RBSE Class 12 Business Studies Board Paper 2018

RBSE Class 12 Business Studies Board Paper 2018 are part of RBSE Class 12 Business Studies Board Model Papers. Here we have given Rajasthan RBSE Class 12 Business Studies Board Paper 2018.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 12
Subject Business Studies
Paper Set Board Paper 2018
Category RBSE Model Papers

Rajasthan RBSE Class 12 Business Studies Board Paper 2018

समयः 3.15 घण्टे
पूर्णांक : 80

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देशः

  1. परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न पत्र पर नामांक अनिर्वायतः लिखें।
  2. सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
  3. प्रत्येक प्रश्न का उत्तर; दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
  4. जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड है, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
  5. खण्ड प्रश्न संख्या अंक प्रत्येक प्रश्न उत्तर की शब्द सीमा
    1-10 1 20 शब्द
    11-18 2 आधा पृष्ठ
    19-27 4 एक पृष्ठ
    28-30 6 तीन पृष्ठ
  6. प्रश्न क्रमांक 28 से 30 में आन्तरिक विकल्प है।

खण्ड – अ

प्रश्न 1.
‘उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध’ के प्रतिपादक कौन हैं? [1]

प्रश्न 2.
प्रबन्ध का एक सामाजिक उद्देश्य बताइए। [1]

प्रश्न 3.
अनुबन्ध में प्रतिफल से आपको क्या आशय है? [1]

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प्रश्न 4.
“वैध अनुबन्ध के लिए वैध प्रतिफल होना अनिवार्य है।” कैसे? [1]

प्रश्न 5.
उद्यमिता की एक विशेषता बताइए। [1]

प्रश्न 6.
“उद्यमिता देश के आर्थिक विकास का आधार है।” कैसे? [1]

प्रश्न 7.
‘प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना’ का प्रारम्भ कब हुआ? [1]

प्रश्न 8.
‘अल्प बीमा’ से आपका क्या आशय है? [1]

प्रश्न 9.
भारत में सेवा कर की शुरुआत कब हुई? [1]

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प्रश्न 10.
सर्वप्रथम विक्रय कर भारत के कौन से राज्य में लागू हुआ? [1]

खण्ड – ब

प्रश्न 11.
प्रबन्ध की ‘सूचनात्मक भूमिका’ के किन्हीं दो बिन्दुओं को समझाइए। [2]

प्रश्न 12.
एक पेशेवर प्रबन्धक के रूप में, पेशेवर प्रबन्ध की कोई दो विशेषताएँ बताइए। [2]

प्रश्न 13.
क्रय बिन्दु विज्ञापन से आपका क्या आशय है? [2]

प्रश्न 14.
निम्नलिखित को समझाइए- [2]

  1. निष्पादित अनुबन्ध
  2. निष्पादनीय अनुबन्ध

प्रश्न 15.
अनुबन्ध में ‘कपटपूर्ण मिथ्या वर्णन’ को समझाइए। [2]

प्रश्न 16.
आपके विचार में, क्या उद्यमिता अवसर खोजने की प्रक्रिया है। कैसे? [2]

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प्रश्न 17.
‘बीमा सुरक्षा प्रदान करता है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? [2]

प्रश्न 18.
वस्तु एवं सेवा कर की कोई दो विशेषताएँ बताइए। [2]

खण्ड – स

प्रश्न 19.
हैनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित निम्नलिखित सिद्धांतों को समझाइए। [4]

प्रश्न 20.
अभिप्रेरणा की ‘एक्स’ विचारधारा की कोई चार मान्यताएँ बताइए। [4]

प्रश्न 21.
निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर अभिप्रेरणा का महत्व समझाइए [4]

  1. कार्य संतुष्टि में अभिवृद्धि
  2. अच्छे श्रम सम्बन्धों का निर्माण

प्रश्न 22.
एक प्रबन्धक के रूप में, सरकार के प्रति कोई चार सामाजिक दायित्वों को बताइए। [4]

प्रश्न 23.
अर्द्ध अनुबन्ध के कोई दो प्रकार बताइए। [4]

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प्रश्न 24.
निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर उद्यमिता का महत्व समझाइए- [4]

  1. पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन
  2. संतुलित आर्थिक विकास

प्रश्न 25.
बीमा के क्षेत्र एवं प्रकार के आधार पर ‘अग्नि बीमा’ को समझाइए। [4]

प्रश्न 26.
एक प्रबन्धक के रूप में, ग्राहकों के प्रति कोई चार सामाजिक दायित्वों को बताइए। [4]

प्रश्न 27.
निम्नलिखित बिन्दुओं को समझाइए- [4]

  1. बिक्री का विवरण
  2. खरीद का विवरण

खण्ड – द

प्रश्न 28.
प्रबन्ध में प्रबन्धकों की निर्णयात्मक भूमिका का समझाइए। [6]
अथवा
प्रबन्ध के किन्हीं छः कार्यों को समझाइए।

प्रश्न 29.
आपकी राय में विज्ञापन की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए। [6]
अथवा
राष्ट्र के लिए विपणन के महत्व को आप किस प्रकार स्पष्ट करेंगे?

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प्रश्न 30.
अनुबन्ध अधिनियम में उत्पीड़न सम्बन्धी वैधानिक प्रावधानों को समझाइए। [6]
अथवा
अनुबन्ध अधिनियम में व्यर्थ ठहराव सम्बन्धी किन्हीं छः वैधानिक प्रावधानों को समझाइए।

उत्तरम्

उत्तर 1:
पीटर एफ. डुकर।

उत्तर 2:
रोजगार सुरक्षा प्रदान करना।

उत्तर 3:
प्रतिफल वह मूल्य है जो अनुबन्ध का एक पक्षकार दूसरे पक्षकार के वचन या कार्य के बदले चुकाता है।

उत्तर 4:
क्योंकि प्रतिफल यदि अवैध होगा तो एक वैध अनुबन्ध का निर्माण नहीं हो सकता है अतः वैध अनुबन्ध के लिए प्रतिफल वैध होना चाहिए।

उत्तर 5:
उद्यमिता अवसर खोजने की प्रक्रिया है।

उत्तर 6:
उद्यमिता के बिना किसी भी देश का आर्थिक विकास नहीं हो सकता है। अतः यह देश के आर्थिक विकास का आधार है।

उत्तर 7:
सन् 2015 में।

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उत्तर 8:
‘अल्प बीमा’ से आशय आवश्यकता से कम की बीमा सुरक्षा प्राप्त करने से है।

उत्तर 9:
1 जुलाई सन् 1994 से।

उत्तर 10:
मध्य प्रदेश में।

उत्तर 11:
सूचनात्मक भूमिकाएँ (Informational Roles)—सूचनात्मक भूमिकाओं में प्रबन्धक विभिन्न सूचनाओं, तथ्यों व ज्ञान का संग्रहण एवं वितरण करते हैं। इसमें प्रबन्धक अपने संगठन तथा इसके वातावरण के बारे में विभिन्न ज्ञात स्रोतों से सूचना सामग्री प्रबोधक के रूप में करता है। प्रबन्धक प्रसारक की भूमिका में एकत्रित सूचनाओं को उपयोगिता एवं आवश्यकता अनुसार अपने अधीनस्थों वे सम्बन्धित इकाइयों को वितरित एवं प्रसारित करता है तथा प्रवक्ता की भूमिका में प्रबन्धक अपने संगठन की योजनाओं, नीतियों, कार्यक्रमों के बारे में बाह्य पक्षकारों-ग्राहकों, सरकार, समुदाय, संस्थाओं आदि को विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ संचार माध्यम से प्रेषित करता है।

उत्तर 12:

  1. एक पेशेवर प्रबन्ध पेशेवर ज्ञान एवं तकनीक के प्रति समर्पित होता है।
  2. एक पेशेवर प्रबन्ध आधुनिक प्रबनधकीय तकनीकों का प्रयोग करता है।

उत्तर 13:
क्रय बिन्दु विज्ञापन (Purchase Point Advertisement) – विज्ञापन का यह माध्यम दुकानों की वातायन एवं काउन्टर की सजावट से है जिससे राह चलते ग्राहक वातावरण एवं काउन्टरों में सजी हुई वस्तुओं को देखकर दुकान में आने के लिये प्रेरित होता है। वातायन सजावट (window display) में अलमारियों में वस्तुओं को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। विभागीय भण्डारों, रेडीमेड गारमेन्टस, खिलौने, साड़ियों की दुकानों में वातायन सजावट को विशेष महत्व दिया जाता है। काउन्टर सजावट (counter display) में सभी प्रकार की वस्तुओं को काउन्टर पर इस प्रकार सजाकर रखते हैं कि ग्राहकों को उनकी आवश्यकता का स्मरण हो जाता है और वे अधिक क्रय के लिये अग्रसर होते हैं।

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उत्तर 14:
निष्पादित अनुबन्ध (Executed Contracts) – वह है जिसके अधीन सभी पक्षकारों ने अपने-अपने सभी दायित्वों को पूरा कर दिया है।
निष्पादनीय अनुबन्ध (Executory Contracts) – वहे है जिसके अधीन सभी पक्षकारों को अपने दायित्व को पूरा करना बाकी है।

उत्तर 15:
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 17 के अनुसार, कपटे से तात्पर्य किसी पक्षकार या उसके एजेन्ट द्वारा जानबूझकर अनुबन्ध के महत्वपूर्ण तथ्यों का मिथ्या वर्णन करना या उन्हें मिलाना ताकि दूसरे पक्षकार को धोखे में रखकर उसे अनुबन्ध करने के लिये प्रेरित कर लिया जाए।

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 18 के अनुसार, जब कोई पक्षकार किसी असत्य बात को उसकी सत्यता में विश्वास रखते हुये वर्णन करता है तो इस प्रकार का कथन मिथ्या वर्णन कहलाता है, अर्थात अनजाने में किये गये ऐसे कथन जो वास्तव में सत्य नहीं हैं। जानबूझकर धोखा देने के उद्देश्य से किसी असत्य बात को सत्य बतलाना कपटपूर्ण मिथ्यावर्णन कहलाता है।

उत्तर 16:
हाँ, हमारे विचार से उद्यमिता अवसर तलाशने की प्रक्रिया है जिसमें एक उद्यमी व्यक्तियों की समस्याओं, उनकी आवश्यकताओं व आकांक्षाओं, सामाजिक व तकनीकी परिवर्तनों, प्रतिस्पर्धा आदि में भी उद्यमिता के अवसर खोजता है एवं उन्हें क्रियान्वित करता है। जैसे एक औद्योगिक क्षेत्र में खाने हेतु छोटा होटल या रेस्टोरेन्ट नहीं है तो व्यक्तियों की इस समस्या में उद्यमी टिफिन सेन्टर खोलकर नये अवसर खोज लेता है।

उत्तर 17:
बीमा सुरक्षा प्रदान करता है—बीमा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह बीमित व्यक्ति को अनिश्चितताओं के विरुद्ध सुरक्षा का वचन देता है। जिसमें कोई भी व्यक्ति जो बीमित है या जिसने बीमा । करवा रखा है भविष्य में होने वाली किसी अज्ञात घटना के घटित होने पर होने वाली हानि के विरुद्ध सुरक्षित हो जाता है। अतः हम इस कथन से सहमत हैं।

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उत्तर 18:
वस्तु एवं सेवा कर की चार विशेषताएँ निम्न हैं– (कोई दो लिखें)

  1. यह बिक्री के स्थान के आधार पर लगने वाला कर है।
  2. यह बिक्री के प्रत्येक स्तर पर लगाया जाने वाला कर है।
  3. भिन्न-भिन्न प्रकार के टैक्सों की समाप्ति के बाद केवल एक ही कर जी एस टी लगाया जायेगा।
  4. जी एस टी दो स्तरों पर (दोहरी व्यवस्था) वसूल किया जायेगा। (CGST एवं SGST)

उत्तर 19:

  1. आदेश की एकता
  2. निर्देश की एकता।

1. आदेश की एकता का सिद्धान्त (Principle of Unity of Command)—इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को एक ही व्यक्ति से आदेश प्राप्त होना चाहिए व उसे भी व्यक्ति के लिये उत्तरदायी होना चाहिए।
2. निर्देश की एकता का सिद्धान्त (Principle of Unity of Direction)—इस सिद्धान्त के अनुसार किसी एक उद्देश्य की शर्तों के लिए क्रियाओं के समूह का संचालन एक ही व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए व उसकी एक ही योजना होनी चाहिए।

उत्तर 20:
‘एक्स’ विचारधारा की मान्यताएँ (Assumptions of ‘X’ Theory)
(a) इस विचारधारा के अनुसार कर्मचारी अपनी इच्छा से कार्य करना नहीं चाहता है क्योंकि काम को टालने में उसे सुख व सन्तोष की प्राप्ति होती है।
(b) एक औसत कर्मचारी स्वभावतः आलसी प्रवृत्ति का होता है एवं वह कम-से-कम काम करना चाहता है।
(c) सामान्यत: कर्मचारी महत्वाकांक्षी नहीं होते हैं तथा ये उत्तरदायित्वों से दूर रहना पसन्द करते हैं।
(d) संगठन में कर्मचारी परम्परागत ढंग से ही कार्य करना पसन्द करता है, उसके अन्दर सृजनशीलता का अभाव पाया जाता है।

उत्तर 21:

  1. कार्य संतुष्टि में अभिवृद्धि—अभिप्रेरणा से कर्मचारियों के निष्पादन स्तर में सुधार होता है। एक अभिप्रेरित कर्मचारी अपनी सारी ऊर्जा संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में लगा देता है अतः इससे कार्य संतुष्टि में अभिवृद्धि होती है।
  2. अच्छे श्रम सम्बन्धों का निर्माण—अभिप्रेरित कर्मचारी न तो कार्य से अनावश्यक अनुपस्थित रहता है और न ही संस्था को छोड़कर जाने की सोचता है। इससे अच्छे श्रम सम्बन्धों का निर्माण होता है।

उत्तर 22:
सरकार के प्रति दायित्व—प्रत्येक प्रबन्धक एक निगमीय नागरिक है अतः सरकार के प्रति उसके निम्न दायित्व होते हैं

  1. सभी सरकारी नियमों व कानूनों का पालन करना
  2. सरकार की नीतियों के अनुरूप व्यवसाय का संचालन करना
  3. व्यावसायिक उत्पादन क्षमता व लाइसेंस क्षमता को पूर्ण उपयोग करना
  4. राष्ट्रीय हित में देश के आर्थिक संसाधनों का विदोहन करना।

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उत्तर 23:
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 68-72 के अन्तर्गत अर्द्ध अनुबन्धों के प्रमुख प्रकार
(Types of Contract according to I.C. Act, Sec 68-72)

  1. अनुबन्ध करने में असमर्थ व्यक्तियों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये मांग।
  2. जब कोई व्यक्ति अपने हित के लिये किसी दूसरे पक्ष को जो भुगतान के लिये वैधानिक रूप से उत्तरदायी हो, भुगतान कर देता है तो वह ऐसे भुगतान को वापस प्राप्त करने का अधिकारी होता है।
  3. स्वेच्छा से किन्तु शुल्क लेने की भावना से किया गया कार्य।

उत्तर 24:

  1. पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन (Promotes capital Formation)—एक उद्यमी जब अपनी बचतों का प्रयोग अपने उद्यम में निवेश के लिए करता है तो वह अपने आस-पास के मित्रों, रिश्तेदारों तथा घनिष्ठ व्यक्तियों को बचत करने के लिये उत्साहित करता है ताकि उनकी बचतों को व्यवसाय में निवेश कर सके। उद्यमियों द्वारा सर्वसाधारण को भी उद्यमों में पूँजी निवेश के लिये आमन्त्रित किया जाता है। रेजर नस्कर्ट के अनुसार, “विकासशील देशों में केवल उद्यमिता ही पूँजी के अभेद्य दुर्ग को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है और पूँजी निर्माण में आर्थिक शक्तियों को गति प्रदान कर सकती है।”
  2. सन्तुलित आर्थिक विकास (Balanced Economic Development)—देश के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक विषमतायें पायी जाती हैं जिसका कारण है, उद्योगों का विकास न होना। उद्यमिता के द्वारा देश के विभिन्न क्षेत्रों । में उद्योगों की स्थापना की जा सकती है जो क्षेत्र कम विकसित हैं वहाँ उद्यमियों को विशेष रियायत व छूट प्रदान करके सन्तुलित आर्थिक विकास किया जा सकता है। प्रो. नर्कसे ने लिखा है कि, “उद्यमी सन्तुलित आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।”

उत्तर 25:
अग्नि बीमा (Fire Insurance)—वह बीमा जिसमें बीमाकर्ता, बीमित को आग लगने से सम्पत्ति को होने वाले नुकसान की क्षति की पूर्ति का वचन देता है, अग्नि बीमा कहलाता है। यह क्षतिपूर्ति का बीमा है। जिसमें वास्तविक हानि की क्षतिपूर्ति की जाती है। यह बीमा सामान्यतः एक वर्ष के लिए किया जाता है। यह बीमा आग से होने वाले नुकसान के अतिरिक्त कुछ निश्चित परिणामजन्य हानियों की क्षतिपूर्ति के लिए भी किया जाता है जैसे- यह बीमा दंगों, बलवों, उपद्रवों, गैस विस्फोट, भूकम्प, आँधी, तूफान, बाढ़, बिजली गिरना, वायुयान क्षति, जलप्लावन आदि जोखिमों से सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए भी करवाया जा सकता है। वर्तमान युग में इस बीमे का महत्व बहुत अधिक है। बड़े-बड़े कारखाने, गोदाम, दुकान, आवासीय बस्तियों में आग का खतरा बना रहता है। अत्यधिक विद्युत उपयोग होने, विद्युत सर्किट बाधा होने आदि के कारण अग्नि से हानि का जोखिम बना रहता है।

उत्तर 26:
ग्राहकों के प्रति दायित्व—ग्राहक बाजार का राजा’ होता है। ग्राहक संतुष्टि ही व्यवसाय की सफलता का आधार है। सरकार भी उपभोक्ताओं के हितों को संरक्षण प्रदान करती है। ग्राहक की उपेक्षा व्यवसाय के लिये घातक सिद्ध होती है। ऐसी स्थिति में ग्राहकों के प्रति प्रबन्धकों को कुछ विशेष दायित्वों को पूरा करना चाहिये जो निम्न प्रकार हैं

  1. ग्राहकों की रुचियों व आवश्यकताओं का अध्ययन करना
  2. उचित मूल्य पर वस्तुएँ एवं सेवाएँ उपलब्ध कराना
  3. प्रमाणित किस्म की वस्तुएँ उपलब्ध कराना
  4. अनुचित प्रवृत्तियों, कम नापतौल, झूठ, जमाखोरी, मिलावट आदि को त्यागना।

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उत्तर 27:

  1. बिक्री का विवरण (धारा 25)—प्रत्येक व्यापारी द्वारा माह के दौरान माल की बिक्री या प्रदान की गई सेवा की जानकारी इस मासिक रिटर्न में प्रस्तुत करनी होगी यह जानकारी माह की समाप्ति से 10 दिन के भीतर प्रस्तुत करनी होगी। इस रिटर्न में शून्य पर की गयी विक्री, अन्तर्राज्यीय बिक्री, क्रय वापसी, देश के बाहर निर्यात, डेबिट नोट, क्रेडिट नोट, आदि सभी को शामिल करना होगा। इस जानकारी को क्रेता द्वारा धारा 26 में पेश की गयी रिटर्न से मैच किया जायेगा यदि कोई अन्तर पाया जाता है तो ठीक करने का अवसर व्यवहारी को दिया जायेगा।
  2. खरीद का विवरण (धारा 26)—जिस प्रकार विक्रय का विवरण धारा 25 के अन्तर्गत भरा गया है उसी प्रकार माह के दौरान खरीदे गये माल एवं प्राप्त की गई सेवाओं की जानकारी प्रत्येक माह की समाप्ति के 15 दिन के भीतर देनी होगी इसमें अन्तर्राज्यीय खरीद जानकारी भी देनी होगी ऐसी संस्थाएँ जिन पर रिवर्स चार्ज के तहत सेवा प्राप्त कर्ता को सेवा कर जमा कराना है उन सेवाओं की जानकारी अलग से देनी होगी। आपूर्ति के सम्बन्ध में कोई डेबिट नोट या क्रेडिट नोट प्राप्त हुये हैं तो उनकी जानकारी भी देनी होगी।

उत्तर 28:
प्रबन्धक की निर्णयात्मक भूमिका (Decisional Roles of Management)-प्रबन्धकों की निर्णयात्मक भूमिका व्यूह रचना निर्माण करने से सम्बन्धित होती है। ये भूमिकायें निम्नलिखित हैं

  1. साहसी या उद्यमी भूमिका (Entrepreneur’s Role)—उद्यमी की भूमिका में प्रबन्धक अपने संगठन के लिए । विभिन्न सम्भावनाओं, अवसरों व खतरों का पता लगाता है तथा उनके अनुरूप परिवर्तनों व सुधारों को लागू करता है। वह वातावरण में होने वाले परिवर्तन से लाभ उठाने के लिये संगठन में नवप्रवर्तनों को लागू करता है।
  2. अशान्ति या उपद्रव निवारक भूमिका (Disturbance Handler’s Role)—उपद्रव निवारक की भूमिका में प्रबन्धक अपने संगठन में उत्पन्न होने वाले दिन-प्रतिदिन के झगड़ों, उपद्रवों, मनमुटावों, संघर्षों, अशान्तियों को दूर करता है। वह कर्मचारियों की विभिन्न समस्याओं व दबावों के प्रति प्रतिक्रिया प्रकट करता है। वह हड़तालों, अनुबन्ध खण्डन, कच्चे माल की कमी, कर्मचारियों की शिकायतों व कठिनाइयों पर विचार कर पद स्थिति तथा अधिकारों का प्रयोग करते हुए उन्हें दूर करता है।
  3. संसाधन वितरक या आबंटक भूमिका (Resource Allocator’s Role)—संसाधन वितरक की भूमिका में प्रबन्धक अधीनस्थों के समय प्रबन्धन, कच्चे माल, यन्त्र, अन्य आपूर्ति आदि का आबंटन निर्णय, संसाधनों व कार्यों के बारे में कार्य योजना बनाना तथा विभिन्न विभागों की संसाधन-प्राथमिकतायें निश्चित कराता है।
  4. मध्यस्थ या वार्ताकार की भूमिका (Negotiator’s Role)—वार्ताकार की भूमिका में प्रबन्धक श्रम संघ, पूर्तिकर्ता, ग्राहक, सरकार व अन्य एजेन्सियों के साथ समझौते सम्बन्धी वार्तायें करके संगठन को लाभान्वित करता है तथा विभिन्न विवादों की दशा में भी उनके हल के लिये मध्यस्थ की भूमिका निभाता है।

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अथवा

प्रबन्ध के छः कार्य निम्नलिखित हैं

  1. नियोजन (Planning)—किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले अपेक्षित कार्यों की रूपरेखा या चित्रण ही नियोजन है। यह पहले से ही निर्धारित करने का कार्य है कि क्या करना है, किस प्रकार करना है तथा किसके द्वारा करना है। नाइल्स के शब्दों में, “नियोजन किसी उद्देश्य को पूरा करने हेतु सर्वोत्तम कार्य पथ का चुनाव करने एवं विकास करने की जागरूक प्रक्रिया
  2. संगठन (Organisation)—यह निर्धारित योजना के क्रियान्वयन के लिए कार्य सौंपने, कार्यों को समूहों में बाँटने, अधिकार निश्चित करने एवं संसाधनों के आबंटन के कार्य का प्रबन्धन करता है। यह आवश्यक कार्यों एवं संसाधनों का निर्धारण करता है। यह निर्णय लेता है कि किस कार्य को कौन करेगा, इन्हें कहाँ किया जाएगा तथा कब किया जायेगा।
  3. निर्देशन (Direction)—निर्देशन का कार्य कर्मचारियों को नेतृत्व प्रदान करना, प्रभावित करना एवं अभिप्रेरित करना है जिससे कि वह सुपुर्द कार्य को पूरा कर सकें। इसके लिए एक ऐसा वातावरण तैयार करना होगा जो कर्मचारियों को सर्वश्रेष्ठ ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित कर सके।
  4. नियंत्रण (Control)—नियंत्रण कार्य में निष्पादन के स्तर निर्धारित किये जाते हैं, वर्तमान निष्पादन को मांपा जाता है। इसका पूर्व निर्धारित स्तरों से मिलान किया जाता है और विचलन की स्थिति में सुधारात्मक कदम उठाये जाते हैं। इसके लिए प्रबन्धकों को यह निर्धारित करना होता है कि सफलता के लिए क्या कार्य एवं उत्पादन महत्वपूर्ण है, उसका कैसे और कहाँ मापन किया जा सकता है तथा सुधारात्मक कदम उठाने के लिए कौन अधिकृत होगा।
  5. समन्वय (Co-ordination)—किसी संस्था के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में सामूहिक प्रयासों में किया जाने वाला तालमेल ही समन्वय है। प्रबन्ध के कार्यों में समन्वय एक रचनात्मक व सृजनात्मक शक्ति है क्योंकि बिना समुचित समन्वय के भौतिक एवं मानवीय साधन केवल साधन मात्र रह जाते हैं, कभी उत्पादक नहीं बन पाते हैं। मैसी के अनुसार, “समन्वय अन्य प्रबन्धकीय कार्यों के उचित क्रियान्वयन का परिणाम है।”
  6. निर्णयन (Decision Making)—निर्णयन किसी कार्य को करने या नहीं करने के सम्बन्ध में उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में से किसी एक श्रेष्ठ विकल्प के चयन की प्रक्रिया है। व्यावसायिक क्रिया के सफल संचालन में समय-समय पर उचित निर्णय लेना अत्यन्त आवश्यक होता है, इसलिए हरबर्ट साइमन कहते हैं। कि-“निर्णयन एवं प्रबन्ध समानार्थक हैं।”

उत्तर 29:
विज्ञापन की आवश्यकता के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं

  1. नये उत्पादन की जानकारी (New Products Information)—निर्माताओं द्वारा अपने नवीन उत्पाद की जानकारी उपभोक्ताओं को देने के लिये विज्ञापन की आवश्यकता होती है। विज्ञापन द्वारा ही उपभोक्ता वस्तु की उपयोगिता एवं प्रयोग विधि को जान पाते हैं।
  2. नये ग्राहकों की तलाश (Looking for New customers)—विज्ञापन का कार्य वस्तु के बाजार में आने से पहले ही उसकी बिक्री के लिये माहौल तैयार करना तथा बाजार में उसके सम्भावित ग्राहक को खोजकर उन्हें वस्तु खरीदने के लिये प्रेरित करना होता है। प्रतिस्पर्धात्मक उत्पादन के इस दौर में विज्ञापन नये ग्राहकों को अनेक उत्पादों में से किसी एक उत्पाद को खरीदने के लिये प्रेरित करके वस्तु की बिक्री को बढ़ाता है।
  3. उपभोक्ता को उत्पादों का सही ज्ञान (Correct knowledge of consumer products)—बाजार में विभिन्न कम्पनियों के एक जैसे उत्पाद मौजूद रहते हैं। जिनको देखकर उपभोक्ता भ्रमित हो जाता है कि इनमें से कौन सी वस्तु उसके वास्तविक उपयोग के लिये है तथा वह वस्तु उसके लिए कितनी उपयोगी रहेगी। निर्माताओं द्वारा वस्तुओं पर कितनी छूट दी जा रही है या कोई विशेष उपहार ऑफर दिया जा रहा है आदि की जानकारी विज्ञापन द्वारा ही दी जाती है।
  4. मूल्य परिवर्तन की जानकारी (Price change Information)—वस्तु के निर्माण में लागत के -कमअधिक होने के कारण जो मूल्य परिवर्तन होता है उसकी जानकारी निर्माताओं द्वारा उपभोक्ताओं को विज्ञापन के माध्यम से दी जाती है। जिससे उपभाक्ताओं को वस्तु खरीदने में कोई भ्रम नहीं होता है।

अथवा

राष्ट्र के लिए विपणन को महत्वविपणन प्रबन्ध का राष्ट्र के लिये महत्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

  1. राष्ट्रीय साधनों का सदुपयोग (Best Use of National instruments)—देश में विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक एवं पूंजीगत सा धन उपलब्ध हैं। उनका उचित वितरण एवं सदुपयोग जरूरी है। कुशल विपणन प्रबन्धन द्वारा इन साधनों का समय, स्थान, अधिकार, रूप एवं ज्ञान के आधार उपयोगिता का सृजन किया जा रहा है।
  2. मांग एवं पूर्ति में सन्तुलन (Balance in Deinand and Supply)—विपणन प्रबन्ध द्वारा मांग और पूर्ति में उचित सन्तुलन बना रहता है। फलस्वरूप राष्ट्र में आर्थिक मन्दी, बेरोजगारी, गरीबी, आदि बुराइयों में कमी आती है।
  3. विदेशी मुद्रा अर्जन में सहायक (Helpful in the Foreign exchange receipts)—विपणन प्रबन्ध अन्तर्राष्ट्रीय बाजार अनुसन्धान करके विदेशी बाजारों में फर्म को प्रवेश दिलाता है। साथ ही लागत एवं किस्मों | में सुधार करके निर्यात बाजार में वस्तु की पहचान बढ़ाता है। फलस्वरूप विदेशी मुद्रा की प्राप्ति में वृद्धि होती है।
  4. सरकारी आय में वृद्धि (Official revenue growth)—प्रभावी विपणन व्यवस्था से माल के उत्पादन, विक्रय तथा आय में वृद्धि होती है जिससे सरकार को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष करों के माध्यम से सरकारी आय में वृद्धि होती है।

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उत्तर 30:
उत्पीड़न का आशय जोर जबरदस्ती, दबाव, धमकी अथवा बल प्रयोग आदि से लिया जाता है। धारा 15 के अनुसार, जब ठहराव करने के लिए एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को बाध्य करता है अर्थात कोई ऐसा कार्य करना या करने की धमकी देना जो भारतीय दण्ड विधान द्वारा वर्जित है। अथवा किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने के लिए किसी सम्पत्ति को अवैध रूप से रोक लेना या रोकने की धमकी देना ही उत्पीड़न कहलाता है।
उत्पीड़न सम्बन्धी प्रावधान/नियम निम्नलिखित हैं—

  1. उत्पीड़न का आशय ज़बरदस्ती, दबाव, धमकी अथवा बल आदि से लिया जाता है।
  2. धारा 15 के अनुसार, जब ठहराव करने के लिये एक पक्षकार दूसरे पक्षकार का बाध्य करता है अर्थात कोई ऐसा कार्य करना या करने की धमकी देना जो भारतीय दण्ड विधान द्वारा वर्जित है अथवा किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने के लिये किसी सम्पत्ति को अवैध रूप से रोक लेना या रोकने की धमकी देना ही उत्पीड़न कहलाता है।
  3. उत्पीड़न का उद्देश्य ठहराव करना होता है।
  4. पक्षकार अनुबन्ध करने के उद्देश्य से स्वयं पक्षकार के विरुद्ध अथवा उसके किसी सम्बन्धी के विरुद्ध भी उत्पीड़न का प्रयोग कर सकता है।
  5. उत्पीड़न का प्रयोग जिस स्थान पर किया गया है। वहाँ पर भारतीय दण्ड विधान का लागू होना अथवा नहीं होना महत्वहीन है।
  6. कर्मचारियों द्वारा अपने नियोक्ता को अपनी माँगे मनवाने के लिये यदि कोई धमकी दी जाती है तो ऐसी धमकी को उत्पीड़न नहीं माना जाता है।

अथवा

ऐसा ठहराव जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय न हो व्यर्थ ठहराव कहलाता है। ऐसा ठहराव पक्षकारों के मध्य किसी प्रकार का वैधानिक दायित्व उत्पन्न नहीं करता है। ऐसा पक्षकार, दूसरे पक्षकार को अपने वचन के पालन के लिये बाध्य नहीं कर सकेगा। अनुबन्ध अधिनियम में निम्नलिखित ठहराव स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित कर दिये गये हैं—

  1. प्रत्येक ऐसा व्यक्ति अनुबन्ध करने की क्षमता रखता है जो कि सम्बन्धित राजनियम के अनुसार वयस्क हो, स्वस्थ मस्तिष्क का हो, किसी भी राजनियम के द्वारा जिसके वह अधीन है, अनुबन्ध करने के लिये अयोग्य घोषित न कर दिया हो अर्थात अनुबन्ध करने के अयोग्य पक्षकारों (अवयस्क, अस्वस्थ मस्तिष्क, राजनियम द्वारा अयोग्य) द्वारा किये गये ठहराव व्यर्थ माने जाते हैं।
  2. जब ठहराव के दोनों पक्षकार ठहराव के लिये सहमत हों परन्तु ठहराव में आवश्यक तथ्य सम्बन्धी गलती हो तो ऐसा ठहराव व्यर्थ होता है।
  3. विदेशी राजनियम के सम्बन्ध में गलती के आधार पर हुये ठहराव पूर्णतः व्यर्थ होते हैं।
  4. अवयस्क को छोड़कर किसी भी अविवाहित व्यक्ति के विवाह में रुकावट डालना या किसी व्यक्ति को विवाह के लिये बाध्य करना लोकनीति के विरुद्ध माना जाता है तथा प्रत्येक व्यक्ति को अपने विवाह के सम्बन्ध में निर्णय लेने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है, ऐसी स्वतन्त्रता में रुकावट डालने वाले ठहराव व्यर्थ होते हैं।
  5. प्रत्येक ऐसा ठहराव जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के किसी कानूनी व्यवसाय, धन्धे तथा व्यापार में रुकावट डाली जाती है तो वह ठहराव उस सीमा तक व्यर्थ होगा। कारण कि भारतीय संविधान द्वारा देश के प्रत्येक नागरिक को व्यापार, व्यवसाय व पेशे की स्वतन्त्रता का मौलिक अधिकार दिया गया है।
  6. एक वैध ठहराव के लिये प्रतिफल एवं उद्देश्यों का वैधानिक होना आवश्यक है तभी एक अनुबन्ध प्रवर्तनीय होगा। जिन ठहरावों का प्रतिफल तथा उद्देश्य अवैधानिक होता है, वे व्यर्थ माने जाते हैं।

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