RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 7 धन्योऽयं दानवीरः

Rajasthan Board RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 7 धन्योऽयं दानवीरः

RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 7 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नपदानाम् उच्चारणं कुरुत-(निम्न पदों के उच्चारण कीजिए-) इतस्ततः, परिश्रमेणार्जितम्, देशोद्धारम्, गर्वपूर्णमुत्तरम्, संगृह्य।
उत्तर:
छत्राः स्वयमेव उच्चारणं कुर्वन्तु। (छत्र स्वयं उच्चारण करें।)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरत्-(एक वाक्य में उत्तर दीजिये-)
(क) महाराणा प्रतापस्य जीवनस्य लक्ष्यं किम् आसीत् ? (महाराणा प्रताप के जीवन का लक्ष्य क्या था?)
उत्तर:
महाराणा प्रतापस्य जीवनस्य लक्ष्यं मातृभूम्या: मेदपाटधरायाः स्वतन्त्रता आसीत् । (महाराणा प्रताप के जीवन का लक्ष्य मातृभूमि मेवाड़ की धरती की स्वतंत्रता थी।) ।

(ख) महाराणा प्रतापः भामाशाहस्य केन कार्येण विस्मितः अभवत्? (महाराणा प्रताप भामाशाह के किस कार्य से आश्चर्यचकित थे?)
उत्तर:
महाराणा प्रताप: भामाशाहस्य स्वस्य जीवनस्य परिश्रमेण अर्जितस्य सञ्चितस्य च धनस्य दानेन विस्मितः अभवत् । (महाराणा प्रताप भामाशाह के अपने जीवन के परिश्रम से अर्जित किये गये और सञ्चित किये धन के दान से आश्चर्य चकित थे।)

(ग) स्वलक्ष्यात् कः विचलितः न अभवत्? (अपने लक्ष्य से कौन विचलित नहीं हुआ?)
उत्तर:
महाराणा प्रतापः स्वलक्ष्यात् विचलितः न अभवत्। (महाराणा प्रताप अपने लक्ष्य से विचलित नहीं हुए।)
(घ) भामाशाहेन स्वसम्पत्तिः किमर्थं दत्ता? ( भामाशाह के द्वारा अपनी सम्पत्ति किसलिये दी गयी ?) उत्तर- भामाशाहेन स्वसम्पत्ति: देशोद्धारं कर्तुं दत्ता। (भामाशाह के द्वारा अपनी सम्पत्ति देश का उद्धार करने के लिये दी गयी ।)

(ङ) दानमूर्तः पर्यायरूपेण कः प्रसिद्धोऽभवत् ? (दानमूर्ति के पर्याय के रूप में कौन प्रसिद्ध हुए?).
उत्तर:
दानमूर्ते: पर्यायरूपेण भामाशाहः प्रसिद्धोऽभवत् । (दानमूर्ति के पर्याय रूप में भामाशाह प्रसिद्ध हुए।)

प्रश्न 3.
रेखाडितपदानि आधारीकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत(रेखाङ्कित पदों के आधार पर प्रश्नों का निर्माण कीजिए-)

(क) स्वतन्त्रताप्राप्त्यर्थं महाराणाप्रतापः अनेकानि कष्टानि असत्।
उत्तर:
स्वतंत्रताप्राप्त्यर्थंम् कः अनेकानि कष्टानि असहत् ?

(ख) भामाशाहः राणाप्रतापस्य समक्षम् आगतः
उत्तर:
भामाशाहः कस्य समक्षम् आगतः?

(ग) प्रतापः विस्मितोऽभवत्।
उत्तर:
क: विस्मितोऽभवत् ?

(घ) धनमिदं तदर्थम् एव सुरक्षितं स्थापितम्।
उत्तर:
किमिदं तदर्थम् एव सुरक्षितं स्थापितम्।

(ङ) भामाशाहस्य गर्वपूर्णम् उत्तरम् आसीत्।
उत्तर:
भामाशाहस्य कीदृशम् उत्तरम् आसीत् ?

(च) प्रतापेन स्वजन्मभूमिः मेदपाटधरा शत्रुभ्यः विमुक्ता।
उत्तर:
केन स्वजन्मभूमिः मेदपाटधरा शत्रुभ्यः विमुक्ता ?

प्रश्न 4.
समानार्थकानि पदानि मेलयत। (समानार्थक पदों को मिलाइये।)
(क) वनम् रिपुः उत्तर-(क) वनम् काननम्
(ख) धनम् काननम्
(ग) दुष्करम् द्रव्यम्
(घ) पादयोः पृथिवी
(ङ) धरा चरणयोः
(च) शत्रु कठिनम्
उत्तर:
(क) वनम् काननम्
(ख) धनम् द्रव्यम्
(ग) दुष्करम् कठिनम्
(घ) पादयोः चरणयोः
(ङ) धरा पृथिवी
(च) शत्रुः रिपुः

प्रश्न 5.
उपयुक्तकथनानां समक्षम्’ आम्’ अनुपयुक्त कथनानां समक्ष ‘न’ इति लिखत-(उपयुक्त कथनों के सामने ‘हाँ’, अनुपयुक्त कथनों के सामने ‘न’ लिखिये)
(क) वनप्रान्ते भ्रमन् सः अनेकवारम् आहाररहितं जीवनमपि यापितवान्।                               [   ]
(ख) महाराणाप्रतापः घासरोटिकाम् अपि खादितवान्।                                                       [   ]
(ग) प्रतापः न जानाति स्म यत् भामाशाहः पूर्वमेव अर्बुदपर्वते जैनमन्दिर निर्मातुं संकल्पितवान्।   [   ]
(घ) भामाशाहस्य नाम दानदातृणां मध्ये प्रसिद्धम् अस्ति।                                                     [   ]
(ङ) भामाशाहेन राष्ट्ररक्षायै स्वसम्पत्तिः न समर्पिता।                                                            [   ]
उत्तर:
(क) हाँ
(ख) हाँ
(ग) नहीं
(घ) हौं
(ङ) नहीं।

प्रश्न 6.
भिन्नप्रकृतिकं पदं चित्वा लिखत- (भिन्न प्रकृति वाले पद को चुनकर लिखिये-)
(क) गच्छति, पठति, धावति, असहत्, क्रीडति ………….
(ख) चटकः, सेवकः, शिक्षकः, लेखिका, क्रीडकः……..
(ग) व्याघ्रः, भल्लूकः, गजः, कपोतः, वृषभः ………….
(घ) पृथिवी, वसुन्धरा, धरित्री, यानम्, वसुधा …………..
(ङ) आम्रः, दाडिमः, कदली, निम्बः, मल्लिका ………..
उत्तर:
(क) असहत्
(ख) चटकः
(ग) कपोतः
(घ) यानम्
(ङ) मल्लिका।

प्रश्न 7.
निम्नलिखितवाक्यानि भविष्यत्काले परिवर्त्य लिखत। (निम्नलिखित वाक्यों को भविष्यकाल में परिवर्तित कर लिखिए-)

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योग्यता-विस्तारः

1) मारवाड़ के राव चन्द्रसेन ‘मारवाड़ के प्रताप’ नाम से जाने जाते हैं। इसने भी महाराणा प्रताप की तरह यवनों की दासता स्वीकार नहीं की। इनका जन्म जोधपुर की राजधानी मण्डोर में हुआ था। प्रताप का अग्रगामी, विस्मृत राजा इन दो नामों से यह जाना जाता है। अकबर ने राव चन्द्रसेन को मारवाड़ से नागौर राजसभा में बुलाया। लेकिन यह महान आत्मा अकबर की अधीनता को तिरस्कृत करके अपने राज्य मारवाड़ आ गये। अकबर ने हुसैन कुली खान के नेतृत्व में राव चन्द्रसेन का पीछा करने वाली सेना को भेजा। राव चन्द्रसेन ने पीछा करने वाली सेना को जानकर मारवाड़ से दूर भाद्राजूण पर्वत मार्ग से जालौर पहुँचकर सिवाण दुर्ग में शरण प्राप्त की। इनकी मृत्यु सहारण पर्वत श्रृंखलाओं में हो गयी। इसने बहुत से महत्वपूर्ण युद्धों में युद्ध किया।

(2) संस्कृत में संख्या लिखने के खेल का अभ्यास कीजियेशिक्षक कक्षा को दो समूहों में बाँट दें। उसके बाद दोनों समूहों से एक-एक छात्र को बुलाकर खुद के द्वारा शब्द में बोली गयी संख्या को श्यामपट पर अंक में लिखने के लिए कहें। जो छात्र पहले लिख दे, उसे शाबाशी देकर उसका उत्साहवर्धन करें। इस प्रकार प्रतिस्पर्धा के रूप में खेल खेलना चाहिए।

(3) संस्कृतेसंख्यानाम् उच्चारणं कृत्वा संख्यान्वेषणक्रीडा क्रीडाम:

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शिक्षकः
छात्रम् आहूय शिक्षकद्वारा उक्तसंख्यां श्यामपट्टे अन्वेषणाय वदेत् । छात्रः अन्विष्य प्रदर्शयेत् । एतां क्रीडां स्पर्धारूपेण कारयेत्।

(4) लुट्लकारस्य सामान्यक्रियापदानां पूर्वम् अभ्यासः कृतः ।। विशिष्टानां क्रियापदानां इदानीम् अभ्यास कुर्म:

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(अस्य अभ्यासस्य द्वारा वयम् अन्यानि अपि क्रियारूपाणि ज्ञास्यामः।)

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RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 7 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

प्रश्न 1.
महाराणा प्रतापः वीरः आसीत्………….।
(क) उदयपुरस्य
(ख) मेदपाटस्य
(ग) जयपुरस्य
(घ) अलवरस्य।

प्रश्न 2.
धनाभावे दुष्करम् आसीत्…………।
(क) जीविकोपार्जनम्
(ख) आर्थिकोपार्जनम्
(ग) सेनासङ्घटनम्
(घ) परिवारपालनं ।

प्रश्न 3.
भामाशाहः आसीत्………….।
(क) दानवीरः
(ख) युद्धवीरः
(ग) वाक्वीरः
(घ) कर्मवीरः।
उत्तरम्:
1. (ख)
2. (ग)
3. (क)।

रिक्तस्थानानाम् पूर्ति मञ्जूषातः पदानि चित्वा कुरुत-

RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit Ranjini Chapter 7 धन्योऽयं दानवीरः 4

1……….. दानवीरः महान् देशभक्तः आसीत् ।
2. भवान् ……….द्रव्यम् देशरक्षायै स्वीकरोतु।
3. यदि राष्ट्रम एवं न रक्षितं तदा किं…….मन्दिर निर्माणेन ।
4. महाराणा प्रताप: जानाति स्म……….धनाभावे युद्धकार्य असम्भवम् ।
5. धन्यम्……….देश प्रति समर्पणम् ।
उत्तरम्:
1. अयम्
2.इदम्
3. तस्य
4. यत्
5. तव ।

RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 7 लघु उत्तरीय प्रश्न-

(क) महाराणाप्रताप कः आसीत्?
उत्तरम्:
महाराणा प्रताप मेदपाटस्य वीरः आसीत्।

(ख) महाराणासमक्षम् कः आगतः।
उत्तरम्:
भामाशाह: महाराणाप्रतापस्य समक्षम् आगतः।

(ग) भामाशाहेन धनराशिं दत्वा स्वस्य देशस्य च यशः सर्वकालाय किम् कृतम्?
उत्तरम्:
भामाशाहेन धनराशिं दत्वा स्वस्य देशस्य च यशः सर्व अक्षुण्णं कृतम्।

RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 7 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न-
‘धन्योऽयं दानवीरः’ इति कथाया सारं हिन्दी भाषायां लिखत।
उत्तर:
प्रातःस्मरणीय मेवाड़ के वीर महाराणा प्रताप के जीवन का लक्ष्य मातृभूमि मेवाड़ की स्वतंत्रता था। इसके लिए उन्होंने अनेक कष्ट सहे। धन के अभाव में सेना का संगठन व युद्ध संचालन कठिन कार्य हो गया। ऐसी विपदा की घड़ी में उनके सामने महान दानवीर भामाशाह आए और जीवनभर का संचित धन प्रताप के चरणों में अर्पित कर दिया। भामाशाह द्वारा दी गई धनराशि पचास हजार सैनिकों के लिए बीस वर्ष तक वेतन, वस्त्र और हथियार के लिए पर्याप्त थी। प्रताप जानते थे कि भामाशाह ने आबू पर्वत पर जैन मंदिर के निर्माण के लिए यह धन सुरक्षित रखा था। इसलिए प्रताप ने पूछा-देशभक्त भामाशाहं !तुम्हारे मंदिर निर्माण का क्या होगा? भामाशाह ने गर्वयुक्त होकर कहा-हे महाराज! यदि राष्ट्र ही सुरक्षित न रहा, तो उस मंदिर निर्माण से क्या होगा? इस घटना के समय से ही भामाशाह दानदाताओं के दानमूर्ति के पर्याय के रूप में प्रसिद्ध हो गए।

पाठ-परिचय

प्रस्तुत पाठ में दानवीर भामाशाह के बारे में बताया गया है।भामाशाह द्वारा दिए गए धन से मेवाड़ वीर स्वतंत्रताप्रिय महाराणा प्रताप ने मुगलों से मेवाड़ को स्वतंत्रता दिलाई थी।मूल अंश, शब्दार्थ, हिन्दी अनुवाद एवं प्रश्नोत्तर

(1) को न जानाति प्रातः स्मरणीयस्य मेदपाटवीरस्य महाराणाप्रतापस्य नाम्।अस्य महावीरस्य जीवनलक्ष्य मातृभूम्या; मैदपाटधरायाः स्वतन्त्रता आसीत्स्वातन्त्र्यप्राप्त्यर्थ महाराणाप्रतापः तस्य परिवारजनाश्च वने अनेकानि कष्टानि असहन्त वनप्रान्ते भ्रमन् सः अनेकवारं आहाररहितं जीवनमपि यापितवान्। अन्नाभावे सः घासरोटिकामपि खादितवान्।परं मेदपाटवीर: कदापि स्वलक्ष्यात् विचलित: नाभवत्।

शब्दार्था:-को न जानाति = कौन नहीं जानता; मैदपाटः == मेवाड़; जीवनलक्ष्यं का जीवन का उद्देश्य; स्वतन्त्रता = आजादी स्वातन्त्र्यप्राप्त्यर्थम् = स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये; असन्त = सहन किये; वनप्रान्ते= जंगल में; भ्रमन् = घूमते हुए; अनेकवारं = कई बार; यापितवान् = व्यतीत किया; अन्नाभावे= अनाज के अभाव में; घासरोटिकां = घास की रोटी; खादितवान् = खाई/खानी पड़ी; कदापि= कभी; स्वलक्ष्यात् = अपने लक्ष्य से; विचलितः = चलायमान; नाभवत् (न+अभवत्) = नहीं हुए।

हिन्दी अनुवाद-प्रात:स्मरणीय मेवाड़ के वीर महाराणा प्रताप का नाम कौन नहीं जानता।इस महान् वीर के जीवन का लक्ष्य मातृभूमि मेवाड़ की भूमि की स्वतन्त्रता था।स्वतन्त्रता की प्राप्ति के लिये महाराणा प्रताप और उनके परिवार के लोगों ने वन में अनेक कष्ट सहन किये।वन-प्रदेश में घूमते हुए उसने अनेक बार बिना भोजन किये हुए ही जीवन बिताया।अन्न के अभाव में उन्होंने घास की रोटी भी खायी।परन्तु मेवाड़ का वह धीर कभी अपने लक्ष्य से विचलित नहीं हुआ।

♦ अवबोध के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत
(क) मेदपाटस्य वीरस्य कः नाम आसीत्?
(ख) मैदपादधरायाः स्वतन्त्रता कस्य जीवनलक्ष्यम् आसीत्?
(ग) स्वलक्ष्यात् को न विचलितः अभवत्?
(घ) अन्नाभावे प्रतापः किं खादितवान्?
उत्तर:
(क) महाराणाप्रतापः
(ख) महाराणाप्रतापस्य
(ग) मेदपाटवीरः
(घ) घासरोटिकाम्।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) वने अनेकानि कष्टानि के असहन्त?
उत्तर:
महाराणाप्रताप: तस्य परिवार जनाश्च वने अनेकानि कष्टानि असन्त।

(ख) स्वतन्त्रताप्राप्त्यर्थं महाराणाप्रतापः किम् अकरोत्?
उत्तर:
स्वतन्त्रताप्राप्त्यर्थं महाराणाप्रताप: स्वपरिवारजनैः सह वने अनेकानि कष्टानि असहन्त।

(2) धनाभावे सेनासङ्गटनमपि दुष्करम् अभवत्तदा भामाशाह; राणाप्रतापस्य समक्षमागतः। भामाशाह स्वस्य। सम्पूर्णजीवनस्य परिश्रमेणार्जितं सञ्चितं च धनं प्रताप-पादयोः समर्पितवान्।प्रतापः विस्मितोऽभवत्।भामाशाहः अवदत् – “महाराज ! द्रव्यमिदं तु तुभ्यम् अस्माकं समाजाय, अस्माकं देशाय एव यच्छामि।भवान् एतं धनराशि स्वीकृत्य देशोद्धारं, करोतु’

शब्दार्था:-धनाभावे = धन के अभाव में; दुष्करं = कठिन कार्य; अभवत् = हो गया; तदा = तब; समक्षमागतः = सामने आया; अर्जितं = कमाया गया; सञ्चितं = एकत्रित किया हुआ; समर्पितवान् = समर्पित कर दिया; विस्मितः = आश्चर्यचकित; द्रव्यम् = धन; तुभ्यम् = तुम्हारे लिये; यच्छामि = दे रहा हूँ; भवान् = आप; स्वीकृत्य = स्वीकार करके; देशोद्धारं = देश का उत्थान; करोतु = करें।

हिन्दी अनुवाद-धन के अभाव में सेना का संगठन भी कठिन कार्य हो गया था।तब भामाशाह राणाप्रताप के सामने आये।भामाशाह ने अपने सम्पूर्ण जीवन के परिश्रम से कमाये गये और सञ्चित किये धन को प्रताप के चरणों में अर्पित कर दिया।प्रताप आश्चर्यचकित हुए।भामाशाह बोले-“महाराज! यह धन तो तुम्हारे लिये, अपने समाज के लिये, अपने देश के लिये ही दे रहा हूँ।आप इस धनराशि को स्वीकार करके देश का उद्धार करें।”

♦ अवबोध के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत
(क) धनाभावे किं दुष्करम् अभवत्?
(ख) राणाप्रतापस्य समक्षम् कः आगतः?
(ग) भामाशाहः स्वजीवनस्य अर्जितं सञ्चितं च धनं कुत्र समर्पितवान्?
(घ) प्रतापः कीदृशो अभवत्?
उत्तर:
(क) सेनासङ्टनम्
(ख) भामाशाहः
(ग) प्रताप पादयोः
(घ) विस्मित:।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) भामाशाहः स्वजीवनस्य परिश्रमेण अर्जितम् सञ्चितं च धनं महाराणाप्रतापस्य चरणयो किमर्थं समर्पितवान्?
उत्तर:
भामाशाहः परिश्रमेण अर्जितं सञ्चितं च धनं मेवाड़प्रदेशस्य उद्धाराय, समाजस्य रक्षणाय, देशस्य- सुरक्षाय च समर्पितवान्

(ख) प्रतापः विस्मितः किम् अभवत्?
उत्तर:
प्रतापः भामाशाहस्य त्यागं तस्य उदारतां च दृष्ट्वा विस्मितो अभवत्।

(3) प्रतापः जानाति स्म यत् भामाशाहः पूर्वमेव अर्बुदपर्वते जैनमन्दिर निर्मातुं सङ्कल्पितवान् धनमिदं तदर्थमेव एव सुरक्षित स्थापितम्अत एव प्रताप: अवदत् “देशभक्तभामाशाह! तवं मन्दिरनिर्माणस्य किं भविष्यति?” भामाशाहस्य गर्वपूर्णम् उत्तरम् आसीत्-‘महाराज ! राष्ट्रमेव न रक्षितं तदा किं तस्य मन्दिरस्य निर्माणेन? अस्तु, भवान् स्वदेशरक्षायै स्वीकरोतु इदं द्रव्यम्।

शब्दार्था:-जानाति स्म = जानते थे; निर्मातुम् = निर्माण करने के लिये; संकल्पितवान् = संकल्प लिये हुए हैं; तदर्थमेव = (तद् + अर्थम्एव) उसके लिये ही; स्थापितं = रखा हुआ; तव = तुम्हारे; गर्वपूर्णम् = गर्व के साथ; रक्षितं = सुरक्षित; तदा = (अव्यय शब्द) तब; अस्तु = इसलिये; स्वीकरोतु = स्वीकार कीजिये; दृव्यम् = धन को।

हिन्दी अनुवाद-प्रताप जानते थे कि भामाशाह पहले ही आंबू पर्वत पर जैनमन्दिर के निर्माण का संकल्प लिये हुए इस धन को उसके लिये सुरक्षित रखा था।इसलिये प्रताप बोले, “हे देशभक्त भामाशाह! तुम्हारे मन्दिर निर्माण का क्या होगा?” भामाशाह का गर्वयुक्त उत्तर था, “हे महाराज ! (यदि) राष्ट्र ही सुरक्षित न रहा, तो उस मन्दिर निर्माण से क्या होगा?” इसलिये आप अपने देश की रक्षा के लिये इस धन को स्वीकार करें।

♦ अवबोध के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत
(क) भामाशाहः किं निर्मातुं संकल्पितवान्?
(ख) इदं धनं किमर्थं सुरक्षितं स्थापितम् आसीत्?
(ग) भामाशाहस्य कीदृशम् उत्तरम् आसीत्?
(घ) देशभक्तः कः आसीत्?
उत्तर:
(क) जैनमन्दिरं
(ख) जैन मंदिर निर्मातुम्
(ग) गर्वपूर्णम्
(घ) भामाशाहः।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येने उत्तरत
(क) प्रतापः किं जानाति स्म पूर्वमेव?
उत्तर:
प्रतापः जानाति स्म यत् भामाशाहः पूर्वमेव अर्बुदे पर्वते जैनमन्दिर निर्मातुं संकल्पितवान्

(ख) भामाशाह स्वस्य जीवनस्य सम्पूर्ण धनं प्रतापाय केन कारणेन अयच्छत्?
उत्तर:
हि भामाशाह: जानाति स्म यत् मन्दिरस्य तुलनाय देशस्य सुरक्षा श्रेष्ठतरः भवति

(4) स्वदेशरक्षार्थं दत्तोऽयं धनराशिः पञ्चाशते सहस्राय सैनिकेभ्यः विंशतिं वर्षाणि यावत् वेतनवस्त्रशस्त्रेभ्यः च पर्याप्तः आसीत्।वीरवरेण प्रतापेन प्रचुरेण तेन धनेन शस्त्राणि सह्य स्वजन्मभूमि मैदपाटधरा शत्रुभ्यः विमुक्ताएतस्याः घटेनायाः कालाद् एव भामाशाहः दानदातणां दानमूर्ते : पर्यायरूपेण प्रसिद्धः अभवत्भामाशाहेन एतस्मै पुनीतकार्याय धनराशि इत्वा स्वदेशस्य स्वस्य च यशः सर्वकालार्य एवं अक्षुण्णं कृतम्।धन्योऽयं देशभक्त:, दानवीर: भामाशाहः।

शब्दार्था:-स्वदेशरक्षार्थम् = अपने देश की रक्षा के लिये; दत्तः = दिया हुआ; यावत् = तक; पर्याप्तः = काफी, समुचित; प्रचुरेण = प्रभूत, बहुत अधिक (तृतीया ए.व.); पञ्चाशत् सहस्राय ॥ पचास हजार के लिये; वीरवरेण प्रतापेन = वीरों में श्रेष्ठ प्रताप के द्वारा; सर्वकालाय = सभी समय के लिये; अक्षुण्णं = स्थायी; संगृह्यम् = एकत्रित; कृतम् = कर दिया; विमुक्ता = मुक्त कर लिया; दत्वा = देकर; धन्यः = सर्वोत्तम्

हिन्दी अनुवाद-अपने देश की रक्षा के लिये दी गयी यह धनराशि पचास हजार सैनिकों के लिये बीस वर्ष तक वेतन, वस्त्र और हथियार के लिये पर्याप्त थीवीरों में श्रेष्ठ प्रताप के द्वारा उस धन से शस्त्रों को एकत्रित करके अपनी जन्मभूमि मेदपाट (मेवाड़) की धरती को शत्रुओं से मुक्त करा लिया।इस घटना के समय से ही भामाशाह दानदाताओं की दानमूर्ति के पर्याय रूप में प्रसिद्ध हो गये।भामाशाह ने इस पुनीत कार्य के लिये धनराशि देकर अपने देश और अपने यश कोसभी कालों के लिये स्थायी कर दिया।यह देशभक्त दानवीर भामाशाह (नामक) धन्य (सर्वोत्तम)

♦ अवबोध के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तर
(क) भामाशाहेन दत्तोऽयं धनराशिः किमर्थम् आसीत्?
(ख) भामाशाहेन दत्तः अयं धनराशि: पञ्चाशते सहस्राय सैनिकेभ्यः कियत् वर्षाणि यावत् पर्याप्तः आसीत्?
(ग) भामाशाहः धनराशि दत्वा कियत् कालाय स्वदेशस्य स्वस्य च यशः अक्षुण्णं कृतम्?
(घ) शस्त्राणि संगृह्य स्वजन्मभूमिम्मेदपाटधराम् केन् शत्रुभ्यः विमुक्ता?
उत्तर:
(क) स्वदेशरक्षार्थम्
(ख) विंशतिवर्षाणि यावत्
(ग) सर्वकालाय
(घ) महाराणाप्रतापेन।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) वीरवरः प्रतापः भामाशाहेन दत्तेन धनेन किम् अकरोत्?
उत्तर:
वीरवर; प्रतापः तेन धनेन शस्त्राणि संगृह्य स्वमातृभूमि मैदपाटधरां शत्रुभ्य: विमुक्ता।

(ख) एतस्याः घटनायाः कालाद् भामाशाहः केन रूपेण प्रसिद्धः। अभवत्?
उत्तर:
एतस्याः घटनाया; कालाद एवं भामाशाह दानदातृणां दानमूर्ते : पर्यायरूपेण प्रसिद्धः अभवत्

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