RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 5 मीराँ

Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 5 मीराँ

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 5 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 5 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मी ने भवसागर पार करने के लिए किसे अपना खेवट माना है ?
(क) सतगुरु को
(ख) श्रीकृष्ण को
(ग) श्रीराम को
(घ) स्वयं को।
उत्तर:
(क) सतगुरु को

प्रश्न 2.
मी अपने नेत्रों में किसे बसाना चाहती हैं ?
(क) वसुदेव को
(ख) श्रीकृष्ण को
(ग) नन्दलाल को
(घ) योगेश्वर को।
उत्तर:
(ग) नन्दलाल को

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 5 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 3.
इन्दासन प्राप्त करने के लिए किसने यज्ञ किया था ?
उत्तर:
इन्द्रासन प्राप्त करने के लिए राजा बलि ने यज्ञ किया था।

प्रश्न 4.
मीराँ ने ‘अमोलक’ वस्तु किसे कहा है ?
उत्तर:
मीराँ ने राम नाम को अमोलक वस्तु कही है।

प्रश्न 5.
मीराँ को जहर देकर किसने मारने का प्रयास किया ?
उत्तर:
मीराँ को जहर देकर मारने का प्रयास राजा विक्रमादित्य ने किया था।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 6.
मी ने ‘रामरतन धन’ की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?
उत्तर:
मीराँ ने बताया है कि ‘रामरतन धन’ अमूल्य है। इसको चोर चुरा नहीं सकता। यह खर्च करने पर घटता नहीं बल्कि और अधिक बढ़ जाता है।

प्रश्न 7.
मी कृष्ण के किस रूप को अपनी आँखों में बसाना चाहती हैं ?
उत्तर:
मीराँ कृष्ण के उस रूप को अपनी आँखों में बसाना चाहती हैं। जिस रूप में श्रीकृष्ण का स्वरूप मनमोहक, उनकी सूरत साँवली और नेत्र बड़े-बड़े हैं। उन्होंने माथे पर मोर पंख वाला मुकुट, कमर में कच्छा तथा गले में बैजयन्ती माला पहन रखी है। ललाट पर लाल तिलक है तथा होठों से बाँसुरी लगाकर मधुर-मधुर बजा रहे हैं। वह कानों में कुण्डल पहने हैं। कमर में छोटी-छोटी घंटियाँ बँधी हैं तथा पैरों से बँधे मुँघरू मधुर ध्वनि कर रहे हैं।

प्रश्न 8.
‘करम गति टारै नाहिं टरै’ पद की अन्तर्कथाएँ क्या हैं ?
उत्तर:
‘करम गति टारै नाहिं टरै’ पद की अन्तर्कथाएँ निम्नलिखित हैं|.
1. राजा हरिश्चन्द्र सदा सत्य बोलते थे। उन्होंने अनेक कष्ट सहे, परन्तु सत्य बोलना नहीं छोड़ा। राज्य चले जाने पर उनको काशी में डोम की नौकरी करनी पड़ी और उसके घर पानी भरने का काम करना पड़ा। वह श्मशान की देखरेख करते थे। वहाँ उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु होने पर अपनी पत्नी को भी श्मशान का शुल्क लिए बिना दाह-संस्कार नहीं करने दिया।

2. पाण्डु के पाँच पुत्र थे-युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव। उनकी पत्नी द्रोपदी थी। महाभारत युद्ध में अनेक लोगों के वध का प्रायश्चित करने के लिए वे हिमालय पर गए थे। वहाँ बर्फ में उनके शरीर गल गए थे। 3. असुर राजा बलि देवताओं के राजा इन्द्र का राज्य-सिंहासन चाहते थे। इसको पाने के लिए उन्होंने यज्ञ किया था, किन्तु दुर्भाग्य से उनको पाताल में जाना पड़ा था।

प्रश्न 9.
‘खरचै नहिं कोई चोर न लेवें’-पंक्ति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राम नाम अर्थात् ईश्वर का नाम एक अमूल्य धन है। संसार में धन व्यय करने पर घट जाता है परन्तु रामनाम ऐसा धन है कि वह खर्च करने पर घटता नहीं है, किसी को देने पर वह और अधिक बढ़ता है। इसको कोई चोर चुरा नहीं सकता। यह अमूल्य धन है। इतनी विशेषताएँ किसी सांसारिक धन-सम्पत्ति में नहीं है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 10.
निम्न की व्याख्या कीजिए
(क) पायो जी मैंने …………..जस गायो।
(ख) मोहनि मूरति ………….. बछल गोपाल।
उत्तर:
(क) मीराँ कहती हैं कि मुझे रामनाम रूपी श्रेष्ठ तथा मूल्यवान धन प्राप्त हो गया है। यह अमूल्य वस्तु मुझको मेरे श्रेष्ठ गुरु ने प्रदान की है। उन्होंने मुझ पर कृपा की है। और अपनी शिष्या बनाया है। राम-नाम के रूप में मुझे अपने जन्म भर की अमूल्य पूँजी मिल गई है। संसार में सब कुछ नष्ट हो जाता है किन्तु रामनाम सदा अमर रहता है। रामनाम रूपी धन खर्च करने पर कम नहीं होता, बल्कि और अधिक बढ़ ही जाता है। इसको कोई चोर भी नहीं चुरा सकता। मैं सत्य की जिस नाव पर बैठी हूँ उसके चलाने वाले मेरे सतगुरु ही हैं। इस नाव के द्वारा मैं संसार-सागर को पार करने में सफल हो सकी हूँ। मीराँ के स्वामी तो भगवान श्रीकृष्ण हैं। वह प्रसन्नतापूर्वक उनका ही यशोगान करती.

(ख) मीराँ कहती हैं कि हे नन्द के पुत्र श्रीकृष्ण, आप सदा मेरे नेत्रों में ही निवास करें। आपका स्वरूप अत्यन्त मोहक है। आपका मुखड़ा साँवला-सलोना है। आपके नेत्र बड़े-बड़े हैं। आपके सिर पर मोरपंखों वाला मुकुट है तथा आपके कानों में मकराकृत कुंडल सुशोभित हो रहे हैं। आपके माथे पर लाल चन्दन का तिलक लगा हुआ है। आप अपने होठों पर रखकर बाँसुरी को मधुर स्वर से बजा रहे हैं। आपके वक्षस्थल पर बैजयन्ती माला शोभा पा रही है। आपकी कमर पर छोटी-छोटी घंटियाँ बँधी हुई हैं तथा धुंघरुओं की मधुर ४ वनि सुनाई दे रही है। हे गोपाल श्रीकृष्ण, आप संतों को सुख प्रदान करते हैं, आप भक्त-वत्सल हैं।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 5 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 5 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मीराँ को उनके सतगुरु ने क्या प्रदान किया है?
उत्तर:
मीराँ को उनके सतगुरु ने राम नाम का अमूल्य धन प्रदान किया है।

प्रश्न 2.
नूपुर सबद रसाल’ कहने का क्या आशय है?
उत्तर:
नूपुर सबद रसाल’ कहने का आशय है कि श्रीकृष्ण के पैरों में बँधी पाजेब के मुँघरू मधुर ध्वनि पैदा करते हैं।

प्रश्न 3.
करमगति किसको कहा गया है ?
उत्तर:
मनुष्य के भाग्य के लेख को करमगति कहा गया है। यह प्रयत्न करने पर भी टलती नहीं है।

प्रश्न 4.
मीराँ ने किस पूँजी को अक्षय कहा है ?
उत्तर:
मीराँ ने भक्ति रूपी पूँजी की महत्ता बताते हुए उसे अक्षय सम्पत्ति कहा है।

प्रश्न 5.
मीराँ कृष्ण के किस रूप को अपना आराध्य मानती है ?
उत्तर:
मीराँ कृष्ण के मुरलीधर रूप को अपना आराध्य मानती है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सबै खोबायौ”- का आशय क्या है?
उत्तर:
जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सबै खोवायौ-का आशय है कि रामनाम के रूप में जो धन मीराँ को प्राप्त हुआ है, वह उसके अनेक जन्मों की कमाई है। मीरा के अनेक जन्मों के सत्कर्मों के फलस्वरूप ही उसे गुरुदेव से रामनाम जपने की दीक्षा मिली है। संसार में जितने भी धन हैं, वे नष्ट हो जाते हैं, रामनाम सदा बना रहता है।

प्रश्न 2.
‘छुद्र घटिका कटि-तट शोभित, नूपुर संबद रसाल’ – पंक्ति के अनुसार बताइए कि श्रीकृष्ण ने कौन से आभूषण पहन रखे हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति के अनुसार श्रीकृष्ण ने अपनी कमर में करधनी पहन रखी है। इसमें छोटी-छोटी घंटियाँ बँधी हुई हैं, जो उनके चलने-फिरने पर बजते हुए सुन्दर लगती हैं। उनके पैरों में नूपुर मुँघरू बँधे हुए हैं उनके बजने से मधुर ध्वनि निकलती है।

प्रश्न 3.
‘बसौ मोरे नैनन में नंदलाल’–पद के अनुसार मीराँ की भक्ति-भावना का परिचय दीजिए।
उत्तर:
‘बसौ पोरे नैनन में नंदलाल’ पद से स्पष्ट है कि मीराँ श्रीकृष्ण के मधुर स्वरूप की उपासिका हैं। उनकी भक्ति माधुर्य भाव की भक्ति है। उन्होंने श्रीकृष्ण को अपनी पति माना है तथा वह उनके ही प्रेम तथा विरह की पीड़ा का गायन करती हैं। वह उनकी मोहनी मूर्ति और साँवली सूरत को अपने मन में बसाना चाहती हैं।

प्रश्न 4.
‘करम गति टारे नाहिं टरै ?” कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मीराँ ने अनेक महान् पुरुषों की कथाएँ सुनी थीं। उनको भाग्य की गति के विरुद्ध कुछ भी करने में असमर्थ पाया था। महान सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र, परम पराक्रमी भीम, अर्जुन आदि पाण्डव और महादानी राजा बलि भी भाग्य की गति को टाल नहीं सके थे।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न:
मीराँ की भक्ति पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
मीराँ श्रीकृष्ण के मधुर स्वरूप की उपासिका हैं। उनकी भक्ति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैंमाधुर्य भाव-मीराँ की भक्ति माधुर्य भाव की है। वह अपने आराध्य श्रीकृष्ण के मधुर स्वरूप को अपने नेत्रों में बसाना चाहती हैं। बसौ मोरे नैनन में नंदलाल। मोहनि मूरति साँवरी सूरति नैना बने बिसाल।। दैन्य भाव-मीराँ की भक्ति में दैन्य की भावना पाई जाती है। वह अपने ठाकुर की सेविका हैं। वह दीनता के साथ पुकारती हैं-दासी मीराँ लाल गिरधर तारों अब मोही। दाम्पत्य भाव-मीराँ ने श्रीकृष्ण को अपना प्रियतम और पति माना है। वह उनकी प्रेमिका है। “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’ कहकर वह श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठता व्यक्त करती हैं। श्रीकृष्ण के साथ उनका मिलन आनन्दपूर्ण है तो वियोग दुखदायी है। समर्पण भाव-मीराँ की दाम्पत्य भाव की भक्ति में समर्पण की गहराई है। वह अपने प्रियतम की इच्छा के अनुसार सब कुछ करने को तैयार हैं।

-कृष्णानुराग के पद

पाठ-परिचय

मीराँ के पदों में श्रीकृष्ण के प्रति उनके प्रेम तथा सम्पूर्ण समर्पण भाव के दर्शन होते हैं। कृष्ण-भक्ति मीराँ की मूल्यवान पूँजी है। सतगुरु की कृपा से प्राप्त यह पूँजी अपूर्व है। यह खर्च करने से बढ़ती है, घटती नहीं। कोई चोर इसे चुरा नहीं सकता। सतगुरु के मार्गदर्शन में सत्य की नाव पर बैठकर मीराँ भवसागर को पार कर सकी हैं। माधुर्य भाव की भक्ति करने वाली मीराँ श्रीकृष्ण के मोहक स्वरूप को अपने नेत्रों में बसाना चाहती हैं। सिर पर मुकुट, कानों में मकराकृति के कुण्डल, गले में बैजयन्ती माला धारण किये ओठों पर रखकर बाँसुरी बजाते श्रीकृष्ण की शोभा मीराँ को अत्यन्त आकर्षक लगती है। मीराँ भाग्य की गति को अटल मानती हैं। उसके प्रभाव से सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र, पाँचों पाण्डव, द्रौपदी, राजा बलि-कोई नहीं बच सका था। इससे मुक्ति तो मीराँ के आराध्य श्रीकृष्ण ही दिला सकते हैं, जो विष को अमृत में, बदल देते हैं।

प्रश्न 1.
भक्तिमती मीराँबाई का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर
कवयित्री-परिचय
जीवन-परिचय- श्रीकृष्ण की भक्त मीराँ का जन्म सन् 1498 ई. में राजस्थान के मेड़ता के कुड़की नामक गाँव में हुआ था। मीराँ राव जोधाजी के चौथे पुत्र रत्नसिंह की पुत्री थीं। इनकी माता का देहान्त बचपन में ही हो गया था। बचपन में वह पितामह दूदाजी के साथ रहीं। यहाँ उनका प्रेम श्रीकृष्ण के प्रति जागा। मीराँ का विवाह मेवाड़ के राणा साँगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ था। वह शीघ्र ही स्वर्गवासी हो गए। विधवा होने पर मीराँ पूरी तरह श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो गईं। कृष्ण भक्ति में लीन मीराँ का सन् 1564 ई. में देहान्त हो गया। साहित्यिक परिचय-मीराँ भक्तिकाल की कृष्ण भक्ति शाखा से सम्बन्धित हैं। मीराँ ने श्रीकृष्ण-भक्ति सम्बन्धी पद लिखे हैं। उनके पदों में श्रीकृष्ण के प्रति गहरा प्रेम, समर्पण, निष्ठा, निवेदन, पीड़ा और विरह-वेदना का सफल चित्रण हुआ है। भाषा-शैली-मीराँ की पदावली गेय है। मीराँ की भाषा राजस्थानी है, उसमें ब्रजभाषा, खड़ी बोली, गुजराती, अवधी इत्यादि के शब्द भी पाये जाते हैं। रचनाएँ-नरसी जी रो मायरो, गीत गोविन्द की टीका, रासगोविन्द, मीराँबाई का मलार, राग विहाग इत्यादि इनकी रचनाएँ हैं।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

1. पायो जी मैंने राम रतन धन पायौ।
बसत, अमोलक दी मेरे सतगुरू, करि किरपा अपनायौ
जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सबै खोवायौ॥
खरचै नहिं कोई चोर न लेवें, दिन-दिन बढ़त सवायौ।
सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तरि आयौ।
मीराँ के प्रभु गिरिधर नागर, हरषि हरषि जस गायो।

शब्दार्थ-बसते = वस्तु। अमोलक = अमूल्य। खोवायौ = नष्ट हो जाना। सवायौ = अधिक। खेवटिया = केवट, नाव चलाने वाला। भवसागर = संसाररूपी समुद्र। जस = यश।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘मी’ शीर्षक पाठ से अवतरित है। इसकी रचयिता कवयित्री मीराँबाई हैं। मीराँबाई ने अपने आराध्य के नाम को मूल्यवान धन बताया है। यह पूँजी उनको उनके गुरु की कृपा से प्राप्त हुई है।

व्याख्या-मीराँ कहती हैं कि मुझे रामनाम रूपी श्रेष्ठ तथा मूल्यवान धन प्राप्त हो गया है। यह अमूल्य वस्तु मुझको मेरे श्रेष्ठं गुरु ने प्रदान की है। उन्होंने मुझ पर कृपा की है और अपनी शिष्या बनाया है। राम-नाम के रूप में मुझे अपने जन्म भर की अमूल्य पूँजी मिल गई है। संसार में सब कुछ नष्ट हो जाता है किन्तु रामनाम सदा अमर रहता है। रामनाम रूपी धन खर्च करने पर कम नहीं होता, बल्कि और अधिक बढ़ ही जाता है। इसको कोई चोर भी नहीं चुरा सकता। मैं सत्य की जिस नाव पर बैठी हूँ उसके चलाने वाले मेरे सतगुरु ही हैं। इस नाव के द्वारा मैं संसार-सागर को पार करने में सफल हो सकी हूँ। मीराँ के स्वामी तो भगवान श्रीकृष्ण हैं। वह प्रसन्नतापूर्वक उनका ही यशोगान करती हैं।

विशेष-
(1) गीतिकाव्य शैली, पद गेय है।
(2) भक्ति रस है। रूपक, अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश इत्यादि अलंकार हैं।

2. बसो मोरे नैनन में नंदलाल।।
मोहनि मूरति, सांवरि सूरति नैना बने बिसाल।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरूण तिलक सोहेभाल।
अधर सुधा रस मुरली राजति उर वैजन्ती माल।
छुद-घंटिको कटि-तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीसँ प्रभु संतन सुखदायी, भगत बछल गोपाल॥

शब्दार्थ-मोरे = मेरे। मोहनि = मधुर, मोहक। मकराकृत = मछली के आकार वाले। अरुण = लाल रंग का। भाल = ललाट, माथा। अधर = होंठ। मुरली = बाँसुरी। उर = वक्षस्थल। छुद्र = केटी। कटि = कमर। रसाल = सरस, मधुर। बछल = वत्सल।।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के ”मीराँ” शीर्षक पाठ से अवतरित है। इसकी रचना कृष्णभक्त कवयित्री मीराँबाई ने की है। मीराँबाई अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण से निवेदन कर रही हैं। कि वह सदा उनके नेत्रों में ही निवास करें।

व्याख्या-मीराँ कहती हैं कि हे नन्द के पुत्र श्रीकृष्ण! आप सदा मेरे नेत्रों में ही निवास करें। आपका स्वरूप अत्यन्त मोहक है। आपका मुखड़ा साँवला-सलोना है। आपके नेत्र बड़े-बड़े हैं। आपके सिर पर मोरपंखों वाला मुकुट लगा है। तथा आपके कानों में मकराकृत कुंडल सुशोभित हो रहे हैं। आपके माथे पर लाल चन्दन का तिलक लगा हुआ है। आप अपने होठों पर बाँसुरी को रखकर मधुर स्वर से बजा रहे हैं। आपके वक्षस्थल पर बैजयन्ती माला शोभा पा रही है। आपकी कमर पर छोटी-छोटी घंटियाँ बँधी हुई हैं तथा हुँघरुओं की मधुर ध्वनि सुनाई दे रही है। हे गोपाल श्रीकृष्ण! आप संतों को सुख प्रदान करते हैं, आप भक्त-वत्सल हैं।

विशेष-
(1) चित्रात्मक गीति शैली है। रचना गेय पद में है।
(2) भक्ति रस है। अनुप्रास अलंकार है।

3. करम गति टारे नाहिं टरै।।
सत-वादी रचंद से राजा, नीच घर नीर भरै।
पाँच पाडू अर सती द्रोपदी, हाड़ हिमालै गरै।
जग्य कियाँ वलि लेण इन्दासण, सो पाताल धरै।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, विख से अमृत करै।

शब्दार्थ-करमगति = भाग्य का प्रभाव। टारे = दूर करने से, रोकने से। नाहिं टरै = अटल है। नीर = पानी। पांडु = पांडव-युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव। अर = और। हाड़ = हड्डियाँ। हिमालै = हिमालय पर्वत। गरै = गल गए थे। जग्य = यज्ञ। वलि = असुर राजा बलि। लेण = लेने के लिए। विख = विष।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘मीराँ’ शीर्षक पाठ से अवतरित है। इसकी रचयिता कवयित्री मीराँबाई हैं। मीराँ ने मनुष्य के भाग्य के अटल होने की सच्चाई को प्रकट किया है। व्याख्या-कवयित्री मीराँ कहती हैं कि मनुष्य के भाग्य की गति अटल है। उसको प्रयत्न करके भी टाला नहीं जा सकता। भाग्य की इसी प्रबल शक्ति के कारण सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को काशी में डोम के घर पानी भरना पड़ा था। पाण्डु के पुत्र पाँचों पाण्डवों तथा उनकी पत्नी द्रौपदी को महाभारत युद्ध में हुए रक्तपात का प्रायश्चित करना पड़ा था और उनकी हड्डियाँ हिमालय की बर्फ में गल गई थीं। असुर राजा बलि ने देवराज इन्द्र का आसन प्राप्त करने के लिए यज्ञ किया था, किन्तु भाग्य की गति से उसको पाताल में जाना पड़ा था। मीराँ तो अपने स्वामी श्रीकृष्ण की उपासिका हैं। राणा विक्रमादित्य द्वारा मीराँ की हत्या के लिए भेजा गया विष भी उनकी कृपा से अमृत बन गया था।

विशेष-
(1) ब्रजभाषा मिश्रित राजस्थानी भाषा है।
(2) भक्ति रस है। अनुप्रास अलंकार है।

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