RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 11 वैदेशिक सम्बन्ध are part of RBSE Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 11 वैदेशिक सम्बन्ध.
Board | RBSE |
Textbook | SIERT, Rajasthan |
Class | Class 9 |
Subject | Social Science |
Chapter | Chapter 11 |
Chapter Name | वैदेशिक सम्बन्ध |
Number of Questions Solved | 55 |
Category | RBSE Solutions |
Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 11 वैदेशिक सम्बन्ध
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का बेलग्रेड शिखर सम्मेलन किस वर्ष में आयोजित किया गया था ?
(अ) 1963
(ब) 1961
(स) 1953
(द) 1958.
उत्तर:
(ब) 1961
प्रश्न 2.
पंचशील के पाँच सिद्धान्त मूलतः किसके दर्शन पर आधारित हैं ?
(अ) महावीर स्वामी
(ब) स्वामी विवेकानन्द
(स) स्वामी दयानन्द
(द) गौतम बुद्ध
उत्तर:
(द) गौतम बुद्ध
प्रश्न 3.
पंचशील को भारत-चीन समझौते के अन्तर्गत किस वर्ष लागू किया गया ?
(अ) 1950
(ब) 1954
(स) 1955
(द) 1960.
उत्तर:
(ब) 1954
प्रश्न 4.
सार्क को 18वाँ शिखर सम्मेलन किस देश में सम्पन्न हुआ ?
(अ) भारत
(ब) पाकिस्तान
(स) नेपाल
(द) भूटान
उत्तर:
(स) नेपाल
प्रश्न 5.
भारत ने अपना प्रथम परमाणु परीक्षण किस वर्ष में किया ?
(अ) 1984
(ब) 1974
(स) 1975
(द) 1980
उत्तर:
(ब) 1974
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति का प्रमुख आधार स्तम्भ क्या है ?
उत्तर:
- शांति
- मित्रता
- समानता
प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति के उद्देश्यों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व क्या है ?
उत्तर:
राष्ट्रीय हितों की पूर्ति
प्रश्न 3.
भारतीय विदेश नीति के मूल तत्वों का समावेश संविधान के किस अनुच्छेद में किया गया है ?
उत्तर:
अनुच्छेद 51 में।
प्रश्न 4.
गुटनिरपेक्षता को आन्दोलन का रूप देने में किन नेताओं की प्रमुख भूमिका रही है ?
उत्तर:
- पं. जवाहरलाल नेहरू (भारत)
- मार्शल टीटो। (यूगोस्लाविया)
- अब्दुल गमाल नासिर (मिस्र)
- सुकर्णो (इण्डोनेशिया)
प्रश्न 5.
सार्क (दक्षेस) का पूरा नाम बताइए।
उत्तर:
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ।
प्रश्न 6.
भारत की परमाणु नीति के सूत्रधार कौन हैं ?
उत्तर:
भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
प्रश्न 7.
विश्व शांति के लिए भारत किस अन्तर्राष्ट्रीय संस्था का समर्थन करता है ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति के प्रमुख आदर्श बताइए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति अपने अतीत से लेकर वर्तमान तक गौरवशाली परम्पराओं को अभिव्यक्त करती है। विश्वशांति, मित्रता, विश्व-बन्धुत्व एवं सहयोग जैसे श्रेष्ठ आदर्श इसके प्रमुख आधार स्तम्भ रहे हैं। इसी सुसंस्कृत विचार ने भारत की विदेश नीति को प्रत्येक काल में निरन्तरता प्रदान की है।
प्रश्न 2.
गुटनिरपेक्षता की नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सैन्य गुटों से पृथक् रहना ही गुटनिरपेक्षता है। यह भारत की विदेश नीति का प्रमुख सिद्धान्त है। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व दो महाशक्तियों में विभक्त हो गया। एक गुट का नेतृत्व पूँजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दूसरे गुट का नेतृत्व साम्यवादी सोवियत संघ कर रहा था। जब स्वतन्त्र देशों ने यह निर्णय लिया कि वे किसी भी गुट में सम्मिलित नहीं होंगे, भारत भी उनमें से एक था। भारत ने अपने वैचारिक अधिष्ठान व हित के कारण दोनों गुटों के परस्पर संघर्ष से दूर रहने का निर्णय किया। गुटों की राजनीति से अलग रहकर अपने विकास पर ध्यान केन्द्रित करना, जो आगे चलकर गुटनिरपेक्षता की नीति के नाम से जानी गयी।
प्रश्न 3.
भौगोलिक तत्वे विदेश नीति को किस प्रकार प्रभावित करता है ? बताइए।
उत्तर:
किसी भी देश की विदेश नीति के निर्धारण में भौगोलिक तत्वों का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। क्षेत्रीय सुरक्षा किसी भी राष्ट्र का एक प्रमुख उद्देश्य होता है। यदि हम भारत का उदाहरण लें तो एक ओर भारत पूर्व सोवियत संघ (वर्तमान रूस) तथा साम्यवादी चीन जैसे शक्तिशाली देशों के निकट है। दूसरी ओर यह दक्षिण-पूर्वी तथा दक्षिण-पश्चिम की ओर से समुद्र से घिरा हुआ है। भारत ने इस भौगोलिक तत्व को दृष्टिगत रखते हुए अपनी विदेश नीति का निर्माण किया है। अपनी सुरक्षा, शांति व मैत्री में ही भारत का हित निहित है।
प्रश्न 4.
शीत युद्ध की समाप्ति के बाद गुटनिपेक्षता की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
शीत युद्ध की समाप्ति एवं सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता पर सवाल उठते रहे हैं। इसकी प्रासंगिकता विकासशील देशों के सामाजिक, आर्थिक विकास के सन्दर्भ में बनी हुई है। इसके माध्यम से नवीन चुनौतियों एवं समस्याओं के समाधान के प्रयासों ने संगठन की प्रासंगिकता को बनाए रखा। इस आन्दोलन ने नव उपनिवेशवाद, मानवाधिकार, सामाजिक, आर्थिक व क्षेत्रीय जटिलताओं जैसे नवीन क्षेत्रों में अपना विस्तार करके अपनी महत्ता को सिद्ध कर दिया
प्रश्न 5.
पंचशील के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचशील से आशय है-आचरण के पाँच सिद्धान्त। भारत ने पंचशील के सिद्धान्तों को अपनी विदेश नीति में अपनाया है। पंचशील के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं|
- एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखण्डता एवं सम्प्रभुता को पारस्परिक आदर करना।
- एक-दूसरे पर आक्रमण न करना।
- समानता एवं परस्पर मित्रता की भावना पर बल देना।
- शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को स्वीकार करना
- एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
प्रश्न 6.
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व से आप क्या समझते हैं ? बताइए।
उत्तर:
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व वस्तुत: पंचशील के सिद्धान्तों का ही विस्तार है। भारतीय विदेश नीति को आधार शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व है। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ है कि विश्व के समस्त देशों को एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्ण ढंग से रहने एवं सम्बन्ध बनाने का अधिकार है। यदि सभी देश शांतिपूर्ण ढंग से एक-दूसरे के साथ रहें तो कोई कारण नहीं है कि विश्व में शांति व सुरक्षा की स्थापना न हो। वास्तव में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को दृढ़ एवं कुशल व्यावहारिक आधार प्रदान कर सकता है।
प्रश्न 7.
भारत में आतंकवाद की समस्या पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
आज सम्पूर्ण विश्व आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है। भारत भी उन देशों में से एक है। आतंवाद भारत के लिए एक गम्भीर चुनौती बना हुआ है। हमारे देश में वर्तमान में लगभग 31 आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं जिनके ठिकाने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि देशों में हैं। विदेशी आतंकवादी संगठनों द्वारा प्रायोजित यह छद्म युद्ध भारत के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है। इन आतंकवादी संगठनों के पास अत्याधुनिक हथियार, विस्फोट के साधन व धनराशि तथा अन्य समस्त संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। जम्मू-कश्मीर सहित देश के कई भागों में विघटनकारी घटनाओं को मूर्त रूप देने का काम यही आतंकवादी कर रहे हैं।
प्रश्न 8.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के परिप्रेक्ष्य में भारत की भूमिका का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्रसंघ एक महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। इसकी स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 को हुई। भारत इसका प्रारम्भिक सदस्य रहा है। भारत ने सदैव इस संस्था की नीतियों एवं कार्यों का समर्थन किया है। भारत ने हमेशा ही इसके आदर्शों एवं अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन किया है। भारत-पाकिस्तान विवाद पर भी भारत ने तत्काल ही संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णय को माना है। अनेक भारतीयों ने संयुक्त राष्ट्र संघ में उच्च पदों को सुशोभित कर अपने देश का मान बढ़ाया है। आवश्यकता पड़ने पर भारत ने इसे अपनी शांति सेना भी प्रदान की है। वर्तमान में भारत इस संगठन की सुरक्षा परिषद् में स्थाई सदस्यता के लिए प्रयत्नशील है। भारत संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रति बहुत अधिक निष्ठा एवं प्रतिबद्धता रखता है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति के प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति के प्रमुख उद्देश्य भारत की विदेश नीति मैत्री, शांति एवं समानता के सिद्धान्तों पर आधारित है। भारत ने सदैव ही सभी के साथ सहयोग एवं सद्भाव रखते हुए सुदृढ़ एवं सुस्पष्ट नीति का निरूपण किया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-51 में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अन्तर्गत भारतीय विदेश नीति के मूल तत्वों का समावेश किया गया है। भारत की विदेश नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
- अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा एवं शांति के लिए प्रयास करना।
- सभी देशों के साथ परस्पर सम्मानपूर्ण सम्बन्ध बनाना।
- अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा सुलझाना।
- सैनिक समझौतों एवं गुटबन्दियों से दूर रहना
- अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों में आस्था रखना।
- रंगभेद का विरोध करना।
- अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष एवं राष्ट्रों की सहायता करना।
- साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध करना।
- सभी देशों के साथ व्यापार, उद्योग, निवेश एवं प्रौद्योगिकी अन्तरण को सक्रिय व सहज बनानी।
- दक्षिण एशिया में मैत्री व सहयोग के आधार पर अपनी स्थिति मजबूत करना
- अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष आने वाली चुनौतियों के समाधान खोजने में सहयोग प्रदान करना।
प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व स्वतंत्रता प्राप्ति के समय सन् 1947 में भारत के समक्ष कुछ विशेष परिस्थितियाँ एवं चुनौतियाँ र्थी। अतः तात्कालिक विदेश नीति के निर्धारण में निम्नलिखित तत्वों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है
1. गुटनिरपेक्षता की नीति – भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के समय सम्पूर्ण विश्व दो भागों में विभाजित था। एक गुट का नेतृत्व पूँजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दूसरे गुट का नेतृत्व साम्यवादी सोवियत संघ कर रहा था। दोनों परस्पर विरोधी गुट थे। भारत ने अपने आपको गुटों की राजनीति से दूर रखने का निर्णय लिया। स्वतंत्र भारत की प्रथम प्राथमिकता अपना आर्थिक एवं सर्वांगीण विकास करना था। इसके लिए उसे विश्व के समस्त देशों के सहयोग की आवश्यकता थी। इसी परिदृश्य ने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की नई अवधारणा की भूमिका भी तैयार की।
2. देश की एकता व अखण्डता को बनाए रखना – स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से देश की समस्त देशी रियायतों को भारतीय संघ में सम्मिलित कर लिया गया। जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ व हैदराबाद आदि रियासतों को भी बल प्रयोग द्वारा भारत में सम्मिलित कर लिया गया। इस समय भारत को अपनी प्रतिरक्षा व्यवस्था को मजबूत कर देश की एकता व अखण्डता को बनाए रखना भी अत्यन्त महत्वपूर्ण था।
3. भौगोलिक तत्व – भारत की विदेश नीति के निर्धारण में भौगोलिक तत्वों को अपना महत्व है। क्षेत्रीय सुरक्षा किसी भी राष्ट्र का प्रमुख लक्ष्य होता है। एक ओर भारत साम्यवादी चीन व पूर्व सोवियत संघ जैसी ताकतों के समीप स्थित है वहीं दूसरी ओर यह दक्षिण-पूर्वी तथा दक्षिण-पश्चिमी ओर से हिन्द महासागर से घिरा हुआ है। अपनी सुरक्षा, शांति व मैत्री में ही भारत का हित निहित है।
4. प्राचीन संस्कृति का प्रभाव – भारत की विदेश नीति के निर्धारण में इसकी प्राचीन संस्कृति का बहुत अधिक प्रभाव रहा है। प्राचीन काल से ही विश्व-बन्धुत्व, विश्व शांति एवं मानवता हमारे प्रेरक मूल्य रहे हैं। इसके अतिरिक्त हमारे देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन में योगदान देने वाले तत्कालीन नेतृत्वकर्ताओं के विचारों ने भी हमारी विदेश नीति पर प्रभाव डाला है।
प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
भारत की विदेश नीति के प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ/लक्षण भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ/लक्षण निम्नलिखित हैं
1. गुटनिरपेक्षता – भारत जब स्वतंत्र हुआ तब विश्व दो विरोधी गुटों में बँटा हुआ था। एक गुट का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दूसरे गुट का नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था। इनके बीच शीत युद्ध प्रारम्भ हो चुका था। ऐसी स्थिति में भारत ने दोनों गुटों से पृथक् रहते हुए एक स्वतन्त्र नीति अपनायी जिसे गुटनिरपेक्षता की नीति के नाम से जाना जाता है।
2. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध – साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध भारतीय विदेश नीति के प्रारम्भिक आदर्शों में है जिसके माध्यम से प्रारम्भ से लेकर अब तक भारत ने शोषण के विरुद्ध संघर्षशील राष्ट्रों का मनोबल बढ़ाने का कार्य किया है।
3. नस्लीय भेदभाव और रंगभेद का विरोध – भारत मानवमात्र की समानता में विश्वास करता है तथा जाति व रंग पर आधारित भेदभाव का पूर्ण विरोधी है।
4. पंचशील – भारत की विदेश नीति पंचशील पर आधारित है। पंचशील के सिद्धान्त हैं-
- अनाक्रमण की नीति
- प्रत्येक राष्ट्र की प्रादेशिक अखण्डता व सम्प्रभुता का सम्मान करना
- समानता व पारस्परिक लाभ
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
- एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
5. शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व-शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व वस्तुतः पंचशील के सिद्धान्तों का ही विस्तार है। भारत ने अपनी विदेश नीति के माध्यम से परस्पर विरोधी विचारधाराओं वाले देशों को मैत्रीपूर्वक रहने का संदेश दिया है। भारत ने स्वयं भी अधिकाधिक मैत्री संधियाँ एवं व्यापारिक समझौते किए हैं।
6. संयुक्त राष्ट्र संघ को समर्थन – भारत संयुक्त राष्ट्र संघ को विश्व स्तर पर शांति स्थापित करने वाली एक महत्वपूर्ण संस्था मानता है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न अंगों और विशेष अभिकरणों में भाग लेकर महत्वपूर्ण कार्य किए हैं तथा विभिन्न देशों में शांति स्थापित करने के लिए अपनी शांति सेनाएँ भेजकर संयुक्त राष्ट्र संघ को सहायता दी है। वर्तमान में भारत सुरक्षा परिषद् में स्थाई सदस्यता हेतु प्रयत्नशील है।
7. भारत की परमाणु नीति – भारत प्रारम्भ से ही शांतिप्रिये देश रहा है तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उसने नि:शस्त्रीकरण का समर्थन किया है परन्तु तीव्र गति से बदलते विश्व परिदृश्य व भेदभावपूर्ण परमाणु कार्यक्रमों ने भारत को इस विषय पर आत्मनिर्भर होने के लिए प्रेरित किया। परमाणु नि:शस्त्रीकरण एवं परमाणु अप्रसार संधियों की शर्ते भेदभावपूर्ण होने के कारण भारत को स्वीकार नहीं थीं। परमाणु परीक्षण के मामले में भारत अपनी आधारभूत नीति का पालन कर रहा है।
प्रश्न 4.
भारत की परमाणु नीति का विवेचन कीजिए।
अथवा
भारत की आण्विक नीति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत की परमाणु/आण्विक नीति
भारत एक परमाणु शक्ति (आण्विक शक्ति) सम्पन्न देश है। यद्यपि भारत एक शांतिप्रिय देश है। भारत की विदेश नीति के तीन आधार स्तम्भ हैं-शांति, मित्रता एवं समानता। भारत ने सदैव परमाणु नि:शस्त्रीकरण पर बल दिया है। लेकिन सन् 1960 ई. के पश्चात् भारत ने अपनी परमाणु नीति को रूप देना प्रारम्भ कर दिया क्योंकि यह देश हित के लिए आवश्यक हो गया था। इस समय संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, सोवियत संघ जैसे परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र परमाणु निःशस्त्रीकरण की आड़ लेकर भारत को कमजोर रखना चाहते थे। विश्व स्तर पर तेजी से बदलते घटनाक्रम एवं भेदभावपूर्ण परमाणु कार्यक्रमों ने भारत को इस विषय पर आत्मनिर्भर होने के लिए प्रेरित किया।
परमाणु नि:शस्त्रीकरण एवं परमाणु अप्रसार संधियों की भेदभावपूर्ण शर्ते भारत को स्वीकार नहीं थीं। परमाणु परीक्षण के मामलों में भी भारत आधारभूत नीति का पालन कर रहा है। भारत के परमाणु कार्यक्रम के सूत्रधार रहे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का कथन था कि भारत दो परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों-संयुक्त राज्य अमेरिका व रूस के मध्य स्थित है। भारत की सुरक्षा को संकट स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा था। अतः परमाणु शस्त्र एवं प्रक्षेपास्त्रों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना समय की माँग थी। भारत ने परमाणु शक्ति सम्पन्न बनने की दिशा में अग्रसर होते हुए 18 मई, 1974 ई. में राजस्थान के पोकरण में प्रथम परमाणु परीक्षण किया।
11 व 13 मई, 1998 में भारत ने पुनः अपना दूसरा परमाणु परीक्षण किया। भारत की आण्विक नीति पर परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों ने कठोर प्रतिक्रिया व्यक्त की। चूंकि भारत एक शांतिप्रिय देश रहा है इसलिए हमने बार-बार समस्त विश्व को यह विश्वास दिलाया है कि हम परमाणु शस्त्रविहीन विश्व के लिए वचनबद्ध हैं परन्तु जब तक परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र अपने अस्त्र नष्ट नहीं करते, भारत न्यूनतम सुरक्षात्मक परमाणु शस्त्र रखने की अपनी नीति को त्याग नहीं सकता है। जब तक व्यापक परमाणु परीक्षण संधि में भेदभाव समाप्त नहीं होगा, उस पर अपने हस्ताक्षर नहीं करेगा।
प्रश्न 5.
भारत की विदेश नीति का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति
विदेश नीति के अन्तर्गत कुछ सिद्धान्त, संधियाँ और वे समस्त उद्देश्य आते हैं जिन्हें एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र के सम्पर्क के समय बढ़ावा दिया जाता है। भारत की अपनी स्वतंत्र विदेश नीति है जो किसी भी गुट से तटस्थ रहकर बनाई गई है। भारत की विदेश नीति के वास्तविक निर्माता हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू थे। भारत की विदेश नीति को ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक एवं आर्थिक घटकों ने आकार प्रदान किया है। अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में बदलाव के साथ-साथ विदेश नीति भी बदलती रही है। भारत की विदेश नीति के तीन आधार स्तम्भ हैं-शांति, मित्रता एवं समानता। हमारी विदेश नीति प्रायः अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करने में समर्थ रही है।
साथ ही उच्च मानवीय मूल्यों पर आधारित होने के कारण इसे गौरवशाली भी माना जाता है। भारत की विदेश नीति ने विश्व के परिवर्तित होते परिदृश्य व समय की माँग के अनुसार अपने आपको परिवर्तित किया है। हमारी विदेश नीति में एक निरन्तरता व गत्यात्मकता बनी हुई है। वर्तमान में भारत ने अपनी विदेश नीति के अन्तर्गत अपने आर्थिक पहलू को भी महत्व देना प्रारम्भ कर दिया है। व्यापार एवं वाणिज्य पर अपनी रणनीति को लेकर भारत गम्भीर है। भारत विश्व के विभिन्न देशों के साथ व्यापार को बढ़ावा देने का निरन्तर प्रयास कर रहा है। इसी दिशा में भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका के सम्बन्धों में सुधार हो रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तथा : भारतीय ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक-दूसरे के देशों में की गयी यात्राएँ एक बदलाव का संकेत दे रही हैं।
दक्षिण एशिया एवं विकासशील देशों के नेतृत्व की भूमिका भी भारत की विदेश नीति में आए सकारात्मक परिवर्तन की ओर संकेत करती है। भारत ने परमाणु परीक्षण कर अणुशक्ति के क्षेत्र में पश्चिमी देशों एवं चीन ने एकाधिकार को तोड़ दिया है। विगत दो दशकों में भारत ने आर्थिक एवं तकनीकी क्षेत्र में बहुत अधिक प्रगति की है। एक ओर भारत की विदेश नीति शांति एवं सद्भाव के प्रति वचनबद्ध है तो दूसरी ओर अपने हितों की पूर्ति करने में भी समर्थ एवं सक्षम है। भारत की विदेश नीति ने विश्व स्तर पर अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी बढ़ावा दिया है। आज़ भारतीय कला, भोजन, वेशभूषा, संस्कृति आदि को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान प्राप्त हुई है। इस प्रकार भारतीय विदेश नीति अपने उद्देश्यों में सफल सिद्ध हुई है।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
भारतीय विदेश नीति का आधार स्तम्भ है
(अ) शांति
(ब) मित्रता
(स) समानता
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति के मूल तत्वों का समावेश भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में है ?
(अ) अनुच्छेद-51
(ब) अनुच्छेद-18
(स) अनुच्छेद-85
(स) अनुच्छेद-108
उत्तर:
(अ) अनुच्छेद-51
प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य है
(अ) अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा व शांति के लिए प्रयास करना
(ब) अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता से सुलझाना
(स) सभी राज्यों में परस्पर सम्मानपूर्ण सम्बन्ध बनाना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 4.
भारत की विदेश नीति की मुख्य विशेषता है
(अ) गुटनिरपेक्षता
(ब) पंचशील
(स) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 5.
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का जनक माना जाता है
(अ) पं. जवाहरलाल नेहरू को
(ब) मार्शल टीटो को
(स) नासिर को
(द) उपर्युक्त सभी को
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी को
प्रश्न 6.
भारत ने अपना द्वितीय परमाणु परीक्षण कब किया था
(अ) 1984 में
(ब) 1974 में
(स) 1998 में
(द) 1980 में।
उत्तर:
(स) 1998 में
प्रश्न 7.
दक्षेस में कुल कितने सदस्य देश हैं
(अ) 5
(ब) 8
(स) 9
(द) 7.
उत्तर:
(ब) 8
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति में किन सिद्धान्तों को अधिक महत्व दिया गया है?
उत्तर:
मैत्री, शान्ति एवं समानता को।
प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति के कोई दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
- अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा व शान्ति के लिए प्रयत्न करना।
- अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता से सुलझाना।
प्रश्न 3.
भारतीय विदेश नीति के कोई दो सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:
- शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का सिद्धान्त।
- गुट निरपेक्षता को सिद्धान्त।
प्रश्न 4.
पंचशील के कोई दो सिद्धान्त बताइए।
उत्तर:
- किसी राष्ट्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
- सभी के साथ समान व्यवहार एवं सहयोग करना।
प्रश्न 5.
भारत की विदेश नीति के कौन से सिद्धान्त नैतिक शक्ति के प्रतीक हैं?
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्त।
प्रश्न 6.
पंचशील के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किस देश ने किया था?
उत्तर:
भारत ने।
प्रश्न 7.
पंचशील का समझौता किन देशों के मध्य हुआ था ?
उत्तर:
भारत और चीन के मध्य
प्रश्न 8.
दक्षेस (सार्क) की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
1985 ई. में।
प्रश्न 9.
दक्षेस (सार्क) के सदस्य देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
दक्षेस (सार्क) के सदस्य देश हैं-भारत, पाकिस्तान बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव एवं अफगानिस्तान।
प्रश्न 10.
कौन-सी समस्या भारत के लिए एक गम्भीर चुनौती बनी हुई है ?
उत्तर:
आतंकवाद की समस्या।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विदेश नीति से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विदेश नीति का तात्पर्य उस नीति से है जो एक राष्ट्र द्वारा अन्य राष्ट्रों के प्रति अपनायी जाती है। कोई भी स्वतन्त्र देश संसार के अन्य देशों से अलग नहीं रह सकता। अपनी राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरे देशों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के लिए वह जिन नीतियों का प्रयोग करता है, उन नीतियों को उस देश की विदेश नीति कहते हैं।
प्रश्न 2.
पंचशील से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पंचशील से आशय-आचरण के पाँच सिद्धान्तों से है। पंचशील सिद्धान्त भारत और चीन के प्रधानमन्त्रियों ने 29 अप्रैल, 1954 को अपने एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के दौरान पाँच सिद्धान्तों पर अमल करने का फैसला किया। यह दो पड़ोसी राष्ट्रों के साथ शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्तों का सबसे बड़ा निरूपण है। कालान्तर में इस सिद्धान्त को विश्वस्तरीय पहचान प्राप्त हुई। ये सिद्धान्त हैं-
- अनाक्रमण की नीति,
- एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता एवं सर्वोच्च सत्ता के लिए सम्मान
- समानता एवं पारस्परिक लाभ
- एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना
- शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व
प्रश्न 3.
भारत ने गुटनिपेक्षता की नीति को क्यों अपनाया?
उत्तर:
गुट-निरपेक्षता का अर्थ है-किसी सैनिक गुट की सदस्यता प्राप्त न करना एवं सभी सैनिक गुटों से अलग-अलग रहना। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत ने अपनी विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता को महत्वपूर्ण स्थान दिया। भारत द्वारा गुटनिरपेक्ष नीति को लागू करने व अपनाने के निम्न कारण हैं
- भारत स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद बने गुटों से दूर रहना चाहता था।
- अपनी विदेश नीति को भारत स्वतन्त्र रूप देना चाहता था।
- भारत शीत युद्ध से भी दूर रहना चाहता था।
प्रश्न 4.
निःशस्त्रीकरण का क्या अर्थ है? यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
नि:शस्त्रीकरण का अर्थ है-समस्त प्रकार के शस्त्रों का न बनाना एवं उन्हें कम करने एवं नियंत्रण करने पर जोर देना। आज अनेक देशों में शस्त्रीकरण की होड़ लगी हुई है। इससे धन पानी की भाँति तो खर्च होता ही है, साथ ही युद्ध के कारण भी बढ़ते हैं। निःशस्त्रीकरण निम्नलिखित कारणों के फलस्वरूप आवश्यक है
- नि:शस्त्रीकरण से युद्ध की संभावनाओं को रोका जा सकता है।
- शस्त्रों के बनाने पर होने वाले खर्च को सामाजिक-आर्थिक कल्याण के कार्यों में लगाया जा सकता
प्रश्न 5.
सार्क संगठन के उद्देश्यों को लिखिए।
उत्तर:
सार्क (दक्षेस) संगठन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- दक्षिण एशियाई देशों के लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना एवं उनका जीवन-स्तर ऊँचा उठाना।
- आर्थिक उन्नति, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास की गति को तीव्र करना।
- सामूहिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना और मजबूत करना।
- आपसी विश्वास, समझ और एक-दूसरे की समस्याओं के प्रति सहानुभूति रखना।
- विकासशील देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना।
- अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर आपसी सहयोग को मजबूत करना।
- अन्य क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
दक्षेस (सार्क) क्या है ? दक्षिण एशिया में शान्ति व सहयोग स्थापना में इसका क्या योगदान है?
उत्तर:
दक्षेस (सार्क) दक्षेस से आशय है-दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (साउथ एशियन एसोशियेसन फॉर रीजनल कोऑपरेशन)। यह दक्षिण एशिया के आठ देशों (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव, श्रीलंका एवं अफगानिस्तान) का क्षेत्रीय संगठन है जिसकी स्थापना इन देशों ने आपसी सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से की है। सार्क की स्थापना दिसम्बर, 1985 में की गयी। दक्षिण एशिया में शान्ति व सहयोग स्थापना में सार्क का योगदान
- सार्क ने अपने आठों सदस्य देशों को एक – दूसरे के नजदीक लाने का कार्य किया है, जिससे उनमें दिखाई देने वाला तनाव कम हुआ है। दक्षेस के सहयोग से भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव में कमी आयी है और दोनों देश युद्ध के जोखिम कम करने के लिए विश्वास बहाली के उपाय करने पर सहमत हो गये हैं।
- दक्षेस के कारण इस क्षेत्र के देशों की थोड़े – थोड़े अन्तराल पर आपसी बैठकें होती रहती हैं जिससे उनके छोटे-मोटे मतभेद अपने आप आसानी से सुलझ रहे हैं तथा देशों में अपनापन विकसित हुआ है।
- दक्षेस के माध्यम से इस क्षेत्र के देशों ने अपने आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए सामूहिक आत्मनिर्भरता पर बल दिया है जिससे विदेशी शक्तियों को इस क्षेत्र में प्रभाव कम हुआ है। ये देश अब अपने को अधिक स्वतन्त्र महसूस करने लगे हैं।
- दक्षेस ने एक संरक्षित अन्न भण्डार की स्थापना की है जो इस क्षेत्र के देशों की आत्मनिर्भरता की भावना के प्रबल होने का सूचक है।
- दक्षेस के सहयोग से 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी दक्षिण – एशियाई मुक्त व्यापार समझौते (साफ्टा) से भारत सहित समस्त दक्षिण एशियाई देशों को लाभ हुआ है और क्षेत्र में मुक्त व्यापार बढ़ने से राजनीतिक मामलों पर सहयोग में वृद्धि हुई है।
- सार्क ने कृषि, स्वास्थ्य, पर्यावरण जैसे आधारभूत क्षेत्रों में प्रभावी कार्य किए हैं।
We hope the given RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 11 वैदेशिक सम्बन्ध will help you. If you have any query regarding Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 11 वैदेशिक सम्बन्ध, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.