RBSE Class 12 Sociology Board Paper 2018

RBSE Class 12 Sociology Board Paper 2018 are part of RBSE Class 12 Sociology Board Model Papers. Here we have given Rajasthan RBSE Class 12 Sociology Board Paper 2018.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 12
Subject Sociology
Paper Set Board Paper 2018
Category RBSE Model Papers

Rajasthan RBSE Class 12 Sociology Board Paper 2018

समय: 3.15 घण्टे
पूर्णांक: 80

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश

  1. परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
  2. सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
  3. प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
  4. जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
  5. खण्ड प्रश्न संख्या अंक प्रत्येक प्रश्न उत्तर की शब्द सीमा
    1-10 1 10 शब्द
    11-15 2 30 शब्द
    16-25 3 45 शब्द
    26-30 6 200 शब्द
  6. प्रश्न क्रमांक 26 से 30 में आन्तरिक विकल्प हैं।

खण्ड – अ

प्रश्न 1.
लिंगानुपात को परिभाषित कीजिए। [1]

प्रश्न 2.
‘एन ऐस्से ऑन दी प्रिंसिपल ऑफ पापुलेशन’ पुस्तक के लेखक कौन हैं? [1]

प्रश्न 3.
किस जाति के अध्ययन के आधार पर एम.एन. श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण का सबोध दिया था? [1]

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प्रश्न 4.
किसने सर्वप्रथम बार अपनी पुस्तक पोस्ट मॉडर्न कन्डीशन’ में उत्तर-आधुनिक की अवधारणा का प्रयोग किया था? [1]

प्रश्न 5.
कौन-से संविधान संशोधन ने पहली बार पंचायतों में महिला आरक्षण का प्रावधान दिया था? [1]

प्रश्न 6.
भाषायी आधार पर गठित किन्हीं दो राजनीतिक दलों के नाम बताइए। [1]

प्रश्न 7.
भारत में ‘बाल-विवाह निरोधक अधिनियम’ कब पारित हुआ? [1]

प्रश्न 8.
सामाजिक चेतना का क्या अर्थ है?  [1]

प्रश्न 9.
राजस्थान में पर्यावरण संरक्षण हेतु चलाए गए आन्दोलन का नाम लिखिए। [1]

प्रश्न 10.
बेट-बेगार क्या है? [1]

खण्ड – ब

प्रश्न 11.
बी.एस. गुहा द्वारा उल्लिखित भारत में प्रजातीय विविधता के बारे में लिखिए। [2]

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प्रश्न 12.
विशेष योग्य जन कौन हैं? वर्तमान में इन्हें कौन-सा नया नाम दिया गया है? [2]

प्रश्न 13.
योगेन्द्र सिंह के अनुसार भारतीय परम्परा की क्या विशेषताएँ [2]

प्रश्न 14.
स्मार्ट सिटीज कार्यक्रम क्या है? [2]

प्रश्न 15.
जनसंचार के कारण होने वाले कोई दो सामाजिक परिवर्तन को बताइए। [2]

खण्ड – स

प्रश्न 16.
आधुनिक चिकित्सकीय सुविधाओं ने भारत में लिंगानुपात , को बढ़ाया है। कोई तीन कारण बताइए। [3]

प्रश्न 17.
ग्रामीण-नगरीय संलग्नता के कोई तीन बिन्दु लिखिए। [3]

प्रश्न 18.
सच्चर समिति की मुख्य सिफारिशें क्या थीं? [3]

प्रश्न 19.
लोकतन्त्र में दबाव समूह क्यों महत्वपूर्ण हैं? [3]

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प्रश्न 20.
भारत में महिलाओं के उत्थान हेतु किए गए संवैधानिक प्रयासों का उल्लेख कीजिए। [3]

प्रश्न 21.
ग्राम पंचायतों के क्या कार्य हैं? [3]

प्रश्न 22.
बालिका शिक्षा हेतु राजस्थान सरकार की कोई तीन योजनाओं का उल्लेख कीजिए। [3]

प्रश्न 23.
भारत में बालश्रम के क्या कारण हैं? [3]

प्रश्न 24.
‘समाज सुधार के लिए सामाजिक आन्दोलन आवश्यक है, कोई तीन कारण बताइए। [3]

प्रश्न 25.
आर्य समाज आंदोलन की कोई तीन विशेषताएँ बताइए। [3]

खण्ड – द

प्रश्न 26.
भारत की सांस्कृतिक विविधता पर एक लेख लिखिए। [6]
अथवा
सामाजिक संरचना से आप क्या समझते हैं? भारतीय सामाजिक संरचना को समझाइए।

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प्रश्न 27.
भारत में नगरीकरण के प्रभावों की व्याख्या कीजिए। [6]
अथवा
औद्योगीकरण के कारण भारतीय सामाजिक संरचना में क्या परिवर्तन हुए? समझाइए।

प्रश्न 28.
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को परिभाषित कीजिए और इसकी विशेषताओं को समझाइए।  [6]
अथवा
धर्मनिरपेक्षीकरण की व्याख्या कीजिए। भारतीय समाज पर इसके प्रभावों को बताइए।

प्रश्न 29.
आवासीय समस्या नगर नियोजन की सबसे बड़ी चुनौती है। समझाइए। [6]
अथवा
आव्रजन के प्रकार एवं कारणों को बताइए।

प्रश्न 30.
जनसंचार का क्या अर्थ है? जनसंचार समाज के लिए क्यों आवश्यक हैं? [6]
अथवा
‘जनसंचार सामाजिक परिवर्तन के लिए आवश्यक है।’ समझाइए।

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उत्तर

उत्तर 1:
प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या को लिंगानुपात कहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का लिंगानुपात 940 है।

उत्तर 2:
उपर्युक्त पुस्तक के लेखक थॉमस राबर्ट माल्थस हैं।

उत्तर 3:
कुर्ग जाति के अध्ययन के आधार पर एम.एन. श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण का सबोध दिया था।

उत्तर 4:
अरनाल्ड टॉयनबी ने सर्वप्रथम अपनी पुस्तक ‘पोस्ट मॉडर्न कन्डीशन’ में उत्तर-आधुनिक अवधारणा का प्रयोग किया था।

उत्तर 5:
73वें संविधान संशोधन ने पहली बार पंचायतों में महिला आरक्षण की प्रावधान दिया था।

उत्तर 6:

  1. डी.एम.के. (द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम)
  2. टी.आर. एस. (तेलंगाना राष्ट्र समिति)

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उत्तर 7:
भारत में बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 में पारित हुआ। इसे शारदा एक्ट के नाम से भी जाना जाता है।

उत्तर 8:
समाज के प्रति संवेदनशीलता का दृष्टिकोण सामाजिक चेतना है। यह सरकार के स्तर पर एवं व्यक्तिगत, दोनों प्रकार की होती है।

उत्तर 9:
खेजड़ली आंदोलन।

उत्तर 10:
ब्रिटिशकालीन भारत में बेट-बेगार की स्थिति बड़ी भयावह थी। इसमें बिना पारिश्रमिक दिए, श्रमिकों की इच्छा के विरुद्ध कार्य करवाया जाता था। राजस्थान में आदिवासी क्षेत्रों में गोविन्द गुरु बेट-बेगार का विरोध करने में अग्रणी रहे।

उत्तर 11:
बी.एस. गुहा द्वारा उल्लिखित भारत में प्रजातीय विविधता के अन्तर्गत नीग्रिटो, मंगोलायड, प्रोटो ऑस्टेलॉयड, भूमध्य सागरीय, इंडो आर्य आदि सम्मिलित हैं। इन्होंने प्रजातियों के शारीरिक लक्षणों तथा वैज्ञानिक तथ्यों के गहन अध्ययन के आधार पर अधिक शुद्ध एवं तार्किक ढंग से भारतीय प्रजातियों का वर्गीकरण सन् 1944 में ‘जनसंख्या के प्रजातीय तत्व’ लेख में प्रकाशित किया।

उत्तर 12:
विशेष योग्य जन ऐसे व्यक्ति हैं जो किसी चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा यथा प्रमाणित किसी विकलांगता से न्यूनतम् 40 प्रतिशत पीड़ित हों। वर्तमान में इन्हें नया नाम ‘दिव्यांग’ दिया गया है।

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उत्तर 13:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री योगेन्द्र सिंह ने अपनी पुस्तक Modernisation of Indian Traditions” में भारतीय परम्परा की चार महत्वपूर्ण विशेषताओं का उल्लेख किया है

  1. सामूहिक सम्पूर्णता-यह धारणा व्यक्तियों पर समूह की प्रधानता को स्थापित करती है। इस प्रवृत्ति ने जाति, गाँव आदि में व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान के स्थान पर समूह की सामूहिक पहचान को जन्म दिया है।
  2. संस्तरण-समाज में जातियों का ऊँच-नीच के आधार पर एक संस्तरण पाया जाता है। समाज में जाति, गुण तथा लक्ष्य संस्तरणात्मक व्यवस्था को स्थापित करते हैं।
  3. परलोकवादी विचारधारा-इसके अंतर्गत जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति करना है जो जीवन में संन्यास आश्रम के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है।
  4. निरंतरता-समाज में परम्परा का आधार निरंतरता की प्रवृत्ति का होना है। इसके साथ ही कर्म व पुनर्जन्म की अवधारणा निरन्तरता की पोषक है।

उत्तर 14:

  1. इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य भारत में विभिन्न शहरों को स्मार्ट शहरों में परिवर्तित करना है।
  2. इस कार्यक्रम के द्वारा व्यक्तियों को आर्थिक विकास की सुविधाएँ, स्वस्थ पर्यावरण तथा औद्योगिकी को उपलब्ध करवा कर उनके जीवन-स्तर में सुधार लाया जाएगा।
  3. इसमें विद्युत आपूर्ति, पर्याप्त पानी आपूर्ति व उचित स्वच्छता को सम्मिलित किया गया है।
  4. इसमें आधारभूत संरचना को ठोस आधार प्रदान के लिए नागरिकों की सुरक्षा, उनकी शिक्षा, प्रभावी शासन व नागरिकों की भागीदारी पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा।

उत्तर 15:
जनसंचार के कारण होने वाले दो सामाजिक परिवर्तन निम्नलिखित हैं-

  1. जनसंचार के कारण समाज में नवीन मूल्यों के उत्पन्न होने से प्राचीन सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन।
  2. सूचनाओं के भूमण्डलीय आदान-प्रदान के कारण समाज के व्यापक भाग में हुआ सांस्कृतिक परिवर्तन।

उत्तर 16:
आधुनिक चिकित्सकीय सुविधाओं ने भारत में लिंगानुपात को बढ़ाया है। इसके तीन कारण निम्नलिखित हैं

  1. आधुनिक चिकित्सकीय सुविधाओं के कारण बाल मृत्युदर में कर्मी आयी है।
  2. आधुनिक चिकित्सकीय सुविधाओं के कारण बाल जन्म दर में सुधार हुआ है।
  3. आधुनिक चिकित्सकीय सुविधाओं के कारण स्त्रियों की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई है। उपर्युक्त तीनों बिन्दुओं के परिप्रेक्ष्य में हम कह सकते हैं कि आधुनिक चिकित्सकीय सुविधाओं के कारण भारत में लिंगानुपात में वृद्धि हुई है।

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उत्तर 17:
ग्रामीण-नगरीय संलग्नता के तीन बिन्दु निम्नलिखित
(क) कच्चा माल, अनाज, फल-सब्जियाँ आदि के लिए नगर गाँवों पर निर्भर हैं जबकि चिकित्सा, उच्च शिक्षा व आजीविका के लिए गाँव, नगरों पर निर्भर हैं।
(ख) प्राचीनकाल से ही वस्तुओं व सेवाओं का आदान-प्रदान गाँव से नगरों की ओर होता रहा है।
(ग) गाँव में भी अब लोग नगरों की भाँति रहन-सहन अपनाने लगे हैं। उपर्युक्त बिन्दुओं से स्पष्ट है कि गाँव एवं नगर परस्पर संलग्न हैं।

उत्तर 18:
सच्चर समिति की मुख्य सिफारिशें निम्नलिखित थीं

  1. 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त एवं उच्च गुणवत्ता युक्त शिक्षा उपलब्ध कराना। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सरकारी विद्यालय खोलना, छात्रवृत्ति देने के साथ मदरसों का आधुनिकीकरण करना।
  2. रोजगार में मुस्लिम बंधुओं का हिस्सा बढ़ाना, प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में ऋण सुविधा उपलब्ध कराना एवं
    प्रोत्साहन देना। इसके साथ-साथ महिलाओं के लिए सूक्ष्म वित्त को प्रोत्साहित करना।
  3. मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कौशल विकास की व्यवस्था करना, वक्फ सम्पत्तियों का बेहतर इस्तेमाल करना, चुनाव क्षेत्र के परिसीमन प्रक्रिया में इस बात को ध्यान रखना कि अल्पसंख्यक बहुल इलाकों को एस.सी. के लिए आरक्षित न किया जाय आदि।

उत्तर 19:
लोकतन्त्र में दबाव समूह महत्वपूर्ण हैं क्योंकि

  1. ये राष्ट्रीय जागरूकता एवं वर्ग-चेतना को सुनिश्चित करने के लिए एक ठोस आधार प्रदान करते हैं।
  2. ये अधिकारों की सुरक्षा हेतु सरकार पर दबाव डालते हैं।
  3. ये भाषा एवं धर्म के प्रचार के लिए कार्य करते हैं।
  4. ये प्रभावशाली नेतृत्व का निर्माण करते हैं तथा भविष्य के नेताओं को एक प्रशिक्षण मंच उपलब्ध कराते हैं।
  5. ये लोगों को सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।
  6. ये समाज के अनेक परम्परागत मूल्यों के बीच पाये जाने वाले अन्तर को कम करने का प्रयत्न करते हैं।

उत्तर 20:
भारत में महिलाओं के उत्थान हेतु किए गए संवैधानिक प्रयास-भारत में महिलाओं की स्थिति को उच्च एवं सशक्त करने के लिए अनेक अधिनियम बनाए गए हैं। इनका विवरण निम्नलिखित है

  1. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (संशोधन विधेयक), 1929।
  2. हिंदू महिलाओं के संपत्ति के अधिकार का अधिनियम, 1937
  3. हिंदू विवाह अयोग्यता निवारण अधिनियम, 1946
  4. विशेष विवाह अधिनियम, 1954
  5. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
  6. दहेज प्रतिबंध अधिनियम, 1961 तथा मातृत्व लाभ अधिनियम।
  7. समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976

उपर्युक्त अधिनियमों के निर्माण से महिलाओं की प्रस्थिति में काफी बदलाव दृष्टिगोचर हुए हैं।

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उत्तर 21:
ग्राम पंचायतों के कार्य-ग्राम पंचायतों के कार्यों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है

  1. गाँव के रोड को पक्का करना एवं उनका रख-रखाव करना।
  2. गाँव में पशुओं के पीने के पानी की व्यवस्था करना।
  3. पशुपालन व्यवसाय को बढ़ावा देना, दूध बिक्री केन्द्र और डेयरी की व्यवस्था करना।
  4. सिंचाई के साधन की व्यवस्था करना। गाँव में स्वच्छता बनाए रखना।
  5. गाँव में सार्वजनिक स्थानों पर लाइट्स की व्यवस्था करना।
  6. दाह संस्कार व कब्रिस्तान का रख-रखाव करना आदि।

उत्तर 22:
बालिका शिक्षा हेतु राजस्थान सरकार की तीन योजनाओं का विवरण निम्नलिखित है

  1. प्रोत्साहन योजना-2008-2009 में प्रारंभ हुई इस योजना में कक्षा 12 में 75% से अधिक अंक प्राप्त करने वाली बालिकाओं को एकमुश्त 5000 रुपये का प्रोत्साहन पुरस्कार राज्य सरकार की ओर से दिया जाता है।
  2. छात्राओं को निःशुल्क साइकिल वितरण योजना-समस्त राजकीय विद्यालयों में शैक्षिक सत्र 2015-16 से कक्षा 9 में नवीन प्रवेश लेने वाली समस्त शहरी व ग्रामीण छात्राओं को साइकिल प्रदान करने की योजना का उद्देश्य बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना है।
  3. शारीरिक अक्षमतायुक्त बालिकाओं हेतु सबलता पुरस्कार2005-06 में आरंभ की गई इस योजना में शारीरिक रूप से विकलांग एवं मूक-बधिर तथा नेत्रहीन बालिकाएँ जो राजकीय विद्यालयों में कक्षा 9 से 12 में नियमित रूप से अध्ययनरत हैं, 2000 रुपये की आर्थिक सहायता उपलब्ध करायी जाती है।

उत्तर 23:
भारत में बालश्रम के कारण निम्नलिखित हैं

  1. आर्थिक विवशता-विकासशील देशों में गरीबी एक जटिल समस्या है। इस समस्या की छाप समाज के समस्त उन्नत क्षेत्रों पर पड़ती है। श्रम बाजार में बाल श्रमिकों की मांग है। इस कारण अभिभावक अपने बच्चों को उद्योगों से लेकर कृषि कार्य हेतु श्रम करने के लिए भेजते हैं।
  2. परिवार का बड़ा आकार होना-ऐसे परिवार जहाँ सदस्यों की संख्या अधिक होती है वहाँ एक व्यक्ति की आय से परिवार चलाना कठिन तथा दुष्कर कार्य होता है। ऐसी स्थिति में बच्चों की आय, परिवार की आजीविका का साधन बनती है।
  3. सस्तो श्रम होना-अनेक शोध यह स्पष्ट करते हैं कि नियोक्ता एक वयस्क श्रमिक पर जितना खर्च करता है, उसकी तुलना में मामूली-सी रकम चुकाकर वह बाल श्रमिकों से कार्य लेता है।

उत्तर 24:
समाजसुधार के लिए सामाजिक आन्दोलन आवश्यक हैं क्योंकि

  1. सामाजिक आंदोलन एक सामूहिक प्रयास है जिसका उद्देश्य समाज अथवा संस्कृति में कोई आंशिक अथवा पूर्ण परिवर्तन लाना या परिवर्तन का विरोध करना होता है।
  2. सामाजिक आन्दोलन समाज में परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण सूचक है। इसके कारण समाज में गतिशीलता उत्पन्न होती है एवं समाज को नई दिशा मिलती है। ऐसी स्थिति में समाज विकास के मार्ग पर अग्रसर होता है।
  3. सामाजिक आन्दोलनों के परिणामस्वरूप समाज में व्याप्त अनेक सामाजिक कुरीतियों; जैसेबाल-विवाह, सती प्रथा व विधवा विवाह पर प्रतिबन्ध आदि का समाज में अंत हुआ है।

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उत्तर 25:
आर्य समाज आन्दोलन की विशेषताएँ-आर्य समाज आंदोलन की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. मनुष्यों के बीच बंधुत्व की भावना को विकसित करना तथा स्त्री-पुरुषों के मध्य पायी जाने वाली असमानता को दूर करना।
  2. बहुदेववाद एवं मूर्तिपूजा का विरोध करना। साथ ही साथ बाल विवाह तथा जाति प्रथा का विरोध करना।
  3. स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार करना तथा सामाजिक, धार्मिक एवं राष्ट्रीय एकता को स्थापित करना।

उत्तर 26:
भारत की सांस्कृतिक विविधता- भारत की सांस्कृतिक विविधता के बारे में निम्नलिखित विवरण महत्वपूर्ण हैं। धर्म-भारत में अनेक धर्मों, भाषाओं व मतों को मानने वाले लोग रहते हैं। हिन्दू धर्म को मानने वाले सदस्यों की संख्या यहाँ सर्वाधिक है, जबकि मुस्लिम, ईसाई, जैन, बौद्ध व सिक्ख धर्म को मानने वाले सदस्यों की संख्या कम है, इस कारण इन्हें अल्पसंख्यक भी कहते हैं। विवाह-

  1. विवाह भारतीय समाज में परिवार की प्रमुख आधारशिला है।
  2. विवाह के माध्यम से ही व्यक्ति चार पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति करता है।
  3. हिन्दू धर्म में विवाह को एक धार्मिक कृत्य या संस्कार माना गया है।
  4. विवाह के माध्यम से ही व्यक्तिं पाँच ऋणों को पूरा कर सकता है।

नातेदारी-सामाजिक रूप से मान्यता प्राप्त ऐसे सम्बन्ध जो रक्त, विवाह एवं दत्तकता पर आधारित होते हैं, उसे नातेदारी कहते हैं। नातेदारी व्यवस्था ही समाज में विवाह एवं परिवार के स्वरूप, वंश, उत्तराधिकार एवं पदाधिकार का निर्धारण, आर्थिक हितों की सुरक्षा, सामाजिक दायित्वों का निर्वहन सम्बन्धी व्यवस्था का निर्धारण एवं सृजन करती है। श्रीमती इरावती कर्वे, ए. सी. नय्यर, मदान, गफ, लूई ड्यूमा तथा मैकोफन आदि ने भारत में नातेदारी व्यवस्था का विस्तारपूर्णक अध्ययन किया है।

परम्पराएँ-परम्परा को सम्बन्ध प्राचीनता से है। यह भूतकाल व वर्तमान के मध्य एक कड़ी का कार्य करती है। डॉ. योगेन्द्र सिंह ने परम्परा की चार विशेषताएँ बताई हैं

  1. सामूहिक सम्पूर्णता
  2. संस्तरण
  3. परलोकवादी
  4. निरंतरता।

कर्म तथा पुनर्जन्म-कर्म तथा पुनर्जन्म का सिद्धान्त भारतीय समाज में व्यक्ति को नई दिशा प्रदान करता है। उसे समाज द्वारा निर्धारित दायित्व के निर्वाह के लिए प्रेरित करता है। भारतीय समाज को सामाजिक संगठन की निरंतरता, स्थिरता तथा नियंत्रण की समस्या से मुक्त रखने में कर्म एवं पुनर्जन्म की अवधारणा ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है।

पुरुषार्थ-पुरुषार्थ जीवन का लक्ष्य है। इसका अभिप्राय उद्यम अथवा प्रयत्न करने से है, अर्थात् अपने अभीष्ट को प्राप्त करने के लिए उद्यम करना पुरुषार्थ है चार पुरुषार्थ का पालन करके (धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष) व्यक्ति जीवन के उच्चतम लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है।
संस्कार-संस्कार व्यक्ति के शारीरिक, सामाजिक, बौद्धिक और धार्मिक परिष्कार के निमित्त की जाने वाली क्रिया है। भारतीय समाज में मानव जीवन का पूर्ण नियोजन है। सामाजिक जीवन पूर्णत: संतुलित, संयमित तथा व्यस्थित हो इसलिए मनुष्य के जीवन को अवस्थानुसार नियोजित किया गया है।

अथवा
सामाजिक संरचना-समाजशास्त्र में संरचना शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग हरबर्ट स्पेंसर ने किया था। जब समाज की सम्पूर्ण इकाई क्रमबद्ध रूप से मिलकर एक निश्चित व्यवस्था का निर्माण करती है तब उसे सामाजिक संरचना कहा जाता है।

भारतीय सामाजिक संरचना-भारतीय सामाजिक संरचना से सम्बन्धित महत्वपूर्ण विवरण अग्रलिखित हैं

गाँव-

  1. भारतीय गाँव, भारतीय समाज की संरचना के आधारभूत अंग हैं।
  2. भारत कृषि प्रधान गाँवों का देश है। यहाँ गाँवों की कुल संख्या 6,40,867 (भारत की जनगणना 2011) है।
  3. ग्रामीण समुदाय वह क्षेत्र है, जहाँ कृषि की प्रधानता होती है।
  4. यहाँ प्राथमिक सम्बन्धों की बहुलता पाई जाती है।
  5. स्तरीकरण में प्रत्येक जाति अपने स्तर को दूसरी जाति की तुलना में स्वीकार करती है।

कस्बा-

  1. जनसंख्या आकार, घनत्व आदि के आधार पर नगरीय बस्तियों को कई भागों में विभाजित किया गया है, उनमें एक कस्बा है।
  2. कस्बा भी एक नगरीय क्षेत्र ही है।
  3. कस्बा नगर की तुलना में छोटा होता है।
  4. कस्बा के लिए जनसंख्या का घनत्व कम-से-कम 40 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी होना चाहिए।

नगर-

  1. भारतीय नगर, गाँवों से अलग जीवन जीने की एक विशिष्ट संस्कृति के सूचक हैं।
  2. नगरों में जनसंख्या का घनत्व अधिक पाया जाता है।
  3. भारत में 7,936 नगर हैं।
  4. नगरों में 31.16% जनसंख्या निवास करती है।
  5. नगरों में औपचारिकताओं का पालन अधिक किया जाता है।
  6. नगरों में द्वितीयक सम्बन्धों की प्रधानता होती है।
  7. नगरों में श्रम-विभाजन तथा विशेषीकरण पाया जाता है।
  8. नगरों में लोगों को रोजगार के नए अवसर प्राप्त होते हैं।

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उत्तर 27:
भारत में नगरीकरण के प्रभाव-भारत में नगरीकरण के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव रहे हैं, जिनको क्रमशः विवरण निम्नलिखित हैसकारात्मक प्रभाव-सकारात्मक प्रभावों को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत समझा जा सकता है

1. व्यक्तिवादी भावना-वर्तमान समय में पाश्चात्य सभ्यता के कारण नगरों में व्यक्तिवादिता की भावना का उदय हुआ है। वहाँ सामूहिकता और पारिवारिकता के स्थान पर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत हितों को ही अधिक महत्व देने लगा है।

2. सामाजिक गतिशीलता-नगरीकरण के कारण सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई है। एक व्यक्ति अच्छे अवसर प्राप्त होने पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने तथा अपने पद, वर्ग एवं व्यवसाय को बदलने को तैयार रहता है।

3. आर्थिक क्रियाओं पर प्रभाव-नगरीकरण की प्रक्रिया ने आर्थिक क्रियाओं और संस्थाओं में भी अनेक परिवर्तन उत्पन्न कर दिये हैं। आज नगरों में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हुए हैं, जो उत्पादन के केन्द्र बन गए हैं।

4. राजनीतिक क्षेत्र पर प्रभाव-नगरों में ही लगभग सभी राजनीतिक दलों के कार्यालय होते हैं और नगर ही उनकी गतिविधियों के केन्द्र हैं। वे कई आंदोलनों का प्रारम्भ नगरों से ही करते हैं। नगरों में सभी प्रकार के राजनीतिक दलों के अनुयायी पाए जाते हैं जो धरना, घेराव, हड़ताल करते हैं जिससे लोगों में राजनीतिक जागृति पैदा हुई है।

5. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन

  • शिक्षा के अधिकारों की प्राप्ति हुई।
  • इस प्रक्रिया से स्त्रियों में चेतना का विकास हुआ है।
  • अब इनकी पारिवारिक प्रस्थिति भी उच्च हुई है।
  • नगरों में पंर्दा-प्रथा तथा घूघट प्रथा का प्रचलन भी लगभग समाप्त हो गया है।

6. विवाह पर प्रभाव

  • जीवन साथी के चयन में अब परिवारों की सहमति के बजाय लड़के व लड़की की राय को महत्व दिया जाता है।
  • अब पत्नी पति को परमेश्वर न मानकर एक मित्र व साथी मानने लगी है।
  • बाल-विवाह कम हुए हैं।
  • समाज में अब अविवाहित रहने तथा देर से विवाह करने की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है।
  • समाज में अब प्रेम विवाहों का चलन बढ़ा है।
  • विवाह को अब धार्मिक संस्कार न मानकर उसे अब एक सामाजिक समझौते के रूप में देखा जाता है।
  • Court Marriage का प्रचलन भी समाज में बढ़ा है।
  • विवाह का उद्देश्य समाज में आनंद की प्राप्ति करना है।

नकारात्मक प्रभाव-नगरीकरण के नकारात्मक प्रभावों को निम्नलिखित विवरणों द्वारा समझा जा सकता है

  1. अपराधों में वृद्धि-गाँवों की तुलना में नगरों में अपराध
    अधिक होते हैं। नगरों में परिवार, धर्म, पड़ोस एवं जाति के नियंत्रण में शिथिलता के कारण अपराधों में वृद्धि हो गयी है।
  2. स्वास्थ्य पर प्रभाव-नगरों में स्वच्छ वातावरण का अभाव होता है। वायु-प्रदूषण, स्थान की कमी, जनसंख्या में वृद्धि, अनेक बीमारियाँ तथा कारखानों का शोर आदि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
  3. सामाजिक विघटन-व्यक्तिवादिता के कारण नगरों में सामाजिक नियंत्रण शिथिल हुआ है। वहाँ परिवार, धर्म, ईश्वर तथा जाति के नियंत्रण के अभाव में समाज विरोधी कार्य • अधिक होते हैं। इससे सामाजिक विघटन को बढ़ावा मिलता है।
  4. आवास की समस्या-नगरों में एक ज्वलंत समस्या मकानों की है। नगरों में हवा एवं रोशनीदार मकानों का अभाव होता है। नगरीय क्षेत्रों में कई मकान तो बीमारियों के घर होते हैं।
  5. मानसिक तनाव एवं संघर्ष-नगरों में प्रतियोगिता की स्थिति बनी रहती है। हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से आगे निकलना चाहता है। यही स्थिति उसे मानसिक रूप से परेशान करती है तथा समाज में अनेक संघर्षों को उत्पन्न करती है।
  6. वेश्यावृत्ति की समस्या-नगरों में वेश्यावृत्ति अधिक पायी जाती है। वहाँ यौन रोग, एड्स, यौन अपराधों की अधिकता तथा नैतिक मूल्यों का पतन होता है।
  7. जनसंख्या वृद्धि-नगरों में जनसंख्या वृद्धि आज एक अहम् समस्या है। बढ़ती जनसंख्या ने यातायात, शिक्षा, प्रशासन एवं सुरक्षा की समस्या पैदा की है। सभी के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना, यातायात एवं सुरक्षा के स्थान जुटाना व नगरों में प्रशासन चलाना एक कठिन कार्य हो गया है।
  8. भिक्षावृत्ति-नगरों में भिक्षावृत्ति अधिक है। सड़क के किनारे मंदिर, मस्जिद एवं धार्मिक स्थानों के पास, रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड एवं सार्वजनिक स्थानों पर भिखारियों की भीड़ देखी जा सकती है। भिक्षावृत्ति नगरों में व्याप्त गरीबी का सूचक है।

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अथवा
औद्योगीकरण के कारण भारतीय सामाजिक संरचना में हुए परिवर्तन–औद्योगीकरण के कारण भारतीय सामाजिक संरचना में सकारात्मक एवं नकारात्मक इन दोनों प्रकार के परिवर्तन हुए। इनका क्रमशः विवरण निम्नलिखित हैसकारात्मक परिवर्तन-इस प्रकार के परिवर्तन से सम्बन्धित विवरण निम्नलिखित हैं

1. नगरीकरण-औद्योगीकरण के कारण विशाल नगरों का विकास हुआ। जहाँ उद्योग स्थापित हो जाते हैं वहाँ कार्य करने के लिए गाँव के अनेक लोग आकर बस जाते हैं तथा धीरे-धीरे वह स्थान औद्योगिक नगर का रूप ले लेता है।

2. यातायात के साधनों का विकास-औद्योगीकरण की प्रक्रिया के कारण यातायात के साधनों का विकास हुआ है। कारखानों के लिए कच्चा माल तथा निर्मित माल को भेजने में इन साधनों ने अपनी अहम् भूमिका का निर्वाह किया।

3. उत्पादन में वृद्धि-औद्योगीकरण की प्रक्रिया के कारण श्रम-विभाजन एवं विशेषीकरण में वृद्धि हुई जिसके परिणामस्वरूप मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बड़े पैमाने पर अधिक मात्रा में होने लगा।

4. सांस्कृतिक सम्पर्क

  • नवीन साधनों ने विभिन्न संस्कृतियों को नजदीक लाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।
  • इससे सदस्यों में पारस्परिक समझ बढ़ी है।
  • इससे फैशन, धर्म, रिवाजों तथा जीवन-विधि आदि को अपनाने में सहायता मिली है।
  • इसने पारस्परिक आदान-प्रदान की नीति को प्रोत्साहन दिया है।

5. अन्य सकारात्मक प्रभाव इस प्रकार हैं

  • इसके परिणामस्वरूप शिक्षा में वृद्धि हुई।
  • विचारों में विविधता पनपी है।
  • कृषि कार्य में यंत्रीकरण को बढ़ावा मिला है।
  • इससे अंधविश्वासों में कमी आई है।
  • इससे मानव के सुखों व ऐश्वर्य में वृद्धि हुई है।
  • सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई।
  • जाति-प्रथा में अनेक बदलाव दृष्टिगोचर हुए।
  • स्त्रियों की स्थिति में अनेक बदलाव हुए।
  • इस प्रक्रिया से समय व धन दोनों की ही बचत हुई है।
  • इससे धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को बल मिला है।

नकारात्मक परिवर्तन-इस प्रकार के परिवर्तन से सम्बन्धित विवरण निम्नलिखित हैं

1. पूँजीवाद-यह औद्योगिक व्यवस्था की ही देन है जो स्वयं अनेक समस्याओं के लिए उत्तरदायी है। श्रमिकों के श्रम का लाभ पूँजीपतियों को मिलता है। इस पूँजीवादी व्यवस्था ने ही समाज को दो वर्गों में बाँट दिया-पूँजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग।

2. सामाजिक विघटन एवं अपराध-औद्योगीकरण के कारण समाज विरोधी कार्यों व अपराधों में वृद्धि हुई है। इससे आत्महत्या, चोरी, गबन एवं आपराधिक व्यवहारों में बढ़ोतरी हुई है।

3. बेरोजगारी की समस्या-उद्योगों में मशीनों ने मनुष्य का स्थान ले लिया। पहले जिस कार्य को 50 व्यक्ति पूरा करते थे, अब मशीनों की सहायता से 10 व्यक्ति ही पूरा कर लेते हैं।

4. कुटीर उद्योगों का पतन-इससे कुटीर उद्योगों का पतन हो गया क्योंकि इसके द्वारा बना हुआ माल टिक नहीं सका।

5. पराश्रितता की स्थिति-इसके कारण एक गाँव की दूसरे गाँव पर ही नहीं वरन् एक राष्ट्र की दूसरे राष्ट्र पर निर्भरता बढ़ी। कच्चा माल खरीदने एवं बने हुए माल को बेचने के लिए दो देशों में समझौते हुए एवं पारस्परिक निर्भरता बढ़ी।

6. मकानों की समस्या-उद्योगों में काम करने के लिए गाँव से लोग नगरों में हजारों की संख्या में आते हैं, जिसके कारण उनके निवास की समस्या पैदा होती है।

7. स्वास्थ्य की समस्या-कारखानों का वातावरण अस्वास्थ्यकर होता है, जिससे क्षय रोग, अपच, साँस की अन्य बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।

8. दुर्घटनाओं में वृद्धि-उद्योगों में चौबीसों घंटे काम चलता रहता है। निद्रा आने पर थोड़ी-सी असावधानी या थकान से हाथ-पाँव कटने व स्वयं को मृत्यु के मुख में धकेलने की आशंका बनी रहती है।

9. आर्थिक प्रतिस्पर्धा-औद्योगीकरण ने आर्थिक प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया। एक कारखाने की दूसरे से वे एक पूँजीपति की दूसरे पूँजीपति से गलाकाट प्रतियोगिता को बढ़ावा मिला है।

10. अन्य नकारात्मक कारक

  • इससे सामुदायिक भावना का पतन हुआ है।
  • व्यक्तिवादी भावना में वृद्धि हुई है।
  • व्यक्तियों की असीमित इच्छाओं में वृद्धि हुई है।
  • प्राथमिक सम्बन्धों का ह्रास हुआ है।
  • नैतिक मूल्यों का पतन हुआ है।
  • इससे उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद की स्थापना को बल मिला है।

उत्तर 28:
आधुनिकीकरण की प्रक्रियामुरे-मुरे ने सोशल चेंज में बताया है कि-“आधुनिकीकरण के अन्तर्गत परम्परागत अथवा पूर्ण आधुनिक समाज का पूर्ण परिवर्तन उस प्रकार की औद्योगिकी एवं उससे सम्बन्धित सामाजिक संगठन के रूप में हो जाता है जो पश्चिमी दुनिया के विकसित, आर्थिक दृष्टि से समृद्धशाली और राजनैतिक दृष्टि से समृद्धशाली एवं स्थिर राष्ट्रों में पाई जाती है।”

योगेन्द्र सिंह-“आधुनिकीकरण एक संस्कृति प्रत्युत्तर के रूप में है, जिनमें उन विशेषताओं का समावेश है, जो प्राथमिक रूप से विश्व व्यापक एवं उविकासीय है।”

आधुनिकीकरण को संस्कृति-सर्वव्यापी जैसा भी कहा जा सकता है। आधुनिकीकरण का अर्थ केवल प्राविधिक उन्नति से ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी है। समकालीन समस्याओं के लिए मानवीकरण के लिए दार्शनिक दृष्टिकोण का होना आवश्यक है।

आधुनिकीकरण की विशेषताएँ-लर्नर ने आधुनिकीकरण की निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन किया है

  1. वैज्ञानिक भावना का विकास होना।
  2. संचार के साधनों का विकास होना।
  3. नगरीकरण में वृद्धि।
  4. नगरीय जनसंख्या में वृद्धि होना।
  5. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि का होना।
  6. शिक्षा का प्रसार होना।
  7. राजनैतिक साझेदारी में वृद्धि होना।
  8. व्यापक आर्थिक साझेदारी में वृद्धि होना।
  9. जीवन के सभी पक्षों में सुधार होना।
  10. दृष्टिकोण की व्यापकता में वृद्धि करना।
  11. नवीनता के प्रति लचीलेपन के भाव में वृद्धि होना।
  12. समाज में होने वाले परिवर्तनों को स्वीकार करना।
  13. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में तेजी आना।
  14. समाज में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार होना।

RBSE Class 12 Sociology Board Paper 2018

अथवा
धर्म निरपेक्षीकरण की व्याख्या-प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम.एन. श्रीनिवास के अनुसार धर्म निरपेक्षीकरण की व्याख्या को निम्नलिखित तरह से समझा जा सकता है

  1. धार्मिकता में कमी-श्रीनिवास ने बताया है कि जैसे-जैसे जनमानस में धर्मनिरपेक्षता या लौकिकता की भावना का विकास होता है; लोगों में धार्मिक कठोरता के भाव लुप्त होने लगते हैं।
  2. तार्किक चिन्तन की भावना में वृद्धि-व्यक्ति का जीवन परम्परागत तरीके से ही चलता है। उनमें धार्मिक विश्वास अधिक पाया जाता है। धार्मिक विचारों एवं विश्वासों का तर्क द्वारा विश्लेषण नहीं किया जाता।
  3. विभेदीकरण की प्रक्रिया-समाज में जैसे-जैसे लौकिकीकरण की प्रक्रिया का विकास होगा, समाज में उतनी ही तीव्र गति से विभेदीकरण भी बढ़ेगा। विभेदीकरण के कारण समाज के विभिन्न पहलू जैसे-राजनीतिक, समाजिक, सांस्कृतिक, कानूनी एवं धार्मिक एक-दूसरे से पृथक् हो रहे हैं।

भारतीय समाज पर धर्म निरपेक्षीकरण का प्रभाव- भारतीय समाज पर धर्म निरपेक्षीकरण के प्रभाव को हम निम्नलिखित विवरण से समझ सकते हैं

1. पवित्रता व अपवित्रता की धारणा- भारतीय जीवन-शैली और समाज-रचना में पवित्रता तथा अपवित्रता की। धारणाओं का विशेष प्रभाव रहा है। “पवित्रता” को विभिन्न अर्थों में समझा जाता है, जैसे स्वच्छता, सदाचरण तथा धार्मिकता। इसी प्रकार अपवित्रता” को भी मलिनता, दुराचरण तथा पाप इत्यादि के अर्थों में समझा जा सकता है।भारत में जातियों के बीच की दूरी का निर्धारण ऊँची जातियों की पवित्रता तथा नीची जातियों की अपवित्रता की धारणाओं के आधार पर किया जाता है। जो जातियाँ ऊँची बनना चाहती हैं वे संस्कृतिकरण के द्वारा अधिक पवित्रता की ओर बढ़ती हैं। जाति सोपान ऊँची जातियों के व्यवसाय, भोजन, रहन-सहन, पवित्रता की धारणा से परिभाषित किए जाते हैं। पवित्रता व अपवित्रता की धारणाएँ वस्त्रों तथा जीवनचर्या को भी प्रभावित करती रही हैं। विभिन्न अवसर जैसे- श्राद्ध आदि पर बाल कटवाना तथा नए वस्त्र पहनना भी इसी आधार पर अनुचित माना जाता है।

2. जीवन-चक्र तथा कर्मकांड-हिन्दू जीवन-चक्र में संस्कारों का प्रमुख महत्व है। संस्कारों को आधुनिक जीवन की व्यवस्था के अनुरूप संक्षिप्त कर दिया गया है। परम्परागत संस्कार जो पहले अनेक धार्मिक कृत्यों, कठिन व्रतों, जटिल अनुष्ठानों से परिपूर्ण लम्बे समय में सम्पन्न किए जाते थे, अब वह थोड़ी देर में ही समाप्त करवा दिए जाते हैं। समाज में कुछ संस्कारों का लौकिक महत्व कम है, उन्हें छोड़ भी दिया गया है; जैसे-वानप्रस्थ, गर्भाधान व संन्यास आदि संस्कार के चलन कम हो गए हैं।

3. सामाजिक संरचना-श्रीनिवास के अनुसार-“हिन्दू धर्म सामाजिक संरचना पर निर्भर रहा है।” जाति, संयुक्त परिवार तथा ग्रामीण समुदाय आदि हिन्दू धर्म को जीवित रखते आए हैं। औद्योगीकरण, शिक्षा का प्रसार, अस्पृश्यता निवारण लोकतांत्रिक व्यवस्था व विकास कार्यक्रम आदि ने ग्रामीण समाज की मनोवृत्तियों में भारी परिवर्तन किया है।

4. धार्मिक जीवन-हिन्दू धर्म व संस्कृति को राष्ट्रीय व सामाजिक आधारों पर प्रतिपादित किया जाने लगा है। उपरोक्त तथ्यों से यह विदित होता है कि धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का समाज के प्रत्येक क्षेत्रों में प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। जिसके आधार पर समाज में तथ्यों को अब तर्कसंगत आधारों पर ही स्वीकृत किया जाता है।

उत्तर 29:
आवासीय समस्या : नगर नियोजन की सबसे बड़ी चुनौती-वर्तमान समय में नगरों में आवास की समस्या सर्वप्रमुख है। नगरों में लाखों की संख्या में ऐसे लोग निवास करते हैं। जिनके पास स्वयं का घर नहीं है। उत्तरोत्तर यह समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। वर्तमान समय में यह समस्या नगर नियोजन के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौती है। सरकार भी इस समस्या से भली भाँति अवगत है। समस्या से निपटने हेतु सरकार द्वारा किए जा रहे महत्वपूर्ण प्रयास निम्नलिखित हैं

1. राष्ट्रीय आवास नीति

  • वर्ष 1950 के बाद भारत सरकार ने 12 पंचवर्षीय योजनाएँ बनायीं जिनका उद्देश्य आवास निर्माण के साथ शहरी विकास करना है।
  • नेहरू जी ने रोजगार योजना से शहरी निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम की शुरुआत की।
  • इन योजनाओं में संस्था निर्माण तथा सरकारी कर्मचारियों तथा कमजोर वर्गों के लिए मकानों के निर्माण पर जोर दिया गया।
  • ग्लोबल शेल्टर स्टेट’ की अनुवर्ती कार्यवाही के रूप में 1998 में राष्ट्रीय आवास नीति की घोषणा की गई, जिसका उद्देश्य आवासों की कमी को दूर करना तथा सब के लिए बुनियादी सेवाओं को मुहैया कराना था।

2. प्रधानमंत्री आवास योजना-सबके लिये आवास (शहरी)-इस मिशन का आरंभ सन् 2015 में हुआ था। 2015-2022 के मध्य इस मिशन को क्रियान्वित किया जाएगा तथा निम्नलिखित कार्यों के लिये शहरी स्थानीय निकायों व अन्य क्रियान्वयन ऐजेंसियों को राज्यों/संघ शामिल प्रदेशों के जरिये केन्द्रीय सहायता उपलब्ध करायी जाएगी जो निम्न प्रकार

  • पुनर्वास की स्थापना-इसके अंतर्गत नगरों में निवास करने वाले नगरवासियों या झुग्गीवासियों के रहने के लिए, नगरों में अतिरिक्त पायी जाने वाली भूमि का पूर्ण रूप से उपयोग करके लोगों के लिए उपयुक्त आवास की व्यवस्था करना।
  • ऋण संबंधी सहायता-नगरों में ऐसे व्यक्तियों के समूह को जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं तथा जो अपनी दैनिक मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में असफल रहे हैं। साथ ही जिनके पास जीवन-यापन के लिए उचित संसाधनों का अभाव है, ऐसे लोगों को ऋण देकर उनकी सहायता की जाएगी।
  • किफायती आवास-जो नगरवासी अपने जीवन-यापन के लिए साधनों की व्यवस्था कर रहे हैं उनके लिए किफायती या कम दरों पर आवास की व्यवस्था मुहैया करायी जाएगी।
  • नेतृत्व वाले आवास के लिए सहायता-इसके अलावा नगरों में लाभार्थी के नेतृत्व वाले आवास के निर्माण या विस्तार के लिए लोगों को सहायता प्रदान करना।

RBSE Class 12 Sociology Board Paper 2018

अथवा
आव्रजन के प्रकार-आव्रजन कई प्रकार का होता है, जिसे हम निम्नलिखित रेखाचित्र के माध्यम से समझ सकते हैं
RBSE Class 12 Sociology Board Paper 2018 1
आव्रजन के कारण-आव्रजन के कारणों में विभिन्न कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिनका विवरण निम्नलिखित
1. प्राकृतिक कारक-

  • प्राकृतिक कारकों में जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा व भूकंप आदि के कारण लोगों में आव्रजन बढ़ता है।
  • किसी स्थान की मिट्टी का अनुपजाऊ होने तथा खनिज संसाधनों के समाप्त होने से भी आव्रजने में तीव्र वृद्धि होती है।
  • लोगों को जीविका के साधनों की प्राप्ति के लिए भी उनमें आव्रजन की प्रक्रिया दृष्टिगोचर होती है।

2. राजनीतिक कारक-

  • जो क्षेत्र राजनीतिक दृष्टि से मजबूत होता है वहाँ लोग अधिक आव्रजन करते हैं।
  • युद्ध में बनाये गए बंदियों तथा दास बनाये गए लोगों को विजेता देशों के लिये स्थानांतरित करने से भी इस प्रक्रिया में वृद्धि होती

3. आर्थिक कारक-

  • नगरों की आर्थिक सुदृढ़ता के कारण नगरों में गांव से लोगों का आव्रजन अधिक होता है।
  • जिन स्थानों पर उपयुक्त साधन हों, वे जनसंख्या के आकर्षण केन्द्र बन जाते हैं तथा वहाँ बाहर से जनसंख्या का आव्रजन बढ़ जाता है।

4. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक-

  • शिक्षा के केन्द्र में भी आव्रजन होता है, क्योंकि यह एक ओर मनुष्य की कार्यकुशलता और योग्यता को बढ़ाते हैं, वहीं दूसरी ओर उन प्राचीन परंपराओं तथा रूढ़ियों से मुक्ति दिलाते हैं जो कि व्यक्ति के विकास में बाधक हैं।
  • शहरों में रहने वाले परिवारों से जब ग्रामीण परिवार से संपर्क रखने वाली कन्या का विवाह होता है तो स्वाभाविक रूप से शहरों में उनका आव्रजन होता है।

उत्तर 30:
जनसंचार का अर्थ-जब कोई सन्देश या समाचार किसी माध्यम से आमजन तक पहुँचाया जाता है, तो इसे जनसंचार कहा जाता है।

जनसंचार की समाज के लिए आवश्यकता-अपनी विशिष्ट उपयोगिता के कारण जनसंचार समाज के लिए अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि लोगों को जागरूक करने और जनमत बनाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जनसंचार के विभिन्न अवयवों की भूमिका निम्नलिखित है

समाचार-पत्र

  1. समाचार-पत्र में नित्य प्रति की स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं की सूचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं।
  2. इसमें व्यवसाय, सेवा व विवाह इत्यादि से संबंधित विज्ञापन छपते हैं जिनके आधार पर संबंधित लोगों में पारस्परिक संपर्क होता है।
  3. जनता के विचार संपादक के नाम पत्र’ के कॉलम में प्रकाशित होते हैं।
  4. संपादकीय (Editorial) समाचार-पत्र का महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि उसके माध्यम से स्वयं संपादक अपना विचार जनता तक पहुँचाते हैं व जनता उन पर विचार करती है।

टेलीविजन-

  1. स्वाभाविक रूप से व्यक्ति का प्रत्यक्ष दर्शन होने से अधिक प्रभाव पड़ता है।
  2. यह मनोरंजन का एक सशक्त साधन है, ज्ञानवर्धन में सहायक है और लोगों के व्यवहार निर्देशन का एक यंत्र भी है।
  3. परिवार में अब बातचीत के स्थान पर दृश्य दर्शन बढ़ रहा है और परिवार एक वार्ता-समूह के स्थान पर श्रोता समूह होता जा रहा है।

चलचित्र-

  1. यह जनसंचार का सरल एवं अत्यंत प्रभावशाली साधन है।
  2. चलचित्रों में संक्षिप्त समाचारों को प्रत्यक्ष दर्शाया जाता है।
  3. देश-विदेश की महत्वपूर्ण घटनाएँ, सामाजिक जीवन में होने वाले परिवर्तन आदि चलचित्रों के माध्यम से जनता तक पहुँचते हैं।

इंटरनेट-

  1. वर्तमान युग में इंटरनेट जनसंचार का एक बहुत ही शक्तिशाली माध्यम है।
  2. लोग इंटरनेट के माध्यम से किसी भी देश के कोने में अन्य लोगों से संपर्क स्थापित कर सकते हैं।
  3. आज इंटरनेट जनता की एक शक्तिशाली आवाज है जो संसार के समस्त क्षेत्रों में गूंजती है।

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अथवा
जनसंचार सामाजिक परिवर्तन के लिए आवश्यक है। क्योंकि ये सामाजिक परिवर्तन के महत्वपूर्ण साधन हैं। सामाजिक परिवर्तन में इनकी आवश्यकता को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर समझा जा सकता है

  1. मानवीय क्रियाएँ तथा अंतक्रियाएँ ही सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन का एक ठोस आधार होती हैं।
  2. मानवीय क्रियाएँ एवं अंतक्रियाओं को संचार माध्यम प्रभावित कर सकते हैं तथा इसमें परिवर्तन भी ला सकते हैं।
  3. एक स्थान पर घटित होने वाली घटना समूचे देश को प्रभावित कर देती है। इसका कारण केवल संचार माध्यम है।
  4. संचार माध्यम भावनाओं को उकसाने में भी अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं।
  5. संचार माध्यम राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने के लिए संदेश तथा समाचारों को जनों तक प्रेषित करते हैं।
  6. देश में स्वतंत्रता आंदोलन को उत्पन्न करने तथा संपूर्ण देशवासियों में राष्ट्रभक्ति की भावना को जागृत करने में संचार साधनों ने एक अहम्। भूमिका निभायी है।
  7. जनसंचार साधनों से आमजन भी अपनी धारणाओं को बदलकर उचित दिशा में परिवर्तन का निर्णय लेते हैं।
  8. समाज में संचार साधनों की भूमिका का महत्व निरंतर बढ़ता जा रहा है। एक तरफ नकारात्मक विचार, समाचार या संदेश संचार माध्यमों से प्रसारित होते हैं, तो दूसरी तरफ सकारात्मक विचार, समाचार या संदेश भी प्रसारित होते हैं।
  9. सामाजिक परिवर्तन अवश्यंभावी है, जिससे संचार के महत्व को भी देश, काल तथा परिस्थिति के आधार पर समझा जाता है।
  10. संचार साधनों ने समाज में रूढ़िवादी परंपराओं को समाप्त करने में अपना बहुमुखी योगदान दिया है।
  11. संचार साधनों की वृद्धि से समाज में गतिशीलता को काफी बल मिला है।

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