त्वम् एव च सखा। त्वम् एव विद्या, त्वम् एव द्रविण। त्वम् एव मम सर्वं देव-देव।
शब्दार्था – बन्धुः = भाई (सम्बन्धी)। सखा = मित्र। द्रविणं = सम्पत्ति। सर्वम् = सब कुछ। मम = मेरा। देव-देव = हे देवों के देव!
हिन्दी अनुवाद – हे ईश्वर तुम ही मेरी माता हो और तुम ही मेरे पिता हो, तुम ही मेरे भाई हो और तुम ही मेरे मित्र हो। तुम ही विद्या हो, तुम ही धन हो । हे देवों के देव! तुम ही| मेरे सब कुछ हो।
भावार्थ – हे ईश्वर ! त्वम एव माता असि, त्वम् एव पिता असि। त्वम् एव बन्धुः असि, त्वम् एव सखा असि। त्वम एव विद्या असि त्वम् एव धनम् असि। हे देवाधिदेव! त्वम् मम सर्वस्वम् असि।

3 . सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत्॥
अन्वय – सर्वे सुखिनः भवन्तु, सर्वे निरामयाः सन्तु। सर्वे ‘भद्राणि पश्यन्तु कश्चिद् मा दु:खभागे भवेत् ।
शब्दार्था – सर्वे = सभी भवन्तु = हो/होवें। सुखिनः = सुखी। निरामयाः = रोग रहित। भद्राणि = कल्याण। पश्यन्तु। = देखें। मा = नहीं। कश्चिद् = कोई। दुःखभाग् = दु:खी। भवेत् = होना चाहिए (हो)।
हिन्दी अनुवाद – सभी प्राणी सुखी हों, सभी रोग रहित हों। सभी कल्याण को देखें, अर्थात् सभी का कल्याण हो। कोई भी प्राणी दु:खी न हों।
भावार् थ- सर्वे प्राणिनः सुखिन: भवन्तु, सर्वे नीरोगा: भवन्तु, सर्वे कल्याणं पश्यन्तु, कोऽपि प्राणि दु:खी न भवेत्।

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