RBSE Solutions for Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 7 सुभद्रा (संस्मरण)

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 7 सुभद्रा (संस्मरण)

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 7 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
उस युग में कविता रचना माना जाता था
(अ) अपराध
(ब) साहस
(स) श्रेष्ठ
(द) शान्ति
उत्तर:
(अ) अपराध

प्रश्न 2.
जहाँ बंधन है वहाँ
(अ) सहयोग है।
(ब) असंतोष और क्रान्ति है
(स) विद्रोह है।
(द) निराशा है।
उत्तर:
(ब) असंतोष और क्रान्ति है

प्रश्न 3.
सुभद्रा ने अंतिम विदा किस दिन ली
(अ) नागपंचमी को
(ब) पूर्णिमा को
(स) वसंत पंचमी को
(द) अमावस्या को।
उत्तर:
(स) वसंत पंचमी को

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 7 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दोनों बाल सखियाँ किन कक्षाओं में पढ़ती थीं?
उत्तर:
दोनों बाल सखियाँ अर्थात् लेखिका महादेवी वर्मा कक्षा पाँच में और सुभद्रा कुमारी चौहान कक्षा सात में पढ़ती थीं।

प्रश्न 2.
सुभद्रा के पति का क्या नाम था?
उत्तर:
सुभद्रा के पति का नाम लक्ष्मणसिंह था।

प्रश्न 3.
नारी रुद्र कब बनती है?
उत्तर:
नारी अपने विकास कार्य में बाधा आने पर अथवा अपनी कल्याणकारी सृष्टि (परिवार) पर संकट आने पर रुद्र बनती है।

प्रश्न 4.
सुभद्रा जी के काव्य का प्राण क्या था?
उत्तर:
जीवन के प्रति ममता भरा विश्वास ही सुभद्रा के काव्य का प्राण था।

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“क्या तुम कविता लिखती हो” का दूसरी (लेखिका) ने क्या उत्तर दिया?
उत्तर:
सुभद्रा ने लेखिका से पूछा कि क्या तुम कविता लिखती हो” तो लेखिका ने मुँह से कोई उत्तर नहीं दिया, बल्कि अपना सिर हिलाकर इस प्रकार मना किया जैसे वह हाँ और ना एक साथ बोल रही हों। उनके मना करने का तरीका ऐसा था, जिससे लग रहा था वह एक ही साथ कविता लिखने की बात को स्वीकार भी कर रही थीं और अस्वीकार भी कर रही थीं।

प्रश्न 2.
लेखिका ने सुभद्रा के व्यक्तित्व का कैसा चित्र प्रस्तुत किया है?
उत्तर:
सुभद्रा का व्यक्तित्व दीपशिखा के समान प्रकाशित था, जिसकी समग्रता को आँखों की अपेक्षा हृदय अधिक समझ सकता था। सुभद्रा बँझले कद की बहुत पतले शरीर की थीं। गोल मुख, चौड़ा माथा, सीधी भौंह, भावनाओं से पूर्ण आँखें, छोटी-सी नाक, मुस्कराते होंठ और उनकी दृढ़ता का परिचय देती उनकी ठुड्डी ये सब मिलकर सुभद्रा को अत्यंत निश्छल, कोमल और उदार व्यक्तित्व वाली भारतीय नारी के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

प्रश्न 3.
“सुभद्रा जी की हँसी संक्रामक भी कम न थी” से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सुभद्रा जी का स्वभाव हँसमुख था। वह सदैव हँसती-मुस्कराती रहती थीं और दूसरों को भी हँसाती रहती थीं । कोई भी व्यक्ति जो उनके संपर्क में आता स्वत: ही हँसने लग जाता था, फिर चाहे वह कितना ही गंभीर स्वभाव का क्यों न हो। सुभद्रा जी के हँसमुख स्वभाव से वह अछूता नहीं रह पाता था। वह स्वयं तो हँसती थी, दूसरों को भी प्रत्येक परिस्थिति में हँसने के लिए प्रेरित करती थीं । स्वभाव से गंभीर लेखिका भी उनके साथ होने पर हँसती ही रहती थी।

प्रश्न 4.
“घर आने पर उनकी दशा द्रोणाचार्य जैसी हो जाती थी।” का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
द्रोणाचार्य की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। अपने परिवार का पालन-पोषण वह बहुत मुश्किल से कर पाते थे। एक बार अश्वत्थामा के दूध पीने की जिद को उन्होंने उसे चावल का सफेद पानी पिलाकर पूरा किया। उसी प्रकार सुभद्रा जी की भी घर की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। जेल से छूटकर घर आने के बाद उन्हें भी अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता था। लेकिन इन परिस्थितियों को सुधारने के लिए उन्होंने कभी समझौता नहीं किया।

प्रश्न 5.
सुभद्रा जी की तुलना मधुमक्षिका से क्यों की है?
उत्तर:
सुभद्रा की तुलना मधुमक्षिका अर्थात् मधुमक्खी से इसलिए की गई है क्योंकि जिस प्रकार मधुमक्खी आम, बबूल, कीकर, ओक सभी के मधुर और तीखे रसों का पान करके उन्हें मधुर शहद में परिवर्तित करके लौटाती है, उसी प्रकार अपने जीवन में मिले सभी प्रकार के खट्टे-मीठे और सहनीय व असहनीय अनुभवों को सुभद्रा ने अपनी मधुर कविता के रूप में सभी को लौटाया। उनके इन अनुभवों का परिणाम सभी के लिए समान था।

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 7 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
“सुभद्रा ऐसी ही गृहिणी थी” के आधार पर उनके गृहस्थी सम्बन्धी कार्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सुभद्रा एक कुशल गृहिणी थी। एक कवियित्री होने का अभिमान उन्हें छू तक नहीं पाया था। जिन हाथों से वह घर से बाहर 
रहने पर कविताएँ लिखती थी, घर पर रहने पर उन्हीं से गोबर के कंडे पाथती थी। पूरी तन्मयता के साथ अपने घर के आँगन को गोबर से लीपती थी, बर्तन माँजती थी। अपने घर के सभी कार्य वह स्वयं ही किया करती थी। वह उन गृहिणियों में से थी, जो अपने घर को पूरे मन से प्रेम करती थीं। उन्होंने अपने अधूरे बने हुए घर में सब-कुछ भली-भाँति सँजोकर रखा हुआ था।

अपने घर के आँगन में कई छोटे-बड़े पेड़, फूलों के पौधों की क्यारियाँ, ऋतु के अनुसार सब्जी आदि के पौधे भी लगा रखे थे। उनके घर में गाय और बछड़ा भी थे, जिनका रख-रखाव वह स्वयं किया करती थी, साथ ही अपने बच्चों का पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा का पूरा उत्तरदायित्व सँभालती और अपने स्नेह और ममता से उन्होंने अपने छोटे से घर को इतना बड़ा बना रखा था कि उनके द्वार पर आने वाला न स्वयं का अनिमंत्रित समझता था और न ही कोई उनके द्वार से निराश होकर जाता था।

प्रश्न 2.
“वे राजनैतिक जीवन में ही नहीं पारिवारिक जीवन में भी विद्रोहिणी थीं” के आधार पर सुभद्रा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सुभद्रा ने सदैव बंधनों के प्रति विद्रोही रवैया अपनाया। वे राजनैतिक उठा-पटक में एक विद्रोही के रूप में सामने आईं। जिसके लिए उन्हें अनेक बार कारागार भी जाना पड़ा। 
अपने पारिवारिक जीवन में भी वह विद्रोहिणी रहीं। वह सदैव ही स्त्री के व्यक्तित्व को दमन करने वाले सामाजिक बंधनों को तोड़ती. रहीं । उस समय बच्चों के पालन-पोषण करने के लिए बाल मनोविज्ञान का सहारा नहीं लिया जाता था। बच्चों को शिष्टाचार सिखाने के प्रयास में माता-पिता कभी-कभी गलत व्यवहार करने लग जाते थे। इन सबके विपरीत सुभद्रा जी ने अपने बच्चों का पालन मनोविज्ञान के आधार पर किया।

उन्होंने अपने बच्चों को मुक्त वातावरण प्रदान किया। उनको इच्छा के विरुद्ध कार्य करने के लिए मजबूर नहीं किया। बच्चों के प्रति उनके ऐसे व्यवहार को सभी ने विरोध किया, किन्तु उन्होंने अपने बच्चों का पालन-पोषण स्नेह और स्वतन्त्रता के वातावरण में किया। इसके परिणामस्वरूप उनके बच्चों ने भी कभी ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे उन्हें नीचा देखना पड़े।इतना ही नहीं अपनी पुत्री के विवाह के लिए भी उन्हें अपने परिवार से संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने एक पल के लिए इस झूठ को स्वीकार नहीं किया कि केवल जाति के आधार पर ही वर की योग्यता को परखा जा सकता है। इतना ही नहीं, उन्होंने कन्यादान की प्रथा का भी विरोध किया।

प्रश्न 3.
सुभद्रा जी का महादेवी के प्रति अपार स्नेह अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
सुभद्रा जी का महादेवी के प्रति अपार स्नेह था। क्रॉथवेस्ट हॉस्टल से प्रारंभ हुई उनकी मित्रता सुभद्रा के अंत तक रही और अभी भी सुभद्रा जी की स्नेह से पूर्ण स्मृतियाँ महादेवी के स्मृतिपटल पर सजीव हैं। सुभद्रा ने महादेवी को काव्य लेखन के लिए प्रेरित किया। सुभद्रा ने ही पूरे हॉस्टल को उनकी इसी प्रतिभा से परिचित कराया। अपने सख्य भाव को सुभद्रा जी ने सरल स्नेह से समेटकर रखा। 
अपने परिवार में सबसे बड़ी होने कारण सभी महादेवी की देख-रेख और चिंता किया करते थे। घर के बड़े महादेवी को ब्रह्मसूत्र की किताबों को पढ़ते देखकर उन्हें अपनी चिंता से बाहर समझ लिया।

लेकिन सुभद्रा पर उनके इस व्यवहार का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह सदैव महादेवी के साथ मुक्त भाव से हँसती और बातें करती र्थी । जब कभी सुभद्रा प्रयाग आती थी, तब वह महादेवी से मिलने के लिए अवश्य आती र्थी। उनके आने पर उनकी सेविका उन पर अपना रौब झाड़ने लगती थी। सुभद्रा जब भी महादेवी से मिलने के लिए आती थीं, वह अपने साथ सुभद्रा के लिए कोई न कोई उपहार अवश्य लाती थीं, वह जब कभी प्रयाग नहीं उतर पाती थीं तो महादेवी को अपने पास स्टेशन बुला लिया करती थीं और वहीं अपने साथ लाई भेट दिया करती थीं। किसी सभा या कवि सम्मेलन में साथ जाने पर कोई भी दृश्य यदि सुभद्रा को अच्छा लगता तो वह महादेवी को भी उसे देखने के लिए प्रेरित करर्ती। यह उनकी मित्रता और स्नेह ही था, जिसने महादेवी को खड़ी बोली में लेखन के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 4.
“उनके वात्सल्य का विधान ही अलिखित और अटूट था” के आधार पर अपने बच्चों के प्रति सुभद्रा जी के निभाये दायित्वों को समझाइये।
उत्तर:
अपनी संतान के भविष्य को सुखमय बनाने के लिए सुभद्रा ने प्रत्येक त्याग किया। इतना ही नहीं उन्होंने बच्चों को पालन-पोषण पारंपरिक तरीके से हटकर किया। उस समय बच्चों के लालन-पालन में मनोविज्ञान का सहारा नहीं लिया जाता था। अपने बच्चों को शिष्टता सिखाने के प्रयास में माता-पिता स्वयं ही अशिष्टता की सीमा तक पहुँच जाते थे। वे बच्चों के साथ जिद और मार-पीट से काम लेते थे। बच्चों को अपने अनुसार कार्य करने के लिए मजबूर किया करते थे।
ऐसे समय में सुभद्रा ने अपने बच्चों के पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा में मनोविज्ञान को अपनाया, क्योंकि कवि मन ने उन्हें कभी भी अपने बच्चों के प्रति इतना सख्त और कठोर नहीं होने दिया। उन्होंने अपने बच्चों को विकसित होने और भविष्य निर्माण के लिए मुक्त वातावरण प्रदान किया।

वह एक माँ के साथ-साथ उनकी मित्र भी बनी। बच्चों के प्रति उनके इतने अधिक स्नेहिल और मुक्त व्यवहार समाज के समझदार लोगों को उचित नहीं लगा। उनके अनुसार सुभद्रा का ऐसा अत्यधिक स्नेह बच्चों के विकास के स्थान पर उन्हें बिगाड़ेगा। किन्तु इतने पर भी सुभद्रा ने कभी भी अपने बच्चों को किसी कार्य के लिए मजबूर नहीं किया। जिसका उन्हें सकारात्मक परिणाम भी मिला जैसे उन्होंने कभी उन्होंने अपने बच्चों को बाध्य नहीं किया वैसे ही उनके बच्चों ने कभी ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे सुभद्रा को किसी के सामने अपमानित होना पड़े। यह सब उनका वात्सल्य था, जिसके विषय में उन्होंने कभी नहीं लिखा और जो सदैव अटूट रहा।

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 7 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा की रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
महादेवी वर्मा ने हिन्दी साहित्य की दोनों विधाओं-गद्य और पद्य में रचनाएँ लिखी हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैंकाव्य- निहार, रश्मि, नीरजी, सांध्यगीत, दीपशिखा, सप्तपर्णा, प्रथम आयाम, अग्निरेखा। गद्य- रेखाचित्र- अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ। संस्मरण- पथ के साथी, मेरा परिवार, संस्मरण। निबन्ध-श्रृंखला की कड़ियाँ, विवेचनात्मक गद्य, साहित्यकार की आस्था, अन्य निबन्ध, संकल्पिता। ललित निबंध- क्षणदा।। कहानियाँ- गिल्लू, चुने हुए भाषणों का संकलन-संभाषण।

प्रश्न 2.
बचपन से वर्तमान काल के मध्य स्मृतियों में क्या परिवर्तन आता है?
उत्तर:
बचपन से वर्तमान काल के मध्य स्मृतियाँ धुंधली होती चली जाती हैं। कुछ स्मृतियाँ तो पूरी तरह से नष्ट तक हो जाती हैं। हमें केवल उन लोगों या वस्तुओं से जुड़ी बातें और स्मृतियाँ याद रह जाती हैं, जिसके साथ हमारे बहुत आत्मीय संबंध थे। अन्य लोगों से जुड़ी बातें या स्मृतियाँ कभी-कभी हमें बहुत याद दिलाने पर भी स्मरण नहीं आती हैं।

प्रश्न 3.
लेखिका के द्वारा कविता का सत्य जानने के लिए सुभदा ने क्या किया?
उत्तर:
सुभद्रा को लेखिका के द्वारा गणित की कापी में कविता लिखने की बात किसी लड़की से ज्ञात हुई । इस सत्य का पता लगाने के लिए सुभद्रा ने लेखिका से इस बारे में पछा, किन्तु लेखिका के द्वारा हाँ और ना का मिला-जुला उत्तर पाकर वह लेखिका को उसकी डेस्क तक ले गईं। वहाँ से लेखिका की गणित की कॉपी उठाकर उसके पन्ने पलटकर देखने लगी। इस प्रकार उन्होंने उसे कॉपी में अंकों के बीच लिखी गई कविता की तुकबन्दियों को पढ़ लिया।

प्रश्न 4.
उस समय में कविता लिखना कैसा समझा जाता था? लेखिका द्वारा गणित की कॉपी पर कविता लिखने को कागज का दुरुपयोग और विषय का निरादर क्यों बताया है?
उत्तर:
उस समय में कविता लिखने को किसी अपराध के समान समझा जाता था। कोई भी यदि कविता लिखता तो उसके विषय में सुनकर लोगों की भौंहें ऐसे तने जाती थीं जैसे उन्हें कोई कड़वा-तीखा पदार्थ पीना पड़ रहा हो । ऐसी स्थिति में यदि गणित जैसे गंभीर और महत्त्वपूर्ण विषय की कॉपी में कविता लिखना तो अक्षम्य अपराध था । लेखिका ने उसी गणित की कॉपी में अपनी कविता की थी। इसलिए इसे कागज का दुरुपयोग और विषय का निरादर बताया गया है।

प्रश्न 5.
लेखिका की गणित कार्यपुस्तिका में कविता की तुकबंदियाँ पाकर सुभद्रा ने क्या किया? इससे लेखिका की क्या मनोदशा हुई?
उत्तर:
लेखिका की गणित की कार्यपुस्तिका के पृष्ठ उलटकर देखने पर सुभद्रा को जैसे ही कविता की तुकबंदियाँ दिखाई दीं, उन्होंने अपने हाथ में अजीब ढंग से लेखिका की कॉपी पकड़ी और दूसरे हाथ से एक अपराधी के समान लेखिका की उँगलियाँ कसकर पकड़ लीं। वह लेखिका का हाथ पकड़कर हॉस्टल के प्रत्येक कमरे में जा-जा कर सभी को लेखिका की कविता लिखने की बात बताने लगीं। सुभद्रा के ऐसे व्यवहार से लेखिका को ऐसा लगा जैसे वह कोई अपराधिनी है। उनका मन बहुत रोने को हुआ किन्तु वह रोई नहीं।

प्रश्न 6.
लेखिका ने सुभद्रा की हँसी के विषय में क्या बताया है?
उत्तर:
“मैंने हँसना सीखा है, मैं नहीं जानती रोना” कहने वाली सुभद्रा की हँसी निश्चय ही असाधारण थी। जिस प्रकार माता की गोद में दूध पीता बालक जब अचानक से हँस पड़ता है, तब उसकी दूध से धुली हँसी में एक निश्चिन्त तृप्ति और सरल विश्वास होता है वैसा ही भाव सुभद्रा जी की हँसी में मिलता था। वह भी सरल हृदय से हँसती थीं। इतना ही नहीं उनकी हँसी किसी संक्रामक से कम नहीं थी क्योंकि दूसरे भी उनके सामने बात करने से अधिक हँसने को महत्त्व देने लगते थे। स्वयं लेखिका को भी उन्होंने ही हँसना सिखाया था।

प्रश्न 7.
बचपन की उस घटना का वर्णन कीजिए जिसे सुभद्रा अक्सर लेखिका को सुनाया करती थी?
अथवा
बचपन की उस घटना का वर्णन कीजिए जिससे यह सिद्ध होता है कि सुभद्रा बचपन से ही अपने लक्ष्य पथ पर अडिग रह वाली और हँसते-हँसते सब कुछ सहने वाली थीं।
उत्तर:
कृष्ण और गोपियों की कथा सुनकर एक दिन सुभद्रा ने गोपी बनकर कृष्ण को ढूँढ़ने जाने का निश्चय किया। अगले दिन वह लकुटी लेकर गायों और ग्वालों के झुंड के साथ कीकर और बबूल से भरे जंगल में पहुँच गईं और कृष्ण को खोजने लगीं। गोधूलि वेला में चरवाहे और गायें तो घर लौट गए, लेकिन गोपी बनने की दृढ़ इच्छा रखने वाली सुभद्रा कृष्ण को खोजती रही। उनके पैरों में काँटे चुभे, कपड़े फट गए। प्यास से गला सूखा किन्तु वह लौटी नहीं। अंतत: रात होने पर उनके घरवाले उन्हें खोजकर घर वापस लाए।

प्रश्न 8.
सुभद्रा का विवाह किसके साथ हुआ? विवाह के पश्चात उन्हें किन परिस्थितियों के लिए प्रस्तुत होना पड़ा? लिखिए।
उत्तर:
सुभद्रा का विवाह स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मण सिंह से हुआ। विवाह से पूर्व से उन्हें ज्ञात था कि एक नववधू के रूप में उनका जो अधिकार है, उसे देने के लिए न उनके पति के पास समय है न लेने के लिए उनके पास । विवाह के पश्चात् उन्होंने अपनी गृहस्थी जे में बसाई। घर के सुखों के स्थान पर वे पति के साथ कष्ट सहने के लिए प्रस्तुत हुईं। उन्होंने जेल में ही अपनी संतानों को जन्म दिया । उनका पालन-पोषण भी किया।

प्रश्न 9.
सुभद्रा के पति लक्ष्मणसिंह जी ने महादेवी से सुभद्रा की क्या शिकायत की? इस पर सुभद्रा ने क्या उत्तर दिया?
उत्तर:
एक बार सुभद्रा के पति लक्ष्मण सिंह ने महादेवी से सुभद्रा की शिकायत करते हुए कहा कि सुभद्रा ने उनसे कभी भी कु नहीं माँगा। पति की इस शिकायत का उत्तर देते हुए सुभद्रा ने उत्तर दिया कि यह इतने होशियार हैं कि इन्होंने विवाह के पहले दिन ही उनसे कुछ न माँगने का अधिकार माँग लिया था। अब इस स्थिति में यदि मैं इनसे कुछ माँगती तो वचन-भंग करने का दोष लगता और नहीं माँगा तो इनके अहंकार को ठेस लगती है।

प्रश्न 10.
कारागार में रहते हुए उन्होंने भूख से रोती बालिका को कैसे बहलाया? उनकी तुलना किससे और क्यों की गई है?
उत्तर:
कारागार में रहते हुए उन्होंने भूख से रोती बालिका को बहलाने के लिए उन्होंने अरहर दलने वाली महिला कैदियों से थोड़ी-सी अरहर की दाल ली और उसे तवे पर भूनकर उसे बालिका को खिलाया। उनकी तुलना द्रोणाचार्य से की गई है, क्योंकि एच द्रोणाचार्य ने अपने दूध के लिए रोते अपने पुत्र अश्वत्थामा को चावल का सफेद पानी दूध की जगह पिलाया था। सुभद्रा और द्रोण दोनों की सामाजिक परिस्थितियाँ भले ही भिन्न हों किन्तु उनकी आर्थिक परेशानियाँ और संतान मोह समान था।

प्रश्न 11.
वीर रस की सुन्दर कविताएँ लिखने वाली सुभद्रा घर में क्या-क्या कार्य किया करती थीं?
उत्तर:
वीर रस की सुन्दर कविताएँ लिखने वाली सुभद्रा अपने घर के सभी कार्य स्वयं किया करती थीं। जिन हाथों से वह बाहर कविताएँ लिखा करती थीं, उन्हीं हाथों से घर के अन्दर गोबर के कण्डे पाथती र्थी । एक सुघड़ गृहिणी के समान अपने समस्त दायित्वों का निर्वाह करती। घर-आँगन को गोबर से लीपती। बर्तन साफ करती। घर में लगे पेड़-पौधों और गाय व उसके बछड़े की देखभाल करती। अपने बच्चों को सम्हालती व उनकी शिक्षा-दीक्षा का कार्य भी सँभालती थी।

प्रश्न 12.
सुभद्रा ने किस प्रकार अपनी गृहस्थी को विराट स्वरूप प्रदान किया था?
अथवा
सुभद्रा जी ने अपने आँगन में कैसे-कैसे पौधे रोप रखे थे?
उत्तर:
सुभद्रा ने अपने अधबने घर को अपनी मेहनत और लगन से बहुत खूबसूरती से सजाया हुआ था। उन्होंने अपने घर के आँ। में अनेक छोटे-बड़े पेड़, रंग-बिरंगे फूलों के पौधों की क्यारियाँ बनाई हुई थीं। इतना ही नहीं उन्होंने मौसम के अनुसार खाई जाने वाली तरकारियों के भी पौधे लगाए हुए थे। इन सभी ने घर के आँगन की शोभा को दुगना कर दिया था। उन्होंने अपने यहाँ गाय और उसके बछड़े भी पाले हुए थे। इस प्रकार उन्होंने अपनी गृहस्थी को विराट स्वरूप प्रदान किया हुआ था।

प्रश्न 13.
सुभद्रा के माध्यम से लेखिका महादेवी वर्मा ने नारी शक्ति की महत्ता को किस प्रकार प्रतिपादित किया है?
उत्तर:
नारी के मन में उत्पन्न होने वाला गंभीर और ममतापूर्ण जो वीर भाव उत्पन्न होता है वह पुरुष के अहम् और पुरुषार्थ से बहुत अधिक महान और दिव्य होता है। पुरुष अपने व्यक्तिगत अथवा समूहगत बदले की भावना के कारण अथवा केवल अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए वीर धर्म अपना लेता है, जबकि स्त्री केवल अपने निर्माण (विकास) की बाधाओं को दूर करने के लिए अथवा 
अपनी कल्याणकारी सृष्टि की रचना के लिए ही भयंकर रूप धारण करती है। वह भीमाकृति चंडी भी है और वत्सला अंबा भी है। उसकी वीरता के समकक्ष रखे जाने वाली प्रतिभाएँ संसार में बहुत कम हैं।

प्रश्न 14.
“थककर बैठने वाला अपने न चलने की सफाई खोजते-खोजते लक्ष्य पा लेने की कल्पना कर सकता है, पर चलने वालों को इसका अवकाश कहाँ।” आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आशय – इस संसार में तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं। पहले वो जो लक्ष्य के मार्ग में आने वाली बाधाओं के विषय में सोचकर पहले ही अपना विचार त्याग देते हैं। दूसरे वो जो अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे तो बढ़ते हैं, किन्तु बाधाओं से थककर वहीं रुक जाते हैं। ऐसे लोग प्रयत्न करने के स्थान पर केवल अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की कल्पना करते रहते हैं। इसके विपरीत निरन्तर प्रयास करने वाले मनुष्य होते हैं, जिनके पास न थककर बैठने का समय होता है। न ही प्रयास न करने के कारणों की सफाई देने का।

प्रश्न 15.
”जब समाज और परिवार की सत्ता के विरुद्ध कुछ कहना अधर्म माना जाता था” उस समय में भी सुभद्रा के इनके विषय में क्या विचार थे?
उत्तर:
सुभद्रा का मानना था कि समाज और परिवार व्यक्ति को बाँधकर रखते हैं। ये बंधन देशकालानुसार बदलते रहते हैं और उन्हें बदलते रहना चाहिए वरना वे व्यक्तित्व के विकास में सहायता करने के स्थान पर बाधा पहुँचाने लगते हैं। बंधन कितने ही अच्छे उद्देश्य से क्यों न नियत किए गए हों, हैं तो बंधन ही, और जहाँ बंधन है वहाँ असंतोष है तथा क्रांति है।”

प्रश्न 16.
सुभद्रा एक प्रसिद्ध कवियत्री के साथ-साथ एक सफल माँ है- स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सुभद्रा एक प्रसिद्ध कवयित्री की रूप में एक अलग ही स्वतंत्र व्यक्तित्व हैं, किन्तु इसके साथ ही वह एक सफल माँ भी हैं। उन्होंने अपनी संतान का लालन-पालन उस समय में मनोविज्ञान के आधार पर किया था, जब समाज में बच्चों के लालन-पालन में मनोविज्ञान को इतना महत्त्वपूर्ण नहीं माना जाता था और माता-पिता अपने बच्चों को संस्कारित करने के प्रयास में स्वयं अशिष्ट बन जाते थे। तब उन्होंने अपने बच्चों को स्वतंत्र वातावरण प्रदान किया। उनके इस व्यवहार का उन्हें सफल और सकारात्मक परिणाम मिला। उनके बच्चों ने भी कभी ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे उन्हें किसी के समक्ष शर्मिन्दा होना पड़े।

प्रश्न 17.
वर की योग्यता और कन्यादान प्रथा के सन्दर्भ में सुभद्रा जी के भाव व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
सुभद्रा जी ने कभी भी इस असत्य को स्वीकार नहीं किया कि वर की योग्यता केवल उसकी जाति के आधार पर ही आँकी जा सकती है। यदि जाति उच्च है तो वर के गुण उत्तम होंगे और यदि वह निम्न जाति का है तो उसके गुण और योग्यता निम्न होगी। उन्होंने वर्षों से चली आ रही कन्यादान की प्रथा को भी गलत ठहराते हुए घोषणा की, मैं कन्यादान नहीं करूंगी। क्या मनुष्य मनुष्य को दान करने का अधिकारी है? क्या विवाह के उपरांत मेरी बेटी मेरी नहीं रहेगी।?

प्रश्न 18.
गाँधी जी की अस्थिविसर्जन के उपरांत होने वाली सभा में सुभद्रा ने सम्मिलित होने से क्यों मना कर दिया? वह सभा में कब सम्मिलित हुईं?
उत्तर:
गाँधी जी के अस्थिविसर्जन के दिन सुभद्रा कई सौ हरिजन महिलाओं के जुलूस के साथ सात मील पैदल चलकर नर्मदा नदी के किनारे पहुँची। अस्थिविसर्जन के बाद एक सभा का आयोजन किया गया था। इस सभा के घेरे में सुभद्रा जी के साथ आई हरिजन महिलाओं को सम्मिलित नहीं होने दिया गया। इससे नाराज होकर उन्होंने सभा में सम्मिलित होने के लिए मना कर दिया। बाद में जब इन हरिजन महिलाओं को सभा में सम्मिलित किया गया तब ही वह सभा में सम्मिलित हुईं।

प्रश्न 19.
लेखिका की स्थिति कब विचित्र हो जाती थी?
उत्तर:
सुभद्रा के उनके घर आने पर लेखिका की सेविका भक्तिन भी उन पर रौब दिखाने लगती थी। वह सुभद्रा के घर आने की सूचना लेखिका की कक्षा में जाकर अपनी ग्रामीण भाषा में इतनी ऊँची आवाज में देती थी कि लेखिका की स्थिति विचित्र हो जाती। वह उन्हें ऐसे संबोधित करती जैसे वह अपने कर्तव्यों का उल्लंघन कर रही हो। उसके इस व्यवहार से तो किसी की भी सारी प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती थी। लेकिन महादेवी इसे रोक नहीं सकती थी और नहीं सुभद्रा के सामने उसे डाँट सकती थी और उसके कथन की उपेक्षा कर सकती थी।

प्रश्न 20.
एक साहित्यकार के रूप में लेखिका ने सुभद्रा की किन विशेषताओं को उजागर किया है? उस समय के और आज के साहित्य जगत में क्या अन्तर है?
उत्तर:
एक साहित्यकार के रूप में सुभद्रा अपने किसी भी परिचित और अपरिचित साहित्य-साथी की गलतियों के प्रति सदैव सहिष्णु रहती थी और उनके गुणों के मूल्यांकन में उदारता से काम लेती थी। अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने के प्रयास में किसी को निम्न या कमतर प्रमाणित करने की दुर्बलता और मानसिकता उनमें नहीं थी। उस समय के साहित्य जगत में आज के समान व्यक्तिगत स्पर्धा ईष्र्या-द्वेष नहीं था।

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 7 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखिका महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय दीजिए।
उत्तर:
आधुनिक युग की मीरा’ अथवा ‘पीड़ा की गायिका’ के नाम से प्रसिद्ध श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध नगर फर्रुखाबाद में होलिकादहन के दिन हुआ था। इनकी माता हेमरानी साधारण कवयित्री थीं। इनके नाना भी कविताएँ किया करते थे, अत: माता एवं नाना के इन गुणों का महादेवी जी पर भी प्रभाव पड़ा। इन्होंने मैट्रिक से लेकर एम.ए तक की परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। बहुत समय तक ‘प्रयाग महिला विद्यापीठ’ में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत रहीं। 
महादेवी की मूल पहचान एक छायावादी कावयित्री के रूप में है किन्तु इसका गद्य साहित्य भी लोकप्रियता की बुलन्दियाँ छूता है। गद्य के क्षेत्र में संस्मरण और रेखाचित्र लिखने में इन्हें लोकप्रियता मिली। इन्हें अनेक पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।

महादेवी जी का स्वर्गवास 80 वर्ष की अवस्था में 11 सितम्बर, सन् 1987 ई. को हुआ।
रचनाएँ – महादेवी जी की रचनाएँ इस प्रकार हैं
काव्य – निहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, सप्तपर्णा, प्रथम आयाम, अग्निरेखा।
गद्य-रेखाचित्र – अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ।
संस्मरण – पथ के साथी, मेरा परिवार, संस्मरण
निबन्ध – श्रृंखला की कड़ियाँ, विवेचनात्मक गद्य, साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबन्ध, संकल्पिता।
ललित निबंध – क्षणदा कहानियाँ- गिल्लू।
चुने हुए भाषणों का संकलन – संभाषण
महादेवी जी हिन्दी काव्य साहित्य की साधिका र्थी। उनका योगदान हिन्दी साहित्य के लिए अपूर्व उपलब्धि है।

प्रश्न 2.
सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय लिखिए।
अथवा
वीर रस की कवयित्री के रूप में सुभद्रा कुमारी चौहान का परिचय दीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता संग्राम की सक्रिय सेनानी, राष्ट्रीय चेतना की अमर गायिका एवं वीर रस की एकमात्र कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान को जन्म सन् 1904 में इलाहाबाद के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इन्होंने प्रयाग के क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की। 15 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह खण्डवा के ठाकुर लक्ष्मणसिंह चौहान के साथ हुआ। विवाह के बाद गाँधीजी की प्रेरणा से ये पढ़ाई-लिखाई छोड़कर देश-सेवा में सक्रिय हो गईं तथा राष्ट्रीय कार्यों में भाग लेती रहीं। इन्होंने अनेक बार जेल यात्राएँ भी कीं। माखनलाल चतुर्वेदी की प्रेरणा से इनकी देशभक्ति का रंग और भी गहरा हो गया। सन् 1948 में एक मोटर दुर्घनटना में इनकी असामयिक मृत्यु हो गई।

सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाओं में देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता का स्वर मुखरित हुआ है। इनके काव्य की ओजपूर्ण बोली ने भारतीयों में नवचेतना का संचार कर दिया। इनकी अकेली कविता ‘झाँसी की रानी’ ही इन्हें अमर कर देने के लिए पर्याप्त है। इनकी कविता ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ भी राष्ट्रीय भावनाओं को जगाने वाली ओजपूर्ण कविता है। इन्होंने राष्ट्रीयता के अतिरिक्त वात्सल्य भाव से संबंधित कविताओं की भी रचना की है।

रचनाएँ – इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं
काव्य संग्रह – मुकुल और त्रिधारा।
कहानी संकलन – सीधे-सादे चित्र, बिखरे मोती तथा उन्मादिनी।
‘मुकुल’ काव्य संग्रह पर इनको ‘सेकसरिया’ पुरस्कार प्रदान किया।

शैली – सुभद्रा जी की शैली अत्यंत सरल एवं सुबोध है। इनकी रचना शैली में ओज, प्रसाद और माधुर्य भाव से युक्त गुणों का समन्वित रूप देखने को मिलता है। इन्होंने नारी की जिस निडर छवि को प्रस्तुत किया है, वह नारी जगत् के लिए अमूल्य देन है। हिन्दी साहित्य में इन्हें गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 3.
क्रॉस्थवेट स्कूल के हॉस्टल की उस घटना का अपने शब्दों में विस्तार से वर्णन कीजिए, जिसने लेखिका महादेवी और सुभद्रा को अटूट मित्रता के बंधन में बाँध दिया।
उत्तर:
यह घटना उस समय की है जब लेखिका महादेवी वर्मा कक्षा पाँच में और सुभद्रा कुमारी चौहान कक्षा सात में पढ़ती थी। वे दोनों इसी स्कूल के हॉस्टल में साथ ही रहती थीं। अपने पारिवारिक वातावरण के कारण महादेवी को बचपन से कविताएँ लिखने का 
शौक था। वह गणित जैसे जटिल विषय की कॉपी में भी कविता की तुकबंदियाँ लिखा करती थीं। हॉस्टल में उस समय कविता लिखना जैसे किसी अपराध के समान था लेखिका के द्वारा गणित की कॉपी में कविता लिखे जाने की बात किसी लड़की ने सुभद्रा को बता दी । यह बात जानकर सुभद्रा ने लेखिका से इसके विषय में पूछा तो लेखिका ने इस प्रकार सिर हिलाकर उत्तर दिया जैसे वह हाँ भी कर रही हो और न भी।

लेखिका से कोई संतुष्टिजनक उत्तर न पाकर सुभद्रा ने उनकी डेस्क तक जाकर उनकी गणित की कॉपी उठा ली। कॉपी के पन्ने उलट-पलटकर देखने पर उन्होंने उसमें लिखी कविता की तुकबंदियाँ पढ़ लीं। वास्तविकता ज्ञात होने पर उन्होंने लेखिका का हाथ एक अपराधी की भाँति पकड़ा और हॉस्टल के प्रत्येक कक्ष में जा-जा कर लेखिका के द्वारा कविता करने की सार्वजनिक घोषणा करने लगीं। उनके ऐसे व्यवहार से लेखिका का मन रोने को हो आया, किन्तु उन्होंने ना रोने का निश्चय कर रखा था।

लेखिका को उनकी इस शक्ति परीक्षा में उत्तीर्ण देखकर सुभद्रा ने उनसे बड़े प्रफुल्लित भाव से कहा तुम बहुत सुन्दर लिखती हो। उनके इस कथन से लेखिका का अश्रुबाँध टूट पड़ा। उनकी आँखों में आँसू भर आए। तब उन्होंने सुभद्रा से ऐसे व्यवहार का कारण पूछा, तो उन्होंने लेखिका को बताया कि उन्हें भी यह सब झेलना पड़ा था। अब कविता करने वाले हम दो साथी हो गए। इस प्रकार यह घटना इन दोनों की अटूट मित्रता की नींव बनी।

प्रश्न 4.
एक पत्नी के रूप में सुभद्रा के व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सुभद्रा कुमारी चौहान जब 15 वर्ष की थीं और आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं तभी उनका विवाह स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर लक्ष्मणसिंह से हो गया था। वह अपने पति से पहले भी मिल चुकी थीं और उनके विचारों से भली-भाँति परिचित भी थी। अत: वह इस जानती थी कि एक पत्नी के रूप में अपने पति से जो भी कुछ प्राप्त करने की वह अधिकारणी है, वह सब देने का समय न उनके पति के पास होगा और न ही लेने के लिए उनके पास। विवाह के पूर्व से ही वह विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करने के लिए तत्पर रहीं। उन्होंने प्रत्येक परिस्थिति और पति के विचारों में पूर्णत: सहयोग करने का निश्चय किया। यही कारण है कि उन्होंने विवाह के बाद घर के अन्दर सुरक्षित जीवन जीने के स्थान पर पति के पदचिह्नों पर चलते हुए संघर्षमय जीवन चुना।

इस पथ पर चलते हुए उन्होंने अपनी गृहस्थी जेल में ही बसाई। उन्होंने कभी भी अपने पति से कुछ नहीं माँगा और न ही कभी कोई शिकायत की। वह एक सहधर्मिणी बनकर उनका साथ निभाती रहीं। कभी किसी सुख की अपेक्षा नहीं की और न ही संघर्षों और कष्टों से हारकर अपने पति का साथ छोड़ा। उन्होंने कभी भी अपने पति के विचारों का विरोध नहीं किया। स्वतंत्रता संग्राम के कंटक भरे पथ पर वह उनके पचिह्नों को अनुसरण करते हुए अनेक बार जेल भी गईं। सुभद्रा एक सहधर्मिणी और पतिव्रत का पालन करने वाली सहृदया पत्नी थीं।

प्रश्न 5.
सुभद्रा ने अपने बच्चों को कैसा वातावरण प्रदान किया था?
अथवा
बच्चों के प्रति अपनाए गए मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का सुभद्रा को कैसा प्रतिफल प्राप्त हुआ?
अथवा
अपने बच्चों के भविष्य के लिए सुभद्रा ने कैसे विद्रोह किया?
उत्तर:
अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य और विकास के लिए सुभद्रा ने समाज और परिवार दोनों के प्रति विद्रोह किया था। उसे समय में समाज में संतान के पालन-पोषण और लालन-पालन के लिए मनोविज्ञान का महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं था। माता-पिता कठोर व्यवहार और दंड पद्धति के माध्यम से अपने संतानों को संस्कारित और शिष्ट बनाने का प्रयास किया करते थे, किन्तु अपने इस प्रयास में कभी-कभी वह स्वयं अशिष्टता तक पहुँच जाते थे। ऐसे माहौल में सुभद्रा ने अपनी संतानों का लालन-पालन मनोविज्ञान के आधार पर किया। उन्हें एक स्वतंत्र वातावरण प्रदान किया। उन्होंने कभी भी अपने बालकों को उनकी इच्छा के विरुद्ध किसी कार्य को करने के लिए बाध्य नहीं किया।

उनके इसके वात्सल्य और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप उनकी संतान अत्यंत संस्कारी और शिष्ट बनी। उनके किसी भी बच्चे ने कभी भी ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे उनकी पृथ्वी के समान धैर्य धारण करने वाली माँ को जरा भी दु:खी होने का अवसर मिला हो या किसी के समक्ष झुकना पड़ा हो। उन्होंने सुभद्रा के लालन-पालन के तरीकों को कभी भी गलत सिद्ध नहीं होने दिया। सुभद्रा ने अपनी पुत्री के विवाह के समय वर को चुनाव जाति के आधार पर किए जाने पर विद्रोह कर दिया।

वह जाति को योग्यता का आधार नहीं मानती थीं। अपनी पुत्री के उज्ज्वल भविष्य के लिए वह सबके विरुद्ध खड़ी हो गई। इतना ही नहीं विवाह के समय होने वाली कन्यादान की प्रथा का भी उन्होंने विरोध किया। क्या मनुष्य मनुष्य को दान करने का अधिकारी है? क्या विवाह के बाद मेरी बेटी मेरी नहीं रहेगी? यह प्रश्न करते हुए, उन्होंने कन्यादान न करने की घोषणा कर दी। सुभद्रा एक सजग, ममतामयी और वात्सल्य से पूर्ण माँ थी, जो अपने बच्चों की उन्नति और उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रत्येक त्याग के लिए तत्पर रहीं।

पाठ-सारांश :

‘सुभद्रा’ लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित एक संस्मरण है, जिसमें उन्होंने अपनी बचपन की सखी वीर रस की लेखिका सुभद्रा कुमारी से जुड़ी अपनी समस्त स्मृतियों का वर्णन किया है। अपने इस संस्मरण में उन्होंने सुभद्रा जी के सभी गुण और प्रतिभाओं का बहुत सुन्दर वर्णन किया है। . बचपन से और वर्तमान समय (अर्थात् युवावस्था तक आते-आते) के बीच जैसे-जैसे अन्तराल (दूरी या समय) बढ़ता जाता है, वैसे-मनुष्य की स्मृतियाँ धुंधली होती चली जाती हैं। हमारे स्मृति पटल पर केवल उन्हीं लोगों के स्मृति चिह्न स्पष्ट रह जाते हैं, जिनसे हमारा बहुत आत्मीय संबंध होता है। शेष लोगों को हम भूल जाते हैं। बहुत याद दिलाने पर उनका चित्र हमारे स्मृतिपटल पर स्पष्ट नहीं होता है। उनके विषय में याद करना हमारे लिए कठिन होता है।

लेखिका के ऐसे ही अविस्मरणीय चित्रों में सबसे प्रथम स्थान सुभद्रा कुमारी चौहान का है। इतने वर्षों बाद भी उनसे जुड़ी हर याद लेखिका के स्मृतिपटल में ज्यों की त्यों विद्यमान है। पूरी तरह से स्पष्ट और सजीव। लेखिका और सुभद्रा कुमारी चौहान की मुलाकात क्रॉस्थवेट स्कूल के हॉस्टल में हुई थी। उस समय सुभद्रा कुमारी चौहान कक्षा सात में पढ़ती थी और लेखिका कक्षा पाँच की छात्रा थी। लेखिका को उस समय कविता लिखने का शौक था। यही शौक उनकी मित्रता की भी वजह बना। लेखिका के कविता लेखन की बात को उन्होंने पूरे हॉस्टल में भी इस भाँति बताया, जैसे लेखिका ने कोई अपराध किया हो। इससे वह रोने को आ गई किन्तु वास्तविकता ज्ञात होने पर दोनों में मित्रता हो गई।

सुभद्रा कुमारी चौहान का शब्दचित्र बनाना इतना आसान नहीं है क्योंकि उनकी भावनाओं ने उन्हें असाधारण बना दिया था। उनके गुणों को एक-एक करके देखने पर उनमें कुछ विशेष दिखाई नहीं देता था किन्तु समग्र रूप में उनके गुणों को दृष्टि से अधिक हृदय से अधिक ग्रहण करती थी।

वीरगीतों की लेखिका मझोले कद की और बहुत अधिक दुबली-पतली थीं। उनका चेहरा गोल, माथा चौड़ा, सीधी भौंह, बड़ी-बड़ी आँखें, छोटी-सी नाक, मुस्कराते हुए होंठ और इनकी दृढ़ता का परिचय देती ठुड्डी ये सब उनके कोमल उदार और अत्यंत निश्चल भारतीय नारी के स्वभाव का परिचय देते हैं। वह अत्यंत हँस-मुख र्थी। उनके संपर्क में आने वाली व्यक्ति स्वत: हँसना सीख जाता था। वह अक्सर लेखिका को अपने बचपन की एक घटना सुनाती थीं, जिसके अनुसार वह श्रीकृष्ण से मिलने के लिए देर रात तक जंगल में गोपी बनी घूमती रहीं। उनके घरवाले उन्हें ढूँढ़ते हुए घर लाए थे। अपने लक्ष्य-पथ पर अडिग रहना और सब कुछ हँसते हुए सहना उनका स्वभावगत गुण था।

सुभद्रा अब कक्षा आठ में र्थी, तभी उनका विवाह स्वतन्त्रता सेनानी लक्ष्मण सिंह जी से हो गया और वह अपनी ससुराल चली गईं। सुभद्रा ने भी अपने पति के पचिह्नों का अनुसरण किया और अनेक बार जेल भी गईं। घर और कारागार का क्रम विवाह से आरंभ होकर अंत तक चलता रहा। अपने छोटे बच्चों को वह अपने पास जेल में रखती थीं और बड़े बच्चे बाहर रहते थे। इस भाँति अपने बच्चों से दूर रहने के लिए बहुत धर्म और साहस की आवश्यकता होती है।

उनमें (सुभद्रा) हीन भावना नहीं थी। वह कविता लिखने के साथ गोबर के कंडे पाथती थी, घर के सभी कार्य निपटाती थीं । लेखिका और उनमें अक्सर गोबर से लीपने की प्रतियोगिता होती थी, किन्तु निर्णायक न होने के कारण प्रतियोगिता के परिणाम सदैव अघोषित रह जाते थे। सुभद्रा ने अपने आँगन में अनेक प्रकार के पौधे लगा रखे थे। सुभद्रा ने ऐसे संघर्षों के मध्य से अपना मार्ग बनाया जो किसी भी व्यक्ति को कठोर और सख्त बना सकता था। लेकिन इन सब भावनाओं से सुभद्रा अछूती रहीं। नारी अपने अन्दर के वीर भाव और रौद्र रूप को केवल अपने अस्तित्व निर्माण की बाधाओं को दूर करने के लिए या अपनी कल्याणकारी सृष्टि की रक्षा के लिए धारण करती है।

सुभद्राकुमारी चौहान का जीवन किसी क्षणिक उत्तेजना से प्रेरित होकर आगे नहीं बढ़ा अपितु उनके स्वभावगत गुणों और विस्तृत सोच से प्रेरित होकर आगे बढ़ा था। साथ ही उनकी कविताएँ भी कभी एक ही लीक पर नहीं चल उनकी कविताएँ भी सुभद्रा के हृदय से उपजे भावों और उस समय की तत्कालीन परिस्थितियों का परिणाम र्थी । वह थककर बैठने वालों में से नहीं थीं। अपितु उस मधुमक्खी के समान है जो सभी प्रकार के फूलों से समान रूप से रस इकट्ठा करके शहद तैयार कर लेती है। उसी प्रकार उनके सभी कोमल-कठिन, सहनीय और असहनीय अनुभवों का परिणाम सभी के लिए समान था।

उस समय स्त्री के अस्तित्व को पति से स्वतंत्र नहीं माना जाता था अर्थात् स्त्री को पुरुष की परछाई समझा जाता था। ऐसे समय में उनका मानना था कि आत्मा स्वतंत्र है और उसका व्यक्तित्व अलग है फिर चाहे वह पुरुष के शरीर में निवास करे अथवा स्त्री के में। वह व्यक्ति को बाँधने वाले सभी बंधनों को देश व समय के अनुसार बदलने के लिए कहती र्थी। उनका मानना था यदि इन बंधनों में बदलाव नहीं किया जाएगा तो वह व्यक्ति के विकास में बाधा पहुँचाएँगे। उस समय स्त्री को परंपराओं के पालन के लिए विवश किया जाता था किन्तु उन्होंने इस परंपराओं को तोड़ा। उन्होंने अपनी कहानियों में अनेक ऐसे पहलुओं को उभारा है, जिनके अंत हमें अंदर तक झकझोर देते हैं। उन्होंने अपने अनुभवों से अपनी प्रतिभा को निखारा।

उन्होंने एक मित्र के रूप में अपने पति का साथ दिया और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर अपने बच्चों का पालन-पोषण किया। अपनी पुत्री के विवाह के समय उन्होंने कन्यादान करने की प्रथा का विरोध किया। स्वतंत्रता के पश्चात् भी उन्होंने अभाव और पीड़ा के विरुद्ध अपने संघर्षों को जारी रखा। बापू के अस्थिविसर्जन के दिन हुई सभा में हरिजनों को स्थान दिलाने के बाद ही उन्होंने सभा में स्थान ग्रहण किया।

सुभद्रा के सरल स्वभाव ने लेखिका के हृदय में ऐसी अमिट रेखा खींची जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता। लेखिका बचपन से ही गंभीर थी, किन्तु सुभद्रा पर उनकी इस गंभीरता का कभी कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। वह सदैव लेखिका के साथ मुक्त भाव से रहा करती थीं। उनके आगमन पर लेखिका की सेविका भक्तिन भी उन पर आदेश चलाने लगती। सुभद्रा जब भी प्रयाग आती लेखिका के लिए कोई न कोई उपहार अवश्य लाती र्थी और जब कभी वह प्रयाग नहीं उतर पाती र्थी तो वह लेखिका को मिलने के लिए स्टेशन बुला लिया करती थी और वहीं उन्हें उपहारस्वरूप लाई हुई चूड़ियाँ भेंट करती र्थी।

जब कभी लेखिका और सुभद्रा साथ होती, हँसी का माहौल बना रहता था। सुभद्रा और लेखिका सम्मेलनों में साथ ही भाग लेती र्थी, लेकिन जब महादेवी ने कवि सम्मेलन में जाने से मना कर दिया तो उन्होंने कभी भी लेखिका को इसके लिए विवश नहीं किया। उस समय में आज की तरह साहित्य जगत में व्यक्तिगत स्पर्धा और ईष्र्या-द्वेष का भाव नहीं था। सुभद्रा जी अन्य साहित्यकारों के गुणों के मूल्यांकन के प्रति सदैव उदार रहती थीं। स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए उन्होंने कभी किसी को नीचा नहीं दिखाया। वसंत पंचमी के दिन सुभद्रा ने इस संसार से विदा ली। उनकी इच्छा थी कि मृत्य के बाद भी वह इस धरती पर समाधि के रूप में रहना चाहती थी और उनकी समाधि पर मेला लगे। मृत्यु के बाद भी उनके मुख पर वही मधुर मुस्कान थी।

कठिन शब्दार्थ :

(पा.पु.पृ. 52) शैशवकालीन = बचपन की। अतीत = भूतकाल। प्रवाह = गति। स्मृति = याद। रागात्मक = आत्मीय, प्रेम। वार्धक्य = बुढ़ापा। उपरांत = बाद में। अस्वीकृति = मना करना। खीझना = खिसियाना। अपराधिनी = दोषी। दंड = सजा। अन्वेषिका = अन्वेषण करने वाली, तय करने वाली। वक़कुंचित होना = क्रोध से तन जाना। कटु = कडुवा। तिक्त = तीखा। पेय = पीने का पदार्थ, पेय पदार्थ। पृष्ठ = पन्ने। अक्षम्य =क्षमा न किये जाने योग्य। निरादर = अपमान। उत्फुल्ल = प्रसन्नचित्त। आँखें सजल होना = आँखों में आँसू भर आना।

(पा.पु.पू. 53) दीप्ति = रोशनी। संचारिणी = संचार करने वाली। दीपशिखेव = दीपशिखा के समान। समग्रता = पूर्णता। उद्भासित होना = प्रकट होना । कृश = तिनका। भावनात = भावनाओं से परिपूर्ण। नासिका = नाक। तृप्ति = इच्छापूर्ति होना, पेट भरना। संक्रामक = संक्रमणशील, प्रभावी। लकुटी = लाठी। साधवाली = इच्छावाली। खोजना = ढूँढ़ना। पथ = मार्ग। अडिग = स्थिर। सन्नद्ध = लगा हुआ। प्राप्य = अधिकार। कारागार = जेल । मर्मव्यथा = दु:खभरी कहानी। दृष्टि = नजर।

(पा.पु.पृ. 54) पुष्पशैया = फूलों की सेज। भंग होना = टूटना। दोष = अपराध। संयत = नियंत्रित, संयमित। विस्मय = आश्चर्य। हीनता = निम्नता। ओज = तेज, प्रकाश। तन्मयता = तल्लीनता, मन से। अघोषित = जिसका परिणाम घोषित न हो। एकांत = अकेलापन। अधबने = अधूरा बनी हुआ। संग्रहित = एकत्रित। विराट = विशाल, भव्य। अनाहूत = अनिमंत्रित। अनुदार = कठोर। कटु = कडुवा। सृजनशीला = निर्माण करने वाली। बेधना = चीरना। क्षत = विक्षत। टूटा = फूटा। उग्र = तेज। उदात्त = महान।

(पा.पु.पृ. 55) तृप्ति = इच्छा-पूर्ति। सृजन = निर्माण। समकक्ष = समान। कोश = भंडार। भीमाकृति = विशालकाय। हिंसात्मक = हिंसा करने वाली। पाशविक = पशु के समान व्यवहार। उत्स = उत्सव। संचालित = चलायमान, गतिशील। लीक = प्रथा। तारतम्य = क्रम। अंतरव्यापिनी = हृदय में स्थित। बोध होना = एहसास होना। मधुमक्षिका = मधुमक्खी । भटकटैया = एक काँटेदार छोटा पौधा। रसाल = आम । मधुर = मीठा। तिक्त = तीखा, सहनीय। असह्य = असहनीय परिपाक = परिणाम। देशकालानुसार = स्थान व समय के अनुसार। नियत करना = निश्चित करना। आघात = चोट।

(पा.पु.पृ. 56) मींच लेना = बंद कर लेना। बरबस = अपने आप स्वयं। झकझोरना = पकड़कर हिलाना। पैनी = तीखी, तेज। विद्रोहिणी = विद्रोह करने वाली। सर्वथा = पूरी तरह से। अनुगामिनी = अनुगमन, अनुसरण करने वाली, पीछे चलने वाली। विधान = नियम। मुक्त = स्वतंत्र। बाध्य करना = मजबूर करना। महीयसी = धैर्यशाली। किंचित् = जरा भी। क्षुब्ध = दु:खी। अकरणीय = न करने योग्य। मूक-भाव से = चुपचाप।

(पा.पु.पृ. 57) वासंती = नए मधुर, वसंत जैसे। उपरांत = बाद में। अभाव = कमी। पीड़ा = कष्ट। क्षात्रधर्म = क्षत्रिय धर्म। प्राप्य = अधिकार। सख्य = मित्रता। अमिट = जिसे मिटाया न जा सके। अधिकारिणी = उत्तरदायी। परिधि = सीमा। कुतूहली = कौतूहल युक्त। रौब जमाना = अधिकार दिखाना। सहोदरा = सखी, सुभद्रा। विचरिअऊ = बेचारी। बरे = के लिए। माँ = में। अउर = और। कितवियन = किताबों। नाहिन बा = नहीं है। देहातिन = ग्रामीण।

(पा.पु.पृ. 58) औचित्य = कारण। विवश = मजबूर। स्पर्धा = प्रतियोगिता। ईष्र्या-द्वेष = जलन। निंदा = बुराई । त्रुटियाँ = गलतियाँ। सहिष्णु = धैर्यशील निजी = स्वयं की। प्रमाणित करना = सिद्ध करना। दुर्बलता = कमजोरी। असंभव = जो संभव न हो। पुष्पाभरणी = फूलों से भरी हुई। आलोकवसना = प्रकाशित। छवि = परछाई। कोलाहल = शोर। पार्थिव = मृत। अंचल = आँचल। छिन्न = टूटी हुई।

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