RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 8 श्याम नारायण पाण्डेय

Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 8 श्याम नारायण पाण्डेय

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 8 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
संन्यासी का तीर्थस्थल कौन-सा है ?
(क) गंगासागर
(ख) रामेश्वरम्
(ग) चित्तौड़ दुर्ग
(घ) काशी।
उत्तर:
(ग) चित्तौड़ दुर्ग

प्रश्न 2.
‘पीताम्बर’ शब्द में कौन-सा समास है ?
(क) बहुव्रीहि
(ख) द्विगु
(स) द्वन्द्व
(घ) कर्मधारय।
उत्तर:
(घ) कर्मधारय।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 8 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 3.
कवि पूजन की सामग्री किस जगह पर अर्पित करना चाहती है ?
उत्तर:
कवि पूजन की सामग्री महारानी पद्मिनी की चिता की राख पर अर्पित करना चाहता है।

प्रश्न 4.
संन्यासी क्या-क्या पूजन सामग्री लेकर निकला है ?
उत्तर:
संन्यासी चन्दन, अक्षत, पुष्पमाला, जल, दीपक इत्यादि लेकर पूजन करने निकला है।

प्रश्न 5.
निम्न शब्द के पर्याय लिखिएतलवार, फूल, मृग, अक्षत, आँख।
उत्तर:
पर्यायवाची शब्द –
तलवार – असि, कृपाण, खड्ग, करवाल, चंद्रहास।
फूल – पुष्प, सुमन, प्रसून, कुसुम, तरुशोभा।
मृग – हिरण, कुरंग, सारंग, शृंगी, कस्तूरीघर।
अक्षत – चावल, तंदुल, धान्य, पुंडरीक, शालि।
आँख – चक्षु, नेत्र, नयन, लोचन, दृग।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 8 लघूत्तरामक प्रश्न

प्रश्न 6.
‘तीर्थराज चित्तौड़ देखने को मेरी आँखें प्यासी’ – पंक्ति से लेखक का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘तीर्थराज चित्तौड़ देखने को मेरी आँखें प्यासी’-पंक्ति में चित्तौड़ को स्वातंत्र्य संग्राम की भूमि होने के कारण तीर्थों का राजा तथा परम पवित्र माना गया है। संन्यासी के मन में उसके दर्शन करने की तीव्र इच्छा है।

प्रश्न 7.
तीर्थ किसे कहते हैं ? धार्मिक भावना के अनुसार प्रमुख तीर्थ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
धार्मिक दृष्टि से पवित्र और पूजनीय स्थानों को तीर्थ कहते हैं। इनके पर्यटन से पुण्य मिलता है। प्रयाग, काशी, रामेश्वरम्, गंगासागर, बदरीनाथ, केदारनाथ इत्यादि प्रमुख तीर्थ हैं।

प्रश्न 8.
‘क्षण भर वहीं समाधि लगेगी’ में संन्यासी समाधि लगाकर क्या प्राप्त करना चाहता है ?
उत्तर:
क्षण भर वहीं समाधि लगेगी’ कथन के अनुसार संन्यासी चित्तौड़ में जाकर समाधि लगाना चाहता है, वह वहाँ चिता में भस्म हुई रानी पड्मिनी की राख में उनके दर्शन करना चाहता है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 9.
जौहर व्रत से आप क्या समझते हैं ? पद्मिनी के जौहर की कथा संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
प्राचीनकाल में जब भारत पर मुसलमानों का आक्रमण हुआ तो राजपूताने में जौहर प्रथा चालू हुई। उस समय पुरुष केशरिया वस्त्र पहनकर शत्रु से युद्ध करने जाते थे। बहुत से सैनिक भी युद्धभूमि में मारे जाते थे। उनकी स्त्रियाँ चिता में जलकर मर जाती थीं, क्योंकि वे वीरांगनाएँ नहीं चाहती थीं। कि वे आंक्रमणकारियों के हाथों पड़कर बेइज्जत हों। इसी – को जौहर व्रत कहा जाता था। चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी परम रूपवती थी। अलाउद्दीन उसके रूप पर मुग्ध था और उसको पाना चाहता था।

एक बार उसने चित्तौड़ से मित्रता का ढोंग रचा और पड्मिनी को दर्पण में देखकर उसको पाने के लिए लालायित हो गया। उसने दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। चित्तौड़ के वीर युद्ध-भूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए और रानी पदमिनी ने अन्य राजपूतानियों के साथ चिता में जलकर प्राण दे दिए। विजयी होकर जब अलाउद्दीन ने किले में प्रवेश किया तो उसे वहाँ पमिनी की राख ही मिली।

प्रश्न 10.
भावार्थ लिखिए
(क) अपने अचल स्वतन्त्र ………… जय बोली।
(ख) सुन्दरियों ने जहाँ ‘माला फूल।
(ग) क्षण भर वहीं समाधि’……………….”दर्पण होंगे।
उत्तर:
(क) भावार्थ – चित्तौड़ के दृढ़ और स्वतंत्र दुर्ग पर जब शत्रु मुगलों ने आक्रमण किया तो उनकी ललकार सुनकर वीर राजपूत सैनिकों के दल हाथों में तलवार लेकर युद्ध के लिए किले से निकल पड़े। वीरांगनाओं ने अपनी मर्यादा और इज्जत की रक्षा के लिए चिता जलाकर अपनी जान दे दी। वीरों ने युद्धभूमि में गर्व के साथ माँ भवानी की जय-जयकार की और शत्रु से टकरा गए।

(ख) भावार्थ – संन्यासी ने बताया कि वह चित्तौड़ जा रहा है। उसकी दृष्टि में वह सब तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि वहाँ की नारियों ने देश पर संकट आने की स्थिति में पुरुषों को युद्ध क्षेत्र में भेजकर स्वयं चिता बनाकर जल जाने की शिक्षा पाई है। वहाँ के बच्चे भी त्यागी-बलिदानी हैं। वे देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन बलिदान कर देते हैं। संन्यासी वहाँ पर ही पूजा करने जा रहा है। वहाँ जाकर वह सतियों के पैरों की धूल का स्पर्श करेगा, पूजा का दीपक जलाएगा तथा चित्तौड़ के दुर्ग को वह पुष्पमाला अर्पित कर सम्मानित करेगा।

(ग) भावार्थ – संन्यासी अपना मृगचर्म बिछाकर और उस पर बैठकर चित्तौड़ में समाधि लगाएगा और वीरों तथा वीरांगनाओं के बलिदान पर चिंतन करेगा। चित्तौड़ में उसको रानी पद्मिनी तो नहीं मिलेगी परन्तु उसकी चिता की राख के दर्शन तो वह कर ही सकेगा। वहाँ उसे कहीं न कहीं रानी के पैरों के पवित्र चिह्न तो देखने को मिल ही जाएँगे। वह पूजा की सभी चीजों को उसकी चिता पर चढ़ाएगा। रानी की राख में उसे रानी के साक्षात् दर्शन होंगे।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 8 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 8 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संन्यासी की वेशभूषा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संन्यासी के शरीर पर राम नाम अंकित पीताम्बर है। उसने जनेऊ, पूँज की रस्सी तथा कमर में मेखला पहन रखी है।

प्रश्न 2.
संन्यासी ने तीर्थराज किसको कहा है ?
उत्तर:
संन्यासी ने चित्तौड़ को तीर्थराज कहा है।

प्रश्न 3.
संन्यासी की थाली में कौन-सी सामग्रियाँ हैं ?
उत्तर:
संन्यासी की थाली में चन्दन, अक्षत, जूही पुष्प की माला, आरती आदि पूजा की सामग्रियाँ सजी हुई हैं।

प्रश्न 4.
‘पूजन’ शीर्षक कविता में कवि ने किसके प्रति श्रद्धाभाव व्यक्त किया है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि ने देशहित में स्वयं को उत्सर्ग करने वाले वीरों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त किया है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कविता का शीर्षक ‘पूजन’ आपकी दृष्टि में कितना उचित है ?
उत्तर:
कविता का शीर्षक ‘पूजन’ एक उचित शीर्षक है। इस कविता में चित्तौड़ के दुर्ग को पवित्र और पूजनीय बताया गया है। संन्यासी उसके दर्शन करके पूजा करना चाहता है। वह पूजा का सामान लेकर वहीं जा रहा है। कविता में चित्तौड़ को तीर्थराज कहकर उसकी पूजा का वर्णन है। अतः ‘पूजन’ शीर्षक सर्वथा उचित है।

प्रश्न 2.
संन्यासी चित्तौड़ क्यों जा रहा है, वहाँ जाकर वह क्या करेगा ?
उत्तर:
संन्यासी स्वतंत्रता के लिए वीरों के बलिदान के साक्षी चित्तौड़ दुर्ग की पूजा करने जा रहा है। वह सतियों की चरण-६ लि माथे पर लगाएगा। वहाँ जाकर ही उसको मानसिक शांति मिलेगी तथा उसका मन स्वस्थ होगा। वहाँ जाकर वह दीप जलाकर और पुष्प-माला अर्पित कर वीरों की पूजा करेगा।

प्रश्न 3.
‘पूजन’ शीर्षक कविता के माध्यम से कवि ने क्या संदेश दिया है ?
उत्तर:
पूजन’ शीर्षक कविता में पाण्डेय जी ने स्वतंत्रता के प्रतीक चित्तौड़ के दुर्ग तथा उसकी रक्षार्थ अपना जीवन अर्पित करने वाले पुरुषों, नारियों और बालकों की वीरता का वर्णन किया है तथा उनके प्रति श्रद्धा भाव प्रकट किया है। इस कविता के माध्यम से कवि ने स्वतंत्रता का महत्व समझाने, चित्तौड़ दुर्ग की रक्षार्थ शहीद हुए वीरों का सम्मान करने तथा उनके प्रति आस्थावान् रहने का संदेश दिया है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न:
पूजन’ पाठ में संन्यासी ने चित्तौड़ को ‘तीर्थराज’ कहा है ? क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपना मत लिखिए।
उत्तर:
हमारी संस्कृति में ‘तीर्थ’ शब्द का प्रयोग एक पवित्र धार्मिक स्थल के रूप में होता आ रहा है। तीर्थ स्थल का संबंध प्रायः किसी ऋषि, तपस्वी, महापुरुष, अवतार का किसी घटना विशेष से संबंधित रहा है। पुराणों में प्रयाग को तीर्थराज (सबसे श्रेष्ठ तीर्थ) कहा गया है। अधिकांश तीर्थस्थल किसी नदी, सरोवर के तट अथवा पर्वत पर स्थित हैं। इस दृष्टि से विचार करने पर चित्तौड़ को तीर्थराज कहा जाना, शंका उत्पन्न करता है। तीर्थ को ईश्वर का भाव स्वरूप’ कहा जाता है। तीर्थ के बाहरी स्वरूप का उतना महत्व नहीं होता जितना कि उसके सद्भाव-प्रेरक वातावरण का होता है।

तीर्थ में पहुँचने पर व्यक्ति का मन एक स्वतः स्फूर्त पवित्रता से भर जाता है। श्रद्धा, आस्था और पूज्य भाव उमड़ने लगते हैं। चित्तौड़ की भूमि पर पहुँचने पर वहाँ घटित सारा वंदनीय इतिहास प्रत्यक्ष होने लगता है। दुर्ग की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हथेली पर रखकर निकल पड़ने वाला युवा शूर, जौहर की ज्वाला में, माँ भवानी और एकलिंग की जय बोल कूदती वीरांगनाएँ, ये सारे दृश्य, इस त्याग, बलिदान और वीरता की त्रिवेणी से युक्त तीर्थराज में पहुँचने वाले यात्री के नेत्रों के सामने चलचित्र की भाँति उपस्थित होने लगते हैं। एक तीर्थ में पहुँचने पर व्यक्ति के मन में जो भाव जागने लगते हैं, वे सभी इस । राष्ट्रीय पवित्र स्थल, स्वतंत्रता की आराधना-भूमि पर पहुँचते ही उत्पन्न हो जाते हैं। अतः चित्तौड़ को तीर्थराज कहा जाना सर्वथा उचित है।

पूजन

पाठ-परिचय

प्रस्तुत ‘पूजन’ शीर्षक काव्यांश कविवर श्याम नारायण पाण्डेय के सुप्रसिद्ध महाकाव्य ‘हल्दी घाटी’ से लिया गया है। इसमें कवि ने स्वदेश के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करने वाले वीरों के प्रति श्रद्धा प्रकट की है। कवि ने चित्तौड़ को काशी, रामेश्वर, गंगा सागर इत्यादि तीर्थ स्थानों की अपेक्षा अधिक पावन बताया है। वहाँ के वीरों तथा वीरांगनाओं ने अपने देश के सम्मान की रक्षार्थ आत्मोत्सर्ग किया था। वीर नारियों ने जलती आग में कूदकर जौहर किया था। वीर बालक भी स्वतंत्रता की वेदी पर मर मिटे थे। चित्तौड़ की यह वीर भूमि अत्यन्त पवित्र तथा शांतिदायक है। कवि की दृष्टि में वह स्थान परम पूज्य है और तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ है। पाण्डेय जी ने अजेय चित्तौड़-दुर्ग के माध्यम से स्वतंत्रता के लिए शहीद हुए वीरों तथा उस वीर भूमि के प्रति श्रद्धा अर्पित करने की प्रेरणा दी है।

प्रश्न 1.
कवि श्यामनारायण पाण्डेय का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर:
कवि-परिचय
जीवन-परिचय-आधुनिक काल में वीर रस की धारा बहाने वाले श्याम नारायण पाण्डेय का जन्म सन् 1907 ई. में (कुछ विद्वान् 1910 ई. मानते हैं) उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के हुमराव, मऊ नामक गाँव में हुआ था। आपके पिता पं. रामाज्ञा पाण्डेय थे। आप उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए वाराणसी चले गए। वहाँ राजकीय संस्कृत कॉलेज से शास्त्री तथा आचार्य की परीक्षायें उत्तीर्ण। पाण्डेय जी का सन् 1991 में निधन हो गया। साहित्यिक परिचय–पाण्डेय जी के साहित्य में वीर रस को प्राधान्य है। आधुनिक युग में अपने वीर-रस की पुनस्र्थापना की है। आपने पौराणिक तथा ऐतिहासिक घटनाओं को आ६ रि बनाकर तथा महापुरुषों के जीवन की घटनाओं को लेकर वीर-रस के अनेक प्रबन्ध काव्यों की रचना की है। आपको अपने प्रसिद्ध महाकाव्य ‘हल्दी घाटी’ पर देव पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। रचनाएँ-हल्दी घाटी, जौहर (प्रबन्धकाव्य), तुमुल, गोरा वध, त्रेता के दो वीर, जय हनुमान (खण्डकाव्य) आदि आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनके अतिरिक्त रूपान्तर, आँसू के कण, आरती, रिमझिम, माधव इत्यादि आपके कविता-संग्रह हैं।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
1. थाल सजाकर किसे पूजने,
चले प्रात ही मतवाले।
कहाँ चले तुम राम नाम का,
पीताम्बर तन पर डाले?
कहाँ चले ले चन्दन, अक्षत, बगल दबाये मृग-छाला?
कहाँ चली वह सजी आरती, कहाँ चली जूही माला?
ले मौंजी, उपवीत, मेखला, कहाँ चले तुम दीवाने?
जल से भरा कमंडलु लेकर, किसे चले तुम नहलाने?

शब्दार्थ-अक्षत = बिना टूटा चावल। जूही = एक प्रकार का श्वेत फूल। मौंजी = पूँज से बनी करधनी या रस्सी। उपवीत = जनेऊ। मेखला = कमर में चारों ओर लिपटा और
सामने लटकता वस्त्र, कटिबंध।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘पूजन’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसकी रचना प्रसिद्ध कवि श्याम नारायण पाण्डेय ने की है।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि महाराणा प्रताप के चित्तौड़ को तीर्थ मानकर उसकी पूजा के लिए निकले साधु के स्वतंत्रता के प्रति समर्पण-भाव का चित्रण कर रहा है।

व्याख्या-कवि किसी साधु को अपने पूज्य और आराध्य के पूजन के लिए समर्पित देखकर उससे पूछता है-अरे मतवाले, तुम राम नाम अंकित यह पीला वस्त्र शरीर पर पहने हो। हिरण के चमड़े से बना यह बिछौना तुमने बगल में दबा रखा है। तुम्हारे हाथों में पूजन की सजी हुई थाली है तथा उसमें चन्दन, अक्षत और जूही के पुष्पों से बनी माला रखी है। तुमने मुँज से बनी रस्सी तथा जनेऊ अपने वक्षस्थल पर धारण कर रखा है तथा कमर में वस्त्र लपेटे हुए हो। तुम्हारे हाथ में पानी से भरा हुआ कमण्डलु है। इसके पानी से तुम किसको नहलाने जा रहे हो? हे अपने पूज्य के दीवाने ! कुछ बताओ तो।।

विशेष-
(1) भाषा सरल, भावानुकूल, प्रवाहमयी खड़ी बोली है।
(2) प्रश्नात्मक शैली में चित्रात्मकता तथा सजीवता है।
(3) अनुप्रास एवं प्रश्न अलंकार है।

2. चले झूमते मस्ती से तुम, क्या अपना पथ आये भूल?
कहाँ तुम्हारा दीप जलेगा, कहाँ चढ़ेगा माला फूल?
इधर प्रयाग न गंगासागर, इधर न रामेश्वर काशी।
कहाँ, किधर है तीर्थ तुम्हारा, कहाँ चले तुम संन्यासी?

शब्दार्थ-पथ = मार्ग। दीप = पूजा का दीपक।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘पूजन’ शीर्षक पाठ से अवतरित है। इसके रचयिता श्याम नारायण पाण्डेय हैं। कवि पाण्डेय संन्यासी को पूजा की थाली उठाये मस्ती से जाते हुए देखकर उससे जानना चाहता है कि वह किसकी पूजा करेगा तथा कहाँ जा रहा है?

व्याख्या-कवि पूछता है-हे संन्यासी ! तुम मस्त होकर रास्ते पर आगे बढ़ते जा रहे हो। तुम्हारे हाथ में जो पूजा का दीपक है, उसे किस देवता के आगे जलाओगे? तुम फूलों की माला को किसको अर्पित करोगे? जिस ओर तुम जो रहे हो, उस ओर कोई तीर्थ स्थान नहीं है। उधर प्रयाग, काशी, रामेश्वर अथवा गंगासागर कोई तीर्थ-स्थान नहीं है। तुम्हारा तीर्थ स्थान कौन-सा है तथा किधर है? क्या तुम अपना रास्ता भूलकर इधर आ गये हो? तुम जो कहाँ रहे हो?

विशेष-
(1) अनुप्रास एवं प्रश्न अलंकार हैं।
(2) भाषा भावानुकूल सरल खड़ी बोली है।
(3) ओज तथा प्रसाद गुण है।

3. मुझे न जाना गंगासागर, मुझे न रामेश्वर, काशी।
तीर्थराज चित्तौड़ देखने को मेरी आँखें प्यासी।
अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर, सुनकर बैरी की बोली।
निकल पड़ी लेकर तलवारें, जहाँ जवानों की टोली।
जहाँ आन पर माँ-बहिनों की, जला-जला पावन होली।
वीर-मंडली गर्वित स्वर से, जय माँ की जय जय बोली।

शब्दार्थ-अचल = दृढ़। बोली = ललकार। जवानों = वीरों, युवकों। आन = मर्यादा। गर्वित = गर्व से भरा हुआ।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘पूजन’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता वीर रस के कवि श्याम नारायण पाण्डेय हैं। संन्यासी ने बताया कि उसको रामेश्वर या काशी या गंगासागर की तीर्थयात्रा करने की इच्छा नहीं है। वह चित्तौड़ के दर्शन की अभिलाषा लेकर जा रहा है।

व्याख्या-कवि कहता है कि देशप्रेमियों की दृष्टि में चित्तौड़ सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। देश से प्रेम करने वाले संन्यासी को गंगासागर, रामेश्वर अथवा काशी नहीं जाना है। उसकी दृष्टि में तो चित्तौड़ ही तीर्थों का राजा है, चित्तौड़ ही सबसे पवित्र तीर्थ स्थान है। उसको चित्तौड़ के दर्शन करने की प्रबल इच्छा है। चित्तौड़ का दुर्ग हमेशा स्वतंत्र रहा है। वह बहुत मजबूत है। जब उस पर मुगल सैनिकों ने आक्रमण किया तो उनकी ललकार सुनकर वीर राजपूत सैनिकों के दल हाथों में तलवारें लेकर उनसे युद्ध करने निकल पड़े थे। अपनी इज्जत पर संकट देखकर वहाँ की नारियों ने जौहर व्रत किया था अर्थात् वे जीते-जी चिता में जलकर मर गई थीं। तब उनके इस कार्य पर गर्व से भरकर वीरों ने मातृभूमि की जय-जयकार की थी।

विशेष-
(1) सरल, प्रवाह युक्त खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
(2) अनुप्रास तथा पुनरुक्ति अलंकार हैं।
(3) ‘आँखें प्यासी होना’ मुहावरे का सफल प्रयोग हुआ है।
(4) ओजपूर्ण शैली तथा वीर रस है।

4. सुन्दरियों ने जहाँ देश-हित, जौहर व्रत करना सीखा।
स्वतंत्रता के लिए जहाँ के बच्चों ने मरना सीखा।
वहीं जा रहा पूजन करने, लेने सतियों की पदे-धूल।
वहीं हमारा दीप जलेगा, वहीं चढ़ेगी माला, फूल।।
वहीं मिलेगी शांति वहीं पर, स्वस्थ हमारा मन होगा।
वीरवरों की पूजा होगी, खड्गों का दर्शन होगा।

शब्दार्थ-देश-हित = स्वदेश की भलाई। वीरवर = श्रेष्ठ वीर। खड्ग = तलवार।।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘पूजन’ शीर्षक कविता से अवतरित है। इसके रचयिता वीर रस सम्राट कवि श्याम नारायण पाण्डेय हैं। संन्यासी की चित्तौड़ दुर्ग के दर्शन करने की इच्छा है। वहाँ जाकर और वीरों की पूजा करके ही उसका मन शांत होगा।

व्याख्या-संन्यासी ने बताया कि वह चित्तौड़ जा रहा है। उसकी दृष्टि में वह सब तीर्थों में श्रेष्ठ है। वहाँ की नारियों ने देश पर संकट आने की स्थिति में पुरुषों को युद्ध-क्षेत्र में भेजकर स्वयं चिता बनाकर जल जाने की शिक्षा पाई है।

वहाँ के बच्चे भी त्यागी-बलिदानी हैं। वे देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन बलिदान कर देते हैं। संन्यासी वहाँ पर ही पूजा करने जा रहा है। वहाँ जाकर वह सतियों के पैरों की धूल को सिर से स्पर्श करेगा। वह वहाँ पर जाकर ही पूजा का दीपक जलाएगा। चित्तौड़ के दुर्ग को वह पुष्पमाला अर्पित कर सम्मानित करेगा। वहाँ जाकर वह वीरों की पूजा करेगा और उनकी तलवारों के दर्शन करेगा। वहाँ जाकर ही उसका मन स्वस्थ और शांत होगा।

विशेष-
(1) सरल, प्रवाहपूर्ण भावानुरूप खड़ी बोली को प्रयोग है।
(2) जौहर करना, पैरों की धूल लेना मुहावरों का सटीक प्रयोग है।
(3) अनुप्रास अलंकार है।

5. जहाँ पमिनी जौहर व्रत कर, चढ़ी चिता की ज्वाला पर।
क्षण भरं वहीं समाथि लगेगी, बैठ इसी मृगछाला पर।
नहीं रही, पर चिता-भस्म तो होगा ही उस रानी को।
पड़ा कहीं न कहीं होगा ही, चरण चिह्न महारानी का।
उस पर ही ये पूजा के सामान सभी अर्पण होंगे।
चिता-भस्म-कण ही रानी के दर्शन हित दर्पण होंगे।

शब्दार्थ-समाधि = ध्यान लगाना। भस्म = राख। अर्पण = भेट।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ में संकलित कविता ‘पूजन’ से अवतरित है। इसके रचयिता श्याम नारायण पाण्डेय हैं। संन्यासी कहता है कि वह चित्तौड़ जाएगा और महारानी पमिनी की भस्म में उनके दर्शन कर स्वयं को कृतार्थ करेगा।

व्याख्या-संन्यासी कहता है कि वह चित्तौड़ जाएगा। वहाँ रानी पदमिनी ने जौहर किया था और चिता में जलकर देह त्याग दी थी। वहाँ पर वह कुछ क्षणों के लिए हिरन के चमड़े के आसन पर बैठकर ध्यान लगाएगा। यद्यपि रानी जीवित नहीं हैं परन्तु वहाँ उस सती की भस्म तो उसको दिखाई दे ही जाएगी। कहीं न कहीं उनके पैरों के निशान भी उसे मिल ही जाएँगे। वह रानी के चरण-चिह्नों पर ही पूजा की सभी वस्तुओं को अर्पित कर देगा। चिता की राख में उसे रानी की छवि इसी प्रकार दिखाई देगी जिस प्रकार दर्पण में किसी की छाया दिखाई देती है। इस प्रकार वह रानी की चिता की राख में रानी के दर्शन करेगा और उनकी पूजा करेगा।

विशेष-
(1) सरल, भावानुकूल खड़ी बोली है।
(2) ओजपूर्ण शैली है।
(3) अनुप्रास और रूपक अलंकार हैं।

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