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RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 16 सूक्तयः

Rajasthan Board RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 16 सूक्तयः

RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 16 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखितशब्दानाम् उच्चारणं कुरुत-(निम्न। लिखित शब्दों का उच्चारण करो-) न हि सत्यात्, सङ्घ शक्तिः , शरीरमाद्यम्, जलदुरुपयोगः, उदारचरिताना, कुटुम्बकम्।
उत्तर:
छात्रा: स्वयमेव शब्दानाम् उच्चारणं कुर्वन्तु (नोट-छत्र स्वयं शब्दों का उच्चारण करें।)

प्रश्न 2.
अधोलिखितवाक्यानां सस्वरगानं कुरुत-(नीचे लिखे वाक्यों का सस्वर गान कीजिए-)
(क) नहि सत्यात् परं धनम्।
(ख) शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।
(ग) उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्
(घ) जलदुरुपयोगः महत्पापम् ।
(ङ) सल्ले शक्तिः कलौ युगे।
(च) अमृतमेव गवां क्षीरम्।
उत्तर:
छात्राः स्वयमेव दत्तानां वाक्यानां सस्वरगानं कुरुत। (छात्र स्वयं दिये गये वाक्यों का सस्वर गान करें।)

प्रश्न 3.
एकेन शब्देन उत्तरत-(एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) कीदृशं वाक्यं वद? (कैसा वाक्य बोलो ?)
(ख) परमं धनं किम् अस्ति? (श्रेष्ठ धन क्या है?)
(ग) संसारेऽस्मिन् कः जीवति? (इस संसार में कौन जीवित रहता है?)
(घ) परमं सुखम् कः अस्ति? (श्रेष्ठ सुख क्या है?)
(ङ) गवां क्षीरं कीदृशम् अस्ति? (गायों का दूध कैसा है?)
(च) कस्य दुरुपयोगः महत्पापम् अस्ति? (किसका दुरुपयोग | महान पाप है?)
उत्तर:
(क) शुभम्
(ख) सत्यम्
(ग) यस्य कीर्तिः
(घ) सन्तोषः
(ङ) अमृतम्
(च) जलस्य।

प्रश्न 4.
अधोलिखितशब्दान् चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत(नीचे लिखे शब्दों को चुनकर खाली स्थान पूरा कीजिए-)

RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 16 सूक्तयः 1

(क) उदारचरितानां तु………………कुटुम्बकम्।
(ख) शरीरमाद्यं … ……………… धर्मसाधनम्।
(ग) सन्तोषः. ………………….. सुखम् ।
(घ) हितं मनोहारि च ……………. वचः।
(ङ) वद वाक्यं ……………. सदा।
उत्तर:
(क) वसुधैव
(ख) खलु
(ग) परमम्
(घ) दुर्लभम्
(ङ) शुभम्।

प्रश्न 5.
उपयुक्त कथनस्य पुरतः’आम्’ अनुपयुक्तस्य च पुरतः न इति लेख्यम्-(उपयुक्त कथन के आगे ‘हाँ’ और अनुपयुक्त के आगे ‘न’ इस प्रकार लिखना चाहिए-)
(क) वद वाक्यं शुभं सदा।                          (   )
(ख) हितं मनोहारि च न दुर्लभं वचः।            (   )
(ग) सङ्घ शक्तिः कलौ युगे।                        (   )
(घ) शरीरमाद्यं न खलु धर्मसाधनं ।              (   )
(ङ) अमृतमेव गवां क्षीरम्।                        (   )
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) आम्
(घ) न
(ङ) आम्।

प्रश्न 6.
पर्यायवाचिशब्दान् लिखत-(पर्यायवाची शब्द लिखिए-)
उत्तर:
कीर्तिः = ख्यातिः, यशः, विश्रुतिः, प्रसिद्धिः।
जलम् = वारिः, नीरम्, सलिलम्, अम्बु, तोयम् ।
वचः = वाणी, वचनम्।
शक्तिः = सामर्थ्यः, बलम्, पराक्रमः।
वसुधा = भूमिः, मही, धरा, वसुन्धरा, अवनिः।

प्रश्न 6.
अधोलिखितानां शब्दानां विलोमपदानि लिखत(नीचे लिखे शब्दों के विलोम शब्द लिखिए-)
उत्तर:
शब्द                             विलोम
(क) सत्यम्               मिथ्या, असत्यम्
(ख) शुभम्                 अशुभम्।
(ग) कीर्तिः                    अपकीर्तिः
(घ) सुखम्                    दु:खम्।
(ङ) धर्मम्                     अधर्मम् ।

योग्यता-विस्तारः

1. एतान् अपि पठाम्
(i) सत्यमेव जयते नानृतम् ।
(ii) आलस्यं हिं मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
(iii) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
(iv) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
(v) आचारहीन न पुनन्ति वेदाः।
2. जानीम-
पुरतः–युवकस्य पुरत: दूरदर्शनम् अस्ति।
पृष्ठतः-युवकस्य पृष्ठतः आसन्दः अस्ति।
              अव्ययपदानि
यथा राजा तथा प्रजाः। (भावार्थ:-राजा प्रजा: च समाना एव) यथा लता गायति तथा अन्य: गायकः न गायति ।
(भावार्थ:-लता उत्तमं गायति इत्यर्थः)
वृक्षतः फलं पतति प्रश्न: – कुतः फलं पतति?
एतत् मम गृहं। अहम् इत: विद्यालयं गच्छामि
सः युद्धं न कृतवान् यतोहि सः दुर्बलः अस्ति। शीघ्रम्-वायुयानं शीघ्रं प्राप्नोति।।
मन्दम्-गजः मन्दं चलति। उच्चैः-सिंह उच्चैः गर्जति ।
मा चिन्तां कुरु
वृथा कालयापनं मास्तु।
पुष्पाणि इतस्तत: विकीर्णानि सन्ति ।
युवकः भ्रमणार्थम् उद्यानं गच्छति।
प्रश्न:-युवक: किमर्थम् उद्यानं गच्छति ?

RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 16 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
कः परमं सुखम्?
(क) शक्तिः
(ख) सत्यम्
(ग) धर्मम्
(घ) सन्तोषः।
प्रश्न 2.
गवां क्षीरं किं भवति?
(क) दुग्ध
(ख) तक्रम
(ग) जलम्
(घ) अमृतम्।
उत्तर:
1. (घ)
2. (घ)।

RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 16 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सर्वदा कीदृशं वद?
प्रश्न 2.
कं वचनं दुर्लभम्?
प्रश्न 3.
यस्य यशः नास्ति तस्य जीवनं कीदृशम्?
प्रश्न 4.
कलयुगे शक्तिः कस्मिन् अस्ति?
उत्तर:
1. सर्वदा सत्यं वद ।
2. हितकरं वचनं दुर्लभम् ।
3. तस्य जीवनं मृत्युसमः।
4. संघे शक्तिः कलयुगे।

पाठ परिचय

प्रस्तुत पाठ में शास्त्रों से महापुरुषों के कथनों से संकलित कर मनोहर सूक्तियों को दिया गया है। इनका अध्ययन, मनन व आचरण शुभप्रद है।

मूल अंश, शब्दार्थ, भावार्थ एवं

हिन्दी अनुवाद
1. सत्यं वद धर्म चर।
भावार्थ:-त्वं सर्वदा अपि सत्य वचनानि एवं वेद। धर्मानुसारम् आचरणं कुरु।
2. वद वाक्यं शुभं सदा।’
भावार्थ:-त्वं सर्वदा एवं शुभकरं प्रीतिकरं कर्णप्रियं च वाक्यं वद।
3. नहि सत्यात् परं धनम्।
भावार्थ:-सर्वश्रेष्ठं धनं सत्यम् एव अस्ति। अस्मिन् संसारे सत्यात् श्रेष्ठं धनं किमपि नास्ति।
4. हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः।
भावार्थ:-यद्ववचनं हितकरम् अस्ति कर्णप्रियं चापि अस्ति। तादृशं वचनं एकत्र न मिलति। अर्थात् यद्वचनं हितकरं भवति प्रायः तद्वचनं मनः प्रियं न भवति। अत: हितकरं वचनं सर्वदापि ग्राह्यम् अस्ति। तत्र मनोहरस्य अपेक्षा न करणीया।
5. कीर्तिः यस्य सः जीवति।
भावार्थ:-यः मनुष्यः उत्तमानि कार्याणि कृत्वा यश: अर्जितवान् तस्य एव जीवनं सार्थकम् अस्ति। यस्य यश: नास्ति तस्य जीवनं मृत्युसमः एव अस्ति अतः सत्कार्याणि कुर्वन्तः वयं यशः अर्जयेम।

शब्दार्था:-वद = बोलो। चर = आचरण करो। सर्वदा = हमेशा। अपि = भी। कुरु= करो। शुभम् = अच्छी। कर्णप्रियं = कानों को प्रिय लगने वाला। नहि = नहीं। सत्यात् = सत्य से। नास्ति = नहीं है। सत्यात् = सत्य से। परं = श्रेष्ठ। हितं = हितकारी। मनोहारि = मन को प्रिय लगने वाला। तादृशं = वैसा। मिलति = मिलता है। ग्राह्यम् = ग्रहण करने योग्य। कृत्वा = करके। अर्जितवान् = अर्जित करता है। कीर्तिः = यश। दुर्लभं = दुर्लभ। वचः = वचन।

हिन्दी अनुवाद-
1. सत्य बोलो, धर्मानुसार आचरण करो।
भावार्थ- तुम हमेशा सत्य-वचन ही बोलो। धर्म के अनुसार आचरण करो।
2. हमेशा शुभ (कल्याणकारी) वाक्य बोलो।
भावार्थ- तुम हमेशा ही अच्छ, प्रिय और कामों को प्रिय लगने वाला वाक्य बोलो।
3. सत्य से बढ़कर श्रेष्ठ धन नहीं है।
भावार्थ- सत्य ही सर्वश्रेष्ठ धन है। इस संसार में सत्य से बढ़कर कोई भी धन श्रेष्ठ नहीं है।
4. हितकारी और मन को प्रिय लगने वाला वचन कठिन मिलता है।
भावार्थ- जो वचन हितकारी है और कानों को प्रिय लगने वाला है। वैसा वचन इकट्ठा नहीं मिलता है अर्थात् जो वचन हितकारी होता है प्रायः वह वचन मन को प्रिय नहीं होता है। इसलिए हितकारी वचन हमेशा ग्रहण करने योग्य है। वहाँ मन को प्रिय लगने वाले (वचन) की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
5. जिसका यश है वही जीवित है।
भावार्थ- जो मनुष्य उत्तम कार्य करके यश प्राप्त करता है। उसी का जीवन सार्थक है। जिसकी कीर्ति नहीं है उसका जीवन मृत्यु के समान ही है। इसलिए हमको अच्छे कार्य करते हुए यश कमाना चाहिए।
6. सङ्गे शक्तिः कलौ युगे।
भावार्थः- इदं युगं कलियुगम् अस्ति। अस्मिन् कलियुगे सङ्गठन एवं शक्तिः भवति। सङ्गठिताः जनाः सर्वं कार्य साधयन्ति, असङ्गठिता: न। अत: वयं सङ्गठिताः भवेम्।
7. सन्तोषः परमं सुखम्।
भावार्थ:-सर्वोत्तमं सुख सन्तोषः एव अस्ति। एतत् सुखं यस्य समीपे भवति सः सर्वदा सुखी भवति। अतः वयं सन्तुष्टाः भवाम्।
8. शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।
भावार्थः यदि वयं धर्मानुसारम् आचरणं कृत्वा पुण्यानि अर्जयितुम् इच्छम्: तहिं प्रथमं शरीरस्य रक्षणम् आवश्यकम्। शरीरेण विना वयं धर्माचरणेन पुण्यार्जनं कथं करिष्यामः।
9. जलदुरुपयोगः महत्पापम्।
भावार्थ:-जलस्य दुरुपयोगं कृत्वा तस्य नाश: जीवनस्य एवं नाशः अस्ति। अतः एतत् महत्पापम् एव अस्ति।
10. अमृतमेव गवां क्षीरम्।
भावार्थः- गवां दुग्धम् अमृततुल्यम् अस्ति यतोहि अन्येषां प्राणिनां दुग्धस्य अपेक्षया गो: दुग्धं बहुगुणयुक्तं स्वास्थ्यवर्धक च भवति।
11. उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।
भावार्थ:-उदारचिन्तनशीलाः जनाः समस्तां पृथिवीं स्वकुटुम्बसमानाम् एव चिन्तयन्तीति ते अन्येषु भेदं न गणयन्ति।

शब्दार्था:-सहे = संगठन में। कलौ युगे = कलयुग में। साधयन्ति = पूरा करते हैं। भवे = होना चाहिए। परम् = श्रेष्ठ। आद्यम् = पहला। खलु = निश्चय। कृत्वा = करके। अर्जयितुम् = कमाने के लिए। गवाम् = गायों का। क्षीरम् = दूध। वसुधैव = पृथ्वी ही कुटुम्बकम् = परिवार। चिन्तयन्ति = सोचते हैं। परमं = श्रेष्ठ। धर्मसाधनम् = धर्म का साधन। महत्यापम् – महान पाप। उदारचरिताना = उदारचिन्तनशील।

हिन्दी अनुवाद
6. कलयुग में सङ्गठन में शक्ति है।
भावार्थ- यह युग कलयुग है। इस कलयुग में सङ्गठन में ही शक्ति होती है। संङ्गठित मनुष्य सम्पूर्ण कार्य पूरा करते हैं। असंङ्गठित नहीं। इसलिए हम सबको सङ्गठित होना चाहिए।
7. सन्तोष श्रेष्ठ सुख है।
भावार्थ- सबसे उत्तम सुख सन्तोष ही है। यह सुख जिसके पास होता है वह हमेशा सुखी होता है। इसलिए हम सब को सन्तुष्ट होना चाहिए।
8. शरीर निश्चय ही पहला धर्मसाधन है।
भावार्थ- यदि हम सब धर्म के अनुसार आचरण करके पुण्य कमाने की इच्छा करते हैं तो पहले शरीर की रक्षा आवश्यक है। शरीर के बिना हम सब धर्म आचरण से पुण्य अर्जन (कमाना) कैसे करेंगे।
9. जल का दुरुपयोग बड़ा पाप है।
भावार्थ- जल का दुरुपयोग करके उसका नाश जीवन का ही नाश हैं। इसलिए यह बड़ा पाप ही है।
10. गायों का दूध अमृत ही है।
भावार्थ- गाय का दूध अमृत के समान है। जिससे अन्य प्राणियों के दुग्ध की अपेक्षा गाय का दुग्ध (दूध) बहुत गुण युक्त और स्वास्थ्य को बढ़ाने वाला होता है।
11. उदार हृदय वालों की तो पृथ्वी ही परिवार के समान है।
भावार्थ- उदार चिन्तनशील मनुष्य सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने परिवार के समान सोचते हैं। वे अन्यों में भेद नहीं गिनते हैं। (मानते हैं)।

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